Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions कारक व उपपद विभक्तियाँ

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions कारक व उपपद विभक्तियाँ

वाक्य में क्रिया के साथ जिस शब्द का साक्षात् सम्बन्ध हो उसे कारक कहते हैं। जैसे- रमा चलति, देवः पठति। संस्कृत में छ: कारक होते हैं-

  1. कर्ता
  2. कर्म
  3. करण
  4. सम्प्रदान
  5. अपादान
  6. अधिकरण

संस्कृत में संबंध को कारक नहीं माना गया है क्योंकि इसका क्रिया के साथ सीधा संबंध नहीं होता। सम्बोधन के शब्द कर्ता कारक के समान ही होते हैं इसलिए, इन्हें अलग से कारकों में नहीं गिना जाता। संस्कृत में दो प्रकार की विभक्तियाँ हैं-

  1. कारकविभक्तिः
  2. उपपदविभक्तिः

जब क्रिया के विचार से विभक्ति का प्रयोग होता है तो उसे ‘कारक विभक्ति’ कहते हैं। जैसेरविः कलमेन लिखति। यहाँ ‘कलमेन’ में ‘करण’ के कारण तृतीया विभक्ति है, किन्तु ‘बालकाः मोहनेन सह पठन्ति’, यहाँ मोहनेन में तृतीया ‘सह’ अव्यय के कारण है। अतः जब अव्यय या किसी विशेष कारण से किसी विभक्ति का प्रयोग होता है तो उसे ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। जैसे–’सह’ के योग से तृतीया-विभक्ति उपपद विभक्ति कहलाती है।

कारक-विभक्तिः

  1. कर्ता कारक – कार्य करने वाले को कर्ता कहते हैं। जैसे- अहम् पुस्तकं पठामि। सीता पठति।
  2. कर्म कारक – कर्ता को जो करना अभीष्ट होता है, या जिस पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कहते हैं। जैसे- रामः पत्रं लिखति।
  3. करण कारक – जिस साधन से कार्य सम्पन्न होता है, उसे करण कारक कहते हैं। जैसे- बालकाः कन्दुकेन खेलन्ति।
  4. सम्प्रदान कारक – कर्ता जिसके लिए कोई काम करता है उसे सम्प्रदान कहते हैं। जैसे- माता पुत्राय वस्त्राणि आनयति।
  5. अपादान कारक – जब किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु या स्थान से जुदाई पाई जाए तो उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे- वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
  6. सम्बन्ध – संज्ञा आदि शब्दों का अन्य शब्दों से संबंध बताने वाले शब्द संबंध कहलाते हैं। जैसे- इदम् मम पुस्तकम् अस्ति।
  7. अधिकरण कारक – क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। जैसे- छात्राः विद्यालये पठन्ति।

उपपद-विभक्तिः
संस्कृत में कुछ ‘विना’, ‘सह’ आदि अव्यय शब्द हैं। उनके साथ निश्चित विभक्ति का प्रयोग होता है। जब इस प्रकार के शब्दों के आधार पर विभक्ति लगाई जाती है तो उसे उपपद-विभक्ति कहते हैं।

द्वितीया – प्रति, परितः, उभयतः, विना, अभितः के योग में-

  1. प्रति – (की ओर) – वृद्धः उद्यानं प्रति गच्छति।
  2. उभयतः, अभितः – (दोनों ओर) – नगरम् उभयतः वृक्षाः सन्ति।
  3. परितः – (चारों ओर) – कृष्णम् परितः (अभितः) गोपाः सन्ति।
  4. विना – (बगैर) – सीता राम विना वनं न गच्छति।

(प्रच्छ्, याच्, कथ्, नी, गम्, रक्ष, धिक् तथा नम् आदि धातुओं के योग में भी द्वितीया विभक्ति होती है।)

तृतीया – सह, साकं, सार्धम्, विना, हीन तथा अलम् आदि के योग में-

  1. सह, साकं, सार्धम् – (साथ-साथ) – पुत्रः जनकेन सह (साकं, साधम्) भ्रमति।
  2. विना – (बगैर) – सीता रामेण विना वनं न गच्छति।
  3. हीन – (रहित) – सः धनेन हीनः अस्ति।
  4. अलम् – (मत / बस) – अलम् कोलाहलेन।

(इसके अतिरिक्त सदृशं, समम्, तुल्य तथा अंग विकार बताने वाले शब्दों के योग में भी तृतीया होती है।)

चतुर्थी – नमः, स्वस्ति, स्वाहा, अलम्, रुच् तथा क्रुध् के योग में-

  1. नमः – (नमस्कार) – नमः शिवाय।
  2. स्वस्ति – (कल्याण हो) – प्रजाभ्यः स्वस्ति।
  3. स्वाहा – (देवताओं की आहुति) – अग्नये स्वाहा।
  4. अलम् – (काफी, पर्याप्त) – एतद् दुग्धं बालकाय अलम्।
  5. रुच् – (अच्छा लगना) – मह्यम् मोदकं रोचते।
  6. क्रुध् – (क्रोध करना) – पिता पुत्राय क्रुध्यति।

(इसके अतिरिक्त स्पृह तथा स्वधा के योग में भी चतुर्थी होती है।)

पंचमी – ऋते, बहिः, अनन्तरम्, पूर्वम्, प्रभृति, प्र + भू और भी के योग में-

  1. ऋते – (बिना) – विद्यायाः ऋते न ज्ञानम्।
  2. बहिः – (बाहर) – छात्रः कक्षायाः बहिः तिष्ठति।
  3. अनन्तरम् – (के बाद) – सायंकालात् अनन्तरम् अन्धकारः भवति।
  4. पूर्वम् – (पूर्व दिशा) – नगरात् पूर्वम् नदी वहति।
  5. प्रभृति – (से लेकर) – सः शैशवात् प्रभृति चतुरः।
  6. प्र + भू – (पैदा होना) – गंगा हिमालयात् प्रभवति।
  7. भी – (डरना) – बालः सिंहात् बिभेति।

षष्ठी – निर्धारण में, उपरि, अधः, पृष्ठतः, पुरतः, पश्चात् के योग में-

  1. निर्धारण में – (बहुतों में से एक को कम या अधिक बताना) – रामः बालकेषु/बालकानाम् श्रेष्ठः।
    तुलनात्मक- वर्णन के कारण षष्ठी या सप्तमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।
  2. उपरि – (ऊपर) – पुस्तकं पटलस्य उपरि अस्ति।
  3. अधः – (नीचे) – भूमेः अधः जलम् अस्ति।
  4. पृष्ठतः – (पीछे से) – तस्य पुत्रः गृहस्य पृष्ठतः अधावत्।
  5. पुरतः – (सामने से) – मम पुरतः मा तिष्ठ।
  6. पश्चात् – (बाद में) – भोजनस्य पश्चात् सः विश्रामं करोति।

