कल्पतरूः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 4

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Class 9 Sanskrit Chapter 4 कल्पतरूः Summary Notes

कल्पतरूः Summary

‘वेतालपञ्चविंशतिः’ मनोहर एवं आश्चर्यजनक घटनाओं से युक्त कथाओं का अनोखा संग्रह है। प्रस्तुत पाठ इसी संग्रह से लिया गया है। इसके द्वारा जीवन-मूल्यों की स्थापना की गई है। इस कथा में पर्वतराज हिमालय के शिखर पर स्थित कंचनपुर नामक नगर का वर्णन किया गया है। उसमें जीमूतकेतु नाम का विद्याधरों का स्वामी रहता था। उसके उद्यान में कल्पतरु वृक्ष था। जीमूतकेतु के यहाँ जीमूतवाहन नाम का पुत्र हुआ। वह स्वभाव से अत्यधिक दयालु और परोपकारी था। एक दिन उसने मंत्री जनों की सभा की और उनसे अपने हित की बात पछी। सभी ने कहा कि

वंश परंपरा से प्राप्त है। यह सभी मनोरथों को पूरा करने वाला है। तुम इसकी आराधना करो। तब जीमूतवाहन ने अपने पिता के पास जाकर कहा कि मैं इस कल्पवृक्ष से अपने मनोरथों की पूर्ति चाहता हूँ। उसके पिता ने उसको कल्पवृक्ष की आराधना करने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर प्रार्थना किया-देव, आप मेरी इच्छा पूर्ति करें। मेरी इच्छा है कि इस पृथ्वी पर कोई भी निर्धन न बचे। यह सुनकर कल्पवृक्ष ने प्रसन्न होकर धन की वर्षा की। इससे जीमूतवाहन का यश सर्वत्र फैल गया।

कल्पतरूः Word Meanings Translation in Hindi

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानो: उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्। स जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितृमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमूतवाहनं उक्तवन्तः-“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्था: –
नगेन्द्रः – पर्वतों का राजा
सम्प्राप्तयौवनम् – जवानी को प्राप्त
सानो: उपरि – चोटी के ऊपर
यौवराज्ये – युवराज के पद पर
विभाति – सुशोभित है
अभिषिक्तवान् – अभिषेक कर दिया
वसति स्म – रहता था
कदाचित् – किसी समय
कुंलक्रमागमः – कुल परंपरा से आया हुआ
सर्वकामदः – सभी की कामनाओं को पूर्ण करने वाला
आराध्य – आराधना करके
अस्मिन् – इसके
तत्प्रसादात् – उसकी कृपा से
अनुकूले – अनुकूल
सम्भवम् – उत्पन्न हुए
स्थिते – रहने पर
प्राप्नोत् – प्राप्त किया
बाधितुम् – दुखी करने में, सर्वभूत
अनुकम्पी – सभी प्राणियों पर दया करने वाला
नशक्नुयात् – समर्थ नहीं होवे
प्रेरितः – प्रेरणा दिया गया

अर्थ-
सब रत्नों की भूमि, पर्वतों में श्रेष्ठ हिमालय नामक पर्वत है। उसके शिखर (चोटी) पर कंचनपुर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ विद्याधरों के राजा श्रीमान जीमूतकेतु रहते थे। उनके घर (महल) के बगीचे में वंश परंपरा से आ रहा कल्पवृक्ष था। उस राजा ने उस कल्पवृक्ष की आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया। वह महान, दानवीर और सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला हुआ। उसके गुणों से प्रसन्न और अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय पर जवानी को प्राप्त उसे (राजकुमार को) युवराज के पद पर अभिषिक्त किया। युवराज पद पर बैठे हुए उस जीमूतवाहन को (एक बार) किसी समय हितकारी पिता के मंत्रियों ने कहा-“हे युवराज! जो यह सब कामनाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष आपके बगीचे में खड़ा है, वह आपके लिए सदैव पूज्य है। इसके अनुकूल होने पर इंद्र भी हमें दुखी नहीं कर सकता है”।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
उपरि – गृहस्य उपरि खगाः तिष्ठति।
तत्र – त्वं तत्र गत्वा स्वपाठं पठ।
इति – अहं कथयामि इति
च – रामः लक्ष्मणः वनम् अगच्छताम्।
कदाचित् – ऋषिः कदाचित् अपि असत्यं न अवदत्।
अपि – त्वम् अपि एतत् कार्यकर्तुं समर्थोऽसि।

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः – हिमवान्
कुलक्रमागतः – कल्पतरुः
बोधिसत्त्वांशसम्भवम् – जीमूतवाहनम्
प्रसन्नः/प्रेरितः – राजा
सर्वकामदः – कल्पतरुः
अनुकूले स्थिते – अस्मिन्
श्रीमान्/विद्याधरपतिः – जीमूतकेतुः
सः/ राजा – जीमूतकेतुः
महान्/दानवीर:/सर्वभूतानुकम्पी – सः
हितैषिभिः – पितृमान्त्रिभिः
पूज्यः – सः

2. एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत्-“अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्-“तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्व धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थ रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमं कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थाः –
आकर्ण्य – सुनकर
अन्तिकम् – समीप
असीनम् – बैठे हुए (को)
संसारसागरे – संसार रूपी सागर में
प्राप्यापि – प्राप्त करके भी
आशरीरम् – शरीर से लेकर
किमपि – कुछ भी
वीचिवत् – लहरों की तरह
अनश्वरः – नष्ट न होने वाला
कैश्चित् – कुछ (के द्वारा)
युगान्तपर्यन्तम् – युग के अंत तक
कृपणैः – कंजूसों के द्वारा
प्रसूते – पैदा करता है
अर्थः – धन
पूर्वैः – पूर्वजों के द्वारा
अर्थितः – कमाया गया
आग्रहेण – इच्छा से
अभीष्टम् – प्रिय
एकफलसिद्धये – एकमात्र फल की प्राप्ति के लिए
आलोच्य – सोचकर
आराधयामि – आराधना करता हूँ।

अर्थ –
यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में सोचा-“अरे ऐसे अमर पौधे को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों के द्वारा वैसा कोई भी फल नहीं प्राप्त किया गया, किंतु केवल कुछ ही कंजूसों ने ही कुछ धन प्राप्त किया। इस कल्पवृक्ष से तो मैं अपनी प्रिय इच्छा को पूरी करूँगा।” ऐसा सोचकर वह पिता के पास आया। (वहाँ) आकर सुखपूर्वक बैठे हुए पिता को एकान्त में निवेदन किया-“पिता जी! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार रूपी सागर में इस शरीर से लेकर सारा धन लहरों की तरह चंचल है।

एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर (नष्ट नहीं होने वाला) है जो युगों तक यश पैदा करता (देता) है। तो हम ऐसे कल्पवृक्ष की किसलिए रक्षा करते हैं? और जिन पूर्वजों के द्वारा यह (मेरा-मेरा) इस आशा से रक्षा किया गया, वे (पूर्वज) इस समय कहाँ गए? उनमें से किसका यह है? अथवा इसके वे कौन हैं? तो परोपकार के एकमात्र फल की सिद्धि (प्राप्ति) के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्पवृक्ष की आराधना करता हूँ।

विशेषण – विशेष्य चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
ईदृशम् – अमरपादपम्
तादृशम् – फलम्
पूर्वैः – पुरुषैः/यैः
कैश्चित् – कृपणैः
अस्मात् – कल्पतरोः
सुखमासीनम् – पितरम्
सर्वम्, चञ्चलम् – धनम्
अभीष्टम् – मनोरथम्
अस्मिन् – सुखमासीनम्
एकः, अनश्वरः – परोपकारः
इमम् – कल्पपापम्’

