Class 12 Hindi Aroh Chapter 7 Summary बादल राग

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बादल राग Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 7

बादल राग कविता का सारांश

बादल राग’ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की ओजपूर्ण कविता है जो उनके सुप्रसिद्ध काव्य-संग्रह अनामिका से संकलित है। निराला जी साम्यवादी चेतना से प्रेरित कवि माने जाते हैं। उन्होंने अपने काव्य में शोषक वर्ग के प्रति घृणा, शोषित वर्ग के प्रति गहन सहानुभूति । और करुणा के भाव अभिव्यक्त किए हैं। इस कविता में कवि ने बादल को क्रांति और विप्लव का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया – है। किसान और जनसामान्य की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं।

बादल पृथ्वी पर मँडरा रहे हैं। वायु रूपी सागर पर इनकी छाया वैसे ही तैर रही है जैसे अस्थिर सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती – है। वे पूँजीपति अर्थात शोषक वर्ग के लिए दुख का कारण हैं। कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहता है कि वे शोषण करनेवालों । के हृदयों पर क्रूर विनाश का कारण बनकर बरसते हैं। उनके भीतर भीषण क्रांति और विनाश की माया भरी हुई है। युद्ध रूपी नौका के – समान बादलों में गरजने-बरसने की आकांक्षा है, उमंग है।

युद्ध के समान उनकी भयंकर नगाड़ों रूपी गर्जना को सुनकर मिट्टी में दबे हुए बीज अंकुरित होने की इच्छा से मस्ती में भरकर सिर उठाने लगते हैं। बादलों के क्रांतिपूर्ण उद्घोष में ही अंकुरों अर्थात निम्न वर्ग । का उद्धार संभव है। इसलिए कवि उनका बार-बार गरजने और बरसने का आह्वान करता है। बादलों के बार-बार बरसने तथा उनकी । बज्र रूपी तेज हुँकार को सुनकर समस्त संसार भयभीत हो जाता है। लोग घनघोर गर्जना से आतंकित हो उठते हैं। बादलों की वन रूपी

हुँकार से उन्नति के शिखर पर पहुँचे सैकड़ों-सैकड़ों वीर पृथ्वी पर गिरकर नष्ट हो जाते हैं। गगन को छूने की प्रतियोगिता रखने वाले लोग अर्थात सुविधाभोगी पूँजीपति वर्ग के लोग नष्ट हो जाते हैं। लेकिन उसी बादल की वज्र रूपी हुँकार से मुक्त विनाशलीला में छोटेछोटे पौधों के समान जनसामान्य वर्ग के लोग प्रसन्नता से भरकर मुसकराते हैं। वे क्रांति रूपी बादलों से नवीन जीवन प्राप्त करते हैं। शस्य-श्यामल हो उठते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे हरे-भरे होकर हिल-हिलकर, खिल-खिलकर हाथ हिलाते हुए अनेक प्रकार के संकेतों से बादलों को बुलाते रहते हैं। क्रांति रूपी स्वरों से छोटे पौधे अर्थात निम्न वर्ग का जनसामान्य ही शोभा प्राप्त करता है। समाज के ऊँचे-ऊँचे भवन महान नहीं होते। वे तो वास्तव में आतंक और भय के निवास होते हैं।

ऊँचे भवनों में रहनेवाले पूँजीपति वर्ग के ऊँचे लोग सदा : भयभीत रहते हैं। जैसे बाढ़ का प्रभाव कीचड़ पर होता है। वैसे ही क्रांति का अधिकांश प्रभाव बुराई रूपी कीचड़ या शोषक वर्ग पर ही – होता है। निम्न वर्ग के प्रतीक छोटे पौधे रोग-शोक में सदा मुसकराते रहते हैं। इन पर क्रांति का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। शोषक वर्ग ने निम्न वर्ग का शोषण करके अपने खजाने भरे हैं लेकिन उन्हें फिर.भी संतोष नहीं आता।

उनकी इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होती लेकिन वे – क्रांति से गर्जना सुनकर अपनी प्रेमिकाओं की गोद में भय से काँपते रहते हैं। कवि क्रांति के दूत बादलों का आह्वान करता है कि वह जर्जर और शक्तिहीन गरीब किसानों व जनसामान्य की रक्षा करें। पूँजीपतियों ने इनका सारा खून निचोड़ लिया है। अब उनका शरीर हाड़ मात्र ही रह गया है। इसलिए कवि ने बादलों को ही क्रांति के द्वारा उन्हें नवजीवन प्रदान करने का आह्वान किया है।

बादल राग कवि परिचय

नाधन परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिंदी साहित्य के छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। छायावाद युगीन कवियों में महाप्राण निराला जी सदैव अनूठे रहे हैं। हिंदी साहित्य में इनकी प्रतिभा निराली है। ये वास्तव में संघर्षशील प्राणी थे। इनका जन्म सन् 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था जो उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के गाँव गठाकोला के रहनेवाले थे।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 7 Summary बादल राग
बाद में आजीविका उपार्जन हेतु मेदिनीपुर में आकर बस गए थे। निराला के तीन वर्ष की अवस्था में ही उनकी माता जी का देहावसान हो गया था। इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली आदि साहित्य का गहन अध्ययन किया था। चौदह वर्ष की आयु में ही इनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया था। इनकी पत्नी अत्यंत सुशील, सुसंस्कृत, सौम्य एवं साहित्य-प्रेमी महिला थीं।

इनकी पत्नी पुत्र रामकृष्ण और पुत्री सरोज को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई थीं। कुछ समय बाद इनके पिता तथा चाचा जी का भी स्वर्गवास हो गया। परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। इनका जीवन अनेक अभावों एवं विपत्तियों से पीड़ित रहा किंतु इन्होंने कभी हार नहीं मानी। इसके बाद इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी की, किंतु कुछ कारणों से वहाँ से त्याग-पत्र देकर चले गए। कुछ समय तक रामकृष्ण मिशन कलकत्ता के पत्र समन्वय का संपादन किया, बाद में ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन करने लगे।

सन 1935 ई० में इनकी पुत्री सरोज का भी निधन हो गया। पुत्री के निधन से निराला जी को गहन शोक हुआ। इसी से प्रेरित हो इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ शोक गीत लिखा। पुत्री के निधन से वे अत्यंत दुखी रहने लगे, फिर बीमार हो गए। धीरे-धीरे इनका शरीर बीमारियों से जर्जर हो गया था और अंत में 15 अक्तूबर, सन् 1961 ई० को इलाहाबाद में ये अपना नश्वर शरीर त्याग कर परलोक सिधार गए थे। निराला जी का व्यक्तित्व निराला था। ये अत्यंत स्वाभिमानी, कर्मठ, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी एवं त्यागी पुरुष थे। वे एक संगीत-प्रेमी साहित्यकार थे। रचनाएँ… निराला जी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने गद्य-पद्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। . उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, सरोज-स्मृति, राम की शक्तिपूजा, राग-विराग, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास-अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
(iii) कहानी-संग्रह-चतुरी चमार, सुकुल की बीवी, लिली सखी।
(iv) रेखाचित्र-कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिह।
(v) निबंध-संग्रह-प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवि कविता कानन।
(vi) जीवनियाँ-ध्रुव भीष्म तथा राणा प्रताप।
(vii) अनुवाद-आनंद पाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी, राधारानी, विषवृक्ष, कृष्णकांत का दिल,

युगलांगुलीय, राजा सिंह, महाभारत आदि। माहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी छायावादी काव्यधारा के आधार स्तंभ हैं। इनके काव्य में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा
प्रयागवादी काव्य की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके व्यक्तित्व के साथ-साथ इनकी लेखनी भी अत्यंत निराली है तथा इनका – साहित्य भी निराला है। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ अनलिखित हैं

