Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4

पाठाधारित प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण क्या चाहते थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन की बात सुनकर लक्ष्मण चाहते थे कि राम अपने बाहुबल से राज्य छीन लें।

प्रश्न 2.
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी किसे धिक्कार रहे थे?
उत्तर:
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासी राजा दशरथ को धिकार रहे थे।

प्रश्न 3.
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय क्या दिया?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राम, सीता और लक्ष्मण को वन-गमन के समय वल्कल वस्त्र पहनने को दिए।

प्रश्न 4.
रानी कैकेयी ने दशरथ के बारे में सुमंत से क्या कहा?
उत्तर:
रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के बारे में सुमंत से कहा कि वे राम के राज्याभिषेक के उत्साह में सारी रात जागते रहे हैं और बाहर आने से पहले राम से कुछ बात करना चाहते हैं।

प्रश्न 5.
मुनि वशिष्ठ क्यों क्रोधित हो गए?
उत्तर:
सीता को तपस्विनी वेश में देखकर मुनि वशिष्ठ क्रोधित हो गए।

प्रश्न 6.
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने क्या किया?
उत्तर:
अयोध्या की सीमा पर पहुँचकर राम ने मुड़कर अपनी भूमि को प्रणाम किया और कहा हे माता मातृभूमि अब चौदह वर्ष बाद ही आपके दर्शन हो सकेंगे।

प्रश्न 7.
श्रृंगवेरपुर गाँव में वे किसके अतिथि बनकर रहे?
उत्तर:
शृंगवेरपुर गाँव में वे निषादराज गुह ने राम का स्वागत किया। वे निषादराज गुह के अतिथि बनकर रहे।

प्रश्न 8.
सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
सीता ने तर्क दिया- “मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।”

प्रश्न 9.
दशरथ ने प्राण कब त्यागे?
उत्तर:
राम के वन गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्यागे।

प्रश्न 10.
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
उत्तर:
महाराज दशरथ के राज्य की सीमा सई नदी के तट पर समाप्त होती थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महामंत्री सुमंत ने महल में जाकर क्या देखा?
उत्तर:
सुमंत ने महल में जाकर देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। वे बीमार दीन-हीन से लगते थे। अर्धचेतन अवस्था में थे। कुछ बोल नहीं पा रहे थे।

प्रश्न 2.
राम के निवास का दृश्य कैसा था? सुमंत के वहाँ आगमन पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
राम निवास के सामने काफ़ी भीड़ लगी थी। लक्ष्मण जी भी वहीं मौजूद थे। चारों तरफ काफ़ी चहल-पहल थी। भवन को सजाया गया था। उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। सुमंत के वहाँ पहुँचते ही शोर शराबा काफ़ी बढ़ गया। लोगों ने समझा कि वह राज्याभिषेक के लिए राम को आमंत्रित करने आए हैं। सुमंत ने राम को बताया कि महाराज दशरथ ने उन्हें बुलाया है। दोनों राजकुमार राजसी वस्त्रों में सुसज्जित होकर महाराज दशरथ से मिलने गए। अचानक बुलावे का कारण वे दोनों भाई नहीं समझ पा रहे थे। दरबार में जनता राम की जय जयकार में लगी हुई थी।

प्रश्न 3.
कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
कैकेयी ने राम से कहा कि महाराज दशरथ ने उन्हें एक बार दो वरदान दिए थे। उसने कल रात उनसे दोनों वरदान माँग लिए, अब वे दिए हुए वचन से पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल के रीति के विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और राम को चौदह वर्ष का वनवास हो। महाराज यह बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।

प्रश्न 4.
राम ने क्या-क्या तर्क देकर सीता को वन जाने से रोकना चाहा? और सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर:
राम ने सीता को साथ वन न जाने के लिए तर्क देते हुए समझाया कि वन का जीवन बहुत कठिन है। वहाँ न तो रहने का ठिकाना होता है और न ही अच्छा भोजन मिल पाता है। वहाँ कदम-कदम पर कठिनाइयाँ खड़ी होती रहती हैं। आप महलों में पली हैं। अत: आप महल में ही रहिए। सीता ने राम के साथ वन जाने के लिए तर्क देते हुए कहा कि मुझे पिता जी ने आदेश दिया था कि मैं छाया की भाँति सदा आपके साथ रहूँ। इसलिए मैं आपके साथ वन जाऊँगी।