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अपि – त्वम् अपि मया सह विद्यालयं चल।
किन्तु – किन्तु देवः अत्र एव तिष्ठतु।
एव – सः एव मम बन्धुः वर्तते।
एवं – एवं दुष्कर्म त्वं कदापि मा कुर्याः।
च – रामः लक्ष्मणः विद्यालयम् अगच्छताम्।
तु – सः तु मम पिता एवास्ति।
कुत्र – बुद्धिम् विना कुत्र जनानां शोभा?
वा – अधुना त्वं गृहं गच्छ आपणं वा
इति – तस्य भाषा मधुरा अस्ति इति

3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव” इति। एवं वादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्। क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्थाः –
अथ – इसके बाद
कामम् – कामना को
तथा – वैसे ही करो
अदरिद्राम् – गरीब रहित
अभ्यनुज्ञातः – आज्ञा को प्राप्त किया
वादिनि – कहने पर
उपगम्य – पास जाकर
उदभूत् – निकली
अस्मत्पूर्वेषा – हमारे पूर्वजों की,
समुत्पत्य – ऊपर उठकर
अभीष्टाः – प्रिय
वसूनि – रत्नों की
कामाः – कामनाएँ
दुर्गतः – ग़रीब।।

अर्थ –
इसके बाद पिता के द्वारा ‘वैसा ही करो’ ऐसी आज्ञा प्राप्त किया हुआ, वह जीमूतवाहन कल्पवृक्ष के पास जाकर बोला- “हे देव (भगवन्)! आपने हमारे पूर्वजों की सारी प्रिय कामनाएँ पूर्ण की हैं, तो मेरी एक कामना को पूरा कीजिए। जैसे पृथ्वी पर गरीबों को न देखू वैसे आप भगवन् कीजिए”। इस प्रकार जीमूतवाहन के कहने पर “तुम्हारे द्वारा छोड़ दिया गया यह मैं जा रहा हूँ” इस प्रकार की आवाज़ उस पेड़ से हुई। और क्षण भर में वह कल्पवृक्ष आकाश में उठकर भूमि पर वैसे रत्नों को बरसाने लगा, जिससे कोई भी दुर्गत (गरीब) नहीं रह गया। उसके बाद उस जीमूतवाहन की सभी जीवों पर कृपा करने के बाद सब जगह यश फैल गया।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
अभ्यनुज्ञातः सः – जीमूतवाहनः
एकम् – कामम्
वादिनि – जीमूतवाहने
तस्मात् – तरोः
अभीष्टाः – कामाः
अदरिद्राम् – पृथ्वीम्
एषः त्यक्तः – अहम्
दुर्गतः – कोऽपि

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
अव्ययः वाक्य प्रयोगः
अथ – अथ रामः स्वगुरुम् अवदत्।
यथा-तथा – यथा अहं कथयामि तथा त्वं कुरु।
च – विद्यालये बालकाः बालिकाः पठन्ति।
सर्वत्र – रामस्य यशः सर्वत्र प्रासरत्।
इति – त्वं तत्र कथं गच्छसि इति?
एवम् – तेन एवम् कदापि न वक्तव्यम्।
ततः – ततः देवदत्तः स्वगृहं प्राविशत्। सर्वत्र

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3

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Class 9 Sanskrit Chapter 3 गोदोहनम् Summary Notes

गोदोहनम् Summary

यह नाटयांश कृष्णचंद्र त्रिपाठी महोदय द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ पुस्तक से सम्पादित करके लिया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा है जो धनी और सुखी होने की इच्छा से प्रेरित होकर एक महीने के लिए गाय का दूध निकालना बंद कर देता है ताकि गाय के शरीर में इकट्ठा पर्याप्त दूध एक ही बार में बेचकर सम्पत्ति कमाने में समर्थ हो सके।

परन्तु मास के अन्त में जब वह दूध दुहने का प्रयत्न करता है तब वह दूध की बूंद भी प्राप्त नहीं कर पाता है। दूध प्राप्त करने के स्थान पर वह गाय के प्रहारों द्वारा खून से लथपथ हो जाता है और जान जाता है कि प्रतिदिन का कार्य यदि मास भर के लिए इकट्ठा किया जाता है तब लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।

गोदोहनम् Word Meanings Translation in Hindi

1. (प्रथमम् दृश्यम्)

(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)

चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः ( विलोक्य ) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्।
(मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम् ) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः
अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्?
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।

शब्दार्था:-
मोदकानि – लड्डुओं को
रचयन्ती – बनाती हुई
मन्दस्वरेण – धीमी आवाज़ से
मोदकगन्धम् – लड्डुओं की सुगन्ध को
प्रसन्नमना – प्रसन्न मन वाला
रच्यन्ते – बनाए जा रहे हैं
आस्वादयामि – स्वाद लेता हूँ
तावत् – तो/ तब तक
गृहीतुम् – लेने के लिए
सक्रोधम् – क्रोध के साथ
स्पृश – छुओ
हस्तनिर्मितानि – हाथों से बने हुए नियन्त्रयितुम् काबू करने में
अक्षमः – असमर्थ हूँ
पूजानिमित्तानि – पूजा के लिए
सम्पादय – करो।

(पहला दृश्य)

अर्थ –
(मल्लिका लड्डुओं को बनाती हुई धीमी आवाज़ में शिव की स्तुति करती है।)
(उसके बाद लड्डुओं की सुगन्ध को अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन प्रवेश करता है।)

चन्दन – वाह! सुगन्ध तो मनोहारी है (देखकर) अरे लड्डू बनाए जा रहे हैं? (प्रसन्न होकर) तो स्वाद लेता हूँ। (लड्डू को लेना चाहता है)
मल्लिका – (क्रोध के साथ) रुको। रुको। मत छुओ! इन लड्डुओं को।
चन्दन – क्यों गुस्सा करती हो! तुम्हारे हाथों से बने लड्डुओं को देखकर मैं जीभ की लालच पर काबू रखने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती हो?
मल्लिका – अच्छी तरह से जानती हूँ स्वामी। परन्तु ये लड्डू पूजा के लिए हैं।
चन्दन – तो जल्दी ही पूजा करो और प्रसाद को दो।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिविच्छेदः
सुगन्धस्तु – सुगन्धः + तु
सम्यग् जानामि – सम्यक् + जानामि

प्रकृति प्रत्ययोः विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.1

पदानां वाक्यप्रयोगः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.2

पद परिचयः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.3

2. मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्थाः-
पूजनम् – पूजा को
स्वसखिभिः सह – अपनी सखियों के साथ
विषादम् – दु:ख को
नाटयति – अभिनय करता है
आगमनस्य – आने का
औचित्यम् – उचित कारण
प्रत्यागमिष्यामः – वापस आ जाएँगी
तावत् – तब तक
परिपालय – संभालो
दुग्धदोहनव्यवस्थाम् – दूध को दुहने की व्यवस्था को।

अर्थ
मल्लिका – अरे! यहाँ पूजा नहीं होगी। मैं अपनी सखियों के साथ कल सुबह काशीविश्वनाथ मंदिर की ओर जाऊँगी, वहाँ हम गंगा स्नान और धार्मिक यात्रा करेंगी।
चन्दन – सखियों के साथ! मेरे साथ नहीं! (दु:ख का अभिनय करता है)
मल्लिका – हाँ। चंपा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सब जाती हैं। अतः मेरे साथ तुम्हारे आने का कोई औचित्य (उचित रूप) नहीं है। हम सप्ताह के अन्त में (तक) वापस आ जाएँगी। तब तक घर की व्यवस्था और गाय के दूध को दुहने की व्यवस्था को चलाना।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदःवा
धर्मयात्राञ्च – धर्मयात्राम् + च विषादं
नाटयति – विषादम् + नाटयति
कपिलाद्याः – कपिल + आद्याः
तवागमनस्य – तव + आगमनस्य
नास्ति – न + अस्ति
सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
प्रत्यागमिष्यामः – प्रति + आगमिष्यामः
दुग्धदोहन व्यवस्थाञ्च – दुग्धदोहन व्यवस्थाम् + च