(i) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में वैयक्तिकता की सफल अभिव्यक्ति हुई है। ‘अपरा’ की अनेक
कविताओं में इन्होंने अपनी आंतरिक अनुभूतियों तथा व्यक्तिगत सुख-दुख को चित्रण किया है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज स्मृति आदि अनेक कविताओं में इनकी व्यक्तिगत भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति हुई है। ‘सरोज स्मृति’ तो निराला जी के संपूर्ण जीवन का शोक गीत है। वे कहते हैं

दुख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कहीं।

(ii) निराशा, वेदना, दुख एवं करुणा का चित्रण-निराशा, वेदना, दुख एवं करुणा छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं। छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व एवं उपकारक मानते हैं। निराला जी ने वेदना, करुणा एवं दुखवाद को कई प्रकार से चित्रित किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है

दिए हैं मैंने जगत को फूल-फल।
किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;
यह अनश्वर था सकल पल्लवित पल
ठाठ जीवन का वही जो ढह गया है।

(iii) प्रगतिवादी चेतना-निराला जी प्रगतिवादी चेतना से ओत-प्रोत कवि थे। इन्होंने अपने साहित्य में पूँजीपति वर्ग के प्रति आक्रोश ।
एवं दीन-हीन गरीब के प्रति सहानुभूति की भावना व्यक्त की है। कुकुरमुत्ता, वह तोड़ती पत्थर, भिक्षुक आदि ऐसी ही कविताएँ हैं, जिनमें कवि की प्रगतिवादी चेतना के दर्शन होते हैं। ‘भिक्षुक’ कविता में वे एक भिखारी की दयनीय करुण दशा का चित्रण करते हुए कहते हैं

वह आतादो
टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता
पेट-पीठ, दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठीभर दाने को भूख मिटाने को
मुँह-फटी पुरानी झोली को फैलाता
वह आता

(v) विद्रोह की भावना-निराला जी विद्रोही प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। यही विद्रोह इनके काव्य में भी अभिव्यक्त हुआ है। निराला जं.
अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता प्रेमी रहे थे। ये तो आजीवन संघर्ष ही करते रहे। इनकी बादल राग, कुकुरमुत्ता आदि अनेक कविताओं में विद्रोह की भावना अभिव्यक्त हुई है। ‘कुकुरमुत्ता’ में वे पूँजीपति वर्ग के प्रतीक गुलाब के प्रति विद्रोह करते हुए कहते हैं
अबे !
सुन बे, गुलाब
भूल मत गर पाई खुशबू रंगो आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतराता है कैपिटेलिस्ट!

इतना ही नहीं बादल राग में वे क्रांति के प्रतीक बादलों का आह्वान करते हुए कहते हैं

तुझे बुलाता कृषक अधीर
ए विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार॥
हाड़-मात्र ही है आधार
ऐ जीवन के पारावार!

(v) प्रकृति-चित्रण-छायावादी कवियों का प्रकृति से अन्यतम संबंध रहा है। प्रकृति पर चेतना का आरोप तथा मानवीकरण करना
छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है। निराला जी भी इससे अछूते नहीं हैं। इन्होंने भी प्रकृति पर चेतना का आरोप करके प्रकृति का अनूठा चित्रण किया है। बादल राग कविता में प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कवि कहते हैं

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।’

निराला की दृष्टि में बादल प्रपात यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं

तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ-उठकर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?

(vi) देश-प्रेम की भावना-निराला जी के हृदय में देश-प्रेम की उदात्त भावना भरी हुई थी। इनको अपने देश, समाज तथा संस्कृति से गहन प्रेम था। देश के सांस्कृतिक पतन को देखकर निराला जी अत्यंत दुखी हो जाते हैं। इन्होंने स्पष्ट कहा है कि हमारे देश के भाग्य के आकाश को विदेशी शासक रूपी राहू ने ग्रस लिया है। उनकी इच्छा है कि किसी भी तरह देश का भाग्योदय हो जिससे भारत का जन-जन आनंद विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र, राम की शक्ति पूजा आदि ऐसी अनेक कविताओं से निराला जी की देशभक्ति की भावना अभिव्यक्त हुई है। जैसे

सोचो तुम,
उठती है, नग्न तलवार जब स्वतंत्रता की,
कितने ही भावों से
याद दिलाकर दुख दारुण परतंत्रता का
फूंकती स्वतंत्रता निजमंत्र से जब व्याकुल कान
कौन वह समेरू, जो रेणु-रेणु न हो जाए।”

निराला जी भारत की परतंत्रता को मिटाने के लिए भारत के प्रत्येक निवासी को युद्धभूमि में आने के लिए ललकारते हैं। ‘जागो फिर एक बार कविता’ में ऐसी ही ललकार है।
यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से, धन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नवजीवन की; ऊँचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!”

(vii) मानवतावादी जीवन-दर्शन-मानवता एक ऐसी विराट भावना है जिसमें सृष्टि के प्रत्येक प्राणी का हित-चिंतन किया जाता
है। रवींद्रनाथ टैगोर, टॉलस्टाय, महात्मा गांधी आदि महानुभावों ने मानव की वंदना की और इस प्रकार एक नवीन मानवतावादी जीवन-दर्शन का उदय और विकास हुआ। अन्य छायावादी कवियों की भाँति निराला के काव्य में भी इस मानवतावादी जीवन-दर्शन।
की अभिव्यक्ति हुई है। वह तोड़ती पत्थर, बादल राग, भिक्षुक आदि अनेक कविताओं में कवि की इसी भावना के दर्शन होते हैं। __ ‘बादल राग’ कविता में निराला जी कहते हैं

विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है हे, आतंक भवन।”

(viii) रहस्यवादी भावना-छायावाद के अन्य कवियों की भाँति निराला के साहित्य में रहस्यवादी भावना का चित्रण हुआ है। इन्होंने
अपनी इस भावना को जिज्ञासा तथा कौतूहल के रूप में अभिव्यक्त किया है। तुम और मैं, यमुना के प्रति आदि कविताओं में निराला की रहस्य-भावना स्पष्ट झलकती है, जैसे

लहरों पर लहरों का चंचल नाच, याद नहीं था करना इसकी जाँच।
अगर पूछता कोई तो वह कहती, उसी तरह हँसती पागल हँसी होती
जब जीवन की प्रथम उमंग, जा रही मैं मिलने के लिए।”

(ix) नारी के विविध एवं नवीन रूपों का चित्रण-छायावादी कवियों की नारी के प्रति सम्मानजनक भावना है। इन्होंने बदलती।
परिस्थितियों में नारी को विविध रूपों में देखा है। नारी के प्रति इनके हृदय में गहन सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कवि कहीं नारी के दिव्य दर्शन । की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। निराला जी के साहित्य में भी नारी के इन्हीं विविध रूपों का चित्रण हुआ है। इनकी ‘अपरा’ की कई कविताओं में नारी के विविध रूपों का चित्रण मिलता है। वह प्रेयसी भी है और प्रेरणा शक्ति भी है। समस्त प्रकृति उसी का स्वरूप है। ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता में निराला जी एक। नारी के प्रति अपार सहानुभूति प्रकट करते हैं

