Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant & Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 युगों का दौर Questions and Answers Summary are prepared by our highly skilled subject experts.

Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 4 Question Answers Summary युगों का दौर

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कौन से शासक आए?
(i) कुषाण
(ii) शुंगवंश
(iii) हूण
(iv) शक
उत्तर:
(ii) शुंगवंश

प्रश्न 2.
कुषाणों का लोकप्रिय राजा कौन था?
(i) अशोक
(ii) जरथुष्ट्र
(iii) कनिष्क
(iv) नागार्जुन
उत्तर:
(iii) कनिष्क

प्रश्न 3.
चंद्रगुप्त ने किस साम्राज्य की नींव रखी?
(i) गुप्त साम्राज्य
(ii) मौर्य साम्राज्य
(iii) कुषाण साम्राज्य
(iv) अन्य
उत्तर:
(i) गुप्त साम्राज्य

प्रश्न 4.
हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी कहाँ बनाया?
(i) कर्नाटक
(ii) जयपुर
(iii) इंद्रप्रस्थ
(iv) उज्जयिनी
उत्तर:
(iv) उज्जयिनी

प्रश्न 5.
दक्षिणी भारत की लोकप्रियता का कारण था
(i) अपनी अच्छी जलवायु
(ii) दस्तकारी व समुद्री व्यापार
(iii) अपनी सुदृढ़ शासन सत्ता
(iv) आपसी एकता
उत्तर:
(ii) दस्तकारी व समुद्री व्यापार

प्रश्न 6.
जब अंग्रेज़ भारत आए उस समय देश की स्थिति क्या थी?
(i) संपन्न
(ii) धार्मिकता से ग्रस्त
(iii) जातीयता से ग्रस्त
(iv) अवनति की ओर
उत्तर:
(iv) अवनति की ओर

प्रश्न 7.
भारतीय सभ्यता के विकास का क्या कारण था?
(i) स्थिरता
(ii) सुरक्षा
(iii) संपन्नता
(iv) कठोर शासक
उत्तर:
(i) स्थिरता

प्रश्न 8.
भारतीय रंगमंच का उद्गम कहाँ हुआ?
(i) सामवेद में
(ii) यजुर्वेद में
(iii) ऋगवेद में
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iii) ऋगवेद में

प्रश्न 9.
कालिदास की प्रमुख रचना कौन-सी थी?
(i) मेघदूत
(ii) शकुंतला
(iii) मृच्छकटिकम्
(iv) मुद्राराक्षस
उत्तर:
(ii) शकुंतला

प्रश्न 10.
प्राचीन नाटकों की भाषा कैसी थी?
(i) हिंदी
(ii) संस्कृत
(iii) उर्दू
(iv) परसियन
उत्तर:
(ii) संस्कृत

प्रश्न 11.
संस्कृत भाषा को नियमों में किसने बाँधा?
(i) पाणिनी
(ii) भास
(iii) कालिदास
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) पाणिनी

प्रश्न 12.
संस्कृत को व्याकरणिक नियमों में कब बाँधा गया?
(i) 2000 वर्ष पूर्व
(ii) 3000 वर्ष पूर्व
(iii) 2600 वर्ष पूर्व
(iv) 1600 वर्ष पूर्व
उत्तर:
(iii) 2600 वर्ष पूर्व

प्रश्न 13.
भारत का व्यापार व धर्म का प्रचार-प्रसार विदेशों में कैसे हुआ?
(i) अपना उपनिवेश कायम करके
(ii) शासन सत्ता बढ़ाकर
(iii) युद्ध करके
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) अपना उपनिवेश कायम करके

प्रश्न 14.
जावा में किस भारतीय कला को विशेष प्रसिद्धि मिली?
(i) नृत्य
(ii) साहित्य
(iii) भवन-निर्माण
(iv) धर्म
उत्तर:
(i) नृत्य

प्रश्न 15.
फिलीपाइन देश की लेखन कला किस देश की देन है?
(i) भारत
(ii) श्रीलंका
(iii) अफगानिस्तान
(iv) मध्य एशिया
उत्तर:
(i) भारत

प्रश्न 16.
गुप्तकाल में सबसे अधिक विकास किस दिशा में हुआ?
(i) शासनसत्ता
(ii) वास्तुकला
(iii) राजनीति
(iv) धर्म
उत्तर:
(ii) वास्तुकला

प्रश्न 17.
गणित शास्त्र की शुरुआत भारत में कब हुई?
(i) प्राचीन काल
(ii) वैदिक काल
(iii) आदि काल
(iv) मध्य काल
उत्तर:
(iii) आदि काल

प्रश्न 18.
भारत के पतन के क्या कारण थे?
(i) बूढ़ा होना
(ii) आपस में विखंडित होना
(iii) एक के बाद एक विदेशी शासक का भारत पर शासन करना और राजनीति का टूटना
(iv) योग्य शासक का आभाव
उत्तर:
(iii) एक के बाद एक विदेशी शासक का भारत पर शासन करना और राजनीति का टूटना

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के बाद सत्ता किसने सँभाली? इसके बाद भारत को किन-किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शासन सत्ता शुंग वंश ने संभाली। इनका शासन क्षेत्र काफ़ी सीमित हो गया था। दक्षिण में बड़े राज्य उभर रहे थे। उत्तर में काबुल से पंजाब तक यूनानियों का साम्राज्य था।

प्रश्न 2.
कुषाणों ने क्या काम किया?
उत्तर:
कुषाणों ने शकों को पराजित करके दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। कुषाणों ने पूरे उत्तर भारत में और मध्य एशिया के बहुत बड़े भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।

प्रश्न 3.
कुषाण काल में बौद्ध-धर्म किस प्रकार प्रभावित हुआ?
उत्तर:
कुषाण साम्राज्य की स्थापना के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभक्त हो गया। – हीनयान और महायान। इन दोनों के मतभेद काफ़ी बढ़ गए। बड़ी-बड़ी सभाओं में इनके आपसी विवाद उठने लगे।

प्रश्न 4.
जरथुष्ट्र धर्म से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यह धर्म पारसी धर्म के नाम से जाना जाता है। ईरान में इस धर्म की उत्पत्ति हुई थी। इस धर्म के संस्थापक जरथुष्ट्र थे।

