NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 4 कठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)

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BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 7
SubjectHindi Vasant
ChapterChapter 4
Chapter Nameकठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)
Number of Questions Solved9
CategoryNCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 4 कठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)

 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

                                                                        (पृष्ठ 20-21)

कविता से

प्रश्न 1.
कठपुतली को गुस्सा क्यों आया?
उत्तर
कठपुतली को सदा दूसरों के इशारों पर नाचने से दुख होता है। वह स्वतंत्र होना चाहती है। अंपने पाँवों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बनना चाहती है। धागे में बँधना उसे पराधीनता लगता है इसीलिए उसे गुस्सा आता है।

प्रश्न 2.
कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती?
उत्तर-
कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़े होने की इच्छा तो है ही, लेकिन खड़ी नहीं होती। इसका कारण यह है कि वह धागों से बँधी हुई होती है। वह पराधीन है। उसका स्वयं पर कोई बस नहीं चलता। दूसरों की इच्छा पर ही वह अपने हाथ-पैर हिला सकती है उसमें अपने बल पर चलने की शक्ति नहीं है।

प्रश्न 3.
पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी?  [Imp. ]
उत्तर
जब पहली कठपुतली ने स्वतंत्र होने के लिए विद्रोह किया तो दूसरी कठपुतलियों को भी यह बात बहुत अच्छी लगी क्योंकि बंधन में रहना कोई पसंद नहीं करता। वे भी बंधन में दुखी हो चुकी थीं लेकिन ऐसा संभव न हुआ।

प्रश्न 4.
पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि-‘ये धागे / क्यों हैं मेरे पीछे-आगे? / इन्हें तोड़ दो; / मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।’ तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि-‘ये कैसी इच्छा / मेरे मन में जगी?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए

  1. उसे दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी।
  2. उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी।
  3. वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी।
  4. वह डर गई, क्योंकि उसकी उम्र कम थी।

उत्तर

धागों से बँधी कठपुतलियाँ दूसरों के इशारे पर नाचना ही अपना जीवन मानती हैं लेकिन एक बार एक कठपुतली ने विद्रोह कर दिया। उसके मन में शीघ्र ही स्वतंत्र होने की इच्छा जागृत हुई और वह अपनी स्वतंत्रता के बारे में सोचने लगी। लेकिन जब उसे अपने ऊपर दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी का अहसास हुआ तो वह डर गई, उसे ऐसा लगा न जाने स्वतंत्रता का जीवन भी कैसा होगा? तो वह सोच-विचार करने लगी।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
‘बहुत दिन हुए / हमें अपने मन के छंद छुए।’-इस पंक्ति का अर्थ और क्या हो सकता है? अगले पृष्ठ पर दिए हुए वाक्यों की सहायता से सोचिए और अर्थ लिखिए
(क) बहुत दिन हो गए, मन में कोई उमंग नहीं आई।
(ख) बहुत दिन हो गए, मन के भीतर कविता-सी कोई बात नहीं उठी, जिसमें छंद हो, लय हो।
(ग) बहुत दिन हो गए, गाने-गुनगुनाने का मन नहीं हुआ।
(घ) बहुत दिन हो गए, मन का दुख दूर नहीं हुआ और न मन में खुशी आई।
उत्तर-
‘बहुत दिन हुए हमें अपने मन के छंद छुए’ का अर्थ है कि बहुत दिन हो गए मन का दुख दूर नहीं हुआ और न ही मन में खुशी आयी। यानी कठपुतलियाँ पराधीनता से बहुत अधिक दुखी हैं। हमने अपने मन की बात नहीं सुनी और मन की इच्छा के अनुसार कार्य नहीं किया। पराधीनता ने हमें सोचने-समझने का मौका ही नहीं दिया।

प्रश्न 2.
नीचे दो स्वतंत्रता आंदोलनों के वर्ष दिए गए हैं। इन दोनों आंदोलनों के दो-दो स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखिए-
(क) सन् 1857……… ……….
(ख) सन् 1942……. ……….
उत्तर
(क) सन् 1857-लक्ष्मीबाई, ताँत्या टोपे।
(ख) सन् 1942-महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू।

अनुमान और कल्पना

* स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ कैसे लड़ी होंगी और स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी होने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए होंगे? यदि उन्हें फिर से धागे में बाँधकर नचाने के प्रयास हुए होंगे तब उन्होंने अपनी रक्षा किस तरह के उपायों से की होगी?
उत्तर
स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ मिलकर लड़ी होगी। पहली कठपुतली के मन में भले ही अपने बंधन तोड़ने से पहले यह विचार था कि दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी उस पर है क्योंकि उसका धागा टूटने पर सबके धागे टूटते गए होंगे। उसने अवश्य पहले सभी कठपुतलियों से विचार-विमर्श किया होगा। स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी बनने के लिए भी उन्होंने काफी परिश्रम किया होगा। रहने, खाने, पीने, जीवनयापन की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात एक किया होगा।

यदि फिर से उन्हें किसी ने धागे में बाँधकर नचाने का प्रयास किया होगा तो हाथ न आई होंगी क्योंकि स्वतंत्र जीवन में मनुष्य कितनी भी मुश्किलों का सामना करें लेकिन परतंत्रता से वह भला ही होता है। उन्होंने अपनी रक्षा के लिए एकजुट होकर कार्य किया होगा। सब मिलकर रही होंगी। धागे बाँधने वालों की हर चाल को असफल किया होगा।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
कई बार जब दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तो उनके मूल रूप में परिवर्तन हो जाता है। कठपुतली शब्द में भी इस प्रकार का सामान्य परिवर्तन हुआ है। जब काठ और पुतली दो शब्द एक साथ हुए कठपुतली शब्द बन गया और इससे बोलने में सरलता आ गई। इस प्रकार के कुछ शब्द बनाइएजैसे—काठ (कठ) से बना-कठगुलाब, कठफोड़ा
हाथ-हथ सोना-सोन मिट्टी-मट
उत्तर
हाथ-हथ – हथकड़ी, हथगोला, हथनाल
सोना-सोन – सोनपरी, सोनजुही, सोनभद्र
मिझे-मट – मटमैला, मटका, माट