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर।
वह तोड़ती पत्थर॥

(x) नवीन मुक्तक छंद का प्रयोग-निराला जी मुक्तक छंद के प्रणेता हैं। हिंदी-साहित्य को यह इनकी अद्वितीय देन है। निराला जी ने सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़कर मुक्तक छंद में काव्य-रचना की। निराला के अनुसार मनुष्य की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग होना। निराला जी ने मुक्तक छंद का निर्भयतापूर्वक प्रयोग किया है। इसके बाद साहित्य में इसी छंद का प्रचलन हो गया है। जुही की कली, पंचवटी प्रसंग, छत्रपति शिवाजी का पत्र, । जागो फिर एक बार आदि मुक्तक छंद की प्रसिद्ध कविताएँ हैं।

(xi) भाषा-शैली-निराला जी ने हिंदी-साहित्य को नवीन भाव, नवीन भाषा और नवीन मुक्तक छंद प्रदान किए हैं। इन्होंने अपने बुद्धि-कौशल के बल पर हिंदी को अनेक उपहार भेंट किए हैं। जो प्रखरता और विद्रोह उनके व्यक्तित्व में था वही प्रखरता और विद्रोह उनकी भाषा में भी दृष्टिगोचर होता है। निराला जी ने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है । जिसमें तत्सम, तद्भव, विदेशी आदि भाषाओं के शब्दों का मेल है। कोमल कल्पना के अनुरूप इन्होंने कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया है। कोमलता, संगीतात्मकता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, चित्रात्मकता आदि इनकी भाषा की विशेषताएँ हैं।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 Summary उषा

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उषा Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 6

उषा कविता का सारांश

कवि ने ‘उषा’ कविता में सुबह-सवेरे सूर्य के निकलने से पहले को प्राकृतिक शोभा का सुंदर चित्रण किया है। आकाश का गहरा नीलापन सफ़ेद शंख के समान दिखाई देने लगता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है जैसे किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप-पोत दिया हो जो अभी गीला है। उसका रंग गहरा है। जैसे ही सूर्य कुछ ऊँचा उठता है और उसकी लाली फैलती है तो ऐसे प्रतीत होने लगता है जैसे केसर से युक्त काली सिल को किसी ने धो दिया है या उसपर लाल खड़िया चाक मल दी हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसे शोभा देने लगता है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रहकर अपने गोरेपन की आभा बिखेर रही हो। जब सूर्य पूर्व दिशा में दिखाई देने लगता है तो उसका जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता है।

उषा कवि परिचय

जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका ० अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड 0 के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के एक स्कूल में हुई। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा गोंडा से प्राप्त की। इन्होंने बी० ए० तथा एम० ए० पूर्वाद्ध की उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की। इनकी प्रारंभ से ही चित्रकला में अधिक रुचि थी जिसका प्रयोग इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। इन्होंने दो वर्ष तक सुमित्रानंदन पंत के ‘रूपाभ पत्र’ में कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इसके बाद ये ‘कहानी’ और ‘नया साहित्य’ आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल में रहे। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में कोश से संबंधित कार्य भी करते रहे। तत्पश्चात विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में ‘प्रेमचंद सृजन’ पीठ के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। सन 1977 ई० में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया। इन्हें साहित्य की उत्कृष्टता के लिए ‘कबीर सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया।

अंततः सन 1993 ई० में दिल्ली में ये अपना महान साहित्य-हिंदी जगत को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गए। प्रमुख रचनाएँ-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी साहित्य के एक श्रेष्ठ प्रगतिशील कवि माने जाते हैं। इन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनीचलाई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चुका भी हूँ नहीं मैं, कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुमसे होड़ है मेरी।
(ii) संपादन-उर्दू-हिंदी कोश।।
(iii) निबंध-संग्रह-दोआब।
(iv) कहानी-संग्रह-प्लाट का मोर्चा।

साहित्यिक विशेषताएँ-शमशेर जी हिंदी के सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि हैं। बौद्धिक स्तर पर इन पर मार्क्सवादी विचारों का गहन । प्रभाव है। ये विचारों के स्तर पर प्रगतिशील तथा शिल्प के स्तर पर प्रयोगधर्मी कवि हैं। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

(i) गरीबी का सजीव चित्रण-शमशेर जी ने अपने काव्य में समाज में फैली गरीबी का सजीव चित्रण किया है। गरीबी के कारण समाज की दयनीय दशा के प्रति इन्होंने गहन चिंता व्यक्त की है। गरीबी रूपी दानव ने संपूर्ण समाज को घेर लिया है जिसके कारण जनता बुद्धिहीन हो गई। इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बताया है कि समाज में घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूरों की दुर्दशा त्रासदपूर्ण है। घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूर का पूरा परिवार घर-घर मजदूरी करने पर मजबूर है। कवि ने समाज में बढ़ रही इस त्रासदी पर गहन चिंता व्यक्त की है।

दैन्य दानव; काल
भीषण; कर स्थिति; कंगाल
बुद्धि घर मजूर।
दैन्य दानव, कृर स्थिति।
कंगाल बुद्धि; मजूर घर भर।

(ii) देशभक्ति की भावना-शमशेर हिंदी साहित्य के एक सजग साहित्यकार थे। इनके हृदय में अपने देश के प्रति गहन प्रेम था। इन्होंने अपने काव्य में अपने देश तथा संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। इनकी अनेक कविताएँ भारतीय जनता को स्वतंत्रता के प्रति जागृत करने का आह्वान करती हैं। कवि ने भारतीय जनता को अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकजुट रहने का संदेश दिया है। वे कहते हैं, हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकता की भावना को बनाए रखना चाहिए। इनकी अनेक कविताएँ ऐसे ही भारतीय जनता का आहवान करती प्रतीत होती हैं

एक जनता का-अमर वर
एकता का स्वर।
अन्यथा स्वातंत्र्य इति।

(iii) सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण-शमशेर जी यथार्थवादी भावना से ओत-प्रोत कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने काव्य में |
यथार्थ की भावभूमि का सहारा लेकर वर्णन किया है। यही कारण है कि इनकी कविताओं में समकालीन समाज के जन-जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। इन्होंने समाज की उठा-पटक, ईष्या-द्वेष, ग़रीबी, लाचारी, शोषण आदि की यथार्थ अभिव्यंजना की है। इनका एक यथार्थवादी चित्र द्रष्टव्य है

सींग और नाखून
लोहे के बख्तर कंधों पर।
सीने में सुराख हड्डी का।
आँखों में घास काई की नमी।
एक मुस्दा हाथ
पाँव पर टिका
उलटी कलम थामे
तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है
जड़ों का भी कड़ा जाल
हो चुका पत्थर।

(iv) प्रगतिवादी चेतना-शमशेर जी मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित कवि हैं। इसलिए इनके साहित्य में प्रगतिवादी चेतना का प्रतिपादन भी हुआ है। इनकी अनेक कविताओं पर द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का गहन प्रभाव दिखाई देता है। इन्होंने अपने साहित्य में शोषक | वर्ग की खुलकर निंदा की है तथा शोषित समाज के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। इन्होंने शोषण का शिकार झेल रहे। दीन-हीन समाज के प्रति गहरी संवेदना अभिव्यक्त की है।

(v) प्रकृति चित्रण-शमशेर जी का मन प्रकृति-वर्णन में खूब रमा है। इनका जन्म ही प्रकृति के आँचल में हुआ था। अतः प्रकृति से | इनका बचपन से लगाव था। इन्होंने प्रकृति-सौंदर्य को बहुत नजदीक से देखा है इसीलिए इनके काव्य में प्रकृति-सौंदर्य का अनूठा | चित्रण हुआ है। इन्होंने अनेक कविताओं में प्रकृति में अनेक सुंदर और मनोहारी चित्र बिखरे हैं। चित्रकला में विशेष रुचि होने | के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत सजीव बन पड़े हैं। इन्होंने अनेक कविताओं में बाग-बगीचों, पहाड़ों, झरनों और नदियों के सुंदर-सुंदर बिंब प्रस्तुत किए हैं’उषा’ कविता में कवि ने प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण किया है

