Class 12 Hindi Important Questions Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग 

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Vitan Chapter 1 सिल्वर वैडिंग. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

सिल्वर वैडिंग Class 12 Important Extra Questions Hindi Vitan Chapter 1

प्रश्न 1.
यशोधर बाबू दिल्ली कब और क्यों आए ?
उत्तर
यशोधर बाबू ने अल्मोड़ा के रेम्जे स्कूल में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद वे दिल्ली आ गए क्योंकि उन्हें आजीविका चलाने के लिए किसी नौकरी की तलाश थी।

प्रश्न 2.
दिल्ली आने पर यशोधर बाबू की सहायता किसने की और कैसे ?
उत्तर
दिल्ली आने पर यशोधर बाबू की सहायता किशनदा ने की। किशनदा ने यशोधर बाबू को रहने के लिए घर ही नहीं दिया बल्कि उसे मेस में रसोइया बनाकर भी रख लिया। उन्होंने यशोधर को पचास रुपए उधार भी दिए ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके तथा अपने गाँव पैसा भेज सके। इसके बाद नौकरी की उम्र होने पर किशनदा ने उन्हें अपने दफ्तर में अपने नीचे नौकरी पर लगवा दिया।

प्रश्न 3.
यशोधर साइकिल छोड़कर दफ्तर पैदल क्यों जाने लगे ?
उत्तर
यशोधर बाबू साइकिल छोड़कर दफ्तर पैदल इसलिए जाने लगे क्योंकि उनके बच्चे आधुनिक विचारों के थे। उन्हें अपने पिता का साइकिल पर आना-जाना अच्छा नहीं लगता था। उनका विचार था कि साइकिल तो चपरासी चलाते हैं, इसलिए पिता जी स्कूटर पर दफ्तर जाएँ किंतु यशोधर बाबू को स्कूटर बिल्कुल बेकार सवारी मालूम होती थी।

प्रश्न 4.
यशोधर बाबू ने नई रीत कौन-सी अपनाई ?
उत्तर
यशोधर बाबू प्रतिदिन दफ्तर से लौटते समय बिड़ला मंदिर जाने लगे। वे मंदिर के उद्यान में कुछ समय तक बैठकर कोई प्रवचन सुनने लगे। इसके साथ-साथ वे स्वयं प्रभु का ध्यान लगाते थे। उन्होंने अपनी आत्मिक शांति के लिए यह नई रीति अपनाई।

प्रश्न 5.
यशोधर बाबू की पत्नी तथा बच्चों को उनका कौन-सा व्यवहार बुरा लगता था और क्यों ?
उत्तर
यशोधर की पत्नी तथा बच्चों को उनका प्रतिदिन मंदिर जाकर प्रवचन सुनना और प्रभु का ध्यान लगाना बुरा लगता था। क्योंकि उनका सोचना था कि उनके पिता अभी बूढ़े नहीं हुए हैं जो प्रतिदिन मंदिर जाएँ और इतने अधिक व्रत-उपवास आदि करें।

प्रश्न 6.
यशोधर बाबू की अपनी पत्नी तथा बच्चों के विचारों में भिन्नता क्यों थी ?
उत्तर
यशोधर बाबू एक सिद्धांत-प्रिय व्यक्ति थे। वे प्राचीन जीवन-मूल्यों में पूरा विश्वास रखते थे, किंतु उनकी पत्नी तथा बच्चे आधुनिक विचारों के थे। इसीलिए उनके पत्नी तथा बच्चों से विचारों में भिन्नता थी।

प्रश्न 7.
यशोधर बाबू दफ्तर से छुट्टी होने के बाद भी जल्दी घर लौटना पसंद क्यों नहीं करते थे ?
उत्तर
यशोधर बाबू दफ्तर से छुट्टी होने के बाद भी जल्दी घर लौटना पसंद इसलिए नहीं करते थे क्योंकि उनका अपनी पत्नी तथा बच्चों से हर छोटी-छोटी बात पर मतभेद होने लगा था। उनकी कोई बात नहीं सुनता था और न ही मानता था।

प्रश्न 8.
यशोधर बाबू अपने बच्चों की तरक्की होने पर ज्यादा खुश क्यों नहीं थे ?
उत्तर
यशोधर बाबू अपने बच्चों की तरक्की होने पर ज्यादा खुश इसलिए नहीं थे क्योंकि उनके बच्चे आधुनिक रहन-सहन में रहने लगे थे। पैसा होने पर वे सभी जीवन-मूल्य भुला चुके थे। वे सदा अपने गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करते थे। समय आने पर अपने पिता जी को भी अपमानित करने में उन्हें कोई शर्म नहीं थी।

प्रश्न 9.
यशोधर बाबू की पत्नी मॉड कैसे बन गई ?
उत्तर
यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह से आधुनिक नहीं थी। किंतु फिर भी वह अपने आधुनिक बच्चों की मातृसुलभ मजबूरी के कारण तरफदारी करती थी। इसी मातृसुलभ बच्चों की तरफदारी से यशोधर बाबू की पत्नी मॉड बन गई।

प्रश्न 10.
यशोधर बाबू तथा उसकी पत्नी के आधुनिकता के प्रति विचारों में कैसा दवंद्व था ?
उत्तर
यशोधर बाबू की पत्नी धर्म-कर्म, कुल परंपरा, सबको ढोंग-ढकोसला कहकर आधुनिकता का आचरण करती थी। किंतु यशोधर बाबू शायनल बुढ़िया, चटाई का लहंगा, बुढी मुँह मुँहासे, लोग करें तमासे आदि कहकर पत्नी के विद्रोह का मजाक में उड़ाते थे।

प्रश्न 11.
परलोक के बारे में उत्साही होने पर यशोधर बाबू ने क्या किया ?
उत्तर
परलोक के बारे में उत्साही होने पर यशोधर बाबू बिड़ला मंदिर जाना शुरू किया। वहाँ जाकर उन्होंने लक्ष्मी-नारायण के आगे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते और प्रवचन सुनते। प्रभु के चरणों से आशीर्वाद के फूल उठाते तथा महात्मा जी के गीता पर प्रवचन सुनते।

प्रश्न 12.
यशोधर बाबू को पत्नी का कैसा रहन-सहन समहाऊ इंप्रापर मालूम होता है ?
उत्तर
यशोधर बाबू की पत्नी बिना बाँह का ब्लाउज पहनती थी। रसोई से बाहर दाल-भात खाती थी। ऊँची हील वाली सैंडल पहनती थी। यही सब यशोधर बाबू को समहाऊ इंप्रापर मालूम होता था।

प्रश्न 13.
यशोधर बाबू अपने बच्चों से कैसा व्यवहार चाहते थे ?
उत्तर
यशोधर बाबू चाहते थे कि उन्हें समाज का सम्मानित बुजुर्ग माना जाए। उसके बच्चे उसका आदर-सम्मान करें। प्रत्येक बात में उसकी सलाह लें।

प्रश्न 14.
यशोधर बाबू के बच्चों को अपने पिता से क्या शिकायत थी?
उत्तर
यशोधर बाबू प्राचीन मूल्यों एवं विचारों के आदमी थे। उन्हें लोक-दिखावा तथा भीड़-भाड़ पसंद नहीं थी किंतु उनके बच्चे आधुनिक विचारों के थे। उन्हें पार्टी, समारोह आदि करना तथा आधुनिक परिधान पहनना अच्छा लगता था। उन्होंने अपने पिता की सिलवर वैडिंग का आयोजन किया और वहाँ बड़े-बड़े लोगों को बुलाया। परंतु उनके पिता वहाँ देर से आए। उनके बच्चों को यही शिकायत थी कि वे केवल एल० डी० सी० टाइप लोगों से मिलते-जुलते हैं।

प्रश्न 15.
बेटे द्वारा भेंट किए गए ड्रेसिंग गाउन को पहनते हुए यशोधर बाबू को कौन-सी बात चुभ गई और क्यों? (C.B.S.E. 2014. Set-II)
उत्तर
बेटे ने यशोधर बाबू को ड्रेसिंग गाउन दिया ताकि उसे पहनकर वे दूध लेने जाया करें। उन्हें ऐसा लगा था जैसे बेटे को कहना चाहिए था कि वह स्वयं दूध ले आया करेगा। यही बात यशोधरा बाबू का चुभ गई।

प्रश्न 16.
सिल्वर वैडिंग के आधार पर भूषण के चरित्र की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (AIC.B.S.E. 2014)
उत्तर
भूषण के संबंधों के प्रति कोई लगाव नहीं था वह अति कंजूस और स्वार्थी था तथा आधुनिक खयाल का था।

निबंधात्मक प्रशनोत्तर 

प्रश्न 1.
“किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे।” इसी कथन के आधार पर किशनदा की जीवन-शैली की चर्चा कीजिए।
अथवा
वाई०डी०पंत का आदर्श कौन था? उसके व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ लिखिए। (A.L. C.B.S.E. 2014, Set-I)
उत्तर
‘किशनदा एक संवेदनशील, परिश्रमी एवं संस्कारी व्यक्ति थे। वे पहाड़ से आकर दिल्ली में नौकरी करते थे। वे सारी उम्र अविवाहित रहे। पहाड़ी स्थानों से आने वाले बेरोजगार युवक उनके यहाँ रुककर काम की तलाश किया करते थे। यशोधर बाबू भी कम उम्र में अल्मोड़ा से आए और किशनदा के यहाँ रहने लगे थे। चूंकि यशोधर बाबू की उम्र अभी नौकरी के लायक नहीं थी इसलिए जब तक उसकी उम्र नौकरी के लायक होती उन्होंने किशनदा के यहाँ रसोइया की नौकरी की।

फिर किशनदा ने उन्हें अपने कार्यालय में नौकरी लगवाई थी। संवेदनशील किशनदा का घर सबके लिए खुला था। वे सारी उम्र दूसरों के लिए कार्य करते रहे। जब किशनदा सेवानिवृत्त हो गए तब किसी ने भी उनको अपने यहाँ ठहरने के लिए एक कमरा तक नहीं दिया था। यशोधर बाबू भी मजबूर थे क्योंकि क्वार्टर में उनके परिवार के लिए भी पूरी जगह नहीं थी। फिर भी किशनदा को जब कभी भी अवसर मिलता वे यशोधर बाबू का पूरा ध्यान रखते थे।

वे सदा काम करने में विश्वास करते थे। वे स्वयं बताते हैं कि किस तरह उन्होंने जवानी में पचासों किस्म की खुराफात की है। जैसे-ककड़ी चुराना, गर्दन मरोड़कर मुर्गा मार देना, पीछे की खिड़की से कूद कर सेकिंड शो सिनेमा देख आना भी। इस प्रकार किशनदा एक चंचल प्रकृति के व्यक्ति थे। किशनदा का बुढ़ापा संकटों में बीता। सेवानिवृत्ति के कुछ वर्ष वे राजेंद्र नगर में किराये के मकान में रहे। फिर वे अपने गाँव चले गए। कुछ साल बाद वहाँ उनकी मृत्यु हो गई।

जब यशोधर बाबू ने उनकी मृत्यु का कारण जानना चाहा तो किसी ने यही कहा कि ‘जो हुआ होगा’ यानी कि ‘पता नहीं क्या हुआ।” यशोधर बाबू के लिए यह उत्तर काफ़ी नहीं था। परंतु वे चाहकर भी किशनदा के अंतिम दिनों के बारे में कुछ नहीं जान पाए। परंतु यह सत्य है कि यशोधर बाबू के जीवन पर किशनदा की जीवन-शैली का अत्यधिक प्रभाव था।

