Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Questions and Answers Summary तलाश

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 2 Question Answers Summary तलाश

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
मोहजोदड़ो की सभ्यता कितने वर्ष पुरानी है?
(i) 3000 वर्ष
(ii) 5000 वर्ष
(iii) 6000 वर्ष
(iv) 4000 वर्ष
उत्तर:
(ii) 5000 वर्ष

प्रश्न 2.
सिंधु नदी का दूसरा नाम है?
(i) इंडस
(ii) इंडिया
(iii) इंदु
(iv) इंद्रनील
उत्तर:
(i) इंडस

प्रश्न 3.
एशिया की शक्ति कम होने पर कौन-सा द्वीप आगे बढ़ा?
(i) यूरोप
(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका
(iii) इंग्लैंड
(iv) इंडोनेशिया
उत्तर:
(i) यूरोप

प्रश्न 4.
भारत का कौन-सा वर्ग इस समय बदलाव की कामना करता था?
(i) निम्न वर्ग
(ii) मध्यम वर्ग
(iii) उच्च वर्ग
(iv) शासक वर्ग
उत्तर:
(ii) मध्यम वर्ग

प्रश्न 5.
भारत कितने वर्षों से अंग्रेज़ों के अत्याचार झेल रहा था?
(i) सौ वर्षों से
(ii) दो सौ वर्षों से
(iii) चार सौ वर्षों से
(iv) पाँच सौ वर्षों से
उत्तर:
(i) सौ वर्षों से

प्रश्न 6.
भारत का नाम किसके नाम पर पड़ा?
(i) राजा भारत
(ii) राजा भरत
(iii) भरतमुनि
(iv) भारद्वाज
उत्तर:
(ii) राजा भरत

प्रश्न 7.
तक्षशिला के अवशेष कितने प्राचीन थे?
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ii) तीन हजार वर्ष पूर्व
(iii) चार हजार वर्ष पूर्व
(iv) पाँच हजार वर्ष पूर्व
उत्तर:
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व

प्रश्न 8.
भारतीयों की जीवन शैली कैसी थी?
(i) खुशहाल
(ii) अभावों व असुरक्षा से ग्रस्त
(iii) सामान्य
(iv) उच्च कोटि की
उत्तर:
(ii) अभावों व असुरक्षा से ग्रस्त

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नेहरू जी ने भारत को किस नज़रिए से देखना शुरू किया और क्यों?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारत को एक आलोचक की दृष्टि से देखना शुरू किया। वे एक ऐसे आलोचक थे जो वर्तमान को देखते थे पर अतीत के बहुत से अवशेषों को नापसंद करते थे। वे ऐसा इसलिए करते थे जिससे वे अतीत के पसंद एवं नापसंद दोनों पात्रों का अवलोकन करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
लेखक ने विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय साहित्य का अध्ययन क्यों करना चाहा?
उत्तर:
नेहरू जी ने विदेशियों द्वारा लिखे गए भारतीय साहित्य का अध्ययन करना चाहा ताकि भारत की विशेषताओं की बारीकियों का अध्ययन कर सकें।

प्रश्न 3.
लेखक कहाँ टीले पर खड़ा था?
उत्तर:
लेखक उत्तर पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़ा था।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत से कौन-कौन सी मुख्य नदियाँ निकलती हैं?
उत्तर:
नेहरू जी के पूर्वज कश्मीर के रहनेवाले थे। बचपन में उनका काफ़ी समय कश्मीर की ज़मीन पर व्यतीत हुआ है। इसलिए वे कश्मीर की ओर अधिक आकर्षित होते थे।

प्रश्न 5.
हमारे देश का नाम किसके आधार पर पड़ा?
उत्तर:
सिंधु नदी के कारण इंडस भी कहा जाता है। यह नदी हिमालय पर्वत से निकलती है। भारत का नाम इंडिया या हिंदुस्तान भी इसी के आधार पर पड़ा है।

प्रश्न 6.
भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि प्राचीन व नई में सामंजस्य स्थापित कर, पुराने को बनाए रखने से नए विचारों को आत्मसात करने का सामर्थ्य होगा।

प्रश्न 7.
शक्ति पाकर यूरोप ने क्या किया?
उत्तर:
शक्ति पाकर यूरोप ने पूर्व के देशों पर अधिकार करना चाहा।

प्रश्न 8.
एशिया की शक्ति कम होने पर कौन-सा द्वीप आगे निकला और क्यों?
उत्तर:
एशिया की शक्ति कम होने पर यूरोप ने प्रगति की क्योंकि उसने तकनीकि विकास की ओर कदम बढ़ाए।