प्रातः नभ था-बहुन नीला, शंख जैसे
भोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
बहुत काली सिल
जग से लाल केसर मे
कि जैसे धुल गई हो।
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।

(vi) रहस्यवादी भावना-शमशेर जी एक प्रयोगधर्मी कवि हैं, अतः इन्होंने अपने साहित्य में अनेक नए-नए प्रयोग किए हैं। कहीं-कहीं। इनके ऊपर छायावाद का प्रभाव दिखाई देता है। इनके ‘राग’ नामक संग्रह में इनकी रहस्यवादी भावना का चित्रांकन हुआ है। ‘बात बोलेगी’ कविता के माध्यम से इन्होंने वस्तुनिष्ठ सत्य की वकालत की है तथा सत्य क्या है; दुःख क्या है; विडंबना क्या है आदि अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी किया है। जैसे

बात बोलेगी;
हम नहीं।
भेद खोलेगी
बात ही।
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या-देखें
सत्य का रुख;
समय का रुख है:
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख।

(vii) भाषा-शैली-शमशेर जी कविताएँ जहाँ एक ओर अत्यंत बोधगम्य तथा सरल हैं तो दूसरी ओर नितांत जटिल भी हैं। कवि पर। उर्दू शायरी का भी प्रभाव देखा जा सकता है जिसके कारण उन्होंने संज्ञा और विशेषण से अधिक सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों पर बल दिया है। शमशेर जी की प्रवृत्ति सदा ही वस्तुपरकता को उसके मार्मिक रूप में ग्रहण करने की रही है, इसीलिए उनकी काव्य-अनुभूति बिंब ही नहीं बल्कि बिंबलोक की है।

इनके काव्य में प्रगतिवाद, प्रयोगवाद तथा नई कविता के तत्व घुल-मिलकर इनके भाव और भाषा को उजला रूप प्रदान करते हैं। चित्रकला, संगीत और कविता इनकी सर्जनात्मकता को नया रंग देते हैं। इनकी भाषा सरल, सुबोध, साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें तत्सम, तद्भव, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं की। शब्दावली का प्रयोग हुआ है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ चित्रात्मक, वर्णनात्मक शैलियों का प्रयोग भी किया है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है।

(viii) अलंकार, छंद और बिंब-शमशेर जी के काव्य में शब्द और अर्थ दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया गया है। इन्होंने अपनी कविताओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण द्रष्टव्य है

नील जल में या
किसी की गौर, सिलमिल देह जैसे
हिल रही हो।
और —
जादू टूटता है उस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

इन्होंने अपने काव्य के लिए मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनकी बिंब-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है। इनके शब्द-चित्र अत्यंत सजीव हैं।

Nuclei Class 12 Notes Physics Chapter 13

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Nuclei Notes Class 12 Physics Chapter 13

→ Masses of all nuclei are integral multiples of hydrogen mass which suggests that all nuclei are made of hydrogen nuclei.

→ Nuclear mass is different from the mass number.

→ The mass number is the integer closest to the nuclear mass.

→ The packing fraction of a nucleus is closely related to its binding energy per nucleon.

→ Electrons and protons have an almost infinite lifetime.

5626Fe nucleus is the most stable.

→ Neutrino is a particle that has zero charges and zero rest mass.

→ Half-life is different for different substances.

→ 3 stable isotopes of Neon are 2010Ne, 2110Ne, 2210Ne.

→ 1 year = 31.6 × 107 s.

→ Becquerel is the S.I. unit of activity.

→ Radioactivity is independent of temperature and pressure.

→ The velocity of u-particles is less than that of P-particles, so a- particles have more ionizing power than P-particles.

→ B.E./nucleon for light nuclei is much smaller (~ 1 MeV for 21H.)

→ Nuclei with A > 120 are less stable as their B.E./nucleon decreases with increasing A. So such nuclei disintegrate to produce more stable nuclei.

→ The sun radiates 3.92 × 1026 J of energy per second.

→ Cadmium rods are very good absorbers of neutrons.

→ Light nuclei have an equal or nearly equal number of protons and neutrons while in heavy nuclei the number of neutrons is greater than the number of protons.

→ Nuclear fusion is an uncontrolled process while nuclear fission can be controlled as in nuclear reactors.

→ Heavy water is the best moderator among heavy water, graphite, beryllium oxide, etc. commonly used as moderators.

→ The density of matter in the nucleus is 1014 times that of the ordinary matter,

→ The nuclear density is independent of the size of the nucleus,

→ The whole mass and charge of the atom are concentrated in a tiny nucleus.

→ The nuclear force is the fundamental force of nature and it keeps the nucleons together in spite of the repulsive forces among the protons,

→ The typical nuclear binding energy is 8 MeV per nucleon and it is about a million times larger than typical atomic binding energies.

→ Electron and positron are particle-antiparticle pairs.

→ The annihilation of an electron and a positron gives energy in the form of γ-ray. photons.

→ Electron and positron are identical in mass and have equal and opposite charges.

→ A free neutron is unstable but free proton decay is not possible.

→ Inside the nucleus, the proton and neutron are part of the nucleus and share, energy and momentum.

→ γ decay generally follows α or β emission as the nucleus is in the excited state after each α or β decay.

→ The excited nucleus comes to the ground state after γ-decay.

→ Radioactivity is a measure of the instability of the nuclei.

→ Stability requires the ratio of neutrons to protons to be around 1: 1 for light nuclei.

→ β-particles have a continuous energy spectrum while α-particles and γ-rays have a line energy spectrum.

→ The neutron to proton ratio increases to about 3: 2 for heavy nuclei.

→ In β -decay antineutrino (v) is emitted while in β+ decay neutrino (v) is emitted.

→ Neutrinos interact extremely weakly with matter and it is difficult even to detect them.

→ Mass and energy are interconvertible according to the relation, E = mc2.

→ 1 a.m.u. = 1.66 × 10-27 kg = 931 MeV.

→ Chain reactions are of two types:
(a) Controlled chain reaction.
(b) Uncontrolled chain reaction.

→ The atomic bomb is based on an uncontrolled chain reaction.

→ A reactor is based on a controlled chain reaction.

→ The controlled chain reaction is obtained by slowing down the fast neutrons given out in the fission process

→ A moderator should not be gas and have a small mass number.

→ Nuclei having A > 230 undergo nuclear fission by absorbing a slow neutron.

→ 200 MeV energy is liberated due to the fission of one 23592U and is distributed as follows:
(a) 170 MeV as K.E. of fission fragments.
(b) 6 MeV as K.E. of fission neutrons.
(c) 24 MeV as the energy of γ-ray, β-ray, and antineutrinos.

→ The rate of disintegration is independent of temperature, pressure, electric and magnetic field.

→ The energy released in the fusion of 42He atom is much less than that in the fission of one atom of 23592U but the energy released per nucleon in nuclear fusion is much greater than the energy released per nucleon in nuclear fission.

→ For the separation of one fermi, the nuclear force is nearly 35 times the electrical repulsion between two protons.

→ The hydrogen bomb is based upon nuclear fusion.

→ Radioactivity was discovered by Henry Becquerel.

→ All elements with atomic no. > 82 are naturally radioactive.

→ Uranium-lead dating is used to know the age of the earth.

→ Carbon dating is used to estimate the time that has elapsed after the death of a once-living organism.

