Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 Summary भक्तिन

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भक्तिन Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 11

भक्तिन पाठ का सारांश

भक्तिन महादेवी वर्मा जी का प्रसिद्ध संस्मळणात्मक रेखाचित्र है जो ‘स्मृति की रेखाओं में संकलित है। इसमें महादेवी जी ने अपनी सेविका। भक्तिन के अतीत एवं वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का चित्रण किया है। लेखिका के घर में काम करने से पहले भक्तिन । ने कैसे एक संघर्षशील, स्वाभिमानी और कर्मशील जीवनयापन किया। वह कैसे पितृसत्तात्मक मान्यताओं और उसके छल-छद्मपूर्ण समाज में अपने और अपनी बेटियों की हक की लड़ाई लड़ती रही तथा हार कर कैसे जिंदगी की राह पूरी तरह बदल लेने के निर्णय तक पहुंची। इन सबका इस पाठ में अत्यंत संवेदनशील चित्रण हुआ है।

लेखिका ने इस पाठ में आत्मीयता से परिपूर्ण भक्तिन के द्वारा स्त्री-अस्मिता की संघर्षपूर्ण आवाज उठाने का भी प्रयास किया है। भक्तिन का शरीर दुबला-पतला है। उसका कद छोटा है। बह ऐतिहासिक सी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती बेटी है। उसकी माता का नाम धन्या गोपालिका है। उसका वास्तविक नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी है। भक्तिन नाम तो बाद में लेखिका ने अपने घर में नौकरानी रखने के बाद रखा था। भक्तिन एक दृढ़ संकल्प, ईमानदार, जिज्ञासु और बहुत समझदार महिला है। वह विमाता की ममता की। छाया में पली-बढ़ी। पाँच वर्ष की छोटी-सी आयु में उसके पिता ने इसका विवाह हँडिया ग्राम के एक संपन्न गोपालक के छोटे बेटे के।

साथ कर दिया। नौ वर्ष की आयु में सौतेली माँ ने इसका गौना कर ससुराल भेज दिया। भक्तिन अपने पिता से बहुत प्रेम करती थी लेकिन उसकी विमाता उससे ईर्ष्या किया करती थी। उसके पिता की मृत्यु का समाचार उसकी विमाता ने बहुत दिनों के बाद भेजा फिर उसकी सास ने भी रोने-पीटने को अपशकुन समझ कुछ नहीं बताया। अपने मायके जाने पर उसे अपने पिता की दुखद मृत्यु का समाचार मिला।

भक्तिन लेखक परिचय

लेखिका-परिचय जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के छायावाद की प्रमुख स्तंभ हैं। इनका जन्म सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के फ़र्रुखाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम गोबिंद प्रसाद वर्मा था तथा इनकी माता हेमरानी एक भक्त हृदय महिला थीं। बचपन से ही महादेवी जी के मन पर भक्ति का प्रभाव पड़ा। इनकी शिक्षा इंदौर तथा प्रयाग में हुई। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से एम०ए० संस्कृत की परीक्षा पास की। ये प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्राचार्या पद पर भी कार्यरत रहीं। महादेवी जी आजीवन अध्ययन-अध्यापन कार्य में लीन रहीं। 1956 ई० में भारत सरकार ने इनको पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने इनको भारत-भारती सम्मान प्रदान किया। सन 1983 ई० में ‘यामा’ संग्रह पर इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 Summary भक्तिन

इनकी साहित्य-सेवा को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने उनको डी०लिट् की उपाधि से अलंकृत किया। अंततः सन् 1987 ई० में ये महान साहित्य-सेवी अपना महान साहित्य संसार को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गई। रचनाएँ -महादेवी वर्मा जी एक महान साहित्य सेवी थीं। ये बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार मानी जाती हैं। इन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक साहित्यिक विधाओं का विकास किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य-संग्रह-दीपशिखा, यामा, नीहार, नीरजा, रश्मि, सांध्यगीत।
संस्मरण और रेखाचित्र-अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार।
निबंध-संग्रह-शृंखला की कड़ियाँ, आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर, क्षणदा।
आलोचना-विभिन्न काव्य-संग्रहों की भूमिकाएँ, हिंदी का विवेचनात्मक गद्य।
संपादन-चाँद, आधुनिक कवि काव्यमाला आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ-महादेवी वर्मा जी आधुनिक हिंदी-साहित्य की मौरा मानी जाती हैं। ये छायावाद की महान कवयित्री हैं लेकिन काव्य के साथ-साथ गद्य में भी उनका बहुत योगदान रहा है। ये एक साहित्य-सेवी और समाज-सेवी दोनों रूपों में प्रसिद्ध हैं। इनका पद्य साहित्य जितना अधिक आत्मकेंद्रित है, गद्य साहित्य उतना ही समाजकेंद्रित है। महादेवी वर्मा के गद्य साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) समाज का यथार्थ चित्रण-महादेवी वर्मा जी ने अपने गद्य साहित्य में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया है। काव्य में जहाँ इन्होंने अपने सुख-दुख, वेदना आदि का चित्रण किया है वहीं गद्य में समाज के सुख-दुख, गरीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनके रेखाचित्रों एवं संस्मरणों में समाज में फैली गरीबी, कुरीतियों, जाति-पाति, भेदभाव, धर्म-संप्रदायवाद आदि विसंगतियों का यथार्थ के धरातल पर अंकन हुआ है। वे एक समाज-सेवी लेखिका थीं। अत: आजीवन साहित्य-सेवा के साथ-साथ
समाज का उद्धार करने में भी लगी रहीं।

(ii) निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति-महादेवी जी एक कोमल हृदय लेखिका थीं। इनके जीवन पर महात्मा बुद्ध, विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ आदि के विचारों का गहन प्रभाव पड़ा जिसके कारण इनकी निम्न वर्ग के प्रति गहन सहानुभूति रही है। इनके गद्य साहित्य में समाज के पिछड़े वर्ग के अत्यंत मार्मिक चित्र चित्रित हैं। उन्होंने समाज के उच्च वर्ग द्वारा उपेक्षित कहे जानेवाले लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है। यही कारण है कि उन्होंने अपने गद्य साहित्य में अधिकांश पात्र निम्न वर्ग से ग्रहण किए हैं।

