बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 2

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Class 8 Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary Notes

बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary

प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्र’ के तृतीय खण्ड से संकलित है। यह खण्ड ‘काकोलूकीय’ नाम से जाना जाता है। पञ्चतन्त्र के रचयिता . का नाम ‘विष्णुशर्मा’ है। इस ग्रन्थ की रचना विष्णुशर्मा ने राजा अमरशक्ति के मूर्ख पुत्रों को नीतिशास्त्र की शिक्षा देने के लिए की थी। इस ग्रन्थ में पाँच खण्ड हैं, जिन्हें ‘तन्त्र’ कहते हैं। पञ्चतन्त्र एक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ है। इसमें अनेक कथाएँ ई हैं। बीच-बीच में शिक्षाप्रद श्लोक भी दिए गए हैं। कथाओं के पात्र प्रायः पशु-पक्षी हैं। पाठ का सार इस प्रकार है किसी वन में खरनखर नामक सिंह रहता था। वह भोजन की खोज में घूम रहा था। सायंकाल एक विशाल गुफा को देख कर उसने सोचा-‘इस गुफा में रात में अवश्य कोई प्राणी आता है। अतः यहाँ छिप कर बैठता हूँ।’

बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 2.1

इसी बीच उस गुफा का स्वामी दधिपुच्छ नामक गीदड़ वहाँ आया और सिंह के पैरों के निशान देखकर बाहर खड़ा हो गया। गीदड़ बुद्धिपूर्वक विचार करके गुफा से कहने लगा-‘अरे गुफा! आज तुम मुझे क्यों नहीं बुला रही हो?’
बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 2.2

यह सुनकर (मूर्ख) सिंह ने सोचा कि यह गुफा इस गीदड़ को प्रतिदिन बुलाती होगी। आज मेरे भय से नहीं बुला रही है। यह सोचकर सिंह ने उसे अन्दर आने के लिए कहा। सिंह की आवाज सुनकर गीदड़ ने कहा- मैंने आज तक गुफा की आवाज नहीं सुनी।’ ऐसा कह कर वह भाग गया।

बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्तत: परिभ्रमन् क्षुधातः न किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-“नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि” इति।

शब्दार्थ-
कस्मिंश्चित्-किसी।
प्रतिवसति स्म-रहता था।
इतस्ततः-इधर-उधर (Wandering)।
क्षुधार्तः-भूख से व्याकुल (Extremely Hungry)।
किञ्चिदपि-कुछ भी।
ततः-तब।
महतीम्-विशाल।
दृष्ट्वा-देखकर।
नूनम्-अवश्य ही । निश्चित रूप से।
वने-वन में।
कदाचित्-किसी समय।
परिभ्रमन्-घूमता हुआ।
आहारम्-भोजन।
एकाम्-एक।
गुहाम्-गुफा (Cave) को।
अचिन्तयत्-सोचा।
एतस्याम्-इसमें।
रात्रौ-रात में।
जीवः-प्राणी।
अतः-इसलिए।
निगूढो भूत्वा-छिप कर (Hide)
कोऽपि-कोई भी।
आगच्छति-आता है।
अत्रैव-यहाँ पर ही।
तिष्ठामि-बैठ जाता हूँ।

सरलार्थ-
किसी वन में खरनखर नामक सिंह (Lion) रहता था। किसी समय भूख से व्याकुल होकर इधर-उधर घूमते हुए उसे कुछ भी भोजन प्राप्त न हुआ। तब सूर्य के अस्त होने के समय एक विशाल गुफा को देखकर वह सोचने लगा-“निश्चित रूप से इस गुफा में रात में कोई प्राणी आता है। अतः यहाँ पर ही छिप कर बैठता हूँ।”

(ख) एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नामकः शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता।शृगालः अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?”

शब्दार्थ-
एतस्मिन् अन्तरे-इसी बीच (Meantime)।
नामकः-नाम।
समागच्छत्-आ गया (Reached)।
पश्यति-देखता है।
सिंहपद०-सिंह के पैरों के।
प्रविष्टा-प्रविष्ट हुई । अंदर चली गई।
बहिः-बाहर।
अचिन्तयत्-सोचने लगा।
नूनम्-अवश्य ही।
अस्तीति-है-ऐसा।
करवाणि-करूँ।
गुहायाः-गुफा का (Cave)।
शृगालः-गीदड़ (Jackal)।
यावत्-ज्यों ही।
तावत्-त्यों ही।
पद्धतिः-निशान।
दृश्यते-दिखाई पड़ रही है।
आगता-आ गई।
विनष्ट:-नष्ट हो गया। न
अस्मिन्-इस।
तर्कयामि-सोचता हूँ।

सरलार्थ-
इसी बीच गुफा का मालिक दधिपुच्छ नामक गीदड़ आ गया। जैसे ही वह देखता है, वैसे ही शेर के पंजों के निशान गुफा में प्रविष्ट होते हुए (जाते हुए) दिखाई पड़े तथा (वे निशान) बाहर नहीं आए। गीदड़ सोचने लगा-“अरे, मैं मर गया। अवश्य ही, इस बिल में शेर है-ऐसा मैं मानता हूँ। तो क्या करूँ?”

