Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 7 Questions and Answers Summary अंतिम दौर-दो

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 7 Question Answers Summary अंतिम दौर-दो

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 7 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में आज़ादी के लिए किन दो गुटों ने जन्म लिया?
(i) उग्र और नरम
(ii) नरम दल और गरम दल
(iii) तीव्र और भेद
(iv) मुख्य और गौण
उत्तर:
(ii) नरम दल और गरम दल

प्रश्न 2.
गांधी जी की कार्य पदधति का रूप क्या था?
(i) हिंसात्मक
(ii) अहिंसात्मक
(iii) विरोध
(iv) बदला
उत्तर:
(ii) अहिंसात्मक

प्रश्न 3.
भारत के विभाजन में किस नेता का योगदान रहा?
(i) मिस्टर जिन्ना
(ii) अबुल कलाम आजाद
(iii) गांधी
(iv) जवाहर लाल नेहरू
उत्तर:
(i) मिस्टर जिन्ना

प्रश्न 4.
कांग्रेस किस सिद्धांत पर अडिग रही?
(i) राष्ट्रीय एकता
(ii) लोकतंत्र
(iii) राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र
(iv) अन्य
उत्तर:
(iii) राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रथम विश्वयुद्ध के समय राजनीतिक स्थिति क्या थी?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के समय राजनीतिक स्थिति उतार पर थी।

प्रश्न 2.
कांग्रेस में दो दल कौन-कौन से थे?
उत्तर:
कांग्रेस में दो दल थे (1) गरम दल (2) नरम दल।

प्रश्न 3.
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में लोगों की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में आम लोगों की स्थिति दयनीय थी। किसान, मजदूर, वर्ग, मध्यम वर्ग सभी आक्रांत थे। उनका बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा था। देश में भुखमरी और गरीबी बढ़ती जा रही थी।

प्रश्न 4.
मार्शल लॉ क्या था?
उत्तर:
‘मार्शल लॉ’ अंग्रेज़ी सरकार द्वारा बनाया गया एक ऐसा कानून था जिसमें किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय पुलिस व न्यायालय की आदेश के बगैर गोली का निशाना बनाया जा सकता था।

प्रश्न 5.
गांधी जी द्वारा अहवान करने पर देश की आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गांधी जी द्वारा आम जनता को अह्वान करने पर ‘डरो मत’ किए जाने पर लोगों में ब्रिटिश सरकार का डर समाप्त हो गया। वे अपने कार्य खुलेआम करने लगे। उनमें हौंसला और साहस की वृद्धि हुई और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा।

प्रश्न 6.
भारतीय संस्कृति के बारे में गांधी जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
गांधी जी ने भारतीय संस्कृति के बारे में लिखित रूप में कहा कि “भारतीय संस्कृति न हिंदू है न इस्लाम, न पूरी तरह से कुछ और है। यह सबका मिलाजुला रूप है। उन्होंने हिंदू धर्म को सार्वभौमिक यानी सबके लिए समान रूप देना चाहा। सत्य के घेरे में सबको शामिल करने का प्रयास किया।

प्रश्न 7.
कांग्रेस किस प्रयासों में असफल रही?
उत्तर:
कांग्रेस ने बहुत प्रयास किया कि सांप्रदायिक तत्वों को राजनीति में न लाया जाए लेकिन मुस्लिम लीग ने सहयोग न किया और राष्ट्रीय एकता कायम रखने में असफल रही।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी के सपनों का भारत कैसा था?
उत्तर:
गांधी जी ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे- जिसमें गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी यह महसूस करेगा कि यह उसका देश है जिसके निर्माण में उसका योगदान रहा है। एक ऐसा भारत हो जिसमें लोगों के बीच ऊँच-नीच, अमीर-गरीब का भेद न हो। ऐसा भारत जिसमें सभी जातियाँ समभाव से रहें। ऐसा भारत हो जिसमें भेद-भाव से रहित हो, छुआछूत की जगह न हो, नशीली मदिरा और दवाइयों के अभिशाप के लिए कोई जगह नहीं हो, जिसमें स्त्री-पुरुषों के समान अधिकार हों, यही गांधी जी के सपनों का भारत है।

प्रश्न 2.
प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर देश में राहत और प्रगति की बजाय दमनकारी कानून और पंजाब में मार्शल लॉ लागू हुआ। जनता में अपमान की कड़वाहट और क्रोध फैल गया और शोषण का बाजार गर्म था। इससे लोगों की आशा निराशा में बदल गई।

प्रश्न 3.
गांधी जी की कार्य-प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
गांधी जी की कार्य प्रणाली अहिंसात्मक थी, उसमें हिंसा के लिए लेशमात्र की जगह नहीं थी। उनके काम करने का तरीका पूर्णतया शांतिपूर्वक था लेकिन जिस बात को गलत समझा जाता था उसके आगे सिर झुकाना भी उन्होंने कबूल नहीं किया। उन्होंने लोगों को अंग्रेजों के द्वारा दी गई पदवियाँ वापस करने के लिए प्रेरित किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन व असहयोग आंदोलन उन्हीं की देख-रेख में भारत में चले, जिन्होंने अंग्रेज़ी सरकार को उखाड़कर रख दी।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतिम दो दौर का वर्णन किया गया है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 7 Summary

राष्ट्रीयता बनाम साम्राज्यवाद : मध्य वर्ग की बेबसी गांधी जी का आगमन- दूसरे विश्वयुद्ध के शुरुआत होने के समय कांग्रेस की राजनीति में उतार आया था। इसका मुख्य कारण कांग्रेस का दो गुटों में बँटना था। जिनमें एक था नरमदल और दूसरा गरम दल। विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में अंग्रेजों द्वारा दमनकारी कानून और भारत में मार्शल ला लागू हुआ। भारतीय जनता का शोषण लगातार बढ़ने लगा। तभी भारतीय राजनीति में गांधी का उदय हुआ। वे करोड़ों की आबादी से निकलकर आए थे। वे जनता की भाषा बोलने वाले और जनता के सच्चे शुभ चिंतक थे। अतः उन्होंने भारत में करोड़ों जनता को प्रभावित किया। गांधी ने पहली बार कांग्रेस के संगठन में प्रवेश किया। इस संगठन का उद्देश्य था सक्रियता और तरीका था शांतिप्रिय तरीके से। गांधी ने आते ही ब्रिटिश शासन की बुनियादों पर चोट की। उन्होंने लोगों से कहा कि अपने अंदर का भय निकाल दो क्योंकि आम लोगो की व्यापक दमनकारी, दमघोटू भय सेना का, पुलिस का, खुफिया विभाग का, अफसरों, जमीनदारों, साहूकारों, बेकारी और भुखमरी का भय सताता रहता था। गांधी जी की प्रेरणा से लोगों ने भयमुक्त होकर काम करना शुरू किया। इससे लोगों में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन का संचालन हुआ। यह परिवर्तन असंख्य लोगों को प्रभावित कर रहा था। उनकी इस प्रेरणा से सभी आम जनता में जागरुकता का विस्तार हुआ।

गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस सक्रिय
गांधी जी ने पहली बार कांग्रेस में प्रवेश करते ही उसके संविधान में परिवर्तन ला दिया। उन्होंने कांग्रेस को लोकतांत्रिक संगठन बनाया। इस संगठन का लक्ष्य और आधार था सक्रियता। इसके परिणामस्वरूप किसानों ने कांग्रेस में भाग लेना शुरू किया। अब कांग्रेस विशाल किसान संगठन दिखाई देने लगा। गांधी जी का सक्रियता का आह्वान दोहरा था – विदेशी शासन को चुनौती देना और इसका मुकाबला करना। अपनी खुद की सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ने में भी सक्रियता थी। गांधी जी ने अंग्रेजी शासन की बुनियादों पर चोट की। लोगों से इसके विरोध में मैडल और खिताब वापस करने की अपील की। धनी लोगों ने सादगीभरा जीवन व्यतीत करना अपना लिया। गांधी जी के अनुसार आज़ादी पाने के लिए आम जनता की भागीदारी आवश्यक है। वे हर काम को शांतिपूर्ण तरीके से सही ढंग से करते थे । उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति धर्मनिरपेक्ष है। यह सभी धर्मों का सम्मिश्रण है। गांधी जी सभी की भावनाओं का सम्मान करते थे। वे प्रायः लोगों की इच्छा के सामने झक जाते थे। कभी-कभी अपने विरुद्ध फैसले स्वीकार कर लेते थे। सन् 1920 तक कांग्रेस में शामिल और आम लोगों ने गांधी के रास्ते को अपनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। पहली बार नए आंदोलन हुए, सविनय अवज्ञा आंदोलन हुआ, असहयोग की नीति अपनाई गई लेकिन यह अहिंसक आंदोलन था।

अल्पसंख्यकों की समस्या-मुस्लिम लीग-मोहम्मद अली जिन्ना
भारत सदैव से धर्म निरपेक्षता का अनुसरण करता रहा और सभी धर्मों को एक समान मान्यता दी। यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं किया गया। लेकिन भारत में उस समय राजनीतिक मामलों में धर्म का स्थान सांप्रदायिकता ने ले लिया था। कांग्रेस इन धार्मिक सांप्रदायिक मामलों का हल निकालने के लिए उत्सुक और चिंतित थी। कांग्रेस की सदस्य संख्या में अधिकांश हिंदू सदस्य थे। कांग्रेस मुख्यतः दो बुनियादी प्रश्नों पर अटल रही – राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र। 1940 में कांग्रेस ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश सरकार की नीति ‘नव जीवन में संघर्ष और फूट को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देती है।’

ऐसे में भारत की बलि देना और लोकतंत्र का त्याग करना देश के लिए अहितकर था। अंग्रेज़ों की नीति हिंदू और मुस्लिम एकता को कमज़ोर करना रहा। वे फूट डालो राज्य करो की नीति को अपनाते थे। ऐसे में कांग्रेस ऐसा कोई हल न ढूँढ़ सकी जिससे सांप्रदायिक समस्या को सुलझाया जा सके।

अब हर हाल में हिंदू और मुसलमानों में दीवार खड़ी करना चाहता थे। वे हिंदू-मुस्लिम के मत-भेदों को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास करने लगा।

मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना की माँग का आधार एक नया सिद्धांत था- भारत में दो राष्ट्र हैं- हिंदू और मुसलमान। अब मुस्लिम लीग के अगुवा जिन्ना ने हिंदू और मुसलमान के लिए दो अलग राष्ट्रों की घोषणा की। इससे देश में भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन की अवधारणा विकसित हुई। इससे दो राष्ट्रों की समस्या का हल न हो सका क्योंकि हिंदू व मुसलमान पूरे राष्ट्र में ही थे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 106.
विभाजन – बँटवारा, गरमदल – गरम विचारों वाला, नरमदल – नरम विचारों वाला, प्रतिबंध – रोक, दमनदारी – नष्ट करने वाला, आवेश – उत्तेजना, निर्मम – निर्दय, दब्बू, डरने वाला।

पृष्ठ संख्या 107.
सर्वग्रामी – सबको निगल लेने वाला, आकाशद्वीप – आकाश में चमक बिखेरने वाले, सोचनीय – खराब, चिंताजनक, दुर्गति – बुरी स्थिति, प्रबल – मज़बूत, खुफिया – जासूस, कारिंदा – जमींदार के लिए काम करने वाला, लाबादा – ढीलाढाला ऊपरी पोशाक आंशिक अधूरा।

पृष्ठ संख्या 108.
लोकतांत्रिक – लोगों के प्रभुत्व वाला, हैसियत – औकात, सक्रियता – क्रियाशील होना, विकल्प – तरीके, ऊर्जा – शक्ति, शिष्ट – सभ्य, आह्वान – प्रेरित करना।

पृष्ठ संख्या 109.
बुनियादी – नीवों/आधार, खिताब – पदवी, उपहासास्पद – मज़ाक उड़ाने योग्य, अभद्र – अशिष्ट, वेशभूषा – पहनावा, निष्क्रिय – कार्य न करना, निवृत्तिमार्गी – मुक्ति के मार्ग को अपनाने वाले, पैठाने – स्थान देने।

पृष्ठ संख्या 110.
मतभेद – विचार एक न होना, धर्मप्राण – धार्मिक, अंतरतनम – मन की गहराइयों से, अवधारणा – विचार, दृढ़ – पक्का, अहिंसा – बिना हिंसा के अनुरूप, मदिरा – शराब, एक नशीला पेय।

पृष्ठ संख्या 111.
लगन – गहरी रुचि, गौण – तुच्छ, कम महत्त्वपूर्ण, अलंकार – सजावट का सामान, आकांक्षा – इच्छा, सम्मोहित – अपनी ओर आकर्षित कर लेना, तटस्थ – किसी विशेष पक्ष का साथ न देनेवाला, प्रभुत्व – प्रभाव।

पृष्ठ संख्या 112.
सांप्रदायिक समस्या – धर्म के आधार पर बनाई हुई समस्या, संरक्षण – सहारा, बढ़ावा, भाषिक – भाषा संबंधी।

पृष्ठ संख्या 113.
स्वाधीनता – स्वतंत्र रहने की भावना, एक – एकता, बनियादी – आधारभूत, अडिग – दृढता से अपने मत पर स्थिर रहना, भड़काना – उग्रता को बढ़ावा देना, खल्लम खुल्ला – खले रूप में, सामंती – जमींदारी, विभाजन – बँटवारा, अस्वीकार – अमान्य, खुल्लमखुल्ला – स्पष्ट रूप से सबके सामने, एकता की बलि – एकता को तोड़ना।

पृष्ठ संख्या 114.
प्रोत्साहित – उत्साहित, अतीत – बीता हुआ, बहुराष्ट्रीय – बहुत से राष्ट्र।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Questions and Answers Summary अंतिम दौर-एक

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 6 Question Answers Summary अंतिम दौर-एक

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के समय में भारत में कौन से दो मुख्य विभाग थे?
(i) धर्म व राजनीति
(ii) माल गुजारी व पुलिस
(iii) भारतीय व अंग्रेजों के शासकीय विभाग
(iv) गाँवों व शहरों के सत्ता के अलग-अलग विभाग
उत्तर:
(ii) माल गुजारी व पुलिस

प्रश्न 2.
प्रत्येक जिले में प्रमुख पद क्या घोषित हुआ?
(i) सरपंच
(ii) कलेक्टर
(iii) राजस्व पदाधिकारी
(iv) पुलिस अधिकारी
उत्तर:
(ii) कलेक्टर

प्रश्न 3.
इस समय बंगाल कितने वर्षों से अंग्रेज़ों के चुंगल में था?
(i) 40 वर्ष
(ii) 50 वर्ष
(ii) 60 वर्ष
(iv) 25 वर्ष
उत्तर:
(ii) 50 वर्ष

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय ने किस प्रथा पर रोक लगाई ?
(i) बाल विवाह
(ii) विधवा विवाह
(iii) सती प्रथा
(iv) परदा प्रथा
उत्तर:
(iii) सती प्रथा

प्रश्न 5.
भारतीय द्वारा संपादित पहला समाचार-पत्र कब प्रकाशित हुआ?
(i) 1800 ई. में
(ii) 1818 ई. में
(iii) 1856 ई. में
(iv) 1885 ई. में
उत्तर:
(ii) 1818 ई. में

प्रश्न 6.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत कब हुई थी?
(i) 1805 ई. में
(ii) 1826 ई. में
(iii) 1850 ई. में
(iv) 1857 ई. में
उत्तर:
(iv) 1857 ई. में

प्रश्न 7.
‘राजा राममोहन राय’ ने किस समाज की स्थापना की थी?
(i) वृद्ध समाज
(ii) ब्रह्म समाज
(iii) स्त्री समाज
(iv) बंगाल समाज
उत्तर:
(ii) ब्रह्म समाज

प्रश्न 8.
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?
(i) स्वामी विवेकानंद
(ii) रवींद्र नाथ टैगोर
(iii) स्वामी दयानंद सरस्वती
(iv) राजा राम मोहन राय
उत्तर:
(i) स्वामी विवेकानंद

प्रश्न 9.
‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना किसने की थी?
(i) अबुल कलाम आजाद
(ii) सर सैयद खाँ
(iii) अलीगढ़ कॉलेज के मुसलमान बुद्धिजीवी
(iv) आम मुस्लिम वर्ग
उत्तर:
(iii) अलीगढ़ कॉलेज के मुसलमान बुद्धिजीवी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के बाद भारत में कैसी व्यवस्था से बँध गया?
उत्तर:
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के बाद भारत एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के साथ जुड़ गया जिसका संचालन भारत देश बाहर इंग्लैंड से होने लगा।

प्रश्न 2.
अंग्रेज़ों का लक्ष्य क्या था?
उत्तर:
अंग्रेजों का लक्ष्य था – लगान के रूप में भारतीयों से अधिक मात्रा में टैक्स वसूलना और मुनाफ़ा कमाना।

प्रश्न 3.
कैपिटेशन चार्ज क्या था?
उत्तर:
इंग्लैंड में ब्रिटिश सेना के एक हिस्से का प्रशिक्षण खर्च भारत को उठाना पड़ता था। इसे कैपिटेशन चार्ज कहा जाता था।

प्रश्न 4.
शिक्षा का विरोध करने वाले अंग्रेजों को भारत में शिक्षित क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
अंग्रेज़ शिक्षा के प्रचार को नापसंद करते थे। फिर भी भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना उनकी मज़बूरी रही। वे भारत में पाश्चात्य संस्कृति को फैलाना चाहते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने कार्यों के लिए क्लर्क भी तैयार करना था।

