RD Sharma Class 9 Solutions (2020-2021 Edition)

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RS Aggarwal Solutions Class 9 (2020-2021 Edition)

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RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 1 Real Numbers

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 2 Polynomials

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 3 Introduction to Euclid’s Geometry

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 4 Angles, Lines and Triangles

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 5 Congruence of Triangles and Inequalities in a Triangle

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RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 7 Areas

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 8 Linear Equations in Two Variables

RS Aggarwal Solutions Class 9 Chapter 9 Quadrilaterals and Parallelograms

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वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 12

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 12 वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 12 वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् Summary Notes

वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्  Summary

यह पाठ छान्दोग्योपनिषद् के छठे अध्याय के पाँचवें खण्ड से उद्धृत है। इसमें एक रोचक विवरण प्रस्तुत किया गया है। श्वेतकेतु आचार्य आरुणि से प्रश्न करता है कि मन क्या है? आचार्य उसे बताते हैं कि खाए गए अन्न का जो सर्वाधिक लघु अंश होता है, वह मन है। श्वेतकेतु पुनः प्रश्न करता है कि प्राण क्या है? आचार्य उसे बताते हैं कि पान किए जल का जो सर्वाधिक लघु अंश होता है, वह प्राण है।
वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 12
श्वेतकेतु तीसरा प्रश्न करता है कि वाणी क्या है? आचार्य उसे बताते हैं कि खाए गए तेज का सर्वाधिक लघु अंश वाणी है। आचार्य श्वेतकेतु को दृष्टान्त के द्वारा समझाते हैं कि जिस प्रकार दही को मथने पर घी निकलता है, उसी प्रकार खाए गए अन्न का जो लघुतम अंश ऊपर आ जाता है, वही मन है। इसी प्रकार वे प्राण और वाणी का रहस्य भी बताते हैं। अन्त में आचार्य कामना करते हैं कि हम दोनों का पढ़ा हुआ ज्ञान तेजस्वी हो।

वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् Word Meanings Translation in Hindi

1. श्वेतकेतुः – भगवन्! श्वेतकेतुरहं वन्दे।
आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव।
श्वेतकेतुः – भगवन्! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि।
आरुणिः – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति?
श्वेतकेतुः – भगवन्! ज्ञातुम् इच्छामि यत्
किमिदं मनः?
आरुणिः – वत्स! अशितस्यान्नस्य
योऽणिष्ठः तन्मनः।

शब्दार्थाः-
वन्दे-प्रणाम करता हूँ, चिरञ्जीव-लम्बी आयु वाले बनो, किञ्चित्-कुछ, प्रष्टुम्-पूछना, इच्छामि-चाहता हूँ, अद्य-आज, प्रष्टव्यम्-पूछने योग्य, इदम्-यह, किम्-क्या, मन:-मन, चित्त, अशितस्य-खाए गए, अणिष्ठः – सबसे छोटा, अन्नस्य-भोजन का, यः-जो, तत्-वह।

अर्थ- श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं श्वेतकेतु (आपको) प्रणाम करता हूँ।
आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो।
श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं कुछ पूछना चाहता हूँ?
आरुणि – हे पुत्र! आज तुम क्या पूछना चाहते हो?
श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं पूछना चाहता हूँ कि यह मन क्या है?
आरुणि – हे पुत्र! पूर्णतः पचाए गए अन्न का सबसे छोटा भाग मन होता है।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
इदम् – मनः
यः – अणिष्ठः
तत् – मनः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
किञ्चित् (कुछ) – सः किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छति।

वन्दे – प्रणमामि
प्रष्टुम् – प्रश्नं कर्तुम्
इच्छामि – वाञ्छामि
अणिष्ठः – लघिष्ठः, लघुतः।
चिरञ्जीव – दीर्घायु
प्रष्टव्यम् – प्रष्टुं योग्यम्
आशितस्य – भक्षितस्य
चिरञ्जीव – दीर्घायु
प्रष्टव्यम् – प्रष्टुं योग्यम्
आशितस्य – भक्षितस्य

2. श्वेतकेतुः – कश्च प्राणः?
आरुणिः – पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः। श्वेतकेतुः – भगवन्! का इयं वाक्?
आरुणिः – वत्स! अशितस्य तेजसा योऽणिष्ठः सा वाक्। सौम्य! मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयः वाक् च तेजोमयी भवति इत्यप्यवधार्यम्।
श्वेतकेतुः – भगवन्! भूय एव मां विज्ञापयतु।
आरुणिः – सौम्य! सावधानं शृणु! मथ्यमानस्य दध्नः योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। तत्सर्पिः भवति।
श्वेतकेतुः – भगवन्! भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम् व्याख्यातम्। भूयोऽपि श्रोतुमिच्छामि।
आरुणिः – एवमेव सौम्य! अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। तन्मनो भवति। अवगतं न वा?

