Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Questions and Answers Summary नई समस्याएँ

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 5 Question Answers Summary नई समस्याएँ

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर कौन था?
(i) मुगल शासन का संस्थापक
(ii) मुगल शासन का सेनापति
(iii) इस्लाम धर्म का संस्थापक
(iv) एक विदेशी आक्रमणकारी
उत्तर:
(i) मुगल शासन का संस्थापक

प्रश्न 2.
बाबर ने भारतीय सत्ता की नींव कब रखी?
(i) 1770
(ii) 1530
(iii) 1526 में
(iv) 1600
उत्तर:
(iii) 1526 में

प्रश्न 3.
अकबर ने किस धर्म को चलाया?
(i) दीन.ए.एलाही
(ii) मुस्लिम धर्म
(iii) इसाई धर्म
(iv) फ़ारसी धर्म
उत्तर:
(i) दीन.ए.एलाही

प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी ने भारत पर आक्रमण की शुरुआत कब की?
(i) 1000 ई. में
(ii) 1100 ई. में
(ii) 1200 ई. में
(iv) 800 ई. में
उत्तर:
(i) 1000 ई. में

प्रश्न 5.
मुगल काल की वास्तुकला का सुंदर नमूना कौन-सा है?
(i) फतेहपुर सीकरी
(ii) कुतुबमीनार
(iii) ताजमहल
(iv) लालकिला
उत्तर:
(iii) ताजमहल

प्रश्न 6.
‘पद्मावत’ ग्रंथ की रचना किसने की?
(i) रहीम
(ii) जायसी
(iii) तुलसी
(iv) कबीर
उत्तर:
(ii) जायसी

प्रश्न 7.
मराठों के सेना नायक कौन थे?
(i) छत्रपति शिवाजी
(ii) रणजीत सिंह
(iii) टीपू सुल्तान
(iv) दारा
उत्तर:
(i) छत्रपति शिवाजी

प्रश्न 8.
मुगलकाल के पतन के बाद शक्तिशाली शासक के रूप में कौन उभरे?
(i) टीपू सुल्तान
(ii) हैदर अली
(iii) मराठे
(iv) अंग्रेज़
उत्तर:
(iii) मराठे

प्रश्न 9.
नादिरशाह कहाँ का शासक था?
(i) ईरान
(ii) इराक
(iii) अफगानिस्तान
(iv) चीन
उत्तर:
(i) ईरान

प्रश्न 10.
जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण कराया?
(i) आगरा
(ii) जयपुर
(iii) बनारस
(iv) इलाहाबाद
उत्तर:
(ii) जयपुर

प्रश्न 11.
भारत में ईस्ट इंडिया की स्थापना कब हुई?
(i) 1700
(ii) 1800
(ii) 1600
(iv) 1500
उत्तर:
(ii) 1600

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कौन-कौन सी विदेशी जातियों का आगमन हुआ?
उत्तर:
हर्षवर्धन के शासन में अरबी, तुर्की व अफगानी जातियों ने भारत में आगमन किया।

प्रश्न 2.
कई इलाकों को जीतने के बाद अरब भारत में सिंध से आगे क्यों न बढ़ सके?
उत्तर:
अरब आक्रमणकारियों ने दूर-दूर तक अपने इलाके का प्रसार किया। लेकिन वे सिंध प्रांत के आगे न बढ़ पाए क्योंकि भारत तब आक्रमणकारियों को रोकने में समर्थ था। इसके अन्य कारण अरबों में होने वाले आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं।

प्रश्न 3.
महमूद गज़नवी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
महमूद गज़नवी की मृत्यु 1030 में हुई थी।

प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी के बाद भारत पर किसका आक्रमण हुआ?
उत्तर:
महमूद गज़नवी के बाद 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी नामक अफगान ने पृथ्वीराज चौहान के समय आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गया लेकिन वर्ष 1192 में फिर दोबारा दिल्ली पर आक्रमण करके यहाँ के सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 5.
तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली की क्या दशा हुई?
उत्तर:
तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली बुरी तरह से तहस-नहस हो गई। इसका ढाँचा बिलकुल बिगड़ गया। इसे अपनी वास्तविक स्थिति में आने में लंबा समय लग गया। उसकी स्थिति बिलकुल सिमटकर रह गई। तैमूर के हमले का प्रभाव दिल्ली पर पूरी तरह देखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
दिल्ली की तबाही के समय भारत की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
14वीं शताब्दी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। उस समय दक्षिण भारत की दशा अच्छी थी। दक्षिण के राज्यों में विजय नगर सबसे अधिक शक्तिशाली रियासत थी, विजयनगर ने उत्तर भारत के अनेक शरणार्थियों को अपने ओर आकर्षित किया। उस समय दक्षिण भारत की प्रगति चरम सीमा पर थी।

