Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 22 प्रतिज्ञा-पूर्ति

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 22 प्रतिज्ञा-पूर्ति

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 22

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर्ण ने कृपाचार्य पर क्या व्यंग्य किया?
उत्तर:
कर्ण ने कहा आचार्य आप तो अर्जुन की प्रशंसा करते कभी नहीं थकते। अर्जुन की शक्ति को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आपकी आदत बन गई है।

प्रश्न 2.
भीष्म पितामह के संधि के प्रस्ताव पर दुर्योधन ने क्या कहा?
उत्तर:
भीष्म पितामह के संधि प्रस्ताव पर दुर्योधन ने कहा पूज्य पितामह । मैं संधि नहीं चाहता हूँ। राज्य तो दूर रहा, मैं तो एक गाँव भी पांडवों को देने को तैयार नहीं हूँ।

प्रश्न 3.
भीष्म ने दुर्योधन के समय के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
भीष्म ने बताया कि प्रतिज्ञा का समय कल ही पूर्ण हो चुका है।

प्रश्न 4.
दुर्योधन को भीष्म पितामह ने संधि के संबंध में क्या कहा?
उत्तर:
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को सलाह दी कि उसे पांडवों के साथ संधि कर लेनी चाहिए। ऐसा भीष्म ने इसलिए कहा क्योंकि एक तो पांडवों का समय पूरा हो चुका था दूसरा यह कि पांडवों की सेना के सामने कौरवों की सेना का टिकना असंभव था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर्ण ने पांडवों के बारे में दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
जब द्रोण द्वारा कही गई यह बात कि रथ पर अर्जुन है, तब कर्ण और दुर्योधन को अच्छा नहीं लगा। कर्ण ने कहा- ‘अज्ञातवास’ की अवधि अभी पूरी नहीं हुई है। पांडवों को पुनः बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास करना होगा। आश्चर्य है कि सेना भय से काँप रही है। मैं अकेला ही युद्ध करूँगा और दुर्योधन को दिए वचन को पूरा करूँगा।

प्रश्न 2.
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को क्या सलाह दी?
उत्तर:
अर्जुन के युद्ध में प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को सलाह दी कि उसे पांडवों के साथ संधि कर लेनी चाहिए। ऐसा भीष्म ने इसलिए कहा क्योंकि एक तो पांडवों की प्रतिज्ञा पूरा हो चुका था क्योंकि जब अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी तो भीष्म समझ गए थे कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। दूसरा कौरवों की सेना का पांडवों के सामने टिकना असंभव ही नहीं नामुमकिन था।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 22

आचार्य द्रोण द्वार पर अर्जुन के होने की बात सुनकर दुर्योधन व कर्ण को अच्छी नहीं लगी। कर्ण ने कहा- “अज्ञातवास की अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है। पाँडवों को पुनः बारह वर्ष के लिए वनवास में जाना होगा। आश्चर्य है कि सेना भय से काँप रही है। मैं अकेला ही युद्ध करूँगा और दुर्योधन के लिए वचन पूरा करूँगा।

कर्ण की अहंकार पूर्ण बातों पर कृपाचार्य झल्लाकर बोले- “कर्ण! मूर्खता की बातें न करो। हम सबको एक साथ मिलकर अर्जुन का मुकाबला करना होगा।

यह सुनकर कर्ण काफ़ी गुस्से में आ गया और वह बोला- आचार्य तो सदैव अर्जुन की प्रशंसा करते रहते हैं। अर्जुन की शक्ति को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की उन्हें एक आदत-सी पड़ गई है। न मालूम यह भय के कारण है या अर्जुन को अधिक प्यार करते हैं, जो भी हो मैं पीछे नहीं हटूंगा।” कर्ण ने जब आचार्य द्रोण का मजाक उड़ाया तो अश्वत्थामा ने कहा, “कर्ण! किया तुमने कुछ नहीं। इधर की फालतू की बातों में समय बर्बाद कर रहे हो।”

इस वाद-विवाद को देखकर भीष्म बड़े दुखी हुए। वह बोले- “यह आपस में वैर-विरोध के झगड़े का समय नहीं है। अभी तो सभी को एक साथ मिलकर शत्रु का सामना करना पड़ेगा। भीष्म के समझाने पर सभी शांत हो गए।

भीष्म ने दुर्योधन को समझाते हुए कहा कि प्रतिज्ञा का समय कल पूरा हो चुका है। तुम लोगों की गणना में भूल हो रही है। हर महीने एक जैसे बराबर नहीं होते, अतः अभी समय है कि पांडवों के साथ संधि कर लो। दुर्योधन बोला मैं संधि नहीं युद्ध चाहता हूँ। राज्य तो दूर मैं एक गाँव तक देने को तैयार नहीं हूँ।

यह सुनकर द्रोणाचार्य की आज्ञानुसार कौरव व्यूह रचना करने लगे। अर्जुन ने दो-दो बाण आचार्य द्रोण व पितामह भीष्म की ओर इस तरह छोड़े, जो उनके चरणों के पास जा गिरे। अर्जुन ने कर्ण को घायल कर दिया। अश्वत्थामा को हरा दिया, द्रोणाचार्य को निकल जाने दिया, दुर्योधन को मैदान से भगा दिया। कौरव-सेना हार मानकर हस्तिनापुर वापस चली गई।

