RD Sharma Class 8 Solutions (2020-201 Edition)

RD Sharma Class 8 Solutions

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RS Aggarwal Solutions Class 8 (2020-2021 Edition)

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प्रहेलिकाः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 15

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Class 8 Sanskrit Chapter 15 प्रहेलिकाः Summary Notes

प्रहेलिकाः Summary

किसी भी साहित्य में पहेलियों का अत्यधिक महत्त्व है। ये मनोरञ्जन की प्राचीन विधा हैं। ये प्रायः सभी भाषाओं में उपलब्ध होती हैं। पहेलियाँ जहाँ हमें आनन्द देती हैं, वहीं समझ-बूझ की हमारी मानसिक व बौद्धिक प्रक्रिया को तीव्रतर बनाती हैं। प्रस्तुत पाठ में संगृहीत पहेलियों का सार इस प्रकार है कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है? हाथियों को कौन मारता है? युद्ध में कायर क्या करता है?
उत्तर-
(क्रमशः) मृग से, सिंह तथा पलायन।
नारियों में कौन शान्त (नारी) है? गुणोत्तम राजा कौन हुआ है? विद्वानों के द्वारा सदा वन्दनीय कौन है? श्लोक में ही उत्तर दिया गया है। (प्रत्येक चरण के प्रथम और अन्तिम वर्ण को जोड़कर उत्तर प्राप्त हो जाता है।)

कृष्ण ने किसको मारा? ठण्डी धारा वाली गङ्गा कौन है? पत्नी के पोषण में संलग्न कौन हैं? किस बलवान् को ठण्ड नहीं सताती है? नारियल वृक्ष पर रहता है, परन्तु गरुड़ नहीं। वह तीन आँखों वाला है, परन्तु शिव नहीं है। वह वल्कल धारण करता है, परन्तु सिद्ध योगी नहीं है। वह जल धारण करता है, परन्तु न तो घड़ा है और न बादल। भोजन के अन्त में क्या पीना चाहिए? छाछ। जयन्त किसका पुत्र था? इन्द्र का। विष्णु का पद कैसा बताया गया है? दुर्लभ ।

प्रहेलिकाः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) कस्तूरी जायते कस्मात्?
को हन्ति करिणां कुलम्?
किं कुर्यात् कातरो युद्धे?
मृगात् सिंहः पलायते॥1॥

अन्वयः-
कस्तूरी कस्मात् जायते? मृगात्। कः करिणां कुलं हन्ति? सिंहः। कातरः युद्धे किं कुर्यात्? पलायते।

शब्दार्थ-
जायते-उत्पन्न होती है।
कस्मात्-किससे।
को-कौन।
हन्ति-मार डालता है।
करिणाम्-हाथियों के।
कुलम्-झुंड (समूह) को।
कुर्यात्-करता है।
कातरः-कायर (Coward)।
मृगात्-हिरण से।
पलायते-भाग जाता है।

सरलार्थ-
(प्रश्न) कस्तूरी किससे उत्पन्न होती है? (उत्तर) मृग से। (प्रश्न) कौन हाथियों के समूह को मार डालता है? (उत्तर) सिंह। (प्रश्न) कायर युद्ध में क्या करता है? (उत्तर) भाग जाता है।

विशेष-
तीन चरणों के साथ अन्तिम चरण के क्रमशः एक एक पद को जोड़ देने पर प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाता है। जैसे-प्रथम चरण (कस्तूरी जायते कस्मात्) के साथ अंतिम चरण का एक पद(मृगात्) जोड़ देने से उत्तर मिल जाता है।

(ख) सीमन्तिनीषु का शान्ता?
राजा कोऽभूत् गुणोत्तमः?
विद्वद्भिः का सदा वन्द्या?
अत्रैवोक्तं न बुध्यते॥2॥

अन्वयः-
का सीमन्तिनीषु शान्ता? (सीता)। कः राजा गुणोत्तमः अभूत्? (रामः)। का विद्वद्भिः सदा वन्द्या? (विद्या)। अत्र एव उक्तम् (उत्तरम्), न बुध्यते।

