Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 38 युधिष्ठिर की वेदना

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 38 युधिष्ठिर की वेदना

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 38

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धृतराष्ट्र ने किसको अपने पास बुलाया?
उत्तर:
धृतराष्ट्र ने भीम को अपने पास बुलाया।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र के सामने भीम की प्रतिमा क्यों रखवाई?
उत्तर:
धृतराष्ट्र के हाव-भाव से श्रीकृष्ण समझ गए कि इस समय धृतराष्ट्र पुत्र शोक के कारण क्रोध में हैं। अतः भीम को उनके पास भेजना उचित नहीं होगा। धृतराष्ट्र के हाथों अनर्थ न हो जाए इस कारण उन्होंने भीम की प्रतिमा धृतराष्ट्र के सामने खड़ी कर दी।

प्रश्न 3.
धृतराष्ट्र युधिष्ठिर से किस बात की अनुमति चाहते थे?
उत्तर:
धृतराष्ट्र युधिष्ठिर से जंगल जाकर तपस्या करने की अनुमति चाहते थे।

प्रश्न 4.
गांधारी ने द्रौपदी को सांत्वना देते हुए क्या कहा?
उत्तर:
गांधारी ने द्रौपदी को सांत्वना देते हुए कहा- बेटी दुखी न हो। मैं और तुम एक जैसी हैं। हमें सांत्वना देने वाला कौन है। इस सबकी दोषी मैं ही हूँ। मेरे दोष के कारण आज इस कुल का सर्वनाश हुआ है। पर अब अपने को दोष देने से क्या लाभ।

प्रश्न 5.
राज सँभालने से पूर्व युधिष्ठिर युद्धभूमि क्यों गए?
उत्तर:
शासन सूत्र सँभालने से पहले युधिष्ठिर युद्धभूमि में शर-शय्या पर पड़े, भीष्म पितामह से आशीर्वाद लेने गए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण ने क्या कहकर धृतराष्ट्र का शोक शांत किया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र को बताया- राजन! क्षमा करें। मुझे मालूम था कि क्रोध में आकर आप ऐसा करेंगे। अतः इस अनर्थ से बचने के लिए मैंने भीम के जगह उसकी एक मूर्ति आपके सामने रख दी। भीम अभी जीवित है। इस तरह उनका मन शांत हुआ।

प्रश्न 2.
महाभारत में जीतकर भी युधिष्ठिर दुखी क्यों थे?
उत्तर:
महाभारत का युद्ध अठारह दिनों तक चला। इस युद्ध में बंधु-बांधवों के बीच युद्ध हुआ था। ऐसे में युधिष्ठिर स्वयं को दोषी मान रहे थे कि हमने अपने भाई बंधुओं को मार कर राज्य पाया है जिससे उनका मन बोझिल रहने लगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 38

धृतराष्ट्र अपनी पुरानी बातें याद कर विलाप कर रहे थे। पांडव श्रीकृष्ण के साथ धृतराष्ट्र के पास गए। धृतराष्ट्र ने छल से भीम को अपने पास बुलाया। वे उसे गले लगाना चाहते थे। लेकिन श्रीकृष्ण ने पुत्र शोक में डूबे धृतराष्ट्र की मंशा को समझ गए थे। इसलिए उन्होंने भीम को उनसे दूर रहने की हिदायत दी और एक मूर्ति दृष्टिहीन राजा के पास सामने लाकर खड़ा कर दिया। धृतराष्ट्र ने उस प्रतिमा को इतने जारों से कस लिया कि वह प्रतिमा चूर-चूर हो गयी। प्रतिमा के टूटते ही धृतराष्ट्र शोक विह्वल होकर बोले हाय ! क्रोध में आकर मुर्खतावश हमने यह क्या कर दिया। हमने भीम की हत्या कर दी। ऐसा कहकर वे विलाप करने लगे। इसके बाद श्रीकृष्ण ने सत्य को प्रकट कर दिया। भीम जीवित हैं। इस तरह उनका मन शांत हुआ। पांडव गांधारी के पास गए। दुखी गांधारी ने पांडवों को आशीर्वाद दिया। गांधारी ने बिलखती द्रौपदी को सांत्वना दी।

युधिष्ठिर स्वयं को दोषी मान रहे थे कि हमने अपने भाई बंधुओं को मार कर राज्य पाया है जिससे उनका मन बोझिल रहने लगा, अंत में उन्होंने वन जाने का निश्चय कर लिया। लेकिन सभी के अनुरोध पर युधिष्ठिर ने शासन-सूत्र सँभाला। पहले वे कुरुक्षेत्र में शर-शय्या पर पड़े भीष्म के पास गए। भीष्म ने युधिष्ठिर को धर्म का नियम समझाया। उन्होंने दुखी न होने का सलाह दिया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-92- अंदाज़ा – अनुमान लगाना, प्रतिमा – मूर्ति, दृष्टिहीन – अंधा, भय – डर, वृद्ध – बूढ़ा।
पृष्ठ संख्या-93- क्षुब्ध – दुखी होना, मूर्खतावश – अज्ञानता के कारण, विलाप – रोना, शोकोवेग – दुख की प्रबलता/दुख की अधिकता। व्यथा – पीड़ा।