प्रश्न 5.
राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन करें?
उत्तर:
राम-लक्ष्मण और सीता जब सबसे अनुमति लेकर वन गमन को निकले तो नगरवासी भी उनके रथ के पीछे दौडने लगे। राजा दशरथ और कौशल्या भी उनके पीछे-पीछे गए। उन सबकी आँखों में आँसू थे। पुरुष, महिलाएँ, बूढ़े, जवान, बच्चे उनके पीछे-पीछे मीलों तक नंगे पाँव दौड़ते रहे। यह देखकर राम भावुक हो गए। उन्होंने सुमंत से रथ और तेज़ चलाने को कहा ताकि लोग थककर उनके पीछे-पीछे आना बंद कर दें।

प्रश्न 6.
वन जाने से पूर्व जब राम पिता से आशीर्वाद लेने गए तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर:
जब राम वन जाने से पहले पिता से आशीर्वाद लेने पहुंचे तब राजा दशरथ ने कहा-‘पुत्र मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बनाकर राजपाट संभालो। यह राज सिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।’

प्रश्न 7.
दीन-भाव दशरथ को देख सुमंत के मन में अनेक शंकाएँ उठीं। कैकेयी ने सुमंत की शंकाओं का निदान कैसे किया?
उत्तर:
सुमंत राजभवन जैसे ही पहुँचे तो उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। यह देखकर सुमंत के मन में शंकाएँ हुईं लेकिन उनके निवारण के लिए कैकेयी ने कहा कि मंत्रीवर, चिंता की कोई बात नहीं है। महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में पूरी रात जगे हैं लेकिन बाहर निकलने से पहले राम से बातचीत करना चाहते हैं। इसके बाद राजा दशरथ ने बहुत ही दीन-भाव से बुलाने की आज्ञा दी। इस तरह सुमंत की शंकाओं का निवारण हुआ।

प्रश्न 8.
राजा दशरथ कैकेयी को मनाने में असफल रहे पर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता कैसे जागी?
उत्तर:
राजा दशरथ कैकेयी को नहीं मना सके पर राम के आने के बाद कैकेयी ने बताया कि महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिये थे। मैंने कल की रात वही दो वरदान माँगे जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह रघुकुल की रीति के बिलकुल विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि भरत का राज्याभिषेक हो और तुम्हें चौदह वर्षों का वनवास।’ राम ने माता की बातों को सुनकर दृढ़ता से कहा कि-‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जायेगी और मैं आज ही वन को चला जाऊँगा।’ राम की ऐसी बात सुनकर कैकेयी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

प्रश्न 9.
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
सुमंत का खाली रथ अयोध्या पहुँचने पर अयोध्या वासियों ने उन्हें घेर लिया। उनसे राम, सीता और लक्ष्मण के बारे में अनेक प्रश्न किए। उन्होंने पूछा-महामंत्री, राम कहाँ है? सीता कैसी है? लक्ष्मण कैसे हैं? वे कहाँ रहते हैं ? वे क्या खाते है? उनके उत्तरों से किसी को भी संतोष नहीं हुआ। महाराज दशरथ की बेचैनी बढ़ती गई और राम के वन-गमन के छठे दिन उन्होंने प्राण त्याग दिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या दशा हुई?
उत्तर:
जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तो वह अपनी सुध खो बैठी। राम ने उन्हें समझाया और वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या का मन था कि राम को रोक लें, उसे वन में न जाने दें। भले ही राजगद्दी छोड़ दे पर अयोध्या में ही रहें। उसने यह भी कहा-‘पुत्र यह राजाज्ञा अनुचित है। इसे मानने की आवश्यकता नहीं है।’ राम ने नम्रता से उत्तर दिया-“यह राजाज्ञा नहीं पिता की आज्ञा है। आप मुझे आशीर्वाद दें।’ फिर कौशल्या ने स्वयं को संभाला।