शब्दार्थ-
सीमन्तिनीषु-नारियों में।
शान्ता-शान्त स्वभाव वाली।
कोऽभूत्-कौन हुआ।
गुणोत्तमः-गुणों में उत्तम।
विद्वद्भिः -विद्वानों के द्वारा (Learned)।
का-कौन।
वन्द्या -वन्दनीय (Respectable)।
अत्रैव-यहाँ पर ही।
उक्तम्-कहा गया है (Said)।
बुध्यते-जाना जाता है (Known)।

सरलार्थ-
(प्रश्न) नारियों में शान्त कौन हैं? (उत्तर-सीता) । (प्रश्न) कौन राजा उत्तम गुणों वाला हुआ है? (उत्तर-राम)। (प्रश्न) विद्वान् लोगों के द्वारा सदा वन्दनीय कौन है? (उत्तर-विद्या)। (सभी प्रश्नों का) उत्तर यहाँ पर (अर्थात् श्लोक में) ही कह दिया गया है, परन्तु (वह उत्तर साक्षात्) दिखाई नहीं पड़ता है।

विशेष-
प्रत्येक चरण के प्रथम और अन्तिम को जोड़कर उस चरण में निहित प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाता है। यथा सीमन्तिनीषु का शान्ता-यहाँ चरण का प्रथम अक्षर ‘सी’ है तथा अन्तिम अक्षर ‘ता’ है। दोनों को जोड़ने से ‘सीता’ शब्द बनता है। यह प्रथम चरण का उचित उत्तर है। इसी प्रकार द्वितीय और तृतीय चरणों का उत्तर जान लेना चाहिए।

(ग) कं सञ्जघान कृष्णः?
का शीतलवाहिनी गङ्गा?
के दारपोषणरताः?
कं बलवन्तं न बाधते शीतम्॥3॥

अन्वयः-
कृष्णः कं सञ्जघान? (कंसम्)। का गङ्गा शीतलवाहिनी? (काशीतलवाहिनी)। दारपोषणरताः के? (केदारपोषणरताः)। शीतं कं बलवन्तं न बाधते? (कम्बलवन्तम्)।

शब्दार्थ-
कम्-किसे (किसको)।
का-कौन (स्त्री.)।
के-कौन (पु.)।
के दारपोषणरताः-खेत के कार्य में लग्न।
बलवन्तम्-बलवान को।
शीतम्-ठण्ड।
सञ्जघान-मार डाला।
शीतलवाहिनी-ठण्डी धारा वाली।
दारपोषणरता:-पत्नी के पोषण में लीन।
कम्-किस। बाधते-सताती है।

सरलार्थ –
कृष्ण ने किसे मार डाला? कृष्ण ने कंस को मार डाला। कौन गङ्गा ठण्डी धारा वाली है? काशीतल में बहने वाली गङ्गा ठण्डी धारा वाली है। कौन लोग पत्नी के पोषण में लगे हुए हैं? खेत के कार्य में लगे हुए लोग (पत्नी के पोषण में लगे हुए हैं।) ठण्ड किस बलवान् को नहीं सताती है? कम्बलवाले को (ठण्ड नहीं सताती है।)

विशेष – प्रत्येक चरण में प्रथम दो अथवा तीन अथवा चार वर्णों का संयोग करने से उस चरण में प्रस्तुत प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाता है।

(घ) वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः
त्रिनेत्रधारी न च शलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी
जलं च बिभ्रन्न घटो न मेघः॥4॥

अन्वयः-
(सः) वृक्षाग्रवासी (अस्ति), न पक्षिराजः। त्रिनेत्रधारी (परम्) शूलपाणिः न (अस्ति)। त्वग्वस्त्रधारी (अस्ति), सिद्धयोगी न। जलं च बिभ्रन् (अस्ति), न घटः, न मेघः (अस्ति)।

