Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 27 पांडवों और कौरवों के सेनापति

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 27

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भीष्म के सेनापति बनने पर कर्ण ने क्या निर्णय लिया?
उत्तर:
कर्ण ने निर्णय लिया कि भीष्म के मारे जाने के बाद वह युद्धभूमि में प्रवेश करेगा और केवल अर्जुन को ही मारेगा।

प्रश्न 2.
कौरवों के सेनापति कौन थे?
उत्तर:
कौरवों के सेनापति पितामह भीष्म थे।

प्रश्न 3.
पांडव की सेना को कितने हिस्सों में बाँटा गया?
उत्तर:
पांडवों की सेना को सात हिस्सों में बाँटा गया।

प्रश्न 4.
कौरव सेना के पहले सेनापति कौन बने?
उत्तर:
कौरव सेना के पहले सेनापति भीष्म पितामह बने।

प्रश्न 5.
महाभारत युद्ध के दौरान कौन-कौन से राजा तटस्थ रहे?
उत्तर:
महाभारत युद्ध के दौरान एक बलराम तथा दूसरे भोजकर के राजा रुक्मी तटस्थ रहे। इन्होंने युद्ध में किसी के तरफ़ से भाग नहीं लिया।

प्रश्न 6.
अर्जुन के भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में क्या किया?
उत्तर:
अर्जुन के भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में कर्म योग का उपदेश दिया।

प्रश्न 7.
भीष्म के नेतृत्व में कौरवों ने कितने दिनों तक युद्ध किया?
उत्तर:
भीष्म के नेतृत्व में कौरवों ने 10 दिनों तक युद्ध किया।

प्रश्न 8.
पांडवों ने अपनी सेना का सेनापति किसे बनाया?
उत्तर:
पांडवों ने अपनी सेना का सेनापति कुमार धृष्टद्युम्न को बनाया।

प्रश्न 9.
कर्ण की मृत्यु के बाद कौरवों का सेनापति किसे बनाया गया?
उत्तर:
कर्ण की मृत्यु के बाद कौरवों ने अपना सेनापति शल्य को बनाया।

प्रश्न 10.
महाभारत का युद्ध कितने दिनों तक चला?
उत्तर:
महाभारत का युद्ध अठारह दिनों तक चला।

प्रश्न 11.
युधिष्ठिर को कौरव सेना की ओर जाते देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर को कौरव सेना की ओर जाते देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-‘अर्जुन मैं समझ गया हूँ कि महाराज युधिष्ठिर की क्या इच्छा है। वे बिना बड़ों का आदेश लिए युद्ध करना अनुचित मानते हैं। उनका उद्देश्य यही है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युद्ध के लिए अनुमति माँगने गए युधिष्ठिर से भीष्म ने क्या कहा?
उत्तर:
युद्ध के लिए अनुमति माँगने गए युधिष्ठिर से भीष्म ने कहा- “बेटा युधिष्ठिर, मुझे तुमसे यही आशा थी। मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। विवश होकर मुझे तुम्हारे विरोध में युद्ध करना पड़ रहा है, लेकिन मेरी यही कामना है कि रण में विजय तुम्हारी हो।”

प्रश्न 2.
युद्ध शुरू होने से पहले लोगों ने ऐसी कौन-सी घटना देखी जिससे वहाँ के लोग आश्चर्यचकित रह गए?
उत्तर:
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में दोनों पक्षों के लोग इंतज़ार कर रहे थे कि कब युद्ध शुरू हो। एकाएक पांडव सेना के बीच हलचल मच गई। युधिष्ठिर ने अचानक अपना कवच धनुष और बाण उतारकर हाथ जोड़े कौरव सेना की हथियारबंद भीड़ को चीरते हुए भीष्म की ओर पैदल चले गए। बिना सूचना दिए उनको इस प्रकार जाते देखकर दोनों पक्ष वाले लोग अचंभित हो गए। शत्रु सेना को हटाते हुए युधिष्ठिर सीधे पितामह भीष्म के पास पहुँचे और पहुँचकर तथा झुककर उनके चरण स्पर्श किए। फिर बोले- पितामह! हमने आपके साथ युद्ध करने का दुःसाहस कर ही लिया। कृपया हमें युद्ध की अनुमति दें और आशीर्वाद भी कि इस युद्ध में विजश्री प्राप्त करूँ।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 27

श्रीकृष्ण उपप्लव्य पहुँचकर पांडवों को हस्तिनापुर का सारा हाल सुनाया। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से युद्ध की तैयारी के लिए कहा। पांडवों ने विशाल सेना को सात भागों में बाँट दिया। द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान, भीमसेन आदि सात महारथी, इन सात दलों के नायक बने। अब प्रश्न उठा कि पांडवों का सेनापति किसे बनाया जाए? सबकी राय ली गई? धृष्टद्युम्न को पांडव सेनापति बनाया गया।

दूसरे तरफ़ कौरव पक्ष में भीष्म ने कहा कि लड़ाई की घोषणा करते समय मेरे से सुझाव नहीं लिया गया। अतः मैं पांडु-पुत्रों का वध नहीं करूँगा। कर्ण सदैव हमारा विरोध करता रहा है, अतः उसे सेनापति बना दिया जाय। दुर्योधन ने भीष्म पितामह को ही कौरवों का सेनापति बनाया। कर्ण ने कहा जब तक भीष्म पितामह जीवित हैं मैं युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करूँगा। सिर्फ अर्जुन को मारने के लिए युद्ध में प्रवेश करूँगा। फलतः कर्ण तब तक युद्ध से अलग रहे।