उधर सबके युद्ध मैदान छोड़कर भाग जाने के बाद युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने कहा- राजकुमार उत्तर! अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गाएँ छुड़ा ली गई हैं शत्रु भी भाग गए हैं। इस युद्ध में विजय तुम्हारी हुई है। इस विजय का यश तुम्ही को मिलना चाहिए। इसलिए चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना। अर्जुन वृहन्नला के रूप में फिर सारथी बन गया। दूतों द्वारा नगर में खबर भेज दी कि राजकुमार उत्तर की विजय हुई है।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-55- शंका – संदेह, अजीब – विचित्र, रट लगाना – बार-बार कहना, प्रशंसा – बड़ाई, भानजा – बहन का पुत्र, खिन्न – दुखी, गणना – गिनती, संधि – समझौता।

पृष्ठ संख्या-56- गांडीव – अर्जुन के धनुष का नाम, वंदना – प्रार्थना पूजा, रण-कौशल – युद्ध चातुर्य, परास्त – पराजित, भीषण – भयंकर, प्रयत्न – प्रयास, कोशिश, यश – कीर्ति।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 21 अज्ञातवास

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 21 अज्ञातवास

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 21

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विराट के दरबार में युधिष्ठिर को कौन-सा काम सौंपा गया था?
उत्तर:
कंक के नाम से विराट के दरबारी बन गए और राजा के साथ चौपर खेलकर दिन बिताने लगे।

प्रश्न 2.
भीम को क्या काम मिला?
उत्तर:
भीम को रोसइयों का मुखिया बनाया गया। वे बल्लभ के रूप में काम करने लगे।

प्रश्न 3.
कीचक कौन था? उसकी वीरता के बारे में विखिए।
उत्तर:
कीचक सुदेष्णा का भाई था। वह बड़ा ही बलिष्ठ और प्रतापी वीर था। कीचक ने राजा विराट के साम्राज्य एवं शक्ति का काफ़ी विस्तार किया था।

प्रश्न 4.
कीचक का वध किसने किया?
उत्तर:
कीचक का वध भीम ने किया।

प्रश्न 5.
दुर्योधन ने कैसे अनुमान लगाया कि पांडव मत्स्य देश में हैं?
उत्तर:
कीचक के मारे जाने की सूचना के बाद ही दुर्योधन की शंका बढ़ी कि हो न हो कीचक का वध भीम ने ही किया होगा। यह दुर्योधन का अनुमान था।

प्रश्न 6.
सुशर्मा को किस ओर आक्रमण करने की जिम्मेदारी दी गई?
उत्तर:
सुशर्मा को मत्स्य राज्य पर दक्षिण की ओर से आक्रमण करने की जिम्मेदारी दी गई।

प्रश्न 7.
अर्जुन ने राजकुमार का हौसला बढ़ाते हुए क्या कहा?
उत्तर:
अर्जुन ने राजकुमार उत्तर का हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि राजकुमार! घबराओ नहीं। तुम सिर्फ घोड़ों की रास सँभालो।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पांडवों ने अपना आज्ञातवास कहाँ और कैसे बिताया?
उत्तर:
पांडवों ने अपना आज्ञातवास का समय राजा विराट के यहाँ नौकरी करके बिताया। पांडवों के अनुरोध पर राजा ने उन्हें अपनी-अपनी पसंद के कामों में नियुक्त कर लिया। युधिष्ठिर ‘कंक’ के नाम से राजा के मनोरंजन के लिए नियुक्त हुए। भीम बल्लभ के नाम से रसोइया का सरदार बना। अर्जुन स्त्री के वेश में वृहन्नला के नाम से विराट की कन्या को नाच-गाना सिखलाने लगे। नकुल ‘ग्रंथिक’ के नाम से घोड़ों की देखभाल करने लगे तथा सहदेव ‘तंतिपाल’ के नाम से गाय-बैलों की देखभाल करने लगे। द्रौपदी विराट की पहली रानी सुदेष्णा की सेवा करने के लिए रनिवास में सैरंधी के नाम से चाकरी करने लगी।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर ने विराट के बंदी होने पर भीम से क्या कहा?
उत्तर:
विराट के बंदी होने पर युधिष्ठिर भीम से बोले-“भीम! विराट को अभी छुड़ाकर लाना होगा और सुशर्मा का अहंकार चूर करना होगा। यदि तुम सदा की भाँति सिंह की सी-गर्जना करने लग जाओगे, जो शत्रु तम्हें तुरंत पहचान लेंगे। इसलिए सामान्य लोगों की भाँति रथ पर बैठकर और धनुष बाण के सहारे लड़ना ठीक होगा।”