(ग) एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः-‘भो बिल! भो बिल! किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यतः प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि इति।”

शब्दार्थ –
एवम्-इस प्रकार।
दूरस्थ:-दूर खड़ा होकर।
कर्तुम्-करने के लिए।
किम – क्या
स्मरसि-तुम याद करते हो (Recollect)
त्वया सह-तुम्हारे साथ।
कृतः-की।
यदा-जब।
विचिन्त्य-सोच कर।
रवम्-आवाज / शब्द।
आरब्धः-आरम्भ किया।
यन्मया-कि मैंने।
समयः-प्रतिज्ञा / समझौता।
यत्-कि।
बाह्यतः-बाहर से।
तदा-तब।
प्रत्यागमिष्यामि-लौटूंगा।
आकारयिष्यसि-बुलाओगे।
तर्हि-तो।
आह्वयसि-बुलाती हो।
यास्यामि-चला जाऊँगा।

सरलार्थ-
ऐसा विचार कर दूर खड़े होकर आवाज करना शुरू किया- “अरे बिल! अरे बिल! क्या तुम्हें याद नहीं है, कि मैंने तुम्हारे साथ समझौता किया है कि जब मैं बाहर से लौटूंगा तब तुम मुझे बुलाओगे? यदि तुम मुझे नहीं बुलाते हो तो मैं दूसरे बिल में चला जाऊँगा।”

(घ) अथ एतच्छ्रुत्वा सिंहः अचिन्तयत्-“नूनमेषा गुहा स्वामिनः सदा समाह्वानं करोति। परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।”

अथवा साध्विदम् उच्यते –
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।

अन्वयः –
भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः वाणी च न प्रवर्तन्ते, वेपथुः च अधिकः भवेत्।

शब्दार्थ-
अथ-इसके बाद।
श्रुत्वा-सुनकर।
नूनम्-अवश्य।
स्वामिनः-स्वामी का (Master)।
परन्तु-लेकिन।
भयात्-डर से।
वदति-कहती है।
उच्यते-कहा गया है।
सन्त्रस्त०-डरा हुआ।
पाद०-पैर आदि।
वेपथुः-कम्पन (Trembling)
एतत्- यह
अचिन्तयत्-सोचा।
एषा – यह।
समाह्वानम्-आह्वान / बुलाना।
मद्-मेरे।
किञ्चित्-कुछ।
साधु-उचित।
भय०-डर।
मनसा-मन वाले।
हस्त०-हाथ।
प्रवर्तन्ते-प्रवृत्त होती हैं।
भवेत्-होता है।

सरलार्थ-
इसके बाद यह सुनकर सिंह सोचने लगा-“अवश्य ही यह गुफा अपने स्वामी को सदा बुलाती होगी; परन्तु मेरे डर से (आज) कुछ नहीं बोल रही है।”

अथवा यह उचित ही कहा है –
भय से डरे हुए मन वाले (लोगों) के हाथ व पैरों से सम्बन्धित क्रियाएँ तथा वाणी ठीक से प्रवृत्त नहीं हुआ करती हैं तथा कम्पन अधिक होता है।

(ङ) तदहम् अस्य आह्वानं करोमि। एवं सः बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। इत्थं विचार्य सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। सिंहस्य उच्चगर्जनप्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्। अनेन अन्येऽपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोऽपि ततः दूरं पलायमानः इममपठत्

शब्दार्थ-
तद्-तब (तो)।
एवम्-इस प्रकार।
मे-मेरा।
इत्थम्-इस प्रकार।
सहसा-अचानक।
प्रतिध्वनिना-गूंज के द्वारा (Echo)
आह्वयत्-बुलाया।
भयभीताः-डर से, डर कर।
पलायमानः-भागता हुआ।
अपठत्-पढ़ा।
आह्वानं करोमि-बुलाता हूँ।
प्रविश्य-प्रवेश करके। मे-मेरा।
भोज्यम्-भोजन
विचार्य-विचार करके।
उच्चगर्जन०-ऊँची गर्जना, दहाड़ (Roar)
उच्चैः -जोर से।
अनेन-इस प्रकार।
ततः-उससे।
इमम्-इस।
अन्येऽपि-दूसरे भी।

सरलार्थ-
तो मैं इसे बुलाता हूँ। इस प्रकार वह बिल में घुस कर मेरा भोजन बन जाएगा। इस प्रकार विचार करके सिंह ने एकाएक गीदड़ को बुलाया। सिंह की ऊँची गर्जना (दहाड़) की गूंज से उस गुफा ने जोर से गीदड़ को बुलाया। इससे अन्य पशु भी भयभीत हो गए। गीदड़ भी उससे दूर भागता हुआ इस (श्लोक) को पढ़ने लगा

अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता॥

अन्वयः-
यः अनागतं कुरुते, सः शोभते। यो अनागतं न करोति, सः शोच्यते। अत्र वने संस्थस्य (मे) जरा समागता, (परम्) कदापि बिलस्य वाणी मे न श्रुता।

शब्दार्थ-
अनागतम्-न आने वाले (दुःख) को।
कुरुते-(प्रतीकार) करता है।
शोच्यते-चिन्तनीय होता है।
संस्थस्य-रहते हुए (Living)
जरा-बुढ़ापा (Old age)
मे-मैंने । मेरे द्वारा।
यः-जो।
शोभते-शोभा पाता है।
वनेऽत्र-यहाँ जंगल में।
समागता-(प्राप्त) हो गई है।
कदापि-कभी भी।
श्रुता-सुनी।

सरलार्थ –
जो (व्यक्ति) न आए हुए (दुःख) का (प्रतीकार) करता है, वह शोभा पाता है। जो न आए हुए (दुःख) का (प्रतीकार) नहीं करता है, वह चिन्तनीय होता है। यहाँ वन में रहते हुए मैं बूढ़ा हो गया हूँ, (परन्तु) कभी भी मैंने बिल की आवाज नहीं सुनी।