(iii) मानवेतर प्राणियों के प्रति प्रेम-भावना-महादेवी जी केवल मानव-प्रेमी नहीं थीं बल्कि अन्य प्राणियों से भी उनका गहन लगाव था। उन्होंने अपने घर में भी कुत्ते, बिल्ली, गाय, नेवला आदि को पाला हुआ था। इनके रेखाचित्रों एवं संस्मरणों में इन मानवेतर प्राणियों के प्रति इनका गहन प्रेम और संवेदना झंकृत होती है। जैसेलूसी के लिए सभी रोए परंतु जिसे सबसे अधिक रोना चाहिए था, वह बच्चा तो कुछ जानता ही न था। एक दिन पहले उसकी आँखें खुली थीं, अत: माँ से अधिक वह दूध के अभाव में शोर मचाने लगा। दुग्ध चूर्ण से दूध बनाकर उसे पिलाया, पर रजाई में भी वह माँ के पेट की उष्णता खोजता और न पाने पर रोता चिल्लाता रहा। अंत में हमने उसे कोमल ऊन और अधबुने स्वेटर की
डलिया में रख दिया, जहाँ वह माँ के सामीप्य सुख के भ्रम में सो गया।

(iv) करुणा एवं प्रेम-भावना का चित्रण-महादेवी वर्मा जी के गद्य साहित्य की मूल संवेदना करुणा एवं प्रेम है। इनके साहित्य पर बुद्ध की करुणा एवं दुखवाद का गहन प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि इनके गद्य साहित्य में मानव एवं मानवेतर प्राणियों के प्रति करुणा एवं प्रेम भावना अत्यंत सजीव हो उठी है।

(v) समाज सुधार की भावना-महादेवी जी एक समाज-सेवी भावना से ओत-प्रोत महिला थीं। इनके जीवन पर बुद्ध, विवेकानंद आदि विचारकों का बहुत प्रभाव पड़ा जिसके कारण इनकी वृत्ति समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गई थी। इन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, विसंगतियों, विडंबनाओं आदि को उखाड़ने के भरपूर प्रयास किए हैं। इन्होंने अपने गद्य साहित्य में नारी शिक्षा का भरपूर समर्थन किया है तथा नारी शोषण, बाल-विवाह आदि बुराइयों का खुलकर खंडन किया है।

(vi) वात्सल्य भावना का चित्रण-महादेवी वर्मा के गद्य साहित्य में वात्सल्य रस का अनूठा चित्रण हुआ है। इनको मानव ही नहीं मानवेतर प्राणियों से भी वत्सल प्रेम था। वे अपने घर में पाले हुए कुत्ते, बिल्लियों, नेवला, गाय आदि प्राणियों की एक माँ के समान सेवा करती थीं। यही प्रेम और सेवा-भावना उनके रेखाचित्र और संस्मरणों में भी अभिव्यक्त हुई है। लूसी नामक कुतिया की मृत्यु होने पर लेखिका एक माँ की तरह बिलख-बिलख कर रो पड़ी थी।

(vii) भाषा-शैली-महादेवी वर्मा जी एक श्रेष्ठ कवयित्री होने के साथ-साथ कुशल लेखिका भी थीं। काव्य के साथ इनका गद्य साहित्य अत्यंत उत्कृष्ट है। इनके गद्य साहित्य की भाषा तत्सम-प्रधान शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है जिसमें अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, तद्भव तथा साधारण बोलचाल की भाषाओं के शब्दों का समायोजन हुआ है। इनकी भाषा अत्यंत सहज, सरल एवं प्रवाहपूर्ण है। महादेवी वर्मा ने अपने निबंधों, रेखाचित्रों और संस्मरणों में अनेक शैलियों को स्थान दिया है। इनके गद्य साहित्य में भावनात्मक, समीक्षात्मक, संस्मरणात्मक, इतिवृत्तात्मक, व्यंग्यात्मक आदि अनेक शैलियों का रूप दृष्टिगोचर होता है।

मर्म स्पर्शिता इनके गद्य की प्रमुख विशेषता है। वर्मा जी ने भाव प्रधान रेखाचित्रों को भी इतिवृत्तात्मक शिल्प से मंडित किया है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के कारण इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है। कहीं-कहीं अलंकारयुक्त शैली का प्रयोग भी हुआ है। वहाँ इनकी भाषा में अधिक प्रवाहमयता और सजीवता उत्पन्न हो गई है। इनकी भाषा पाठक के विषय से तारतम्य स्थापित कर उसके हृदय पर अमिट छाप छोड़ देती है। वस्तुत: महादेवी वर्मा जी प्रतिष्ठित कवयित्री होने के साथ महान लेखिका भी थीं। उनका गद्य हिंदी-साहित्य में विशेष स्थान रखता है। संभवतः भाषा-शैली की दृष्टि से प्रस्तुत पाठ उत्कृष्ट है।

 

Class 12 Hindi Aroh Chapter 10 Summary छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

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छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 10

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख कविता का सारांश

‘छोटा मेरा खेत’ कविता उमाशंकर जोशी द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह ‘निशीथ’ से संकलित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने कवि-कर्म को खेती के रूप में प्रस्तुत किया है। कागज़ का चौकोर पन्ना कवि को एक चौकोर खेत के समान प्रतीत होता है। इस खेत में किसी अंधड़ अर्थात भावनात्मक आँधी के आने से किसी क्षण एक बीज बोया जाता है। यह बीज रचना, विचार और अभिव्यंजना का हो सकता है जो मूलरूप कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है और इस प्रक्रिया में स्वयं गल जाता है।

उससे शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अंतत: कृति एक । पूर्ण स्वरूप ग्रहण करती है। साहित्यिक कृति से जो अलौकिक रस-धारा प्रस्फुटित होती है, वह उस क्षण में होने वाली रोपाई का परिणाम है लेकिन उससे प्रस्फुटित रस-धारा अनंतकाल तक चलने वाली कटाई से कम नहीं होती है। कवि स्पष्ट कहता है कि खेत में पैदा अन्न तो । कुछ समय पश्चात समाप्त हो सकता है, लेकिन साहित्य से जिस रस-धारा की प्राप्ति होती है, वह अनंतकाल तक समाप्त नहीं होती।