प्रश्न 5.
भारत में चीनी राजदूत कब आए?
उत्तर:
भारत में चीनी राजदूत 64 ई. में आए।

प्रश्न 6.
नागार्जुन कौन थे? इन्होंने कौन-सा विशेष कार्य किया?
उत्तर:
नागार्जुन बौद्ध शास्त्रों और भारतीय दर्शन के महान विद्वान थे। नागार्जुन ईसा की पहली शताब्दी में हुए।

प्रश्न 7.
कौन से फल भारत को चीन की देन है?
उत्तर:
आइ और नाशपाती ऐसे फल हैं जो भारत में नहीं उगते थे। ये चीनियों की देन हैं।

प्रश्न 8.
मौर्य साम्राज्य का पतन होने के बाद दक्षिण भारत की शासन व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का अंत होने पर दक्षिण के राज्य एकांकी रूप में फलने-फूलने लगे।

प्रश्न 9.
विदेशी शासकों की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
विदेशी शासकों ने अपने आपको भारतीय परंपरा, सभ्यता व संस्कृति के अनुरूप जल्दी ही ढाल लिया। इसलिए सफल शासक रहे।

प्रश्न 10.
भारत का नेपोलियन किसे कहा जाता है? और क्यों?
उत्तर:
गुप्त साम्राज्य के शासक ‘समुद्र गुप्त’ को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। उसके शासन काल में साम्राज्य काफ़ी समृद्ध और शक्तिशाली था। इस काल में साहित्य और कला के क्षेत्र में भारत ने अभूतपूर्व उन्नति की।

प्रश्न 11.
भारतीय सभ्यता की विशेषता क्या थी?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता की विशेषता यह थी कि यह व्यक्तिवादी होते हुए भी सामुदायिक रूप रखती थी।

प्रश्न 12.
भवभूति कौन थे?
उत्तर:
भवभूति संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध नाटककार थे। वे सातवीं शताब्दी में नाटक के क्षेत्र में चमकते सितारे थे। कालिदास के बाद इनका ही स्थान है। भारत में भवभूति बहुत लोकप्रिय रहे।

प्रश्न 13.
सर्वप्रथम किस नाटककार का नाम इतिहास में मिलता है?
उत्तर:
प्राचीन नाटककारों में सर्वप्रथम नाम भारत में ‘भास’ का मिलता है। उन्होंने 13 नाटकों की रचनाएँ की।

प्रश्न 14.
कालिदास कौन थे? उनकी प्रसिद्ध रचनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कालिदास गुप्तवंश के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम व प्रकृति का वर्णन बड़े अनुपम ढंग से किया है। उनकी प्रमुख रचना है – ‘शकुंतला’ जिसका जर्मन, फ्रेंच, डेनिश और इटालियन में अनुवाद भी हुआ। इनकी एक अन्य प्रमुख रचना है ‘मेघदूत’ जिसमें एक प्रेमी अपनी प्रेयसी को बादल द्वारा संदेश भेजता है।

प्रश्न 15.
चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के रचित नाटक ‘मुद्राराक्षस’ की क्या विशेषता है?
उत्तर:
नाटक ‘मुद्राराक्षस’ उस समय की पूर्ण राजनीतिक गतिविधियों से अवगत करवाता है।

प्रश्न 16.
संस्कृत भाषा को व्याकरणिक नियमों में किसने बाँधा?
उत्तर:
संस्कृत को व्याकरण के नियमों में महान ‘वैयाकरण’ ‘पाणिनी’ ने बाँधा।

प्रश्न 17.
उपनिवेश कायम करने का क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
उपनिवेश कायम करने से भारत का व्यापार व धर्म बाहर के देशों तक पहुँचा। इसके अलावा समुद्री जहाज़ों का चलन बढ़ा।

प्रश्न 18.
भारतीय उपनिवेशों के इतिहास में भारत और चीन का प्रभाव कहाँ-कहाँ पड़ा?
उत्तर:
उपनिवेशों के इतिहास में चीन का प्रभाव महाद्वीप के देशों, वर्मा, स्याम और हिंद चीन पर तथा भारत का प्रभाव टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर अधिक था। यहाँ भारतीय धर्म और कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

प्रश्न 19.
भारतीय उपनिवेशों का काल कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय उपनिवेशों का काल ईसा की पहली या दूसरी शताब्दी से शुरू होकर पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक माना जाता है। यानी यह काल लगभग तेरह सौ साल या इससे कुछ अधिक रहा।

प्रश्न 20.
किन-किन देशों पर भारतीय कला की छाप दिखाई पड़ती है?
उत्तर:
इंडोनेशिया, जावा, बाली व फिलिपाइन व दक्षिण-पूर्वी एशिया के और भी देशों में भारतीय कला की झलक मिलती है।

प्रश्न 21.
हूणों के आक्रमण का प्राचीन भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
उत्तर पश्चिम दिशा में होने वाले हूणों के आक्रमण से भारत राजनैतिक एवं सैन्य एवं दोनों दृष्टियों से कमज़ोर हो गया। उनके यहाँ बसने से लोगों में अंदरूनी परिवर्तन हुए। उनका बर्बरतापूर्ण व्यवहार भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा मिलिंद कौन था?
उत्तर:
प्राचीन भारत के उत्तर में उस समय काबुल से पंजाब तक भारतीय यूनानी फैले थे। मेनांडर ने राजधानी पर आक्रमण किया, जहाँ वह पराजित हो हुआ। यहाँ मेनांडर पर भारतीय चेतना और वातावरण का काफ़ी प्रभाव पड़ा जिसके परिणामस्वरूप उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। बाद में वह राजा मिलिंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
ब्राह्मणवाद और हिंदूवाद की उत्पत्ति कैसे हुई।
उत्तर:
विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लगातार आक्रमण से भारतीय ब्राह्मण वर्ग काफ़ी चिंतित हो उठे। इन विदेशी आक्रमणकारियों का रस्मरिवाज और संस्कृति बिलकुल भिन्न थे। उनकी संस्कृति से भारतीय संस्कृति और सामाजिक ढाँचा के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा था। अत: लोगों में राष्ट्रीय भावना को जगाना ही राष्ट्रीय धर्म था। इनके विरुद्ध लोगों की जो प्रतिक्रिया थी, उसे ब्राह्मणवाद या हिंदूवाद कहा गया।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में गणितशास्त्र की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
आधुनिक अंक गणित और बीजगणित का आधार भारत में ही पड़ी। भारत में ज्यामिति का भी विकास हुआ। शून्य की विधि खोजी गई।