प्रश्न 2.
राम के वन जाने का समाचार सुनकर नगर तथा महल में क्या प्रतिक्रिया हुई? उन घटनाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
राम के वन जाने का समाचार तेज़ी से पूरे शहर में आग की तरह फैल गया। नगरवासी दशरथ तथा कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ समय पहले जहाँ काफ़ी खुशी का माहौल था, वहाँ अब उदासी में बदल गया। प्रजा के आँसुओं से सड़कें गीली हो गई थीं। सबकी यह इच्छा थी कि राम और सीता वन न जाएँ। वे उनको रोकना चाहते थे लेकिन बेबस थे। राम-सीता और लक्ष्मण जंगल जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राम के आने पर दशरथ उठकर बैठ गए और उनसे कहा कि वे विवश हैं, परंतु राम पर कोई विवशता नहीं है। वह चाहते थे कि राम उन्हें बंदी बनाकर राजसिंहासन पर अधिकार कर लें। राम यह सुनकर दुखित हो गए। उन्होंने कहा कि उन्हें राज्य का लालच नहीं है तथा पिता से आशीर्वाद माँगा। राम ने पुनः सभी से वन जाने की आज्ञा माँगी और महल से निकल पड़े।

प्रश्न 3.
राम दशरथ के बीच हुए संवाद को लिखिए।
उत्तर:
जब राम-सीता और लक्ष्मण पिता का आशीर्वाद लेने कक्ष में गए। दशरथ उठकर बैठ गए। उन्होंने राम से कहा कि “मैं वचनबद्ध हूँ पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बना लो और राज सम्भालो।” दशरथ ने कहा-“पुत्र, मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। यह राजसिंहासन तुम्हारा है, केवल तुम्हारा।” राम पिता की पीड़ा से दुखी हो गए और उन्होंने दशरथ से कहा, आपकी आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा करने के लिए विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। राम अनुमति लेकर वन को चले गए।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी कल्पना से वन में होने वाली असुविधा का वर्णन करें।
उत्तर:
वन मार्ग में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ होती हैं। ऊँचा-नीचा, पथरीला मार्ग होता है। मार्ग में बड़े-बड़े पेड़ झाड़ियाँ, जंगली जानवर, जहरीले जीव-जंतु भी होते हैं। धूप के कारण धूल का गरम होना सर्दियों में सर्द हवा, कड़ाके की ठंड होती है। रहने-खाने की परेशानी लगी रहती है। अतः वन का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा रहता है।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने पिता के वचन को निभाते हैं। आप अपने अनुभवों की मदद से बताओ कि क्या पिता को दिया हुआ वचन हमेशा निभाते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. लक्ष्मण ने राजसिंहासन के बारे में राम से क्या कहा?
2. सीता ने जंगल जाने के लिए क्या तर्क दिया?
3. शाम होते-होते राम-लक्ष्मण-सीता का रथ कहाँ पहुँच गया?
4. महामंत्री सुमंत असहज क्यों थे?
5. कैकेयी ने राम से राजा दशरथ की असहज स्थिति का क्या कारण बताया?
6. राम ने सीता को अपने साथ चलने की स्वीकृति क्यों दी?
7. राम अपने साथ सीता को वन क्यों नहीं ले जाना चाहते थे?
8. राम के चरित्र से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
9. महाराज दशरथ के राज्य की सीमा कहाँ समाप्त होती थी?
10. राम के वन-गमन के साथ राजा दशरथ की क्या दशा थी?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. राम के वन-गमन का समाचार प्रसारित होने के बाद नगर तथा राजभवन की घटनाओं का वर्णन करें।
2. जब राम ने अपनी माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का समाचार सुनाया तब कौशल्या की क्या प्रतिक्रिया हुई?
3. राम के वन-गमन के दृश्य का वर्णन कीजिए।
4. सुमंत का खाली रथ देखकर अयोध्यावासियों की क्या प्रतिक्रिया हुई?