इधर युद्ध की तैयारियों के मध्य ही बलराम एक दिन पांडवों की छावनी में पहुँचे और बोले मैंने कृष्ण को अनेक बार कहा था, कौरव-पांडव हमारे लिए बराबर हैं, लेकिन अर्जुन के प्रेम के कारण तुम्हारे पक्ष में आ गए। दुर्योधन व भीम दोनों मेरे शिष्य हैं। मैं तो उनको लड़ते-लड़ते मरते देख नहीं सकता। अतः मैं युद्ध स्थान में किसी के तरफ़ से नहीं रहूँगा। मैं जा रहा हूँ। मैं तटस्थ रहूँगा। महाभारत के युद्ध में पूरे भारत वर्ष में दो ही राजाओं ने युद्ध में भाग नहीं लिया। वे तटस्थ रहे- एक बलराम और दूसरे भोजकर के राजा रुक्मी। राजा रुक्मी की छोटी बहन रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पत्नी थी।

युद्ध का समाचार सुनकर रुक्मी एक अक्षौहिणी सेना लेकर आया था। रुक्मी के अहंकार के कारण दोनों पक्षों ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया था। कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्षों की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी होकर युद्ध नीति पर चलने की प्रतिज्ञाएँ लीं। दोनों पक्षों की व्यूह रचनाएँ हो गईं। श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश से अर्जुन के भ्रम को दूर किया। तब अर्जुन का मोह भंग हुआ। युद्ध शुरू होने वाला था कि युधिष्ठिर ने अपना कवच उतारकर सीधे पितामह भीष्म के पास गए और झुककर चरण स्पर्श किए। पितामह से उन्होंने कहा- “पितामह हमने आपके साथ युद्ध का दुस्साहस कर ही लिया। कृपया हमें युद्ध की अनुमति दीजिए और आशीर्वाद भी कि हम युद्ध में विजय प्राप्त करें। पितामह बोले- “बेटा युधिष्ठिर! मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। तुम्हारे विपक्ष में लड़ना पड़ रहा है फिर भी मेरी कामना है कि रण में विजय तुम्हारी हो।

भीष्म से आज्ञा और आशीर्वाद लेकर युधिष्ठिर इसी प्रकार आचार्य द्रोण, कुलगुरु कृपाचार्य व मद्रराज शल्य के पास जाकर आशीर्वाद लिया और अनुमति माँगी। उन सबने उनको आशीर्वाद दिया और युद्ध की विवशता बताई।

युद्ध के प्रारंभ में सबसे पहले बराबर वाले एक जैसे हथियार लेकर दो-दो की जोड़ी में लड़ने लगे। प्रत्येक योद्धा युद्ध धर्म का पालन करते युद्ध करने लगे।

पितामह भीष्म के नेतृत्व में दस दिन तक युद्ध चला। भीष्म के आहत होने पर द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया गया। द्रोणाचार्य के बाद दो दिन कर्ण सेनापति रहे और अठाहरवें दिन शल्य सेनापति बने। महाभारत का युद्ध कुल अठारह दिन चला।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-68- चर्चा – खबर, सुसज्जित – अच्छी तरह से सजा हुआ, सुचारु – ठीक, विशाल – बड़ा, राय – सलाह, दृष्टि – नज़र, कोलाहल – शोर, ऋण – कर्ज, सम्मति – राय।

पृष्ठ संख्या-69- विपक्ष – विरोधी, सम्मिलित – शामिल, सहायता – मदद, प्रतिष्ठा – इज्जत।

पृष्ठ संख्या-70- कतार – पंक्ति, हथियारबंद – हथियार के साथ।

पृष्ठ संख्या-71- अनुमति–आज्ञा, स्वतंत्र-आज़ाद, रण-युद्ध, कामना-चाह, परिक्रमा-चारों ओर घूमना, विवश-लाचार, स्वर्गवास-देहांत, संचालन-देख-रेख करना, नियुक्त-बहाल, तैनात।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 26 शांतिदूत श्रीकृष्ण

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 26 शांतिदूत श्रीकृष्ण

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 26

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण किस उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण शांति वार्तालाप करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में क्यों ठहराया गया था?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में इसलिए ठहराया गया था क्योंकि यह महल दुर्योधन के महल से ऊँचा और सुंदर था। धृतराष्ट्र के आदेशानुसार उन्हें उसी भवन में ठहराया गया था।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में क्या कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में पांडवों की माँग रखने के बाद उन्होंने धृतराष्ट्र की ओर देखकर कहा- राजन! पांडव शांतिप्रिय हैं। लेकिन वे युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बनें।

प्रश्न 4.
भोजन का निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
भोजन का निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने कहा- राजन जिस उद्देश्य को लेकर यहाँ आया हूँ, वह पूरा हो जाए, तब मुझे भोजन का निमंत्रण देना उचित होगा।

प्रश्न 5.
दुःशासन का भवन कैसा था?
उत्तर:
दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से अधिक ऊँचा और सुंदर था।

प्रश्न 6.
विदुर को किस बात का भय था?
उत्तर:
विदुर दुर्योधन के स्वभाव से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें डर था कि श्रीकृष्ण के वहाँ जाने पर वह कोई न कोई कुचक्र रचकर उनकी प्राणों को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करेगा। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि उनकी सभा में आपका जाना उचित नहीं है।

प्रश्न 7.
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कहाँ रात का विश्राम किया?
उत्तर:
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कुशस्थल नामक स्थान पर एक रात को विश्राम किया।

प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को क्या समझाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया कि मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि पांडवों को आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ संधि कर लो। यदि यह बात हो गई तो स्वयं पांडव तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।

प्रश्न 9.
गांधारी को सभा में क्यों बुलाया गया?
उत्तर:
गांधारी को सभा में दुर्योधन को समझाने के लिए बुलाया गया क्योंकि धृतराष्ट्र यह जानते थे कि गांधारी की समझ बहुत स्पष्ट है। वह दूर की सोचती है। हो सकता है, उनकी बातें दुर्योधन मान ले।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुंती ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर:
कुंती ने गदगद स्वर में कर्ण को रहस्य बताते हुए कहा- ‘कर्ण! यह न समझो कि तुम केवल सूत-पुत्र ही हो। न तो राधा तुम्हारी माँ है। न ही अधिरथ तुम्हारे पिता। तुम राजकुमारी पृथा के कोख से उत्पन्न सूर्य के अंश हो। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिल जाओ, बहादुरी के साथ लड़ो और राज्य करो। धृतराष्ट्र के लड़कों के अधीन रहना तुम्हारे लिए अपमान की बात है।