सप्तमी – निपुण, कुशल, प्रवीण, विश्वास और स्नेह के योग में-

  1. निपुण – (चतुर) – सः अध्ययने निपुणः अस्ति।
  2. कुशल – (चतुर, प्रवीण) – अर्जुनः युद्धे कुशलः आसीत्।
  3. प्रवीण: – (होशियार) – रमेशः वीणावादने प्रवीणः।
  4. वि + श्वस् – (विश्वास करना) – गुरुः शिष्ये विश्वसिति।
  5. स्निह् – (स्नेह करना) – पुत्रे स्निह्यति माता। पिता पुत्रे स्निह्यति।

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

1. ‘प्रति’ शब्दस्य योगे का विभक्तिः प्रयुक्ता भवति?
(क) द्वितीया
(ख) चतुर्थी
(ग) सप्तमी
(घ) प्रथमा
उत्तराणि:
(क) द्वितीया

2. रेखांकित पदे का विभक्तिः किं च वचनम्?
मह्यम् भ्रमणं रोचते।
(क) द्वितीया, एकवचन
(ख) सप्तमी, बहुवचन
(ग) चतुर्थी, एकवचन
(घ) षष्ठी, बहुवचन
उत्तराणि:
(ग) चतुर्थी, एकवचन

3. प्रकोष्ठे प्रदत्तशब्दस्य समुचितरूपेण रिक्तस्थानं पूरयत-
पुत्रः ___________ सह गच्छति।
(क) जनकः
(ख) जनकस्य
(ग) जनकेन
(घ) जनकम्
उत्तराणि:
(ग) जनकेन

4. रेखांकितपदे का विभक्तिः कि च वचनं?
धनात् ऋते न सुखम्
(क) तृतीया एकवचन
(ख) पंचमी, एकवचन
(ग) सप्तमी, बहुवचन
(घ) द्वितीया, एकवचन
उत्तराणि:
(ख) पंचमी, एकवचन

5. ‘विना’ शब्दस्य योगे का विभक्तिः प्रयुक्ता भवति?
(क) तृतीया
(ख) षष्ठी
(ग) चतुर्थी
(घ) सप्तमी
उत्तराणि:
(क) तृतीया

6. उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

(i) सैनिकाः ___________ रक्षन्ति।
(क) देशः
(ख) देशम्
(ग) देशस्य
(घ) देशे
उत्तराणि:
(ख) देशम्

(ii) सः ___________ काणः।
(क) नेत्राः
(ख) नेत्राभ्याम्
(ग) नेत्रेण
(घ) नेत्रः
उत्तराणि:
(ग) नेत्रेण

(iii) बालकः ___________ बिभेति।
(क) सिंहस्य
(ख) सिंहम्
(ग) सिंहः
(घ) सिंहात्
उत्तराणि:
(घ) सिंहात्

(iv) पिता ___________ क्रुध्यति।
(क) पुत्राय
(ख) पुत्रम्
(ग) पुत्रेभ्यः
(घ) पुत्रस्य
उत्तराणि:
(क) पुत्राय

(v) माता-पिता ___________ विश्वसतः।
(क) बालकाः
(ख) बालकेषु
(ग) बालको
(घ) बालकाभ्याम्
उत्तराणि:
(ख) बालकेषु

7. निम्नलिखित वाक्येषु रेखांकितपदे का विभक्तिः प्रयुक्ता-
(i) अध्यापकः छात्रे स्निह्यति।
(क) सप्तमी
(ख) षष्ठी
(ग) तृतीया
(घ) पंचमी
उत्तराणि:
(क) सप्तमी

(ii) गुरुः शिष्यम् प्रश्नम् पृच्छति।
(क) प्रथमा
(ख) तृतीया
(ग) षष्ठी
(घ) द्वितीया
उत्तराणि:
(घ) द्वितीया

8. शुद्धं पदं कोष्ठकात् चित्वा समक्षं प्रदत्तस्थाने लिखत-

  1. ___________ पत्राणि पतन्ति। (वृक्षात्, वृक्षस्य)
  2. गंगा ___________ प्रभवति। (हिमालयात्, हिमालयः)
  3. अलम् ___________। (रोदनात्, रोदनेन)
  4. छात्रः ___________ प्रति गच्छति। (नगरं, नगरस्य)
  5. ___________ स्वाहा। (इन्द्रं, इन्द्राय)
  6. ___________ विना जीवनम् वृथा। (जलस्य, जलम्)
  7. सः ___________ निपुणः। (कार्ये, कार्यस्य)
  8. ___________ उभयतः जलम् वहति। (देशम्, देशस्य)
  9. ___________ मिष्टान्नं रोचते। (बालकस्य, बालकाय)
  10. रामः अद्य ___________ बहिः अगच्छत्। (ग्रामात्, ग्रामस्य)

उत्तराणि:

  1. वृक्षात्
  2. हिमालयात्
  3. रोदनेन
  4. नगरम्
  5. इन्द्राय
  6. जलम्
  7. कार्ये
  8. देशम्
  9. बालकाय
  10. ग्रामात्

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समयलेखनम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions समयलेखनम्

‘भवतः घटिकायां कः समयः?’ अथवा ‘भवतः घटिकायां किं वादनम्?’ ऐसे प्रश्नों का उत्तर हम हिन्दी अथवा अंग्रेजी भाषा में आसानी से दे पाते हैं। यदि हमें उत्तर संस्कृत में देना हो तो हमें कठिनाई महसूस होती है। इसके लिए संस्कृत भाषा में भी समय का ज्ञान होना आवश्यक है। चित्रों की सहायता से समय की जानकारी नीचे दी जा रही है।

समय
समय को चार भागों में बाँटा गया है-

  1. सामान्यः (पूर्ण)
  2. सपाद (सवा)
  3. सार्ध (साढे)
  4. पादोन (पौने)

1. सामान्यः (पूर्ण) – (एक बजे से लेकर बारह बजे तक)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समयलेखनम् 1
5 : 00 – पंचवादनम् (पाँच बजे)
6 : 00 – षड्वादनम् (छह बजे)
7 : 00 – सप्तवादनम् (सात बजे)
8 : 00 – अष्टवादनम् (आठ बजे)
9 : 00 – नववादनम् (नौ बजे)
10 : 00 – दशवादनम् (दस बजे)
11 : 00 – एकादशवादनम् (ग्यारह बजे)
12 : 00 – द्वादशवादनम् (बारह बजे)

2. सपाद (सवा) – पूर्ण संख्या से पंद्रह मिनट अधिक के लिए ‘सपाद’ का प्रयोग होता है।
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समयलेखनम् 2
इसी प्रकार सपादचतुर्वादनम् (सवा चार बजे), सपादद्विवादनम् (सवा दो बजे), सपादत्रिवादनम् (सवा तीन बजे) आदि होंगे।