प्रश्न 2.
यशोधर बाबू को अपने परिवार के सदस्यों से किस प्रकार की शिकायतें हैं ? वर्णन करें।
अथवा
अपने निवास के पास पहुँचकर बाई० डी० पंत को क्यों लगा कि वे किसी गलत जगह पर आ गए हैं? वे घर जाकर अंधेरे में क्यों दुबके रहते हैं ? (A.I. C.B.S.E. 2012)
उत्तर
यशोधर बाबू को अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य से शिकायतें हैं। उनका बड़ा बेटा एक विज्ञापन संस्था में नौकरी करता है। यशोधर बाबू को यही समझ नहीं आता कि उसका साधारण बेटा यह असाधारण नौकरी कैसे पा गया है। वे सोचते है कि डेढ हजार की नौकरी हमें अब रिटायरमेंट के पास पहुंच कर मिली है, शुरू में ही डेढ़ हजार रुपया देने वाली नौकरी में जरूर कुछ पेंच होगा। उनका दूसरा बेटा दूसरी बार आई० ए० एस० को परीक्षा देने की तैयारी कर रहा है।

यशोधर बाबू को शिकायत है कि जब यह पिछले वर्ष ‘एलाइड सर्विसेज’ की सूची में, माना चाहे इसका स्थान काफी नीचे था, तब इसने उस नौकरी को ज्वाइन क्यों नहीं किया था। यशोधर बाबू का तीसरा बेटा स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चला गया है। उन्हें बेटे का अमेरिका चला जाना भी समझ में नहीं आ रहा था। उनकी एक ही बेटी है जो अभी शादी नहीं करवाना चाहती। यशोधर बाबू बेटी की इसी बात से दुःखी हैं कि क्यों वह सभी प्रस्तावित पर अस्वीकार करती चली जाती है। बेटी अक्सर यशोधर बाबू को यह धमकी देती रहती है कि अगर आपने मेरी शादी की बात शुरू की तो वह डॉक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए अमेरिका चली जाएगी।

वे अपने बच्चों की तरक्की से वश तो हैं परंतु वे अनुभव भी करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे। यशोधर बाबू को अपनी पत्नी से भी शिकायत है क्योंकि वह अपने बच्चों की नई दुनिया में पूरी तरह रच-बस गई है। पली की यह बात बुरी लगती है कि वह बिना बाजू की ब्लाउज पहनती है, रसोई से बाहर भात-दाल खाती है, ऊँची होल वाली सैंडल पहनती है तथा हॉठों पर लिपस्टिक लगाती है। पत्नी की बुढ़ापे में यह आदतें यशोधर बाबू को बुरी लगती है, इसीलिए वे अपने घर में होकर भी उसे अपना घर नहीं मान पाते।

प्रश्न 3.
यशोधर बाबू के चरित्र की विशेषताएं लिखिए। (Delhi C.B.S.E. 2016 Ser IA.. 2016 Set-in.C.B.S.E.2010, 2011 Set-1, 2012 Set-1, 2014 Set-I, II,III, C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-1)
उत्तर
(i) कर्मठ एवं परिश्रमी-यशोधर बाबू एक कर्मठ एवं मेहनती व्यक्ति है। वे दस्तर में पूरा समय काम करते हैं। घर का बहुत-सा काम वे स्वयं करते हैं। सब्जी लाना, दूध लाना, राशन लाना तथा दूसरे अन्य काम भी उन्हें ही करने पड़ते हैं परंतु वे इन सभी कामों को करना अपना कर्तव्य समझते हैं।

(ii) संवेदनशील-बोधर बाबू एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। वे रिश्तों के प्रति संवेदनशील एवं भावुक है। जब किशनदा को कोई अपने यहाँ नहीं ठहराता तो उन्हें बहुत बुरा लगता है। चूंकि घर में बच्चे और पत्नी का उनके साथ मतभेद है इसलिए वे पर देर से लौटते हैं। उन्हें इस बात का दुःख है कि बच्चे उनकी कदर नहीं करते है।

(iii) परंपरावादी-यशोधर बाबू परंपराओं और मर्यादाओं में विश्वास करते हैं। उन्होंने अपना घर नहीं बनाया क्योंकि वे चाहते है कि सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे भी अपने पैतृक गांव लौट जाएंगे इसलिए दिल्ली जैसे महंगे शहर में घर बनाने का कोई फायदा नहीं है, जबकि परिवार के सभी सदस्य उनकी इस बात को एक बड़ी भूल मानते हैं।

(iv) संस्कारी-यशोधर बाबू संस्कारी व्यक्तित्व के हैं। वे रिश्ते-नाते बनाए रखने में विश्वास रखते है। वे अपनी बहन को मिलने अहमदाबाद इसलिए जाना चाहते हैं कि उनके जीजा जनार्दन जी आजकल बीमार हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी रिक्तों के प्रति संवेदनशील बनें।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 18 श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा, मेरी कल्पना का आदर्श समाज Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 18

प्रश्न 1.
डॉ. आंबेडकर ने जिस आदर्श समाज की संकल्पना की है उस पर लेख लिखिए। (A.I. 2016 Set-III, C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I, II, III)
उत्तर
डॉ. आंबेडकर ने एक स्वस्थ आदर्श समाज की संकल्पना की है। इस समाज में स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व का साम्राज्य होगा। इसमें इतनी गतिशीलता होगी कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सकेगा। समाज के बहुविधि हितों में सबका समान भाग होगा तथा सब उन हितों की रक्षा हेतु सजग रहेंगे। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध होंगे। दूध और पानी के मिश्रण की तरह भाईचारा होगा। हर कोई अपने साथियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना रखेगा।

प्रश्न 2.
‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर मनुष्य की क्षमता किन-किन बातों पर निर्भर रहती है?
उत्तर
‘जाति-भेद-उच्छेद’ पाठ के आधार पर मनुष्य की क्षमता निम्नलिखित बातों के आधार पर निर्भर रहती है
(i) शारीरिक वंश परंपरा के आधार पर।
(ii) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि सभी उपलब्धियाँ जिनके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्टता प्राप्त करता है।
(iii) मनुष्य के अपने प्रयत्न।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने समाज की किन-किन समस्याओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर
लेखक ने समाज में व्याप्त भुखमरी, बेरोज़गारी, गरीबी, उत्पीड़न, विवशतावश अरुचिपूर्ण कार्य, आर्थिक कमज़ोरी, जाति-प्रथा, श्रम-विभाजन, असमानता, पैतृक पेशे के प्रति चिंता से संबंधित समस्याओं की ओर संकेत किया है।

प्रश्न 4.
पैतृक पेशे से क्या अभिप्राय है? जाति-प्रथा की इसमें क्या भूमिका है?
उत्तर
पैतृक पेशे से तात्पर्य माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार मनुष्य को जन्म से ही पेशा या कार्य निर्धारित कर दिया जाता है। यह सब जाति-प्रथा के आधार पर ही निश्चित होता है। जाति-प्रथा पेशे का पूर्व-निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को आजीवन इसी पेशे में बाँध देती है, जिसे मनुष्य चाहकर भी नहीं छोड़ सकता। फिर चाहे यह पेशा अपर्याप्त या अनुपयुक्त ही क्यों न हो। हिंदू धर्म भी जाति-प्रथा को किसी भी मनुष्य को पैतृक पेशे के अलावा कोई भी पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती, भले ही मनुष्य उसमें कितना ही कुशल क्यों न हो।

प्रश्न 5.
भारतीय समाज में जातिवाद किस प्रकार फैल रहा है? इसके आधार पर समाज में कौन-सी समस्याएँ पनप रही हैं? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
भारतीय समाज की विडंबना है कि यहाँ जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं है। जातिवाद के पोषक इसको फैलाने के लिए अनेक आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। वे सभ्य समाज को श्रम-विभाजन को जाति-भेद के द्वारा विभाजित करना चाहते हैं, क्योंकि इनकी दृष्टि में श्रम-विभाजन भी जाति-प्रथा का ही दूसरा रूप है। इसके आधार पर समाज में अनेक समस्याएँ पनप रही हैं
(i) जाति-प्रथा श्रम-विभाजन के आधार पर श्रमिकों को अनेक वर्गों में विभाजित करती है।
(ii) विभाजित वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच पैदा कर देती है।
(iii) यह मनुष्य के पेशे का पूर्व निर्धारण कर उसे आजीवन उसी पेशे से बाँध देती है जिससे वह नवीन तकनीक के आने पर अपने पेशे में परिवर्तन कर सकता है।
(iv) हिंदू धर्म में जाति-प्रथा किसी भी मनुष्य को पैतृक पेशे के अलावा कोई अन्य पेशा करने की अनुमति नहीं देती।
(v) मनुष्य जाति-प्रथा द्वारा थोपे गए कार्यों को अरुचिपूर्ण तथा विवशतावश करता है।

प्रश्न 6.
लेखक की दृष्टि में आदर्श समाज क्या है?
अथवा
हमें आंबेडकर की कल्पना के आदर्श समाज की आधारभूत बातें संक्षेप में समझाइए। (A.I. C.B.S.E. 2011, Set-II)
अथवा
डॉ. आंबेडकर की कल्पना के आदर्श समाज की तीन विशेषताएँ लिखें। (Delhi 2017, Set-II)
उत्तर
लेखक की दृष्टि में आदर्श समाज वह है
1. जिसमें स्वतंत्रता, समता और भाईचारे का भाव मिले।
2. समाज में परिवर्तन का लाभ सभी को प्राप्त हो।
3. समाज में सभी हितों में सबकी सहभागिता हो।
4. समाज के हित के लिए सभी सजग-सचेत हों।
5. समाज में सभी को संपर्क हेतु समान साधन और अवसर प्राप्त हों।
6. समाज का भाईचारा दूध-पानी के मिश्रण के समान हो।

प्रश्न 7.
लेखक का लोकतंत्र क्या है?
उत्तर
लेखक का लोकतंत्र सामूहिक रीति है। यह समाज के विभिन्न मिले-जुले अनुभवों का आदान-प्रदान है जिसमें सभी के मन में सभी के लिए श्रद्धा और सम्मान का भाव है। यह समाज के निर्माण में पारस्परिक सहयोग है और भेदभाव का पूर्ण रूप से परित्याग है।

प्रश्न 8.
लेखक के विचार से सभ्य समाज में क्या होना चाहिए?
उत्तर
लेखक के अनुसार प्रत्येक मानव को कार्य करने और समान अधिकार प्राप्त करने के बिल्कुल बराबर अवसर प्राप्त होने चाहिए। किसी भी अवस्था में वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार के आधार पर वर्ग और कार्य का निर्धारण नहीं होना चाहिए। जन्म के आधार पर किसी को ऊँचा तो किसी को नीचा नहीं माना जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
जात-पात के पक्षधर अपने पक्ष में किन तर्कों का सहारा लेते हैं?
उत्तर
उच्च जातियों के लोग प्राय: जात-पात के भेद का समर्थन करते हुए मानते हैं कि इससे श्रम-विभाजन में सरलता रहती है और समाज में कार्य-कुशलता बढ़ती है।