प्रश्न 5.
सती प्रथा क्या था? इसे रोकने में राजा राममोहन राय ने क्या किया?
उत्तर:
सती प्रथा एक पुराने समय की कुरीति थी। इस प्रथा में प्रति की मृत्यु होने पर स्त्री (पत्नी) को भी जिंदा जला दिया जाता था। राजा राममोहन राय ने इस प्रथा का अंत अंग्रेजों की सहायता लेकर कानून बनाकर किया। उन्हीं के प्रयासों के कारण सरकार ने सती प्रथा पर रोक लगाई।

प्रश्न 6.
1857 का विद्रोह असफल क्यों रहा?
उत्तर:
1857 का विद्रोह असफल होने का प्रमुख कारण यह था कि उसके विद्रोह के लिए जो तिथि निश्चित की गई थी उसका खुलासा समय से पहले हो गया। इससे अंग्रेज़ सतर्क हो गए, इसके अलावे देश के ज़मीनदारों, सामंती सरदारों ने इसमें भाग नहीं लिया। इससे भी यह विद्रोह कमज़ोर पड़ गया।

प्रश्न 7.
तकनीकी परिवर्तन और शिक्षा के प्रसार का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अंग्रेजों के आने से तकनीकी और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। समाज में सोई हुई चेतना जाग उठी और नई चेतना का विकास हुआ। अंग्रेजी पढ़ने वालों का रुझान पश्चिमी वस्तुओं और पश्चिमी सभ्यता की गतिविधियों पर गया तथा लोगों में अपने देश की आजादी के प्रति लगाव पैदा हो गया।

प्रश्न 8.
सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उत्तर:
सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना अपने इस उद्देश्य से की कि भारतीय मुसलमान शिक्षा ग्रहण करके अंग्रेजी सरकार द्वारा योग्य नौकरियाँ प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 9.
तिलक और गोखले कैसे आंदोलनकारी थे?
उत्तर:
तिलक और गोखले आक्रामक व अवज्ञाकारी विचाराधारा वाले थे। गरम दल के प्रभावी आंदोलनकारी नेता थे। वे अपना मांग अनुरोध से नहीं बल्कि छीन कर लेना चाहते थे। भारतीय जनमानस का बहुत बड़ा भाग उनके समर्थन में था। सरकार भी उनकी गतिविधियों से डरती थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के साथ घटने वाली नई घटना क्या थी?
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना से भारतीयों के लिए यह नई घटना थी कि पहली बार वे ऐसी शासन सत्ता में आए जिसका मूल भारतीय न था। इससे पूर्व कई बाहरी जातियों ने भारत पर आक्रमण, कर शासन सत्ता सँभाली थी। अधिकांश ने अपना भारतीयकरण किया जबकि अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नहीं अपनाया। अब तो भारत ऐसे शासकीय संचालन में बँध गया जिसकी बागडोर भारतीय धरती पर न होकर लंदन के धरती पर था।

प्रश्न 2.
18वीं शताब्दी में बंगाल में किस व्यक्तित्व का उदय हुआ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में जिस सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व का उदय हुआ, वे थे राजा राममोहन राय। वे एक नए सोच के व्यक्ति थे। उन्हें भारतीय विचारधारा और दर्शन की गहरी जानकारी थी। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने भारतीय समाज की पुरानी पद्धति से बाहर निकालना चाहते थे। वे एक समाज सुधारक थे। उन्हीं के प्रयास के कारण सती प्रथा पर रोक लगी।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी के प्रमुख सुधारक का नाम लिखिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, टैगोर, महात्मा गांधी, ऐनी बेसेंट, सर सैय्यद अहमद खाँ, अबुल कलाम आजाद, गोपाल कृष्ण गोखले एवं बाल गंगाधर तिलक मुख्य सुधारक थे। ये समाज सुधारक ब्रिटिश शासन के प्रभाव के चंगुल से बाहर निकाल कर लोगों की विचारधारा को बदलना चाहा। उनमें राष्ट्रीयता की भावना भर, धार्मिक कांडों से उन्हें निकालना चाहते थे।

प्रश्न 4.
दयानंद सरस्वती कौन थे? उन्होंने समाज सुधार के क्षेत्र में क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर:
दयानंद सरस्वती 19वीं शताब्दी के जाने-माने समाज-सुधारक थे। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ‘वेदों की ओर लौटो’ यानी उनका मानना था कि जीवन में ही जीवन की सत्यता है। इसका प्रसार पंजाब तथा संयुक्त प्रदेश के हिंदू वर्ग में हुआ। उन्होंने लड़के-लड़कियों को बराबरी की शिक्षा देने का प्रयास किया। स्त्रियों की स्थिति में सुधार और दलित जातियों का स्तर ऊँचा उठाने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानंद की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परम के शिष्य थे। वे बांग्ला और अंग्रेज़ी के बड़े ज्ञाता थे। 1893 ई. में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने वेदांत के अद्वैत दर्शन के एकेश्वर बाद का उपदेश दिया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। वे उदास और पतित समाज के लिए संजीवनी बनकर आए।

प्रश्न 6.
तिलक और गोखले के बारे में संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक योग्य और तेजस्वी नेता के रूप में उभरे महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक मराठा के महापुरुष के रूप में थे। गोपाल कृष्ण गोखले कांग्रेस के बुजुर्ग नेता थे, वे दादा भाई नौरोजी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Summary

भारत राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पहली बार एक अन्य देश का पुछल्ला बनता है-
अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के बाद भारत के लिए एकदम से नई घटना थी। नया पूँजीवाद सारे विश्व में जो बाज़ार तैयार कर रहा था उससे हर हालत में भारत के आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़ा। भारत अब अंग्रेज़ी आर्थिक ढाँचे का गुलाम बन गया और किसान भी उनके गुलाम बनकर रह गए। अंग्रेजों के आने से बड़े ज़मीनदार पैदा हुए। उनका मुख्य उद्देश्य लगान अधिक से अधिक मात्रा में वसूल करना था।

इस तरह अंग्रेजों ने ऐसे वर्ग को जन्म दिया जिनके स्वार्थ अंग्रेजों से मिलते-जुलते थे। यह वर्ग ये राजा, जमीनदार सरकार के विभिन्न विभागों के पटवारी, गाँवों के प्रधान व उच्च अधिकारी थे। ये वर्ग भी आम जनता का अंग्रेज़ों की तरह खून चूसने वाले थे। अंग्रेज़ों ने प्रत्येक जिले में कलेक्टर की भी नियुक्ति किए, ये वर्ग आम जनता से मुँह-माँगी टैक्स वसूलकर अंग्रेज़ों का खजाना भरते थे।

इस प्रकार भारत की आम जनता को ब्रिटेन के अनेक खर्च उठाने पड़ते थे। उनमें सेना पर किए खर्च जिसे ‘कैपिटेशन चार्ज’ कहा जाता था, देना पड़ता था। इसके अतिरिक्त अन्य खर्चों का बोझ भी भारत के कंधों पर था।

भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्विरोध राममोहन राय – बंगाल में अंग्रेज़ी शिक्षा और समाचार पत्र
बंगाल में अंग्रेज़ी शिक्षा के कई समाज सुधारक पक्ष थे। इसके अलावे शिक्षाविद् अंग्रेज़ प्राच्य विद्या विशारद पत्रकार मिशनरी और कुछ अन्य लोगों ने पाश्चात्य संस्कृति को भारत में लाने के लिए काफ़ी प्रयास किया। यद्यपि अंग्रेज़ भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार नापसंद करते थे क्योंकि वे चाहते थे कि शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम से क्लर्क तैयार किया जाए ताकि कम वेतन पर उनसे काम कराया जा सके। शिक्षा के माध्यम से शिक्षित लोगों में नई चेतना जाग उठी। वे गुलामी से मुक्त होने के लिए तड़पने लगे लेकिन नई तकनीकी, रेलगाड़ी, छापाखाना, दूसरी मशीनें ये सब ऐसी बातें थीं जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती थी। ऐसे ही वक्त में 18 वीं शताब्दी में एक सामाजिक सुधारक एवं अत्यंत शक्तिशाली व्यक्तित्व का उदय हुआ। इसका नाम था-राजा राम मोहन राय। वह एक नई सोच का व्यक्ति था। भारतीय विचारधारा और दर्शन की उन्हें काफ़ी ज्ञान था। उन्हें अनेक भाषाओं का भी ज्ञान था। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के गवर्नर जनरल को गणित, भौतिकी, विज्ञान, रसायन, शास्त्र, जीव-विज्ञान और अन्य उपयोगी विज्ञानों की शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया और अंग्रेज़ी को लागू करने के लिए भी लिखा।

राजा राम मोहन राय ईसाई व मुस्लिम दोनों धर्मों के संपर्क में रहे और इससे वे प्रभावित भी रहे। वे भारतीय धार्मिक कुरीतियों व कुप्रथाओं से भारत को मुक्त करवाना चाहते थे। इसके फलस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।

वे भारतीय पत्रकारिता के प्रवर्तक भी थे। उनका कहना था कि समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ मनुष्य के विचारों को जागरूक करने का माध्यम हैं। अतः उनके नेतृत्व में 1818 में पहली बार एक अंग्रेज़ी का समाचार पत्र निकला जिसका संपादन भारतीयों ने किया था। इसके अतिरिक्त बंगाली में एक साप्ताहिक व एक मासिक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। धीरे-धीरे देश में, कलकत्ता, मद्रास और मुंबई में तेजी से और भी समाचार पत्र निकलने लगे।

उनकी सोच थी कि भारत में पूर्ण जागरण के बिना परिवर्तन लाना असंभव है। बहुत से लोगों ने उनका समर्थन किया जिनमें रवींद्र नाथ का परिवार उनका समर्थक था। वे दिल्ली सम्राट की ओर से इंग्लैंड गए। दुर्भाग्य से उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआती वर्षों में ब्रिस्टल में उनकी मृत्यु हो गई।

सन् 1857 की महान क्रांति – जातीयतावाद
भारत के उत्तरी राज्यों को छोड़कर लगभग सारा भारत अब ब्रिटिश सरकार की सहानुभूति चाहता था। बंगाल ने ब्रिटिश सरकार से संधि किया था। किसान आर्थिक तंगी से परेशान थे। उत्तर भारत में प्रजा में असंतोष और अंग्रेज़ी भावना फैल रही थी। इसी बीच मई 1857, में मेरठ की भारतीय सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ़ बगावत शुरू कर दी। विद्रोह की शुरुआत गुप्त तरीके से हुई थी लेकिन इस योजना की शुरुआत समय से पहले हो जाने के कारण योजना को बिगाड़ दिया। अब यह केवल सैनिक विद्रोह होकर रह गया। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के रूप में देखा जाने लगा। हिंदू और मुसलमान सभी भारतीयों ने इस विद्रोह में बढ़चढ़कर भाग लिया। यह सैनिक विद्रोह के अलावा जन आंदोलन का रूप भी ले लिया। अंग्रेज़ों ने इसका दमन भारतीयों की सहायता से किया। इस आंदोलन में तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर कर रख दिया। ‘ब्रिटिश पार्लियामेंट’ ने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ से भारत को अपने हाथ में ले लिया।

हिंदुओं और मुसलमानों में सुधारवादी आंदोलन
इस समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कई सामाजिक कुरीतियाँ फैली हुई थीं। इस समय सामाजिक सुधारकों में जिसमें राजा राम मोहन राय और दयानंद सरस्वती हुए। इन्होंने हिंदू धर्म में कुछ सुधारवादी आंदोलन चलाया। राजा राम मोहन राय ने हिंदू ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की। 19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती ने महत्त्वपूर्ण सुधार आंदोलन की शुरुआत की। यह आर्य सामाजियों का आंदोलन था। इसका नारा था- ‘वेदों की ओर चलो’ आर्य समाज में वेदों की एक विशेष ढंग से व्याख्या की गई। इसका प्रसार मुख्य रूप से पंजाब और संयुक्त प्रदेश के हिंदू वर्ग में हुआ। इस सुधारवादी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था लड़के-लड़कियों में समान रूप से शिक्षा के प्रसार में, स्त्रियों की स्थिति का सुधार करने में और दलित जातियों के स्तर को ऊँचा उठाने में विशेष रूप में काम किया। स्वामी दयानंद के समय में बंगाल में श्री रामकृष्ण परम हंस का व्यक्तित्व सामने आया। उन्होंने हिंदूधर्म और दर्शन के विविध पक्षों को आपस जोड़कर जनता के सामने रखा। वे संप्रदायिकता के विरोधी थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी धर्म सत्य की ओर जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने गुरु- भाइयों की सहायता से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। उन्होंने हिंदू धर्म और दर्शन के विविध पक्षों को आपस में जोड़कर जनता के सामने प्रस्तुत किया।

1893 ई. में शिकागो में अंतर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में भाग लिया। विवेकानंद ने भारत के दक्षिणी छोर में कन्याकुमारी से हिमालय तक अपने सिद्धांतों को फैलाया। 1902 ई. में 39 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। विवेकानंद के समकालीन रवींद्रनाथ ठाकुर थे। टैगोर परिवार ने बंगाल के सुधारवादी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने जलियाँवाला कांड के विरोध में अपनी ‘सर’ की उपाधि लौटा दी। शिक्षा के क्षेत्र में ‘शांति निकेतन’ उनकी प्रमुख देन थी। वे रूसी क्रांति के प्रशंसक थे विशेष उसमें शिक्षा के प्रसार, संस्कृति, स्वास्थ्य और समानता की चेतना के। उनका मानना था कि यही तत्व व्यक्ति के उसके उददेश्य की पूर्ति में सहायक होता है। टैगोर और गांधी दोनों मानवतावादी थे। इन्होंने लोगों को संकीर्ण विचारधाराओं से बाहर निकालना चाहा। गांधी जी विशेष रूप से आम जनता के आदमी थे, जो भारतीय किसान के रूप में थे। टैगोर मूलतः विचारक थे और गांधी अनवरत कर्मठता के प्रतीक थे। उस समय ऐनी बेसेंट का भी बहुत प्रभाव पड़ा। बहुत-सी बातें मुसलमान जनता में भी समान रूप से प्रचलित थीं। इन दोनों ने अपनेअपने तरीके से जनता में नई विचारधारा का संचार करना चाहा।

श्रीमती एनी बेसेंट आयरलैंड की रहने वाली महिला थी। उन्होंने भारत में होम रूल चलाया जिसका उद्देश्य अंग्रेजों से भारतीयों को आंतरिक स्वतंत्रता दिलाया था। 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय मुसलमान यह तय नहीं कर पा रहे थे कि घर जाएँ। अंग्रेजों ने उनके साथ अत्यधिक दमनपूर्ण रवैया अपनाया था। सन् 1870 के बाद संतुलन बनाने के लिए अंग्रेजी सरकार अनुकूल हो गई। इसमें सर सैयद अहमद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें यह विश्वास था कि ब्रिटिश सत्ता के सहयोग से मुसलमानों की स्थिति बेहतर हो सकती है। उन्होंने मुसलमानों में ब्रिटिश विरोधी भावना कम करने की कोशिश की। सर सैयद अहमद खा का प्रभाव मुसलमानों में उच्च वर्ग के कुछ लोगों तक ही सीमित था। 1912 में मुसलमानों के दो नए साप्ताहिक निकले-उर्दू में ‘अल हिलाल’ और अंग्रेज़ी में ‘कामरेड।’ अबुल कलाम आजाद का अलीगढ़ कॉलेज में सर सैयद खाँ से संबंध था। अबुल कलाम आजाद ने पुरातन पंथी और राष्ट्र विरोधी भावना के गढ़ पर हमला किया जिससे बुजुर्ग नाराज हुए पर युवा पीढ़ी में उत्तेजना भर चुकी थी।

तिलक और गोखले
ए. ओ. हयूम ने 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। जब 1885 में निर्मित नेशनल कांग्रेस अपनी प्रौढ़ावस्था में आई तो इसके नेतृत्व का ढंग बदल गया। जब इसके संरक्षक बने थे वे अत्यधिक आक्रमणकारी व अवज्ञाकारी थे और निम्न वर्ग छात्र व युवा लोगों के प्रतिनिधि थे। उसमें कई तरह के योग्य ओजस्वी नेता उभरकर आए। इसके सच्चे प्रतिनिधि थे- महाराष्ट्र के बालगंगाधर तिलक और गोखले प्रमुख थे। संघर्ष का पूरा माहौल तैयार हो गया था जिसे बचाने के लिए दादा भाई नोरोजी लाए गए। 1907 ई. में हुए संघर्ष में उदार दल की जीत हुई लेकिन बहुसंख्यक समाज के लोग तिलक के पक्ष में थे। इस समय बंगाल में हिंसक घटनाएं हो रही थीं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 92.
गुलाम – दास, संचालन – चलाना, विघटन – खेमों में बँट जाना, पुछल्ला – पीछे रह जाना, अनुसरण – किसी अन्य के कहने पर काम करना, अभिन्न – एक समान ।

पृष्ठ संख्या 93.
सुदृढ़ – पक्का, महकमों – विभागों, पटवारी – ज़मीन की पैदाइश करने वाले, प्रशिक्षण – ट्रेनिंग, कैपिटेशन चार्ज – सेना के प्रशिक्षण के लिए किया जाने वाला खर्च, मायूसी – उदासी, क्रोध – गुस्सा, शिक्षाविद – शिक्षा का ज्ञाता, प्राच्य – विद्या, विशारद् – एक प्रकार की शैक्षणिक उपाधि, चिंतन – विचार, क्लर्क – दफ्तरों में काम करनेवाला साधारण कर्मचारी, चेतना – बुद्धि ।

पृष्ठ संख्या 94.
आघात – चोट, कारगर – प्रभावी, वयैक्तिक – निजी, आघात – चोट, कारगर – प्रभावी, दृढ़ता – मज़बूती, मुक्त – आज़ाद।