→ The activity of radioactive material has been shown to be the result of three different kinds of emanations called α, β, and γ-radiations or rays.

→ Radioactivity is one kind of manifestation of instability.

→ Nuclear forces are the strongest attractive force between nucleons.

→ B.E./nucleon is maximum for 5626F and is 8.8 MeV.

→ Radioactivity: It is the spontaneous disintegration of the atoms of heavy elements with the emission of α, β, particles, and γ-rays.

→ Half-Life period: It is defined as the time after which the number of atoms of the radioactive sample left is one-half of that at the start.

→ Mean life: It is the ratio of the sum of life limes of all atoms to the total number of atoms
Or
It is the time after which the no. of nuclei fall to \(\frac{1}{e}\) (= 37 %) times the initial value.

→ The activity of radioactive material: It is defined as the rate of disintegration per second.
i.e., A or R = – \(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) = λ.N.

→ 1 Curie in the older SI unit and = 3.7 × 1010 disintegrations per second (dps)

→ 1 becquerel = 1 DPS.

→ Isotopes: They are the atoms of an element whose nuclei have the same Z but different A.

→ Isobars: They are atoms of different elements having the same A but different Z.

→ Isotones: The atoms of different elements having the same number of neutrons are called isotones.

→ Isomers: They are identical atoms whose nucleons are in different energy states.

→ B.E./nucleon: It is the amount of energy required to extract one nucleon from the nucleus.

→ Radioisotope: It is an element that is made radioactive artificially.

→ 1 a.m.u.: It is defined as \(\frac{1}{12}\)th of the mass of one 126C atom.
∴ 1 a.m. u. = 1.66 × 10-27kg.

→ Moderators: They are the materials used for slowing down the last neutrons.

→ Thermal neutrons: They are the neutrons having energy 0.025 eV.

→ Stellar Energy: It is defined as the energy obtained continuously from the sun and the star.

→ Nuclear Holocaust is the name given to the large-scale destruction and devastation that would be caused by the use of nuclear weapons.

→ Radioisotopes of an element: They are the isotopes of an element capable of emitting radiation just as radioactive elements do.

→ Criticize: The 23592U block is said to be of critical size if the rate of loss of neutrons is equal to the rate of production of neutrons per second.

→ Critical Mass: It is defined as the mass of 23592U blocks of critical size.

Important Formulae

→ A = Z + n where A = mass number, Z = atomic number, n = number of neutrons.

→ Mass defect is given by
Δm = [Zmp + (A – Z) mn – mN (AZχ)]

→ m(AZχ) = mn(AZχ) + ZmN.
where (AZχ) is the mass of the atom, mN (AZχ) is the mass of the nucleus

→ T1/2 = \(\frac{0.693}{\lambda}\)

→ Ta = \(\frac{1}{λ}\) = \(\frac{\mathrm{T}_{1 / 2}}{0.693}\) = 1.44 T1/2
where λ is the decay constant, Ta = average life of the radioactive substance.

→ E = \(\frac{A-4}{A}\)Q, where E is the K.E. of the α-particle.

→ B.E./nucleon = B.E./A

→ Packing fraction = \(\frac{\Delta \mathrm{m}}{\mathrm{A}}\)

→ B.E. = Δm × 931 MeV.

→ \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_{0}}=\left(\frac{1}{2}\right)^{n}=\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{T}_{\frac{1}{2}}}\)

→ Average atomic mass of an atom having isotopes with abundances x1 in and atomic mass y1 is given by
A = \(\frac{\sum_{i=1}^{n} x_{i} \cdot y_{1}}{\sum_{i} x_{i}}=\frac{\sum_{i=1}^{n} x_{i} \cdot y_{i}}{100}\)

→ Nuclear Radius, R = Ro A1/3 , where R0 = 1.1 × 10-15 m.

→ Nuclear density = \(\frac{\text { mass of nucleus }}{\text { Volume of nucleus }}\)
i.e., ρ = \(\frac{\mathrm{m}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}^{3}}=\frac{\mathrm{m}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}_{0}^{3} \mathrm{~A}}\)

→ Q-value of a nuclear reaction is given by
Q = (Σ mass of reactants – Σ mass of products) a.m.u.
= (Σ mass of reactants – Σ mass of products) × 931 MeV

→ P.E. of two charged particles is given by
U = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q_{1} q_{2}}{r}\)

→ Height of Potential barrier = K. E. = U = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q_{1} q_{2}}{r}\)

→ Density of nucleus is, ρ = \(\frac{\text { mass of nucleus }}{\text { Volume of nucleus }}\)

→ Nuclear charge = 2e.

→ α-decay is represented as:
ZAX → Z-2A-4Y+ 42He + Q

→ β-decay is represented as
AZX → Z+1AY + 42He + v + Q

→ 1 MeV = 1.6 ×10-13 .

→ 1 rd = 106 dps where rd (= rutherford) is the unit of activity

→ The ratio of two nuclear radii of two nuclei having mass numlwrs A1 and A2 is given by
\(\frac{\mathrm{R}_{1}}{\mathrm{R}_{2}}=\left(\frac{\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{2}}\right)^{\frac{1}{3}}\)

→ Activity = A = R = \(\frac{\mathrm{d} \mathrm{N}}{\mathrm{dt}}\) = – λN
or
[A] = λN = \(\frac{0.693}{\mathrm{~T}_{\frac{1}{2}}}\) N
i.e. more is the half life of the radioactive substance, lesser is its activity and vice-versa.

→ Number of fissions taking place in 1 second is given by
n = \(\frac{\text { Power }}{\text { energy per fission }}=\frac{P}{Q}\)

→ m = m0 e-λt

→ P = P0 e-λt

→ Mass number, no. of atoms and atomic weights of two isotopes are related as:
M1 = N1A1 and M2 = N2A2
∴ \(\frac{\mathrm{M}_{1}}{\mathrm{M}_{2}}=\left(\frac{\mathrm{N}_{1}}{\mathrm{~N}_{2}}\right) \cdot\left(\frac{\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{2}}\right)\)

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

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सहर्ष स्वीकारा है Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 5

सहर्ष स्वीकारा है  कविता का सारांश

गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। वे लंबी कविताओं के कवि हैं। ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की छोटी कविता है जो छायावादी चेतना से प्रेरित है। इस कविता में कवि ने जीवन में मनुष्य को सुख-दुख, राग-विराग, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान की है। इसके साथ यह कविता उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर संकेत करती हैं जिससे कवि को प्रेरणा प्राप्त हुई है।

कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करके कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, हर्ष-विषाद आदि मिला है उसको मैंने सहर्ष भाव से अंगीकार किया है। इसलिए वह जीवन में सब कुछ उसी सत्ता का दिया हुआ मानता है। गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, भव्य विचार, दृढ़ता हृदय रूपी सरिता सब कुछ उनके जीवन में मौलिक हैं, बनावटी कुछ भी नहीं। इसलिए उन्हें गोचर जगत अदृश्य शक्ति का भाव लगता है।

वे सोचते हैं कि न जाने उस असीम सत्ता से उनका क्या रिश्ता-नाता है कि बार-बार वे उनके प्रति प्रेम रूपी झरने को ख़त्म करना चाहते हैं लेकिन वह बार-बार अपने-आप भर जाता है, जिसे चाहकर भी वे समाप्त नहीं कर सकते। उन्हें रात्रि में धरती पर मुसकुराते चाँद की भाँति अपने ऊपर असीम सत्ता का चेहरा मुसकुराता हुआ दिखता है। कवि बार-बार उस प्रभु से अपनी भूल के लिए दंड चाहते हैं। वे दक्षिण ध्रुव पर स्थित अमावस्या में पूर्ण रूप से डूब जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब प्रभु द्वारा ढका और घिरा हुआ रमणीय प्रकाश सहन नहीं होता। अब उन्हें ममता रूपी बादलों की कोमलता भी हृदय में पीड़ा पहुँचाती है।

