NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1 ध्वनि

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BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 8
SubjectHindi Vasant
ChapterChapter 1
Chapter Nameध्वनि
Number of Questions Solved16
CategoryNCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1 ध्वनि

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

कविता से
1. कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?
उत्तर :
कवि का अंत अभी नहीं होगा, उसे ऐसा विश्वास इसलिए है क्योंकि कवि जीवन के प्रति निराश नहीं हैवह उत्साह और ऊर्जा से भरा हुआ हैउसके उपवन में अभी-अभी वसंत का आगमन हुआ हैउसे युवकों को उत्साहित करने जैसे अनेक कार्य करने हैं तथा स्वयं की रचनाओं तथा कार्यों की खुशबू चारों ओर बिखेरनी है।

2. फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन-सा प्रयास करता है?
उत्तर :
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए तथा उनकी महक बनाए रखने के लिए कवि उनका आलस्य छीन लेना चाहता हैवह उन्हें अनंत समय तक खिले रहने के लिए प्रेरित करना चाहता हैवह उनकी आँखों की बोझिलता दूर करना चाहता हैकवि उन फूलों को अपने नवजीवन के अमृत से अभिसिंचित करना चाहता है

3. कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है?
उत्तर :
कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर करने के लिए अपने स्वप्निल तथा कोमल हाथ फेरना चाहता है, जिससे पुष्प चुस्त, सजग तथा महक बिखेरते हुए पुष्पित-पल्लवित हो सकेंवह उनको वसंत के मनोहर प्रभात का संदेश देना चाहता हैऐसा करते हुए कवि चाहता है कि फूल खिलकर वसंत के सौंदर्य को और भी मनोहारी बना दें।

कविता से आगे

1. वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है? आपस में चर्चा कीजिए
उत्तर :
भारतवर्ष में क्रमश: आने वाली छह ऋतुओं से पाँच के अपने गुण तो हैं पर उनकी हानियाँ तथा नकारात्मक प्रभाव भी हैंवसंत ऋतु में न वर्षा ऋतु जैसा कीचड़ होता है न ग्रीष्म ऋतु जैसी तपन, उमस और पसीने की बदबू इसी प्रकार ने शिशिर ऋतु की ठंडक, न हेमंत ऋतु की हाड़ कॅपाती सर्दी और चारों ओर पाले की मार, वृक्षों की पत्तियाँ तक गिर जाती हैवसंत ऋतु में सर्दी-गर्मी समान होने से मौसम अत्यंत सुहावना होता हैपेड़ों पर लाल-लाल पत्ते, कोपलें तथा हरे-भरे पत्तों के बीच रंग-बिरंगे फूलों के गुच्छे तो पेड़ों के गले में हार के समान दिखाई देते हैंमदमाती कोयल का गान, तन-मन को महकाती हवा तथा पूरे यौवन का जोश लिए प्रकृति की छटा देखते ही बनती हैयह ऋतु मनुष्य, पशुपक्षी तथा अन्य जीवों को प्रसन्न कर देती है, इसलिए इस ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है

2. वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबंध लिखिए
उत्तर :
वसंत ऋतु का समय फाल्गुन, चैत तथा वैसाख माह के आरंभिक दिनों अर्थात् मार्च-अप्रैल होता हैइसकी अवधि लगभग दो माह होती हैइस ऋतु में निम्नलिखित त्योहार मनाए जाते हैं
(क) वसंत पंचमी-इस त्योहार पर लोग पीले वस्त्र धारण करते हैंकिसान शाम को पूजन के उपरांत नई फसल का अनाज मुँह में डालते हैं? इसी दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती हैजगह-जगह पंडालों में सरस्वती की मूर्तियाँ स्थापित कर उनकी स्तुति तथा अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं
(ख) महाशिवरात्रि-इस दिन लोग व्रत रखते हैंवे शिवालय में जाकर भगवान शिव, पार्वती और गणेश की पूजा करते हैं
(ग) बैसाखी-पंजाब प्रांत में फसलों के पक जाने की खुशी में किसानों दूद्वारा यह त्योहार अत्यंत धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैइसी दिन हिंदू धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को अर्पित करने वाले वीर हकीकत राय की याद में बैसाखी का त्योहार मनाया जाता

निबंध – होली – भारत पर्व-त्योहारों का देश हैवर्ष में शायद ही ऐसी कोई ऋतु या महीना हो जब यहाँ कोई पर्व ने मनाया जाता हो यहाँ रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा, ईद, होली, गुडफ्राइडे, ओणम् आदि त्योहार मनाए जाते हैंइनमें होली के त्योहार का अपना अलग ही महत्त्व है जो पूरे देश में अत्यंत धूमधाम एवं उल्लास के साथ मनाया जाता हैबच्चे, बूढ़े, जवान, युवक-युवतियाँ सभी उम्र के व्यक्ति इस त्योहार को हर्षोल्लास से मनाते हैंयह त्योहार उल्लास से सराबोर करने वालाहै, जिसमें लोगों के मन की कटुता बह जाती है।

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला सबसे मुख्य त्योहार हैयह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैऐसा लगता हैकि यह त्योहार ऋतुराज वसंत के आगमन की सूचना देता हैहेमंत ऋतु में सर्दी की अधिकता से पेड़-पौधे अपनी पत्तियाँ गिराकर ढूँठ जैसे दिखाई देते हैंऋतुराज वसंत के स्वागत में ये पेड़ नई-नई पत्तियाँ, कोमल कलियाँ एवं फूल धारण कर लेते हैंइससे प्रकृति का सौंदर्य बढ़ जाता है, जो इस त्योहार की मस्ती और आनंद को कई गुना बढ़ा देता हैयह वसंत की मादकता का ही असर है कि रंग और गुलाल से सराबोर होने पर भी हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

इस त्योहार को मनाने के पीछे अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैंएक पौराणिक आख्यान के अनुसार हिरण्यकश्यप नामक दानव अत्यंत क्रूर और अत्याचारी थावह ईश्वर के महत्त्व तथा अस्तित्व को नहीं मानता थावह लोगों को ईश्वर-पूजा के लिए मना करता और ऐसा न करने वालों को वह अत्यंत क्रूरता से दंडित करता थावह स्वयं को भगवान समझता था और लोगों से अपनी पूजा करवाता थाउसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का अनन्य भक्त थावह अपने पुत्र द्वारा ईश्वर की पूजा-अर्चना सह न सका और उसने उस पर तरह-तरह के अत्याचार करना शुरू कर दियावह चाहता था कि उसका पुत्र भी उसे ही भगवान मानकर उसकी पूजा करता रहेप्रहलाद द्वारा ऐसा न करने पर वह प्रहलाद को मारने के लिए तरह-तरह के उपाय आजमाने लगाजब हिरण्यकश्यप के सभी उपाय बेकार हो गए तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलवायाहोलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग से जल नहीं सकतीहोलिका और हिरण्यकश्यप ने इस वरदान का दुरुपयोग करना चाहा और योजनानुसार होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई, जिससे प्रहलाद जल कर मर जाए, किंतु परिणाम उनकी सोच के विपरीत निकलाहोलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गयाबुराई पराजित हुईउसी की याद में पूर्णिमा की रात में होलिका दहन कर बुराइयों को भस्म किया जाता है।

अगले दिन प्रात:काल से चारों ओर रंग और गुलाल उड़ता दिखाई पड़ता हैसभी वर्ग के लोग इस त्योहार को अत्यंत धूमधाम से मनाते हैंवे रंगों से सराबोर होकर अबीर-गुलाल लगाते हुए एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएँ देते फिरते हैंइस दिन धनी-निर्धन का, बालक-वृद्ध का, विद्वान-मूर्ख का भेद मिट जाता हैचेहरे पर रंग पुते होने से लोगों की असलियत का पता नहीं चलता हैसभी रंगों की मस्ती में डूबे होते हैंगलियाँ, सड़कें रंग तथा अबीर से लाल, हरी, पीली दिखती हैंबच्चे रंग-बिरंगी पिचकारियों में तरह-तरह के रंग भरकर एक-दूसरे पर डालते फिरते हैंसड़कों तथा गलियों में युवक एक-दूसरे को रंग में भिगोते, एक-दूसरे पर अबीर मलते तथा हुड़दंग मचाते घूमते फिरते हैंग्रामीणों में इस त्योहार का उत्साह देखते ही बनता हैवे झाँझ, मृदंग और करताल लेकर फाग गाते हैं‘होरी खेले रघुबीरा अवध में होरी खेले रघुबीरा’ की गूंज चारों ओर सुनाई देती हैब्रजक्षेत्र के बरसाने की होली भारत में ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध हैइसी दिन दोपहर बाद लोग नए एवं साफ कपड़े पहनकर लोगों से मिलने-जुलने जाते हैंइस दिन विशेष पकवानगुझियाँ तथा अन्य मिठाइयाँ आने-जाने वालों को खिलाई जाती हैं।

लोग इस दिन अपने मन का मैल धोकर एक-दूसरे से गले मिलते हैंऔर संबंधों को पुनर्जीवित करते हैंहोली का त्योहार हमें भाईचारा तथा आपसी सौहार्द बढ़ाने का संदेश देता हैलोग अपना वैर-भाव त्यागकर एक-दूसरे से गले मिलते हैंकुछ लोग इस त्योहार को विकृत करने की कोशिश करते हैंवे रंगों की जगह तारकोल, पेंट, ग्रीस, तेल आदि लोगों के चेहरे पर मलते हैं जो अत्यंत हानिप्रद होता हैइससे आँखों की ज्योति जाने का खतरा होता हैइस दिन कुछ लोग शराब पीकर हुड़दंग मचाते हैं और त्योहार की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं।

रंगों एवं मस्ती के इस त्योहार को हमें अत्यंत शालीनतापूर्वक मनाना चाहिएरंग और अबीर मलने के लिए किसी के साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहिएहमें इस त्योहार की पवित्रता बनाए रखना चाहिए जिससे हमारे बीच प्रेम, सद्भाव तथा मेल-जोल बढ़ सके, तथा ‘होली आई, खुशियाँ लाई’ चरितार्थ हो सके।

3. “ऋतु परिवर्तन को जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”-इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं? लिखिए।
उत्तर :
विभिन्न ऋतुएँ साल के विभिन्न महीनों में बारी-बारी से आती हैं और अपनी सुंदरता बिखेर जाती हैंऋतुओं के परिवर्तन का मानव जीवन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता हैहमारा खान-पान, पहनावा तथा हमारी गतिविधियाँ इससे प्रभावित होती हैंमुख्य ऋतुएँ और उनके प्रभाव को हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं

ग्रीष्म ऋतु – पसीने से सराबोर करने वाली इस ऋतु में हम सूती तथा हल्के वस्त्र पहनना पसंद करते हैंहमारे खाद्य तथा पेय पदार्थों में तरावट पहुँचाने वाली वस्तुओं-लस्सी, सिकंजी, छाछ, शीतल पेय पदार्थ आदि की मात्रा बढ़ जाती है।

वर्षा ऋतु – इस ऋतु में चारों ओर कीचड़ फैल जाता हैवातावरण में नमी बढ़ जाती हैरोगों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

शीत ऋतु – हड्डियाँ कँपा देने वाली इस ऋतु में हम ऊनी कपड़े, कोट, शॉल, स्वेटर आदि का प्रयोग करते हैंचाय, कॉफी, गर्म दूध तथा गर्माहट पहुँचाने वाली वस्तुओं का अधिक प्रयोग करते हैं।

वसंत ऋतु – इसे सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता हैइस ऋतु में न अधिक सर्दी होती है और न गर्मीस्वास्थ्य की दृष्टि से यह सर्वोत्तम ऋतु हैइस समय चारों ओर फैली प्राकृतिक सुषमा मनोरम लगती हैयह सब देख मन अनायास ही प्रसन्न हो उठता है।

अनुमान और कल्पना

1. कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़कर बताइए कि इनमें किस ऋतु का वर्णन है?

फूटे हैं आमों में बौर
भर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं।

उत्तर :
काव्यांश में ‘आम में बौर आने’ तथा ‘होली की त्योहार’ का वर्णन हैइसके अलावा भौंरों के गुंजार करने तथा वातावरण में उन्मुक्त मस्ती छाने से पता चलता है कि ‘वसंत ऋतु का ही वर्णन’ है।

2. स्वप्न भरे कोमल-कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरते हुए कवि कलियों को प्रभात के आने का संदेश देता है, उन्हें जगाना चाहता है और खुशी-खुशी अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा-भरा करना चाहता हैफूलों-पौधों के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर :
फूल-पौधों के लिए मैं निम्नलिखित कार्य करना चाहूँगा
(क) फूल-पौधों को नष्ट होने से बचाने के लिए उनकी सुरक्षा का प्रबंध करूंगा
(ख) उनकी उचित वृधि के लिए समय पर सिंचाई, खाद तथा उचित देखभाल करूंगा
(ग) उन्हें खरपतवार तथा रोगों से बचाने का प्रयास करूंगा
(घ) प्रात:काल में पुष्पित पौधों पर प्यार से हाथ फेरूंगा
(ङ) इन पुष्पों को न मैं तोडूंगा, न किसी को इन्हें नष्ट करने देंगा ताकि वे दीर्घकाल तक अपनी महक तथा सौंदर्य बिखेर सकें।

3. कवि अपनी कविता में एक कल्पनाशील कार्य की बात बता रहा हैअनुमान कीजिए और लिखिए कि उसके बताए कार्यों का अन्य किन-किन संदर्भो से संबंध जुड़ सकता है? जैसे नन्हे-मुन्ने बालक को माँ जगा रही हो।
उत्तर :
उपयुक्त कार्यों का निम्नलिखित संदर्भो से संबंध जुड़ सकता है
(क) माली उपवन में उलझी लताओं को उचित स्थान पर फैला रहा है
(ख) छोटा बच्चा उपवन में उड़ती रंग-बिरंगी चिड़ियों के पीछे भाग कर उन्हें पकड़ने का प्रयास कर रहा है
(ग) मैं फूलों पर पड़ी ओस की बूंदों को निहारकर मुग्ध हो रहा हूँ
(घ) वृद्धजन पार्क में बच्चों को घास नष्ट न करने तथा पुष्पों को तोड़ने से मना कर रहे हैं तथा गिरे पौधों को सहारा देकर खड़ा कर रहे हैं।

भाषा की बात

1. ‘हरे-हरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई हैकविता के हरे-हरे ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैंयहाँ ‘पात’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त हैऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एकवचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगाकविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है-“तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती हैजो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी हैएक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थों में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गयाइसे यमक अलंकार कहा जाता हैकभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं; जैसे-मन का मनका।
ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति होऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निम्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-बातों-बातों में, रह-रहकर, लाल-लाल, सुबह-सुबह, रातों रात, घड़ी-घड़ी।
उत्तर :
एक शब्द के एक से अधिक अर्थ देकर चमत्कार पैदा करने वाले यमक अलंकार के कुछ उदाहरण
(क) तू पै वारो उरवशी सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उरवशी वै उरवशी समान।

यहाँ द्वितीय पंक्ति में पहले ‘उरवशी’ का अर्थ हृदय में रहने वाली तथा दूसरे ‘उरवशी’ का अर्थ है-उर्वशी नामक अप्सरा है।

(ख) कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय नर, वा पाए बौराय॥

यहाँ प्रथम पंक्ति में ‘कनक’ शब्द दो बार आया हैइनमें पहले कनक का अर्थ-धतूरा (एक मादक फल) है तथा दूसरे का अर्थ-सोना (एक कीमती धातु) है

पुनरुक्ति शब्द वाले कुछ अन्य वाक्य
(क) दिन भर काम करते-करते मजदूर थककर चूर हो गया
(ख) दूरदर्शन पर दुर्घटना से जुड़ी पल-पल की खबर आ रही थी
(ग) कल-कल करते झरनों का मधुर संगीत मन को भा रहा था।

पुनरावृत शब्दों का वाक्य-प्रयोग
(क) बातों-बातों-बातों-बातों में सुमन ने मेरा दिल जीत लिया
(ख) रह-रहकर-बादल बरसते रहे रह-रहकर बिजली चमकती रही
(ग) लाल-लाल-कश्मीर में पेड़ों पर लटके लाल-लाल सेब बहुत अच्छे लग रहे थे
(घ) सुबह-सुबह-सुबह-सुबह घूमने जाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है
(ङ) रातों-रात-उस पर लोगों का इतना कर्ज हो गया था कि उसने रातों रात मकान बेच दिया और अन्यत्र जा बसा
(च) घड़ी-घड़ी – आतंकवादी घड़ी-घड़ी पुलिस के सामने अपना बयान बदलता रहा।

2. ‘कोमल गात, मृदुल वसंत, हरे-हरे ये पात’ विशेषण जिसे संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते

ऊपर दिए गए वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं

हिंदी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं-गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।
उत्तर :
यहाँ पाठ्यपुस्तक में कोई प्रश्न नहीं बन रहा है फिर भी छात्रों की सुविधा हेतु विशेषण के भेदों की संक्षिप्त परिभाषा तथा उदाहरण दिया जा रहा है
1. गुणवाचक विशेषण – जिस विशेषण शब्द द्वारा विशेष्य के रूप, रंग, गुण, आकार आदि का पता चले वह गुणवाचक विशेषण कहलाता हैजैसे परिश्रमी, वीर, साहसी, धनी, ईमानदार, लाल, पीला आदि।
2. परिमाणवाचक विशेषण – जो विशेषण शब्द विशेष्य की मात्रा का बोध कराए उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं; जैसे-थोड़ी सी चाय, दस किलो चावल, थोड़ी-सी चीनी, इसके दो भेद हैं
(क) निश्चित परिमाणवाची-जैसे – एक लीटर दूध, दस मीटर कपड़ा, एक पाव नमक।
(ख) अनिश्चित परिमाणवाची-जैसे – कुछ चाय, थोड़ी-सी कॉफी, थोड़ा सा नमक