शब्दार्थ-
वृक्षाग्रवासी-पेड़ के ऊपर रहने वाला।
पक्षिराजः-पक्षियों का राजा (गरुड़)।
त्रिनेत्रधारी-तीन नेत्रों वाला।
शूलपाणिः-जिसके हाथ में त्रिशूल है (शिव)।
त्वग्वस्त्रधारी-छाल को धारण करने वाला।
बिभ्रन्-धारण करता हुआ।
घट:-घड़ा।
मेघः-बादल।

सरलार्थ-
(वह) वृक्ष पर रहने वाला है, (परन्तु) पक्षियों का राजा अर्थात् गरुड़ नहीं है। (वह) तीन आँखों वाला है, (परन्तु) शिव नहीं है। (वह) वल्कल वस्त्र धारण करने वाला है, (परन्तु) सिद्ध योगी नहीं है। (वह) जल को (अंदर) धारण करता है, (परन्तु) न घड़ा है और न ही बादल है। उत्तर-नारियल।

(ड) भोजनान्ते च किं पेयम्?
जयन्तः कस्य वै सुतः?
कथं विष्णुपदं प्रोक्तम्?
तक्रं शक्रस्य दुर्लभम् ॥5॥

अन्वयः-
भोजनान्ते किं पेयम्? तक्रम्। जयन्तः कस्य वै सुतः? शक्रस्य। विष्णुपदं कथं प्रोक्तम्? दुर्लभम् ।

शब्दार्थ-
भोजनान्ते-भोजन के अन्त में।
पेयम्-पीने योग्य।
कस्य-किसका।
वै-निश्चित रूप से।
सुतः-पुत्र।
कथम्-कैसा।
विष्णुपदम्-स्वर्ग, मोक्ष।
प्रोक्तम्-कहा गया है।
तक्रम्-छाछ।
शक्रस्य-इन्द्र का।
दुर्लभम्-कठिनाई से प्राप्त।

सरलार्थ-
भोजन के अन्त में क्या पीना चाहिए? छाछ। जयन्त किसका पुत्र है? इन्द्र का। विष्णु का स्थान (स्वर्ग) कैसा कहा गया है? दुर्लभ।

आर्यभटः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 14

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Class 8 Sanskrit Chapter 14 आर्यभटः Summary Notes

आर्यभटः Summary

ज्ञानविज्ञान की सुदीर्घ परम्परा भारतवर्ष की अमूल्य निधि है। भारतीय मनीषियों, जिन्हें ‘ऋषि’ की आख्या प्राप्त थी, ने इस परम्परा को पुष्ट किया है। ऋषियों ने ज्ञानविज्ञान की सभी विधाओं में उल्लेखनीय कार्य किया है। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को नई दिशा दी है। वस्तुतः गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणनापद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों की गति का प्रवर्तन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे। उनके असाधारण वैदुष्य का उल्लेख प्रस्तुत पाठ में इस प्रकार रेखांकित किया गया है|

आर्यभटः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 14

आर्यभट का जन्म 476 ई. में हआ। उन्होंने ‘आर्यभटीय’ नामक ग्रन्थ की रचना की। उस समय उनकी अवस्था तेईस वर्ष की थी। आर्यभट ने पाटलिपुत्र के पास एक वेधशाला स्थापित की थी। इससे सिद्ध होता है कि पाटलिपुत्र उनकी कर्मभूमि रहा है।

आर्यभट से पूर्व विद्वानों की यह मान्यता थी कि सूर्य भ्रमण करता है तथा पृथ्वी स्थिर है। आर्यभट ने अपने अध्ययन के आधार पर यह सिद्धान्त दिया कि पृथ्वी ही भ्रमण करती है तथा सूर्य स्थिर है। प्रारम्भ में समाज के ठेकेदारों ने आर्यभट के इस सिद्धान्त का विरोध किया, परन्तु आधुनिक विद्वानों ने आर्यभट के सिद्धान्त का अत्यधिक आदर किया। वस्तुतः आर्यभट अपने क्षेत्र के शिखर पुरुष थे।