शब्दार्था:-
अन्नमयम्-अन्न से बना हुआ, पीतानाम् पिए हुए के, अपाम्-पानी का, अणिष्ठः-सबसे छोटा, वाक्-वाणी, तेजसा अग्नि से, आपोमयः-जल में परिणत अर्थात् जल में परिवर्तित, तेजोमयी-तेजस्वी, प्रभावशाली, अवधार्यम्-समझने योग्य, भूयः-एक बार फिर, विज्ञापयतु-समझाओ, मथ्यमानात्-मथे जाते हुए के, दन:-दही के, समुदीषति-ऊपर उठता है, ऊर्ध्व-ऊपर, अणिमा-सबसे छोटा भाग, सीपः-घी, व्याख्यातम्-व्याख्या कर दी है, घृतोत्पत्तिरहस्यम् घी के बनने के रहस्य को, श्रोतुम्-सुनने के लिए, अश्यमानस्य-खाए जाते हुए, अवगतम्-समझ गए, वा-या। अथवा, भवता-आपके द्वारा।

अर्थ-श्वेतकेतु – और प्राण क्या है?
आरुणि – पिए गए तरल द्रव्यों का सबसे छोटा भाग प्राण होता है।
श्वेतकेतु – हे भगवन्! वाणी क्या है? ।
आरुणि – हे पुत्र! ग्रहण की गई ऊर्जा का जो सबसे छोटा भाग है, वह वाणी है। हे सौम्य! मन अन्नमय, प्राण जलमय तथा वाणी तेजोमयी होती है-यह भी समझ लेना चाहिए। श्वेतकेतु – हे भगवन्! आप मुझे पुनः समझाइए।
आरुणि – हे सौम्य! ध्यान से सुनो। मथे जाते हुए दही की अणिमा (मलाई) ऊपर तैरने लगती है, उसका घी बन जाता है।
श्वेतकेतु – हे भगवन्! आपने तो घी की उत्पत्ति का रहस्य समझा दिया, मैं और भी सुनना चाहता हूँ।
आरुणि – सौम्य! इसी तरह खाए जाते हुए अन्न की अणिमा (मलाई) ऊपर उठती है, वह मन बन जाती है समझ गए या नहीं?

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणः – विशेष्यम्
इयम् – का/वाक्:
व्याख्यातम् – रहस्यम्
सा – वाक्
तत् – मनः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
भूयः (बार बार)- सः भूयः पाठान् असमरत्।
एवमेव – अहम् तु सदैव एवमेव करोमि।
न – त्वम् कथम् इदम् अकरो:?
वा (अथवा) – त्वम् अधुना पठ भ्रम वा

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
अपाम – जलम् / जलानाम्
अन्नमयम् – अन्नविकारभूतम्
तेजोमयः – अग्निमयः
अवधार्यम् – अवगन्तव्यम्
भूयोऽपि – पुनरपि
सर्पिः – घृतम्, आज्यम्
अणिष्ठः – लघुतमः, लघिष्ठः
आपोमयः – जलमयः
वाक् – वाणी
विज्ञापयतु – प्रबोधयत
समुदीषति – समुत्तिष्ठति, समुद्याति, समुच्छलति
अश्यमानस्य – भक्ष्यमाणस्य, निगीर्यमाणस्य

विलोमपदानि

पदानि – विलोमपदानि
मथ्यमानस्य – अमथ्यमानस्य
भूयः – एकवारम्
अणिष्ठः – गरिष्ठः
श्रोतुम् – वक्तुम्
ऊर्ध्वः – अधः
रहस्यम् -प्रकटम्
अवगतम् – अनवगतम्

3. श्वेतकेतुः – सम्यगवगतं भगवन्!
आरुणिः – वत्स! पीयमानानाम् अपां योऽणिमा स ऊर्ध्वः समुदीषति स एव प्राणो भवति।
श्वेतकेतुः – भगवन्! वाचमपि विज्ञापयतु।
आरुणिः – सौम्य! अश्यमानस्य तेजसो योऽणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति। सा खलु वाग्भवति। वत्स!
उपदेशान्ते भूयोऽपि त्वां विज्ञापयितुमिच्छामि यत्, अन्नमयं भवति मनः, आपोमयो भवति प्राणाः तेजोमयी च भवति वागिति। किञ्च यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य
चित्तादिकं भवतीति मदुपदेशसारः। वत्स! एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय।
श्वेतकेतुः – यदाज्ञापयति भगवन्। एष प्रणमामि।
आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव। तेजस्वि नौ अधीतम् अस्तु (आवयोः अधीतम् तेजस्वि अस्तु)।

