Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 37 अश्वत्थामा

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 37 अश्वत्थामा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 37

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अश्वत्थामा ने घायल दुर्योधन के सामने क्या प्रतिज्ञा ली?
उत्तर:
अश्वत्थामा ने जलाशय के पास घायल दुर्योधन के सामने प्रतिज्ञा की कि वह आज ही रात पांडवों को बरबाद करके रहेगा।

प्रश्न 2.
अश्वत्थामा के मस्तिष्क से क्या बात नहीं निकल पा रही थी?
उत्तर:
उसके पिता द्रोणाचार्य को मारने के लिए पांडवों ने जो कुचक्र रचा, वह अश्वत्थामा के मस्तिष्क से नहीं निकल पा रहा था।

प्रश्न 3.
कृपाचार्य ने किस बात को अधर्म बताया?
उत्तर:
कृपाचार्य ने सोते हुए व्यक्ति को मारने को अधर्म बताया।

प्रश्न 4.
पांडव वीरों के मारे जाने पर दुर्योधन ने अश्वत्थामा से क्या कहा?
उत्तर:
पांडव वीरों के मारे जाने पर दुर्योधन ने अश्वत्थामा से कहा- गुरु-भाई अश्वत्थामा आपने दुर्योधन की खातिर वह कार्य किया है जो भीष्म पितामह और कर्ण भी नहीं कर सके।

प्रश्न 5.
विलाप करती द्रौपदी ने पांडवों से क्या कहा?
उत्तर:
शोक विह्वल द्रौपदी युधिष्ठिर के पास आकर कातर स्वर में बोली- इस पापी अश्वत्थामा का वध अवश्य किया जाए।

प्रश्न 6.
अश्वत्थामा को किसने पराजित किया?
उत्तर:
अश्वत्थामा को भीम ने पराजित किया।

प्रश्न 7.
उत्तरा कौन थी? उसके पुत्र का क्या नाम था?
उत्तर:
उत्तरा अभिमन्यु की पत्नी थी। उसके पुत्र का नाम परीक्षित था, जो पांडवों के वंश का एक मात्र चिह्न बच गया था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अश्वत्थामा कौन था? उसने पांडवों को नष्ट करने की प्रतिज्ञा क्यों की थी?
उत्तर:
अश्वत्थामा आचार्य द्रोण का पुत्र था। वह दुर्योधन का शुभचिंतक था। कुरुक्षेत्र के मैदान में अठारह दिनों तक चले युद्ध में दुर्योधन की सेना और उसके ओर से युद्ध करने वालों के मरने से वह बहत निराश एवं हताश हो चला था। कौरव पक्ष के अनेक वीर योद्धा छलपूर्वक मारे गए। आश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य को भी कुचक्र एवं कूटनीति से मारा गया था। यह बात अश्वत्थामा भली-भाँति जानता था। अपने मित्र की दुर्दशा और पिता को कुचक्र से मारे जाने की बातें याद कर अश्वत्थामा ने पांडवों को बर्बाद करने की प्रतिज्ञा की।

प्रश्न 2.
अश्वत्थामा ने पांडवों को कैसे मारा?
उत्तर:
अश्वत्थामा ने रात के समय सोते हुए पांडवों को छल से मारा। धृष्टद्युम्न व द्रौपदी के पाँचों पुत्रों को तो उसने पैरों से कुचल डाला। इसके बाद पांडव शिविर को ही आग लगा दी। इस कुकृत में कृपाचार्य व कृतवर्मा भी थे।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 37

दुर्योधन पर जो कुछ घटना घटी उसका हाल जानकर अश्वत्थामा बहुत दुखी हुआ। दुर्योधन के सामने जाकर उसने प्रतिज्ञा की कि वह आज ही रात में पांडवों का अंत करके रहेगा। अब अश्वत्थामा को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। अश्वत्थामा सोचने लगा- मैं इन पांडवों और पिता जी की हत्या करने वाले धृष्टद्युम्न को, और उनके सभी रिश्तेदारों क्यों नहीं एक साथ ही मौत के घाट उतार दूं। अभी रात का वक्त हो रहा है वे लोग शिविरों में सो रहे होंगे। इस समय उनका वध करना सबसे आसान होगा। अश्वत्थामा ने कृपाचार्य को जगाकर अपनी सारी योजना बताया।

अश्वत्थामा की ये सारी योजना सुनकर कृपाचार्य दुखी हो गए। बोले- अश्वत्थामा! सोते हुए को मारना कभी भी धर्म नहीं हो सकता। तुम यह विचार वापस ले लो। यह सुनकर अश्वत्थामा चिढ़कर बोला- आपने भी यह क्या धर्म-धर्म की रट लगा रखी है। अश्वत्थामा पांडवों की शिविर की ओर जाने लगा तो यह देखकर कृपाचार्य और कृतवर्मा भी अश्वत्थामा के साथ हो लिए। आधी रात बीत चुकी थी। पांडवों के सभी सैनिक घोर नींद में सो रहे थे। अश्वत्थामा सबसे पहले धृष्टद्युम्न के शिविर में घुसा और सो रहें धृष्टद्युम्न पर और द्रौपदी के पाँच पुत्रों को अपने पैरों से कुचलकर मार डाला। इस कुकृत्य में कृपाचार्य और कृतवर्मा ने भी अश्वत्थामा का साथ दिया। फिर इन तीनों ने मिलकर पांडव शिविर में आग लगा दी। सोए हुए सैनिक जाग गए और डर कर जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग गए। अश्वत्थामा इन डरे हुए सैनिक को मारता गया।