प्रश्न 7.
अफ़गान शासक और उसके साथ आए लोग भारतीय ढाँचे में कैसे समा गए?
उत्तर:
अफ़गान शासक एवं उसके साथ आए लोग विदेशी होते हुए भी वे भारतीय ढाँचे में समा गए क्योंकि जो अफ़गान उनके साथ आए उनके परिवारों का भारतीयकरण हो गया। यानी वे भारतीय संस्कृति और विचारधारा में ढल गए। वे भारत को अपना देश व भारत के बाहर के देशों को विदेशी समझने लगे।

प्रश्न 8.
राणा प्रताप कौन थे? उन्होंने जंगलों में रहना क्यों पसंद किया?
उत्तर:
राणा प्रताप मेवाड़ के राजपूत शासक थे। वे अत्यंत साहसी, वीर स्वाभिमानी देशभक्त थे। वे हमेशा से ही मुगलों के विरोधी रहे। वे मुगलों को सदैव विदेशी आक्रमणकारी समझते थे। उन्होंने अकबर से भी कभी भी औपचारिक संबंध नहीं रखा और न तो उनकी अधीनता स्वीकार की। अतः उनकी पराजय होने के बाद उन्होंने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने के बजाय जंगलों में स्वतंत्र होकर रहना पसंद किया।

प्रश्न 9.
हिंदू-मुसलमानों के आपसी समन्वय से भारत की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अकबर के सामने प्रमुख समस्या इस्लाम के साथ अन्य धर्म के लोगों के रीति रिवाजों के मेल से राष्ट्रीय एकता कायम करने की समस्या थी, इसलिए सामाजिक स्थिति में हिंदू मुसलमानों के आपसी समन्वय से दोनों की आदतें, रहन-सहन का ढंग, रुचियाँ एक सी हो गईं। व्यापार उद्योग भी एक से हो गए। हिंदू-मुसलमानों को भारत का ही अंग समझने लगे। वे आपसी धार्मिक आयोजनों व जलसों में भी शामिल होने लगे। बोलचाल की भाषा में हिंदी एवं उर्दू आपस में मिल-जुल गए थे। हिंदू एवं मुसलमानों दोनों की आर्थिक समस्याएँ एक जैसी ही थीं।

प्रश्न 10.
औरंगजेब कौन था? उसकी नीतियाँ राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुईं?
उत्तर:
औरंगजेब मुगलवंश का शासक था और वह अकबर का प्रपौत्र था। उसकी नीतियों के कारण देश के दूर-दूर प्रांतों में आतंक फैल गया। उसकी हिंदू विरोधी नीतियों के कारण सिख और मराठे उसके विरुद्ध हो गए। इससे लोगों में असंतोष की भावना का प्रादुर्भाव हुआ और पुनर्जागरणवादी विचारों का उदय हुआ जिसके परिणामस्वरूप धर्मवाद और राष्ट्रवाद का उत्थान हुआ।

प्रश्न 11.
जयसिंह ने किस राज्य का निर्माण करवाया? उस नगर योजना को आदर्श क्यों समझा जाता था?
उत्तर:
जयसिंह ने जयपुर राज्य का निर्माण करवाया इस नगर की विशेषता थी कि इसका निर्माण विदेशी नक्शों के आधार पर किया गया था। नक्शे के आधार पर सुव्यवस्थित ढंग से बसाने के कारण नगर योजना को आदर्श समझा जाता है।

प्रश्न 12.
यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना न होती तो भारत की दशा कैसी होती?
उत्तर:
यदि भारत में अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना नहीं हुई होती तो भारत अधिक स्वतंत्र, समृद्ध व प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने वाला होता। वह अभी काफ़ी शक्तिशाली राष्ट्र होता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत और अरब के बीच संबंध किस प्रकार मज़बूत हुए?
उत्तर:
भारत और अरब के बीच एक दूसरे के यहाँ आने जाने का कार्यक्रम चलता रहा। राजदूतों के आवासों की अदला-बदली हुई। भारत से गणित और खगोलशास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। इन पुस्तकों का अनुवाद अरबी भाषा में किया गया। कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह संबंध उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के साथ भी रहा। व्यापार की शुरुआत भी आपस में हुई।

प्रश्न 2.
महमूद गज़नवी कौन था? उसके आक्रमण से हिंदुओं के मन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
महमूद गज़नवी अफ़गानिस्तान का तुर्क आक्रमणकारी था। उसने भारत के उत्तरी भारत पर क्रूरता के साथ आक्रमण किया। उसने भारत से बहुत बड़ा खजाना लूटा और उसे ले गया। महमूद ने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया। उसने भारत में खून खराबा का तांडव मचाया। हिंदू उसके इस हरकत से काफ़ी इधर-उधर बिखर गए। बचे हुए हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति गहरी नफ़रत पैदा हो गई।