प्रश्न 9.
नेहरू जी पर भारत के इतिहास और विशाल प्राचीन साहित्य की किन बातों ने प्रभाव डाला?
उत्तर:
नेहरू जी पर विचारों की तेजस्विता, भाषा की स्पष्टता, सक्रिय मस्तिष्क की समृद्धि ने गहरा प्रभाव डाला।

प्रश्न 10.
भारतीयों ने किन संकीर्ण धारणाओं को अपनाया?
उत्तर:
भारतीयों ने जिन संकीर्ण धारणाओं को अपनाया, वे थे महासागरों को पार न करना एवं मूर्ति पूजा की ओर कदम बढ़ाना।

प्रश्न 11.
नेहरू जी ने भारत की तलाश किन-किन साधनों से करनी चाही?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारत की तलाश पुस्तकों, प्राचीन स्मारकों और प्राचीन सांस्कृतिक उपलब्धियों से करनी चाही।

प्रश्न 12.
नेहरू जी स्मारकों, गुफाओं तथा इमारतों की ओर क्यों आकर्षित होते थे?
उत्तर:
नेहरू जी अजंता, एलोरा, एलीफेंटा की गुफाओं प्राचीन स्मारकों, आगरा एवं दिल्ली में बनी इमारतों की ओर इसलिए आकर्षित होते थे क्योंकि इनमें लगा एक-एक पत्थर भारत के अतीत की कहानी कहता प्रतीत होता है।

प्रश्न 13.
भारत के तकनीकी कौशल में पिछड़ने से यूरोप की स्थिति कैसी हो गई?
उत्तर:
भारत के तकनीकी कौशल में पिछड़ने से यूरोप जो एक ज़माने से पिछड़ा हुआ था, वह तकनीकी दृष्टि में भारत से काफ़ी विकास की दौड़ में आगे निकल गया। नई तकनीक से उनका सैन्यबल काफ़ी शक्तिशाली हो गया, इससे पूरब पर अधिकार करना आसान हो गया।

प्रश्न 14.
मानसिक सजगता की कमी ने संकीर्ण रूढ़िवादिता को किस प्रकार बढ़ावा दिया?
उत्तर:
भारतीयों की जागरूकता की कमी के कारण साहसिक कार्यों की लालसा में कमी आती गई। इसी परिस्थिति में भारतीयों के महासागरों को पार करने पर रोक लगाने वाली धारणा का जन्म हुआ। इससे संकीर्ण विचारधारा को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 15.
नेहरू जी ने ग्रामीण जनता और मध्यम वर्ग के बीच में क्या अंतर महसूस किया?
उत्तर:
लेखक को सदैव ग्रामीण जनता आकर्षित करती रही। यह ग्रामीण जनता देश से काफ़ी प्रेम करती थी। वे अभावों में गुज़र बसर करते हुए भी भारत की शान समझे जाते थे। इसके विपरीत मध्यम वर्ग में लगाव कम उत्तेजना अधिक थी।

प्रश्न 16.
नेहरू जी किसानों को संबोधित करते हुए क्या संदेश देना चाहते थे?
उत्तर:
नेहरू जी किसानों को संबोधित करते हुए विश्वबंधुत्व का संदेश देना चाहते थे। वे किसानों से कहते हैं कि वे भारत को अखंड मानकर उसके बारे में मनन करें। उन्हें इन वास्तविकताओं को स्वीकार करना चाहिए कि वे संपूर्ण विश्व के हिस्से हैं।

प्रश्न 17.
भारत के किसानों की प्रमुख समस्याएँ क्या थी?
उत्तर:
भारतीय किसानों की प्रमुख समस्याएँ थीं- गरीबी, कर्ज, शोषण, जमींदार, महाजन, लगान, कर व पुलिस द्वारा अत्याचार।

प्रश्न 18.
‘तक्षशिला’ क्यों प्रसिद्ध था? यहाँ अन्य देशों से लोग क्यों आते थे?
उत्तर:
तक्षशिला विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यहाँ दूर-दराज देशों से छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

प्रश्न 19.
कौन-कौन से धर्म के अनुयायी भारतीय बने रहे?
उत्तर:
यहूदी, पारसी, मुसलमान, भारतीय बने रहे।

प्रश्न 20.
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को क्या समानता दिखाई देती थी?
उत्तर:
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को यह समानता दिखाई दी कि पूरे भारत की पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक व पुराण कथाएँ सब एकरूपता लिए हैं। इनमें किसी को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यानी प्रांतीय ढाँचा को अपनाने वाला देश आपस में एक है।

