Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 7 सोने का हिरण

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 7 Question Answers Summary सोने का हिरण

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 7

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मारीच किस रूप में पंचवटी गया?
उत्तर:
मारीच हिरण के रूप में पंचवटी गया।

प्रश्न 2.
राम ने मायावी मृग पर निशाना क्यों साधा?
उत्तर:
जब राम मायावी हिरण को जिंदा नहीं पकड़ पाए तो अंत में परेशान होकर उस पर निशाना साधा।

प्रश्न 3.
बाण लगने पर मायावी हिरण ने क्या किया?
उत्तर:
बाण लगने पर मायावी हिरण ने हा सीते! हा लक्ष्मण! पुकारा।

प्रश्न 4.
रावण क्यों प्रसन्न था?
उत्तर:
रावण प्रसन्न था क्योंकि उसकी चाल सफल हो रही थी। मारीच ने अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाई थी।

प्रश्न 5.
सीता क्यों विचलित हो गई?
उत्तर:
मारीच की मायावी पुकार सुनकर सीता ने समझा कि राम किसी परेशानी में हैं, इसलिए वे विचलित हो गईं।

प्रश्न 6.
रावण किस वेश में सीता के सामने आया?
उत्तर:
रावण तपस्वी के वेश में सीता के सामने आया।

प्रश्न 7.
रावण को अकंपन की क्या बात याद हो आई?
उत्तर:
रावण को अकंपन की यह बात याद हो आई कि सीता का हरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे।

प्रश्न 8.
सीता ने लक्ष्मण को क्या धमकी दी?
उत्तर:
सीता ने धमकी देते हुए कहा-राम से अलग होकर मैं नहीं रह सकती। मैं जान दे दूंगी। हे लक्ष्मण, तुम राम के पास जाओ। वे किसी मुसीबत में हैं। तुम उन्हें लेकर आओ।

प्रश्न 9.
सीता के आभूषण किसने उठाए?
उत्तर:
सीता के आभूषण वानरों ने उठाए।

प्रश्न 10.
जटायु ने रावण के साथ क्या जबरदस्ती की?
उत्तर:
गिद्धराज जटायु ने रावण का रथ छत-विछत कर दिया तथा रावण को घायल कर दिया।

प्रश्न 11.
रावण ने सीता को पहले जाकर कहाँ रखा?
उत्तर:
रावण ने सीता को ले जाकर पहले अंत:पुर में और बाद में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा।

प्रश्न 12.
रावण चिंतित क्यों हो गया? उसने क्या किया?
उत्तर:
सीता ने राम के बल पौरुष की खूब प्रंशसा की और कहा, राम तुम्हारा संहार कर देंगे। यह सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने अपने आठ शक्तिशाली राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेजा और राम-लक्ष्मण पर निगरानी रखने को कहा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रावण ने सीता हरण के लिए क्या किया?
उत्तर:
रावण सीता-हरण के लिए मायावी मारीच को अपने साथ लाया था। मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया और राम की कुटिया के आस-पास घूमने लगा। सीता उसे देखकर मुग्ध हो गई और उसे पकड़ने के लिए उन्होंने राम से अनुरोध किया। राम को कुटी से निकलते देख मायावी हिरण जोर-जोर से दौड़ने लगा और वह उन्हें दूर तक ले गया। राम जब उसे पकड़ने में असफल रहे तब उन्होंने उस पर बाण छोड़ दिया जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा। उसने अपने असली रूप में वापस आकर कहा हा सीते! हा लक्ष्मण! की ऐसी आवाज़ निकाली जैसे वह आवाज़ राम की हो। जिसे सुन सीता ने लक्ष्मण को राम की सहायता के लिए जाने पर मजबूर किया। लक्ष्मण के वहाँ से जाते ही रावण सीता का हरण करने में सफल हो गया।

प्रश्न 2.
मारीच की मायावी पुकार सुनकर लक्ष्मण और सीता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मायावी मारीच की पुकार सुनकर लक्ष्मण ने अपनी चौकसी बढ़ा दी। वह राक्षसों की अगली चाल की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। वह घबरा गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा तुम जल्दी से उस दिशा में जाओ जिधर से आवाज़ आई है। तुम्हारे भाई बड़े परेशानी में फंस गए हैं। उन्होंने सहायता के लिए पुकारा है। जब लक्ष्मण ने इसे मायाबी चाल बताया तो सीता बुरा-भला कहने लगी तथा क्रोधित हो गईं। वे लक्ष्मण के मन में पाप बताने लगीं। उन्हें भरत का गुप्तचर बता दिया। लाचार होकर लक्ष्मण को जाना ही पड़ा।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण के राम की खोज में जाने के बाद रावण ने क्या किया?
उत्तर:
कुटी से लक्ष्मण के जाते ही रावण तपस्वी के वेश में वहाँ आ पहुँचा। सीता ने साधु रूप में उनका स्वागत करना चाहा तो उसने सीता को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं लंकाधिपति रावण स्वयं यहाँ तुम्हें लेने आया हूँ। मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूगा। यह सुनकर सीता गुस्से में आ गईं। वह कहने लगीं-मैं प्राण त्याग दूंगी, पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। रावण ने सीता की एक नहीं सुनी। उसने उन्हें खींचकर रथ पर बिठा लिया और रथ को लंका की ओर लेकर चल पड़ा।

प्रश्न 4.
सीता ने रावण से बचाव की आशा न देख पाने के बाद क्या किया?
उत्तर:
सीता ने रावण के चुंगल से छूटने का काफ़ी प्रयास किया। गिद्धराज जटायु ने भी सीता को रावण से छुड़ाने का काफ़ी प्रयास किया, लेकिन सीता रावण से नहीं छूट पाई। रथ टूटने पर रावण ने सीता को तुरंत बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। यह देखकर सीता को रावण से बचने की आशा नहीं रही। उन्होंने तब अपने अभूषण उतारने प्रारंभ किए और उन्हें नीचे फेंकना शुरू किया, ताकि राम को उसका पता चल जाए। आभूषण बंदरों ने उठा लिए। उन्हें आशा थी कि बानरों के पास ये आभूषण देखकर राम को पता चल जाएगा कि सीता किस मार्ग से गई हैं।

प्रश्न 5.
सीता ने रावण से राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रहीं। वे कहती रहीं कि तुम राम की शक्ति को नहीं जानते। वे तुम्हें अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर देंगे। तेरा सारा वैभव मेरे लिए अर्थहीन है। तूने पाप किया है, राम के हाथों तेरा अंत निश्चित है। राम की इतनी प्रशंसा सुनकर रावण कुछ चिंतित हो गया।

प्रश्न 6.
जटायु कौन था? उसने रावण पर हमला क्यों किया?
उत्तर:
जटायु एक गिद्ध था। वह राम के पिता राजा दशरथ का मित्र था। रावण जब सीता को छल एवं बलपूर्वक हरण कर वायुमार्ग से ले जा रहा था तब उसने सीता का विलाप सुनकर ऊँची उड़ान भरी और रावण के रथ पर हमला कर दिया और रावण के रथ को क्षत-विक्षत कर दिया। रावण भी घायल हो गया। क्रोध में रावण ने जटायु के पंख काट डाले। जटायु ज़मीन पर आ गिरा और वह भी घायल हो गया।

प्रश्न 7.
रावण ने राक्षस-राक्षसियों को क्या निर्देश दिया?
उत्तर:
रावण ने राक्षस-राक्षसियों से कहा कि सीता को चोट न पहुँचाएँ, केवल उनको अपमानित करने का प्रयास करें।

प्रश्न 8.
सीता से राम के बल-पौरुष की प्रशंसा सुनकर रावण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
सीता से राम के बल-पौरुष की प्रशंसा सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ बलिष्ठ राक्षसों को राम-लक्ष्मण की निगरानी करने के लिए भेजा। उसने यह भी आदेश दिया कि मौका मिलते ही उनका वध कर दे।

प्रश्न 9.
रावण ने सीता को कहाँ रखा? वहाँ पहरेदार को क्या निर्देश था?
उत्तर:
रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उस पर पहरा कड़ा कर दिया गया। उसने राक्षस-राक्षसियों को स्पष्ट निर्देश दिए-सीता को किसी तरह का कष्ट न हो। इसके मन को दुख पहुँचाओ, अपमानित करो, लेकिन सीता को कोई हाथ न लगाए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मायावी हिरण की क्रियाकलापों का वर्णन करें तथा उसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
मायावी हिरण मारीच राम को कुटी से बाहर निकलते देखकर कुलाँचें भरने लगा। राम उसके पीछे भागने लगे। उसने राम को बहुत छकाया और झाड़ियों में लुकता-छिपता उन्हें अपने पीछे-पीछे कुटी से बहुत दूर ले गया। वह बराबर लुका-छिपी का खेल खेलता रहा। कभी पास आता और राम जब उसे पकड़ने का प्रयास करते तो दूर चला जाता। अंततः राम ने उसे जीवित पकड़ने का विचार त्याग दिया। उन्होंने धनुष से एक बाण मार दिया। बाण लगते ही हिरण धरती पर गिर पड़ा और वह ज़ोर से चिल्लाया-हा सीते! हा लक्ष्मण! ऐसे कहते समय उसने अपनी आवाज़ राम जैसी बना ली थी। उसकी आवाज़ ऐसी थी जैसे राम ही घायल होकर सहायता के लिए आवाज़ लगा रहे हों। इसके कुछ देर बाद ही प्राण निकल गए। इसका नतीजा यह रहा कि लक्ष्मण को सीता को अकेला छोड़ राम की खोज में निकलना पड़ा। सीता को अकेली देखकर रावण ने तपस्वी-वेश में वहाँ आकर छल से उनका हरण कर लिया।

प्रश्न 2.
सीता को लंका लेकर आने के बाद रावण ने क्या प्रयास किया?
उत्तर:
लंका में रावण ने सीता को अपने धन-वैभव सोहरत एवं शक्ति से प्रभावित करने का प्रयास किया। रावण सीता को लेकर अपने अंत:पुर में गया। राक्षसियों को सीता की निगरानी करने को कहा। फिर रावण ने धमकाते हुए सीता से कहा-सुंदरी। तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी। जब सीता ने बार-बार राम का गुणगान किया तब रावण ने क्रोध में कहा-“तुम्हारा राम यहाँ कभी नहीं पहुँच सकता। अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम्हारी रक्षा केवल मैं कर सकता हूँ। मुझे स्वीकार करो और लंका में सुख से रहो।”

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुमान के आधार पर बताओ कि क्या होता यदि राजा दशरथ कैकेयी की प्रार्थना स्वीकार नहीं करते।
उत्तर:
यदि राजा दशरथ कैकेयी को अपना दिया हुआ वचन पूरा नहीं करते तो राम का राज्याभिषेक होता और अयोध्या के राजा बनते। राम को चौदह साल वनवास नहीं होता तथा सीता का हरण नहीं होता। अगर सीता का हरण नहीं होता तो राम-रावण का युद्ध नहीं होता। राम अगर वन नहीं जाते तो राक्षसों एवं रावण का संहार नहीं होता।