3. सार्ध (साढ़े) – (पूर्णसंख्या से तीस मिनट अधिक)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समयलेखनम् 3
इसी प्रकार सार्ध-द्विवादनम् (अढ़ाई बजे), सार्ध-नववादनम् (साढ़े नौ बजे), सार्ध-एकादशवादनम् (साढ़े ग्यारह बजे) आदि होंगे।

4. पादोन (पौने) – (पूर्णसंख्या से 15 मिनट कम)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समयलेखनम् 4
इसी प्रकार पादोनैकवादनम् / पादोन-एकवादनम् (पौने एक बजे), पादोन-नववादनं (पौने नौ बजे) आदि होंगे।

विशेष-

  1. यदि समय-संख्या वाक्य के बिना दी गई है तो उसके साथ केवल ‘वादनम्’ का प्रयोग होगा। जैसे- 5 : 00 – पंचवादनम्।
  2. यदि समय-संख्या का प्रयोग वाक्य में किया जा रहा है तो उसमें ‘वादनम्’ के स्थान पर ‘वादने’ हो जाएगा। जैसे- मम पिता अष्टवादने कार्यालयम् गच्छति।

बहुविकल्पीयप्रश्नाः

शुद्धं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

प्रश्न 1.
महेशः प्रातः ___________ (4 : 45) उत्तिष्ठति।
(क) पादोन-पंचवादने
(ख) सार्ध-पंचवादने
(ग) सपाद पंचवादने
(घ) पादोन-चतुर्वादने
उत्तराणि:
(क) पादोन-पंचवादने

प्रश्न 2.
मम पिता ___________ (8 : 00) कार्यालयं गच्छति।
(क) सपाद अष्टवादने
(ख) सार्ध-अष्टवादने
(ग) अष्टवादने
(घ) पादोन-अष्टवादने
उत्तराणि:
(ग) अष्टवादने

प्रश्न 3.
अहं प्रातः ___________ (7 : 15) विद्यालयं गच्छामि।
(क) सार्ध-सप्तवादने
(ख) सप्तवादने
(ग) पादोन-सप्तवादने
(घ) सपाद सप्तवादने
उत्तराणि:
(घ) सपाद सप्तवादने

प्रश्न 4.
अनिलः सायं ___________ (5 : 30) उद्याने क्रीडति।
(क) सपाद पंचवादने
(ख) सार्ध-पंचवादने
(ग) पादोन-पंचवादने
(घ) पंचवादने
उत्तराणि:
(ख) सार्ध-पंचवादने

प्रश्न 5.
दामिनी ___________ (2 : 15) विद्यालयात् आगच्छति।
(क) पादोन-द्विवादने
(ख) द्विवादने
(ग) सपाद द्विवादने
(घ) सार्ध-द्विवादने
उत्तराणि:
(ग) सपाद द्विवादने

प्रश्न 6.
मम माता रात्रौ ___________ (8 : 45) भोजनं पचति।
(क) पादोन-नववादने
(ख) सपाद अष्टवादने
(ग) सार्ध-अष्टवादने
(घ) सपाद-नववादने
उत्तराणि:
(क) पादोन-नववादने

प्रश्न 7.
मम जनकः सायं ___________ (7 : 30) दूरदर्शनं पश्यति।
(क) सपाद सप्तवादने
(ख) सप्तवादने
(ग) सार्ध-सप्तवादने
(घ) पादोन-सप्तवादने
उत्तराणि:
(ग) सार्ध-सप्तवादने

प्रश्न 8.
सः ___________ (9 : 45) शयनं करोति।
(क) पादोन-दशवादने
(ख) पादोन-नववादने
(ग) सार्ध-नववादने
(घ) सपाद दशवादने
उत्तराणि:
(क) पादोन-दशवादने

प्रश्न 9.
प्रमोदः ___________ (7 : 00) व्यायामं करोति।
(क) सपाद सप्तवादने
(ख) सप्तवादने
(ग) पादोन-सप्तवादने
(घ) सार्ध-सप्तवादने
उत्तराणि:
(ख) सप्तवादने

प्रश्न 10.
रविः ___________ (3 : 15) गृहकार्यं करोति।
(क) सार्ध-त्रिवादने
(ख) त्रिवादने
(ग) सपाद त्रिवादने
(घ) पादोन-त्रिवादने
उत्तराणि:
(ग) सपाद त्रिवादने

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समास-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions समास-प्रकरणम्

समास – ‘संक्षिप्तीकरणम् एव समासः भवति’ अर्थात् समास शब्द का अर्थ संक्षेप होता है। जहाँ दो या दो से अधिक पद अपने कारक (विभक्ति) चिह्नों को छोड़कर एक हो जाएँ, उन्हें समास कहते हैं। समास के कारण जो नया पद बनता है उसे समस्तपद कहते हैं। जैसे-
नृपस्य सेवकः = नृपसेवकः (समस्त पद)
जब समस्त पद के पदों को अलग-अलग करके उनमें विभक्ति जोड़ देते हैं तो उसे विग्रह कहा जाता है। जैसे-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions समास-प्रकरणम्
इस प्रकार समास के कुल छह भेद माने जाते हैं।

1. अव्ययीभाव समास
जिस समास का पूर्वपद अव्यय हो तथा पूर्वपद की ही प्रधानता हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। समस्त पद बनाने पर पूरा पद ही अव्यय और नपुंसकलिंग बन जाता है।
(i) उप-उप अव्यय का ‘समीप’ अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
उपग्रामम् – ग्रामस्य समीपम् (गाँव के समीप)
उपगंगम् – गंगायाः समीपम् (गंगा के समीप)
उपमुनि – मुनेः समीपम् (मुनि के समीप)

(ii) निर् – निर् अव्यय का ‘अभाव’ अर्थ में प्रयोग किया जाता है। यथा-
निर्जनम् – जनानाम् अभावः (जनों का अभाव / सुनसान)
निर्विघ्नम् – विघ्नानाम् अभावः (विघ्नों का अभाव)
निर्मक्षिकम् – मक्षिकाणाम् अभावः (मक्खियों का अभाव)

(iii) अनु-अनु अव्यय का पश्चात् तथा योग्यता के अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
अनुविष्णु – विष्णोः पश्चात् (विष्णु के पीछे)
अनुरथम् – रथस्य पश्चात् (रथ के पीछे)
अनुरूपम् – रूपस्य पश्चात् (रूप के योग्य)
अनुगुणम् – गुणस्य पश्चात् (गुणों के योग्य)

(iv) प्रति-प्रति अव्यय के साथ आवृत्ति (दोहराना) अर्थ में प्रयोग होता है। यथा-
प्रत्येकम् – एकम् एकम् प्रति (हर एक)
प्रतिगृहम् – गृहे गृहे प्रति (हर घर में)
प्रतिमासम् – मासं मासं प्रति (हर मास)

