सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11

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Class 8 Sanskrit Chapter 11 सावित्री बाई फुले Summary Notes

सावित्री बाई फुले Summary

सावित्री बाई फुले ने आजीवन शोषितों व पिछड़ों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। उनका नारा था- शिक्षा हमारा अधिकार है।’ फुले के समाज में कई समुदाय अत्यधिक लम्बे समय तक इस अधिकार से वञ्चित रहे हैं। उन्हें शिक्षा का, समानता का अधिकार दिलाने के लिए फुले ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11

वञ्चित समुदाय में स्त्रियों की दशा तो और भी दयनीय थी। उनकी शिक्षा के लिए सावित्री फुले को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अन्त तक स्त्रियों के अधिकारों के लिए लड़ती रही। सावित्री फुले स्त्रियों की शिक्षा पर बल देती रहीं।

सावित्री फुले महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका थीं। वह गरीब कन्याओं को शिक्षा देती थीं। इनका जन्म सन् 1831 ई० में हुआ। इसकी माता का नाम लक्ष्मीबाई तथा पिता का नाम खंडोजी था। सावित्री का विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ।
सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11.2

सावित्री फुले ने सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का समर्थन किया। सावित्री फुले ने ‘पूना सेवासदन’ जैसी अनेक संस्थाओं की स्थापना की। सन् 1897 ई० में सावित्री फुले का देहान्त हो गया।

सावित्री बाई फुले Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्टस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गहात पस्तकानि आदाय मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।

शब्दार्थ-
उपरि-ऊपर।
पश्यत-देखो।
इदम्-यह (नपुं.)।
कस्याश्चित्-किसी।
नास्ति-नहीं है।
प्रथमा-प्रथम (स्त्री.)
निर्मितम्-बने हुए।
गृहात्-घर से।
एका-एक (स्त्री.)।
मार्गे-रास्ते में।
आदाय-लेकर।
प्रस्तरखण्डान्-पत्थर के टुकड़ों को।
कश्चित्-कोई।
परम्-परन्तु।
क्षिपति-फेंकता है।
सविनोदम्-मजाक के साथ।
विचलति-विचलित होती है।
सहैव-साथ ही।
आलपन्ती-बात करती हुई।
जानीथ-जानते हो।
केयं-कौन है यह।
संलग्ना-लगी हुई।
नामधेया-नामक।
स्वकीयम्-अपना।
स्वदृढनिश्चयात्-अपने मजबूत संकल्प से।
प्रचलति-चलता है।

सरलार्थ-
ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी पाठशाला का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र की पहली कन्या पाठशाला है। एक अध्यापिका घर से पुस्तकें लेकर चलती है। मार्ग में कोई उसके ऊपर धूल और कोई पत्थर के टुकड़े फेंकता है। परन्तु वह अपने दृढ़ निश्चय से विचलित नहीं होती है। अपने विद्यालय में लड़कियों से हँसी मजाक के साथ बात करती हुई वह पढ़ाने में लगी होती है। उसका अपना अध्ययन भी साथ ही चलता है। कौन है यह महिला? क्या तुम सब इस महिला को जानते हो? यह ही महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले है।

(ख) जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाग्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा-फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबल: समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्साहं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।

शब्दार्थ-
तृतीये दिवसे-तीसरे दिवस (तारीख) में।
नववर्षदेशीया-नौ साल वाली।
नाम्नि-नामक।
ख्रिस्ताब्दे-ईस्वीय वर्ष में।
अजायत-उत्पन्न हुई।
तदानीम्-तब।
अभिहितौ-कहे गए हैं।
यतोहि-क्योंकि।
परिणीता-ब्याही गई (Married)।
अध्ययनाभिलाषा-पढ़ने की इच्छा।
त्रयोदश०-तेरह (Thirteen)।
इतः परम्- इससे भी बढ़कर।
मनसि-मन में।
आंग्ल०-अंग्रेजी भाषा का। उत्सम्-बल।
साग्रहम्-आग्रह के साथ।

सरलार्थ-
3 जनवरी, सन् 1831 में महाराष्ट्र के नायगांव नामक स्थान पर सावित्री का जन्म हुआ। उसकी माता लक्ष्मीबाई तथा पिता खंडोजी नामक हुए हैं। नौ वर्ष की अवस्था में वह ज्योतिबा फुले महोदय के साथ ब्याही गई। उस समय वह भी तेरह वर्ष का ही था। क्योंकि वह स्त्री शिक्षा का प्रबल समर्थक था अतः सावित्री के मन में स्थित पढ़ने की इच्छा को बल प्राप्त हुआ। इससे बढ़कर उसने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन किया।

(ग) 1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणेनगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथम विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।

शब्दार्थ-
कन्यानां कृते-लड़कियों के लिए।
आरभत-प्रारम्भ किया।
पृथक्तया-अलग से (Separate)
सप्तदश०-सत्रह वर्ष की (Seventeen)
तदानीम्-तब।
तिरस्कृतस्य-तिरस्कृत का (Hated)
अस्पृश्यत्वात्-छुआछूत के कारण
प्रारब्धः-आरम्भ किया (Started) (Untouchability)।
अपरः-दूसरा (Other)

सरलार्थ-
1848 ईस्वी सन् में पुणे नगर में सावित्री ने ज्योतिबा महोदय के साथ कन्याओं के लिए प्रदेश के प्रथम विद्यालय को आरम्भ किया। तब वह केवल सत्रह वर्ष की थी। ईस्वी सन् 1851 में छुआछूत के कारण अपमानित समुदाय की बालिकाओं के लिए पृथक् उसके द्वारा दूसरा विद्यालय प्रारम्भ किया गया।