शब्दार्थाः-
विज्ञापयतु-समझाओ, उपदेशान्ते-व्याख्यान के अंत में, पीयमानानाम्-पिए जाते हुए, किञ्च-इसके अतिरिक्त, तेजस्वि-तेजस्विता से युक्त, हृदयेन-हृदय में, चेतना में, मदुपदेशसार:-मेरे उपदेश का सार, चित्तादिकम्-मन, बुद्धि और अहंकार आदि, अवधारय-धारण कर लो, समझ लो, आज्ञापयति-आज्ञा देते हैं; अस्तु-हो, नौ-हम दोनों का, गृह्णाति-ग्रहण करता है, यादृशम्-जैसा, तादृशम्-वैसा, प्रणमामि-प्रणाम करता हूँ, चिरञ्जीव-लंबी आयु वाले हो, वत्स-पुत्र, अधीतम्-पढ़ा हुआ अध्ययन।

अर्थ –
श्वेतकेतु – अच्छी तरह समझ गया भगवन्।
आरुणि – हे पुत्र! पिए जाते हुए जल की अणिमा प्राण बन जाती है।
श्वेतकेतु – हे भगवन्! वाणी के बारे में भी समझाए।
आरुणि – हे सौम्य! शरीर द्वारा ग्रहण किए गए तेज (ऊर्जा) की अणिमा वाणी बन जाती है। हे पुत्र!
उपदेश के अंत में मैं तुम्हें पुनः यही समझाना चाहता हूँ कि अन्न का सारतत्व मन, जल का प्राण तथा तेज का वाणी है। इसके अतिरिक्त अधिक क्या, मेरे उपदेश का सार यही है कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है उसका मन, बुद्धि और अहंकार (चित्त) वैसा ही बन जाता है।
हे पुत्र! इस सबको हृदय में धारण कर लो। (अच्छी प्रकार से समझ लो)
श्वेतकेतु – जैसी आपकी आज्ञा भगवन्! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो, तुम्हारा अध्ययन तेजस्विता से युक्त हो। (हम दोनों की पढ़ाई तेजयुक्त हो)।

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
अस्यमानस्य – भक्ष्यमाणस्य, निगीर्यमाणस्य
तेजस्वि – तेजोयुक्तम्
अधीतम् – पठितम्
अवगतम् – अवगच्छम्
वाक् – वाणी
इच्छामि – वाञ्छामि
मत् – मे
आज्ञापयति – आज्ञां ददाति
चित्तम् – मनः
नौ – आवयोः
सम्यक् – भली-भाँति
ऊर्ध्वः – ऊपरि
विज्ञापयितुम् – अवगमयितुम्
गृहणाति – ग्रहणं करोति
अवधारय – धारणं कुरु
प्रणमामि – नमामि/प्रणमामं करोमि
अवधारयत – ध्यानेनशृणुत

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
सम्यक् – असम्यक
विज्ञापयतु – अविज्ञापयतु
उन्ते – आरम्भे
मत् – त्वत्
ऊर्ध्वः – अधः
सौम्य – चञ्चल/उद्दण्ड
गृह्णाति – ददाति

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
अन्नमयम् – मनः
अपोमयः – प्राणः
तेजोमयी – वाणी
स: – प्राणः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
यादृशं (जैसा) – मनुष्यः यादृशं अन्नं गृहणाति तस्य।
तादृशं (वैसा) – चित्रमपि तादृशं एव भवति।

पर्यावरणम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 11

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 11 पर्यावरणम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 11 पर्यावरणम् Summary Notes

पर्यावरणम् Summary

प्रस्तुत पाठ पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबंध है। आज मनुष्य का वातावरण बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में मानव का सर्वाधिक योगदान है। मनुष्य ने अपनी दुर्बुद्धिवश जल, मृदा, वायु आदि को प्रदूषित कर दिया है। कारखानों का विषाक्त कचरा जल में डाला जाता है।
पर्यावरणम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 11

इससे जल पीने योग्य नहीं रह जाता है, जबकि जल मनुष्य की महती आवश्यकता है। प्रतिदिन वृक्षों को काटा जा रहा है। इस प्रकार हरियाली का नाश हो रहा है। इससे मनुष्य को शुद्ध वायु उपलब्ध नहीं होती है। वाहनों की होड़ भी वायु को प्रदूषित कर रही है। वाहनों के धुएँ से वायु अत्यधिक जहरीली हो चुकी है।