प्रश्न 2.
कर्ण ने कुंती से क्या कहा?
उत्तर:
कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला- माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ़ चला गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे। आज जब युद्ध होना निश्चित हो गया है तो मेरा कर्तव्य हैं कि मैं पांडवों के विरुद्ध लड़ें। मैं असत्य नहीं बोलूँगा। अतः तुम मुझे क्षमा कर दो। लेकिन हाँ मैं तुम्हारी बात को भी एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। युद्ध में या तो अर्जुन मारा जाएगा या तो मैं मारा जाऊँगा। तुम्हारे लिए पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 26

श्रीकृष्ण सात्यकि के साथ शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर आए। यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण आए हैं धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत की भव्य तैयारियाँ करवाईं। दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से भी ऊँचा था। अतः श्रीकृष्ण को वहीं ठहरने की व्यवस्था की गई। श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र से मिलकर विदुर के घर गए। वहाँ कुंती भी श्रीकृष्ण के इंतजार में बैठी थी। श्रीकृष्ण ने कुंती को सांत्वना दी और वे दुर्योधन के पास गए। दुर्योधन ने उनका शानदार स्वागत किया और उनको भोजन का निमंत्रण दिया।

श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा- राजन् जिस उद्देश्य से मैं यहाँ आया हूँ वह बिना पूरा हुए भोजन का न्यौता देना उचित नहीं है। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण विदुर के पास चले गए। वहीं पर उन्होंने भोजन और विश्राम किया।

इसके बाद विदुर ने श्रीकृष्ण को अगाह करते हुए कहा कि कौरवों की सभा में आपका जाना उचित नहीं। श्रीकृष्ण ने कहा- आप मेरे प्राणों की चिंता मत कीजिए। श्रीकृष्ण विदुर के साथ धृतराष्ट्र के भवन में गए और बड़ों को प्रणाम करके आसन पर बैठ गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों की माँग रखी। उन्होंने बताया कि राजन पांडव शांति प्रिय हैं लेकिन युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बने।

यह सुनकर धृतराष्ट्र सभासदों से बोले-मैं तो यही चाहता हूँ जो श्रीकृष्ण को प्रिय है। इस पर श्रीकृष्ण दुर्योधन से बोले-“मैं चाहता हूँ कि पांडवों का आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ समझौता कर लो। अगर ऐसा होगा तो पांडव स्वयं तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में स्वीकार कर लेंगे।

सारी सभा ने दुर्योधन को समझाना चाहा। युद्ध के भयावह परिणामों का वर्णन किया। दुर्योधन द्वारा पांडवों पर किए गए अत्याचारों का स्मरण दिलाया। यह देखकर दुःशासन ने कहा- भाई, ये लोग आपको बंदी बनाना चाहते हैं। अतः आप यहाँ से निकल चलें। दुर्योधन भाइयों के साथ सभा भवन से निकल गया।

इसी बीच धृतराष्ट्र ने सभा में गांधारी को बुलाया। दुर्योधन को भी सभा में दुबारा बुलाया। गांधारी ने दुर्योधन को कई तरीके से समझाने की कोशिश किया, किंतु उसने माँ की एक भी बात नहीं सुनी और पुनः सभा से बाहर निकल गया। बाहर निकलकर दुर्योधन अपने मित्रों के साथ मिलकर राजदूत कृष्ण को पकड़ने का कुचक्र करने लगा, किंतु सफलता न मिली। सभा से निकलकर श्रीकृष्ण कुंती के पास पहुंचे और उनको सभा का सारा हाल सुनाया।

युद्ध की आशंका से कुंती काफ़ी चिंतित हो गई और वह सीधे कर्ण के पास गई। कर्ण जब मध्याह्न के बाद पूजा से उठा ही था तो कुंती को देखकर आश्चर्य चकित हो गया। पूछा- आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ। कुंती ने कर्ण को असलियत बताते हुए कहा- तुम अधिरथ के पुत्र नहीं बल्कि राजकुमारी पृथा की कोख से पैदा हुआ है। तुम्हारे पिता सूर्य हैं। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिलकर वीरता से लड़ो और राज्य करो। कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला, माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के साथ मिल गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे।

कर्ण ने दुर्योधन का साथ देने की अपनी लाचारी कुंती को समझा दिया, किंतु कुंती को एक भरोसा भी दिया। उसने कहा, मैं, तुम्हारी बात को एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं आपको वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूँगा। इस युद्ध में या तो मैं मारा जाऊँगा या अर्जुन मारा जाएगा। तुम्हारे पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो। शेष चारों पांडव मुझे चाहे जितना तंग करें मैं उनको नहीं मारूँगा। माँ तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हाल में रहेंगे। चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन ! हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगे ही। तुम चिंता न करो।

कुंती कर्ण की बातें सुनकर विचलित हो गई। इसके बाद उन्होंने गले से लगाते हुए बोली, तुम्हारा कल्याण हो। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती महल में चली गई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-65- उद्देश्य – लक्ष्य, विश्राम – आराम, ठहरना – रुकना, प्रतीक्षा – इंतज़ार।
पृष्ठ संख्या-66- स्मरण – याद, सांत्वना – ढांढस, कुचक्र – षड्यंत्र, स्वीकृत – मान्य, आग्रह – निवेदन, सर्वनाश – पूरा नाश, वक्तव्य – बात।
पृष्ठ संख्या-67- कल्पना – अनुमान, आरूढ़ – चढ़कर बैठकर, कुलनाशी – कुल का नाश करने वाला, मध्याह्न – दोपहर, उत्तरीय – पुरुषों द्वारा कंधों से कमर तक ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, शिष्टतापूर्वक – शालीनता से, पृथा कुंती, आश्रित – अधीन, मझधार – बीच में।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 25 राजदूत संजय