उनकी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है। इसलिए होनी को देखकर उनका हृदय छटपटाने लगता है। अब तो स्थिति यह है कि उन्हें दुखों को बहलाने व सहलानेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। कवि वास्तव में उस असीम, विशिष्ट जन से दंड चाहता है। ऐसा दंड जिससे कि वह पाताल लोक की गहन गुफाओं, बिलों और धुएँ के बादलों में बिलकुल खो जाए। लेकिन वहाँ भी उन्हें प्रभु का ही सहारा दिखता है। इसलिए वह अपना सब कुछ उसी सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो कुछ उस सत्ता ने सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, आशा-निराशा आदि प्रदान किए हैं उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करता है।

इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं कि जीवन में मनुष्य को प्रभु प्रदत्त राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि भाव सहर्ष भाव से या निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेने चाहिए।

सहर्ष स्वीकारा है  कवि परिचय
जीवन परिचय-श्री गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के बेजोड़ 0 कवि थे। ये एक संघर्षशील साहित्यकार थे जो आजीवन समाज, इतिहास और स्वयं से संघर्ष करते रहे। इनका जन्म 13 नवंबर, सन् 1917 ई० को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पूर्वज पहले महाराष्ट्र में रहते थे जो बाद में मध्य प्रदेश में आकर रहने लगे। इनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था। वे पुलिस में सिपाही थे।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इनकी माँ बुंदेलखंड के एक किसान की बेटी थी। मुक्तिबोध जी एक विचारक एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। ये शांता नामक लड़की से प्रेम करते थे। बाद में इन्होंने परिवार की मरजी के खिलाफ़ शांता जी से शादी कर ली थी। इस घटना से इनका परिवार के सदस्यों से मतभेद हो गया। मुक्तिबोध की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। ये मिडिल की परीक्षा में एक बार अनुत्तीर्ण हुए लेकिन निरंतर परिश्रम करते हुए सन् 1953 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा पास की। बाद में जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के एक मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए किंतु चार मास के बाद ही यह नौकरी छोड़ दी।

तत्पश्चात शुजालपुर में शारदा शिक्षण सदन में रहे। फिर दौलतगंज मिडिल स्कूल उज्जैन में आ गए। इस प्रकार ० कवि ने आजीविका हेतु कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर (बेंगलुरु), बनारस, जबलपुर, राजनाँद गाँव आदि स्थानों पर कार्य किया। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन 1945 ई० में ‘हँस’ पत्र के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में कार्य किया। 0 सन् 1956 से 1958 तक ‘नया खून’ नामक पत्र के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इस प्रकार मुक्तिबोध जी को जीवन में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। अंत में ये बीमार रहने लगे। ‘मैनिन जाइटिस’ नामक रोग ने इनके शरीर को जकड़ लिया।

उन्हें उपचार के लिए भोपाल और दिल्ली लाया गया किंतु वे स्वस्थ नहीं हुए। अंततः 11 सितंबर सन् 1964 ई० को नई दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-मुक्तिबोध जी एक संघर्षशील साहित्यकार थे। ये बहुमुखी प्रतिभा से ओत-प्रोत रचनाकार थे। जो संघर्ष इनके जीवन में रहा
वही इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चाँद का मुँह टेढ़ा है (सन 1964), भूरी-भूरी खाक धूल (सन 1964)।
(ii) कहानी-संग्रह-काठ का सपना, सतह से उठता आदमी।
(iii) उपन्यास-विपात्र।
(iv) समीक्षात्मक ग्रंथ-कामायनी-एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक डायरी, ० समीक्षा की समस्याएँ, भारत : इतिहास और संस्कृति।

साहित्यिक विशेषताएँ-‘मुक्तिबोध’ के साहित्य में सामाजिक चेतना, लोक-मंगल की भावना तथा जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान ० हैं। इनके काव्य में प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) शोषक वर्ग के प्रति घृणा-मुक्तिबोध जी मार्क्सवादी चिंतन से प्रेरित कवि हैं। इन्होंने समाज के पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा-भाव व्यक्त किए हैं। इनकी अनेक कविताओं में उस व्यवस्था के प्रति गहन आक्रोश अभिव्यक्त किया गया है जो मजदूरों, निर्धनों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। पूँजीवादी समाज के प्रति’ इनकी ऐसी ही कविता है जिसमें प्रगतिवादी भावना दृष्टिगोचर होती है। ये पूँजीवादियों की मनोवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं

तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

कवि शहरी सभ्यता को भी सुविधा भोगी वर्ग की देन मानते हैं। यहाँ एक ओर शोषक समाज की चमक-दमक झूठी शान की जिंदगी है तो दूसरी ओर दीन-हीन मजदूर वर्ग की विवशतापूर्ण जिंदगी। इस दोहरी नागरिकता से परिपूर्ण जीवन पर कवि ने गहन आक्रोश व्यक्त किया है। जैसे

पाउडर में सफ़ेद अथवा गुलाबी
छिपे बड़े-बड़े चेचक के दाग मुझे दीखते हैं
सभ्यता के चेहरे पर।

(ii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने शोषक वर्ग के प्रति गहन आक्रोश तथा शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। कवि समाज के दीन-हीन निर्धन लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त करना चाहता है। इन्होंने अपनी अनेक कविताओं में शोषण के शिकार नारी, शिशु और मजदूरों का सजीव और मार्मिक अंकन किया है। ये शोषित समाज के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं

गिरस्तिन मौन माँ बहनें
उदासी से रंगे गंभीर मुरझाए हुए प्यारे
गऊ चेहरे
निरखकर
पिघल उठता मन।

(iii) समाज का यथार्थ चित्रण-मुक्तिबोध जी भ्रमणशील व्यक्ति थे। अतः इन्होंने समाज को बहुत नजदीकी से देखा। इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ बोध होता है। इनके काव्य में भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यंजना हुई है। कवि ने समकालीन समाज में | फैली विसंगतियों, कुरीतियों, शोषण, अमानवीय मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया है।

ये ‘चाँद का मुंह टेढ़ा’ में समकालीन समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं
आज के अभाव के और कल के उपवास के
व परसों की मृत्यु के
दैन्य के महा अपमान के व क्षोभपूर्ण
भयंकर चिंता के उस पागल यथार्थ का
दीखता पहाड़ स्याह।

(iv) निराशा, वेदना एवं कुंठा का चित्रण-मुक्तिबोध की प्रारंभिक रचनाओं में उनका व्यक्तिगत चित्रण हुआ है। इसी प्रवृत्ति के कारण इनकी अनेक कविताओं में निराशा, वेदना, कुंठा आदि का चित्रण हुआ है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्षरत रहे। इन्हें पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ी। इसी संघर्ष और वेदना के उनके काव्य में दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी वेदना को संत-चित वेदना इसलिए कहा है क्योंकि ये समाज की विसंगतियों, शोषण वेदना को अपने भीतर घटित होते देखते हैं। इन्होंने आजीवन जिस वेदना, कुंठा, दुख, पीड़ा को झेला उसी का सजीव चित्रांकन अपनी कविताओं में किया है

दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं।
चीख निकालना भी मुश्किल है
असंभव
हिलना भी।