प्रश्न 4.
शकों का प्रसिद्ध शासक कौन था? शकों ने कौन-सा धर्म अपना लिया?
उत्तर:
शकों का प्रसिद्ध शासक कनिष्क हुआ। शकों में कुछ ने हिंदू धर्म अपना लिया लेकिन अधिकांश लोग बौद्ध धर्म को ही अपना लिए।

प्रश्न 5.
हर्ष कौन था? भारतीय इतिहास में वह लोकप्रिय क्यों हुआ?
उत्तर:
हर्ष सातवीं शताब्दी का सबसे शक्तिशाली राजा था, उसने भारत से हूणों का साम्राज्य समाप्त किया। उसने उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक एक बहुत शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। हर्ष ने हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों का प्रचार एवं प्रसार किया। उसने अपने राजदरबार में कवियों और नाटककारों को संरक्षण दिया। अपनी राजधानी उज्जयिनी को सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। वह बहुत दानी था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी।

प्रश्न 6.
भारत में विदेशी तत्व किस प्रकार आत्ससात होते गए?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति सामुदायिक था। यहाँ पर सामाजिक नियमों का पालन कठोरता से कराया जाता था। इसके अलावे सामाजिक नियमों का समुदायों को लेकर नज़रिया लचीलापन था। सामाजिक नियमों को रीति-रिवाजों में बदला जा सकता था। आने वाले नए लोग तथा विदेशी तत्व अपने रीति-रिवाजों और आस्था को अपने जीवन में व्यवहार का रूप देकर समाज के अंग बने रहे। इसी लचीलेपन के कारण यहाँ आने वाले विदेशी लोग आत्मसात होते गए।

प्रश्न 7.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत के विषय में क्या लिखा?
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा कि हमारे देश की वास्तविकता को यदि जानना चाहते हैं तो हमें उस काल को समझना होगा जब यह अपने आप में पूर्ण था और इसने बाहर के देशों में अपने उपनिवेश कायम कर व्यापार और धर्म का प्रचार-प्रसार किया।

प्रश्न 8.
किन-किन आधारों से मालूम होता है कि भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशिया तक उपनिवेश कायम किए?
उत्तर:
भारतीय प्राचीन पुस्तकों, अरब यात्रियों की रचना के द्वारा चीन से प्राप्त ऐतिहासिक विवरण, पुराने शिलालेख, ताम्र-पत्र, जावा बाली का साहित्य, भारतीय महाकाव्य व पुराणकथाओं, यूनानी और लातिनी स्रोतों, एवं अंगकोर और बोरोबुदुर के प्राचीन खंडहरों से यह जानकारी मिलती है कि भारत ने विदेशों में अपने उपनिवेश कायम किए।

प्रश्न 9.
अजंता की गुफाओं की सुंदरता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजंता की गुफाएँ हमें संसार की वास्तविकताओं का ज्ञान कराती हैं। इनके भित्ति चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था। इन भित्ति चित्रों पर सुंदर स्त्रियाँ, राजकुमारियाँ, गायिकाएँ, नर्तकियाँ, बैठी और खड़ी, शृंगार करती हुई या सभा में जाती हुई चित्रित है। इन चित्रों में जीवन के गतिशील नाटक को अनुपम ढंग से दिखाया गया है।

प्रश्न 10.
भारत में गणित की विभिन्न शाखाओं का प्रयोग कैसे होता था? इसमें भास्कर द्वितीय का गणित के क्षेत्र में क या-क्या योगदान रहा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में ज्यामिति, अंकगणित और बीजगणित का उद्भव बहुत प्राचीन काल में हुआ था। वैदिक वेदियों पर आकृतियाँ बनाने के लिए ज्यामितीय बीजगणित का प्रयोग किया जाता था। अंकगणित और बीजगणित में भारत आगे बना रहा। शून्यांक और स्थान मूल्य वाली दशमलव विधि को स्वीकार किया गया। भास्कर द्वितीय ने खगोलशास्त्र, बीजगणित और अंकगणित पर तीन पुस्तकों की रचना की। अंकगणित पर लिखी उनकी पुस्तक लीलावती सरल एवं स्पष्ट शैली में है। यह छोटी उम्र वालों के लिए बहुत उपयोगी है। कुछ संस्कृत विद्यालयों में आज भी पठन-पाठन के लिए इनकी शैली का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
प्राचीन भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नालंदा विश्वविद्यालय
  2. भागलपुर के पास विक्रमशिला विश्वविद्यालय
  3. काठियावाड़ में बल्लभ विश्वविद्यालय
  4. दक्षिण में अमरावती विश्वविद्यालय।

प्रश्न 12.
भारतीय पतन के समय सामाजिक दशा कैसी थी?
उत्तर:
भारत के पतन के समय समाज विखंडित हो चुका था, जाति बंधनों में बँट चुका था। वह अपनी अखंडता न बनाए रख सका। समाज में क्षेत्रीयता, सामंतवाद तथा गुटबाजी की भावना का उत्थान हो गया था। अर्थव्यवस्था काफ़ी कमज़ोर हो गई थी। समाज में जातिवादी प्रथा का प्रचलन काफ़ी ज़ोरों पर थी। ऊँची जाति के लोग नीची जाति के लोगों को दबाकर रखना चाहते थे। ऊँची जाति के लोग नीची जाति के लोगों को शिक्षा से वंचित कर उनका शोषण करते थे।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से बताया गया है कि मौर्य साम्राज्य का अंत हुआ और उसकी जगह शुंग ने लिया। इनकी साम्राज्य की सीमा काफ़ी कम थी। दक्षिण भारत में बड़े-बड़े राज्य की स्थापना हुई। उत्तर भारत में काबुल से पंजाब तक यूनानियों का साम्राज्य का विस्तार हो गया। यूनानी आक्रमणकारी मेनांडर ने पाटलीपुत्र पर आक्रमण कर दिया लेकिन उसकी वहाँ हार हुई। इसके बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। इस तरह यूनानी और बौद्ध कला का जन्म हुआ और भारतीय यूनानी कला एवं संस्कृतियों का जन्म हुआ।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Summary