(v) यथा-यथा अव्यय के साथ अनतिक्रमण (अतिक्रमण या उल्लंघन न करने) के अर्थ में अव्ययीभाव समास होता है। यथा-
यथासमयम् – समयम् अनतिक्रम्य (समय के अनुसार)
यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य (शक्ति के अनुसार)
यथाविधि – विधिम् अनतिक्रम्य (विधि के अनुसार)

(vi) स-सहितम् के अर्थ में
सगर्वम् – गर्वेण सहितम् (गर्व के साथ)
सबलम् – बलेन सहितम् (बलपूर्वक)
सचित्रम् – चित्रेण सहितम (चित्र के साथ)

(vii) अधि-सप्तमी विभक्ति के अर्थ में
अधिगंगम् – गंगायाम् इति (गंगा में)
अधिहरि – हरौ इति (हरि में)

2. तत्पुरुष समास
इस समास में उत्तर पद (बाद वाला पद) प्रधान होता है। इसके पूर्वपद (पहले वाले पद) में द्वितीया विभक्ति से लेकर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। समस्त पद बनाने पर बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है। जैसे-

(i) द्वितीया तत्पुरुष – इस समास का उत्तर पद श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न, गमी तथा बुभुक्षुः आदि में से कोई एक होता है। यथा-
ग्रामं गतः – ग्रामगतः (गाँव को गया हुआ)
नरकं पतितः – नरकपतितः (नरक में गिरा हुआ)
कृष्णं श्रितः – कृष्णश्रितः (कृष्ण पर आश्रित)
भयम् आपन्नः – भयापन्नः (भय को प्राप्त हुआ)
अन्नं बुभुक्षुः – अन्नबुभुक्षुः (अन्न को खाने का इच्छुक)

(ii) तृतीया तत्पुरुष – पूर्व, सदृश, सम, कलह, निपुण तथा मिश्र शब्दों के संयोग में तृतीया तत्पुरुष समास होता है। यथा-
सप्ताहेन पूर्वः – सप्ताहपूर्वः (एक सप्ताह पहले का)
मात्रा सदृशः – मातृसदृशः (माता के समान)
वाचा कलहः – वाक्कलहः (वाणी के द्वारा झगड़ा)
धनेन हीनः – धनहीनः (धन से हीन)
आचारेण निपुणः – आचार-निपुणः (आचार में निपुण)

(iii) चतुर्थी तत्पुरुष – चतुर्थी विभक्ति वाले शब्दों का अर्थ, बलि, हित, सुख तथा रक्षित के साथ तत्पुरुष समास होता है। यथा-
भूतेभ्यः बलिः – भूतबलिः (प्राणियों के लिए अन्न)
द्विजाय अयम् – द्विजार्थः (द्विज के लिए)
गवे हितम् – गोहितम् (गाय के लिए हितकर)
सर्वेभ्यः सुखम् – सर्वसुखम् (सबके लिए सुख)
पाकाय शाला – पाकशाला (पकाने के लिए घर)

(iv) पंचमी तत्पुरुष – इसके पूर्व पद में पंचमी विभक्ति होती है और समास हो जाने पर समस्त पद में पूर्व पद की पंचमी विभक्ति का लोप हो जाता है। यह समास मुक्त, भय, भीत, भीति और भी के साथ होता है।
वृक्षात् पतितः – वृक्षपतितः (वृक्ष से गिरा हुआ)
सिंहाद् भीतः – सिंहभीतः (सिंह से भय)
रोगात् मुक्तः – रोगमुक्तः (रोग से मुक्त)

(v) षष्ठी तत्पुरुष – इसके पूर्व पद में षष्ठी विभक्ति होती है और समास हो जाने पर समस्त पद में पूर्वपद की षष्ठी विभक्ति का लोप हो जाता है। यथा-
राज्ञः पुरुषः – राजपुरुषः (राजा का पुरुष/सिपाही)
नृपस्य सेवकः – नृपसेवकः (राजा का सेवक)
विद्यायाः आलयः – विद्यालयः (विद्या का घर)
सूर्यस्य उदयः – सूर्योदयः (सूर्य का उदय)
परेषाम् उपकारः – परोपकारः (दूसरों का भला)

(vi) सप्तमी तत्पुरुष – इसका पूर्वपद सप्तमी विभक्ति में होता है। यह कुशल, निपुण, चपल, पण्डित, पटु, प्रवीण तथा धूर्त के साथ होता है।
वाचि पटुः – वाक्पटुः (वाणी में चतुर)
युद्धे कुशलः – युद्धकुशलः (युद्ध में कुशल)
अध्ययने पटुः – अध्ययनपटुः (अध्ययन में पटु)
रणे निपुणः – रणनिपुणः (रण में निपुण)
न्याये प्रवीणः – न्यायप्रवीणः (न्याय में प्रवीण)

3. कर्मधारय समास
जिस समास में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का एक साथ प्रयोग हो, वह कर्मधारय समास होता है। प्रायः दोनों पदों में प्रथमा विभक्ति होती है। यथा-
(क) विशेषण-विशेष्य – इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य होता है। दोनों पदों के बीच में च, असौ या तत् लगाकर विग्रह किया जाता है। यथा-
वीरः बालः – वीरबालः (वीर बालक)
मधुरं वचनम् – मधुरवचनम् (मधुर वचन)
पीतम् अम्बरम् – पीताम्बरम् (पीला कपड़ा)
कृष्णः सर्पः – कृष्णसर्पः (काला साँप)
नीलम् च तत् कमलम् – नीलकमलम् (नीला कमल)
महान् च असौ देवः – महादेवः (शिव)

(ख) उपमान-उपमेय – उपमान तथा उपमेय वाचक शब्दों को इव या एव शब्द से जोड़ा गया होता है। समस्त-पद में इनका लोप हो जाता है। यथा-
घनः इव श्यामः – घनश्यामः (बादल के समान सांवला)
मुखम् चन्द्रः इव – मुखचन्द्रः (मुख चन्द्र-जैसा)
पुरुषः सिंहः इव – पुरुषसिंहः (पुरुष सिंह जैसा)

4. द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाची होता है तथा वह किसी समूह का बोध कराता है, द्विगु समास कहलाता है। यथा-
त्रयाणाम् – भुवनानाम् – समाहारः – त्रिभुवनम्
नवानाम् – रात्रीणाम् – समाहारः – नवरात्रम्
पंचानाम् – वटानाम् – समाहारः – पंचवटी
चतुर्णाम् – युगानाम् – समाहारः – चतुर्युगम्
त्रयाणां – फलानाम् – समाहारः – त्रिफला
सप्तानाम् – अह्नां – समाहारः – सप्ताहः
पंचानाम् – तंत्राणाम् – समाहारः – पंचतंत्रम्