उपसर्ग विभाजनम्

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.4

कारकाः उपपदविभक्तयश्च
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.5

पदपरिचयः
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.6

3. (द्वितीयम् दृश्यम्)
चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानी तु गङ्गास्नानार्थं काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटक्रमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्था: –
अस्तु – ठीक है
धर्मयात्रया – धर्म की यात्रा से
परिपालयिष्यामि – संभाल लूँगा
शिवा: – कल्याणकारी
पन्थान: – मार्ग (रास्ते)
स्वप्रातराशस्य – अपने नाश्ते का
दुग्धपात्रहस्तः – हाथ में दूध के पात्र वाला
मातुलानि! – मामी!
गता – गई हुई
मासानन्तरम् – महीने बाद
अस्मत् – हमारे
अपेक्षते – चाहिए
भवद्भिः – आपके द्वारा
सेटक – लीटर (सेर)
वक्तव्यम् – कहना
यामि – जाती हूँ
निर्गता – निकल गई।

अर्थ – (दूसरा दृश्य)

चन्दन – ठीक है। जाओ। और सखियों के साथ धर्मयात्रा से आनन्दित होओ। मैं सभी को पाल लूँगा। तुम्हारे रास्ते शुभ हों।
चन्दन – मल्लिका तो धर्मयात्रा हेतु गई। ठीक है। गाय का दूध दुहकर उससे अपने नाश्ते (जलपान) का प्रबन्ध करूँगा। (स्त्री का वेश धारण करके, दूध के हाथ में लिए नन्दिनी गाय के पास जाता है)
उमा – मामी! मामी!
चन्दन – हे उमा! मैं तो मामा हूँ। तुम्हारी मामी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई है। कहो! क्या तुम्हारा भला करूँ?
उमा – मामा! दादाजी कहते हैं, महीने भर बाद हमारे घर में उत्सव होगा। तब तीन सौ लीटर तक दूध चाहिए। यह व्यवस्था आपको ही करनी है।
चन्दन – (प्रसन्न मन से) तीस लीटर मात्रा (माप) में दूध! सुन्दर। दूध की व्यवस्था हो जाएगी ही ऐसा दादा जी को तुम कह दो।
उमा – धन्यवाद मामा! अब जाती हूँ। (वह चली गई) सन्धिः विच्छेदः वा

सन्धिःविच्छेदःवा –
शिवास्ते – शिवाः + ते
गङ्गा – गम् + गा
स्नानार्थम् – स्नान + अर्थम्
मासानन्तरम् – मास + अनन्तरम्
महोत्सवः – महा + उत्सवः
याम्यधुना – यामि + अधुना

प्रकृति – प्रत्यय-विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.7
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.8

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणानि – विशेष्याः
शिवाः – पन्थानः
दुग्धपात्रहस्तः – चन्दनः
त्रिशत-सेटकमितम् – दुग्धम्
एषा – व्यवस्था

उपपदविभक्तयः कारकाश्च –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.9

4. (तृतीयं दृश्यम्)

चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयांसि! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये।
(नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि। (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति)
चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं
सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्।
(चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम् ) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्?

शब्दार्था: –
अगुलिषु – अंगुलियों पर
गणयन् – गिनते हुए
लप्स्ये – प्राप्त करूँगा
दोहनम् – दुहना (दूध दुहने का काम)
तिष्ठति – रहता है
सम्पूर्णतया – पूरी तरह से
क्रमश: – क्रमानुसार (एक के बाद एक)
प्रत्यागच्छति – वापस आती है
प्रत्यगता – वापस आ गई
आस्वादय – स्वाद (आनंद) लो
प्रियतरम् – अधिक प्यारी।

अर्थ – (तृतीय दृश्य)

चन्दन – (प्रसन्न होकर, अंगुलियों पर गिनता हुआ) अरे! तीन सौ लीटर दूध। इससे तो बहुत धन प्राप्त करूँगा (पाऊँगा)।
(नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनी हो जाऊँगा। (प्रसन्न होकर वह गाय की बहुत सेवा करता है)
चन्दन – (सोचता है) मास (महीने) के अन्त में ही दूध की जरूरत है। यदि हर रोज़ दुहने का काम करता हूँ
तो दूध सुरक्षित नहीं रहता है। अब क्या करूँ? ठीक है, महीने के अन्त में ही पूरी तरह से दूध को दुहने का काम करता हूँ (करूँगा)।
(इस प्रकार क्रमानुसार सात दिन बीत गए। सप्ताह के अन्त में मल्लिका वापस आती है)
मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं वापस आ गई। प्रसाद को खाओ।
(चन्दन लड्डुओं को खाता है और बोलता है।)
चन्दन – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो ठीक प्रकार से सफल हो गई? काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय निवेदन करता हूँ।
मल्लिका – (आश्चर्य के साथ) ऐसा है! धर्मयात्रा के अतिरिक्त अधिक प्रिय क्या है?

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
प्रसन्नोभूत्वा  – प्रसन्नः + भूत्वा
मासान्ते – मास + अन्ते
सप्ताहान्ते – सप्ताह + अन्ते
प्रत्यागच्छति – प्रति + आगच्छति
प्रत्यागता – प्रति + आगता
साश्चर्यम् – स + आश्चर्यम्
धर्मयात्रातिरिक्तम् – धर्मयात्रा + अतिरिक्तम्

प्रकृति – प्रत्ययोः – विभाजनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.10

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.11

उपसर्ग – पदानाञ्च विभाजनम्
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.12

5. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति ।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मानं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव
दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः। (द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)
चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकार प्रति चलावः।
दुग्धार्थं पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (द्वावेव निर्गतौ)

अर्थ
चन्दन – गाँव के प्रधान के घर में महीने के अन्त में महोत्सव होगा। वहाँ तीन सौ लीटर दूध हमें देना है।
मल्लिका – किन्तु इतनी मात्रा में दूध हमें कहाँ से मिलेगा?
चन्दन – सोचो मल्लिका! हर रोज दुह करके हम दूध को रखते हैं यदि वह सुरक्षित न रहे तो। इसलिए गाय का दोहन कार्य नहीं किया जा रहा है। उत्सव के दिन ही सारा दूध दुह लेंगे।
मल्लिका – हे स्वामी! तुम तो बहुत चतुर हो। बहुत सुन्दर विचार है। अब दूध दुहना छोड़कर केवल नन्दिनी की
सेवा ही करेंगे। इससे अधिक से अधिक दूध को महीने के अन्त में प्राप्त करेंगे। (दोनों ही गाय की सेवा में लगे होते हैं। इसी तरह वे घास व गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी सीगों पर
तेल लगाते हैं, तिलक लगाते हैं, रात में जल आदि से भी सन्तुष्ट करते हैं।)
चन्दन – मल्लिका! आओ। कुंभार के घर की ओर चलते हैं। दूध के लिए बर्तन का प्रबन्ध भी करना है। (दोनों ही निकलते हैं) सन्धिः विच्छेदः वा

सन्धिः विच्छेदः वा –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.13

प्रकृति – प्रत्ययोः – विभाजनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.14

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.15

उपपदविभक्तीनां प्रयोगः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.16

पद परिचयः –
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.17

6. (चतुर्थं दृश्यम्)

कुम्भकारः – (घटरचनायां लीनः गायति)

ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम्।
जीवनं भङ्गरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः॥

शब्दार्थाः-
ज्ञात्वा – जानकर
जीविकाहेतोः – जीवन का कारण
मृत्तिकाघट: – मिट्टी का घड़ा
घटान् – घड़ों को
जीवनम् – जीवन
एषः – यह।

अर्थ – (चौथा दृश्य)