शक लोग मध्य एशिया में आक्सस नदी की घाटी में बस गए। यूइ-ची सुदूर पूरब से आए और इन्होंने इन लोगों को उत्तर भारत की ओर धकेल दिया। ये शक धर्म परिवर्तन करके बौद्ध और हिंदू हो गए। यूइ-चियों का एक दल कुषाणों का था। उन्होंने शकों को हराकर दक्षिण की ओर भागने के लिए मज़बर कर दिया। कषाण काल से बौदध धर्मावलंबी दो संप्रदायों में बँट गए – महायान और हीनयान। इनके मध्य विवाद होने लगा। इन विवादों से अलग एक नाम नागार्जुन का है जो बौद्ध-शास्त्रों तथा भारतीय दर्शन का विद्वान था। उनके कारण महायान की विजय हुई। चीन में महायान तथा लंका और वर्मा में हीनयान संप्रदाय को मानने वाले लोग थे। चंद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। 320 ई. में गुप्तकालीन युग की शुरुआत हुई। इस काल में कई महान सम्राटों का उदय हुआ। इसमें कई महान शासक हुए। 150 वर्ष तक गुप्त वंश ने एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य पर शासन किया। गुप्त वंश के शासक युद्ध और शांति दोनों कलाओं में माहिर थे। भारत में हूणों का शासन आधी शताब्दी तक ही रहा। इनको पराजित करके कन्नौज के राजा उत्तर से लेकर मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इस प्रकार लगभग 150 वर्ष तक उसके उत्तराधिकारी अपने बचाव में लगे रहे। उनका साम्राज्य धीरे-धीरे सिकुड़ता गया। मध्य एशिया से नए उत्तराधिकारी लगातार भारत पर आक्रमण करते जा रहे थे। ये गोरे हूण के नाम से जाने जाते थे। यशोवर्मन के नेतृत्व में संगठित होकर नए आक्रमणकारियों ने ‘गोरे हूणों’ पर हमला कर दिया और उनके सरदार मिहिरकुल को बंदी बना लिया। गुप्त वंश के शासक बालादित्य ने उसे छोड़ दिया जो उसे भारी पड़ा। इसके बाद मिहिरकुल ने फिर कपटता से भारत पर आक्रमण कर दिया। हूणों का शासन लगभग 50 वर्ष तक रहा। इसके बाद हूणों को पराजित कर कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने उत्तर से लेकर मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। वह कट्टर धर्म को बढ़ावा दिया। उसी के काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हुआन त्सांग भारत आया था। हर्षवर्धन की मृत्यु 648 ई. में हुई। इस समय एशिया और अफ्रीका में उसी के काल में फैलने के लिए इस्लाम अपना पाँव पसार रहा था।

दक्षिण भारत
दक्षिण में मौर्य साम्राज्य के पतन होने के पश्चात बड़े राज्य हज़ारों साल तक फलते-फूलते रहे। दक्षिण भारत दस्तकारी और समुद्री व्यापार का केंद्र बना रहा। समुद्र के रास्ते यहाँ व्यापार होता था। यूनानियों ने यहाँ अपनी बस्तियाँ भी बनाई। रोमन सिक्के भी दक्षिण भारत में पाए गए। उत्तर भारत में विदेशी आक्रमण से तंग आकर कई शिल्पकार एवं दस्तकार लोग जैसे राजगीर, शिल्पी और कारीगर दक्षिण भारत में आकर बस गए। इसके परिणामस्वरूप दक्षिण भारत कलात्मक परंपरा का केंद्र बना।

शांतिपूर्ण विकास और युद्ध के तरीके
भारत में विदेशियों के बार-बार आक्रमण के कारण नए-नए साम्राज्यों की स्थापना होती रही। इसके बावजूद भी देश में शांतिपूर्ण और व्यवस्थित शासन का दौर भी बना रहा। मौर्य, कुषाण, गुप्त, दक्षिण में चालुक्य, राष्ट्रकूट और भी कई ऐसे राज्य थे जहाँ दो-तीन सौ वर्षों तक लगातार साम्राज्य स्थापित हुआ। बाहर से आने वाली जातियों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अपने आपको ढाल लिया। यहाँ यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण और व्यवस्थित जीवन के काल का दौर चले हैं। यह भ्रामक है कि अंग्रेजी राज ने पहली बार शांति और व्यवस्था कायम की। अंग्रेजों के समय में देश का पतन लगातार हो रहा था और सबसे कमजोर अर्थव्यवस्था के दौर से गुज़र रहा था। परिणामस्वरूप यहाँ अंग्रेज़ी शासन कायम हो सका।

प्रगति बनाम सुरक्षा
भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया उसका मूल आधार स्थिरता और सुरक्षा की भावना थी। इस दृष्टिकोण से यहाँ की सभ्यता पश्चिमी सभ्यताओं से अधिक सफल रहीं। वर्ण व्यवस्था और संयुक्त परिवारों को सामाजिक ढाँचे के लिए बनाए गए थे और इन व्यवस्थाओं ने समाज में काफ़ी योगदान भी दिया। इस व्यवस्था में व्यक्तिवाद को प्रश्रय नहीं मिला। उनकी सारी चिंता व्यक्ति के विकास को लेकर है। भारत का सामाजिक ढाँचा सामुदायिक था। पाबंदी के बावजूद पूरे समुदाय में बहुत लचीलापन था। सारे नियम को बदला जा सकता था। नए समुदाय भी अपने अलग रीति-रिवाजों, विश्वासों को बनाए रखकर, सामाजिक संगठन के अंग बने रहे। इसी लचीलेपन के कारण भारतीयों ने विदेशियों को आत्मसात किया।