बगुलों के पंख कविता का सारांश

‘बगुलों के पंख’ कविता ‘उमाशंकर जोशी’ द्वारा रचित उनके सुप्रसिद्ध काव्य-संग्रह ‘निशीथ’ से संग्रहित है। यह प्रकृति-सौंदर्य से परिपूर्ण कविता है। इस कविता में कवि ने सौंदर्य का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए एक युक्ति का सहारा लिया है और सौंदर्य के चित्रात्मक वर्णन के साथ-साथ अपने मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का भी सुंदर चित्रण किया है। कवि आकाश में छाए काले-काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए सुंदर-सुंदर बगुलों के पंखों को देखता है। वे कजरारे बादलों के ऊपर तैरती संध्या की उज्ज्वल सफ़ेद काया के समान प्रतीत होते हैं। कवि का मन इस अत्यंत सुंदर तथा नयनाभिराम दृश्य को देखकर उसी में डूब जाता है। वह इस माया से अपने को बचाने की सिफारिश करता है। लेकिन वह दृश्य इतना सुंदर है कि उसकी आत्मा तक को अपने अंदर समेट लेता है। कवि उससे चाहकर भी बच नहीं पाता।

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख कवि परिचय

जीवन परिचय-उमाशंकर जोशी बीसवीं सदी के गुजराती काव्य के प्रमुख कवि एवं निबंधकार माने जाते हैं। इनका जन्म सन 1911 ई० में गुजरात में हुआ था। 1988 में इनका निधन हो गया। रचनाएँ-जोशी जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार माने जाते हैं। उन्होंने कविता, निबंध, कहानी आदि अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

Class 12 Hindi Aroh Chapter 10 Summary छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

(i) एकांकी-विश्व-शांति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसंत वर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा।
(ii) कहानी-सापनाभारा, शहीद।
(iii) उपन्यास-श्रावणी मेणो, विसामो।
(iv) निबंध-पारकांजण्या।
(v) संपादन-गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांत कवि, म्हारासॉनेट, स्वजप्रयाण।
(vi) अनुवाद-अभिज्ञानशाकुंतलम्,

उत्तररामचरितम्। साहित्यिक विशेषताएँ-जोशी जी ने बीसवीं शताब्दी की गुजराती कविता को नई दिशा प्रदान की है। उनकी कविता में नया स्वर है। और नई यंत्रियाँ हैं। वे परंपरा से जुड़कर भारतीय जीवन-मूल्यों की स्थापना करना चाहते हैं। वे भारतीय रंगों से पूरी तरह रंगे हुए हैं। कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से पाठक को प्रकृति के विभिन्न रंगों से परिचित कराया है। उन्होंने प्रकृति को नई शैली के माध्यम से व्यक्त किया है।

उन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है और उन्हें विकसित होने में सहायता दी है। इनका संबंध भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई से भी रहा है, इसलिए उनके विचारों की छाप इनकी कविता पर स्पष्ट रूप से है। उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान कई बार जेल-यात्रा भी की थी। जोशी छायावादी काव्यधारा से गहरे प्रभावित हैं। गुजराती होने के कारण इन्होंने प्रादेशिकता के प्रभाव को अपनी कविता में प्रस्तुत किया है।

इन्होंने मानवतावाद, सौंदर्य और प्रकृति चित्रण पर विशेष रूप से लेखनी चलाई है। अपनी भावना-प्रधान कविता में इन्होंने कल्पना को इस प्रकार संयोजित किया है कि विचार मानव-जीवन के लिए ठोस आधार के रूप में प्रस्तुत हो पाने में समर्थ सिद्ध हुए हैं-कल्पना के | रसायनों को पी बीज गल गया नि:शेष, शब्द के अंकुर फूटे, पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। इनकी कविता में प्रगतिवादी काव्यधारा का सीधा प्रभाव नहीं है पर मानवी जीवन की पीड़ा से ये निश्चित रूप से प्रभावित हुए हैं। इन्हें समाज ने प्रभावित कर कविता लिखने की प्रेरणा दी थी।

छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।

इनकी कविता में खड़ी बोली की प्रधानता है जिसमें तत्पस और तद्भव शब्दों का सहज समन्वित प्रयोग किया गया है। अलंकारों की योजना आयास है।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 9 Summary रुबाइयाँ, गज़ल

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 रुबाइयाँ, गज़ल Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 9

 रुबाइयाँ, गज़ल कविता का सारांश

‘रुबाइयाँ’ फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित काव्य है जो उनके काव्य-संग्रह ‘गुले नगमा’ से संग्रहित है। इस कविता में कवि ने वात्सल्य रस का अनूठा चित्रण प्रस्तुत किया है। यह वात्सल्य भावना से ओत-प्रोत कविता है। माँ अपने चाँद के टुकड़े को अपने आँगन में खड़ी । होकर अपने हाथों में झुला रही है। माँ अपने नन्हें बच्चे को अपने आँचल में भरकर बार-बार हवा में उछाल देती है जिससे नन्हें बच्ची । की हँसी सारे वातावरण में गूंज उठती है। माँ अपने बच्चे को निर्मल जल से नहलाती है।

उसके उलझे बालों को कंघी से संवारती है। बच्चा भी माँ को बड़े प्यार से देखता है जब माँ अपनी गोदी में लेकर उसे कपड़े पहनाती है। दीवाली के अवसर पर संध्या होते ही घर पुते और सजे हुए दिखते हैं। घरों में चीनी मिट्टी के चमकते खिलौने सुंदर मुख पर नई चमक ला देते हैं। माँ प्रसन्न होकर अपने नन्हें बच्चे द्वारा बनाए मिट्टी के घर में दीपक जलाती है। बच्चा अपने आँगन में ठिनक रहा है।

वह ठिनकता हुआ चाँद को देखकर उस पर : मोहित हो जाता है। बच्चा चंद्रमा को माँगने की हठ करता है तो माँ दर्पण में उसे चाँद उतारकर दिखाना चाहती है। रक्षा-बंधन एक रस का बंधन है। सावन मास में आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए हैं। राखी के कच्चे धागों पर लगे लच्छे बिजली के समान चमकते हैं। कवि कहता है कि सावन का जो संबंध घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है, वही संबंध भाई का बहन से है। इसी बिजली के समान चमकते लच्छेदार कच्चे धागे को बहन अपने भाई की कलाई में बाँधती है।