कुंभार – (घड़े बनाने में व्यस्त है और गाता है)
मैं जानकर भी जीविका (जीवन के लिए साधन) के कारण ही इन घड़ों को बनाता हूँ। सारा जीवन टूटकर नष्ट होने योग्य हैं जैसे यह मिट्टी का घड़ा टूटकर समाप्त होने योग्य है।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
ज्ञात्वाऽपि – ज्ञात्वा + अपि
घटानहम् – घटान् + अहम्
भगुरम् – भम् + गुरम्
यथैष – यथा + एष

विशेषण – विशेष्य – चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
सर्वम्, भगुरम् – जीवनम्
एष – मृत्तिकाघटः

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.18

7. चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।
चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

शब्दार्था:-
पञ्चदश – पन्द्रह
दास्यसि – दोगे
विक्रयणाय – बेचने के लिए
विक्रीय – बेचकर, दातुम्
शक्यते – दिया जा सकता है
क्षम्यताम् – क्षमा करें
स्वाभूषणम् – अपने ज़ेवर को
अधुनैव – इसी समय ही
गृहाण – ले लो
पुत्रिके – बेटी,
आभूषणविहीनाम् – जेवरों से रहित
नयतु – ले जाओ
यथाभिलाषात् – इच्छानुसार
विक्रीय – बेचकर।

अर्थ
चन्दन – हे तात! नमस्कार करता हूँ। पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे? ।
देवेश – क्यों नहीं? बेचने के लिए ही हैं ये। घड़ों को ले लो। और पाँच सौ रुपये दे दो।
चन्दन – ठीक है। परन्तु मूल्य (दाम) तो दूध को बेचकर ही दिया जा सकता है।
देवेश – हे पुत्र क्षमा करो! बिना मूल्य (दान) के एक भी घड़ा नहीं दूंगा।
मल्लिका – (अपने आभूषणों को देना चाहती है) हे तात! यदि अभी कीमत देना आवश्यक (ज़रूरी) है तो, यह जेवर ले लो।
देवेश – बेटी! मैं पाप का काम नहीं करता हूँ। तुम्हें आभूषण विहीन कभी भी नहीं करना चाहता हूँ। इच्छानुसार
घड़ों को ले जाओ। दूध को बेचकर ही घड़ों की कीमत दे देना।
दोनों – तात! आप धन्य हो! धन्य हो।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः
नमस्करोमि – नमः + करोमि
पञ्चशतोत्तर – पञ्चशत + उत्तर
मूल्यं विना – मूल्यम् + विना
स्वाभूषणम् – स्व + आभूषणम्
अधुनैव – अधुना + एव
नाहम् – न + अहम्
नेच्छामि – न + इच्छामि
यथाभिलषितान् – यथा + अभिलषितान्
धन्योऽसि – धन्यो + असि / धन्यः + असि उपसर्गचयनम्

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.19

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
विशेषणानि – विशेष्याः
पञ्चदश – घटान्
पञ्चशतोत्तर – रूप्यकाणि
एकम् – घटम्
आवश्यकम् – मूल्यम्
एतत् – आभूषणम्
आभूषणविहीनाम् – त्वाम्
यथाभिलषितान् – घटान्

8. (पञ्चमं दृश्यम्)
(मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)

चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण
चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)

शब्दार्थाः
मासान्तरम् – महीने भर बाद
रिक्ताः – खाली
एकत्र – इकट्ठा
दुग्धक्रेतारः – दूध खरीदने वाले
अपरत्र – दूसरी ओर
आसीनाः – खड़े हैं
विधाय – करके
आह्वयति – बुलाता है
सत्वरम् – शीघ्र/जल्दी
दोहनम् – दुहने के काम को
आरभस्व – शुरू करो
दोग्धुम् – दुहना
पृष्ठपादेन – पीछे के पैर से
प्रहरति – मारती है
ते – तुम्हें
जातम् – हो गया है
पादप्रहारेण – पैर की चोट से
रक्तरञ्जितम् – लहुलुहान
ततोऽस्मि – मारा गया हूँ
चीत्कारम् – चीख,
अन्योन्यम्-एक-दूसरे को।
(पाँचवाँ दृश्य)

अर्थ-
(महीने भर बाद का सायंकाल। इकट्ठे ही खाली नये घड़े हैं। दूध खरीदने वाले और दूसरे गाँववासी दूसरी ओर खड़े हैं।)

चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण (पूजा) करके, मल्लिका को बुलाता है) हे मल्लिका! जल्दी आओ।
मल्लिका – आती हूँ स्वामी! तब तक दुहना शुरू करो।
चन्दन: (जब गाय के पास जाकर दुहना चाहता है, तब गाय पिछले पैर से मारती है और चन्दन बर्तन के साथ गिरता है) हे नन्दिनी! दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? फिर से कोशिश करता है) (और नन्दिनी बार-बार पैर की चोट से मारकर चन्दन को लहुलुहान कर देती है) हाय! मैं मार दिया गया। (चीखते हुए गिरता है) (सभी आश्चर्य से चन्दन और एक-दूसरे को देखते हैं)

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिः विच्छेदः
मासानन्तरम् – मास + अनन्तरम्
मङ्गलाचरणम् – मङ्गल + आचरणम्
चन्दनश्च – चन्दनः + च
हतोऽस्मि – हतो + अस्मि/हतः + अस्मि

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.20
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.21

9. मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम्? कथं त्वं रक्तरञ्जितः?
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्। (मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।) मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडाम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दनः – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम्। सत्यमेव उक्तम्
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्॥
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव। मयापि पठितं यत्
सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाटिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः॥
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।
सर्वे, – दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।

शब्दार्थाः –
चीत्कारम् – चीख को
झटिति – शीघ्र (जल्दी)
जातम् – हुआ
आरभमाणम् – शुरू करने वाले को
स्नेहेन – प्रेम से
वात्सल्येन – पुचकार से
आकार्य – बुलाकर
दुग्धहीना – दूध से रहित
अवगच्छति – समझती है
मासपर्यन्तम् – महीने भर तक
दोहनम् – दुहना
ज्ञातम् – जान लिया
पूर्णमासपर्यन्तम् – पूरे महीने तक
शुष्कम् – सूखा (सूखता)
यत् – जो
अद्यतनीयं – आज का
तत् – उसे
अद्यैव – आज ही
विधीयताम् – करना चाहिए
विपरीते – उल्टा/उल्टी/ विरुद्ध
लभते – पता है
ध्रुवम् निश्चय से, भर्तः!-हे स्वामी
सुविचार्य – अच्छी तरह
सोच – विचार करके
विद्यातव्यम् – करना चाहिए
कल्याणकाक्षिणा – कल्याण चाहने वाले के द्वारा
अविचार्य – बिना विचार करके
विषीदति – दु:खी होता है
मानव – मनुष्य
प्रत्यक्षतया – प्रत्यक्ष रूप से
कर्तव्यम् – करना चाहिए, ध्रुवम् निश्चय से

अर्थ
मल्लिका – (चीख को सुनकर, जल्दी प्रवेश करके) स्वामी! क्या हुआ? कैसे तुम लहुलुहान हो गए?
चन्दन – गाय दूध दुहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दुहने का काम शुरू करते ही मुझे मारती है।
(मल्लिका गाय को प्यार और पुचकार से बुलाकर दुहने की कोशिश करती है किन्तु गाय तो दुधविहीन है यह समझ जाती है।)
मल्लिका – (चन्दन की ओर) हे स्वामी! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया कि महीने भर तक गाय का दोहन नहीं
किया। वह पीड़ा (दर्द) को अनुभव कर रही है। इसलिए मारती है।
चन्दन – हे देवी! मुझे भी लगा कि हमने पूरी तरह से अमुचित ही किया कि पूरे महीने तक दोहन नहीं किया। इसीलिए दूध सूख गया। सत्य ही कहा गया है-आज का जो काम है, उसे आज ही करना चाहिए। जिसकी गति (काम करने का तरीका) उल्टी होती है, वह निश्चय ही कष्ट पाता है।
मल्लिका – हाँ स्वामी! सच ही। मैंने भी पढ़ा है यत्-कल्याण चाहने वाले मनुष्य के द्वारा अच्छी तरह से सोच-विचार कर काम को करना चाहिए। जो व्यक्ति बिना विचार किए काम करता है, वह दुखी होता है। किन्तु प्रत्यक्ष रूप से आज ही यह अनुभव किया। दिन का काम उसी दिन ही करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित कष्ट को अनुभव करता है।

