Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक 

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पहलवान की ढोलक Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 14

प्रश्न 1.
प्रस्तुत कहानी के आधार पर मलेरिये और हेजे की विभीषिका का चित्रण कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत कहानी में संपूर्ण गाँव मलेरिये और हैसे का शिकार था। एक ओर ये महामारियाँ अपना तांडव मचा रही थीं; तो दूसरी ओर रात्रि का गहन अंधकार लोगों के हृदय को दहला देता था। इस विभीषिका से भयभीत होकर संपूर्ण गाँव एक शिशु के समान थर-थर काँपता था। बाँस-फूस की झोंपड़ियों में चारों ओर सनापन और अंधेरा छाया हुआ था। गाँव प्रायः सुना हो गया था। घर के घर खाली हो गए थे। प्रतिदिन दो-तीन लाशें गाँव से निकलती थीं। दिन में पक्षियों के कलरव हाहाकार और लोगों के रोने के बावजूद उनके चेहरों पर थोड़ी-सी चमक दिखाई देती थी; लेकिन रात होते ही लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में सुन्न होकर मुस जाते थे। लोग इतने डर जाते थे कि माताएँ दम तोड़ रहे अपने बच्चे को बेटा कहकर पुकारने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती थीं।

प्रश्न 2.
लुट्टन सिंह पहलवान का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
‘पहलवान की ढोलक’ फनीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक आंचलिक कथा है। लुट्टन सिंह पहलवान इस कहानी का केंद्र बिंदु है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं10

(i) व्यक्तित्व-लद्दन सिंह पहलवान का वास्तविक नाम लट्टन सिंह था। ‘पहलवान’ उसके नाम में बाद में जड़ा। वह लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। लुट्टन सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके माता-पिता नौ वर्ष की अवस्था में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गए थे। सौभाग्यवश उसकी बचपन में ही शादी हो गई थी। अतः उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। लुट्टन पहलवान के दो बेटे थे।

(ii) साहसालुटन सिंह पहलवान अत्यंत साहसी था। वह सुडौल और हट्टा-कट्टा था। वह प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना करता था। वह कभी घबराता नहीं था। अपने साहस के बल पर उसने प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हरा दिया था। महामारी फैलने के कारण जब रात्रि की विभीषिका से सारा गाँव शिशुओं की तरह थर-थर काँपता था, तब लुन सिंह अकेला सारी रात ढोलक बजाया करता था। यह उसके साहस का प्रत्यक्ष प्रमाण था।

(iii) भाग्यहान-लुट्टन सिंह साहसी होने पर भी भाग्यहीन था। बचपन में नौ वर्ष की अवस्था में उसे छोड़कर उसके माता-पिता चल बसे; उसकी सास ने उसे पाला-पोसा। बाद में उसके दोनों बेटे भी काल का शिकार हो गए। जिस वीरता के बलबूते वह श्यामनगर का राज-पहलवान बना था, राजा की मृत्यु के बाद वह पद भी उसे छोड़ना पड़ा।

(iv) निडर-लुट्टन सिंह एक निडर पुरुष था। जब सारा गाँव महामारी के कारण भयभीत होकर अपनी झोपड़ियों में गम हो जाता था, तब अकेला लुट्टन सिंह रात्रि के सन्नाटे में निडरता से अपना ढोल बजाया करता था। श्यामनगर के दंगल में भी वह चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान के साथ लड़ते हुए नहीं डरा। राजा के मना करने पर भी उसने निडरता से चाँद सिंह के साथ कश्ती की तथा अंत में उसे हराया। पहलवान को दंगल में हराना ही उसका निडरता का उदाहरण है।

सहयोगी-लुट्टन सिंह पहलवान होने के साथ-साथ एक संवेदनशील व्यक्ति भी था। वह दुख-सुख में सभी गाँववालों का साथ देता था। महामारी में जब गाँव में कहर मचा हुआ था, तब वह लोगों में जीने की उमंग पैदा करने के लिए रात में ढोल बजाया करता था। दिन में वह घर-घर जाकर अपने पड़ोसियों और गाँववालों का हाल-चाल पूछकर उन्हें धैर्य देता था।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कहानी पहलवान की ढोलक’ में भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को किस के माध्यम से उद्घाटित किया है?
उत्तर
लेखक ने भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को श्यामनगर के राजा श्यामानंद की मृत्यु के बाद नए विलायती राजा द्वारा व्यवस्था को बदलने के रूप में उद्घाटित किया है। श्यामनगर का पहला राजा लोक-संस्कृति का शौकीन था, इसलिए वह प्रतिवर्ष दंगल और कुश्ती का आयोजन करवाता था। उसने लुट्टन सिंह पहलवान की वीरता को देखकर उसे राज परिवार का पहलवान नियुक्त कर दिया था। उसका सारा खर्च भी राजा के खजाने से चलता था।

लेकिन राजा की मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा। उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को दिया जाने वाला सम्मान व खर्च बंद करवा दिया। उसे लोक-संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक-संस्कृति विलुप्त होने लगी। अंततः भारत पर इंडिया का साम्राज्य छाने लगा।

प्रश्न 4.
रात्रि की विभीषिका को कौन भंग करती थी और कैसे?
उत्तर
रात्रि की विभीषिका को पहलवान की ढोलक भंग करती थी। पहलवान रात से लेकर प्रात:काल तक ढोलक को एक गति से बजाता रहता था। उससे ‘चट्-धा गिड़-धा…चट्-धा, गिड़-धा’ का स्वर निकलता रहता था।

प्रश्न 5.
लुट्टन सिंह मेला देखने कहाँ गया और उसने वहाँ क्या किया?
उत्तर
लुट्टन सिंह मेला देखने श्यामनगर गया। वह पहलवानों की कुश्ती और दांव-पेंच से बहुत प्रभावित हुआ। उससे प्रेरित होकर उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ के नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे दी।

प्रश्न 6.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के संदेश को स्पष्ट कीजिए। (Delhi C.B.S.E. 2016)
उत्तर
पहलवान की ढोलक फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक प्रमुख आंचलिक कहानी है। इसके माध्यम से लेखक ने नि:स्वार्थ भाव से देश-सेवा का संदेश दिया है। लुट्टन सिंह की ढोलक की आवाज़ पूरे गाँववालों में धैर्य, साहस और स्फूर्ति प्रदान करती थी। रात्रि की विभीषिका में तथा सन्नाटे को ललकार के सामने चुनौती पैदा कर देती थी। जब पूरा गाँव महामारी के कारण मलेरिये और हैजे से त्रस्त होकर अधमरा, निर्बल और निस्तेज हो गया था तब इस भयंकर वातावरण में ढोलक की आवाज़ गाँववालों को संजीवनी प्रदान किया करती थी।

उपचाराधीन और पथविहीन लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी। बच्चे, जवान और बूढों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य पैदा कर देती थी। ढोल की आवाज सुनकर शक्तिहीन शिराओं में बिजली-सी दौड़ पड़ती थी। मरते हुए प्राणियों को भी आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी तथा लोग मृत्यु से भी नहीं डरते थे। इसे सुनकर लोगों के मन में जीने की नई उमंग जागृत हो जाती थी।

प्रश्न 7.
राजा साहब ने लुट्टन को क्यों सहारा दिया था? अंत में उसकी दुर्गति होने का क्या कारण था? (A.I.C.B.S.E. 2016)
उत्तर
राजा साहब ने लुट्टन को इसलिए सहारा दिया था क्योंकि उसने श्यामनगर के दंगल में सुप्रसिद्ध पहलवान चाँदसिंह को हरा दिया था। इसके बाद राजा ने उसे राज पहलवान घोषित कर दिया था। अंत में राजा की मृत्यु के बाद विलायती राजा आया। जिसने कुश्ती को बंद करके घोड़ों की रेस आदि खेलों को प्राथमिकता दी। उसने लुट्टन सिंह को भी राज पहलवान के पद से हटा दिया। इसके कारण लुट्टन के जीवन में दुर्गति हुई।

प्रश्न 8.
‘पहलवान की ढोलक पाठ का एक संदेश यह भी है कि लोककलाओं को संरक्षण दिया जाना चाहिए। अपने विचार लिखिए। (A.I. 2016, Set-II)
उत्तर
लेखक ने इस कहानी में भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को श्यामनगर के राजा श्यामानंद के बदलने पर नए विलायती राजा के श्यामनगर का राजा बनने की व्यवस्था के प्रतीक रूप में उद्घाटित किया है। यहाँ श्यामनगर का राजा लोक संस्कृति का शौकीन था इसलिए वह वहाँ प्रतिवर्ष दंगल और कुश्ती का आयोजन करवाया करता था।

उसने लुट्टन सिंह पहलवान की वीरता को देखकर भी उसे राज परिवार का पहलवान नियुक्त कर दिया था तथा लुट्टन सिंह का सारा खर्च भी राजा के खजाने से चलता था लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा आया तो उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को भी दिया जाने वाला सम्मान और खर्च बंद करा दिया। उसे लोक संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।

इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक संस्कृति विलुप्त होने लगी। इस प्रकार इस पाठ से हमें यह संदेश भी मिलता है कि लोककलाओं को भी संरक्षण दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के आधार पर ग्रामीणों की गरीबी और असहायता पर टिप्पणी कीजिए। (Outside Delhi 2017, Set-II)
उत्तर
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में लेखक ने ग्रामीणों की गरीबी एवं असहायता का मार्मिक चित्रण किया है। गाँव में गरीबी से युक्त घास-फूस की झोपड़ियाँ चारों तरफ छाई प्रतीत होती हैं। पूरा गाँव गरीबी के आतंक से जूझ रहा है। लोग अपनी दो जून की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। यही कारण है कि जब गाँव में मलेरिया एवं हैजे की महामारी फैल गई तो पूरा का पूरा गाँव खाली हो गया। गाँव में महामारी तांडव मचाने लगी।

इस समय पूरा गाँव असहाय प्रतीत हो रहा था। रात्रि की विभीषिका से भयभीत होकर लोग घास-फूस की झोंपड़ियों में दुबक जाते थे। दिन में पक्षियों के कलख, हाहाकार से गाँव वालों के चेहरों पर थोड़ी-सी चमक दिखाई देती थी। किंतु रात होते ही वह फुर हो जाती थी। गाँव में प्रतिदिन दो-तीन लाशें निकलती थीं।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयात शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम लिखिए।
2. इस गद्यांश में लेखक किन दिनों का चित्रण किया है?
3. गाँव किन-किन बीमारियों से पीड़ित था?
4. मलेरिया और हैजा से पीड़ित गाँव किसके समान काँप रहा था?
5. गाँव की झोंपड़ियाँ कैसी थीं? वहाँ का वातावरण कैसा था?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम फणीश्वर नाथ रेणु तथा पाठ का नाम ‘पहलवान की ढोलक’ है।
2. इस गद्यांश में लेखक ने जाड़े के दिनों की अमावस्या की काली व ठंडी रात का चित्रण किया है।
3. गाँव मलेरिया और हैजे की भयानक बीमारियों से पीड़ित था।
4. मलेरिये और हैजे से पीड़ित गाँव भयात शिशु के समान थर-थर काँप रहा था।
5. गाँव की झोंपड़ियाँ बाँस-फूस से बनी हुई पुरानी और उजड़ी हुई थीं। वहाँ के वातावरण में चारों ओर अंधकार और सन्नाटे का साम्राज्य था।

2. अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किसका मानवीकरण किया है?
2. लेखक ने अमावस्या की रात का कैसे मानवीकरण किया है?
3. अंधेरी रात के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
4. आकाश के तारे किस पर खिलखिलाकर हँसते हैं और क्यों?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अमावस्या की अंधेरी रात निस्तब्धता तथा तारों का मानवीकरण किया है।
2. लेखक कहता है कि अमावस्या की अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। वह करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय ___में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। इस तरह लेखक ने रात का मानवीकरण किया है।
3. लेखक के अनुसार चारों ओर अंधकार और सन्नाटे का वातावरण था। रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। अँधेरी रात में आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं भी प्रकाश का नामोनिशान नहीं था।
4. अँधेरी रात में आकाश से टूटकर जब कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना चाहता है, तो उसकी ज्योति और शक्ति बीच रास्ते में ही समाप्त हो जाती है। इसी को देखकर आकाश के अन्य तारे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं, क्योंकि वह भावुक तारा असफल हो जाता है।

3. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-‘चट्-धा, गिड़-धा,…चट्-धा गिड़-धा!’ यानी आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!’- बीच-बीच में-‘चटाक्-चट्-धा, चटाक्-चट्-धा!’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
(C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. रात्रि किसके साथ चलती थी?
2. पहलवान की ढोलक किसे ललकारती थी?
3. पहलवान की ढोलक रात्रि के किस रूप को ललकारती थी? कैसे?
4. पहलवान की ढोलक कब-से-कब तक बजती थी?
उत्तर
1. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती थी।
2. पहलवान की ढोलक रात्रि की भीषणता को ललकारती थी।
3. पहलवान की ढोलक रात्रि के भीषण रूप को ललकारती थी। वह इस रूप को ताल ठोककर ललकारती थी।
4. पहलवान की ढोलक संध्या से लेकर प्रातःकाल तक बजती रहती थी।

4. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-‘पागल है पागल, मरा-ऐं! मरा-मरा!’… पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवा कर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे-‘जाओ, मेला देखकर घर जाओ।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्यामनगर के राजा को क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपए दिए और क्यों?
उत्तर
1. एक बार श्यामनगर में मेला लगा हुआ था। लुटट्न सिंह भी वहाँ मेला देखने गया। वहाँ दंगल हो रहा था, जिसमें शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान आया हुआ था। दूर-दूर तक उसकी बराबरी का कोई पहलवान नहीं था, लेकिन ढोल की धुन से जोश में आकर लुट्टन सिंह ने उस शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। इसी चुनौती को देखकर शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
2. श्यामनगर के राजा को शिकार करना प्रिय लगता था। इसके साथ-साथ उसे दंगल का भी बहुत शौक था।
3. राजा साहब चाँद सिंह पहलवान को जानते थे। वे उसके दाव-पेंच पहले भी देख चुके थे। चाँद सिंह शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था, लेकिन लुट्टन सिंह पहली बार ही दंगल में लड़ा था। राजा साहब को डर था कि चाँद सिंह अनुभवहीन लुट्टन सिंह को चुटकियों में मसल डालेगा। इसलिए उन्होंने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को दस रुपये का नोट दिया, क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नामक बलशाली पहलवान से लड़ने की हिम्मत की थी।
5. भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गए थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थी। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई-कोई लुट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था-“उसे लड़ने दिया जाए।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भीड़ अधीर क्यों हो रही थी?
2. बाजे क्यों बंद हो गए थे?
3. दर्शकों की भीड़ उत्तेजित क्यों हो रही थी?
4. लुट्टन के पक्ष वाले चिल्लाकर क्या कह रहे थे?
उत्तर
1. लुट्टन सिंह पहलवान द्वारा ‘शेर के बच्चे’ नामक प्रसिद्ध पहलवान को ललकारने की बात सुनकर भीड़ अधीर हो रही थी।
2. लुट्टन सिंह पहलवान की घोषणा सुनते ही बाजे बंद हो गए थे।
3. दर्शकों की भीड़ इसलिए उत्तेजित हो रही थी, क्योंकि वह प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह के साथ लुट्टन सिंह के लड़ने को उसकी मूर्खता ___मान रही थी।
4. लुट्टन सिंह के पक्ष वाले चिल्लाकर कह रहे थे कि उसे लड़ने दिया जाए।

6. उसी दिन से लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लुट्टन सिंह की कीर्ति किस दिन से दर-दर तक फैल गई?
2. लुट्टन सिंह पहलवान प्रसिद्ध क्यों हो गया?
3. लुट्टन सिंह की प्रसिद्धि में किसने चार चाँद लगा दिए?
4. लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को हराने के बाद क्या किया?
5. उपर्युक्त गद्यांश में आए मुहावरों के अर्थ लिखिए-चार चाँद लगाना, मिट्टी सँघाना।
उत्तर
1. जिस दिन लुट्टन सिंह ने श्यामनगर के दंगल में नामी और प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हराया, उसी दिन से उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।
2. लुट्टन सिंह पहलवान इसलिए प्रसिद्ध हुआ, क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को हराया था।
3. लुट्टन सिंह की प्रसिद्धि में पौष्टिक भोजन, व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने चार चाँद लगा दिए।
4. लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को हराने के बाद कुछ ही वर्षों में एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया।
5. चार चाँद लगाना-सम्मान में वृदिध होना, मिट्टी सुंघाना-हरा देना।

7. मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह झूमता चलता। दुकानदारों को चुहल करने की सूझती। हलवाई अपनी दुकान पर बुलाता-“पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो!”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. मेलों में लुट्टन सिंह क्या पहनता था?
2. मेलों में वह कैसे चलता था?
3. उसे देखकर दुकानदारों को क्या करने की बात सूझती?
4. हलवाई अपनी दुकान पर बुलाकर उसे क्या कहते थे?
उत्तर
1. मेलों में लुट्टन सिंह घुटने तक लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी पहनता था।
2. मेलों में वह मतवाले हाथी की तरह झूमता हुआ चलता था।
3. उसे देखकर दुकानदारों को उसके साथ चुहल करने की बात सूझती थी।
4. हलवाई अपनी दुकान पर बुलाकर उसे कहते थे कि पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो।

8. अकस्मात गाँव पर यह वज्रपात हुआ। पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैजे ने मिलकर गाँव को भूनना शुरू कर दिया। गाँव प्रायः सूना हो चला था। घर के घर खाली पड़ गए थे। रोज दो-तीन लाशें उठने लगीं। लोगों में खलबली मची हुई थी। दिन में तो कलरव, हाहाकर तथा हृदय-विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, शायद सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. अकस्मात गाँव पर कैसा वज्रपात हुआ?
2. गाँव के लोगों में खलबली क्यों मच गई?
3. भयंकर बीमारी से ग्रस्त गाँव का दृश्य हृदय विदारक था? कैसे?
4. दिन में गाँव के लोगों के चेहरों पर प्रभा क्यों दृष्टिगोचर होती थी?
5. उक्त गाँव के दिन और रात के दृश्य में क्या अंतर था?
उत्तर
1. अकस्मात गाँव में पहले अनावृष्टि हुई और फिर अन्न की कमी हो गई। उसके बाद मलेरिये और हैजे ने मिलकर गाँववालों को अपनी चपेट में ले लिया।
2. गाँव में जब मलेरिया और हैजा फैल गया, तो उसने सारे गाँव को अपना शिकार बना डाला। इन बीमारियों के कारण गाँव में घर के घर खाली हो गए। प्रायः प्रतिदिन दो-तीन लाशें उठने लगी थीं। इसी भयानक दृश्य को देखकर लोगों में खलबली मच गई।
3. भयंकर बीमारी से ग्रस्त गाँव में दिन में हृदय-विदारक दृश्य के बावजूद भी लोगों के चेहरों पर कुछ ज्योति दिखाई देती थी, लेकिन रात्रि होते ही जब लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे तो यूँ की भी आवाज नहीं होती थी। माताओं को अपने दम तोड़ते पुत्र को अंतिम बार बेटा कहकर पुकारने की हिम्मत भी नहीं होती थी।
4. दिन में गाँव के लोगों के चेहरों पर प्रभा इसलिए दृष्टिगोचर होती थी, क्योंकि सूर्योदय होते ही लोग रोते-बिलखते-कराहते अपने-अपने ___घरों से बाहर निकलकर पड़ोसियों तथा आत्मीयों को धैर्य देते थे।
5. दिन में तो इस गाँव के लोगों के चेहरों पर कुछ प्रभा दिखाई देती थी; लोग रोते-बिलखते अपने पड़ोसियों को धैर्य देते थे। लेकिन रात में चहुँ ओर सन्नाटा छा जाता था; माताएँ अपने मरते हुए बच्चे को देखकर बेटा पुकारने की भी हिम्मत नहीं कर सकती थीं।

9. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। (C.B.S.E. Model Q. Paper 2008)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम बताएँ।
2. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती थी, कैसे?
3. लेखक ने रात्रि को डरावनी क्यों कहा है?
4. रात्रि की विभीषिका में पहलवान की ढोलक किन प्राणियों के लिए संजीवनी का काम करती थी?
5. पहलवान की ढोलक अर्धमृत प्राणियों के लिए संजीवनी का कार्य कैसे करती थी?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक ‘फनीश्वर नाथ रेणु’ तथा पाठ का नाम ‘पहलवान की ढोलक’ है।
2. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती थी, क्योंकि गाँव के अन्य सभी लोग रात्रि से भयभीत होकर अपनी झोंपड़ियों में गुम हो जाते थे। बस लुट्टन पहलवान ही अकेला पूरी रात ढोल बजाकर इधर-उधर टहलता रहता था।
3. गाँव में जब मलेरिये तथा हैजे की महामारी फैल गई, तो चारों ओर लोग मरने लगे। दिन में फिर भी लोग एक-दूसरे को ढाढ़स दे देते थे, लेकिन रात्रि में वे महामारी से भयभीत होकर अपनी-अपनी झोंपड़ी में गुम हो जाते थे। माताएँ दम तोड़ते अपने पुत्र को अंतिम बार बेटा पुकारने की भी हिम्मत नहीं कर पाती थीं। इसलिए लेखक ने रात्रि को डरावनी कहा है।
4. रात्रि की विभीषिका में पहलवान की ढोलक गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार, पथ्यविहीन प्राणियों के लिए संजीवनी का काम करती थी।
5. रात्रि की विभीषिका में जब चारों ओर लोग डरकर अपनी-अपनी झोंपड़ियों में सुन्न हो जाते थे, तब पहलवान सारी रात ढोलक बजाता था। उस समय ढोलक की आवाज से बच्चों, बूढ़ों तथा जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। उनकी स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में बिजली दौड़ जाती थी।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 13 काले मेघा पानी दे 

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काले मेघा पानी दे Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 13

प्रश्न 1.
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ का प्रतिपाद्य दीजिए।
अथवा
इंदर सेना के बारे में लेखक और जीजी की राय में क्या अंतर है? आप अन्य किसके विचारों से सहमत हैं? (A.L.C.B.S.E. 2016, Set-II, A.I. C.B.S.E. 2012, Set-III)
अथवा
‘काले मेघा पानी दे’ के आधार पर जीजी की दृष्टि में त्याग और दान को परिभाषित कीजिए। (C.B.S.E. 2018)
उत्तर
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने लोक आस्था और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी सामर्थ्य। लेखक ने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि से मुक्ति पाने हेतु गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी माँगने जाती है। लेखक का तर्कशील किशोर-मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी समझता है।

लेखक की जीजी इस कार्य को अंधविश्वास न मानकर लोक आस्था के त्याग की भावना कहती है। लेखक बार-बार अपनी जीजी के तर्कों का खंडन करता हुआ इसे पाखंड और अंधविश्वास कहता है लेकिन जीजी की संतुष्टि और अपने सद्भाव को बचाए रखने के लिए वह तमाम रीति-रिवाजों को ऊपरी तौर पर सही मानता है। लेकिन अंतर्मन से उनका खंडन करता चलता है।

जीजी का मानना है कि परम आवश्यक वस्तु का त्याग ही सर्वोच्च दान है पाठ के अंत में लेखक ने देशभक्ति का परिचय देते हुए देश में फैले भ्रष्टाचार के प्रति गहन चिंता व्यक्त की है तथा उन लोगों के प्रति कटाक्ष किया है जो आज भी पश्चिमी संस्कृति और भाषा के अधीन हैं तथा भ्रष्टाचार को अनदेखा कर रहे हैं या उसमें लिप्त हैं।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत संस्मरण के आधार पर लेखक की देशभक्ति की भावना का चित्रण कीजिए।
उत्तर
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में जहाँ लेखक ने लोक-आस्था का चित्रण किया है वहीं उनकी देशभक्ति की भावना भी दृष्टिगोचर होती है। लेखक का मानना है कि आज भी हम पूर्णतः आज़ाद नहीं हुए हैं क्योंकि इतने वर्षों की गुलामी के बाद भी हम अंग्रेजों के रहन-सहन, भाषा तथा पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता के गुलाम हैं। आज भी उसे ही अपनाए हुए हैं। हम अपनी भारतीय संस्कृति को भूल रहे हैं तथा पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे हैं। लेखक के विचार अधिक सशक्त और मानने योग्य हैं।

प्रश्न 3.
लेखक ने जिस त्याग-भावना को चित्रित किया है उसे स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नामोनिशान नहीं है।” “काले मेघा पानी दे’ कहानी की इस टिप्पणी पर आज के संदर्भ में टिप्पणी कीजिए। (C.B.S.E. Delhi 2017, Set-I)
उत्तर
लेखक ने अपने देश के प्रति देशवासियों की त्याग-भावना का चित्रण किया है। उन्होंने बताया है कि आज हम भारतवासी स्वार्थी बन गए हैं हमें अपने स्वार्थों के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता। हमारी प्रत्येक क्षेत्र में माँगे तो बहुत हैं लेकिन हमारे में त्याग-भावना का कहीं नामोनिशान बिल्कुल नहीं है। हर कोई अपनी मांग तो रखता है लेकिन देश के प्रति उसका क्या उत्तरदायित्व है इसको नहीं समझता।

प्रश्न 4.
‘काले मेघा पानी दे’ में लेखक ने समाज की एक ऐसी समस्या का वर्णन किया है जो आज भारत देश की भयंकर समस्या है। वह कौन-सी समस्या है? उसके विषय में हम कितने चिंतित हैं ? बताइए।
उत्तर
‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लेखक धर्मवीर भारती ने भ्रष्टाचार की भयंकर समस्या का चित्रण किया है जो आज संपूर्ण भारत की भयंकर समस्या है। यह समस्या भारतवर्ष को दीमक की तरह खा रही है। हम सब इस भयंकर समस्या के बारे में केवल बातें करते हैं लेकिन उसकी जाँच कभी नहीं करते कि उसका मूल कारण क्या है? कहीं किसी दायरे में हम ही तो उसी के अंग तो नहीं बन रहे। ऐसा कोई चिंतन नहीं करता और न ही कोई पहल करना चाहता है। केवल अनदेखा कर छोड़ देते हैं।

प्रश्न 5.
सरकार द्वारा करोड़ों-अरबों की योजनाएं बनाई जाती हैं लेकिन उनका लाभांश जनसामान्य तक क्यों नहीं पहुंच पाता?
उत्तर
सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों-अरबों की योजनाएँ बनाती है लेकिन उनका लाभांश जनसामान्य तक इसलिए नहीं पहुंच पाता क्योंकि वहउन तक आते-आते भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। ऊँची गद्दी पर बैठे राजनेता, अफ़सर उसे केवल फर्जी कागजी कारवाई करके हजम कर जाते हैं।