आर्यभटः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

क पूर्वदिशायाम् उदेति सूर्यः पश्चिमदिशायां च अस्तं गच्छति इति दृश्यते हि लोके। परं न अनेन अवबोध्यमस्ति यत्सूर्यो गतिशील इति। सूर्योऽचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः। सिद्धान्तोऽयं प्राथम्येन येन प्रवर्तितः, स आसीत् महान् गणितज्ञः ज्योतिर्विच्च आर्यभटः। पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः तेन प्रत्यादिष्टा। तेन उदाहृतं यद् गतिशीलायां नौकायाम् उपविष्टः मानवः नौकां स्थिरामनुभवति, अन्यान् च पदार्थान् गतिशीलान् अवगच्छति। एवमेव गतिशीलायां पृथिव्याम् अवस्थितः मानवः पृथिवीं स्थिरामनुभवति सूर्यादिग्रहान् च गतिशीलान् वेत्ति

शब्दार्थ-
उदेति-उदय होता है (Rises)
लोके-संसार में (World)
अचलः-स्थिर (Statistic, Stationary)
दिशायाम्-दिशा में।
अक्षे-धुरी पर।
अस्तं गच्छति-अस्त होता है।
अवबोध्यम्-जानने योग्य (समझना चाहिए)।
चला-गतिशील।
दृश्यते-दिखाई देता है।
उदाहृतम्-उदाहरण दिया (Example)।
साम्प्रतम्-अब (इस समय)
प्राथम्येन-सर्वप्रथम।
ज्योतिर्वित्-ज्योतिषी (Astrologers)।
रूढिः-रिवाज/प्रथा।
नौकायाम्-नौका में।
अनुभवति-अनुभव करता है।
अवस्थितः-टिका हुआ।
गतिशीला-चलती हुई।
घूर्णति-घूमती है (Revolve)।
सुस्थापितः-भलीभाँति स्थापित।
प्रवर्तितः-प्रवृत्त किया है।
परम्परया-परम्परा से।
प्रत्यादिष्टा-खण्डन किया।
उपविष्ट:-बैठा हुआ।
अवगच्छति-जानता है।
वेत्ति-जानता है।

सरलार्थ-
सूर्य पूर्व दिशा में निकलता है तथा पश्चिम में अस्त होता है-ऐसा संसार में दिखाई देता है। परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सूर्य गतिशील है। सूर्य स्थिर है और पृथिवी गतिशील है, जो अपनी धुरी पर घूमती है-यह सिद्धान्त अब भली प्रकार स्थापित हो चुका है। यह सिद्धान्त जिनके द्वारा सर्वप्रथम प्रवर्तित किया गया, वे महान् गणितज्ञ ज्योतिर्विद् आर्यभट थे।

उन्होंने ‘पृथिवी स्थिर है’-इस परम्परा से प्राप्त रिवाज (मान्यता) का खण्डन किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती नौका पर बैठे हुए व्यक्ति को नौका स्थिर अनुभव होती है तथा अन्य पदार्थों को वह गतिशील समझता है। इसी प्रकार गतिशील पृथिवी पर स्थित मानव पृथिवी को स्थिर अनुभव करता है तथा सूर्यादि ग्रहों को गतिशील जानता है।

ख 476 तमे ख्रिस्ताब्दे (षट्सप्तत्यधिकचतुःशततमे वर्षे ) आर्यभटः जन्म लब्धवानिति तेनैव विरचिते ‘आर्यभटीयम्’ इत्यस्मिन् ग्रन्थे उल्लिखितम्। ग्रन्थोऽयं तेन त्रयोविंशतितमे वयसि विरचितः। ऐतिहासिकस्रोतोभिः ज्ञायते यत् पाटलिपुत्रं निकषा आर्यभटस्य वेधशाला आसीत्। अनेन इदम् अनुमीयते यत् तस्य कर्मभूमिः पाटलिपुत्रमेव आसीत्।