सन्धिः विच्छेदः वा –
पदानि – सन्धिःविच्छेदः/सन्धिः
किं जातम् – किम् + जातम्
अत्यनुचितम् – अति + अनुचितम्
मयापि – मया + अपि
तदचैव – तत् + अद्य + एव
गतिर्यस्य – गतिः + यस्य
स कष्टम् – स: + कष्टम्
कष्टं लभते – कष्टम् + लभते
अद्य + एव – अद्यैव
तस्मिन्नेव – तस्मिन् + एव
कल्याणकाक्षिणा – कल्याणकाम् + क्षिणा
करोत्यविचार्यैतत् – करोति + अविचार्य + एतत्
विधातव्यं कार्यम् – विधातव्यम् + कार्यम्

विशेषण – विशेष्य – चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
रक्तरञ्जितः – त्वम्
आरभमाणम् – माम्
अद्यतनीयम् – कार्यम्
ध्रुवम् – कष्टम्
दुग्धहीना – धेनुः
पूर्णमासपर्यन्तम् – दोहनम्
शुष्कम् – दुग्धम्

प्रकृति-प्रत्ययो:-विभाजनम् पदानि
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.22
गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.23

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.24

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.25

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.26

10. (जवनिका पतनम्)
(सर्वे मिलित्वा गायन्ति)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्॥

शब्दार्थाः-
जवनिका – परदा
पतनम् – गिरता है
आदानस्य – लेने के
प्रदानस्य – देने के
कर्तव्यस्य – करने योग्य
कर्मणः – कर्म के
क्षिप्रम् – शीघ्र
अक्रियामाणस्य – न करने वाले के
काल: – समय
पिबति – पी जाता है
तत् – उसके
रसम् – रस/आनन्द को।।

अर्थ —
(परदा गिरता है।
(सभी मिलकर गाते हैं)
लेने के, देने के और कहने योग्य (अन्य) कर्म के शीघ्र न किए जाने पर समय उसका रस (आनन्द) पी जाता

गोदोहनम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 3.27

स्वर्णकाकः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 2

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 2 स्वर्णकाकः Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 2 स्वर्णकाकः Summary Notes

स्वर्णकाकः  Summary
स्वर्णकाकः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 2 .4

प्रस्तुत पाठ पद्मशास्त्री जी द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम्’ नामक कथा संग्रह से लिया गया है। इस कथा में सुनहरे पंखों वाले एक कौए के माध्यम से लोभ और उसके दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है। साथ में त्याग और उसके लाभ के बारे में बताया गया है। कथा का सार इस प्रकार है

किसी गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। उसने एक दिन थाली में चावल रखकर अपनी पुत्री से कहा-पुत्री, पंछियों से इसकी रक्षा करना। उसी समय एक विचित्र कौआ वहाँ आकर चावल खाने लगा। उस कन्या ने कौवे को मना किया तो उसने उसे एक पीपल के वृक्ष के पास आने के लिए कहा। कौवे ने उस लड़की की ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसे हीरे-जवाहरात दिए।
स्वर्णकाकः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 2 .5

उसी गाँव में एक लालची बुढ़िया भी रहती थी। वह सारे रहस्य जान गई। उसने ईर्ष्या वश उसी प्रकार का नाटक किया। उसकी बेटी घमंडी थी। कौवे के कहने पर उसने स्वर्णमय सोपान की माँग की। उस लड़की की हीन इच्छा को जानकर कौवे ने उसके सामने तीन पेटियाँ रख दीं। लोभ से भरी हुई उस लड़की ने सबसे बड़ी पेटी उठा ली। ज्यों ही उसने उसे खोला, त्योंही उसमें से काला साँप निकला। उस दिन से उस लड़की ने लालच का त्याग कर दिया।

स्वर्णकाकः Word Meanings Translation in Hindi

1. पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याः च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्। “सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्षा” किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् अगच्छत्।

शब्दार्थाः –
पुरा – प्राचीन काल में
निक्षिप्त – रखकर
कस्मिंश्चिद् – किसी (में)
आदिदेश – आदेश दिया
निर्धना – ग़रीब,
सूर्यातपे – सूरज की धूप में
न्यवसत् – रहती थी
खगेभ्यः – पक्षियों से
दुहिता – पुत्री
किञ्चिद् – कुछ
विनम्रा – नम्र स्वभाव वाली
कालात् – समय से (के)
मनोहरा – सुंदर
अनन्तरम् – बाद में
एकदा – एक बार
समुड्डीय – उड़कर
स्थाल्याम् – थाली में
तण्डुलान् – चावलों को।

अर्थ –
प्राचीन समय में किसी गाँव में एक निर्धन (ग़रीब) बुढ़िया स्त्री रहती थी। उसकी एक नम्र स्वभाव वाली और सुंदर बेटी थी। एक बार माँ ने थाली में चावलों को रखकर पुत्री को आज्ञा दी – सूर्य की गर्मी में चावलों की पक्षियों से रक्षा करो। कुछ समय बाद एक विचित्र कौआ उड़कर वहाँ आया।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः – 
अव्ययः वाक्येषु प्रयोगः
पुरा – पुरा रामः अयोध्यायाः नृपः आसीत्।
च् – श्रीकृष्णः बलरामश्च च् भ्रातरौ आस्ताम्।
अनन्तरम् – स्नानात् अनन्तरं शरीराङ्गानि स्वच्छानि भवन्ति।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
कस्मिंश्चित् – ग्रामे
एका, विनम्रा, मनोहरा – दुहिता
एका, निर्धना, वृद्धा – स्त्री
एकः, विचित्रः – काकः

2. नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत् “तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, “मा शुचः। सूर्योदयात्प्राग् ग्रामाबहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वया आगन्तव्यम्। अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।” प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे।

शब्दार्थाः –
एतादृशः – ऐसा (इस तरह का)
स्वर्णपक्षः – सोने, के पंख वाला
रजतचञ्चुः-चाँदी की चोंच वाला
पूर्वम् – पहले
खादन्तम् – खाते हुए को
प्रोवाच – बोला/बोली
हसन्तम् – हँसते हुए को
शुचः – शोक करो,
दितम् – रोना
प्राग – पहले
आरब्धा – शुरू कर दिया
पिप्पलक्षमन – पीपल के वृक्ष के, पीछे
निवारयन्ती – हटाती हुई
आगन्तव्यम् – आना
प्रार्थयत् – प्रार्थना की
तुभ्यम् – तुम्हें
भक्षय – खाओ
प्रहर्षिता – प्रसन्न
मदीया – मेरी
निद्राम् – नींद को
अतीव – बहुत अधिक
लेभे – ले पाई

अर्थ –
उसके द्वारा ऐसा सोने के पंखों वाला और चाँदी की चोंच वाला सोने का कौआ पहले नहीं देखा गया था। उसको चावलों को खाते और हँसते हुए देखकर लड़की ने रोना शुरू कर दिया। उसको हटाती हुई उसने प्रार्थना की-चावलों को मत खाओ। मेरी माँ बहुत गरीब है। सोने के पंख वाला कौआ बोला, शोक मत करो। सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे तुम आना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य (कीमत) दे दूँगा। प्रसन्नता से भरी लड़की नींद भी नहीं ले पाई।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
एतादृशः, स्वर्णपक्षः, रजतचञ्चुः – स्वर्णकाकः
निवारयन्ती – सा
स्वर्णपक्षः – काकः
खादन्तम्, हसन्तम् – तम्
मदीया, निर्धना – माता
प्रहर्षिता – बालिका