‘अँधेरे में मुक्तिबोध का आस्थावादी दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है। इन्होंने निराशा-वेदना के अंधकारमय वातावरण में भी आशा का दीपक जलाए रखा है।

(v) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों की भाँति मुक्तिबोध की अनेक कविताओं में व्यक्तिवादिता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। इनकी वैयक्तिकता व्यक्तिगत होते हुए भी समाजोन्मुख है। ‘तारसप्तक’ में संकलित इनकी अधिकांश कविताएँ इसी छायावादी भावना से ओत-प्रोत हैं। इनकी अनेक कविताएँ छायावादी भावना और प्रगतिशीलता का अनूठा समन्वय लिए हुए हैं।
कहीं-कहीं अकेलेपन की प्रवृत्ति झलकती है लेकिन वह भी समाज से उन्मुख होती दिखाई पड़ती है। कवि ‘चाँद का मुँह टेढ़ा’ में कहते हैं याद रखो कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सब के साथ ही।

(vi) वर्गहीन समाज का चित्रण-मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना से प्रेरित कवि हैं। ये समाज से शोषक वर्ग को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। यही भावना इनकी अनेक कविताओं में प्रकट होती है। जहाँ ये पूँजीपति समाज का साम्राज्य समाप्त करना चाहते हैं। इनकी कविताएँ जन-विरोधी समाज व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील हैं। कवि ने अपने काव्य में शोषण, वर्ग-भेद को मिटाकर एक स्वस्थ एवं वर्गहीन समाज की कल्पना की है। ये वर्तमान समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ वर्तमान समाज चल नहीं सकता।

(vii) भाषा-शैली-मुक्तिबोध की काव्य-कला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इन्होंने मानव-जीवन की जटिल संवेदनाओं और अंतवंवों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए फैटेसियों का कलात्मक उपयोग किया है। मुक्तिबोध सामान्य जन-जीवन में प्रचलित शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग किया है। भाषा की मौलिकता इनकी काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग है तो अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इनकी भाषा पाठक को वास्तविक मर्म सौंपने का कार्य करती है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ आत्मीय व्यंजनात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक, प्रतीकात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं।

(viii) बिंब-विधान-मुक्तिबोध का बिंब-विधान अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनका काव्य अत्यंत समृद्ध है। इनकी संपूर्ण कविताएँ बिंबमयी हैं। इन्होंने सामाजिक यथार्थ, विसंगति, त्रासदी, वेदना आदि के सजीव चित्र उपस्थित किए हैं। इन्होंने अपने काव्य में दृश्य, ध्वनि, स्पर्श, स्थिर, गत्यात्मक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक आदि अनेक बिंबों का सजीव चित्रण किया है।

जैसे
सामने मेरे
सरदी में बोरे को ओढ़ कर
कोई एक अपने
हाथ-पैर समेटे
काँप रहा, हिल रहा-वह मर जाएगा।

(ix) प्रतीक विधान-मुक्तिबोध ने अपने काव्य में प्रतीकों का प्रचुर प्रयोग किया है। इन्होंने अपने काव्य में परंपरावादी प्रतीकों की अपेक्षा नए, जीवंत और सामान्य जन-जीवन के प्रतीकों का प्रयोग किया है। ब्रह्मराक्षस, ओरांग, उटांग, बावड़ी कवि के प्रिय प्रतीक हैं। इसलिए इनका उन्होंने बार-बार प्रयोग किया है। मुक्तिबोध की लंबी कविता ‘अँधेरे में’ समकालीन मनुष्य के संघर्ष का प्रतीक है जिसमें प्रयुक्त चरित्र ‘गांधी और तिलक’ दो। विचारधाराओं के प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ इन्होंने पौराणिक प्रतीकों का भी प्रयोग किया है।

(x) छंद-मुक्तिबोध ने अपनी काव्य-रचना के लिए मुख्यतः मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनके काव्य में लय और ताल का अनूठा संगम दिखाई देता है। इसके साथ तुकांत, अतुकांत छंदों के भी दर्शन होते हैं। अष्टक इनका प्रिय छंद है। इन्होंने लंबी कविताओं में इस छंद का प्रयोग किया है।

(xi) अलंकार-योजना-मुक्तिबोध की अलंकार योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने परंपरागत उपमानों की अपेक्षा नवीन उपमानों का प्रचुर प्रयोग किया है। इनके काव्य में अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, उल्लेख, मानवीकरण’ रूपकातिशयोक्ति आदि अलंकारों का सुंदर एवं सजीव प्रयोग हुआ है। रूपक अलंकार का उदाहरण दृष्टव्य है

रवि निकलता
लाल चिंता की रुधिर-सरिता
प्रवाहित कर दीवारों पर
उदित होता चंद्र
ब्रज पर बाँध देता
श्वेत धौली पट्टियाँ।

वस्तुतः गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी काव्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है।

Atoms Class 12 Notes Physics Chapter 12

By going through these CBSE Class 12 Physics Notes Chapter 12 Atoms, students can recall all the concepts quickly.

Atoms Notes Class 12 Physics Chapter 12

→ From α-particle scattering, it can be concluded that:

  1. the atom is mostly neutral.
  2. the whole of the positive charge is concentrated in a small volume at the center of the atom called the nucleus.

→ In case a proton is moving towards a stationary proton, at the point of the closest approach, the initial kinetic energy of the moving proton is equal to the K.E. of both protons plus the electrostatic potential energy.

→ Wavelength/frequencies/wavenumbers of radiations emitted by the excited H-atom are not continuous.

→ Bohr’s theory is applicable to all one-electron (hydrogenic) atoms
such as He+, Li++, ………..
According to it:

  1. rn = a0 \(\frac{n^{2}}{Z}\) Å
    Where a0 = 0.53 Å = radius of first Bohr’s orbit of the hydrogen atom,
  2. The total energy is negative, so the system is a bound one.

→ B.E. = ground state energy.

→ Ionisation energy = – B. E.

→ If a hydrogen atom in the ground state absorbs a photon of energy hv and is excited to nth state, then
– 13.6 + hv = – \(\frac{13.6}{n^{2}}\)

→ Distance of closest approach (= r0) gives an idea about the size of the nucleus.

→ Spectral lines of the Lyman series are found to lie in the UV region.

→ The longest wavelength of this series (= 1216 Å) is due to 2 → 1
transition.

→ The shortest wavelength of this series (= 912 Å) is due to ∞ → 1 transition.

→ Spectral lines of the Balmer series are found to lie in the visible region

→ Bohr’s model is not applicable to even two-electron atoms such as He.

→ The shortest wavelength of this series (3648 Å) is due to ∞ → 1 transition.

→ 1st, 2nd, 3rd members of this series are called Hα, Hβ, Hγ lines.

→ Spectral lines of the Paschen series lie in the infrared region.

→ The longest wavelength of this series (18761 Å) is obtained due to 4 → 3 transitions.

→ The shortest wavelength of this series (8208 Å) is obtained due to ∞ → 1 transition.

→ Stationary orbits do not mean that the electron is stationary but it means that the energy of the electron remains constant as long as it keeps on moving in the same orbit.

→ When external energy is supplied to the atom, an electron in any orbit absorbs this energy and goes to the higher energy orbit. After 10-8 s, the electron jumps back to the original orbit by emitting the absorbed energy in the form of a photon.

→ The speed of an electron in an orbit is inversely proportional to the
principal quantum number.

→ Ionisation energy of H-atom = E – E1 = = 0 – (- 13.6) = 13.6 eV.

→ The ionization potential of H-atom = 13.6 V.

→ Bohr laid the foundation of the quantum theory by postulating specific orbits in which electrons don’t radiate.