प्रश्न 2.
कविता की भाषा में लय या तालमेल बनाने के लिए प्रचलित शब्दों और वाक्यों में बदलाव होता है। जैसे-आगे-पीछे अधिक प्रचलित शब्दों की जोड़ी है, लेकिन कविता में ‘पीछे-आगे’ का प्रयोग हुआ है। यहाँ ‘आगे’ का ‘..“बोली ये धागे’ से ध्वनि का तालमेल है। इस प्रकार के शब्दों की जोड़ियों में आप भी परिवर्तन कीजिए-दुबला-पतला, इधर-उधर, ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, गोरा-काला, लाल-पीला आदि।
उत्तर
पतला-दुबला, उधर-इधर, नीचे-ऊपर, बाएँ-दाएँ, काला-गोरा, पीला-लाल आदि।

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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 13 एक तिनका (अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’)

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ChapterChapter 13
Chapter Nameएक तिनका (अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’)
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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 13 एक तिनका (अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(पृष्ठ 100-101)

कविता से

प्रश्न 1.
नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को सामान्य वाक्य में बदलिए।
जैसे- एक तिनका आँख में मेरी पड़ा-मेरी आँख में एक तिनका पड़ा।
मुँठ देने लोग कपड़े की लगे-लोग कपड़े की मँठ देने लगे।
(क)एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा- ……………………
(ख)लाल होकर आँख भी दुखने लगी- ……………………
(ग)ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी- …………………
(घ) जब किसी ढब से निकल तिनका गया- ………….
उत्तर

  1. एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा – एक दिन जब मैं अपनी छत के किनारे पर खड़ा था।
  2. लाल होकर आँख भी दुखने लगी – आँख में तिनका चले जाने के कारण आँख लाल होकर दुखने लगी।
  3. ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी – जब आँख में बहुत दर्द हुआ तो कवि का घमंड भी टूट गया।
  4. जब किसी ढब से निकल तिनका गया – किसी तरीके से आँख का तिनका निकाला गया।

प्रश्न 2.
‘एक तिनका’ कविता में किस घटना की चर्चा की गई है, जिससे घमंड नहीं करने का संदेश मिलता है?
उत्तर
‘एक तिनका’ कविता में ‘हरिऔध’ जी ने आँख में चले जाने वाले तिनके की बात की है कि कैसे एक तिनका कवि की आँख में चला गया। उसकी आँख लाल होकर दुखने लगी। लोगों ने आँख में कपड़े की मुँठ भी दी। किसी तरीके से तिनका निकाल लिया गया। ऐसे में कवि का घमंड चूर-चूर हो गया। उसकी बुद्धि ने भी उसे ताने दिए कि तू ऐसे ही घमंड करता था तेरे घमंड को चूर करने हेतु एक तिनका ही बहुत है। इस कविता से यह संदेश मिलता है कि हमें घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि कई बार छोटी से छोटी वस्तु या प्राणी भी घमंड चूर-चूर करने में सफल हो जाता है।

प्रश्न 3.
आँख में तिनका पड़ने के बाद घमंडी की क्या दशा हुई?
उत्तर
घमंडी की आँख में तिनका पड़ने पर उसकी आँखे लाल होकर दुखने लगी। ऐसे में वह बेचैन हो उठा जिससे उसका घमंड चूर-चूर हो गया।

प्रश्न 4.
घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास लोगों ने क्या किया?
उत्तर-
घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने कपड़ों की मूठ बनाकर उसकी आँख में देने लगे। यानी कपड़े की नोंक से तिनका निकालने का प्रयास करने लगे।

प्रश्न 5.
‘एक तिनका’ कविता में घमंडी को उसकी ‘समझ’ ने चेतावनी दी-
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।
इसी प्रकार की चेतावनी कबीर ने भी दी है-
तिनका कबहूँ न निदिए, पाँव तले जो होय।
कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय।
• इन दोनों में क्या समानता है और क्या अंतर? लिखिए।
उत्तर
(क)इन दोनों काव्यांशों की पंक्तियों में समानता यह है कि दोनों में ही बताया गया है कि छोटा-सा तिनका भी अगर आँख में पड़ जाए तो मनुष्य को बेचैन कर देता है।
(ख)इन दोनों काव्यांशों की पंक्तियों में अंतर‘एक तिनका’ कविता में कवि ने दर्शाया है कि छोटे से तिनके में मनुष्य का घमंड तोड़ देने की शक्ति है।
जबकि कबीर ने कहा है कि तिनके को कभी पाँव तले मत रौंदो न जाने कब वह उड़कर आँख में पड़ जाए और बहुत दर्द सहना पड़े अर्थात् छोटा व्यक्ति भी कभी-कभी नुकसान पहुँचा सकता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
इस कविता को कवि ने ‘मैं’ से आरंभ किया है-‘मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ’। कवि का यह ‘मैं’ कविता पढ़नेवाले व्यक्ति से भी जुड़ सकता है और तब अनुभव यह होगा कि कविता पढ़नेवाला व्यक्ति अपनी बात बता रहा है। यदि कविता में ‘मैं’ की जगह ‘वह’ या कोई नाम लिख दिया जाए, तब कविता के वाक्यों में बदलाव आ जाएगा। कविता में ‘मैं’ के स्थान पर ‘वह’ या कोई नाम लिखकर वाक्यों के बदलाव को देखिए और कक्षा में पढ़कर सुनाइए।
उत्तर
वह घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में उसकी पड़ा।

वह झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मुँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब उसकी ‘समझ’ ने यों उसे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनको है बहुत तेरे लिए।

प्रश्न 2.
नीचे दी गई पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी,
तब ‘समझ’ ने यों मुझे ताने दिए।
• इन पंक्तियों में ऐंठ’ और ‘समझ’ शब्दों का प्रयोग सजीव प्राणी की भाँति हुआ है। कल्पना कीजिए, यदि ‘ऐंठ’ और ‘समझ’ किसी नाटक में दो पात्र होते तो उनका अभिनय कैसा होता?
उत्तर-
ऐंठ-अकड़ कर चलती, घमंड से भरी होती, रूखे स्वर में बोलती-ऐ! मनुष्य बता तू कौन है? उसे किसी बात की परवाह न होती।
समझ-शांत स्वभाव की होती। दूसरों का सम्मान करनेवाली होती। वह विनम्र तथा सरल होता। उसकी बातों में समझदारी होती।