प्रश्न 3.
अमीर खुसरो कौन थे? उसके प्रसिद्धि का क्या कारण था?
उत्तर:
अमीर खुसरो, फ़ारसी के उच्च कोटि के कवि थे। उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था और वे महान संगीतकार भी थे। उनकी प्रसिद्धि का कारण तंत्री वाद्य सितार के आविष्कारक होना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने धर्म दर्शन, तर्कशास्त्र, भाषा और व्याकरण आदि विषयों की रचना की। उन्होंने लोकगीतों एवं पहेलियों की रचना की। इन लोकगीतों और पहेलियों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।

प्रश्न 4.
अकबर कौन था? उसने देश की अखंडता एवं एकता बनाए रखने के लिए उसने क्या-क्या प्रयास किया?
उत्तर:
अकबर मुगल खानदान का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। उसने भारत की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए स्वाभिमानी राजपतों को अपनी ओर मिलाया। उसने अपनी और अपने बेटों की शादी राजपूत घराने में की। इसके अलावे उसने विद्वान हिंदुओं को अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। हिंदू और मुस्लिम एकता को स्थापित करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक एक नया सर्वमान्य धर्म चलाया।

प्रश्न 5.
मुगल शासन काल में साहित्य को बढ़ावा मिला स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
मुगलकाल में भारतीय साहित्य को काफ़ी बढ़ावा मिला। अनेक हिंदू कवि एवं लेखकों ने दरबारी भाषा में पुस्तकों की रचना की। अकबर के दरबार में हिंदू और मुस्लिम विद्वानों को काफ़ी प्रश्रय दिया गया, जिनमें फैज़ी, अबुल फ़जल, बीरबल, राजा मान सिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। मुगलकाल में हिंदी भाषा के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत लिखा था तथा अब्दुल रहीम खाना ने अनेक नीति भरे दोहों की रचना की। इसी काल में विद्वान मुसलमानों ने संस्कृत पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया।

प्रश्न 6.
नादिरशाह कौन था? उसने दिल्ली पर आक्रमण क्यों किया? इसका मुख्य क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
नादिरशाह ईरान का शासक था। उसने दिल्ली पर आक्रमण दिल्ली को लूटने के लिए किया। उसने दिल्ली की बेशुमार धन-दौलत लूटकर दिल्ली के शासकों को अत्यधिक कमज़ोर बना दिया।

प्रश्न 7.
शिवाजी कौन थे? उनका नाम भारतीय इतिहास में क्यों लोकप्रिय है?
उत्तर:
शिवाजी मराठों के सेनानायक थे। उनका जन्म सन् 1627 ई. में हुआ था। वे एक कुशल छापामार थे। उनकी सेना के घुड़सवार दूर-दूर छापा मारकर शत्रुओं का मुकाबला करते थे। उन्होंने सूरत में अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्र में चौथ नामक एक टैक्स लगाया। उन्होंने मराठों को एकत्रित कर दुर्जेय शक्ति का रूप दिया।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से भारत में हर्ष की सत्ता एवं शासन और इस्लाम धर्म का प्रचार भारत में किस प्रकार हुआ का वर्णन है। भारत में इस्लामी साम्राज्यवाद का विस्तार कैसे हुआ इसकी जानकारी हमें मिलती है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 5 Summary

अरब और मंगोल जब हर्ष उत्तर भारत में शक्तिशाली शासक था उस समय अरब में इस्लाम अपना प्रचार एवं प्रसार कर रहा था। उसे उस समय से भारत आने में 60 वर्ष लग गए। जब उसने राजनीतिक विजय के साथ भारत में प्रवेश किया तब उसमें काफ़ी बदलाव आ चुका था। धीरे-धीरे सिंध बगदाद की केंद्रीय सत्ता से अलग हो गया और अलग सत्ता के रूप में कायम किया। समय बीतने के साथ अरब और भारत के संबंध बढ़ते गए। दोनों देशों के यात्रियों का आना जाना लगा रहा। राजदूतों की आपस में अदला बदली होती रही। भारतीय गणित खगोल शास्त्र की पुस्तकें बगदाद पहुँची। अरबी भाषा में इन पुस्तकों का अनुवाद हुआ। इसके अलावे कई भारतीय चिकित्सक बगदाद गए।

भारत के दक्षिण के राज्यों खासकर राष्ट्रकूटों ने भी व्यापार व सांस्कृतिक संबंध बगदाद के साथ बनाए। धीरे-धीरे भारतीयों को इस्लाम धर्म की जानकारी होती गई। इस्लाम धर्म के प्रचारकों का स्वागत हुआ। मस्जिदों का निर्माण का दौर शुरू हुआ। अतः यह निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि भारत आने से पहले इस्लाम ने धर्म के रूप में प्रविष्ट किया।