फिर यह समाचार सुनाने के लिए अश्वत्थामा भाग कर दुर्योधन के पास गया और सारी बात बतायी। यह सुनकर दुर्योधन काफ़ी प्रसन्न हुआ और बोला- गुरु भाई अश्वत्थामा आपने मेरे लिए वह काम किया है जो पितामह, भीष्म और कर्ण भी न कर सके। इतना कहकर उसने प्राण त्याग दिए।

इधर द्रौपदी अपने भाई और पुत्रों की मृत्यु पर काफ़ी दुखी हुई। वह बोली- अश्वत्थामा से बदला लिया जाए। पाँचों पांडव अश्वत्थामा की खोज में निकल पड़े और पांडवों ने गंगा तट पर अश्वत्थामा को खोज लिया। अश्वत्थामा और भीम में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में अश्वत्थामा हार गया।

इस प्रकार पांडव वंश का अंत हो गया लेकिन उत्तरा के गर्भ की रक्षा हो गई और उत्तरा ने परीक्षित को जन्म दिया। इसी परीक्षित से पांडवों का वंश आगे चला।

युद्ध समाप्त होने के बाद हजारों निःसहाय स्त्रियों को लेकर महाराज धृतराष्ट्र कुरुक्षेत्र की भूमि में गए। वहाँ अपने ही वंश को मृत देखकर विलाप करने लगे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-91- वैर – दुश्मनी, ढंग – तरीका, निर्दयता – कठोरता।
पृष्ठ संख्या-92- सर्वनाश – पूरी तरह समाप्त कर देना, जीवित – जिंदा, शोक – दुख, हालत – स्थिति, नामोनिशान – पहचान, गर्भ – पेट, समर-भूमि – युद्धभूमि।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 36 कर्ण और दुर्योधन भी मारे गए

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 36 कर्ण और दुर्योधन भी मारे गए

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 36

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्रोण की मृत्यु के बाद कौरवों का सेनापति कौन बना?
उत्तर:
द्रोण की मृत्यु के बाद कौरवों का सेनापति कर्ण बना।

प्रश्न 2.
दुःशासन को किसने और कैसे मारा?
उत्तर:
दुःशासन को भीम ने मारा। भीम ने एक ही धक्के में उसे ज़मीन पर गिरा दिया और उसका एक-एक अंग तोड़-मरोड़ डाला।

प्रश्न 3.
भीम का डरावना रूप देखकर कौन कॉपने लगा।
उत्तर:
भीम का डरावना रूप देखकर कर्ण का शरीर थर-थर काँपने लगा।

प्रश्न 4.
कर्ण किस बात से घबरा गया?
उत्तर:
जब कर्ण के रथ का बाईं ओर का पहिया धरती में धंस गया, तब कर्ण घबरा गया।

प्रश्न 5.
कर्ण ने अर्जुन पर कैसा बाण चलाया? अर्जुन के प्राण कैसे बचे?
उत्तर:
कर्ण ने अर्जुन पर एक ऐसा बाण चलाया जो अग्नि बाण था। यह देखकर कृष्ण ने रथ को पाँव के अंगूठे से दबा दिया। जिससे रथ पाँच अँगुली ज़मीन के नीचे फँस गया और अर्जुन की जान बच गई।

प्रश्न 6.
महाराज शल्य की मृत्यु किसके हाथों हुई?
उत्तर:
महाराज शल्य की मृत्यु युधिष्ठिर के हाथों हुई।

प्रश्न 7.
शकुनि का वध किसने किया?
उत्तर:
शकुनि का वध सहदेव ने किया।

प्रश्न 8.
रथ का पहिया कीचड़ में फँस जाने पर कर्ण ने अर्जुन से क्या कहा?
उत्तर:
रथ का पहिया कीचड़ में फँस जाने पर कर्ण ने अर्जुन से कहा- अर्जुन! जरा ठहरो, मेरे रथ का पहिया कीचड में फँस गया है। पांडु पुत्र, तुम्हें धर्म युद्ध करने का जो यश प्राप्त हुआ है, उसे व्यर्थ ही न गँवाओ, मैं ज़मीन पर खड़ा हूँ और तुम रथ पर बैठे-बैठे मुझ पर बाण चलाओ यह उचित नहीं होगा।

प्रश्न 9.
दुर्योधन का वध कैसे और किसने किया?
उत्तर:
दुर्योधन और भीम में भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध काफ़ी लंबे समय तक चलता रहा। तभी श्रीकृष्ण के इशारों पर भीम ने दुर्योधन की जाँघ पर गदा से प्रहार किया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन कहाँ छिप गया?
उत्तर:
दुर्योधन अकले हाथ में गदा लिए हुए एक जलाशय में जाकर छिप गया। बाद में युधिष्ठिर एवं उनके भाइयों ने खोज निकाला।

प्रश्न 2.
कृष्ण ने दुर्योधन के आरोप का क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
मरणासन्न अवस्था में दुर्योधन को इस प्रकार विलाप करते हुए देखकर श्रीकृष्ण बोले- दुर्योधन! तुम अपने ही किए का फल पा रहे हो। यह क्यों नहीं समझते और उसका पश्चाताप करते? अपने अपराध के लिए दूसरों को दोष देना बेकार है। तुम्हारे नाश का कारण मैं नहीं हूँ। लोभ में पड़कर तुमने महापाप किया। उसी का फल तुम्हें भुगतना पड़ रहा है।