5. द्वन्द्व समास
इस समास में पूर्वपद और उत्तर पद दोनों समान रूप से प्रधान होते हैं। द्वन्द्व समास के विग्रह में प्रत्येक शब्द के साथ ‘च’ लगता है। यथा-
माता च पिता च – मातापितरौ
रामः च श्यामः च – रामश्यामौ
धर्मः च अर्थः च – धर्मार्थों
सीता च गीता च – सीतागीते
सुखम् च दुःखम् च – सुखदुःखे
धर्मः च अर्थः च कामः च – धर्मार्थकामाः
पाणी च पादौ च एषां समाहारः – पाणिपादम्
अहः च निशा च अनयोः समाहारः – अहर्निशम्

6. बहुव्रीहि समास
जिस समास में पूर्वपद और उत्तर पद दोनों ही किसी अन्य पद के विशेषण हों तथा कोई अन्य पद प्रधान हो, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। यथा-
लम्बम् उदरं यस्य सः – लम्बोदरः (लम्बे पेट वाला अर्थात् श्रीगणेश)
दश आननानि यस्य सः – दशाननः (दस मुखों वाला अर्थात् रावण)
पीतानि अम्बराणि यस्य सः – पीताम्बरः (पीले कपड़ों वाला अर्थात् श्रीकृष्ण)
नीलः कण्ठः यस्य सः – नीलकण्ठः (नीले कण्ठ वाला अर्थात् शिवजी)
चत्वारि मुखानि यस्य सः – चतुर्मुखः (चार मुख वाला अर्थात् ब्रह्मा जी)
महान् आशयो यस्य सः – महाशयः (कोई बड़ा व्यक्ति)
चन्द्रं इव मुखम् यस्याः सा – चन्द्रमुखी (चाँद के समान मुख है जिसका अर्थात् स्त्री-विशेष)
चक्रं पाणौ यस्य सः – चक्रपाणिः (हाथ में चक्र है जिसके अर्थात् श्री विष्णु)

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-

प्रश्न 1.
मातापितरौ आगच्छतः।
(क) मातुः च पितुः च
(ख) माताः च पिताः च
(ग) माता च पितरम् च
(घ) माता च पिता च
उत्तराणि:
(घ) माता च पिता च

प्रश्न 2.
अर्जुनः युद्धनिपुणः आसीत्।
(क) युद्धस्य निपुणः
(ख) युद्धं निपुणः
(ग) युद्धे निपुणः
(घ) युद्धेन निपुणः
उत्तराणि:
(ग) युद्धे निपुणः

प्रश्न 3.
सः यथाशक्ति कार्यम् करोति।
(क) शक्ते अनतिक्रम्य
(ख) शक्तिम् अनतिक्रम्य
(ग) शक्तिः अनतिक्रम्य
(घ) शक्तौ अनतिक्रम्य
उत्तराणि:
(ख) शक्तिम् अनतिक्रम्य

प्रश्न 4.
रामः ईश्वरपूजां करोति।
(क) ईश्वरेण पूजाम्
(ख) ईश्वरम् पूजा
(ग) ईश्वरे पूजां
(घ) ईश्वरस्य पूजाम्
उत्तराणि:
(घ) ईश्वरस्य पूजाम्

प्रश्न 5.
कृष्णार्जुनौ रथे उपविशतः।
(क) कृष्णं च अर्जुनं च
(ख) कृष्णस्य च अर्जुनस्य च
(ग) कृष्णः च अर्जुनः च
(घ) कृष्णेन च अर्जुनेन च
उत्तराणि:
(ग) कृष्णः च अर्जुनः च

प्रश्न 6.
अश्वपतितः रामः रोदति।
(क) अश्वम् पतितः
(ख) अश्वेन पतितः
(ग) अश्वस्य पतितः
(घ) अश्वात् पतितः
उत्तराणि:
(घ) अश्वात् पतितः

प्रश्न 7.
सः धनहीनः अस्ति।
(क) धनम् हीनः
(ख) धनात् हीन
(ग) धनेन हीनः
(घ) धनस्य हीनः
उत्तराणि:
(ग) धनेन हीनः

प्रश्न 8.
एषा पाकशाला अस्ति।
(क) पाकाय शाला
(ख) पाकस्य शाला
(ग) पाकायाम् शाला
(घ) पाकम् शाला
उत्तराणि:
(क) पाकाय शाला

प्रश्न 9.
सः प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छति।
(क) दिनस्य दिनस्य
(ख) दिनं दिनं
(ग) दिनात् दिनात्
(घ) दिनो दिनम्
उत्तराणि:
(ख) दिनं दिनं

प्रश्न 10.
अत्र एकः कृष्णसर्पः अस्ति।
(क) कृष्णम् सर्पः
(ख) कृष्णस्य सर्पः
(ग) कृष्णः सर्पः
(घ) कृष्णेन सर्पः
उत्तराणि:
(ग) कृष्णः सर्पः

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions उपसर्ग-प्रत्यय-प्रकरणम् च

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions उपसर्ग-प्रत्यय-प्रकरणम् च

उपसर्ग-प्रकरणम्
उपसर्ग – वे शब्द जो किसी धातु या संज्ञादि शब्दों से पूर्व जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। जैसेगच्छति- जाता है, आगच्छति- आता है। इसमें ‘आ’ उपसर्ग लगने से अर्थ बदल गया है।

संस्कृत-भाषा में बाईस उपसर्ग माने गए हैं-
प्र, परा, अप्, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उद्, अभि, प्रति, परि, उप।

संक्षेप में इन उपसर्गों के उदाहरण निम्नलिखित हैं-
प्र – प्रगति, प्रकृति, प्रबल, प्रभाव, प्राचार्य आदि।
परा – पराजय, पराधीन, पराक्रम, पराभव, परागत आदि।
अप – अपहरण, अपकार, अपशब्द, अपमान अपव्यय आदि।
सम् – समृद्धि, संगति, संस्कार, संतोष, सम्मुख आदि।
अनु – अनुकूल, अनुसरति, अनुस्मरति, अनुचरति, अनुरथम् आदि।
अव – अवतार, अवनति, अवज्ञा, अवगुण, अवतरण आदि।
निस्, निर् – निस्तेज, निस्सन्देह, निरादर, निर्धन, निर्बल, नीरोग आदि।
दुस्, दुर् – दुस्साध्य, दुष्परिणाम, दुरात्मन्, दुराचार, दुर्गुण, दुर्बल आदि।
वि – विचित्र, विजय, विशेष, विज्ञान, विदेश आदि।
आ – आगमन, आजन्म, आमरण, आरक्षण, आजीवन आदि।
नि – निधन, निवृत्त, निधान, नियम, निवारण आदि।
अधि – अधिकार, अधिपति, अधिकरण, अधिवास, अधिष्ठाता आदि।
अपि, अति – अपिधान (ढक्कन), अपिहित, अतिरिक्तः, अत्यधिकं, अतिदीनः आदि।
सु – सुकुमारः, सुपुत्रः सुगम, सुयोग, सुपात्र, सुशील आदि।
उद् – उद्घाटन, उद्भव, उत्थानम्, उद्गमः, उद्धार आदि।
अभि – अभिमान, अभिज्ञः, अभीष्ट, अभियान, अभिनय आदि।
प्रति – प्रतिवादी, प्रत्येकम्, प्रतिध्वनिः, प्रतिवर्षम्, प्रतिज्ञा।
परि – परित्याग, परीक्षा, परिपूर्णः, परिवर्तनम्ः, परिचालकः आदि।
उप – उपवनम्, उपकथा, उपनदि, उपयोग, उपगृहम् आदि।