प्रश्न 2.
आपने बहुत-सी पौराणिक कथाएँ और लोक कथाएँ पढ़ी होंगी। उनमें क्या अंतर होता है? यह जानने के लिए पाँच पाँच के समूह में कक्षा के बच्चे दो-दो पौराणिक कथाएँ इकट्ठा करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. मारीच रावण का कौन था?
2. मारीच ने रावण को क्या समझाया?
3. मारीच किस रूप में पंचवटी गया?
4. बाण लगने पर मायावी हिरण ने क्या किया?
5. रावण के साथ किस पक्षी का युद्ध हुआ?
6. सीता ने अपने आभूषण उतारकर नीचे क्यों फेंके?
7. रावण चिंतित क्यों हो गया? उसने क्या किया?
8. रावण ने राक्षस-राक्षसियों को क्या निर्देश दिया?
9. रावण ने राक्षसियों को क्या निर्देश दिए?
10. रावण को अकंपन की क्या बात याद आ गई?
11. सीता ने लक्ष्मण को क्या धमकी दी?
12. मारीच की मायावी पुकार का लक्ष्मण और सीता पर क्या प्रभाव पड़ा?
13. हिरण को पकड़ने में राम असफल क्यों रहे?
14. सीता के क्रोध का क्या कारण था?
15. लक्ष्मण सीता को अकेला छोड़ने पर क्यों विवश हो गए?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. सीता ने राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा?
2. मायावी हिरण की गतिविधियों का वर्णन करें तथा बताएँ कि उसका क्या परिणाम हुआ?
3. रावण ने किस प्रकार सीता का हरण किया?
4. असहाय सीता को अपने बचाव का क्या उपाय नज़र आया? रावण ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?
5. सीता को लंका पहुँचाकर रावण ने क्या प्रयास किया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 7 Summary

राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलांचे भरने लगा। उसने राम को बहुत छकाया। राम को वह बहुत दूर ले गया। हिरण को पकड़ने के राम के सारे प्रयास विफल हुए। राम ने उसे जीवित पकड़ने का प्रयास छोड़ दिया। उन्होंने उस पर बाण चलाए। हिरण बाण लगते ही धरती पर गिर पड़ा। जमीन पर गिरते ही मारीच असली रूप में आ गया। उसने अपना रूप बदला और आवाज़ भी बदल ली। वह राम की सी आवाज़ में जोर से चिल्लाया-‘हा सीते! हा लक्ष्मण!’ ध्वनि ऐसी थी मानो राम सहायता के लिए पुकार रहे हों। मारीच के प्राण पखेरू उड़ गए। मारीच की आवाज़ सुनकर राम को समझने में देर नहीं लगी वे तुरंत तेज़ कदमों से कुटिया की ओर बढ़े।

मारीच की पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण रहस्य समझ गए और चौकसी बढ़ा दिए। इधर रावण एक विशाल पेड़ के नीचे खड़ा था। उसका प्रपंच सफल होने पर था। रावण को अकंपन की बात स्मरण हो गई कि सीता का अपहरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे। उधर सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-“तुम जल्दी जाओ। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। जाओ, लक्ष्मण जल्दी।” लक्ष्मण ने सीता को समझाया कि राम संकट में नहीं हैं। उनका कोई कुछ नुकसान नहीं कर सकता। वह आवाज़ मायावी राक्षसों की चाल है। इस पर सीता का क्रोध और बढ़ गया। क्रोध में आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने लक्ष्मण को भला-बुरा कहा तथा उन पर भरत के गुप्तचर होने का भी आरोप लगा दिया। सीता की बातों से लक्ष्मण काफ़ी आहत हो गए। लक्ष्मण चुप-चाप सिर झुकाकर खड़े थे। वे बार-बार सीता को समझाने का प्रयास करते रहे कि यह राक्षसों की चाल है, लेकिन सीता ने एक भी नहीं मानी और कहने लगीं कि-“मैं राम के बिना नहीं रह सकती। अपनी जान दे दूंगी। लक्ष्मण तुम जाओ और राम को जल्दी ले आओ।” इसके बाद लक्ष्मण ने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े। लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। रावण गेरुआ वस्त्र पहने कुटिया के पास आया। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने सीता की खूब प्रशंसा की और लंका में जाकर रहने को कहा। उसने कहा-तुम सोने की लंका में मेरी रानी बनकर रहोगी। सीता क्रोधित हो उठीं। वे बोलीं-मैं प्राण त्याग दूंगी पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँ गी। रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। उसने सीता को खींचकर रथ में बिठा लिया। सीता उसके चंगुल से बचने का प्रयास करती रही लेकिन सब व्यर्थ हुआ। वे राम और लक्ष्मण को पुकारती रहीं। वह विलाप करती रहीं-हा राम! हा लक्ष्मण! रावण का रथ लंका की ओर उड़ चला।

मार्ग में वे पशुओं, पक्षियों, पर्वतों से कहती जा रही थीं कि कोई राम को बता दे कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्ध राज जटायु ने सीता का विलाप सुना और तुरंत रावण के रथ पर हमला किया। क्रोध में रावण ने उसके पंख काट दिए। अतः वह धरती पर आ गिरा। रावण का रथ टूट गया था। अतः वह उड़ान नहीं भर सकता था। उसने तत्काल सीता को अपनी बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता किसी तरह राम के पास सूचना पहुँचाना चाहती थीं। उन्होंने अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकने शुरू कर दिए ताकि राम को उसका पता चल जाए। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। उसे लगा कि सीता दुखी होकर ऐसा कर रही हैं।

कुछ समय में रावण लंका पहुँच गया। वह सीधा अंत:पुर गया। वह अपने धन वैभव से सीता को प्रभावित करना चाहता था। उसने सीता से कहा-मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी? ‘सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रही और राम का गुणगान करती रही। उसने रावण को चेतावनी भरे स्वर में कहा। ‘राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ, जिसके तेज के आगे कोई ठहर नहीं सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए बेकार है। राम के हाथों तेरा संहार निश्चित है। सीता बार-बार धिक्कारती रहीं और राम का गुणगान करती रहीं। राम का गुणगान सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेज दिया ताकि वे राम-लक्ष्मण पर निगरानी रख सकें। इधर रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उसने अनेक प्रयत्न किए पर सीता का मन नहीं बदला। वह रो-रोकर दिन काट रही थीं। रावण ने राक्षस-राक्षसियों को आदेश दिया कि सीता को कोई शारीरिक प्रताड़ना मत देना उसके मन को ठेस पहुँचाओ, अपमानित करो। रावण ने सब किया पर सीता बार-बार राम का नाम लेती रहीं।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 41
कुलांचे भरना – बहुत तेज़ दौड़ना। छकाया – थकाना। प्रयास – प्रयत्न, कोशिश। निशाना साधा – निशाना लगाया। प्राण-पखेरू उड़ना – मर जाना, मृत्यु होना। निशक्त – कामचोर। मंशा – इरादा, इच्छा।

पृष्ठ संख्या 43
रहस्य – राज, गुप्त बात। चौकसी – सावधानी। चूक – गलती। विचलित – बेचैन। आश्वस्त करना – विश्वास दिलाना। हितैषी – हित चाहने वाला। कलुषित – गंदा, अपवित्र । गुप्तचर – जासूस। आघात – दुख, चोट। पलटकर – मुड़कर। बौखलाना – क्रोधित होना। पीड़ा – तकलीफ।

पृष्ठ संख्या 45
विछोह – वियोग। साहस – हिम्मत। सुमुखी – सुंदर मुखवाली। क्रोधित – गुस्से में। ताकतवर। सर्वनाश – पूरी बर्बादी। प्रयास – कोशिश। असहाय – बेबस। विलाप करना – रोने-पीटने लगना। महाबलशाली – बहुत ताकतवर। वृद्ध – बूढ़ा। क्षतविक्षत – घायल।

पृष्ठ संख्या 46
आभूषण – जेवर। शोक – दुख। निर्णय – फैसला। दृष्टि – नज़र। अर्थहीन – बेकार। बलिष्ठ – ताकतवर। स्पष्ट – साफ़। निर्देश – आदेश।

पृष्ठ संख्या 47
सहमी – डरी हुई।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दंडक वन में दस वर्ष

These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 6 दंडक वन में दस वर्ष are prepared by our highly skilled subject experts.

Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 6 Question Answers Summary दंडक वन में दस वर्ष

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 6

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दंडक वन में राम-लक्ष्मण ने किसकी सहायता की?
उत्तर:
दंडक वन में राम-लक्ष्मण ने ऋषि मुनियों की सहायता की।

प्रश्न 2.
विंध्याचल पर्वत पार करने वाले सबसे पहले मुनि कौन थे?
उत्तर:
विंध्याचल पार करने वाले सबसे पहले मुनि अगस्त्य मुनि थे।

प्रश्न 3.
शूर्पणखा कौन थी?
उत्तर:
शूर्पणखा रावण की बहन थी।

प्रश्न 4.
नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा किसके पास गई?
उत्तर:
नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा खर-दूषण के पास आई।

प्रश्न 5.
चित्रकूट अयोध्या से कितनी दूर था?
उत्तर:
चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था।

प्रश्न 6.
दंडक वन कैसा था?
उत्तर:
वन पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों से परिपूर्ण दंडकारण्य एक घना वन था, जहाँ मायावी राक्षस उपद्रव मचाते रहते थे।

प्रश्न 7.
राम चित्रकूट से दूर क्यों जाना चाहते थे?
उत्तर:
चित्रकट में अयोध्या से लोगों का आना-जाना लगा रहता था। वे राम से राय माँगते थे। राम इससे बचने के लिए चित्रकूट से दूर जाना चाहते थे।

प्रश्न 8.
जटायु कौन था? राम-लक्ष्मण से वह कहाँ मिला?
उत्तर:
जटायु एक विशालकाय गिद्ध था। वह राजा दशरथ का मित्र था। राम-लक्ष्मण से उसकी भेंट पंचवटी के मार्ग में हुई।

प्रश्न 9.
गोदावरी नदी के तट पर राम ने अपनी कुटिया के लिए किस स्थान को चुना?
उत्तर:
राम ने अपनी कुटिया के लिए पंचवटी नामक स्थान को चुना। वनवास का शेष समय वहीं बिताया।

प्रश्न 10.
पंचवटी में लक्ष्मण ने कैसी कुटिया बनाई ?
उत्तर:
पंचवटी में लक्ष्मण ने बाँस के खंभों, कुश और पत्तों के छप्पर तथा मिट्टी की दीवारों से एक बहुत सुंदर कुटिया बनाई।

प्रश्न 11.
मारीच ने रावण को क्या समझाया?
उत्तर:
मारीच ने रावण को राम की शक्ति के विषय में बताया तथा सीता-हरण से रोका। उसने रावण को समझाया कि ऐसा करना विनाश को निमंत्रण देना है।

प्रश्न 12.
सीता-हरण का सुझाव रावण को किसने दिया?
उत्तर:
सीता-हरण का सुझाव अकंपन नामक राक्षस ने दिया।

प्रश्न 13.
मारीच ने किसका रूप धारण कर लिया?
उत्तर:
मायावी मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 14.
स्वर्ण-हिरण देख सीता ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
स्वर्ण-हिरण पर सीता जी मुग्ध हो गईं तथा उन्होंने उसे पकड़ने को कहा।

प्रश्न 15.
राम ने लक्ष्मण को क्या आदेश दिया?
उत्तर:
राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया तथा कहा कि मेरे लौटने तक तुम उन्हें अकेला मत छोड़ना।

प्रश्न 16.
शूर्पणखा ने अपना परिचय किस रूप में दिया?
उत्तर:
शूर्पणखा ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह रावण और कुंभकर्ण की बहन है और अविवाहित है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राक्षसों के प्रति सीता और राम के विचारों में क्या भिन्नता थी?
उत्तर:
राक्षसों के प्रति राम का यह मत था कि राक्षसों का अंत कर देना चाहिए ताकि वे देवताओं का अनिष्ठ न करें। वे अपनी मायावी शक्ति से ऋषि-मुनियों को भी कष्ट पहुँचाते हैं। दूसरी ओर सीता का यह मत था कि राम बिना वजह राक्षसों का वध न करें क्योंकि उन्होंने कोई अहित नहीं किया।