प्रश्न 3.
दुर्योधन ने कृष्ण पर क्या आरोप लगाए?
उत्तर:
दुर्योधन ने कृष्ण पर आरोप लगाते हुए कहा- “कृष्ण! धर्म-युद्ध करने वाले हमारे पक्ष के साथ वीर योद्धा को तुमने छल करके मरवा डाला है। यदि तुमने कुचक्र न किया होता, तो कर्ण, भीष्म, द्रोण रण भूमि में परास्त होने वाले नहीं थे।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 36

आचार्य द्रोण के मारे जाने के बाद कौरवों ने कर्ण को सेनापति नियुक्त किया। दूसरे दिन से ही कर्ण के सेनापति बनने के बाद कौरवों और पांडवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अर्जुन और भीम दोनों एक साथ कर्ण पर आक्रमण कर दिया। मद्रराज शल्य कर्ण के सारथी बने। भीम ने दुःशासन को एक ही धक्के में ज़मीन पर गिरा दिया और उसका एक-एक अंग तोड़ डाला। भीम चिल्लाने लगा। मेरी एक प्रतिज्ञा पूरी हुई। अब दुर्योधन की बारी है। भीम का यह आक्रमक रूप देखकर कर्ण का शरीर काँपने लगा। तभी कर्ण ने अर्जुन पर एक भयंकर आग उगलता बाण चलाया जिसे कृष्ण ने देखकर रथ को अँगूठे से दबा दिया जिससे रथ जमीन में पाँच अंगुल धस गया। इस युक्ति से अर्जुन मरते-मरते बच गया। इसके बाद अर्जुन ने क्रोध में आकर कर्ण पर बाण का वर्षा आरंभ कर दिया, जिससे कर्ण के रथ का बाईं तरफ़ का पहिया ज़मीन के नीचे धंस गया। कर्ण घबरा गया और अर्जुन से बोला- “अर्जुन ठहरो! मेरे रथ का पहिया ज़मीन में फँस गया है। कर्ण पहिया उठाकर समतल पर लाने की कोशिश करने लगा। तभी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा”अर्जुन, अब देरी मत करो। इस दुष्ट को खत्म करो। श्रीकृष्ण की बात मानकर अर्जुन ने ऐसा बाण चलाया कि उसका शरीर कटकर ज़मीन पर गिर गया। इस घटना को देखकर दुर्योधन के दुख की सीमा न रही। उसकी इस अवस्था पर कृपाचार्य को बड़ा तरस आया। युद्ध को जारी रखने के उद्देश्य से मद्रराज शल्य को सेनापति नियुक्त किया गया। अब पांडवों की सेना के संचालन का पूरा भार युधिष्ठिर ने ले लिया। उन्होंने स्वयं शल्य पर आक्रमण किया। मद्रराज शल्प मृत्यु को प्राप्त कर रथ से गिर पड़े। शल्य के मारे जाने पर कौरव सेना में भगदड़ मच गई और काफ़ी भयभीत हो गए। इधर सहदेव ने शकुनि को मौत की घाट उतार दिया। अब अकेला दुर्योधन बचा रह गया। उसके पास न सेना थी न रथ। उसकी दशा बड़ी दयनीय थी। ऐसी परिस्थिति में वह हाथ में गदा लिए हुए एक जलाशय में छिप गया। युधिष्ठिर और उनके भाई उसे खोजते-खोजते उसके पास जा पहुँचे। युधिष्ठिर ने उसे काफ़ी भला-बुरा कहा। इस पर दुर्योधन ने कहा न तो मैं किसी से डरता हूँ। और न प्राणों का मोह है। अब मेरा युद्ध से जी हट गया। मेरे सभी सगे संबंधी मारे गए हैं और अब मैं बिलकुल अकेला हूँ। अब मुझे राज्य सुख का लोभ नहीं रहा। यह राज्य अब तुम्हारा ही है, तुम उसका उपभोग करो। युधिष्ठिर के मुँह से कठोर शब्द सुनकर दुर्योधन ने गदा उठा ली। उसने चुनौती दी। तुम एक-एक करके मुझसे निपट लो। यह कहकर वह जलाशय से बाहर आ गया। भीम और दुर्योधन में भयंकर गदा युद्ध शुरू हो गया। भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा पाकर दुर्योधन की जाँघ पर गदा से प्रहार किया और उसकी जाँघ टूट जाने के कारण वह अधमरा हो गया। फिर दुर्योधन गुस्से में आकर कृष्ण से बोला- कृष्ण धर्म युद्ध करने वाले हमारे पक्ष के सारे योद्धा को तुमने कुचक्र रचकर मरवा डाला है। दुर्योधन को इस प्रकार का विलाप करते हुए देखकर श्रीकृष्ण बोले- तुम अपने ही किए हुए कर्मों का फल पा रहे हो। तुम्हारे नाश का कारण तुम स्वयं हो मैं नहीं। लालच में पड़कर पाप किया तो उसका फल तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-88- घमासान – भयंकर, काम – तमाम करना – जान से मारना, युक्ति – उपाय, मनोनीत – मान्य।
पृष्ठ संख्या-89- निर्लज्जता – बेशर्मी, संचालन – नेतृत्व, झिड़की – व्यंग, हिचकिचाना – सोच-विचार करना, शोक – दुख, दायित्व – जिम्मेदारी।
पृष्ठ संख्या-90- जलाशय – तालाब, कुटुंब – परिवार, सगे संबंधी, नाश – समाप्त, व्यथित – बेचैन, भाँप – समझ लेना, द्वेष – ईर्ष्या, पश्चाताप – अफसोस।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 35 भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत

These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant & Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 35 भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत are prepared by our highly skilled subject experts.