पृष्ठ संख्या 95.
प्रवर्तक – संस्थापक, स्वामित्व – अधिकार, समन्वयवादी – विचारों का आदान-प्रदान, विश्वजनीय – विश्व में प्रसिद्ध, कट्टर – पक्का, पुनर्जागरण – नई चेतना जाग्रत करना, प्रवृत्ति – इच्छा, असंतोष – संतुष्ट न होना।

पृष्ठ संख्या 96.
बगावत – विद्रोह, नियत – निश्चित, जनांदोलन – जनता का आंदोलन, अनुयायी – मानने वाला, अवशेष – बचे हुए, सार्वजनिक – समान रूप से, सारी जनता का, स्मरण – याद।

पृष्ठ संख्या 97.
सर्वोत्तम – सबसे बढ़िया, तत्काल – उसी समय, जब्त – कब्जे में करना, झकझोर – हिला देना, पुनर्गठन – फिर से संगठित होना, खिन्न – दुखी, आस्था – विश्वास।

पृष्ठ संख्या 98.
निषेध – मनाही, दलित – निम्न, धर्मप्राण – धर्म को मानने वाला, आत्म साक्षात्कार – स्वयं को परखना, तत्व ज्ञानियों – विचारकों, बहुरंगी साँचे – विभिन्न रूप, सांप्रदायिकता – धर्म के नाम पर होने वाले दंगे।

पृष्ठ संख्या 99.
सेतु – पुल जोड़ने वाला, वक्ता – बोलने वाला, संजीवनी – प्राणदायी औषधि, जीवंतता – जीने की चाहत, समभाव – एक समान दृष्टि से देखना, बलवती – मज़बूत, निरर्थक – बेमतलब, अभय – बिना डर के, दुर्बलता – कमज़ोरी, आध्यात्मिक – ईश्वरीय।

पृष्ठ संख्या 100.
नास्तिक – ईश्वर को न मानने वाला, क्षीण – कमज़ोर, बर्दाश्त – सहन, खिताब – उपाधि, ओत-प्रोत – लवरेज, भराहुआ।

पृष्ठ संख्या 101.
संकीर्ण – संकुचित, मिज़ाज – स्वभाव, सर्वहारा – जो सब कुछ हार चुका हो, अनवरत – लगातार, कर्मठता – काम की लगन, उदीयमान – उभरता हुआ, नैराश्य – निराशा।

पृष्ठ संख्या 102.
बोध – ज्ञान, साझी – मिली-जुली, वंचित – प्राप्त न होना, सांत्वना – धैर्य बाँधना, मनीषी – ज्ञानी, मुनासिब – उचित।

पृष्ठ संख्या 103.
उद्देश्य – लक्ष्य, अलगाववादी – अलग रहने को प्राथमिकता देनेवाला।

पृष्ठ संख्या 104.
परंपरागत – रीति-रिवाज के अनुसार, प्रतिभाशाली – विशेष योग्यता वाला, उत्तेजना – उग्रता, तेजस्विता – ओजपूर्ण, गुंजाइश – संभावना।

पृष्ठ संख्या 105.
पुरानपंथी – पुरानी विचारधाराएँ रखने वाला, भौहें चढ़ाना – नाराज़ होना।

पृष्ठ संख्या 106.
प्रौढ़ – अधेड़ उम्र का, आक्रामक – उस विचारधारा वाला, अवज्ञाकारी – सरकारी नीतियों का उल्लंघन करने वाला, सजक – जागरूक, बहुसंख्यक – अधिक संख्या में।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Questions and Answers Summary नई समस्याएँ

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 5 Question Answers Summary नई समस्याएँ

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर कौन था?
(i) मुगल शासन का संस्थापक
(ii) मुगल शासन का सेनापति
(iii) इस्लाम धर्म का संस्थापक
(iv) एक विदेशी आक्रमणकारी
उत्तर:
(i) मुगल शासन का संस्थापक

प्रश्न 2.
बाबर ने भारतीय सत्ता की नींव कब रखी?
(i) 1770
(ii) 1530
(iii) 1526 में
(iv) 1600
उत्तर:
(iii) 1526 में

प्रश्न 3.
अकबर ने किस धर्म को चलाया?
(i) दीन.ए.एलाही
(ii) मुस्लिम धर्म
(iii) इसाई धर्म
(iv) फ़ारसी धर्म
उत्तर:
(i) दीन.ए.एलाही

प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण की शुरुआत कब की?
(i) 1000 ई. में
(ii) 1100 ई. में
(ii) 1200 ई. में
(iv) 800 ई. में
उत्तर:
(i) 1000 ई. में

प्रश्न 5.
मुगल काल की वास्तुकला का सुंदर नमूना कौन-सा है?
(i) फतेहपुर सीकरी
(ii) कुतुबमीनार
(iii) ताजमहल
(iv) लालकिला
उत्तर:
(iii) ताजमहल

प्रश्न 6.
‘पद्मावत’ ग्रंथ की रचना किसने की?
(i) रहीम
(ii) जायसी
(iii) तुलसी
(iv) कबीर
उत्तर:
(ii) जायसी

प्रश्न 7.
मराठों के सेना नायक कौन थे?
(i) छत्रपति शिवाजी
(ii) रणजीत सिंह
(iii) टीपू सुल्तान
(iv) दारा
उत्तर:
(i) छत्रपति शिवाजी

प्रश्न 8.
मुगलकाल के पतन के बाद शक्तिशाली शासक के रूप में कौन उभरे?
(i) टीपू सुल्तान
(ii) हैदर अली
(iii) मराठे
(iv) अंग्रेज़
उत्तर:
(iii) मराठे

प्रश्न 9.
नादिरशाह कहाँ का शासक था?
(i) ईरान
(ii) इराक
(iii) अफगानिस्तान
(iv) चीन
उत्तर:
(i) ईरान

प्रश्न 10.
जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण कराया?
(i) आगरा
(ii) जयपुर
(iii) बनारस
(iv) इलाहाबाद
उत्तर:
(ii) जयपुर

प्रश्न 11.
भारत में ईस्ट इंडिया की स्थापना कब हुई?
(i) 1700
(ii) 1800
(ii) 1600
(iv) 1500
उत्तर:
(ii) 1600

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कौन-कौन सी विदेशी जातियों का आगमन हुआ?
उत्तर:
हर्षवर्धन के शासन में अरबी, तुर्की व अफगानी जातियों ने भारत में आगमन किया।

प्रश्न 2.
कई इलाकों को जीतने के बाद अरब भारत में सिंध से आगे क्यों न बढ़ सके?
उत्तर:
अरब आक्रमणकारियों ने दूर-दूर तक अपने इलाके का प्रसार किया। लेकिन वे सिंध प्रांत के आगे न बढ़ पाए क्योंकि भारत तब आक्रमणकारियों को रोकने में समर्थ था। इसके अन्य कारण अरबों में होने वाले आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं।

प्रश्न 3.
महमूद गज़नवी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
महमूद गज़नवी की मृत्यु 1030 में हुई थी।

प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी के बाद भारत पर किसका आक्रमण हुआ?
उत्तर:
महमूद गज़नवी के बाद 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी नामक अफगान ने पृथ्वीराज चौहान के समय आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गया लेकिन वर्ष 1192 में फिर दोबारा दिल्ली पर आक्रमण करके यहाँ के सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 5.
तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली की क्या दशा हुई?
उत्तर:
तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली बुरी तरह से तहस-नहस हो गई। इसका ढाँचा बिलकुल बिगड़ गया। इसे अपनी वास्तविक स्थिति में आने में लंबा समय लग गया। उसकी स्थिति बिलकुल सिमटकर रह गई। तैमूर के हमले का प्रभाव दिल्ली पर पूरी तरह देखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
दिल्ली की तबाही के समय भारत की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
14वीं शताब्दी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। उस समय दक्षिण भारत की दशा अच्छी थी। दक्षिण के राज्यों में विजय नगर सबसे अधिक शक्तिशाली रियासत थी, विजयनगर ने उत्तर भारत के अनेक शरणार्थियों को अपने ओर आकर्षित किया। उस समय दक्षिण भारत की प्रगति चरम सीमा पर थी।

प्रश्न 7.
अफ़गान शासक और उसके साथ आए लोग भारतीय ढाँचे में कैसे समा गए?
उत्तर:
अफ़गान शासक एवं उसके साथ आए लोग विदेशी होते हुए भी वे भारतीय ढाँचे में समा गए क्योंकि जो अफ़गान उनके साथ आए उनके परिवारों का भारतीयकरण हो गया। यानी वे भारतीय संस्कृति और विचारधारा में ढल गए। वे भारत को अपना देश व भारत के बाहर के देशों को विदेशी समझने लगे।

प्रश्न 8.
राणा प्रताप कौन थे? उन्होंने जंगलों में रहना क्यों पसंद किया?
उत्तर:
राणा प्रताप मेवाड़ के राजपूत शासक थे। वे अत्यंत साहसी, वीर स्वाभिमानी देशभक्त थे। वे हमेशा से ही मुगलों के विरोधी रहे। वे मुगलों को सदैव विदेशी आक्रमणकारी समझते थे। उन्होंने अकबर से भी कभी भी औपचारिक संबंध नहीं रखा और न तो उनकी अधीनता स्वीकार की। अतः उनकी पराजय होने के बाद उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के बजाय जंगलों में स्वतंत्र होकर रहना पसंद किया।

प्रश्न 9.
हिंदू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से भारत की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अकबर के सामने प्रमुख समस्या इस्लाम के साथ अन्य धर्म के लोगों के रीति रिवाजों के मेल से राष्ट्रीय एकता कायम करने की समस्या थी, इसलिए सामाजिक स्थिति में हिंदू मुसलमानों के आपसी समन्वय से दोनों की आदतें, रहन-सहन का ढंग, रुचियाँ एक सी हो गईं। व्यापार उद्योग भी एक से हो गए। हिंदू-मुसलमानों को भारत का ही अंग समझने लगे। वे आपसी धार्मिक आयोजनों व जलसों में भी शामिल होने लगे। बोलचाल की भाषा में हिंदी एवं उर्दू आपस में मिल-जुल गए थे। हिंदू एवं मुसलमानों दोनों की आर्थिक समस्याएँ एक जैसी ही थीं।

प्रश्न 10.
औरंगजेब कौन था? उसकी नीतियाँ राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुईं?
उत्तर:
औरंगजेब मुगलवंश का शासक था और वह अकबर का प्रपौत्र था। उसकी नीतियों के कारण देश के दूर-दूर प्रांतों में आतंक फैल गया। उसकी हिंदू विरोधी नीतियों के कारण सिख और मराठे उसके विरुद्ध हो गए। इससे लोगों में असंतोष की भावना का प्रादुर्भाव हुआ और पुनर्जागरणवादी विचारों का उदय हुआ जिसके परिणामस्वरूप धर्मवाद और राष्ट्रवाद का उत्थान हुआ।

प्रश्न 11.
जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण करवाया? उस नगर योजना को आदर्श क्यों समझा जाता था?
उत्तर:
जयसिंह ने जयपुर राज्य का निर्माण करवाया इस नगर की विशेषता थी कि इसका निर्माण विदेशी नक्शों के आधार पर किया गया था। नक्शे के आधार पर सुव्यवस्थित ढंग से बसाने के कारण नगर योजना को आदर्श समझा जाता है।

प्रश्न 12.
यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना न होती तो भारत की दशा कैसी होती?
उत्तर:
यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना नहीं हुई होती तो भारत अधिक स्वतंत्र, समृद्ध व प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने वाला होता। वह अभी काफ़ी शक्तिशाली राष्ट्र होता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत और अरब के बीच संबंध किस प्रकार मज़बूत हुए?
उत्तर:
भारत और अरब के बीच एक दूसरे के यहाँ आने जाने का कार्यक्रम चलता रहा। राजदूतों के आवासों की अदला-बदली हुई। भारत से गणित और खगोलशास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। इन पुस्तकों का अनुवाद अरबी भाषा में किया गया। कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह संबंध उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के साथ भी रहा। व्यापार की शुरुआत भी आपस में हुई।

प्रश्न 2.
महमूद गज़नवी कौन था? उसके आक्रमण से हिंदुओं के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
महमूद गज़नवी अफ़गानिस्तान का तुर्क आक्रमणकारी था। उसने भारत के उत्तरी भारत पर क्रूरता के साथ आक्रमण किया। उसने भारत से बहुत बड़ा खजाना लूटा और उसे ले गया। महमूद ने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया। उसने भारत में खून खराबा का तांडव मचाया। हिंदू उसके इस हरकत से काफ़ी इधर-उधर बिखर गए। बचे हुए हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति गहरी नफ़रत पैदा हो गई।

प्रश्न 3.
अमीर खुसरो कौन थे? उसके प्रसिद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
अमीर खुसरो, फ़ारसी के उच्च कोटि के कवि थे। उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था और वे महान संगीतकार भी थे। उनकी प्रसिद्धि का कारण तंत्री वाद्य सितार के आविष्कारक होना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने धर्म दर्शन, तर्कशास्त्र, भाषा और व्याकरण आदि विषयों की रचना की। उन्होंने लोकगीतों एवं पहेलियों की रचना की। इन लोकगीतों और पहेलियों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।

प्रश्न 4.
अकबर कौन था? उसने देश की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए उसने क्या-क्या प्रयास किया?
उत्तर:
अकबर मुगल खानदान का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। उसने भारत की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए स्वाभिमानी राजपतों को अपनी ओर मिलाया। उसने अपनी और अपने बेटों की शादी राजपूत घराने में की। इसके अलावे उसने विद्वान हिंदुओं को अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। हिंदू और मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक एक नया सर्वमान्य धर्म चलाया।

प्रश्न 5.
मुगल शासन काल में साहित्य को बढ़ावा मिला स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
मुगलकाल में भारतीय साहित्य को काफ़ी बढ़ावा मिला। अनेक हिंदू कवि एवं लेखकों ने दरबारी भाषा में पुस्तकों की रचना की। अकबर के दरबार में हिंदू और मुस्लिम विद्वानों को काफ़ी प्रश्रय दिया गया, जिनमें फैज़ी, अबुल फ़जल, बीरबल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। मुगलकाल में हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत लिखा था तथा अब्दुल रहीम खाना ने अनेक नीति भरे दोहों की रचना की। इसी काल में विद्वान मुसलमानों ने संस्कृत पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया।

प्रश्न 6.
नादिरशाह कौन था? उसने दिल्ली पर आक्रमण क्यों किया? इसका मुख्य क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
नादिरशाह ईरान का शासक था। उसने दिल्ली पर आक्रमण दिल्ली को लूटने के लिए किया। उसने दिल्ली की बेशुमार धन-दौलत लूटकर दिल्ली के शासकों को अत्यधिक कमज़ोर बना दिया।

प्रश्न 7.
शिवाजी कौन थे? उनका नाम भारतीय इतिहास में क्यों लोकप्रिय है?
उत्तर:
शिवाजी मराठों के सेनानायक थे। उनका जन्म सन् 1627 ई. में हुआ था। वे एक कुशल छापामार थे। उनकी सेना के घुड़सवार दूर-दूर छापा मारकर शत्रुओं का मुकाबला करते थे। उन्होंने सूरत में अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्र में चौथ नामक एक टैक्स लगाया। उन्होंने मराठों को एकत्रित कर दुर्जेय शक्ति का रूप दिया।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से भारत में हर्ष की सत्ता एवं शासन और इस्लाम धर्म का प्रचार भारत में किस प्रकार हुआ का वर्णन है। भारत में इस्लामी साम्राज्यवाद का विस्तार कैसे हुआ इसकी जानकारी हमें मिलती है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Summary

अरब और मंगोल जब हर्ष उत्तर भारत में शक्तिशाली शासक था उस समय अरब में इस्लाम अपना प्रचार एवं प्रसार कर रहा था। उसे उस समय से भारत आने में 60 वर्ष लग गए। जब उसने राजनीतिक विजय के साथ भारत में प्रवेश किया तब उसमें काफ़ी बदलाव आ चुका था। धीरे-धीरे सिंध बगदाद की केंद्रीय सत्ता से अलग हो गया और अलग सत्ता के रूप में कायम किया। समय बीतने के साथ अरब और भारत के संबंध बढ़ते गए। दोनों देशों के यात्रियों का आना जाना लगा रहा। राजदूतों की आपस में अदला बदली होती रही। भारतीय गणित खगोल शास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। अरबी भाषा में इन पुस्तकों का अनुवाद हुआ। इसके अलावे कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए।

भारत के दक्षिण के राज्यों खासकर राष्ट्रकूटों ने भी व्यापार व सांस्कृतिक संबंध बगदाद के साथ बनाए। धीरे-धीरे भारतीयों को इस्लाम धर्म की जानकारी होती गई। इस्लाम धर्म के प्रचारकों का स्वागत हुआ। मस्जिदों का निर्माण का दौर शुरू हुआ। अतः यह निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि भारत आने से पहले इस्लाम ने धर्म के रूप में प्रविष्ट किया।

महमूद गज़नवी और अफगान
लगभग तीन सौ वर्षों तक भारत विदेशी आक्रमण से बचा रहा। सन् 1000 ई. के आस-पास महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया। गज़नवी तुर्क जाति का था। इसने बहुत खून खराबा किया। उसने उत्तर भारत के एक भाग में लूट-पाट की। उसने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया व हर बार खजाना लूटकर ढेरों धन अपने साथ ले गया। उसने हिंदुओं को धूल चटा दिया। हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति नफ़रत भर चुकी थी। वह कश्मीर पर विजय नहीं पा सका। कठियावाड़ में सोमनाथ से लौटते हुए उसे राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पराजय का सामना करना पड़ा। सन् 1830 में उसकी मृत्यु हो गई। 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने गजनी पर कब्जा कर लिया। फिर लाहौर पर आक्रमण किया, इसके बाद दिल्ली पर भी आक्रमण किया। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने उसे पराजित कर दिया। वह अफगानिस्तान लौट गया फिर एक साल बाद उसने फिर दिल्ली पर आक्रमण किया। 1192 ई. में वह दिल्ली का शासक बन गया।

