Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 39 पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 39 पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 39

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब धृतराष्ट्र ने वन जाने की अनुमति युधिष्ठिर से मांगी तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने वन जाने की अनुमति माँगने पर कहा- अब मैंने निश्चय किया है कि आज से ही आपका पुत्र युयुत्सु राजगद्दी पर बैठे या जिसे आप चाहे राजा बना दें अथवा शासन की बागडोर अपने हाथों में लें और प्रजा का पालन करें। मैं वन में चला जाऊँगा। राजा मैं नहीं बल्कि आप ही हैं। मैं ऐसी हालत में आपको अनुमति कैसे दे सकता हूँ।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को क्या आज्ञा दे रखी थी?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को आज्ञा दे रखी थी कि राजा धृतराष्ट्र को किसी तरह का कष्ट न पहुँचने पाए।

प्रश्न 3.
धृतराष्ट्र पांडवों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?
उत्तर:
धृतराष्ट्र पांडवों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार किया करते थे।

प्रश्न 4.
भीम का व्यवहार धृतराष्ट्र व गांधारी के प्रति कैसा था?
उत्तर:
भीम सेन धृतराष्ट्र और गांधारी को कभी-कभी ऐसी बातें कह देता था जिससे उनके दिल को ठेस पहुँच जाती थी।

प्रश्न 5.
धृतराष्ट्र का जी सुख भोग में क्यों नहीं लगता था?
उत्तर:
भीम कभी-कभी धृतराष्ट्र और गांधारी को सुनाते हुए अप्रिय बातें भी कह दिया करता था जिससे उनके दिल को ठेस पहुँचती थी। इससे उनका मन सुख भोग में नहीं लगता था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर ने वन जाते समय माता कुंती से क्या कहा?
उत्तर:
वन जाते समय कुंती से युधिष्ठिर ने कहा- माँ आप वन को क्यों जा रही हैं। आपका जाना तो ठीक नहीं है। आपने ही आशीर्वाद देकर युद्ध के लिए भेजा था। अब तुम भी हमें छोड़कर वन जाने लगी हो। यह सही नहीं है।

प्रश्न 2.
धृतराष्ट्र के साथ वन कौन-कौन गए थे?
उत्तर:
धृतराष्ट्र के साथ वन धृतराष्ट्र, स्वयं गांधारी, कुंती व संजय गए थे।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 39

पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त कर सारे राज्य का कार्य भार संभाल लिया। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को आज्ञा दे रखी थी कि पुत्रों के वियोग से दुखी धृतराष्ट्र को किसी तरह का कष्ट नहीं पहुँचाया जाए। युधिष्ठिर के आदेश से सभी गांधारी और धृतराष्ट्र, पर पूरा ध्यान रखते थे ताकि उन्हें अपने पुत्रों का अभाव महसूस न हो। धृतराष्ट्र भी पांडवों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते थे। भीम कभीकभी ऐसी बात कह दिया करता था जिससे धृतराष्ट्र को चोट पहुँच जाती थी, भीम के मन में दुर्योधन और दु:शासन के अत्याचार गहरे रूप में अंकित थे कभी-कभी गांधारी तक को तंज कस देते थे, जिससे वे आहत हो जाती थे।

युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के लिए हर तरह के आराम की व्यवस्था कर रखी थी फिर भी धृतराष्ट्र का मन सुख भोग में नहीं लगता था। इन बातों में गांधारी भी उनका अनुसरण किया करती थी।

एक दिन धृतराष्ट्र ने वन में जाकर रहने की इच्छा प्रकट की तो युधिष्ठिर खिन्न हो गए। उसने कहा- यदि वे चाहे तो अपने पुत्र युयुत्सु को राजगद्दी पर बिठा दें या शासन सुख अपने हाथों में ले लें। पर धृतराष्ट्र वन जाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। युधिष्ठिर की अनुमति पाकर गांधारी के कंधे पर हाथ रखकर लाठी टेकते हुए वन की ओर चले गए। कुंती और संजय भी उनके संग हो गए। गांधारी ने कुंती का कंधा पकड़ा और गांधारी का धृतराष्ट्र ने पकड़ा। इस तरह तीनों वृद्ध राजकुटंबी लाठी टेकते हुए रास्ता टटोलते वन की ओर चले।

धर्मराज युधिष्ठिर माता कुंती को वन जाने से रोकना चाहते थे लेकिन वे नहीं मानी। युधिष्ठिर उन्हें अवाक होकर खड़े देखते रह गए। इस प्रकार धृतराष्ट्र, गांधारी, और कुंती ने तीन वर्षों तक वन में तपस्वियों का-सा जीवन व्यतीत किया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-94- एकछत्र – अकेले, बिछोह – वियोग, राजाधिराज – राजाओं के राजा, नासमझी – मूर्खता, अमिट – जो कभी न मिटे।
पृष्ठ संख्या-95- खिन्न – चिढ़ जाना, विराग – उदासीन, अनुसरण – नकल, वल्कल – पेड़ों की छाल, अटल – अडिग, अवाक – चुप रह जाना, आग्रह – निवेदन, अनुमति – आज्ञा।