प्रश्न 3.
औरत के भेष में राजकुमार उत्तर के रथ पर अर्जुन को देखकर दुर्योधन ने क्या कहा?
उत्तर:
औरत के भेष में रथ पर बैठे योद्धा के विषय में अर्जुन विषयक चर्चा सुनकर दुर्योधन कर्ण से बोला-हमें इस बात से क या मतलब कि यह औरत के भेष में कौन है? थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि अर्जुन ही है। फिर भी हमारा तो उससे काम ही बनता है। शर्त के अनुसार उन्हें और बारह वर्ष तक वनवास भुगतना पड़ेगा।”

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 21

पांडव अपना-अपना वेश बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए। विराट को लगा कि ये लोग कुशल प्रशासनिक हैं। अत: उनके आग्रह पर विश्वास दिलाने पर उनको सेवा में रखा और उनके मन मुताबिक कार्य में लगा दिया।

राजा विराट के यहाँ युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रखा। वह जुआ, शतरंज आदि खेलों के द्वारा राजा विराट का मनोरंजन करता था। वहाँ भीम का नाम वल्लभ रखा गया। भीम रसोईयों का मुखिया बन गया। वह राजा विराट के रसोई में खाना बनाता था। अर्जुन का नाम ‘वृहन्नला’ रखा गया। उसका काम था विराट की राजकुमारी उत्तरा को संगीत और नृत्य की शिक्षा-दीक्षा देना था। नकुल घोड़ों को साधने का काम करने लगा। नकुल का नाम ग्रांथिक रखा गया। सहदेव का नाम तंतिपाल रखा गया। वे गाय बैलों की देख-भाल करते थे। द्रौपदी का नाम सेरंध्री रखा गया। वह राजा विराट की पत्नी की सेवा करती थी।

रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बड़ा ही बलिष्ठ और वीर था, जब से पांडवों के वनवास की अवधि पूरी हुई थी, तभी से दुर्योधन गुप्तचरों के माध्यम से पांडवों की खोज करने लगा था। इन्हीं दिनों कीचक के मारे जाने की खबर फैल गई।

दुर्योधन समझ गया कि कीचक का वध भीम ने ही किया होगा। दुर्योधन ने राजसभा में अपना विचार प्रकट करते हुए कहा- पांडव शायद विराट के नगर में छिपे हैं। अतः हमें विराट नगर पर हमला कर देना चाहिए। यदि हम आज्ञातवास की अवधि पूरी होने से पहले उनका पता कर लें तो शर्त के अनुसार पांडवों को बारह वर्ष और वनवास करना पड़ेगा।

अपनी पुरानी शत्रुता का बदला लेने के लिए मत्स्य देश के दक्षिणी हिस्से पर त्रिगर्तराज की सेना ने आक्रमण करके गायों के झुंड के झुंड अपने कब्जे में कर लिया। युधिष्ठिर की सलाह पर अर्जुन को छोड़कर बाकी पांडव विराट के साथ युद्ध में चले गए। विराट को सुशर्मा ने बंदी बना लिया। तब युधिष्ठिर ने भीम से कहा- भीम! विराट को अभी छुड़ाकर लाना होगा और सुशर्मा का अहंकार चूर करना होगा। यह कार्य तुम्हें शांतिपूर्वक करना होगा ताकि तुम पहचान में न आओ। शत्रु तुम्हें तुरंत पहचान जाएँगे। इसलिए यह कार्य सामान्य लोगों की भाँति रथ पर बैठकर और धनुष-बाण के सहारे लड़ना ठीक होगा।

भीम रथ पर बैठकर बाणों की वर्षा करने लगे। कुछ ही देर में भीम ने विराट को छुड़ा लिया और सुशर्मा को बंदी बना लिया। राजा विराट की विजय होने की खबर नगर में फैली तो वहाँ की प्रजा उनके स्वागत में जुट गए और खुशियाँ मनाने लगे। तभी दुर्योधन ने राजकुमार उत्तर पर हमला कर दिया। राजकुमार उत्तर कौरव सेना को देखकर घबरा गया। द्रौपदी के प्रस्ताव पर अर्जुन को उत्तर का सारथी बनाया गया था। उत्तर के घबराने पर अर्जुन ने कहा-“राजकुमार घबराओ नहीं, आप तो सिर्फ घोड़ों की रास सँभाल लो।” उत्तर को सारथी बनाकर अर्जुन युद्ध को तैयार हो गया। द्रोण को विश्वास हो गया कि यह तो अर्जन है। यह बात संकेत से भीष्म को भी बता दिया। अर्जुन ने गांडीव सँभाल लिया और उस पर डोरी चढ़ाकर तीन बार जोर से टंकार की। कौरव सेना टंकार की ध्वनि सुनकर संचेत भी नहीं हो पायी थी कि अर्जुन ने खड़े होकर शंख की ध्वनि की जिससे कौरव सेना थर्रा उठी और उनमें खलबली मच गई।

शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-52- चाकरी – नौकरी, उचित – सही, शंका – डर, आग्रह – प्रार्थना।