प्रश्न 6.
‘काले मेघा पानी दे’ में चित्रित लोक-आस्था पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
भारतीय संस्कृति में लोक-आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने अनावृष्टि से बचने के लिए लोक-आस्था का चित्रण किया है जिसमें गाँव के बच्चे वर्षा न होने पर तथा चारों ओर सूखा पड़ जाने पर एक इंदर सेना बनाकर गाँव के प्रत्येक घर में पानी माँगते फिरते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उनकी इस प्रक्रिया से इंदर महाराज खुश होकर वर्षा ले आएँ। गाँव के लोग पानी की कमी होने पर भी उस इंदर सेना पर पानी डालते हैं। वे लोग इस पानी को देवताओं को अर्घ्य चढ़ाना समझते हैं। त्याग करना सोचते हैं कि अभाव में त्याग करके फल शीघ्र मिलता है। यही धारणा मन में बसाकर वे ऐसा करते हैं।

प्रश्न 7.
जेठ की गर्मी में गाँव और शहरों की दशा का वर्णन करें।
उत्तर
जेठ मास में गांव और शहर के लोग गर्मी के कारण त्राहिमाम करने लगते थे। कुएं सूखने लगते थे। नलों में बहुत कम और गर्म पानी आता था। शहरों की तुलना में गाँवों की स्थिति बहुत खराब थी। कृषि योग्य भूमि सूखकर पत्थर हो जाती थी। जमीन फटने लगती थी। आदमी चलते-चलते लू खाकर गिर पड़ते थे। पशु-पक्षी प्यासे मरने लगे थे।

प्रश्न 8.
गाँव में क्या अंधविश्वास था?
उत्तर
जेठ मास में जब चारों तरफ पानी का नामोनिशान भी नहीं दिखाई पड़ता था तब गाँव के लोग मेहनत से इकट्ठा किया हुआ पानी इंदर सेना पर बाल्टी भर-भर कर फेंकते थे। उनका मानना था कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होकर वर्षा करवाएँगे।

प्रश्न 9.
इस तरह के अंधविश्वासों से क्या-क्या हानियाँ हो सकती हैं?
उत्तर
इस तरह के अंधविश्वासों से निम्नांकिन हानियाँ हो सकती हैं
(1) पानी की बर्बादी होती है।
(2) मानसिक संकीर्णता बढ़ती है।
(3) अकर्मण्यता बढ़ सकती है।

प्रश्न 10.
जीजी ने लेखक को इंदर सेना पर पानी फेंकने को सही ठहराने के रूप में क्या तर्क दिया?
उत्तर
जीजी ने लेखक को इंदर सेना पर पानी फेंकने के पीछे यह तर्क दिया कि यह पानी का अर्घ्य चढ़ाया जाता है जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देना पड़ता है, इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊंचा स्थान दिया है।

प्रश्न 11.
त्याग की परिभाषा लिखिए।
उत्तर
त्याग वह होता है जो चीज कम मात्रा होने पर भी और उसकी जरूरत होने पर, परंतु अपनी जरूरत पीछे रखकर हम उसे दूसरों के कल्याण के लिए दे दें। यही सच्चा दान होता है और इसी का फल मिलता है।

प्रश्न 12.
‘यथा राजा तथा प्रजा’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इसका तात्पर्य यह है कि जैसा राजा हो वैसी ही प्रजा होती है। राजा का स्वभाव, रहन-सहन, कर्म, हाव-भाव, चाल-चलन जैसा होता है उसके राज्य की प्रजा का स्वभाव, रहन-सहन, कर्म, हाव-भाव, चाल-चलन उसी के अनुरूप बदल जाता है। अत: यह सच है कि यथा राजा तथा प्रजा।

प्रश्न 13.
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में पानी की बर्बादी होने और बर्बादी न होने संबंधी दोनों तर्कों पर टिप्पणी कीजिए। (C.B.S.E. Outside Delhi 2017 Set-III)
उत्तर
‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में पानी की बर्बादी होने को लेखक ने सही ठहराया है। यही सही है कि इस प्रकार की लोकमान्यताओं से देश की अमूल्य संपत्ति पानी की बर्बादी हो रही है। जो उचित नहीं है। यह देश की अमूल्य धरोहर है जिसे बचाकर रखना चाहिए। दूसरा पानी की बर्बादी न होने को जीजी सही मानती हैं जो उचित नहीं है क्योंकि ऐसी आस्था से केवल भ्रम, अंधविश्वास ही पनप सकता है। धर्म के प्रति आस्था ठीक है किंतु उस आस्था के नाम पर अमूल्य वस्तु का बर्बाद करना औचित्यपूर्ण नहीं।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. उन लोगों के दो नाम थे-इंदर-सेना या मेंढक-मंडली। बिल्कुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्न स्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेंढक-मंडली। उनकी अगवानी गलियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ एक जाँघिया या कभी-कभी सिर्फ लंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छजे, बोरजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कदती समवेत पुकार लगाती थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. गाँव से पानी माँगने वाले बच्चों के कितने नाम थे ? नाम बताएँ।
2. मेंढक-मंडली से क्या अभिप्राय है?
3. मेंढक-मंडली की अगवानी कहाँ से होती थी?
4. मेंढक-मंडली में कैसे-कैसे बच्चे होते थे?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर
1. गाँव से पानी माँगने वाले बच्चों के दो नाम थे-इंदर-सेना और मेंढक-मंडली।
2. मेंढकों की तरह उछल-कूद, शोर-शराबा और कीचड़ करने वाले बच्चों की मंडली को नापसंद करने वाले मेंढक-मंडली कहते थे।
3. मेंढक-मंडली की अगवानी गलियों से होती थी।
4. मेंढक-मंडली में दस-बारह वर्ष से लेकर सोलह-अठारह बरस तक के बच्चे होते थे। उनका रंग साँवला, नंगा बदन, जाँघिया या लंगोटी पहनावा होता था।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम धर्मवीर भारती तथा पाठ का नाम ‘काले मेघा पानी दे’ है।

2. वे सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीत कर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत ख़राब होती थी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम बताओ।
2. इस गद्यांश में लेखक किन दिनों की बात करता है?
3. जेठ तथा आषाढ़ के मास में वायुमंडल की दशा कैसी होती थी?
4. जेठ मास की भयंकर गर्मी के कारण गाँवों की कैसी दुर्दशा होती थी?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक का नाम धर्मवीर भारती है तथा पाठ का नाम ‘काले मेघा पानी दे’ है।
2. इस गद्यांश में लेखक जेठ मास के अंतिम तथा आषाढ़ के शुरू के दिनों की बात करता है।
3. जेठ तथा आषाढ़ मास में क्षितिज पर कहीं भी बादलों की रेखा भी दिखाई नहीं देती थी। भयंकर गर्मी के कारण कुएँ सूखने लगते थे। नलों में पानी बहुत कम आता था।
4. जेठ मास की भयंकर गर्मी के कारण गाँवों की हालत बहुत खराब हो जाती थी। जुताई योग्य भूमि सूखकर नष्ट हो जाती थी। पपड़ी जमने से जमीन फटने लगती थी। लू के कारण आदमी रास्तों में चलते-चलते गिर पड़ते थे। गाय, भैंस, बकरी आदि पशु प्यास के कारण मरने लगते थे।

3. देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले-भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं, नहीं यह सब पाखंड है, अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. देश की किस तरह के अंधविश्वासों से क्षति होती है?
2. ‘कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना?’ यह कहकर लेखक किन पर व्यंग्य करता है?
3. इंद्र सेना पर लेखक क्या व्यंग्य करता है?
4. हम भारतवासी अंग्रेजों से क्यों पिछड़ गए?
5. इस गदयांश के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर
1. वर्षा न होने से पानी की कमी होने पर भी गाँव के बच्चों द्वारा मंडली बनाकर घर-घर से पानी इकट्ठा करके गलियों में बर्बाद करने जैसे अंधविश्वासों से देश को क्षति होती है।
2. ‘कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना’ यह कहकर लेखक इंद्र सेना और मेंढक-मंडली पर व्यंग्य करता है।
3. इंद्र-सेना पर लेखक यह व्यंग्य करता है कि अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं लेते? वे मुहल्ले का पानी नष्ट करवाते हुए क्यों घूमते हैं।
4. भारतवर्ष में अनेक अंधविश्वास मौजूद हैं, जैसे-वर्षा न होने पर पानी की कमी होने पर भी घर-घर के पानी को नष्ट करना। ऐसे अंधविश्वासों के कारण ही हम भारतवासी अंग्रेजों से पिछड़ गए।
5. इस गद्यांश के लेखक का नाम धर्मवीर भारती है।

4. “यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे ?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं।
“तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं, जो चीज़ मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे ? इसलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न

1. ‘यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे, यह बात कौन किसको कहता है?
2. लेखक इंद्र-सेना पानी देना क्या समझता है?
3. जीजी ने लेखक द्वारा पानी की बर्बादी करने पर क्या तर्क दिया?
4. ऋषि-मुनियों ने सबसे ऊँचा स्थान किसको दिया है?
उत्तर
1. यह बात जीजी लेखक को कहती है।
2. लेखक इंद्र-सेना को पानी देना, पानी की बर्बादी समझता है।
3. जीजी ने लेखक द्वारा पानी की बर्बादी कहने पर यह तर्क दिया कि तू इसे पानी की बर्बादी समझता है पर यह बर्बादी नहीं है। हम यह पानी का अर्घ्य चढ़ाते हैं क्योंकि जो चीज़ मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो उसे कैसे पाएगा?
4. ऋषि-मुनियों ने सबसे ऊँचा स्थान दान को दिया है।

5. कुछ देर चुप रही जीजी, फिर मठरी मेरे मुंह में डालती हुई बोली, “देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों-करोड़ों रुपए हैं और उसमें से तू दो-चार रुपये किसी को दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। त्याग तो वह होता है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम __है, जिसकी तुझको भी जरूरत है तो अपनी ज़रूरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे तो त्याग तो वह होता है, दान तो वह होता है, उसी का फल मिलता है।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. दान के लिए किस भावना का होना आवश्यक है?
2. जीजी ने लेखक को त्याग का क्या अर्थ समझाया?
3. दान क्या होता है?
4. किस दान का फल मिलता है?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम बताएँ।
उत्तर
1. दान के लिए त्याग की भावना का होना आवश्यक है।
2. जीजी ने लेखक को त्याग का अर्थ समझाया कि लाखों-करोड़ों रुपये में से दो-चार रुपये देना त्याग नहीं होता, बल्कि त्याग तो वह होता – है कि जो चीज़ तेरे पास भी कम है और जिसकी तुझे भी ज़रूरत है तो अपनी जरूरत छोड़कर दूसरे के कल्याण के लिए उसे दे देना ही त्याग होता है।
3. अपनी कम वस्तु में से अपनी जरूरत को अनदेखा करते हुए किसी को दे देना दान होता है।
4. जो दान त्याग की भावना से किया जाए यानी अपने पास चीज़ कम होते हुए भी अपनी ज़रूरत को अनदेखा करते हुए दूसरों के कल्याण के लिए जो दान दिया जाता है, उसी दान का फल मिलता है।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक ‘धर्मवीर भारती’ तथा पाठ का नाम ‘काले मेघा पानी दे’ है।

6. “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे में हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानीवाले बादलों की फ़सल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गांधी जी महाराज कहते हैं।” (C.B.S.E. Outside Delhi 2013 Set-I, II, III) (अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश का पाठ तथा लेखक का नाम बताएँ।
2. बुवाई किसे कहते हैं?
3. ‘देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा।’ यह बात कौन कहता है और किससे?
4. ऋषि-मुनि क्या बात कह गए हैं? 5. जीजी लेखक को बुवाई के संबंध में क्या तर्क देती है?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक धर्मवीर भारती तथा पाठ का नाम है ‘काले मेघा पानी दे’।
2. किसान अपनी फसल उगाने के लिए अपने खेत में अपने पास से कुछ अच्छा बौज लेकर खेत में डालता है ताकि उससे अच्छी फसल पैदा हो सके। किसान द्वारा खेत में बीज डालने को ही बुवाई कहते हैं।
3. यह बात जीजी, लेखक को कहती है।
4. ऋषि-मुनि यह बात कह गए हैं कि पहले हमें खुद देना चाहिए तभी देवता हमें चौगुना या अठगुना करके लौटाते हैं।
5. जीजी, लेखक को कहती है कि किसान अपने खेत में बीज बोता है केवल वही बुवाई नहीं है बल्कि जो सूखे में हम अपने घर का पानी इंद्र-सेना पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। हम यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज रूप में पानी देकर काली मेघा से फसल के रूप में पानी माँगते हैं। सब ऋषि भी ऐसा ही कह गए हैं कि पहले खुद दो फिर तुम्हें मिलेगा।