प्रश्न 10.
जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन किन कारणों से अस्वाभाविक माना जाता है?
उत्तर.
1. यह विभाजन मानव की रुचियों और इच्छा पर आधारित नहीं होता।
2. यह जन्म, जाति और परिवार के आधार पर किया जाता है।
3. यह स्वैच्छिक न होकर बंधनपूर्ण रीति से किया जाता है।
4. इसमें उचित क्षमताओं और अवसरों का कोई स्थान नहीं होता।
5. यह ऊँच-नीच और भेदभाव को उत्पन्न करता है जिससे वर्ग विशेष में हीन-भावना उत्पन्न होती है।

प्रश्न 11.
जन्मजात कामधंधों में लोग पूर्ण रूप से कार्यकुशल क्यों नहीं बन बाते?
उत्तर
जन्मजात कामधंधों में कार्यरत लोग निम्नलिखित कारणों से अपने कार्यों में कुशल नहीं हो पाते
1. कार्य में रुचि न होना।
2. थोपे गए काम के प्रति अग्रहण की भावना।
3. जबरदस्ती दिए गए काम के कारण दुर्भावना से ग्रस्तता।
4. काम को टालने की प्रवृत्ति।
5. अपूर्ण ज्ञान और अधूरी शिक्षा।

प्रश्न 12.
आंबेडकर ने लोकतंत्र के लिए क्या आवश्यक माना था?
उत्तर
आंबेडकर ने लोकतंत्र के लिए सबके लिए सम्मान का भाव, एक-दूसरे के प्रति श्रद्धा और विश्वास, भाईचारे की भावना, सबके लिए समान अवसर और सबके साझे अनुभवों का योगदान आवश्यक माना था।

प्रश्न 13.
विश्व के किसी भी समाज में न पाई जाने वाली वह कौन-सी विशेषता है जो भारतीय समाज में पाई जाती है?
उत्तर
भारत की जाति-प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करने के साथ-साथ विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी निर्धारित कर देती है जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं है।

प्रश्न 14.
जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत क्या है?
उत्तर
इससे मनुष्य के प्रशिक्षण या उसकी निजी क्षमता पर विचार किए बिना ही गर्भधारण के समय से ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है और इस पेशे से मनुष्य जीवन-भर बँधा रहता है।

प्रश्न 15.
पेशा-परिवर्तन न करने देने से कौन-सी समस्या उत्पन्न होती है?
उत्तर
पेशा-परिवर्तन न करने देने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 16.
आंबेडकर के ‘दासता’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
आंबेडकर ने जाति-प्रथा के आधार पर काम-धंधों को चुनने और उन्हें करने को ‘दासता’ माना है क्योंकि इसमें व्यक्ति को अपनी इच्छा से काम-धंधा चुनने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाता। उसे परिवार से प्राप्त परंपरागत कार्य करने के लिए विवश होना पड़ता है जो दासता के समान ही होता है।

प्रश्न 17.
मनुष्यों की क्षमता किन तीन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर
(1) शारीरिक वंश परंपरा
(2) सामाजिक उत्तराधिकार
(3) मनुष्य के अपने प्रयत्न।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1.
यह विडंबना की ही बात है, कि इस युग में भी ‘जातिवाद’ के पोषकों की कमी नहीं है। इसके पोषक कई आधारों पर इसका समर्थन करते हैं। समर्थन का एक आधार यह कहा जाता है, कि आधुनिक सभ्य समाज कार्य-कुशलता’ के लिए श्रम-विभाजन को आवश्यक मानता है, और चूँकि जाति-प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लेखक किस विडंबना की बात करता है?
2. वर्तमान युग में भी किनका बोलबाला है?
3. जातिवाद के पोषकों के समर्थन का क्या आधार होता है?
4. जातिवाद के पोषक ‘जाति-प्रथा’ और ‘श्रम विभाजन’ में क्या समानता मानते हैं?
5. इस गद्यांश में लेखक किन लोगों पर व्यंग्य करना चाहते हैं?
उत्तर
1. लेखक वर्तमान युग में भी जातिवाद के पोषकों की कमी नहीं होने की विडंबना की बात करता है।
2. वर्तमान युग में भी जातिवाद के पोषकों का बोलबाला है।
3. जातिवाद के पोषकों के समर्थन का आधार यह होता है कि आधुनिक सभ्य समाज कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति-प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है, इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।
4. जातिवाद के पोषक जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप मानते हैं।
5. इस गद्यांश में लेखक वर्तमान युग में जातिवाद के पोषकों पर व्यंग्य करना चाहता है।

2. श्रम-विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है, परंतु किसी भी सभ्य समाज में श्रम विभाजन की व्यवस्था श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा की एक और विशेषता यह है कि यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती, बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है, जोकि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम बताएँ।
2. भारत की जाति-प्रथा की क्या विशेषता है?
3. विश्व के किसी भी समाज में क्या नहीं पाया जाता?
4. भारतीय जाति-प्रथा समाज के विभिन्न वर्गों को कैसे विभाजित करती है?

उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश के लेखक बाबा साहिब भीमराव आंबेडकर हैं। इस गद्यांश के पाठ का नाम ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ है।
2. जाति-प्रथा श्रम-विभाजन का ही दूसरा रूप है। यह श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करती बल्कि विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी मानती है। 3. जाति-प्रथा द्वारा एक तो श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन तथा इसके साथ-साथ विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देना विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता।
4. भारतीय जाति प्रथा-समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित करके उनमें एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीचत की भावना पैदा करती है।

3. जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व-निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखों मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो इसके लिए भूखों मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. जाति-प्रथा किसका पूर्व-निर्धारण करती है और कैसे?
2. जाति-प्रथा के आधार पर पेशे के पूर्व निर्धारण की आधुनिक युग में क्या स्थिति है?
3. जाति-प्रथा के आधार पर पेशे के पूर्व निर्धारण की स्थिति आज के युग में आती है, कैसे?
4. जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत क्या है?
उत्तर
1. जाति-प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व-निर्धारण करती है। इसके साथ-साथ वह मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पेशे में बाँध भी देती है, भले ही मनुष्य पेशे के अपर्याप्त होने के कारण भूखा ही मर जाए।
2. जाति-प्रथा के आधार पर पेशे के पूर्व निर्धारण की स्थिति आधुनिक युग में प्रायः आती है। आज विज्ञान की तरक्की होने से उद्योग-धंधों की प्रक्रिया एवं तकनीक से परिवर्तन तथा विकास हो रहा है, जिससे व्यक्ति को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में यदि उसे पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो वह भूखा ही मरेगा।
3. जाति-प्रथा के आधार पर पेशे के पूर्व-निर्धारण की स्थिति आज आतंकी इसलिए है क्योंकि आज विज्ञान की उन्नति होने से उद्योग-धंधों की प्रक्रिया तथा तकनीक में निरंतर विकास हो रहा है। कभी-कभी तो अकस्मात परिवर्तन भी हो जाता है जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है। लेकिन जाति-प्रथा के पूर्व-निर्धारण में यदि मनुष्य को पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो तो उसे भूखों मरना पड़ सकता है।
4. जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत है-पेशे का पूर्व-निर्धारण, जिसमें मनुष्य की निजी क्षमता तथा कुशलता का विचार किए बिना ही माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार गर्भधारण के समय ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।

4. जाति-प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान लिया जाए, तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है, क्योंकि यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है। कुशल व्यक्ति या सक्षम श्रमिक समाज का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें, जिससे वह अपना पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके। इस सिद्धांत के विपरीत जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा निजी क्षमता का विचार किए बिना दूसरे की दृष्टिकोण जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार, पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. जाति-प्रथा श्रम विभाजन का स्वाभाविक विभाजन क्यों नहीं है?
2. सक्षम-श्रमिक-समाज का निर्माण करने के लिए क्या आवश्यक है?
3. जाति-प्रथा का दूषित सिद्धांत क्या है? स्पष्ट कीजिए।
4. क्या आपके विचार से जाति-प्रथा के आधार पर श्रम विभाजन होना चाहिए ? क्यों?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक एवं पाठ का नाम लिखिए।
उत्तर
1. जाति-प्रथा श्रम-विभाजन का स्वाभाविक विभाजन इसलिए नहीं है क्योंकि यह विभाजन मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है।
2. का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यक्तियों की क्षमता इस सीमा तक विकसित करें जिससे वह अपना पेशा या कार्य का चुनाव स्वयं कर सके।
3. जाति-प्रथा का दृषित सिद्धांत यह है कि इससे मनुष्य के प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी क्षमता का विचार किए बिना माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार गर्भ धारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है।
4. नहीं, हमारे विचार से जाति-प्रथा के आधार पर बम विभाजन नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे मनुष्य की व्यक्तिगत रुचि, क्षमता एवं भावनाओं का ह्रास होता है।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक बाबा भीमराव आंबेडकर तथा पाठ का नाम ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ है।

5. किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के विधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह – भाईचारे का यही वास्तविक रूप है और इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम लिखिए।
2. एक आदर्श समाज में कितनी गतिशीलता होनी चाहिए?
3. एक आदर्श समाज में मनुष्य की क्या भूमिका है?
4. लेखक के अनुसार आदर्श समाज में क्या वांछनीय है?
5. लेखक के अनुसार लोकतंत्र क्या है?
उल्लर
1. इस गद्यांश के लेखक बाबा साहिब भीमराव आंबेडकर है तथा इसके पाठ का नाम ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’ है।
2. एक आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके।
3. एक आदर्श समाज के बहुविधि हितों में प्रत्येक मनुष्य का भाग होना चाहिए तथा प्रत्येक मनुष्य को उसकी रक्षा के लिए सजग रहना चाहिए। मनुष्य को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
4. लेखक के अनुसार आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचारित हो सके। समाज में बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उसकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन तथा अवसर उपलब्ध रहने चाहिए।
5. लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति नहीं है बल्कि लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्चा की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है।

6. ‘समता’ का औचित्य यहीं पर समाप्त नहीं होता। इसका और भी आधार उपलब्ध है। एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय, राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी ही होती है, जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के आधार पर वांछित अलग-अलग व्यवहार कर सके।

वैसे भी आवश्यकताओं व क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक व औचित्यपूर्ण क्यों न हो, ‘मानवता’ के दृष्टिकोण से समाज को दो वर्गों व श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता। ऐसी स्थिति में राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। राजनीतिज्ञ यह व्यवहार इसलिए नहीं करता कि सब लोग समान होते हैं, बल्कि इसलिए कि वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण संभव नहीं होता है।

इस प्रकार ‘समता’ यद्यपि काल्पनिक जगत की वस्तु है, फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए, उसके लिए यही मार्ग भी रहता है, क्योंकि यही व्यावहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है। (C.B.S.E. Model Q.Paper 2008)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. एक राजनीतिज्ञ का किससे पाला पड़ता है?
2. एक राजनीतिज्ञ जनता के प्रत्येक व्यक्ति से अलग-अलग व्यवहार क्यों नहीं कर सकता है?
3. किसके दृष्टिकोण से समाज को दो वर्गों में नहीं बाँटा जा सकता?
4. समता एक राजनीतिज्ञ के लिए क्या है? 5. समता क्या है?
उत्तर
1. एक राजनीतिज्ञ का समाज की बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है।
2. एक राजनीतिज्ञ जनता के प्रत्येक व्यक्ति से अलग-अलग व्यवहार इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि राजनीतिज्ञ के पास न तो ज्यादा समय
होता है और न ही प्रत्येक व्यक्ति के बारे में कोई अधिक जानकारी होती है।
3. मानवता के दृष्टिकोण से समाज को दो वर्गों में नहीं बाँटा जा सकता।
4. समता एक राजनीतिज्ञ के लिए उत्तम साधन है। यह उसके लिए व्यावहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।
5. समता काल्पनिक जगत की वस्तु है।