पृष्ठ संख्या-53- नियुक्त – बहाल, चतुरता – चलाकी, परिचय – जान-पहचान, प्रतिज्ञा – प्रण, बलिष्ठ – ताकतवर, शक्ति – ताकत, धाक – रौब, अनुमान – अंदाज, शत्रु – दुश्मन, अनुमोदन – समर्थन, हमला – आक्रमण, अज्ञातवास – छिपकर रहना।

पृष्ठ संख्या-54- हिस्सा – भाग, रथारूढ़ – रथ पर चढ़कर, बाट जोहना – प्रतीक्षा करना, इशारा – संकेत, थर्रा उठी – डर कर काँप गई।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 20 यक्ष प्रश्न

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 20 यक्ष प्रश्न

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 20

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर कहाँ जा पहुँचे?
उत्तर:
युधिष्ठिर उसी विषैले सरोवर के समीप जा पहुँचे जहाँ उनके चारों भाई मृत अवस्था में पड़े थे।

प्रश्न 2.
यक्ष की बात मानकर युधिष्ठिर ने क्या कहा?
उत्तर:
यक्ष की बात मानकर युधिष्ठिर बोले- आप प्रश्न पूछ सकते हैं।

प्रश्न 3.
यक्ष के प्रश्न कि मनुष्य का साथ कौन देता है? का उत्तर युधिष्ठिर ने क्या दिया?
उत्तर:
धैर्य

प्रश्न 4.
विदेश जाने वाले का साथी कौन होता है? का उत्तर युधिष्ठिर ने क्या दिया?
उत्तर:
विदया।

प्रश्न 5.
यक्ष ने युधिष्ठिर से कितने प्रश्न किए।
उत्तर:
यक्ष ने युधिष्ठिर से पंद्रह प्रश्न किए।

प्रश्न 6.
घास से भी छोटी वस्तु किसे बताया गया है?
उत्तर:
चिंता को।

प्रश्न 7.
संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
उत्तर:
संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि हर रोज़ कितने लोग काल के मुँह में समा जाते हैं, फिर भी हर प्राणी चाहता है कि वह अमर रहे।

प्रश्न 8.
युधिष्ठिर ने नकुल को ही जिलाना क्यों ठीक समझा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया कि मेरे पिता की दो पत्नियाँ हैं। एक पत्नी कुंती से मैं जीवित हूँ। माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहना चाहिए। अतः मैंने उसके पुत्र नकुल को जीवित करना चाहा है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर को आशीर्वाद देते हुए यक्ष ने क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर का उत्तर सुनकर यक्ष प्रसन्न हो गया और युधिष्ठिर को छाती से लगा लिया। उसके चारों भाइयों को जीवित कर दिया।

प्रश्न 2.
वनवास की 12 वर्ष की अवधि पूरी होने पर पांडवों ने क्या-क्या किया?
उत्तर:
बारह वर्ष की अवधि पूरी होने पर पांडवों ने निम्नलिखित काम किए-
अर्जुन ने इंद्रदेव से दिव्यास्त्र प्राप्त किए। भीम हनुमान का आलिंगन प्राप्त कर दस गुना शक्तिशाली हो गए। युधिष्ठिर को धर्मदेव के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पांडव आधी रात को चले गए। पांडवों ने मत्स्य देश के राजा विराट के यहाँ तेरहवाँ वर्ष बिताने का निश्चय किया।

प्रश्न 3.
युधिष्ठिर को अपने मृत पड़े भाइयों को देखकर किस चीज़ का भय हुआ?
उत्तर:
जब युधिष्ठिर ने चारों भाइयों को सरोवर के तट पर मृत पड़े देखा तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्हें भय होने लगा कि यह किसी का माया जाल है। वहाँ पर किसी शत्रु के पाँव के निशान भी नज़र नहीं आ रहे थे। उन्हें लगा कि वह भी शायद दुर्योधन का ही षड्यंत्र है या संभव है पानी में विष मिला दिया हो।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 20

चारों भाइयों के लापता होते ही युधिष्ठिर अपने भाइयों को खोजते-खोजते उसी तलाब पर पहुँच गए। अपने भाइयों को मृतावस्था में देखकर युधिष्ठिर रोने लगे। उन्होंने सोचा या तो माया जाल है या दुर्योधन का षड्यंत्र। उन्होनें अपने भाइयों के शरीर को ध्यान से देखा। आसपास किसी शत्रु या पाँव के निशान भी नहीं था। सोचते-सोचते युधिष्ठिर प्यास से प्रेरित पानी की ओर चले तो वही आवाज़ आई। युधिष्ठिर समझ गए कि कोई यक्ष बोल रहा है। वे रुक गए और बोले आप प्रश्न कर सकते हैं। यक्ष ने कई प्रश्न किए और युधिष्ठिर उसके प्रश्न का उत्तर देते चला गया।

प्रश्न
मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर:
धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।

प्रश्न
कौन-सा शास्त्र है जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है?
उत्तर:
कोई शास्त्र ऐसा नहीं है। महान लोगों की संगति से ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है।

प्रश्न
भूमि से भारी चीज़ क्या है ?
उत्तर:
संतान को कोख में धारण करने वाली माता भूमि से भी भारी होती है।