भावार्थ-
जो अनागत अर्थात् भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति के निराकरण का उपाय करता है, वह संसार में शोभा पाता है। जो आने वाले कल (आपदा) से बचाव का उपाय नहीं करता है, वह दु:खी होता है। यहाँ वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया परंतु मैंने कभी भी बिल की आवाज नहीं सुनी।

सुभाषितानि Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 1

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Class 8 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि Summary Notes

सुभाषितानि Summary

[‘सुभाषित’ शब्द ‘सु + भाषित’ इन दो शब्दों के मेल से सम्पन्न होता है। सु का अर्थ सुन्दर, मधुर तथा भाषित का अर्थ वचन है। इस तरह सुभाषित का अर्थ सुन्दर/मधुर वचन है। प्रस्तुत पाठ में सूक्तिमञ्जरी, नीतिशतकम्, मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम्, पञ्चतन्त्रम् से रोचक और विचारपरक श्लोकों को संगृहीत किया गया है।]

सुभाषितानि Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥1॥

अन्वयः –
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति । ते (गुणाः) निर्गुणं प्राप्य दोषा भवन्ति। (यथा) सुस्वादुतोयाः नद्यः प्रभवन्ति, (परं) समुद्रम् आसाद्य (ताः) अपेया भवन्ति।

शब्दार्थ
गुणा: – गुण (Qualities)।
भवन्ति – होते हैं।
निर्गुणम् – निर्गुण को (Demerits)
दोषाः – अवगुण (Disqualities)
प्रभवन्ति-निकलती हैं। उत्पन्न होती हैं।
नधः – नदियाँ।
गुणज्ञेषु – गुणियों में।
ते – वे।
प्राप्य – प्राप्त करके।
सुस्वादुतोयाः – स्वादिष्ट जल वाली (नदियाँ)।
समुद्रम् – समुद्र को।
आसाद्य – पहुँच कर।
अपेयाः – पीने योग्य नहीं होती हैं।

सरलार्थ –
गुणवान् व्यक्तियों में गुण गुण (ही) होते हैं (तथा) वे (अर्थात् गुण) गुणहीन (व्यक्ति) को प्राप्त करके दोष बन जाते हैं। (जिस प्रकार) नदियाँ स्वादिष्ट जल से युक्त ही (पर्वत से) निकलती हैं, (परंतु) समुद्र में पहुँच कर (वे) पीने योग्य नहीं होती हैं।

(ख) साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुःपुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम्॥2॥

अन्वयः –
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः (जनः) साक्षात् पुच्छविषाणहीनः पशुः तृणं न खादन् अपि (पशुरिव) जीवमानः (अस्ति)। तद् पशूनां परमं भागधेयम् (अस्ति)।

शब्दार्थ –
विहीनः – रहित (Without)।
पशुः – पशु।
विषाण० – सींग (Horn)।
तृणम्-घास (Grass)।
अपि – भी।
भागधेयम् – भाग्य।
पशूनाम् – पशुओं का।
परमम् – परम/बड़ा।
साहित्य – (Literature)
साक्षात् – वास्तव में। (Really)
पुच्छ० – पूँछ (Tail)
हीन: – रहित । बिना।
खादन् – खाता हुआ।
जीवमानः – जीवित है।

सरलार्थ –
साहित्य, संगीत तथा कला-कौशल से शून्य (व्यक्ति) वास्तव में पूंछ व सींग से रहित पशु है, जो घास न खाता हुआ भी (पशु के समान) जीवित है। यह उन पशुओं का अत्यधिक सौभाग्य है।

(ग)लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य॥ 3॥

अन्वयः –
लुब्धस्य यशः, पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलम्, अर्थपरस्य धर्मः, व्यसनिनो विद्याफलं, कृपणस्य सौख्यम्, प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य राज्यं नश्यति।

शब्दार्थ-
लुब्धस्य-लालची का (Greedy)।
पिशुनस्य – चुगलखोर की (Backbiter)।
नष्टक्रियस्य – जिसकी क्रिया नष्ट हो गई है।
व्यसनिन: – बुरी लत वाले का।
सौख्यम् – सुख।
प्रमत्त० – प्रमाद से युक्त (Idle)
नराधिपस्य – राजा का।
नश्यति – नष्ट हो जाता है।
मैत्री – मित्रता।
अर्थपरस्य – जो धन को अधिक महत्त्व देता गई है।
कृपणस्य – कंजूस व्यक्ति का (Miser)।
राज्यम् – राज्य।
सचिव० – मंत्री।

सरलार्थ –
लालची (व्यक्ति) का यश, चुगलखोर की मित्रता, जिसके कर्म नष्ट हो गए हैं (अकर्मण्य) उसका कुल, धनपरायण (धन को अधिक महत्त्व देने वाले व्यक्ति) का धर्म, बुरी लत वाले का विद्या का फल, कंजूस का सुख तथा जिसके मंत्री प्रमाद से पूर्ण हैं ऐसे राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।

(घ) पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति॥4॥

अन्वयः –
असौ मधुमक्षिका कटुकं मधुरं (वा) रसं समानं पीत्वा माधुर्यम् एव जनयेत् । तथैव सन्तः समसज्जनदुर्जनानां वचः श्रुत्वा मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।