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पूर्वम् – सः बालकः पूर्वम् अत्र नागच्छत्।
विलोक्य – पितरम् विलोक्य पुत्रः प्रसन्नः अभवत्।
अतीव – अधुना अहम् अतीव श्रान्तः अस्मि।
मा – त्वं तत्र मा गच्छ।
बहिः – सः ग्रामात् बहिः निरगच्छत्।
अनु – विद्यालयम् अनु छात्राः तिष्ठन्ति।
अपि – ते अपि गुणिनः सन्ति।

3. सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता। वृक्षस्योपरि विलोक्य सा च आश्चर्यचकिता सञ्जाता यत् तत्र स्वर्णमयः प्रासादो वर्तते। यदा काकः शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन. स्वर्णगवाक्षात्कथितं “हंहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयम् ताम्रमयं वा?” कन्या अवदत्”अहं निर्धनमातुः दुहिता अस्मि। ताम्रसोपानेनैव आगमिष्यामि।” परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्ण-भवनम् आरोहत।

शब्दार्थाः –
पूर्वमेव – पहले से ही
हहो – अरे/हे
उपस्थिता – उपस्थित थी
आगता – आ गई।
वृक्षस्योपरि – वृक्ष के ऊपर
त्वत्कते – तम्हारे लिए.
आश्चर्यचकिता – हैरान,
अवतारयामि – उतारता हूँ.
सजाता – हो गई.
उत – और
स्वर्णमयः – सोने से बना,
प्रावोचत् – बोली,
प्रासादः – महल,
मातः – माँ की,
वर्तते – है,
दुहिता – बेटी
शयित्वा – सोकर,
ताम्रसोपानेन – ताँबे की सीढ़ी से,
प्रबुद्धः – जागा,
स्वर्णभवनम् – सोने के महल में,
स्वर्णगवाक्षात् – सोने की खिड़की से
आससाद – पहुँची।

अर्थ –
सूर्योदय से पहले ही वह (लड़की) वहाँ पहुँच गई। वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई कि वहाँ सोने का महल है। जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिड़की से झाँककर कहा–अरे बालिका! तुम आ गई, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी को उतारता हूँ, तो कहो सोने की, चाँदी की अथवा ताँबे की, किसकी उतारूँ? कन्या बोली-मैं निर्धन (ग़रीब) माँ की बेटी हूँ। ताँबे की सीढ़ी से ही आऊँगी। परंतु सोने की सीढ़ी से वह स्वर्णभवन में पहुँची।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पूर्वम् – खगाः सायं कालात् पूर्वमे व स्वनीडमागच्छन्ति
तत्र – सः तत्र गच्छति तत्र तस्य माता अस्ति।
उपरि – गृहस्य उपरि खगाः तिष्ठन्ति।
यत् – अहं कथयामि यत् त्वं तत्र तिष्ठ।
यदा – यदा श्रीकृष्णः उपदिशति।
तदा – तदा अर्जुनः युद्धम् अकरोत्।
वा – सुखे वा दु:खे वा सदैव शान्तः भवेत्।
एव – माता एव पुत्रस्य हितं करोति।
यद्यपि सः खञ्जोऽस्ति परम् अतीव तत्परो प्रतीयते।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
आश्चर्यचकिता – सा
प्रबुद्धः – काकः
स्वर्णमयः – प्रासादः
स्वर्णमयम् – भवनम्

4. चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः अवदत् “पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम् उत ताम्रस्थाल्याम्”? बालिका अवदत्-ताम्रस्थाल्याम् एव अहं-“निर्धना भोजनं करिष्यामि।” तदा सा आश्चर्यचकिता सजाता यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं पर्यवेषितम्। न एतादृशम् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। काकोऽवदत्-बालिके! अहमिच्छामि यत् त्वम् सर्वदा अत्रैव तिष्ठ परं तव माता तु एकाकिनी वर्तते। अतः “त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ।”

शब्दार्थाः –
चिरकालम – बहुत देर तक
स्वर्णस्थाल्याम – सोने की थाली में
सज्जितानि – सजी हुई
रजतस्थाल्याम् – चाँदी की थाली में
विस्मयम् – हैरानी को
उत – या/अथवा
गता – प्राप्त हुई
व्याजहार – बोली/बोला
श्रान्ताम् – थकी हुई को
निर्धना – ग़रीब
विलोक्य – देखकर
आश्चर्यचकिता – हैरान
प्राह – बोला
सज्जाता – हो गई
पूर्वम् – पहले
पर्यवेषितम – परोसा (दिया)
लघप्रातराश: – थोडा नाश्ता (जलपान)
एतादक – ऐसा
क्रियताम – करो
स्वादु – स्वादिष्ट
अद्यावधि – आजतक
सर्वदा – सदा (हमेशा)
खादितवती – खाई भी
अत्रैव (अत्र+एव) – यहीं
ब्रूते – बोला, एकाकिनी-अकेली।

अर्थ –
बहुत देर तक भवन में चित्रविचित्र (अनोखी) वस्तुओं को सजी हुई देखकर वह हैरान रह गई। उसको थकी हुई देखकर कौआ बोला-पहले थोड़ा नाश्ता करो-बोलो तुम सोने की थाली में भोजन करोगी या चाँदी की थाली में या ताँबे की थाली में? लड़की बोली-ताँबे की थाली में ही मैं ग़रीब भोजन करूँगी (खाना खाऊँगी)। तब वह कन्या और आश्चर्यचकित हो गई जब सोने के कौवे ने सोने की थाली में (उसे) भोजन परोसा। ऐसा स्वादिष्ट भोजन आज तक उस लड़की ने नहीं खाया था। कौआ बोला-हे बालिका (लडकी)! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं रहो परंतु तुम्हारी माँ अकेली है। तुम जल्दी ही अपने घर को जाओ।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पूर्वम् – ग्रामात् पूर्वम् जलाशयः विद्यते।
वा – बाल:भवेत् बालिका वा, सम्पूर्ण स्नेहं कुर्यात्।
एव – एव मम भागिनी वर्तते।
यदा-तदा – यदा बालः गृहं गमिष्यति तदा भोजनं खादिष्यति।
अद्यावधि – रामम् इव अद्यावधि कश्चिदपि न अभवत्।
च – भ्राता भगिनी विद्यालयं गच्छतः।
अत्र – अत्र मम जन्मस्थानम् अस्ति।
शीघ्रम् – अधुना अहं विद्यालयं शीघ्रं गच्छामि।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
सज्जितानि – चित्रविचित्रवस्तूनि
निर्धना – अहम्
एतादृक् स्वादु – भोजनाम
श्रान्ताम् – ताम्
सा, आश्चर्यचकिता – कन्या
एकाकिनी – माता

5. इत्युक्त्वा काकः कक्षाभ्यन्तरात् तिस्त्रः मञ्जूषाः निस्सार्य तां प्रत्यवदत्-“बालिके! यथेच्छं गृहाण मञ्जूषामेकाम्।” लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितम् इयत् एव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्। गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दिनाद्धनिका च सञ्जाता।

शब्दार्था: –
इत्युक्त्वा – ऐसा कहकर के
कक्षाभ्यन्तरात् – कमरे के अंदर से
मञ्जूषा: – बक्से
निस्सार्य – निकालकर
प्रत्यवदत् – बोला
यथेच्छम् – इच्छापूर्वक (इच्छा के अनुसार)
लघुतमाम् – सबसे छोटी (को)
प्रगृह्य – लेकर
इयदेव – इतना ही
मदीय – मेरे
समुद्घाटिता – खोला (खोला गया)
महार्हाणि – महँगे (बहुमूल्य)
प्रहर्षिता – प्रसन्न हो गई
तद्दिनात् – उसी दिन से
सञ्जाता – हो गई।