प्रश्न 3.
नीचे दी गई कबीर की पंक्तियों में तिनका शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार किया गया है। इनके अलग-अलग अर्थों की जानकारी प्राप्त करें।
उठा बबूला प्रेम का, तिनका उड़ा अकास।
तिनका-तिनका हो गया, तिनका तिनके पास।।
उत्तर
हवा का चक्रवात उठने पर धरती से तिनके उड़कर आकाश में पहुँच गए और सभी तिनके बिखर गए। कबीर जी के अनुसार मानो एक तिनका उस तिनके के साथ जा मिला अर्थात् आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया। यहाँ रहस्यमय अर्थात् अद्वैत भाव दर्शाया गया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
किसी ढब से निकलना’ का अर्थ है किसी ढंग से निकलना।’ढब से’ जैसे कई वाक्यांशों से आप परिचित होंगे, जैसे – धम से वाक्यांश है लेकिन ध्वनियों में समानता होने के बाद भी ढब से और धम से जैसे वाक्यांशों के प्रयास में अंतर है। ‘धम से’, ‘छप से’ इत्यादि का प्रयोग ध्वनि द्वारा क्रिया को सूचित करने के लिए किया जाता है। नीचे कुछ ध्वनि द्वारा क्रिया को सूचित करने वाले वाक्यांश और कुछ अधूरे वाक्य दिए गए हैं। उचित वाक्यांश चुनकर वाक्यों के खाली स्थान भरिए
छप से, टप से, थरै से, फुर्र से, सन् से
(क) मेंढक पानी में ……….. कूद गया।
(ख) नल बंद होने के बाद पानी की एक बूंद ………… चू गई।
(ग) शोर होते ही चिड़िया ………. उड़ी।
(घ) ठंडी हवा ………. गुजरी, मैं ठंड में ……….. काँप गया।
उत्तर-
(क) मेंढक पानी में छप से कूद गया।
(ख) नल बंद होने के बाद पानी की एक बूंद टप से चू गई।
(ग) शोर होते ही चिड़िया फुर्र से उड़ी।
(घ) ठंडी हवा सन् से गुजरी, मैं ठंड में थर्र से काँप गया।

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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 19 आश्रम का अनुमानित व्यय (मोहनदास करमचंद गांधी)

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ChapterChapter 19
Chapter Nameआश्रम का अनुमानित व्यय (मोहनदास करमचंद गांधी)
Number of Questions Solved7
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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 19 आश्रम का अनुमानित व्यय (मोहनदास करमचंद गांधी)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(पृष्ठ 139-40)
लेखा-जोखा

प्रश्न 1.
हमारे यहाँ बहुत से काम लोग खुद नहीं करके किसी पेशेवर कारगीर से करवाते हैं लेकिन गांधी जी पेशेवर कारीगरों के उपयोग में आने वाले औज़ार-छेनी, हथौड़े, बसूले इत्यादि क्यों खरीदना चाहते होंगे?
उत्तर-
यह सच है कि हमारे यहाँ काम लोग खुद नहीं करके किसी पेशेवर कारीगर से काम करवाना पसंद करते हैं, क्योंकि उनके पास अपने औजार होते हैं लेकिन गांधी जी हर छोटा-बड़ा कार्य स्वयं करते थे तथा दूसरों को भी करने पर जोर दिया करते थे। उनका विचार था कि कोई कार्य छोटा नहीं होता। व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए तथा किसी भी कार्य को करने में संकोच नहीं महसूस करना चाहिए।

प्रश्न 2.
गांधी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस सहित कई संस्थाओं व आंदोलनों का नेतृत्व किया। इनकी जीवनी या उन पर लिखी गई किताबों में उन अंशों को चुनिए जिनसे हिसाब-किताब के प्रति गांधी जी की चुस्ती का पता चलता है?
उत्तर-
गांधी जी हर काम का लेखा-जोखा रखते थे। वे प्रत्येक विषय के प्रति नकारात्मक व सकारात्मक सोच बराबर रखते थे। निम्न उदाहरणों द्वारा इस वक्तव्य को स्पष्टता दे सकते हैं

गांधी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस, कई संस्थाओं (खादी ग्रामोद्योग) तथा आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया। वे लेखाजोखा रखने में शुरू से ही काफ़ी सक्रिय रहते हैं। इंग्लैंड में भी पढ़ाई के दौरान वे एक-एक पैसे का हिसाब रखते थे और प्रतिदिन अपने रोकड़ मिला लेते थे। इसका उनकी आत्मकथा में भी उल्लेख है। वे इसी आदत के कारण सभी आंदोलनों को सफलतापूर्वक चला पाए, उन्हें कभी पैसे की कमी नहीं हुई।

प्रश्न 3.
मान लीजिए, आपको कोई बाल आश्रम खोलना है। इस बजट से प्रेरणा लेते हुए उसका अनुमानित बजट बनाइए। इस बजट में दिए गए किन-किन मदों पर आप कितना खर्च करना चाहेंगे। किन नयी मदों को जोड़ना-हटाना चाहेंगे?
उत्तर
बाल आश्रम के लिए संभावित बजट
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प्रश्न 4.
आपको कई बार लगता होगा कि आप कई छोटे-मोटे काम (जैसे-घर की पुताई, दूध दुहना, खाट बुनना) करना चाहें तो कर सकते हैं। ऐसे कामों की सूची बनाइए, जिन्हें आप चाहकर भी नहीं सीख पाते। इसके क्या कारण रहे होंगे? उन कामों की सूची भी बनाइए, जिन्हें आप सीखकर ही छोड़ेंगे।
उत्तर
हमारे जीवन में ऐसे बहुत से कार्य होते हैं जिन्हें हम चाहकर भी नहीं सीख पाते जैसे-घर की पुताई सफ़ेदी वाला करता है, दूध वाला दूध दोह देता है और खाट (चारपाई) बुनने वाले से बुनवाई जाती है। कुछ ऐसे ही निम्न कार्य हैं जो मैं चाहकर भी नहीं सीख पाता-