प्रश्न 2.
लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान क्यों काट दिए थे?
उत्तर:
शूर्पणखा राम को देखकर उन पर मोहित हो गई थी। वह राम से विवाह करना चाहती थी। उसने माया से सुंदर स्त्री का रूप बना लिया और राम के पास चली गई। राम ने सीता की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह मेरी पत्नी है। मेरा विवाह हो चुका है। राम के मना करने पर वह लक्ष्मण के पास गई। लक्ष्मण ने यह कहकर मना किया मैं राम का दास हूँ। तब शूर्पणखा ने क्रोध में आकर सीता पर झपट्टा मारा। उसने सोचा राम इसी के कारण उससे विवाह नहीं कर रहे हैं। लक्ष्मण तत्काल उठ खड़े हुए और तलवार खींचकर शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए। शूर्पणखा खून से लथपथ रोती-बिलखती अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँच गई।

प्रश्न 3.
रावण सीता हरण के लिए क्यों तैयार हो गया था?
उत्तर:
जब राम पंचवटी पहुँचे तो उन्होंने वहाँ अनेक राक्षसों का संहार कर दिया था। एक बार खर-दूषण ने अपनी पूरी सेना के साथ आक्रमण कर दिया। राम-लक्ष्मण और राक्षसों की सेना के साथ घमासान युद्ध हुआ। अंत में राम की विजय हुई। कुछ राक्षस बचकर भाग निकले। उनमें अकंपन भी था। वह रावण के पास गया और उससे कहा कि राम को मारने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। इससे उनके प्राण स्वयं ही निकल जाएंगे। इससे रावण सीता-हरण के लिए तैयार हो गया।

प्रश्न 4.
अकंपन कौन था? उसने रावण को क्या बताया?
उत्तर:
अकंपन खर-दूषण की सेना का एक राक्षस था। राम के साथ युद्ध में जान बचाकर वह भाग आया था। वह सीधे रावण के पास पहुँचकर उसे युद्ध का सारा हाल सुनाया। उसने रावण से यह भी कहा कि राम कुशल योद्धा हैं। उनके पास विलक्षण शक्तियाँ हैं। उन्हें कोई नहीं मार सकता। उनको मारने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। इससे उनके प्राण ही निकल जाएँगे।

प्रश्न 5.
शूर्पणखा रावण के पास क्यों गई?
उत्तर:
शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा अपने अपमान से दुखी थी। उसने रावण को धिक्कारते हुए उसकी शक्ति को ललकारा और उससे कहा कि उसके शक्ति का क्या फायदा, यदि उसके होते हुए उसकी बहन की यह दुर्गति हो रही है। अपने साथ हुए अपमान का बदला लेने के लिए उकसाने के उद्देश्य से वह रावण के पास गई।

प्रश्न 6.
रावण ने सीता-हरण के लिए क्या योजना बनाई?
उत्तर:
रावण ने सीता हरण के लिए मारीच की सहायता लेने का निश्चय किया। उसने डरा-धमकाकर मारीच को इसके लिए तैयार कर लिया। इसके बाद रथ पर बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुंच गए। राम की कुटी के समीप जाकर मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया तथा कुटी के आस-पास घूमने लगा। सीता उस सुंदर हिरण पर मुग्ध हो गई और राम से उसे पकड़कर लाने के लिए कहा। राम उसे पकड़ने के लिए बहुत दूर निकल गए।

प्रश्न 7.
शंका होते हुए भी राम हिरण के पीछे क्यों गए?
उत्तर:
दस वर्षों तक वन में रहते हुए भी सीता ने राम से कभी कुछ नहीं माँगा। इसलिए हिरण का संदेह होते हुए भी सीता की इच्छा पूर्ति के लिए राम उसके पीछे गए।

प्रश्न 8.
पंचवटी के मार्ग में राम को कौन मिला? उसने राम से क्या कहा?
उत्तर:
पंचवटी के मार्ग में राम को एक विशालकाय गिद्ध मिला। जिसका नाम जटायु था। सीता उसे देखकर डर गई तथा लक्ष्मण ने मायावी समझा। वे धनुष उठा ही रहे थे कि जटायु ने कहा-हे राजन। मुझसे मत डरो। मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में तुम्हारी सहायता करूँगा। जब आप दोनों बाहर जाएँगे तब मैं सीता की रक्षा करूँगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शूर्पणखा सीता पर क्यों झपटी? उसका क्या परिणाम रहा?
उत्तर:
राम तथा लक्ष्मण ने शूर्पणखा से विवाह करने से जब मनाकर दिया तो वह काफ़ी क्रोधित हो गई। उसने सोचा कि सीता के होते राम विवाह नहीं कर पा रहे हैं। क्रोध में आकर उसने सीता पर झपट्टा मारा। यह देखकर लक्ष्मण ने अपनी तलवार निकाली और उसके नाक-कान काट दिए। खून से लथपथ शूर्पणखा अपने सौतेले भाई खर-दूषण के पास भाग आई।

प्रश्न 2.
शूर्पणखा कौन थी? उसने रावण को सीता हरण के लिए कैसे उकसाया?
उत्तर:
शूर्पणखा रावण की बहन थी। वह राम से विवाह करना चाहती थी। वह राम को देखकर उन पर आसक्त हो गई थी। वह उन्हें पाना चाहती थी। राम और लक्ष्मण द्वारा विवाह के लिए मना करने के कारण उसने क्रोधित होकर सीता के ऊपर आक्रमण कर दिया। इस पर लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। शूर्पणखा अपने सौतेले भाईयों खर-दूषण के पास गई और खर-दूषण के पराजित होने के बाद वह सीधे रावण के पास गई और रावण के बल-पौरुष को ललकारा, फिर उसने रावण से सीता के रूप की प्रशंसा करते हुए कहा कि सीता को लंका में होना चाहिए। शूर्पणखा सीता को रावण के लिए ही लाना चाहती थी, पर क्रोधित लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिए। इस तरह वह अपनी बातों को रखकर उसने रावण को उकसाया।

प्रश्न 3.
सीता-हरण का फैसला एक बार छोड़कर रावण ने फिर सीता-हरण का निश्चय क्यों किया?
उत्तर:
एक बार मारीच के कहने पर रावण ने सीता-हरण का विचार छोड़ दिया। इस बीच शूर्पणखा लंका पहुँची। वह चीखते चिल्लाते और विलाप करते हुए रावण को लक्ष्मण द्वारा नाक-कान काटने की घटना की जानकारी दी। उसने रावण को धिक्कारते हुए कहा कि तुम्हारे महाबली होने का क्या लाभ। तुम्हारे रहते यह दुर्गति। तुम किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रह गए। उसने राम-लक्ष्मण की शक्ति की प्रशंसा की। सीता को उसने अतिसुंदर बताया और कहा कि वह तुम्हारे महलों में ही रहने के लायक है। मैं उसे तुम्हारे लिए लाना चाहती थी लेकिन लक्ष्मण ने क्रोध में मेरे नाक और कान काट दिए। शूर्पणखा से यह सुन रावण ने एक बार फिर सीता-हरण का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 4.
मारीच ने राम को आकर्षित करने के लिए क्या किया? मायावी हिरण की आवाज़ को सुनकर लक्ष्मण राम की खोज में क्यों निकल पड़े?
उत्तर:
मारीच, राम को आकर्षित करने के लिए सोने के हिरण का रूप बनाकर कुटी के आसपास घूमने लगा। मायावी हिरण की आवाज़ सुनकर लक्ष्मण और चौकस हो गए। राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए उन्होंने बाण चढ़ाकर धनुष को मज़बूती से पकड़ लिया, पर उस आवाज़ को सुनकर सीता विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण को राम की मदद के लिए जाने को कहा। लक्ष्मण ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि राम का कोई कुछ हानि नहीं कर सकता। आप किसी प्रकार की चिंता न कीजिए, पर सीता संतुष्ट नहीं हुईं। अंत में उनके दबाव के कारण विवश होकर लक्ष्मण न चाहते हुए राम की खोज में निकल पड़े।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
सीता बिना बात के राक्षसों के वध के पक्ष में नहीं थीं जबकि राम राक्षसों के विनाश को ठीक समझते थे। तुम किससे सहमत हो? राम से या सीता से? कारण बताते हुए उत्तर दो।
उत्तर:
दृष्ट के साथ दुष्टता का परिचय देना आवश्यक है। मैं राक्षसों के विनाश के लिए राम के तर्क को सही मानता हैं। अगर साधारण एवं संत प्रकृति के व्यक्ति को दुष्ट कमज़ोर मानते हैं, वे प्रेम की बात को अनसुना करते हैं और हमेशा अन्याय तथा आतंक के मार्ग पर चलते हैं। अतः राम का तर्क राक्षसों के विनाश के लिए मैं सही मानता हूँ।

प्रश्न 2.
जंगल में तथा दंडक वन में आपने राक्षसों द्वारा मुनियों को परेशान करने की बात पढ़ी। क्या यह संभव नहीं था कि राक्षस एवं ऋषि मुनि दोनों प्रेम से रह सकते थे? कारण बताते हुए उत्तर दीजिए।
उत्तर:
राक्षस एवं मुनि दोनों के तौर तरीके एवं प्रवृत्ति में भिन्नता है। राक्षस हिंसा प्रवृत्ति के लोग होते हैं जबकि संत सामान्य कल्याणकारी तथा अहिंसा प्रकृति के। राक्षस नास्तिक होते हैं जबकि ऋषि और मुनि आस्तिक। अत: उपर्युक्त कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि दोनों शांतिपूर्वक इकट्ठे नहीं रह सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. चित्रकूट अयोध्या से कितनी दूरी पर था?
2. राम, लक्ष्मण और सीता चित्रकूट से कहाँ गए?
3. राम ने चित्रकूट प्रस्थान क्यों किया?
4. दंडकारण्य के मुनियों ने राम से क्या आग्रह किया?
5. सबसे पहले विंध्याचल पार करने वाले ऋषि का क्या नाम था?
6. रावण मारीच के पास क्यों गया?
7. राम चित्रकूट से दूर क्यों जाना चाहते थे?
8. जटायु कौन था? राम-लक्ष्मण से वह कहाँ मिला?
9. पंचवटी में लक्ष्मण ने कैसी कुटिया बनाई?
10. मारीच ने रावण को क्या समझाया?
11. रावण ने मारीच से क्या कहा?
12. राम की कुटी के समीप आकर मरीच ने क्या किया?
13. राम ने लक्ष्मण को क्या आदेश दिया?
14. रावण किसको अपने साथ लेकर पंचवटी पहुँचा?
15. पंचवटी के मार्ग में राम को कौन मिला? उसने राम से क्या कहा?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अकंपन कौन था? उसने रावण से क्या कहा?
2. शूर्पणखा रावण के पास क्यों गई?
3. चित्रकूट से निकलकर राम कहाँ रुके? वहाँ के मुनि प्रसन्न क्यों हुए?
4. शूर्पणखा सीता पर क्यों झपटी? उसका परिणाम क्या रहा?
5. रावण मारीच के पास क्यों गया? मारीच ने रावण का आदेश क्यों माना?
6. शूर्पणखा कौन थी? उसने रावण को सीता हरण के लिए कैसे उकसाया?
7. मारीच ने राम को भ्रमित करने के लिए क्या किया? संदेह होते हुए भी राम उसके पीछे क्यों चल पड़े?
8. सीता हरण का विचार त्यागकर रावण ने फिर सीता हरण का निश्चय क्यों किया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 6 Summary

भरत अपनी प्रजा तथा सेना के साथ अयोध्या लौट चुके थे। राम पर्णकुटी के बाहर एक शिलाखंड पर बैठे थे। वे किसी सोच-विचार में मग्न थे। चित्रकूट अयोध्या से केवल चार दिन की दूरी पर था। लोगों का आना-जाना लगा रहता था। अयोध्या से लोग वहाँ आते रहते थे। कई कार्यों की राय माँगते थे और कई तरह के प्रश्न करते थे। इसलिए राम चित्रकूट से दूर जाना चाहते थे।