शासन सत्ता बदलते रहे, राजा आते-जाते रहे, पर व्यवस्था नींव की तरह कायम रही। इस प्रकार प्रत्येक तत्व जो बाहर से आए उसे भारत ने अपना लिया। भारत को कुछ दिया और उससे बहुत कुछ लिया। इस तरह यहाँ समुदाय और व्यक्ति दोनों की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती थी। यहाँ आनेवाले हर विदेशी तत्व को अपने में समा लिया। जिसने अलग-थलग रहने का प्रयास किया वह नष्ट हो गया और उसने स्वयं को या भारत को ही नुकसान पहुँचाया।

भारत का प्राचीन रंग-मंच
भारतीय रंगमंच मुख्य रूप से विचारों और विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। इसकी उत्पत्ति ऋगवेद की ऋचाओं से हुई है और इसकी जानकारी भी हमें इसी से मिलती है। रंगमंच की कला पर रचित ‘नाट्यशास्त्र’ की ई. पूर्व तीसरी शताब्दी में रचना हुई थी। इतिहासकारों का मत है कि नियमित रूप से लिखे संस्कृत नाटक ई.पू. तीसरी शताब्दी तक प्रतिष्ठित हो चुके थे। उन्हीं में से एक नाटककार ‘भास’ था। भास द्वारा लिखे तेरह नाटकों का संग्रह मिला है। संस्कृत नाटकों में सबसे प्राचीन नाटक अश्वघोष के हैं। उन्होंने ‘बुद्धचरित’ नाम से बुद्ध की जीवनी लिखी। उनकी यह रचना भारत, चीन, तिब्बत में काफी लोकप्रिय हुई। संस्कृत साहित्य में कालिदास को सबसे बड़ा कवि और नाटककार माना जाता है। वह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल के नवरत्नों में से एक थे। ‘मेघदूत’ उनकी लंबी कविता है। उनकी रचनाओं में जीवन के प्रति प्रेम व प्राकृतिक सौंदर्य की गहरी झलक मिलती है। ‘शकुंतला’ कलिदास का प्रसिद्ध नाटक था जिसका बाद में कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। शूद्रक का नाटक ‘मृच्छकटिकम् यानी मिट्टी की गाड़ी एक प्रसिद्ध रचना है। विशाखदत्त का नाटक ‘मुद्राराक्षस’ था। राजा हर्ष ने तीन नाटकों की रचना की क्योंकि वे भी एक महान नाटककार थे। 19वीं शताब्दी में नाट्य शैली का लगभग पतन होने लगा। अब नाटकों का स्थान छोटी-छोटी रचनाओं ने ले लिया। अब नाटक अभिजात वर्ग तक ही सीमित रहा। इसके अतिरिक्त साहित्यिक रंगमंच के साथ-साथ लोकमंच भी विकसित होता रहा। इसी आधार पर भारतीय पुराकथाएँ, महाकाव्यों की गाथाएँ। अन्य छोटे-छोटे नाटकों का प्रदर्शन लोकमंच पर लगातार होता रहा।

संस्कृत भाषा की जीवंतता और स्थायित्व
प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा अपने आप में अत्यंत विकसित एवं पूर्ण रूप से समृद्ध है। यह सभी भारतीय भाषाओं का आधार एवं जननी है। यह भाषा उस व्याकरण से युक्त है जिसका निर्माण ढाई हज़ार वर्ष पूर्व पाणिनि ने किया था। आजतक इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं आया है। इस भाषा से कई भाषा की उत्पत्ति होती चली गई लेकिन संस्कृति आज भी अपने वास्तविक स्वरूप में यथावत है। इस भाषा का लगातार विस्तार होते चला गया। और अपने मूल रूप में आज भी जीवित है। सर विलियम जोंस के अनुसार प्राचीन होने के साथ अद्भुत बनावट वाली संस्कृत यूनानी एवं लातीनी के मुकाबले अधिक उत्कृष्ट है। लेकिन ये तीनों भाषाएँ मिलती-जुलती हैं। उनका मानना है कि इन भाषाओं की उत्पत्ति का स्रोत एक ही है।

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय उपनिवेश और संस्कृति
उपनिवेश का अर्थ है-दूसरे देशों में अपने देश के व्यापार व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए नए केंद्र। भारत ने अपने व्यापार एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार अन्य देशों में भी बाहर जाकर किया।

इसका प्रमाण हमें भारतीय प्राचीन पुस्तकें, यात्रियों द्वारा लिखे गए विवरण, चीन से प्राप्त ऐतिहासिक विवरण, पुराने शिला-लेख, ताम्र-पत्र जावा और बाली का समृद्ध साहित्य जिनमें भारतीय महाकाव्यों और पुराणकथाओं का अनुवाद है, यूनानी और लातीनी स्रोतों की सूचनाएँ व अंगकोर और बोरोबुदूर मंदिर के प्राचीन खंडहर इस बात की पुष्टि करते हैं। प्राचीन भारत का व्यापार व संस्कृति बाहर के देशो में फैली। इनके काफ़ी उपनिवेश थे।

ईसा की पहली शताब्दी से लगभग 900 ई. तक उपनिवेशीकरण के चार प्रमुख केंद्र दिखाई पड़ते हैं। इन साहसिक अभियानों की सबसे विशिष्ट बात यह थी कि इसका संचालन मुख्यतः राज्यों द्वारा किया जाता था। इन उपनिवेशों का नामकरण प्राचीन भारतीय नामों के आधार पर किया गया जिसे अब लोग कंबोडिया कहते हैं। जो एक-एक विशेष प्रकार का अन्न है जिसके आधार पर जौ का टापू आज ‘जावा’ कहलाता है। इन उपनिवेशों के नाम खनिज, धातु किसी उद्योग या खेती की पैदावार के आधार पर होता था। इससे हमारा ध्यान अपने व्यापार की ओर जाता था। इस प्रकार उपनिवेश व्यापार बढ़ाने के सफल केंद्र रहे क्योंकि व्यापारी वहाँ जाकर अपने व्यापार को बढ़ावा देते थे। संस्कृत, यूनानी और अरबी में प्राप्त साहित्य से इस बात का पता चलता है कि भारत और सुदूर पूरब के देशों में बड़े पैमाने पर समुद्री व्यापार होता था। प्राचीन काल में भारत में जहाज़ उद्योग भी लगातार बढ़ा। हमें भारतीय उपनिवेश के साथ-साथ भारतीय बंदरगाहों का भी वर्णन मिलता है। दक्षिण भारतीय सिक्कों व अजंता के भित्ति चित्रों पर भी जहाज़ों के चित्र पाए गए हैं।