  1. खेती-बाड़ी करना-मुझे खेतों में घूमना, अनाज-फल बोना व फसलें देखना बहुत अच्छा लगता है। मेरा भी मन चाहता है कि किसान की तरह कड़ी मेहनत करूं लेकिन मेरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई, क्योंकि हम शहर के एक फ्लैट में रहते हैं। यहाँ खेती-बाड़ी तो क्या गमले में एक पौधा लगाने की भी खुली जगह नहीं है।
  2. कॉपी बनाना-मुझे बहुत शौक है कि मोटी-मोटी कॉपियाँ खुद बनाऊँ। क्योंकि कॉपी बंनाने में सारा काम हाथ से ही करना होता है। मैं पेज लाता हूँ, सिलता हूँ, उसका कवर भी बनाने की कोशिश करता हूँ। लेकिन कॉपियाँ सही नहीं बन पातीं क्योंकि यह काम अनुभव पर निर्भर करता है।
  3. मेज कुर्सी बनाना-कभी-कभी मेरा मन करता है कि अपने पढ़ने के लिए अपने आप एक मेज-कुर्सी
    बनाऊँ। पूरा सामान-लकड़ी के फट्टे, पाये, कील, हथौड़ा होने के बावजूद असफल हो जाता हूँ तो यही लगता है। जिसका काम उसी को साजे।।।
  4. कपड़े रंगना-कपड़े रंगना मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन गर्म पानी में हाथ डालने से डर लगता है और साथ ही रंग मिलान समझ नहीं आता। इस बारे में मैं यही सोचता हूँ कि इस कार्य को करने से पहले अत्यधिक अनुभव की आवश्यकता है।
  5. चप्पल, जूते में टाँका लगाना-कितना आसान लगता है टूटे हुए चप्पल, जूते में टाँका लगाना। मोची कितनी जल्दी लगाता है। हम चाहकर भी एक छोटा-सा टाँका नहीं लगा पाते कभी सुई टूट जाती है और कभी धागा छूट जाता। है क्योंकि यह भी एक कला है जिसे सीखना पड़ता है।
    लेकिन मैंने भी प्रण किया है कि मैं कपड़े रंगना और कॉपियाँ बनाने का काम जरूर सीखेंगा, भले ही मुझे इसके लिए प्रशिक्षण लेना पड़े। मेरे माता-पिता भी मुझे यही समझाते हैं कि छोटे-से-छोटे व बड़े-से-बड़े काम को करने के लिए लगन, परिश्रम व अनुभव की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5. इस अनुमानित बजट को गहराई से पढ़ने के बाद आश्रम के उद्देश्यों और कार्यप्रणाली के बारे में क्या-क्या अनुमान लगाए जा सकते हैं?   [Imp.]
उत्तर
इस अनुमानित बजट को गहराई से पढ़ने के बाद हम आश्रम के ये उद्देश्य जान सकते हैं
अतिथि सत्कार, जरूरतमंदों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना, बेकार लोगों को आजीविका प्रदान करना, श्रम का महत्त्व समझाना, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना, चरखे आदि से स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाना।
इस आश्रम की कार्यप्रणाली का मुख्य आधार आत्मनिर्भरता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
अनुमानित शब्द अनुमान में इत प्रत्यय जोड़कर बना है। इते प्रत्यय जोड़ने पर अनुमान का न नित में परिवर्तित हो जाता है। नीचे-इत प्रत्यय वाले कुछ और शब्द लिखे हैं। उनमें मूल शब्द पहचानिए और देखिए कि क्या परिवर्तन हो रहा है-
प्रमाणित व्यथित द्रवित मुखरित
झंकृत शिक्षित मोहित चर्चित
इत प्रत्यय की भाँति इक प्रत्यय से भी शब्द बनते हैं और तब शब्द के पहले अक्षर में भी परिवर्तन हो जाता है, जैसे-सप्ताह + इक = साप्ताहिक। नीचे इक प्रत्यय से बनाए गए शब्द दिए गए हैं। इनमें मूल शब्द पहचानिए और देखिए कि क्या परिवर्तन हो रहा है-
मौखिक         संवैधानिक        प्राथमिक
नैतिक           सौराणिक         दैनिक
उत्तर
इत प्रत्ययांत शब्द        मूल शब्द  +   प्रत्यय
प्रमाणित               =     प्रमाण      +   इत
व्यथित                 =     व्यथा        +   इत
द्रवित                   =     द्रव          +   इत
मुखरित                =     मुखर       +   इत
झंकृत                  =     झंकार      +   इत
शिक्षित                 =     शिक्षा       +   इत
मोहित                  =     मोह         +   इत
चर्चित                   =     चर्चा        +  इत

इक प्रत्ययांत शब्द       मूल शब्द  +   प्रत्यय
मौखिक                =    मुख          +   इक
संवैधानिक            =    संविधान    +    इक
प्राथमिक              =    प्रथम         +    इक
नैतिक                  =   नीति          +    इक
पौराणिक              =   पुराण         +    इक
दैनिक                  =   दिन           +    इक

प्रश्न 2.
बैलगाड़ी और घोडागाड़ी शब्द दो शब्दों को जोड़ने से बने हैं। इसमें दूसरा शब्द प्रधान है, यानी शब्द का प्रमुख अर्थ दूसरे शब्द पर टिका है। ऐसे समास को तत्पुरुष समास कहते हैं। ऐसे छह शब्द और सोचकर लिखिए और समझिए कि उनमें दूसरा शब्द प्रमुख क्यों है?
उत्तर-
रसोईघर – रसोई के लिए घर
तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत
देशभक्त – देश का भक्त
घुड़सवार – घोड़े पर सवार
वनवास – वन का वास

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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 7 पापा खो गए (विजय तेंदुलकर)

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ChapterChapter 7
Chapter Nameपापा खो गए (विजय तेंदुलकर)
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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

                                                                        (पृष्ठ 60-62)

नाटक से

प्रश्न 1.
नाटक में आपको सबसे बुद्धिमान पात्र कौन लगा और क्यों?
उत्तर-
नाटक में सबसे बुद्धिमान पात्र हमें कौआ लगा क्योंकि वह उड़-उड़कर सभी घटनाओं की जानकारी रखता है, उसे अन्य जगहों की घटनाओं की जानकारी थी। सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों की पहचान थी। अपनी बुद्धिमता से वह बच्ची को उस दुष्ट व्यक्ति से बचाता है और फिर उसे सही सलामत उसके घर तक पहुँचाने की तरकीब भी वही सोचता है।

प्रश्न 2.
पेड़ और खंभे में दोस्ती कैसे हुई?
उत्तर
पेड़ का जन्म समुद्र के किनारे हुआ था वह अकेला बड़ा होता रहा। कुछ समय के बाद वहाँ एक खंभा लगाया गया तो पेड़ ने उससे मित्रता करने की कोशिश की। जबकि खंभा अपनी अकड़ के कारण पेड़ से नहीं बोलता था। परंतु एक दिन घोर वर्षा और तेज हवाओं के कारण वह खंभा पेड़ के साथ जा टकराया और गिरने से बच गया। पेड़ ने स्वयं घायल होकर उसे धरती पर गिरने से बचाया। उस दिन से ही इन दोनों में गहरी मित्रता हो गई।