प्रश्न 21.
भारत की विविधता अद्भुत है’ कैसे?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति में विविधता होने के बावजूद एकता प्रकट होती है। इसे कोई भी देख सकता है। इसका संबंध शारीरिक रूप से भी है। उत्तर पश्चिमी इलाके के पठान और सुदूर दक्षिण के रहने वाले तमिल लोगों में बहुत कम समानता है। फिर भी उनमें अंदर के सूत्र एक समान हैं।

प्रश्न 22.
इस पाठ के आधार पर आर्थिक तंगी में जीते भारतीयों की दशा का चित्रण तथा उनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस पाठ के अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय जनता काफी आर्थिक तंगी से जूझ रही थी। उनको आभावों में जीने की मज़बूरी थी। चारों ओर भूखमरी, गरीबी और बहुत-सी परेशानियों से यहाँ की जनता त्रस्त थी। उनके इन परेशानियों को साफ़-साफ़ चेहरे पर देखा जा सकता था। समाज में चारों तरफ भ्रष्टाचार और असुरक्षा की भावना व्याप्त थी। उनकी जिंदगी विकृत होकर भयंकर रूप धारण कर चुकी थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुंभ स्नान पर्व के बारे में नेहरू जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
महाकुंभ स्नान को देखकर नेहरू जी को हैरानी होती थी कि इतने वर्षों से लगातार गंगा स्नान का महत्त्व बना हुआ है। इस देश के कई पीढ़ियों के साथ इस देश के साथ लगाव रहा है। हज़ारों वर्षों से उनके पूर्वज गंगा स्नान के लिए भारत के कोने-कोने से आते रहे हैं। आज भी इसकी आस्था यथावत है। करोड़ों लोग दूर-दूर से गंगा स्नान के लिए आते हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय संस्कृति को जानते हुए लेखक को महात्मा बुद्ध, अशोक व अकबर कैसे प्रतीत हुए? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
लेखक को भारतीय संस्कृति को देखने पर पता चला कि महात्मा बुद्ध ने बनारस के निकट सारनाथ नामक स्थान पर जो पहला उपदेश दिया था, वे शब्द आज भी गूंज रहे हैं। अशोक के स्तंभ व शिलालेख उसकी महानता को उजागर कर रहे हों। अकबर आज भी विद्वानों के वाद-विवाद द्वारा लोगों की सामाजिक व धार्मिक समस्याओं को सुलझाने में लगा हो यानी सदियों के बाद भी वे सजीव प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में शक्तियों के पतन ने लोगों के दृष्टिकोण साहित्य तथा निर्माण कला पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
भारत की शक्तियों का पतन होने पर भी लोगों का दृष्टिकोण है कि लोगों में रचनात्मक प्रवृत्ति की कमी आयी तथा अनुकरण करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। जो लोग प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्य जानने की इच्छा रखते थे, उनकी रुचि साहित्य की ओर झुकी। सजीव, सरल, समृद्ध, प्रभावशाली की जगह कठिन साहित्यिक शैली का प्रयोग होने लगा। भव्य मूर्तिकला निर्माण की जगह पर पच्चीकारी वाली कारीगरी की जाने लगी।

प्रश्न 4.
नेहरू जी ने अन्य किन-किन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा की थी?
उत्तर:
नेहरू जी ने निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा की थी-
अजंता, एलोरा, एलिफेंटा की गुफाएँ। आगरा और दिल्ली में बनी इमारतें। बनारस के पास सारनाथ एवं फतेहपुर सीकरी।

प्रश्न 5.
लेखक ने भारतीयों से बहुत अपेक्षाएँ क्यों नहीं रखी?
उत्तर:
नेहरू जी ने भारतीयों से बहुत अपेक्षाएँ इसलिए नहीं की, क्योंकि भारतीय दो सौ वर्षों से गुलामी व अत्यंत गरीबी का जीवन जी रहे थे। अभावों व कष्ट में जीवन जीते वे अपने बारे में सोचना भूल गए थे। ऐसे में वे पाते थे कि बहुत-सी ऐसी बाते हैं जो आज भी जीवित हैं।

प्रश्न 6.
नेहरू जी जहाँ भी जाते उनके स्वागत में कौन से शब्द गूंज उठते थे?
उत्तर:
नेहरू जी जहाँ भी जाते थे वहाँ उनके स्वागत में ‘भारत माता की जय’ का स्वर गूंज उठता था।