शब्दार्थ-
लब्धवान्-प्राप्त किया।
तेनैव-उसके द्वारा ही।
उल्लिखितम्-उल्लेख किया गया है।
त्रयोविंशतितमे-तेईस वर्ष में।
वयसि-अवस्था में (Age)।
ऐतिहासिक०-इतिहास के।
ज्ञायते-ज्ञात होता है।
निकषा-निकट (Near)।
अनुमीयते-अनुमान किया जाता है।

476 ईस्वीय सन् में आर्यभट ने जन्म लिया ऐसा उसके द्वारा ही विरचित ‘आर्यभटीय’ इस ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है। यह ग्रन्थ उसके द्वारा तेईस वर्ष की अवस्था में रचा गया था। इतिहास के स्रोतों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र के पास आर्यभट की वेधशाला थी। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उसकी कर्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी।

(ग) आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिषा सम्बद्धं वर्तते यत्र संख्यानाम् आकलनं महत्त्वम् आदधाति। आर्यभटः फलितज्योतिषशास्त्रे न विश्वसिति स्म। गणितीयपद्धत्या कृतम् आकलनमाधृत्य एव तेन प्रतिपादितं यद् ग्रहणे राहु-केतुनामकौ दानवौ नास्ति कारणम्। तत्र तु सूर्यचन्द्रपृथिवी इति त्रीणि एव कारणानि। सूर्यं परितः भ्रमन्त्याः पृथिव्याः, चन्द्रस्य परिक्रमापथेन संयोगाद् ग्रहणं भवति। यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरुध्यते तदा चन्द्रग्रहणं भवति। तथैव पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्यग्रहणं दृश्यते।

शब्दार्थ-
सम्बद्धम्-सम्बद्ध (सम्बन्धित)।
यत्र-जहाँ।
आकलनम्-गणना (Calculation)।
आदधाति-रखता है।
विश्वसिति-विश्वास रखता (था)।
आधृत्य-आधार पर।
प्रतिपादितम्-प्रतिपादित किया।
दानवौ-दो राक्षस। त
तरीणि-तीन।
परितः-चारों ओर।
भ्रमन्त्याः -घूमती हुई की।
संयोगाद्-संयोग होने से।
छायापातेन-छाया पड़ने से।
अवरुध्यते-रुक जाता है।
समागतस्य-आए हुए का।
दृश्यते-दिखाई पड़ता है।

सरलार्थ-
आर्यभट का योगदान गणितज्योतिष से सम्बन्धित है, जहाँ संख्याओं की गणना का महत्त्व है। आर्यभट फलित ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं रखते थे। गणित की पद्धति पर किए गए आकलन को आधार बनाकर ही उन्होंने प्रतिपादित किया था कि ग्रहण में राहु व केतु नामक राक्षस कारण नहीं हैं। वहाँ तो सूर्य, चन्द्र और पृथिवी-ये तीन ही कारण हैं।

सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथिवी का चन्द्रमा के परिक्रमा पथ के साथ संयोग होने से ग्रहण होता है। जब पृथिवी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है तब चन्द्र ग्रहण होता है। उसी प्रकार पृथ्वी और सूर्य के मध्य आए हुए चन्द्रमा की छाया पड़ने से सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

(घ) समाजे नूतनानां विचाराणां स्वीकारे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति। भारतीयज्योतिः शास्त्रे तथैव आर्यभटस्यापि विरोधः अभवत्। तस्य सिद्धान्ताः उपेक्षिताः। स पण्डितम्मन्यानाम् उपहासपात्रं जातः। पुनरपि तस्य दृष्टिः कालातिगामिनी दृष्टा। आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्मिन, तस्य च सिद्धान्ते समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभट इति कृतम्। वस्तुतः भारतीयायाः गणितपरम्परायाः अथ च विज्ञानपरम्परायाः असौ एकः शिखरपुरुषः आसीत्।