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 35 भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 35

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन ने बाण चलाकर भूरिश्रवा की भुजा क्यों काट दी?
उत्तर:
क्योंकि सात्यकि अचेत घायल अवस्था में ज़मीन पर गिरा पड़ा था और भूरिश्रवा उस पर वार करने के लिए उद्यत था।

प्रश्न 2.
किस बालक के वध पर कौरवों ने विजयोत्सव मनाया था?
उत्तर:
अभिमन्यु के वध पर कौरवों ने विजयोत्सव मनाया था।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्या चेताया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को चेताया था कि अभी सूर्य डूबा नहीं है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का यही मौका है। इसके अलावे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को चेतावनी दी थी कि जयद्रथ का सिर ज़मीन पर नहीं गिरने देना।

प्रश्न 4.
जयद्रथ का कटा सिर कहाँ जाकर गिर?
उत्तर:
जयद्रथ का कटा सिर उसके वृद्ध पिता वृद्धक्षत्र की गोद में जाकर गिरा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्जुन भूरिश्रवा के हाथ काटने के लिए क्यों मज़बूर हुए? इस संबंध में अर्जुन के क्या तर्क थे?
उत्तर:
भरिश्रवा के हाथ काटने के लिए इसलिए विवश हुआ कि- जब अर्जुन ने देखा कि मैदान में घायल पड़े सात्यकि को भूरिश्रवा घसीट रहा है तथा उनके शरीर को एक पाँव से दबाकर तलवार से वार करने वाला ही था। उसी क्षण अर्जुन ने उसके ऊपर बाण चलाया। बाण लगते ही भूरिश्रवा का दाहिना हाथ कटकर तलवार समेत दूर ज़मीन पर जा गिरा।

प्रश्न 2.
जयद्रथ के वध करने के संबंध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा?
उत्तर:
अर्जुन और जयद्रथ में भयंकर संग्राम होता रहा, दोनों महान योद्धा थे। अर्जुन जब चाहते तब जयद्रथ का वध कर सकता था लेकिन जब सूर्यास्त का समय हुआ तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- अर्जुन जयद्रथ सूर्य की तरफ़ देख रहा है। वह समझ रहा है कि सूर्य डूब गया लेकिन अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का यही समय है।

प्रश्न 3.
द्रोणाचार्य को मारने के लिए पांडव-पक्ष ने क्या योजना बनाई?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि द्रोणाचार्य को कुचक्र से ही वध किया जा सकता है। अन्यथा ये हमारा सत्यानाश कर देंगे। इस कुचक्र का दायित्व युधिष्ठिर के लेने पर भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर दिया। भीम ने द्रोण के पास जाकर कहा- मैंने आश्वात्थामा को मार दिया है। जब आचार्य ने सच्चाई जानने के लिए युधिष्ठिर से पूछा तब युधिष्ठिर ने कहा- अश्वत्थामा मारा गया, हाथी या मनुष्य। युधिष्ठिर के वाक्य के अंतिम अंश पांडव सेना के शोर से आचार्य सुन न सके। उन्होंने हथियार त्याग दिए। भूमि पर ध्यान मग्न बैठे। तब धृष्टद्युम्न ने आचार्य का सिर काट दिया।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 35

जब अर्जुन जयद्रथ को मारने के प्रयास में था उसकी वक्त भूरिश्रवा ने सात्यकि को ज़मीन पर पटकर जान से मार दिया। मृत पड़े सात्यकि को भूरिश्रवा घसीट रहा था। तभी जयद्रथ के चलाए गए बाण आसमान में छा गए। अर्जुन सात्यकि की यह दुर्दशा देखकर काफ़ी दुखी हुए। फिर अर्जुन ने भूरिश्रवा पर तान कर बाण चलाया जिससे उसका दहिना हाथ कटकर तलवार समेत दूर ज़मीन पर जा गिरा।

हाथ कट जाने पर भूरिश्रवा ने श्रीकृष्ण व अर्जुन की बुराई की। तब अर्जुन ने कहा- भूरिश्रवा तुमने मेरे प्रिय मित्र सात्यकि निहत्थे पर जुल्म किया। भूरिश्रवा ने वहीं आमरण अनशन शुरू कर दिया। यह सब देखकर अर्जुन बोला मेरी प्रतिज्ञा तुम लोग जानते हो। यह सब देखकर अर्जुन बोला- “वीरों! तुम सब जानते हो मेरे बाणों की पहुँच तक अपने किसी मित्र का शत्रु के हाथों वध न होने देने का प्रण मैंने कर रखा है। इसलिए सात्यकि की रक्षा करना मेरा धर्म था।”

अर्जन की बातों का भरिश्रवा ने भी शांति से समर्थन किया। तब तक सात्यकि ने भूरिश्रवा का सिर धड़ से अलग कर दिया। युद्ध के मैदान में जिस तरह से भूरिश्रवा का वध हुआ था, उसे किसी ने उचित नहीं माना। सभी ने इस कुकृत्य घटना को धिक्कारा।

अब अर्जुन कौरव को तहस-नहस करते हुए जयद्रथ के पास पहुँच गया, लेकिन जयद्रथ भी पहुँचा हुआ महारथी था। वह डटकर अर्जुन का मुकाबला करने लगा। काफ़ी देर तक दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। धीरे-धीरे सूर्यास्त होने को था लेकिन दोनों वीरों का युद्ध समाप्त होने का लक्षण नहीं दिख रहा था।

इसी बीच श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा अर्जुन! जयद्रथ समझ रहा है कि सूर्य अस्त हो चुका है लेकिन सूर्य डूबा नहीं है, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का अभी वक्त है।