3. संख्यावाचक विशेषण – वे विशेषण शब्द जो विशेष्य के बारे में संख्या संबंधी जानकारी कराते हैं-जैसे-दस रुपये, कई लड़के, पाँचवाँ छात्र आदिइसके भी दो भेद हैं
(क) निश्चित संख्यावाचक-जैसे – पाँच सौ रुपये, दसवाँ छात्र, सात पुस्तकें
(ख) अनिश्चित संख्यावाचक-जैसे – कई छात्र, अनेक आदमी, कुछ मनुष्य आदि

4. सार्वनामिक विशेषण – इसे संकेतवाचक विशेषण भी कहते हैं।
नोट – इस विशेषण के बाद संज्ञा शब्द का होना बहुत आवश्यक होता हैइस विशेषण के बाद शब्द न होने पर यह सर्वनाम बन जाता है, जैसे—यह मकान बहुत ऊँचा हैवे मजदूर बहुत ही परिश्रमी हैंये राहगीर ईमानदार हैवह छात्र कक्षा में प्रथम आया था।

कुछ करने को
1. वसंत पर अनेक सुंदर कविताएँ हैंकुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए
उत्तर :
वसंत पर कविता

आए महंत वसंत।
मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टोला।
बैठे किंशुक छत्र लगा, बाँध पाग पीला,
सँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
आए महंत बसंत।
श्रद्धानत तरुओं की अंजलि से झरे पात
कोयल के मुँदै नयन, थर-थर-थर पुलक गात,
अगरु धूम लिए, झूम रहे सुमन-दिग्-दिगंत।
आए महंत वसंत।
खड़-खड़ कर ताल बजा, नाच रही विसुध हवा,
डाल-डाल अलि-पिक के गायन का बधाँ समाँ।
तरु-तरु की ध्वजा उठी जय-जये का है न अंत।
आए महंत वसंत।
                                                   -सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

 

2. शब्दकोश में ‘वसंत’ शब्द का अर्थ देखिए शब्दकोश में शब्दों के अर्थों के अतिरिक्त बहुत-सी अलग तरह की जानकारियाँ भी मिल सकती हैंउन्हें अपनी कॉपी में लिखिए
उत्तर :
शब्द कोश में वसंत के अर्थ

  • एक वर्ष में आने वाली छह ऋतुओं में से एक
  • फूलों का गुच्छा
  • एक राग

शब्दकोश में शब्दों के अर्थ के अलावा और भी जानकारियाँ मिल सकती हैं, जो निम्नलिखित हैं
(क) शब्द संक्षेप चिहन
स्त्री.-स्त्रीलिंग
पु.-पुल्लिग।
बहु.-बहुवचन
अ.-अव्यय
सर्व.-सर्वनाम
उप.-उपसर्ग
प्र.-प्रत्यय
अ.क्रि./स.क्रि-अकर्मक क्रियासक्रर्मक क्रिया
क्रि.वि.-क्रियाविशेषण
द्वि.क्रि.-विकर्मक क्रिया
प्रे.क्रि.-प्रेरणार्थक क्रिया

(ख)
सं. संस्कृत
रू. रूसी
हिं. हिंदी
अ. अरबी
पु. पुर्तगाली
बो. बोलचाल

विषयों के संक्षेप चिह्न
(ग)
ग. गणित
सा. साहित्य
का. कानून
ज्यो. ज्योतिष
व्या. व्याकरण

(घ)
इनके अलावा मुहावरे, लोकोक्तियाँ, माप-तौल के पैमानों की सारिणी आदि भी मिलती हैं।

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

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BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 8
SubjectHindi Vasant
ChapterChapter 2
Chapter Nameध्वनि
Number of Questions Solved15
CategoryNCERT Solutions

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 2 लाख की चूड़ियाँ

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

कहानी से
1. बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव चाव से क्यों जाता था और बदलू को ‘बदलू मामा’ न कहकर ‘बदलू काका’ क्यों कहता था?
उत्तर :
बचपन में लेखक अपने मामा के गाँव बहुत चाव से जाया करता था क्योंकि उसे वहाँ रहने वाला बदलू मनिहार रंग-बिरंगी लाख की गोलियाँ दिया करता था जो उसे बहुत ही प्रिय थींवह बदलू मामा कहने के बजाय बदलू काका इसलिए कहता था क्योंकि उसके मामा के गाँव के बच्चे बदलू को ‘बदलू काका’ कहते थे

2. वस्तु-विनिमय क्या है? विनिमय की प्रचलित प्रद्धति क्या है?
उत्तर :
वस्तु-विनिमय वह पद्धति है जिसमें किसी वस्तु को देकर अपनी मनचाही वस्तु खरीदी जाती हैइस प्रकार वस्तुएँ पाने के लिए हम पैसे की जगह वस्तुओं से ही वस्तुओं का लेन-देन करते हैंबदले समाज में आज वस्तुओं से वस्तुएँ नहीं खरीदी जाती हैंआज ऐसा करना संभव नहीं है इसलिए रुपये-पैसों के बदले वस्तुएँ ली-दी जाती हैं

3. ‘मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं।’-इस पंक्ति में लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
‘मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं’ -पंक्ति के माध्यम से मशीनों का अंधाधुंध प्रयोग करने से उत्पन्न बेकारी और बेरोजगारी की ओर संकेत किया गया हैचूंकि सैकड़ों मनुष्यों का काम करने के लिए केवल कुछ ही मशीनें काफी हैंऐसे में बहुत से कुशल कारीगर बेकार हो जाते हैंवे बेरोजगार होकर भूखों मरने के कगार पर पहुँच जाते हैंकारीगरों की इसी व्यथा की ओर संकेत किया गया है

4. बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी जो लेखक से छिपी न रह सकी?
उत्तर :
चूड़ियाँ बनाने वाले कुशल कारीगर बदलू का काम छिन चुका थावह उपेक्षित, असहाय तथा लाचार हो गया थाजिन काँच की चूड़ियों से उसे चिढ़ थी वही हर ओर दिखाई पड़ रही थींअब कारीगरी के बदले कम सुंदरता तथा चमक को महत्त्व दिया जा रहा हैयह व्यथा लेखक से छिपी ने रह सकी।

5. मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया?
उत्तर :
मशीनी युग के कारण बदलू का काम छिन गयावह बेरोजगार हो गयाउसे गरीबी में जीवन बिताना पड़ाउसे अपनी गाय बेचनी पड़ीवह कमजोर तथा वृद्ध हो गयाउसके माथे पर नसें उभर आईंवह बीमार तथा चिंतित रहने लगा

कहानी से आगे

1. आपने मेले-बाज़ार आदि में हाथ से बनी चीजों को बिकते देखा होगाआपके मन में किसी चीज़ को बनाने की कला सीखने की इच्छा हुई हो और आपने कोई कारीगरी सीखने का प्रयास किया हो तो उसके विषय में लिखिए
उत्तर :
मैंने मेले-बाजार में हाथ से बने रंग-बिरंगे खिलौने, रंगीन तथा सफेद मोमबत्तियाँ, हाथ के पंखे, जूट के बने सामान देखे हैंये सामान अत्यंत मनमोहक होते हैंमैंने एक कलाकार के पास जूट से बने सामानों को बनाना सीखना शुरू कर दियालगभग छह महीने सीखने के उपरांत मैं अपने-आप सामान बनाकर बेचने लगाइससे मुझे अतिरिक्त आमदनी होने लगी

2. लाख की वस्तुओं का निर्माण भारत के किन-किन राज्यों में होता है? लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त क्या-क्या चीजें बनती हैं? ज्ञात कीजिए
उत्तर :
लाख से बनी वस्तुओं का निर्माण भारत के राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश आदि में होता हैलाख से सुंदर-सुंदर खिलौने, घर की सजावटी वस्तुएँ, आभूषण, मूर्तियाँ, चूड़ियाँ, डाकखाने में मुहर तथा पैकिंग सील बनाई जाती हैं।

अनुमान और कल्पना

1. घर में मेहमान के आने पर आप उसका अतिथि-सत्कार कैसे करेंगे?
उत्तर :
घर में मेहमान आने पर मैं उन्हें यथोचित प्रणाम कर बैठक में उन्हें बिठाऊँगाउन्हें जलपान कराकर उनसे आने का कारण पूछूगाउसे यदि पिताजी से काम है तो वे कब तक आएँगे यह बताऊँगायदि वे रुककर इंतजार करते हैं तो उनके साथ प्रेमपूर्वक बातें करूँगा तथा उनकी सुविधा का ध्यान रचूँगा

2. आपको छुट्टियों में किसके घर जाना सबसे अच्छा लगता है? वहाँ की दिनचर्या अलग कैसे होती है? लिखिए
उत्तर :
मुझे छुट्टियों में अपने नाना-नानी के घर जाना सबसे अच्छा लगता हैवहाँ की दिनचर्या यहाँ की दिनचर्या से बिल्कुल अलग होती हैवहाँ मामा के लड़के तथा लड़की के साथ खेलते हुए खेतों की ओर, बाग में पेड़ पर चढ़ना, गर्मियों में आम तोड़ना, बाग में पेड़ों की छाया में अनेक खेल खेलना अच्छा लगता हैशाम को नानी से कहानियाँ सुनना, एक साथ बैठकर गपशप करना अच्छा लगता है

3. मशीनी युग में अनेक परिवर्तन आए दिन होते रहते हैंआप अपने आसपास से इस प्रकार के किसी परिवर्तन का उदाहरण चुनिए और उसके बारे में लिखिए
उत्तर :
मशीनी युग में अनेक परिवर्तन हम कहीं भी देख सकते हैंअपने आसपास हुए परिवर्तन का एक उदाहरण मैं प्रस्तुत कर रहा हूँमेरी कॉलोनी से कुछ दूर पर खेत हैकुछ समय पहले तक खेती को अधिकांश काम बैलों तथा हाथों से किया जाता था किंतु आज-कल जुताई ट्रैक्टर से, बुवाई सीडड्रिल से, निराई-गुड़ाई कल्टीवेटर से, खरपतवार हटाने के लिए खरपातीनाशी का मशीनों से छिड़काव, कटाई हारवेस्टिंग मशीन से तथा मड़ाई का कार्य प्रेशर से कर भूसा तथा अनाज ट्रैक्टर से ढोकर घर तक लाते हैं

4. बाज़ार में बिकने वाले सामानों की डिजाइनों में हमेशा परिवर्तन होता रहता हैआप इन परिवर्तनों को किस प्रकार देखते हैं? आपस में चर्चा कीजिए
उत्तर :
आज का युग विज्ञान और तकनीक का युग हैआज नित नए आविष्कार होने से तरह-तरह की वस्तुएँ बाजार में आ रही हैंबाजार में वस्तुएँ असीमित मात्रा में उपलब्ध हैंलोगों की रुचि, आवश्यकता तथा उनकी आय देखकर वस्तुएँ बनाई जाने लगी हैंखाने-पहनने तथा नित्य प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा में विविधता बढ़ती जा रही हैनित नए फैशन के कपड़ों से बाजार भरा पड़ा है

5. हमारे खान-पान, रहन-सहन और कपड़ों में भी बदलाव आ रहा हैइस बदलाव के पक्ष-विपक्ष में बातचीत कीजिए और बातचीत के आधार पर लेख तैयार कीजिए
उत्तर :
विज्ञान के इस युग में जब सब कुछ बदल रहा हैहमारे खान-पान, रहन सहन और कपड़े भी इस बदलाव से अछूते नहीं हैंइस बदलाव का असर सब पर देखा जा सकता हैकुछ लोगों की बातचीत को आधार मानकर कहा जा सकता है कि कुछ लोगों के विचार से यह बदलाव अच्छा है तथा कुछ इतनी तेजी से हो रहे बदलाव को शुभ संकेत नहीं मानते हैंइस विषय पर दो समूह बनाकर पक्ष-विपक्ष में अपनी बात रखते हुए छात्र स्वयं चर्चा करें तथा बातचीत के आधार पर आलेख तैयार करें।

भाषा की बात

1. ‘बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से और बदलू स्वयं कहता है-“जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है लाख में कहाँ संभव है?” ये पंक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैंदूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा हैउसमें व्यंग्य भी हैहारे हुए मन से, या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होतेकुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए
उत्तर :
पाठ से लिए गए कुछ व्यंग्य-वाक्य

  • बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से
  • जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख की चूड़ियों में कहाँ संभव है?
  • शहरं की बात और है लला वहाँ तो सभी कुछ होता है
  • नाजुक तो फिर होता ही है लला
  • कहा, जाओ शहर से ले आओअर्थ

(क) इस वाक्य से चूड़ी बनाने वाले बदलू की मनोदशा प्रकट होती हैवाक्य में काँच की चूड़ियों को मशीनी युग का प्रचलन बताया गया हैजिससे उस जैसे कारीगर का रोज़गार छिना जा रहा हैये चूड़ियाँ उसे अंदर-ही-अंदर दुख और पीड़ा पहुँचा रही हैं
(ख) काँच की चूड़ियों को लाख की चूड़ियों से अधिक सुंदर बताकर कारीगरी को भूलकर, बनावटी सुंदरता और चमक-दमक को महत्त्व देने वालों पर व्यंग्य किया गया हैयह वाक्य अपने में गहरा दर्द छिपाए हुए है
(ग) यहाँ शहरी संस्कृति पर व्यंग्य किया गया हैपाश्चात्य संस्कृति के नाम पर शहरी लोग हर अच्छी-बुरी बातें, आदतें तथा रिवाज अपनाते जा रहे हैं, पर गाँवों में वैसा उन्मुक्त वातावरण नहीं हैभले ही गाँवों को पिछड़ा कहा जाए
(घ) लोगों को कारीगरी तथा मजबूती नहीं चाहिएउन्हें बनावटी कोमलता पसंद हैयह कोमलता समय/असमय उन्हें भारी पड़ती जा रही है, पर इसकी फिक्र नहीं।
(ङ) इस वाक्य से बदलू के व्यक्तित्व की दृढ़ता प्रकट होती हैवह कम दाम पाने पर जमींदार जैसे व्यक्ति का प्रतिरोध कर सकता है, किंतु दबाव में आकर झुकता नहीं है

2. ‘बदलू’ कहानी की दृष्टि से पात्र हैं और भाषा की बात (व्याकरण) की दृष्टि से संज्ञा हैकिसी भी व्यक्ति, स्थान, वस्तु, विचार अथवा भाव को संज्ञा कहते हैंसंज्ञा को तीन भेदों में बाँटा गया है (क) व्यक्तिवाचक संज्ञा,जैसे-लला, रज्जो, आम, काँच, गाय इत्यादि (ख) जातिवाचक संज्ञा, जैसे-चरित्र, स्वभाव, वजन, आकार आदि द्वारा जानी जाने वाली संज्ञा (ग) भाववाचक संज्ञा, जैसे-सुंदरता, नाजुक, प्रसन्नता इत्यादि जिसमें कोई व्यक्ति नहीं है और न आकार या वजन परंतु उसका अनुभव होता हैपाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाएँ चुनकर लिखिए
उत्तर :
व्यक्तिवाचक संज्ञा-बदलू, जनार्दन, नीम, आम, रज्जो।
जातिवाचक संज्ञा-गाँव, बच्चे, मकान, शहर, वृक्ष, अनाज, नव-वधू, मरद, गाय, सड़क, चित्र, लड़की, स्कूल, जमींदार, घरवालीभाववाचक संज्ञा-महत्त्व, पढ़ाई, जिद, सुंदरता, व्यथा, शांति, व्यक्तित्व

3. गाँव की बोली में कई शब्दों के उच्चारण बदल जाते हैंकहानी में बदलू वक्त (समय) को बखत, उम्र (वय/आयु) को उमर कहता हैइस तरह के अन्य शब्दों को खोजिए जिनके रूप में परिवर्तन हुआ हो, अर्थ में नहीं
उत्तर :
मूल शब्द                        बदला हुआ रूप
मर्द                                        मरद
भैया                                       भइया
वक्त                                       बखत
उम्र                                        उमर
अंजुली                                    अंजलि

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Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Questions and Answers Summary सिंधुघाटी सभ्यता

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 3 Question Answers Summary सिंधुघाटी सभ्यता

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अतीत का आधार क्या है?
(i) मोहनजोदड़ो
(ii) गंगा-नदी
(iii) सिंधुघाटी की सभ्यता
(iv) तक्षशिला
उत्तर:
(iii) सिंधुघाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता कितनी प्राचीन है?
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ii) तीन हजार वर्ष पूर्व
(iii) पाँच हजार वर्ष पूर्व
(iv) छह-सात हज़ार वर्ष पूर्व
उत्तर:
(iv) छह-सात हज़ार वर्ष पूर्व

प्रश्न 3.
आर्यों की मुख्य जीविका क्या थी?
(i) पशुपालन
(ii) कृषि
(iii) व्यापार
(iv) उनमें कोई नहीं
उत्तर:
(ii) कृषि

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी से पहले का इतिहास किसे माना जाता था?
(i) प्राचीन ग्रंथ
(ii) अभिलेख
(iii) वेद
(iv) पुराण
उत्तर:
(iii) वेद

प्रश्न 5.
ऋगवेद की रचना कितने साल पुरानी है?
(i) 1500 ईसा पूर्व
(ii) 2000 वर्ष पूर्व
(iii) 2500 वर्ष पूर्व
(iv) 3500 ईसा पूर्व
उत्तर:
(i) 1500 ईसा पूर्व

प्रश्न 6.
किस वेद की उत्पत्ति सबसे पहले हुई थी?
(i) सामवेद
(ii) अथर्ववेद
(iii) रामायण
(iv) ऋगवेद
उत्तर:
(iv) ऋगवेद

प्रश्न 7.
उपनिषदों की उत्पत्ति कब हुई थी?
(i) ई. पू. 500
(ii) ई. पू. 800
(iii) ई. पू. 1000
(iv) ई. पू. 1200
उत्तर:
(ii) ई. पू. 800

प्रश्न 8.
भारतीय आर्य किस व्यवस्था में विश्वास करते थे।
(i) जातिवाद
(ii) परिवारवाद
(iii) व्यक्तिवाद
(iv) अलगावाद
उत्तर:
(iii) व्यक्तिवाद