प्रश्न
आकाश से भी ऊँचा कौन है?
उत्तर:
पिता।

प्रश्न
हवा से भी तेज़ कौन चलता है ?
उत्तर:
मन।

प्रश्न
घास से भी तुच्छ चीज़ कौन-सी होती है?
उत्तर:
चिंता।

प्रश्न
विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है ?
उत्तर:
विद्या।

प्रश्न
मरणासन्न वृद्ध का मित्र कौन होता है?
उत्तर:
दान।

प्रश्न
बरतनों में सबसे बड़ा बरतन कौन है?
उत्तर:
भूमि सबसे बड़ा बरतन है, जिसमें सब कुछ समा सकता है।

प्रश्न
सुख क्या है ?
उत्तर:
सुख वह चीज़ है जो शील और सच्चरित्रता पर स्थित है।

प्रश्न
किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बन जाता है?
उत्तर:
अहंभाव छूट जाने पर।

प्रश्न
किस चीज़ को खो जाने से दुख नहीं होता?
उत्तर:
क्रोध।

प्रश्न
किस चीज को गवाँ कर मनुष्य धनी बनता है?
उत्तर:
लालच को।

प्रश्न
संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है ?
उत्तर:
हर रोज़ कितने प्राणियों को मरते हुए देखकर भी बचे हुए प्राणी, जो यह चाहते हैं कि हम अमर रहें। यही महान आश्चर्य की बात है।

युधिष्ठिर के प्रश्नों से प्रसन्न होकर यक्ष ने कहा- “राजन् मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से एक भाई को जीवित कर सकता हूँ। तुम जिस किसी को भी चाहो, वह हो जाएगा।”

युधिष्ठिर ने कहा- मेरा छोटा भाई जी उठे। यक्ष ने सामने प्रकट होकर पूछा- दस हज़ार हाथियों के बल वाले भीम को छोड़कर तुमने नकुल को जीवित करवाना क्यों ठीक समझा?

युधिष्ठिर ने कहा यक्षराज! मैंने जो नकुल को जीवित करवाना चाहा, वह सिर्फ इसी कारण कि मेरे पिता जी की दो पत्नियों में से माता कुंती का बचा हुआ पुत्र एक मैं हूँ। मैं चाहता हूँ कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। जिससे हिसाब बराबर रहेगा। अब आप कृपा करके नकुल को जीवित कर दें।

यक्ष युधिष्ठिर की बातों को सुनकर प्रसन्न हुए और चारों भाइयों को जीवित कर दिए।

युधिष्ठिर को यक्ष ने गले लगा लिया और आशीर्वाद दिया कि बारह वर्ष की अवधि समाप्त होने को है। आज्ञातवास में तुमको कोई पहचान नहीं पाएगा। ऐसा कहकर धर्मदेव गायब हो गए।

इस बारह वर्ष के दौरान अर्जुन ने इंद्रदेव से दिव्यास्त्र प्राप्त किए, भीम हनुमान से आलिंगन कर दस-गुनी शक्ति प्राप्त कर चुके थे। धर्मदेव का आशीर्वाद मिल गया था। बारह वर्ष बीत जाने पर युधिष्ठिर ने पारिवारिक लोगों को ब्राह्मणों के साथ नगर लौटा दिए। पाँचों भाइयों ने आपस में सलाह करके राजा विराट के यहाँ अज्ञातवास का समय बिताने का निर्णय लिया।

शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-50- षड्यंत्र – कुचक्र, विष – जहर, धैर्य – धीरज, सब्र, निशान – चिह्न
पृष्ठ संख्या-51- मरणासन्न – मरने जैसा, सर्वप्रिय – सबका प्यारा, अहंभाव – अहंकार, घमंड, जीवित – जिंदा।
पृष्ठ संख्या-52- अंतर्धान – लुप्त हो जाना, दिव्याशास्त्र – अलौकिक हथियार, अधीश – राजा।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 19 मायावी सरोवर

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 19 मायावी सरोवर

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 19

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर ने नकुल से पेड़ पर चढ़कर क्या देखने को कहा?
उत्तर:
नकुल ने पेड़ पर चढ़कर कोई जलाशय या नदी देखने को कहा।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर ने सबसे पहले पानी लाने किसे भेजा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने सबसे पहले पानी लाने के लिए नकुल को भेजा।

प्रश्न 3.
सरोवर पर नकुल को क्या आवाज़ सुनाई पड़ी?
उत्तर:
सरोवर पर नकुल को आवाज़ सुनाई पड़ी- माद्री के पुत्र! दुःसाहस न करो। यह जलाशय मेरे अधीन है। पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो फिर पानी पियों।

प्रश्न 4.
पानी पीने के बाद चारों भाइयों के साथ क्या घटना घटी?
उत्तर:
पानी पीने के बाद चारों भाई मूर्च्छित होकर गिए गए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भाइयों के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर के मन में क्या-क्या शंकाएँ उत्पन्न हुईं?
उत्तर:
चारों भाइयों के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर घबराने लगा। उनके मन में तरह-तरह की आशंकाएँ उत्पन्न होने लगीं। मन में सोचने लगे आश्चर्य की बात है कि कोई अभी तक नहीं लौटा कहीं जल की खोज में वे जंगल में इधर-उधर भटक नहीं गए। मैं ही चलकर देखें कि क्या बात है।