प्रश्न 7.
‘भारतीयों पर’ ‘भारतीयता की गहरी छाप’ कैसे दिखाई पड़ती है?
उत्तर:
लेखक ने जब पूरे देश का भ्रमण किया तो पाया कि बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल, आंध्र, उड़िया, असमी, कन्नड़, मलयाली, सिंधी, पंजाबी, पठानी, कश्मीरी, भाषी लोग मन से सभी एक हैं। सबकी एक विरासत है, नैतिक व मानसिक धारणाएँ भी सभी की एक हैं। कितने ही विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया और अपना साम्राज्य स्थापित किया, लेकिन भारतीयों की अपनी सभ्यता व संस्कृति को कोई डगमगा नहीं सका। इसलिए यह कहना कि भारतीय सभ्यता भारतीयों पर गहरी रूप से दिखाई देती है।

प्रश्न 8.
भारतीय संस्कृति के दर्शन में नेहरू जी को क्या समानता दिखाई दी है?
उत्तर:
भारतीय जन संस्कृति के दर्शन में लेखक को यह समानता दिलाई दी कि पूरे भारत वर्ष की पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन, परंपरा, इतिहास, मिथक व पुराणकथाएँ सब एकरूपता लिए हैं। इनमें से किसी एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता यानी क्षेत्रीय विविधता अलग-अलग प्रांतों में बँटे होने के बावजूद संघीय रूप में एक है।

प्रश्न 9.
भारत की एकरूपता प्रकट करने के लिए नेहरू जी ने किसानों को किस तरह समझाया?
उत्तर:
जब लेखक ने देखा कि उनके सभा में आए किसानों की दशा बिलकुल दयनीय है तो नेहरू जी ने किसानों को समझाते हुए कहा कि पूरे भारत में किसान भाइयों की दशा दयनीय है तो उन्होंने उन्हें समझाते हुए कहा- भारतीय किसानों की स्थिति समूचे देश में काफ़ी दयनीय है। वे सभी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। किसान अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचार से पीड़ित हैं। यह सब उन्होंने सुदूर उत्तर पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी तक की यात्रा के अनुभव के आधार पर कहा। उन्होंने किसानों से कहा कि हम सभी को मिलकर देश को आजाद कराना है।

प्रश्न 10.
ग्रामीण लोगों को देखकर नेहरू जी को क्या हैरानी हुई?
उत्तर:
ग्रामीण लोगों को देखकर लेखक को हैरानी हुई कि उन लोगों को प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत तथा अन्य ग्रंथों के सैकड़ों पद एवं दोहे याद होते थे। अपनी बात-चीत के दौरान उनके उदाहरण देना, नैतिक उपदेश देना व साहित्यिक बातें करने पर लेखक को इस बात की हैरानी होती थी कि अनपढ़ होते हुए भी वे बौद्धिक रूप से समझदार थे।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से नेहरू जी कहने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत के अतीत में ऐसी दृढ़ शक्ति रही है। कि उसे कोई डिगा नहीं सकता है। यदि हम पाँच हज़ार सालों के पीछे मुड़कर देखें तो पाते हैं कि भारत का मुकाबला पूरा संसार नहीं कर सकता। जनसंख्या का विशाल समूह होने के बावजूद भारत में मज़बूती के साथ एकजुटता दिखाई देता है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 2 Summary

भारत की अतीत की झाँकी नेहरू जी इस पाठ के माध्यम से कहते हैं कि बीते सालों में उनका यह प्रयास रहा है कि वे भारत को समझें और उसके प्रति उनके प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करें। कभी-कभी उनके मन में यह भी विचार आता था कि आखिर भारत क्या है? यह भूतकाल की किन विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? भारत उनके खून में रचा-वसा था। उन्होंने भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखा था। क्या अब वह अपनी शक्ति को खो दिया है? इतना विशाल जन समूह होने के बावजूद भारत के पास कुछ ऐसा है जिसे जानदार कहा जा सके। इस आधुनिक युग में तालमेल किस रूप में बैठता था।

उस समय नेहरू जी भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित सिंधु घाटी में मोहनजोदड़ो के एक टीले पर खड़े थे। इस नगर को 5000 वर्ष पहले का बताया गया है। यह एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी। इसका ठेठ भारतीयपन हमारी आधुनिक सभ्यता का आधार है। भारत ने फारस, मिश्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया तथा भूमध्यसागर के लोगों को प्रभावित किया तथा स्वयं भी उनसे प्रभावित हुआ। नेहरू जी ने आने वाले विदेशी विद्वान यात्री जो चीन, पश्चिमी व मध्य एशिया से आए थे, उनके द्वारा लिखित साहित्य का अध्ययन किया। उन्होंने पूर्वी एशिया, अंगकोर, बोरोबुदुर और बहुत सी जगहों से भारत की उपलब्धियों के बारे में जाना। हिमालय पर्वत व उनसे जुड़ी प्राचीन कथाओं को भी उन्होंने जाना। वे हिमालय में भी घूमते रहे जिसका पुराने मिथकों और दंत कथाओं के साथ निकट का संबंध है। पहाड़ों के प्रति विशेषकर कश्मीर के प्रति उनका विशेष लगाव रहा। भारत की विशाल नदियों ने भी उन्हें आकर्षित किया। इंडस या सिंधु के नाम पर हमारे देश का नाम इंडिया और हिंदुस्तान पड़ा। यमुना के चारों ओर नृत्य और नृत्य उत्सव और नाटक से संबद्ध न जाने कितनी पौराणिक कथाएँ एकत्र हैं। भारत की नदी गंगा ने भारत के हृदय पर राज किया है। प्राचीन काल से आधुनिक युग तक गंगा की गाथा भारत की सभ्यता और संस्कृति की कहानी है।