अर्थ –
ऐसा कहकर कौए ने कमरे के अंदर से तीन बक्से निकालकर उसको कहा- हे कन्या! अपनी इच्छा से एक संदूक ले लो। सबसे छोटी संदूक को लेकर लड़की ने कहा-यही मेरे चावलों की कीमत है। घर आकर उसने संदूक को खोला, उसमें बहुत कीमती (मूल्यवान) हीरों को देखकर वह बहुत खुश हुई और उसी दिन से वह धनी हो गई।

अव्ययानां वाक्येष प्रयोग –
अव्ययः – वाक्येषु प्रयोगः
इति –  इति कथयित्वा छात्रः विद्यालयम् अगच्छत्।
एव – त्वम् एव मम बन्धुः वर्तते।
च – रामः श्यामः मित्रे स्तः।

विशेषण-विशेष्य चयनम –
तिस्त्रः – मञ्जूषाः
इयत्मू – ल्यम्
प्रहर्षिता, धनिका – सा
एकाम् – मञ्जूषाम्
महार्हाणि – हीरकाणि

6. तस्मिन्नेव ग्रामे एका परा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। तस्या अपि एका पुत्री आसीत्। ईर्ण्यया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्। प्रातस्तत्र गत्वा सा काकं निर्भर्त्सयन्ती प्रावोचत्-“भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ।” काकोऽब्रवीत्-“अहं त्वत्कृते सोपानम् अवतारयामि। तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं वा।” गर्वितया बालिकया प्रोक्तम्- “स्वर्णमयेन सोपानेन अहम् आगच्छामि।” परं स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्। स्वर्णकाकस्तां भोजनमपि ताम्रभाजने एव अकारयत्।

शब्दार्था: –
तस्मिन्नेव – उसी
निर्भर्त्सयन्ती – बुरा-भला कहती हुई
अपरा – दूसरी
प्रावोचत् – बोला
न्यवसत् – रहती थी
आगता – आ गई
रहस्यम् – गुप्त बात को
मह्यम् – मुझे
अभिज्ञातवती – जान गई
त्वत्कृते – तुम्हारे लिए
सूर्यातपे – सूर्य की धूप में
सोपानम् – सीढ़ी को
निक्षिप्य – रखकर/फैलाकर
अवतारयामि – उतारता हूँ
स्वसुता – अपनी पुत्री
तत्कथय – तो कहो
रक्षार्थम् – रखवाली के लिए
गर्वितया – घमंडी
नियुक्ता – बिठा दी
प्रोक्तम् – कहा गया/ कहा
तथैव – वैसे ही
तत्कृते – उसके लिए
भक्षयन् – खाते हुए
प्रायच्छत् – दिया
तत्रैव – वहीं
ताम्रभाजने – ताँबे के पात्र में
आवारयत् – बुलाया,
अकारयत् – कराया।

अर्थ –
उसी गाँव में एक दूसरी लालची बुढ़िया स्त्री रहती थी। उसकी भी एक बेटी थी। ईर्ष्या से उसने उस सोने के कौए का रहस्य जान लिया। सूर्य की धूप में चावलों को रखकर (फैलाकर) उसने भी अपनी बेटी को उसकी रक्षा के लिए बिठा (नियुक्त कर) दिया। वैसे ही सोने के पंख वाले कौए ने चावलों को खाते हुए उसको (लड़की को) भी या। सबह वहाँ जाकर वह कौए को बरा-भला कहती हई बोली- हे नीच कौए! मैं आ गई हूँ, मुझे चावलों का मल्य दो। कौआ बोला- मैं तुम्हारे लिए सीढी उतारता हूँ। तो कहो सोने से बनी हुई, चाँदी से बनी हुई अथवा ताँबे से बनी हुई। घमंडी लड़की बोली- सोने से बनी हुई सीढ़ी से मैं आती हूँ परंतु सोने के कौए ने उसे ताँबे से बनी हुई सीढ़ी ही दी। सोने के कौए ने उसे भोजन भी ताँबे के बर्तन में कराया।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
एव – एषः एव मम भ्राता अस्ति।
अपि – त्वम् अपि स्वकथां श्रावय!
तथैव – बालकः अपि तथैव करोति यथा तस्य पिता करोति।
तत्रैव – रामः तत्रैव तिष्ठति यत्र तस्य गुरुः आदिशत्
तत्र – त्वमपि तत्र गच्छ!
हि – त्वं हि नः पिता वर्तसे।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्य
तस्मिन् – ग्रामे
एका – पुत्री
निर्भर्त्सयन्ती – सा
गर्वितया – बालिकया
एका, अपरा, लुब्धा – वृद्धा
स्वर्णपक्षः – काक:
स्वर्णमयम्/ताम्रमयम् /रजतमयम् – सोपानम्
स्वर्णमयेन – सोपानेन

7. प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात् तिम्रः मञ्जूषाः तत्पुरः समुत्क्षिप्ताः। लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत् तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। तदनन्तरं सा लोभं पर्यत्यजत्।

शब्दार्थाः –
प्रतिनिवृत्तिकाले – वापस जाते समय
लोभाविष्टा – लालची
कक्षाभ्यन्तरात् – कमरे के अंदर से
बृहत्तमाम् – सबसे बड़ी
तिस्त्रः – तीन
गृहीतवती – ले ली
मञ्जूषाः – संदूकें (पेटियाँ),
तर्षिता – व्याकुल
तत्पुरः – उसके सामने
उद्घाटितवती – खोला/खोली
समुत्क्षिप्ताः – रख दी
भीषण:- भयानक
कृष्णसर्पः – काला साँप
विलोकितः – देखा
लुब्धया – लालची
प्राप्तम् – प्राप्त किया गया
पर्यत्यजत् – छोड़ दिया।

अर्थ –
वापस होते समय सोने के कौए ने कमरे के अंदर से तीन पेटियाँ (संदूकें) उसके सामने रख दीं। लालची लड़की ने सबसे बड़ी पेटी ले ली। घर आकर व्याकुल वह जब संदूक खोलती है तो उसमें अचानक काला साँप देखा। लालची लड़की ने लालच का फल पाया। उसके बाद उसने लालच छोड़ दी।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
अव्ययः – वाक्येषु प्रयोगः
तत्पुरः – रामः बालकं दृष्ट्वा तत्पुरः भोजनम् कृतवान्।
यावद् – यावद् सः पठिष्यति।
तावत् – तावत् तस्य जीवनम् उन्नति करिष्यति।
अनन्तरम् – पठनात् अनन्तरं सः अधिकारी अभवत्।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
तिस्रः – मज्जूषाः
बृहत्तमाम् – मञ्जूषाम्
भीषणः – कृष्णसर्पः
लोभाविष्टा – सा
तर्षिता – सा
लुब्धया – बालिकया

भारतीवसन्तगीतिः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 1

By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 1 भारतीवसन्तगीतिः Summary Notes

भारतीवसन्तगीतिः Summary

भारतीवसन्तगीतिः Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 1.1

हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी कवि पं० जानकी वल्लभ शास्त्री, संस्कृत के भी श्रेष्ठ कवि हैं। इनका एक गीत संग्रह ‘काकली’ नाम से प्रसिद्ध है। प्रस्तुत पाठ इसी संग्रह से लिया गया है। सरस्वती देवी की वंदना करते हुए कवि कहता है कि हे सरस्वती! अपनी वीणा का वादन करो ताकि मधुर मंजरियों से पीत पंक्तिवाले आम के कोयल का कूजन तथा वायु का मंद-मंद चलना वसन्त ऋतु में मोहक हो जाएँ। साथ-साथ काले भँवरा का गुंजार और नदियों का जल मोहक हो उठे। यह गीत स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। यह गीत जन-जन के हृदय में नवीन चेतना का संचार करता है। इससे सामान्य लोगों में स्वाधीनता की भावना जागती है।