प्रश्न 2.
नकुल को पानी होने का पता किस प्रकार चला?
उत्तर:
जब नकुल ने पेड़ पर चढ़कर देखा कि कुछ दूरी पर ऐसे पौधे दिखाई दे रहे हैं जो पानी के नजदीक ही उगते हैं। उसके आस-पास कुछ बगुले भी बैठे हैं। इन संकेतों से उन्हें पता चला कि आस-पास कही जलाशय है।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 19

पांडवों के वनवास की बारह वर्ष की अवधि पूरी होने वाली थी। वे लोग एक गरीब ब्राह्मण की सहायता करते हुए पाँचों भाई जंगल में काफ़ी दूर निकल गए थे। एक दिन युधिष्ठिर ने नकुल से कहा कि पेड़ पर चढ़कर देखों कि कोई नदी या जलाशय आसपास है। पेड से उतरकर नकल ने बताया कि कुछ दूरी पर ऐसे पौधे दिखाई दे रहे हैं जो पानी के नजदीक ही उगते हैं। आसपास कुछ बगुले भी बैठे हैं। युधिष्ठिर ने नकुल को पानी लेने भेज दिया। नकुल पानी लाने चल पड़े। कुछ दूरी पर उन्हें एक जलाशय मिला। उसने जलाशय को देखकर सोचा कि पहले खुद पानी पी लूँ फिर भाइयों के लिए ले जाऊँगा। नकुल ने जैसे पानी पीने के लिए अंजलि में लिया, एक आवाज़ आई-“माद्री के पुत्र। दुस्साहस न करो। यह जलाशय भी मेरे अधीन है। पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। फिर पानी पीयो।”

नकुल को तेज़ प्यास लगी थी। इस कारण नकुल ने उस आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया और पानी पी लिया। पानी पीते ही नकुल वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा।

नकुल के आने में देर होने पर युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा। सहदेव ने जलाशय के समीप ज़मीन पर गिरे नकल को देखा। प्यास ज़ोर से लगने के कारण वह भी पानी पीने लगा। पहले जैसी आवाज़ उसे सुनाई दी। उसने भी ध्यान नहीं दिया। पानी पी लिया वह भी ज़मीन पर आकर गिर पड़ा। काफ़ी देर होने के बाद जब वे दोनों भाई नहीं पहुँचे तो युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजा। वह भी सरोवर में पानी-पीने के लिए नीचे उतरा। आवाज़ आई अर्जुन मेरे प्रश्न के उत्तर देने के बाद ही प्यास बुझा सकते हो। यह तालाब मेरा है। अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो, तुम्हारी भी गति वही होगी, जो तुम्हारे भाइयों की हुई है। अर्जुन उस आवाज़ को सुनकर क्रोधित हो गया। उसने बाण छोड़ने शुरू किए लेकिन इन बाणों का कोई असर नहीं होता था। अंत में अर्जुन भी अपने अन्य दो भाइयों की भाँति बिना सोचे जलाशय में उतरकर पानी पी लिया। पानी पीते ही अन्य भाइयों की तरह वह भी बेहोश हो गया।

अपने तीनों भाइयों की प्रतीक्षा करते-करते युधिष्ठिर काफ़ी चिंतित हो गए। इसके बाद युधिष्ठिर ने भीम को भेजा। भीम ने सोचा की यह यक्ष का करतूत है। फिर उसके पास भी वह आवाज़ आई। भीम बोला-मुझे रोकने वाला तू कौन है? भीम ने पानी पिया और वह भी अन्य भाइयों तरह बेहोश हो गया और ज़मीन पर गिर पड़ा।

उधर युधिष्ठिर की चिंता बहुत अधिक बड़ गई। वे सोचने लगे आखिर भाइयों को क्या हो गया। क्या कारण है कि अभी तक वे चारों लौटे नहीं। यह सोचते-सोचते स्वयं उन लोगों को खोजने निकल पड़े।

शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-48- अवधि – समय, जलाशय – सरोवर, तरकश – बाण रखने वाला बर्तन, धिक्कारना – कोसना, असुविधा – कठिनाई।
पृष्ठ संख्या-49- गति – दिशा, तालाश – खोज, ज़रा – तनिक, बेधड़क – निर्भीक, अचेत – बेहोश, बाट जोहना – इंतज़ार करना, व्याकुल – बेचैन।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 18 द्वेष करने वाले का जी नहीं भरता

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 18 द्वेष करने वाले का जी नहीं भरता

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 18

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन की चापलूसी कौन करते थे?
उत्तर:
कर्ण और शकुनी दुर्योधन की चापलूसी करते थे।

प्रश्न 2.
चौपायों की गणना का काम किसका होता था?
उत्तर:
चौपायों की गणना का काम राजकुमारों का होता था।

