सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 4

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Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary Notes

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary

यह गीत श्रीधर भास्कर वर्णेकर के द्वारा विरचित है। इस गीत में मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गई है। इस गीत के रचयिता श्री वर्णेकर एक राष्ट्रवादी कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का संदेश दिया है। इस गीत में ‘पज्झटिका’ छन्द का प्रयोग है, जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। हिंदी में इसे चौपाई कहा जाता है। कविता का सार इस प्रकार है अरे मनुष्य! तू आगे बढ़ता चल।

तुम्हारे मार्ग में जो चुनौतियाँ हैं, उन्हें पार करता हुआ चलता जा। तुम सदा ही आगे बढ़ते रहो। – चाहे तुम्हारा निवास पर्वत के शिखर पर है, चाहे तुम्हारे मार्ग में काँटे भरे पड़े हैं, परन्तु तुम आगे बढ़ते रहो। तुम बिना साधन पर्वत को भी पार कर जाओ। तुम्हारा बल ही तुम्हारा साधन है।

तुम्हारे मार्ग में तीक्ष्ण पत्थर होंगे। चाहे तुम्हें हिंसक पशु चारों ओर से घेर लें, परन्तु सभी विघ्न बाधाओं को पार करते हुए तुम्हें आगे बढ़ते जाना है। हे मनुष्य, तुम भय का त्याग कर दो और शक्ति का सेवन करो। तुम अपने राष्ट्र से प्रेम करो। अपने ध्येय के विषय में निरन्तर चिन्तन करते रहो। तुम अपने मार्ग पर आगे बढ़ते चलो।

सदैव पुरतो निधेहि चरणम्  Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्॥
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्॥
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो …………॥

अन्वयः-
चल, चल । पुरतः चरणं निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि। ननु निजनिकेतनं गिरिशिखरे (अस्ति)। (अत:) यानं विना एव नगारोहणं (कुरु)। स्वकीयं बलं साधनं भवति। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।

शब्दार्थ-
चल-चलो।
निधेहि-रखो।
ननु-निश्चय से (Surely)
पुरतः-आगे।
गिरिशिखरे-पर्वत की चोटी पर।
चरणम्-कदम, पग।
निकेतनम्-घर।
यानम्-सवारी।
स्वकीयम्-अपना।
साधनम्-माध्यम।
निज०-अपना।
विनैव-बिना ही।
नगारोहणम्-पर्वत पर चढ़ना।
सदैव-हमेशा ही।
बलम्-शक्ति (ताकत) (Power)।

सरलार्थ-
चलो, चलो। आगे चरण रखो। सदा ही आगे कदम रखो। निश्चय ही अपना घर पर्वत की चोटी पर है। अतः सवारी के बिना ही पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल ही साधन होता है। इसलिए सदा कदम आगे बढ़ाओ।

(ख) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………॥

अन्वयः-
पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः (विद्यन्ते)। परितः घोराः हिंस्राः पशवः (सन्ति) । यद्यपि गमनं खलु सुदुष्करम् (अस्ति, तथापि) सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

शब्दार्थ-
पथि-मार्ग में।
विषमाः-विषम।
हिंस्त्राः-हिंसक (Wild)
घोराः- भयानक
गमनम्-गमन (Walk)
सुदुष्करम्-अत्यधिक कठिनाई से सिद्ध होने वाला।
पाषाणाः-पत्थर।
प्रखराः-तीक्ष्ण (नुकीले) (Sharp)
परितः-चारों ओर।
खलु-निश्चय ही।
यद्यपि-हालांकि।

सरलार्थ-
मार्ग में विचित्र से ऊबड़-खाबड़ तथा नुकीले पत्थर हैं। चारों ओर भयंकर व हिंसक पशु हैं। यद्यपि वहाँ जाना निश्चय ही अत्यंत कठिन है, (फिर भी) सदा कदम आगे बढ़ाओ।

(ग) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्॥
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो ………….||

अन्वयः-
भीतिं जहीहि । शक्तिं भज, भज। तथा राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि। ध्येय-स्मरणं सततं कुरु, कुरु। सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

शब्दार्थ-
जहीहि-त्याग करो (छोड़ दो)।
भज-जपो (Utter)
अनुरक्तिम्-प्रेम।
ध्येय-लक्ष्य, उद्देश्य।
भीतिम्-डर को।
विधेहि-करो।
सततम्-निरन्तर।

सरलार्थ-
डर का त्याग करो। शक्ति का सेवन करो। उसी प्रकार राष्ट्र से प्रेम करो और निरन्तर अपने लक्ष्य का स्मरण करो। सदा कदम आगे बढ़ाओ।