उपसर्गों का वाक्यों में प्रयोग-

  1. आ – बालः आगच्छति। (आ + गम्)
  2. सु – सुयोग्यः अयं बालकः। (सु + योग्य शब्द)
  3. क्रोधात् मोहः सम्भवति। (सम् + भू)
  4. अत्र एकम् उपवनम् अस्ति। (उप + वनम्)।
  5. रामः दिल्ली-नगरे निवसति। (नि + वस्)।

प्रत्यय-प्रकरणम्
(क्त्वा, तुमुन्, शतृ प्रत्यय)
सुबन्त तथा तिङन्त के अतिरिक्त संस्कृत में कृत् तथा तद्धित प्रत्यय होते हैं। कृत् प्रत्यय धातुओं से तथा तद्धित संज्ञा शब्दों से होते हैं।

(क) क्त्वा प्रत्ययः / ल्यप् प्रत्ययः
जब दो क्रियाएँ आगे पीछे हों और उनका कर्ता एक ही हो तो एक वाक्य में पहली क्रिया के साथ क्त्वा प्रत्यय लगाया जाता है।
उदाहरण-
(i) सः विद्यालयं गच्छति। पश्चात् सः पठति।
(ii) सः भोजनं करोति। पश्चात् सः जलं पिबति।
(iii) सः पठति। पश्चात् सः विद्वान् भवति।
(iv) सः वृक्षम् आरोहति। पश्चात् सः फलानि खादति।
ऊपर दिये गये वाक्यों में क्त्वा का प्रयोग करके एक वाक्य बनाओ।
उत्तरम्
(i) सः विद्यालयं गत्वा पठति।
(ii) सः भोजनं कृत्वा जलं पिबति।
(iii) सः पठित्वा विद्वान् भवति।
(iv) सः वृक्षम् आरुह्य फलानि खादति।

यहाँ गत्वा, कृत्वा तथा पठित्वा में क्रमशः गम्, कृ तथा पठ् धातु से क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग हुआ है। ध्यान रहे क्त्वा का त्वा शेष रह जाता है। चौथे उदाहरण में आरुह्य में ल्यप् (य) का प्रयोग हुआ है। यदि धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो तो क्त्वा के स्थान पर ल्यप् हो जाता है।

निम्नलिखित धातुओं से क्त्वा प्रत्यय लगाकर वाक्य बनाओ-
दृश्, वच्, लिख्, दा।
उत्तरम्-
पहले निम्न वाक्यों को पढ़ें-
(i) सः वृक्षम् पश्यति। पश्चात् सः तम् आरोहति।
(ii) सः वार्ता वक्ति। पश्चात् सः गच्छति।
(iii) सः वस्त्रं यच्छति। पश्चात् सः प्रसन्नः भवति।
अब इनके दो-दो वाक्यों के एक-एक वाक्य बनाएँ तथा क्त्वा का प्रयोग करें-
(i) सः वृक्षम् दृष्ट्वा तम् आरोहाति।
(ii) सः वार्ताम् उक्त्वा गच्छति।
(iii) सः वस्त्रं दत्त्वा प्रसन्नः भवति।
इसी तरह हम अन्य धातुओं से भी वाक्य बना सकते हैं।

(ख) तुमुन्-प्रत्ययः
जहाँ कर्ता के लिए भविष्य में की जाने वाली किसी क्रिया का निमित्त वर्तमान में दूसरी क्रिया हो, वहाँ धातु के साथ तुमुन् लगाकर भविष्य की क्रिया का निर्देश होता है। जैसे-
(i) सः विद्यालयं गच्छति। सः तत्र गत्वा पठिष्यति।
(ii) सः पठति। पठनेन सः विद्वान् भविष्यति।
इनके स्थान पर तुमुन् का प्रयोग करते हुए एक वाक्य बनाओ-
(i) सः पठितुं विद्यालयं गच्छति।
(ii) सः विद्वान् भवितुं पठति।
इसी तरह निम्न वाक्य देखें-
(i) सः पूजां कर्तुम् (कृ + तुमुन्) मन्दिरं गच्छति।
(ii) सः पुस्तकं क्रेतुम् (क्री + तुमुन्) आपणं गच्छति।
(iii) पितुः आज्ञा पालयितुं (पाल् + तुमुन्) रामः वनं याति।
तुमुन् प्रत्यय का तुम् शेष रह जाता है।

(ग) शतृ प्रत्ययः
जब कर्ता एक ही समय में एक ही साथ दो क्रियायें कर रहा हो तो पहली क्रिया के साथ शतृ प्रत्यय का प्रयोग होता है। शतृ का अत् शेष रह जाता है।
पुंल्लिङ्ग में प्रायः अत् के त् का न हो जाता है। यथा-
(i) सः हसति, वदति च → सः हसन् वदति।
(ii) सः खादति, चलति च → सः खादन् चलति।
(iii) सः रोदिति आयाति च → सः रुदन् आयाति।
इन वाक्यों में हसन् (हस् + शत), खादन् (खाद् + शतृ) तथा रुदन् (रुद् + शतृ), शब्दों में शतृ प्रत्यय है।

(घ) क्त तथा क्तवतु प्रत्ययः
भूतकाल में लङ् लकार के स्थान पर कर्तृवाक्य में क्तवतु तथा कर्मवाच्य में क्त का प्रयोग भी होता है। जैसे-
(i) सः अहसत् के स्थान पर सः हसितवान्।
(ii) सः अगच्छत् के स्थान पर सः गतः।
(iii) सः पत्रम् अलिखत् के स्थान पर सः पत्रं लिखितवान्।
(iv) सः वृक्षम् अपश्यत् के स्थान पर तेन वृक्षः दृष्टः।
यहाँ गतः व दृष्टः में क्त प्रत्यय है गम् + क्त = गतः। दृश् + क्त = दृष्टः। इसी तरह हसितवान् व लिखितवान् में क्तवतु प्रत्यय है- हसितवान् = हस् + क्तवतु। लिखितवान् = लिख् + क्तवतु।