शब्दार्थ-
पीत्वा – पीकर।
कटुकम् – कड़वा।
समानम् – समान रूप से।
एव – ही।
असौ – यह (स्त्रीलिंग)।
सन्तः – संत लोग।
दुर्जन० – दुष्ट व्यक्ति (Evil Minded, Giants)
वचः – वचन को।
मधुरसूक्तरसं-मधुर सूक्तियों (Proverbs) के रस को।
तु – अथवा।
मधुरम् – मीठा।
माधुर्यम् – मधुर।
जनयेत् – पैदा करती है।
मधुमक्षिका – मधुमक्खी (Honey Bee)।
तथैव – उसी प्रकार ही।
श्रुत्वा – सुनकर।
सृजन्ति – निर्माण करते हैं (Make)।

सरलार्थ-
(जिस प्रकार) यह मधुमक्खी कड़वे अथवा मधुर रस को समान रूप से पीकर मधुर रस ही उत्पन्न करती है। उसी प्रकार सन्त लोग सज्जन और दुष्ट लोगों के वचन को एक समान रूप से सुन कर मधुर सूक्ति रूप रस का निर्माण करते है।

(ङ) विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते।
प्रासादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः॥5॥

अन्वयः –
यः पौरुषं विहाय हि दैवम् एव अवलम्बते, तस्य मूर्ध्नि प्रासादसिंहवत् वायसाः तिष्ठन्ति।।

शब्दार्थ –
विहाय – छोड़कर।
दैवम् – भाग्य।
अवलम्बते – सहारा लेता है।
मूर्ध्नि – सिर पर।
वायसाः – कौए (Crows)।
पौरुषम् – पुरुषार्थ को (Struggle)।
प्रासाद० – महल।
एव – ही।
प्रासाद० – महल।
तिष्ठन्ति – बैठते हैं।

सरलार्थ – जो (व्यक्ति) परिश्रम का त्याग करके भाग्य का सहारा लेता है, उसके सिर पर महल पर स्थित सिंह के समान कौए (ही) बैठा करते हैं।

(च)पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः।
धन्या महीरुहाः येषां विमुखं यान्ति नार्थिनः॥6॥

अन्वयः-
महीरुहाः पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः धन्या (सन्ति)। येषां अर्थिनः विमुखाः न यान्ति।।

शब्दार्थ-
पुष्प – फूल (Flower)।
मूल – जड़।
दारुभिः – लकड़ियों द्वारा।
विमुखं – खाली हाथ।
अर्थिनः – याचक।
पत्र – पत्ता।
वल्कल – पेड़ की छाल।
महीरुहाः – वृक्ष (Trees)।
यान्ति – जाते हैं।

सुभाषितानि

सरलार्थ –
वृक्ष फूल, पत्ते, फल, छाया, जड़, छाल तथा लकड़ियों के द्वारा धन्य हैं। जिनके याचक (कभी) खाली हाथ नहीं जाते हैं।

(छ) चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे॥7॥

अन्वयः
विपदा प्रतिक्रियाः आदौ एव हि चिन्तनीयाः। वह्निना प्रदीप्ते गृहे कूपखननं न युक्तम् (भवति।)।।

शब्दार्थ-
चिन्तनीयाः-विचार करना चाहिए।
आदौ – प्रारम्भ में।
कूप – कुआ।
युक्तम् – उचित।
वह्निना – अग्नि (Fire)
विपदाम् – विपत्तियों का
प्रतिक्रिया: – बचाव (Solution)।
खननम् – खोदना।
प्रदीप्ते – लग जाने पर।
गृहे -घर।

सरलार्थ –
संकटों का बचाव आरम्भ में ही सोच लेना चाहिए। घर में आग लग जाने पर कुआ खोदना उचित नहीं है।

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions परिशिष्टभागः

We have given detailed NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Grammar Book परिशिष्टभागः Questions and Answers come in handy for quickly completing your homework.

Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions परिशिष्टभागः

I. सम्बन्धवाचकशब्दाः (संबंधवाचक शब्द)

1. अनुजः = छोटा भाई
2. अग्रजः = बड़ा भाई
3. सहोदरः = सगा भाई
4. भ्राता = भाई
5. भगिनी / स्वसा = बहन
6. जननी / माता = माता
7. जनक: / पिता = पिता
8. पितृव्य: / ज्येष्ठपितृव्यः = चाचा
9. मातुलः = मामा
10. पत्नी/भार्या = पत्नी
11. पति:/भर्ता = पति
12. वधूः = बहू
13. वरः = वर
14. दुर्लभः = दूल्हा
15. स्नुषा = पुत्रवधू
16. पितामहः = दादा
17. पितामही = दादी
18. मातामहः = नाना
19. मातामही = नानी
20. श्वश्रूः = सास
21. श्वशुरः = ससुर
22. पितृष्वसा = बुआ
23. मातृष्वसा = मौसी
24. जामाता = दामाद
25. भगिनेयः = बहनोई
26. जाया = पत्नी
27. भ्रातृजः = भतीजा
28. भ्रातृजा = भतीजी
29. दुहिता = बेटी
30. आत्मजः / सुतः / पुत्रः = बेटा