7. अंग्रेज़ चले गए पर क्या हम आज भी सच्चे अर्थों में आजाद हो पाए। क्या उनकी रहन-सहन, उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से आजाद होकर अपने देश के संस्कारों को समझ पाए? हम आज देश के लिए करते क्या हैं ? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. हम आज भी सच्चे अर्थों में आजाद क्यों नहीं हो पाए?
2. हम सच्चे अर्थों में आजाद कब होंगे?
3. आज हमारा क्या लक्ष्य है?
4. हमें देश के लिए क्या करना चाहिए?
5. हमारी माँगें बड़ी-बड़ी क्यों हैं?
उत्तर
1. हम आज भी सच्चे अर्थों में आजाद इसलिए नहीं हो पाए, क्योंकि हम आज भी अंग्रेजों के रहन-सहन, उनकी भाषा, संस्कार तथा संस्कृति को अपना रहे हैं।
2. हम सच्चे अर्थों में आजाद तब होंगे जब हम पूर्ण रूप से अपने देश के रहन-सहन, भाषा, संस्कार तथा संस्कृति को अपना लेंगे।
3. आज हमारा लक्ष्य स्वार्थ की पूर्ति है।
4. हमें अपने देश की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देना चाहिए।
5. हमारी मांगे इसलिए बड़ी-बड़ी हैं क्योंकि हमारे अंदर त्याग की भावना नहीं है। हम केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। अपने
देश के लिए कुछ भी करना नहीं चाहते।

8. हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नामो-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। चटखारे लेकर हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? यही कारण है कि रोज हम पढ़ते हैं कि यह हजार करोड़ की योजना बनी, वह चार हजार करोड़ की योजना बनी, पर यह अरबों-खरबों की राशि कहाँ गुम हो जाती है ? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं ? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति? (Delhi C.B.S.E. 2016)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. हम चटखारे लेकर क्या बात करते हैं?
2. लेखक क्या जाँचने का संकेत करता है?
3. भ्रष्टाचार को कैसे रोका जा सकता है?
4. देश में करोड़ों-अरबों की राशि तथा योजनाएँ कहाँ गुम हो जाती हैं?
5. देश में प्रतिवर्ष करोड़ों-अरबों की योजनाएँ सामान्य जनता तक क्यों नहीं पहुँच पातीं?
6. लेखक को क्यों लगता है कि आज हम देश के लिए कुछ नहीं करते?
7. भ्रष्टाचार को लेकर व्यवहार में क्या विसंगति है?
8. सुविधाओं की बरसात से भी गरीब को कोई लाभ नहीं मिलता, इस बात को लेखक ने कैसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
9. ‘आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?’ इस प्रश्न का आप क्या उत्तर देंगे? तर्क सहित समझाइए।
उत्तर
1. हम चटखारे लेकर इसके या उसके अर्थात दूसरों के भ्रष्टाचार की बात करते हैं।
2. लेखक यह जानने का संकेत करता है कि हम दूसरों के तो भ्रष्टाचार की बातें करते हैं लेकिन कभी अपने आपको जाँचने की कोशिश नहीं करते कि कहीं हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे।
3. देश का प्रत्येक मनुष्य यदि अपने कर्तव्यपालन पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ करे और यह दृढ़ निश्चय कर ले कि न हम कोई रिश्वत लेंगे और नहीं देंगे तो भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है।
4. देश में करोड़ों, अरबों की राशि तथा योजनाएँ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं।
5. देश में प्रतिवर्ष करोड़ों-अरबों की योजनाएँ सामान्य जनता तक इसलिए नहीं पहुंच पार्ती क्योंकि ये योजनाएँ जनता तक पहुंचने से पहले ही भ्रष्ट अधिकारियों के भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती हैं। भ्रष्टाचारी सारे पैसे पहले ही हजम कर जाते हैं और सामान्य जनता ऐसी ही रह जाती है।
6. लेखक को ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि हम सब देशवासी अपनी मांगे पूर्ण करना चाहते हैं परंतु त्याग कोई नहीं करते। अपना स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य बनकर रह गया है।
7. हम भ्रष्टाचार की बड़ी-बड़ी बातें तो अवश्य करते हैं किंतु हम स्वयं भ्रष्टाचार का अंग बने रहते हैं।
8. लेखक के अनुसार सरकार जनसामान्य के लिए सुख-सुविधाएँ जुटाती हैं किंतु भ्रष्ट अधिकारी सब कुछ हड़प लेते हैं।
9. जब समाज से, देश से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। हम सब अपने देश से प्रेम करने लगेंगे। अपना स्वार्थ छोड़ देंगे। तब स्थिति बदल जाएगी।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

बाज़ार दर्शन Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 12

प्रश्न 1.
लेखक ने पत्नी की किस महिमा का वर्णन किया है?
उत्तर
पली जब अपने पति के साथ बाजार किसी सामान्य-सी वस्तु को खरीदने के लिए गई थी। परंतु पत्नी ने उन्हें बहुत सारा सामान खरीदने पर मजबूर कर दिया। यही पत्नी की महिमा थी।

प्रश्न 2.
संयमी लोग कौन होते हैं?
उत्तर
संयमी लोग वे होते हैं जो फ़िजूल सामान को बेकार समझते हैं। वे पैसा व्यर्थ में खर्च नहीं करते हैं। वे बुद्धिमान होते हैं। वे अपनी बुद्धि और संयम के साथ पैसे को जोड़ते रहते हैं। यदि तुम खरीदना नहीं चाहते तो देखने भर में कोई आपत्ति नहीं है।

प्रश्न 3.
बाज़ार किन्हें आमंत्रित करता है और कैसे?
उत्तर
बाजार ग्राहकों को आमंत्रित करता है। वह उन्हें आमंत्रित कर कहता है कि आओ, मुझे लूटो और लूटो। सब कुछ भूल जाओ केवल मुझे देखो। मेरा रूप सौंदर्य केवल तुम्हारे लिए है। यदि तुम खरीदना नहीं चाहते तो देखने-भर में कोई आपत्ति नहीं है।

प्रश्न 4.
बाज़ार के जादू के प्रभाव से बचने का क्या उपाय है?
उत्तर
बाजार के जादू के प्रभाव से बचने का उपाय है कि हमें खाली मन होने पर बाज़ार नहीं जाना चाहिए। यदि मन में लक्ष्य हो तो बाजार का प्रभाव व्यर्थ हो जाएगा। गा

प्रश्न 5.
इस संसार में पूर्ण और अपूर्ण कौन है?
उत्तर
इस संसार में केवल परमात्मा ही पूर्ण है। वह सनातन भाव से पूर्ण है। इसके अलावा सब कुछ अपूर्ण है।

प्रश्न 6.
पैसे की व्यंग्य-शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
पैसे की व्यंग्य शक्ति बहुत कठोर है क्योंकि इसके नशे में चूर होकर मनुष्य बहुत कठोर स्वभाववाले बन जाते हैं। उन्हें अपने सामने सब कुछ तुच्छ प्रतीत होता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. लोग संयमी भी होते हैं। वे फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. पैसे के जुड़ा होने पर किन लोगों का मन गर्व से भरा होता है?
3. कौन लोग फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं।
4. संयमी लोग पैसा कैसे जोड़ते हैं?
5. कौन लोग पैसे की पावर को समझते हैं?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का नाम-बाजार दर्शन है। इस गदयांश के लेखक का नाम-जैनेंद्र कुमार है।
2. पैसे के जुड़ा होने पर संयमी और बुद्धिमान लोगों का मन गर्व से भरा होता है।
3. संयमी लोग फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं।
4. संयमी लोग बुद्धि और संयमपूर्वक पैसा जोड़ते हैं।
5. संयमी और बुद्धिमान लोग पैसे की पावर को समझते हैं।

2. मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखीं। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफ़ी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह! (C.B.S.E. Delhi 2008)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बाजार किसको और किसलिए आमंत्रित करता है?
2. बाजार का रूप किसके लिए है?
3. बाज़ार के आमंत्रण के क्या गुण हैं? क्यों?
4. ऊँचे बाजार का आमंत्रण कैसा होता है?
5. चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को क्या लगता है?
उत्तर
1. बाजार ग्राहकों को ज्यादा-से-ज्यादा लूटने के लिए आमंत्रित करता है।
2. बाजार का रूप ग्राहकों के लिए है।
3. बाजार के आमंत्रण में यह गुण है कि उसमें आग्रह नहीं है क्योंकि आग्रह तिरस्कार जगाता है।
4. ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाहत जगती है।
5. चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगता है कि उसके पास जितना है वह सामान काफ़ी नहीं है इसलिए उसे और चाहिए। वह अधिक की कामना करने लगता है।

3. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी माननेवाला है। (C.B.S.E. Delhi 2017, Set-I, II, III)

मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान ज़रूरी और आराम को बढ़ानेवाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी चीज़ों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को ज़रूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान की गिल्टी को और खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ होगी? (AI. C.B.S.E. 2009, C.B.S.E., 2014 Set-A,B,C, C.B.S.E. 2018)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
2. बाजार में कैसा जादू है?
3. बाजार का जादू कैसे प्रभावित करता है?
4. बाज़ार के जादू का असर कब होता है?
5. बाज़ार के जादू का प्रभाव होने पर मन कब बात नहीं मानता?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘बाजार दर्शन’ है। इसके लेखक का नाम जैनेंद्र कुमार है।
2. बाजार में एक अद्भुत जादू है, जो चुंबक की तरह मनुष्य को अचानक ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। इस जादू की भी मर्यादा
3. बाजार का जादू आँख के रास्ते काम करता है। जैसे चुंबक का जादू लोहे पर चलता है। चुंबक जिस तरह अपने जादू से लोहे को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है ठीक वैसे ही बाजार का जादू भी ग्राहकों को अपनी तरफ़ खींच लेता है। वह अपने रूप से सबको मोहित
कर लेता है। चुंबक की तरह इस जादू की भी मर्यादा है।
4. जब जेब भरी हुई हो और मन खाली हो तब बाजार के जादू का असर अधिक होता है। जेब खाली हो लेकिन मन भरा न हो तब भी जादू का असर हो जाता है। मन खाली होने पर बाजार की चीजें अपने जादू से उसको मोहित कर ही लेती हैं। और
5. बाजार के जादू का प्रभाव होने पर मन तब हमारी बात नहीं मानता जब मन के खाली होने पर जेब भरी हुई हो। ऐसी अवस्था में मन किसी की बात को नहीं मानता।

4. यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत जरूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपः’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम लिखिए।
2. लेखक के अनुसार किस अंतर को समझना जरूरी है?
3. लेखक के मतानुसार मन बंद क्यों नहीं रहना चाहिए?
4. शून्य होने का अधिकार किसका है? क्यों?
5. क्या मनुष्य सब इच्छाओं का विरोध कर सकता है?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक का नाम जैनेंद्र कुमार है। इस गद्यांश के पाठ का नाम ‘बाजार दर्शन’ है।
2. लेखक के अनुसार इस अंतर को समझना जरूरी है कि मन के खाली नहीं रहने का अर्थ यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। उसमें कुछ भी नहीं रहे।
3. लेखक के मतानुसार मन बंद नहीं रहना चाहिए क्योंकि जो मन बंद हो जाता है वह शून्य हो जाता है। जबकि शून्य होने का अधिकार केवल प्रभु का है।
4. शून्य होने का अधिकार केवल परमात्मा का है क्योंकि वह सनातन भाव से संपूर्ण है। वह सत्य है। शेष सब कुछ अपूर्ण है, नश्वर है।
5. नहीं, मनुष्य चाहकर भी सब इच्छाओं का विरोध नहीं कर सकता। यहाँ तक कि इच्छा ‘निरोधस्तपः” के द्वारा भी सब इच्छाओं का विरोध नहीं हो सकता।

5. हममें पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हम महाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हममें गहरा करता है। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। अतः उपाय कोई वही हो सकता है जो बलात् मन को रोकने को न कहे, जो मन को भी इसलिए सुने क्योंकि वह अप्रयोजनीय रूप में हमें नहीं प्राप्त हुआ है। हाँ, मनमानेपन की छूट मन को न हो, क्योंकि वह अखिल का अंग है, खुद कुल नहीं है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. क्या पूर्णता होने पर मनुष्य की सत्ता होती? यदि नहीं तो क्यों?
2. मनमानेपन की छूट मन को क्यों नहीं होती?
3. मनुष्य में पूर्णता होती तो क्या होता?
4. सच्चा ज्ञान हमें क्या बोध कराता है?
5. सच्चा कर्म किस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है?
उत्तर
1. नहीं, पूर्णता होने पर मनुष्य की सत्ता नहीं होती क्योंकि पूर्णता होने पर हम परमात्मा से अभिन्न होकर महाशून्य ही होते। यह सत्य है कि परमात्मा पूर्ण है इसी से उसकी सत्ता नहीं है और हम अपूर्ण हैं इसीलिए हमारी सत्ता है।।
2. मनमानेपन की छूट मन को इसलिए नहीं होती क्योंकि मन अखिल का एक अंग है। वह स्वयं कुछ नहीं है। वह पूर्ण सत्ता नहीं है बल्कि उसका एक छोटा-सा अंग मात्र है।
3. मनुष्य में पूर्णता होती तो वह परमात्मा से अभिन्न महाशून्य ही होता।
4. सच्चा ज्ञान हमें इस बात का बोध कराता है कि यदि हममें पूर्णता होती तो हम परमात्मा से अभिन्न महाशून्य ही होते। हम अपूर्ण हैं इसीलिए हम हैं।
5. सच्चा कर्म इस अपूर्णता के साथ होता है कि हम अपूर्ण हैं इसीलिए हम हैं। यदि हममें पूर्णता होती तो हम परमात्मा से भिन्न महाशून्य
होते।

6. पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

1. गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम बताएँ।
2. पैसे की व्यंग्य-शक्ति कैसी है?
3. लेखक को बुढ़ापे (जरा) में कौन-सा व्यंग्य अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकता है?
4. पैदल चलते हुए लेखक के पास से क्या गुजरा?
प्रश्न
1. गद्यांश के लेखक जैनेंद्र कुमार तथा पाठ का नाम-बाजार का दर्शन है।
2. पैसे की व्यंग्य-शक्ति दारुण है।
3. लेखक को बुढ़ापे में मोटर न होने का व्यंग्य अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकता है।
4. पैदल चलते हुए लेखक के पास से एक मोटर गुजरी।

7. यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। (C.B.S.E. 2010, Set-III, A.I.C.B.S.E. Set-I, 2012 Set-1)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बाजार को सार्थकता कौन दे सकता है?
2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का गर्व किन लोगों को होता है?
3. ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में मनुष्य बाजार को क्या-क्या देते हैं?
4. कौन मनुष्य बाजार से लाभ नहीं कमा सकते?
5. कपट बढ़ाने से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर
1. बाजार को सार्थकता वही व्यक्ति दे सकता है जो यह जानता है कि वह क्या चाहता है।
2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का गर्व उन लोगों को होता है जो बाजार में आकर यह नहीं जानते कि उन्हें क्या चाहिए।
3. ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में मनुष्य बाजार को एक विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति देते हैं।
4. जो मनुष्य यह नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं। वे मनुष्य बाजार से लाभ नहीं कमा सकते।
5. बाजार का कपट बढ़ाने का अर्थ यह है कि परस्पर सद्भाव की कमी हो जाती है। लोग आपस में भाई-भाई सुहृद और पड़ोसी नहीं। रहते। उनमें केवल ग्राहक और बेचक का संबंध रह जाता है।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 11 भक्तिन 

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भक्तिन Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 11

प्रश्न 1.
भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (A.L.C.B.S.E. 2011, Set-II, 2011, Set-I, 2017 Set-I)
अथवा
भक्तिन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
भक्तिन महादेवी वर्मा द्वारा लिखित एक प्रमुख संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका ने भक्तिन सेविका के अतीत और वर्तमान का चित्रण करते हुए उसके जीवन-संघर्ष का वर्णन किया है। प्रस्तुत पाठ में भक्तिन एक प्रमुख पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तित्व–भक्तिन एक अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा है। शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं। आँखें छोटी-छोटी-सी हैं। वह झूसी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती बेटी है। उसकी माँ का नाम गोपालिका था। लेकिन उसके मरने के बाद इसकी विमाता ने इसका पालन-पोषण किया।

(ii) महान सेविका- भक्तिन एक महान सेविका है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूर्ण श्रद्धा, मनोयोग, कर्मठता और कर्तव्य भावना से करती है। उसकी सेवा-भावना को देखकर ही महादेवी वर्मा जी ने उसे हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली बताया है। जैसे-सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है।

इसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था लेकिन इसकी सेवा-भावना व भक्तिभाव को देखकर ही लेखिका ने इसे भक्तिन नाम दिया था। सेवा-भावना के परिणामस्वरूप लेखिका इसके साथ सेवक-स्वामी का संबंध नहीं रखती बल्कि इसे अपने घर का सदस्य मानती हैं। भक्तिन लेखिका के कहीं बाहर जाने पर उनके कपड़े आदि धोने का, जाते समय सामान आदि बाँधकर देने का पूरा ध्यान रखती है।

इसी सेवा-भावना से अभिभूत हो लेखिका कह उठती है, “मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुंचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी?”

(iii) बुद्धिमती- भक्तिन निरक्षर होते हुए भी एक समझदार महिला है। वह प्रत्येक कार्य को बड़ी समझ-बूझ और होशियारी से पूर्ण करती है। लेखिका के घर में उनके प्रत्येक परिचित और साहित्यकार को वह अच्छी तरह पहचानती है। वह उसी के साथ आदर व सम्मान से बात करती है जो उसकी स्वामिनी लेखिका का आदर और सम्मान करता है। अपने ससुराल में भी अपने पति की मृत्यु के बाद वह अपनी पूँजी से एक कौड़ी भी अपनी सास और जेठानियों को नहीं हड़पने देती है।

(iv) परिश्रमी-भक्तिन एक कर्मठ महिला है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूरे परिश्रम से करती है। अपने ससुराल में भी वह घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का सारा कार्य पूरी मेहनत से किया करती थी। लेखिका के घर में आने के बाद भी वह लेखिका के सारे कामकाज को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करती है। वह लेखिका के प्रत्येक कार्य में उनकी सहायता करती। इधर-उधर बिखरी किताबों, अधूरे चित्रों आदि सामान को वह सँजोकर रख देती है।

(v) साहसी-भक्तिन एक साहसी महिला थी। बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उसकी विमाता ने उसका पालन-पोषण किया लेकिन उसपर बहुत अत्याचार किए, फिर भी भक्तिन ने अपना साहस नहीं छोड़ा। छोटी-सी उम्र में ही उसकी शादी कर दी गई। ससुराल में भी उसे उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। दो कन्याओं को जन्म देने पर उसकी सास और जेठानियों ने उसका खूब अपमान किया।

उसको बात-बात पर ताने कसे, उससे घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का खूब काम करवाया लेकिन भक्तिन ने कभी अपना साहस नहीं छोड़ा। उसने प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना किया। यहाँ तक कि पिता और अपने पति की मृत्यु के बाद भी उसने धैर्य नहीं खोया और निरंतर संघर्ष करती हुई अपने साहस का परिचय देती रही। भक्तिन का संपूर्ण जीवन संघर्षपूर्ण रहा है।

प्रश्न 2.
भक्तिन के जीवन में आई समस्याओं का चित्रण कीजिए। (C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I, II, III)
उत्तर
‘भक्तिन’ अधेड़ उम्र की एक महिला है जो आजीवन अनेक समस्याओं से संघर्ष करती रही। जन्म से लेकर उसका संपूर्ण जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण ढंग से व्यतीत हुआ। वह झूसी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती पुत्री है। उसकी माता का नाम गोपालिका था जो उसे जन्म देकर मृत्यु को प्राप्त हो गई। उसकी विमाता ने उसका पालन-पोषण किया लेकिन विमाता भक्तिन से अत्यंत ईर्ष्या और घृणा किया करती थी अतः उसकी कम उम्र में ही शादी करवा दी थी।

ससुराल जाने के उपरांत भक्तिन के पिता का देहांत हो गया लेकिन इसकी विमाता ने इसको पिता की मृत्यु का दुखद समाचार इसलिए नहीं भेजा क्योंकि वह अपने पिता से अगाध प्रेम करती थी तथा विमाता को संपत्ति के चले जाने का भी डर था। पिता की मृत्यु के काफी दिनों बाद उसके ससुराल समाचार भिजवाया लेकिन वहाँ भी इसकी सास ने इसे नहीं बताया क्योंकि सास अपने घर में किसी का रोना अशुभ मानती थी। तत्पश्चात भक्तिन ने दो कन्याओं को जन्म दिया लेकिन जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी भक्तिन को अनेक समस्याओं और दुखों का ही सामना करना पड़ा।

इसकी सास और जेठानियों ने इसे अपनी उपेक्षा का शिकार बनाया। वे इससे घृणा करती थीं तथा अपने घर और खेत-खलिहान का सारा काम करवाती थी। जीवन के अगले दौर में इसका पति भी मृत्यु को प्राप्त हो गया। जैसे-तैसे उसने अपने आपको सँभाला। फिर इसने अपनी बेटियों की शादी की, लेकिन भाग्य ने यहाँ भी इसके जीवन को समस्याओं के बीच ला खड़ा किया, इसकी बड़ी लड़की. विधवा हो गई। इस प्रकार भक्तिन के जन्म से लेकर पूरे जीवन में समस्याएँ ही समस्याएँ दिखाई देती हैं। उसका संपूर्ण जीवन समस्याओं से ग्रस्त है लेकिन वह इनके सामने घुटने नहीं टेकती बल्कि इनका साहस के साथ मुकाबला करती है।

प्रश्न 3.
भक्तिन (लछमिन) का विवाह मात्र पाँच वर्ष की आयु में हो गया था। अभी भी देश के कुछ राज्यों में लड़कियों का विवाह बहुत छोटी उम्र में कर देने का रिवाज है। क्या ऐसा करना समाज के लिए उचित है? अपना तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर
भक्तिन का विवाह पाँच वर्ष और गौना नौ वर्ष की उम्र में हो गया था। कच्ची आयु में ही उस पर घर-गृहस्थी का बोझा लाद दिया गया था, जो समाज के लिए कदापि उचित नहीं था। छोटी आयु खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और दुनिया को देखने-समझने की होती है। यही समय हर बच्चे को भावी जीवन के लिए तैयार करता है।

यदि इसी उम्र में उन्हें विवाह के बंधन में फँसा दिया जाए तो वे मृत्युपर्यंत अनेक दृष्टिकोणों से अधूरे ही बने रहते हैं। छोटी आयु में जिन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है वे अधिकतर अशिक्षित या अल्पशिक्षित ही रह जाती हैं जिस कारण वे परिवार, समाज और देश के लिए कार्य नहीं कर पातीं जो शिक्षा प्राप्ति के बाद कर सकती थीं। जीव विज्ञान की दृष्टि से भी छोटी आयु में विवाह-बंधन उचित नहीं होता।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह हानिकारक होता है। परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सँभालना अबोध अवस्था में नहीं आ पाता। छोटी आयु में बाल-बच्चों की ज़िम्मेदारी व्यक्तित्व को उभरने नहीं देती। कई बार वे मानसिक कुंठाओं और हीनभावना का शिकार बन जाती हैं। भक्तिन की सास ने उसे उसके पिता की मृत्यु की सूचना इसलिए नहीं दी थी कि वह अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं थी। पिता के मृतक होने की खबर सुनकर वह रोना-पीटना करेगी जिससे अपशकुन होगा। निश्चित रूप से छोटी आयु में विवाह कर देना अच्छा नहीं होता। बाल-विवाह प्रथा का पालन किसी भी अवस्था में नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
भक्तिन अनपढ़ थी और वह किसी भी स्थिति में महादेवी वर्मा के लेखन-कार्य में सहायक नहीं बन सकती थी पर फिर भी वह कुछ ऐसे कार्य करती थी जो लेखिका के लिए सहायक सिद्ध होते थे। वह ऐसा किस कारण कर पाती थी? क्या अन्य लोग भी भक्तिन की तरह दूसरों के सहायक बन सकते हैं? कैसे?
उत्तर
भक्तिन अनपढ़ थी। वह महादेवी की चित्रकला, लेखन या शिक्षण कार्य में कोई सहायता नहीं दे सकती थी पर फिर भी वह अपने सहयोगी स्वभाव और निष्ठा के कारण उत्तर-पुस्तकों को बांधकर, अधूरे चित्रों को कोने में रखकर, रंग की प्याली धोकर, चटाई को साफ़ करके तथा उनकी नई प्रकाशित पुस्तकों के प्रति अपनत्व का भाव प्रदर्शित कर लेखिका के हृदय पर अपने प्रभाव को डालने में सक्षम होती थी।

लेखिका को अच्छा लगता था कि वह उसके बारे में सोचती थी। रात को जब लेखिका अपना लेखन कार्य करती थी तब भी वह शांत भाव से उसके पास दरी के आसन पर बैठी रहती थी। अन्य लोग भी भक्तिन की भाँति दूसरों के सहायक बन सकते हैं लेकिन ऐसा करने के लिए अपने जीवन के अनेक सुखों को तिलांजलि देनी पड़ सकती है। अपनी भूख, प्यास, नौंद और अनेक इच्छाओं को त्यागना पड़ सकता है। यह कार्य संभव है पर बहुत कठिन है। ऐसा काम करने से केवल मानसिक संतोष ही प्राप्त होता है-भौतिक सुख नहीं।

प्रश्न 5.
भक्तिन कारागार से अत्यधिक डरती थी। उसे वह यमलोक-सी प्रतीत होती थी पर फिर भी वह अपनी मालकिन के साथ वहाँ जाने हेतु सदा तत्पर रहती थी। मानव-जीवन में ऐसी स्थिति किस कारण आती है? क्या इनसानों में भक्तिन जैसा यह गुण संभव हो सकता है? क्यों?
उत्तर
भक्तिन संस्कारवश कारागार से डरती थी। उसकी दृष्टि में वह यमलोक के समान ही थी। महादेवी वर्मा और भक्तिन का समय वह था जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। अंग्रेज़ी शासन प्रतिदिन न जाने कितने देशभक्त देशवासियों को सलाखों के पीछे बंद करता था। जब कभी वह यह सुनती थी कि महादेवी वर्मा को भी कारागार में जाना पड़ेगा तो वह उसके साथ स्वयं वहाँ जाने की तैयारी कर लेती थी।

वह मानती थी कि जहाँ मालिक वहाँ नौकर। नौकर को अकेले छोड़ देना तो अन्यायपूर्ण है। उसके मन में अपनी स्वामिनी के प्रति ऐसी निष्ठा थी कि यदि उसे कारागार में स्वामिनी के साथ न भेजा गया तो वह बड़े लाट तक लड़ाई लड़कर भी कारागार में जाएगी। सभी इनसानों में भक्तिन जैसे गुण संभव ही नहीं हैं। अधिकांश इनसानों में स्वार्थ, धोखा, लालच, अहं और सुखों की कामना अधिक होती है लेकिन भक्तिन में इनमें से एक भी कामना नहीं थी। भक्तिन अनूठी थी। लेखिका स्वयं उसके इन गुणों के कारण उसे कभी भी नहीं खोना चाहती थी।

