Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Questions and Answers Summary अंतिम दौर-एक

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 6 Question Answers Summary अंतिम दौर-एक

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के समय में भारत में कौन से दो मुख्य विभाग थे?
(i) धर्म व राजनीति
(ii) माल गुजारी व पुलिस
(iii) भारतीय व अंग्रेजों के शासकीय विभाग
(iv) गाँवों व शहरों के सत्ता के अलग-अलग विभाग
उत्तर:
(ii) माल गुजारी व पुलिस

प्रश्न 2.
प्रत्येक जिले में प्रमुख पद क्या घोषित हुआ?
(i) सरपंच
(ii) कलेक्टर
(iii) राजस्व पदाधिकारी
(iv) पुलिस अधिकारी
उत्तर:
(ii) कलेक्टर

प्रश्न 3.
इस समय बंगाल कितने वर्षों से अंग्रेज़ों के चुंगल में था?
(i) 40 वर्ष
(ii) 50 वर्ष
(ii) 60 वर्ष
(iv) 25 वर्ष
उत्तर:
(ii) 50 वर्ष

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय ने किस प्रथा पर रोक लगाई ?
(i) बाल विवाह
(ii) विधवा विवाह
(iii) सती प्रथा
(iv) परदा प्रथा
उत्तर:
(iii) सती प्रथा

प्रश्न 5.
भारतीय द्वारा संपादित पहला समाचार-पत्र कब प्रकाशित हुआ?
(i) 1800 ई. में
(ii) 1818 ई. में
(iii) 1856 ई. में
(iv) 1885 ई. में
उत्तर:
(ii) 1818 ई. में

प्रश्न 6.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत कब हुई थी?
(i) 1805 ई. में
(ii) 1826 ई. में
(iii) 1850 ई. में
(iv) 1857 ई. में
उत्तर:
(iv) 1857 ई. में

प्रश्न 7.
‘राजा राममोहन राय’ ने किस समाज की स्थापना की थी?
(i) वृद्ध समाज
(ii) ब्रह्म समाज
(iii) स्त्री समाज
(iv) बंगाल समाज
उत्तर:
(ii) ब्रह्म समाज

प्रश्न 8.
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?
(i) स्वामी विवेकानंद
(ii) रवींद्र नाथ टैगोर
(iii) स्वामी दयानंद सरस्वती
(iv) राजा राम मोहन राय
उत्तर:
(i) स्वामी विवेकानंद

प्रश्न 9.
‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना किसने की थी?
(i) अबुल कलाम आजाद
(ii) सर सैयद खाँ
(iii) अलीगढ़ कॉलेज के मुसलमान बुद्धिजीवी
(iv) आम मुस्लिम वर्ग
उत्तर:
(iii) अलीगढ़ कॉलेज के मुसलमान बुद्धिजीवी

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के बाद भारत में कैसी व्यवस्था से बँध गया?
उत्तर:
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के बाद भारत एक ऐसी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के साथ जुड़ गया जिसका संचालन भारत देश बाहर इंग्लैंड से होने लगा।

प्रश्न 2.
अंग्रेज़ों का लक्ष्य क्या था?
उत्तर:
अंग्रेजों का लक्ष्य था – लगान के रूप में भारतीयों से अधिक मात्रा में टैक्स वसूलना और मुनाफ़ा कमाना।

प्रश्न 3.
कैपिटेशन चार्ज क्या था?
उत्तर:
इंग्लैंड में ब्रिटिश सेना के एक हिस्से का प्रशिक्षण खर्च भारत को उठाना पड़ता था। इसे कैपिटेशन चार्ज कहा जाता था।

प्रश्न 4.
शिक्षा का विरोध करने वाले अंग्रेजों को भारत में शिक्षित क्यों करना पड़ा?
उत्तर:
अंग्रेज़ शिक्षा के प्रचार को नापसंद करते थे। फिर भी भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना उनकी मज़बूरी रही। वे भारत में पाश्चात्य संस्कृति को फैलाना चाहते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने कार्यों के लिए क्लर्क भी तैयार करना था।

प्रश्न 5.
सती प्रथा क्या था? इसे रोकने में राजा राममोहन राय ने क्या किया?
उत्तर:
सती प्रथा एक पुराने समय की कुरीति थी। इस प्रथा में प्रति की मृत्यु होने पर स्त्री (पत्नी) को भी जिंदा जला दिया जाता था। राजा राममोहन राय ने इस प्रथा का अंत अंग्रेजों की सहायता लेकर कानून बनाकर किया। उन्हीं के प्रयासों के कारण सरकार ने सती प्रथा पर रोक लगाई।