श्रीकृष्ण की यह बात सुनते ही अर्जुन के गंडीव से एक तेज़ बाण छूटे और जयद्रथ का सिर ले उड़ा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को हिदायत दे दी थी कि जयद्रथ के सिर को ज़मीन पर नहीं गिरने देना। अर्जुन ने ऐसा ही किया। जयद्रथ के पिता राजा वृद्धक्षत्र आसन में बैठे थे। संध्या वंदना कर रहे थे कि जयद्रथ का सिर उसकी गोद में जा गिरा। उसी क्षण वृद्धक्षत्र के सिर के भी सौ टुकड़े हो गए। जयद्रथ के वध की खबर सुनकर युधिष्ठिर के खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने उत्साह के मारे सारी पांडवों की सेना को लेकर आचार्य द्रोण पर आक्रमण कर दिया। चौदहवें दिन का युद्ध देर शाम तक चलता रहा।

इधर कर्ण और घटोत्कच में भयंकर युद्ध हुआ। कर्ण को घटोत्कच ने इतनी पीड़ा पहुँचाई की उसे इंद्र के द्वारा मिली शक्ति का प्रयोग करना पड़ा। घटोत्कच मारा गया लेकिन अर्जुन का संकट दूर हो गया क्योंकि कर्ण ने इस शक्ति को अर्जुन के लिए बचाकर रखा था। पांडव सेना घटोत्कच के मारे जाने की खबर सुनकर काफ़ी शोकाकुल हो गई। द्रोणाचार्य के भयंकर युद्ध को देखकर श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले- कुछ कुचक्र रचकर इनका वध किया जा सकता है, जिनके लिए उनके पास एक खबर पहुँचाना चाहिए कि अश्वत्थामा मारा गया।” युधिष्ठिर ने काफ़ी सोच-विचार करने के बाद कहा कि यह पाप मैं अपने ऊपर लेता हूँ। इस प्रस्ताव के अनुसार, भीम ने गदा-प्रहार से अश्वत्थामा नाम के एक हाथी को मार दिया। फिर जोर से द्रोण के सामने चिल्लाने लगे कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया।

द्रोणाचार्य ने जब सच्चाई जानने के लिए युधिष्ठिर से पूछा तो इन्होंने कहा अश्वत्थामा मारा गया पता नहीं मनुष्य या हाथी। वाक्य का अंतिम भाग हाथी के बारे में आचार्य सुन नहीं पाए। यह सुनकर पुत्र-शोक से दुखी होकर आचार्य ने हथियार डाल दिए और ज़मीन पर ध्यान मग्न बैठ गए। इसी हाहाकार के बीच धृष्टद्युम्न ने आचार्य की गरदन पर खड्ग से जोर का वार किया। आचार्य द्रोण का सिर तत्काल ही धड़ से अलग होकर गिर पड़ा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-86- असमंजस – ऊहापोह, निर्णन न करने की स्थिति, उद्यत – तैयार, निःशस्त्र – हथियार के बिना, विजयोत्सव – जीत पर कार्यक्रम, निकृष्ट – नीच निंदनीय।

पृष्ठ संख्या-87- उचित – सही, सुविख्यात – बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त, विफल – असफल, संध्या वंदना – शाम के समय की पूजा, हिडिंबा – भीम की पत्नी, घटोत्कच की माता, आपे में न रहना – विवेक खो देना, सुगम – आसान, चेतावनी – आगाह करना, यत्नपूर्वक – गंभीरतापूर्वक, कुचक्र – षड्यंत्र, धोखा।

पृष्ठ संख्या-88- लालसा – चाह, लुप्त – गायब, धड़ – शरीर, तत्काल – तुरंत।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 34 युधिष्ठिर की चिंता और कामना

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 34 युधिष्ठिर की चिंता और कामना

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 34

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धृष्टद्युम्न ने क्या चलाकी की?
उत्तर:
धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य पर आक्रमण करके जयद्रथ की रक्षा के लिए जाने से रोके रखा।

प्रश्न 2.
सात्यकि जब संकट में पड़ गए तो युधिष्ठिर ने अपने योद्धाओं से क्या कहा?
उत्तर:
सात्यकि जब संकट में पड़ गए तो युधिष्ठिर ने अपने योद्धाओं से कहा- सात्यकि आचार्य द्रोण के बाण से आहत हो रहे हैं। अतः हम लोग उधर चलकर उस वीर महारथी की सहायता करें।

प्रश्न 3.
सात्यकि पर किसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी थी?
उत्तर:
सात्यकि पर युधिष्ठिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी।

प्रश्न 4.
आचार्य द्रोण का क्या संकल्प था?
उत्तर:
उनका संकल्प था युधिष्ठिर को जिंदा पकड़ना।

प्रश्न 5.
युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न से क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर धृष्टद्युम्न से बोले- द्रुपद कुमार/आपको अभी जाकर आचार्य पर आक्रमण करना चाहिए। अगर आप उनके ऊपर आक्रमण नहीं करेंगे, तो संभव है कि द्रोण के हाथों सात्यकि का वध हो जाए।

प्रश्न 6.
धृष्टद्युम्न ने भीम को क्या भरोसा दिलाया?
उत्तर:
धृष्टद्युम्न ने भीम से कहा- तुम किसी प्रकार की चिंता न करो। इतना विश्वास रखो कि मेरा वध किए बिना युधिष्ठिर को कोई नहीं पकड़ पायेगा।