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary

कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। सारी रात राजा दशरथ कैकेयी को समझाते रहे, पर वह अपनी ज़िद पर अडी रही। राजा दशरथ उसे समझाते रहे। पूरे नगर में राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था। महामंत्री सुमंत कुछ परेशान लग रहे थे। वे महर्षि के पास गए। उन्होंने बताया कि पिछली शाम से किसी ने महाराज दशरथ को नहीं देखा। महर्षि ने सुमंत को राजभवन भेजा। वहाँ उन्होंने देखा कि महाराज दशरथ पलंग पर पड़े हैं। कैकेयी ने कहा “मंत्रीवर महाराज बाहर निकलने से पहले राम से बात करना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।” दशरथ ने बहुत ही क्षीणस्वर में राम को बुलाने की आज्ञा दी। सुमंत के मन में कई तरह की आशंकाएँ थीं।

राजमहल के बाहर काफ़ी भीड़ थी। भवन को खूब सजाया गया था। सुमंत राम के पास जाकर बोले-“राजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ चलें।” कुछ ही पल में राम-लक्ष्मण वहाँ पहुँच गए। राम समझ नहीं पा रहे थे कि महाराज ने उन्हें अचानक क्यों बुलाया है। सभी लोग समझ रहे थे कि राम राज्याभिषेक के लिए जा रहे हैं इसलिए लोग जय जयकार करने लगे। महल में पहुँचकर राम-लक्ष्मण ने माता-पिता को प्रणाम किया। राम को आया देखकर दशरथ बेसुध हो गए। उनके मुँह से हल्कीसी आवाज आई-‘राम’। आगे वे कुछ न बोल सके। राम ने कैकेयी से पूछा तो उसने बताया कि मैंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान मांग लिए हैं-‘मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष के लिए वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे हैं।’ उन्होंने दृढ़ता से कहा ‘पिता का वचन अवश्य पूरा होगा, भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा। राम की बातें सुनकर रानी का चेहरा खिल उठा।

कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने अपनी माता को कैकेयी भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय भी बता दिया। यह सुनकर माता कौशल्या सुध-बुध खो बैठीं। लक्ष्मण क्रोध से भर गए, पर राम ने उन्हें शांत किया। राम ने लक्ष्मण से वन जाने की तैयारी करने को कहा। कौशल्या की इच्छा थी कि राम राजगद्दी भले ही छोड़ दें, पर अयोध्या में रहें। राम ने अपनी माता से बताया कि यह राजाज्ञा नहीं यह एक पिता की आज्ञा है। मैं उनकी आज्ञा का पालन करूँगा। आप मुझे आशीर्वाद दें। लक्ष्मण राम की बात से सहमत नहीं थे। वे चाहते थे कि राम अपने शक्तिबल से अयोध्या का राजसिंहासन छीन लें और गद्दी पर बैठ जाएँ। इससे असहमति प्रकट करते हुए राम ने कहा कि अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन है वैसा ही वनवास। कौशल्या भी राम के साथ वन जाना चाहती थी, किंतु राम ने उन्हें मना कर दिया और समझाया कि इस समय पिता को सहारे की आवश्यकता है। अंततः कौशल्या ने राम को गले लगाया और आशीर्वाद देते हुए कहा-‘जाओ पुत्र, दसो दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक इंतजार करूंगी।’

कौशल्या भवन से निकलकर राम सीता के पास गए। सारा हाल बताकर विदा माँगी। पर सीता ने कहा-‘मेरे पिता का आदेश है कि छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।’ राम को सीता की बात माननी पड़ी। लक्ष्मण वहाँ आ गए। वह भी साथ चलने को तैयार थे। राम के वन जाने का समाचार पूरे शहर में तेजी से फैल गया। नगरवासी राजा दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। कुछ देर पहले तक वहाँ उत्सव की तैयारियाँ चल रही थीं अब उदासी ने घेर लिया। लोगों के आँखों में आँसू थे। सभी अयोध्यावासी रामसीता को वन जाने से रोकना चाहते थे। पर वे बेबस थे।