प्रश्न 3.
लैटरबक्स को सभी लाल ताऊ कहकर क्यों पुकारते थे?
उत्तर
लैटरबक्स को सभी लाल ताऊ कहते थे क्योंकि यह पूरे का पूरा लाल रंग में रंगा था। वह पढ़ा-लिखा था। चोरी-चोरी लोगों की चिट्ठियाँ पढ़कर समाज के लिए चिंतित होता था।

प्रश्न 4.
लाल ताऊ किस प्रकार बाकी पात्रों से भिन्न है?
उत्तर
लाल ताऊ पढ़ा-लिखा, बुद्धिमान, हँसमुख और मिलनसार था। वह नीरस वातावरण को भी भजनों और गानों से सरस बना देता था। इसलिए वह अन्य पात्रों से भिन्न है। निर्जीव होते हुए भी समाज की चिंताएँ उसे सताती थीं।

प्रश्न 5.
नाटक में बच्ची को बचानेवाले पात्रों में एक ही सजीव पात्र है। उसकी कौन-कौन सी बातें आपको मज़ेदार लगीं? लिखिए।
उत्तर
नाटक में एकमात्र सजीव पात्र ‘कौआ’ है। वह बुद्धिमान है, क्योंकि बच्ची को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका उसी ने निभाई। उसे सामयिक घटनाओं का पूरा ज्ञान है और समाज के अच्छे-बुरे लोगों की भी पहचान है। वह दूरदर्शी व सच्चा मित्र है। कर्कश आवाज़ के बावजूद मन से कोमल और सबके साथ मित्रता स्थापित करने वाला है। उसी की योजनानुसार बालिका को उठाने वाला दुष्ट व्यक्ति भूत के डर से बालिका को छोड़कर भाग जाता है और उसी के परामर्श से बच्ची को सकुशल घर पहुँचाने के लिए पुलिस के आने की प्रतीक्षा की जाती है। अंत में जब यह सोचा जाता है कि पुलिस न आई तो क्या होगा?’ तो कौआ ही लैटरबक्स को बड़े-बड़े अक्षरों में ‘पापा खो गए’ लिखने व सबको यह कहने कि किसी को इस बच्ची के पापा मिलें तो उन्हें यहाँ ले आने की सलाह देता है।

प्रश्न 6.
क्या वजह थी कि सभी पात्र मिलकर भी लड़की को उसके घर नहीं पहुँचा पा रहे थे।
उत्तर-
किसी को उसके घर का पता मालूम नहीं था। वह लड़की इतनी छोटी और भोली थी कि वह ठीक ढंग से अपने पिता का नाम और घर का पता नहीं बता पा रही थी। यही कारण था कि सभी पात्र मिलकर भी उस बच्ची को उसके घर नहीं पहुँचा पा रहे थे।

नाटक से आगे

प्रश्न 1.
अपने-अपने घर का पता लिखिए तथा चित्र बनाकर वहाँ पहुँचने का रास्ता भी बताइए।
उत्तर-
बच्चे अपने-अपने घर का पता लिखें तथा चित्र बनाकर रास्ता भी बताएँ।
उदाहरणस्वरूप
वी० 4/13 जी० एफ०-1
डी०एल०एफ० अंकुर विहार

शिव
मंदिरएम०एम० रोड 120 फुटबी० ब्लॉक

प्रश्न 2.
मराठी से अनूदित इस नाटक का शीर्षक ‘पापा खो गए’ क्यों रखा गया होगा? अगर आपके मन में कोई दूसरा शीर्षक हो तो सुझाइए और साथ में कारण भी बताइए।
उत्तर
इस नाटक का शीर्षक ‘पापा खो गए’ इसलिए रखा गया क्योंकि लड़की को अपने पिता का नाम व घरे का पता मालूम नहीं था। इस अनोखे शीर्षक के द्वारा ही लोग और पुलिस आकर्षित होकर उस बालिका को घर पहुँचाने की कोशिश करेंगे।

इसका अन्य शीर्षक ‘गुमशुदा लड़की’ रखा जा सकता है जो प्रायः माता-पिता की ओर से पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने के समय दिया जाता है।

प्रश्न 3.
क्या आप बच्ची के पापा को खोजने का नाटक से अलग कोई और तरीका बता सकते हैं?
उत्तर
समाचार पत्रों में, पोस्टरों में या दूरदर्शन पर उसका चित्र दिखाकर लोगों का ध्यान आकर्षित करके, उसके पापा को खोजा जा सकता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
अनुमान लगाइए कि जिस समय बच्ची को चोर ने उठाया होगा वह किस स्थिति में होगी? क्या वह पार्क मैदान में खेल रही होगी या घर से रूठकर भाग गई होगी या कोई अन्य कारण होगा?
उत्तर-
जिस समय बच्ची को चोर ने उठाया होगा उस समय वह सो रही थी क्योंकि स्वयं बच्ची को उठाने वाले उस व्यक्ति ने कहा था।

प्रश्न 2.
नाटक में दिखाई गई घटना को ध्यान में रखते हुए यह भी बताइए कि अपनी सुरक्षा के लिए आजकल बच्चे क्या-क्या कर सकते हैं। संकेत के रूप में नीचे कुछ उपाय सुझाए जा रहे हैं। आप इससे अलग कुछ और उपाय लिखिए।

  • समूह में चलना।
  • एकजुट होकर बच्चा उठानेवालों या ऐसी घटनाओं का विरोध करना।
  • अनजान व्यक्तियों से सावधानीपूर्वक मिलना।

उत्तर
अन्य उपाय

  1. बच्चों को अपने पिता का नाम व घर का पता मालूम होना चाहिए।
  2. घर के पास किसी विशेष स्थान का नाम भी पता होना चाहिए।
  3. बच्चों को अपने घर का दूरभाष नंबर भी याद होना चाहिए।
  4. माता-पिता को भी चाहिए कि बच्चों को घर से बाहर भेजते समय उनकी जेब में एक पर्ची पर उनका नाम, पता व दूरभाष नंबर लिखकर डालें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
आपने देखा होगा कि नाटक के बीच-बीच में कुछ निर्देश दिए गए हैं। ऐसे निर्देशों से नाटक के दृश्य स्पष्ट होते हैं, जिन्हें नाटक खेलते हुए मंच पर दिखाया जाता है, जैसे-‘सड़क/रात का समय … दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़।’ यदि आपको रात का दृश्य मंच पर दिखाना हो तो क्या-क्या करेंगे, सोचकर लिखिए।
उत्तर
यदि हमें रात का दृश्य मंच पर दिखाना हो तो हम दिखाएँगे-
रात का समय, लंबी सड़क, दूर टिमटिमाता एक छोटा-सा बल्ब, साँय-साँय चलती हवा, भयानक आवाज़ से झूमते पेड़।