इसमें न केवल मानव अपितु अन्य जीवों का भी जीवित रहना कठिन हो गया है। मनुष्य को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। अधिकाधिक वृक्षों का रोपण करना चाहिए। वृक्षों की कटाई शीघ्र बंद करनी चाहिए। जल के स्रोतों को प्रदूषण मुक्त करना चाहिए। ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिए। सभी प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए। इन कदमों से ही मानव-जीवन सुखद बनेगा।

पर्यावरणम् Word Meanings Translation in Hindi

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति ।
पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङितो जनः किं कर्त प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

शब्दार्था:-
यतते-कोशिश करती है, संरक्षणाय-रक्षा के लिए, पुष्णाति-पुष्ट करता है, तर्पयति-तृप्त (संतुष्ट) करती है, तेज-अग्नि, आवियते-आच्छादित किया जाता है, परितः-चारों तरफ से, समन्तात्-चारों तरफ से, अजातः शिशुः-अजन्मा शिशु, मातृगर्भे-माता के गर्भ में, कुक्षौ-गर्भ में, परिष्कृतं-शुद्ध, लोकः-संसार, सुरक्षितः-सुरक्षित, प्रदूषणरहितम्-प्रदूषण से रहित, सद्विचारं-अच्छे विचार, सत्यसङ्कल्पम्-अच्छे संकल्प, माङ्गलिकसामग्रीम्-मंगल सामग्री, प्रकृतिकोपैः-प्रकृति के गुस्से से, अतङ्किकतः-व्याकुल, प्रभवति-समर्थ है, जलप्लावनैः-बाढ़ों से, भूकम्पैः-भूचालों से, वात्यचक्रैः-आँधी, बावंडर, उल्कापातादिभिः-उलका आदि के गिरने से, सन्तप्त-दुखी, क्व-कहाँ, मङ्गलम्-कल्याण।

अर्थ-
प्रकृति सब प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है। यह विभिन्न प्रकार से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से’ तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, तेज़, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्व हैं। ये ही मिलकर या अलग-अलग हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, वह ‘पर्यावरण’ कहलाता है। जिस प्रकार अजन्मा (जिसने जन्म नहीं लिया है) शिशु अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)।

परिष्कृत (शुद्ध) तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री देता है। प्रकृति के क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है? बाढ़, अग्निभय, भूकंपों, आँधी-तूफानों तथा उल्का आदि के गिरने से संतप्त (दुखी) मानव का कहाँ कल्याण है? अर्थात् कहीं नहीं।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
विविधैः – प्रकारैः
प्रमुखानि – तत्त्वानि
आतङ्कितः – जनः
समेषां – प्राणिनां
विशेषणम् – विशेष्यः
विविधैः – सुखसाधनैः
सांसारिकं – जीवनसुखं
सन्तप्तस्य – मानवस्य
इयं – प्रकृतिः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि च (और) – प्रकृतिः विविधैः पकारैः सर्वान् पुष्णाति तर्पयति च।
यथा-तथा (जैसा-वैसा) – यथा परिश्रमं तथा फलम्।
एव (ही) – सः एवम् एव करिष्यति।

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
समेषां – सर्वेषां
तर्पयति – संतुष्टं करोति
आवियते – आच्छादितं क्रियते
कुक्षौ – गर्भ
परितः – समन्तात्
जलप्लावनैः – जलौघैः
यतते – प्रयत्नं करोति
पुष्णाति – पोषणं करोति
अजात:शिशुः – अनुत्पन्नः जातकः
लोकः – संसारः –
परिष्कृतम् – शुद्धम्
वात्याचक्रैः – वातचक्रैः

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
तर्पयति – अतर्पयति
सुरक्षितः – असुरक्षितः
परिष्कृतं – अपरिष्कृतं
सांसारिकम् – असांसारिकम्
सद्विचारम् – कुविचारम्
माङ्गलिकम् – अमाङ्गलिकम्
आतङ्किकतः – अभयः
अजातशिशुः – विलोमपदानि
मानवः – पशुः/दानवः
प्रदूषणरहितः – प्रदूषितः
सुखम् – दुखम्
सत्यम् – असत्यम्
प्रददाति – ग्रह्णाति

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिनः ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति। सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

शब्दार्थाः-
अत एव-इसलिए, रक्षणीया-रक्षा करने योग्य, प्राचीनकाले-पुराने समय में, लोकमङ्गलाशासिनः-जनता का कल्याण चाहने वाले, ऋषयः-ऋषि (सारे), निवसन्ति स्म- रहते थे, यतः-क्योंकि, उपलभ्यते-प्राप्त होता है, विहगाः-पक्षी, कलकूजितैः-मधुर कूजन से, श्रोत्ररसायनम्-कानों को अच्छा लगने वाला, ददति-देते हैं, सरितः-नदियाँ, गिरिनिर्झरा-पर्वतीय झरने, अमृतस्वादु-अमृत के समान स्वादिष्ट, निर्मलम्-पवित्र, बाहुल्येन-अधिकता, औषधकल्पम्-दवाई के समान, वितरन्ति-बाँटते हैं, इन्धन काष्ठानि-जलाने की लकड़ियाँ।