(घ)सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढी सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कृपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासंकर्वन्तः कपात जलोदधरणं अवारयन् । सावित्री एतत् अपमानं सोढं नाशक्नोत् । सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।

शब्दार्थ-
मुखरम्-प्रबलता से (Severe)।
अकरोत्-किया।
निराकरणाय-दूर करने के लिए।
नापितैः-नाई लोगों से (Barbers)
केचन-कुछ।
रूढौ-रिवाज में (Custom)
अत्यजन्-छोड़ दिया (Left)
एकदा-एक बार
यत्-कि।
निकषा-पास (Near)
शीर्णवस्त्रावृताः-फटे पुराने वस्त्रों से ढकी हुई।
निम्नजातीया:-नीच जाति वाली।
नार्यः-नारियाँ (Women)
पातुम्-पीने के लिए।
उपहासम्-मजाक (Fun)
जलोद्धरणम्-जल को निकालना।
अवारयन्-मना करते हैं।
सोढुम्-सहने के लिए।
नाशक्नोत्-नहीं सकी।
नीतवती-ले गई।
दर्शयित्वा-दिखाकर।
यथेष्टम्-इच्छा के अनुसार।
जातिबन्धनम्-जाति का बन्धन (Casteism)।
तया-उसने। सर्वदा-सदा।
सर्वथा-पूर्ण रूप से (Fully)।
समर्थितः-समर्थन किया (Supported)।

सरलार्थ-
सावित्री ने सामाजिक कुरीतियों (समाज में फैले बुरे रिवाजों, परंपराओं) का प्रबल विरोध किया। विधवाओं के शिर को मूंडने की प्रथा को दूर करने के लिए वह साक्षात् नाई लोगों से मिली। (इसके) फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज़ में सहभागिता का त्याग कर दिया। एक बार सावित्री ने मार्ग में देखा कि कुएँ के पास फटे पुराने वस्त्रों में ढकी हुई तथाकथित नीच जाति की कुछ स्त्रियाँ जल पीने के लिए याचना कर रही थीं। उच्च वर्ग वाले उनका मज़ाक उड़ाते हुए कुएँ से जल निकालने के लिए मना कर रहे थे।

सावित्री इस अपमान को सहन न कर सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब को दिखाकर उसने कहा कि (तुम) इच्छा के अनुसार जल ले जाओ। यह तालाब सार्वजनिक है। इससे जल लेने में जाति का बन्धन नहीं है। उसने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का सदा तथा पूर्ण रूप से समर्थन किया।

(ङ) ‘महिला सेवामण्डल”शिशुहत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।

शब्दार्थ –
अवदानम्-योगदान (Contribution)।
संस्थानाम्-संस्थाओं के।
गतिविधिषु-गतिविधियों में।
उत्पीडितानाम्-सताए गए।
प्रतिबन्धक-रोकने वाला।
स्थापनायां-स्थापना में।
उद्देश्यम्-लक्ष्य।
अतीव-अत्यधिक।
जागरणम्-जागरण (जगाना)।

सरलार्थ-
‘महिला सेवामण्डल’ व ‘शिशुहत्या प्रतिबन्ध गृह’ इत्यादि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पति (पति-पत्नी) का योगदान महत्त्वपूर्ण है। सत्य शोधक-मण्डल की गतिविधियों में भी सावित्री अत्यधिक सक्रिय थी। इस मण्डल का उद्देश्य था सताए गए समुदायों का अपने अधिकारों के प्रति जागरण।

(च) सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री-व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे खिस्ताब्दे निधनं गता। साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते ‘काव्यफुले’ ‘सुबोधरत्नाकर’ चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।

शब्दार्थ-
सञ्चालितवती-सञ्चालन किया (चलाया)।
दुर्भिक्ष०-अकाल समय में।
अश्रान्तम्-बिना थके।
अविरतम्-निरन्तर।
प्रयासम्-प्रयत्न।
प्रसार०-फैलना।
निधनम्-मृत्यु को।
महीयते-बढ़-चढ़कर है।
गहन०-गहराई से।
अवबोधाय-समझने के लिए।
अध्येतव्यम्-पढ़ना चाहिए।
प्रशासनकौशलेन-शासन (निर्देशन)
प्लेग-काले-प्लेग (चूहों के द्वारा फैलने की कुशलता से। वाला रोग) के समय में।
उत्थानस्य-उन्नति का।

सरलार्थ-
सावित्री ने अनेक संस्थाओं को प्रशासन कौशल के द्वारा चलाया। अकाल के समय तथा प्लेग (रोग) के समय उसने पीड़ित लोगों की बिना थके निरन्तर सेवा की। सहायता-सामग्री की व्यवस्था के लिए उसने पूर्णरूपेण प्रयत्न किया। महारोग के प्रसार के समय सेवा में लगी हुई वह स्वयं असाध्य रोग से ग्रस्त होकर सन् 1897 में मृत्यु को प्राप्त हो गई। . साहित्य रचना के द्वारा भी सावित्री महान् है। उसके दो काव्यसंकलन हैं-‘काव्य फुले’ तथा ‘सुबोधरत्नाकर’। भारतदेश में महिलाओं की उन्नति को गहराई से समझने के लिए सावित्री महोदया के जीवन चरित का अवश्य अध्ययन करना चाहिए।