दिल्ली को जीतने के बाद भी दक्षिण भारत शक्तिशाली बना रहा। 14वीं सदी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। दुर्भाग्यवश वह बहुत आगे नहीं बढ़ सका। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में दो बड़े राज्य कायम हुए- गुलबर्ग, जो बहमनी राज्य के नाम से प्रसिद्ध है और विजयनगर का हिंदू राज्य।

इस समय उत्तर भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो चुका था। दक्षिण भारत सुदृढ़ व उन्नतं था। ऐसे में बहुत से हिंदू भागकर दक्षिण भारत की ओर चले गए। विजय नगर की तरक्की के वक्त उत्तरी पहाड़ियों से होकर एक आक्रमणकारी दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में आ गया। उसने 1526 ई. में दिल्ली को जीतकर मुगल साम्राज्य की नींव डाली। वह आक्रमणकारी तैमूर वंश का तुर्क बाबर था।

समन्वय और मिली-जुली संस्कृति का विकास कबीर, गुरु नानक और अमीर खुसरो
वास्तविक रूप में इस्लाम भारत में धर्म प्रचार-प्रसार के रूप में आया था। जबकि भारत पर आक्रमण तुर्कों, अफगानों व मुसलमानों ने किए। अफगान और तुर्क पूरे भारत पर छा गए। जबकि मुसलमान अजनबी होते हुए भी भारतीय रीति रिवाजो में घुल-मिल गए। वे भारत को अपना देश मानने लगे। अधिकतर राजपूत घरानों ने भी इनसे अच्छे संबंध कायम किए। इस समय हिंदू-मुसलमानों के वैवाहिक संबंध भी काफ़ी हद तक बढ़ते गए। फिरोजशाह व गयासुद्दीन तुगलक की माँ भी हिंदू थी। गुलबर्ग (बहमनी राज्य) के मुस्लिम शासक ने विजय नगर की हिंदू राजकुमारी से धूमधाम विवाह किया था।

मुस्लिम शासन काल में भारत का चहुँमुखी विकास हुआ। सैनिक सुरक्षा, उत्तम रखने के लिए यातायात साधनों में सुधार किया। शेरशाह सूरी ने उत्तम मालगुजारी व्यवस्था की, जिसका अकबर ने विकास किया। इस काल में व्यापार उद्योग भी प्रगति पर रहा। अकबर के लोकप्रिय राजस्व मंत्री टोडरमल की नियुक्ति शेरशाह ने की थी। वास्तुकला की नई शैलियों का विकास हुआ। खाना-पहनना बदल गया। गीत-संगीत में भी समन्वय दिखाई पड़ने लगा फारसी भाषा राजदरबार की भाषा बन गई। जब तैमूर के हमले से दिल्ली की सलतनत कमज़ोर हो गई तो जौनपुर में एक छोटी सी मुस्लिम रियासत खड़ी हुई। 15वीं शताब्दी के दौरान यह रियासत कला संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र रही। यहाँ आम भाषा हिंदी को प्रोत्साहित किया गया तथा हिंदू और मुसलमानों के बीच समन्वय का प्रयास किया गया। इसी समय ऐसे कामों के लिए एक कश्मीरी शासक जैनुल आबदीन को बहुत यश मिला।

अमीर खुसरो तुर्क थे। वे फारसी के महान कवि थे और उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था। कहा जाता है कि सितार का आविष्कार उन्होंने ही किया था। अमीर खुसरो ने अनगिनत पहेलियाँ लिखी। अपने जीवन काल में ही खुसरो अपने गीतों और पहेलियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है। पंद्रहवीं सदी में दक्षिण में रामानंद और उनसे भी अधिक प्रिय कबीर हुए। कबीर की साखियाँ और पद आज भी प्रसिद्ध हैं। उत्तर में गुरु नानक हुए; जो सिख धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। पूरे हिंदू धर्म सुधारकों के विचारकों का प्रभाव पड़ा।

इसी समय कुछ समाज सुधारकों का उदय हुआ जिन्होंने इस समन्वय का समर्थन तथा वर्ण-व्यवस्था की उपेक्षा की। पंद्रहवीं शताब्दी में रामानंद और उनके शिष्य कबीर ऐसे ही समाज सुधारक थे। कबीर की साखियाँ और पद आज भी जनमानस में लोकप्रिय हैं। उत्तर भारत में गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की। हिंदू धर्म इन सुधारकों के विचारों से प्रभावित हुआ।

अमीर खुसरो भी फारसी लेखकों में काफी प्रसिद्ध थे। वे फारसी लेखक के साथ-साथ फ़ारसी कवि भी थे। भारतीय वाद्य यंत्र सितार उनके द्वारा ही आविष्कृत है। उन्होंने धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र आदि विषयों पर लिखा। उनके लिखे लोकगीत और अनगिनत पहेलियाँ आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।

बाबर और अकबर-भारतीयकरण की प्रक्रिया
‘बाबर’ ने सन् 1526 ई. में पानीपत का युद्ध जीतकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उसका व्यक्त्तिव आकर्षक था। उसने केवल चार वर्षों तक ही भारत पर शासन किया। इन चार वर्षों में उसका समय आगरा में विशाल राजधानी में बीता।

अकबर भारत में मुगल साम्राज्य का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। वह आकर्षक, गुणवान, साहसी, बहादुर और योग्य शासक एवं सेनानायक था। वह विनम्र और दयालु होने के साथ-साथ लोगों का दिल जीतना चाहता था। 1556 ई. से आरंभ होने वाले अपने लंबे शासन काल 50 वर्ष तक रहा। उसने एक राजपूत राजकुमारी से शादी की। उसका पुत्र जहाँगीर आधा मुगल और आधा हिंदू राजपूत था। जहाँगीर का बेटा भी राजपूत, माँ का बेटा था। राजपूत घरानों से संबंध बनाने में साम्राज्य बहुत मज़बूत हुआ। राणा प्रताप ने मुगलों से टक्कर ली। इसके बाद अकबर को मेवाड़ के राणा प्रताप को अधीन बनाने में सफलता नहीं मिली। अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बजाए वे जंगलों में फिरते रहे।

अकबर ने प्रतिभाशाली लोगों का समुदाय एकत्रित किया। इनमें फैजी, अबुल फजल, बीरबल, राजा मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। उसने दीन-ए-एलाही नामक नए धर्म की स्थापना कर मुगल वंश को भारत के वंश जैसा ही बना दिया।

यांत्रिक उन्नति और रचनात्मक शक्ति में एशिया और यूरोप के बीच अंतर अकबर सभी क्षेत्रों के ज्ञाता था।

उसे सैनिक और राजनीतिक मामलों के अतिरिक्त यांत्रिक कलाओं का भी पूरा ज्ञान था। अकबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की मज़बूत नींव रखी थी तथा उस पर जो इमारत बनाई वह सौ वर्षों तक बनी रही। सिंहासन के लिए उच्चाधिकारियों में युद्ध होते रहे और केंद्रीय नेतृत्व कमज़ोर होता गया। यूरोप में मुगल बादशाहों के यश में वृद्धि हो रही थी। अकबर के समय में दक्षिण में मंदिरों से भिन्न शैली में कई इमारतें बनी जिन्होंने आने वाले दर्शकों को प्रेरित किया। आगरा का ताजमहल इसी का उदाहरण है।

इस प्रकार दिल्ली और आगरा में सुंदर इमारतें तैयार हुईं। भारत में रहने वाले अधिकतर मुसलमानों ने हिंदू धर्म से धर्म परिवर्तन कर लिया। दोनों में काफ़ी समानताएँ विकसित हो गईं। भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के साथ रहने के कारण उनकी आदतें, रहन-सहन के ढंग और कलात्मक रुचियों में समानता दिखाई देती थी। वे शांतिपूर्वक साथ रहने उत्सवों में आने-जाने में एक जैसे थे तथा वे एक ही भाषा का प्रयोग करते थे। गाँव की आबादी के बड़े हिस्से में जीवन मिला-जुला था। गाँव में हिंदू और मुसलमानों के बीच गहरे संबंध थे। वे मिल-जुलकर जीवन की परेशानियों व आर्थिक समस्याओं का सामना करते थे। दोनों जातियों के लोक गीत सामान्य थे। गाँवों में रहने वाले अधिकतर हिंदू व मुसलमान किसान, दस्तकार एवं शिल्पी थे।

मुगल शासन काल के दौरान कई हिंदुओं ने दरबारी भाषा में फारसी पुस्तके लिखी। फारसी में संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद हुआ। हिंदी के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी तथा अब्दुल रहीम खानखाना की कविताओं का स्तर बहुत ऊँचा था। रहीम ने राणा प्रताप का गुणगान अपने कविताओं में काफी किया। रहीम ने मेवाड़ के राणा प्रताप की प्रशंसा में भी लिखा, जो लगातार अकबर से युद्ध करते रहे और कभी हथियार न डाले यानी हार न मानी।

औरंगजेब ने उल्टी गंगा बहाई – हिंदू राष्ट्रवाद का लार शिवाजी
औरंगजेब एक कट्टरवादी मुसलमान था। वह धर्मान्ध व कठोर नैतिकतावादी था। वह एक ऐसा सम्राट हुआ जिसने हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवारें खड़ी कर दी। उसने एक हिंदू विरोधी कर लगाया जिसे ‘जजिया टैक्स’ कहते हैं। उसने अनेक मंदिरों को तुड़वाया। जो राजपूत मुगल साम्राज्य के स्तंभ थे उसने हिंदू विरोधी कार्य करके उनके हृदयों में अपने प्रति घृणा, रोष एवं विद्वेष की भावना पैदा की। इस प्रकार मुगल सम्राट औरंगजेब की नीतियों से तंग आकर उत्तर में सिख मुगलों के विरुद्ध खड़े हो गए।

इसकी प्रतिक्रिया में पूर्ण जागरण विचार पनपने लगे। मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। जो पतन का एक प्रमुख कारण बना। इसी समय 1627 ई. में शिवाजी के रूप में हिंदुओं का एक नेता उभरा। उनके छापामार दस्तों ने मुगलों की नाक में दम कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्रों पर चौथ कर लगाया। मराठा पूरी शक्ति पा गए। 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई। लेकिन मराठा शक्ति का विस्तार होते चला गया। वह भारत पर अपना एकाधिकार करना चाहती थी।

प्रभुत्व के लिए मराठों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष-अंग्रेज़ों की विजय
औरंगजेब की सन् 1707 में मृत्यु हो गई। इसके बाद लगभग 100 वर्षों तक भारत पर अधिकार करने लिए अलग-अलग जातियों का संघर्ष एवं आक्रमण जारी रहा।

18वीं शताब्दी में भारत पर अपना आधिपत्य करने के लिए प्रमुख चार दावेदार थे-
(i) मराठे, (ii) हैदर अली और उसका बेटा टीपू सुल्तान (iii) फ्रांसीसी (iv) अंग्रेज़। फ्रांसीसी और अंग्रेज़ विदेशी दावेदार थे। इसी बीच 1739 में ईरान का बादशाह नादिरशाह दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उसने काफ़ी खून खराबा किया और लूटपाट मचाई। बेशुमार दौलत लूटी। वह तख्ते ताऊस भी ले गया। बँगाल में जालसाजी और बगावत को बढ़ावा देकर क्लाइव ने 1757 में प्लासी का युद्ध जीत लिया। 1770 में बंगाल तथा बिहार में अकाल पड़ा, जिसमें एक तिहाई जनसंख्या की मौत हो गई। दक्षिण में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध में फ्रांसीसियों का अंत हो गया। भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए मराठे, अंग्रेज़ और हैदर अली रह गए थे। इससे भारत पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। 1799 में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को हरा दिया। इसके बाद अंग्रेज़ काफ़ी शक्तिशाली हो गए और उनकी राह और आसान हो गई।

मराठे सरदारों में आपसी रंजिश थी। 1804 में अंग्रेजों ने उन्हें अलग-अलग युद्धों में हरा दिया। अंग्रेजों ने भारत को अव्यवस्था और अराजकता से बचाया। 1818 तक के अंत तक उन्होंने मराठों को हराकर भारत पर कब्जा कर लिया। अब अंग्रेज़ भारत में सुव्यवस्थित ढंग से शासन करने लगे। अब आतंक युग की समाप्ति हो गई यानी मारकाट बंद हो गया लेकिन यह कहा जा सकता है कि आपस में भेदभाव, आपसी रंजिश भुलाकर काम करते तो अंग्रेजों की सहायता के बिना भी भारत में शांति और व्यवस्थित शासन की स्थापना की जा सकती थी।

रणजीत सिंह और जयसिंह
आतंक के उस दौर में दो प्रमुख भारतीय सितारे उभरे, उनके नाम थे – रणजीत सिंह और जयसिंह।

महाराजा रणजीत सिंह एक जाट सिख थे। पंजाब में उन्होंने अपना शासन कायम किया। राजपूताने में जयपुर का सवाई जयसिंह था। जयसिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बड़ी-बड़ी बेधशालाएँ बनवाईं। जयपुर की नगर योजना उन्हीं की देन है। उन्होंने मानवीय विचारों को आधार बनाया तथा खून-खराबे को नापसंद किया। युद्ध के सिवा उन्होंने किसी की जान नहीं ली। वह बहादुर योद्धा, कुशल राजनयिक होने के साथ गणित, खगोल विज्ञानी, नगर निर्माण करने वाले तथा इतिहास में रुचि रखने वाले थे।

भारत की आर्थिक पृष्ठभूमि-इंग्लैंड के दो रूप
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद उसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय माल लेकर यूरोप के देशों में बेचना। भारतीय कारीगरों का बना माल इंग्लैंड की तकनीकों का सफलता पूर्वक मुकाबला करता था। कंपनी का ध्येय अधिक से अधिक धन कमाना था। इंग्लैंड में मशीनों का दौर शुरू होने पर मशीनों से बने माल के साथ-साथ भारतीय वस्तुएँ भी थी। कंपनी ने इससे काफ़ी मुनाफा कमाया। इंग्लैंड का भारत में वास्तविक रूप से तभी आगमन हुआ जब 1600 ई. में एलिजाबेथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को परवाना दिया। 1608 ई. मिल्टन का जन्म होने के सो साल बाद कपड़ा बुनने की तेज़ मशीन का आविष्कार हुआ। इसके बाद काटने की कला, इंजन और मशीन के करघे निकाले गए। उस समय इंग्लैंड सामंतवाद और प्रतिक्रियावाद से घिरा हुआ था। इंग्लैंड को प्रभावित करने वाले लेखकों में शेक्सपियर, मिल्टन था। साथ ही में राजनीतिक और स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले, विज्ञान और तकनीक में प्रगति करने वाले भी थे।

उस समय अमेरिका इंग्लैंड के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। अमेरिका में नई शुरुआत के लिए भी रास्ते साफ़ थे। जबकि भारतीय प्राचीन परंपराओं में जकड़े हुए थे। इसके बावजूद यह सत्य है कि यदि ब्रिटेन मुगलों के शक्ति खोने पर भारत का बोझ न उठाता तो भी भारत देश अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होता।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 72.छोर–किनारा, सीमावर्ती-सीमा के आसपास बसे हुए, फ़तह-जीत, हद-सीमा, केंद्रीय-शासकीय।

पृष्ठ संख्या 73.
प्रचारक – प्रचार करने वाला, शताब्दी – सौ सालों का समय, निर्दयता – निर्ममता, नफ़रत – घृणा, तबाही – बर्बादी, धावा – हमला, तितर-बितर – बिखर जाना, धावे – हमला।

पृष्ठ संख्या 74.
तख्त – सिंहासन, कब्जा – अपने अधिकार में कर लेना, नियति – भाग्य किस्मत, वीरान – सुनसान।

पृष्ठ संख्या 75.
बेहतर – अधिक अच्छा, शरणार्थी – विस्थापित व्यक्ति, भ्रामक – भ्रम पैदा करने वाली, अजनबी – जिससे हमारी पहचान न हो, वृतांत – वर्णन, भ्रामक – गलत।

पृष्ठ संख्या 76.
अधिराज – सम्राट, अधीनता – किसी के अधिकार में रहना, हस्तक्षेप – दखल देना, मालगुजारी व्यवस्था – एक प्रकार की कर नीति, राजस्व – कृषि पर लगाया गया कर, रूझान – रुचि, समन्वय – मेलजोल, शैलियाँ – तरीके, अनुसरण – अपनाना।

पृष्ठ संख्या 77.
जनभाषा – आम जनता द्वारा बोली जाने वाली भाषा, अजीब – विचित्र, उमराव – जिसे कोई पदवी मिली हो।

पृष्ठ संख्या 78.
सहिष्णुता – सहनशीलता, एकेश्वरवाद – एक ईश्वर की सत्ता स्वीकार करना, चोटी के – सर्वोच्च, सद्भावना – विचार।

पृष्ठ संख्या 79.
लोकप्रचलित – लोगों के बीच प्रचलित, पहलू – भाग अंग, अनगिनत – बहुत से, मिसाल – उदाहरण, बुनियादनींव, जागृति – चेतना पैदा करने वाले विचार, दुस्साहसी – बुरे कार्यों को भी हिम्मत से करने वाला, स्वप्नदर्शी – अच्छे भविष्य के लिए अच्छी सोच रखने वाला, अनुयायी – बात को माननेवाला शिष्य।