प्रश्न 3.
पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर:
पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन ने कर्ण से कहा-“कर्ण मैं चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखू। इसलिए तुम और मामा शकुनि कुछ ऐसा तरकीब निकालो ताकि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता से अनुमति मिल जाए।

प्रश्न 4.
दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को क्या विश्वास दिलाया?
उत्तर:
दुर्योधन ने विश्वास दिलाया कि पांडव जहाँ होंगे वहाँ हम नहीं जाएँगे और बड़ी सावधानी से काम लेंगे। अतः विवश होकर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को वन जाने की अनुमति दे दी।

प्रश्न 5.
दुर्योधन के डेरे का स्थान पांडवों के आश्रम से कितनी दूरी पर था?
उत्तर:
दुर्योधन के डेरे का स्थान पांडवों के आश्रम से चार कोस दूरी पर था।

प्रश्न 6.
आश्रम के समीप जलाशय के तट पर और किसने डेरा डाल रखा था?
उत्तर:
आश्रम के निकट जलाशय के तट पर गंधर्वराज चित्रसेन ने अपना डेरा डाल रखा था।

प्रश्न 7.
जलाशय के समीप किस-किसमें युद्ध हुआ?
उत्तर:
जलाशय के समीप गंधर्वराज चित्रसेन और कौरवों की सेनाओं में युद्ध हुआ। इसमें कर्ण और दुर्योधन पराजित हो गए।

प्रश्न 8.
दुर्योधन को किसने बंदी बनाया? उसके बंदी बनने पर युधिष्ठिर ने भीम से क्या कहा?
उत्तर:
दुर्योधन को गंधर्वराज चित्रसेन ने बंदी बना लिया। युधिष्ठिर ने भीम से कहा-“भाई भीम ये हमारे संबंधी हैं। तुम अभी जाओ और किसी तरह अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाओ।”

प्रश्न 9.
अक्षय पात्र को किसने दिया था? सूर्य से प्राप्त अक्षयपात्र की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
अक्षयपात्र को सूर्य देव ने युधिष्ठिर को दिया था। उस पात्र की विशेषता यह थी कि- अक्षयपात्र देते समय सूर्य ने कहा था कि इस पात्र के द्वारा तुम बारह वर्ष तक भोजन प्राप्त करोगे, भले ही कितने लोग भोजन करें। किंतु शर्त यह था कि द्रौपदी के भोजन कर लेने के बाद पात्र की शक्ति अगले दिन तक के लिए समाप्त हो जाएगी।

प्रश्न 10.
दुर्योधन ने कौन-सा यज्ञ किया।
उत्तर:
दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ किया।

प्रश्न 11.
श्रीकृष्ण ने अन्न का कण और साग का पत्ता क्यों खाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने अन्न का कण और साग का पत्ता इसलिए खाया ताकि दुर्वासा ऋषि व उनके दस हज़ार शिष्यों की भूख शांत हो सके। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे जानते थे कि इतने लोगों को एक साथ भोजन करवाना पांडवों के लिए असंभव है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन ने महर्षि दुर्वासा से क्या वर माँगा?
उत्तर:
दुर्योधन पांडवों को अपमानित करना चाहता था। अतः उसने महर्षि दुर्वासा से वर माँगा- आप अपने शिष्यों सहित पांडवों के यहाँ जाकर उनका सत्कार स्वीकार करें। पर वे ऐसे समय में युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ जब द्रौपदी पांडवों एवं परिवार को भोजन करा चुकी हो और वे विश्राम कर रहे हों।

प्रश्न 2.
गंधर्वराज और दुर्योधन के बीच युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
गंधर्वराज और दुर्योधन की सेना आपस में काफ़ी संग्राम करने लगे यहाँ तक कि कर्ण जैसे महारथी के रथ युद्ध चकनाचूर हो गए और वे वहाँ से भाग खड़े हुए। अकेला दुर्योधन युद्ध के मैदान में डटा रहा। अंत में गंधर्वराज चित्रसेन ने उसे पकड़कर बंदी बना लिया और शंख बजाकर विजय की घोषणा की।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 18

जब पांडव वन में रहते थे तब कई ब्राह्मण वन में पांडवों से मिलने जाते थे। वे लोग लौटकर फिर हस्तिनापुर पहुंचे और धृतराष्ट्र को पांडवों की हालत की जानकारी देते थे। यह सुनकर कि वन में पांडव बड़ी तकलीफ में हैं धृतराष्ट्र दुखी होते थे, लेकिन यह जानकारी पाकर दुर्योधन को बड़ी प्रसन्नता होती थी। एक दिन दुर्योधन ने कर्ण से कहा- “कर्ण, मैं तो चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखें। इसके लिए तुम और शकुनि मामा कुछ ऐसा उपाय करो कि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता जी से अनुमति मिल जाए।