भारत के अतीत की कहानी को स्वरूप देनेवाली अजंता, एलोरा, ऐलिफेंटा की गुफाएँ व दिल्ली तथा आगरा की विशेष इमारतों ने भी नेहरू जी को भारत के अस्तित्व के बारे में अवगत करवाया।

जब भी वे अपने शहर इलाहाबाद या फिर हरिद्वार में महान-स्नान पर्व कुंभ के मेले को देखते तो उन्हें एहसास होता था कि हज़ारों वर्ष पूर्व से उनके पूर्वज भी इस स्नान के लिए आते रहे हैं। विदेशियों ने भी इन पर्यों के लिए बहुत कुछ लिखा। उन्हें इस बात की हैरानी थी कि वह कौन-सी प्रबल आस्था है जो भारतीयों को कई पीढ़ियों से भारत की इस प्रसिद्ध नदी की ओर खींचती रही है। उनकी यात्राओं ने अतीत में देखने की दृष्टि प्रदान की। उन्हें सच्चाई का बोध होने लगा। उनके मन में अतीत के सैकड़ों चित्र भरे पड़े थे। ढाई हजार वर्ष पहले दिया महात्मा बुद्ध का उपदेश उन्हें ऐसा लगता जैसे बुद्ध अपना पहला उपदेश अभी दे रहे हों, अशोक के पाषण स्तंभ अपने शिलालेखों के माध्यम से अशोक की महानता प्रकट करते, फतेहपुर सीकरी में अकबर सभी धर्मों में समानता को मानते हुए मनुष्य की शाश्वत समस्याओं का हल खोजता फिरता है।

इस प्रकार नेहरू जी को प्राचीन पाँच हज़ार वर्ष पूर्व से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा की निरंतरता में विलक्षणता साफ़ और स्पष्ट तथा वर्तमान के धरातल पर सजीव प्रतीत होती है।

भारत की शक्ति और सीमा
भारत की शक्ति और सीमा के बारे में खोज लंबे समय से हो रही है। नई वैज्ञानिक तकनीकों से पश्चिमी देशों को सैन्य शक्ति के विस्तार का मौका मिला। इन शक्तियों का प्रयोग कर इन देशों ने पूरब के देशों पर अधिकार कर लिया। प्राचीन काल में भारत में मानसिक सजगता और तकनीकी कौशल की कमी नहीं थी लेकिन बाद में इसमें काफ़ी गिरावट हो गई। नई खोजों की लालच में परिश्रम की कमी होने लगी। नित नए आविष्कार करने वाला भारत दूसरों का अनुकरण करने लगा। विकास के कार्यों में शिथिलता आने लगी। साहित्य रचना अधिक होने लगी। सुंदर इमारतों का निर्माण करने वाले भारत में पश्चिमी देशों के प्रभाव के कारण पच्चीकारी वाली नक्काशी की जाने लगी।

सरल, सजीव और समृद्ध भाषा की जगह अलंकृत और जटिल साहित्य-शैली विकसित हुई। विवेकपूर्ण चेतना लुप्त होती चली गई और अतीत की अंधी मूर्ति पूजा ने उसकी जगह ले ली। इस हालत में भारत का पतन होने लगा जबकि इस समय में विश्व के दूसरे हिस्से लगातार प्रगति करते रहे।

इन उपरोक्त बातों के साथ-साथ यह भी नहीं कहा जा सकता है कि इतना कुछ होने पर भी भारत की मज़बूती, दृढ़ता और अटलता को हिला नहीं सका। प्राचीन भारत का स्वरूप तो पुराने रूप में रहा लेकिन अंदर की गतिविधियाँ बदलती रहीं, भले ही नए लक्ष्य खींचे गए लेकिन पुरानी व नई सामंजस्य स्थापित करने की इच्छा बराबर बनी रही। इसी लालसा ने भारत को गति दी और पुराने के जगह नए विचारों को आत्मसात करने का सामर्थ्य दिया।