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 25 राजदूत संजय

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 25

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपप्लव्य में रहकर पांडवों ने कितनी सेना इकट्ठी की?
उत्तर:
उपप्लव्य में रहकर पांडवों ने अपने मित्र शासकों को संदेश भेजकर उनकी मदद से कोई सात अक्षौहिणी सेना इकट्ठी कर ली।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर की तरफ़ से कौन दूत बनकर धृतराष्ट्र की सभा में गए?
उत्तर:
पंचाल नरेश के पुरोहित युधिष्ठिर के दूत बनकर हस्तिनापुर गए।

प्रश्न 3.
युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के पास क्या संदेश भेजा?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के पास संदेश भेजा कि पांडव संधि के अनुसार अपना हिस्सा चाहते हैं।

प्रश्न 4.
धृतराष्ट्र ने किसे अपना दूत बनाकर पांडवों के पास भेजा?
उत्तर:
धृतराष्ट्र ने संजय को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजा।

प्रश्न 5.
कर्ण ने पांडवों के संधि सुझाव के पर अपनी क्या प्रतिक्रिया दिया?
उत्तर:
कर्ण ने संधि के सुझाव पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा-“तेरहवाँ वर्ष पूरा होने से पहले ही उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा भंग करके अपने आपको सबके सामने प्रकट कर लिया है। अतः शर्त के अनुसार उनको फिर से बारह वर्ष के लिए वनवास जाना होगा।

प्रश्न 6.
धृतराष्ट्र ने अंत में क्या निर्णय दिया?
उत्तर:
धृतराष्ट्र ने अंत में निर्णय दिया कि संसार की भलाई को ध्यान में रखते हुए अंततः संजय को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजने का निर्णय लिया।

प्रश्न 7.
धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को क्या सलाह दिया?
उत्तर:
धृतराष्ट्र के दुर्योधन को सलाह दिया कि- भीष्म पितामह जो कह रहे हैं, वह सही है। अतः युद्ध का विचार छोड़कर संधि कर लो।

प्रश्न 8.
दुर्योधन अपनी जीत के प्रति क्यों आश्वस्त था?
उत्तर:
दुर्योधन को यह भ्रम था कि युधिष्ठिर हमारे सैन्य बल को देखकर डर गया है इसलिए वह आधे राज्य की बात छोड़कर अब केवल पाँच गाँवों की माँग कर रहा है। ग्यारह अक्षौहिणी सेना को देखकर दुर्योधन अपनी जीत के प्रति आश्वस्त था।

प्रश्न 9.
श्रीकृष्ण हस्तिनापुर क्यों जाना चाहते थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण चाहते थे कि वे स्वयं एक बार हस्तिनापुर जाकर बात करें। यदि सफल हो गया तो, इससे पूरे विश्व का कल्याण होगा तथा किसी व्यक्ति को यह करने का मौका नहीं रहेगा कि उन्होंने शांति-स्थापित करने का प्रयास नहीं किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
युधिष्ठिर ने किसे दूत बनाकर भेजा। उनके दूत ने धृतराष्ट्र को क्या संदेश सुनाया?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने पांचाल नरेश के पुरोहित को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा। पंचाल नरेश के पुरोहित ने धृतराष्ट्र से कहा- युधिष्ठिर का विचार है कि युद्ध से संसार का विनाश ही होगा और इसी कारण वे युद्ध से घृणा करते हैं। वे लड़ना नहीं चाहते। इसलिए न्याय तथा पहले संधि के अनुसार यह उचित होगा कि आप उनका हिस्सा दे दें और इसमें बिलंब न करें।

प्रश्न 2.
युधिष्ठिर की शंका को देखते हुए श्रीकृष्ण ने क्या कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर की आशंका पर श्रीकृष्ण बोले- मैं दुर्योधन को अच्छी तरह से जानता हूँ। फिर भी हमें एक प्रयास ज़रूर करना चाहिए। किसी को यह कहने का मौका नहीं देना चाहिए कि मैंने शांति स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। इसलिए मेरा वहाँ जाना सही होगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 25

युद्ध की तैयारी में पांडव पक्ष ने सात और कौरव पक्ष ने ग्यारह अक्षौहिणी सेना तैयार कर ली है। युद्ध रोकने के प्रयास से युधिष्ठिर ने पांचाल नरेश के पुरोहित को राजदूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा। दूत धृतराष्ट्र की राजसभा में पहुँचे। दूत ने महाराज धृतराष्ट्र से कहा कि- युधिष्ठिर का विचार है कि युद्ध से संसार का विनाश ही होगा, अतः वे युद्ध नहीं करना चाहते। इसलिए संधि के अनुसार आप उनका हक देने की कृपा करें।

भीष्म ने दूत के कथन का समर्थन किया किंतु कर्ण ने विरोध करते हुए कहा- पांडव आज्ञातवास की अवधि समाप्त होने से पहले ही पहचाने गए हैं। अतः उनको पुनः बारह वर्ष के लिए वनवास में जाना होगा। कर्ण के इस प्रकार बीच में बोलने के कारण भीष्म ने कर्ण को फटकारते हुए युद्ध के दुष्परिणाम- सभी की मृत्यु की बात कही।

इन सब बातों को सुनकर धृतराष्ट्र ने संजय को दूत बनाकर युधिष्ठिर के पास भेजा। संजय ने धृतराष्ट्र का संदेश युधिष्ठिर को कहामहाराज ने कुशलक्षेम पूछा है। वे आपसे मित्रता चाहते हैं लेकिन उनके पुत्र अपने पिता या पितामह की बात पर ध्यान नहीं दे रहे थे लेकिन आप युद्ध को टालने का प्रयास करें।