→ Bohr’s model includes only one quantum number n.

→ Bohr modified the Rutherford model of the atom by introducing quantum ideas known as Bohr’s postulates.

→ Rutherford’s atomic model could not explain the stability of the atom.

→ Rutherford concluded that electrons are not stationary but they are moving around the nucleus in circular orbits.

→ Emission or absorption of energy takes place only when an electron jumps from one stationary orbit to the other stationary orbit.

→ The energy of the electron is greater in the outer orbits than in the inner orbit.

→ The energy of the electron for orbit with n = ∞ is maximum and is equal to zero.

→ Spectra is of two types:

  1. Emission spectrum
  2. Absorption spectrum.

→ Emission spectrum results when there is the transition from a high energy state to a lower energy state.

→ Absorption spectrum results when energy is absorbed by the atom and goes from a lower energy state to a higher energy state.

→ Fraunhofer’s lines in the sun’s spectra are the absorption lines.

→ There appears a dark line corresponding to photons absorbed in the spectrum.

→ The election may be seen to be at a distance from the nucleus of about 104 to 105 times the size of the nucleus itself. Thus the distance of the closest approach helps us to estimate the size of the nucleus (R).
i. e. r0 = 104 to 105 R.
∴ R = 10-4 to 10-5 r0.

→ Size of atom = 104 to 105 times the size of the nucleus (R).

→ r0 is of the order of size of the atom.

→ The nucleus of gold is about 50 times heavier than an α-particle, thus it (Au nucleus) remains at rest during α-particle scattering.

→ Bohr’s radius: It is the radius of the innermost orbit in the hydrogen atom. It is denoted by r1 or a0.

→ Permitter orbits: They are defined as the orbits for which the angular momentum is an integral multiple of \(\frac{\mathrm{h}}{2 \pi}\) i.e.,
L = mvr = n \(\frac{\mathrm{h}}{2 \pi}\)

→ Impact Parameter: It is the perpendicular distance of the velocity vector of the a-particle from the central line of the nucleus when the particle is far away from the nucleus of the atom.

→ Distance of closest approach: It is the minimum distance up to which an energetic a-particle traveling towards the nucleus can move before coming to rest and then retracing its path.

→ Ground state: It is defined as the energy state of electron corresponding to n = 1.

→ Excited states: They are the energy states of electrons corresponding to n = 2,3, 4. When an electron in the innermost orbit jumps to higher orbits after absorbing the energy.

→ Spectral line: When an electron jumps from a higher energy state to the lower energy state in the hydrogen atom, the radiation of a particular wavelength or frequency is emitted which is called a spectral line.

→ Energy level diagram: The energy of an electron corresponding to each orbit (energy state) can be represented by the horizontal lines.

→ Excitation potential: It is defined as the potential difference through which an electron in an atom must be accelerated so that it may go from the ground state to the excited state. It corresponds to the excitation energy.

→ Excitation: It is the process of absorption of energy by an electron when it goes from a lower energy state to a higher energy state.

→ Ionization: It is the process of detaching or knocking out an electron from the atom.

→ Ionization energy: The energy required to knock out an electron from an atom i.e., from the ground state (n = 1) to energy state n = ∞.

→ Ionization potential: It is defined as the potential difference through which an electron of an atom is accelerated so that it is knocked out of the atom.

Important Formulae

→ Speed of an electron revolving in nth orbit is given by
νn = \(\frac{2 \pi \mathrm{k} \mathrm{Ze}^{2}}{\mathrm{nh}}\)

→ Angular momentum of the electron is given by
m vn rn = \(\frac{\mathrm{nh}}{2 \pi}\)
where vn = Velocity of electron in nth orbit.
rn = radius of orbit of electron in nth orbit,
n = 1, 2, 3, …………..

hv = Ef – Ei
= \(\frac{2 \pi^{2} \mathrm{k}^{2} \mathrm{Z}^{2} \mathrm{me}^{4}}{\mathrm{~h}^{2}}\left(\frac{1}{\mathrm{n}_{\mathrm{i}}^{2}}-\frac{1}{\mathrm{n}_{\mathrm{f}}^{2}}\right)\)

→ Rydberg constant is given by
R = \(\frac{2 \pi^{2} m k^{2} e^{4}}{c h^{3}}\)

→ Velocity in terms of fine structure constant is given by
Atoms Class 12 Notes Physics 1
→ Impact parameter is given by
b = \(\frac{\mathrm{Ze}^{2} \cot \frac{\theta}{2}}{4 \pi \varepsilon_{0} . \mathrm{E}}\)
where θ = angle of scattering.
E = \(\frac{1}{2}\) mv2 = K.E. of α-particle.

→ Ionisation potential is given by
V = \(\frac{13.6 \mathrm{Z}^{2}}{\mathrm{n}^{2}}\)
Where Z = an atomic number of the atom.
n = number of orbit from which electron is to be removed.

→ Rydberg formula for spectrum of H-atom is
\(\bar{v}\) = R\(\left(\frac{1}{n_{1}^{2}}-\frac{1}{n_{2}^{2}}\right)\)
= wave number of radiation emitted.

→ Ionisation energy of Hydrogen atom is
E = E – E1 = 13.6 eV,

→ Total energy of electron in nth orbit of hydrogen atom is given by
E = – \(\frac{2 \pi^{2} m k^{2} e^{4}}{n^{2} h^{2}}\)
= – \(\frac{13.6}{\mathrm{n}^{2}}\) eV.

→ For H-like atoms
E = \(\frac{13.6}{\mathrm{n}^{2}}\) Z2(eV).

→ The energy of electron in various stationary orbits for H-atom is
E1 = -13.6 eV
E2 = – 3.4 eV
E3 = -1.51 eV
E4 = -0,85eV
E5 = -0.54 eV.
…………………..
…………………..

→ For the Lyman series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{1^{2}}-\frac{1}{n^{2}})

→ For Balmer series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{Z^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 3, 4, 5, ….n.

→ For Paschen series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{3^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 4, 5, 6, …. n.

→ For Pfund series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{4^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 5, 6, ….n.

→ radius of nth orbit is given by
rn = \(\frac{n^{2} h^{2}}{4 \pi^{2} m k Z e^{2}}\)
= \(\frac{n^{2} h^{2}}{4 \pi^{2} m k e^{2}}\) for H-atom.

→ K.E. of electron revolving in nth orbit is
Ek = \(\frac{1}{2}\) . \(\frac{\mathrm{kZe}^{2}}{\mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)
for H-atom
Ek = \(\frac{1}{2}\) . \(\frac{\mathrm{ke}^{2}}{\mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)

P.E. of an electron in nth orbit is
Atoms Class 12 Notes Physics 2
→ Total energy in nth orbit is
E = KE. + P.E.
= Ek – 2Ek
= – Ek = \(\frac{\mathrm{ke}^{2}}{2 \mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)

→ Distance of closest approach is α-particle is given by
r0 = \(\frac{(\mathrm{Ze}) \cdot(2 \mathrm{e})}{4 \pi \varepsilon_{0} . \mathrm{E}}=\frac{2 \mathrm{Ze}^{2}}{4 \pi \varepsilon_{0}\left(\frac{1}{2} \mathrm{mv}^{2}\right)}\)

→ Ionisation potential = \(\frac{\text { ionisation energy }}{\mathrm{e}}\)

→ Excitation potential = \(\frac{\text { excitation energy }}{\mathrm{e}}\)

→ The number of a-particles per unit area that reach the screen at a scattering angle θ are found to vary as:
N(θ) ∝ \(\frac{1}{\sin ^{4}\left(\frac{\theta}{2}\right)}\)