भारतीवसन्तगीतिः Word Meanings Translation in Hindi

1. निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदुं गाय गीति ललित-नीति-लीनाम्।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-माला:
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्॥
निनादय… ॥

शब्दार्था: –
नवीनामये – सुंदर मुखवाली
वाणि – हे सरस्वती
वीणाम् – वाणी को
गाय – गाओ, गीतिम्-गीत को
मधुर – मीठी (मीठे)
काकलीनाम् – कोयल के स्वरों की।

अर्थ –
हे सरस्वती (वाणी) आप अपनी नवीन वीणा को बजाओ। आप  सुंदर नीति से युक्त (लीन) मीठे गीत गाओ। वसंत ऋतु में मीठे आम के फूलों की पीले रंग की पंक्तियों से और कोयलों की सुंदर ध्वनिवाले यहाँ मधुर आम के पेड़ों के समूह शोभा पाते हैं।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
अव्ययः  — वाक्येषु प्रयोगः
अये — अये बालक! त्वां कुत्र गच्छतिः
इह (यहाँ) — इह मधुरं स्वरं सर्वत्र गुञ्जति।

विशेषण-विशेष्य चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
नवीनाम् – वीणाम्
सरसाः रसाला – कलापाः
ललित-नीति-लीनाम् – नीतिम्

2. वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम्॥
निनादय… ॥

शब्दार्था: –
मन्दमन्दम् – धीरे-धीरे,
वहति – बहती हुई,
कलिन्द आत्मजाया: – कलिन्द की पुत्री के (यमुना के),
पङ्क्तिम् – पंक्ति को,
अवलोक्य – देखकर।

अर्थ –
यमुना नदी के बेंत की लता से युक्त तट पर जल से पूर्ण हवा धीरे-धीरे बहती हुई (फूलों से) झुकी हुई मधुमाधव की लताओं की पंक्ति को देखकर हे वाणी (सरस्वती)! तुम नई वीणा बजाओ।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
अव्ययः – वाक्येषु प्रयोगः
मन्दमन्दम् – पवनः अधुना मन्दमन्दम् चलति

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
सनीरे – समीरे
नताम् – पङ्क्तिम्

3. ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुजे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्ज,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्॥
निनादय… ॥

शब्दार्थाः –
पादपे – पौधे पर
मलिनाम् – काले रंग वाले
अलीनाम् – भौरों की
ततिम् – पंक्ति को
प्रेक्ष्य – देखकर।

अर्थ-
सुन्दर पत्तोंवाले वृक्ष (पौधे), फूलों के गुच्छों तथा सुन्दर कुंजों (बगीचों पर चंदन के वृक्ष की सुगंधित हवा से स्पर्श किए गए गुंजायमान करते हुए भौरों की काले रंग की पंक्ति को देखकर (हे वाणी! तुम नई वीणा बजाओ।)

पर्यायपदानि –
पदानि – पर्यायाः
ललित पल्लवे – मनोहरपल्लवे
मञ्जुकुञ्ज – शोभनलताविताने

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
ललित पल्लवे – पादपे
मलयमारुतोच्चुम्बिते – मञ्जुकुञ्ज
स्वनन्तीम् – ततिम्

4. लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्च
लेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
‘तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम्॥
निनादय… ॥

शब्दार्थाः –
लतानाम् – बेलों की (के)
नितान्तम् – पूरी तरह से
सुमम् – फूल
चलेत् – हिलने लगे
तव – तुम्हारी
आकर्ण्य – सुनकर
वीणाम् – वीणा को
अदीनाम् – तेजस्विनी।

अर्थ-
हे वाणी (सरस्वती)! ऐसी वीणा बजाओ कि तुम्हारी तेजस्विनी वाणी को सुनकर लताओं (बेलों) के पूर्ण शांत रहने वाले फूल हिलने लगें, नदियों का सुंदर जल क्रीडा (खेल) करता हुआ उछलने लगे।

पर्यायपदानि –
पदानि – पर्यायाः
सलीलम् – क्रीडासहितम्
आकर्ण्य – श्रुत्वा

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् विशेष्यः
शान्तिशीलम् – सुमम्
अदीनाम् – वीणाम्

Class 9 Sanskrit Grammar Book Solutions उपसर्गाः

We have given detailed NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Grammar Book उपसर्गाः Questions and Answers come in handy for quickly completing your homework.

Sanskrit Vyakaran Class 9 Solutions उपसर्गाः

प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु पदेषु उपसर्गान् धातून् च पृथक् कृत्वा लिखत
Class 9 Sanskrit Grammar Book Solutions उपसर्गाः 1
उत्तर:
1. निर्, गम, अगच्छत्
2. निस् , सृ , सरतु
3. प्रति, वद्, अवदत्
4. वि, शिष्, शिष्यते
5. अनु ,कृ ,अकरोत्
6. प्र ,सीद, सीदामि
7. अव ,गम् ,अगच्छत्
8. उप ,विश्, विशाम
9. अप कृ अकुर्वन
10. वि, जि, जयते

प्रश्न 2.
कोष्ठकात् शुद्धपदानि चित्वा रिक्तस्थाने लिखत

1. हे प्रभो! मयि …………… (प्रासीदतु/प्रसीदतु)
2. गुरुः शिष्यस्य अज्ञानम् ………….. (उपहरति/अपहरति)
3. वानराः जनान् ………….. (अनुकुर्वन्ति/अन्वकुर्वन्ति)
4. अहं संस्कृतम् ……………… (अवजानामि/अवाजानामि)
5. ……………….. सत्यम् एव वदनीयम्। (आजीवनम्/आजीवन:)
6. अध्यापकः प्रश्नान् पृच्छति। छात्रा: ………….. (प्रतिवदन्ति/संवदन्ति)
7. गुरुः आश्रमात् ………….. (प्रविशति/निर्गच्छति)
8. वयं चलचित्रं द्रष्टुम् अत्र ………….. (अवागच्छाम/आगच्छाम)
9. नदी पर्वतात् ………….. (प्रवहति/ उद्भवति)
उत्तर:
1. प्रसीदतु
2. अपहरति
3. अनुकुर्वन्ति
4. आजीवनम्
5. आजीवनम्
6. प्रतिवदन्ति
7. निर्गच्छति
8. आगच्छाम
9. उद्भवति

प्रश्न 3.
1. हारः, योगः इति शब्दाभ्यां सह अधोलिखितान् उपसर्गान् संयुज्य प्रत्येकं पदद्वयस्य निर्माणं कुरुत। निर्मितैः पदैः च
सार्थकवाक्यानि रचयत
उपसर्गाः- आ, वि, प्र।

2. ‘भू’, ‘ह’, इति एताभ्याम् धातुभ्यां प्राक् अधोलिखितान् उपसर्गान् संयुज्य प्रत्येकं पदद्वयस्य निर्माणं कुरुत। निर्मितैः पदैः
च सार्थकवाक्यानि रचयत
उपसर्गाः- प्र, अनु।
उत्तर:
पदैः –
1. आहार: , विहार: , प्रहार:
2. आयोग: ,  वियोग: , प्रयोग:

वाक्यानि
1.
(i) बालस्य आहारः उचितमेव भवेत्।
(ii) देवस्य प्रहारः असह्यो भवति।
(iii) सदैव वन विहारः कर्तव्यः।

2.
(i) निरीक्षण आयोगः सर्वान् पश्यति।
(ii) शुद्धस्य क्रियारुपस्य प्रयोगः कुर्यात्।
(iii) पुत्रस्य वियोगः असह्यः भवति।

2. पदैः-
1. प्रभवति, अनुभवति।
2. प्रहरति, अनुहरति।

वाक्यानि
1.
(i) गंगा हिमालयात् प्रभवति
(ii) सः पीडाम् अनुभवति

2.
(i) दुष्टः सज्जने प्रहरति
(ii) पुत्रः पितरम् अनुहरति