भारत की तलाश
नेहरू जी की सोच यह थी भारत का अतीत जानने के लिए पुस्तकों का अध्ययन, प्राचीन स्मारकों तथा भवनों का दर्शन, सांस्कृतिक उपलब्धियों का अध्ययन तथा भारत के विभिन्न भागों की पद यात्राएँ पर्याप्त होगी, पर इन सबसे उन्हें वह संतोष न हो सका जिसकी उन्हें तालाश थी। उन्होंने भारत के नाम पर भरत नाम की प्राचीनता बताई। उन्होंने उन्हें सुदूर-उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप कैमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने देश के किसानों की विभिन्न समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों, दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। ग्रामीण अभावों में रहते हुए भी भारत की शान थे। जो बात उनमें थी वह भारत के माध्यम वर्ग में न थी। केवल उत्तेजना के भाव रहते थे।

नेहरू जी इस बात से भी अपरिचित न थे कि भारत की तस्वीर कुछ-कुछ बदल रही है क्योंकि हमारा देश 200 वर्षों से अंग्रेजों के अत्याचार झेल रहे थे। काफ़ी कुछ तो उसी कारण समाप्त हो गया लेकिन जो मूल्य या धरोहर बच गई है वह सार्थक है। लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो निरर्थक व अनिष्टकारी है।

भारत-माता
नेहरू जी सभी भारतीय किसानों को संदेश देना चाहते थे कि भारत महान है। हमें इसकी महत्ता को समझना चाहिए। वे जब भी किसी भी सभा में जाते तो लोगों को अवगत कराते कि इस विशाल भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका भाग अलग-अलग होते हुए भी सभी को मिलाकर भारत बना है। उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक यह एक ही स्वरूप रखता है। उन्होंने उन्हें सुदूर उत्तर-पश्चिम में खैबर पास से कन्याकुमारी या केप केमोरिन तक अपनी यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने किसानों की विविध समस्याओं गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और पुलिस अत्याचार पर चर्चा की। उन लोगों को प्राचीन महाकाव्यों दंत कथाओं की पूरी जानकारी थी। लोग जब ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते तब नेहरू जी उनसे पूछते थे कि भारत माता की जय इसका क्या अर्थ है ? इसका इन्हें सही-सही उत्तर नहीं सूझता था। एक व्यक्ति ने उत्तर दिया – भारत माता हमारी धरती है, भारत की प्यारी मिट्टी। भारत तो वह सब कुछ है भारत के पहाड़ और नदियाँ, जंगल, खेत और भारत की जनता। भारत माता की जय का अर्थ है- इसी जनता जनार्दन की जय। यह विचार उनके दिमाग में बैठता जाता था। उनकी आखें चमकने लगती थीं मानो उन्होंने एक नई महान खोज कर दी हो।

भारत की विविधता और एकता
यह सौ प्रतिशत सत्य है कि भारत में विविधता होते हुए भी एकता है। पूरे भारत देश में लोगों के खान-पान, रहन-सहन, पहनावे, भाषा, शारीरिक व मानसिक रूप में विविधता झलकती है, पर विविधता होते हुए भी भारत देश एक है। इनमें चेहरे-मोहरे, खान-पान, पहनावे और भाषा में बहुत अंतर है। पठानों के लोक प्रचलित नृत्य रूसी कोजक नृत्य शैली में मिलते हैं। इन तमाम विविधताओं के बावजूद पठान पर भारत की छाप वैसी ही स्पष्ट है जैसे तमिल पर 1 सीमांत क्षेत्र प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में था। तक्षशिला का महान विश्वविद्यालय दो हज़ार वर्ष पहले इसकी लोकप्रियता चरम सीमा पर थी। पठान और तमिल दो चरम उदाहरण है, बाकी की स्थिति इन दोनों के बीच की है। सबकी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, पर इन सब पर भारतीयता की गहरी छाप है। भारत में विविध भाषाओं के बोलने वाले लोग हैं। प्राचीन चीन की भाँति प्राचीन भारत अपने आप एक संसार थी। यहाँ विदेशी भी आए और यहाँ जज्ब हो गए। किसी भी देशी समूह में छोटी-बड़ी विभिन्नताएँ हमेशा देखी जाती हैं। अब राष्ट्रवाद की अवधारणा जोरों पर विकसित होने लगी। विदेशों में भारतीय एक राष्ट्रीय समुदाय के लोग एक साथ रहते हैं। भले ही उनमें भीतरी मतभेद हो, एक हिंदुस्तानी भले ही किसी भी धर्म का हो, वह अन्य देशों में हिंदुस्तानी ही माना जाता है।