प्रश्न 2.
पाठ को पढ़ते हुए आपका ध्यान कई तरह के विराम चिह्नों की ओर गया होगा। दिए गए अंश से विराम चिह्नों को हटा दिया गया है। ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उपयुक्त चिह्न लगाइए-
मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी अरे बाप रे वो बिजली थी या आफ़त याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड़ा कितना गहरा पड़ गया था खंभे महाराज अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उस रात की याद हो आती है, अंग थरथर काँपने लगते हैं।
उत्तर
मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी। अरे, बाप रे! वो बिजली थी या आफत! याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड़ा कितना गहरा पड़ गया था, खंभे महाराज! अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उसे रात की याद हो आती है। अंग थरथर काँपने लगते

प्रश्न 3.
आसपास की निर्जीव चीजों को ध्यान में रखकर कुछ संवाद लिखिए, जैसे-
चॉक का ब्लैक बोर्ड से संवाद
कलम को कॉपी से संवाद
खिड़की को दरवाजे से संवाद
उत्तर
चॉक का ब्लैक बोर्ड से संवाद

चॉक-भैया ब्लैक बोर्ड! कितने वर्षों से दीवार पर टॅग रहे हो?
ब्लैक बोर्ड-लगभग पाँच वर्ष हो गए।
चॉक-जब मैं तुम पर घिसा जाता हूँ तो क्या तुम्हें दर्द नहीं होता?
ब्लैक बोर्ड-चॉक! क्या बात करते हो? अरे! दर्द क्यों होगा? मुझे तो प्रसन्नता होती है कि जितना तुम्हें मुझ पर घिसा जाता है उतना ही विद्यार्थी कुछ नया सीखते हैं।
चॉक-यह तो है!
ब्लैक बोर्ड-क्या तुम्हें मुझ पर घिसना अच्छा लगता है?
चॉक-मुझे तो तुम पर घिसना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि जब-जब मुझे शिक्षक घिसने हेतु उठाता है मुझे लगता है कि मैं उनका हथियार हूँ। कितने ही बौद्धिक शब्द मुझसे आकृति पाते हैं।
ब्लैक बोर्ड-हम दोनों के बिना ही शिक्षक का काम नहीं चल सकता।

• कलम का कॉपी से संवाद

कलम-कॉपी! क्या मेरा तुम पर घिसे जाना तुम्हें अच्छा लगता है?
कॉपी-जब तुम्हारे द्वारा विद्यार्थी या अन्य लोग मुझ पर सुंदर-सुंदर शब्द लिखते हैं तो मैं फूली नहीं समाती।
कलम-सच!
कॉपी-लेकिन कभी-कभी तुम्हारी स्याही मुझ पर फैल जाती है तो मुझे बहुत दुख होता है। मेरी सुंदरता बिगड़ जाती है।
कलम-मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती लेकिन कई बार मुझे सावधानी से चलाया नहीं जाता तो ऐसा होता है।
कॉपी-मुझे तो तुम पर नाज़ होता है क्योंकि तुम्हारे बिना तो मेरा होना न होना एक समान है। तुम ही तो मुझे उपयोगी बनाती हो। मैं तहे दिल से तुम्हारा धन्यवाद करती हूँ।
कलम-ऐसा न कहो, तुम्हारे बिना मेरी भी कोई उपयोगिता नहीं है।

• खिड़की का दरवाज़े से संवाद

खिड़की-दरवाजे भैया! क्या कर रहे हो?
दरवाज़ा-क्या करूं सुबह से परेशान हूँ, न जाने इस घर में आज क्या कार्यक्रम है? इतने लोग आते जा रहे हैं और मुझे बार-बार खुलना बंद होना पड़ रहा है।
खिड़की-परेशान क्यों होते हो?
दरवाज़ा-क्यों! क्या मैं थकता नहीं?
खिड़की-‘भाग्यवान हो’ दरवाजे भैया! कितने लोगों को रास्ता देते हो। एक मैं हूँ, सुबह खुलती हैं तो रात को बंद होती हैं। हाँ! अगर बारिश या तेज़ हवा चल रही हो तो उसी समय धड़ाम से बंद कर दी जाती हैं।
दरवाज़ा-मुझे देखो, सारा दिन खुलना बंद होना। बस यही मेरा काम है और यदि घर वाले कहीं जाएँगे तो इतना बड़ा ताला लगा देंगे कि मैं उस ताले में फँसा-हँसा ही थक जाता हूँ।
खिड़की-मेरा काम तो चिटकनी से ही चल जाता है।
खिड़की-दरवाजे भैया! हर हाल में खुश रहना सीखो! इसी का नाम जीवन है।

प्रश्न 4.
उपर्युक्त में से दस-पंद्रह संवादों को चुनें, उनके साथ दृश्यों की कल्पना करें और एक छोटा-सा नाटक लिखने का प्रयास करें। इस काम में अपने शिक्षक से सहयोग लें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें या शिक्षक की सहायता लेकर कार्य करें।

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NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन)

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BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 7
SubjectHindi Vasant
ChapterChapter 3
Chapter Nameहिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन)
Number of Questions Solved17
CategoryNCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन)

 

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(पृष्ठ 15-17)

लेख से

प्रश्न 1.
नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर-
हमारी भारतीय संस्कृति में नदियों को माँ मानने की परंपरा काफ़ी पुरानी है। लेकिन इस निबंध में लेखक ने बेटी, प्रेयसी तथा बहन के रूप में प्रस्तुत किया है। इस पाठ में नदियाँ हिमालय की बेटियाँ हैं। नदियों को बादलों की प्रेयसी के रूप प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त लेखक ने नदियों को बहन के रूप में दिखाया है।

प्रश्न 2.
सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर
सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय की दो ऐसी नदियाँ हैं जिन्हें ऐतिहासिकता के आधार पर पुल्लिग रूप में नद भी माना गया है। कहा जाता है कि ये दो ऐसी नदियाँ हैं जो दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक-एक बूंद से निर्मित हुई हैं। इनका रूप विशाल और विराट है। इनका रूप इतना लुभावना है कि सौभाग्यशाली समुद्र भी पर्वतराज हिमालय की इन दो बेटियों का हाथ थामने पर गर्व महसूस करता है।