प्रश्न 9.
भौतिक साहित्य की जानकारी के स्रोत क्या हैं?
(i) शिलालेख
(ii) बड़े-बड़े प्राचीन ग्रंथ
(iii) भोजपत्र व ताड़पत्र
(iv) पेड़ों के वृंत ने
उत्तर:
(iii) भोजपत्र व ताड़पत्र

प्रश्न 10.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब हुई थी?
(i) ई.पू. पाँचवी शताब्दी
(ii) ई.पू. आठवीं शताब्दी
(iii) ई.पू. चौथी शताब्दी
(iv) ई.पू. सातवीं शताब्दी
उत्तर:
(iii) ई.पू. चौथी शताब्दी

प्रश्न 11.
भारत के दो प्रमुख महाकाव्यों का नाम बताइए।
(i) रामायण व गीता
(ii) गीता व महाभारत
(iii) रामायण व महाभारत
(iv) रामायण व पुराण
उत्तर:
(iii) रामायण व महाभारत

प्रश्न 12.
इनमें से प्राचीन काल का ग्रंथ कौन-सा है?
(i) वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत
(ii) वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण
(iii) तुलसीदास द्वारा रचित रामायण
(iv) कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी
उत्तर:
(iv) कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी

प्रश्न 13.
प्राचीन समय में भारत की राजधानी थी।
(i) लखनऊ
(ii) कानपुर
(iii) जम्मू
(iv) इंद्रप्रस्थ
उत्तर:
(iv) इंद्रप्रस्थ

प्रश्न 14.
इनमें महाभारत का मुख्य भाग कौन-सा है?
(i) पुराण
(ii) गीता
(iii) रामायण
(iv) भगवद्गीता
उत्तर:
(iv) भगवद्गीता

प्रश्न 15.
भगवद्गीता ने किसके व्यक्तित्व को उभारा है?
(i) शिव
(ii) राम
(iii) श्रीकृष्ण
(iv) विष्णु
उत्तर:
(iii) श्रीकृष्ण

प्रश्न 16.
प्राचीन काल में किसान अपने कृषि उत्पादन का कितना हिस्सा कर के रूप में राजा को देते थे?
(i) एक चौथाई
(ii) आधा
(iii) दशांश
(iv) छठा
उत्तर:
(iv) छठा

प्रश्न 17.
सबसे पहले प्राचीन काल में किस लिपि का निर्माण हुआ?
(i) देवनागरी
(ii) ब्राह्मी लिपि
(iii) रोमन लिपि
(iv) गुरुमुखी
उत्तर:
(ii) ब्राह्मी लिपि

प्रश्न 18.
संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना किसने की थी?
(i) तुलसीदास
(ii) देवनागरी
(iii) पाणिनी
(iv) वाल्मीकि
उत्तर:
(iii) पाणिनी

प्रश्न 19.
‘औषधि’ विज्ञान पर किसकी पुस्तकें लोकप्रिय थीं?
(i) सुश्रुत
(ii) पाणिनी
(iii) चरक
(iv) धन्वंतरि
उत्तर:
(iv) धन्वंतरि

प्रश्न 20.
प्राचीन काल के प्रमुख शल्य चिकित्सक थे?
(i) सुश्रुत
(ii) पाणिनी
(iii) चरक
(iv) धनवंतरि
उत्तर:
(i) सुश्रुत

प्रश्न 21.
भारत के शिक्षा केंद्र कौन से थे?
(i) तक्षशिला व काशी
(ii) बनारस व तक्षशिला
(iii) इलाहाबाद व बनारस
(iv) इंद्रप्रस्थ व तक्षशिला
उत्तर:
(ii) बनारस व तक्षशिला

प्रश्न 22.
बौद्ध और जैन धर्म किस धर्म से अलग होकर बने?
(i) हिंदू धर्म
(ii) वैश्य धर्म
(iii) वैदिक धर्म
(iv) इसाई धर्म
उत्तर:
(iii) वैदिक धर्म

प्रश्न 23.
बुद्ध ने घृणा का अंत किस प्रकार करने को कहा?
(i) घृणा से
(ii) प्रेम से
(iii) लड़ाई से
(iv) विरोध से
उत्तर:
(ii) प्रेम से

प्रश्न 24.
चंद्रगुप्त मौर्य कहाँ के रहने वाले थे?
(i) पाटलीपुत्र
(ii) इंद्रप्रस्थ
(iii) तक्षशिला
(iv) मगध
उत्तर:
(iv) मगध

प्रश्न 25.
चाणक्य था?
(i) चंद्रगुप्त का मंत्री
(ii) चंद्रगुप्त का सलाहकार
(iii) चंद्रगुप्त का मित्र
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
चाणक्य का दूसरा नाम था?
(i) चरक
(ii) सुश्रुत
(iii) कौटिल्य
(iv) अशोक
उत्तर:
(iii) कौटिल्य

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ मिले हैं?
उत्तर:
सिंधु घाटी के अवशेष सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा में मिले हैं।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के अवशेष कहाँ-कहाँ से प्राप्त हुए? इससे क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
सिंधु घाटी के अवशेष मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब जिले के हड़प्पा से मिले हैं। मोहनजोदड़ो में की गई खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से प्राचीन इतिहास को जानने में काफी मदद मिली।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी सभ्यता कहाँ तक फैली है?
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता, पश्चिम में कठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले के अलावा गंगा की घाटी तक फैली थी।

प्रश्न 4.
ऋगवेद का रचनाकाल कब तक माना जाता है?
उत्तर:
अधिकांश इतिहासकार ऋगवेद की उत्पत्ति का काल ई.पूर्व. 1500 मानते हैं।

प्रश्न 5.
आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
आर्यों का मुख्य व्यवसाय खेती था।

प्रश्न 6.
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति किस धातु से हुई ?
उत्तर:
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है। इसका अर्थ है जानना। अतः वेद का सीधा-साधा अपने काल के ज्ञान का संग्रह।

प्रश्न 7.
आर्य कौन थे? वे भारत कब आए?
उत्तर:
अधिकतर विद्वान व्यावहारिक रूप से आर्यों को भारत का ही संतान मानते हैं। अधिकांश विद्वानों का मत है कि आर्यों का प्रवेश एक हजार वर्ष बाद में हुआ था। भारत की पश्चिमोत्तर दिशा से भारत में कबीले और जातियाँ समय-समय पर आती रही और इनका संपर्क द्रविड़ जातियों से होता है। इन्हें ही आर्य माना गया।

प्रश्न 8.
लेखक ने ‘राजतरंगिनी’ के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
विद्वान ने कल्हण द्वारा लिखे ग्रंथ राजतरंगिनी को एकमात्र सबसे प्राचीन ग्रंथ माना है। जिसे इतिहास माना जा सकता है।

प्रश्न 9.
भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन इतिहास क्या है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन इतिहास ‘वेद’ है।

प्रश्न 10.
वेदों पर सबसे अधिक किसका प्रभाव दिखाई पड़ता है?
उत्तर:
वेदों पर सबसे अधिक ईरान के विचारों का प्रभाव दिखाई पड़ता है, क्योंकि ईरान के ग्रंथ ‘अवेस्ता’ व भारत के वेदों के विचार व भाषा मिलती जुलती है। विद्वानों का ऐसा मानना है कि आर्य उसी ओर से आए और यह ग्रंथ आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला ‘शब्द’ था।

प्रश्न 11.
भारतीय जातियों और बुनियादी भारतीय संस्कृति का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
इस सभ्यता के कारण बाहर से आने वाले आर्यों और द्रविड़ जाति के लोगों के बीच सांस्कृतिक समन्वय और मेल-जोल हुआ। ये द्रविड़ संभवतः सिंधु घाटी के प्रतिनिधि थे। इसी मेलजोल और समन्वय से भारतीय जातियों और बुनियादी भारतीय संस्कृति का विकास हुआ।

प्रश्न 12.
वैदिक युग काल के समय के बारे में विद्वानों का क्या मत है?
उत्तर:
वैदिक युग के काल के विषय में विद्वानों का अलग-अलग मत है। भारतीय विद्वान वैदिक युग का काल बहुत पहले का मानते हैं जबकि यूरोपीय विद्वान इसका काल बहुत बाद का मानते हैं।

प्रश्न 13.
सिकंदर के आक्रमण से कौन-कौन से विभूति उत्पन्न हुए?
उत्तर:
सिकंदर के आक्रमण से दो महान विभूति उत्पन्न हुए। पहला – चंद्रगुप्त मौर्य, दूसरा – चाणक्य।

प्रश्न 14.
सिंधु घाटी ने किन-किन सभ्यताओं के साथ संबंध स्थापित किए और व्यापार किए।
उत्तर:
सिंधु घाटी ने फारस, मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया।

प्रश्न 15.
ऋगवेद की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
ऋगवेद काव्य शैली में लिखा गया ग्रंथ है। प्रकृति के सौंदर्य व रहस्य का इनमें संपूर्ण वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें लोगों के द्वारा किए गए साहसिक कार्यों का भी वर्णन है।

प्रश्न 16.
भारतीय सभ्यता ने किन-किन क्षेत्रों में विकास किया?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता ने कला, संगीत, साहित्य, नाचने-गाने की कला, चित्रकला व नाटक रंगमंच के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की।

प्रश्न 17.
नेहरू के अनुसार किस प्रकार के लोग लोक परलोक में विश्वास करते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक देश के निर्धन और अभागे लोग एक हद तक परलोक में विश्वास करते थे।

प्रश्न 18.
कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब की थी?
उत्तर:
ई.पू. चौथी शताब्दी में कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की थी।

प्रश्न 19.
सभ्यता और संस्कृति के प्रगति का दौर किस प्रकार अद्भुत है?
उत्तर:
सभ्यता और संस्कृति के प्रगति का दौर लंबे समय तक भारत में अलग-अलग नहीं पड़ा। उसका संबंध ईरानियों, यूनानियों, चीनी तथा मध्य एशियाई लोगों से बना रहा। इस तरह सभ्यता और संस्कृति का इतिहास अद्भुत है।

प्रश्न 20.
महाभारत में क्या है?
उत्तर:
महाभारत में कृष्ण के बारे में आख्यान भी है और लोकप्रिय काव्य भगवद्गीता भी।

प्रश्न 21.
गीता का संदेश कैसा है?
उत्तर:
गीता में निहित संदेश किसी वर्ग या संप्रदाय के लिए नहीं है। ये संदेश किसी भी तरह सांप्रदायिकता नहीं फैलाते हैं। इसकी दृष्टि सार्वभौमिक है। इसमें सार्वभौमिकता के कारण समाज के सभी वर्गों के लोगों एवं संप्रदाय के लिए मान्य है।

प्रश्न 22.
गीता में किसकी निंदा की गई है?
उत्तर:
गीता में अकर्मण्यता की निंदा की गई है।

प्रश्न 23.
जाति व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जाति व्यवस्था से लोगों की बौद्धिक जड़ता बढ़ गई, उनकी रचनात्मक गतिविधियाँ कम होती चली गई।

प्रश्न 24.
भारतीय आर्य किस पद्धति में विश्वास करते थे?
उत्तर:
भारतीय आर्य लोगों के व्यक्तिवाद के फलस्वरूप आत्मकेंद्रित हो गया। उन्हें सामाजिक पक्ष की कोई चिंता न रही। वे समाज के प्रति अपना कोई कर्तव्य नहीं समझते थे। इसी कारण व्यक्तिवाद, अलगाववाद और ऊँच-नीच पर आधारित जातिवाद बढ़ता चला गया।

प्रश्न 25.
भौतिकवाद का अर्थ क्या है?
उत्तर:
भौतिकवाद का अर्थ है जीवन की वास्तविकता में विश्वास करना।

प्रश्न 26.
प्राचीन भौतिक साहित्य की रचना किस पर की गई थी?
उत्तर:
प्राचीन भौतिक साहित्य की रचना ताड़-पत्रों व भोज-पत्रों पर किया गया था, क्योंकि कागज़ पर लिखने का रिवाज बाद में चला।

प्रश्न 27.
गीता में किसकी निंदा की गई है?
उत्तर:
गीता में जीवन के कर्तव्यों के निर्वाह के लिए कर्म का आह्वान किया गया है।

प्रश्न 28.
युद्ध के समय से पहले का वृतांत हमें किसमें मिलते हैं ?
उत्तर:
युद्ध के समय से पहले का वृतांत हमें जातक कथाओं से मिलता है।

प्रश्न 29.
महाभारत ग्रंथ की क्या विशेषता है?
उत्तर:
महाभारत विश्व में प्रसिद्ध रचना है। इसमें प्राचीन भारत की राजनीति और सामाजिक संस्थाओं का पूर्ण ब्यौरा मिलता है।

प्रश्न 30.
भारत का प्राचीन नाम क्या था?
उत्तर:
भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त यानी आर्यों का देश था।

प्रश्न 31.
गीता में कर्म के महत्त्व को किस प्रकार प्रतिपादित किया गया है?
उत्तर:
गीता में मनुष्यों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कर्म करने का संदेश दिया गया है। इसमें अकर्मण्यता की निंदा की गई है। कर्म को समय के उच्चतम आदर्शों को ध्यान में रखकर करने का संदेश दिया है।

प्रश्न 32.
प्राचीन भारत में ग्राम सभाओं का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में ग्राम सभाएँ एक सीमा तक स्वतंत्र थीं। उनकी आमदनी का मुख्य साधन लगान था। इसका भुगतान प्रायः गल्ले या पैदावार की शक्ल में किया जाता था।

प्रश्न 33.
पाणिनी ने कब किसकी रचना की?
उत्तर:
पाणिनी ने ई.पू. छठी या सातवीं शताब्दी में संस्कृत भाषा में व्याकरण की रचना की।

प्रश्न 34.
भारत में औषधि विज्ञान के जनक कौन थे?
उत्तर:
धन्वंतरि थे।

प्रश्न 35.
शल्य चिकित्सा पर हमें किसकी पुस्तकें मिलती हैं?
उत्तर:
शल्य चिकित्सा पर हमें सुश्रुत की पुस्तक मिलती है।

प्रश्न 36.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में क्या समानता थी? वर्णन कीजिए।
उत्तरः
बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ही वैदिक धर्म से अलग हुए थे। वे वेदों को प्रामाणिक विचार देने से बचते नज़र आते थे। उनका दृष्टिकोण यथार्थवादी या बुद्धिवादी है। ये दोनों धर्म ब्रह्मचारी भिक्षुओं और पुरोहितों के संघ बनाते हैं।

प्रश्न 37.
बुद्ध का ज्ञान ब्रह्मज्ञानियों को नया और मौलिक क्यों लगा?
उत्तर:
बुद्ध का ज्ञान किसी जाति या संप्रदाय विशेष के लोगों के लिए नहीं बल्कि समूची मानव जाति के कल्याण के लिए था। इसमें वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया गया था। यह यथार्थवादी और बुद्धिवादी है। जैनधर्म के अनुयायी समाज के अनुरूप ढलते चले गए। यह धर्म हिंदू धर्म की शाखा के रूप में विकसित होता गया।

प्रश्न 38.
अशोक कब मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना?
उत्तर:
273 ई.पू. अशोक इस महान साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न 39.
अशोक ने कितने वर्ष तक शासन किया?
उत्तर:
अशोक ने 41 वर्ष तक अनवरत शासन किया। 232 ई.पू. में उनकी मृत्यु हुई।

प्रश्न 40.
अशोक बहुत बड़ा निर्माता था – यह तुम कैसे कह सकते हो?
उत्तर:
अशोक द्वारा किए गए निर्माण ऐतिहासिक धरोहर से पता चलता है कि वह बहुत बड़ा निर्माता था। उसने बड़ी इमारतें बनाने के लिए विदेशी कारीगरों को बुला रखा था। अशोक की मूर्तिकला और अन्य अवशेषों में भारतीय कला-परंपरा दृष्टिगोचर होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी सभ्यता की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
उत्तर भारत में इसका विस्तार काफ़ी दूर-दूर तक था। यह सभ्यता अपने आप में पूर्ण रूप से विकसित थी जो आज के आधुनिक सभ्यता का आधार कही जा सकती है।

यह धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी, क्योंकि धार्मिक होने के बावजूद भी इसमें किसी विशेष धर्म को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया गया था। यह विकसित सभ्यता वर्तमान का आधार प्रतीत होती है। यह सभ्यता आगे चलकर आधुनिक युगों का सांस्कृतिक आधार बनी।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी प्राचीन है? इससे हमें किन-किन चीज़ों की जानकारी मिलती है?
उत्तर:
सिंधु घाटी की सभ्यता छह-सात हज़ार वर्ष पुरानी है। यह हमें मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के माध्यम से उस समय के लोगों के रहन-सहन, लोकप्रियता रीतिरिवाजों, दस्तकारी व पोशाकों आदि के फैशन के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 3.
जिस रेत से सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हुआ वही रेत उसे बचाने में कैसे सहायक सिद्ध हुई ?
उत्तर:
जब वह अपने वेग में बहती तो अपने साथ गाँवों के गाँव बहा कर ले जाती थी। इस सभ्यता के पतन में रेत भी एक कारण था – रेत की मोटी परत-दर परत जमती गई और मकान उसमें डूबकर रह गए। रेत ने प्राचीन नगरों को ढंक लिया था, उसी रेत के कारण वे सुरक्षित रह सके। दूसरे शहर और प्राचीन सभ्यता के सबूत धीरे-धीरे समाप्त होते गए।

प्रश्न 4.
वेद अवेस्ता के अधिक निकट हैं, कैसे? पाठ के आधार लिखिए।
उत्तर:
‘वेद’ भारतीय संस्कृति का सबसे पुराना आधार है। जब आर्यों का आगमन भारत में हुआ तो वे इन्हीं विचारों से प्रेरित थे। इन्हीं विचारों के आधार पर उन्होंने ‘अवेस्ता’ की रचना की। वेदों और अवेस्ता की भाषा में काफ़ी समानता थी। ये दोनों आपस में काफ़ी मिलते-जुलते थे। इनकी निकटता भारत के महाकाव्यों की संस्कृत से कम है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि वेद अवेस्ता से अधिक निकट हैं।