 रुबाइयाँ, गज़ल कवि परिचय

कवि-परिचय जीवन-परिचय-फ़िराक गोरखपुरी उर्दू-फ़ारसी के महान शायर थे। उनका जन्म 28 अगस्त, 1896 ई० को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। उनका मूल नाम रघुपति सहाय फ़िराक था। उन्होंने रामकृष्ण की कहानियों से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। बाद में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। 1917 ई० में डिप्टी कलक्टर के पद पर नियुक्त गए लेकिन स्वराज आंदोलन से प्रेरित होकर 1918 ई० में पद त्याग दिया। 1920 ई० में इन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया जिसके कारण इन्हें डेढ़ वर्ष की जेल भी हुई। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक के पद पर कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 9 Summary रुबाइयाँ, गज़ल

उन्हें ‘गुले नगमा’ के लिए साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया गया। अंततः सन् 1983 में ये अपनी महान शायरी संसार को सौंप कर स्वर्ग सिधार गए। रचनाएँ-गोरखपुरी जी ने शायरी के क्षेत्र में नए विषयों का पदार्पण कर प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को तोड़ा। अनेक नए विषयों की खोज कर उन्होंने अनेक रुबाइयाँ, गज़ले आदि लिखीं। इनकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ निम्नलिखित हैंगुले नगमा, बज्मे जिंदगी, रंग-ए-शायरी, उर्दू गजल, गोई आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-फ़िराक गोरखपुरी उर्दू साहित्य के महान शायर माने जाते हैं। इनकी शायरी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) नवीन विषयों का चित्रण-उर्दू शायरी का साहित्य रूमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है। फ़िराक गोरखपुरी और नजीर आदि । साहित्यकारों ने इस परंपरा को तोड़ा। फिराक ने परंपरागत भाव-बोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नए विषयों से जोड़ा। उन्होंने उर्दू शायरी को रहस्य, रूमानियत और शास्त्रीयता से बाहर निकालकर सामाजिक दुख-दर्द के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया।

(ii) वैयक्तिकता का चित्रण-फ़िराक गोरखपुरी ने उर्दू शायरी में व्यक्तिगत अनुभूति की ओर मोड़ा और उन्होंने अपनी शायरी के । माध्यम से अपने सुख-दुखों का चित्रण किया, जैसे

तेरे गप का पासे अदब है कुछ दुनिया का ख्याल भी है।
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रोते हैं।

(iii) शृंगार वर्णन-गोरखपुरी की शायरी में श्रृंगार रस का भी चित्रण हुआ है। इनकी शायरी में श्रृंगार के दोनों पक्षों अर्थात संयोग और । वियोग का वर्णन मिलता है लेकिन संयोग की अपेक्षा विरहावस्था का अधिक चित्रण हुआ है। इनके साहित्य में प्रेमी-प्रेमिका के। वियोग पक्ष की सजीव एवं मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।

ऐसे में त याद आए है अंजुमने भय में रिन्दों को।
रात गये गर्दू पै फरिश्ते बाबे गुनह जग खोले हैं।

(iv) वात्सल्य रस का चित्रण-गोरखपुरी की शायरी में वात्सल्य रस की अनुपम अभिव्यक्ति हुई है। वात्सल्य रस का चित्रण करते हुए ऐसा लगता है मानो कवि एक माँ का हृदय पा गया हो। माँ का बच्चे के प्रति प्रेम तथा अपने नन्हें बच्चे के प्रति माँ की वात्सल्य अनुभूतियों का सजीव अंकन किया है। कवि वात्सल्य रस की छोटी-से-छोटी अनुभूति का भी सजीव वर्णन किया है। नहला के छलके-छलके निर्मल जल से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को जन घटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।

(v) भारतीय संस्कृति का अनूठा चित्रण-फ़िराक गोरखपुरी एक शायर होने से पहले एक सच्चे भारतीय थे। वे हिंदू-मुस्लिम आदि | संकीर्णताओं से दूर एक मानव थे, इसीलिए उन्होंने धार्मिक और सामाजिक सहिष्णुता पर बल दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति, तीज-त्योहार आदि का अनूठा चित्रण किया है। गोरखपुरी ने अपनी रुबाइयों में दीवाली, रक्षा-बंधन आदि त्योहारों की सजीव अभिव्यक्ति की है। जैसे

रक्षा-बंधन की सुबह रस की पुतीली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती गखी॥

(vi) देशभक्ति की भावना-फ़िराक गोरखपुरी एक सच्चे देशभक्त थे। सन् 1920 ई० में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण वे जेल भी गए थे। यही देशभक्ति की भावना उनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होती है। उन्होंने अपनी शायरी के माध्यम से भारतीय समाज को जागृत करने का प्रयास किया है।

(vi) प्रकृति चित्रण-गोरखपुरी जी प्रकृति से भी प्रेम करते थे जो उनके अनूठे प्रकृति सौंदर्य में देखने को मिलता है। उन्होंने अपने | साहित्य में वसंत ऋतु, बाग, उद्यान, टिमटिमाते तारे, फूलों की महक आदि का सजीव और मनोहारी चित्रण किया है। नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं या उड़ जाने को रंगों बू गुलशन में पर तोले हैं। तारे आँखें झपकावे हैं ज़र्रा-जर्रा सोये हैं तुम भी सुना हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।

(vi) भाषा-शैली-गोरखपुरी जी उर्दू के श्रेष्ठ शायर हैं। उन्होंने अपनी शायरी को अभिव्यंजना प्रदान करने के लिए नई भाषा और नए शब्द-भंडार का प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी भाषा में उर्दू, फारसी, साधारण बोलचाल, खड़ी हिंदी बोली आदि का प्रयोग किया है। ये लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भी ‘मौर और गालिब’ की तरह कहने की शैली को साधकर। साधारण मनुष्य के रूप में अपनी बात कही है।

(ix) अलंकार-छंद का चित्रण-फ़िराक ने अपनी शायरी में शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है। इनकी शायरी में अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, संदेह आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः फ़िराक गोरखपुरी शायरी-साहित्य के संसार में चमकता हुआ सितारा थे। उनका उर्दू शायरी में महान योगदान है।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

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कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 8