महमूद गज़नवी और अफगान
लगभग तीन सौ वर्षों तक भारत विदेशी आक्रमण से बचा रहा। सन् 1000 ई. के आस-पास महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया। गज़नवी तुर्क जाति का था। इसने बहुत खून खराबा किया। उसने उत्तर भारत के एक भाग में लूट-पाट की। उसने पंजाब और सिंध को अपने राज्य में मिला लिया व हर बार खजाना लूटकर ढेरों धन अपने साथ ले गया। उसने हिंदुओं को धूल चटा दिया। हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति नफ़रत भर चुकी थी। वह कश्मीर पर विजय नहीं पा सका। कठियावाड़ में सोमनाथ से लौटते हुए उसे राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पराजय का सामना करना पड़ा। सन् 1830 में उसकी मृत्यु हो गई। 160 वर्षों के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने गजनी पर कब्जा कर लिया। फिर लाहौर पर आक्रमण किया, इसके बाद दिल्ली पर भी आक्रमण किया। दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने उसे पराजित कर दिया। वह अफगानिस्तान लौट गया फिर एक साल बाद उसने फिर दिल्ली पर आक्रमण किया। 1192 ई. में वह दिल्ली का शासक बन गया।

दिल्ली को जीतने के बाद भी दक्षिण भारत शक्तिशाली बना रहा। 14वीं सदी के अंत में तुर्क-मंगोल तैमूर ने उत्तर भारत की ओर से आकर दिल्ली की सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। दुर्भाग्यवश वह बहुत आगे नहीं बढ़ सका। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में दो बड़े राज्य कायम हुए- गुलबर्ग, जो बहमनी राज्य के नाम से प्रसिद्ध है और विजयनगर का हिंदू राज्य।

इस समय उत्तर भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो चुका था। दक्षिण भारत सुदृढ़ व उन्नतं था। ऐसे में बहुत से हिंदू भागकर दक्षिण भारत की ओर चले गए। विजय नगर की तरक्की के वक्त उत्तरी पहाड़ियों से होकर एक आक्रमणकारी दिल्ली के पास पानीपत के मैदान में आ गया। उसने 1526 ई. में दिल्ली को जीतकर मुगल साम्राज्य की नींव डाली। वह आक्रमणकारी तैमूर वंश का तुर्क बाबर था।

समन्वय और मिली-जुली संस्कृति का विकास कबीर, गुरु नानक और अमीर खुसरो
वास्तविक रूप में इस्लाम भारत में धर्म प्रचार-प्रसार के रूप में आया था। जबकि भारत पर आक्रमण तुर्कों, अफगानों व मुसलमानों ने किए। अफगान और तुर्क पूरे भारत पर छा गए। जबकि मुसलमान अजनबी होते हुए भी भारतीय रीति रिवाजो में घुल-मिल गए। वे भारत को अपना देश मानने लगे। अधिकतर राजपूत घरानों ने भी इनसे अच्छे संबंध कायम किए। इस समय हिंदू-मुसलमानों के वैवाहिक संबंध भी काफ़ी हद तक बढ़ते गए। फिरोजशाह व गयासुद्दीन तुगलक की माँ भी हिंदू थी। गुलबर्ग (बहमनी राज्य) के मुस्लिम शासक ने विजय नगर की हिंदू राजकुमारी से धूमधाम विवाह किया था।

मुस्लिम शासन काल में भारत का चहुँमुखी विकास हुआ। सैनिक सुरक्षा, उत्तम रखने के लिए यातायात साधनों में सुधार किया। शेरशाह सूरी ने उत्तम मालगुजारी व्यवस्था की, जिसका अकबर ने विकास किया। इस काल में व्यापार उद्योग भी प्रगति पर रहा। अकबर के लोकप्रिय राजस्व मंत्री टोडरमल की नियुक्ति शेरशाह ने की थी। वास्तुकला की नई शैलियों का विकास हुआ। खाना-पहनना बदल गया। गीत-संगीत में भी समन्वय दिखाई पड़ने लगा फारसी भाषा राजदरबार की भाषा बन गई। जब तैमूर के हमले से दिल्ली की सलतनत कमज़ोर हो गई तो जौनपुर में एक छोटी सी मुस्लिम रियासत खड़ी हुई। 15वीं शताब्दी के दौरान यह रियासत कला संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र रही। यहाँ आम भाषा हिंदी को प्रोत्साहित किया गया तथा हिंदू और मुसलमानों के बीच समन्वय का प्रयास किया गया। इसी समय ऐसे कामों के लिए एक कश्मीरी शासक जैनुल आबदीन को बहुत यश मिला।