शब्दार्थ-
नूतनानाम्-नये
पण्डितम्मन्यानाम्-स्वयं को पण्डित मानने वालों का।
उपेक्षिताः-उपेक्षित हुए।
कालातिगामिनी-समय को पार करने वाली।
उपहासपात्रम्-मजाक का पात्र ।
अस्मादेव-इसी से।
प्रकटितः-प्रकट किया गया।
आसीत्-था।
वस्तुतः-वास्तव में।
पुनरपि-फिर भी।
काठिन्यम्-कठिनता को।

सरलार्थ-
समाज में नए विचारों को स्वीकार करने में प्रायः सामान्य लोग कठिनता का अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योति:शास्त्र में उसी प्रकार आर्यभट का विरोध हुआ। उनके सिद्धान्तों की उपेक्षा की गई। वे अपने आपको विद्वान् मानने वाले लोगों के मजाक का पात्र बने। फिर भी उनकी दृष्टि समय को लाँघने वाली दृष्टिगोचर हुई। आधुनिक वैज्ञानिकों ने उनके प्रति तथा उनके सिद्धान्त के प्रति आदर प्रकट किया है। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ किया (रखा) गया। वास्तव में भारतीय गणितपरम्परा तथा विज्ञान परम्परा के वे एक शिखरपुरुष थे।

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 13

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Class 8 Sanskrit Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Summary Notes

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Summary

भारत का इतिहास अत्यधिक गरिमामय रहा है। प्राचीनकाल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। किसी समय भारतवर्ष विश्व में अग्रणी हुआ करता था तथा इसे विश्वगुरु का सम्मान प्राप्त था। ‘अनेकता में एकता’ जैसी अनेक विशेषताएँ भारत की हुआ करती थीं।

भारत की प्राकृतिक सुषमा भी विलक्षण है। कवि ने इन्हीं विशेषताओं और दिव्यता को प्रस्तुत पाठ में दर्शाया है। यह डॉ. कृष्णचन्द्र त्रिपाठी के द्वारा रचित है। इसमें भारत के स्वर्णिम इतिहास का गुणगान है। भारत की विकासशीलता तथा गतिशीलता का विहंगम दृश्य उपलब्ध होता है। प्राचीन परम्परा, संस्कृति, आधुनिक मिसाइल क्षमता तथा परमाणु शक्ति सम्पन्नता के गीत के द्वारा कवि ने देश की सामर्थ्यशक्ति का वर्णन किया है।

क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च

(क) सुपूर्णं सदैवास्ति खाद्यान्नभाण्डं
नदीनां जलं यत्र पीयूषतुल्यम्।
इयं स्वर्णवद् भाति शस्यैधरेयं
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥1॥

अन्वयः-
खाद्यान्नभाण्डं सदैव सुपूर्णं अस्ति। यत्र नदीनां जलं पीयूषतुल्यम् (अस्ति)। इयं धरा शस्यैः स्वर्णवत् भाति। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।

शब्दार्थ-
भाण्डम्-पात्र।
यत्र-जहाँ।
पीयूषतुल्यम्-अमृत के समान।
स्वर्णवत्-सोने के समान।
शस्यैः-फसलों के द्वारा।
धरा-पृथ्वी।
क्षितौ-पृथ्वी पर।

सरलार्थ-खाद्यान्न के पात्र सदा परिपूर्ण रहते हैं। जहाँ नदियों का जल अमृत के समान है। यह (भारत) भूमि फसलों के द्वारा सुशोभित है। पृथ्वी पर भारत स्वर्णभूमि के रूप में शोभायमान है।

(ख) त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः
अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।
सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरेयम्
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥2॥

अन्वयः-
त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः अणूनां महाशक्तिभिः इयं पूरिता। इयं सदा राष्ट्ररक्षारतानाम् धरा (अस्ति)। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।

शब्दार्थ-
त्रिशूल:-त्रिशूल आदि के द्वारा।
अस्त्रघोरैः- भयंकर अस्त्रों से।
पूरिता-पूर्ण।
रताः-लगे हुए।