युधिष्ठिर को यह बात अच्छी लगी। हमें तो अपना हिस्सा मिलना चाहिए। हम श्रीकृष्ण की सलाह का पालन करेंगे। वे जो सलाह देंगे मैं वैसा ही करूँगा। तभी कृष्ण युधिष्ठिर से बोले- मैं स्वयं हस्तिनापुर जाकर कौरवों से संधि की बात करूँगा।” फिर युधिष्ठिर संजय से बोले- तुम महाराज से विनयपूर्वक मेरा संदेश कहना कि वे हमें कम से कम पाँच गाँव ही दे दें। हम पाँचों भाई संतोष करके संधि करने को तैयार हैं।

संजय ने हस्तिनापुर जाकर युधिष्ठिर का संदेश दिया। तब संजय की बातों को सुनकर भीष्म ने धृतराष्ट्र को समझाया- राजन आपके राजकुमार को कर्ण गलत मशविरा दे रहा है। यह पांडवों के सोलहवाँ हिस्सा के बराबर भी नहीं है। तब धृतराष्ट्र ने भीष्म पितामह की बातों का समर्थन करते हुए कहा संधि करना ही उचित होगा।

दुर्योधन ने संधि की बात को नकारते हुए कहा कि पांडव हमारी ग्यारह अक्षौहिणी सेना से डरकर ही पाँच गाँव पर आ गए हैं। मैं तो उन्हें सुई की नोंक के बराबर भी ज़मीन देने को तैयार नहीं हूँ। अब फ़ैसला युद्धभूमि में ही होगा। यह कहते हुए दुर्योधन बाहर चला गया।

इधर युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से बोले- वासुदेव! मैंने तो संदेश भेज दिया कि केवल पाँच गाँव से ही संतोष कर लूँगा किंतु मुझे लगता है कि दुष्ट इतना भी देने को तैयार नहीं होगा।

युधिष्ठिर की बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले- मैंने निर्णय कर लिया है कि एक बार हस्तिनापुर जाकर संधि की वार्तालाप करूँगा। यदि सफल हुआ तो, इससे सारे विश्व का कल्याण होगा। इस पर युधिष्ठिर बोले कि आपका वहाँ जाना उचित नहीं होगा। मुझे भय है कि कहीं वह आप पर आक्रमण न कर दें।

इस पर श्रीकृष्ण अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बोले- धर्म पुत्र दुर्योधन से मैं भली-भाँति परिचित हूँ। फिर भी हमें कोशिश करनी चाहिए। मैं किसी तरह से यह कहने का मौका नहीं देना चाहता हूँ कि मुझे शांति स्थापित करने में जो प्रयास करना चाहिए था, वह नहीं किया। इसलिए मेरा जाना ही ठीक रहेगा। इतना कहकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर के लिए विदा हुए।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-62
संदेश – खबर, एकत्र – इकट्ठा, नरेश – राजा, संधि – समझौता, नाश – समाप्ति, घृणा – नफ़रत, हिस्सा – भाग, विलंब – देरी, नियत – निश्चित।

पृष्ठ संख्या 63, 64, 65
अप्रिय – बुरी, स्थिर – दृढ़, हितचिंतक – भला चाहने वाला, पराजित – हारे हुए, सलाह – राय, उचित – सही, आक्रमण – हमला, दर्प – घमंड, कैदी – बंदी बनाना, उपदेश – प्रवचन, भली-भाँति – अच्छी तरह।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 24 मंत्रणा

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 24 मंत्रणा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 24

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तेरहवाँ वर्ष पूरा होने पर पांडव जाकर कहाँ रहने लगे?
उत्तर:
तेरहवाँ वर्ष पूरा होने के बाद पांडव विराट की राजधानी छोड़कर उपप्लव्य नगर में रहने लगे।

प्रश्न 2.
सर्वप्रथम वहाँ क्या कार्य सम्पन्न हुआ।
उत्तर:
सर्वप्रथम वहाँ अभिमन्यु के साथ उत्तरा का विवाह हुआ।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने संधि के लिए क्या तरीका सुझाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के पास एक व्यक्ति को दूत बनाकर भेजने का सुझाव बताया।

प्रश्न 4.
दुर्योधन ने सहायता माँगते समय श्रीकृष्ण से क्या कहा?
उत्तर:
दुर्योधन ने होने वाले पांडव और कौरव युद्ध में श्रीकृष्ण की सहायता पर अपना पहला हक जताते हुए कहा कि आपके पास पहले मैं आया हूँ। आप पहले मेरी मदद करें।

प्रश्न 5.
पितामह भीष्म ने दुर्योधन को क्या बात समझाई ?
उत्तर:
पितामह भीष्म ने दुर्योधन को समझाया कि प्रतिज्ञा का समय कल पूरा हो चुका है। तुम्हारी गणना में कुछ भूल हुई है।

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर दूत भेजने का काम किसे सौंपा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर दूत भेजने का काम द्रुपदराज को सौंपा।

प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण ने पहले किसे देखा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने पहले अर्जुन को देखा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सभा में उपस्थित आगंतुकों से श्रीकृष्ण ने क्या कहा?
उत्तर:
सभा में उपस्थित आगंतुकों से श्रीकृष्ण ने सभी के सामने पांडवों के अधिकारों की बात कहीं। उन्होंने दुर्योधन को समझाने के लिए दूत भेजने का प्रस्ताव रखा। सबों ने इस बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा-“कुछ ऐसा उपाय ढूँढा जाए जो युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों को ही लाभप्रद हो, न्यायोचित हो, पांडवों और कौरवों का सुयश बढ़े। जो राज्य युधिष्ठिर से बेदखल कर दिया गया है वह वापस मिल जाए। ऐसा होने से पांडव शांत हो जाएँगे और दोनों में संधि हो सकती है। मेरी राय में एक ऐसे व्यक्ति को दूत बनाकर भेजना चाहिए, जो सर्वथा योग्य हो।”