II. शरीरस्य अङ्गानि (शरीर के अवयव)

31. शरीरम् = शरीर
32. मस्तकम् = माथा
33. शीर्षम् / शिरस् = सिर
34. शिखा = चोटी
35. केशाः = बाल
36. मुखम् / आननम् = मुख
37. पृष्ठम् = पीठ
38. हृदयम् = हृदय
39. कण्ठः = कण्ठ, गला
40. नेत्रम् / नयनम् = आँख
41. उदरम् / जठरम् = पेट
42. चिबुकम् = ठोड़ी
43. जानु = घुटना
44. भ्रूः = भौंहे
45. नासिका = नाक
46. कर्णः = कान
47. हस्त: / करः = हाथ
48. अङ्गुलिः = उंगली
49. कराग्रः = हाथ का अगला भाग
50. नखः = नाखून
51. ग्रीवा = गर्दन
52. पादः = पैर
53. मुष्टिः = मुट्ठी
54. जिह्वा = जीभ
55. कपोलम् = गाल
56. दन्ताः = दाँत
57. अगुष्ठम् = अंगूठा

III. पशवः (पशु)

58. शूकर: / वराहः = सूअर
59. उलूकः = उल्लू
60. अज: / अजा = बकरा / बकरी
61. धेनु: / गौः = गाय
62. कुक्कुर: / श्वा = कुत्ता
63. अश्वः = घोड़ा
64. मृगः = हिरन
65. गर्दभः = गधा
66. उष्ट्रः = ऊँट
67. वत्सः = बछड़ा
68. गजः = हाथी
69. सिंहः = शेर
70. गोमायुः / शृगालः = गीदड़
71. व्याघ्रः = बाघ
72. महिषी = भैंस
73. विडालः = बिल्ला
74. विडाला = बिल्ली
75. वृषभः = बैल
76. गण्डकः = गेंडा
77. चित्रकः = चीता
78. शशकः = खरगोश
79. बकः = बगुला
80. मीन: / मत्स्यः = मछली
81. सर्पः = साँप
82. महिषः = भैंसा
83. नकुलः = नेवला

IV. खगाः (पक्षी)

84. खगः = पक्षी
85. कोकिलः = कोयल
86. कपोतः = कबूतर
87. गृध्रः = गीध
88. मयूरः = मोर
89. शुकः = तोता
90. भ्रमरः = भौंरा|
91. चातकः = पपीहा
92. चटकः = चिड़ा
93. चटका = चिड़िया
94. वायसः / काकः = कौआ
95. हंसः = हंस
96. सारसः = सारस
97. श्येनः = बाज

V. वस्त्रनामानि (वस्त्रों के नाम)

98. उरुकम् = पैंट
99. अधोरुकम् = निक्कर
100. युतकम् = शर्ट
101. शिरस्त्राणम् = टोपी
102. उष्णीषम् = पगड़ी
103. धौतवस्त्रम् = धोती
104. शाटिका = साड़ी
105. राङ्कवम् = अंगोछा
106. प्रोञ्छः = तौलिया
107. करवस्त्रम् = रुमाल
108. पादांशुकम् = पायजामा
109. कटिवस्त्रम् = लंगोट
110. अन्तर्युतकम् = बनियान
111. अञ्चलम् = चुन्नी
112. निचोलः = पेटीकोट
113. अर्धनिचोलः = जम्फर
114. प्रावारकः = चादर
115. कम्बलः = कम्बल
116. विष्टरः = बिस्तर
117. उत्तरीयम् = दुपट्टा

VI. फलानि (फल)

118. दाडिमम् = अनार
119. आम्रम् = आम
120. द्राक्षाफलम् = अंगूर
121. अमृतफलम् / दृढबीजम् = अमरूद
122. कदलीफलम् = केला
123. वातादम् = बादाम
124. तरबीजम् = तरबूज
125. खरबीजम् / दशाङ्गुलम् = खरबूजा
126. लीचिका फलम् = लीची
127. अक्षोटम् = अखरोट
128. काजवम् = काजू
129. अकोलम् = पिस्ता

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions शुद्ध-अशुद्ध-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions शुद्ध-अशुद्ध-प्रकरणम्

1. निम्न वाक्यों में क्रियापदों को शुद्ध करो।
(i) ते छात्राः अक्रीडत्।
(ii) रामः सत्यम् अवदन्।
(iii) भवान् न जानासि।
(iv) त्वं किं करोति?
(v) तव नाम किम् असि?
(vi) त्वं मूर्योऽस्ति।
(vii) सः शीघ्रं गमिष्यन्ति।
(viii) यूयं पठसि।
(ix) वयं पठावः।
(x) तौ न हसन्ति।
उत्तरम्-
(i) ते छात्राः अक्रीडन्।
(ii) रामः सत्यम् अवदत्।
(iii) भवान् न जानाति।
(iv) त्वं किं करोषि?
(v) तव नाम किम् अस्ति?
(vi) त्वं मूर्योऽसि।
(vii) सः शीघ्रं गमिष्यति।
(vii) यूयं पठथ।
(ix) वयं पठामः।
(x) तौ न हसतः।

उपर्युक्त वाक्यों में क्रियापद कर्ता के अनुसार पुरुष या वचन की दृष्टि से अशुद्ध थे। अतः क्रियापद के पुरुष तथा वचन को कर्तापद के अनुसार ठीक करके ऊपर शुद्ध वाक्यों को दिया गया है।

2. लकार की दृष्टि से भी क्रियापद में अशुद्धि हो सकती है। जैसे-
(i) अद्य रविवारः आसीत्।
(ii) पुरा दशरथः नाम राजा अस्ति।
(iii) भविष्यत्काले जनाः धार्मिकाः सन्ति।
(iv) श्वः सोमवारः आसीत्।
(v) ह्यः मंगलवारः भविष्यति।
(vi) गतवर्षे विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति।