तीनों वनवासी मुनि अत्रि से विदा लेकर दंडक वन की ओर चल पड़े। यह वन घना था। इसमें अनेक तपस्वियों के आश्रम थे। राक्षस भी वहाँ बहत थे। राम को देखकर मुनिगण बहुत प्रसन्न हुए। मुनियों ने राम से कहा कि “आप मायावी राक्षसों से हमारी रक्षा कीजिए। वे राक्षस हमारे आश्रम को अपवित्र करते हैं तथा हमारी तपस्या भंग करते हैं।” सीता राक्षसों का अकारण वध करना नहीं चाहती थी। राम लक्ष्मण और सीता दंडकारण्य में दस वर्षों तक रहे। वे स्थान और आश्रम बदलते रहे। वे क्षरभंग मुनि के आश्रम में पहुँचे। मुनि ने राम को राक्षसों के अत्याचार की कहानी बताई और आश्रमवासियों ने राम को हड्डियों का ढेर दिखाया। ये ऋषियों के कंकाल थे जिन्हें राक्षसों ने मार डाला था। मुनि ने राम को अगस्त्य ऋषि से भेंट करने की सलाह दी। मुनि ने राम को गोदावरी नदी के तट पर जाने को कहा। उस स्थान का नाम पंचवटी था। वनवास का शेष समय दो राजकुमारों और सीता ने वहीं बिताया। पंचवटी के मार्ग में राम को जटायु मिला जिसे देखकर सीता डर गई। जटायु ने कहा कि-डरो मत, मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ। वन में मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ‘राम जटायु को प्रणामकर आगे बढ़ गए। पंचवटी में लक्ष्मण ने एक सुंदर कुटिया बनाई। कुटिया ने उस पंचवटी को और सुंदर बना दिया। इस बीच जो भी राक्षस आश्रम पर आक्रमण करते राम उसका संहार कर देते। वन से सभी राक्षसों का अंत हो गया। अब तपस्वी शांति से तप करने लगे।

एक दिन लंका के राजा रावण की बहन शूर्पणखा वहाँ आई। वह राम को देखकर उन पर मोहित हो गई। वह राम के पास जाकर बोली ‘मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूँ। राम ने कहा कि “मैं विवाहित हूँ, ये मेरी पत्नी है।” अब वह लक्ष्मण के पास आई। लक्ष्मण ने उसे पुनः राम के पास भेज दिया। वह कभी राम के पास जाती तो कभी लक्ष्मण के पास। क्रोध में आकर झपट्टा मारा। लक्ष्मण ने तत्काल उठाकर तलवार खींच ली और उसकी नाक काट डाली। खून से लथ-पथ शूर्पणखा रोती हुई अपने भाई खर-दूषण के पास पहुँची। शूर्पणखा की दशा देखकर खर-दूषण ने क्रोध में चौदह राक्षसों को भेजा। राम जानते थे कि राक्षस इस अपमान का बदला लेने ज़रूर आएँगे। अतः उन्होंने सीता को लक्ष्मण के साथ सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। राक्षस राम के सामने टिक नहीं सके। वे सभी मारे गए। इसके बाद खर-दूषण राक्षसों की पूरी सेना लेकर आए। घमासान युद्ध में राम की विजय हुई। खर और दूषण मारे गए तथा शेष राक्षस भाग गए। यह खबर अकंपन नामक राक्षस ने रावण को जाकर दी। उसने बताया कि राम कुशल योद्धा हैं उन्हें कोई नहीं मार सकता। उनको हराने का एक ही उपाय है सीता का अपहरण। रावण सीता के हरण के लिए तैयार हो गया। पर मारीच ने रावण को सीता का हरण न करने के लिए कहा। उसने रावण से कहा-सीता का हरण करना विनाश को आमंत्रण देना है। रावण मारीच की बात मानकर लौट आया। थोड़ी देर में शूर्पणखा रोती बिलखती रावण के पास गई और सारी घटना बताई। वह रावण को धिक्कारते हुए बोली ‘आप महाबली हैं। आपके रहते हुए यह दुर्गति।’ उसने रावण को राम-लक्ष्मण के अत्यंत बलशाली होने तथा सीता को अति सुंदरी बताया।

रावण फिर मारीच के पास गया। इस बार भी उसने सीता का हरण करने से मना किया किंतु इस बार रावण नहीं माना। उसने डाँटकर मारीच को आज्ञा दी कि तुम मेरी मदद करो। विवश होकर उसे रावण की आज्ञा माननी पड़ी। रथ पर बैठकर रावण और मारीच पंचवटी पहुँचे। कुटी के निकट आकर मायावी मारीच ने सोने के हिरण का रूप धारण कर लिया और कुटी के आस पास घूमने लगा। इधर रावण तपस्वी का वेश धारण कर पेड़ की छाया में छिपा था। सीता इस संदर हिरण को देखकर मोहित हो गई और राम से हिरण पकड़ने के लिए कहा। राम को हिरण पर संदेह था। वे सोचने लगे कि वन में सोने का हिरण कहाँ से आएगा पर सीता के आग्रह पर राम उसके पीछे चले गए।

कुटी से निकलते समय राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया। राम की आज्ञा मानकर लक्ष्मण कुटी के बाहर खड़े हो गए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 33
कोलाहल – शोर। पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया। हस्तक्षेप – दखल। विचार मग्न – विचारों में डूबा हुआ। राय – मत, विचार। मायावी – छल-कपट वाला। परिपूर्ण – भरा हुआ। विघ्न – बाधा, रुकावट। दैत्य – राक्षस । संहार – विनाश, मारना। कष्ट – तकलीफ। अपवित्र – गंदा।

पृष्ठ संख्या 35
कंकाल – अस्थि पिंजर, ढाँचा। असंभव – जो संभव न हो। अत्याचार – जुल्म। विशालकाय – लंबे चौड़े शरीर वाला। पुष्पलताएँ – फूलों वाली बेलें। आक्रमण – हमला। सौंदर्य – सुंदरता। विकृत – बिगड़ा हुआ। आसक्त – प्रेम।

पृष्ठ संख्या 36
स्वीकार – मंजूर। अविवाहित – कुँआरी। धाराशायी – धरती पर गिरकर समाप्त होना। लंकाधिपति – रावण।

पृष्ठ संख्या 37
स्वीकारना – मान लेना। परिचय – पहचान। अविवाहित – जिसका विवाह नहीं हुआ है। दास – नौकर। झपट्ट- झपटकर पकड़ने की क्रिया। दशा – हालत। मोह – माया। चकित – आश्चर्य। पिछलग्गू – पीछे-पीछे चलने वाला। विवरण – हाल।

पृष्ठ संख्या 39
अपहरण – अवसर मिलते ही किसी को चुरा ले जाना। पौरुष – बल, शक्ति, पराक्रम। ललकारना – चुनौती देना। महाबली – बहुत बलवान। दुर्गति – बुरी हालत। विनाश – अंत।

पृष्ठ संख्या 40
प्रवास – अपना देश छोड़कर दूसरे देश में जाकर बसना। संदेह – शंका। आग्रह – निवेदन।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 5 Question Answers Summary चित्रकूट में भरत

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुनि वशिष्ठ ने भरत से क्या आग्रह किया?
उत्तर:
मुनि वशिष्ठ ने भरत से आग्रह किया कि आप आयोध्या का राज्य संभालें।

प्रश्न 2.
भरत द्वारा दिए गए किस समाचार को सुनकर राम सन्न रह गए?
उत्तर:
जब भरत ने पिता राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना दी तो यह सुनकर राम सन्न रह गए।

प्रश्न 3.
कैकेयराज ने भरत को किसके साथ विदा किया?
उत्तर:
कैकेयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया।

प्रश्न 4.
मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न ने क्या किया?
उत्तर:
मंथरा की भूमिका का पता चलने पर शत्रुघ्न उसके बाल पकड़कर खींचते हुए भरत के पास ले आए। वह उसे जान से मार देना चाहते थे लेकिन भरत ने उसे बचा लिया।

प्रश्न 5.
भरत ने ननिहाल में क्या सपना देखा था?
उत्तर:
भरत ने सपना देखा-समुद्र सूख गया, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए, एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है और रथ को गधे खींच रहे हैं।

प्रश्न 6.
भरत के अनुसार वन को किसे जाना चाहिए था?
उत्तर:
भरत के अनुसार वन को माता कैकेयी को जाना चाहिए था।

प्रश्न 7.
माता कौशल्या ने आहत अवस्था में भरत से क्या कहा?
उत्तर:
कौशल्या ने कहा पुत्र तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है।

प्रश्न 8.
कौशल्या को कैकेयी की किस बात का दख था?
उत्तर:
कौशल्या को इस बात का दुख था कि कैकेयी ने साम्राज्य हड़पने का जो तरीका अपनाया, वह अनुचित तथा अन्यायपूर्ण था।

प्रश्न 9.
राम ने लक्ष्मण को क्या समझाया?
उत्तर:
राम ने लक्ष्मण को समझाया कि वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। हमें समय का इंतजार करना चाहिए। व्यग्र होना बहादुरों के लिए ठीक नहीं होता।

प्रश्न 10.
चित्रकूट में किसका आश्रम था?
उत्तर:
चित्रकूट में महर्षि भारद्वाज का आश्रम था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अयोध्या पहुँचने पर भरत ने क्या महसूस किया?
उत्तर:
अयोध्या पहुँचने पर भरत को अयोध्या असामान्य लगी। वहाँ का माहौल उन्हें बदला-बदला लगा। उन्हें अनिष्ट की आशंका होने लगी। जब उन्होंने सड़कें सूनी होने और बाग-बगीचों में उदासी के माहौल का कारण पूछा, तो उन्हें इसका कोई उत्तर नहीं मिला।

प्रश्न 2.
भरत को रानी कौशल्या ने क्या कहा?
उत्तर:
आहत कौशल्या ने भरत से कहा कि तुम्हारे पिता का निधन हो गया है। अब अयोध्या का राज तुम्हारा है, लेकिन कैकेयी द्वारा राज लेने का अपनाया गया तरीका अनुचित था। राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं।

प्रश्न 3.
भरत ने अपनी माँ को किन शब्दों में धिक्कारा?
उत्तर:
भरत ने अपनी माँ को धिक्कारते हुए कहा-यह तुमने क्या किया, माते। ऐसा अनर्थ। घोर अपराध। अपराधिनी हो तुम। वन तम्हें जाना चाहिए था राम को नहीं। “तुमने पाप किया है माते। इतना साहस कहाँ से आया तुम्हें ? किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। उल्टा पाठ किसने पढ़ाया? यह अपराध अक्षम्य है।”

प्रश्न 4.
भरत ने सभासदों के सामने अपनी क्या मंशा जताई?
उत्तर:
भरत ने सभासदों के सामने अपनी मंशा जताते हुए कहा-मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ मैं वन में राम के पास जाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।

प्रश्न 5.
भरत वन जाने के लिए क्यों परेशान थे?
उत्तर:
राजा दशरथ की मृत्यु के बाद अयोध्या का सिंहासन खाली था। यह देखकर महर्षि वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को बुलाकर राजकाज संभालने के लिए कहा। भरत ने मुनि का अनुरोध स्वीकार करते हुए राजगद्दी पर राम का अधिकार बताया। राम ही राज्य के सच्चे अधिकारी हैं। राज्य का कार्य भार संभालना भी भरत पाप समझते थे। उन्होंने वन जाने का निश्चय किया ताकि राम को अयोध्या वापस ला सकें।