प्रश्न 5.
जाति व्यवस्था से भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जाति व्यवस्था पर भारतीय समाज बँट गया। समाज में छुआ-छूत की भावना बढ़ी। लोगों की बौद्धिक जड़ता बढ़ गई उसकी रचनात्मक गतिविधियाँ कम होती चली गई। आगे चलकर यह व्यवस्था समाज में जड़ता का कारण बन गई।

प्रश्न 6.
प्राचीन साहित्य खोने को दुर्भाग्य क्यों कहा गया है? इन साहित्यों के खोने के कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
प्राचीन साहित्य खोने को दुर्भाग्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन साहित्यों के अभाव में अभी वर्तमान समय में हमें प्राचीन इतिहास की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है। यह साहित्य इसलिए खोया होगा क्योंकि इन साहित्य की रचना भोज-पत्रों या ताड़-पत्रों पर की जाती थी जिसे सँभालकर रख पाना आसान नहीं। अतः रख-रखाव के अभाव में ये साहित्य नष्ट हो गए होंगे।

प्रश्न 7.
भौतिकवाद की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
भौतिकवादी प्रायः वास्तविक अस्तित्व में विश्वास करने वाले थे। वे काल्पनिक देवी-देवताओं, स्वर्ग-नरक, शरीर से अलग आत्मा के विचार, जादू टोनों, अंधविश्वास विचार, धर्म और पुरोहितपंथी के विरोधी थे। इनके अनुसार विचार और विश्वास, बंधनमुक्त होना चाहिए। अतीत की बेड़ियों, बोझ और बंधनमुक्त होकर जीना चाहिए।

प्रश्न 8.
भारतीय इतिहास की कई तिथियाँ अनिश्चित हैं? इनकी सही जानकारी के लिए हमें किन-किन का सहारा लेना पड़ता है?
उत्तर:
भारतीय इतिहासकारों ने यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह तिथियाँ निश्चित कर कालक्रम के अनुसार इतिहास की रचना नहीं थी। इसलिए इतिहास को समझने के लिए तिथियों की समस्या आती है। इसकी निश्चितता के लिए इतिहास के समकालीन अभिलेखों, शिलालेखों, कलाकृतियाँ, इमारतों के अवशेषों, सिक्कों, संस्कृत साहित्य एवं विदेशी यात्रियों के सफ़रनामों का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 9.
महाभारत अनमोल चीज़ों के अतिरिक्त ज्ञान का समृद्ध भंडार होने के साथ नैतिक शिक्षा का कोष भी है। आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
महाभारत से हमें बहुमूल्य चीज़ों के अतिरिक्त नैतिक शिक्षा भी मिलती है, जो निम्नलिखित है-
दूसरों के साथ वह आचरण मत करो जो तुम्हें खुद पसंद न हो। धन-दौलत के लिए परेशान होना बेकार है। जनकल्याण के विरोध में जो बातें हों उसे करना नहीं चाहिए। असंतोष प्रगति का प्रेरक है।

प्रश्न 10.
गीता का उपदेश सर्वप्रथम कब और किसे दिया?
उत्तर:
गीता का उपदेश महाभारत के युद्ध के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया। जब युद्ध के मैदान में अपने विपक्षियों के रूप में परिवारजनों, मित्रों और गुरुजनों को देखकर वे दुविधा एवं माया में पड़ गए। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश देकर कर्तव्यों का पालन करने के लिए कर्म करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 11.
चरक की पुस्तकों में क्या वर्णन किया गया है?
उत्तर:
चरक की पुस्तकों में शल्य चिकित्सा, प्रसूति विज्ञान स्नान, पथ्य, सफ़ाई, बच्चों को खिलाने और चिकित्सा के बारे में वर्णन किया गया है।

प्रश्न 12.
सुश्रुत कौन थे? उनका शल्य-चिकित्सा में क्या योगदान था?
उत्तर:
सुश्रुत शल्य-चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों के रचनाकार थे। इन्होंने अपनी पुस्तकों में शल्य क्रिया के औजारों के वर्णन के साथ-साथ ऑपरेशन, अंगों को काटना, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म देना, मोतियाबिंद आदि विधियों का समावेश किया है। इसमें घावों के जीवाणुओं को धुआँ देकर मारने का भी वर्णन मिलता है।

प्रश्न 13.
बुद्ध की शिक्षाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बुद्ध ने करुणा, त्याग और प्रेम का संदेश दिया-

  • उनका कहना था कि- मनुष्य को क्रोध पर दया से और बुराई पर भलाई से काबू करना चाहिए।
  • मनुष्य की जाति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से तय होती है।
  • मनुष्य को सदाचारी बनना चाहिए और अनुशासित होकर जीवन-यापन करना चाहिए।
  • मनुष्य को सत्य की खोज मन के भीतर करनी चाहिए।
  • मनुष्य को मध्यम मार्ग का पालन करना चाहिए।

उनका बल नैतिकता पर था तथा उनकी पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की थी।

प्रश्न 14.
कलिंग युद्ध ने अशोक के मन पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
कलिंग के युदध में भयंकर कत्ले आम हआ। जब इस बात की खबर उन्हें मिली तो अशोक को काफ़ी पछतावा हआ। उसे युद्ध से विरक्ति हो गई। बुद्ध की शिक्षा का प्रभाव उनके मन के ऊपर काफ़ी पड़ा। जिससे उनका मन युद्ध से विरक्त हो गया। इसके बाद उसने युद्ध न करने का संकल्प लिया।

प्रश्न 15.
इतिहास में अशोक का नाम सबसे ऊपर क्यों हैं?
उत्तर:
अशोक 273 ई. पू. में मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। उसने पूर्वी तट के कलिंग प्रदेश पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। लेकिन भयंकर नरसंहार ने अशोक का हृदय परिवर्तित कर दिया। उस पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ गया। उसने दूर देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया। वह एक महान निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करवाया। 41 वर्ष तक शासन करने के बाद 232 ई. पू. में अशोक की मृत्यु हो गई। उसका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है। उसने बुद्ध के उपदेशों के प्रचार के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। उसने युद्ध नीति छोड़कर अहिंसा का पालन किया। बोल्गा से जापान तक आज भी लोग उनका नाम आदर से लेते हैं।

पाठ विवरण

इस पाठ के माध्यम से हमें सिंधुघाटी सभ्यता में भारत के अतीत जानकारी मिलती है। जिसके चिह्न सिंधु में मोहनजोदड़ो और पश्चिम पंजाब में हड़प्पा में मिले। इनकी खुदाइयों के माध्यम से हमें इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Summary

सिंधुघाटी सभ्यता के माध्यम से पता चलता है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और इस सभ्यता को विकसित होने में हज़ारों साल लगे होंगे तथा यह सभ्यता धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिश्र की मान्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया। यह एक विकसित सभ्यता थी और यहाँ के लोगों का प्रमुख धंधा एवं व्यवसाय था। व्यापारी वर्ग यहाँ सबसे धनी था। सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं और दुकानें संभवतः छोटी थी। सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य दो भागों में बँटा हुआ था। एक मोहनजोदड़ो तथा दूसरा हड़प्पा। ये दोनों सभ्यता का केंद्र एक-दूसरे से काफ़ी दूर पर स्थित है। संभवतः इस सभ्यता के मध्य में कई स्थान व नगर रहे होंगे जिनकी खोज खुदाई के दौरान नहीं की जा सकी।

खुदाई एवं खोजों से भी इस बात का पता चलता है कि यह सभ्यता पश्चिम में कठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले तक फैली हुई थी। इस सभ्यता का विस्तार गंगा नदी तक था, इसलिए यह सभ्यता सिर्फ सिंधु घाटी की सभ्यता नहीं कहा जा सकता है। अंबाला जिला अब पंजाब में नहीं बल्कि हरियाणा में विलय कर दिया गया है।

सिंधु घाटी के खुदाई के दौरान हमें जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः विकसित थी। उसे इस तरह विकसित होने में हजारों वर्ष लगे होंगे। धार्मिक अवशेषों के मिलने के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष थी। भविष्य में यह सभ्यता भारतीय संस्कृति एवं स्वरूप की अग्रदूत बनी। इस सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के साथ संपर्क स्थापित कर व्यापारिक संबंध स्थापित किए। यहाँ व्यापारी वर्ग काफ़ी धनी थे। खुदाई के अवशेषों से पता चलता है कि सड़कों पर छोटी-छोटी दुकानों की कतारें थीं।

सिंधुघाटी सभ्यता के उद्गम के बारे में सही-सही जानकारी हमें उपलब्ध नहीं है लेकिन खुदाई के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस सभ्यता का उदय लगभग छह सात हज़ार वर्ष पूर्व हुआ है। यदि आज के वर्तमान युग की सभ्यता से तुलना की जाए तो प्राचीन सिंधुघाटी सभ्यता और वर्तमान सभ्यता के बीच काफ़ी परिवर्तन आए। भले इसमें अंदर ही अंदर निरंतता की ऐसी शृंखला चली आ रही है जो भारत को सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता से जोड़े रखती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति हमें तत्कालीन रहन-सहन रीति-रिवाज, दस्तकारी तथा पोशाकों के फैशन की जानकारी प्रदान करती है।

सिंधु घाटी की सभ्यता से आज के आधुनिक सभ्यता को देखते हैं तो पाते हैं कि भारत आज बाल्यावस्था के रूप में नहीं बल्कि प्रौढ़ रूप में विकसित हो चुका है। आज के आधुनिक भारतीय सभ्यता ने कला और जीवन की सुख सुविधाओं में प्रगति कर ली है। आज के सभ्यता में आधुनिक सभ्यता के उपयोग चिह्नों स्नानागार और नालियों के क्षेत्र में विकास कर लिया है जिसकी बुनियाद सिंधुघाटी की सभ्यता से जुड़ी दिखाई पड़ती है।

आर्यों का आना
आर्य कौन थे? वे कहाँ से आए? इसका कोई पक्का सबूत हमें नहीं मिलता है लेकिन इसके बारे में इस सभ्यता की खुदाई से पता चलता है कि इनकी उत्पत्ति दक्षिण भारत की द्रविड़ जातियों से हुई होंगी। क्योंकि आर्य एवं दक्षिण भारतीय द्रविड़ों में कुछ समानताएँ मिलती हैं। ये मोहनजोदड़ो में कई हज़ार वर्ष पूर्व आए होंगे। अतः इन आधारों पर इन्हें हम भारतीय ही कह सकते हैं।

यह भी इतिहासकारों का मानना है कि आर्य उत्तर-पश्चिमी दिशा से एक के बाद एक आए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आर्य का प्रवेश सिंधु घाटी में एक हजार वर्ष पहले से हुआ था। ये संभवतः पश्चिम-उत्तर दिशा से भी भारत में वे कबीले और जातियाँ आती रही और भारत में बसती चली गई। पहला सांस्कृतिक समन्वय आर्य एवं द्रविड़ जातियों के बीच हुआ जो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतिनिधि थे। इन सब आधारों पर हम कह सकते हैं कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे।

अत्यधिक बाद और मौसम परिवर्तनों के प्रभाव के चलते सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हुआ होगा। ऐसा अनुमान लगाया गया कि मौसम परिवर्तन से ज़मीन सूखती गई हो और खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो और खेत रेगिस्तान में बदल गया। मोहनजोदड़ो के खंडहर इस बात के प्रमाण हैं कि उन पर एक के बाद एक बालू की परतें छाई हैं। जिससे अनुमान लगाया गया कि शहर की ज़मीन ऊँची उठती गई और नगरवासियों ने पुरानी नीवों पर ऊँचाई पर मकान, बनाए इसलिए खुदाई के दौरान हमें तीन-तीन मंजिले मकान मिले हैं।

सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद आने वाली सभ्यता में शुरुआत में कृषि पर अधिक बल दिया गया। किसान खेती पर अधिक बल देते थे। लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि पर ही आधारित था।

सबसे बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मोल-जोल बाहर से आने वाले आर्यों एवं द्रविड़ जातियों के लोगों के बीच हुआ। बाद के युगों में बहुत-सी जातियाँ आईं। सबने अपनी-अपनी सभ्यता की छाप छोड़ी और सभी घुल-मिल गए।

प्राचीनतम अभिलेख, धर्म-ग्रंथ और पुराण
सिंधु घाटी की खोज से पहले ‘वेद’ को सबसे प्राचीनतम ऐतिहासिक ग्रंथ माने जाते हैं। लेकिन वैदिक काल के निर्धारण में भी विद्वानों का अलग-अलग मत है। भारतीय इतिहासकार इसका काल सबसे पहले मानते हैं। तो यूरोपीय विद्वान इसकी उत्पत्ति काफ़ी बाद का बताते हैं। अब ऋगवेद की रचनाओं का समय ईसा पूर्व 1500 मानते हैं। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद भारतीय ग्रंथों को और भी पुराना साबित किया गया। इन्हें मनुष्य की प्राचीनतम उपलब्धि का नाम दिया गया। इन्हें आर्यों के द्वारा कहा गया पहला शब्द भी बताया गया।

भारतीय वेदों पर ईरान की पूरी छाप है। माना जाता है कि आर्य अपने साथ उसी कुल के विचारों को लाए जिससे ईरान में अवेस्ता धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई थी। वेदों और अवेस्ता की भाषा में भी समानता है। अवेस्ता की रचना ईरान में हुई थी।

वेद
वेद की उत्पत्ति ‘विद’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है, जानना। वेद का सीधा संबंध है- अपने समय के ज्ञान का संग्रह करना। इनमें मूर्ति पूजा और देव-मंदिरों के लिए कोई स्थान नहीं है। आर्यों ने अपने उमंगपूर्ण जीवन में ‘आत्मा’ पर बहुत कम ध्यान दिया, मृत्यु के बाद किसी अस्तित्व में वे कम विश्वास करते थे। वेद यानी ऋगवेद मानव-जाति की पहली पुस्तक है। इसमें मानव-मन के आरंभिक उद्गार मिलते हैं। काव्य-प्रवाह मिलता है। इसमें प्रकृति के सौंदर्य एवं रहस्य के प्रति खुशी तथा मनुष्य के साहसिक कारनामों का उल्लेख मिलता है। यहीं से भारत की लगातार खोज शुरू हुई। इन खोजों से भारत में सभ्यता की बहार आई। तब ऐसे हर दौर में जीवन और प्रकृति में लोगों ने दिलचस्पी ली। इसके साथ कला, संगीत और साहित्य साथ नाचने-गाने की कला, चित्रकला, रंगमंच आदि सबका विकास हुआ। इन सब बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत की संस्कृति जीवंत संस्कृति थी न कि पारलौकिकता में विश्वास करने वाले।

भारतीय संस्कृति के संदर्भ में भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के बीच के अलग-अलग मत थे। पश्चिमी देशों के इतिहासकारों का मत था कि भारतीय लोगों का परलोकवादी सिद्धांत बहुत हद तक सही है। इसके विपरीत नेहरू जी का विचार था कि हर देश के निर्धन और अभागे लोग कुछ हद तक परलोक में विश्वास करते हैं। जब तक वे क्रांतिकारी नहीं हो जाते वही बात गुलाम देश पर लागू होती है। यानी नेहरू जी का मत था कि भारत का प्राचीन इतिहास तो उन्नत व विकसित है लेकिन गुलामी की जंजीरों में जकड़ने पर भारतीयों के विचारों में भी परिवर्तन आ गया।

भारतीय संस्कृति की निरंतरता
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता रही है कि तीन-चार हज़ार वर्षों से यह लगातार अपने संस्कृति को अपनाए हुए है। वह समयसमय पर हुए परिवर्तनों के बावजूद बनी हुई है। यहाँ का साहित्य, दर्शन, कला, नाटक, जीवन के तमाम क्रियाकलाप विश्व की दृष्टि के अनुरूप चलते रहे हैं।

यद्यपि इसी समय में सामाजिक कुरीतियों के रूप में छूआछूत देखने को मिलती है जो बाद में असहाय हो जाती है, बाद में जाति व्यवस्था का विकास हुआ। इस प्रथा से कई जातियों में समाज बँट गया और समाज में ऊँच-नीच वर्गों में भेद-भाव होने लगा।

इस प्रथा द्वारा समाज को प्रभावित करने के बावजूद भी भारत हर क्षेत्र में विकास के पथ पर बढ़ता रहा व बाहरी जातियों ईरानियों, यूनानियों, चीनी, मध्य एशियाई व अन्य लोगों से उसके संपर्क लगातार बने रहे।

उपनिषद
उपनिषदों का समय ईसा पूर्व 800 के लगभग माना जाता है। उपनिषदों से आर्यों के विषय में काफ़ी जानकारी मिलती है। इन उपनिषदों से हमें उनके खोज में मदद मिलती है। साथ ही साथ सत्य की खोज और इनमें वैज्ञानिक तत्व मौजूद हैं। तथा आत्मबल पर जोर दिया गया है और आत्मा और परमात्मा के बारे में जानकारी भी मिलती है। उपनिषदों का झुकाव अद्वैतवाद यानी किसी धर्म विशेष को न मानना था। इनका मुख्य उद्देश्य लोगों को आपसी मतभेदों को कम करना था। लोगों में जादू टोना के विश्वास को कम करके कर्म पर विशेष बल देना था। उपनिषद के माध्यम से पूजा-पाठ को बेकार बताया गया। इनकी मुख्य विशेषता थी ‘सच्चाई पर बल देना’ इनका मुख्य उद्देश्य था कि – असत्य से सत्य की ओर चलें, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़े, मृत्यु से अमरत्व की ओर चलें, इनमें मनुष्य की इच्छा को पूरा करने के लिए ईश्वरीय सत्ता को संबोधित किया गया है व मनुष्य को प्रेरित किया गया है। मनुष्य को प्रेरित करते हुए ऐतरेय ब्राह्मण में कहा गया है चरैवेति, चरैवेति – यानी चलते रहो, चलते रहो।।