 

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

शिरीष के फूल Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 17

प्रश्न 1.
‘शिरीष के फूल’ निबंध का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिरीष के फूल निबंध की मूल चेतना को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध शिरीष के फूल’ विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी जीवन की प्रेरणा और मजबूत इच्छा-शक्ति का परिचायक है। मानव को सुख-दुःख, आशा-निराशा, राग-विराग, प्रेम-विरह आदि परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। लेकिन सुखपूर्वक वही व्यक्ति जीता है जो इन परिस्थितियों से अनासक्त रहकर संघर्ष करता है, वही शिरीष के फूल की भांति जीवनयापन कर सकता है। जिस मनुष्य में इच्छा-शक्ति कमजोर होती है वह अधिक देर तक नहीं चल सकता। कठोर परिस्थितियाँ उसे अपने अंदर समेट लेती हैं।

जेठ मास की भयंकर गर्मी में भी शिरीष का फूल हरी-भरी पत्तियों से युक्त सघन छाया देता है। चारों ओर अपने सौंदर्य को बिखेरता रहता है। यह कालजयी अवधूत की तरह जीवन की अजेयता का संदेश देकर जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। वह बताता है कि कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनासक्त भाव से जीवन जीया जा सकता है बशर्ते जीने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। कबीरदास और कालिदास संसार के अवधूत रहे हैं जिन्होंने अपने आप जीने की राह बनाई। शिरीष के फूल की तरह प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए संसार को जीवन की प्रेरणा प्रदान की।

लेखक कहता है कि शिरीष के फूल जहाँ बहुत कोमल होते हैं वहाँ उसके फल बहुत कठोर होते हैं। वे वसंत आने पर भी नहीं झड़ते बल्कि शाखाओं पर ही वसंती हवा में खड़-खड़ की ध्वनि करते रहते हैं। वे उन बूढ़े नेताओं की याद दिलाते हैं जो अपना पद छोड़ने को तब तक तैयार नहीं होते जब तक नई पीढ़ी के लोग उन्हें धक्का मारकर पीछे नहीं धकेल देते। लेखक ने इसके माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी स्थिति और अवस्था को समझना चाहिए। पुराने पत्ते झड़ जाने पर ही नए पत्तों को जगह मिलती है।

संसार में बुढ़ापा और मृत्यु शाश्वत है। फिर यहाँ टिके रहने की कामना व्यर्थ है। यमराज को कोई धोखा नहीं दे सकता। लेखक ने मनुष्य को शिरीष के फूल के माध्यम से प्रेरणा दी है कि सुख-दुःख में कभी हार नहीं माननी चाहिए। शिरीष जैसे वायुमंडल से ही जीवन-रस प्राप्त करता है उसी प्रकार महात्मा गांधी ने भी अपने वातावरण से जीवन-रस प्राप्त किया था।

जो अनासक्त योगी की तरह कार्य करता है उसे ही जीवन में आगे बढ़ने की क्षमता प्राप्त होती है। कालिदास की सौंदर्य-चेतना, कबीरदास की फक्कड़ अनासक्त मस्ती, सुमित्रानंदन पंत की अनासक्ति और गांधी जी की कोमलता-कठोरता शिरीष के फूल के समान ही है। महान वही बनता है जो प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष कर उसे अपने अनुकूल बनाने की शक्ति रखता हो। परिस्थितियों से हार मानने वाला जीवन-राह में ही नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 2.
‘शिरीष के फूल’ निबंध की भाषा-शैली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
शिरीष के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध ललित निबंध है। यह निबंध भाषा-शैली की दृष्टि से भी अत्यंत उच्च है। द्विवेदी जी ने इस निबंध में खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग किया है। यह भाषा अत्यंत सरल, सरस व भावानुकूल है। इनकी भाषा भावों को व्यक्त करने में पूर्ण समर्थ है। इसमें एक ओर जहाँ तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है वहाँ दूसरी ओर तद्भव, अरबी-फ़ारसी-उर्दू, साधारण बोलचाल की भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। लेखक का वाक्य-विन्यास भावानुकूल एवं विषयानुकूल है। सरल वाक्यों के साथ

गंभीर विषय को स्पष्ट करने हेतु जटिल वाक्यों का भी प्रयोग किया है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता एवं प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। इन्होंने हिम्मत करना, दहक उठना, आँख बचाना, दमक उठना, न उधो का लेना न माधो का देना आदि मुहावरे और लोकोक्तियों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया है। इन्होंने मुख्यतः विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसके साथ विचारात्मक, भावात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैलियों का भी समायोजन है। इनकी शैली अत्यंत प्रौढ़ एवं व्यवस्थित है।

प्रश्न 3.
लेखक जहाँ बैठकर लिख रहा था उसके आस-पास का दृश्य कैसा था?
उत्तर
लेखक जहाँ बैठकर लिख रहा था उसके आगे-पीछे, दाएं-बाएँ शिरीष के अनेक बड़े-बड़े पेड़ थे, जो जेठ की जलती दोपहरी में भी फूलों से लदे हुए सुगंध और छाया प्रदान कर रहे थे।

प्रश्न 4.
गर्मियों में फूलने वाले किन पेड़ों की गणना लेखक ने की है?
उत्तर
शिरीष के साथ लेखक ने कर्णिकार (कनेर) और आरम्वध (अमलतास) के पेड़ों की गणना की है। इनमें से कनेर के पेड़ बड़े छायादार होते ही नहीं और अमलतास पंद्रह-बीस दिन के लिए अपने पीले फूलों की शोभा बिखराते है और फिर फूलों से रहित हो जाते हैं। वे तो क्षणजीवी माने जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
शिरीष के फलों की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर
शिरीष के पेड़ों पर फूल वसंत मास में आने शुरू हो जाते हैं और आषाढ़ तक फूले रहते हैं। कभी-कभी तो भादों तक उनकी डालियाँ फूलों से लदी रहती हैं और उनकी मंद-मंद गंध वातावरण को सुवासित बनाए रखती है।

प्रश्न 6.
लेखक ने किसे और क्यों कहा है कि ऐसे दमदारों से तो लंड्रे भले’?
लेखक ने पलाश के पेड़ के लिए कहा है कि वे दस दिन फूलकर फिर खंखड़ के खंखड़ रह जाते हैं-इसका क्या लाभ ?
उत्तर
जिसके पास जो गुण है वे देर तक रहने चाहिए या वे होने ही नहीं चाहिए। कोई दुमदार सुंदर पक्षी पंख प्राप्त कर कुछ दिन अपनी शोभा दिखाता है; नाचता है। आकृष्ट करता है और फिर उसके पंख झड़ जाते हैं, वह पूँछ कटा हो जाता है तो उसका क्या लाभ ? यदि कोई पंखहीन है तो वह ऐसा ही है। कम-से-कम उसे कुरूपता तो नहीं झेलनी पड़ती।

प्रश्न 7.
अन्य वृक्षों की अपेक्षा शिरीष के वृक्षों में कौन-सी विशेषता विद्यमान होती है?
उत्तर
शिरीष के पेड़ वसंत और फागुन के रसीले महीनों में प्रकृति से स्वाभाविक रूप से रस प्राप्त करता है, पर जला-मुलसा देने वाली गरमी में इसकी मजबूती और सहनशक्ति का परिचय मिलता है जब ये सूर्य की प्रचंड गर्मी का सामना करते हुए अलसाती लू में भी लहलहाता रहता है। सबको शीतलता प्रदान करता है। यह विपरीत परिस्थितियों को भी सरलता से खेलने की क्षमता रखता है।

प्रश्न 8.
वात्स्यायन ने कैसे पेड़ों पर झूला लगाने की बात कही है?
उत्तर
वात्स्यायन ने अपनी पुस्तक ‘कामसूत्र’ में कहा है कि घने छायादार वृक्षों पर ही झूले लगाने चाहिए। इस कार्य के लिए बकुल के वृक्ष अधिक उपयोगी रहते हैं।

प्रश्न 9.
पुराने भारत में रईस लोग चारदीवारी के निकट किन छायादार वृक्षों को लगवाया करते थे और क्यों ?
उत्तर
रईस लोग अपने भवनों की चारदीवारी के साथ घने, बड़े और छायादार वृक्ष लगवाया करते थे। शिरीष, अशोक, अरिष्ट, पुन्नाग आदि अपनी घनी छाया और हरेपन में अत्यंत मनोहर प्रतीत होते होंगे, इसी कारण वे इनको प्राथमिकता देते थे।

प्रश्न 10.
लेखक ने मोटे और भारी शरीर वाले राजाओं पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर
वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र में बकुल की मजबूत डालियों पर झूला डालने का परामर्श दिया था। लेखक का मानना है कि शिरीष की डालियाँ चाहे कुछ कमजोर होती हैं पर वे आसानी से झूलने वाली कोमल और नाजुक युवतियों का भार तो संभाल ही सकती हैं। यदि मोटे और भारी शरीर वाले राजाओं को भी झूला झूलना हो तो वे चाहें तो अपने लिए लोहे के पेड़ लगवा लें।

प्रश्न 11.
शिरीष के फूलों की कोमलता के विषय में संस्कृत साहित्य में क्या माना जाता रहा है?
उत्तर
शिरीष के फूलों की कोमलता के विषय में कहा गया है कि ये केवल भंवरों के पैरों का कोमल दबाव ही झेल सकते हैं, पक्षियों का बिल्कुल नहीं।

प्रश्न 12.
लेखक ने शिरीष के पुराने फलों पर क्या टिप्पणी की है?
उत्तर
शिरीष के पुराने फल लंबी-लंबी फलियों में बंद होकर महीनों तक वृक्ष की शाखाओं से लटके रहते हैं। उसके फूल सूख जाते हैं, पत्ते झड़ जाते हैं, पर वे देश के ढीठ नेताओं की तरह अपनी जगह छोड़ने को तैयार ही नहीं होते। जब नए पत्ते, फल-फूल आते हैं तो वे उन्हें धक्का मार कर नीचे फेंकते हैं तभी वो पेड़ का पीछा छोड़ते हैं। यह उनकी बूढ़े नेताओं की तरह कुर्सी पर जमे रहने की बुरी आदत है।

प्रश्न 13.
लेखक देश के राजनेताओं से क्या अपेक्षा रखता है?
उत्तर
लेखक चाहता है कि देश के राजनेता समय पर अपनी गद्दी और राजनीति को छोड़ दें। वे अपने से अगली पीढ़ी को समय से स्थान दें जिससे उन्हें भी अपनी क्षमता और कौशल दिखाने का भरपूर अवसर और समय मिल सके।

प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार महाकाल देवता के कोड़ों की मार से कौन बच सकता है?
उत्तर
लेखक के अनुसार जो लोग ऊर्ध्वमुखी होते हैं, ऊपर की ओर बढ़ते हैं वे ही महाकाल देवता के कोड़ों की मार से बच सकते हैं। मानव को अपने जीवन में सही मार्ग पर ही आगे बढ़ना चाहिए। जो मूर्ख यहाँ बने रहना चाहते हैं; कालदेवता से आँख बचाना चाहते हैं वही उनकी मार खाते हैं।

