Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 18 द्वेष करने वाले का जी नहीं भरता

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 18 द्वेष करने वाले का जी नहीं भरता

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 18

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन की चापलूसी कौन करते थे?
उत्तर:
कर्ण और शकुनी दुर्योधन की चापलूसी करते थे।

प्रश्न 2.
चौपायों की गणना का काम किसका होता था?
उत्तर:
चौपायों की गणना का काम राजकुमारों का होता था।

प्रश्न 3.
पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर:
पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन ने कर्ण से कहा-“कर्ण मैं चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखू। इसलिए तुम और मामा शकुनि कुछ ऐसा तरकीब निकालो ताकि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता से अनुमति मिल जाए।

प्रश्न 4.
दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को क्या विश्वास दिलाया?
उत्तर:
दुर्योधन ने विश्वास दिलाया कि पांडव जहाँ होंगे वहाँ हम नहीं जाएँगे और बड़ी सावधानी से काम लेंगे। अतः विवश होकर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को वन जाने की अनुमति दे दी।

प्रश्न 5.
दुर्योधन के डेरे का स्थान पांडवों के आश्रम से कितनी दूरी पर था?
उत्तर:
दुर्योधन के डेरे का स्थान पांडवों के आश्रम से चार कोस दूरी पर था।

प्रश्न 6.
आश्रम के समीप जलाशय के तट पर और किसने डेरा डाल रखा था?
उत्तर:
आश्रम के निकट जलाशय के तट पर गंधर्वराज चित्रसेन ने अपना डेरा डाल रखा था।

प्रश्न 7.
जलाशय के समीप किस-किसमें युद्ध हुआ?
उत्तर:
जलाशय के समीप गंधर्वराज चित्रसेन और कौरवों की सेनाओं में युद्ध हुआ। इसमें कर्ण और दुर्योधन पराजित हो गए।

प्रश्न 8.
दुर्योधन को किसने बंदी बनाया? उसके बंदी बनने पर युधिष्ठिर ने भीम से क्या कहा?
उत्तर:
दुर्योधन को गंधर्वराज चित्रसेन ने बंदी बना लिया। युधिष्ठिर ने भीम से कहा-“भाई भीम ये हमारे संबंधी हैं। तुम अभी जाओ और किसी तरह अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाओ।”

प्रश्न 9.
अक्षय पात्र को किसने दिया था? सूर्य से प्राप्त अक्षयपात्र की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
अक्षयपात्र को सूर्य देव ने युधिष्ठिर को दिया था। उस पात्र की विशेषता यह थी कि- अक्षयपात्र देते समय सूर्य ने कहा था कि इस पात्र के द्वारा तुम बारह वर्ष तक भोजन प्राप्त करोगे, भले ही कितने लोग भोजन करें। किंतु शर्त यह था कि द्रौपदी के भोजन कर लेने के बाद पात्र की शक्ति अगले दिन तक के लिए समाप्त हो जाएगी।

प्रश्न 10.
दुर्योधन ने कौन-सा यज्ञ किया।
उत्तर:
दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ किया।

प्रश्न 11.
श्रीकृष्ण ने अन्न का कण और साग का पत्ता क्यों खाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने अन्न का कण और साग का पत्ता इसलिए खाया ताकि दुर्वासा ऋषि व उनके दस हज़ार शिष्यों की भूख शांत हो सके। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वे जानते थे कि इतने लोगों को एक साथ भोजन करवाना पांडवों के लिए असंभव है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन ने महर्षि दुर्वासा से क्या वर माँगा?
उत्तर:
दुर्योधन पांडवों को अपमानित करना चाहता था। अतः उसने महर्षि दुर्वासा से वर माँगा- आप अपने शिष्यों सहित पांडवों के यहाँ जाकर उनका सत्कार स्वीकार करें। पर वे ऐसे समय में युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ जब द्रौपदी पांडवों एवं परिवार को भोजन करा चुकी हो और वे विश्राम कर रहे हों।

प्रश्न 2.
गंधर्वराज और दुर्योधन के बीच युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
गंधर्वराज और दुर्योधन की सेना आपस में काफ़ी संग्राम करने लगे यहाँ तक कि कर्ण जैसे महारथी के रथ युद्ध चकनाचूर हो गए और वे वहाँ से भाग खड़े हुए। अकेला दुर्योधन युद्ध के मैदान में डटा रहा। अंत में गंधर्वराज चित्रसेन ने उसे पकड़कर बंदी बना लिया और शंख बजाकर विजय की घोषणा की।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 18

जब पांडव वन में रहते थे तब कई ब्राह्मण वन में पांडवों से मिलने जाते थे। वे लोग लौटकर फिर हस्तिनापुर पहुंचे और धृतराष्ट्र को पांडवों की हालत की जानकारी देते थे। यह सुनकर कि वन में पांडव बड़ी तकलीफ में हैं धृतराष्ट्र दुखी होते थे, लेकिन यह जानकारी पाकर दुर्योधन को बड़ी प्रसन्नता होती थी। एक दिन दुर्योधन ने कर्ण से कहा- “कर्ण, मैं तो चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखें। इसके लिए तुम और शकुनि मामा कुछ ऐसा उपाय करो कि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता जी से अनुमति मिल जाए।