अर्थ- इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। प्राचीनकाल में जनता का कल्याण चाहने वाले ऋषि वन में ही रहते थे क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। अनेक प्रकार के पक्षी अपने मधुर कूजन से वहाँ कानों को अन्त प्रदान करते हैं।

नदियाँ तथा पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट और पवित्र जल देते हैं। पेड़ तथा लताएँ फल, फूल तथा इंधन की लकड़ी बहुत मात्राा में देते हैं। वन की शीतल (ठंडी), मंद तथा सुगंधित वायु औषध के समान प्राण-वायु बाँटते हैं।

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्य:
विविधाः – विहगाः
शीतल:/मन्दः – वनपवनः
निर्मलम् – जलम
सुगन्धः – विशेष्यः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अतएव (इसलिए) – अतएव प्रकृतिः अस्माभिः रक्षणीया अस्ति।?
यतः (क्योंकि) – यतः सः वने एव सुरक्षितम् अस्ति।

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
अस्माभिः – युष्माभिः
प्राचीनकाले – आधुनिक काले
बाहुल्येन – अल्पेन/अल्पतया
भविष्यति – आसीत्
सुरक्षितम् – असुरक्षितम्

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहमल्यानि वस्तुनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवा: व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकी भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्था:-
अद्य-आज, नाशयति-नष्ट कर रहा है, स्वल्पलाभाय-थोड़े से लाभ के लिए, यन्त्रागाराणाम्-कारखानों के, विषाक्तम्-विषैला, जलचराणां-पानी में रहने वाले जीवों का, अपेयम्-न पीने योग्य, जायते-हो जाता है, वनवृक्षाः-जंगल के पेड़; निर्विवेकम्-अकारण, अवृष्टि:-वर्षा की कमी, प्रवर्धते-बढ़ती है, वनपशवः-जंगली पशु, शरणरहिता:-बिना शरण के, वृक्षकर्तनात्-पेड़ों के काटने से, उपद्रवं-भय, विदधति-करते हैं, सङ्कटापन्नो-संकटयुक्त, जायते-होती है, विकृतिम्-विकारयुक्त, उपगता-हो गई है, विनाशकी-विनाश करने वाली, भवति–हो गई है, इदानीम्-अब, चिन्तनीयम्-चिंता से युक्त, प्रतिभाति-प्रतीत हो रहा है।

अर्थ –
किंतु स्वार्थ में अंधा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है, जिससे मछली आदि जलचरों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। नदियों का पानी भी सर्वथा (हर प्रकार से) न पीने योग्य (अपेय) हो जाता है। वन के पेड़ व्यापार बढ़ाने के लिए अंधाधुंध काटे जाते हैं, जिससे अवृष्टि (वर्षा न होना) में वृद्धि होती है तथा वन के पशु असहाय (बिना सहायता के) होकर गाँवों में उपद्रव उत्पन्न करते हैं। पेड़ों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। प्रकार स्वार्थ में अंधे मनुष्यों के द्वारा विकारयुक्त प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है। पर्यावरण में विकार आ जाने से
विभिन्न रोग तथा भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए अब सब कुछ चिंतायुक्त प्रतीत हो रहा है।

विशेष्यः
विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
बहुमूल्यानि – वस्तूनि
विविधाः – रोगाः
विनाशकी – प्रकृतिः
विषाक्तम् – जलम्
उपगता – प्रकृतिः
सङ्कटापन्नः – शुद्धवायुः

यन्त्रागाराणाम् – यन्त्रालयानाम्
वृक्षकर्तनात् – वृक्षाणाम् उच्छेदात्
मत्स्यः – मीन:
निर्विवेकम् – विवेकम् रहितम्
जातः – अभवत्
इदानीम् – अधुना
अपेयम् – पातुम् आयोग्यम्
अद्य – अधुना
नाशः – नष्टम्
अवृष्टि – वर्षा रहितः
भीषणः – भयङ्करः
चिन्तनीयम् – शोचनीयम्
स्वार्थ – परार्थ
अद्य – पुरा
विषाक्तम् – अविषाक्तम्
निर्विवेकम् – सविवेकम्
अवष्टिः – वृष्टिः
अन्धः – नेत्रयुक्तः
बहुमूल्यानि – अल्पमूल्यानि
अपेयम् – पेयम्
विनाशकी – उपकर्त्री