पृष्ठ संख्या 80.
अखंड – जिसके टुकड़े न हो, परस्पर – आपस में, लक्ष्य – उद्देश्य, अभिमानी – घमंडी, अदम्य – बलशाली, दमन – नाश, बेहतर – अच्छा।

पृष्ठ संख्या 81.
समन्वित – मिले-जुले, हासिल – प्राप्त, यांत्रिक – वैज्ञानिक यंत्रों के बारे में, जिज्ञासा – इच्छा/चाहत।

पृष्ठ संख्या 82.
बुनियाद – नींव, गतिहीन – रुकना, अपरिवर्तनशील – जिसे बदला न जा सके, दुर्बल – कमज़ोर, यश – प्रसिद्धि, अलंकरण – अलंकृत करना, विभिन्न रूप देना, बेढब – अजीब, प्रवृत्ति – इच्छा।

पृष्ठ संख्या 83.
सामूहिक – समूहों के रूप में एकत्रित होना, पेशे – कारोबार, संपर्क – संबंध, तमाम – बहुत से, कड़ाई – सख्ती, परदे – घूघट, विकास – उन्नति।

पृष्ठ संख्या 84.
शरीक – भाग लेना, अर्ध – आधा, कालजयी – समय को जीतने वाली/जो कभी पुरानी न हो, संरक्षक – देखभाल करने वाला, सिपहसालार – सेनापति, प्रशंसा – तारीफ़, हथियार न पटनी फेरना – समाप्त करना, धर्मान्ध – धर्म में न करना, हथियार न डालना – हार न मानना, जजियाकर – धर्म के लिए लगाया गया कर, अवलंब – सहारा, स्तंभ – आधार।

पृष्ठ संख्या 85.
क्रुद्ध – गुस्से में, उत्तेजना – दोष, पुनर्जागरणवादी – लोगों में नई चेतना जाग्रत करना, धर्मनिरपेक्ष – किसी धर्म विशेष में विश्वास न करना, आंशिक – बहुत कम, खंडित – टुकड़ों में बँटना, आर्थिक – धन संबंधी, खिलाफ़ – विरुद्ध ।

पृष्ठ संख्या 86.
चौथ कर – शिवाजी द्वारा अमीरों पर लगाया गया कर, पृष्ठभूमि – आधार, दुर्जेय – जिसे जीता न जा सके, प्रभुत्व – अधिकार, दावेदार – हकदार, हुकूमत – शासन, बवंडर – तूफ़ान, बेशुमार – अत्यधिक, तख्ने ताउस – शहाजहाँ के द्वारा बनाया गया सिंहासन सोने, चाँदी हीरे से निर्मित, नपुंसक – पौरुष बल समाप्त होना।

पृष्ठ संख्या 87.
दावा – हक, हाथ की कठपुतली – इशारों पर नाचना, जालसाज़ी – गलत नीतियाँ, नामोनिशान मिट जाना – पूरी तरह नष्ट हो जाना, नियति – इच्छा।

पृष्ठ संख्या 88.
विकट – विकराल, अद्भुत – अजीब, पराजित – हराकर, वैर – शत्रुता, सुव्यवस्थित – सही ढंग से, अव्यवस्थागलत नीतियाँ, पस्त – समाप्त हो जाना।

पृष्ठ संख्या 89.
जिज्ञासा – कुछ नया करने की इच्छा, सरहदी – सीमा पर स्थित, मानवीय – नेक, दयालु, अवसरवादी – मौका देखकर पक्ष बदल लेनेवाला।

पृष्ठ संख्या 90.
चुंगी – कर टैक्स, अर्थतंत्र – आर्थिक ढाँचा, हस्तक्षेप – दखलंदाजी, परवाना – लिखित आज्ञा, हुक्मनामा।

पृष्ठ संख्या 91.
ढरकी – कपड़ा बुनने की मशीन, शालीन – विनम्र, बर्बर – क्रूर, नृशंस – अत्यंत कठोर, स्मृतियाँ – यादें।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 4 Question Answers Summary युगों का दौर

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कौन से शासक आए?
(i) कुषाण
(ii) शुंगवंश
(iii) हूण
(iv) शक
उत्तर:
(ii) शुंगवंश

प्रश्न 2.
कुषाणों का लोकप्रिय राजा कौन था?
(i) अशोक
(ii) जरथुष्ट्र
(iii) कनिष्क
(iv) नागार्जुन
उत्तर:
(iii) कनिष्क

प्रश्न 3.
चंद्रगुप्त ने किस साम्राज्य की नींव रखी?
(i) गुप्त साम्राज्य
(ii) मौर्य साम्राज्य
(iii) कुषाण साम्राज्य
(iv) अन्य
उत्तर:
(i) गुप्त साम्राज्य

प्रश्न 4.
हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी कहाँ बनाया?
(i) कर्नाटक
(ii) जयपुर
(iii) इंद्रप्रस्थ
(iv) उज्जयिनी
उत्तर:
(iv) उज्जयिनी

प्रश्न 5.
दक्षिणी भारत की लोकप्रियता का कारण था
(i) अपनी अच्छी जलवायु
(ii) दस्तकारी व समुद्री व्यापार
(iii) अपनी सुदृढ़ शासन सत्ता
(iv) आपसी एकता
उत्तर:
(ii) दस्तकारी व समुद्री व्यापार

प्रश्न 6.
जब अंग्रेज़ भारत आए उस समय देश की स्थिति क्या थी?
(i) संपन्न
(ii) धार्मिकता से ग्रस्त
(iii) जातीयता से ग्रस्त
(iv) अवनति की ओर
उत्तर:
(iv) अवनति की ओर

प्रश्न 7.
भारतीय सभ्यता के विकास का क्या कारण था?
(i) स्थिरता
(ii) सुरक्षा
(iii) संपन्नता
(iv) कठोर शासक
उत्तर:
(i) स्थिरता

प्रश्न 8.
भारतीय रंगमंच का उद्गम कहाँ हुआ?
(i) सामवेद में
(ii) यजुर्वेद में
(iii) ऋगवेद में
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iii) ऋगवेद में

प्रश्न 9.
कालिदास की प्रमुख रचना कौन-सी थी?
(i) मेघदूत
(ii) शकुंतला
(iii) मृच्छकटिकम्
(iv) मुद्राराक्षस
उत्तर:
(ii) शकुंतला

प्रश्न 10.
प्राचीन नाटकों की भाषा कैसी थी?
(i) हिंदी
(ii) संस्कृत
(iii) उर्दू
(iv) परसियन
उत्तर:
(ii) संस्कृत

प्रश्न 11.
संस्कृत भाषा को नियमों में किसने बाँधा?
(i) पाणिनी
(ii) भास
(iii) कालिदास
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) पाणिनी

प्रश्न 12.
संस्कृत को व्याकरणिक नियमों में कब बाँधा गया?
(i) 2000 वर्ष पूर्व
(ii) 3000 वर्ष पूर्व
(iii) 2600 वर्ष पूर्व
(iv) 1600 वर्ष पूर्व
उत्तर:
(iii) 2600 वर्ष पूर्व

प्रश्न 13.
भारत का व्यापार व धर्म का प्रचार-प्रसार विदेशों में कैसे हुआ?
(i) अपना उपनिवेश कायम करके
(ii) शासन सत्ता बढ़ाकर
(iii) युद्ध करके
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) अपना उपनिवेश कायम करके

प्रश्न 14.
जावा में किस भारतीय कला को विशेष प्रसिद्धि मिली?
(i) नृत्य
(ii) साहित्य
(iii) भवन-निर्माण
(iv) धर्म
उत्तर:
(i) नृत्य

प्रश्न 15.
फिलीपाइन देश की लेखन कला किस देश की देन है?
(i) भारत
(ii) श्रीलंका
(iii) अफगानिस्तान
(iv) मध्य एशिया
उत्तर:
(i) भारत

प्रश्न 16.
गुप्तकाल में सबसे अधिक विकास किस दिशा में हुआ?
(i) शासनसत्ता
(ii) वास्तुकला
(iii) राजनीति
(iv) धर्म
उत्तर:
(ii) वास्तुकला

प्रश्न 17.
गणित शास्त्र की शुरुआत भारत में कब हुई?
(i) प्राचीन काल
(ii) वैदिक काल
(iii) आदि काल
(iv) मध्य काल
उत्तर:
(iii) आदि काल

प्रश्न 18.
भारत के पतन के क्या कारण थे?
(i) बूढ़ा होना
(ii) आपस में विखंडित होना
(iii) एक के बाद एक विदेशी शासक का भारत पर शासन करना और राजनीति का टूटना
(iv) योग्य शासक का आभाव
उत्तर:
(iii) एक के बाद एक विदेशी शासक का भारत पर शासन करना और राजनीति का टूटना

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के बाद सत्ता किसने सँभाली? इसके बाद भारत को किन-किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शासन सत्ता शुंग वंश ने संभाली। इनका शासन क्षेत्र काफ़ी सीमित हो गया था। दक्षिण में बड़े राज्य उभर रहे थे। उत्तर में काबुल से पंजाब तक यूनानियों का साम्राज्य था।

प्रश्न 2.
कुषाणों ने क्या काम किया?
उत्तर:
कुषाणों ने शकों को पराजित करके दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। कुषाणों ने पूरे उत्तर भारत में और मध्य एशिया के बहुत बड़े भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।

प्रश्न 3.
कुषाण काल में बौद्ध-धर्म किस प्रकार प्रभावित हुआ?
उत्तर:
कुषाण साम्राज्य की स्थापना के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभक्त हो गया। – हीनयान और महायान। इन दोनों के मतभेद काफ़ी बढ़ गए। बड़ी-बड़ी सभाओं में इनके आपसी विवाद उठने लगे।

प्रश्न 4.
जरथुष्ट्र धर्म से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यह धर्म पारसी धर्म के नाम से जाना जाता है। ईरान में इस धर्म की उत्पत्ति हुई थी। इस धर्म के संस्थापक जरथुष्ट्र थे।

प्रश्न 5.
भारत में चीनी राजदूत कब आए?
उत्तर:
भारत में चीनी राजदूत 64 ई. में आए।

प्रश्न 6.
नागार्जुन कौन थे? इन्होंने कौन-सा विशेष कार्य किया?
उत्तर:
नागार्जुन बौद्ध शास्त्रों और भारतीय दर्शन के महान विद्वान थे। नागार्जुन ईसा की पहली शताब्दी में हुए।

प्रश्न 7.
कौन से फल भारत को चीन की देन है?
उत्तर:
आइ और नाशपाती ऐसे फल हैं जो भारत में नहीं उगते थे। ये चीनियों की देन हैं।

प्रश्न 8.
मौर्य साम्राज्य का पतन होने के बाद दक्षिण भारत की शासन व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का अंत होने पर दक्षिण के राज्य एकांकी रूप में फलने-फूलने लगे।

प्रश्न 9.
विदेशी शासकों की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
विदेशी शासकों ने अपने आपको भारतीय परंपरा, सभ्यता व संस्कृति के अनुरूप जल्दी ही ढाल लिया। इसलिए सफल शासक रहे।

प्रश्न 10.
भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है? और क्यों?
उत्तर:
गुप्त साम्राज्य के शासक ‘समुद्र गुप्त’ को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। उसके शासन काल में साम्राज्य काफ़ी समृद्ध और शक्तिशाली था। इस काल में साहित्य और कला के क्षेत्र में भारत ने अभूतपूर्व उन्नति की।

प्रश्न 11.
भारतीय सभ्यता की विशेषता क्या थी?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता की विशेषता यह थी कि यह व्यक्तिवादी होते हुए भी सामुदायिक रूप रखती थी।

प्रश्न 12.
भवभूति कौन थे?
उत्तर:
भवभूति संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध नाटककार थे। वे सातवीं शताब्दी में नाटक के क्षेत्र में चमकते सितारे थे। कालिदास के बाद इनका ही स्थान है। भारत में भवभूति बहुत लोकप्रिय रहे।

प्रश्न 13.
सर्वप्रथम किस नाटककार का नाम इतिहास में मिलता है?
उत्तर:
प्राचीन नाटककारों में सर्वप्रथम नाम भारत में ‘भास’ का मिलता है। उन्होंने 13 नाटकों की रचनाएँ की।

प्रश्न 14.
कालिदास कौन थे? उनकी प्रसिद्ध रचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कालिदास गुप्तवंश के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम व प्रकृति का वर्णन बड़े अनुपम ढंग से किया है। उनकी प्रमुख रचना है – ‘शकुंतला’ जिसका जर्मन, फ्रेंच, डेनिश और इटालियन में अनुवाद भी हुआ। इनकी एक अन्य प्रमुख रचना है ‘मेघदूत’ जिसमें एक प्रेमी अपनी प्रेयसी को बादल द्वारा संदेश भेजता है।

प्रश्न 15.
चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के रचित नाटक ‘मुद्राराक्षस’ की क्या विशेषता है?
उत्तर:
नाटक ‘मुद्राराक्षस’ उस समय की पूर्ण राजनीतिक गतिविधियों से अवगत करवाता है।

प्रश्न 16.
संस्कृत भाषा को व्याकरणिक नियमों में किसने बाँधा?
उत्तर:
संस्कृत को व्याकरण के नियमों में महान ‘वैयाकरण’ ‘पाणिनी’ ने बाँधा।

प्रश्न 17.
उपनिवेश कायम करने का क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
उपनिवेश कायम करने से भारत का व्यापार व धर्म बाहर के देशों तक पहुँचा। इसके अलावा समुद्री जहाज़ों का चलन बढ़ा।

प्रश्न 18.
भारतीय उपनिवेशों के इतिहास में भारत और चीन का प्रभाव कहाँ-कहाँ पड़ा?
उत्तर:
उपनिवेशों के इतिहास में चीन का प्रभाव महाद्वीप के देशों, वर्मा, स्याम और हिंद चीन पर तथा भारत का प्रभाव टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर अधिक था। यहाँ भारतीय धर्म और कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

प्रश्न 19.
भारतीय उपनिवेशों का काल कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय उपनिवेशों का काल ईसा की पहली या दूसरी शताब्दी से शुरू होकर पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक माना जाता है। यानी यह काल लगभग तेरह सौ साल या इससे कुछ अधिक रहा।

प्रश्न 20.
किन-किन देशों पर भारतीय कला की छाप दिखाई पड़ती है?
उत्तर:
इंडोनेशिया, जावा, बाली व फिलिपाइन व दक्षिण-पूर्वी एशिया के और भी देशों में भारतीय कला की झलक मिलती है।

प्रश्न 21.
हूणों के आक्रमण का प्राचीन भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
उत्तर पश्चिम दिशा में होने वाले हूणों के आक्रमण से भारत राजनैतिक एवं सैन्य एवं दोनों दृष्टियों से कमज़ोर हो गया। उनके यहाँ बसने से लोगों में अंदरूनी परिवर्तन हुए। उनका बर्बरतापूर्ण व्यवहार भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा मिलिंद कौन था?
उत्तर:
प्राचीन भारत के उत्तर में उस समय काबुल से पंजाब तक भारतीय यूनानी फैले थे। मेनांडर ने राजधानी पर आक्रमण किया, जहाँ वह पराजित हो हुआ। यहाँ मेनांडर पर भारतीय चेतना और वातावरण का काफ़ी प्रभाव पड़ा जिसके परिणामस्वरूप उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। बाद में वह राजा मिलिंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
ब्राह्मणवाद और हिंदूवाद की उत्पत्ति कैसे हुई।
उत्तर:
विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लगातार आक्रमण से भारतीय ब्राह्मण वर्ग काफ़ी चिंतित हो उठे। इन विदेशी आक्रमणकारियों का रस्मरिवाज और संस्कृति बिलकुल भिन्न थे। उनकी संस्कृति से भारतीय संस्कृति और सामाजिक ढाँचा के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था। अत: लोगों में राष्ट्रीय भावना को जगाना ही राष्ट्रीय धर्म था। इनके विरुद्ध लोगों की जो प्रतिक्रिया थी, उसे ब्राह्मणवाद या हिंदूवाद कहा गया।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में गणितशास्त्र की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
आधुनिक अंक गणित और बीजगणित का आधार भारत में ही पड़ी। भारत में ज्यामिति का भी विकास हुआ। शून्य की विधि खोजी गई।

प्रश्न 4.
शकों का प्रसिद्ध शासक कौन था? शकों ने कौन-सा धर्म अपना लिया?
उत्तर:
शकों का प्रसिद्ध शासक कनिष्क हुआ। शकों में कुछ ने हिंदू धर्म अपना लिया लेकिन अधिकांश लोग बौद्ध धर्म को ही अपना लिए।

प्रश्न 5.
हर्ष कौन था? भारतीय इतिहास में वह लोकप्रिय क्यों हुआ?
उत्तर:
हर्ष सातवीं शताब्दी का सबसे शक्तिशाली राजा था, उसने भारत से हूणों का साम्राज्य समाप्त किया। उसने उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक एक बहुत शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। हर्ष ने हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों का प्रचार एवं प्रसार किया। उसने अपने राजदरबार में कवियों और नाटककारों को संरक्षण दिया। अपनी राजधानी उज्जयिनी को सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। वह बहुत दानी था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी।

प्रश्न 6.
भारत में विदेशी तत्व किस प्रकार आत्ससात होते गए?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति सामुदायिक था। यहाँ पर सामाजिक नियमों का पालन कठोरता से कराया जाता था। इसके अलावे सामाजिक नियमों का समुदायों को लेकर नज़रिया लचीलापन था। सामाजिक नियमों को रीति-रिवाजों में बदला जा सकता था। आने वाले नए लोग तथा विदेशी तत्व अपने रीति-रिवाजों और आस्था को अपने जीवन में व्यवहार का रूप देकर समाज के अंग बने रहे। इसी लचीलेपन के कारण यहाँ आने वाले विदेशी लोग आत्मसात होते गए।