व्यक्तिवादी दर्शन के लाभ और हानियाँ
उपनिषदों में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकास करने के लिए मनुष्य का शरीर स्वस्थ और मन का स्वच्छ होना ज़रूरी है। इसके साथ-साथ इन दोनों का अनुशासित होना भी ज़रूरी है। ज्ञानार्जन करने के लिए संयम, आत्मपीड़न और आत्मत्याग ज़रूरी है। इस प्रकार की तपस्या का विचार भारतीय चिंतन में सहज रूप में निहित है। व्यक्तिवाद के फलस्वरूप उन्होंने मनुष्य के सामाजिक पक्ष पर बहुत कम ध्यान दिया। भारतीय आर्यों का विश्वास व्यक्तिवाद में था। आर्यों का यही व्यक्तिवाद भविष्य में समाज के लिए बहुत दुखदायी रहा। लोगों की रुचि सामाजिक कार्यों में बहुत कम हो गई। हर व्यक्ति के लिए जीवन बँटा और बँधा हुआ था। व्यक्तिवाद, अलगाववाद और ऊँच-नीच पर आधारित जातिवाद पर बल दिया जाता रहा। जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने के कारण लोगों की बौद्धिक क्षमता कम होने लगी जिसके कारण उनमें रचनात्मक शक्ति कम हो गई।

जब गांधी देश की आजादी के लिए संग्राम की शुरुआत की, तो उनके विचारों में भी यही विशेषता थी कि समाज जाति बंधनों से मुक्त हो और वे स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन द्वारा संयम, आत्मपीड़न और आत्मत्याग की भावना से कार्य करें।

भौतिकवाद
भौतिकवाद के साहित्य की रचना आरंभिक उपनिषदों के बाद हई। हमारा प्राचीन साहित्य ताड-पत्रों या भोज-पत्रों पर लिखा गया था। कागज पर लिखने का प्रचलन बाद में हुआ। लेकिन यूनान, भारत और दूसरे भागों में विश्व के प्राचीन साहित्य का बड़ा हिस्सा खो गया है। बहुत-सी ऐसी पुस्तकें हैं जिसका चीनी और तिब्बती भाषा में अनुवाद मिल गया, पर वे भारत में नहीं मिली। कई पुस्तकों की आलोचनात्मक पुस्तकें उपलब्ध हैं लेकिन मूल पुस्तकें प्राप्त नहीं होती।

भारत में वर्षों तक भौतिकवादी प्रचलन रहा और जनता पर उसका गहरा असर था। इसका साक्ष्य कौटिल्य द्वारा लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ है। इसमें दार्शनिक सिद्धांतों का वर्णन है। इसकी रचना ई.पू. चौथी शताब्दी में हुई थी।

भारत में भौतिकवाद के बहुत से साहित्य को पुरोहितों और धर्म के पुराणपंथी विचारों में विश्वास रखने वाले लोगों ने समाप्त कर दिया। भौतिकवादियों ने विचार, धर्म, ब्राह्मणवादिता, जादू-टोने और अंधविश्वासों का घोर विरोध किया। वे पुरानी व्यवस्था से निकलकर स्वयं को मुक्त करना चाहते थे। जो प्रमाण हमें प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता। वे काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। न स्वर्ग है और न नरक है और न ही शरीर से अलग कोई आत्मा। जीवन की वास्तविक सत्ता ही उनके समक्ष सत्य थी।

महाकाव्य, इतिहास, परंपरा और मिथक
महाकाव्य के रूप में रामायण और महाभारत की रचना संसार के श्रेष्ठतम रचनाओं में हैं। यह प्राचीन भारत की राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोष हैं। इतने प्राचीन काल में इसकी रचना होने के बावजूद इनका प्रभाव भारतीय जीवन पर आज भी जीवंत दिखाई पड़ता है। ये दोनों ग्रंथ भारतीय जीवन के अंग बन गए हैं।

भारतीय सभी कथाएँ महाकाव्यों तक सीमित नहीं हैं। उनका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। इनमें वीरगाथाओं की कहानियाँ अधिक मिलती हैं। कवियों व नाटककारों ने तथ्य और कल्पनाओं का सुंदर योग करके अपनी रचनाओं की रचना की। इनमें सत्य वचन का पालन करने, जीवनपर्यंत व मरणोपरांत वफादारी, साहस और लोकहित के लिए सदाचार और बलिदान की शिक्षा दी गई है।

भारतीय इतिहासकारों ने यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह तिथियों व कालक्रम सहित व्याख्या नहीं की। इससे घटनाएँ इतिहास की भूल भूलैया में, खोकर रह गई हैं। कल्हण की रचना राजतरंगिनी नामक प्राचीन ग्रंथ में कश्मीर का इतिहास है। इसकी रचना ईसा की बारहवीं शताब्दी में की गई। अन्य ऐतिहासिक रचनाओं को विस्तार से जानने के लिए समकालीन अभिलेखों, शिलालेखों, कलाकृतियों, इमारतों के अवशेषों, सिक्कों व संस्कृत साहित्य के विशाल संग्रह से सहायता लेनी पड़ती है। इसके अलावा विदेशी यात्रियों के विवरणों से भी हमें इसकी जानकारी मिलती है।

ऐतिहासिक ज्ञान की कमी के कारण जनता ने अतीत के विषय में अपनी सोच का निर्माण पीढ़ी-दर पीढ़ी मिली विरासत से कर लिया। इससे लोगों को एक मज़बूत और टिकाऊ सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मिल गई।

महाभारत
महाभारत का स्थान विश्व की महानतम रचनाओं में है। यह रचना परंपरा और दंत कथाओं का तथा प्राचीन भारत की राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोश है।

भारत में इस समय विदेशियों का आगमन होने के बाद विदेशियों की परंपराएँ तथा अनेक रिवाज यहाँ के बसे आर्यों की परंपराओं के साथ मेल नहीं खाते थे। इस स्थिति से निपटने के लिए बुनियादी एकता पर बल देने की कोशिश की गई। महाभारत का युद्ध 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ होगा। महाभारत में एक विराट गृह युद्ध का वर्णन है जिसमें अखंड भारत की अवधारणा की शुरुआत हुई। महाभारत ग्रंथ से यह भी स्पष्ट होता है कि आधुनिक अफगानिस्तान का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत में शामिल था जिसका नाम गंधार था। इसी आधार पर भारत के प्रधान शासक की पत्नी का नाम गंधारी पड़ा। दिल्ली व इसके आसपास के इलाके का नाम भी पहले हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ था। उस समय इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी मानी जाती थी। महाभारत में कृष्ण संबंधित आख्यान भी है और प्रसिद्ध काव्य-भगवद गीता भी। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से उस समय के शासनकाल और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और व्यवहार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। धर्म को इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और कहा गया है कि धर्म के बिना मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। वे समाज में एकता से नहीं रह सकते। इसका लक्ष्य है पूरे विश्व का लोकमंगल। यह ग्रंथ हमें यह संदेश देता है कि हिंसा करना अमानवीय है लेकिन किसी मकसद या लोक कल्याण के लिए युद्ध लड़ा जाए तो वह गलत नहीं माना जाएगा।

इस ग्रंथ में हमें पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के निदान की जानकारी दी गई है। इस प्रकार महाभारत से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं।

दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें जो आपको बुरा लगे। सच्चाई, आत्मसंयम, तपस्या, उदारता, अहिंसा, धर्म का निरंतर पालन ही जीवन की सफलता की कुंजी है। जीवन में मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति चाहिए तो इसके लिए पहले दुख भोगना आवश्यक है। धन के पीछे दौड़ना व्यर्थ है। इसके अलावे इस ग्रंथ में शासन, कला और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और आचार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। महाभारत एक ऐसा विशाल भंडार है जिसमें अनेक अनमोल चीज़े ढूँढ़ी जा सकती हैं।

भगवद् गीता
भगवद् गीता महाभारत का अंश है लेकिन हर दृष्टि से यह अपना अलग महत्त्व रखता है। यह 700 श्लोकों का काव्य रूप में लिखा गया ग्रंथ अपने आप में परिपूर्ण है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी।

इस काव्य की रचना लगभग ढाई हजार वर्ष पहले की गई। इस रचना को आज भी संपूर्ण श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी। इसकी लोकप्रियता आज भी लोगों के बीच काफ़ी है।

आधुनिक युग के विचारक तिलक, अरविंद घोष व गांधी जी ने अपने विचारों का आधार गीता को ही बनाया। अन्य लोगों ने भी हिंसा और युद्ध का क्षेत्र इसी के औचित्य के आधार पर निश्चित करते हैं।

महाभारत की कथा का आरंभ अर्जुन और कृष्ण के संवाद से है। गीता में जीवन के कर्तव्यों के पालन के लिए कर्म का अह्वान किया गया है और अकर्मण्यता की निंदा की गई है। गीता सभी वर्गों और धर्मों के लोगों को मान्य हुई। गीता का संदेश किसी संप्रदाय या व्यक्ति विशेष को बढ़ावा नहीं देता। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। यह मनुष्य के विकास के तीन मार्गों ज्ञान, कर्म और भक्ति को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। गीता में हमें ऐसी जीवंत चीज़ मिली है जो आध्यात्मिक और अन्य समस्याओं को सुलझाने में मददगार सिद्ध हुई है।

प्राचीन भारत में जीवन और कर्म
बुद्ध के काल से पहले की कहानी हमें जातक कथाओं में मिलती है। जातक कथाओं में उस समय का वर्णन है जब भारत की दो प्रधान जातियों द्रविड़ों का आर्यों में मिलन हो रहा था। उस समय ग्राम सभाएँ एक निश्चित सीमा तक स्वतंत्र थीं। आमदनी का मुख्य स्रोत लगान था। लगान पैदावार का छठा भाग किसानों से वसूल किया जाता था। यह सभ्यता मुख्यत: कृषि पर आधारित थी। गाँव दस-दस और सौ-सौ समूहों में बँटे हुए थे। दस्तकारों का गाँव अलग हुआ करता था। पेशेवर लोगों के गाँव शहरों के समीप ही बसे हुए थे। जातकों में सौदागरों की सामुद्री यात्राओं का भी वर्णन है। इनके गाँवों के पास होने का कारण यह था कि वहाँ इनके सामान की खपत हो जाती थी तथा उनकी अपनी आवश्यकताएँ भी पूरी हो जाती थीं। व्यापारी लोग नदियों के रास्ते भी यातायात करते थे। व्यापारियों के जहाज़ी बेड़े बनारस, पटना, चंपा तथा दूसरे स्थानों से समुद्र की ओर जाते थे और वहाँ से आगे उनका सामान श्रीलंका और मलय टापू तक।

भारत में लिखने का प्रचलन बहुत पुराना है। पाषाण युग की मिट्टी के पुराने बर्तनों पर ‘ब्राह्मी लिपि’ के अक्षर मिले हैं। ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी तथा अन्य लिपियों की उत्पत्ति हुई। छठी या सातवीं शताब्दी में पाणिनि ने संस्कृत भाषा में प्रसिद्ध व्याकरण की रचना की। इसे आज भी संस्कृत व्याकरण का आधिकारिक ग्रंथ माना जाता है। इस समय तक संस्कृत का रूप स्थिर हो चुका था। औषधि विज्ञान की पाठ्यपुस्तकें भी थीं और अस्पताल भी। औषधि पर चरक की तथा शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत की पुस्तकें मिलती हैं। महाकाव्यों के इस युग में वनों में स्थिति विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों का भी वर्णन मिलता है। चरक सम्राट कनिष्क के दरबार में राज वैदय थे। उनकी पुस्तक में अनेक रोगों के इलाज का वर्णन है। शल्य प्रशिक्षण के दौरान मुर्दो की चीर-फाड़ कराई जाती थी। सुश्रुत द्वारा अंगों को काटना, पेट काटना, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिलाना आदि का वर्णन है।

कुछ वर्ष तक छात्र महाविद्यालय एवं विश्व विद्यालय में प्रशिक्षण लेकर घर वापस आकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। बनारस हमेशा शिक्षा का केंद्र रहा। तक्षशिला विश्वविद्यालय भी प्रसिद्ध था। यह बौद्ध काल में बौद्ध ज्ञान का केंद्र बन गया था।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि औषधि विज्ञान व शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भारत विश्व में अपना विशेष स्थान रखता था। वर्तमान चिकित्सा का आधार प्राचीन भारत ही है। अंत में इन जानकारियों के आधार हम कह सकते हैं कि वे खुले दिल के, आत्मविश्वासी और अपनी परम्पराओं पर गर्व करने वाले, रहस्य के प्रति जिज्ञासु तथा जीवन में सहज भाव से आनंद लेने वाले लोग थे।

महावीर और बुद्ध-वर्ण व्यवस्था
जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों की उत्पत्ति वैदिक धर्म से ही हुआ है। ये दोनों धर्म वैदिक धर्म से अलग होकर उत्पन्न हुए थे। ये दोनों उसी की शाखाएँ हैं, लेकिन इन धर्मों ने वेदों को प्रमाण नहीं माना और आदि काल के बारे में कुछ नहीं कहा है। दोनों धर्म अहिंसावादी हैं। ये यथार्थवादी और बुद्धिवादी प्रवृत्ति के माने जाते हैं। वे जीवन और विचार में तपस्या के पहलू पर बल देते हैं। महावीर और बुद्ध समकालीन थे। बुद्ध में लोक प्रचलित धर्म, अंधविश्वास, कर्मकांड और पुरोहित प्रपंच पर हमला करने का साहस था। उनका आग्रह तर्क, विवेक, अनुभव और नैतिकता पर था। बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था पर वार नहीं किया लेकिन संघ व्यवस्था में इसे जगह नहीं दी गई। वर्ण व्यवस्था के विरोध में समय-समय पर इन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की। लेकिन भारत में इनकी जड़ें और भी मज़बूत हो चली गईं।

जैन धर्म जाति व्यवस्था के प्रति सहिष्णु था और स्वयं को उसी के अनुरूप ढाल लिया था, इसलिए आज भी हिंदू धर्म की शाखा के रूप में जीवित है। दूसरी ओर बौद्ध धर्म ने जाति व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। यह अपने विचारों तथा दृष्टिकोण में स्वतंत्र रहा। बुद्ध की पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की पद्धति थी। जीवन में वेदना और दुख पर बौद्ध धर्म में बहुत बल दिया गया है। इसलिए इस धर्म ने भारत के बाहर देशों में अधिक स्थान बनाया परंतु इसने हिंदूवाद पर अपनी गहरी छाप छोड़ी।

चंद्रगुप्त और चाणक्य-मौर्य साम्राज्य की स्थापना
भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार धीरे-धीरे हुआ। इसके बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश पर सिकंदर के आक्रमण करने के बाद भारत में दो महान विभूतियों ने अवतार लिए। उनमें एक था चंद्रगुप्त मौर्य और उनके मित्र मंत्री और सलाहकार ‘चाणक्य’। दोनों मगध के शक्तिशाली राजा नंद द्वारा निकाल दिए गए थे। चंद्रगुप्त की मुलाकात सिकंदर से हुई। सिकंदर की मृत्यु के पश्चात दो वर्ष के अंतराल में ही पाटलिपुत्र पर अधिकार करके चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चाणक्य यानी कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की जो राजनीति की महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में व्यापार, वाणिज्य, कानून न्यायालय, नगर व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह, तलाक, कृषि, विधवा विवाह, लगान, दस्तकारियों, जनगणना आदि का वर्णन है। इसमे विधवा विवाह और विशेष परिस्थितियों में तलाक को भी मान्यता दी गई। यानी उन्नत राज्य की नीव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी।

राज्याभिषेक के समय राजा को इस बात की शपथ दिलायी जाती थी कि वह प्रजा की सेवा करेगा तथा प्रजा के हित एवं इच्छा को ध्यान में रखेगा। यदि कोई राजा अनीति करता है तो उसकी प्रजा को अधिकार है कि उसे हटाकर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठा दे।

अशोक
चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी 273 ई.पू. में अशोक बना। इससे पहले अशोक पश्चिमोत्तर प्रदेश का शासक था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी। इस समय तक इस साम्राज्य का विस्तार मध्य एशिया तक हो चुका था। अशोक संपूर्ण भारत को एक शासन व्यवस्था में लाना चाहता था। भारत को एक शासन व्यवस्था प्रदान करने के लिए अशोक ने पूर्वी तट के कलिंग प्रदेश को जीतने की ठान ली। कलिंग के लोगों ने बहादुरी से युद्ध किया लेकिन अशोक की सेना विजयी हुई। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए तथा घायल हुए। जब इस बात की खबर अशोक को मिली तो उसे बहुत ग्लानि हुई और उसे युद्ध से विरक्ति हो गई तथा वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। अशोक के कार्यों और विचारों की जानकारी हमें शिलालेखों से मिलती है, जो पूरे भारतवर्ष में उपलब्ध है।

बुद्ध की शिक्षा के प्रभाव से उसका मन हिंसा को छोड़कर जन कल्याणकारी कार्य करने की ओर आगे बढ़ा। इसके बाद उसने बुद्ध धर्म के नियमों का उत्साहपूर्वक पालन करना शुरू कर दिया। उसने अपने एक संदेश में कहा कि- वह हत्या या बंदी बनाए जाने को सहन नहीं करेगा। उसका कहना था कि सच्ची विजय कर्तव्य और धर्म पालन करके लोगों के दिल को जीतने में है। यदि उसके साथ कोई बुराई करेगा तो वह जहाँ तक संभव होगा उसे झेलने का प्रयास करेगा। उनकी इच्छा थी कि जीव मात्र की रक्षा हो, लोगों में आत्मसंयम हो, उन्हें मन की शांति और आनंद प्राप्त हो। स्वयं उसने बुद्ध की शिक्षा के प्रचार तथा प्रजा की भलाई वाले कार्य के लिए अपने आपको अर्पित कर दिया, स्वयं वह बौद्ध धर्मावलंबी थे लेकिन सभी धर्मों का आदर करते थे।

अशोक बहुत बड़ा निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी इमारतों का निर्माण कराया। बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने में मदद के लिए विदेशी कारीगरों को भी रखा। मूर्तिकला व दूसरे अवशेषों पर भारतीय कला परंपरा की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है लेकिन स्तंभों पर विदेशी छाप भी मिलती है। 41 साल तक शासन करने के बाद ई. पू. 232 में अशोक की मृत्यु हुई। उसका नाम आदर के साथ लिया जाता है। उसने अनेक महान कार्य किए जिनके कारण उनका नाम वोल्गा से जापान तक आज भी आदर के साथ लिया जाता है।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 17.
अवशेष – बचे हुए चिह्न, अतीत – बीता हुआ, क्रांति – बदलाव, उद्घाटित करना – सबके सामने रखना, प्रधान – प्रमुख, धर्मनिरपेक्ष – सभी धर्मों के प्रति समान आदर भाव, हावी होना – बलपूर्वक अधिकार करना।