अमीर खुसरो तुर्क थे। वे फारसी के महान कवि थे और उन्हें संस्कृत का भी ज्ञान था। कहा जाता है कि सितार का आविष्कार उन्होंने ही किया था। अमीर खुसरो ने अनगिनत पहेलियाँ लिखी। अपने जीवन काल में ही खुसरो अपने गीतों और पहेलियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है। पंद्रहवीं सदी में दक्षिण में रामानंद और उनसे भी अधिक प्रिय कबीर हुए। कबीर की साखियाँ और पद आज भी प्रसिद्ध हैं। उत्तर में गुरु नानक हुए; जो सिख धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। पूरे हिंदू धर्म सुधारकों के विचारकों का प्रभाव पड़ा।

इसी समय कुछ समाज सुधारकों का उदय हुआ जिन्होंने इस समन्वय का समर्थन तथा वर्ण-व्यवस्था की उपेक्षा की। पंद्रहवीं शताब्दी में रामानंद और उनके शिष्य कबीर ऐसे ही समाज सुधारक थे। कबीर की साखियाँ और पद आज भी जनमानस में लोकप्रिय हैं। उत्तर भारत में गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की। हिंदू धर्म इन सुधारकों के विचारों से प्रभावित हुआ।

अमीर खुसरो भी फारसी लेखकों में काफी प्रसिद्ध थे। वे फारसी लेखक के साथ-साथ फ़ारसी कवि भी थे। भारतीय वाद्य यंत्र सितार उनके द्वारा ही आविष्कृत है। उन्होंने धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र आदि विषयों पर लिखा। उनके लिखे लोकगीत और अनगिनत पहेलियाँ आज भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।

बाबर और अकबर-भारतीयकरण की प्रक्रिया
‘बाबर’ ने सन् 1526 ई. में पानीपत का युद्ध जीतकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उसका व्यक्त्तिव आकर्षक था। उसने केवल चार वर्षों तक ही भारत पर शासन किया। इन चार वर्षों में उसका समय आगरा में विशाल राजधानी में बीता।

अकबर भारत में मुगल साम्राज्य का तीसरा शासक था। वह बाबर का पोता था। वह आकर्षक, गुणवान, साहसी, बहादुर और योग्य शासक एवं सेनानायक था। वह विनम्र और दयालु होने के साथ-साथ लोगों का दिल जीतना चाहता था। 1556 ई. से आरंभ होने वाले अपने लंबे शासन काल 50 वर्ष तक रहा। उसने एक राजपूत राजकुमारी से शादी की। उसका पुत्र जहाँगीर आधा मुगल और आधा हिंदू राजपूत था। जहाँगीर का बेटा भी राजपूत, माँ का बेटा था। राजपूत घरानों से संबंध बनाने में साम्राज्य बहुत मज़बूत हुआ। राणा प्रताप ने मुगलों से टक्कर ली। इसके बाद अकबर को मेवाड़ के राणा प्रताप को अधीन बनाने में सफलता नहीं मिली। अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बजाए वे जंगलों में फिरते रहे।

अकबर ने प्रतिभाशाली लोगों का समुदाय एकत्रित किया। इनमें फैजी, अबुल फजल, बीरबल, राजा मानसिंह, अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख थे। उसने दीन-ए-एलाही नामक नए धर्म की स्थापना कर मुगल वंश को भारत के वंश जैसा ही बना दिया।

यांत्रिक उन्नति और रचनात्मक शक्ति में एशिया और यूरोप के बीच अंतर अकबर सभी क्षेत्रों के ज्ञाता था।

उसे सैनिक और राजनीतिक मामलों के अतिरिक्त यांत्रिक कलाओं का भी पूरा ज्ञान था। अकबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की मज़बूत नींव रखी थी तथा उस पर जो इमारत बनाई वह सौ वर्षों तक बनी रही। सिंहासन के लिए उच्चाधिकारियों में युद्ध होते रहे और केंद्रीय नेतृत्व कमज़ोर होता गया। यूरोप में मुगल बादशाहों के यश में वृद्धि हो रही थी। अकबर के समय में दक्षिण में मंदिरों से भिन्न शैली में कई इमारतें बनी जिन्होंने आने वाले दर्शकों को प्रेरित किया। आगरा का ताजमहल इसी का उदाहरण है।