प्रश्न 6.
विराट सेना को आता देखकर लक्ष्मण को क्या संदेह हआ?
उत्तर:
लक्ष्मण पर्णकुटी के बाहर पहरा दे रहे थे। कोलाहल सुनकर वे वृक्ष पर चढ़ गए। उन्होंने विराट सेना को आते देखा। सेना का ध्वज उनका जाना-पहचाना था। यह अयोध्या की सेना थी। अयोध्या की सेना को अपनी ओर आता देख लक्ष्मण को संदेह हुआ कि भरत उन पर आक्रमण करने आए हैं और जान से मार डालना चाहते हैं।

प्रश्न 7.
पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने क्या देखा और क्या किया?
उत्तर:
पहाड़ी पर पहुँचकर भरत ने देखा कि राम एक शिला पर बैठे हुए थे। पास में ही सीता और लक्ष्मण बैठे थे। भरत दौड़ पड़े। वे राम के चरणों में गिर पड़े। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की।

प्रश्न 8.
महर्षि वशिष्ठ ने जब राम से अयोध्या लौटकर अपना दायित्व निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
महर्षि वशिष्ठ ने राम से कहा कि रघुकुल की परंपरा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राज का अधिकारी होता है। इसलिए तुम अयोध्या लौट चलो और राज-कार्य के दायित्व को संभालो। तब राम ने कहा कि वे पिता की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद वे उनका वचन नहीं तोड़ सकते। उन्होंने यह भी कहा-“चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए, पर मैं पिता के वचनों का पालन करूँगा। मैं उनकी आज्ञा से वन में आया हूँ। अब भरत को ही राजगद्दी संभालनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ननिहाल से अयोध्या लौटकर भरत और कैकेयी के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर:
जब भरत ननिहाल से अयोध्या पहुंचे तो माता कैकेयी से पिता के बारे में पूछा। माता कैकेयी ने पिता के निधन का समाचार दिया। भरत यह सुनकर शोकाकुल होकर विलाप करने लगते हैं। फिर भरत ने माता कैकेयी से पूछा कि क्या पिता ने उनके लिए कोई अंतिम संदेश दिया था। माता ने इनकार किया। कैकेयी तब उन्हें अपने वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए कहती हैं कि उन्होंने ही राम को वन भेजने की प्रार्थना दशरथ से की थी। यह सब उन्होंने भरत के हित के लिए किया था इसलिए वह भरत से अयोध्या का राज संभालने को कहती हैं। तब भरत का क्रोध फूट पड़ा। उन्होंने माता कैकेयी को बहुत बुरा भला कहा। माता ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। उसने जो भी किया वह उसके भलाई के लिए किया। भरत माता को धिक्कारते हुए कहते हैं कि वह राम को मनाकर वापस लाएँगे और उनके दास बनकर रहेंगे। यह कहकर वे काफ़ी उत्तेजित हो गए और चकराकर धरती पर गिर पड़े।

प्रश्न 2.
भरत ने वन जाने का निर्णय क्यों लिया? उनकी चित्रकूट यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
भरत ने राम को वन से मनाकर वापस अयोध्या लाने के लिए वन जाने का निर्णय किया। वह अपने पूरे दल-बल के साथ चित्रकूट की ओर चल दिए। पहले तो निषादराज गुह को सेना देखकर कुछ संदेह हुआ पर सही स्थिति का पता चलते ही उन्होंने भरत की आगवानी की। उन्होंने गंगा पार करने के लिए भरत के लिए 500 नावें जुटा दीं। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ा। मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुँचकर भरत को राम का समाचार मिलता है। आश्रम में ही रात बिताकर सभी अगली सुबह उस पहाड़ी की ओर चल पड़ते हैं। जिस पर राम का पर्णकुटी निवास था। वे शत्रुघ्न के साथ नंगे पैर, पहाड़ी को प्रणाम कर उस पर चढ़ने लगते हैं। भरत की सेना देखकर लक्ष्मण को लगा कि भरत उन्हें मार डालना चाहते हैं। उन्हें सेना का औचित्य समझ नहीं आ रहा था। राम ने लक्ष्मण को समझाया कि शांत रहें। भरत राम के समीप पहुँचकर उनके चरणों में गिर पड़े। भरत पिता के निधन का दुखद समाचार राम को देने में हिचकिचा रहे थे। भरत ने राम से अयोध्या वापस जाकर राजग्रहण करने का अनुरोध किया जिसे राम ने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया।

प्रश्न 3.
राम पिता के सच्चे भक्त थे कैसे? स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
राजा दशरथ व मुनि वशिष्ठ से परामर्श के बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई किंतु कैकेयी द्वारा राजा दशरथ की इच्छा का पता चलते ही राम राज्य का लोभ-मोह छोड़कर पिता का वचन निभाने वन चले गए। वन-गमन को उन्होंने राजाज्ञा नहीं पिताज्ञा मानकर स्वीकार किया। वन में जाकर जब भरत ने उनसे लौटने का आग्रह किया तब भी राम ने यह कहकर उसे अस्वीकार किया कि पिता की आज्ञा का पालन अनिवार्य है। पिता की मृत्यु के बाद भी राम पिता के वचन का पालन करते रहे। राम को मुनि वशिष्ठ द्वारा राज-काज संभालने के लिए कहने पर भी उनका जवाब था कि “चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए परंतु मैं पिता की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता।” इन उपयुक्त आधारों पर हम कह सकते हैं कि राम पिता के सच्चे भक्त थे।

प्रश्न 4.
भरत का त्याग इस पाठ में बहुत बड़ा उदाहरण है। कैसे? पाठ के आधार पर लिखए।
उत्तर:
भरत को आयोध्या के राज्य के प्रति ज़रा भी लोभ नहीं था। उन्होंने राम को सच्चा उतराधिकारी बताते हुए वहाँ का राज्य ठुकरा दिया। दूसरा उदाहरण भरत राम को मनाने माता कैकेयी एवं प्रजाजनों के साथ वन जाते हैं और राम को वापस लाने का प्रयास करते हैं। भरत राम के पास से खाली नहीं लौटते और राम से उनकी चरण पादुका लेकर आते हैं ताकि सिंहासन पर चरण पादुका रखकर उसी की आज्ञानुसार राज्य का कार्य कर सकें। उन्होंने राजा जैसा कोई अभिमान न करते हुए, नंदीग्राम में तपस्वी जैसा जीवन बिताते रहे। इन सब बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भरत के त्याग से बढ़कर कोई उदाहरण नहीं हो सकता है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आप कभी भरत की तरह अपने बड़े भाई या पिता से किसी बात को कहने का साहस जुटा पाने में असमर्थ रहे हैं? अगर हाँ तो कब और क्यों?
उत्तर:
हाँ, मैं अपने दादा जी की मृत्यु की सूचना पाकर भी पिता जी को समाचार देने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर अगर आप किसी आश्रम में गए हों तो वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में हमारे सात प्रमुख महर्षि थे। उनके गोत्र के आधार पर नाम इंटरनेट से या अध्यापक महोदय से पता करके लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना देखा?
2. दशरथ की मृत्यु के समय भरत कहाँ थे?
3. मृत्यु के समय दशरथ के मुख से क्या शब्द निकले?
4. महर्षि भारद्वाज का आश्रम कहाँ स्थित है?
5. भरत की चिंता का क्या कारण था?
6. अयोध्या नगरी को देख भरत के मन में क्या भाव उठे?
7. लक्ष्मण सेना देखकर उत्तेजित क्यों हो गए?
8. भरत को पिता दशरथ की मृत्यु का समाचार किसने दिया और कैसे?
9. राम ने क्या कहकर अयोध्या लौटने से इनकार कर दिया?
10. भरत वन जाने के लिए क्यों व्यग्र थे?
11. भरत के चरित्र से तम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
12. राम ने रहने के लिए कुटिया कहाँ बनाई थी?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ?
2. भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन करो।
3. लक्ष्मण ने अचानक ऐसा क्या देखा कि आपा खो बैठे और आक्रामक मुद्रा में आ गए।
4. राम के अयोध्या लौटने के लिए तैयार न होने पर भरत ने राम से क्या अनुरोध किया?
5. भरत के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary

भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए।

माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा।

इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया।

मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया।

भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 26
सर्वथा – बिलकुल। अनभिज्ञ – जानकारी न होना। चिंतित होना – चिंता होना। मन न लगना – उदास होना। उतावले – आतुर, बेचैन। लाँघना – पार करना। तुमुलनाद – बहुत शोर। कलरव – पक्षियों की आवाजें। अशंका – डर।

पृष्ठ संख्या 27
निधन – मृत्यु। विलाप – रोना। ढाढस – हिम्मत। यशस्वी – यशवान। व्यस्त – काम में लगे होना। व्याकुल – बेचैन, दुखी। भ्राता – भाई। दंड – सजा। अहित – बुरा। निष्कंटक – बिना किसी बाधा के। अनर्थ – गलत। अर्थहीन – बेकार। साहस – हिम्मत। भ्रष्ट – गलत। अक्षम्य – जो क्षमा करने योग्य न हो। सौगंध – कसम।

पृष्ठ संख्या 28
उत्तेजित – जोश में आ जाना। नियंत्रण – काबू। आहत – दुखी। मनोकामना – मन की इच्छा। अनुचित – गलत। निर्मम – कठोर। ग्लानि – अपने ऊपर नफ़रत। व्यक्त – प्रकट। अहित – बुरा। खतरा – डर। दृष्टि – नज़र। लपककर – आगे बढ़कर। आग्रह – विनती।

पृष्ठ संख्या 29
चतुरंगिनी सेना – पैदल सैनिकों, घुडसवारों तथा रथों से सजी सेना। कोलाहल – शोर। खलबली – हल चल मचना। बसेरा – घर। पाँव – पैर। पहरा देना – रखवाली करना, देखभाल करना। विराट – बड़ी। एकछत्र – अकेला।

पृष्ठ संख्या 31
धैर्य – धीरज। उतावलापन – आतुरता, बहुत जल्दी करना। नैसर्गिक – स्वाभाविक, कुदरती। छवि – शक्ल। शिला – चट्टान। दुखद – दुखदायी, दुख देने वाला। अनिवार्य – बहुत आवश्यक। दायित्व – जिम्मेदारी निभाना पालन करना।

पृष्ठ संख्या 32
संयत – स्थिर। शीतल – ठंडा। मर्यादा – इज़्ज़त। विफल – असफल। सुसज्जित – अच्छी प्रकार सजा हुआ। प्रतिहारी – सेवक। पादुकाएँ – खड़ाऊँ। धरोहर – अमानत। गरिमा – सम्मान गौरव। आँच न आने देना – कोई हानि न पहुँचने देना।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण क्या चाहते थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण चाहते थे कि राम अपने बाहुबल से राज्य छीन लें।

प्रश्न 2.
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी किसे धिक्कार रहे थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी राजा दशरथ को धिकार रहे थे।

प्रश्न 3.
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय क्या दिया?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय वल्कल वस्त्र पहनने को दिए।

प्रश्न 4.
रानी कैकेयी ने दशरथ के बारे में सुमंत से क्या कहा?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के बारे में सुमंत से कहा कि वे राम के राज्याभिषेक के उत्साह में सारी रात जागते रहे हैं और बाहर आने से पहले राम से कुछ बात करना चाहते हैं।

प्रश्न 5.
मुनि वशिष्ठ क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर:
सीता को तपस्विनी वेश में देखकर मुनि वशिष्ठ क्रोधित हो गए।

प्रश्न 6.
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने क्या किया?
उत्तर:
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने मुड़कर अपनी भूमि को प्रणाम किया और कहा हे माता मातृभूमि अब चौदह वर्ष बाद ही आपके दर्शन हो सकेंगे।