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि-स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यतः ते स्थलमलानाम् अपहारिणश्च। प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।

शब्दार्थाः
रक्षित-रक्षा किया गया, रक्षति-रक्षा करता है, आर्षवचनम्-ऋषियों के वचन, प्रतिपादितवन्तः-प्रतिपादित किया है, वापी-बावड़ी, कूप-कुएँ, तडाग-तालाब, देवायतन-मंदिर, विश्रामगृहादिस्थापन-विश्रामगृह बनवाना, संशयः-संदेह, धर्मसिद्धेः-धर्म की सिद्धि के, अङ्गीकृतम्-माने गए हैं, कुक्कुरः-कुत्ता, नकुलः-नेवला, सर्पः-साँप, स्थलचरः-पृथ्वी पर रहने वाले जीव, सूकरः-सूअर, मत्स्यः-मछली, कच्छपः-कछुआ, मकर:-मगरमच्छ, जलचरः-पानी में रहने वाली जीव। स्थलमलानाम् अपनोदिनः-पृथ्वी की गंदगी को दूर करने वाले, सम्भवति-संभव है।

अर्थ-
‘रक्षा किया गया धर्म रक्षा करता है’-ये ऋषियों के वचन हैं। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है-ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। इसीलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि बनवाना, मंदिर, विश्रामगृह आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में ही माने गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा से ही संसार की रक्षा हो सकती है। इसमें संदेह नहीं है।

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
रक्षितः – धर्मों

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
इति (ऐसा) – धर्मों रक्षति रक्षितः इति आर्ष वचनम्।
ततः (उसके बाद) – ततः स अगच्छत्।
एव (ही) – सः मालाकारः एव अस्ति।

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
आर्षः – ऋषयः
देवायतनम् – देवालयः, मन्दिरम्
कुक्कुरः – श्वानः
मत्स्यः – मीन:
अङ्गीकृतम् – स्वीकृतम्
प्रतिपादितवन्तः – कथितः
तडागः – सरोवरः
सर्पः – भुजंगः
स्थलमलापनोदिनः – भूमिमलापसारिणः

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
धर्मः – अधर्मः
अङ्गीकृतम् – अनङ्गीकृतम्
रक्षणीयाः – अरक्षणीयाः
संशयः – असंशयः
रक्षितः – अरक्षितः
जलचराः – स्थलचराः
सम्भवति – असम्भवति

 

जटायोः शौर्यम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 10

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Summary Notes

जटायोः शौर्यम् Summary

प्रस्तुत पाठ महाकाव्य ‘रामायणम्’ के अरण्यकांड से लिया गया है। इस महाकाव्य के रचयिता आदिकवि वाल्मीकि हैं। इस पाठ में जटायु और रावण के मध्य युद्ध का वर्णन है। पाठ का सार इस प्रकार है पंचवटी में सीता करुण विलाप करती है। उसके विलाप को सुनकर, पक्षिराज जटायु उसकी रक्षा के लिए आता है।
जटायोः शौर्यम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 10

वह रावण को धिक्कारता है, परंतु रावण पर इसका कोई असर नहीं होता है। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देखकर जटायु उसके साथ युद्ध के लिए उद्यत हो जाता है। यद्यपि रावण युवा है और जटायु वृद्ध तथापि वह रावण को ललकारता है और कहता है कि मेरे जीवित रहते तुम सीता का अपहरण नहीं कर सकते। जटायु अपने पैने नाखूनों और पंजों से रावण पर आक्रमण करता है और उसके शरीर पर अनेक घाव कर देता है। जटायु रावण के धनुष को तोड़ डालता है।

इस प्रकार रावण रथ से विहीन, नष्ट घोड़ों और सारथी वाला हो जाता है। जटायु पर रावण लात से प्रहार करता है। जटायु हार नहीं मानता है तथा बदले में रावण पर आक्रमण करता है। वह रावण की दशों भुजाओं को उखाड़ डालता है। इस प्रकार इस पाठ में जटायु की शूरवीरता की कहानी कही गई है।

जटायोः शौर्यम् Word Meanings Translation in Hindi

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

शब्दार्था:-
तदा – तब, करुणा वाचो: – दुख भरी आवाज़ से, विलपन्ती – रोती हुई, सुदुःखिता – बहुत दुखी, वनस्पतिगतम् – वृक्ष पर बैठे हुए को, गृध्रम् – गिद्ध को, ददर्श – देखा, आयतलोचना-बड़ी – बड़ी आँखों वाली।