ऊपर के वाक्यों में क्रियापदों में वर्तमानकाल में लट्, भूतकाल में लङ् तथा भविष्यत्काल में लृट् लकार का प्रयोग किया जाए तो शुद्ध वाक्य निम्न रूप में बनेंगे-
(i) अद्य रविवारः अस्ति।
(ii) पुरा दशरथः नाम राजा आसीत्।
(iii) भविष्यत्काले जनाः धार्मिकाः भविष्यन्ति।
(iv) श्वः सोमवारः भविष्यति।
(v) ह्यः मंगलवारः आसीत्।
(vi) गतवर्षे विद्यालये वार्षिकोत्सवः आसीत्।

नीचे कुछ वाक्य दिये जा रहे हैं जिनमें क्रियापद को देखकर कर्तृपद को उसके अनुसार ठीक करना है। यथा-
(i) अत्र वृक्षः सन्ति।
(ii) तत्र खगः आसन्।
(iii) रात्रौ उत्सवाः भविष्यति।
(iv) अहं किं करोषि?
(v) त्वं किं करोमि।
(vi) अद्य वयं न पठिष्यावः।

इन वाक्यों में कर्तृपद में वही पुरुष तथा वचन होना चाहिए जो क्रियापद में है। अतः शुद्ध वाक्य होंगे-
(i) अत्र वृक्षाः सन्ति।
(ii) तत्र खगाः आसन्।
(iii) रात्रौ उत्सवः भविष्यति।
(iv) त्वं किं करोषि?
(v) अहं किं करोमि?
(vi) अद्य आवां न पठिष्याव:।

नीचे दिए वाक्यों में विशेषण पदों में उसी लिङ्ग तथा वचन को लगाना है जो विशेष्य पदों में है अथवा विशेषण पदों के अनुसार विशेष्य पदों को बदलना है। जैसे-
(i) विद्यालये त्रयः बालकः क्रीडन्ति।
(ii) सा एका वृक्षम् अपश्यत्।
(iii) नूनम् अधिकः वृष्टिः भविष्यति।
(iv) तत्र चत्वारि बालकाः क्रीडन्ति।
(v) अत्र तिस्रः बालकाः लिखन्ति।
(vi) वयं द्वौ बालिके अपश्याम।

उनके शुद्ध रूप होंगे-
(i) विद्यालये त्रयः बालकाः क्रीडन्ति।
(ii) सा एकं वृक्षम् अपश्यत्।
(iii) नूनम् अधिका वृष्टिः भविष्यति।
(iv) तत्र चत्वारः बालकाः क्रीडन्ति।
(v) अत्र तिस्रः बालिकाः लिखन्ति।
(vi) वयं द्वे बालिके अपश्याम।

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानि संशोधयत-

प्रश्न 1.
पुरा शुद्धोधनः नाम नृपः अस्ति।
(क) आस्तम्
(ख) आसन्
(ग) आसीत्
(घ) आस्ताम्
उत्तराणि:
(ग) आसीत्

प्रश्न 2.
छात्राः श्वः विद्यालये न गच्छन्ति।
(क) गमिष्यन्ति
(ख) गमिष्यति
(ग) गमिष्यतः
(घ) गमिष्यथः
उत्तराणि:
(क) गमिष्यन्ति

प्रश्न 3.
आवाम् फलानि क्रेतुम् आपणं गच्छामः।
(क) गच्छामि
(ख) गच्छति
(ग) गच्छन्ति
(घ) गच्छावः
उत्तराणि:
(घ) गच्छावः

प्रश्न 4.
क्रीडाक्षेत्रे सर्वाः बालकाः कन्दुकेन क्रीडन्ति।
(क) सर्वे
(ख) सर्वाणि
(ग) सर्वेभ्यः
(घ) सर्व
उत्तराणि:
(क) सर्वे

प्रश्न 5.
द्वौ वर्तिके सरोवरे तरतः।
(क) द्वयः
(ख) द्वो
(ग) द्वे
(घ) द्वै
उत्तराणि:
(ग) द्वे

प्रश्न 6.
श्वः नूनं अधिकं वृष्टिः भविष्यति।
(क) अधिका
(ख) अधिक:
(ग) अधिकाः
(घ) अधिक
उत्तराणि:
(क) अधिका

प्रश्न 7.
अश्वेन सैनिकाः पतन्ति।
(क) अश्वं
(ख) अश्वात्
(ग) अश्वः
(घ) अश्वाय
उत्तराणि:
(ख) अश्वात्

प्रश्न 8.
भवान् कुत्र पठितुम् गच्छसि?
(क) गच्छ
(ख) गच्छामि
(ग) गच्छति
(घ) गच्छन्ति
उत्तराणि:
(ग) गच्छति

प्रश्न 9.
मित्राणाम् सह राघवः चलचित्रं पश्यति।
(क) मित्रेण
(ख) मित्रस्य
(ग) मित्रैः
(घ) मित्रेभ्यः
उत्तराणि:
(ग) मित्रैः

प्रश्न 10.
दशरथः सीतां आशीर्वादं अयच्छत्।
(क) सीतायै
(ख) सीतायाः
(ग) सीतया
(घ) सीता
उत्तराणि:
(क) सीतायै

प्रश्न 11.
पुस्तकालये छात्राः तूष्णीम् पुस्तकानि पठति।
(क) पठन्ति
(ख) पठतः
(ग) पठथः
(घ) पठामि
उत्तराणि:
(क) पठन्ति