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण की बातों का समर्थन करते हुए बलराम ने क्या कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की बातों का समर्थन करते हुए बलराम बोले- कृष्ण की सलाह न्यायोचित है। यदि शांतिपूर्ण ढंग से, बिना युद्ध किए ही पांडव अपना राज्य प्राप्त कर लें, तो उससे न केवल पांडवों बल्कि दुर्योधन तथा सारी प्रजा की भलाई होगी।

प्रश्न 3.
राजा शल्य किन कारणों से दुर्योधन के पक्ष में हो गए?
उत्तर:
मद्र देश के राजा शल्य नकुल-सहदेव के मामा थे। एक बड़ी सेना लेकर अपने भाँजे की सहायता के लिए निकले। जब दुर्योधन ने यह सुना कि राजा शल्य विशाल सेना लेकर पांडवों की सहायता के लिए जा रहे हैं तो उसने अपने कर्मचारियों को निर्देश दिया कि शल्य की सेना जहाँ भी रुके वहाँ उनकी काफ़ी आव-भाव एवं सुख सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। शल्य यह सेवा पांडवों की ओर से समझते रहे लेकिन जब भेद खुला तो शल्य नैतिकता के आधार पर दुर्योधन का साथ देने के लिए बाध्य हो गए। तब शल्य ने युधिष्ठिर को बताया कि दुर्योधन ने धोखा देखकर मुझे अपने पक्ष में कर लिया।

प्रश्न 4.
मद्र देश के राजा शल्य ने युधिष्ठिर को विश्वास व दिलासा देते हुए क्या कहा था?
उत्तर:
महाराज शल्य ने युधिष्ठिर को विश्वास व दिलासा देते हुए कहा था कि- “बेटा युधिष्ठिर, मैं धोखे में आकर दुर्योधन को वचन दे बैठा। इसलिए युद्ध तो मुझे उसके तरफ़ से करनी पड़ेगी। पर एक बात कह देता हूँ कि कर्ण मुझे सारथी बनाएगा, तो अर्जुन के प्राणों की रक्षा होगी।” और भरोसा देते हुए कहा- जीत उन्हीं की होती है जो धीरज से काम लेते हैं। युधिष्ठिर, कर्ण और दुर्योधन की बुद्धि खराब हो गई। अपनी दुष्टता के फलस्वरूप निश्चय ही उनका सर्वनाश होकर रहेगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 24

तेरहवाँ वर्ष पूरा होते ही पांडव विराट की राजधानी को छोड़कर उपप्लव्य नामक नगर में रहने लगे। अब पांडव खुले रूप से रहने लगे। आगे का कार्यक्रम तय करने के लिए पांडवों ने अपने संबंधियों एवं मित्रों को बुलाने के लिए दूत भेजे। बलराम, सुभद्रा और अभिमन्यु सहित श्रीकृष्ण उपप्लव्य पहुँच गए। विराट राजा ने भी उन सभी का स्वागत किया। इंद्रसेन, काशीराज और वीर शैव्य भी अपनी-अपनी सेनाएँ लेकर वहाँ पहुँच गए। द्रुपद साथ शिखंडी, द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न और द्रौपदी के पुत्र भी आ गए और कई राजा अपनी-अपनी सेना लेकर पांडवों की सहायता के लिए आ पहुंचे।

वहाँ सबसे पहले अभिमन्य के साथ उत्तरा का विवाह किया गया। इसके बाद विराट राज सभा भवन में सभी आए हुए राजा अपनेअपने आसन पर बैठ गए। श्रीकृष्ण ने सभी के सामने पांडवों के अधिकारों की बात की। उन्होंने दुर्योधन को समझाने के लिए एक दूत भेजने का प्रस्ताव रखा। इस बात का सभी ने अनुमोदन किया। इस सुझाव पर बलराम का विचार था कि कृष्ण की सलाह बिलकुल उचित है। यदि शांतिपूर्ण ढंग से बिना युद्ध किए ही पांडव अपना अधिकार पा लें तो उससे न केवल पांडवों बल्कि दुर्योधन तथा सारी प्रजा की भलाई होगी। बलराम चौसर खेलने में युधिष्ठिर को दोषी मानते थे सात्यकि ने बलराम के इस बात का विरोध किया। उनका राय था कि राजा धृतराष्ट्र के पास किसी सुयोग्य दूत को भेजना चाहिए।

श्रीकृष्ण ने बात को समाप्त करने के उद्देश्य से बोले कि हम पर कौरव-पांडवों दोनों का समान हक है। इसलिए यहाँ किसी का पक्ष लेने नहीं आए हैं। हमारे दृष्टि में दोनों समान हैं। हम लोग उत्तरा के विवाह में शामिल होने के लिए आए हैं। अब हम वापस चले जाएँगे, श्रीकृष्ण ने कहा- राजा द्रुपद सभी राजाओं में श्रेष्ठ, बुद्धि एवं आयु में भी बड़े हैं अतः आप ही दूत को समझा बुझाकर दुर्योधन के पास भेज दें। अगर दुर्योधन संधि के लिए तैयार न हो तो युद्ध की तैयारियां की जाएँ और हमें सूचित किया जाए।