अर्थ – तब करुण वाणी में रोती हुई, बहुत दुखी और बड़ी-बड़ी आँखों वाली (सीता) ने वृक्ष पर (स्थित) बैठे हुए गीध्र (जटायु) को देखा।

विशेषण-विशेष्य-चयनम् ।
विशेषणम्
विशेष्यः विशेषणम् विशेष्यः वाचः
करुणा – वाचः
सुदु:खिता. – सा
वनस्पतिगतम् – गृध्रम्
विलपन्ती – सा
आयतलोचना – सा

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
तदा – तदा सीता जटायुम् अपश्यत्

2.जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा॥

शब्दार्था:-
जटायो – हे जटायु!, पश्य – देखो, माम् – मुझे (मुझ को), आर्य – श्रेष्ठ, ह्रियमाणाम् – हरी (हरण की) जाती हुई, अनाथवत् – अनाथ की तरह, अनेन  -इस (से), राक्षसेन्द्रेण – राक्षसराज के द्वारा, करुणम् – दुखी, पापकर्मण-पापकर्म वाले।

अर्थ – हे आर्य जटायु! इस पापकर्म करने वाले राक्षस राज (रावण) के द्वारा अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ दुखी को देखो।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
आर्य – जटायो
अनेन/पापकर्मणा – राक्षसेन्द्रेण
ह्रियमाणाम्/करुणाम् – माम्

क्रियापद-वाक्येषु प्रयोगः
क्रियापदम् – वाक्येषु प्रयोगः
पश्य – त्वम् तम् बालकं पश्य।

3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥

शब्दार्था:- तम् – उस (को), शब्दम् – शब्द को, अवसुप्तः – सोए हुए, तु – तो, रावणम् – रावण को, क्षिप्रम् – शीध्र, जटायुः – जटायु ने, अथ – इसके बाद, शश्रुवे – सुना, निरीक्ष्य – देखकर, वैदेहीम् – सीता को, ददर्श – देखा।

अर्थ – इसके बाद सोए हुए जटायु ने उस शब्द को सुना तथा रावण को देखकर और उसने शीध्र ही वैदेही (सीता) को देखा।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अथ – अथ श्रीराम कथा।
क्षिप्रम् – विद्यालयं क्षिप्रम् गच्छ।
च – वनम् अगच्छताम्

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
तम् – शब्दम्
अवसुप्तः, सः – जटायुः

4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥

शब्दार्थाः –
ततः-उसके बाद, पर्वतश्रृंगाभः-पर्वत की चोटी की तरह शोभा वाले, तीक्ष्णतुण्डः-तीखी चोंच वाले, खगोत्तमः-पक्षियों में उत्तम, गिरम्-वाणी को, वनस्पतिगतः-वृक्ष पर स्थित, श्रीमान्-शोभायुक्त, व्याजहार-बोला (कहा), शुभाम्-सुदर।

अर्थ – उसके बाद (तब) पर्वत शिखर की तरह शोभा वाले, तीखे चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभायुक्त पक्षियों में उत्तम (जटायु) ने सुंदर वाणी में कहा।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
ततः – ततः रामः सीताम् अवदत्

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः विशेषणम् विशेष्यः
पर्वतशृङ्गाभः – खगोत्तमः (जटायुः)
वनस्पतिगतः – खगोत्तमः (जटायुः)
शुभाम् – गिरम्
तीक्ष्णतुण्डः – खगोत्तमः (जटायुः)
श्रीमान् – खगोत्तमः (जटायुः)

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥

शब्दार्था: –
निवर्तय-मना करो, रोको, मतिम्-बुद्धि (विचार) को, परदारा-पराई स्त्री के, अभिमर्शनात्- स्पर्श दोष से, अस्य-इसकी, तत्-वह (उस तरह का), समाचरेत्-आचरण करना चहिए, धीरः-बुद्धिमान (धैर्यशाली) को, यत्-जो (जिसे), परः-दूसरे लोग, विगर्हयेत्-निंदा (बुराई) करें, नीचाम-नीच (गंदी)।

अर्थ – पराई नारी (परस्त्री) के स्पर्शदोष से तुम अपनी नीच बुद्धि (नीच विचार) को हटा लो, क्योंकि बुद्धिमान (धैर्यशाली) मनुष्य को वह आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे कि दूसरे लोग उसकी निंदा (बुराई) करें।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
तत्-यत् – त्वं कदापि तत् न कुर्याः यत् जनाः वर्जयन्ति।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् विशेष्यः
नीचाम् – मतिम्

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
तत् – यत्
समाचरेत् – विगर्हयेत्