प्रश्न 12.
गुरु शिष्यं विश्वसिति।
(क) शिष्यः
(ख) शिष्याय
(ग) शिष्ये
(घ) शिष्याः
उत्तराणि:
(ग) शिष्ये

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions अव्यय-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions अव्यय-प्रकरणम्

पाठ्यक्रम में निम्न अव्यय पदों का समावेश है-
1. अलम्
2. अन्तः
3. बहिः
4. अधः
5. उपरि
6. उच्चैः
7. नीचैः
8. कदापि
9. पुनः।

इनके अतिरिक्त पाठों में न, च, यदा, कदा, कुत्र, अपि, एव, तथा, हि, किम्, अद्य, ह्यः, श्वः यदि, तथैव, सह, उभयतः, परितः, सर्वतः, नमः आदि का भी प्रयोग हो सकता है। अतः इन सभी अव्ययों का संक्षेप में ज्ञान अत्यावश्यक है। प्रश्नवाचक अव्ययों में कदा, कुत्र, क्व, किम्, का प्रयोग होता है। उपपद विभक्तियों में उभयतः, परितः, उपरि, अधः, सर्वतः, नमः, सह आदि का प्रयोग पहले भी दिखाया जा चुका है। चतुर्थी में स्वस्ति, स्वाहा का भी उपयोग होता है। ये प्रत्यय छठी कक्षा के व्याकरण भाग में आप पढ़ चुके हैं-यत्र, तत्र, कुत्र, अत्र, सर्वत्र, अन्यत्र, यदा, तदा, एकदा, सदा, सर्वदा, च अपि, अद्य, श्वः, ह्यः, प्रातः, सायम्, अहर्निशम्, अधुना एवं कुल।

1. अलम् – निषेध तथा पर्याप्त दो अर्थों में प्रयुक्त होता है।
(क) निषेध अर्थ में तृतीया तथा पर्याप्त अर्थ में चतुर्थी का प्रयोग होता है। शोर मत करो। झगड़ा मत करो। हँसो मत। क्रोध मत करो। इत्यादि वाक्यों में अलम् का प्रयोग तृतीया विभक्ति के साथ होता है यथा अलं कोलाहलेन। अलं विवादेन। अलं हसितेन। अलं क्रोधेन।
(ख) ‘पर्याप्त’ अर्थ में यह पहलवान उस पहलवान के लिए पर्याप्त है-मल्लः मल्लाय अलम्। दूध पीने के लिए पर्याप्त है-दुग्धं पानाय अलम्। अथवा अलं पातुं दुग्धम्।

2. अन्तः / बहिः – अन्दर तथा बाहर के लिए क्रमशः अन्तः तथा बहिः अव्ययों का प्रयोग होता है। अन्त के योग में षष्ठी तथा बहिः के योग में पञ्चमी होती है।
(i) सः गृहस्य अन्तः प्रविशति।
(ii) सः गृहात् बहिः गच्छति।
(iii) देवदत्तः भवनस्य अन्तः विद्यते।
(iv) नटः रंगमञ्चात् बहिः निष्क्रामति।

3. उपरि / अधः – इसी तरह ऊपर तथा नीचे अर्थों को बताने के लिए उपरि तथा अधः का प्रयोग होता है। इनमें षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। वृक्ष के ऊपर पक्षी बैठा है। वृक्ष के नीचे पक्षी बैठा है।
(i) वृक्षस्य उपरि खगः तिष्ठति।
(ii) वृक्षस्य अधः खगः तिष्ठति।

4. उच्चैः / नीचैः – ऊँचा और नीचा बताने के लिए क्रमशः उच्चैः, नीचैः शब्दों का प्रयोग होता है।
(i) वह ऊँचा बोलता है। सः उच्चैः वदति।
(ii) पानी नीचे बहता है। जलम् नीचैः वहति। इत्यादि।

5. कदापि / पुनः – कदापि का अर्थ है कभी-कभी। इसके विपरीत पुनः का अर्थ है बार-बार। वह मेरे घर कभी नहीं आता। वह मेरे घर बार-बार आता है।
(i) सः कदापि मम गृहं न आगच्छति।
(ii) सः पुनः पुनः मम गृहम् आयाति।
उसने एक गीत गाया। पुनः दूसरा गीत गाया।
सः एकं गीतम् अगायत्, पुनः अपरं गीतम् अगायत्।
उसने कभी झूठ नहीं बोला।
सः कदापि असत्यं न अवदत्।

अधोलिखित वाक्यों में मञ्जूषा से उचित पद चुनकर रिक्त स्थानों में भरो-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions अव्यय-प्रकरणम्
(i) नीचैः गच्छति __________ च दशा चक्रनेमिक्रमेणे।
(ii) वायुना पत्राणि __________ पतन्ति।
(iii) गीतम् __________ गायत।
(iv) एकवारं __________ कथां कथय।
(v) __________ रोदनेन।
(vi) मम पुत्रः एकाकी शास्त्रार्थे सर्वेभ्यः __________
(vii) __________ व्यथा अतीव कष्टकरी भवति।
(viii) त्वं __________ गत्वा पश्य।
(ix) सः __________ न आयास्यति।
(x) गृहात् __________ मा गच्छ।

कालबोधक अव्यय होते हैं-
यदा = जब।
एकदा = एक बार।
अद्य = आज।
श्व = कल (आने वाला)
तदा = तब।
सदा = सदा।
सम्प्रति = अब।
ह्यः = कल (बीता हुआ)
कदा = कब।
सर्वदा = सदा।
सदा = नित्य।
प्रातः = सुबह।
सायम् = शाम।
अहर्निशम् = दिनरात।