प्रश्न 7.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत के विषय में क्या लिखा?
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा कि हमारे देश की वास्तविकता को यदि जानना चाहते हैं तो हमें उस काल को समझना होगा जब यह अपने आप में पूर्ण था और इसने बाहर के देशों में अपने उपनिवेश कायम कर व्यापार और धर्म का प्रचार-प्रसार किया।

प्रश्न 8.
किन-किन आधारों से मालूम होता है कि भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशिया तक उपनिवेश कायम किए?
उत्तर:
भारतीय प्राचीन पुस्तकों, अरब यात्रियों की रचना के द्वारा चीन से प्राप्त ऐतिहासिक विवरण, पुराने शिलालेख, ताम्र-पत्र, जावा बाली का साहित्य, भारतीय महाकाव्य व पुराणकथाओं, यूनानी और लातिनी स्रोतों, एवं अंगकोर और बोरोबुदुर के प्राचीन खंडहरों से यह जानकारी मिलती है कि भारत ने विदेशों में अपने उपनिवेश कायम किए।

प्रश्न 9.
अजंता की गुफाओं की सुंदरता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजंता की गुफाएँ हमें संसार की वास्तविकताओं का ज्ञान कराती हैं। इनके भित्ति चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था। इन भित्ति चित्रों पर सुंदर स्त्रियाँ, राजकुमारियाँ, गायिकाएँ, नर्तकियाँ, बैठी और खड़ी, शृंगार करती हुई या सभा में जाती हुई चित्रित है। इन चित्रों में जीवन के गतिशील नाटक को अनुपम ढंग से दिखाया गया है।

प्रश्न 10.
भारत में गणित की विभिन्न शाखाओं का प्रयोग कैसे होता था? इसमें भास्कर द्वितीय का गणित के क्षेत्र में क या-क्या योगदान रहा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में ज्यामिति, अंकगणित और बीजगणित का उद्भव बहुत प्राचीन काल में हुआ था। वैदिक वेदियों पर आकृतियाँ बनाने के लिए ज्यामितीय बीजगणित का प्रयोग किया जाता था। अंकगणित और बीजगणित में भारत आगे बना रहा। शून्यांक और स्थान मूल्य वाली दशमलव विधि को स्वीकार किया गया। भास्कर द्वितीय ने खगोलशास्त्र, बीजगणित और अंकगणित पर तीन पुस्तकों की रचना की। अंकगणित पर लिखी उनकी पुस्तक लीलावती सरल एवं स्पष्ट शैली में है। यह छोटी उम्र वालों के लिए बहुत उपयोगी है। कुछ संस्कृत विद्यालयों में आज भी पठन-पाठन के लिए इनकी शैली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
प्राचीन भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नालंदा विश्वविद्यालय
  2. भागलपुर के पास विक्रमशिला विश्वविद्यालय
  3. काठियावाड़ में बल्लभ विश्वविद्यालय
  4. दक्षिण में अमरावती विश्वविद्यालय।

प्रश्न 12.
भारतीय पतन के समय सामाजिक दशा कैसी थी?
उत्तर:
भारत के पतन के समय समाज विखंडित हो चुका था, जाति बंधनों में बँट चुका था। वह अपनी अखंडता न बनाए रख सका। समाज में क्षेत्रीयता, सामंतवाद तथा गुटबाजी की भावना का उत्थान हो गया था। अर्थव्यवस्था काफ़ी कमज़ोर हो गई थी। समाज में जातिवादी प्रथा का प्रचलन काफ़ी ज़ोरों पर थी। ऊँची जाति के लोग नीची जाति के लोगों को दबाकर रखना चाहते थे। ऊँची जाति के लोग नीची जाति के लोगों को शिक्षा से वंचित कर उनका शोषण करते थे।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से बताया गया है कि मौर्य साम्राज्य का अंत हुआ और उसकी जगह शुंग ने लिया। इनकी साम्राज्य की सीमा काफ़ी कम थी। दक्षिण भारत में बड़े-बड़े राज्य की स्थापना हुई। उत्तर भारत में काबुल से पंजाब तक यूनानियों का साम्राज्य का विस्तार हो गया। यूनानी आक्रमणकारी मेनांडर ने पाटलीपुत्र पर आक्रमण कर दिया लेकिन उसकी वहाँ हार हुई। इसके बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। इस तरह यूनानी और बौद्ध कला का जन्म हुआ और भारतीय यूनानी कला एवं संस्कृतियों का जन्म हुआ।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Summary

शक लोग मध्य एशिया में आक्सस नदी की घाटी में बस गए। यूइ-ची सुदूर पूरब से आए और इन्होंने इन लोगों को उत्तर भारत की ओर धकेल दिया। ये शक धर्म परिवर्तन करके बौद्ध और हिंदू हो गए। यूइ-चियों का एक दल कुषाणों का था। उन्होंने शकों को हराकर दक्षिण की ओर भागने के लिए मज़बर कर दिया। कषाण काल से बौदध धर्मावलंबी दो संप्रदायों में बँट गए – महायान और हीनयान। इनके मध्य विवाद होने लगा। इन विवादों से अलग एक नाम नागार्जुन का है जो बौद्ध-शास्त्रों तथा भारतीय दर्शन का विद्वान था। उनके कारण महायान की विजय हुई। चीन में महायान तथा लंका और वर्मा में हीनयान संप्रदाय को मानने वाले लोग थे। चंद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। 320 ई. में गुप्तकालीन युग की शुरुआत हुई। इस काल में कई महान सम्राटों का उदय हुआ। इसमें कई महान शासक हुए। 150 वर्ष तक गुप्त वंश ने एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य पर शासन किया। गुप्त वंश के शासक युद्ध और शांति दोनों कलाओं में माहिर थे। भारत में हूणों का शासन आधी शताब्दी तक ही रहा। इनको पराजित करके कन्नौज के राजा उत्तर से लेकर मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इस प्रकार लगभग 150 वर्ष तक उसके उत्तराधिकारी अपने बचाव में लगे रहे। उनका साम्राज्य धीरे-धीरे सिकुड़ता गया। मध्य एशिया से नए उत्तराधिकारी लगातार भारत पर आक्रमण करते जा रहे थे। ये गोरे हूण के नाम से जाने जाते थे। यशोवर्मन के नेतृत्व में संगठित होकर नए आक्रमणकारियों ने ‘गोरे हूणों’ पर हमला कर दिया और उनके सरदार मिहिरकुल को बंदी बना लिया। गुप्त वंश के शासक बालादित्य ने उसे छोड़ दिया जो उसे भारी पड़ा। इसके बाद मिहिरकुल ने फिर कपटता से भारत पर आक्रमण कर दिया। हूणों का शासन लगभग 50 वर्ष तक रहा। इसके बाद हूणों को पराजित कर कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने उत्तर से लेकर मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। वह कट्टर धर्म को बढ़ावा दिया। उसी के काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआन त्सांग भारत आया था। हर्षवर्धन की मृत्यु 648 ई. में हुई। इस समय एशिया और अफ्रीका में उसी के काल में फैलने के लिए इस्लाम अपना पाँव पसार रहा था।

दक्षिण भारत
दक्षिण में मौर्य साम्राज्य के पतन होने के पश्चात बड़े राज्य हज़ारों साल तक फलते-फूलते रहे। दक्षिण भारत दस्तकारी और समुद्री व्यापार का केंद्र बना रहा। समुद्र के रास्ते यहाँ व्यापार होता था। यूनानियों ने यहाँ अपनी बस्तियाँ भी बनाई। रोमन सिक्के भी दक्षिण भारत में पाए गए। उत्तर भारत में विदेशी आक्रमण से तंग आकर कई शिल्पकार एवं दस्तकार लोग जैसे राजगीर, शिल्पी और कारीगर दक्षिण भारत में आकर बस गए। इसके परिणामस्वरूप दक्षिण भारत कलात्मक परंपरा का केंद्र बना।

शांतिपूर्ण विकास और युद्ध के तरीके
भारत में विदेशियों के बार-बार आक्रमण के कारण नए-नए साम्राज्यों की स्थापना होती रही। इसके बावजूद भी देश में शांतिपूर्ण और व्यवस्थित शासन का दौर भी बना रहा। मौर्य, कुषाण, गुप्त, दक्षिण में चालुक्य, राष्ट्रकूट और भी कई ऐसे राज्य थे जहाँ दो-तीन सौ वर्षों तक लगातार साम्राज्य स्थापित हुआ। बाहर से आने वाली जातियों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अपने आपको ढाल लिया। यहाँ यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण और व्यवस्थित जीवन के काल का दौर चले हैं। यह भ्रामक है कि अंग्रेजी राज ने पहली बार शांति और व्यवस्था कायम की। अंग्रेजों के समय में देश का पतन लगातार हो रहा था और सबसे कमजोर अर्थव्यवस्था के दौर से गुज़र रहा था। परिणामस्वरूप यहाँ अंग्रेज़ी शासन कायम हो सका।

प्रगति बनाम सुरक्षा
भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया उसका मूल आधार स्थिरता और सुरक्षा की भावना थी। इस दृष्टिकोण से यहाँ की सभ्यता पश्चिमी सभ्यताओं से अधिक सफल रहीं। वर्ण व्यवस्था और संयुक्त परिवारों को सामाजिक ढाँचे के लिए बनाए गए थे और इन व्यवस्थाओं ने समाज में काफ़ी योगदान भी दिया। इस व्यवस्था में व्यक्तिवाद को प्रश्रय नहीं मिला। उनकी सारी चिंता व्यक्ति के विकास को लेकर है। भारत का सामाजिक ढाँचा सामुदायिक था। पाबंदी के बावजूद पूरे समुदाय में बहुत लचीलापन था। सारे नियम को बदला जा सकता था। नए समुदाय भी अपने अलग रीति-रिवाजों, विश्वासों को बनाए रखकर, सामाजिक संगठन के अंग बने रहे। इसी लचीलेपन के कारण भारतीयों ने विदेशियों को आत्मसात किया।

शासन सत्ता बदलते रहे, राजा आते-जाते रहे, पर व्यवस्था नींव की तरह कायम रही। इस प्रकार प्रत्येक तत्व जो बाहर से आए उसे भारत ने अपना लिया। भारत को कुछ दिया और उससे बहुत कुछ लिया। इस तरह यहाँ समुदाय और व्यक्ति दोनों की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती थी। यहाँ आनेवाले हर विदेशी तत्व को अपने में समा लिया। जिसने अलग-थलग रहने का प्रयास किया वह नष्ट हो गया और उसने स्वयं को या भारत को ही नुकसान पहुँचाया।

भारत का प्राचीन रंग-मंच
भारतीय रंगमंच मुख्य रूप से विचारों और विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। इसकी उत्पत्ति ऋगवेद की ऋचाओं से हुई है और इसकी जानकारी भी हमें इसी से मिलती है। रंगमंच की कला पर रचित ‘नाट्यशास्त्र’ की ई. पूर्व तीसरी शताब्दी में रचना हुई थी। इतिहासकारों का मत है कि नियमित रूप से लिखे संस्कृत नाटक ई.पू. तीसरी शताब्दी तक प्रतिष्ठित हो चुके थे। उन्हीं में से एक नाटककार ‘भास’ था। भास द्वारा लिखे तेरह नाटकों का संग्रह मिला है। संस्कृत नाटकों में सबसे प्राचीन नाटक अश्वघोष के हैं। उन्होंने ‘बुद्धचरित’ नाम से बुद्ध की जीवनी लिखी। उनकी यह रचना भारत, चीन, तिब्बत में काफी लोकप्रिय हुई। संस्कृत साहित्य में कालिदास को सबसे बड़ा कवि और नाटककार माना जाता है। वह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल के नवरत्नों में से एक थे। ‘मेघदूत’ उनकी लंबी कविता है। उनकी रचनाओं में जीवन के प्रति प्रेम व प्राकृतिक सौंदर्य की गहरी झलक मिलती है। ‘शकुंतला’ कलिदास का प्रसिद्ध नाटक था जिसका बाद में कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। शूद्रक का नाटक ‘मृच्छकटिकम् यानी मिट्टी की गाड़ी एक प्रसिद्ध रचना है। विशाखदत्त का नाटक ‘मुद्राराक्षस’ था। राजा हर्ष ने तीन नाटकों की रचना की क्योंकि वे भी एक महान नाटककार थे। 19वीं शताब्दी में नाट्य शैली का लगभग पतन होने लगा। अब नाटकों का स्थान छोटी-छोटी रचनाओं ने ले लिया। अब नाटक अभिजात वर्ग तक ही सीमित रहा। इसके अतिरिक्त साहित्यिक रंगमंच के साथ-साथ लोकमंच भी विकसित होता रहा। इसी आधार पर भारतीय पुराकथाएँ, महाकाव्यों की गाथाएँ। अन्य छोटे-छोटे नाटकों का प्रदर्शन लोकमंच पर लगातार होता रहा।

संस्कृत भाषा की जीवंतता और स्थायित्व
प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा अपने आप में अत्यंत विकसित एवं पूर्ण रूप से समृद्ध है। यह सभी भारतीय भाषाओं का आधार एवं जननी है। यह भाषा उस व्याकरण से युक्त है जिसका निर्माण ढाई हज़ार वर्ष पूर्व पाणिनि ने किया था। आजतक इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आया है। इस भाषा से कई भाषा की उत्पत्ति होती चली गई लेकिन संस्कृति आज भी अपने वास्तविक स्वरूप में यथावत है। इस भाषा का लगातार विस्तार होते चला गया। और अपने मूल रूप में आज भी जीवित है। सर विलियम जोंस के अनुसार प्राचीन होने के साथ अद्भुत बनावट वाली संस्कृत यूनानी एवं लातीनी के मुकाबले अधिक उत्कृष्ट है। लेकिन ये तीनों भाषाएँ मिलती-जुलती हैं। उनका मानना है कि इन भाषाओं की उत्पत्ति का स्रोत एक ही है।

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय उपनिवेश और संस्कृति
उपनिवेश का अर्थ है-दूसरे देशों में अपने देश के व्यापार व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए नए केंद्र। भारत ने अपने व्यापार एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार अन्य देशों में भी बाहर जाकर किया।

इसका प्रमाण हमें भारतीय प्राचीन पुस्तकें, यात्रियों द्वारा लिखे गए विवरण, चीन से प्राप्त ऐतिहासिक विवरण, पुराने शिला-लेख, ताम्र-पत्र जावा और बाली का समृद्ध साहित्य जिनमें भारतीय महाकाव्यों और पुराणकथाओं का अनुवाद है, यूनानी और लातीनी स्रोतों की सूचनाएँ व अंगकोर और बोरोबुदूर मंदिर के प्राचीन खंडहर इस बात की पुष्टि करते हैं। प्राचीन भारत का व्यापार व संस्कृति बाहर के देशो में फैली। इनके काफ़ी उपनिवेश थे।

ईसा की पहली शताब्दी से लगभग 900 ई. तक उपनिवेशीकरण के चार प्रमुख केंद्र दिखाई पड़ते हैं। इन साहसिक अभियानों की सबसे विशिष्ट बात यह थी कि इसका संचालन मुख्यतः राज्यों द्वारा किया जाता था। इन उपनिवेशों का नामकरण प्राचीन भारतीय नामों के आधार पर किया गया जिसे अब लोग कंबोडिया कहते हैं। जो एक-एक विशेष प्रकार का अन्न है जिसके आधार पर जौ का टापू आज ‘जावा’ कहलाता है। इन उपनिवेशों के नाम खनिज, धातु किसी उद्योग या खेती की पैदावार के आधार पर होता था। इससे हमारा ध्यान अपने व्यापार की ओर जाता था। इस प्रकार उपनिवेश व्यापार बढ़ाने के सफल केंद्र रहे क्योंकि व्यापारी वहाँ जाकर अपने व्यापार को बढ़ावा देते थे। संस्कृत, यूनानी और अरबी में प्राप्त साहित्य से इस बात का पता चलता है कि भारत और सुदूर पूरब के देशों में बड़े पैमाने पर समुद्री व्यापार होता था। प्राचीन काल में भारत में जहाज़ उद्योग भी लगातार बढ़ा। हमें भारतीय उपनिवेश के साथ-साथ भारतीय बंदरगाहों का भी वर्णन मिलता है। दक्षिण भारतीय सिक्कों व अजंता के भित्ति चित्रों पर भी जहाज़ों के चित्र पाए गए हैं।

उपनिवेशों में व्यापारियों के साथ-साथ धर्म प्रचारक भी पहुंचे। यह समय अशोक के शासनकाल की है। बौद्ध धर्म का बढ़-चढ़कर प्रसार इसी कारण हुआ।

उपनिवेशों का मुख्य-स्थान एशिया के देशों बर्मा एवं महाद्वीप देशों पर चीन का प्रभाव अधिक तथा टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर भारत की छाप अधिक दिखाई देती है।

भारतीय उपनिवेशों का इतिहास ईशा की पहली-दूसरी शताब्दी से प्रारंभ होकर पंद्रहवीं शताब्दी तक यानी तेइह सौ साल का रहा है।

