NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 4 कठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)

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BoardCBSE
TextbookNCERT
ClassClass 7
SubjectHindi Vasant
ChapterChapter 4
Chapter Nameकठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)
Number of Questions Solved9
CategoryNCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 4 कठपुतली (भवानीप्रसाद मिश्र)

 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

                                                                        (पृष्ठ 20-21)

कविता से

प्रश्न 1.
कठपुतली को गुस्सा क्यों आया?
उत्तर
कठपुतली को सदा दूसरों के इशारों पर नाचने से दुख होता है। वह स्वतंत्र होना चाहती है। अंपने पाँवों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बनना चाहती है। धागे में बँधना उसे पराधीनता लगता है इसीलिए उसे गुस्सा आता है।

प्रश्न 2.
कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती?
उत्तर-
कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़े होने की इच्छा तो है ही, लेकिन खड़ी नहीं होती। इसका कारण यह है कि वह धागों से बँधी हुई होती है। वह पराधीन है। उसका स्वयं पर कोई बस नहीं चलता। दूसरों की इच्छा पर ही वह अपने हाथ-पैर हिला सकती है उसमें अपने बल पर चलने की शक्ति नहीं है।

प्रश्न 3.
पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी?  [Imp. ]
उत्तर
जब पहली कठपुतली ने स्वतंत्र होने के लिए विद्रोह किया तो दूसरी कठपुतलियों को भी यह बात बहुत अच्छी लगी क्योंकि बंधन में रहना कोई पसंद नहीं करता। वे भी बंधन में दुखी हो चुकी थीं लेकिन ऐसा संभव न हुआ।

प्रश्न 4.
पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि-‘ये धागे / क्यों हैं मेरे पीछे-आगे? / इन्हें तोड़ दो; / मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।’ तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि-‘ये कैसी इच्छा / मेरे मन में जगी?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए

  1. उसे दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी।
  2. उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी।
  3. वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी।
  4. वह डर गई, क्योंकि उसकी उम्र कम थी।

उत्तर

धागों से बँधी कठपुतलियाँ दूसरों के इशारे पर नाचना ही अपना जीवन मानती हैं लेकिन एक बार एक कठपुतली ने विद्रोह कर दिया। उसके मन में शीघ्र ही स्वतंत्र होने की इच्छा जागृत हुई और वह अपनी स्वतंत्रता के बारे में सोचने लगी। लेकिन जब उसे अपने ऊपर दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी का अहसास हुआ तो वह डर गई, उसे ऐसा लगा न जाने स्वतंत्रता का जीवन भी कैसा होगा? तो वह सोच-विचार करने लगी।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
‘बहुत दिन हुए / हमें अपने मन के छंद छुए।’-इस पंक्ति का अर्थ और क्या हो सकता है? अगले पृष्ठ पर दिए हुए वाक्यों की सहायता से सोचिए और अर्थ लिखिए
(क) बहुत दिन हो गए, मन में कोई उमंग नहीं आई।
(ख) बहुत दिन हो गए, मन के भीतर कविता-सी कोई बात नहीं उठी, जिसमें छंद हो, लय हो।
(ग) बहुत दिन हो गए, गाने-गुनगुनाने का मन नहीं हुआ।
(घ) बहुत दिन हो गए, मन का दुख दूर नहीं हुआ और न मन में खुशी आई।
उत्तर-
‘बहुत दिन हुए हमें अपने मन के छंद छुए’ का अर्थ है कि बहुत दिन हो गए मन का दुख दूर नहीं हुआ और न ही मन में खुशी आयी। यानी कठपुतलियाँ पराधीनता से बहुत अधिक दुखी हैं। हमने अपने मन की बात नहीं सुनी और मन की इच्छा के अनुसार कार्य नहीं किया। पराधीनता ने हमें सोचने-समझने का मौका ही नहीं दिया।

प्रश्न 2.
नीचे दो स्वतंत्रता आंदोलनों के वर्ष दिए गए हैं। इन दोनों आंदोलनों के दो-दो स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखिए-
(क) सन् 1857……… ……….
(ख) सन् 1942……. ……….
उत्तर
(क) सन् 1857-लक्ष्मीबाई, ताँत्या टोपे।
(ख) सन् 1942-महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू।

अनुमान और कल्पना

* स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ कैसे लड़ी होंगी और स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी होने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए होंगे? यदि उन्हें फिर से धागे में बाँधकर नचाने के प्रयास हुए होंगे तब उन्होंने अपनी रक्षा किस तरह के उपायों से की होगी?
उत्तर
स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ मिलकर लड़ी होगी। पहली कठपुतली के मन में भले ही अपने बंधन तोड़ने से पहले यह विचार था कि दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी उस पर है क्योंकि उसका धागा टूटने पर सबके धागे टूटते गए होंगे। उसने अवश्य पहले सभी कठपुतलियों से विचार-विमर्श किया होगा। स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी बनने के लिए भी उन्होंने काफी परिश्रम किया होगा। रहने, खाने, पीने, जीवनयापन की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात एक किया होगा।

यदि फिर से उन्हें किसी ने धागे में बाँधकर नचाने का प्रयास किया होगा तो हाथ न आई होंगी क्योंकि स्वतंत्र जीवन में मनुष्य कितनी भी मुश्किलों का सामना करें लेकिन परतंत्रता से वह भला ही होता है। उन्होंने अपनी रक्षा के लिए एकजुट होकर कार्य किया होगा। सब मिलकर रही होंगी। धागे बाँधने वालों की हर चाल को असफल किया होगा।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
कई बार जब दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तो उनके मूल रूप में परिवर्तन हो जाता है। कठपुतली शब्द में भी इस प्रकार का सामान्य परिवर्तन हुआ है। जब काठ और पुतली दो शब्द एक साथ हुए कठपुतली शब्द बन गया और इससे बोलने में सरलता आ गई। इस प्रकार के कुछ शब्द बनाइएजैसे—काठ (कठ) से बना-कठगुलाब, कठफोड़ा
हाथ-हथ सोना-सोन मिट्टी-मट
उत्तर
हाथ-हथ – हथकड़ी, हथगोला, हथनाल
सोना-सोन – सोनपरी, सोनजुही, सोनभद्र
मिझे-मट – मटमैला, मटका, माट

प्रश्न 2.
कविता की भाषा में लय या तालमेल बनाने के लिए प्रचलित शब्दों और वाक्यों में बदलाव होता है। जैसे-आगे-पीछे अधिक प्रचलित शब्दों की जोड़ी है, लेकिन कविता में ‘पीछे-आगे’ का प्रयोग हुआ है। यहाँ ‘आगे’ का ‘..“बोली ये धागे’ से ध्वनि का तालमेल है। इस प्रकार के शब्दों की जोड़ियों में आप भी परिवर्तन कीजिए-दुबला-पतला, इधर-उधर, ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, गोरा-काला, लाल-पीला आदि।
उत्तर
पतला-दुबला, उधर-इधर, नीचे-ऊपर, बाएँ-दाएँ, काला-गोरा, पीला-लाल आदि।

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