इस प्रकार दिल्ली और आगरा में सुंदर इमारतें तैयार हुईं। भारत में रहने वाले अधिकतर मुसलमानों ने हिंदू धर्म से धर्म परिवर्तन कर लिया। दोनों में काफ़ी समानताएँ विकसित हो गईं। भारत के हिंदुओं और मुसलमानों के साथ रहने के कारण उनकी आदतें, रहन-सहन के ढंग और कलात्मक रुचियों में समानता दिखाई देती थी। वे शांतिपूर्वक साथ रहने उत्सवों में आने-जाने में एक जैसे थे तथा वे एक ही भाषा का प्रयोग करते थे। गाँव की आबादी के बड़े हिस्से में जीवन मिला-जुला था। गाँव में हिंदू और मुसलमानों के बीच गहरे संबंध थे। वे मिल-जुलकर जीवन की परेशानियों व आर्थिक समस्याओं का सामना करते थे। दोनों जातियों के लोक गीत सामान्य थे। गाँवों में रहने वाले अधिकतर हिंदू व मुसलमान किसान, दस्तकार एवं शिल्पी थे।

मुगल शासन काल के दौरान कई हिंदुओं ने दरबारी भाषा में फारसी पुस्तके लिखी। फारसी में संस्कृत की पुस्तकों का अनुवाद हुआ। हिंदी के प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी तथा अब्दुल रहीम खानखाना की कविताओं का स्तर बहुत ऊँचा था। रहीम ने राणा प्रताप का गुणगान अपने कविताओं में काफी किया। रहीम ने मेवाड़ के राणा प्रताप की प्रशंसा में भी लिखा, जो लगातार अकबर से युद्ध करते रहे और कभी हथियार न डाले यानी हार न मानी।

औरंगजेब ने उल्टी गंगा बहाई – हिंदू राष्ट्रवाद का लार शिवाजी
औरंगजेब एक कट्टरवादी मुसलमान था। वह धर्मान्ध व कठोर नैतिकतावादी था। वह एक ऐसा सम्राट हुआ जिसने हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवारें खड़ी कर दी। उसने एक हिंदू विरोधी कर लगाया जिसे ‘जजिया टैक्स’ कहते हैं। उसने अनेक मंदिरों को तुड़वाया। जो राजपूत मुगल साम्राज्य के स्तंभ थे उसने हिंदू विरोधी कार्य करके उनके हृदयों में अपने प्रति घृणा, रोष एवं विद्वेष की भावना पैदा की। इस प्रकार मुगल सम्राट औरंगजेब की नीतियों से तंग आकर उत्तर में सिख मुगलों के विरुद्ध खड़े हो गए।

इसकी प्रतिक्रिया में पूर्ण जागरण विचार पनपने लगे। मुगल साम्राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। जो पतन का एक प्रमुख कारण बना। इसी समय 1627 ई. में शिवाजी के रूप में हिंदुओं का एक नेता उभरा। उनके छापामार दस्तों ने मुगलों की नाक में दम कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों की कोठियों को लूटा और मुगल साम्राज्य के क्षेत्रों पर चौथ कर लगाया। मराठा पूरी शक्ति पा गए। 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई। लेकिन मराठा शक्ति का विस्तार होते चला गया। वह भारत पर अपना एकाधिकार करना चाहती थी।

प्रभुत्व के लिए मराठों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष-अंग्रेज़ों की विजय
औरंगजेब की सन् 1707 में मृत्यु हो गई। इसके बाद लगभग 100 वर्षों तक भारत पर अधिकार करने लिए अलग-अलग जातियों का संघर्ष एवं आक्रमण जारी रहा।

18वीं शताब्दी में भारत पर अपना आधिपत्य करने के लिए प्रमुख चार दावेदार थे-
(i) मराठे, (ii) हैदर अली और उसका बेटा टीपू सुल्तान (iii) फ्रांसीसी (iv) अंग्रेज़। फ्रांसीसी और अंग्रेज़ विदेशी दावेदार थे। इसी बीच 1739 में ईरान का बादशाह नादिरशाह दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उसने काफ़ी खून खराबा किया और लूटपाट मचाई। बेशुमार दौलत लूटी। वह तख्ते ताऊस भी ले गया। बँगाल में जालसाजी और बगावत को बढ़ावा देकर क्लाइव ने 1757 में प्लासी का युद्ध जीत लिया। 1770 में बंगाल तथा बिहार में अकाल पड़ा, जिसमें एक तिहाई जनसंख्या की मौत हो गई। दक्षिण में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध में फ्रांसीसियों का अंत हो गया। भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए मराठे, अंग्रेज़ और हैदर अली रह गए थे। इससे भारत पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। 1799 में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को हरा दिया। इसके बाद अंग्रेज़ काफ़ी शक्तिशाली हो गए और उनकी राह और आसान हो गई।