प्रश्न 15.
लेखक ने शिरीष को अद्भुत अवधूत क्यों माना है?
उत्तर
शिरीष ऐसा अद्भुत अवधूत है जो किसी से हार ही नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान गर्मी से जल रहे होते हैं तब भी शिरीष का वृक्ष न जाने कहाँ से रस खींच कर हरा-भरा लहलहाता रहता है और आठों याम मस्ती में झूमता रहता है।

प्रश्न 16.
कर्णाट-राज की प्रिया विजिका देवी ने गर्वपूर्ण ढंग से क्या कहा था?
उत्तर
कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने कहा था कि एक कवि ब्रह्मा थे, दूसरे वाल्मीकि और तीसरे व्यास। एक ने वेदों को प्रदान किया, दूसरे ने रामायण दी और तीसरे ने महाभारत प्रदान की। इनके अतिरिक्त यदि कोई और कवि होने का दावा करता है तो मैं उसके सिर पर अपना बायाँ चरण रखती हूँ।

प्रश्न 17.
राजा दुष्यंत शकुंतला के चित्र को बनाते समय क्या बनाना भूल गए थे?
उत्तर
राजा दुष्यंत शकुंतला के कानों पर शिरीष पुष्प बनाना भूल गए थे जिसके केसर गंडस्थल तक लटके हुए थे। साथ ही वे शरद ऋतु के चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार बनाना भी भूल गए थे।

प्रश्न 18.
किसी सामान्य कवि और कालिदास में क्या अंतर था?
उत्तर
सामान्य कवि भावों की गहराई में गए बिना ही छंद, अलंकार, तुक, शब्द, लय आदि में डूबकर रह जाता है, जबकि कालिदास काव्य-रचना करते समय पूरी तरह से अनासक्त रहते थे। वे वास्तव में ही स्थिरप्रज्ञ थे।

प्रश्न 19.
लेखक ने गांधी और शिरीष की आपस में तुलना क्यों की है? (C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I, Set-II, Set-III)
उत्तर
शिरीष विपरीत स्थितियों में भी डटकर कष्टों को झेलता है और सभी को छाया और सुगंध प्रदान करता है। प्रचंड लू भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। महात्मा गांधी भी अंग्रेजी शासनकाल की खून-खच्चर भरी राजनीति में अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से अहिंसा और उदारता का पाठ देशवासियों को पढ़ाते रहे जिसके परिणामस्वरूप देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इसी कारण लेखक ने दोनों की तुलना की है।

प्रश्न 20.
लेखक ने कालिदास और कबीर को क्या माना है?
उत्तर
लेखक ने कालिदास को अनासक्त योगी माना है। कबीर को शिरीष की तरह मस्त, बेपरवाह पर सरस और मादक माना है।

प्रश्न 21.
हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की अधिकार लिप्सा पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की लिप्सा पर कटु व्यंग्य किया है। उनका कथन है कि जो संसार में आया है उसका जाना निश्चित है। जन्म-मृत्यु जीवन के शाश्वत सत्य हैं। समय परिवर्तनशील है जो सबको मिटा देता है। इस पर भी नेताओं और पुराने व्यक्तियों की अधिकार लिप्सा शांत नहीं होती। न जाने वे अपने अधिकारों पर ही क्यों जमे रहना चाहते हैं। वे समय रहते सावधान क्यों नहीं हो जाते। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि बुढ़ापा और मृत्यु इस संसार के शाश्वत सत्य हैं जो एक दिन सबको आना है। इसलिए नेता और पुराने व्यक्ति भी इस समय से बच नहीं सकते।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. फूल है शिरीष । वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक जो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्घात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजई अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

पर
1. गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
2. वह कौन-सा फूल है जो अत्यधिक गर्मी में भी खिला-फूला रहता है।
3. लेखक ने किसको कालजई अवधूत की संज्ञा दी है और क्यों?
4. शिरीष के फूल का परिचय दीजिए।
5. शिरीष का फूल अपने जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार कैसे करता है?
उत्तर
1. गद्यांश के पाठ का नाम ‘शिरीष के फूल’ तथा लेखक का नाम हजारी प्रसाद द्विवेदी है।
2. वह शिरीष का फूल है जो अत्यधिक गर्मी व लू में भी खिला रहता है।
3. लेखक ने शिरीष के फूल को कालजई अवधूत की संज्ञा दी है क्योंकि यह अकेला फूल ही ऐसा है जो भयंकर गर्मी की तपन में भी खिला रहता है। जिस भयंकर गर्मी में अन्य समस्त फूल सूख जाते हैं उसमें यह शिरीष गर्मी से संघर्ष करता हुआ खिला रहता है।
4. शिरीष का फूल वसंत के आगमन के साथ ही लहक उठता है। यह आषाढ़ तक निश्चित रूप से मस्त बना रहता है और भादों में भी निर्धात फूला रहता है। भयंकर गर्मी जिसमें प्राण उबलने लगते हैं उसमें भी यह खिला रहता है।
5. भादों मास की भयंकर लू तथा उमस से जब प्राण उबलने लगते हैं, हृदय सूख जाता है। इस भयंकर गर्मी में अन्य सभी पेड़-पौधे झुलस उठते हैं लेकिन अकेला शिरीष का फूल ही ऐसा है जो इस लू में भी खिलता रहता है। वह भयंकर लू से संघर्ष करता हुआ निरंतर महकता रहता है। इस प्रकार शिरीष का फूल अपने जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है।

2. यद्यपि पुराने कवि बकुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे, पर शिरीष भी क्या बुरा है। डाल इसकी अपेक्षाकृत कमज़ोर ज़रूर होती है, पर उसमें झूलने वालियों का वजन भी तो बहुत ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वजन का एकदम ख्याल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कह रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. पुराने कवि बकुल के पेड़ में कैसी दोलाओं में लगा देखना चाहते थे?
2. लेखक कवियों की कौन-सी बुरी आदत मानता है?
3. लेखक के अनुसार कौन-से लोग लोहे के पेड़ बनवा सकते हैं?
4. लेखक शिरीष की डोल पर किनके झलने की कल्पना करता है?
उन्ता
1. पुराने कवि बकुल की डालियों पर दोलाओं (झूलों) को लगा देखना चाहते थे जिन पर महिलाएं झुलती थीं।
2. लेखक कवियों की यह बुरी आदत मानता है कि वे वजन का एकदम ख्याल नहीं करते थे।
3. लेखक के अनुसार तुंदिल नरपति अर्थात बड़े लोग लोहे के पेड़ बनवा सकते हैं।
4. लेखक शिरीष की डाल पर कोमल शाखाओं रूपी नायिकाओं के झूलने की कल्पना करता है।

3. वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. वसंत के आगमन पर वनस्पति कैसी होती है?
2. वसंत के आने पर शिरीष पर क्या प्रभाव पड़ता है?
3. शिरीष के पुराने फलों को खड़खड़ाते देखकर लेखक को किनकी याद आती है?
4. इस गद्यांश में लेखक कैसे नेताओं पर व्यंग्य करता है?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर
1. वसंत के आगमन पर वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है।
2. वसंत के आने पर शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।
3. लेखक को शिरीष के पुराने फलों को खड़खड़ाते देखकर उन नेताओं की याद आती है जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते।
4. इस गद्यांश में लेखक उन नेताओं पर व्यंग्य करता हैं जो किसी तरह जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी है।

4. मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मोहर लगाई थी-‘धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना !'(A.I. C.B.S.E. 2014, Set-I, II, III)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. यहाँ लेखक किससे सावधान हो जाने की बात कहता है?
2. जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य क्या हैं?
3. तुलसीदास ने अफसोस के साथ किस सच्चाई पर मोहर लगाई थी?
4. पुराने की अधिकार-लिप्सा के माध्यम से लेखक ने किन पर व्यंग्य किया है?
उत्तर
1. यहाँ लेखक उन पुराने नेताओं को सावधान हो जाने की बात कहता है जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नए नेता उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
2. जरा और मृत्यु जगत के अतिप्रामाणिक तथा अतिपरिचित सत्य हैं। ये वे सत्य हैं जो अटल हैं जिनसे कोई भी मुख नहीं मोड़ सकता।
3. बुढ़ापा और मृत्यु संसार के अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी। उन्होंने कहा था-धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताया।
4. पुराने की अधिकार-लिप्सा के माध्यम से लेखक ने उन पुराने नेताओं पर व्यंग्य किया है जो ज़माने का रुख नहीं पहचानते। जो सदैव अपनी सत्ता कायम रखना चाहते हैं और जब तक नए नेता उन्हें धक्का मारकर राजनीति से निकाल नहीं देते तब तक वे जमे रहते हैं।

5. अवधूतों के मुंह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवा, पर सरस और मादक। कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी प्रकार के अनासक्त अनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. यह गद्यांश किस लेखक द्वारा रचित है तथा इसके पाठ का नाम लिखिए।
2. संसार की सबसे सरस रचनाएँ किनके मुख से निकली हैं?
3. लेखक ने शिरीष की तुलना किससे की है? क्यों?
4. लेखक के अनुसार सच्चा कवि कौन है?

1. यह गद्यांश ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी’ द्वारा रचित है तथा इसके पाठ का नाम ‘शिरीष के फूल’ है।
2. संसार की सबसे सरस रचनाएँ अवधूतों के मुख से निकली हैं।
3. लेखक ने शिरीष की तुलना कबीरदास जी से की है क्योंकि संत कबीर बहुत कुछ शिरीष के फूल के समान ही थे। वे मस्त और बेपरवाह थे लेकिन इसके साथ-साथ वे सरस एवं मादक भी थे।
4. लेखक के अनुसार सच्चा कवि वह है जो अनासक्त रहे और फक्कड़पन में जीवन व्यतीत करे। जो अनासक्त नहीं रह सकता तथा फक्कड़ नहीं बन सकता, लेखक उसे कवि नहीं मानता।

6. शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब तब हूक उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है ! (C.B.S.E. 2011, Set-1)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. शिरीष कहाँ से रस खींचता है? वह रस खींचकर कैसा प्रतीत होता है?
2. शिरीष की तुलना किससे की गई है?
3. लेखक किस अवधूत की बात कर रहे हैं?
4. लेखक शिरीष और गांधी जी में क्या समानता देखता है ? स्पष्ट कीजिए।
उन्ना
1. शिरीष वायुमंडल से रस खींचता है। वह वायुमंडल से रस खींचकर कोमल और कठोर प्रतीत होता है।
2. शिरीष की तुलना गांधी जी से की गई है।
3. लेखक सत्य और अहिंसा के पुजारी ‘महात्मा गांधी जी की बात कर रहा है।
4. लेखक मानता है कि शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर गांधी जी के समान कोमल और कठोर है। जिस प्रकार गांधी जी अंदर से तो बहुत कोमल थे; किसी के दुख को देखकर तुरंत ही रो पड़ते थे और बाहर से बहुत ज्यादा कठोर थे, ठीक वैसे ही शिरीष भी अंदर से कोमल तथा बाहर से कठोर प्रतीत होता है।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 16 नमक

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 16 नमक. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