प्रश्न 3.
काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?       [Imp.]
उत्तर
नदियाँ हमें जल प्रदान कर जीवनदान देती हैं। ये युगों-युगों से पूजनीय व मनुष्य हेतु कल्याणकारी रही हैं। इनका जल भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाता है। मानव के आधुनिकीकरण में जैसे-बिजली बनाना, सिंचाई के नवीन साधनों आदि में इन्होंने पूरा सहयोग दिया है। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए जल बहुत जरूरी है।

इतनी कल्याणकारी होने पर भी नदियों को कल-कारखानों से निकलने वाले विष रूपी प्रदूषित जल, गंदे रसायन पदार्थ, लोगों द्वारा दूषित किया गया जल जैसे-कपड़े धोना, पशु नहलाना व अन्य कूड़ा-करकट भी अपने आँचल में ही समेटना पड़ता है। लेकिन फिर भी ये नदियाँ कल्याण ही करती हैं। ‘अपार दुख सहकर भी कल्याण’ केवल ‘माता’ ही कर सकती है।

इसीलिए हम कह सकते हैं कि काका कालेलकर का नदियों को लोकमाता की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं।

प्रश्न 4.
हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
उत्तर
हिमालय की यात्रा में लेखक ने नदियों, झरनों, हिमालय की बर्फीली चोटियों, गगनचुंबी पर्वतों, विशाल मैदानों, सागरों तथा महासागरों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

लेख से आगे

प्रश्न 1.
नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।
उत्तर-
यह लघु सरिता का बहता जल,
कितना शीतल कितना निर्मल।
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल,
यह विमल दूध-सा हिम का जल,
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल
बहता आता नीचे पल-पल।
तन का चंचल, मन का विह्वल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
निर्मल जल की यह तेज़ धार,
करके कितनी श्रृंखला पार,
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार-बार
रखता है तन में उतना बल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
करके तरु फूलों का सिंचन,
लघु जल-धारों से आलिंगन
जल कुंडों में करते नर्तन,
करके अपना बहु परिवर्तन।
आगे बढ़ता जाता केवल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
मिलता है इसको जब पथ पर,
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर,
आकुल आतुर दुख से कातर
सिर पटक-पटककर रो-रोकर
करता है कितना कोलाहल,
यह लघु सरिता का बहता जल॥
हिम के पत्थर वे पिघल-पिघल,
बन गए धरा के वारि विमल,
सुख पाता जिससे पथिक विकल,
पी-पी कर अंजलि भर मृदु जल।
नित जलकर भी कितना शीतल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे! जननी का वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल।
गंगा, यमुना, सरयू निर्मल,
यह लघु सरिता का बहता जल।
-गोपालसिंह ‘नेपाली’

प्रस्तुत कविता में नदी की गति, रूप, रंग और स्वभाव का अत्यंत सुंदर चित्रण हुआ है। नदी हिमालय से निकलती है, इसलिए इसका जल धवल, निर्मल एवं शीतल होता है। यह कलकल स्वर में गाती, बाधा विघ्नों में संघर्ष करती हुई आगे बढ़ती जाती है। समतल भूमि पर भी इसके कोमल पैर को कंकड़ पर पैदल चलना पड़ता है, फिर भी यह सदानीरा कभी विश्राम नहीं करती। सूर्य की गरमी में जलकर भी यह हमें शीतलता प्रदान करती है। नदी की चंचलता और शीतलता देखकर कवि को आश्चर्य होता है। नदियों के जीवन का मूल उद्देश्य प्राणी मात्र का पालन करना है और एक माँ के समान समस्त जीवों का बिना किसी भेदभाव के पालन-पोषण करती हुई अपना कर्तव्य पूरा करना है। इस कविता को पढ़कर सुंदरता का आनंद तो मिलता ही है, साथ ही मानव के लिए संदेश है कि वह सदैव कार्यरत रहे।

हिमालय पर कविता

खड़ा हिमालय बता रहा है।
डरो न आँधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल होकर
सब संकट तूफ़ानों में।।
डिगो न अपने प्रण से, तो तुम
सब कुछ पा सकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो
छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में ।
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में।
-सोहनलाल द्विवेदी

उपरोक्तं कविता में हिमालय द्वारा मुसीबतों से न घबराते हुए जीवन में आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहे हैं जबकि इस कविता में अपनी बेटियों द्वारा घर का त्याग कर जाने से हिमालय पछताता रहता है।

प्रश्न 2.
गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आँगन में पढ़िए और तुलना कीजिए।
उत्तर

कविता-हिमालय और हम
कवि-गोपालसिंह नेपाली

  1. इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।
    पर्वत–पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही
    अंबर में सिर-पाताल चरन
    मन इसका गंगा का बचपन
    तन वरन-वरन मुख निरावरन
    इसकी छाया में जो भी है, वह मस्तक नहीं झुकाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा नाता है।
  2. जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी
    हैं अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी
    कोई क्या हमको ललकारे
    हम कभी न हिंसा से हारे
    दुख देकर हमको क्या मारे
    गंगा का जल जो भी पी ले, वह दुख में भी मुसकाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।
  3. अरुणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
    फिर संध्या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती
    इन शिखरों की माया ऐसी ।
    जैसा प्रभात, संध्या वैसी
    अमरों को फिर चिंता कैसी
    इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्त अपनाता है।
    गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।

इस कविता की तुलना यदि हम पाठ हिमालय से करें तो पाएँगे कि गोपाल सिंह नेपाली ने इस कविता में यह दर्शाया है कि हिमालय का भारतवासियों से प्राचीन काल से ही अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। भारत-धरती का मुकुट हिमालय पर्वत अपनी जड़ों को पाताल तक ले जाए हुए है। उसके धवल शिखर आकाश का चुंबन करते हैं। सुबह और शाम के समय सूर्य की लालिमा इसे चूम कर निखर उठती है। इसकी छाया सागर और गंगा के समान लंबी है। यह अचल और अडिग है। बादल और तूफ़ान इससे टकराकर अपनी हार मान लेते हैं। भारतवासियों के जीवन पर हिमालय का स्पष्ट प्रभाव है क्योंकि वे भी हिमालय की तरह आत्माभिमानी और दृढ़निश्चयी है। हिमालय से निकलने वाली गंगा की पावनधारा सभी के दुखों को समाप्त कर देती है। यही कारण है कि यहाँ गांधी जैसे कर्मठ और युगचेता महापुरुषों ने जन्म लिया है।