मराठे सरदारों में आपसी रंजिश थी। 1804 में अंग्रेजों ने उन्हें अलग-अलग युद्धों में हरा दिया। अंग्रेजों ने भारत को अव्यवस्था और अराजकता से बचाया। 1818 तक के अंत तक उन्होंने मराठों को हराकर भारत पर कब्जा कर लिया। अब अंग्रेज़ भारत में सुव्यवस्थित ढंग से शासन करने लगे। अब आतंक युग की समाप्ति हो गई यानी मारकाट बंद हो गया लेकिन यह कहा जा सकता है कि आपस में भेदभाव, आपसी रंजिश भुलाकर काम करते तो अंग्रेजों की सहायता के बिना भी भारत में शांति और व्यवस्थित शासन की स्थापना की जा सकती थी।

रणजीत सिंह और जयसिंह
आतंक के उस दौर में दो प्रमुख भारतीय सितारे उभरे, उनके नाम थे – रणजीत सिंह और जयसिंह।

महाराजा रणजीत सिंह एक जाट सिख थे। पंजाब में उन्होंने अपना शासन कायम किया। राजपूताने में जयपुर का सवाई जयसिंह था। जयसिंह ने जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बड़ी-बड़ी बेधशालाएँ बनवाईं। जयपुर की नगर योजना उन्हीं की देन है। उन्होंने मानवीय विचारों को आधार बनाया तथा खून-खराबे को नापसंद किया। युद्ध के सिवा उन्होंने किसी की जान नहीं ली। वह बहादुर योद्धा, कुशल राजनयिक होने के साथ गणित, खगोल विज्ञानी, नगर निर्माण करने वाले तथा इतिहास में रुचि रखने वाले थे।

भारत की आर्थिक पृष्ठभूमि-इंग्लैंड के दो रूप
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद उसका मुख्य उद्देश्य था भारतीय माल लेकर यूरोप के देशों में बेचना। भारतीय कारीगरों का बना माल इंग्लैंड की तकनीकों का सफलता पूर्वक मुकाबला करता था। कंपनी का ध्येय अधिक से अधिक धन कमाना था। इंग्लैंड में मशीनों का दौर शुरू होने पर मशीनों से बने माल के साथ-साथ भारतीय वस्तुएँ भी थी। कंपनी ने इससे काफ़ी मुनाफा कमाया। इंग्लैंड का भारत में वास्तविक रूप से तभी आगमन हुआ जब 1600 ई. में एलिजाबेथ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को परवाना दिया। 1608 ई. मिल्टन का जन्म होने के सो साल बाद कपड़ा बुनने की तेज़ मशीन का आविष्कार हुआ। इसके बाद काटने की कला, इंजन और मशीन के करघे निकाले गए। उस समय इंग्लैंड सामंतवाद और प्रतिक्रियावाद से घिरा हुआ था। इंग्लैंड को प्रभावित करने वाले लेखकों में शेक्सपियर, मिल्टन था। साथ ही में राजनीतिक और स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वाले, विज्ञान और तकनीक में प्रगति करने वाले भी थे।

उस समय अमेरिका इंग्लैंड के चंगुल से स्वतंत्र हुआ था। अमेरिका में नई शुरुआत के लिए भी रास्ते साफ़ थे। जबकि भारतीय प्राचीन परंपराओं में जकड़े हुए थे। इसके बावजूद यह सत्य है कि यदि ब्रिटेन मुगलों के शक्ति खोने पर भारत का बोझ न उठाता तो भी भारत देश अधिक शक्तिशाली और समृद्ध होता।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 72.छोर–किनारा, सीमावर्ती-सीमा के आसपास बसे हुए, फ़तह-जीत, हद-सीमा, केंद्रीय-शासकीय।

पृष्ठ संख्या 73.
प्रचारक – प्रचार करने वाला, शताब्दी – सौ सालों का समय, निर्दयता – निर्ममता, नफ़रत – घृणा, तबाही – बर्बादी, धावा – हमला, तितर-बितर – बिखर जाना, धावे – हमला।

पृष्ठ संख्या 74.
तख्त – सिंहासन, कब्जा – अपने अधिकार में कर लेना, नियति – भाग्य किस्मत, वीरान – सुनसान।

पृष्ठ संख्या 75.
बेहतर – अधिक अच्छा, शरणार्थी – विस्थापित व्यक्ति, भ्रामक – भ्रम पैदा करने वाली, अजनबी – जिससे हमारी पहचान न हो, वृतांत – वर्णन, भ्रामक – गलत।

पृष्ठ संख्या 76.
अधिराज – सम्राट, अधीनता – किसी के अधिकार में रहना, हस्तक्षेप – दखल देना, मालगुजारी व्यवस्था – एक प्रकार की कर नीति, राजस्व – कृषि पर लगाया गया कर, रूझान – रुचि, समन्वय – मेलजोल, शैलियाँ – तरीके, अनुसरण – अपनाना।

पृष्ठ संख्या 77.
जनभाषा – आम जनता द्वारा बोली जाने वाली भाषा, अजीब – विचित्र, उमराव – जिसे कोई पदवी मिली हो।