नमक Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 16

प्रश्न 1.
क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते? ऐसा क्यों कहा:गया है?
उत्तर
ऐसा इसलिए कहा गया है कि आज के युग में कानून केवल हुकूमत के लाभ हेतु बनाए जाते हैं, सामान्य जनता के लिए नहीं। हुकूमत के लिए सरहदों के इस पार या उस पार सामान के लाने या ले जाने पर कोई पाबंदी नहीं। वह जब चाहे कुछ भी इधर से उधर ले जा सकती है, लेकिन सामान्य जनता को अनेक कस्टम से होकर गुजरना पड़ता है। वही सामान सामान्य व्यक्ति के लिए गैर-कानूनी माना जाता है। कहने का आशय यह है कि कानूनों से अलग भी एक दुनिया रोती है, जिसमें मुहब्बत, मुरौवत और इंसानियत शामिल है। यह दनिया हकमत के कानून से ऊपर मानी जाती है।

प्रश्न 2.
भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर
सफ़िया को अगले दिन पाकिस्तान से रवाना होना था, इसलिए उसने रात में सारा सामान बाँध लिया। केवल कीनू की टोकरी और एक नमक की पुड़िया ही शेष रह गई थी। अब यह इसी द्वंद्व में थी कि इस नमक की पुड़िया को किसमें और कहाँ रखकर ले जाए जिससे यह कस्टम अधिकारियों की आँखों से बच सके। वह अधिक भावुक होकर इस प्रकार बार-बार चिंतन कर रही थी। लेकिन अब वह निर्णय पर पहुंच चुकी थी कि इसे कहाँ रखकर ले जाऊँगी। इसीलिए ऐसा कहा गया है कि भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी।

प्रश्न 3.
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है? ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है, ऐसा इसलिए कहा गया है कि कस्टम पर भारत और पाकिस्तान दोनों वतन के लोग हैं। कोई विस्थापित होकर इधर आया है तो कोई उधर गया है लेकिन आज तक भी वे अपने वतन से मुहब्बत करते हैं, इसलिए जब भी कोई हमवतन कोई गैर-कानूनी सामान भी लेकर आता है तो उसे अपने वतन से मुहब्बत के कारण भावनात्मक रूप से छोड़ दिया जाता है। इन्हीं भावनाओं के बल पर व्यक्ति कस्टम से इधर-उधर गुजर जाता है।

प्रश्न 4.
हमारी जमीन, हमारे पानी का मज़ा ही कुछ और है-ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर
मनुष्य का स्वाभाविक गुण है कि वह अपनी जन्मभूमि से आजीवन जुड़ा रहता है। उसे अपनी जमीन अन्य स्थलों की अपेक्षा अधिक
प्यारी लगती है। वह भावनात्मक रूप से उसके साथ रहता है। उसकी प्रत्येक वस्तु से उसका गहन लगाव होता है, इसलिए ऐसा कहा गया है कि हमारी जमीन, हमारे पानी का मजा कुछ और ही है।

प्रश्न 5.
फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं। इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इस पंक्ति का आशय यह है कि जब सफ़िया सिख बीबी को पूछती है कि आपको हिंदुस्तान आए कितने वर्ष हो गए तो सिख बीबी उसे बताती है कि वे तब आए थे जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान विभाजन हुआ था। वह आज भी अपना वतन लाहौर मानती है। इसलिए अपने वतन तथा जन्मभूमि को याद करके सिख बीबी की आँखों से कुछ आँसू सितारों की भाँति टूटकर उसके सफेद आँचल में समा जाते हैं। वह विस्थापन को याद करके फूट-फूटकर रोने लगती है।

प्रश्न 6.
आशय स्पष्ट कीजिए:- “किसका वतन कहाँ है-वह जो कस्टम के इस तरफ़ है या उस तरफ़?”
उत्तर
प्रस्तुत पंक्ति से आशय है कि सफ़िया नमक की पुड़िया लेकर पाकिस्तान से कस्टम से होकर हिंदुस्तान के कस्टम तक आई। दोनों कस्टम से वह भावनात्मक रूप से बच गई। अमृतसर आकर जब वह पुल पर चढ़ रही थी उस समय पुल के पास कस्टम वाले सिर झुकाए खड़े थे तो उस समय वह सोच रही थी कि किसका वतन कहाँ है-वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ।

प्रश्न 7.
सफ़िया सिख बीबी को देखकर हैरान क्यों रह गई थी?
उत्तर
सफ़िया को सिख बीबी बिल्कुल अपनी माँ जैसी ही प्रतीत हुई थी। उसका शरीर भी भारी-भरकम था, वैसी ही छोटी-छोटी चमकदार आँखें थीं जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगाती थी। उसने वैसा ही मलमल का सफ़ेद दुपट्टा ओढ़ा हआ था जैसा उसकी माँ महर्रम में ओढ़ा करती थी।

प्रश्न 8.
औरत सफ़िया के पास क्यों आ बैठी थी? उसने क्या बताया था?
उत्तर
जब सफ़िया ने उसकी ओर कई बार प्रेम से देखा तो वह उसके पास आ बैठी थी और जब उसे यह पता लगा कि वह लाहौर जा रही थी तो उसने लाहौर शहर की प्रशंसा करते हुए कहा था कि वह बहुत प्यारा शहर है। वहाँ के लोग बहुत खूबसूरत होते हैं जो अच्छा खाने, नफ़ीस कपड़ों, सैर-सपाटे के रसिया और जिंदादिली की तस्वीर होते हैं।

प्रश्न 9.
सिख बीबी क्या हिंदुस्तान में बसने के बाद प्रसन्न थी? कैसे?
उत्तर
सिख बीबी तब हिंदुस्तान में आई थी जब विभाजन के बाद उसे लाहौर छोड़ना पड़ा था। अब उनके परिवार का अच्छा व्यापार है, कोठी है, वह प्रसन्न है पर उसका दिल तो अभी भी लाहौर में ही बसता है। उसे याद कर उसकी आँखों से आँसू की बूंदें अभी भी टपक ही पड़ती हैं।

प्रश्न 10.
सफ़िया के भाई ने साहित्यकारों के विषय में क्या कहा था? क्यों?
उत्तर
सफ़िया के भाई ने साहित्यकारों के विषय में कहा था कि उनका दिमाग थोड़ा-सा अवश्य ही घुमा हुआ होता है, वे सामान्य नहीं होते। ऐसा उसने इसलिए कहा था कि सफ़िया लाहौर से थोड़ा-सा नमक हिंदुस्तान लाना चाहती थी। वह इस गैर-कानूनी काम को सब को बताकर, दिखाकर करना चाहती थी।

प्रश्न 11.
कस्टम अधिकारी ने सफ़िया से क्या कहा था?
उत्तर
कस्टम अधिकारी ने सफ़िया के बैग में नमक रखते हुए कहा था कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को उसका सलाम कहना और उस सिख बीबी को नमक देते हुए कहना कि लाहौर अभी तक उनका वतन था और दिल्ली उसका। शेष सब धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा।

प्रश्न 12.
कहानी के आधार पर सफ़िया के भाई की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सफ़िया का भाई पुलिस अधिकारी था जो पाकिस्तान में कार्यरत था। उसके मन में हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच का भेदभाव स्पष्ट रूप से बहुत बड़ा था। वह लाहौरी नमक को किसी भी अवस्था में हिंदुस्तान ले जाने के पक्ष में नहीं था और उसने ऐसा करना और-कानूनी माना था। स्वयं संवेदना शून्य होने के कारण वह कस्टम अधिकारियों को भी अपने जैसा ही समझता है और अपनी बहन को नमक न ले जाने की सलाह देता है।

प्रश्न 13.
‘नमक’ कहानी की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए। (Outside Delhi 2017, Set-II)
अथवा
नमक कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए। (C.B.S.E. 2018)
उत्तर
‘नमक’ भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ से विस्थापित लोगों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। इसमें लेखिका ने चित्रित किया है कि एक लकीर खींच देने से जमीन और जनता को कागजी रूप से तो विभाजित किया जा सकता है किंतु वास्तविक रूप में नहीं। यह सत्य है कि जमीन को चाहकर भी नहीं बाँटा जा सकता और न ही कोई जनता की भावनाओं को दबा सकता है।

विस्थापित होकर आई सिख बीवी आज भी लाहौर को ही अपना वतन मानती है और यही कारण है कि वह सौगात के तौर पर लाहौरी नमक मंगवाना चाहती है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी भी यही कहता है कि दिल्ली मेरा वतन है। जब साफीया पाकिस्तान से नमक लेकर चली तो कस्टम अधिकारी ने कहा था कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. “हाँ बेटी ! जब हिंदुस्तान बना था तभी आए थे। वैसे तो अब यहाँ भी कोठी बन गई है। बिजनेस है, सब ठीक ही है, पर लाहौर याद आता है। हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।” फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं। बात आगे चल पड़ती, मगर घूम-फिरकर फिर उसी जगह पर आ जाती-‘साडा लाहौर’!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश की लेखिका तथा पाठ का नाम लिखिए।
2. ‘हाँ बेटी’ ! जब हिंदुस्तान बना था तभी आए थे’ यह बात कौन किससे कहता है?
3. सिख बीबी की आँखों में आँसू क्यों आ गए हैं?
4. सिख बीबी सफ़िया से बातें करते हुए घूम-फिरकर कहाँ आ जाती थी?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश की लेखिका रजिया सज्जाद जहीर हैं तथा पाठ का नाम ‘नमक’ है।
2. यह बात सिख बीबी सफ़िया से कहती हैं।
3. जब सफ़िया ने सिख बीबी से पूछा कि उन्हें हिंदुस्तान आए कितने दिन हो गए तो सिख बीबी को फिर से अपने वतन की याद आ गई। अपने वतन लाहौर तथा अपने बचपन को याद करते ही सिख बीबी की आँखों में आँसू आ गए।
4. जब सफ़िया सिख बीबी से बातें कर रही थी तो सिख बीबी बार-बार बातें करते हुए घूम-फिरकर अपने वतन की बातें करने लगती थीं। वह बार-बार यही कहती थी कि ‘साडा लाहौर।’

2. एक बार झाँककर उसने पुड़िया को देखा और उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसने अपनी किसी प्यारे को कब्र की गहराई में उतार दिया हो ! कुछ देर उकडूं बैठी वह पुड़िया को तकती रही और उन कहानियों को याद करती रही जिन्हें वह अपने बचपन में अम्मा से सुना करती थी, जिनमें शहजादा अपनी रान चीरकर हीरा छिपा लेता था और देवों, खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के सामने से होता हुआ सरहदों से गुजर जाता था। इस जमाने में ऐसी कोई तरकीब नहीं हो सकती थी वरना वह अपना दिल चीरकर उसमें यह नमक छिपा लेती। उसने एक आह भरी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. एक बार झाँककर किसने और कहाँ देखा?
2. सफ़िया की टोकरी में कौन-से फल थे? उसने उसे क्यों खाली कर दिया?
3. सफ़िया ने जब टोकरी में पुड़िया झाँककर देखा तो उसे कैसा महसूस हुआ?
4. पुड़िया को टोकरी में देखकर सफ़िया को कौन-सी कहानियाँ याद हो आई?
उत्तर
1. एक बार झाँककर सफ़िया ने अपनी खाली टोकरी में देखा।
2. सफ़िया की टोकरी में किनु के फल थे। उसने अपनी टोकरी इसलिए खाली कर दी क्योंकि वह उसमें एक नमक की पुड़िया छिपाकर हिंदुस्तान लाना चाहती थी।
3. सफ़िया ने जब टोकरी में पुड़िया को झाँककर देखा तो उसे ऐसा महसूस हुआ, मानो उसने अपने किसी प्यारे को कब्र की गहराई में उतार दिया हो।
4. पुड़िया को टोकरी में देखकर सफ़िया को अपने बचपन की कहानियाँ याद हो आईं जिन्हें उसकी अम्मा सुनाया करती थी। उनमें शहज़ादा अपनी रान चीरकर हीरा छिपा लेता था और देवों, भूतों तथा राक्षसों के सामने होता हुआ सरहदों से गुज़र जाता था।