कर्ण बोला द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं जो हमारे अधीन हैं। बहुत समय पहले से यह रिवाज चली आ रही है कि हर साल राजकुमार उस बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना करते हैं। इस बहाने हम लोग पिता जी की अनुमति ले सकते हैं। दुर्योधन ने आग्रह करके पिता जी से अनुमति ले ली और एक बड़ी सेना की टुकड़ी लेकर कौरव द्वैतवन के लिए निकले। वे लोग उस स्थान पर रुके जहाँ से पांडवों का आश्रम मात्र चार कोस की दूरी पर था।

उस वक्त गंधर्वराज चित्रसेन भी सपरिवार जलाशय के तट पर डेरा डाले हुए थे। गंधर्वराज के अनुचरों ने कौरवों के अनुचरों को यहाँ डेरा डालने से रोका और न मानने पर मारकर भगा दिया। इस खबर के बाद काफ़ी गुस्से से कौरव सेना सहित सरोवर की ओर बढ़े तो गंधर्वराज की सेना का सामना करना पड़ा। युद्ध के दौरान कौरव की सेना व कर्ण वहाँ से भाग खड़े हुए और दुर्योधन को गंधर्वराज चित्रसेन ने बंदी बना लिया।

जब यह सूचना युधिष्ठिर को मिली तो उन्होंने भीम से कहा- “भाई भीम ये हमारे संबंधी हैं। तुम अभी जाओ और किसी तरह से अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाओ। भीम और अर्जुन कौरवों की बिखरी हुई सेना को इकट्ठा कर गंधर्व पर चढ़ाई किया और दुर्योधन को बंधन से मुक्त कराया। इस तरह दुर्योधन अपमानित होकर हस्तिनापुर लौट आया।

पंडितों से राजसूय यज्ञ की अनुमति न मिलने पर दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ किया। इस यज्ञ में मुनि दुर्वासा दस हजार शिष्यों के साथ पधारे थे। दुर्योधन द्वारा किए गए सत्कार से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उसे वर माँगने को कहा। ईर्ष्यालु दुर्योधन ने वर माँगा- दुर्योधन बोला – मुनिवर। प्रार्थना यही है कि जैसे आप शिष्य समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी-सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें। वह यह कि आप अपने शिष्यों समेत ठीक ऐसे समय युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ, जब द्रौपदी पांडवों को भोजन करा चुकी हो और सभी लोग आराम कर रहे हों। दुर्योधन की प्रार्थना मानकर दुर्वासा मुनि युधिष्ठिर के आश्रम पहुँचे। पांडवों ने उनकी आव-भगत की। कुछ देर बाद मुनि ने कहा हम सब स्नान करके आते हैं, तब तक तुम भोजन तैयार करके रखना।

वनवास के दौरान युधिष्ठिर से खुश होकर सूर्य ने उन्हें एक अक्षयपात्र दिया और कहा था कि बारह साल तक इसमें भोजन दिया करूँगा लेकन एक शर्त है कि द्रौपदी हर रोज चाहे जितने लोगों को इस पात्र में से भोजन खिला सकेगी किंतु जब स्वयं भोजन कर लेगी तो अगले दिन तक के लिए भोजन समाप्त हो जाएगा।

जिस समय दुर्वासा आए थे, तब द्रौपदी भोजन कर चुकी थी और पात्र धोया जा चुका था। इसी वक्त श्रीकृष्ण वहाँ पधारे और बोले बहन द्रौपदी मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे दो। वे अक्षयपात्र को माँगकर देखने लगे। द्रौपदी उस बरतन को ले आई। बरतन के एक छोर पर अनाज का एक कण और साग की पत्ती लगी हुई थी। श्रीकृष्ण उसे अपने मुँह में डालते हुए बोले- “इससे उनकी भूख मिट जाए।”

यह कहकर श्रीकृष्ण बाहर भीम से बोले- भीम जल्दी जाकर ऋषि और उनके शिष्यों को भोजन के लिए बुलाओ।

जब भीम उन लोगों को बुलाने पहुंचे तो देखा कि दुर्वासा मुनि और उनके सभी शिष्य भोजन कर चुके हैं। ये लोग आपस में कह रहे थे कि “गुरुदेव! युधिष्ठिर से हम व्यर्थ में कह आए कि भोजन तैयार करके रखो। हमारा पेट तो भरा हुआ है। हमसे उठा नहीं जाता। इस समय हमारी खाने की बिलकुल इच्छा नहीं है।

यह सुनकर दुर्वासा ने भीम से कहा- हम सब भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से कहना असुविधा के लिए हमें क्षमा करें। यह कहकर दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों समेत वहाँ से रवाना हो गए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-46
तकलीफ़ – कष्ट, दुख, चौपायों – पशुओं, विवश – मज़बूर, लाचार, अनुचर – सेवक, चापलूसी – किसी के मन मुताबिक बात करना, बस्ती – गाँव, गणना – गिनती, संग्राम – युद्ध, विजयघोष – जीत की घोषणा, आग्रह – अनुरोध।

पृष्ठ संख्या-47
अनुगृहीत – आभारी होना, आवभगत – स्वागत, सत्कार, अक्षयपात्र – जो कभी खाली न हो, शक्ति – ताकत, धिक्कारना – कोसना, व्यर्थ – बेकार, असुविधा – कठिनाई।