प्रश्न 7.
युधिष्ठिर मन ही मन क्या कामना कर रहे थे?
उत्तर:
युधिष्ठिर मन ही मन कामना कर रहे थे कि- संध्या होने पहले अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लौट जाएँ। जयद्रथ की मृत्यु के बाद दुर्योधन शायद संधि कर ले। इसके अलावे वे मन ही मन शांति की कामना भी कर रहे थे।

प्रश्न 8.
दुर्योधन मैदान छोड़कर क्यों भागने लगा? द्रोण ने उसे क्या समझाया?
उत्तर:
अर्जुन और जयद्रथ के मध्य घमासान युद्ध चल रहा था कि उसी वक्त वहाँ दुर्योधन भी उसकी सुरक्षा में आ गया और वहाँ युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल होने के कारण मैदान छोड़कर भागने लगा। तब द्रोण ने सलाह दी कि- “बेटा तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तुम्हें जयद्रथ की सहायता के लिए जाना चाहिए और जो आवश्यक हो उसे करना भी चाहिए।”

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्रोणाचार्य और सात्यकि के बीच हुए युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
आचार्य द्रोण को रोकने के लिए धृष्टद्युम्न आचार्य के रथ पर चढ़कर युद्ध करने लगा। अंत में द्रोण ने क्रोध में आकर पंचाल कुमार पर बाण चलाया। सात्यकि ने बाण बीच में ही काट दिया जिससे धृष्टद्युम्न के प्राण बच गए। अचानक सात्यकि के बाण रोक लेने से द्रोण का ध्यान उसकी ओर चला गया। इसी बीच पंचाल सेना के रथ सवार, धृष्टद्युम्न को वहाँ से हटा ले गए, लेकिन सात्यकि पांडव सेना के बहादुर योद्धाओं में से एक था, अत: जब आचार्य उन पर युद्ध के लिए झपटे तो सात्यकि भी उनका डटकर सामना करने लगे। इस प्रकार दोनों में भयंकर युद्ध लंबे समय तक होता रहा।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न को आज्ञा दिया कि- द्रुपद कुमार आपको अभी जाकर आचार्य द्रोण के ऊपर हमला करना चाहिए। नहीं तो डर है कि कहीं आचार्य के हाथों सात्यकि का वध न हो जाए।” युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न के साथ आक्रमण करने के लिए एक बड़ी सेना भेज दी। सही समय पर कुमुक के पहुँच जाने पर भी बड़े कठिन परिश्रम के बाद सात्यकि को द्रोण के चंगुल से छुड़ाया जा सका।

प्रश्न 3.
कर्ण और भीम के मध्य होने वाले युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर:
कर्ण और भीम के युद्ध के दौरान भीम के रथ के घोड़े मारे गए। सारथी गिरकर कट गया। रथ टूट-फूट कर बिखर गया और धनुष भी कट गए। भीम अब ढाल-तलवार से आक्रमण करने लगा। कर्ण ने उसके ढाल के भी टुकड़े कर दिए। भीम को बड़ा क्रोध आया। वह कूदकर कर्ण के रथ पर ही बैठ गया। कर्ण ने रथ के ध्वज स्तंभ की आड़ लेकर भीम को आक्रमण से अपने को बचा लिया। इसके बाद भीम रथ से उतरकर मैदान में पड़े रथ के पहिए, घोड़े, हाथ, उठा-उठाकर कर्ण के ऊपर फेंकने लगा। उस समय कर्ण चाहता तो भीम को आसानी से मार देता लेकिन उसे माता कुंती को दिया हुआ वचन याद था कि युद्ध में अर्जुन के अलावा वह किसी से युद्ध नहीं करेगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 34

दुर्योधन को अर्जुन का पीछा करते देखकर पांडव-सेना ने शत्रुओं पर तेज़ हमला कर दिया। धृष्टद्युम्न ने सोचा कि यदि जयद्रथ की रक्षा करने के लिए यदि द्रोण भी चले गए तो अर्जुन के लिए जयद्रथ का वध करना असंभव हो जाएगा और अर्जुन काफ़ी कमज़ोर पड़ जाएगा। धृष्टद्युम्न की चाल के कारण कौरव सेना तीन हिस्सों में बँटकर कमज़ोर हो गई।

धृष्टद्युम्न आचार्य द्रोण के रथ पर भयंकर आक्रमण करने लगे। क्रोध में आकर द्रोण ने भी पांचाल कुमार पर एक पैना बाण चलाया। यह बाण पांचाल कुमार का जान ही ले लेता यदि सात्यकि का बाण उसे बीच में काट न देता। इसी बीच युधिष्ठिर को पता चला कि सात्यकि को द्रोण ने घेर लिया है तो वे अपने योद्धा को लेकर उनके सहायता के लिए गए। इसके बाद वे धृष्टद्युम्न से बोले अभी आपको द्रोणाचार्य पर आक्रमण करना चाहिए, नहीं तो द्रोण के हाथों सात्यकि मारा जाएगा।