3. रात को तकरीबन डेढ़ बजे थे। मार्च की सुहानी हवा खिड़की की जाली से आ रही थी। बाहर चाँदनी साफ़ और ठंडी थी। खिड़की के करीब लगा चंपा का एक घना दरख्त सामने की दीवार पर पत्तियों के अक्स लहका रहा था। कभी किसी तरफ से किसी की दबी हुई खाँसी की आहट, दूर से किसी कुत्ते के भौंकने या रोने की आवाज़, चौकीदार की सीटी और फिर सन्नाटा ! यह पाकिस्तान था।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश की लेखिका तथा पाठ का नाम बताएँ।
2. सफ़िया पाकिस्तान क्या लेने गई थी?
3. रात्रि का वातावरण कैसा था?
4. रात्रि के डेढ़ बजे तक भी सफ़िया क्यों नहीं सो पाई?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश की लेखिका ‘रजिया सज्जाद जहीर’ तथा पाठ का नाम ‘नमक’ है।
2. सफ़िया पाकिस्तान अपने परिवार वालों से मिलने गए थी। यहाँ उसके तीन सगे भाई, अनेक दोस्त तथा भतीजे-भतीजियाँ रहते थे।
3. रात्रि का वातावरण बड़ा मनमोहक था। मार्च की सुहानी हवा चल रही थी। चाँदनी साफ़ और ठंडी थी।
4. सफ़िया को अगले दिन हिंदुस्तान आना था। वह सिख बीबी द्वारा मैंगाए गए नमक की पुड़िया को किसी भी तरह कस्टम वालों से बचाकर लाना चाहती थी। वह डेढ़ बजे तक उसी पुड़िया को छुपाने में लगी रही, इसीलिए वह रात्रि के डेढ़ बजे तक सो नहीं पाई।

4. प्लेटफॉर्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नज़रों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिंचे हुए होंठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बढ़ी। अटारी में पाकिस्तानी पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक ज़बान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही सी थीं जिनमें दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज़ रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. पाकिस्तानी पुलिस रेल से कहाँ उतरी और क्यों?
2. लेखिका की समझ में यह क्यों नहीं आया कि लाहौर कहाँ से खत्म हुआ और अमृतसर कहाँ से शुरू ?
3. सरहद के दोनों ओर क्या समानताएँ थीं?
4. सरहद के दोनों ओर अनेक समानताएँ होने पर भी क्या मुश्किल थी?
उत्तर
1. पाकिस्ताना पुलिस अटारी स्टेशन पर उतरी क्योंकि यहाँ आकर पाकिस्तान की सरहद समाप्त हो गई थी और हिंदुस्तान की सरहद प्रारंभ। यहाँ आकर हिंदुस्तानी पुलिस रेल में सवार हो गई।
2. लेखिका को यह इसलिए समझ नहीं आता था क्योंकि दोनों तरफ एक जैसी ज़मीन थी, एक जैसी जबान, एक-सी सूरतें और लिबास थे, एक जैसा लबोलहजा तथा अंदाज था और गालियाँ भी एक ही सी थीं।
3. सरहद के दोनों ओर एक जैसी जमीन थी, एक जैसी भाषा, एक-सी सूरतें, लिबास, लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही सी थीं।
4. सरहद के दोनों ओर अनेक समानताएँ थीं लेकिन मुश्किल केवल इतनी थी कि सरहद के दोनों ओर तैनात पुलिसवालों के हाथों में भरी हुई बंदूकें थीं।

5. जब सफ़िया की बात खत्म हो गई तब उन्होंने पुड़िया को दोनों हाथों में उठाया, अच्छी तरह लपेटा और खुद सफ़िया के बैग में रख दिया। बैग सफ़िया को देते हुए बोले, “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुज़र जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।” वह चलने लगी तो वे खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ़ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ़्ता-रफ़्ता ठीक हो जाएगा।” (A.I. C.B.S.E. 2016)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. पुड़िया में ऐसा क्या था जो कहानी बन गया? संक्षेप में समझाइए।
2. आशय समझाइए-‘जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा।’
3. ‘बाकी सब रफ़्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा’-पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
4. नमक का लाना-ले जाना प्रतिबंधित होते हुए भी कस्टम अधिकारी ने अनुमत्ति क्यों दे दी? तर्कसम्मत उत्तर दीजिए।
उत्तर
1. पुड़िया में लाहौरी नमक था। जिसे सफ़िया लाहौर से कीनू की टोकरी में छिपाकर लाई।
2. इस पंक्ति का आशय है कि कस्टम अधिकारी ने सफ़िया को नमक की पुड़िया देते हुए कहा था कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहना। यह कस्टम अधिकारी का अपने वतन के प्रति देशभक्ति का प्रतीक है।
3.

  • धीरे-धीरे दोनों देशों के संबंध मधुर बन जाएंगे।
  • लोगों के दिलों की दुरियाँ कम हो जाएँगी।

4. कस्टम अधिकारी ने नमक के पीछे मानवीय भावनाओं तथा देशभक्ति की भावना को समझ लिया था। इसलिए उसने नमक ले जाने दिया।

Class 12 Hindi Important Questions Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 15

प्रश्न 1.
हमारा चेहरा चाली चाली कब हो जाता है? हम किन क्षणों में पलायन के शिकार हो जाते हैं?
उत्तर :
जब हम सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता और पैसे के चरमोत्कर्ष में आईना देखते हैं तो हमारा चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है। हम अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में कायरता और पलायन के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
चार्ली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (A.I. 2016, Set-II) (C.B.S.E. 2011, Set-I. C.B.S.E. Delhi 2017. Set-III)
अथवा
‘अभी चार्ली चैप्लिन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है’- लेखक ने यह बात क्यों और किस संदर्भ में कही है?
उत्तर
चाली दुनिया के महान हास्य अभिनेता और निर्देशक थे। वे एक परित्यक्ता और दसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री के बेटे थे। जब उनकी माँ पागलपन का शिकार हो गई, तब उन्होंने जीवन में बहुत संघर्ष किया। उन्होंने अत्यंत गरीबी में बचपन बिताया। साम्राज्य, पूँजीवाद और सामंतशाही से मगरूर समाज ने इन्हें दुत्कारा; लेकिन इन्होंने जीवन से हार नहीं मानी। चार्ली का बच्चों जैसा दिखना उनकी खास विशेषता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। चार्ली ने न सिर्फ फ़िल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ा। उनके विषय में विश्व भर में बहुत लिखा जा चुका है और अभी बहुत कुछ लिखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
चाली की कौन-कौन सी फ़िल्में उच्चतर अहसास की माँग करती हैं ?
उत्तर
चार्ली की अधिकांश फ़िल्में बुद्धि की अपेक्षा भावनाओं पर टिकी हुई हैं। मैट्रोपोलिस, दी कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कैलिगारी, द रोवंथ सील,लास्ट इयर इन मारिएनबाड, द सैक्रिफाइस जैसी उत्कृष्ट फिल्में उच्चतर अहसास की माँग करती हैं।

प्रश्न 4.
बचपन में जिन घटनाओं ने चार्ली के जीवन पर अधिक असर डाला, उनका चित्रण कीजिए।
उत्तर
चार्ली चैप्लिन एक महान हास्य कलाकार थे। उनका जीवन अत्यंत संघर्षमय रहा। बचपन की दो घटनाओं ने उनके जीवन पर गहन और स्थायी प्रभाव डाला।
(i) एक बार जब वे बीमार थे, तब उनकी माँ ने उन्हें ईसा मसीह का जीवन बाइबिल से पढ़कर सुनाया था। ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रकरण तक आते-आते माँ और चार्ली दोनों रोने लगे।

(ii) बालक चार्ली उन दिनों एक ऐसे घर में रहता था, जहाँ से कसाईखाना दूर नहीं था। वह रोज सैकड़ों जानवरों को वहाँ पर जाते देखता था। एक बार एक भेई किसी तरह जान छुड़ाकर भाग निकली। उसे पकड़ने वाले उसका पीछा करते हुए कई बार फिसले, गिरे और पूरी सड़क पर लोग ठहाके लगाने लगे। आखिरकार उस गरीब जानवर को पकड़ लिया गया और फिर उसे कसाई के पास ले जाने लगे। तब चार्ली को अहसास हुआ कि उस भेड़ के साथ क्या होगा। वह रोता हुआ माँ के पास दौड़ा और कहने लगा, “उसे मार डालेंगे! उसे मार डालेंगे!”

प्रश्न 5.
चार्ली की पहली फ़िल्म कौन-सी थी, जिसने लेखक के द्वारा लिखे जाने वाले निबंध के साथ अपना 75वाँ वर्ष पूरा किया था? चाली की प्रमुख देन क्या है?
उत्तर
चार्ली की पहली फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ है, जिसने लेखक के निबंध ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ के साथ ही अपने 75 वर्ष पूरे किए थे। अपनी कला और हास्य से चाली ने पिछली पाँच पीड़ियों का भरपूर मनोरंजन किया है, उन्हें मुग्ध किया है और जी खोलकर हँसने के लिए विवश किया है।

प्रश्न 6.
विकासशील और विकसित देशों में चाली मरकर भी अभी तक जिंदा कैसे हैं?
उत्तर
चार्ली को दुनिया से गए हुए वर्षों बीत चुके हैं, पर विकासशील और विकसित देशों में वे मरकर भी नहीं मरे/16 अप्रैल सन 1989 को इनके जन्म के एक सौ वर्ष पूरे हो चुके थे, पर इनके नाम और अभिनय कला से अभी भी बच्चा-बच्चा परिचित है। वे आज भी विश्व के करोड़ों बच्चों को हँसा रहे हैं। वे सिनेमा, टेलीविज़न और वीडियो के कारण मरकर भी अभी तक जिंदा हैं।

प्रश्न 7.
चाली के विषय में नई जानकारी किससे प्राप्त हो सकेगी और इस विषय में अभी कितने समय तक कछ कहा जाएगा?
उत्तर
चार्ली के जीवन व कला से जुड़ी कुछ ऐसी फ़िल्में व इस्तेमाल की गई रीलें मिली हैं, जिनके विषय में पहले कोई कुछ नहीं जानता था। उनके बारे में अगले पचास वर्ष तक कुछ न कुछ कहा जाएगा।

प्रश्न 8.
चार्ली की फ़िल्मों के प्रशंसक किस वर्ग के माने जाते हैं?
उत्तर
चार्ली की फ़िल्मों के प्रशंसक पागलखाने के मरीजों व विकल मस्तिष्क वाले लोगों से लेकर आइन्सटीन जैसे महान वैज्ञानिक हैं।