उपनिवेशों में व्यापारियों के साथ-साथ धर्म प्रचारक भी पहुंचे। यह समय अशोक के शासनकाल की है। बौद्ध धर्म का बढ़-चढ़कर प्रसार इसी कारण हुआ।

उपनिवेशों का मुख्य-स्थान एशिया के देशों बर्मा एवं महाद्वीप देशों पर चीन का प्रभाव अधिक तथा टापुओं और मलय प्रायद्वीप पर भारत की छाप अधिक दिखाई देती है।

भारतीय उपनिवेशों का इतिहास ईशा की पहली-दूसरी शताब्दी से प्रारंभ होकर पंद्रहवीं शताब्दी तक यानी तेइह सौ साल का रहा है।

विदेशों पर भारतीय कला का प्रभाव
भारतीय सभ्यता ने विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में अपनी जड़ें जमाईं। चम्पा, अंगकोर, श्री विजय आदि स्थानों पर संस्कृत के बड़े-बड़े अध्ययन केंद्र थे। वहाँ के शासकों के भारतीय नाम और संस्कृत के नाम हैं। इंडोनेशिया, बाली आदि देशों ने अभी तक भारतीय संस्कृति को कायम रखा है। कंबोडिया में वर्णमाला दक्षिण भारत से ली गई है और बहुत से संस्कृत शब्दों को थोड़े हेर-फेर से लिया गया है। जावा में बुद्ध के जीवन की कथा पत्थरों पर अंकित है। वहाँ दीवानी और फौजदारी के कानून भारत के प्राचीन स्मृतिकार मनु के कानूनों के आधार पर बनाए गए। इनमें बौद्ध धर्म के प्रभाव से कुछ परिवर्तन कर इन्हें आधुनिक कानून व्यवस्थाओं से भी लिया गया है।

भारतीय कला का भारतीय दर्शन और धर्म से बहुत गहरा संबंध है। अंगकोर और बोरोबुदुर की इमारतें और मंदिर अद्भुत कला के अनुसार तैयार किए गए हैं। जावा के बोरोबुदुर में बुद्ध का जीवन कई स्थानों पर साफ़ दिखाई पड़ता है। अंगकोर, श्रीविजय, और इनके आस-पास के स्थानों पर पूर्णतया भारतीय कला की छाप है। यहाँ के स्थानों पर दीवारों पर की गई नक्काशी में विष्ण, राम और कृष्ण की कथाएँ अंकित हैं। कंबोडिया के राजा जयवर्मन ने अंगकोर को निखारा था। यह भी विशुद्ध रूप से भारतीय राजा का नाम था। भारतीय संगीत जो यूरोपीय संगीत से मिला है, का तरीका बहुत विकसित था। मथुरा के संग्रहालय में बोधिसत्व की एक विशाल शक्तिशाली और प्रभावशाली पाषाण प्रतिमा है। भारतीय कला अपने शुरुआत काल में प्राकृतिवाद से भरी है। भारतीय कला पर चीनी प्रभाव दिखाई देता है।

गुप्तकाल भारत का स्वर्ण युग कहलाता है। इस काल में स्थापत्य कला में काफ़ी विस्तार हुआ। अजंता, एलोरा एलिफेंटा एवं बाग और बादामी की गुफाएँ इसी काल की हैं। अजंता की गुफाओं का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं ने की थी। इसमें सुंदर स्त्रियाँ, राजकुमारियाँ, गायिकाएँ, नर्तकियाँ बैठी हैं।

भारतीय कला सातवीं-आठवीं शताब्दी में ठोस चट्टान को काटकर एलोरा की विशाल गुफाएँ तैयार की गईं। एलिफेंटा की गुफाओं में नटराज की मूर्ति खंडित के रूप में है जिसमें शिव नृत्य मुद्रा में हैं। ब्रिटिश संग्रहालय में विश्व का सृजन और नाश करते हुए शिव की एक और मूर्ति है।

भारत का विदेशी व्यापार
ईसवी सन् के पहले एक हजार वर्षों में भारतीय व्यापार की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी। भारत में प्राचीन काल से ही कपड़े का उद्योग काफ़ी चरम सीमा पर था।

रेशमी कपड़ा भी बनता था। कपड़े रंगने की कला में उल्लेखनीय प्रगति हुई। भारत में रसायन शास्त्र का विकास अन्य देशों की तुलना में काफ़ी अधिक हुआ था। भारतीय फौलाद और लोहे की दूसरे देशों में बहुत कद्र की जाती थी। इसका प्रयोग युद्ध के कामों जैसे हथियार आदि बनाने के लिए किया जाता था। इसके अतिरिक्त भारतीयों को धातुओं की भी काफ़ी जानकारी थी। इन धातुओं के मिश्रण से औषिधयाँ तैयार की जाती थीं।

इसके अलावा शरीर रचना व शरीर विज्ञान के बारे में भी भारतीय पूर्णतया परिचित थे। खगोलशास्त्र, जो विज्ञान में प्राचीनतम है, विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम नियमित थे। एक निश्चित पंचांग भी तैयार किया गया था। जो अब भी प्रचलित है। प्राचीन समय से ही जहाज़ बनाने का उद्योग चरम ऊँचाईयों पर था। यह देश कई शताब्दियों तक विदेशी मंडियों को अपने वश में करके रखा हुआ था।