इतना कहने के बाद श्रीकृष्ण अपने सहयोगियों के साथ द्वारिका लौट गए। इधर युधिष्ठिर और दुर्योधन युद्ध की तैयारी करने लगे। श्रीकृष्ण के पास दुर्योधन और अर्जुन दोनों पहुँचे। श्रीकृष्ण उस समय आराम कर रहे थे। अंदर जाकर दुर्योधन श्रीकृष्ण के सिर के पास बैठ गए और अर्जुन उनके पैर के पास हाथ जोड़कर खड़े हो गए। श्रीकृष्ण की जब नींद खुली तो उन्होंने सबसे पहले अर्जुन को देखा। उनका कुशलक्षेम पूछा। बाद में जब घूमे तो उन्होंने दुर्योधन को देखा और उनका भी कुशल-मंगल पूछा। उसके बाद उन्होंने दोनों के आने का कारण पूछा। दुर्योधन पहले ही बोल उठा- हमारे पांडवों के बीच युद्ध होने वाला है। अतः मैं आपसे मदद माँगने आया हूँ। पहले मैं आया हूँ, इसलिए पहला हक मेरा है। श्रीकृष्ण बोले- राजन भले ही आप पहले आए हैं- लेकिन मैंने पहले अर्जुन को देखा है मेरे लिए तो दोनों समान हैं। अर्जुन आप से छोटा भी है अतः पहला हक उसी का है। श्रीकृष्ण ने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि एक ओर मेरी सेना होगी, और दूसरी ओर मैं अकेला रहूँगा। युद्ध में मैं हथियार नहीं उठाऊँगा। अर्जुन आप जो चाहे पसंद कर लें। अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुन लिया। इस पर दुर्योधन खुश हुआ। भारी-भरकम सेना उसके हिस्से में आ गई। वह हस्तिनापुर लौट आया। कृष्ण के पूछने पर अर्जुन ने बताया- आप में वह शक्ति है कि जिससे आप अकेले ही इन तमाम राजाओं से लड़कर इन्हें कुचल सकते हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बड़े प्रेम से विदा किया।

इस प्रकार युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने और पार्थसारथी की पदवी हासिल की। मद्र देश के राजा शल्य नकुल-सहदेव की माँ माद्री के भाई थे। उन्होंने भी एक विशाल सेना एकत्रित की और पांडवों की सहायता के लिए चल पड़े। दुर्योधन ने रास्ते में इस सेना को अपनी तरफ़ मिलाने की कोशिश किया।

रास्ते में शल्य का काफ़ी आदर सत्कार किया। इससे प्रभावित होकर वे पांडवों का साथ छोड़कर कौरवों की तरफ़ हो गए। युधिष्ठिर ने बताया कि दुर्योधन ने धोखा देकर अपनी ओर कर लिया। युधिष्ठिर के पूछने पर शल्य ने इतना अश्वासन दिया कि वह अर्जुन के प्राणों की रक्षा करेगा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-59- सम्माननीय – आदरणीय, लाभप्रद – लाभदायक, राय – विचार, रीति – तरीका, हितैषी – भला चाहने वाला, विवश – लाचार, विलंब – देरी, दृढ़तापूर्वक – बलपूर्वक, हक – अधिकार।
पृष्ठ संख्या-60- आचार्य – गुरु, इज्ज़त – आदर, संदेश – सूचना, शयनागार – शयनकक्ष, नियम – तरीका, प्रथा – प्रचलन, निगाह – नज़र, पुरस्कार – इनाम।
पृष्ठ संख्या-61- पार्थ – अर्जुन, निर्णय – फ़ैसला, तटस्थ – किसी के भी पक्ष में न होना, बुद्धू – मूर्ख, निःशस्त्र – बिना हथियार के, तमाम – सभी, विश्राम – आश्रम।
पृष्ठ संख्या-62- असमंजस – दुविधा, दिलासा – आज्ञा।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 23 विराट का भ्रम

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 23 विराट का भ्रम

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 23

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजकुमार उत्तर के बारे में राजा विराट को मन में क्या भ्रम था?
उत्तर:
राजा विराट को राजकुमार उत्तर के बारे में यह भ्रम था कि अकेला राजकुमार ने युद्ध के मैदान में कौरवों को हराया है। इसलिए वे आनंद और अहंकार में फूले न समा रहे थे। इसी भ्रम में उन्होंने दूतों को असंख्य रत्न एवं धन पुरस्कार में दिए।

प्रश्न 2.
क्या बात सुनकर विराट चौंक पड़े?
उत्तर:
जब राजा विराट को पता चला कि राजकुमार उत्तर कौरवों से लड़ने गए हैं तो वे चौंक पड़े।

प्रश्न 3.
युधिष्ठिर द्वारा बार-बार वृहन्नला का उल्लेख करने पर विराट ने कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
युधिष्ठिर द्वारा बार-बार वृहन्नला का उल्लेख करने पर विराट झुंझलाकर बोले- “आपने क्या यह वृहन्नला-वृहन्नला की रट लगा रखी है। मैं अपने पुत्र राजकुमार उत्तर की बात कर रहा हूँ और आप उसके सारथी की बड़ाई करने लगे और जैसे से युधिष्ठिर ने वृहन्नला का नाम लेकर कुछ और कहने का प्रयास किया राजा ने कंक (युधिष्ठिर) के मुँह पर पासा दे मारा जिससे कंक के मुँह पर चोट आई और खून बहने लगा।

प्रश्न 4.
अर्जुन ने किन-किन महारथियों को हराया?
उत्तर:
अर्जुन ने कर्ण, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा तथा दुर्योधन जैसे महारथियों को हराया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कंक ने द्वारपाल को केवल राजकुमार को लाने के लिए क्यों कहा?
उत्तर:
युधिष्ठिर (कंक) को डर था कि राजा विराट के हाथों लगी चोट को यदि अर्जुन (वृहन्नला) ने देख लिया तो कहीं उसे क्रोध न आ जाए और कहीं अनिष्ट न हो जाए।