प्रश्न 6.
1857 का विद्रोह असफल क्यों रहा?
उत्तर:
1857 का विद्रोह असफल होने का प्रमुख कारण यह था कि उसके विद्रोह के लिए जो तिथि निश्चित की गई थी उसका खुलासा समय से पहले हो गया। इससे अंग्रेज़ सतर्क हो गए, इसके अलावे देश के ज़मीनदारों, सामंती सरदारों ने इसमें भाग नहीं लिया। इससे भी यह विद्रोह कमज़ोर पड़ गया।

प्रश्न 7.
तकनीकी परिवर्तन और शिक्षा के प्रसार का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अंग्रेजों के आने से तकनीकी और शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। समाज में सोई हुई चेतना जाग उठी और नई चेतना का विकास हुआ। अंग्रेजी पढ़ने वालों का रुझान पश्चिमी वस्तुओं और पश्चिमी सभ्यता की गतिविधियों पर गया तथा लोगों में अपने देश की आजादी के प्रति लगाव पैदा हो गया।

प्रश्न 8.
सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उत्तर:
सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना अपने इस उद्देश्य से की कि भारतीय मुसलमान शिक्षा ग्रहण करके अंग्रेजी सरकार द्वारा योग्य नौकरियाँ प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 9.
तिलक और गोखले कैसे आंदोलनकारी थे?
उत्तर:
तिलक और गोखले आक्रामक व अवज्ञाकारी विचाराधारा वाले थे। गरम दल के प्रभावी आंदोलनकारी नेता थे। वे अपना मांग अनुरोध से नहीं बल्कि छीन कर लेना चाहते थे। भारतीय जनमानस का बहुत बड़ा भाग उनके समर्थन में था। सरकार भी उनकी गतिविधियों से डरती थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के साथ घटने वाली नई घटना क्या थी?
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना से भारतीयों के लिए यह नई घटना थी कि पहली बार वे ऐसी शासन सत्ता में आए जिसका मूल भारतीय न था। इससे पूर्व कई बाहरी जातियों ने भारत पर आक्रमण, कर शासन सत्ता सँभाली थी। अधिकांश ने अपना भारतीयकरण किया जबकि अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नहीं अपनाया। अब तो भारत ऐसे शासकीय संचालन में बँध गया जिसकी बागडोर भारतीय धरती पर न होकर लंदन के धरती पर था।

प्रश्न 2.
18वीं शताब्दी में बंगाल में किस व्यक्तित्व का उदय हुआ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में जिस सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व का उदय हुआ, वे थे राजा राममोहन राय। वे एक नए सोच के व्यक्ति थे। उन्हें भारतीय विचारधारा और दर्शन की गहरी जानकारी थी। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने भारतीय समाज की पुरानी पद्धति से बाहर निकालना चाहते थे। वे एक समाज सुधारक थे। उन्हीं के प्रयास के कारण सती प्रथा पर रोक लगी।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी के प्रमुख सुधारक का नाम लिखिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, टैगोर, महात्मा गांधी, ऐनी बेसेंट, सर सैय्यद अहमद खाँ, अबुल कलाम आजाद, गोपाल कृष्ण गोखले एवं बाल गंगाधर तिलक मुख्य सुधारक थे। ये समाज सुधारक ब्रिटिश शासन के प्रभाव के चंगुल से बाहर निकाल कर लोगों की विचारधारा को बदलना चाहा। उनमें राष्ट्रीयता की भावना भर, धार्मिक कांडों से उन्हें निकालना चाहते थे।

प्रश्न 4.
दयानंद सरस्वती कौन थे? उन्होंने समाज सुधार के क्षेत्र में क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर:
दयानंद सरस्वती 19वीं शताब्दी के जाने-माने समाज-सुधारक थे। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ‘वेदों की ओर लौटो’ यानी उनका मानना था कि जीवन में ही जीवन की सत्यता है। इसका प्रसार पंजाब तथा संयुक्त प्रदेश के हिंदू वर्ग में हुआ। उन्होंने लड़के-लड़कियों को बराबरी की शिक्षा देने का प्रयास किया। स्त्रियों की स्थिति में सुधार और दलित जातियों का स्तर ऊँचा उठाने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानंद की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परम के शिष्य थे। वे बांग्ला और अंग्रेज़ी के बड़े ज्ञाता थे। 1893 ई. में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने वेदांत के अद्वैत दर्शन के एकेश्वर बाद का उपदेश दिया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। वे उदास और पतित समाज के लिए संजीवनी बनकर आए।