प्राचीनतम भारत में गणितशास्त्र
यह माना जाता है कि आधुनिक अंक गणित और बीजगणित की शुरुआत भारत से ही हुई। भारत में ज्यामिति, अंकगणित और बीजगणित की शुरुआत प्राचीन काल में हुई। बीजगणित पर सबसे प्राचीन ग्रंथ आर्यभट्ट का है, जिसका जन्म 427 ई. में हुआ। भारतीय गणितशास्त्र में अगला नाम भास्कर (522 ई.) का है। ब्रह्मपुत्र (628 ई.) प्रसिद्ध खगोलशास्त्री था जिसने शून्य पर लागू होने वाले नियम निश्चय किए। अंक गणित की प्रसिद्ध पुस्तक है- ‘लीलावती’। यह लीलावती भास्कर की पुत्री थी। पुस्तक की शैली सरल और स्पष्ट है। इस पुस्तक का प्रयोग संस्कृत विद्यालयों में किया जाता है। आठवीं शताब्दी में खलीफ़ा अल्मंसूर के राज्यकाल (753-774) ई. में कई भारतीय विद्वान बगदाद गए और अपने साथ खगोलशास्त्र और गणित की पुस्तकें ले गए। अरब देशों से यह नया गणित संभवतः स्पेन के मूर विश्वविद्यालयों से होते हुए यूरोपीय देशों में कदम रखा। यूरोप में इन नए अंकों का विरोध हुआ इनको अपनाने में कई सौ वर्ष लग गए।

विकास और ह्रास
ईसवी सन् के पहले हज़ार वर्षों में भारत ने आक्रमणकारी तत्वों और आंतरिक कलह के बावजूद भी सभी दिशाओं में अपना प्रसार करते हुए ईरान चीन यूनानी जगत मध्य एशिया में शक्ति बढ़ाया। भारतीय उपनिवेशों की स्थापना कर सभी क्षेत्रों में विकास किया। गुप्तकाल भारत का स्वर्णकाल रहा। आने वाले समय में वह कमज़ोर पड़कर खत्म हो जाता है। नवीं शताब्दी में मिहिर भोज एक संयुक्त राज्य कायम करता है। 11वीं शताब्दी में एक दूसरा भोज सामने आता है। भीतरी कमज़ोरी ने भारत को जकड़ रखा था। भारत छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था, पर जीवन यहाँ समृद्ध था।

उत्तर भारत आक्रमणकारियों से अधिक प्रभावित रहा क्योंकि सभी आक्रमणकारी इसी दिशा से आते रहे। दक्षिण भारत में भी विदेशियों का आगमन व्यापक पैमाने पर होता रहा।

लेकिन इन जातियों का प्रभाव कम रहा। भारत समय के साथ पतन के कारण क्रमशः अपनी प्रतिभा और जीवन शक्ति को खोता जा रहा था। यह प्रक्रिया धीमी थी और सदियों तक चलती रही। इतिहासकार डॉ. राधाकृष्ण के अनुसार भारतीय दर्शन ने अपनी शक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ खो दी। प्रत्येक सभ्यता के जीवन में पतन और विनाश के दौर आते रहते हैं। लेकिन भारत ने उनसे बचकर नए सिरे से अपना कायाकल्प कर लिया। भारत के सामाजिक व्यवस्था ने भारतीय सभ्यता को मज़बूती दी। चारों तरफ पतन हुआ। विचारों में, दर्शन में, राजनीति में, युद्ध पद्धति में और बाहरी दुनिया के बारे में ज्ञान और संपर्क में आए।

भारत की अखंडता के स्थान पर सामंतवाद और क्षेत्रीयवाद की भावनाएँ बढ़ने लगीं। यही समाज आगे चलकर जाति व्यवस्था में अत्यधिक विश्वास करने लगा। ऊँची जाति के लोग अपने से नीचे जाति के लोगों को नीची नज़र से देखा करते थे। नीची जाति के लोगों को शिक्षा तथा विकास से वंचित रखा जाता था। इस सामाजिक ढाँचे ने एक और अद्भुत दृढ़ता तो दी परंतु इससे समाज के एक बड़े तबके के लोग समाज की सीढ़ी में नीचे दर्जे में रहने को विवश हो गए।

इन सब आधारों पर हम कह सकते हैं कि देश के लोगों में, विचारों में, दर्शन में, राजनीति में तथा युद्ध के तरीके में चारों तरफ से पतन हुआ। इन सबके बावजूद भारत में जीवन शक्ति और अद्भुत दृढ़ता, लचीलापन और स्वयं को ढालने की क्षमता शेष थी। भारत की जीवन शक्ति और अद्भुत दृढ़ता अभी भी जीवित थी। इसके अलावे भारतीय संस्कृति का लचीलापन और अपने को ढालने की क्षमता। इससे विचारधाराओं का लाभ उठा सका और कुछ दिशाओं में प्रगति कर सका। यह विकास अतीत के अवशेषों से जकड़ी रही और बाधित होती रही।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 46.
अवसान – समाप्ति, चेतना – विचारधारा, सरहदी – सीमा, लाट – स्तंभ, जज्ब – ग्रहण।

पृष्ठ संख्या 47.
कारनामों – कार्यों, सार्वजनिक – सभी के लिए समान रूप से, ज़िक्र – बताना, यूइ-चियों – खाना बदोश लोग, जरथुष्ट्र – पारसी धर्म, सशक्त – मज़बूत, गोबी रेगिस्तान – एशिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान जो चीन और मंगोलिया में फैला हुआ है, तोहफ़े – उपहार, विशिष्ट – विशेष।

पृष्ठ संख्या 48.
भारतीयकरण – भारतीय रिवाजों, परंपराओं आदि को स्वीकार कर लेना, संरक्षक – रक्षा करने वाले, प्रबलताकतवर, निर्मित – बना हुआ।

पृष्ठ संख्या 49.
राष्ट्रवादी – राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखने वाला, संकीर्णता – सोच का दायरा अत्यंत छोटा रखना, पुनर्जागरणबार – बार उत्साहित करते हुए बनाए रखने का प्रयास, उग्रता – क्रोधपूर्ण सोच, तेजस्विता – ओज, अख्तियार करना – अपनाना, समृद्ध – धनी, संपन्न।

पृष्ठ संख्या 50.
मेहरबान – कृपा करने वाला, दमन – कुचलना।

पृष्ठ संख्या 51.
परोक्ष – प्रत्यक्ष रूप में, राजगीर – भवन निर्माण करने वाले कारीगर, शिल्पी – डिजाइन एवं चित्रकारी करने वाले, आक्रमणकारी – हमला करने वाले, ब्यौरा – विवरण, लेखा जोखा, हस्तक्षेप – दखलअंदाजी, भ्रामक – भ्रम पैदा करने वाला, अवनति – गिरावट, पराकाष्ठा – उच्चतम बिंदु पर।