प्रश्न 2.
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को क्या समझाया?
उत्तर:
अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन को समझाया कि-प्रतिज्ञा का समय पूरा हो चुका है। हर वर्ष में एक जैसे महीने नहीं होते। तुम लोगों के गणना में भूल हुई है। अतः अभी भी समय है पांडवों के साथ संधि कर लो। जब अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी तभी मैं समझ गया था कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। अतः युद्ध शुरू होने से पहले इस बात का निश्चय कर लो कि पांडवों के साथ संधि करनी हैं या नहीं। अभी भी समय है कि उनके साथ समझौता किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से क्या कहा?
उत्तर:
युद्ध से लौटते समय अर्जुन ने कहा- राजकुमार उत्तर अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गाएँ छुड़ा ली गई हैं। शत्रु भी भाग गए हैं। इस युद्ध में विजय तुम्हारी हुई है। अतः चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना। अर्जुन फिर वृहन्नला के रूप में फिर सारथिी बन गए। दूतों के माध्यम से नगर में खबर भेज दी गई कि राजकुमार उत्तर की विजय हुई है।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 23

जब त्रिगर्तराज सुशर्मा पर विजय प्राप्त कर राजा विराट नगर में आए तो उन्हें पता चला कि राजकुमार उत्तर कौरवों से युद्ध करने गए हैं। यह जानकर राजा काफ़ी चिंतित हो गए। राजा को इस तरह से व्याकुल देखकर कंक (युधिष्ठिर) ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आप राजकुमार उत्तर की चिंता छोड़ दें। उनके साथ वृहन्नला सारथी बनकर गई है।

कंक आपस में इस प्रकार की बात कर ही रहे थे कि इतने में उत्तर के भेजे हुए दूतों ने आकर कहा- “राजन! आपका कल्याण हो। राजकुमार जीत गए। कौरव सेना तितर-वितर कर दी गई है।

गायें छुड़ा ली गई हैं। पुत्र के विजय पर राजा खुशी से फूले नहीं समाए। इसके बाद वे चौपड़ खेलने लगे। चोपड़ खेलते-खेलते राजा ने कंक से कहाविख्यात कौरव वीरों को मेरे पुत्र ने अकेले जीत लिया है। कंक ने उन्हें कहा निःसंदेह आपका पुत्र भाग्यशाली है, नहीं तो वृहन्नला उनकी सारथी बनती ही कैसे। इस पर राजा विराट गुस्से से बोले- आपने भी क्या वृहन्नला-वृहन्नला की रट लगा रखी है। मैं अपने पुत्र राजकुमार की विजय की बात कर रहा हूँ और आप सारथी की बड़ाई करने में लगे हैं।

अब युधिष्ठिर वृहन्नला के बारे में कुछ और कहने ही वाले थे कि राजा विराट ने चौपड़ के पासे युधिष्ठिर के मुँह पर मार दिए, जिससे कंकं के मुँह पर चोट आई और खून बहने लगे। इतने में ही द्वारपाल ने आकर सूचना दी कि राजकुमार उत्तर व वृहन्नला द्वार पर खड़े हैं। राजा ने आने की अनुमति दी किंतु युधिष्ठिर ने कहा सिर्फ राजकुमार को लाओ, वृहन्नला को नहीं। युधिष्ठिर को डर था कि कहीं उनके निकलते हुए खून को देखकर अर्जुन कुछ अनर्थ न कर बैठे। राजकुमार उत्तर ने पहले पिता को प्रणाम किया फिर कंक को प्रणाम करना चाहता था तभी उनके मुख से खून बहता देखकर दुखी हो गया। उसने पूछा-पिता जी उनको किसने चोट पहुँचाई है। विराट ने कहा- बेटा! क्रोध में मैंने चौपड़ के पासे फेंक मारे क्यों तुम उदास क्यों हो गए?”

राजकुमार उत्तर काफ़ी भयभीत हो उठा। उसने पिता से अनुरोध किया कि वे कंक से क्षमा याचना करें। तब राजा विराट ने पाँव पकड़कर क्षमा याचना की।

राजकुमार उत्तर में विराट को बताया कि पिता जी, मैंने कोई सेना नहीं हराई। मैं तो लड़ा भी नहीं। विराट ने कौरवों को हराने वाले वीर को बुलाने को कहा। तभी अर्जुन ने सारी सभा में अपना असली परिचय दिया।

वहाँ के प्रजा के आश्चर्य और आनंद का ठिकाना न रहा। राजा विराट का हृदय, कृतज्ञता, आनंद और आश्चर्य से प्रफुल्लित हो उठा। विराट ने कुछ देर बाद अर्जुन से आग्रह किया कि आप राज्य कन्या उत्तरा से विवाह कर लें। अर्जुन ने कहा- राजन! मैं आपकी पुत्री को नाच-गाना सिखाता रहा हूँ। मेरे लिए वह पुत्री के समान है। यह उचित नहीं होगा कि मैं उनके साथ विवाह करूँ। यदि आपकी इच्छा हो तो मेरे पुत्र अभिमन्यु के साथ उसका विवाह हो जाए। राजा विराट ने उनकी बात मान ली।

इसके कुछ समय बाद दुर्योधन के दूतों ने आकर कहा कि प्रतिज्ञा पूरी होने से पहले अर्जुन पहचाने गए हैं। अतः बारह वर्ष के लिए वनवास करना होगा। इस पर युधिष्ठिर हँस पड़े और बोले- “दूतगण शीघ्र ही वापस जाकर दुर्योधन को कहो कि पितामह भीष्म
और जानकारों से पूछकर इस बात का निश्चय करें कि अर्जुन जब वह प्रकट हुआ था, तब प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी या नहीं। मेरा यह दावा है कि तेरहवाँ वर्ष पूरा होने के बाद ही अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी।”

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-56- उत्साह-खुशी, विजय-जीत।
पृष्ठ संख्या-57- चौंक जाना – आश्चर्यचकित हो जाना, आक्रमण – हमला, शोकातुर – दुखी, तितर-बितर – छिन्न-भिन्न, आनंद – खुशी, फूले न समाना – बहुत खुश होना, पुरस्कार – इनाम, विख्यात – प्रसिद्ध, इशारा – संकेत, आदेश – आज्ञा, नमस्कार – प्रणाम, उदास – दुखी, कॉप जाना – डर जाना, प्रतिज्ञा – प्रण, दावा – अधिकार।