प्रश्न 7.
श्रृंगवेरपुर गाँव में वे किसके अतिथि बनकर रहे?
उत्तर:
शृंगवेरपुर गाँव में वे निषादराज गुह ने राम का स्वागत किया। वे निषादराज गुह के अतिथि बनकर रहे।

प्रश्न 8.
सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
सीता ने तर्क दिया- “मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।”

प्रश्न 9.
दशरथ ने प्राण कब त्यागे?
उत्तर:
राम के वन गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्यागे।

प्रश्न 10.
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
उत्तर:
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा सई नदी के तट पर समाप्त होती थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महामंत्री सुमंत ने महल में जाकर क्या देखा?
उत्तर:
सुमंत ने महल में जाकर देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। वे बीमार दीन-हीन से लगते थे। अर्धचेतन अवस्था में थे। कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

प्रश्न 2.
राम के निवास का दृश्य कैसा था? सुमंत के वहाँ आगमन पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
राम निवास के सामने काफ़ी भीड़ लगी थी। लक्ष्मण जी भी वहीं मौजूद थे। चारों तरफ काफ़ी चहल-पहल थी। भवन को सजाया गया था। उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। सुमंत के वहाँ पहुँचते ही शोर शराबा काफ़ी बढ़ गया। लोगों ने समझा कि वह राज्याभिषेक के लिए राम को आमंत्रित करने आए हैं। सुमंत ने राम को बताया कि महाराज दशरथ ने उन्हें बुलाया है। दोनों राजकुमार राजसी वस्त्रों में सुसज्जित होकर महाराज दशरथ से मिलने गए। अचानक बुलावे का कारण वे दोनों भाई नहीं समझ पा रहे थे। दरबार में जनता राम की जय जयकार में लगी हुई थी।

प्रश्न 3.
कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
कैकेयी ने राम से कहा कि महाराज दशरथ ने उन्हें एक बार दो वरदान दिए थे। उसने कल रात उनसे दोनों वरदान माँग लिए, अब वे दिए हुए वचन से पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल के रीति के विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। महाराज यह बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।

प्रश्न 4.
राम ने क्या-क्या तर्क देकर सीता को वन जाने से रोकना चाहा? और सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
राम ने सीता को साथ वन न जाने के लिए तर्क देते हुए समझाया कि वन का जीवन बहुत कठिन है। वहाँ न तो रहने का ठिकाना होता है और न ही अच्छा भोजन मिल पाता है। वहाँ कदम-कदम पर कठिनाइयाँ खड़ी होती रहती हैं। आप महलों में पली हैं। अत: आप महल में ही रहिए। सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए तर्क देते हुए कहा कि मुझे पिता जी ने आदेश दिया था कि मैं छाया की भाँति सदा आपके साथ रहूँ। इसलिए मैं आपके साथ वन जाऊँगी।

प्रश्न 5.
राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन करें?
उत्तर:
राम-लक्ष्मण और सीता जब सबसे अनुमति लेकर वन गमन को निकले तो नगरवासी भी उनके रथ के पीछे दौडने लगे। राजा दशरथ और कौशल्या भी उनके पीछे-पीछे गए। उन सबकी आँखों में आँसू थे। पुरुष, महिलाएँ, बूढ़े, जवान, बच्चे उनके पीछे-पीछे मीलों तक नंगे पाँव दौड़ते रहे। यह देखकर राम भावुक हो गए। उन्होंने सुमंत से रथ और तेज़ चलाने को कहा ताकि लोग थककर उनके पीछे-पीछे आना बंद कर दें।

प्रश्न 6.
वन जाने से पूर्व जब राम पिता से आशीर्वाद लेने गए तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
जब राम वन जाने से पहले पिता से आशीर्वाद लेने पहुंचे तब राजा दशरथ ने कहा-‘पुत्र मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बनाकर राजपाट संभालो। यह राज सिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।’

प्रश्न 7.
दीन-भाव दशरथ को देख सुमंत के मन में अनेक शंकाएँ उठीं। कैकेयी ने सुमंत की शंकाओं का निदान कैसे किया?
उत्तर:
सुमंत राजभवन जैसे ही पहुँचे तो उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। यह देखकर सुमंत के मन में शंकाएँ हुईं लेकिन उनके निवारण के लिए कैकेयी ने कहा कि मंत्रीवर, चिंता की कोई बात नहीं है। महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में पूरी रात जगे हैं लेकिन बाहर निकलने से पहले राम से बातचीत करना चाहते हैं। इसके बाद राजा दशरथ ने बहुत ही दीन-भाव से बुलाने की आज्ञा दी। इस तरह सुमंत की शंकाओं का निवारण हुआ।

प्रश्न 8.
राजा दशरथ कैकेयी को मनाने में असफल रहे पर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता कैसे जागी?
उत्तर:
राजा दशरथ कैकेयी को नहीं मना सके पर राम के आने के बाद कैकेयी ने बताया कि महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिये थे। मैंने कल की रात वही दो वरदान माँगे जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल की रीति के बिलकुल विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि भरत का राज्याभिषेक हो और तुम्हें चौदह वर्षों का वनवास।’ राम ने माता की बातों को सुनकर दृढ़ता से कहा कि-‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जायेगी और मैं आज ही वन को चला जाऊँगा।’ राम की ऐसी बात सुनकर कैकेयी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

प्रश्न 9.
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्या वासियों ने उन्हें घेर लिया। उनसे राम, सीता और लक्ष्मण के बारे में अनेक प्रश्न किए। उन्होंने पूछा-महामंत्री, राम कहाँ है? सीता कैसी है? लक्ष्मण कैसे हैं? वे कहाँ रहते हैं ? वे क्या खाते है? उनके उत्तरों से किसी को भी संतोष नहीं हुआ। महाराज दशरथ की बेचैनी बढ़ती गई और राम के वन-गमन के छठे दिन उन्होंने प्राण त्याग दिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या दशा हुई?
उत्तर:
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तो वह अपनी सुध खो बैठी। राम ने उन्हें समझाया और वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या का मन था कि राम को रोक लें, उसे वन में न जाने दें। भले ही राजगद्दी छोड़ दे पर अयोध्या में ही रहें। उसने यह भी कहा-‘पुत्र यह राजाज्ञा अनुचित है। इसे मानने की आवश्यकता नहीं है।’ राम ने नम्रता से उत्तर दिया-“यह राजाज्ञा नहीं पिता की आज्ञा है। आप मुझे आशीर्वाद दें।’ फिर कौशल्या ने स्वयं को संभाला।

प्रश्न 2.
राम के वन जाने का समाचार सुनकर नगर तथा महल में क्या प्रतिक्रिया हुई? उन घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
राम के वन जाने का समाचार तेज़ी से पूरे शहर में आग की तरह फैल गया। नगरवासी दशरथ तथा कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ समय पहले जहाँ काफ़ी खुशी का माहौल था, वहाँ अब उदासी में बदल गया। प्रजा के आँसुओं से सड़कें गीली हो गई थीं। सबकी यह इच्छा थी कि राम और सीता वन न जाएँ। वे उनको रोकना चाहते थे लेकिन बेबस थे। राम-सीता और लक्ष्मण जंगल जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राम के आने पर दशरथ उठकर बैठ गए और उनसे कहा कि वे विवश हैं, परंतु राम पर कोई विवशता नहीं है। वह चाहते थे कि राम उन्हें बंदी बनाकर राजसिंहासन पर अधिकार कर लें। राम यह सुनकर दुखित हो गए। उन्होंने कहा कि उन्हें राज्य का लालच नहीं है तथा पिता से आशीर्वाद माँगा। राम ने पुनः सभी से वन जाने की आज्ञा माँगी और महल से निकल पड़े।

प्रश्न 3.
राम दशरथ के बीच हुए संवाद को लिखिए।
उत्तर:
जब राम-सीता और लक्ष्मण पिता का आशीर्वाद लेने कक्ष में गए। दशरथ उठकर बैठ गए। उन्होंने राम से कहा कि “मैं वचनबद्ध हूँ पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बना लो और राज सम्भालो।” दशरथ ने कहा-“पुत्र, मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। यह राजसिंहासन तुम्हारा है, केवल तुम्हारा।” राम पिता की पीड़ा से दुखी हो गए और उन्होंने दशरथ से कहा, आपकी आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा करने के लिए विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। राम अनुमति लेकर वन को चले गए।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी कल्पना से वन में होने वाली असुविधा का वर्णन करें।
उत्तर:
वन मार्ग में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं। ऊँचा-नीचा, पथरीला मार्ग होता है। मार्ग में बड़े-बड़े पेड़ झाड़ियाँ, जंगली जानवर, जहरीले जीव-जंतु भी होते हैं। धूप के कारण धूल का गरम होना सर्दियों में सर्द हवा, कड़ाके की ठंड होती है। रहने-खाने की परेशानी लगी रहती है। अतः वन का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा रहता है।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने पिता के वचन को निभाते हैं। आप अपने अनुभवों की मदद से बताओ कि क्या पिता को दिया हुआ वचन हमेशा निभाते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. लक्ष्मण ने राजसिंहासन के बारे में राम से क्या कहा?
2. सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
3. शाम होते-होते राम-लक्ष्मण-सीता का रथ कहाँ पहुँच गया?
4. महामंत्री सुमंत असहज क्यों थे?
5. कैकेयी ने राम से राजा दशरथ की असहज स्थिति का क्या कारण बताया?
6. राम ने सीता को अपने साथ चलने की स्वीकृति क्यों दी?
7. राम अपने साथ सीता को वन क्यों नहीं ले जाना चाहते थे?
8. राम के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
9. महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
10. राम के वन-गमन के साथ राजा दशरथ की क्या दशा थी?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राम के वन-गमन का समाचार प्रसारित होने के बाद नगर तथा राजभवन की घटनाओं का वर्णन करें।
2. जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या प्रतिक्रिया हुई?
3. राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन कीजिए।
4. सुमंत का खाली रथ देखकर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। सारी रात राजा दशरथ कैकेयी को समझाते रहे, पर वह अपनी ज़िद पर अडी रही। राजा दशरथ उसे समझाते रहे। पूरे नगर में राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था। महामंत्री सुमंत कुछ परेशान लग रहे थे। वे महर्षि के पास गए। उन्होंने बताया कि पिछली शाम से किसी ने महाराज दशरथ को नहीं देखा। महर्षि ने सुमंत को राजभवन भेजा। वहाँ उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। कैकेयी ने कहा “मंत्रीवर महाराज बाहर निकलने से पहले राम से बात करना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।” दशरथ ने बहुत ही क्षीणस्वर में राम को बुलाने की आज्ञा दी। सुमंत के मन में कई तरह की आशंकाएँ थीं।

राजमहल के बाहर काफ़ी भीड़ थी। भवन को खूब सजाया गया था। सुमंत राम के पास जाकर बोले-“राजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ चलें।” कुछ ही पल में राम-लक्ष्मण वहाँ पहुँच गए। राम समझ नहीं पा रहे थे कि महाराज ने उन्हें अचानक क्यों बुलाया है। सभी लोग समझ रहे थे कि राम राज्याभिषेक के लिए जा रहे हैं इसलिए लोग जय जयकार करने लगे। महल में पहुँचकर राम-लक्ष्मण ने माता-पिता को प्रणाम किया। राम को आया देखकर दशरथ बेसुध हो गए। उनके मुँह से हल्कीसी आवाज आई-‘राम’। आगे वे कुछ न बोल सके। राम ने कैकेयी से पूछा तो उसने बताया कि मैंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए हैं-‘मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।’ उन्होंने दृढ़ता से कहा ‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा, भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा। राम की बातें सुनकर रानी का चेहरा खिल उठा।

कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने अपनी माता को कैकेयी भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय भी बता दिया। यह सुनकर माता कौशल्या सुध-बुध खो बैठीं। लक्ष्मण क्रोध से भर गए, पर राम ने उन्हें शांत किया। राम ने लक्ष्मण से वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या की इच्छा थी कि राम राजगद्दी भले ही छोड़ दें, पर अयोध्या में रहें। राम ने अपनी माता से बताया कि यह राजाज्ञा नहीं यह एक पिता की आज्ञा है। मैं उनकी आज्ञा का पालन करूँगा। आप मुझे आशीर्वाद दें। लक्ष्मण राम की बात से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि राम अपने शक्तिबल से अयोध्या का राजसिंहासन छीन लें और गद्दी पर बैठ जाएँ। इससे असहमति प्रकट करते हुए राम ने कहा कि अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन है वैसा ही वनवास। कौशल्या भी राम के साथ वन जाना चाहती थी, किंतु राम ने उन्हें मना कर दिया और समझाया कि इस समय पिता को सहारे की आवश्यकता है। अंततः कौशल्या ने राम को गले लगाया और आशीर्वाद देते हुए कहा-‘जाओ पुत्र, दसो दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक इंतजार करूंगी।’

कौशल्या भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताकर विदा माँगी। पर सीता ने कहा-‘मेरे पिता का आदेश है कि छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।’ राम को सीता की बात माननी पड़ी। लक्ष्मण वहाँ आ गए। वह भी साथ चलने को तैयार थे। राम के वन जाने का समाचार पूरे शहर में तेजी से फैल गया। नगरवासी राजा दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ देर पहले तक वहाँ उत्सव की तैयारियाँ चल रही थीं अब उदासी ने घेर लिया। लोगों के आँखों में आँसू थे। सभी अयोध्यावासी रामसीता को वन जाने से रोकना चाहते थे। पर वे बेबस थे।

वन जाने की तैयारी होने लगी। राम-सीता और लक्ष्मण वन जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राजा दशरथ बेसुध दर्द से कराह रहे थे। राम के प्रवेश करने पर दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। वे बोले- “पुत्र, मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए मैं विवश हूँ। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा है। पिता के वचनों ने राम को झकझोर दिया। वे बोले मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। इसी बीच कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। तीनों ने तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और राजसी वस्त्र उतार कर रख दिए। सीता को तपस्वनी वस्त्र में देखकर वशिष्ठ मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि-‘अगर सीता वन जाएगी तो अयोध्यावासी उनके साथ जाएँगे।’ राम सबका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़े। आगे-आगे राम पीछे-पीछे सीता और उनके पीछे लक्ष्मण। महल के बाहर सुमंत रथ लेकर खड़े थे। नगरवासी रथ के पीछे-पीछे नंगे पाँव दौड़ रहे थे। रथ तेजगति से चला जा रहा था। राजा दशरथ उसी दिशा में नज़रें गड़ाए रहे। माता कौशल्या भी उनके पीछे गईं। बड़े-बूढ़े, बच्चे सबके आँखों में आँस थे। राम का यह दृश्य देखकर विचलित हो गए। तमसा नदी के तट पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। अगली सुबह दक्षिण दिशा की ओर चले। गोमती नदी पारकर राम-सीता और लक्ष्मण सई नदी के तट पर पहुंचे। यहीं अयोध्या राज्य की सीमा समाप्त होती थी। राम ने मुड़कर जन्मभूमि को प्रणाम किया। शाम होते-होते गंगा के किनारे पहुँच गए। शृंगवेरपुर गाँव में निषादराज गुह ने उनका स्वागत किया। राम ने वहीं रात्रि विश्राम किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत को वापस भेज दिया। सुमंत का खाली रथ देखकर नगरवासियों ने उन्हें घेर लिया। सुमंत बिना कुछ बोले राजभवन चले गए। उन्होंने राजा दशरथ को सारी स्थिति से अवगत करा दिया। दशरथ को उनकी बातों से संतोष नहीं हुआ। राजा दशरथ ने राम के वन-गमन के छठे दिन प्राण त्याग दिए। महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद से चर्चा की और भरत को तत्काल अयोध्या बुलाने का निर्णय किया गया। अयोध्या की घटनाओं के बारे में मौन रहने का निर्देश दिया गया। भरत को अयोध्या की घटनाओं को बताए बिना तत्काल अयोध्या बुलाया गया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 20
प्रतीक्षा – इंतजार। व्यस्तता – काम में लगे रहना। तत्काल – तुरंत। ज़िद – हठ। अड़ी रहना – टिकी रहना। घटनाक्रम – घटनाओं का सिलसिला। ज़िद – हठ। आयोजन – किसी काम के लिए पहले से किया जाने वाला प्रबंध। अनजान – जिसकी जानकारी न हो। क्षीण – कमज़ोर,धीमी। कोलाहल – शोर। संकेत – इशारा।

पृष्ठ संख्या 21
विस्मित – हैरान। पुष्पवर्षा – फूलों की वारिश। राजसी वस्त्र – राजा का वस्त्र। बेसुध – बेहोश। चुप्पी – कुछ न बोलना। वरदान – किसी से मांगी गई चीज। विवरण – हाल। सुध खो देना – होश न रहना, कुछ न समझना। राजाज्ञा – राजा का आदेश। उल्लंघन – इनकार।

पृष्ठ संख्या 22
भाग्यवश – किस्मत के कारण। कायर – डरपोक। आशंका – डर। व्याकुल – बेचैन। स्वीकृति – मंजूरी। प्रतिवाद – विरोध। अंततः – अंत में। पलटना – इनकार करना। धिक्कार – कोसना।

पृष्ठ संख्या 23
बेबस – लाचार। दर्द – पीड़ा। मति – बुद्धि, अकल। वचनवद्ध – वायदे से बँधा हुआ। वल्कल – वृक्ष की छाल। विचलित – व्याकुल, बेचैन। भावुक – भावपूर्ण ।

पृष्ठ संख्या 25
ओझल होना – नज़र न आना। तट – किनारा। मुड़कर – घूमकर। विश्राम – आराम। प्राण त्यागना – मृत्यु हो जाना। वियोग – विछोह। चर्चा – बातचीत। दूत – संदेहवाहक।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 3 दो वरदान

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 3 Question Answers Summary दो वरदान

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 3

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम के विवाह के बाद राजा दशरथ के मन में क्या इच्छा थी?
उत्तर:
राम के विवाह के बाद राजा दशरथ के मन में राम का राज्याभिषेक करने की इच्छा थी।

प्रश्न 2.
राज्याभिषेक की घोषणा के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे?
उत्तर:
राज्याभिषेक की घोषणा के समय भरत और शत्रुघ्न अपने नाना कैकेयराज के यहाँ गए थे।

प्रश्न 3.
राम के किन गुणों से सभी प्रभावित थे?
उत्तर:
राम की विद्वता, विनम्रता तथा पराक्रम से सभी प्रभावित थे।

प्रश्न 4.
मंथरा कौन थी?
उत्तर:
मंथरा रानी कैकेयी की मुँहलगी दासी थी।

प्रश्न 5.
कैकेयी ने दशरथ से कितने वर माँगे थे?
उत्तर:
कैकेयी ने दशरथ से दो वर माँगे थे।

प्रश्न 6.
पहला वरदान क्या था?
उत्तर:
भरत के लिए राजगद्दी।

प्रश्न 7.
दूसरा वरदान क्या था?
उत्तर:
दूसरा वरदान था राम को चौदह वर्ष का वनवास।

प्रश्न 8.
राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर कैकेयी ने क्या किया?
उत्तर:
राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर कैकेयी ने प्रसन्न होकर अपने गले का हार मंथरा को दे दिया।

प्रश्न 9.
कैकेयी कोप भवन में क्यों चली गई?
उत्तर:
मंथरा के भड़काने पर राम के राज्याभिषेक की बात कैकेयी को षड्यंत्र जैसी लगी। इसलिए वह कोपभवन में चली गई।

प्रश्न 10.
वरदान न देने पर कैकेयी ने क्या धमकी दी?
उत्तर:
उसने धमकी दी कि वह विष पीकर आत्महत्या कर लेगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ राम का राज्याभिषेक क्यों करना चाहते थे?
उत्तर:
राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे। उन्होंने राम को साम्राज्य के काम-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे थे। प्रजा भी उन्हें चाहती थी इसलिए राजा दशरथ राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
राम के राज्याभिषेक की खबर सुनकर मंथरा क्यों जलभुन गई?
उत्तर:
मंथरा रानी कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। वह रानी से बहुत अधिक प्रेम करती थी। रानी भी उसे बहुत मानती थी। राम का राज्याभिषेक मंथरा को कैकेयी के विरुद्ध एक षड्यंत्र लगा। इस कारण वह राज्याभिषेक की खबर सुनकर जलभुन गई।

प्रश्न 3.
मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या बात समझाई ?
उत्तर:
मंथरा ने रानी कैकेयी को यह बात कही कि तुम्हारे सुखों का अंत होने वाला है। महाराज दशरथ ने कल सुबह राम का राज याभिषेक करने का निर्णय लिया है। यदि राम राजा बने तो भरत उनके दास हो जाएंगे और उन्हें स्वयं कौशल्या की दासी बनना पड़ेगा। अतः अच्छा यही है कि वह दशरथ से समय रहते दो वचन माँग लें। वही वचन जिसे देने का संकल्प उन्होंने पहले दिया था। पहले वचन में भरत के लिए राजगद्दी तथा दूसरे वचन में राम के लिए 14 वर्ष का वनवास माँगने की सलाह मंथरा ने कैकेयी को दी।

प्रश्न 4.
मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या उपाय बताया?
उत्तर:
मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि वह मैले कपड़े पहनकर कोप भवन में चली जाए। महाराज आएँ तो उनकी ओर मत देखना, बात मत करना। वे तुम्हारा दुख नहीं देख सकेंगे। जब वे मनाने लगें बस उसी समय पिछली बात याद दिलाकर दोनों वचन माँग लेना।

प्रश्न 5.
कैकेयी ने अंतिम हथियार के रूप में राजा दशरथ के ऊपर क्या किया?
उत्तर:
रानी ने राजा दशरथ पर दवाब बनाने के लिए अपना अस्त्र चलाते हुए कहा-“अपने वचन के पीछे हटना रघुकुल की रीति नहीं है। आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। पर तब आप दुनिया को मुँह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे। अगर आप वचन पूरा नहीं करेंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लँगी। यह कलंक आपके माथे रहेगा।”

प्रश्न 6.
कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर दशरथ की क्या दशा हुई?
उत्तर:
कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर महाराज दशरथ हैरान रह गए। उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उन पर मानो वज्रपात हो गया। वे कुछ बोल नहीं पाए। वे मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर बाद होश में आने पर वे कातरभाव से कैकेयी से बोले-“यह तुम क्या कह रही हो। वे बार-बार कैकेयी की माँग अस्वीकार करते रहे। पर कैकेयी अपनी ज़िद पर अड़ी रही। वे दोबारा बेहोश हो गए और रातभर बेसुध पड़े रहे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों लिया?
उत्तर:
राजा दशरथ बूढ़े हो चले थे। उन्होंने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श करके दरबार में कहा-मैंने लंबे समय तक राज-काज चलाया। अब मेरे अंग शिथिल हो गए हैं। राम चारों भाइयों में बड़े हैं। जब से वे सीता स्वयंवर के बाद अयोध्या वापस आए थे। राजा दशरथ ने उन्हें राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया था। राम भी यह जिम्मेदारी अच्छी तरह उठा रहे थे। इसके अतिरिक्त विद्वता, विनम्रता और पराक्रम में वे काफ़ी आगे थे। राज्य की प्रजा उन्हें काफ़ी चाहती थी। दशरथ उन्हें प्यार करते थे। दरबार में राम का काफ़ी सम्मान था। यह सब देखकर राजा दशरथ ने उन्हें युवराज बनाने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
कोप भवन में कैकेयी और राजा दशरथ के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
उत्तर:
जब राजा दशरथ कोप भवन में पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराजा दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है? तुम अस्वस्थ हो राज्य वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि ‘तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ।’ किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। तब कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँगी पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने तुरंत हामी भर दी। उन्होंने राम की सौगंध खाकर वचन पूरा करने को कहा। राजा दशरथ राम की सौगंध ली तो कैकेयी उठकर बैठ गई और बोली “आप मुझे दो वरदान दें जो वर्षों पहले आपने रणभूमि में देने का संकल्प लिया था। मेरा पहला वरदान-भरत को राजगद्दी तथा दूसरा वरदान, राम को चौदह वर्ष का वनवास।” राजा दशरथ यह सुनकर मूर्छित हो गए। होश में आने पर बोले-“यह तुम क्या कह रही हो। मझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।” कैकेयी अपनी बात पर अड़ी रही। उसने धमकी दी-“अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर आत्महत्या कर लूँगी। यह कलंक आपके माथे रहेगा।”