इसी समय श्रीकृष्ण के पांचजन्य की ध्वनि सुनाई पड़ी। इसे सुनकर युधिष्ठिर चिंतत हो गए। वे सात्यकि से अनुरोध करने लगे कि आप जल्द ही अर्जुन की सहायता के लिए चले जाएँ। भीम, युधिष्ठिर को धृष्टद्युम्न के सहारे छोड़कर चला गया। भीम उस रणक्षेत्र में पहुँच गए जहाँ जयद्रथ और अर्जुन की सेना में युद्ध चल रहा था। अर्जुन को सुरक्षित देखकर भीम ने युधिष्ठिर के अनुसार सिंहनाद किया। सिंहनाद सुनकर श्रीकृष्ण और अर्जुन उछल पड़े। युधिष्ठिर भी समझ गए कि अर्जुन सकुशल है। वे मन ही मन अर्जुन को आशीर्वाद देने लगे। इतने में उसी समय वहाँ दुर्योधन भी पहुँच गया। उस दिन कर्ण और भीम में भयंकर युद्ध हुआ। इसमें भीम के रथ के घोडे मारे गए। सारथी भी मारा गया। भीम के ढाल भी टुकड़े-टुकड़े हो गए। भीम को बड़ा क्रोध आया वह उछल कर कर्ण के रथ पर जाकर बैठ गया। कर्ण ने किसी तरह अपने को भीम से बचा लिया। भीम मैदान में पड़े रथ के पहिए, घोड़े इत्यादि को उठा-उठा कर कर्ण को फेंककर मारने लगा। उसी समय कर्ण चाहता तो भीम को आसानी से मार सकता था लेकिन निहत्थे भीम को कर्ण ने मारना उचित नहीं समझा। उसे माता-कुंती को दिया हुआ वचन भी याद था कि अर्जुन के अलावा वह किसी से युद्ध नहीं करेगा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-83- विक्षिप्त-बेचैन – पागल, कामना – इच्छा/चाह, हिस्सा – भाग, कमज़ोर – क्षीण, उछलकर – कूदकर, पैना – तेज़।
पृष्ठ संख्या-84- संकट – आफत, अधीर – बेचैन, हालचाल – समाचार, सिंहनाद – सिंह की तरह गर्जन, संग्राम – युद्ध, असह्य – जो सहन न हो सके, आघात – प्रहार, विलक्षण – अद्भुत, निहत्थे – जिसके हाथ में हथियार न हो।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 33 अभिमन्यु

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 33 अभिमन्यु

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 33

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से कहा- “बेटा द्रोण के रचे हुए चक्रव्यूह को तोड़ना हमारे किसी और योद्धा से नहीं हो सकता। अकेले तुम्ही ऐसे हो, जो द्रोण के बनाए इस व्यूह को तोड़ सकते हो। हम द्रोण की सेना पर आक्रमण करने को तैयार हैं?”

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर को जब पता चला कि सात्यकि संकट में है तो उन्होंने अपने वीरों से क्या कहा?
उत्तर:
तब युधिष्ठिर अपने योद्धा से बोले- कुशल योद्धा, नरोत्तम और सच्चे सात्यकि आचार्य द्रोण के बाण से आहत हो रहे हैं, अतः हम लोग वहाँ पहुँचकर उनकी सहायता करें।

प्रश्न 3.
तेरहवें दिन किस-किस में युद्ध छिड़ गया?
उत्तर:
तेरहवें दिन अर्जुन और सशंप्तकों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया।

प्रश्न 4.
द्रोणाचार्य ने किसकी रचना की?
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने कौरव-सेना से चक्रव्यूह की रचना की।

प्रश्न 5.
अभिमन्यु किसका पुत्र था?
उत्तर:
अभिमन्यु अर्जुन-सुभद्रा का पुत्र था।

प्रश्न 6.
चक्रव्यूह के बारे में अभिमन्यु क्या जानता था?
उत्तर:
अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो जानता था, पर निकलना नहीं जानता था।

प्रश्न 7.
भीम ने अभिमन्यु को क्या विश्वास दिलाया?
उत्तर:
भीम ने अभिमन्यु को विश्वास दिलाया कि मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा तथा साथ में अन्य कई योद्धा होंगे।

प्रश्न 8.
धृष्टद्युम्न ने भीम को क्या भरोसा दिलाया?
उत्तर:
धृष्टद्युम्न ने भीम से कहा- तुम किसी प्रकार की चिंता न करो। इतना विश्वास रखो कि मेरा वध किए बिना युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सकेंगे।”

प्रश्न 9.
युधिष्ठिर की क्या कामना थी?
उत्तर:
युधिष्ठिर की यह कामना थी कि सूरज डूबने से पहले अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लौट जाएँ। जयद्रथ की मृत्यु के बाद दुर्योधन शायद संधि कर ले। वे मन ही मन शांति स्थापना की कामना कर रहे थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भीम की बात सुनकर अभिमन्यु ने क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर:
भीम की बात सुनकर बालक अभिमन्यु को अपने मामा श्रीकृष्ण और पिता अर्जुन की वीरता का स्मरण हो आया। वह बडे उत्साह के साथ बोला- मैं अपनी वीरता और पराक्रम से अपने मामा श्रीकृष्ण और पिता जी को अवश्य प्रसन्न करूँगा।

प्रश्न 2.
जयद्रथ युद्ध छोड़कर क्यों भागना चाहता था?
उत्तर:
अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ भयभीत हो गया। इस कारण युद्ध छोड़कर अपने राज्य चले जाना चाहता था। दुर्योधन ने उसे धीरज बँधाया और बोला सैंधव आप भयभीत न होवें। मेरी सारी सेना आपकी रक्षा करने के लिए लगी हुई है। यह कहकर दुर्योधन ने जाने से रोक लिया।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 33