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप कविता का सारांश

(i) कवितावली (उत्तर-कांड से) प्रसंग में कवि ने अपने समय का यथार्थ चित्रण किया है। कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, चोर आदि सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है। समाज का उच्च और निम्न वर्ग धर्म-अधर्म का प्रत्येक कार्य करता है। यहाँ तक कि लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा-बेटी को बेच रहे हैं।

पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है। समाज में किसान के पास करने को खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी के पास व्यापार नहीं तथा नौकरों के पास करने के लिए कोई कार्य नहीं। समाज में चारों ओर बेकारी, भूख, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है। अब तो ऐसी अवस्था में दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले श्री राम ही कृपा कर सकते हैं। अंत में कवि समाज में फैली जाति-पाति और छुआछूत का भी – खंडन करते हैं।

(ii) ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग लोक-नायक तुलसीदास के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया । है। प्रस्तुत प्रसंग में कवि ने लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के पश्चात उनकी मूर्छा-अवस्था तथा राम के विलाप का कारुणिक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ कवि ने शोक में डूबे राम के प्रलाप तथा हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आने की घटना का सजीव अंकन किया है।

कवि ने करुण रस में वीर रस का अनूठा मिश्रण किया है। लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तो भरत ने उन्हें राक्षस समझकर तीर मारा था, जिससे वे मूर्च्छित हो गए थे। भरत जी ने उन्हें स्वस्थ कर अपने बाण पर बैठाकर राम जी के पास जाने के लिए कहा था। हनुमान जी भरत जी का गुणगान करते हुए प्रस्थान कर गए थे। उधर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को हृदय से लगा विलाप कर रहे हैं।

वे एकटक हनुमान जी के आने की प्रतीक्षा में हैं। श्री रामचंद्र अपने अनुज लक्ष्मण को नसीहतें दे रहे हैं कि आप मेरे लिए माता-पिता को छोड़ यहाँ जंगल में चले आए। जिस प्रेम के कारण तुमने सब कुछ त्याग दिया आज वही प्रेम मुझे दिखाओ। श्री राम जी लक्ष्मण को संबोधन कर कह रहे हैं कि हे भाई! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन होता है और मणि के बिना साँप दीन हो जाता है उसी प्रकार आपके बिना भी मेरा जीवन भी अत्यंत दीन एवं असहाय हो जाएगा। राम सोच रहे हैं कि वह अयोध्या में क्या मुँह लेकर जाएंगे। अयोध्यावासी तो यही समझेंगे कि नारी के लिए राम ने एक भाई को गवाँ दिया। समस्त संसार में अपयश फैल जाएगा।

माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को मेरे हाथ में यह सोचकर सौंपा था कि मैं सब प्रकार से उसकी रक्षा करूँगा। श्री राम जी के सोचते-सोचते उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वे ! फूट-कूटकर रोने लगे। हनुमान के संजीवनी बूटी ले आने पर श्री राम अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। वैद्य ने तुरंत लक्ष्मण का उपचार किया जिससे लक्ष्मण को होश आ गया। राम ने अपने अनुज को हृदय से लगाया। इस दृश्य को देख राम-सेना के सभी सैनिक बहुत प्रसन्न हुए।

हनुमान जी ने पुनः वैद्य को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया। रावण इस वृत्तांत को सुनकर अत्यधिक उदास हो उठा और व्याकुल होकर कुंभकरण के महल में गया। कुंभकरण को जब रावण ने जगाया तो वह यमराज के समान शरीर धारण कर उठ खड़ा हुआ। रावण ने उसके समक्ष अपनी संपूर्ण कथा का बखान किया। साथ ही हनुमान जी के रण-कौशल और बहादुरी का परिचय भी दिया कि उसने अनेक असुरों का संहार कर दिया है।

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप  कवि परिचय

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल की सगुणधारा की रामभक्ति शाखा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं। इन्होंने अपनी महान रचना रामचरितमानस के द्वारा केवल राम-काव्य को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि मानस के द्वारा तत्कालीन समाज का भी मार्गदर्शन किया है। अतः तुलसीदास जी एक भक्त होने के साथ-साथ लोकनायक भी थे।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म-स्थान, तिथि एवं परिवार के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों ने इनका जन्म सोरों में भाद्रपद शुक्ल एकादशी मंगलवार वि० संवत 1589 माना है। जार्ज ग्रियर्सन भी इनका जन्म संवत सेंगर 1589 को ही मानते हैं। शिव सिंह द्वारा रचित ‘शिव सिंह सरोज’ ग्रंथ में इनका जन्म संवत 1583 स्वीकार किया है। बेणीमाधव द्वारा रचित ‘गुसाईं चरित’ के आधार पर तुलसीदास का जन्म विक्रमी संवत 1554 माना जाता है। इनका जन्म श्रावण शुक्ला सप्तमी को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। इनके जन्म के संबंध में ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध हैं

पंद्रह सौ चौवन विषै कालिंदी के तीर।
पाउल मुक्ला सप्तमी तुलसी धरे सरीर॥

इनके पिता का नाम पंडित आत्मा राम तथा माता का नाम हुलसी था। जन्म के समय वे रोए नहीं, बल्कि उन्होंने राम नाम टच्चारण किया । जिससे उनका नाम-राम बोला पड़ गया। अशुभ मुहूर्त में जन्म लेने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया। जन्म के तीन दिन । बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। बाद में मुर्निया नामक दासी में इनका पालन-पोषण किया लेकिन इसकी मृत्यु के पश्चात इन्हें द्वार-द्वार भीख माँगकर पेट भरना पड़ा। बाबा नरहरिदास ने इनकी दयनीय दशा पर दया कर इन्हें अपने आश्रम में रख लिया तथा इन्हें पढ़ाया-लिखाया। गुरु जी ने इनका नाम तुलसी रख दिया था। इनकी-विद्वत्ता से प्रभावित होकर पंडित दीनबंधु पाठक ने अपनी कन्या रत्नावली से इनका विवाह कर दिया था। तुलसी को अपनी पत्नी से अगाध प्रेम था।

तुलसीदास की राम साधना का श्रेय बहुत हद तक उनकी पत्नी रत्नावली को दिया जाता है। माना जाता है कि एक बार अपनी पत्नी के मादक चले जाने पर तुलसीदास जी पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गए। इस पर पत्नी को बहुत संकोच हुआ तो वे उनको फटकार लगाते हुए बोली