(i) प्रत्यय तालिका
क्त (भूतकाल) > त
गम् + क्त = गतः (गया हुआ)
नम् + क्त = नतः (झुका हुआ)
जन् + क्त = जातः (पैदा हुआ)
खाद् + क्त – खादितः (खाया हुआ)
श्रु + क्त = श्रुतः (सुना हुआ)
पा + क्त = पीतः (पीया हुआ)
हस् + क्त = हसितम् (नपुं०) (हँसा गया)
दा + क्त = दत्तः (दिया हुआ)

क्त्वा (करके) > त्वा
गम् + क्त्वा = गत्वा (जाकर)
लभ् + क्त्वा = लब्ध्वा (पाकर)
भू + क्त्वा = भूत्वा (होकर)
कृ + क्त्वा = कृत्वा (करके)
श्रु + क्त्वा = श्रुत्वा (सुनकर)
हस् + क्त्वा = हसित्वा (हँसकर)
लिख् + क्त्वा = लिखित्वा (लिखकर)
पा + क्त्वा = पीत्वा (पीकर)

क्तवतु (भूतकाल) > तवान् (पुं.)
पठ् + क्तवतु = पठितवान् (पढ़ा)
दा + क्तवतु = दत्तवान् (दिया)
श्रु + क्तवतु = श्रुतवान् (सुना)
खाद् + क्तवतु = खादितवान् (खाया)
भुज् + क्तवतु = भुक्तवान् (खाया)
लभ् + क्तवतु = लब्धवान् (पाया)
पा + क्तवतु = पीतवान् (पीया)

तुमुन् (के लिए) > तुम्
भू + तुमुन् = भवितुम् (होने के लिए)
कृ + तुमुन् = कर्तुम् (करने के लिए)
श्रु + तुमुन् = श्रोतुम् (सुनने के लिए)
नम् + तुमुन् = नन्तम् (झुकने के लिए)
गम् + तुमुन् = गन्तुम् (जाने के लिए)
जन् + तुमुन् = जनितुम् (पैदा करने के लिए)
लभ् + तुमुन् = लब्धुम् (पाने के लिए)
कथ् + तुमुन् = कथयितुम् (कहने के लिए)

(ii) कृदन्त-प्रत्यय-प्रयोगः
क्त, क्तवतु, शतृ, शानच् प्रत्ययः
क्त प्रत्यय-भूतकाल कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है, जैसे-
दत्तम्, जाता, कृता, आदि। दा + क्त – दत्तम्। जन् + क्त – जाता (स्त्री.)। कृ + क्त – कृता (स्त्रीलिङ्ग)।
(i) मया भवनं द्विधा विभज्य दत्तम्। (मेरे द्वारा घर दो भाग में बाँट कर दिया गया।)
(ii) निर्णयं श्रुत्वा सा प्रसन्ना जाता। (निर्णय सुनकर वह प्रसन्न हुई।)
(iii) जनैः न्यायधीशस्य प्रशंसा कृता। (लोगों द्वारा न्यायधीश की प्रशंसा की गई।)

क्तवतु प्रत्यय – यह भी भूतकाल में प्रयुक्त होता है। सामान्यतः कर्तृवाच्य में इसका प्रयोग होता है जैसे-
भाष् + क्तवतु – भाषितवान्।
घोष् + क्तवतु – घोषितवान्।
भाष् + क्तवतु – भाषितवान्
सः भूयो भाषितवान्।
घुष् + क्तवतु – घोषितवान्।
आ + ज्ञा + णिच् + क्तवतु – आज्ञप्तवान्
स प्रथमं भागं चित्रायै दातुम् आज्ञप्तवान्।

शतृ प्रत्यय – यह वर्तमान काल में हो रही क्रिया के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
घोष् + शतृ – घोषयन्।
घुष् + शतृ – घोषयन्,
तौ निजाधिकारं घोषयन्तौ (घोषणा करते हुए) आगतौ।

शतृ (करता हुआ) > अत्, अन्
कृ + शतृ = कुर्वन् (करता हुआ)
पा + शतृ = पिबन् (पीता हुआ)
पठ् + शतृ = पठन् (पढ़ता हुआ)
दा + शतृ = ददत् (देता हुआ)
श्रु + शतृ = शृण्वन् (सुनता हुआ)
हस् + शतृ = हसन् (हँसता हुआ)
भू + शतृ = भवन् (होता हुआ)
लभ् + शानच् = लभमानः (प्राप्त करता हुआ)

शानच् प्रत्यय – वर्तमान काल में आत्मनेपद में प्रयुक्त होता है।
वि + वद् + शानच् – विवदमानः,
तौ तथैव विवदमानौ (विवाद करते हुए) न्यायालयम् आगतौ।

(iii) स्त्रीप्रत्ययाः
पुरुषवाचक शब्दों से टाप् (आ) या, ङीप्, ङीष् (ई) प्रत्यय लगाकर स्त्रीवाचक शब्द बनाए जाते हैं।
जैसे- टाप् प्रत्यय के उदाहरण-
छात्र + टाप् (आ) – छात्रा।
देव + ङीप् (ई) – देवी।
श्रुत + टाप् (आ) – श्रुता।
नद + ङीप् (ई) – नदी।
अन्तिम + टाप् (आ) – अन्तिमा।
पुत्र + डीप (ई) – पुत्री।

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

धातु + क्त्वा / तुमुन् प्रत्यययोगेन निर्मितम् उचितपदं चित्वा लिखत-

प्रश्न 1.
कपयः वृक्षस्य उपरि (कूर्द + क्त्वा) प्रसन्नाः भवन्ति।
(क) कूर्दयित्वा
(ख) कूर्दत्वा
(ग) कूर्दित्वा
(घ) कूरदित्वा
उत्तराणि:
(ग) कूर्दित्वा

प्रश्न 2.
बालकः दुग्धं (पा + तुमुन्) रोदिति।
(क) पातुम्
(ख) पातुमुन्
(ग) पिवितुम्
(घ) पिबितुम्
उत्तराणि:
(क) पातुम्

प्रश्न 3.
निर्दिष्ट-धातु-प्रत्यययोगेन रूपेण वाक्यपूर्तिः कुरुत-
मेलकं (गम् + शतृ) बालकाः प्रसन्नाः भवन्ति।
(क) गच्छन्
(ख) गच्छत्
(ग) गच्छन्तः
(घ) गच्छन्ती
उत्तराणि:
(ग) गच्छन्तः

प्रश्न 4.
(धाव् + शतृ) बालिका भूमौ पतति।
(क) धावन्ती
(ख) धावन्
(ग) धावन्ति
(घ) धावत्
उत्तराणि:
(क) धावन्ती

प्रश्न 5.
रामेण रावणः (हन् + क्त)।
(क) हत
(ख) हतः
(ग) हता
(घ) हतम्
उत्तराणि:
(ख) हतः

प्रश्न 6.
छात्रैः पुस्तकानि (पठ् + क्त)।
(क) पठित
(ख) पठिताः
(ग) पठितः
(घ) पठितानि
उत्तराणि:
(घ) पठितानि

