Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 22 प्रतिज्ञा-पूर्ति

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 22 प्रतिज्ञा-पूर्ति

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 22

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर्ण ने कृपाचार्य पर क्या व्यंग्य किया?
उत्तर:
कर्ण ने कहा आचार्य आप तो अर्जुन की प्रशंसा करते कभी नहीं थकते। अर्जुन की शक्ति को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आपकी आदत बन गई है।

प्रश्न 2.
भीष्म पितामह के संधि के प्रस्ताव पर दुर्योधन ने क्या कहा?
उत्तर:
भीष्म पितामह के संधि प्रस्ताव पर दुर्योधन ने कहा पूज्य पितामह । मैं संधि नहीं चाहता हूँ। राज्य तो दूर रहा, मैं तो एक गाँव भी पांडवों को देने को तैयार नहीं हूँ।

प्रश्न 3.
भीष्म ने दुर्योधन के समय के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
भीष्म ने बताया कि प्रतिज्ञा का समय कल ही पूर्ण हो चुका है।

प्रश्न 4.
दुर्योधन को भीष्म पितामह ने संधि के संबंध में क्या कहा?
उत्तर:
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को सलाह दी कि उसे पांडवों के साथ संधि कर लेनी चाहिए। ऐसा भीष्म ने इसलिए कहा क्योंकि एक तो पांडवों का समय पूरा हो चुका था दूसरा यह कि पांडवों की सेना के सामने कौरवों की सेना का टिकना असंभव था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर्ण ने पांडवों के बारे में दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
जब द्रोण द्वारा कही गई यह बात कि रथ पर अर्जुन है, तब कर्ण और दुर्योधन को अच्छा नहीं लगा। कर्ण ने कहा- ‘अज्ञातवास’ की अवधि अभी पूरी नहीं हुई है। पांडवों को पुनः बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास करना होगा। आश्चर्य है कि सेना भय से काँप रही है। मैं अकेला ही युद्ध करूँगा और दुर्योधन को दिए वचन को पूरा करूँगा।

प्रश्न 2.
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को क्या सलाह दी?
उत्तर:
अर्जुन के युद्ध में प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को सलाह दी कि उसे पांडवों के साथ संधि कर लेनी चाहिए। ऐसा भीष्म ने इसलिए कहा क्योंकि एक तो पांडवों की प्रतिज्ञा पूरा हो चुका था क्योंकि जब अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी तो भीष्म समझ गए थे कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। दूसरा कौरवों की सेना का पांडवों के सामने टिकना असंभव ही नहीं नामुमकिन था।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 22

आचार्य द्रोण द्वार पर अर्जुन के होने की बात सुनकर दुर्योधन व कर्ण को अच्छी नहीं लगी। कर्ण ने कहा- “अज्ञातवास की अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है। पाँडवों को पुनः बारह वर्ष के लिए वनवास में जाना होगा। आश्चर्य है कि सेना भय से काँप रही है। मैं अकेला ही युद्ध करूँगा और दुर्योधन के लिए वचन पूरा करूँगा।

कर्ण की अहंकार पूर्ण बातों पर कृपाचार्य झल्लाकर बोले- “कर्ण! मूर्खता की बातें न करो। हम सबको एक साथ मिलकर अर्जुन का मुकाबला करना होगा।

यह सुनकर कर्ण काफ़ी गुस्से में आ गया और वह बोला- आचार्य तो सदैव अर्जुन की प्रशंसा करते रहते हैं। अर्जुन की शक्ति को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की उन्हें एक आदत-सी पड़ गई है। न मालूम यह भय के कारण है या अर्जुन को अधिक प्यार करते हैं, जो भी हो मैं पीछे नहीं हटूंगा।” कर्ण ने जब आचार्य द्रोण का मजाक उड़ाया तो अश्वत्थामा ने कहा, “कर्ण! किया तुमने कुछ नहीं। इधर की फालतू की बातों में समय बर्बाद कर रहे हो।”

इस वाद-विवाद को देखकर भीष्म बड़े दुखी हुए। वह बोले- “यह आपस में वैर-विरोध के झगड़े का समय नहीं है। अभी तो सभी को एक साथ मिलकर शत्रु का सामना करना पड़ेगा। भीष्म के समझाने पर सभी शांत हो गए।

भीष्म ने दुर्योधन को समझाते हुए कहा कि प्रतिज्ञा का समय कल पूरा हो चुका है। तुम लोगों की गणना में भूल हो रही है। हर महीने एक जैसे बराबर नहीं होते, अतः अभी समय है कि पांडवों के साथ संधि कर लो। दुर्योधन बोला मैं संधि नहीं युद्ध चाहता हूँ। राज्य तो दूर मैं एक गाँव तक देने को तैयार नहीं हूँ।

यह सुनकर द्रोणाचार्य की आज्ञानुसार कौरव व्यूह रचना करने लगे। अर्जुन ने दो-दो बाण आचार्य द्रोण व पितामह भीष्म की ओर इस तरह छोड़े, जो उनके चरणों के पास जा गिरे। अर्जुन ने कर्ण को घायल कर दिया। अश्वत्थामा को हरा दिया, द्रोणाचार्य को निकल जाने दिया, दुर्योधन को मैदान से भगा दिया। कौरव-सेना हार मानकर हस्तिनापुर वापस चली गई।

उधर सबके युद्ध मैदान छोड़कर भाग जाने के बाद युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने कहा- राजकुमार उत्तर! अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गाएँ छुड़ा ली गई हैं शत्रु भी भाग गए हैं। इस युद्ध में विजय तुम्हारी हुई है। इस विजय का यश तुम्ही को मिलना चाहिए। इसलिए चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना। अर्जुन वृहन्नला के रूप में फिर सारथी बन गया। दूतों द्वारा नगर में खबर भेज दी कि राजकुमार उत्तर की विजय हुई है।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-55- शंका – संदेह, अजीब – विचित्र, रट लगाना – बार-बार कहना, प्रशंसा – बड़ाई, भानजा – बहन का पुत्र, खिन्न – दुखी, गणना – गिनती, संधि – समझौता।

पृष्ठ संख्या-56- गांडीव – अर्जुन के धनुष का नाम, वंदना – प्रार्थना पूजा, रण-कौशल – युद्ध चातुर्य, परास्त – पराजित, भीषण – भयंकर, प्रयत्न – प्रयास, कोशिश, यश – कीर्ति।