नेहरू जी का कहना है कि वे जब भी भारत के बारे में सोचते हैं तो उनके सामने दूर-दूर तक फैले मैदान, उन पर बसे अनगिनत गाँव, व शहर व कस्बे जिनमें वे घूमे, वर्षा ऋतु की जादुई बरसात जिससे झुलसी हुई धरती का सौंदर्य और हरियाली खिल जाए, विशाल नदियाँ व उनमें बहता जल, ठंडा प्रदेश खैबर, भारत का दक्षिण रूप, बर्फीला प्रदेश हिमालय या वसंत ऋतु में कश्मीर की कोई घाटी फूलों से लदी हुई व उसके बीच से कल-कल छल-छल करते बहते झरने की तस्वीर बन जाती है, जिसे वे सहेजकर रखना चाहते हैं।

जन संस्कृति
भारत की तलाश के क्रम में नेहरू जी जब भारतीय जनता के जीवन की गतिशीलता को देखते तो उसका संबंध अतीत से जोड़ते थे, जबकि इन लोगों की नज़रें भविष्य पर टीकी रहती थी। लेखक को हर जगह एक संस्कृति पृष्ठभूमि मिली जिसका जनता के जीवन पर गहरा असर था। इस पृष्ठभूमि में लोक प्रचलित दर्शन परंपरा, इतिहास, मिथक, पुरा-कथाओं का सम्मेलन था। ये कथाएँ आपस में इस प्रकार से मिली हुई थी कि इसे एक दूसरे से अलग करना असंभव था। भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत जनता के बीच प्रसिद्ध थे। वे ऐसी कहानी का उल्लेख करते थे जिससे कोई नैतिक उपदेश निकलता था। लेखक के मन में लिखित इतिहास और तथ्यों का भंडार था। गाँव के रास्ते से गुजरते हए लेखक की नज़र मनोहर पुरुष या सुंदर स्त्री पर पड़ती थी जिसे देखकर वह विस्मय विमुग्ध हो जाता था। चारों ओर अनगिनत विपत्तियाँ फैली हुई थीं। लेखक को इस बात से हैरानी होती थी कि तमाम भयानक कष्टों के बावजूद, आखिर यह सौंदर्य कैसे टिका और बना रहा। भारत में स्थितियों को समर्पित भाव से स्वीकार करने की प्रवृत्ति प्रबल थी।

भारत में नम्रता, यह सब कुछ होने के बाद भी स्थिति को स्वीकारने की प्रबल प्रवृत्ति थी जो हज़ारों सालों की संस्कृति विरासत की देन थी और इसे दुर्भाग्य भी न मिटा पाया था। यानी भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 4.
विश्लेषण – सही गलत का विचार करना, अवधारणा – विचार, आलोचक – सही गलत दोनों धारणाएँ प्रकट करने वाला, अतीत – पिछला, प्राचीन, शंकाएँ – संशय, खारिज – समाप्त, जीवंत – सदा रहने वाला, टिकाऊ – मज़बूत, पक्का, बजूद – आधार।

पृष्ठ संख्या 5.
टीला – मिट्टी या रेत के जमाव से बना एक ऊँचा स्थान, ठेठ – पूरी तरह से, आश्चर्यचकित – हैरान, परिवर्तनशील – बदलाव करनेवाला, विकास समान – उन्नति की ओर बढ़ना, संपर्क – संबंध, तेजस्थिता – प्रकाशमय, सुदूर – बहुत दूर, सक्रिय – क्रियाशील होना, समृद्धि – संपन्नता, पराक्रमी – वीर, दास्तान – आपबीती, मिथकों – अविश्वसनीय घटनाएँ।

पृष्ठ संख्या 6.
दंत कथाएँ – लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ, विशाल – बड़ा, रमणीय – सुंदर, मनोरम, तादाद – बड़ी संख्या, पौराणिक – पुरानी, प्राचीन, भग्नावशेषों – पुरानी चीजों के टूटे-फूटे बचे टुकड़े, पुरखे, पर्वों – त्योहारों, हैरत – हैरानी, आश्चर्य, प्रबल – मज़बूत।