विदेशों पर भारतीय कला का प्रभाव
भारतीय सभ्यता ने विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में अपनी जड़ें जमाईं। चम्पा, अंगकोर, श्री विजय आदि स्थानों पर संस्कृत के बड़े-बड़े अध्ययन केंद्र थे। वहाँ के शासकों के भारतीय नाम और संस्कृत के नाम हैं। इंडोनेशिया, बाली आदि देशों ने अभी तक भारतीय संस्कृति को कायम रखा है। कंबोडिया में वर्णमाला दक्षिण भारत से ली गई है और बहुत से संस्कृत शब्दों को थोड़े हेर-फेर से लिया गया है। जावा में बुद्ध के जीवन की कथा पत्थरों पर अंकित है। वहाँ दीवानी और फौजदारी के कानून भारत के प्राचीन स्मृतिकार मनु के कानूनों के आधार पर बनाए गए। इनमें बौद्ध धर्म के प्रभाव से कुछ परिवर्तन कर इन्हें आधुनिक कानून व्यवस्थाओं से भी लिया गया है।

भारतीय कला का भारतीय दर्शन और धर्म से बहुत गहरा संबंध है। अंगकोर और बोरोबुदुर की इमारतें और मंदिर अद्भुत कला के अनुसार तैयार किए गए हैं। जावा के बोरोबुदुर में बुद्ध का जीवन कई स्थानों पर साफ़ दिखाई पड़ता है। अंगकोर, श्रीविजय, और इनके आस-पास के स्थानों पर पूर्णतया भारतीय कला की छाप है। यहाँ के स्थानों पर दीवारों पर की गई नक्काशी में विष्ण, राम और कृष्ण की कथाएँ अंकित हैं। कंबोडिया के राजा जयवर्मन ने अंगकोर को निखारा था। यह भी विशुद्ध रूप से भारतीय राजा का नाम था। भारतीय संगीत जो यूरोपीय संगीत से मिला है, का तरीका बहुत विकसित था। मथुरा के संग्रहालय में बोधिसत्व की एक विशाल शक्तिशाली और प्रभावशाली पाषाण प्रतिमा है। भारतीय कला अपने शुरुआत काल में प्राकृतिवाद से भरी है। भारतीय कला पर चीनी प्रभाव दिखाई देता है।

गुप्तकाल भारत का स्वर्ण युग कहलाता है। इस काल में स्थापत्य कला में काफ़ी विस्तार हुआ। अजंता, एलोरा एलिफेंटा एवं बाग और बादामी की गुफाएँ इसी काल की हैं। अजंता की गुफाओं का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं ने की थी। इसमें सुंदर स्त्रियाँ, राजकुमारियाँ, गायिकाएँ, नर्तकियाँ बैठी हैं।

भारतीय कला सातवीं-आठवीं शताब्दी में ठोस चट्टान को काटकर एलोरा की विशाल गुफाएँ तैयार की गईं। एलिफेंटा की गुफाओं में नटराज की मूर्ति खंडित के रूप में है जिसमें शिव नृत्य मुद्रा में हैं। ब्रिटिश संग्रहालय में विश्व का सृजन और नाश करते हुए शिव की एक और मूर्ति है।

भारत का विदेशी व्यापार
ईसवी सन् के पहले एक हजार वर्षों में भारतीय व्यापार की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी। भारत में प्राचीन काल से ही कपड़े का उद्योग काफ़ी चरम सीमा पर था।

रेशमी कपड़ा भी बनता था। कपड़े रंगने की कला में उल्लेखनीय प्रगति हुई। भारत में रसायन शास्त्र का विकास अन्य देशों की तुलना में काफ़ी अधिक हुआ था। भारतीय फौलाद और लोहे की दूसरे देशों में बहुत कद्र की जाती थी। इसका प्रयोग युद्ध के कामों जैसे हथियार आदि बनाने के लिए किया जाता था। इसके अतिरिक्त भारतीयों को धातुओं की भी काफ़ी जानकारी थी। इन धातुओं के मिश्रण से औषिधयाँ तैयार की जाती थीं।

इसके अलावा शरीर रचना व शरीर विज्ञान के बारे में भी भारतीय पूर्णतया परिचित थे। खगोलशास्त्र, जो विज्ञान में प्राचीनतम है, विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम नियमित थे। एक निश्चित पंचांग भी तैयार किया गया था। जो अब भी प्रचलित है। प्राचीन समय से ही जहाज़ बनाने का उद्योग चरम ऊँचाईयों पर था। यह देश कई शताब्दियों तक विदेशी मंडियों को अपने वश में करके रखा हुआ था।

प्राचीनतम भारत में गणितशास्त्र
यह माना जाता है कि आधुनिक अंक गणित और बीजगणित की शुरुआत भारत से ही हुई। भारत में ज्यामिति, अंकगणित और बीजगणित की शुरुआत प्राचीन काल में हुई। बीजगणित पर सबसे प्राचीन ग्रंथ आर्यभट्ट का है, जिसका जन्म 427 ई. में हुआ। भारतीय गणितशास्त्र में अगला नाम भास्कर (522 ई.) का है। ब्रह्मपुत्र (628 ई.) प्रसिद्ध खगोलशास्त्री था जिसने शून्य पर लागू होने वाले नियम निश्चय किए। अंक गणित की प्रसिद्ध पुस्तक है- ‘लीलावती’। यह लीलावती भास्कर की पुत्री थी। पुस्तक की शैली सरल और स्पष्ट है। इस पुस्तक का प्रयोग संस्कृत विद्यालयों में किया जाता है। आठवीं शताब्दी में खलीफ़ा अल्मंसूर के राज्यकाल (753-774) ई. में कई भारतीय विद्वान बगदाद गए और अपने साथ खगोलशास्त्र और गणित की पुस्तकें ले गए। अरब देशों से यह नया गणित संभवतः स्पेन के मूर विश्वविद्यालयों से होते हुए यूरोपीय देशों में कदम रखा। यूरोप में इन नए अंकों का विरोध हुआ इनको अपनाने में कई सौ वर्ष लग गए।

विकास और ह्रास
ईसवी सन् के पहले हज़ार वर्षों में भारत ने आक्रमणकारी तत्वों और आंतरिक कलह के बावजूद भी सभी दिशाओं में अपना प्रसार करते हुए ईरान चीन यूनानी जगत मध्य एशिया में शक्ति बढ़ाया। भारतीय उपनिवेशों की स्थापना कर सभी क्षेत्रों में विकास किया। गुप्तकाल भारत का स्वर्णकाल रहा। आने वाले समय में वह कमज़ोर पड़कर खत्म हो जाता है। नवीं शताब्दी में मिहिर भोज एक संयुक्त राज्य कायम करता है। 11वीं शताब्दी में एक दूसरा भोज सामने आता है। भीतरी कमज़ोरी ने भारत को जकड़ रखा था। भारत छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था, पर जीवन यहाँ समृद्ध था।

उत्तर भारत आक्रमणकारियों से अधिक प्रभावित रहा क्योंकि सभी आक्रमणकारी इसी दिशा से आते रहे। दक्षिण भारत में भी विदेशियों का आगमन व्यापक पैमाने पर होता रहा।

लेकिन इन जातियों का प्रभाव कम रहा। भारत समय के साथ पतन के कारण क्रमशः अपनी प्रतिभा और जीवन शक्ति को खोता जा रहा था। यह प्रक्रिया धीमी थी और सदियों तक चलती रही। इतिहासकार डॉ. राधाकृष्ण के अनुसार भारतीय दर्शन ने अपनी शक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ खो दी। प्रत्येक सभ्यता के जीवन में पतन और विनाश के दौर आते रहते हैं। लेकिन भारत ने उनसे बचकर नए सिरे से अपना कायाकल्प कर लिया। भारत के सामाजिक व्यवस्था ने भारतीय सभ्यता को मज़बूती दी। चारों तरफ पतन हुआ। विचारों में, दर्शन में, राजनीति में, युद्ध पद्धति में और बाहरी दुनिया के बारे में ज्ञान और संपर्क में आए।

भारत की अखंडता के स्थान पर सामंतवाद और क्षेत्रीयवाद की भावनाएँ बढ़ने लगीं। यही समाज आगे चलकर जाति व्यवस्था में अत्यधिक विश्वास करने लगा। ऊँची जाति के लोग अपने से नीचे जाति के लोगों को नीची नज़र से देखा करते थे। नीची जाति के लोगों को शिक्षा तथा विकास से वंचित रखा जाता था। इस सामाजिक ढाँचे ने एक और अद्भुत दृढ़ता तो दी परंतु इससे समाज के एक बड़े तबके के लोग समाज की सीढ़ी में नीचे दर्जे में रहने को विवश हो गए।

इन सब आधारों पर हम कह सकते हैं कि देश के लोगों में, विचारों में, दर्शन में, राजनीति में तथा युद्ध के तरीके में चारों तरफ से पतन हुआ। इन सबके बावजूद भारत में जीवन शक्ति और अद्भुत दृढ़ता, लचीलापन और स्वयं को ढालने की क्षमता शेष थी। भारत की जीवन शक्ति और अद्भुत दृढ़ता अभी भी जीवित थी। इसके अलावे भारतीय संस्कृति का लचीलापन और अपने को ढालने की क्षमता। इससे विचारधाराओं का लाभ उठा सका और कुछ दिशाओं में प्रगति कर सका। यह विकास अतीत के अवशेषों से जकड़ी रही और बाधित होती रही।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 46.
अवसान – समाप्ति, चेतना – विचारधारा, सरहदी – सीमा, लाट – स्तंभ, जज्ब – ग्रहण।

पृष्ठ संख्या 47.
कारनामों – कार्यों, सार्वजनिक – सभी के लिए समान रूप से, ज़िक्र – बताना, यूइ-चियों – खाना बदोश लोग, जरथुष्ट्र – पारसी धर्म, सशक्त – मज़बूत, गोबी रेगिस्तान – एशिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान जो चीन और मंगोलिया में फैला हुआ है, तोहफ़े – उपहार, विशिष्ट – विशेष।

पृष्ठ संख्या 48.
भारतीयकरण – भारतीय रिवाजों, परंपराओं आदि को स्वीकार कर लेना, संरक्षक – रक्षा करने वाले, प्रबलताकतवर, निर्मित – बना हुआ।

पृष्ठ संख्या 49.
राष्ट्रवादी – राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखने वाला, संकीर्णता – सोच का दायरा अत्यंत छोटा रखना, पुनर्जागरणबार – बार उत्साहित करते हुए बनाए रखने का प्रयास, उग्रता – क्रोधपूर्ण सोच, तेजस्विता – ओज, अख्तियार करना – अपनाना, समृद्ध – धनी, संपन्न।

पृष्ठ संख्या 50.
मेहरबान – कृपा करने वाला, दमन – कुचलना।

पृष्ठ संख्या 51.
परोक्ष – प्रत्यक्ष रूप में, राजगीर – भवन निर्माण करने वाले कारीगर, शिल्पी – डिजाइन एवं चित्रकारी करने वाले, आक्रमणकारी – हमला करने वाले, ब्यौरा – विवरण, लेखा जोखा, हस्तक्षेप – दखलअंदाजी, भ्रामक – भ्रम पैदा करने वाला, अवनति – गिरावट, पराकाष्ठा – उच्चतम बिंदु पर।

पृष्ठ संख्या 52.
उदय – प्रकट होना, व्यक्तिवाद – व्यक्ति को अधिक महत्त्व देना, सामुदायिक – समुदाय के नियमों के अधीन, आत्मसात – ग्रहण करना, समन्वय – तालमेल, सतही – ऊपरी।

पृष्ठ संख्या 53.
निरंकुश – जिस पर नियंत्रण न हो, वैधानिक – कानूनी, उद्गम – उत्पत्ति, पैदाइश, आम – साधारण, संग्रहएकत्रित किया हुआ।

पृष्ठ संख्या 54.
पांडुलिपी – हाथ से लिखित पुस्तक, आवेग – क्रोध, प्रेयसी – प्रेमिका, प्रियतमा, तीव्र – तेज़।

पृष्ठ संख्या 55.
विशुद्ध – पूरी तरह से शुद्ध, पौराणिक – पुराणों से संबंधित, प्रासंगिक – महत्त्व रखने वाला, ह्रास – गिरावट, अभिजात – उच्च या अमीर लोग, सरोकार – संबंध।

पृष्ठ संख्या 56.
समृद्ध – धनी, संपन्न, अलंकृत – अलंकारों से सजी – धजी, पतन – अवनति, गिरावट, उत्कृष्ट – उच्चकोटि का, परिष्कृत – शुद्ध, जननी – माँ, अभिव्यक्ति – प्रस्तुत करना, सार्थक – जिसका कुछ अर्थ या मतलब हो, अतिक्रमण – उल्लंघन करना, बढ़ाना।

पृष्ठ संख्या 57.
वृहत्तर – बड़ा फैला हुआ, अंतर्विरोध – अप्रत्यक्ष रूप से विरोध, वृत्तांत – वर्णन, शिलालेख – पत्थरों पर लिखे लेख, ताम्र पत्र – ताबे के पत्रों पर लिखा हुआ, समृद्ध – संपन्न, भावानुवाद – भाव का स्पष्टीकरण, विशिष्ट – विशेष।

पृष्ठ संख्या 58.
ब्यौरेवार – पूर्ण रूप से, बंदरगाह – जहाँ सामुद्री जहाज़ खड़े किए जाते हैं, भित्ति – दीवारों पर खुदे, तकरीबन – लगभग, राजकीय – राजकार्य से संबंधित, पदवियाँ – उपाधियाँ।

पृष्ठ संख्या 59.
स्मृतिकार – याद किए जाने वाले, मनु – सृष्टिकर्ता, संहिताबद्ध – सही क्रमबद्ध, वास्तुकला – भवन निर्माण कला, उत्कीर्ण – स्पष्ट रूप से दर्शाना, नक्काशी – हाथ से नमूने, वृद्धाकार – बूढ़े रूप में, देवतुल्य – ईश्वर के समान मोहक अपनी ओर से आकर्षित करने वाली, ठेठ – शुद्ध पक्का।

पृष्ठ संख्या 60.
हेर-फेर – अदल-बदल, फौजदारी – मार पीट संबंधी, सहराना – प्रशंसा करना, निर्माता – बनाने वाला आत्मनिष्ठ स्वयं को खुश करने वाली, तादा य – संबंध मेल-जोल, पूर्वाग्रह – पहले से बनी धारणा, पाषण प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति।

पृष्ठ संख्या 61.
प्रकृतिवाद – प्रकृति का सुंदर चित्रण, बोधिसत्व – महात्मा बुद्ध का एक नाम।

पृष्ठ संख्या 62.
खंडित – टूटी हुई, भीमाकार – बड़े आकारवाली, सृजन – निर्माण, आह्वान – पुकारना, प्रतिबिंब – परछाई, प्रशांति – शांतिपूर्ण, परे – दूर, परम – अत्यधिक।

पृष्ठ संख्या 63.
नियंत्रण – काबू, आयात – बाहर से मँगाना, फ़ौलाद – लोहे का एक रूप।

पृष्ठ संख्या 64.
भस्म – राख, पंचांग – ऐसी पुस्तक जिसमें महीनों और तिथियों का वर्णन हो, खगोलशास्त्र – ब्रह्मांड का अध्ययन, मंडियाँ – बाज़ार।

पृष्ठ संख्या 65.
कपाट – दरवाजे, उल्लेखनीय – महत्त्वपूर्ण, प्रमाण – सबूत।

पृष्ठ संख्या 66.
व्यापक – फैला हुआ, विस्तृत।

पृष्ठ संख्या 67.
प्रशांति – दूसरों को संतोष प्रदान करने वाला, आत्मविश्वास – स्वयं पर विश्वास, आत्माभिमान – स्वयं पर गर्व, दीप्ति – चमक, उमंग – साहस कुछ करने की इच्छा, ह्रास – गिरावट, पतन की ओर, बर्बर – क्रूरता, पराक्रमी – वीर, प्रतिष्ठा – इज़्ज़त, वैयाकरण – व्याकरण का ज्ञाता, भेषज – खाने वाली औषधि।

पृष्ठ संख्या 68.
सक्रिय – निरंतर कार्यरत।

पृष्ठ संख्या 69.
उत्कर्ष – उभरकर आना, तेजस्विता – ज्ञान, स्तंभित – ठहराव, मंद – धीमी, विकृत – बिगड़ा हुआ, परास्त – हराकर, प्रतिभा – योग्यता, गतिरोध – रुकावट।

पृष्ठ संख्या 70.
विघटन – गिरावट की ओर, कायाकल्प – स्वरूप बदलना, अंतस्तल – अंदर की भावना, ध्वस्त – समाप्त होते, कट्टरपन – पक्का, गैरमिलनसारी – किसी से न मिलना, रचनात्मक – कुछ कर दिखाना, अधीन – अधिकार में।

पृष्ठ संख्या 71.
गुट – दल, बृहत्तर – बड़ा स्वरूप, पुश्तैनी – पुरखों के, प्रवृत्ति – इच्छा/चाह, वंचित – प्राप्त न कर पाना, पद्धति – तरीका, अखंडता – एकरूपता, संकुचित – छोटी, दृढ़ता – पक्की, बाधित – बंधी।

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

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NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

Class 8 Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Textbook Questions and Answers

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1. उच्चारणं कुरुत –
(उच्चारण करें)
कस्मिश्चित्
क्षुधातः
सिंहपदपद्धतिः
विचिन्त्य
एतच्छ्रुत्वा
समाह्वानम्
साध्विदम्
भयसन्त्रस्तमनसाम्
प्रतिध्वनिः

2. एकपदेन उत्तरं लिखत – 
(एक पद में उत्तर लिखो)

(क) सिंहस्य नाम किम्?
उत्तराणि:
खरनखरः।

(ख) गुहायाः स्वामी कः आसीत्?
उत्तराणि:
दधिपुच्छः ।

(ग) सिंहः कस्मिन् समये गुहायाः समीपे आगतः?
उत्तराणि:
सूर्यास्तसमये।

(घ) हस्तपादादिकाः क्रियाः केषां न प्रवर्तन्ते?
उत्तराणि:
भयसन्त्रस्तमनसाम्।

(ङ) गुहा केन प्रतिध्वनिता?
उत्तराणि:
सिंहगर्जनेन।

3. पूर्णवाक्येन उत्तरत
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो)

(क) खरनखरः कुत्र प्रतिवसति स्म?
उत्तराणि:
(क) खरनखरः कस्मिंश्चित् वने प्रतिवसति स्म।

(ख) महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः किम् अचिन्तयत्?
उत्तराणि:
(ख) महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः अचिन्तयत्-‘नूनं एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति।
अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि।’

(ग) शृगालः किम् अचिन्तयत्?
उत्तराणि:
(ग) शृगालः अचिन्तयत्-‘अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति इति तर्कयामि।
तत् किं करवाणि?’