लाज न आवत आपको दौरे आयहु साथ।
धिक्-धिक ऐसे प्रेम को कहाँ कहाँ हाँ नाथ ॥
अस्थि चर्ममय देह मम, तासौं ऐसी प्रीति।
होती जो श्री राम महं, होति न तो भवभीति॥

पत्नी की इस फटकार से वे बहुत लज्जित हुए और उनके हृदय में संसार के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गई। इसके पश्चात उन्होंने वैराग्य ले • लिया तथा प्रभु-भक्ति में लीन हो गए। जीवन के अंतिम दिनों में इनको बहुत कष्ट भोगना पड़ा तथा श्रावण शुक्ल सप्तमी विक्रमी संवत 0 1680 में इनका देहांत हो गया। इनकी मृत्यु के संबंध में यह दोहा प्रसिद्ध है

संवत् सौलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यौ शरीर॥

रचनाएँ—-नागरी प्रचारिणी सभा काशी (वाराणसी) ने तुलसी साहित्य को ‘तुलसी ग्रंथावली’ के नाम से प्रकाशित किया है। इसके अनुसार तुलसी के ० नाम से लिखे ग्रंथों की संख्या 37 बताई जाती है लेकिन विद्वानों ने इनके केवल 12 ग्रंथों को ही प्रामाणिक माना है शेष अन्य ग्रंथ दूसरे कवियों ने लिखकर उनके नाम से प्रकाशित कर दिए होंगे। तुलसी जी द्वारा लिखे गए 12 प्रामाणिक ग्रंथ-रामचरितमानस, वैराग्य संदीपनी, रामलला नहछू, ० बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली और विनय-पत्रिका हैं।

तुलसी के नाम से प्रचारित रचनाओं में-अंकावली बजरंग बाण, भरत-मिलाप, हनुमान चालीसा, हनुमान पंचक, हनुमान बाहुक, गीता भाषा, छप्पय रामायण आदि ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है। परंतु विद्वान उन्हें तुलसी की रचनाएँ नहीं मानते। तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाओं में रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली तथा गीतावली विशेष लोकप्रिय हैं। ‘रामचरित’ तो उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ है।

हिंदुस्तान के प्रत्येक हिंदू घर में ‘रामचरितमानस’ की एक प्रति अवश्य मिलती है। इसे उत्तर भारत की बाइबिल माना जाता है। हिंदू घरानों में इसको पवित्र ग्रंथ मानकर इसकी पूजा की जाती है। भक्तगण इसकी चौपाइयों का मुक्त कंठ से गान करते हैं। यह महाकाव्य भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। विनय-पत्रिका साधारण जनता में इतना लोकप्रिय नहीं है जितना कि भक्तों तथा दार्शनिकों में प्रसिद्ध है। कवितावली और गीतावली अपने मधुर, सरस गीतों के कारण जनता में काफी लोकप्रिय हैं।

इन सभी ग्रंथों में तुलसी जी ने राम के चरित्र का ही अंकन किया है। विनय-पत्रिका तुलसी की अंतिम रचना मानी जाती है। यह तुलसी का प्रार्थना ग्रंथ है। साहित्यिक विशेषताएँ-तुलसीदास जी रामभक्ति धारा के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने अपनी रामभक्ति के माध्यम से भारतीय जनमानस में नवीन चेतना जागृत की है। इनका साहित्य लोकमंगल की भावना से परिपूर्ण है। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) राम का स्वरूप-तुलसी के काव्य का आदर्श राम हैं। इन्होंने अपने काव्य में राम को विष्णु का अवतार मानकर उनके निर्गुण
और सगुण दोनों रूपों की आराधना की है। ये कहते हैं

दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना।
राम-नाम का मरम है आना॥

तुलसी जी राम को धर्म का उद्धार करनेवाला तथा अधर्म का नाश करनेवाला मानते हैं। इनके राम एक ओर तो अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र है तो दूसरी ओर घट-घट में रहने वाले निर्गुण ब्रह्म। इन्होंने राम के चरित्र में शील, शक्ति और सौंदर्य का अनूठा समन्वय प्रस्तुत किया है।

(ii) विषय की व्यापकता-तुलसी-साहित्य में भाव विविधता उनकी प्रमुख विशेषता है। इन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध रूपों को यथार्थ अभिव्यक्ति प्रदान की हैं। रामचरितमानस में राम-जन्म से लेकर राम के राजतिलक की संपूर्ण कथा को सात कांडों में प्रस्तुत किया है। इन्होंने राम-कथा में विविध प्रसंगों के माध्यम से राजनैतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन के आदर्शों को समाज के समक्ष प्रस्तुत कर खंडित हिंदू समाज को केंद्रित किया है। मानस के उत्तर काव्य में कलियुग के प्रकोप का वर्णन आज भी समसामयिक है तथा हमारा मार्गदर्शन करता है।

(iii) लोकमंगल की भावना-तुलसी जी सच्चे लोकनायक थे। इनकी समस्त भक्ति-भावना लोक-कल्याण की भावना पर ही टिकी हुई है। लोक-कल्याण हेतु ही इन्होंने समन्वय की स्थापना की है। इनका समस्त काव्य आदर्श समाज की स्थापना का संदेश देता है। तुलसी काव्य में आदर्श ही आदर्श है। मानस में कवि ने कौशल्या को आदर्श माता, राम को आदर्श पुत्र, सीता को आदर्श पत्नी, भरत और लक्ष्मण को आदर्श भाई, हनुमान को आदर्श सेवक, सुग्रीव को आदर्श मित्र तथा राजतिलक के बाद राम को एक आदर्श राजा के रूप में ।प्रस्तुत किया है। इस प्रकार तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना को साकार रूप प्रदान किया है।

(iv) समन्वय की भावना–तुलसीदास का काव्य लोक-कल्याण तथा समन्वय की विराट भावना से ओत-प्रोत है। समकालीन युग संक्रमण का युग था। समस्त हिंदू जाति सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से पतन की ओर जा रही थी लोगों के मन से धार्मिक भावना समाप्त हो रही थी। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, नफ़रत, नास्तिकता आदि बुरी भावनाएँ बढ़ती जा रही थीं। ढोंगी-साधु संन्यासियों का बोलबाला था। ऐसी विकट परिस्थितियों का मुकाबला करने हेतु तुलसी जी ने समन्वय की भावना का सहारा लिया। इन्होंने सर्वप्रथम धार्मिक संकीर्णताओं को मिटाने के लिए शैवों एवं वैष्णवों में समन्वय स्थापित किया। इसके बाद इन्होंने लोक और शास्त्र, गृहस्थ और वैराग्य, भक्ति और ज्ञान, निर्गुण और सगुण, भाषा और संस्कृत, शील, शक्ति और सौंदर्य आदि में अनूठा समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयास किया। ज्ञान की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए तुलसी ने कहा है