प्रश्न 6.
तिलक और गोखले के बारे में संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक योग्य और तेजस्वी नेता के रूप में उभरे महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक मराठा के महापुरुष के रूप में थे। गोपाल कृष्ण गोखले कांग्रेस के बुजुर्ग नेता थे, वे दादा भाई नौरोजी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 6 Summary

भारत राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पहली बार एक अन्य देश का पुछल्ला बनता है-
अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के बाद भारत के लिए एकदम से नई घटना थी। नया पूँजीवाद सारे विश्व में जो बाज़ार तैयार कर रहा था उससे हर हालत में भारत के आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़ा। भारत अब अंग्रेज़ी आर्थिक ढाँचे का गुलाम बन गया और किसान भी उनके गुलाम बनकर रह गए। अंग्रेजों के आने से बड़े ज़मीनदार पैदा हुए। उनका मुख्य उद्देश्य लगान अधिक से अधिक मात्रा में वसूल करना था।

इस तरह अंग्रेजों ने ऐसे वर्ग को जन्म दिया जिनके स्वार्थ अंग्रेजों से मिलते-जुलते थे। यह वर्ग ये राजा, जमीनदार सरकार के विभिन्न विभागों के पटवारी, गाँवों के प्रधान व उच्च अधिकारी थे। ये वर्ग भी आम जनता का अंग्रेज़ों की तरह खून चूसने वाले थे। अंग्रेज़ों ने प्रत्येक जिले में कलेक्टर की भी नियुक्ति किए, ये वर्ग आम जनता से मुँह-माँगी टैक्स वसूलकर अंग्रेज़ों का खजाना भरते थे।

इस प्रकार भारत की आम जनता को ब्रिटेन के अनेक खर्च उठाने पड़ते थे। उनमें सेना पर किए खर्च जिसे ‘कैपिटेशन चार्ज’ कहा जाता था, देना पड़ता था। इसके अतिरिक्त अन्य खर्चों का बोझ भी भारत के कंधों पर था।

भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्विरोध राममोहन राय – बंगाल में अंग्रेज़ी शिक्षा और समाचार पत्र
बंगाल में अंग्रेज़ी शिक्षा के कई समाज सुधारक पक्ष थे। इसके अलावे शिक्षाविद् अंग्रेज़ प्राच्य विद्या विशारद पत्रकार मिशनरी और कुछ अन्य लोगों ने पाश्चात्य संस्कृति को भारत में लाने के लिए काफ़ी प्रयास किया। यद्यपि अंग्रेज़ भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार नापसंद करते थे क्योंकि वे चाहते थे कि शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम से क्लर्क तैयार किया जाए ताकि कम वेतन पर उनसे काम कराया जा सके। शिक्षा के माध्यम से शिक्षित लोगों में नई चेतना जाग उठी। वे गुलामी से मुक्त होने के लिए तड़पने लगे लेकिन नई तकनीकी, रेलगाड़ी, छापाखाना, दूसरी मशीनें ये सब ऐसी बातें थीं जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती थी। ऐसे ही वक्त में 18 वीं शताब्दी में एक सामाजिक सुधारक एवं अत्यंत शक्तिशाली व्यक्तित्व का उदय हुआ। इसका नाम था-राजा राम मोहन राय। वह एक नई सोच का व्यक्ति था। भारतीय विचारधारा और दर्शन की उन्हें काफ़ी ज्ञान था। उन्हें अनेक भाषाओं का भी ज्ञान था। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के गवर्नर जनरल को गणित, भौतिकी, विज्ञान, रसायन, शास्त्र, जीव-विज्ञान और अन्य उपयोगी विज्ञानों की शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया और अंग्रेज़ी को लागू करने के लिए भी लिखा।

राजा राम मोहन राय ईसाई व मुस्लिम दोनों धर्मों के संपर्क में रहे और इससे वे प्रभावित भी रहे। वे भारतीय धार्मिक कुरीतियों व कुप्रथाओं से भारत को मुक्त करवाना चाहते थे। इसके फलस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।