सरलार्थ-
त्रिशूल, अग्नि, नाग तथा पृथ्वी आदि भयंकर अस्त्रों के द्वारा तथा परमाणु महाशक्ति के द्वारा यह पूर्ण है। यह राष्ट्ररक्षा में लीन (वीरों) की पृथ्वी है। पृथ्वी पर भारतरूप स्वर्णभूमि शोभायमान है।

(ग) इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या
जगद्वन्दनीया च भूः देवगेया।
सदा पर्वणामुत्सवानां धरेयं
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥3॥

अन्वयः-
इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या, जगद्वन्दनीया च देवगेया भूः। इयं सदा पर्वणाम् उत्सवानां धरा। क्षितौ भारतस्वर्णभूमिः राजते।

शब्दार्थ-
पर्वणाम्-पर्वो का।
वीरभोग्या-वीरों के द्वारा भोग्य।
वन्दनीया-स्तुति करने योग्य।

सरलार्थ-
यह वीरों के द्वारा भोग्य, कर्म के द्वारा सेवनीय, विश्व के द्वारा स्तुति करने योग्य तथा देवताओं के द्वारा आने योग्य भूमि है। यह सदा पर्वो की तथा उत्सवों की पृथ्वी है। पृथ्वी पर भारतरूप स्वर्णभूमि शोभायमान

(घ) इयं ज्ञानिनां चैव वैज्ञानिकानां
विपश्चिज्जनानामियं संस्कृतानाम्।
बहूनां मतानां जनानां धरेयं
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥4॥

अन्वयः-
इयं ज्ञानिनां वैज्ञानिकानां चैव विपश्चिज्जनानां संस्कृतानां (धरा)। इयं बहूनां मतानां। जनानां धरा (अस्ति)। क्षितौ भारतस्वर्णभूमिः राजते।

शब्दार्थ-
विपश्चित्-विद्वान्।
बहूनाम्-अनेक।

सरलार्थ-
यह ज्ञानियों, वैज्ञानिकों, विद्वान् लोगों की तथा संस्कृत लोगों की यह (पृथ्वी) है। यह भूमि अनेक मतों वाले लोगों की है। पृथ्वी पर भारतरूप स्वर्णभूमि शोभायमान है। क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः

(ङ) इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां
भिषक्शास्त्रिणां भूः प्रबन्धे युतानाम्।
नटानां नटीनां कवीनां धरेयं
क्षितौ राजतै भारतस्वर्णभूमिः ॥5॥

अन्वयः-
इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां भिषक्शास्त्रिणां प्रबन्धे युतानां भूः। नटानां नटीनां कवीनां धरा। क्षितौ भारतस्वर्णभूमिः राजते।

शब्दार्थ-
भिषक्-वैद्य।।
युतानाम्-लगे हुए।
प्रबन्धे-प्रबन्ध में।
शिल्पिनाम्-कारीगर।

सरलार्थ-
यह शिल्पी लोगों की, यन्त्र विद्याधरों की, वैद्यक शास्त्रों के जानने वालों की, प्रबन्ध में लगे हुए लोगों की पृथ्वी है। यह नटों की, नटियों की तथा कवियों की पृथ्वी है। पृथ्वी पर भारतरूप स्वर्णभूमि शोभायमान है।

(च)  वने दिग्गजानां तथा केशरीणां
तटीनामियं वर्तते भूधराणाम्।
शिखीनां शुकानां पिकानां धरेयं
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥6॥

अन्वयः-
इयं वने दिग्गजानां तथा केशरीणां तटीनां भूधराणां शिखीनां शुकानां पिकानां धरा। क्षितौ भारतस्वर्णभूमिः राजते।

शब्दार्थ-
दिग्गजानाम्-हाथियों की।
केशरीणाम्-सिंहों की।
तटीनाम्-नदियों की।
भूधराणाम्-पर्वतों की।
शिखीनाम्-मोरों की।
पिकानाम्-कोयलों की।

सरलार्थ-
यह वन में हाथियों की, सिंहों की, नदियों की, पर्वतों की, मोरों की, तोतों की, कोयलों की धरा है। पृथ्वी पर भारतरूप स्वर्णभूमि शोभायमान है।