प्रश्न 6.
लेखिका ने भक्तिन के सेवक धर्म की तुलना किससे की है ? क्यों?
उत्तर
लेखिका ने भक्तिन के सेवक-धर्म की तुलना हनुमान जी से की है। यह इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार हनुमान अपने प्रभु राम की तन-मन और पूर्ण निष्ठा से सेवा किया करते थे। ठीक उसी प्रकार भक्तिन अपनी मालकिन लेखिका की सेवा करती है। वह उनके प्रति पूर्ण समर्पण भाव से सेवा भाव रखती है।

प्रश्न 7.
जीवन में प्राय: सभी को क्या लेकर जीना पड़ता है? क्यों?
उत्तर
जीवन में प्राय: सभी को अपने अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है क्योंकि प्राय: यह दृष्टिगोचर होता है कि सभी का जीवन उनके नाम के अनुरूप सार्थकतापूर्ण नहीं होता। न ही मनुष्य को अपने नाम के अनुरूप वह सब कुछ प्राप्त होता है जो उसे मिलना चाहिए। जैसे-कुबेर, लक्ष्मी, लक्ष्मीपति आदि।

प्रश्न 8.
भक्तिन ने अपना वास्तविक नाम कब और किसे बताया? उसने क्या प्रार्थना की?
उत्तर
उत्तर भक्तिन ने अपना वास्तविक नाम नौकरी पाने के समय अपनी मालकिन लेखिका महादेवी वर्मा को बताया था। उसने लेखिका से यह प्रार्थना की थी कि वह इस नाम का कभी उपयोग न करें।

प्रश्न 9.
भक्तिन के इतिवृत पर नोट लिखिए।
उत्तर
भक्ति का वास्तविक नाम लक्ष्मी था। वह ऐतिहासिक झूसी के एक प्रसिद्ध सूरमा की इकलौती बेटी थी। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उसका विवाह हँडियाँ ग्राम के एक संपन्न परिवार में गोपालक के बेटे से कर दिया। उसकी विमाता ने नौ वर्ष की आयु में ही उसका गौना कर दिया था क्योंकि उसकी माँ गोपालिका की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। .

प्रश्न 10.
भक्तिन का खेत-खलिहान के प्रति ज्ञान कैसे था और क्यों?
उत्तर
भक्तिन का खेत-खलिहान के प्रति ज्ञान बहुत अच्छा था क्योंकि वही अपने घर के गाय-भैंस, खेत-खलिहान आदि की देखभाल किया करती थी। जिठानियों की उपेक्षा के कारण उसे ही खेत-खलिहान का कार्यभार सौंपा गया था, जिसे करते-करते उसे अधिक ज्ञान हो गया था।

प्रश्न 11.
भक्तिन के जीवन का तीसरा अनुच्छेद कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर
भक्तिन ने अनेक प्रयास करने पर भी अपनी जिठानियों के असुरगणों की उपार्जित जगह जमीन में से नाममात्र भी न देने का निश्चय कर लिया। उसने उसी घर में रहने की घोषणा कर दी तथा भविष्य में भी संपत्ति सुरक्षित रखने हेतु अपनी छोटी लड़कियों का विवाह कर दिया। उसने बड़े दामाद को अपना घरजमाई बनाकर रख लिया। इस तरह भक्तिन के जीवन का तीसरा अनुच्छेद आरंभ हुआ।

प्रश्न 12.
भक्तिन के जीवन की कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक क्या बन गया?
उत्तर
जब भक्तिन की संपत्ति गाय-भैंस, खेत-खलिहान सब पारिवारिक वेष में फंस गए तो इससे लगान अदा करना भारी हो गया। जब अधिक समय तक जमींदार को लगान नहीं मिला तो उसने भक्तिन को बुलाकर पूरा दिन कड़ी धूप में खड़ा करके रखा। यह उसके जीवन की कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया।

प्रश्न 13.
भक्तिन के जीवन का चौथा और अंतिम परिच्छेद का प्रारंभ कब और कैसे हुआ?
उत्तर
जब भक्तिन को लगान न मिलने पर जमींदार ने उसको दिनभर धूप में खड़ा रखा तो उसने इसे अपने जीवन पर कलंक माना। तब वह अपना सब कुछ छोड़कर आजीविका पाने हेतु इलाहाबाद आ गई। यहाँ उसकी मुलाकात लेखिका महादेवी वर्मा से हुई। उन्होंने इस दीन-हीन का सहानुभूतिवश अपने यहाँ सेविका के रूप में नौकरी दे दी। यहीं से भक्तिन के जीवन का चौथा तथा अंतिम परिच्छेद प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 14.
भक्तिन की वेशभूषा में किसका सम्मिश्रण था और क्यों?
उत्तर
भक्तिन की वेशभूषा में गृहस्थ और वैराग्य का अनूठा सम्मिश्रण था। यह सम्मिश्रण इसलिए प्रतीत होता था क्योंकि भक्तिन एक तरफ़ तो घर-गृहस्थी संभालने में पूर्ण सक्षम एवं समर्थ थी तो दूसरी ओर उसका शरीर दुबला-पतला था और वह कुरता, मैली धोती पहने हुए थी।

प्रश्न 15.
भक्तिन ने लेखिका को कौन-सा सारगर्भित लेक्चर दिया?
उत्तर
भक्तिन ने जब लेखिका के घर में सेविका-धर्म का निर्वाह करते हुए पहली बार खाना बनाया तो उसे देखकर लेखिका हैरान रह गई। बस फिर भक्तिन लेखिका से कहने लगी कि रोटियाँ अच्छी सेंकने के प्रयास में कुछ ज्यादा खरी हो गई हैं किंतु अच्छी हैं।

तरकारियाँ अवश्य थीं परंतु जब दाल बनी है तो उनका क्या काम। वह शाम की तरकारी बना देगी। दूध-घी उसे अच्छा नहीं लगता अन्यथा सब ठीक हो जाता। अब न हो तो अमचूर और लाल मिर्च की चटनी पीस लें। यदि इससे भी काम न चले तो वह गाँव से लाया हुआ थोड़ा-सा गुड़ दे देगी। शहर के लोग ये क्या कलाबत्तू खाते हैं। फिर वह अनाड़िन या फूहड़ नहीं है। उसके ससुर, पितिया ससुर, अजिमा सास आदि ने उसकी पटक कुशलता के लिए असंख्या मौखिक प्रमाण-पत्र दिए हुए हैं।

प्रश्न 16.
भक्तिन के सारगर्भित लेक्चर का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
भक्तिन के सारगर्भित लेक्चर का लेखिका पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसने मीठे से विरक्ति होने के कारण तथा गुड़ और घी से अरुचि के कारण रूखी दाल से एक मोटी रोटी खा ली। इसके पश्चात यह ठाठ से यूनिवर्सिटी पहुंची और न्यायसूत्र पढ़ते-पढ़ते शहर और देहात के जीवन के इस अंतर पर विचार करती रही।

प्रश्न 17.
भक्तिन का स्वभाव कैसा बन गया था?
उत्तर
भक्तिन का स्वभाव अपरिवर्तनशील बन गया था। वह दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती थी किंतु अपने संबंध में किसी प्रकार के परिवर्तन की कल्पना नहीं कर सकती थी, इसीलिए आज भी वह देहाती थी।

प्रश्न 18.
भक्तिन निरक्षर होते हुए भी साक्षर लोगों की गुरु कैसे बन गई?
उत्तर
भक्तिन जब इंस्पेक्टर के समान क्लास में घूम-घूमकर किसी के शरीर की बनावट, किसी के हाथ की मंथरता, किसी की बुद्धि की मंदता पर टीका-टिप्पणी करने का अधिकार पा गई। इसी से वह निरक्षर होते हुए भी साक्षर लोगों की गुरु बन गई।

प्रश्न 19.
भक्तिन का अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान होना कैसे प्रमाणित होता है?
उत्तर
भक्तिन लेखिका से द्वार पर बैठकर बार-बार काम करने का आग्रह करती है। कभी वह उत्तर-पुस्तकों के बाँधती है कभी अधूरे चित्रों को कोने में रख देती है तो कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह लेखिका की सहायता करती है। इसी से भक्तिन का लेखिका का अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित होता है।

प्रश्न 20.
भक्तिन की सहजबुद्धि किस संबंध में विस्मित कर देनेवाली है?
उत्तर
भक्तिन का लेखिका के परिचितों एवं साहित्यिक बंधुओं से विशेष परिचय है किंतु उनके प्रति सम्मान की भावना लेखिका के प्रति सम्मान की भावना पर निर्भर है। उसका सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सद्भाव से निश्चित होता है। इसी संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है।

प्रश्न 21.
भक्तिन लाट-साहब तक लड़ने को तत्पर क्यों थी? इससे उसके स्वभाव की कौन-सी विशेषता उजागर होती हैं? (C.B.S.E. Outside Delhi 2017, Set-1)
उत्तर
भक्तिन लाट-साहब तक लड़ने को इसलिए तत्पर थी क्योंकि वह अपनी मालकिन को किसी भी कीमत पर खो देना नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसकी मालकिन सदैव उसके साथ रहे। इससे उसके स्वभाव की सच्ची सेविका, अपने धर्म का पालन करने वाली, निडरता एवं साहसी विशेषताएँ उजागर होती हैं।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया, पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूं। (C.B.S.E. Delhi 2008, Sample Paper, 2011 Set-I,C.B.S.E. Delhi 2013, Set-I, II, III)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
2. भक्तिन का नाम क्या है ? वह किसकी पुत्री है?
3. लेखिका ने भक्तिन की तुलना किससे की है और क्यों?
4. भक्तिन किसी को अपना नाम क्यों नहीं बताती?
5. भक्तिन ने अपना असली नाम कब और किसको बताया था?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का नाम है-भक्तिन तथा इसकी लेखिका हैं-महादेवी वर्मा।
2. भक्तिन का असली नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी है। वह एक अनामधन्या गोपालिका की पुत्री है।
3. लेखिका ने भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की है क्योंकि भक्तिन अपने सेविका-धर्म को पूरी निष्ठा और श्रद्धा भाव से निभाती है। वह पूरी ईमानदारी से अपनी मालकिन की सेवा करती है।
4. भक्तिन बहुत समझदार महिला है। वह जानती है कि उसका जीवन उसके नाम के एकदम विपरीत है। वह बहुत गरीब है। वह अपने जीवन में विरोधाभास लेकर जी रही है। इसीलिए वह किसी को अपना असली नाम नहीं बताती।
5. भक्तिन ने लेखिका को अपना असली नाम तब बताया था जब वह नौकरी की खोज में आई थी।

2. पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार कब मिला?
2. सास ने भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार क्यों नहीं बताया?
3. सास ने भक्तिन को क्या कहकर नैहर के लिए विदा किया?
4. भक्तिन को अपनी सास का अनुग्रह कैसा लगा? क्यों?
5. भक्तिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में पहुँचते ही क्यों झड़ गए?
उत्तर
1. भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार तब मिला जब वह मृत्यु की सूचना बन चुका था।
2. सास ने भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार इसलिए नहीं बताया क्योंकि वह अपने घर में रोने-पीटने के अपशकुन से बचना चाहती थी।
3. सास ने भक्तिन को यह कहकर विदा किया कि वह बहुत दिन से नैहर नहीं गई सो जाकर देख आए।
4. भक्तिन को अपनी सास का अनुग्रह अप्रत्याशित लगा क्योंकि आज तक उसने उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था।
5. भक्तिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में पहुँचते ही इसलिए झड़ गए क्योंकि उसे वहीं अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिल गया।

3. जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुखवाली पहली कन्या के दो
संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चकी थी और दोनों जिठानियाँ काकभशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भक्तिन को जीवन के दूसरे परिच्छेद में क्या मिला?
2. लेखक ने दूसरा परिच्छेद किसे कहा है?
3. भक्तिन ने कैसी कन्याओं को जन्म दिया?
4. भक्तिन की जिठानियों ने कैसे पुत्रों को जन्म दिया ? वे ऐसा करके किस पद की उम्मीदवार थीं ?
5. छोटी बहू कौन थी? उसने कैसी लीक तोड़ी?
उत्तर
1. भक्तिन को जीवन के दूसरे परिच्छेद में दुख-ही-दुख मिले।
2. लेखक ने दूसरा परिच्छेद विवाह के बाद ससुराल के जीवन को कहा है।
3. भक्तिन ने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुखवाली कन्याओं को जन्म दिया।
4. भक्तिन की जिठानियों ने काकभुशुंडी जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया। वे ऐसा करके अपने घर की पुरखिन के पद की उम्मीदवार थीं।
5. छोटी बहू भक्तिन थी। उसने बेटों की जगह बेटियाँ पैदा करने की लीक तोड़ी।