वे भारतीय पत्रकारिता के प्रवर्तक भी थे। उनका कहना था कि समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ मनुष्य के विचारों को जागरूक करने का माध्यम हैं। अतः उनके नेतृत्व में 1818 में पहली बार एक अंग्रेज़ी का समाचार पत्र निकला जिसका संपादन भारतीयों ने किया था। इसके अतिरिक्त बंगाली में एक साप्ताहिक व एक मासिक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। धीरे-धीरे देश में, कलकत्ता, मद्रास और मुंबई में तेजी से और भी समाचार पत्र निकलने लगे।

उनकी सोच थी कि भारत में पूर्ण जागरण के बिना परिवर्तन लाना असंभव है। बहुत से लोगों ने उनका समर्थन किया जिनमें रवींद्र नाथ का परिवार उनका समर्थक था। वे दिल्ली सम्राट की ओर से इंग्लैंड गए। दुर्भाग्य से उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआती वर्षों में ब्रिस्टल में उनकी मृत्यु हो गई।

सन् 1857 की महान क्रांति – जातीयतावाद
भारत के उत्तरी राज्यों को छोड़कर लगभग सारा भारत अब ब्रिटिश सरकार की सहानुभूति चाहता था। बंगाल ने ब्रिटिश सरकार से संधि किया था। किसान आर्थिक तंगी से परेशान थे। उत्तर भारत में प्रजा में असंतोष और अंग्रेज़ी भावना फैल रही थी। इसी बीच मई 1857, में मेरठ की भारतीय सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ़ बगावत शुरू कर दी। विद्रोह की शुरुआत गुप्त तरीके से हुई थी लेकिन इस योजना की शुरुआत समय से पहले हो जाने के कारण योजना को बिगाड़ दिया। अब यह केवल सैनिक विद्रोह होकर रह गया। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के रूप में देखा जाने लगा। हिंदू और मुसलमान सभी भारतीयों ने इस विद्रोह में बढ़चढ़कर भाग लिया। यह सैनिक विद्रोह के अलावा जन आंदोलन का रूप भी ले लिया। अंग्रेज़ों ने इसका दमन भारतीयों की सहायता से किया। इस आंदोलन में तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को हिलाकर कर रख दिया। ‘ब्रिटिश पार्लियामेंट’ ने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ से भारत को अपने हाथ में ले लिया।

हिंदुओं और मुसलमानों में सुधारवादी आंदोलन
इस समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कई सामाजिक कुरीतियाँ फैली हुई थीं। इस समय सामाजिक सुधारकों में जिसमें राजा राम मोहन राय और दयानंद सरस्वती हुए। इन्होंने हिंदू धर्म में कुछ सुधारवादी आंदोलन चलाया। राजा राम मोहन राय ने हिंदू ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की। 19वीं शताब्दी में स्वामी दयानंद सरस्वती ने महत्त्वपूर्ण सुधार आंदोलन की शुरुआत की। यह आर्य सामाजियों का आंदोलन था। इसका नारा था- ‘वेदों की ओर चलो’ आर्य समाज में वेदों की एक विशेष ढंग से व्याख्या की गई। इसका प्रसार मुख्य रूप से पंजाब और संयुक्त प्रदेश के हिंदू वर्ग में हुआ। इस सुधारवादी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था लड़के-लड़कियों में समान रूप से शिक्षा के प्रसार में, स्त्रियों की स्थिति का सुधार करने में और दलित जातियों के स्तर को ऊँचा उठाने में विशेष रूप में काम किया। स्वामी दयानंद के समय में बंगाल में श्री रामकृष्ण परम हंस का व्यक्तित्व सामने आया। उन्होंने हिंदूधर्म और दर्शन के विविध पक्षों को आपस जोड़कर जनता के सामने रखा। वे संप्रदायिकता के विरोधी थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी धर्म सत्य की ओर जाते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने गुरु- भाइयों की सहायता से रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। उन्होंने हिंदू धर्म और दर्शन के विविध पक्षों को आपस में जोड़कर जनता के सामने प्रस्तुत किया।