वन जाने की तैयारी होने लगी। राम-सीता और लक्ष्मण वन जाने से पहले पिता का आशीर्वाद लेने गए। राजा दशरथ बेसुध दर्द से कराह रहे थे। राम के प्रवेश करने पर दशरथ में जीवन का संचार हुआ। वे उठकर बैठ गए। वे बोले- “पुत्र, मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए मैं विवश हूँ। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो। यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा है। पिता के वचनों ने राम को झकझोर दिया। वे बोले मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। इसी बीच कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए। तीनों ने तपस्वियों के वस्त्र पहन लिए और राजसी वस्त्र उतार कर रख दिए। सीता को तपस्वनी वस्त्र में देखकर वशिष्ठ मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि-‘अगर सीता वन जाएगी तो अयोध्यावासी उनके साथ जाएँगे।’ राम सबका आशीर्वाद लेकर आगे बढ़े। आगे-आगे राम पीछे-पीछे सीता और उनके पीछे लक्ष्मण। महल के बाहर सुमंत रथ लेकर खड़े थे। नगरवासी रथ के पीछे-पीछे नंगे पाँव दौड़ रहे थे। रथ तेजगति से चला जा रहा था। राजा दशरथ उसी दिशा में नज़रें गड़ाए रहे। माता कौशल्या भी उनके पीछे गईं। बड़े-बूढ़े, बच्चे सबके आँखों में आँस थे। राम का यह दृश्य देखकर विचलित हो गए। तमसा नदी के तट पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। अगली सुबह दक्षिण दिशा की ओर चले। गोमती नदी पारकर राम-सीता और लक्ष्मण सई नदी के तट पर पहुंचे। यहीं अयोध्या राज्य की सीमा समाप्त होती थी। राम ने मुड़कर जन्मभूमि को प्रणाम किया। शाम होते-होते गंगा के किनारे पहुँच गए। शृंगवेरपुर गाँव में निषादराज गुह ने उनका स्वागत किया। राम ने वहीं रात्रि विश्राम किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत को वापस भेज दिया। सुमंत का खाली रथ देखकर नगरवासियों ने उन्हें घेर लिया। सुमंत बिना कुछ बोले राजभवन चले गए। उन्होंने राजा दशरथ को सारी स्थिति से अवगत करा दिया। दशरथ को उनकी बातों से संतोष नहीं हुआ। राजा दशरथ ने राम के वन-गमन के छठे दिन प्राण त्याग दिए। महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद से चर्चा की और भरत को तत्काल अयोध्या बुलाने का निर्णय किया गया। अयोध्या की घटनाओं के बारे में मौन रहने का निर्देश दिया गया। भरत को अयोध्या की घटनाओं को बताए बिना तत्काल अयोध्या बुलाया गया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 20
प्रतीक्षा – इंतजार। व्यस्तता – काम में लगे रहना। तत्काल – तुरंत। ज़िद – हठ। अड़ी रहना – टिकी रहना। घटनाक्रम – घटनाओं का सिलसिला। ज़िद – हठ। आयोजन – किसी काम के लिए पहले से किया जाने वाला प्रबंध। अनजान – जिसकी जानकारी न हो। क्षीण – कमज़ोर,धीमी। कोलाहल – शोर। संकेत – इशारा।

पृष्ठ संख्या 21
विस्मित – हैरान। पुष्पवर्षा – फूलों की वारिश। राजसी वस्त्र – राजा का वस्त्र। बेसुध – बेहोश। चुप्पी – कुछ न बोलना। वरदान – किसी से मांगी गई चीज। विवरण – हाल। सुध खो देना – होश न रहना, कुछ न समझना। राजाज्ञा – राजा का आदेश। उल्लंघन – इनकार।

पृष्ठ संख्या 22
भाग्यवश – किस्मत के कारण। कायर – डरपोक। आशंका – डर। व्याकुल – बेचैन। स्वीकृति – मंजूरी। प्रतिवाद – विरोध। अंततः – अंत में। पलटना – इनकार करना। धिक्कार – कोसना।

पृष्ठ संख्या 23
बेबस – लाचार। दर्द – पीड़ा। मति – बुद्धि, अकल। वचनवद्ध – वायदे से बँधा हुआ। वल्कल – वृक्ष की छाल। विचलित – व्याकुल, बेचैन। भावुक – भावपूर्ण ।

पृष्ठ संख्या 25
ओझल होना – नज़र न आना। तट – किनारा। मुड़कर – घूमकर। विश्राम – आराम। प्राण त्यागना – मृत्यु हो जाना। वियोग – विछोह। चर्चा – बातचीत। दूत – संदेहवाहक।