4. भोजन के समय जब मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और आत्मतुष्टि से आप्लावित मुसकराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखकर उसे टेढ़ी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुषारपात करते हुए मैंने रुआंसे भाव से कहा-‘यह क्या बनाया है’ तब वह हतबुद्धि हो गई।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश की लेखिका का नाम बताएँ।
2. लेखिका ने भक्तिन को रुआंसे भाव से क्या कहा?
3. लेखिका के कथन को सुनकर भक्तिन पर क्या प्रभाव पड़ा?
4. भक्तिन ने लेखिका को किस थाली में रोटियाँ रखीं?
5. भक्तिन ने लेखिका की थाली में कैसी और कितनी रोटियाँ रखीं?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश महादेवी वर्मा दवारा लिखित है।
2. लेखिका ने भक्तिन को रुआंसे भाव से कहा कि यह क्या बनाया है।
3. लेखिका के कथन को सुनकर भक्तिन हतबुद्धि हो गई।
4. भक्तिन ने लेखिका को फूल की थाली में रोटियाँ रखीं।
5. भक्तिन ने लेखिका की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखीं।

5. इसी से मेरी किसी पस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उदभासित हो उठती है. जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मख पर प्रसन्नता कैसे प्रकट होती थी?
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे कैसे देखती थी?
3. जब भक्तिन प्रकाशित पुस्तक को ध्यान से देखती थी तो लेखिका को क्या लगता था?
4. पुस्तक देखने पर भक्तिन की दृष्टि में आत्मघोष क्या कहता है?
उत्तर
1. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मुख से प्रसन्नता वैसे ही प्रकट हो जाती थी जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक प्रकट हो जाता है।
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे बड़े ध्यान से देखती थी। वह उसे सूने में बार-बार छूती तो कभी आँखों के पास ले जाकर चारों ओर घुमा-फिराकर देखती थी। 3. जब भक्तिन प्रकाशित पुस्तक को ध्यान से देखती तो लेखिका को लगता था कि भक्तिन मानो उस पुस्तक में अपनी सहायता का अंश देख रही हो।
4. पुस्तक देखने पर भक्तिन की दृष्टि में आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता।

6. जब गत वर्ष युद्ध के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी के मचान पर अपनी नई धोती बिछाकर मेरे कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें गाड़कर और उनपर तख्ने रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उसपर अपना कंबल बिछाकर वह मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याही आदि को नई हँडियों में संजोकर रख देगी और कागज-पत्रों को छीके में यथाविधि एकत्र कर देगी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लेखिका के जीवन में पलायन-वृत्ति किसने जगाई?
2. पलायन-वृत्ति जागृत होने पर भक्तिन ने अपनी मालकिन से कहाँ जाने का अनुरोध किया?
3. लकड़ी के मचान पर कौन सामान रखती थी और क्या?
4. भक्तिन लेखिका के क्या-क्या कार्य करती थी?
उत्तर
1. लेखिका के जीवन में वीरता के स्थान पर युद्ध के भूत ने पलायन-वृत्ति जगाई।
2. पलायन-वृत्ति जागृत होने पर भक्तिन ने अपनी मालकिन से गाँव जाने का अनुरोध किया।
3. लकड़ी के मचान पर भक्तिन सामान रखती थी। वह अपनी नई धोती बिछाकर लेखिका के कपड़े रखती थी। दीवाल में कीलें गाड़कर और उन पर तख्ने रखकर लेखिका की किताबें सजा देती थी।
4. भक्तिन लेखिका के निम्नलिखित कार्य करती थी

  • दीवार में कीलें गाड़ कर तथा उसपर तख्ता रखकर लेखिका की किताबें सजा देती है।
  • धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर तथा उसपर कंबल बिछाकर सोने का प्रबंध करती थी।
  • कागज़-पत्रों को छीके में यथाविधि एकत्र करती थी।
  •  लेखिका के रंग-स्याही आदि को नई हँडियों में संजोकर रखती थी।

7. भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जानेवाले अंधेरे-उजाले और आँगन में फूलनेवाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। (A.I.C.B.S.E. 2016, A.L.C.B.S.E. 2012, Set-1)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?
5. भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध क्यों नहीं कहा जा सकता?
6. प्रकाश-अंधकार का उदाहरण क्यों दिया गया है? भाव स्पष्ट कीजिए।
7. गद्यांश के आधार पर महादेवी और भक्तिन के स्वभाव की एक-एक विशेषता सोदाहरण लिखिए।
8. आशय स्पष्ट कीजिए-“भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे व्यक्तित्व को घेरे हुए है।”
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम-भक्तिन और लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा है।

2. भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का कार्य करती थी लेकिन लेखिका के हृदय में उसके प्रति अपार श्रद्धा तथा प्रेमभाव था। वह उसे एक सेविका न मानकर अपने परिवार का सदस्य मानती थी। लेखिका उसके साथ कभी भी नौकर-मालिक जैसा व्यवहार नहीं करती थी।

3. लेखिका जब कभी परेशान होकर भक्तिन को नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश दे देती थी तो उस आदेश को सुनकर भक्तिन हँस दिया करती थी। वह वहाँ से बिलकुल भी नहीं हिलती थी।

4. भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरै-उजाले और आँगन में फलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।

5. भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन दोनों में आत्मीय संबंध थे। भक्तिन अपनी स्वामी की तन-मन से सेवा करती थी। वह उनके दिल से ही नहीं बल्कि घर की हर वस्तु से आत्मिक रूप से जुड़ी थी।

6. इस पंक्ति का भाव है कि जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार की प्रति स्वतंत्र होती है। उन पर अधिकार पाना असंभव है उसी प्रकार भक्तिन पर अधिकार पाना कठिन था। उसका व्यक्तित्व स्वतंत्र था।

7. इस पंक्ति का आशय है कि भक्तिन का व्यक्तित्व स्वतंत्र था। उसने अपने व्यक्तित्व की छाप से लेखिका के व्यक्तित्व को घेरे हुए था। उसने लेखिका के मन पर अपने पद चिह्न की ऐसी छवि बनाई कि लेखिका अनायास ही उनके व्यक्तित्व का उद्घाटन करने पर मजबूर हो जाती हैं।

8. यह पूर्ण रूप से सत्य है कि भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए कवयित्री/लेखिका महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व को घेरे हुए है। महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व ही उसके चरित्र का सबल आधार है। उसका अपने आप अकेले में कोई महत्वपूर्ण अस्तित्व नहीं रखता। लेखिका के जीवन में तरह-तरह की कमियाँ हैं; घोर गरीबी है; अशिक्षा है। उसे तो उचित भाषा का भी ज्ञान नहीं है लेकिन सारा नगर, कॉलेज की लड़कियाँ, लेखिका के सगे-संबंधी, लेखक-कवि आदि सब उसे जानते हैं; मान देते हैं-वह लेखिका के कारण। लेखिका का व्यक्तित्व ही उसके व्यक्तित्व को रचने वाला है।

8. मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके
सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सद्भाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देनेवाली है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
2. भक्तिन किन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी?
3. भक्तिन में कौन-कौन से गुण थे?
4. भक्तिन का कौन-सा गुण विस्मित कर देनेवाला था?
5. भक्तिन की सहज बुद्धि, विस्मित करनेवाली क्यों थी?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘भक्तिन’ तथा लेखिका का नाम महादेवी वर्मा है।
2. जो लोग भक्तिन की मालकिन के प्रति सम्मान एवं सद्भाव की भावना रखते थे। भक्तिन केवल उन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी।
3. भक्तिन में कर्तव्यपरायणता, सद्भाव, सेवाभाव, सम्मान की भावना, सहजबुद्धि, समर्पण आदि गुण थे।
4. भक्तिन की सहजबुद्धि का गुण विस्मित कर देनेवाला था।
5. भक्तिन की सहजबुद्धि इसलिए विस्मित करने देनेवाली थी क्योंकि वह अपनी सहजबुद्धि के बल पर ही केवल उन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी जो उसकी मालकिन के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखते थे।

9. मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुँचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का, तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लेखिका किस बुलावे की बात करती है ? स्पष्ट कीजिए।
2. भक्तिन की सेवाभावना को देखकर लेखिका क्या सोचती है?
3. चिर विदा के अंतिम क्षणों में लेखिका ने स्वयं तथा भक्तिन को असमर्थ क्यों पाया है?
4. मृत्यु के बुलावे के समय लेखिका किन अधिकारों के न होने की बात करती है?
उत्तर
1. लेखिका सृष्टि के अंतिम सत्य अर्थात मृत्यु के बुलावे की बात करती है। इस संसार में यह बुलावा ही सत्य और अटल है। इससे कोई भी प्राणी नहीं बच सकता।
2. भक्तिन की सेवा-भावना को देखकर लेखिका सोचती है कि जब मेरा अंतिम बुलावा आएगा जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन का रुकने का अधिकार होगा और न मुझे रोकने का तब चिर विदाई के समय यह भक्तिन क्या करेगी।
3. चिर विदा के अंतिम क्षणों में लेखिका ने स्वयं तथा भक्तिन को इसलिए असमर्थ पाया है क्योंकि इस संसार में जन्म के बाद मृत्यु ही सत्य है। मनुष्य चाहकर भी इससे नहीं बच सकता। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। मनुष्य लाख कोशिशों के बावजूद भी मृत्यु से मुख नहीं मोड़ सकता।
4. मृत्यु के बुलावे के समय लेखिका सोचती है कि तब न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा और न मुझे रोकने का। न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा न सामान बाँधने का।

10. भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊंची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ़ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े।

क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित।

भला ऐसा अंधेर हो सकता है जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं, पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी, पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भक्तिन कारागार से कैसे डरती है?
2. भक्तिन की कौन-सी कमजोरी प्रसिद्ध हो गई है?
3. ‘ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं’ यहाँ लेखिका किस यात्रा की बात करती है? उसमें किसी को साथ जाने का अधिकार क्यों नहीं?
4. भक्तिन किस संभावना से अपमानित होती महसूस करती है?
उत्तर
1. भक्तिन कारागार से यमलोक की तरह डरती है।
2. भक्तिन कारागार से डरती है। ऊंची दीवारें देखते ही यह आँख मूंदकर बेहोश हो जाती है। भक्तिन की वह कमजोरी प्रसिद्ध हो गई।
3. यहाँ लेखिका मनुष्य की अंतिम यात्रा अर्थात मृत्यु-यात्रा की बात करती है। इस यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार इसलिए नहीं होता क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु अपने निश्चित समय पर होती है।
4. भक्तिन अंतिम यात्रा में लेखिका के साथ न जाने की संभावना से अपमानित महसूस करती है।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख . Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 10

प्रश्न 1.
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
उत्तर
(i) यह काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘छोटा मेरा खेत’ नामक कविता से अवतरित उमाशंकर जोशी द्वारा रचित है।
(ii) इस काव्यांश में कवि ने खेती के रूपक में कवि-कर्म को बाँधकर चित्रित किया है।
(iii) यहाँ छोटा खेत-कागज़ के पन्ने तथा अंधड़ भावनात्मक आँधी का तथा बीज विचार तथा अभिव्यक्ति का प्रतीक हैं।
(iv) प्रतीकात्मक शैली का बोध है।
(v) सांगरूपक, अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
(vi) बिंब योजना अत्यंत सुंदर है।
(vii) खड़ी बोली भाषा सरल, सरस एवं प्रवाहमयी है।
(viii) तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दावली का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 2.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि-कर्म के प्रत्येक चरण को खेती के रूपक में बाँधने की कोशिश की है। इस खेत में भावनात्मक आँधी के प्रभाव से किसी क्षण एक रचना-विचार तथा अभिव्यक्ति का बीज बोया जाता है, जो मूल कल्पना का सहारा लेकर स्वयं विगलित हो जाता है। उससे शब्दों के अंकुर निकलते हैं जो निरंतर पल्लवित-पुष्पित होकर एक पूर्ण कृति का स्वरूप ग्रहण करते हैं।

साहित्यिक कृति से जो अलौकिक रस-धारा फूटती है वह रस-धारा क्षण भर में होने वाली रोपाई के परिणामस्वरूप होती है। लेकिन यह रस-धारा अनंत काल तक चलने वाली खेती की कटाई के समान होती है। इस साहित्य के अक्षय पात्र का रस कभी खत्म नहीं होता।

प्रश्न 3.
‘छोटा मेरा खेत’ कविता का प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर
कवि की कविता ‘छोटा मेरा खेत’ का भाव गहन है। कवि का मानना है कि किसी भी कविता का जन्म सरल नहीं होता। उसका जन्म किसी अज्ञात प्रेरणा से किसी विशेष क्षण में ही होता है। जब कवि बड़े मनोयोग से तन्मयतापूर्वक विचार करता है तभी कविता का जन्म होता है। काव्य के सौंदर्य संबंधी तत्व स्वयं ही मन से फूट-फूट कर निकलते जाते हैं। छंद, अलंकार, शब्द, भाव आदि गुण तो उसे अपने आप मिलने लगते हैं। कविता ऐसी फ़सल है जिससे आनंद और तृप्ति अनंत काल तक प्राप्त की जा सकती है। काव्य रस तो शाश्वत होता है। वह सदा हर स्थिति में ज्यों-का-त्यों बना रहता है।

प्रश्न 4.
कवि ने कवि-धर्म की तुलना किससे की है ?
उत्तर
कवि ने कवि-धर्म की तुलना कृषि उत्पादन से की है। उसने अपनी सृजनात्मकता को छोटे खेत से जोड़कर माना है कि वह भावों के बीज उगाता है और उससे उत्पन्न कविता रूपी फ़सल को अनंत समय तक लगातार प्राप्त करता रहता है।