पृष्ठ संख्या 52.
उदय – प्रकट होना, व्यक्तिवाद – व्यक्ति को अधिक महत्त्व देना, सामुदायिक – समुदाय के नियमों के अधीन, आत्मसात – ग्रहण करना, समन्वय – तालमेल, सतही – ऊपरी।

पृष्ठ संख्या 53.
निरंकुश – जिस पर नियंत्रण न हो, वैधानिक – कानूनी, उद्गम – उत्पत्ति, पैदाइश, आम – साधारण, संग्रहएकत्रित किया हुआ।

पृष्ठ संख्या 54.
पांडुलिपी – हाथ से लिखित पुस्तक, आवेग – क्रोध, प्रेयसी – प्रेमिका, प्रियतमा, तीव्र – तेज़।

पृष्ठ संख्या 55.
विशुद्ध – पूरी तरह से शुद्ध, पौराणिक – पुराणों से संबंधित, प्रासंगिक – महत्त्व रखने वाला, ह्रास – गिरावट, अभिजात – उच्च या अमीर लोग, सरोकार – संबंध।

पृष्ठ संख्या 56.
समृद्ध – धनी, संपन्न, अलंकृत – अलंकारों से सजी – धजी, पतन – अवनति, गिरावट, उत्कृष्ट – उच्चकोटि का, परिष्कृत – शुद्ध, जननी – माँ, अभिव्यक्ति – प्रस्तुत करना, सार्थक – जिसका कुछ अर्थ या मतलब हो, अतिक्रमण – उल्लंघन करना, बढ़ाना।

पृष्ठ संख्या 57.
वृहत्तर – बड़ा फैला हुआ, अंतर्विरोध – अप्रत्यक्ष रूप से विरोध, वृत्तांत – वर्णन, शिलालेख – पत्थरों पर लिखे लेख, ताम्र पत्र – ताबे के पत्रों पर लिखा हुआ, समृद्ध – संपन्न, भावानुवाद – भाव का स्पष्टीकरण, विशिष्ट – विशेष।

पृष्ठ संख्या 58.
ब्यौरेवार – पूर्ण रूप से, बंदरगाह – जहाँ सामुद्री जहाज़ खड़े किए जाते हैं, भित्ति – दीवारों पर खुदे, तकरीबन – लगभग, राजकीय – राजकार्य से संबंधित, पदवियाँ – उपाधियाँ।

पृष्ठ संख्या 59.
स्मृतिकार – याद किए जाने वाले, मनु – सृष्टिकर्ता, संहिताबद्ध – सही क्रमबद्ध, वास्तुकला – भवन निर्माण कला, उत्कीर्ण – स्पष्ट रूप से दर्शाना, नक्काशी – हाथ से नमूने, वृद्धाकार – बूढ़े रूप में, देवतुल्य – ईश्वर के समान मोहक अपनी ओर से आकर्षित करने वाली, ठेठ – शुद्ध पक्का।

पृष्ठ संख्या 60.
हेर-फेर – अदल-बदल, फौजदारी – मार पीट संबंधी, सहराना – प्रशंसा करना, निर्माता – बनाने वाला आत्मनिष्ठ स्वयं को खुश करने वाली, तादा य – संबंध मेल-जोल, पूर्वाग्रह – पहले से बनी धारणा, पाषण प्रतिमा – पत्थर की मूर्ति।

पृष्ठ संख्या 61.
प्रकृतिवाद – प्रकृति का सुंदर चित्रण, बोधिसत्व – महात्मा बुद्ध का एक नाम।

पृष्ठ संख्या 62.
खंडित – टूटी हुई, भीमाकार – बड़े आकारवाली, सृजन – निर्माण, आह्वान – पुकारना, प्रतिबिंब – परछाई, प्रशांति – शांतिपूर्ण, परे – दूर, परम – अत्यधिक।

पृष्ठ संख्या 63.
नियंत्रण – काबू, आयात – बाहर से मँगाना, फ़ौलाद – लोहे का एक रूप।

पृष्ठ संख्या 64.
भस्म – राख, पंचांग – ऐसी पुस्तक जिसमें महीनों और तिथियों का वर्णन हो, खगोलशास्त्र – ब्रह्मांड का अध्ययन, मंडियाँ – बाज़ार।

पृष्ठ संख्या 65.
कपाट – दरवाजे, उल्लेखनीय – महत्त्वपूर्ण, प्रमाण – सबूत।

पृष्ठ संख्या 66.
व्यापक – फैला हुआ, विस्तृत।

पृष्ठ संख्या 67.
प्रशांति – दूसरों को संतोष प्रदान करने वाला, आत्मविश्वास – स्वयं पर विश्वास, आत्माभिमान – स्वयं पर गर्व, दीप्ति – चमक, उमंग – साहस कुछ करने की इच्छा, ह्रास – गिरावट, पतन की ओर, बर्बर – क्रूरता, पराक्रमी – वीर, प्रतिष्ठा – इज़्ज़त, वैयाकरण – व्याकरण का ज्ञाता, भेषज – खाने वाली औषधि।

पृष्ठ संख्या 68.
सक्रिय – निरंतर कार्यरत।

पृष्ठ संख्या 69.
उत्कर्ष – उभरकर आना, तेजस्विता – ज्ञान, स्तंभित – ठहराव, मंद – धीमी, विकृत – बिगड़ा हुआ, परास्त – हराकर, प्रतिभा – योग्यता, गतिरोध – रुकावट।

पृष्ठ संख्या 70.
विघटन – गिरावट की ओर, कायाकल्प – स्वरूप बदलना, अंतस्तल – अंदर की भावना, ध्वस्त – समाप्त होते, कट्टरपन – पक्का, गैरमिलनसारी – किसी से न मिलना, रचनात्मक – कुछ कर दिखाना, अधीन – अधिकार में।

पृष्ठ संख्या 71.
गुट – दल, बृहत्तर – बड़ा स्वरूप, पुश्तैनी – पुरखों के, प्रवृत्ति – इच्छा/चाह, वंचित – प्राप्त न कर पाना, पद्धति – तरीका, अखंडता – एकरूपता, संकुचित – छोटी, दृढ़ता – पक्की, बाधित – बंधी।