पृष्ठ संख्या 7.
आस्था – विश्वास, अंतर्दृष्टि – अंदर तक पहचान पाने की शक्ति, बोध – ज्ञान, तत्काल – उसी समय, फासला – दूरी, अभिलिखित – लिखित सबूत, पाषाण स्तंभ – पत्थर के खंभे। शिलालेख – पत्थरों पर लिखे गए लेख। सम्राट – राजाओं के राजा, जिज्ञासु – जानने की इच्छा, शाश्वत – निरंतर, चिर, परंपरा – रीति-रिवाज, स्रोत – प्राप्य स्थान, पतन – गिरावट, ज़माना – एक युग लंबा समय, प्रगति – उन्नति, ज़माने – संसार।

पृष्ठ संख्या 8.
चेतना – बुद्धि, मानसिकता – सोचने की शक्ति, कौशल – हुनर, क्षीण – कमज़ोर, अनुकरण – दूसरे का कार्य देखकर करना, किसी के पीछे चलना, प्रयास – कोशिश, शब्दाडंबर – शब्दों का आवरण, लैस – सुसज्जित, भाष्यकार – भाषा पर अधिकार रखनेवाला, भव्य – सुंदर, नक्काशी – हाथ से की गई मीनाकारी, अलंकृत – अलंकारों से युक्त, जटिल – कठिन, प्रसारप्रचलन, संकीर्ण रूढ़िवादिता – दकियानुसी विचार, लुप्त – समाप्त, विकट – कठिन, मूर्छा – बेहोश, ह्रास – पतन, सर्वेक्षण – ब्यौरा, ध्वंसावशेषों – खंडित बची हुई वस्तुएँ, क्रममय – सिलसिले का टूटना, निरंतरता – एकरूपता, पुनर्जागरण – नवीन विचारों की जागृति आना।

पृष्ठ संख्या 9.
सामंजस्य – तालमेल, अंतर्वस्तु – अंदर का आधार, आत्मसात – अपनाना, सामर्थ्य – कुछ करने की हिम्मत, विगत – बीता हुआ, दुर्गति – बुरी दशा, विचित्र – अजीब, तरक्की – उन्नति, रौंद देना – अस्तित्व-खत्म करना, बुद्धिजीवियों – नई विचारधाराओं से विचार करनेवाले।

पृष्ठ संख्या 10.
अहमियत – विशेष महत्त्व देना, संदेह – शक, वंद्व-युद्ध, अवधारणा – विचारधारा, अपेक्षाएँ – कुछ पाने की इच्छाएँ, दृढ़ता – मज़बूती, अंत-शक्ति – अंदर का बल, सार्थक – सही अर्थों में, निरर्थक – जो सही अर्थ न रखते हो, अनिष्टकारी – विनाशकारी।

पृष्ठ संख्या 11.
श्रोता-सुनने वाले, चर्चा-एक दूसरे से विचार-विमर्श, संस्थापक-शुरू करनेवाले, दमदार-ज़ोरदार, प्रभावी।

पृष्ठ संख्या 11.
बाबत – बारे में, संघर्ष – परिश्रम, कर्ज – उधार, अत्याचार – गलत व्यवहार, हुकूमत – शासन, आरोपित – थोपना, अखंड – जिसके टुकड़े न किए जा सकें, विराट – बड़ा, मनोरंजक – मनभावन, अटूट – घनिष्ठ।

पृष्ठ संख्या 12.
प्रयल – कोशिश, मुहैया – प्रदान करते हैं।

पृष्ठ संख्या 12.
विविधता – भिन्नता, अद्भुत – अजीब, तालुक – संबंध, गमक – छाप, तमाम – अनेक, अचरज – हैरानी।

पृष्ठ संख्या 13.
सीमांत – सीमावर्ती, ध्वस्त – नष्ट, अवशेष – बचे हुए, कमोबेश – कम-अधिक, जज्ब – सभा, तत्काल – उसी समय, आरोपित – थोपा हुआ, प्रोत्साहन – उत्साह, मानकीकरण – शुद्ता, सहिष्णुता – सहृदयता, प्रोत्साहन – बढ़ावा।

पृष्ठ संख्या 14.
घनिष्ठ – पक्का, मूल – वास्तविक, अनुभूति – महसूस, मतभेद – विचारों में भिन्नता, अनगिनत – असंख्य।

पृष्ठ संख्या 15.
संचार – नया रूप भरना, नवजात – नए, सहेजकर – संभालकर।

पृष्ठ संख्या 15.
पृष्ठभूमि – आधार, मिथक – मनगढंत, पुरा – प्राचीन, निरक्षर – अनपढ़, लोक मानस – लोगों के दिमाग से, समृद्ध – उन्नत-संपन्न, देहाती – गाँव के।

पृष्ठ संख्या 16.
संवेदनशील – मन को भावुक करनेवाले, बलिष्ठ – बलशाली, देह – शरीर, लावण्य – सुंदरता, अवसाद – दुख।