प्रश्न 5.
फल, रस और अमृत धाराएँ किस की प्रतीक मानी गई हैं?
उत्तर
कवि ने अपनी कविता में फल, रस और अमृत को भाव और शिल्प के आनंद, रस और सुंदरता को माना है, जो मन को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 6.
‘क्षण भर बीज वहाँ बोया गया’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर
कवि का मानना है कि मानव मन में उत्पन्न होने वाले भाव सदा एकसमान नहीं रहते। वे पल-पल बदलते रहते हैं। वे तो जीवन की आपाधापी से उत्पन्न विचारों में से स्वयं निकलते हैं और कवि के हृदय को कविता रचने की प्रेरणा दे जाते हैं। अति तीव्र भाव ही कविता के जन्म की पृष्ठभूमि बन जाता है, जिससे कविता का जन्म होता है। क्षण-भर के लिए मन में उत्पन्न भाव कागज़ पर कविता के रूप में प्रकट हो जाता है।

प्रश्न 7.
कवि ने कविता के जन्म के लिए कल्पना-शक्ति को क्या महत्व दिया है?
उत्तर
मिट्टी में दबा बीज धरती से ही जल, खाद आदि को प्राप्त करता है और अंकुरित होता है। कवि के मन में भी भाव उत्पन्न होता है और वह शब्दों, अलंकार, छंद आदि को ग्रहण कर कविता के रूप में व्यक्त हो जाता है। इसीलिए कवि ने कल्पना के रसायनों को पी’ पंक्ति का प्रयोग किया है।

प्रश्न 8.
‘रस अलौकिक’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
काव्य में निहित भाव अलौकिक रस ही होता है। उसकी सांसारिक-भौतिक रसों से तुलना नहीं की जा सकती। वह मन को तृप्ति प्रदान करने वाला आत्मिक आनंद होता है और उससे आत्मिक तृप्ति प्राप्त होती है। कवि ने ‘रस अलौकिक’ से यही प्रकट करना चाहा है।

प्रश्न 9.
‘बगुलों के पंख’ कविता में कवि किसे रोककर रखना चाहता है?
उत्तर
कवि ने संध्या के समय आकाश में घने काले बादलों की पृष्ठभूमि में सफेद बगुलों की कतारों को उड़ते हुए देखता है और वह उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो जाता है। वह उन्हें बहुत देर तक निहारना चाहता था। वह अधिक समय तक उसे देखने के लिए बगुलों की कतारों को रोकना चाहता है।

प्रश्न 10.
“तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया” से कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर
आकाश में घने काले-कजरारे बादल तैर रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे साँझ की श्वेत कांति-युक्त काया धीरे-धीरे विचरण कर रही हो।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधेड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया। (A.L.C.B.S.E. 2011, Set-I, C.B.S.E. Outside Delhi, Set-III, 2018)

शब्दार्थ : चौकोना-चार कोनों वाला, चौकोर। अंधेड़-आँधी, (भावनात्मक आँधी)। पन्ना-पृष्ठ, पेज्ञ। क्षण-पल।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि उमाशंकर जोशी दवारा रचित ‘छोटा मेरा खेत’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने कवि-कर्म को खेती के रूपक द्वारा अभिव्यक्त किया है।

व्याख्या : कवि कागज़ को खेत का रूपक प्रदान करते हुए कहता है कि मेरा कागज का एक पृष्ठ चौकोर खेत की तरह है। मैं इसी कागत रूपी चौकोर खेत पर कविता को शब्दबद्ध करता हूँ। कवि का कथन है कि कोई भावनात्मक रूपी आंधी कहाँ से आई जिसके प्रभाव से मैंने कागज के पृष्ठ रूपी खेत में रचना-विचार और अभिव्यक्ति रूपी बीज बो दिया। अर्थात मैंने भावनात्मक होकर कागज के पृष्ठ पर किसी अभिव्यक्ति को शब्दबद्ध कर दिया।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त अवतरण के कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
2. यहाँ कवि किस खेत की बात करता है?
3. कवि ने अपने खेत में कौन-सा बीज बोया?
4. इस अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. उपर्युक्त अवतरण में कवि का नाम उमाशंकर जोशी है तथा कविता का नाम ‘छोटा मेरा खेत’ है।
2. यहाँ कवि कागज के पन्ने रूपी खेत की बात करता है।
3. कवि ने अपने खेत में शब्द रूपी बीज बोया।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने कागज के पन्ने को खेत के रूपक द्वारा स्पष्ट किया है।
  • अनुप्रास, सांगरूपक व पदमैत्री अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • तत्सम, तद्भव व विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
  • तुकांत छंद का प्रयोग है।
  • बिंब योजना अत्यंत सुंदर है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।

2. कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष। (A.I.C.B.S.E. 2011, Set-I, C.B.S.E. Outside Delhi, Set-III, 2018)

शब्दार्थ : निःशेष-समाप्त, जिसमें कुछ भी शेष न हो। फूटे-पैदा हुए। पुष्पों-फूलों। शब्द के अंकुर-शब्द रूपी अंकुर। पल्लव-पत्ते। नमित-झुका।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘उमाशंकर जोशी’ द्वारा रचित ‘छोटा मेरा खेत’, नामक कविता से अवतरित हैं। इनमें कवि ने पृष्ठ रूपी खेत में कवि-कर्म को विकसित होता हुआ दिखाया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि मैंने कागज के पृष्ठ रूपी खेत में जो अभिव्यक्ति रूपी बीज बोया था, वह बीज कल्पना रूपी रसायन तत्वों को पीकर पूरी तरह से गलकर समाप्त हो गया। तत्पश्चात उसमें से शब्द रूपी अंकुर प्रस्फुटित हुए।

अर्थात जिस प्रकार से खेत में बीज बोकर किसान उसमें अनेक प्रकार के रसायन तत्वों का प्रयोग करता है, तब जाकर वह बीज अंकुरित होता है, उसी प्रकार कवि पृष्ठ पर विचारों का बीज बोकर उसमें कल्पना का रसायन डालता है।

तत्पश्चात वह बीज शब्दों के रूप में अंकुरित होता है। जैसे खेत में बीज अंकुरित होता है फिर उस पर पत्ते और फूल आते हैं तब उसके बाद वह पूर्णता को प्राप्त करता है, वैसे ही कवि कर्म शब्दों को छंदों में बाँधता हुआ एक संपूर्ण कृति के रूप में प्रकट होता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कौन-सा बीज गलकर नष्ट हो गया?
2. कवि क्या और किस पर बोता था?
3. संपूर्ण कृति का रूप कौन लेता था?
4. उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि के हृदय में उत्पन्न भाव रूपी बीज कल्पना के रसायन तत्वों को पीकरगल कर नष्ट हो गया।
2. कवि ने अभिव्यक्ति रूपी बीज कागज के पन्ने पर बोया था।
3. कवि के भावों ने शब्दों का रूप लेकर एक संपूर्ण कृति का रूप लिया था।
काव्य-सौंदर्य

  • कवि-कर्म व कृषक-कर्म की समानता का चित्रण है।
  • खड़ी बोली भाषा है जिसमें तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है।
  • बिंब योजना सुंदर है।
  • अनुप्रास, सांगरूपक, पदमैत्री आदि अलंकारों की शोभा है।
  • मुक्तक छंद का प्रयोग है।
  • प्रतीकात्मक शैली का चित्रण हुआ है।

3. झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना। (A.I. C.B.S.E. 2011, Set-II, C.B.S.E. Outside 2013, Set-III)

शब्दार्थ : रस-साहित्य या काव्य से प्राप्त आनंद, फल का रस। रोपाई-बीज बोना, पौधे लगाने की क्रिया। जरा-थोड़ा। अलौकिक-अनूठा। अनंतता-जिसका कोई अंत न हो, सदा। अक्षय-जो ख़त्म न हो।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘छोटा मेरा खेत’ नामक कविता से अवतरित है जिसके कवि ‘उमाशंकर जोशी’ हैं। इसमें कवि ने साहित्य के रसानंद की अनंतता का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि साहित्यिक कृति से अलौकिक रस रूपी फल प्रकट होते हैं। एक क्षण की रोपाई के परिणामस्वरूप अमृत रूपी रस की अलौकिक धाराएँ फूटती हैं। कवि कहता है कि यह अमृत रूपी रस-धारा अनंतकाल तक चलने वाली कटाई के समान है।

कवि का अभिप्राय यह है कि खेत में पैदा होने वाला अन्न पकने के बाद कट जाता है, लेकिन उत्तम साहित्य की रस-धारा कभी समाप्त नहीं होती। यह रस-धारा पाठकों द्वारा बार-बार पढ़ी जाती है लेकिन फिर भी जरा-सी भी कम नहीं होती है वह अनंतकाल तक भी ख़त्म नहीं होती। कवि कहता है कि मेरा कागज़ का पृष्ठ रूपी छोटा खेत चौकोर है। कवि का अभिप्राय यह है कि मेरा पृष्ठ रूपी खेत बहुत छोटा है लेकिन उससे जो साहित्य की अमृत रस-धारा प्रकट हुई है, वह अनंतकाल तक भी ख़त्म न होने वाली है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि के खेत में क्या-क्या झूमने लगे?
2. कवि का खेत अनूठा है, कैसे? 3. कवि के खेत में कौन-सा पात्र सदा भरा रहता है?
4. उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि के खेत में फल, अलौकिक रस तथा अमृतधारा झूमने लगे।
2. कवि का खेत अनूठा इसलिए है क्योंकि उसमें रोपाई तो केवल क्षण भर की होती है, लेकिन उसकी कटाई अनंत साल तक चलती है। _वह खेत लुटते रहने से ज़रा भी कम नहीं होता।
3. कवि के खेत का अक्षय पात्र सदा भरा रहता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने साहित्य-रस की अमृत-धारा को अक्षय बताया है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • मुक्तक छंद का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, सांगरूपक, पदमैत्री आदि अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • संस्कृत के तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दों का प्रयोग है।
  • बिंब योजना अत्यंत सटीक एवं सार्थक है।

4. नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया, तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से। उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जातीं मेरी आँखें नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें। (C.B.S.E. Delhi 2008)

शब्दार्थ : नभ-आकाश। कजरारे-काले-काले। सतेज-तेजस्वी, उज्ज्वल, तेजयुक्त। काया-शरीर। निज माया से-अपनी माया से। पाँखें-पंख। पाँती-बँधे-पंक्ति में बँधे हुए, पंक्तिबद्ध। साँझ-संध्या। श्वेत-सफ़ेद। हौले-हौले-धीरे-धीरे। तनिक-थोड़ा-सा, ज़रा।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘उमाशंकर जोशी’ द्वारा रचित ‘बगुलों के पंख’ नामक कविता से अवतरित है। इस पद्य में कवि ने आकाश में उड़ते पक्षियों के सौंदर्य के चित्रात्मक वर्णन के साथ-साथ उसका अपने मन पर पड़ने वाले अटूट प्रभाव का भी सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि असीम आकाश में बगुले पंक्तिबद्ध होकर उड़ रहे हैं। इन बगुलों के सफ़ेद पंख अत्यंत सुंदर एवं मनमोहक हैं। वे सफ़ेद पंखों से युक्त आकाश में उड़ते बगुले मेरी आँखों को चुरा लिए जा रहे हैं। इन काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के पंख काले बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं।

कवि कहता है कि वह दृश्य इतना सुंदर है कि मुझे अपने माया रूपी सौंदर्य से धीरे-धीरे अपने आकर्षण में बाँध रहा है अर्थात मुझे अपनी ओर खींच रहा है। कवि आग्रह करता है कि कोई उस माया को थोड़ा-सा रोके। यह आकाश में उड़ते पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों की सुंदरता निरंतर मेरी आँखों को चुरा लिए जाती है अर्थात उन सफ़ेद बगुलों का पंक्तिबद्ध सौंदर्य मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
2. आकाश में किसकी पंक्ति बँधी है? वह क्या चुरा ले जा रही है?
3. कवि को अपनी माया से कौन बाँध रहा है?
4. इस अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
5. मानवीकरण के सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए। (A.I. C.B.S.E. 2016)
6. काव्यांश की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।
7. काव्यांश का बिंब-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस काव्यांश के कवि का नाम उमाशंकर जोशी है तथा कविता का नाम ‘बगुलों के पंख’ है।
2. आकाश में बगुलों की पंक्तिबद्ध उड़ान कवि की आँखें चुरा ले जाती है।
3. कजरारे बादलों की छाया तथा तैरती हुई शाम की सतेज श्वेत का या कवि को अपनी माया से बाँध रही है।
4. काव्य-सौंदर्य (C.B.S.E. 2010, Set-1)

  • कवि ने पंक्तिबद्ध बगुलों की सुंदरता का मनोहारी चित्रण किया है।
  • भाषा सरल, सरस एवं प्रवाहमयी खड़ी बोली है।
  • संस्कृत की तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, स्वभावोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा आदि अलंकारों की छटा है।
  • कोमलकांत पदावली चित्रण है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • बिंब योजना का सुंदर प्रयोग है।

5. जड़ प्रकृति का मानवीय रूप में प्रस्तुत किया गया है। संध्या को तैरते हए दिखाया गया है।
6. खड़ी बोली भाषा है। भाषा सरल एवं सरस है। तत्सम शब्दावली है।
7. चाक्षुक बिंब का योजना है।