पृष्ठ संख्या 18.
अग्रदूत – सबसे आगे चलकर प्रेरणा देने वाला, धनाढ्य – अत्यंत धनी, नागर – नगर संबंधी, निरंतरता – लगातार, श्रृंखला – कड़ी।

पृष्ठ संख्या 19.
दस्तकारी – हाथ से बना सामान, सयाने – बड़े और समझदार, सृजन – उत्पन्न, निर्माण, ठेठ – पक्के, चिह्नों – संकेतों, हमाम – पानी डालने व रखने के बड़े-बड़े बर्तन या धरती में बने तालाब, प्रमाण – सबूत, अकस्मात – अचानक, अनिवार्य – ज़रूरी।

पृष्ठ संख्या 20.
समृद्ध – धनी, मुमकिन – संभव, बहुतायत – अधिकता, नवागंतुक – नया आने वाला, जब – समाहित होना।

पृष्ठ संख्या 21.
निर्धारण – तय करना, मतभेद – एक राय न होना, पल्लवन – बढ़ावा देना, पैदाइश, संग्रह – इकट्ठा करना, कुल – परिवार, उमंग – चाह।

पृष्ठ संख्या 22.
हाँमाद – खुशी की चाह, रिकार्ड – लेखा जोखा, उषाकाल – शुरुआत, अनंत – अनगिनत, सजग – सतर्क, आस्था – विश्वास, समानांतर – समान अंतर, पृष्ठभूमि – आधार, पारलौकिक – ईश्वरीय लोक में विश्वास करना।

पृष्ठ संख्या 24.
चिंतन – सोच, दृष्टिकोण – नजरिया, बाह्य – बाहरी, मिथ्या – झूठ, अद्वैतवाद – किसी भी धर्म को विशेषता दिए वगैर ईश्वर की वास्तविक सत्ता को मानना, लोकोत्तर – लोगों को ज्ञात, निरुत्साहित – उत्साह को समाप्त करना, कर्-कांड – दैनिक हवन-पूजा पद्धति, असत् – अज्ञान, कामना – इच्छा, बेचैन – परेशान, अनंत – अंतहीन, ऐतरेय ब्राह्मण – उपनिषद का एक भाग। कारगर – सही, ज्ञानार्जन – ज्ञान प्राप्त करना, आत्मपीड़न – स्वयं को दुख पहुँचाना, आत्म त्याग – अच्छे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान को परवाह न करना।

पृष्ठ संख्या 25.
भारतीय चिंतन – भारत पर विचार करना, मनोवृत्ति – इच्छा, खंड-खंड – विभाजित, समग्र – सारा पूरा, दायित्व – कर्तव्य, एकात्मता – एकरूपता, गैरमुनासिब – संभव न होना, बौद्धिक जड़ता – बुद्धि से सोचने समझने की अक्षमता, रचनात्मक शक्ति – कुछ नया करने की क्षमता, चलन – रिवाज, ताड़ पत्रों – एक विशेष प्रकार का पेड़ जिसके पत्तों पर लेखन कार्य किया जाता था।

पृष्ठ संख्या 26.
भौतिकवाद – जीवन की वास्तविकता में विश्वास करना, विशद – अत्यधिक, प्रयास – कोशिश, संदेह – शक, पुरोहित – पंडित, पुराण पंथी – पुरानों की शिक्षा देने वाले, घोर – कड़ी, रूढ़िया – दकियानुसी पुराने सोच वाले,

पृष्ठ संख्या 27.
सदियाँ सैकड़ों साल, जीवंत – सजीव रूप में, वीरगाथा – वीरों की गाथाओं से युक्त, मरणोपरांत – मरने के बाद, लोकहित – लोगों की भलाई।

पृष्ठ संख्या 28.
सम्मिश्रण – मिला हुआ, गड्ड – मिल जाना, धैर्यपूर्वक – धीरज से, सफ़रनामें – यात्रा का वृतांत, पौराणिक – प्राचीन ।

पृष्ठ संख्या 29.
दर्जा – स्थान, श्रेष्ठतम – सबसे अच्छी, विश्वकोश – विश्व से संबंधित विचारों का समावेश, घालमेल – मेलजोल, संशोधन – बदलाव कर सही करना, व्यापक – बड़ा।

पृष्ठ संख्या 30.
विराट – बड़ा, गृहयुद्ध – घरेलू युद्ध, अखंड – जिसके टुकड़े न किए जा सके, अवधारणा – सोच, आख्यानव्याख्यान, आचार – व्यवहार, एका – एकता से, लोकमंगल – लोगों का हित, मकसद – उद्देश्य।

पृष्ठ संख्या 31.
समृद्ध – भरा-पूरा, अनमोल – बहुमूल्य, सराबोर – भरा हुआ, तरबतर, कुल – परिवार, विकासशील – विकास, प्रेरक – उत्साह बढ़ाने वाला, अंश – हिस्सा, मुक्कमल – पूरा, काव्य – कविता के रूप में लिखा हुआ, दुविधाग्रस्त – किसी बात का निर्णय न कर पाने की स्थिति में होना, संकट-काल – मुसीबत का समय।

पृष्ठ संख्या 32.
औचित्य – सही, उचित, अंतरात्मा – मन की आवाज़, संहार – युद्ध, परिहार – रोक लगाना, समाप्त करना, ढह जाना – समाप्त होना, तकाजा – सही गलत का अनुमान लगाना, आध्यात्मिक – ईश्वरीय, निरूपण – वर्णन, अकर्मण्यता – काम न करना।

पृष्ठ संख्या 33.
सांप्रदायिक – धर्म से संबंधित, सार्वभौमिक – सभी के लिए, हास – गिरावट, जातक कथाएँ – प्राचीन कथाएँ, स्वतंत्र – आज़ाद।

पृष्ठ संख्या 34.
सहकारिता – मिलजुलकर, अलहदा – अलग, संगठित – मिलकर, सौदागर – व्यापारी, रेगिस्तान – रेतीले इलाके, कारवाँ – दल जत्थे, यातायात – आना-जाना, बंदरगाह – जहाँ समुद्री बेड़ा खड़ा होता है, शिलालेख – पत्थरों पर लिखा लेख।

पृष्ठ संख्या 35.
शल्य – फाड़-चीड़, पथ्य – मरीज के लिए उपयुक्त भोजन, रुझान – झुकाव, ज़िक्र – वर्णन, अपेक्षा – आज्ञा, अनुभूति – अनुभव, संवेदना, जनक – पिता, गृहस्थ – घर-गृहस्थ संबंधी, गुट – दल।

पृष्ठ संख्या 36.
सूबा – प्रांत, राज्य, मुख्यालय – केंद्र, आत्मविश्वासी – अपने आप पर विश्वास करने वाला।

पृष्ठ संख्या 37.
प्रमाण – सबूत, मौन – चुप, इंकार – मना करना, यथार्थवादी – सत्यता के धरातल पर, समकालीन – एक ही समय में, बोध – ज्ञान, निर्वाण – मोक्ष, प्रपंच – आडंबर, अलौकिक – ईश्वरीय, आग्रह – अनुरोध, विवेक – सही व गलत सोचने की शक्ति।

पृष्ठ संख्या 38.
मनोवैज्ञानिक – बौद्धिक, विरुद्ध – खिलाफ।

पृष्ठ संख्या 39.
शिकंजा – पंकड़, अनुयायी – किसी एक मत को मानने वाले। ब्रह + ज्ञान – ईश्वरीय ज्ञान, प्रचार – प्रसार, करुणा – दया, क्रोध – गुस्सा, सदाचार – सही आचरण, आत्मानुशासन – अपने को अनुशासन में रखना, विजेता – जीत हासिल करने वाला, कर्म – कार्य।

पृष्ठ संख्या 40.
तर्क – विचार, निर्णय – फैसला, हैरत – हैरानी, अधुनातन – नवीन, अंतदृष्टि – अंदर की दृष्टि, निर्वाण – मोक्ष, अतिशय – बहुत अधिक, आकांक्षाएँ – इच्छाएँ।

पृष्ठ संख्या 41.
संकल्पना – कल्पित स्वरूप, समग्र – सारा, लालसाओं – इच्छाओं, संचित – जोड़कर, निधि – संपत्ति।

पृष्ठ संख्या 42.
चिर नवीन – पुराना लेकिन सदैव नया, उत्तेजित – प्रोत्साहित, विराट – बड़ा, ब्यौरा – लेखा-जोखा, कर्मठता – कार्य करने की लगन वाला, सेवानिवृत्ति – कार्य से छुटकारा पाकर (रिटायर होना), चिंतन मनन – सोच-विचार, संकोच – शर्म।

पृष्ठ संख्या 43.
मत्स्य – मछली, कसाई खाने – जहाँ जानवरों को काटा जाता है, शपथ – कसम, मोहताज – निर्भर, अनीति – गलत कार्य।

पृष्ठ संख्या 44.
मातहत – अधीन, तत्काल – उसी समय, भयंकर – काफ़ी, विरक्ति – मन हट जाना, कत्लेआम – मार-काट, अंगीकार – अपनाना, आकांक्षा – इच्छा, आत्मसंयम – स्वयं को संयमित करना।

पृष्ठ संख्या 45.
अद्भुत – अजीब, सार्वजनिक – सभी के लिए समान, लोकहित – लोगों की भलाई के लिए, कट्टर – पक्का, पर्सपोलिस – प्राचीन काल के शक्तिशाली पारसिक साम्राज्य की राजधानी जो आधुनिक ईरान में है, अनवरत – लगातार, नामीगिरामीजाने – माने।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 2 Question Answers Summary तलाश

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
मोहजोदड़ो की सभ्यता कितने वर्ष पुरानी है?
(i) 3000 वर्ष
(ii) 5000 वर्ष
(iii) 6000 वर्ष
(iv) 4000 वर्ष
उत्तर:
(ii) 5000 वर्ष

प्रश्न 2.
सिंधु नदी का दूसरा नाम है?
(i) इंडस
(ii) इंडिया
(iii) इंदु
(iv) इंद्रनील
उत्तर:
(i) इंडस

प्रश्न 3.
एशिया की शक्ति कम होने पर कौन-सा द्वीप आगे बढ़ा?
(i) यूरोप
(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका
(iii) इंग्लैंड
(iv) इंडोनेशिया
उत्तर:
(i) यूरोप

प्रश्न 4.
भारत का कौन-सा वर्ग इस समय बदलाव की कामना करता था?
(i) निम्न वर्ग
(ii) मध्यम वर्ग
(iii) उच्च वर्ग
(iv) शासक वर्ग
उत्तर:
(ii) मध्यम वर्ग

प्रश्न 5.
भारत कितने वर्षों से अंग्रेज़ों के अत्याचार झेल रहा था?
(i) सौ वर्षों से
(ii) दो सौ वर्षों से
(iii) चार सौ वर्षों से
(iv) पाँच सौ वर्षों से
उत्तर:
(i) सौ वर्षों से

प्रश्न 6.
भारत का नाम किसके नाम पर पड़ा?
(i) राजा भारत
(ii) राजा भरत
(iii) भरतमुनि
(iv) भारद्वाज
उत्तर:
(ii) राजा भरत

प्रश्न 7.
तक्षशिला के अवशेष कितने प्राचीन थे?
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ii) तीन हजार वर्ष पूर्व
(iii) चार हजार वर्ष पूर्व
(iv) पाँच हजार वर्ष पूर्व
उत्तर:
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व

प्रश्न 8.
भारतीयों की जीवन शैली कैसी थी?
(i) खुशहाल
(ii) अभावों व असुरक्षा से ग्रस्त
(iii) सामान्य
(iv) उच्च कोटि की
उत्तर:
(ii) अभावों व असुरक्षा से ग्रस्त

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नेहरू जी ने भारत को किस नज़रिए से देखना शुरू किया और क्यों?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारत को एक आलोचक की दृष्टि से देखना शुरू किया। वे एक ऐसे आलोचक थे जो वर्तमान को देखते थे पर अतीत के बहुत से अवशेषों को नापसंद करते थे। वे ऐसा इसलिए करते थे जिससे वे अतीत के पसंद एवं नापसंद दोनों पात्रों का अवलोकन करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
लेखक ने विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय साहित्य का अध्ययन क्यों करना चाहा?
उत्तर:
नेहरू जी ने विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय साहित्य का अध्ययन करना चाहा ताकि भारत की विशेषताओं की बारीकियों का अध्ययन कर सकें।

प्रश्न 3.
लेखक कहाँ टीले पर खड़ा था?
उत्तर:
लेखक उत्तर पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़ा था।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत से कौन-कौन सी मुख्य नदियाँ निकलती हैं?
उत्तर:
नेहरू जी के पूर्वज कश्मीर के रहनेवाले थे। बचपन में उनका काफ़ी समय कश्मीर की ज़मीन पर व्यतीत हुआ है। इसलिए वे कश्मीर की ओर अधिक आकर्षित होते थे।

प्रश्न 5.
हमारे देश का नाम किसके आधार पर पड़ा?
उत्तर:
सिंधु नदी के कारण इंडस भी कहा जाता है। यह नदी हिमालय पर्वत से निकलती है। भारत का नाम इंडिया या हिंदुस्तान भी इसी के आधार पर पड़ा है।

प्रश्न 6.
भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि प्राचीन व नई में सामंजस्य स्थापित कर, पुराने को बनाए रखने से नए विचारों को आत्मसात करने का सामर्थ्य होगा।

प्रश्न 7.
शक्ति पाकर यूरोप ने क्या किया?
उत्तर:
शक्ति पाकर यूरोप ने पूर्व के देशों पर अधिकार करना चाहा।

प्रश्न 8.
एशिया की शक्ति कम होने पर कौन-सा द्वीप आगे निकला और क्यों?
उत्तर:
एशिया की शक्ति कम होने पर यूरोप ने प्रगति की क्योंकि उसने तकनीकि विकास की ओर कदम बढ़ाए।

प्रश्न 9.
नेहरू जी पर भारत के इतिहास और विशाल प्राचीन साहित्य की किन बातों ने प्रभाव डाला?
उत्तर:
नेहरू जी पर विचारों की तेजस्विता, भाषा की स्पष्टता, सक्रिय मस्तिष्क की समृद्धि ने गहरा प्रभाव डाला।

प्रश्न 10.
भारतीयों ने किन संकीर्ण धारणाओं को अपनाया?
उत्तर:
भारतीयों ने जिन संकीर्ण धारणाओं को अपनाया, वे थे महासागरों को पार न करना एवं मूर्ति पूजा की ओर कदम बढ़ाना।

प्रश्न 11.
नेहरू जी ने भारत की तलाश किन-किन साधनों से करनी चाही?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारत की तलाश पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों और प्राचीन सांस्कृतिक उपलब्धियों से करनी चाही।

प्रश्न 12.
नेहरू जी स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर क्यों आकर्षित होते थे?
उत्तर:
नेहरू जी अजंता, एलोरा, एलीफेंटा की गुफाओं प्राचीन स्मारकों, आगरा एवं दिल्ली में बनी इमारतों की ओर इसलिए आकर्षित होते थे क्योंकि इनमें लगा एक-एक पत्थर भारत के अतीत की कहानी कहता प्रतीत होता है।

प्रश्न 13.
भारत के तकनीकी कौशल में पिछड़ने से यूरोप की स्थिति कैसी हो गई?
उत्तर:
भारत के तकनीकी कौशल में पिछड़ने से यूरोप जो एक ज़माने से पिछड़ा हुआ था, वह तकनीकी दृष्टि में भारत से काफ़ी विकास की दौड़ में आगे निकल गया। नई तकनीक से उनका सैन्यबल काफ़ी शक्तिशाली हो गया, इससे पूरब पर अधिकार करना आसान हो गया।

प्रश्न 14.
मानसिक सजगता की कमी ने संकीर्ण रूढ़िवादिता को किस प्रकार बढ़ावा दिया?
उत्तर:
भारतीयों की जागरूकता की कमी के कारण साहसिक कार्यों की लालसा में कमी आती गई। इसी परिस्थिति में भारतीयों के महासागरों को पार करने पर रोक लगाने वाली धारणा का जन्म हुआ। इससे संकीर्ण विचारधारा को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 15.
नेहरू जी ने ग्रामीण जनता और मध्यम वर्ग के बीच में क्या अंतर महसूस किया?
उत्तर:
लेखक को सदैव ग्रामीण जनता आकर्षित करती रही। यह ग्रामीण जनता देश से काफ़ी प्रेम करती थी। वे अभावों में गुज़र बसर करते हुए भी भारत की शान समझे जाते थे। इसके विपरीत मध्यम वर्ग में लगाव कम उत्तेजना अधिक थी।

प्रश्न 16.
नेहरू जी किसानों को संबोधित करते हुए क्या संदेश देना चाहते थे?
उत्तर:
नेहरू जी किसानों को संबोधित करते हुए विश्वबंधुत्व का संदेश देना चाहते थे। वे किसानों से कहते हैं कि वे भारत को अखंड मानकर उसके बारे में मनन करें। उन्हें इन वास्तविकताओं को स्वीकार करना चाहिए कि वे संपूर्ण विश्व के हिस्से हैं।

प्रश्न 17.
भारत के किसानों की प्रमुख समस्याएँ क्या थी?
उत्तर:
भारतीय किसानों की प्रमुख समस्याएँ थीं- गरीबी, कर्ज, शोषण, जमींदार, महाजन, लगान, कर व पुलिस द्वारा अत्याचार।

प्रश्न 18.
‘तक्षशिला’ क्यों प्रसिद्ध था? यहाँ अन्य देशों से लोग क्यों आते थे?
उत्तर:
तक्षशिला विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यहाँ दूर-दराज देशों से छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

प्रश्न 19.
कौन-कौन से धर्म के अनुयायी भारतीय बने रहे?
उत्तर:
यहूदी, पारसी, मुसलमान, भारतीय बने रहे।