कुछ स्थानबोधक अव्यय होते हैं, जैसे-
अत्र = यहाँ।
कुतः = कहाँ से।
अन्यत्र = दूसरी जगह।
यत्र = जहाँ।
तत्र = वहाँ।
इह = इस लोक में।
कुत्र = कहाँ।
अमुत्र, परत्र = पर लोक में

कुछ विस्मयादिबोधक अव्यय होते हैं, जैसे- हे, अहो, अहा इत्यादि। कुछ मिश्रित अव्यय होते हैं, जैसे-
एव = ही
नाना = अनेकविध
इव = के समान
समीपम् = पास
किम् = क्या
दूरम् = दूर
अपि = भी
अतीव = अत्यधिक
किमपि = कुछ
उच्चैः = ऊँचे, ऊपर
किंञ्चित् = कुछ
नीचैः = नीचे
शीघ्रम् = जल्दी
उपरि = ऊपर
वामतः = बाईं तरफ
अधः = नीचे
बहुधा = बहुत बार
अतः = इसलिए
वारम्वारम् = बार-बार
अपरम् = और
भृशम् = अधिक
परम् = और
अथ = आरम्भबोधक
परन्तु = किन्तु
न = नहीं
विना = बिना
इत्थम् = इस प्रकार
इति = समाप्तिबोधक
इतः = यहाँ से
ततः = उस के बाद

पाठ्यक्रम के अनुसार अधोलिखित अव्यय ही निर्धारित हैं।
1. अलम् (समाप्ति अर्थ में) – अलं कोलाहलेन।
समर्थ अर्थ में – मल्लः मल्लाय अलम्।
2. अन्तः (अन्दर) – रामः गृहस्य अन्तः अस्ति।
3. बहिः (बाहर) – रामः गृहात् बहिः अगच्छत्।
4. अधः (नीचे) – शिशुः खट्वायाः अधः तिष्ठति।
5. उपरि (ऊपर) – कमला छदस्य उपरि तिष्ठति।
6. उच्चैः (ऊँचे स्वर में) – सः कक्षायाम् उच्चैः वदति।
7. नीचैः (नीचे) – जलं नीचैः वहति।
8. कदापि (कभी) – त्वं कदापि मम गृहं न आगच्छः।

अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग
1. वह नहीं आया। = सः न आगतः।
2. क्या वह हँसता है? = किं सः हसति?\
3. यहाँ आओ। = अत्र आगच्छ।
4. यहाँ कुशल है। = अत्र कुशलम्।
5. वहाँ (कुशल) होवे। = तत्र (कुशलम्) अस्तु।
6. अधिक न बोलो। = अधिकं न वद।
7. वह झूठ बोलता है। = सः मृषा वदति।
8. वह कुछ बोला। सः किञ्चित अवदत्।
9. ऐसा ही है। = इदम् एव अस्ति।
10. शीघ्र आओ। = शीघ्रम् आगच्छ।
11. यह भी सत्य है। इदम् अपि सत्यम् अस्ति।
12. सदा सत्य बोलो। = सदा सत्यं वद।
13. क्रोध न करो। = क्रोधं मा कुरु।
14. आज सोमवार है। = अद्य सोमवारः अस्ति।
15. कल क्या था? = ह्यः किम् आसीत्?
16. कल क्या होगा? = श्वः किं भविष्यति?

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

निम्नलिखितेषु वाक्येषु उचित अव्ययपदैः रिक्तपूर्तिः क्रियन्ताम्-

प्रश्न 1.
पिपीलिकाः __________ चलति।
(क) शनैः शनैः
(ख) वृथा
(ग) विना
(घ) उच्चैः
उत्तराणि:
(क) शनैः शनैः

प्रश्न 2.
__________ कोलाहलेन।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) कदापि
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ख) अलम्

प्रश्न 3.
कक्षायाः __________ मा गच्छ।
(क) उच्चैः
(ख) विना
(ग) बहिः
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ग) बहिः

प्रश्न 4.
विद्यालयस्य __________ क्रीडाक्षेत्रं अपि विद्यते।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) पुनः
(घ) अन्तः
उत्तराणि:
(घ) अन्तः

प्रश्न 5.
वृक्षस्य __________ सिंह: गर्जति।
(क) उपरि
(ख) अधः
(ग) अलम्
(घ) बहिः
उत्तराणि:
(ख) अधः

प्रश्न 6.
गृहे शिशुः __________ क्रन्दति।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) उच्चैः
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ग) उच्चैः

प्रश्न 7.
असत्यं __________ न ब्रूयात्।
(क) अलम्
(ख) पुनः
(ग) उच्चैः
(घ) कदापि
उत्तराणि:
(घ) कदापि

प्रश्न 8.
अयं संसारः __________ जायते विलीयते च।
(क) पुनः पुनः
(ख) अलम्
(ग) कदापि
(घ) बहिः
उत्तराणि:
(क) पुनः पुनः

प्रश्न 9.
नगरात् __________ गहनं वनं अस्ति।
(क) पुनः
(ख) बहिः
(ग) उच्चैः
(घ) नीचैः
उत्तराणि:
(ख) बहिः

प्रश्न 10.
__________ विवादेन।
(क) अधः
(ख) उच्चैः
(ग) अलम्
(घ) नीचैः
उत्तराणि:
(ग) अलम्