कर्ण बोला द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं जो हमारे अधीन हैं। बहुत समय पहले से यह रिवाज चली आ रही है कि हर साल राजकुमार उस बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना करते हैं। इस बहाने हम लोग पिता जी की अनुमति ले सकते हैं। दुर्योधन ने आग्रह करके पिता जी से अनुमति ले ली और एक बड़ी सेना की टुकड़ी लेकर कौरव द्वैतवन के लिए निकले। वे लोग उस स्थान पर रुके जहाँ से पांडवों का आश्रम मात्र चार कोस की दूरी पर था।

उस वक्त गंधर्वराज चित्रसेन भी सपरिवार जलाशय के तट पर डेरा डाले हुए थे। गंधर्वराज के अनुचरों ने कौरवों के अनुचरों को यहाँ डेरा डालने से रोका और न मानने पर मारकर भगा दिया। इस खबर के बाद काफ़ी गुस्से से कौरव सेना सहित सरोवर की ओर बढ़े तो गंधर्वराज की सेना का सामना करना पड़ा। युद्ध के दौरान कौरव की सेना व कर्ण वहाँ से भाग खड़े हुए और दुर्योधन को गंधर्वराज चित्रसेन ने बंदी बना लिया।

जब यह सूचना युधिष्ठिर को मिली तो उन्होंने भीम से कहा- “भाई भीम ये हमारे संबंधी हैं। तुम अभी जाओ और किसी तरह से अपने बंधुओं को गंधर्वो के बंधन से छुड़ा लाओ। भीम और अर्जुन कौरवों की बिखरी हुई सेना को इकट्ठा कर गंधर्व पर चढ़ाई किया और दुर्योधन को बंधन से मुक्त कराया। इस तरह दुर्योधन अपमानित होकर हस्तिनापुर लौट आया।

पंडितों से राजसूय यज्ञ की अनुमति न मिलने पर दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ किया। इस यज्ञ में मुनि दुर्वासा दस हजार शिष्यों के साथ पधारे थे। दुर्योधन द्वारा किए गए सत्कार से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उसे वर माँगने को कहा। ईर्ष्यालु दुर्योधन ने वर माँगा- दुर्योधन बोला – मुनिवर। प्रार्थना यही है कि जैसे आप शिष्य समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी-सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें। वह यह कि आप अपने शिष्यों समेत ठीक ऐसे समय युधिष्ठिर के आश्रम में जाएँ, जब द्रौपदी पांडवों को भोजन करा चुकी हो और सभी लोग आराम कर रहे हों। दुर्योधन की प्रार्थना मानकर दुर्वासा मुनि युधिष्ठिर के आश्रम पहुँचे। पांडवों ने उनकी आव-भगत की। कुछ देर बाद मुनि ने कहा हम सब स्नान करके आते हैं, तब तक तुम भोजन तैयार करके रखना।

वनवास के दौरान युधिष्ठिर से खुश होकर सूर्य ने उन्हें एक अक्षयपात्र दिया और कहा था कि बारह साल तक इसमें भोजन दिया करूँगा लेकन एक शर्त है कि द्रौपदी हर रोज चाहे जितने लोगों को इस पात्र में से भोजन खिला सकेगी किंतु जब स्वयं भोजन कर लेगी तो अगले दिन तक के लिए भोजन समाप्त हो जाएगा।

जिस समय दुर्वासा आए थे, तब द्रौपदी भोजन कर चुकी थी और पात्र धोया जा चुका था। इसी वक्त श्रीकृष्ण वहाँ पधारे और बोले बहन द्रौपदी मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे दो। वे अक्षयपात्र को माँगकर देखने लगे। द्रौपदी उस बरतन को ले आई। बरतन के एक छोर पर अनाज का एक कण और साग की पत्ती लगी हुई थी। श्रीकृष्ण उसे अपने मुँह में डालते हुए बोले- “इससे उनकी भूख मिट जाए।”

यह कहकर श्रीकृष्ण बाहर भीम से बोले- भीम जल्दी जाकर ऋषि और उनके शिष्यों को भोजन के लिए बुलाओ।

जब भीम उन लोगों को बुलाने पहुंचे तो देखा कि दुर्वासा मुनि और उनके सभी शिष्य भोजन कर चुके हैं। ये लोग आपस में कह रहे थे कि “गुरुदेव! युधिष्ठिर से हम व्यर्थ में कह आए कि भोजन तैयार करके रखो। हमारा पेट तो भरा हुआ है। हमसे उठा नहीं जाता। इस समय हमारी खाने की बिलकुल इच्छा नहीं है।

यह सुनकर दुर्वासा ने भीम से कहा- हम सब भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से कहना असुविधा के लिए हमें क्षमा करें। यह कहकर दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों समेत वहाँ से रवाना हो गए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-46
तकलीफ़ – कष्ट, दुख, चौपायों – पशुओं, विवश – मज़बूर, लाचार, अनुचर – सेवक, चापलूसी – किसी के मन मुताबिक बात करना, बस्ती – गाँव, गणना – गिनती, संग्राम – युद्ध, विजयघोष – जीत की घोषणा, आग्रह – अनुरोध।

पृष्ठ संख्या-47
अनुगृहीत – आभारी होना, आवभगत – स्वागत, सत्कार, अक्षयपात्र – जो कभी खाली न हो, शक्ति – ताकत, धिक्कारना – कोसना, व्यर्थ – बेकार, असुविधा – कठिनाई।