कहहिं संतमुनि वेद पुराना।
नहिं कछु दुर्लभ ज्ञान समाना॥

(v) प्रबंध कौशल-काव्य-कला की दृष्टि से तुलसी रचित ‘रामचरितमानस’ हिंदी साहित्य का श्रेष्ठतम प्रबंध काव्य है। इस महाकाव्य में कवि ने समस्त काव्य शास्त्रीय नियमों का पालन करते हुए संपूर्ण रामजीवन का अनूठा चित्रण किया है। मानस में राम-सीता का प्रथम-दर्शन, राम वनगमन, दशरथ-मृत्यु, भरत मिलाप, सीताहरण, लक्ष्मण मूर्छा आदि अनेक मार्मिक प्रसंगों की भी सजीवता से रचना हुई है। इस प्रकार प्रबंधकार के रूप में तुलसी जी एक सफल कवि हैं।

(vi) भक्ति भावना- तुलसी की भक्ति दास्यभाव की भक्ति पर आधारित है। इनकी भक्ति संत कबीरदास आदि निर्गुण संतों की भांति | ज्ञान और योग से परिपूर्ण भावना से युक्त रहस्यमयी नहीं है। इनकी भक्ति सीधी-सादी, सरल एवं सहज है। तुलसी के राम संसार | के कण-कण में समाए हुए हैं। वे सभी को सुलभ हैं।। तुलसीदास जी की भक्ति सेवक-सेव्य भाव पर आधारित आदर्श भक्ति है। उन्होंने रामानुजाचार्य के सिद्धांत विशिष्ट वैतवाद को अपनी भक्ति का आधार बनाया है।

यहाँ जीव ब्रह्म का ही अंश है। इनकी भक्ति लोक संग्रह की भावना से ओत-प्रोत है। इन्होंने राम में शील, शक्ति और सौंदर्य का गुणगान करते हुए लोक-कल्याण की कामना की है। तुलसी ने श्री राम को सर्वगुण संपन्न तथा स्वयं को अत्यंत तुच्छ, दीन-हीन माना है। यही भावना उनकी भक्ति में व्यक्त हुई है

राम सो बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो?

(vi) चरित्र-चित्रण-तुलसीदास जी का चरित्र-चित्रण अत्यंत उदात्त एवं श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनकी तुलना संसार के श्रेष्ठ कवियों के साथ की जा सकती है। इनके पात्र जहाँ देखने में लौकिक हैं, जनसाधारण की भाँति दिखाई देते हैं, वहाँ उनमें अलौकिक गुण भी होते है। तलसी का चरित्र आदर्शवादी है जो निरंतर समाज को प्रेरणा देते हैं। इनके रामचरितमानस में कौशल्या एक आदर्श माँ, श्री राम आदर्श पुत्र, सीता आदर्श पत्नी, लक्ष्मण-भरत आदर्श भाई, हनुमान आदर्श सेवक, सुग्रीव आदर्श मित्र है।

इनके साथ-साथ गुरु वशिष्ट जी, अंगद, शबरी आदि ऐसे श्रेष्ठ पात्र हैं जो संसार को शिक्षा देते रहते है। तुलसी जी ने अपने साहित्य में मनुष्य-देवता, नर-नारी, पशु-पक्षी, श्रेष्ठ-अधम आदि सभी पात्रों का सहज स्वाभाविक चित्रण किया है जैसे जनकपुर में सीता स्वयंवर | के समय लक्ष्मण के जोश का सजीव चित्रण किया है

जनक वचन सुनि सब नर-नारी। देखि जान किहि भए दुखारी।
भाखे लखन कुटिल भाई भौहे। रदपुट फरकत नयन हरिसहि ॥

(viii) प्रकृति-चित्रण- तुलसी साहित्य में प्रकृति का भी अनूठा चित्रण हुआ है। इन्होंने कहीं-कहीं पंचवटी, चित्रकूट, वन, जंगल, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी आदि का सजीव एवं सुंदर चित्रण किया है। इनका बाह्य प्रकृति की अपेक्षा अंतः प्रकृति-चित्रण में मन अधिक रमा है। इन्होंने प्रकृति के आलंबन रूप का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है।

(ix) काव्य रूप- तुलसी जी रामभक्ति के श्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने गीति, प्रबंध एवं मुक्तक तीनों काव्य-रूपों का प्रयोग करके अपने साहित्य का चित्रण किया है। रामचरितमानस हिंदी-साहित्य का श्रेष्ठ प्रबंध काव्य है। इसमें कवि ने सात कांडों में श्री रामचंद्र जी के संपूर्ण जीवन का अनूठा वर्णन किया है। इसी प्रकार गीतावली, कवितावली, दोहावली आदि भी श्रेष्ठ ग्रंथ है। पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामलला नहछू आदि उनके श्रेष्ठ मुक्तक काव्य हैं।

(x) भाषा-शैली-तुलसीदास जी एक महान विद्वान थे। उन्होंने अपने साहित्य की रचना अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में की है। उन्होंने दोनों भाषाओं का सुंदर प्रयोग कर श्रेष्ठ साहित्य सृजन किया है। रामचरितमानस में अवधी तथा विनय पत्रिका आदि में ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। अवधी भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ उन्होंने भोजपुरी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, फ़ारसी आदि भाषाओं का भी प्रयोग किया है।

(xi) अलंकार- तुलसी काव्य में अलंकारों का सफल एवं सुंदर प्रयोग हुआ है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि उनके प्रिय अलंकार है।। सांगरूपक चित्रण तो इनकी महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसके साथ-साथ अनुप्रास, विभावना, विरोधाभास, वक्रोक्ति, पदमैत्री, स्वरमैत्री | आदि अलंकारों का भी सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास की छया तो सर्वत्र दिखाई देती है। रूपक अलंकार का सुंदर उदाहरण द्रष्टव्य है

उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब लोचन हर्षित भंग।

(xii) छंद-कवि की द-योजना अत्यंत श्रेष्ठ है। इन्होंने अपनी काव्य-भाषा में वर्णिक और मात्रिक दों का सुंदर अंकन किया है। तुलसी जी ने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, छप्पय, बरवै, पद, कुंडलियाँ आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

(xiii) रस- तुलसीदास जी को रस सिद्ध कवि कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन्होंने अनेक भावों एवं रसों का सुंदर एवं सजीव चित्रांकन
किया है। इनके काव्य में भक्ति की प्रधानता होने के कारण शांत रस की सर्वत्र अभिव्यंजना है। शृंगार रस का भी सुंदर चित्रण मिलता
है लेकिन वह मर्यादा से परिपूर्ण है। कवि ने श्रृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों की सजीव एवं मार्मिक अभिव्यक्ति की है। सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनका संपूर्ण काव्य आदर्श, लोक-कल्याण एवं समन्वय की भावना से ओत-प्रोत हैं। वे सच्चे अर्थों में लोकनायक थे।

Communication Systems Class 12 Notes Physics Chapter 15

By going through these CBSE Class 12 Physics Notes Chapter 15 Communication Systems, students can recall all the concepts quickly.

Communication Systems Notes Class 12 Physics Chapter 15

→ A basic communication system consists of information source, transmitter, receiver, and the link between transmitter and receiver.

→ The setup used for exchanging information between a sender and a receiver is called a communication system.

→ The transmitter is a part of the communication system which sends out the information.

→ The receiver is a part of the communication system that picks up the information sent by the transmitter.

→ The communication channel is a medium or link which transfers the message from the transmitter to the receiver of a communication system.

→ Low frequencies cannot be transmitted to long distances.

→ Pulse modulation is of four types:

  1. Pulse amplitude modulation (PAM)
  2. Pulse duration modulation (PDM)
  3. Pulse position modulation (PPM)

→ Transducer: It is a device that converts energy in one form to another.

→ Bandwidth: It is defined as the frequency range of a signal. The information-bearing signal is called a baseband signal.

→ Sampling converts an analog signal into a digital signal.

→ The number of samples of the analog signal taken per second is called the sampling rate.

→ Sampling rate = \(\frac{1}{T}\), where T = time period of sampling of the analog signal.

→ The discrete signals having only two levels are called digital signals.

→ The signals which vary continuously with time are called analog signals.

→ Modulation: It is defined as the process of superposing an audio signal on a high-frequency carrier wave.

→ Demodulation: It is the process of separating the audio wave from a modulated wave.

→ The degree to which a carrier wave is modulated is measured in terms of modulation index.

→ Quantization: It is the process of dividing the maximum amplitude of the voltage signal into a fixed number of levels.

→ The electronic transmission of a document to a distant place via telephone line is called FAX (Facsimile). It scans the contents of a document to create electronic signals.

→ The Internet permits the communication and sharing of all types of information between two or more computers connected through a large and complex network.

→ E.mail: It allows the exchange of text/graphic material using e¬mail software.

→ File transfer is done through a file transfer program (FTP). It allows the transfer of files or software from one computer to another connected through the internet.

→ Hypertext: It is a powerful feature of the web which automatically ‘ links relevant information from one page on the web to another
using HTML.

→ E-commerce: It is the process of using the internet to promote business using electronic means such as credit cards etc.

→ Chat: It is a real-time conversation among people with common interests through typed messages. Everyone belonging to the chat group gets the message instantaneously and can respond rapidly.

→ FAX provides images of a static document unlike the image provided by television of objects that might be dynamic.

→ Mobile telephones operate typically in the UHF (Ultra High Frequencies) range of frequencies about 800 – 950 MHz.

→ The central part of the mobile telephony system is to divide the service area into a suitable number of cells centered on an office called MTSO (Mobile Telephone Switching Office).

→ Base Station: It is a low-power transmitter contained in each cell. It caters to a large number of mobile receivers.

→ Pulse modulation: It is the process of producing a train of the pulse; of the carrier, some characteristics of which vary as a function of the instantaneous value of the message signal.

→ Pulse amplitude modulation (PAM): It is the process in which the amplitude of the pulses of carrier pulse train varies in accordance with the instantaneous value of the message signal.

→ Pulse width Modulation (PWM): The process of pulse modulation in which the width of the pulses of the carrier pulse train varies in accordance with the instantaneous value of the message signal.

→ Pulse code modulation (PCM): It is the process of converting an analog signal into a digital signal by sampling it in time, then quantizing and coding it.

→ Atmosphere: It is defined as the gaseous envelope surrounding the earth.

→ The radio waves from the transmitting antenna to the receiving. antenna propagate either by ground waves (i.e., space wave or surface wave) or sky waves.

→ The T.V. signals are frequency modulated.

→ The maximum distance up to which TV signals can be received is given by d = \(\sqrt{2hR}\), where h is the height of the TV antenna and R is the radius of the earth.

→ The modulation index (mf) of a frequency modulated wave is defined as the ratio of maximum frequency deviation to the modulating frequency.
i.e., mf = \(\frac{\delta_{\max }}{f_{m}}=\frac{f_{\max }-f_{c}}{f_{m}}=\pm \frac{k V_{m} f_{c}}{f_{m}}\)
where fm = modulating frequency, Em = amplitude of modulating wave.

→ A Hertz antenna is a straight conductor of length equal to half the wavelength of radio signals to be transmitted or received i.e., l = \(\frac{λ}{2}\)

→ A Marconi antenna is a straight conductor of length equal to a quarter of the wavelength of radio signals to be transmitted or received i.e., l = \(\frac{λ}{4}\)

→ Amplitude modulated signal contains frequencies (Wc – Wm), Wc, and (Wc + Wm).

→ Attenuation: It is the loss of strength of a signal while propagating through a medium.

→ Noise: It is defined as the unwanted signal that tends to disturb the transmission and processing of message signals in a communication system.

→ Amplification is the process of increasing the amplitude of a signal using an electronic circuit.

→ For demodulation i.e. detection of a signal, \(\frac{1}{\mathrm{f}_{\mathrm{c}}}\) < < τ where fc frequency of classier wave,
τ = time constant of the circuit.