1893 ई. में शिकागो में अंतर्राष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में भाग लिया। विवेकानंद ने भारत के दक्षिणी छोर में कन्याकुमारी से हिमालय तक अपने सिद्धांतों को फैलाया। 1902 ई. में 39 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। विवेकानंद के समकालीन रवींद्रनाथ ठाकुर थे। टैगोर परिवार ने बंगाल के सुधारवादी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने जलियाँवाला कांड के विरोध में अपनी ‘सर’ की उपाधि लौटा दी। शिक्षा के क्षेत्र में ‘शांति निकेतन’ उनकी प्रमुख देन थी। वे रूसी क्रांति के प्रशंसक थे विशेष उसमें शिक्षा के प्रसार, संस्कृति, स्वास्थ्य और समानता की चेतना के। उनका मानना था कि यही तत्व व्यक्ति के उसके उददेश्य की पूर्ति में सहायक होता है। टैगोर और गांधी दोनों मानवतावादी थे। इन्होंने लोगों को संकीर्ण विचारधाराओं से बाहर निकालना चाहा। गांधी जी विशेष रूप से आम जनता के आदमी थे, जो भारतीय किसान के रूप में थे। टैगोर मूलतः विचारक थे और गांधी अनवरत कर्मठता के प्रतीक थे। उस समय ऐनी बेसेंट का भी बहुत प्रभाव पड़ा। बहुत-सी बातें मुसलमान जनता में भी समान रूप से प्रचलित थीं। इन दोनों ने अपनेअपने तरीके से जनता में नई विचारधारा का संचार करना चाहा।

श्रीमती एनी बेसेंट आयरलैंड की रहने वाली महिला थी। उन्होंने भारत में होम रूल चलाया जिसका उद्देश्य अंग्रेजों से भारतीयों को आंतरिक स्वतंत्रता दिलाया था। 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय मुसलमान यह तय नहीं कर पा रहे थे कि घर जाएँ। अंग्रेजों ने उनके साथ अत्यधिक दमनपूर्ण रवैया अपनाया था। सन् 1870 के बाद संतुलन बनाने के लिए अंग्रेजी सरकार अनुकूल हो गई। इसमें सर सैयद अहमद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें यह विश्वास था कि ब्रिटिश सत्ता के सहयोग से मुसलमानों की स्थिति बेहतर हो सकती है। उन्होंने मुसलमानों में ब्रिटिश विरोधी भावना कम करने की कोशिश की। सर सैयद अहमद खा का प्रभाव मुसलमानों में उच्च वर्ग के कुछ लोगों तक ही सीमित था। 1912 में मुसलमानों के दो नए साप्ताहिक निकले-उर्दू में ‘अल हिलाल’ और अंग्रेज़ी में ‘कामरेड।’ अबुल कलाम आजाद का अलीगढ़ कॉलेज में सर सैयद खाँ से संबंध था। अबुल कलाम आजाद ने पुरातन पंथी और राष्ट्र विरोधी भावना के गढ़ पर हमला किया जिससे बुजुर्ग नाराज हुए पर युवा पीढ़ी में उत्तेजना भर चुकी थी।

तिलक और गोखले
ए. ओ. हयूम ने 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। जब 1885 में निर्मित नेशनल कांग्रेस अपनी प्रौढ़ावस्था में आई तो इसके नेतृत्व का ढंग बदल गया। जब इसके संरक्षक बने थे वे अत्यधिक आक्रमणकारी व अवज्ञाकारी थे और निम्न वर्ग छात्र व युवा लोगों के प्रतिनिधि थे। उसमें कई तरह के योग्य ओजस्वी नेता उभरकर आए। इसके सच्चे प्रतिनिधि थे- महाराष्ट्र के बालगंगाधर तिलक और गोखले प्रमुख थे। संघर्ष का पूरा माहौल तैयार हो गया था जिसे बचाने के लिए दादा भाई नोरोजी लाए गए। 1907 ई. में हुए संघर्ष में उदार दल की जीत हुई लेकिन बहुसंख्यक समाज के लोग तिलक के पक्ष में थे। इस समय बंगाल में हिंसक घटनाएं हो रही थीं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 92.
गुलाम – दास, संचालन – चलाना, विघटन – खेमों में बँट जाना, पुछल्ला – पीछे रह जाना, अनुसरण – किसी अन्य के कहने पर काम करना, अभिन्न – एक समान ।