प्रश्न 7.
जनाः फलानि (क्री + तुमुन्) आपणं गच्छन्ति।
(क) क्रीतुम्
(ख) क्रेतुम
(ग) केतुम्
(घ) क्रीतुमुन्
उत्तराणि:
(ग) केतुम्

प्रश्न 8.
अष्टावक्र: उच्चैः (हस् + क्तवतु)।
(क) हसितवती
(ख) हसितवत्
(ग) हसितवान्
(घ) हसितवन्तः
उत्तराणि:
(ग) हसितवान्

प्रश्न 9.
अधोदत्तायाः सूच्याः उपसर्गान् विचित्य लिखित-
(क) दुर्गम ; क्त
(ख) पठन्ति
(ग) निः, परा, उप, प्र
(घ) तुमुन्
उत्तराणि:
(ग) निः, परा, उप, प्र

प्रश्न 10.
छात्राः पाठं पठ् + क्त्वा गृहं गच्छन्ति।
(क) पठित्वा
(ख) पठत्वा
(ग) पठितवा
(घ) पाठित्वा
उत्तराणि:
(क) पठित्वा

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions धातुरूप-प्रकरणम्

जिन शब्दों से कार्य के होने या करने का बोध हो उसे ‘क्रिया’ कहते हैं तथा उसके मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे- लिखना क्रिया का मूल रूप है लिख् अतः लिखना क्रिया की धातु ‘लिख्’ है। धातु के रूप पाँच लकारों में बनते हैं।

  1. लट् लकारः – वर्तमानकाल – अहम् पठामि।
  2. लृट् लकारः – भविष्यत् काल – सूर्यः अस्तं गमिष्यति।
  3. लङ् लकारः – भूतकालः – ते अखेलन्।
  4. लोट् लकारः – आज्ञा – त्वम् खाद।
  5. विधिलिङ् लकारः – इच्छार्थक / आदेशात्मक – सः लिखेत्।

(परस्मैपदी तथा आत्मनेपदी धातुओं के रूप-लट्, लङ् तथा लृट् लकारों में)

(i) परस्मैपदी धातवः
(क) वर्तमानकाले (लट् लकारे) प्रयोगाः
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 1
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 2

प्रयोगः
हम कहाँ हैं – वयं कुत्र स्मः?
वे मानव हैं – ते मानवाः सन्ति।
आप यहाँ होंगे – भवान् अत्र भविष्यति।
वह महान् बनेगा – सः महान् भविष्यति।
ईश्वर सर्वत्र है – ईश्वरः सर्वत्र अस्ति।
रामायण में रामचरित है – रामायणे रामचरितम् अस्ति।
वृक्ष पर पक्षी थे – वृक्षे खगाः आसन्।
आप घरों में थे – भवन्तः गृहेषु आसन्।
तुम कहाँ होंगे – यूयं कुत्र भविष्यथ?
हम यहाँ होंगे – वयम् अत्र भविष्यामः।
सूर्य आकाश में है – सूर्यः गगने अस्ति।
वह नष्ट हो गया – सः नष्टः अभवत्।
वह नष्ट हो जाएगा – सः नष्टः भविष्यति।

(ख) भूतकाले (लङ् लकारे) प्रयोगाः
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 3

(ग) भविष्यत्काले (लृट् लकारे) प्रयोगाः
(गम्, रक्ष, हस्, पा, खाद्, भक्ष्, चर्, वद्)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 4

(घ) लट् लकारे वस्-चर्-रक्ष-पूज्-धातूनां रूपाणि
(वस् धातु = रहना। चर् धातु = करना, चरना, चलना। रक्ष् = रक्षा करना। पूज् = पूजा करना।)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 5

(ङ) लङ् लकारे प्रमुख-धातुरूपाणि
(सभी प्रमुख धातुओं के लङ् लकार के रूप)
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 6
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 7
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 8

लट् लकार के अन्य रूप-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 9

कृ धातु के लट्, लङ् व लृट् लकारों में रूप-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 10
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 11

(ii) आत्मनेपदी धातवः
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions धातुरूप-प्रकरणम् 12

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

प्रश्न 1.
‘सेव्’ धातु लट्लकारे प्रथमपुरुषे एकवचने किं रूप भविष्यति?
(क) सेवेते
(ख) सेवते
(ग) सेवन्ते
(घ) सेवे
उत्तराणि:
(ख) सेवते

प्रश्न 2.
लट्लकारे ‘भू’ धातोः उत्तमपुरुषे द्विवचने ___________ रूपं अस्ति।
(क) भवति
(ख) भवन्ति
(ग) भवतः
(घ) भवावः
उत्तराणि:
(घ) भवावः

प्रश्न 3.
निम्नलिखितपदे कः लकारः अस्ति?
पास्यतः
(क) लट्लकारः
(ख) लोट्लकारः
(ग) लङ्लकारः
(घ) लृट्लकारः
उत्तराणि:
(घ) लृट्लकारः

प्रश्न 4.
निम्नलिखितपदे कः पुरुषः?
आस्तम्
(क) उत्तमपुरुष
(ख) मध्यमपुरुष
(ग) प्रथमपुरुष
(घ) कुपुरुष
उत्तराणि:
(ख) मध्यमपुरुष

प्रश्न 5.
लट्लकारस्य क्रियापदेन रिक्तपूर्तिः क्रियन्ताम्
भवान् विद्यालयं कदा ___________?
(क) गच्छसि
(ख) गच्छति
(ग) गच्छन्ति
(घ) गच्छामि
उत्तराणि:
(ख) गच्छति

प्रश्न 6.
लङ्लकारस्य पदेन रिक्तपूर्तिः क्रियन्ताम्
वने मुनयः ___________।
(क) वसन्ति
(ख) अवसन्
(ग) अवसत्
(घ) वसन्तु
उत्तराणि:
(ख) अवसन्

प्रश्न 7.
अधोलिखितवाक्ये लुट्लकारस्य रूपेण रिक्तस्थानं पूरयत-
सर्वे जनाः श्वः मुम्बईनगरं ___________।
(क) गमिष्यथ
(ख) गमिष्यति
(ग) गमिष्यन्ति
(घ) गमिष्यसि
उत्तराणि:
(ग) गमिष्यन्ति

प्रश्न 8.
लट्लकारस्य रूपेण रिक्तपूर्तिः क्रियन्ताम्।
सरोवरेषु नीलानि उत्पलानि ___________।
(क) अविकसन्
(ख) अविकसत्
(ग) विकसन्ति
(घ) विकसति
उत्तराणि:
(ग) विकसन्ति

प्रश्न 9.
‘कृ’ धातोः लङ्लकारे मध्यमपुरुषे बहुवचने किं रूप?
(क) अकुरुत
(ख) अकुरूताम्
(ग) अकरोः
(घ) अकरोत्
उत्तराणि:
(क) अकुरुत