(घ) शृगालः कुत्र पलायितः?
उत्तराणि:
(घ) शृगालः दूरं पलायितः।

(ङ) गुहासमीपमागत्य शृगालः किं पश्यति?
उत्तराणि:
(ङ) गुहासमीपमागत्य शृगालः पश्यति यत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न बहिरागता।

(च) कः शोभते?
उत्तराणि:
(च) यः अनागतं कुरुते, सः शोभते।

4. रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित पदों के लिए प्रश्न निर्माण कीजिए)

(क) क्षुधातः सिंह कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्।
उत्तराणि:
कीदृशः सिंह कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्?

(ख) दधिपुच्छः नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्।
उत्तराणि:
कः नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्?

(ग) एषा गुहा स्वामिनः सदा आह्वानं करोति।
उत्तराणि:
एषा गुहा कस्य सदा आह्वानं करोति?

(घ) भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः न प्रवर्तन्ते।
उत्तराणि:
भयसन्त्रस्तमनसां कीदृश्यः/ काः क्रियाः न प्रवर्तन्ते?

(ङ) आह्वानेन शृगालः बिले प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति।
उत्तराणि:
आह्वानेन शृगालः कुत्र प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति?

5. घटनाक्रमानुसारं वाक्यानि लिखत –
(वाक्यों को घटना के क्रमानुसार लिखो)

(क) गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत् ।
(ख) सिंहः एकां महतीं गुहाम् अपश्यत् ।
(ग) परिभ्रमन् सिंहः क्षुधा” जातः।
(घ) दूरस्थः शृगालः रवं कर्तुमारब्धः।
(ङ) सिंहः शृगालस्य आह्वानमकरोत्।
(च) दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत् ।
(छ) गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः।
उत्तराणि:
1. परिभ्रमन् सिंहः क्षुधा” जातः। (ग)
2. सिंहः एकां महतीं गुहाम् अपश्यत्। (ख)
3. गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। (क)
4. गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः। (छ)
5. दूरस्थः शृगालः रवं कर्तुमारब्धः। (घ)
6. सिंहः शृगालस्य आह्वानम्करोत्। (ङ)
7. दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत्। (च)

6. यथानिर्देशमुत्तरत –
(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)

(क) ‘एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्’ अस्मिन् वाक्ये कति विशेषणपदानि, संख्यया सह पदानि अपि लिखत?
उत्तराणि:
1. एकाम्, 2. महतीम्।

(ख) तदहम् अस्य आह्वानं करोमि- अत्र ‘अहम्’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि:
सिंहाय।

(ग) ‘यदि त्वं मां न आह्वयसि’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तराणि:
त्वम्।

(घ) “सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
उत्तराणि:
दृश्यते।

(ङ) वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा’ अस्मिन् वाक्ये अव्ययपदं किम्?
उत्तराणि:
अत्र।

7. मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा से अव्यय पदों को चुनकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए) |

कश्चन दूरे नीचैः यदा तदा यदि तर्हि परम् च सहसा |

एकस्मिन् वने ………… व्याधः जालं विस्तीर्य ……. स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराजः ………… आगच्छत्। ………… कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् ………… तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमतः नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् ……. वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। ……. कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः? ………… राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले ….. निपतिताः। अतः उक्तम् .. विदधीत न क्रियाम्’।
उत्तराणि:
एकस्मिन् वने कश्चन व्याधः जालं विस्तीर्य दूरे स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराजः नीचैः आगच्छत्। यदा कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् तदा तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमतः नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् यदि वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। तर्हि कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः? परं राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले च निपतिताः। अतः उक्तम् ‘सहसा विदधीत न क्रियाम्’।

Class 8 Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Additional Important Questions and Answers

अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसारं लिखत –

(1) कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधार्तः न
किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-‘नूनम् एतस्यां
गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति।

I. एकपदेन उत्तरत

(i) सिंहस्य नाम किम् अस्ति?
उत्तराणि:
खरनखरः।

(ii) सिंहः किं दृष्ट्वा अचिन्तयत्?
उत्तराणि:
गुहाम्।

(iii) गुहा कीदृशी आसीत्?
उत्तराणि:
महती।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत

(i) सिंहः कुत्र प्रतिवसति स्म?
उत्तराणि:
सिंहः कस्मिंश्चित् वने प्रतिवसति स्म।

(ii) परिभ्रमन् सिंहः किं न प्राप्तवान्?
उत्तराणि:
परिभ्रमन् सिंहः किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान्।

III. निर्देशानुसारम् प्रदत्तविकल्पेभ्यः उचितं उत्तरं चित्वा लिखत

(i) ‘सः’ इति सर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदं किम् भविष्यति?
(क) जीवः
(ख) सिंहः
(ग) क्षुधातः
(घ) वने
उत्तराणि:
(ख) सिंहः।

(ii) ‘क्षुधातः’ इति विशेषणपदस्य कर्तृपदं किम्?
(क) गुहां
(ख) रात्रौ
(ग) सिंहः
(घ) आहारं
उत्तराणि:
(ग) सिंहः।

(iii) ‘आयाति’ इति पदस्य पर्यायशब्दं गद्यांशे किम् प्रयुक्तम्?
(क) प्रतिवसति
(ख) परिभ्रमन्
(ग) आगच्छति
(घ) प्राप्तवान्
उत्तराणि:
(ग) आगच्छति।

(2) तदा गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत् । स पश्यति यत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा, न तु बहिरागता। सोऽचिन्तयत्-नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति। सः रवं कर्तुम् आरब्धः-भो बिल! किम् अद्य त्वं मां न आह्वयसि?

I. एकपदेन उत्तरत

(i) गुहायाः स्वामी कः आसीत्?
उत्तराणि:
शृगालः।

(ii) शृगालः किं कर्तुम् आरब्धः?
उत्तराणि:
रवम्।

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत

(i) गुहायां का प्रविष्टा?
उत्तराणि:
गुहायां सिंहपदपद्धतिः प्रविष्टा।

(ii) तदा कः समागच्छत्?
उत्तराणि:
तदा गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्।

III. निर्देशानुसारम् उत्तरत

(i) ‘सोऽचिन्तयत्’ अत्र सज्ञापदं लिखत।
उत्तराणि:
शृगालः।

(ii) ‘न आह्वयसि’ इत्यत्र सन्धिः कार्यः।
उत्तराणि:
नाऽऽह्वयसि।

(iii) ‘नूनम्’ इत्यस्य पर्यायशब्दं लिखत।
उत्तराणि:
खलु।

समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत, येन कथनानां भावः स्पष्टो भवेत् –

(क) सिंहः महतीं गुहां दृष्ट्वा अचिन्तयत्।

अस्य भावः अस्ति यत् सिंहः … ……………. गुहां
उत्तराणि:
अस्य भावः अस्ति यत् सिंहः विशालां गुहां वीक्ष्य अचिन्तयत्।

(ख) अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि।

अस्य भावः अस्ति यद् अहम् अस्मिन् …….
उत्तराणि:
अस्य भावः अस्ति यद् अहम् अस्मिन् स्थाने एव प्रच्छन्नो भूत्वा तिष्ठामि।

अधोलिखितेषु विकल्पेषु समुचितं भावं चित्वा लिखत –

(क) कस्मिंश्चिद् वने एकः सिंहः प्रतिवसति स्म।

(i) कस्मिंश्चिद् नगरे एकः सिंहः वसति स्म।
(ii) कस्मिंश्चिद् वने एकः सिंहः वसति स्म।
(iii) एकस्मिन् वने सिंहः मृगान् खादति स्म।
(iv) एकस्मिन् वने सिंहः स्वपिति स्म।
उत्तराणि:
(ii) कस्मिंश्चिद् वने एकः सिंहः वसति स्म।

(ख) सिंहः किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान्।
(i) सिंहः भोजनं न प्राप्तवान् ।
(ii) सिंहः भोजनं न कृतवान् ।
(iii) सिंहः भोजनं न खादितवान्।
(iv) सिंहः भोजनं न दृष्टवान् ।
उत्तराणि:
(i) सिंहः भोजनं न प्राप्तवान्।

अधोलिखितेषु भावकथनेषु यत् कथनं शुद्धं तत् (✓) चिह्नन, यच्चाऽशुद्धं तत् (✗) चिह्नन अङ्कयत।

(क) गुहायां रात्रौ कोऽपि आगच्छति

(i) गुहायां रात्रिः आगच्छति। ।
(ii) गुहायां कोऽपि रात्रिकाले आगच्छति।
उत्तराणि:
(i) गुहायां रात्रिः आगच्छति। (✗)
(ii) गुहायां कोऽपि रात्रिकाले आगच्छति। (✓)

(ख) सः किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान्।
(i) सः स्वल्पमपि भोजनं न प्राप्तवान् ।
(ii) सः भोजनं प्राप्तवान्, न आहारम् ।
उत्तराणि:
(i) सः स्वल्पमपि भोजनं न प्राप्तवान् । (✓)
(ii) सः भोजनं प्राप्तवान्, न आहारम् ।(✗)

अधोलिखितस्य श्लोकस्य अन्वयं लिखत

(क) अनागतं यः कुरुते सः शोभते।
(ख) सः शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
उत्तराणि:
(क) यः अनागतं कुरुते, सः शोभते।
(ख) यो न अनागतं करोति, सः शोच्यते।

अधोलिखितस्य श्लोकस्य प्रदत्ते अन्वये समुचितपदेन रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत –

भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्॥

अन्वयः-भयसन्त्रस्तमनसा ……………. क्रियाः ……………… च न प्रवर्तन्ते …………… च ……………. भवेत्।
उत्तराणि:
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः वाणी च न प्रवर्तन्ते वेपथुः च अधिकः भवेत्।

अधोलिखितेषु कथनेषु स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं क्रियताम्

(क) वने सिंहः प्रतिवसति स्म।
(i) का
(ii) किम्
(iii) कः
(iv) कम्
उत्तराणि:
वने कः प्रतिवसति स्म?

(ख) सिंहः क्षुधार्तः आसीत्।
(i) किम्
(ii) कीदृशः
(iii) कस्मिन्
(iv) कान्
उत्तराणि:
सिंहः कीदृशः आसीत्?

(ग) सिंहः सायं गुहाम् अपश्यत् ।
(i) कुत्र
(ii) तदा
(iii) कदा.
(iv) कीदृशः
उत्तराणि:
सिंहः कदा गुहाम् अपश्यत्?

घटनाक्रमाऽनुसारम् अधोलिखितानि वाक्यानि पुनः लिखत –

(i) शृगालः दूरं पलायमानः श्लोकम् अपठत्।
उत्तराणि:
वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म।

(ii) दधिपुच्छः रवं कर्तुम् आरब्धः।
उत्तराणि:
सः किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान्।

(iii) वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म।
उत्तराणि:
गुहायाः स्वामी तत्र समागच्छत् ।

(iv) अन्ये पशवः भयभीताः अभवन् ।
उत्तराणि:
दधिपुच्छः रवं कर्तुम् आरब्धः।

(v) सिंहः शृगालस्य आह्वानम् अकरोत् ।
उत्तराणि:
सिंहः शृगालस्य आह्वानम् अकरोत् ।

(vi) गुहायाः स्वामी तत्र समागच्छत् ।
उत्तराणि:
अन्ये पशवः भयभीताः अभवन् ।

(vii) सः किञ्चिदपि आहारं न प्राप्तवान् ।
उत्तराणि:
शृगालः दूरं पलायमानः श्लोकम् अपठत्।

अधोलिखिते सन्दर्भे रिक्तस्थानानि मंजूषायाः उचितपदैः पूरयत –

एतस्मिन् अन्तरे ………….. ……………. स्वामी दधिपुच्छः नाम ………… समागच्छत् । स च यावत्
………… तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां ……….. दृश्यते, न च ……………. आगता। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो, ………. अस्मि, नूनम् अस्मिन् .. ……………….. सिंहः अस्ति इति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?” एवं ………………………… दूरस्थः ………………………… कर्तुमारब्धः ।

शृगालः, प्रविष्टा, विचिन्त्य, गुहायाः, विनष्टो, बहिर्, पश्यति, बिले, रवम्।

उत्तराणि:
एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छ: नाम शृगालः समागच्छत् । स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिर् आगता। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो, विनष्टो अस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति इति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?” एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः।

अधोलिखितानां शब्दानाम् अर्थान् निर्दिश्य वाक्येषु प्रयोगं कुरुत –
क्षुधातः, निगूढः, महती।
उत्तराणि:
(i) क्षुधातः = बुभुक्षितः।
एकदा वने एकः सिंहः क्षुधातः आसीत् ।

(ii) निगूढः = प्रच्छन्नः।
वानरः निगूढः भूत्वा तिष्ठति।

(iii) महती = विशाला।
पर्वते महती गुहा अस्ति।

अधोलिखितानां शब्दानां समक्षं प्रदत्तैः अर्थैः सह मेलनं क्रियताम् –

शब्दाः – अर्थाः
(i) वने – आयाति।
(ii) इतस्ततः – वीक्ष्य।
(iii) आहारम् – विशाला।
(iv) महती – भोजनम्।
(v) दृष्ट्वा – यत्र तत्र।
(vi) आगच्छति – कानने।
उत्तराणि:
शब्दाः – अर्थाः
(i) वने – कानने।
(ii) इतस्ततः – यत्र तत्र।
(iii) आहारम् – भोजनम्।
(iv) महती – विशाला।
(v) दृष्ट्वा – वीक्ष्य।
(vi) आगच्छति – आयाति।

1. अधोलिखितगद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसारं लिखत –

एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?”

(i) एकपदेन उत्तरत –
शृगालस्य नाम किम् आसीत्?
(क) स्वामी
(ख) दुग्धपुच्छः
(ग) दधिपुच्छः
(घ) गुहायाः
उत्तराणि:
(ग) दधिपुच्छः

(ii) पूर्णवाक्येन उत्तरत –
(क) कस्य पदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते?
उत्तराणि:
सिंहस्य पदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते।

(iii) ‘विनष्टोऽस्मि’ इति कः अचिन्तयत्?
(क) सिंहः
(ख) शृगालः
(ग) गजः
(घ) अश्वः
उत्तराणि:
(ख) शृगालः

(iv) ‘करवाणि’ इति क्रियापदे कः लकारः?
(क) लङ्
(ख) लुट्
(ग) लट्
(घ) लोट
उत्तराणि:
(घ) लोट

2. उचितं अव्ययपदं चित्वा वाक्यं पूरयत

(i) सिंहस्य उच्चगर्जनेन गुहा—- शृगालं आह्वयत्।
(क) उच्चैः
(ख) नीचैः
(ग) अद्यः
(घ) सहसा
उत्तराणि:
(क) उच्चैः

(ii) ‘गुहायाः’ इति पदे का विभक्तिः ?
(क) तृतीया
(ख) चतुर्थी
(ग) षष्ठी
(घ) सप्तमी
उत्तराणि:
(ग) षष्ठी

(iii) ‘विचार्य’ इत्यत्र कः प्रत्ययः?
(क) ल्यप्
(ख) क्त्वा
(ग) क्त
(घ) यत्
उत्तराणि:
(क) ल्यप्

(iv) ‘निष्क्रम्य’ इति पदस्य विलोमपदं किं?
(क) निष्क्रान्तः
(ख) प्रविश्य
(ग) प्रविशत्
(घ) प्राविशत्
उत्तराणि:
(ख) प्रविश्य

(v) ‘अकस्मात्’ इत्यस्य पदस्य समानार्थकं अव्ययपदं किं?
(क) समं
(ख) सार्धम्
(ग) सह
(घ) सहसा
उत्तराणि:
(घ) सहसा

(vi) ‘उच्यते’ इति क्रियापदे कः धातुः?
(क) उच्
(ख) वच्
(ग) उच्य्
(घ) उच्यत
उत्तराणि:
(ख) वच्

(vii) ‘यदाह’ इति पदस्य सन्धिच्छेदं किम्?
(क) यद् + अहं
(ख) यद + अहं
(ग) यदा + अहं
(घ) यदा + हं
उत्तराणि:
(ग) यदा + अहं

3. रेखांकितपदानि आधारीकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

(i) कदापि बिलस्य वाणी मे न श्रुता।
(क) कः
(ख) का
(ग) के
(घ) कस्य
उत्तराणि:
(घ) कस्य

(ii) नूनं अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति।
(क) के
(ख) कदा
(ग) कुत्र
(घ) का
उत्तराणि:
(ग) कुत्र

(iii) सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः अचिन्तयत्।
(क) कदा
(ख) कति
(ग) के
(घ) कः
उत्तराणि:
(क) कदा

4. ‘एतस्यां’ इत्यस्य पदस्य मूलशब्दं किं?
(क) अयं
(ख) एतद्
(ग) एत
(घ) इदम्
उत्तराणि:
(ख) एतद्