पृष्ठ संख्या 78.
सहिष्णुता – सहनशीलता, एकेश्वरवाद – एक ईश्वर की सत्ता स्वीकार करना, चोटी के – सर्वोच्च, सद्भावना – विचार।

पृष्ठ संख्या 79.
लोकप्रचलित – लोगों के बीच प्रचलित, पहलू – भाग अंग, अनगिनत – बहुत से, मिसाल – उदाहरण, बुनियादनींव, जागृति – चेतना पैदा करने वाले विचार, दुस्साहसी – बुरे कार्यों को भी हिम्मत से करने वाला, स्वप्नदर्शी – अच्छे भविष्य के लिए अच्छी सोच रखने वाला, अनुयायी – बात को माननेवाला शिष्य।

पृष्ठ संख्या 80.
अखंड – जिसके टुकड़े न हो, परस्पर – आपस में, लक्ष्य – उद्देश्य, अभिमानी – घमंडी, अदम्य – बलशाली, दमन – नाश, बेहतर – अच्छा।

पृष्ठ संख्या 81.
समन्वित – मिले-जुले, हासिल – प्राप्त, यांत्रिक – वैज्ञानिक यंत्रों के बारे में, जिज्ञासा – इच्छा/चाहत।

पृष्ठ संख्या 82.
बुनियाद – नींव, गतिहीन – रुकना, अपरिवर्तनशील – जिसे बदला न जा सके, दुर्बल – कमज़ोर, यश – प्रसिद्धि, अलंकरण – अलंकृत करना, विभिन्न रूप देना, बेढब – अजीब, प्रवृत्ति – इच्छा।

पृष्ठ संख्या 83.
सामूहिक – समूहों के रूप में एकत्रित होना, पेशे – कारोबार, संपर्क – संबंध, तमाम – बहुत से, कड़ाई – सख्ती, परदे – घूघट, विकास – उन्नति।

पृष्ठ संख्या 84.
शरीक – भाग लेना, अर्ध – आधा, कालजयी – समय को जीतने वाली/जो कभी पुरानी न हो, संरक्षक – देखभाल करने वाला, सिपहसालार – सेनापति, प्रशंसा – तारीफ़, हथियार न पटनी फेरना – समाप्त करना, धर्मान्ध – धर्म में न करना, हथियार न डालना – हार न मानना, जजियाकर – धर्म के लिए लगाया गया कर, अवलंब – सहारा, स्तंभ – आधार।

पृष्ठ संख्या 85.
क्रुद्ध – गुस्से में, उत्तेजना – दोष, पुनर्जागरणवादी – लोगों में नई चेतना जाग्रत करना, धर्मनिरपेक्ष – किसी धर्म विशेष में विश्वास न करना, आंशिक – बहुत कम, खंडित – टुकड़ों में बँटना, आर्थिक – धन संबंधी, खिलाफ़ – विरुद्ध ।

पृष्ठ संख्या 86.
चौथ कर – शिवाजी द्वारा अमीरों पर लगाया गया कर, पृष्ठभूमि – आधार, दुर्जेय – जिसे जीता न जा सके, प्रभुत्व – अधिकार, दावेदार – हकदार, हुकूमत – शासन, बवंडर – तूफ़ान, बेशुमार – अत्यधिक, तख्ने ताउस – शहाजहाँ के द्वारा बनाया गया सिंहासन सोने, चाँदी हीरे से निर्मित, नपुंसक – पौरुष बल समाप्त होना।

पृष्ठ संख्या 87.
दावा – हक, हाथ की कठपुतली – इशारों पर नाचना, जालसाज़ी – गलत नीतियाँ, नामोनिशान मिट जाना – पूरी तरह नष्ट हो जाना, नियति – इच्छा।

पृष्ठ संख्या 88.
विकट – विकराल, अद्भुत – अजीब, पराजित – हराकर, वैर – शत्रुता, सुव्यवस्थित – सही ढंग से, अव्यवस्थागलत नीतियाँ, पस्त – समाप्त हो जाना।

पृष्ठ संख्या 89.
जिज्ञासा – कुछ नया करने की इच्छा, सरहदी – सीमा पर स्थित, मानवीय – नेक, दयालु, अवसरवादी – मौका देखकर पक्ष बदल लेनेवाला।

पृष्ठ संख्या 90.
चुंगी – कर टैक्स, अर्थतंत्र – आर्थिक ढाँचा, हस्तक्षेप – दखलंदाजी, परवाना – लिखित आज्ञा, हुक्मनामा।

पृष्ठ संख्या 91.
ढरकी – कपड़ा बुनने की मशीन, शालीन – विनम्र, बर्बर – क्रूर, नृशंस – अत्यंत कठोर, स्मृतियाँ – यादें।