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥

शब्दार्थाः-
वृद्धः-बूढा, अहम्-मैं, युवा-जवान (युवक), धन्वी- धनुषधारी, सरथः-रथ से युक्त, कवची-कवच वाले, शरी-बाणों वाले, आदान-लेकर, कुशली-कुशलतापूर्वक, वैदेहीम्-सीता को, मे-मेरे (रहते), गमिष्यसि- जा सकोगे।

अर्थ – मैं (तो) बूढा हूँ परंतु तुम युवक (जवान) हो, धनुषधारी हो, रथ से युक्त हो, कवचधारी हो और बाण धारण किए हो। तो भी मेरे रहते सीता को लेकर नहीं जा सकोगे।

विशेषण-विशेष्या-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
वृद्धः – अहम् युवा, धन्वी, सरथः, कवची, शरी
कुशली – त्वम्

विलोमपदानि ।
पदानि – विलोमपदानि
वृद्धः – युवा
अहम् – त्वम्

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः।

शब्दार्था:- तस्य-उसके (जटायु के), तीक्ष्णनखाभ्याम्-तेज नाखूनों से, चरणाभ्याम्-पैरों से, महाबल:- बहुत बलशालो, पतगसत्तमः-पक्षियों में उत्तम (श्रेष्ठ), चकार-कर दिए, बहुधा-बहुत से, गात्रे-शरीर पर, व्रणान्-घावों को।

अर्थ – उस उत्तम तथा अतीव बलशाली पक्षी (राज) ने अपने तीखे नाखूनों तथा पैरों से उस (रावण) के शरीर पर बहुत से घाव कर दिए।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोग
तु – सः तु मम भ्राता वर्तते।
बहुधा – तेन बहुधा सत्कार्यं कृतम्।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
तीक्ष्णनखाभ्याम् – चरणाभ्याम्
महाबलः – पतगसत्तमः

8. ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनु॥

शब्दार्थाः-
ततः-उसके बाद, अस्य-इसके, सशरम्-बाणों के सहित, चापम्- धनुष को, मुक्तामणिविभूषितम्-मोतियों और मणियों से सजे हुए, चरणाभ्याम्-दोनों पैरों से, महातेजा-महान तेजस्वी, बभञ्ज-तोड़ दिया, अस्य-इसके, मृहद्धनु:-विशाल धनुष को।

अर्थ – उसके बाद उस महान तेजस्वी (जटायु) ने मोतियों और मणियों से सजे हुए बाणों सहित उसके (रावण के) विशाल धनुष को अपने पैरों से तोड़ डाला।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
ततः – ततः छात्रः स्वपुस्तकं नीत्वा अपठत्

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सशरम् – चापम्
महातेजा – सः (जटायुः)
महत्, मुक्तामणिविभूषितम् – धनुः

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूछितः ॥

शब्दार्थाः- सः-वह, भग्नधन्वा-टूटे हुए धनुषवाला, विरथः-रथ से रहित, हताश्वः-मारे गए घोड़ों वाला पर, हतसारथिः-मारे गए सारथि वाला, तलेन-मूंठ से, अभिजघान-हमला या प्रहार किया, आशु-शीघ्र, क्रोधमूर्च्छितः-बहुत क्रोधी

अर्थ – (तब) टूटे हुए धनुष वाले, रथ से विहीन, मारे गए घोड़ों व सारथि वाले अत्यन्त क्रोधित उसने तलवार की अत्यन्त क्रोधित मँठ से शीघ्र ही जटाय पर घातक प्रहार किया।

पर्यायापदानि
पदानि – पर्यायापदानि
हताश्वः – हताः अश्वाः यस्य सः
अभिजघानं – आक्रान्तवान
आशु – शीघ्रम्

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सः – रावणः
विरथः – रावणः
हताश्वः – रावणः
हतसारथिः – रावणः

अव्यानां वाक्येषु प्रयोगः
आशु – बालकाः आशु विद्यालयं गच्छन्ति

10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥

शब्दार्था:-
जटायुः – जटायु ने, तम्-उसको, अतिक्रम्य-झपट करके, तुण्डेन-चोंच से, अस्य-उसके (रावण के),
खगाधिपः-पक्षियों के राजा, वाम–बाईं ओर की, बाहूम्-भुजाओं को, व्यपाहरत्-नष्ट कर दिया, अरिन्दमः-शत्रुाओं का नाश करने वाला।

अर्थ – तब उस पक्षीराज जटायु ने शत्रुओं का नाश करने वाली अपनी चोंच से झपटकर (अक्रमण करके) उसके (रावण के) बाईं ओर की दसों भुजाओं को नष्ट कर दिया।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
तदा – यदा कन्या गृहं गतवती तदा माता प्रासीदत्।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
खागाधिपः अरिन्दमः – जटायुः
दश – बाहून् ।