प्रश्न 20.
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को क्या समानता दिखाई देती थी?
उत्तर:
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को यह समानता दिखाई दी कि पूरे भारत की पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक व पुराण कथाएँ सब एकरूपता लिए हैं। इनमें किसी को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यानी प्रांतीय ढाँचा को अपनाने वाला देश आपस में एक है।

प्रश्न 21.
भारत की विविधता अद्भुत है’ कैसे?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति में विविधता होने के बावजूद एकता प्रकट होती है। इसे कोई भी देख सकता है। इसका संबंध शारीरिक रूप से भी है। उत्तर पश्चिमी इलाके के पठान और सुदूर दक्षिण के रहने वाले तमिल लोगों में बहुत कम समानता है। फिर भी उनमें अंदर के सूत्र एक समान हैं।

प्रश्न 22.
इस पाठ के आधार पर आर्थिक तंगी में जीते भारतीयों की दशा का चित्रण तथा उनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस पाठ के अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय जनता काफी आर्थिक तंगी से जूझ रही थी। उनको आभावों में जीने की मज़बूरी थी। चारों ओर भूखमरी, गरीबी और बहुत-सी परेशानियों से यहाँ की जनता त्रस्त थी। उनके इन परेशानियों को साफ़-साफ़ चेहरे पर देखा जा सकता था। समाज में चारों तरफ भ्रष्टाचार और असुरक्षा की भावना व्याप्त थी। उनकी जिंदगी विकृत होकर भयंकर रूप धारण कर चुकी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुंभ स्नान पर्व के बारे में नेहरू जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
महाकुंभ स्नान को देखकर नेहरू जी को हैरानी होती थी कि इतने वर्षों से लगातार गंगा स्नान का महत्त्व बना हुआ है। इस देश के कई पीढ़ियों के साथ इस देश के साथ लगाव रहा है। हज़ारों वर्षों से उनके पूर्वज गंगा स्नान के लिए भारत के कोने-कोने से आते रहे हैं। आज भी इसकी आस्था यथावत है। करोड़ों लोग दूर-दूर से गंगा स्नान के लिए आते हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय संस्कृति को जानते हुए लेखक को महात्मा बुद्ध, अशोक व अकबर कैसे प्रतीत हुए? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
लेखक को भारतीय संस्कृति को देखने पर पता चला कि महात्मा बुद्ध ने बनारस के निकट सारनाथ नामक स्थान पर जो पहला उपदेश दिया था, वे शब्द आज भी गूंज रहे हैं। अशोक के स्तंभ व शिलालेख उसकी महानता को उजागर कर रहे हों। अकबर आज भी विद्वानों के वाद-विवाद द्वारा लोगों की सामाजिक व धार्मिक समस्याओं को सुलझाने में लगा हो यानी सदियों के बाद भी वे सजीव प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में शक्तियों के पतन ने लोगों के दृष्टिकोण साहित्य तथा निर्माण कला पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
भारत की शक्तियों का पतन होने पर भी लोगों का दृष्टिकोण है कि लोगों में रचनात्मक प्रवृत्ति की कमी आयी तथा अनुकरण करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। जो लोग प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्य जानने की इच्छा रखते थे, उनकी रुचि साहित्य की ओर झुकी। सजीव, सरल, समृद्ध, प्रभावशाली की जगह कठिन साहित्यिक शैली का प्रयोग होने लगा। भव्य मूर्तिकला निर्माण की जगह पर पच्चीकारी वाली कारीगरी की जाने लगी।

प्रश्न 4.
नेहरू जी ने अन्य किन-किन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा की थी?
उत्तर:
नेहरू जी ने निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा की थी-
अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ। आगरा और दिल्ली में बनी इमारतें। बनारस के पास सारनाथ एवं फतेहपुर सीकरी।

प्रश्न 5.
लेखक ने भारतीयों से बहुत अपेक्षाएँ क्यों नहीं रखी?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारतीयों से बहुत अपेक्षाएँ इसलिए नहीं की, क्योंकि भारतीय दो सौ वर्षों से गुलामी व अत्यंत गरीबी का जीवन जी रहे थे। अभावों व कष्ट में जीवन जीते वे अपने बारे में सोचना भूल गए थे। ऐसे में वे पाते थे कि बहुत-सी ऐसी बाते हैं जो आज भी जीवित हैं।

प्रश्न 6.
नेहरू जी जहाँ भी जाते उनके स्वागत में कौन से शब्द गूंज उठते थे?
उत्तर:
नेहरू जी जहाँ भी जाते थे वहाँ उनके स्वागत में ‘भारत माता की जय’ का स्वर गूंज उठता था।

प्रश्न 7.
‘भारतीयों पर’ ‘भारतीयता की गहरी छाप’ कैसे दिखाई पड़ती है?
उत्तर:
लेखक ने जब पूरे देश का भ्रमण किया तो पाया कि बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल, आंध्र, उड़िया, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठानी, कश्मीरी, भाषी लोग मन से सभी एक हैं। सबकी एक विरासत है, नैतिक व मानसिक धारणाएँ भी सभी की एक हैं। कितने ही विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया और अपना साम्राज्य स्थापित किया, लेकिन भारतीयों की अपनी सभ्यता व संस्कृति को कोई डगमगा नहीं सका। इसलिए यह कहना कि भारतीय सभ्यता भारतीयों पर गहरी रूप से दिखाई देती है।

प्रश्न 8.
भारतीय संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को क्या समानता दिखाई दी है?
उत्तर:
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में लेखक को यह समानता दिलाई दी कि पूरे भारत वर्ष की पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक व पुराणकथाएँ सब एकरूपता लिए हैं। इनमें से किसी एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता यानी क्षेत्रीय विविधता अलग-अलग प्रांतों में बँटे होने के बावजूद संघीय रूप में एक है।

प्रश्न 9.
भारत की एकरूपता प्रकट करने के लिए नेहरू जी ने किसानों को किस तरह समझाया?
उत्तर:
जब लेखक ने देखा कि उनके सभा में आए किसानों की दशा बिलकुल दयनीय है तो नेहरू जी ने किसानों को समझाते हुए कहा कि पूरे भारत में किसान भाइयों की दशा दयनीय है तो उन्होंने उन्हें समझाते हुए कहा- भारतीय किसानों की स्थिति समूचे देश में काफ़ी दयनीय है। वे सभी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। किसान अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचार से पीड़ित हैं। यह सब उन्होंने सुदूर उत्तर पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी तक की यात्रा के अनुभव के आधार पर कहा। उन्होंने किसानों से कहा कि हम सभी को मिलकर देश को आजाद कराना है।

प्रश्न 10.
ग्रामीण लोगों को देखकर नेहरू जी को क्या हैरानी हुई?
उत्तर:
ग्रामीण लोगों को देखकर लेखक को हैरानी हुई कि उन लोगों को प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत तथा अन्य ग्रंथों के सैकड़ों पद एवं दोहे याद होते थे। अपनी बात-चीत के दौरान उनके उदाहरण देना, नैतिक उपदेश देना व साहित्यिक बातें करने पर लेखक को इस बात की हैरानी होती थी कि अनपढ़ होते हुए भी वे बौद्धिक रूप से समझदार थे।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से नेहरू जी कहने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत के अतीत में ऐसी दृढ़ शक्ति रही है। कि उसे कोई डिगा नहीं सकता है। यदि हम पाँच हज़ार सालों के पीछे मुड़कर देखें तो पाते हैं कि भारत का मुकाबला पूरा संसार नहीं कर सकता। जनसंख्या का विशाल समूह होने के बावजूद भारत में मज़बूती के साथ एकजुटता दिखाई देता है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Summary

भारत की अतीत की झाँकी नेहरू जी इस पाठ के माध्यम से कहते हैं कि बीते सालों में उनका यह प्रयास रहा है कि वे भारत को समझें और उसके प्रति उनके प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करें। कभी-कभी उनके मन में यह भी विचार आता था कि आखिर भारत क्या है? यह भूतकाल की किन विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? भारत उनके खून में रचा-वसा था। उन्होंने भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखा था। क्या अब वह अपनी शक्ति को खो दिया है? इतना विशाल जन समूह होने के बावजूद भारत के पास कुछ ऐसा है जिसे जानदार कहा जा सके। इस आधुनिक युग में तालमेल किस रूप में बैठता था।

उस समय नेहरू जी भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। इस नगर को 5000 वर्ष पहले का बताया गया है। यह एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी। इसका ठेठ भारतीयपन हमारी आधुनिक सभ्यता का आधार है। भारत ने फारस, मिश्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया तथा भूमध्यसागर के लोगों को प्रभावित किया तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित हुआ। नेहरू जी ने आने वाले विदेशी विद्वान यात्री जो चीन, पश्चिमी व मध्य एशिया से आए थे, उनके द्वारा लिखित साहित्य का अध्ययन किया। उन्होंने पूर्वी एशिया, अंगकोर, बोरोबुदुर और बहुत सी जगहों से भारत की उपलब्धियों के बारे में जाना। हिमालय पर्वत व उनसे जुड़ी प्राचीन कथाओं को भी उन्होंने जाना। वे हिमालय में भी घूमते रहे जिसका पुराने मिथकों और दंत कथाओं के साथ निकट का संबंध है। पहाड़ों के प्रति विशेषकर कश्मीर के प्रति उनका विशेष लगाव रहा। भारत की विशाल नदियों ने भी उन्हें आकर्षित किया। इंडस या सिंधु के नाम पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिंदुस्तान पड़ा। यमुना के चारों ओर नृत्य और नृत्य उत्सव और नाटक से संबद्ध न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र हैं। भारत की नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। प्राचीन काल से आधुनिक युग तक गंगा की गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

भारत के अतीत की कहानी को स्वरूप देनेवाली अजंता, एलोरा, ऐलिफेंटा की गुफाएँ व दिल्ली तथा आगरा की विशेष इमारतों ने भी नेहरू जी को भारत के अस्तित्व के बारे में अवगत करवाया।

जब भी वे अपने शहर इलाहाबाद या फिर हरिद्वार में महान-स्नान पर्व कुंभ के मेले को देखते तो उन्हें एहसास होता था कि हज़ारों वर्ष पूर्व से उनके पूर्वज भी इस स्नान के लिए आते रहे हैं। विदेशियों ने भी इन पर्यों के लिए बहुत कुछ लिखा। उन्हें इस बात की हैरानी थी कि वह कौन-सी प्रबल आस्था है जो भारतीयों को कई पीढ़ियों से भारत की इस प्रसिद्ध नदी की ओर खींचती रही है। उनकी यात्राओं ने अतीत में देखने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें सच्चाई का बोध होने लगा। उनके मन में अतीत के सैकड़ों चित्र भरे पड़े थे। ढाई हजार वर्ष पहले दिया महात्मा बुद्ध का उपदेश उन्हें ऐसा लगता जैसे बुद्ध अपना पहला उपदेश अभी दे रहे हों, अशोक के पाषण स्तंभ अपने शिलालेखों के माध्यम से अशोक की महानता प्रकट करते, फतेहपुर सीकरी में अकबर सभी धर्मों में समानता को मानते हुए मनुष्य की शाश्वत समस्याओं का हल खोजता फिरता है।

इस प्रकार नेहरू जी को प्राचीन पाँच हज़ार वर्ष पूर्व से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा की निरंतरता में विलक्षणता साफ़ और स्पष्ट तथा वर्तमान के धरातल पर सजीव प्रतीत होती है।

भारत की शक्ति और सीमा
भारत की शक्ति और सीमा के बारे में खोज लंबे समय से हो रही है। नई वैज्ञानिक तकनीकों से पश्चिमी देशों को सैन्य शक्ति के विस्तार का मौका मिला। इन शक्तियों का प्रयोग कर इन देशों ने पूरब के देशों पर अधिकार कर लिया। प्राचीन काल में भारत में मानसिक सजगता और तकनीकी कौशल की कमी नहीं थी लेकिन बाद में इसमें काफ़ी गिरावट हो गई। नई खोजों की लालच में परिश्रम की कमी होने लगी। नित नए आविष्कार करने वाला भारत दूसरों का अनुकरण करने लगा। विकास के कार्यों में शिथिलता आने लगी। साहित्य रचना अधिक होने लगी। सुंदर इमारतों का निर्माण करने वाले भारत में पश्चिमी देशों के प्रभाव के कारण पच्चीकारी वाली नक्काशी की जाने लगी।

सरल, सजीव और समृद्ध भाषा की जगह अलंकृत और जटिल साहित्य-शैली विकसित हुई। विवेकपूर्ण चेतना लुप्त होती चली गई और अतीत की अंधी मूर्ति पूजा ने उसकी जगह ले ली। इस हालत में भारत का पतन होने लगा जबकि इस समय में विश्व के दूसरे हिस्से लगातार प्रगति करते रहे।

इन उपरोक्त बातों के साथ-साथ यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इतना कुछ होने पर भी भारत की मज़बूती, दृढ़ता और अटलता को हिला नहीं सका। प्राचीन भारत का स्वरूप तो पुराने रूप में रहा लेकिन अंदर की गतिविधियाँ बदलती रहीं, भले ही नए लक्ष्य खींचे गए लेकिन पुरानी व नई सामंजस्य स्थापित करने की इच्छा बराबर बनी रही। इसी लालसा ने भारत को गति दी और पुराने के जगह नए विचारों को आत्मसात करने का सामर्थ्य दिया।

भारत की तलाश
नेहरू जी की सोच यह थी भारत का अतीत जानने के लिए पुस्तकों का अध्ययन, प्राचीन स्मारकों तथा भवनों का दर्शन, सांस्कृतिक उपलब्धियों का अध्ययन तथा भारत के विभिन्न भागों की पद यात्राएँ पर्याप्त होगी, पर इन सबसे उन्हें वह संतोष न हो सका जिसकी उन्हें तालाश थी। उन्होंने भारत के नाम पर भरत नाम की प्राचीनता बताई। उन्होंने उन्हें सुदूर-उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप कैमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने देश के किसानों की विभिन्न समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों, दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। ग्रामीण अभावों में रहते हुए भी भारत की शान थे। जो बात उनमें थी वह भारत के माध्यम वर्ग में न थी। केवल उत्तेजना के भाव रहते थे।

नेहरू जी इस बात से भी अपरिचित न थे कि भारत की तस्वीर कुछ-कुछ बदल रही है क्योंकि हमारा देश 200 वर्षों से अंग्रेजों के अत्याचार झेल रहे थे। काफ़ी कुछ तो उसी कारण समाप्त हो गया लेकिन जो मूल्य या धरोहर बच गई है वह सार्थक है। लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो निरर्थक व अनिष्टकारी है।

भारत-माता
नेहरू जी सभी भारतीय किसानों को संदेश देना चाहते थे कि भारत महान है। हमें इसकी महत्ता को समझना चाहिए। वे जब भी किसी भी सभा में जाते तो लोगों को अवगत कराते कि इस विशाल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका भाग अलग-अलग होते हुए भी सभी को मिलाकर भारत बना है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक यह एक ही स्वरूप रखता है। उन्होंने उन्हें सुदूर उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप केमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने किसानों की विविध समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। लोग जब ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते तब नेहरू जी उनसे पूछते थे कि भारत माता की जय इसका क्या अर्थ है ? इसका इन्हें सही-सही उत्तर नहीं सूझता था। एक व्यक्ति ने उत्तर दिया – भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी। भारत तो वह सब कुछ है भारत के पहाड़ और नदियाँ, जंगल, खेत और भारत की जनता। भारत माता की जय का अर्थ है- इसी जनता जनार्दन की जय। यह विचार उनके दिमाग में बैठता जाता था। उनकी आखें चमकने लगती थीं मानो उन्होंने एक नई महान खोज कर दी हो।

भारत की विविधता और एकता
यह सौ प्रतिशत सत्य है कि भारत में विविधता होते हुए भी एकता है। पूरे भारत देश में लोगों के खान-पान, रहन-सहन, पहनावे, भाषा, शारीरिक व मानसिक रूप में विविधता झलकती है, पर विविधता होते हुए भी भारत देश एक है। इनमें चेहरे-मोहरे, खान-पान, पहनावे और भाषा में बहुत अंतर है। पठानों के लोक प्रचलित नृत्य रूसी कोजक नृत्य शैली में मिलते हैं। इन तमाम विविधताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसे तमिल पर 1 सीमांत क्षेत्र प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय दो हज़ार वर्ष पहले इसकी लोकप्रियता चरम सीमा पर थी। पठान और तमिल दो चरम उदाहरण है, बाकी की स्थिति इन दोनों के बीच की है। सबकी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, पर इन सब पर भारतीयता की गहरी छाप है। भारत में विविध भाषाओं के बोलने वाले लोग हैं। प्राचीन चीन की भाँति प्राचीन भारत अपने आप एक संसार थी। यहाँ विदेशी भी आए और यहाँ जज्ब हो गए। किसी भी देशी समूह में छोटी-बड़ी विभिन्नताएँ हमेशा देखी जाती हैं। अब राष्ट्रवाद की अवधारणा जोरों पर विकसित होने लगी। विदेशों में भारतीय एक राष्ट्रीय समुदाय के लोग एक साथ रहते हैं। भले ही उनमें भीतरी मतभेद हो, एक हिंदुस्तानी भले ही किसी भी धर्म का हो, वह अन्य देशों में हिंदुस्तानी ही माना जाता है।

नेहरू जी का कहना है कि वे जब भी भारत के बारे में सोचते हैं तो उनके सामने दूर-दूर तक फैले मैदान, उन पर बसे अनगिनत गाँव, व शहर व कस्बे जिनमें वे घूमे, वर्षा ऋतु की जादुई बरसात जिससे झुलसी हुई धरती का सौंदर्य और हरियाली खिल जाए, विशाल नदियाँ व उनमें बहता जल, ठंडा प्रदेश खैबर, भारत का दक्षिण रूप, बर्फीला प्रदेश हिमालय या वसंत ऋतु में कश्मीर की कोई घाटी फूलों से लदी हुई व उसके बीच से कल-कल छल-छल करते बहते झरने की तस्वीर बन जाती है, जिसे वे सहेजकर रखना चाहते हैं।