प्रश्न 3.
मंथरा पर कैकेयी की डाँट का असर क्यों नहीं हुआ? उसने कैकेयी से अपनी बात किस तरह मनवा ली?
उत्तर:
मंथरा कैकेयी की दासी थी। उसे कैकेयी से काफ़ी लगाव था। उसके लिए कैकेयी और भरत का हित ही सर्वोपरि था। कैकेयी भी उसे बहुत मानती थी। इसलिए उसे कैकेयी की डाँट का बुरा नहीं लगता था तथा उस पर कोई असर नहीं होता था। उसने अपनी बात मनवाने के लिए कैकेयी को भोली और नादान कहा। उसने कैकेयी से कहा कि तुम्हारे सुखों का अंत होने वाला है। आप कौशल्या के रानी बनते ही तुम दासी बन जाओगी और भरत दास बनकर रह जाएँगे। राम के बाद उसका पुत्र ही अगला राजा होगा। राम का राज्याभिषेक होते ही वे भरत को राज्य से बाहर निकाल देंगे। उसकी ऐसी बातें कैकेयी पर असर कर जाती हैं और वह राजा से अपनी बात मनवा ही लेती है।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आप कभी ऐसी यात्रा पर गए हो जिसमें आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो? अपना अनुभव लिखो।
उत्तर:
हाँ, एक बार हमें भी ऐसी कष्टपूर्ण यात्रा करनी पड़ी। उस दिन दिल्ली बंद थी। स्कूटर-टैक्सियों की हड़ताल थी। मुझे स्टेशन जाना था। अतः मैं घर से पैदल ही चल पड़ा। मुझे स्टेशन तक पहुँचने में तीन घंटे लगे। मेरे पैर सूज गए। मैं थककर चूर हो गया था।

प्रश्न 2.
राम सीता का चित्र बनाकर उसमें रंग भरिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
मान लो कि आपके विद्यालय में राम कथा को नाटक के रूप में खेलने की तैयारी चल रही है। आप इस नाटक में कौन से पात्र की भूमिका अदा करोगे और क्यों?
उत्तर:
मैं नाटक में राम के पात्र की भूमिका अदा करना चाहूँगा। राम एक आदर्श पुरुष थे। उनमें विद्वता, विनम्रता तथा पराक्रम काफ़ी थे। उनके इन गुणों का अनुसरण सभी करना चाहते हैं। अयोध्या की आम जनता भी राम से काफ़ी खुश रहती थी। इसलिए मैं राम के पात्र की भूमिका अदा करना चाहूँगा।

अभ्यास प्रश्न

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. राम के राज्याभिषेक के समय भरत और शत्रुघ्न कहाँ थे?
2. रानी कैकेयी के दो वरदान क्या थे?
3. मंथरा को क्या देखकर अचंभा हुआ?
4. राजा दशरथ की क्या इच्छा थी?
5. मंथरा ने रानी कैकेयी को क्या सलाह दी?
6. मंथरा की विद्रोह भरी बातों से कैकेयी पर क्या असर हुआ?
7. राजा दशरथ राम को ही युवराज क्यों बनाना चाहते थे?
8. उस घटना का वर्णन कीजिए जिससे दशरथ पर वज्रपात-सा हो गया?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक का निर्णय क्यों और किस प्रकार लिया?
2. कैकेयी द्वारा वरदान माँगे जाने पर महाराज दशरथ की क्या दशा हुई?
3. कोप भवन में रानी कैकेयी और राजा दशरथ के बीच क्या वार्तालाप हुआ?
4. कैकेयी ने ऐसा क्या सुना कि उसने अपने गले का हार मंथरा को दे दिया?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 3 Summary

राजा दशरथ बूढे हो चले थे। उनके दिल में राम के राज्याभिषेक की इच्छा बची हई थी। दशरथ के लिए राम प्राणों से भी प्यारे थे। राम की विद्वता, विनम्रता और पराक्रम से सभी प्रभावित थे। सारी प्रजा राम को चाहती थी। राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ से विचार-विमर्श किया और राज-काज राम को सौंपने का निश्चय हुआ। उसके बाद दरबार में राम को राजा बनाने की घोषणा की गई। समस्त सभा ने राजा दशरथ के प्रस्ताव का स्वागत किया। चारों ओर राम की जय-जयकार होने लगी। राजा जनक ने कहा- “शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए। मेरी इच्छा है कि राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कल सुबह कर दी जाएँ।” राजा दशरथ को यह जानकर काफ़ी संतोष हुआ कि प्रजा राम को राजा बनाये जाने से काफी खुश है। यह खबर पूरे नगर में फैल गई और राम के राज याभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं।

उस समय भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में नहीं थे। वे अपने ननिहाल केकयराज के यहाँ गए हए थे। भरत को अयोध्या की घटनाओं की सूचना नहीं थी। उन्हें राज्याभिषेक की भी सूचना नहीं थी। राजा दशरथ ने इस संबंध में राम से चर्चा की। उन्होंने कहा कि”भरत यहाँ नहीं हैं पर मैं चाहता हूँ कि राज्याभिषेक का कार्यक्रम न रोका जाए। प्रजा ने तुम्हें अपना राजा चुना है। तुम राजधर्म का पालन करना।”

राम के राज्याभिषेक की तैयारियाँ कैकेयी की दासी मंथरा भी देख रही थी। मंथरा कैकेयी की मुँहलगी दासी थी। कैकेयी का हित उसके लिए सर्वोपरि था। यह सब देखकर वह जलभुन गई। उसने राजमहल में जाकर कैकेयी को भड़काया कि तेरे ऊपर भयानक विपदा आने वाली है। यह सोने का समय नहीं है। महाराज दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करने का निर्णय लिया है। अब राम युवराज होंगे। यह एक षड्यंत्र है। भरत को जान-बूझकर ननिहाल भेज दिया गया है। समारोह के लिए बुलाया तक नहीं है। कैकेयी ने पहले मंथरा को इस प्रकार के विचारों के लिए डाँटा-फटकारा। जब उसने और भड़काया तो कैकेयी पर मंथरा की बातों का असर होने लगा। उसका सिर चकरा गया। आँखों में आँसू आ गए। उसे प्रसन्नता की जगह क्रोध आने लगा। वह घबड़ाकर मंथरा से बोली तम्हीं बताओ कि मैं क्या करूँ। ‘कैकेयी ने इससे बचाव का उपाय पूछा तो मंथरा ने रानी को याद दिलाया-महाराज दशरथ ने तुम्हें दो वरदान दिए थे। उसने बताया कि ‘एक वरदान के लिए भरत को राज गद्दी तथा दूसरे वरदान के लिए राम को चौदह वर्ष का वनवास माँग लो।’ अब कैकेयी को मंथरा की बात अच्छी लगने लगी। कैकेयी इसके लिए तैयार हो गई। कैकेयी कोप भवन में चली गई। राजा दशरथ वहाँ पहुँचे। वहाँ का दृश्य देखकर वे हैरान रह गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। महाराज दशरथ ने कैकेयी से पूछा कि “तुम्हें क्या दुख है। तुम अस्वस्थ हो राज वैद्य को बुलाया जाए।” पर कोई उत्तर नहीं मिला। कैकेयी रोती रही। दशरथ कैकेयी से बोले कि “तुम मेरी सबसे प्रिय रानी हो। मैं तम्हें प्रसन्न देखना चाहता हूँ।” किंतु कुछ भी उत्तर न मिला। अब राजा दशरथ भूमि पर बैठ गए। विनती करते रहे। कैकेयी ने कहा कि ‘हाँ, मैं बीमार हूँ। मैं अपनी बीमारी के बारे में आपको बताऊँ गी लेकिन पहले आप मुझे एक वचन दें कि जो माँगू उसे पूरा करेंगे।’ राजा दशरथ ने राम की सौगंध खाकर वरदान देने का संकल्प दोहराया। कैकेयी ने मौका देखकर कह दिया कि कल सुबह राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक होना चाहिए और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। यह सुनकर राजा दशरथ का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। वे अवाक रह गए उनका सिर चकराने लगा और मूर्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर में राजा को होश आया। वे बड़े कातर भाव से कैकेयी से बोले-‘यह तुम क्यों कह रही हो। मुझे विश्वास नहीं होता कि मैंने सही सुना है।’ कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी रही। कैकेयी ने स्मरण दिलाया कि अपने वचन से पीछे हटना रघुकुल का अनादर है। अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष खाकर आत्महत्या कर लूंगी। यह कलंक आपके माथे होगा।’ राजा दशरथ यह सुन नहीं सके । वे बेहोश होकर गिर पड़े। बीच-बीच में होश आता रहा। वे रात भर कैकेयी के सामने गिड़गिड़ाते रहे, डराते रहे, धमकाते रहे पर कैकेयी टस-से-मस नहीं हुई। सारी रात इसी प्रकार बीत गई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 14
विचार-विमर्श – सलाह करना। राज्याभिषेक – राज गद्दी पर बैठना। पराक्रम – ताकत। शिथिल – कमज़ोर। तुमुलध्वनि – ज़ोर की आवाज़। पलक झपकते – बहुत जल्दी। निर्णय – फैसला।

पृष्ठ संख्या 15
रौनक – शोभा। अचंभा – हैरानी। सर्वोपरि – सबसे ऊपर। मुँहलगी – बहुत प्रिय। विपत्ति – दुख। अमंगल – अशुभ, अनिष्ट।

पृष्ठ संख्या 16
उग्र – तेज। अगाध – बहुत। सर्वदा – हमेशा। ज्येष्ठ पुत्र – बड़ा बेटा। फटकार – डाँट-डपट । नादान – मासूम। आसन्न – निकट, समीप। संकट – विपत्ति, विपदा। तरस आना – दया आना। दासी – नौकरानी। अनर्थ – बिना अर्थ के। तिरस्कार – उपेक्षा। भाँपना – अनुमान लगाना। कोपभवन –जहाँ क्रोध में रहा जाता है।

पृष्ठ संख्या 17
तुरंत – फौरन। कक्ष – कमरा। प्रयास – कोशिश। बज्रपात – भारी संकट। सौगंध – कसम। भूमि – जमीन। विनती – प्रार्थना। संकल्प – पक्का इरादा। दृश्य – नजारा।

पृष्ठ संख्या 19
अवाक – चुप, स्तब्ध। कातर भाव – व्याकुल नगरों से। अस्वीकार – इनकार। अनादर – तिरस्कार। विष – ज़हर। आत्महत्या – जान देना। कलंक – बदनामी। दोबारा – दूसरी बार।