जबकि पाठ हिमालय में लेखक नागार्जुन ने यह दर्शाया है कि हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ किस स्वरूप से हिमालय की गोद से निकलती हैं? हिमालय उनका पिता और निकलने वाली नदियाँ उसकी बेटियाँ प्रतीत होती हैं।

प्रश्न 3.
यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलनेवाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर
1947 से लेकर कुछ दशकों तक तो नदियाँ निर्मल, कांतिमान और नीरोगता प्रदान करने वाली थीं। किंतु जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक क्रांति, मननीय तथा प्रशासकीय उपेक्षा के कारण इनमें औषधीय गुण समाप्त हो गए हैं। निरंतर प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जगह-जगह बांध बनने के कारण जल-प्रवाह में न्यूनती हो गई जोकि मानव के लिए हितकर नहीं है।

प्रश्न 4.
अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
उत्तर
हिमालय पर्वत पर देवताओं का वास माना जाता है। ऋषि-मुनि यहाँ निरंतर पूजा-अर्चना व तपस्या करते हैं इसीलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
लेखक ने हिमालय से निकलनेवाली नदियों को ममता भरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं? जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।
उत्तर
लेखक का नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहना बिल्कुल सही है हम भी उन्हें हिमालय की बेटियाँ ही कहेंगे क्योंकि हिमालय की गोदी में नदियाँ बच्चियों की भाँति खेलती हुई निकलती हैं। वर्तमान में नदियों की सुरक्षा हेतु निम्न कार्य किए जा रहे हैं-

  1. नदियों के जल को प्रदूषण से बचाना।
  2. बहाव को सही दिशा देना।
  3. अधिक नहरें न निकालना।
  4. जल का कटाव रोकना।

नोट-इस हेतु अधिक जानकारी इंटरनेट की सहायता से प्राप्त करें व नदियों की सुरक्षा हेतु अपने सुझाव सोचिए।

प्रश्न 2.
नदियों से होनेवाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।
उत्तर-
नदियाँ हमारे जीवन में प्राचीन काल से ही उपयोगी रही हैं। ये हमारी संस्कृति की पहचान हैं। ये हमारे जीवन का आधार हैं। नदियों के किनारे हमारे तीर्थस्थल हैं। इनके आस-पास का क्षेत्र उपजाऊ होता है। गंगा-यमुना का क्षेत्र इसी कारण अधिक उपजाऊ है, क्योंकि सिंचाई के लिए सरलता से जल वहीं मिल सकता है। सदियों से नदियाँ आगमन तथा व्यापार का माध्यम रही हैं तथा नदियों की सीमा होने से शत्रुओं से रक्षा भी हो जाती थी क्योंकि सेना लेकर नदी पार करना कठिन कार्य था। आज के समय में भी नदियों की उपयोगिता कम नहीं हुई है। इनका जल सिंचाई के काम में आता है। अनगिनत जीव इनसे जीवन पाते हैं। नदियों के किनारे लोग अपनी छोटी-बड़ी सभी आवश्यकताएँ जैसे सिंचाई करने, पानी पीने, कपड़े धोने, नहाने, जानवरों के लिए पानी आदि का उपयोग करते हैं। नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। इनसे बिजली तैयार की जा रही है। इसे ‘हाइड्रो इलेक्ट्रिीसिटी’ कहा जाता है। इस प्रकार नदियों ने रोजगार में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया है तथा आधुनिकीकरण में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण
(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।
• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।
उत्तर

  1. दादी माँ शापभ्रष्ट देवी-सी लगीं।
  2. सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान-गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर| तक लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता।
  3. बच्चे ऐसे सुंदर थे जैसे सोने के सजीव खिलौने।
  4. संध्या को स्वप्न की भाँति गुजार देते हैं।
  5. मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता | था तब उस नृत्य में एक सहजात लय ताल रहती थी।

प्रश्न 2.
निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।
• पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ढूंढिए।
उत्तर

  1. संभ्रांत महिला की भाँति प्रतीत होती थी।
  2. इनका उछलना और कूदना, खिलखिलाकर हँसते जाना, इनकी भाव-भंगी, इनका यह उल्लास कहाँ गायब हो जाता है।
  3. पिता का विराट प्रेम पाकर भी अगर इनका हृदय अतृप्त ही है तो कौन होगा जो इनकी प्यास मिटा सकेगा।
  4. बुङ्का हिमालय अब इनकी नटखट बेटियों के लिए कितना सिर धुनता होगा।
  5. हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं।

प्रश्न 3.
पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिएविशेषण
NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन) 3

उत्तर-
NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन) 4

प्रश्न 4.
द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे-राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
उत्तर-
पाठ में आए द्वंद्व समास के अन्य उदाहरण
उछलना-कूदना
माँ-बाप
दुबली-पतली
भाव-भंगी
नंग-धडंग

प्रश्न 5.
नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन (भाववाचक संज्ञा)।
उत्तर

  1. याद – दया    (भाववाचक संज्ञा)
  2.  मरा – राम    (व्यक्तिवाचक संज्ञा)
  3.  भला – लाभ   (भाववाचक संज्ञा)
  4.  राही – हीरा   (द्रव्यवाचक संज्ञा)
  5.  नशा – शान   (भाववाचक संज्ञा)

प्रश्न 6.
समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं, जैसे-बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप ‘वेत्रवती’ है। नीचे दिए गए शब्दों में से हूँढकर इन नामों के अन्य रूप लिखिए-
NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन) 1

उत्तर
NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ (नागार्जुन) 2

प्रश्न 7.
उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढे हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।’
• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं-उनके खयाल में शायद यह बात न आ सके।
• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं, जैसे-महात्मा गाँधी को कौन नहीं जानता? दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनको विश्लेषण कीजिए।
उत्तर

  1. वे शायद ही यह सोच पाएँ कि मैं तुम्हारे साथ आऊँगा।
  2. उन्होंने शायद ही जाना हो कि मैं बीमार हूँ।
  3. राम शायद ही यह सीख पाए कि गरीबों की सेवा करना ही मानव धर्म है।

 

  1. रमा के स्वभाव को कौन नहीं पहचानता?
  2. दु:शासन की चालें किसने नहीं जानीं?
  3. विभीषण की करतूत कौन नहीं जानता?

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