जन संस्कृति
भारत की तलाश के क्रम में नेहरू जी जब भारतीय जनता के जीवन की गतिशीलता को देखते तो उसका संबंध अतीत से जोड़ते थे, जबकि इन लोगों की नज़रें भविष्य पर टीकी रहती थी। लेखक को हर जगह एक संस्कृति पृष्ठभूमि मिली जिसका जनता के जीवन पर गहरा असर था। इस पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन परंपरा, इतिहास, मिथक, पुरा-कथाओं का सम्मेलन था। ये कथाएँ आपस में इस प्रकार से मिली हुई थी कि इसे एक दूसरे से अलग करना असंभव था। भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत जनता के बीच प्रसिद्ध थे। वे ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता था। लेखक के मन में लिखित इतिहास और तथ्यों का भंडार था। गाँव के रास्ते से गुजरते हए लेखक की नज़र मनोहर पुरुष या सुंदर स्त्री पर पड़ती थी जिसे देखकर वह विस्मय विमुग्ध हो जाता था। चारों ओर अनगिनत विपत्तियाँ फैली हुई थीं। लेखक को इस बात से हैरानी होती थी कि तमाम भयानक कष्टों के बावजूद, आखिर यह सौंदर्य कैसे टिका और बना रहा। भारत में स्थितियों को समर्पित भाव से स्वीकार करने की प्रवृत्ति प्रबल थी।

भारत में नम्रता, यह सब कुछ होने के बाद भी स्थिति को स्वीकारने की प्रबल प्रवृत्ति थी जो हज़ारों सालों की संस्कृति विरासत की देन थी और इसे दुर्भाग्य भी न मिटा पाया था। यानी भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 4.
विश्लेषण – सही गलत का विचार करना, अवधारणा – विचार, आलोचक – सही गलत दोनों धारणाएँ प्रकट करने वाला, अतीत – पिछला, प्राचीन, शंकाएँ – संशय, खारिज – समाप्त, जीवंत – सदा रहने वाला, टिकाऊ – मज़बूत, पक्का, बजूद – आधार।

पृष्ठ संख्या 5.
टीला – मिट्टी या रेत के जमाव से बना एक ऊँचा स्थान, ठेठ – पूरी तरह से, आश्चर्यचकित – हैरान, परिवर्तनशील – बदलाव करनेवाला, विकास समान – उन्नति की ओर बढ़ना, संपर्क – संबंध, तेजस्थिता – प्रकाशमय, सुदूर – बहुत दूर, सक्रिय – क्रियाशील होना, समृद्धि – संपन्नता, पराक्रमी – वीर, दास्तान – आपबीती, मिथकों – अविश्वसनीय घटनाएँ।

पृष्ठ संख्या 6.
दंत कथाएँ – लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ, विशाल – बड़ा, रमणीय – सुंदर, मनोरम, तादाद – बड़ी संख्या, पौराणिक – पुरानी, प्राचीन, भग्नावशेषों – पुरानी चीजों के टूटे-फूटे बचे टुकड़े, पुरखे, पर्वों – त्योहारों, हैरत – हैरानी, आश्चर्य, प्रबल – मज़बूत।

पृष्ठ संख्या 7.
आस्था – विश्वास, अंतर्दृष्टि – अंदर तक पहचान पाने की शक्ति, बोध – ज्ञान, तत्काल – उसी समय, फासला – दूरी, अभिलिखित – लिखित सबूत, पाषाण स्तंभ – पत्थर के खंभे। शिलालेख – पत्थरों पर लिखे गए लेख। सम्राट – राजाओं के राजा, जिज्ञासु – जानने की इच्छा, शाश्वत – निरंतर, चिर, परंपरा – रीति-रिवाज, स्रोत – प्राप्य स्थान, पतन – गिरावट, ज़माना – एक युग लंबा समय, प्रगति – उन्नति, ज़माने – संसार।

पृष्ठ संख्या 8.
चेतना – बुद्धि, मानसिकता – सोचने की शक्ति, कौशल – हुनर, क्षीण – कमज़ोर, अनुकरण – दूसरे का कार्य देखकर करना, किसी के पीछे चलना, प्रयास – कोशिश, शब्दाडंबर – शब्दों का आवरण, लैस – सुसज्जित, भाष्यकार – भाषा पर अधिकार रखनेवाला, भव्य – सुंदर, नक्काशी – हाथ से की गई मीनाकारी, अलंकृत – अलंकारों से युक्त, जटिल – कठिन, प्रसारप्रचलन, संकीर्ण रूढ़िवादिता – दकियानुसी विचार, लुप्त – समाप्त, विकट – कठिन, मूर्छा – बेहोश, ह्रास – पतन, सर्वेक्षण – ब्यौरा, ध्वंसावशेषों – खंडित बची हुई वस्तुएँ, क्रममय – सिलसिले का टूटना, निरंतरता – एकरूपता, पुनर्जागरण – नवीन विचारों की जागृति आना।

पृष्ठ संख्या 9.
सामंजस्य – तालमेल, अंतर्वस्तु – अंदर का आधार, आत्मसात – अपनाना, सामर्थ्य – कुछ करने की हिम्मत, विगत – बीता हुआ, दुर्गति – बुरी दशा, विचित्र – अजीब, तरक्की – उन्नति, रौंद देना – अस्तित्व-खत्म करना, बुद्धिजीवियों – नई विचारधाराओं से विचार करनेवाले।

पृष्ठ संख्या 10.
अहमियत – विशेष महत्त्व देना, संदेह – शक, वंद्व-युद्ध, अवधारणा – विचारधारा, अपेक्षाएँ – कुछ पाने की इच्छाएँ, दृढ़ता – मज़बूती, अंत-शक्ति – अंदर का बल, सार्थक – सही अर्थों में, निरर्थक – जो सही अर्थ न रखते हो, अनिष्टकारी – विनाशकारी।

पृष्ठ संख्या 11.
श्रोता-सुनने वाले, चर्चा-एक दूसरे से विचार-विमर्श, संस्थापक-शुरू करनेवाले, दमदार-ज़ोरदार, प्रभावी।

पृष्ठ संख्या 11.
बाबत – बारे में, संघर्ष – परिश्रम, कर्ज – उधार, अत्याचार – गलत व्यवहार, हुकूमत – शासन, आरोपित – थोपना, अखंड – जिसके टुकड़े न किए जा सकें, विराट – बड़ा, मनोरंजक – मनभावन, अटूट – घनिष्ठ।

पृष्ठ संख्या 12.
प्रयल – कोशिश, मुहैया – प्रदान करते हैं।

पृष्ठ संख्या 12.
विविधता – भिन्नता, अद्भुत – अजीब, तालुक – संबंध, गमक – छाप, तमाम – अनेक, अचरज – हैरानी।

पृष्ठ संख्या 13.
सीमांत – सीमावर्ती, ध्वस्त – नष्ट, अवशेष – बचे हुए, कमोबेश – कम-अधिक, जज्ब – सभा, तत्काल – उसी समय, आरोपित – थोपा हुआ, प्रोत्साहन – उत्साह, मानकीकरण – शुद्ता, सहिष्णुता – सहृदयता, प्रोत्साहन – बढ़ावा।

पृष्ठ संख्या 14.
घनिष्ठ – पक्का, मूल – वास्तविक, अनुभूति – महसूस, मतभेद – विचारों में भिन्नता, अनगिनत – असंख्य।

पृष्ठ संख्या 15.
संचार – नया रूप भरना, नवजात – नए, सहेजकर – संभालकर।

पृष्ठ संख्या 15.
पृष्ठभूमि – आधार, मिथक – मनगढंत, पुरा – प्राचीन, निरक्षर – अनपढ़, लोक मानस – लोगों के दिमाग से, समृद्ध – उन्नत-संपन्न, देहाती – गाँव के।

पृष्ठ संख्या 16.
संवेदनशील – मन को भावुक करनेवाले, बलिष्ठ – बलशाली, देह – शरीर, लावण्य – सुंदरता, अवसाद – दुख।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 1 Questions and Answers Summary अहमदनगर का किला

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 1 Question Answers Summary अहमदनगर का किला

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 1 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अहमदनगर का किला’ पाठ कब व किसके द्वारा लिखा गया।
(i) 14 अप्रैल 1914 में जवाहरलाल नेहरू जी द्वारा
(ii) 13 अप्रैल 1944 में जवाहरलाल नेहरू जी द्वारा
(iii) 13 अप्रैल 1944 में महात्मा गांधी द्वारा
(iv) 14 अप्रैल 1933 सरदार बल्लभ भाई पटेल द्वारा
उत्तर:
(ii) 13 अप्रैल 1944 में जवाहरलाल नेहरू जी द्वारा

प्रश्न 2.
नेहरू जी ने जीवन में कितनी बार जेल की यात्रा की थी?
(i) आठ बार
(ii) दो बार
(iii) नौवीं बार
(iv) पाँचवी बार
उत्तर:
(iii) नौवीं बार

प्रश्न 3.
नेहरू जी ने जेल में कैदी के रूप में कलम क्यों उठाई?
(i) पत्रकारिता के लिए
(ii) भारतीय जनमानस में राष्ट्र प्रेम भरने के लिए
(iii) इतिहास लिखने के लिए
(iv) राष्ट्र का गान लिखने के लिए
उत्तर:
(ii) भारतीय जनमानस में राष्ट्र प्रेम भरने के लिए

प्रश्न 4.
मनुष्य का अतीत मनुष्य को किस प्रकार से प्रभावित करता है?
(i) अच्छे रूप में
(ii) बुरे रूप में
(iii) अच्छे और बुरे दोनों रूप में
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iii) अच्छे और बुरे दोनों रूप में

प्रश्न 5.
भारतीय विरासत की क्या विशेषता थी?
(i) आर्थिक संपन्नता को बढ़ाना
(ii) विश्व-बंधुत्व का संदेश
(iii) अलग-अलग रहने की प्रथा
(iv) आत्म-निर्भरता
उत्तर:
(ii) विश्व-बंधुत्व का संदेश

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इस पाठ में किसकी कौन-सी यात्रा का वर्णन है?
उत्तर:
इस पाठ में पं. जवाहर लाल नेहरू की नवीं जेल यात्रा का वर्णन हुआ है। यह जेल अहमदनगर किले में थी। इस जेल में उन्हें बीस महीने गुज़ारना पड़ा था।

प्रश्न 2.
नेहरू जी ने चाँद को अपना सहचर क्यों कहा? उन्हें वह क्या सीख देता प्रतीत होता है?
उत्तर:
वहाँ का चाँद लेखक को अपना सहचर इसलिए प्रतीत होता है क्योंकि वह दिन प्रतिदिन निश्चित समय पर आकर एक-एक दिन का अहसास करवाता था। साथ यह अहसास दिलाता है कि अंधेरे के बाद उजाला होता है। यानी दुख के बाद सुख

प्रश्न 3.
अहमदनगर किले में रहकर नेहरू जी ने क्या कार्य शुरू किया?
उत्तर:
अहमद नगर के किले में नेहरू जी ने बागवानी का कार्य शुरू किया। क्योंकि वे खाली बैठकर व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करना चाहते थे। उन्होंने पथरीली व कंकरीली ज़मीन को उपजाऊ बना डाला।

प्रश्न 4.
इतिहासकार गेटे ने इतिहास लेखन के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
इतिहासकार गेटे ने इतिहास लेखन के बारे में कहा कि इतिहास लेखन अतीत के भारी बोझ से एक सीमा तक राहत दिलाता है।

प्रश्न 5.
नेहरू जी ने कुदाल छोड़कर कलम क्यों उठा ली?
उत्तर:
नेहरू जी को बागवानी के लिए खुदाई का काम जारी रखने के लिए अधिकारियों की मंजूरी नहीं मिलने पर उन्होंने विवश होकर जेल में इतिहास लेखन के लिए कलम उठा लिया।

प्रश्न 6.
चाँद बीबी की हत्या किसने की?
उत्तर:
चाँद बीबी की हत्या उसी के अपने एक साथी ने की।

प्रश्न 7.
नेहरू जी ने किसके बारे में लिखने का निश्चय किया?
उत्तर:
नेहरू जी ने वर्तमान के विचारों और क्रिया-कलापों के साथ संबंध स्थापित करके, उनके बारे में लिखने का प्रयास किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अतीत का दबाव कैसा होता है?
उत्तर:
अतीत का दबाव अच्छा हो या बुरा दोनों रूपों में अभिभूत करता है। मनुष्य के मस्तिष्क पर सभ्यता और संस्कृति की जो छाप रहती है, और जो लोग प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े हैं जब उनकी सभ्यता विकृत होती है तो वे जल्दी ही विचलित हो उठते हैं।

प्रश्न 2.
भारतवासियों की विरासत की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारतवासियों की विरासत की विशेषताएँ हैं कि वे आपस में अलग रहने में विश्वास नहीं करते। इस संबंध में नेहरू जी का कहना है कि यह हमारे रक्त-माँस और अस्थियों में कूट-कूट कर भरा है कि कोई व्यक्ति औरों से अलग नहीं होता यानी विश्व बंधुत्व की भावना में विश्वास करते हैं।

प्रश्न 3.
चाँद बीबी कौन थी? उनसे संबंधित कौन-सी घटना याद की जाती है?
उत्तर:
चाँद बीबी अहमदनगर में रहने वाली महिला शासिका थी। उसने किले की रक्षा के लिए अकबर की शाही सेना के विरुद्ध युद्ध किया और सेना का नेतृत्व किया। अंत में उसकी हत्या उसके अपने ही एक आदमी ने कर दिया।

पाठ विवरण

इस पाठ में नेहरू जी की नवीं जेल यात्रा का वर्णन है। इस पाठ के माध्यम से नेहरू जी का कहना है कि मनुष्य के मानस पटल पर अपनी संस्कृति और सभ्यता की जो पुरानी छाप है रहती है, वह अच्छी और बुरी दोनों रूपों में प्रभावित करती है। अहमदनगर के किले में नेहरू जी को 1942-45 तक रखा गया था, यह पाठ उसका का संस्मरण है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 1 Summary

अतीत का भार नेहरू जी को बागवानी का शौक था। उन्हें अंग्रेज़ी सरकार द्वारा जिन जेलों में रखा गया वहाँ उन्होंने अपने शौक को पूरा किया। दूसरी जेलों की तरह उन्होंने अहमद नगर के किले में भी बागवानी शुरू कर दी थी। वे प्रतिदिन धूप में भी फूलों के लिए क्यारियाँ बनाते थे। वहाँ की ज़मीन की मिट्टी काफ़ी खराब थी। यह मिट्टी पुराने मलबे से भरी हुई थी। इस मिट्टी ने अनेक युद्ध और गुप्त संधियाँ देखी हैं। इसलिए इसे ऐतिहासिक जगह भी कहा जाता है। यहाँ की एक महत्त्वपूर्ण घटना चाँद बीबी की याद नेहरू जी को आती है। उसी चाँद बीबी ने इस किले की रक्षा के लिए अकबर की मुगल सेना के विरुद्ध युद्ध लड़ा था। उसी चाँद बीबी की हत्या उसी के विश्वासी आदमी ने की थी।

जेल में बागवानी के लिए खुदाई करते समय नेहरू जी को सतह के काफ़ी नीचे पुरानी दीवारों के हिस्से, गुंबद और इमारतों के ऊपरी हिस्से मिले। लेकिन जेल अधिकारी सीमित स्थानों से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं देते थे। इसलिए उन्होंने कुदाल छोड़कर कलम हाथ में उठाई और उन्होंने यह प्रण लिया जब तक देश आज़ाद नहीं हो जाता है, वे देश की आजादी के लिए लिखते रहेंगे। वे भविष्य के बारे में इसलिए नहीं लिख सकते, क्योंकि वह किसी पैगम्बर की भूमिका में नहीं हैं। अब बचा अतीत के बारे में इतिहास व विद्वान की तरह लिखने में सक्षम नहीं थे। वे केवल वर्तमान विचारों और क्रियाकलापों के साथ संबंध स्थापित करके ही उसके बारे में कुछ लिख सकते हैं। गेटे के अनुसार, इस तरह का इतिहास लेखन अतीत के भारी बोझ से एक सीमा तक राहत दिलाता है।

अतीत का दबाव
मनुष्य के मस्तिष्क पर सभ्यता के अतीत का दबाव चाहे भला हो या बुरा दोनों तरह से अभिभूत करता है। यह दबाव कभी-कभी दमघोटू होता है।

नेहरू जी बराबर सोचा करते थे कि आखिर इनकी विरासत क्या है ? वे किन बातों के उत्तराधिकारी हैं? फिर स्वयं ही उनका मानना है कि मानवता के जिन मूल्यों को हजारों वर्षों से प्राप्त किया गया, जीत का उल्लास, हार का दुख व मानव के साहसी कारनामे ये सभी उनके साथ जुड़े हैं। वे इन्हीं सबके संतान हैं।

नेहरू जी ने अपने विचारों में अपनी घटना का भी उल्लेख किया है कि भारतवासियों की विरासत की विशेष बात यह है कि ये आपको अपना-पराया का भेद-भाव नहीं करते। यह विचार हमारे अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ है। यही विचार हमें एकसूत्र में बाँधकर रखते हैं। इन आधारों पर वर्तमान और भावी रूप बनेगा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 1- दूज – शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन, शुक्ल पक्ष – पंद्रह दिनों की यह अवधि जब चाँद सायंकाल निकलता है, कारावास – जेल, स्थायी – लंबे समय तक, सहचर – साथ चलने वाला।

पृष्ठ संख्या 2- बागवानी – बाग-बगीचे लगाना, अवशेषों – बचे हुए पदार्थ, अतीत – पुराना, दूरभिसंधियाँ – दुश्मनों या गलत इरादों से की गई संधि, अहमियत – विशेषता, विरुद्ध – खिलाफ नेतृत्व, मंजूरी – अनुमति, कुदाल – फावड़ा, कर्म – कार्य।

पृष्ठ संख्या 3- पैगंबर – ईश्वर का दूत, अख्तियार – अधिकार, विद्वत्तापूर्ण – पांडित्य, राहत – आराम, वारिस – उत्तराधिकारी, भावी – आनेवाला, मन में घर करना, स्पर्श – छूना।