पृष्ठ संख्या 93.
सुदृढ़ – पक्का, महकमों – विभागों, पटवारी – ज़मीन की पैदाइश करने वाले, प्रशिक्षण – ट्रेनिंग, कैपिटेशन चार्ज – सेना के प्रशिक्षण के लिए किया जाने वाला खर्च, मायूसी – उदासी, क्रोध – गुस्सा, शिक्षाविद – शिक्षा का ज्ञाता, प्राच्य – विद्या, विशारद् – एक प्रकार की शैक्षणिक उपाधि, चिंतन – विचार, क्लर्क – दफ्तरों में काम करनेवाला साधारण कर्मचारी, चेतना – बुद्धि ।

पृष्ठ संख्या 94.
आघात – चोट, कारगर – प्रभावी, वयैक्तिक – निजी, आघात – चोट, कारगर – प्रभावी, दृढ़ता – मज़बूती, मुक्त – आज़ाद।

पृष्ठ संख्या 95.
प्रवर्तक – संस्थापक, स्वामित्व – अधिकार, समन्वयवादी – विचारों का आदान-प्रदान, विश्वजनीय – विश्व में प्रसिद्ध, कट्टर – पक्का, पुनर्जागरण – नई चेतना जाग्रत करना, प्रवृत्ति – इच्छा, असंतोष – संतुष्ट न होना।

पृष्ठ संख्या 96.
बगावत – विद्रोह, नियत – निश्चित, जनांदोलन – जनता का आंदोलन, अनुयायी – मानने वाला, अवशेष – बचे हुए, सार्वजनिक – समान रूप से, सारी जनता का, स्मरण – याद।

पृष्ठ संख्या 97.
सर्वोत्तम – सबसे बढ़िया, तत्काल – उसी समय, जब्त – कब्जे में करना, झकझोर – हिला देना, पुनर्गठन – फिर से संगठित होना, खिन्न – दुखी, आस्था – विश्वास।

पृष्ठ संख्या 98.
निषेध – मनाही, दलित – निम्न, धर्मप्राण – धर्म को मानने वाला, आत्म साक्षात्कार – स्वयं को परखना, तत्व ज्ञानियों – विचारकों, बहुरंगी साँचे – विभिन्न रूप, सांप्रदायिकता – धर्म के नाम पर होने वाले दंगे।

पृष्ठ संख्या 99.
सेतु – पुल जोड़ने वाला, वक्ता – बोलने वाला, संजीवनी – प्राणदायी औषधि, जीवंतता – जीने की चाहत, समभाव – एक समान दृष्टि से देखना, बलवती – मज़बूत, निरर्थक – बेमतलब, अभय – बिना डर के, दुर्बलता – कमज़ोरी, आध्यात्मिक – ईश्वरीय।

पृष्ठ संख्या 100.
नास्तिक – ईश्वर को न मानने वाला, क्षीण – कमज़ोर, बर्दाश्त – सहन, खिताब – उपाधि, ओत-प्रोत – लवरेज, भराहुआ।

पृष्ठ संख्या 101.
संकीर्ण – संकुचित, मिज़ाज – स्वभाव, सर्वहारा – जो सब कुछ हार चुका हो, अनवरत – लगातार, कर्मठता – काम की लगन, उदीयमान – उभरता हुआ, नैराश्य – निराशा।

पृष्ठ संख्या 102.
बोध – ज्ञान, साझी – मिली-जुली, वंचित – प्राप्त न होना, सांत्वना – धैर्य बाँधना, मनीषी – ज्ञानी, मुनासिब – उचित।

पृष्ठ संख्या 103.
उद्देश्य – लक्ष्य, अलगाववादी – अलग रहने को प्राथमिकता देनेवाला।

पृष्ठ संख्या 104.
परंपरागत – रीति-रिवाज के अनुसार, प्रतिभाशाली – विशेष योग्यता वाला, उत्तेजना – उग्रता, तेजस्विता – ओजपूर्ण, गुंजाइश – संभावना।

पृष्ठ संख्या 105.
पुरानपंथी – पुरानी विचारधाराएँ रखने वाला, भौहें चढ़ाना – नाराज़ होना।

पृष्ठ संख्या 106.
प्रौढ़ – अधेड़ उम्र का, आक्रामक – उस विचारधारा वाला, अवज्ञाकारी – सरकारी नीतियों का उल्लंघन करने वाला, सजक – जागरूक, बहुसंख्यक – अधिक संख्या में।