तेरहवें दिन भी संशप्तकों ने अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। अर्जुन भी उनकी चुनौती स्वीकार करके उनके साथ युद्ध करते हुए दक्षिण की ओर चला गया। नियत स्थान पर पहुँचने के बाद अर्जुन और संशप्तकों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। इधर द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना कर युधिष्ठिर पर आक्रमण कर दिया। उनके आक्रमण को रोकने के लिए पांडवों की ओर से भीम, सात्यकि, चोकेतान, धृष्टद्युम्न, कुंतीभोज, उत्तमौजा, विराटराज और कैकेय इत्यादि सभी महारथी प्रयासरत थे। आचार्य का बेग रुक नहीं रहा था। अतः युधिष्ठिर ने बालक अभिमन्यु को बुलाकर कहा कि केवल तुम्ही द्रोण के बनाए चक्रव्यूह को तोड़ सकते हो। इस पर अभिमन्यु ने कहा- महाराज इस चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना तो मुझे आता है और पर प्रवेश करने के बाद कहीं कोई संकट आ गया तो व्यूह से बाहर निकलना मुझे याद नहीं है। युधिष्ठिर ने कहा- “बेटा, व्यूह को तोड़कर एक बार तुम प्रवेश कर लो, फिर हम लोग तुम्हारे पीछे-पीछे चले आएँगे और तुम्हारी मदद करेंगे।

युधिष्ठिर की बातों का समर्थन करते हुए भीम ने कहा- एक बार तुमने व्यूह तोड़ दिया, तो फिर यह निश्चित है कि हम सब मिलकर कौरव सेना को तहस-नहस कर डालेंगे।

अभिमन्य ने अपने सारथी समित्र से कहा- जिधर द्रोणाचार्य के रथ का ध्वज है उसी ओर हमें ले चलो। पांडव वीर भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े। द्रोण द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह को तोड़कर अभिमन्यु व्यूह के अंदर प्रवेश करना चाहते थे लेकिन धृतराष्ट्र का दामाद जयद्रथ अपनी कुशलता और बहादुरी से चक्रव्यूह की टूटी हुई व्यूह की किलेबंदी को फिर से पूरा कर दिया और काफ़ी शक्तिशाली बना दिया। इससे पांडव अंदर प्रवेश नहीं कर सके। अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह के अंदर फँस गया लेकिन वह कौरवों की सेना तहस-नहस करता गया। उसके हाथों दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण मारा गया।

अपने पुत्र को मरते देखकर दुर्योधन के क्रोध की सीमा न रही। उसने आदेश दिया कि अभिमन्यु का इसी क्षण वध करो तुरंत द्रोण, अश्वत्थामा, वृहदबल, कृतवर्मा आदि छह महारथियों ने अभिमन्यु को घेर लिया। कर्ण ने उसके घोड़े की रास काट डाली और पीछे से वार किया, जिससे अभिमन्यु के घोड़े और सारथी मारे गए। उसका धनुष भी टूट गया। अब वह टूटे हुए रथ का पहिया हाथ में लेकर घुमाता रहा तब तक सारी कौरव सेना उस पर टूट पड़ी। दुःशासन का पुत्र गदा लेकर अभिमन्यु पर टूट पड़ा। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ।

दोनों के युद्ध में अभिमन्यु मारा गया। शिविर में पहुँचकर अभिमन्यु की मृत्यु की बात सुनकर अर्जुन काफ़ी बिलखने लगे। श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया। युधिष्ठिर ने घटनाक्रम की सारी जानकारी दी और बताया कि जयद्रथ के कारण अभिमन्यु मारा गया है। यह सुनकर अर्जुन ने गांडीव पर जोर से टंकार दी और बोले- जिसके कारण मेरे प्रिय पुत्र की मृत्यु हुई है उस जयद्रथ का मैं कल सूर्यास्त होने से पहले वध करके रहूँगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है।

अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर जयद्रथ काफ़ी डर गया लेकिन दुर्योधन ने उसकी रक्षा का पूरा भरोसा दिलाया। अगले दिन युद्ध में व्यूह की रचना करते हुए द्रोणाचार्य ने जयद्रथ को युद्ध के मैदान से बारह मील दूर सेना व रक्षकों के साथ रखा। उनके साथ कई वीर योद्धा उसकी रक्षा के लिए मौजूद थे। उनमें भुरिश्रवा, कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य, वृषसेन आदि थे।

अर्जुन ने मोर्चा संभालते ही भोजों की सेना पर हमला कर दिया। उसे हराने के बाद, कृतवर्मा, सुदक्षिण, श्रुतायुध पर आक्रमण किया। श्रुतायुध अपनी गदा से मारा गया। कांभोजराज अर्जुन के हाथों मारा गया। कौरव सेना को मारता हुआ अर्जुन जयद्रथ के समीप पहुँच गया। जयद्रथ की रक्षा में लगे आठ महारथी अर्जुन का मुकाबला करने लगे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-79- ललकारना – उकसाना, चुनौती – मुकाबला, संग्राम – युद्ध, धावा बोलना – चढ़ाई करना, समता – बराबरी, प्रवेश – दाखिल, चुनौती – मुकाबला, संग्राम – युद्ध, समर्थन – हामी भरना, अनुकरण – नकल।

पृष्ठ संख्या-81- स्मरण – याद, दाखिल – प्रवेश, भस्म – जल कर राख हो जाना, तहस-नहस – नष्ट करना, आभा – रोशनी, व्याकुल – बेचैन, मृत – मरा, तत्काल – तुरंत, रथविहीन – रथ के बिना।

पृष्ठ संख्या-82- आहत – घायल, प्रहार – आक्रमण, प्राण – प्रेखेरन, होना – मर जाना, संहार – बध, अभेद्य – जो भेदा न जा सके, धीरज – धैर्य, निःशंक – निश्चित, व्यवस्था – इंतजाम।

पृष्ठ संख्या-83- शरीक – भाग लेना, तमाम – पूरी।