प्रश्न 9.
चार्ली की सबसे बड़ी देन क्या है?
उत्तर
चार्ली ने कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों के वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा है। वे समाज के प्रत्येक स्तर पर पसंद किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
चार्ली को ‘घुमंतू’ और ‘बाहरी’ चरित्र किसने बना दिया था?
उत्तर
चार्ली को उसकी नानी की खानाबदोशी (जिप्सी) और पिता की यहूदी वंशी परंपरा प्राप्त हुई थी, जिसने उसे सदा के लिए ‘बाहरी’ और ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया था।

प्रश्न 11.
चार्ली अपने चरित्र में किस छवि को प्रस्तुत करते रहे और क्यों?
उत्तर
चार्ली अपने चरित्र में खानाबदोश, बद् और अवारागर्द की छवि को प्रस्तुत करते रहे। उन्होंने कभी भी मध्यवर्गी, बुर्जुआ या उच्चवर्गीजीवन-मूल्यों को नहीं अपनाया। शायद इसका कारण उनके अवचेतन में जिप्सी नानी और यहूदीवंशी पिता का प्रभाव रहा था।

प्रश्न 12.
दर्शकों को चाली के चरित्र में सबसे अधिक क्या लुभाता था?
उत्तर
दर्शकों को चाली का हर दसवें सेकंड में स्वयं को किसी-न-किसी मुसीबत में डाल लेना सबसे अधिक लुभाता था। |

प्रश्न 13.
चाली और उसकी माँ ने साहित्य व नाट्य को स्नेह, करुणा और मानवता के समृद्ध विषय कब प्रदान किए थे?
उत्तर
बचपन में जब चाली बीमार पड़े और ओकले स्ट्रीट के तहखाने के धियारे कमरे में उसकी माँ ने ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रकरण को सुनाया था, तो दोनों माँ-बेटा रोने लगे थे। तब उन्होंने साहित्य और नाट्य को स्नेह, करुणा और मानवता के समृद्ध विषय प्रदान किए थे।

प्रश्न 14.
चाली अपनी फ़िल्मों में अपने अभिनय के द्वारा त्रासदी और हास्योत्पादक तत्वों के सामंजस्य को किसके कारण मानते थे?
उत्तर
बालक चाली ने अपने घर के निकट कसाईखाने की ओर एक भेड़ को ले जाते हुए देखा था, जो किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग निकली। उस गरीब जानवर को पकड़ने की कोशिश में लोग कई बार फिसले थे; गिरे थे और सड़क पर लोगों ने उन्हें देखकर ठहाके लगाए

प्रश्न 15.
चाली की रचनाओं से भारतीय काव्य-शास्त्र और सौंदर्यशास्त्र क्या सीख सकता है?
उत्तर
भारतीय काव्य-शास्त्र और सौंदर्यशास्त्र में हास्य व करुण रस को परस्पर विरोधी रस माना जाता है। यह माना जाता है कि करुणा से भरी स्थिति में हास्य उत्पन्न नहीं हो सकता और हास्य की स्थिति में करुणा का भाव जागृत नहीं हो सकता। लेकिन चार्ली की फ़िल्मों में इन दोनों का सुंदर मेल दिखाया गया है, जिन्हें देखकर भारतीय काव्य-शास्त्र या सौंदर्यशास्त्र इस नए प्रयोग को सीख सकता है।

प्रश्न 16.
भारतीय हास्य परंपरा और चार्ली की हास्य परंपरा में क्या अंतर है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
चार्ली चैप्लिन के भारतीयकरण से क्या तात्पर्य है?(A.L. C.B.S.E. 2012, Set-I)
उत्तर
भारतीय हास्य परंपरा दूसरों के ऊपर आधारित है। इसमें दूसरों को पीड़ित करने वालों की प्रायः हँसी उड़ाई जाती है, जबकि चार्ली स्वयं अपनी कमजोरियों और फजीहतों पर हँसते-हँसाते हैं। भारतीय हास्य परंपरा में करुण और हास्य रस का मेल नहीं दिखाया जाता, जबकि चाली करुण दृश्य के फौरन बाद एकाएक हँसा देते हैं और हँसते हुए को पल-भर बाद रुला देते हैं। ऐसा कर वे करुण और हास्य रस में समन्वय करा देते हैं। चार्ली ने भारतीयों को अपने पर हँसना सिखाया और यही चार्ली का भारतीयकरण है।

प्रश्न 17.
किन दो महान भारतीयों ने चाली का सान्निध्य पाना चाहा था ?
उत्तर
महात्मा गांधी और नेहरू जी ने कभी चाली का सानिध्य पाना चाहा था।

प्रश्न 18.
चार्ली से प्रभावित होकर सबसे पहले किस भारतीय अभिनेता ने कौन-सी फ़िल्में बनाई थीं ? इन फ़िल्मों की विशेषता क्या थी?
उत्तर
चार्ली से प्रभावित होकर भारतीय अभिनेता राजकपूर ने ‘अवारा’ और ‘श्री 420’ जैसी फ़िल्में बनाई थीं। इनकी विशेषता यह थी कि इनमें करुण और हास्य रस का समन्वित प्रयोग किया गया था। खानाबदोश, अवारागर्दी करने वालों, अपने पर हँसने वालों को इनका आधार बनाया गया था।

प्रश्न 19.
राजकपूर के अतिरिक्त किन भारतीय अभिनेताओं ने चार्ली का अनुकरण किया था?
उत्तर
राजकपूर के बाद दिलीप कुमार, देव आनंद, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन, श्रीदेवी आदि ने फ़िल्मों में चार्ली का अनुकरण किया था। इन फ़िल्मों में से कुछ के नाम हैं-बाबुल, शबनम, कोहिनूर, लीडर, गोपी, नौ दो ग्यारह, फंटूश, तीन देवियाँ, अमर अकबर एंथनी आदि।

प्रश्न 20. भारत में स्वयं पर हंसने के अवसर प्रायः कहाँ और कब देखने को मिलते हैं?
उत्तर
भारत में होली के अवसर पर प्रायः स्वयं पर हँसने के अवसर दिखाई दे जाते हैं। लोग इस दिन स्वयं को महामूर्ख सिद्ध करने में भी प्रसन्नता अनुभव करते हैं। गाँवों में लोक-संस्कृति के उत्सवों में भी लोग अपने पर हँस लेते हैं।

प्रश्न 21.
चाली की फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं होता था इसलिए इन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता था?
उत्तर
चार्ली की फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं होता था। वह बोलकर अपने भावों को अभिव्यक्त नहीं करते थे, इसलिए उन्हें मानव के स्वभाव को ऐसे सजीव ढंग से अभिनीत करना पड़ता था जो पूरी तरह से स्वाभाविक और संप्रेषणीय हो। इसी कारण उनमें क्रियात्मकता की अधिकता होती थी।

प्रश्न 22.
चाली की फ़िल्में सार्वभौमिक क्यों बन गई?
उत्तर
चार्ली की फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं था। वे मानवीय क्रियाओं पर आधारित अति सहज, स्पष्ट और प्रभावशाली थीं जो विश्व के किसी भी मानव को समझ आ जाती थीं। उन्हें चार्ली का चरित्र और व्यक्तित्व अपने आस-पास के परिवेश में रहने वालों से मिलता-जुलता प्रतीत होता था, इसलिए उनकी फ़िल्में सार्वभौमिक बन गई।

प्रश्न 23.
चार्ली प्रायः हँसकर किस तथ्य का परिचय कराना चाहता था?
उत्तर
चार्ली ने निकटता से तथाकथित महान लोगों को देखा था और उसे पता था कि अन्य सामान्य लोगों की तरह वे भी तुच्छ, लालची, नीच और छोटे ही थे। उसने अपने बचपन में कई बार ऐसे महान लोगों की दुत्कार झेली थी, लिए वह अपनी फ़िल्मों में लोगों से प्रायः हँस कर ऐसे लोगों का परिचय कराना चाहता था।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पांच पीड़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चाली आज भारत के लाखों बच्चों को हंसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार-बार चाली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चाली को घड़ी ‘सुधारते’ या जूते ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. चाली चैप्लिन की कला कब से है? वह कितनी पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है?
2. चाली किनके साथ खिलवाड़ करता है?
3. पाठ के अनुसार पश्चिम में किसका पुनर्जीवन होता है?
4. विकासशील देशों में चाली की प्रसिद्धि कैसे बढ़ रही है?
5. चाली को बुढ़ापे तक कौन याद रखेंगे और क्यों?
उत्तर
1. चार्ली चैप्लिन की कला पौन शताब्दी से है। वह पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है।
2. चाली समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता है।
3. पाठ के अनुसार पश्चिम में चाली का बार-बार पुनर्जीवन होता है।
4. विकासशील देशों में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, वैसे-वैसे चाली की प्रसिद्धि बढ़ रही है। एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी सुधारते या जूते खाने की कोशिश करते हुए देख रहा है।
5. चाली को भारत के लाखों बच्चे बुढ़ापे तक याद रखेंगे क्योंकि समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ आज चाली, उन्हें अपने करतब से हँसा रहा है।

2. कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हंसना पसंद नहीं करता। एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूंजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य जो करोड़पति हो जाने का बावजूद अंत तक उनमें रहे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
2. चाली चैप्लिन कौन था?
3. चाली चैप्लिन को समाज ने क्यों ठुकराया था?
4. चाली चैप्लिन को जीवन-मूल्य कहाँ से प्राप्त हुए?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘चाली चैप्लिन वानी हम सब’ हैं। इस के लेखक विष्णु खरे है।
2. चार्ली चैप्लिन पश्चिम का एक बहुत बड़ा हास्य कलाकार था। वह एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा था।
3. चाली चैप्लिन एक परित्यक्ता और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा था। इसके अतिरिक्त वह अत्यंत गरीब था। इस कारण पूँजीवादी और सामंतशाही समाज ने चाली को ठुकराया था।
4. चाली का बचपन गरीबी में व्यतीत हुआ। इसके साथ-साथ उसे अपनी माँ के पागलपन से भी संघर्ष करना पड़ा। उसे साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पंजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज ने ठुकराया। इन सबसे ही चाली चैप्लिन को जीवन मूल्य प्राप्त हुए।

3. दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गहना पड़ता है। जो करोड़ों लोग चाली को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चाली को समय और भूगोल से काट कर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. सिद्धांत कला को जन्म क्यों नहीं देते?
2. किन लोगों को मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की सारगर्भित समीक्षाओं से कोई सरोकार नहीं है।
3. ऐसे लोग चाली को कैसे देखते हैं?
4. किसकी ताकत आज तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है?
उला
1. सिद्धांत कला को इसलिए जन्म नहीं देते, क्योंकि कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
2. जो लोग चाली को देखकर आनंदित या प्रसन्न होते हैं, उन लोगों को मैल आटिंगर या जेम्स एजी की सारगर्भित समीक्षाओं से कोई सरोकार नहीं है।
3. ऐसे लोग चाली को समय और भूगोल से काटकर देखते हैं।
4. लोगों के अनुसार चाली की ताकत आज तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।

4. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की मांग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में मुख्यतः कितने रसों का वर्णन मिलता है?
2. जीवन क्या है?
3. जीवन में क्या आते-जाते रहते हैं? यह सब किनको मालूम है?
4. वह कौन-सा कलाकार था, जो करुणा को हास्य में बदल देता था?
उत्तर
1. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में मुख्यतः नौ रसों का वर्णन मिलता है; जैसे-हास्य, करुण, रौद्र, भयानक, अद्भुत, शृंगार आदि।
2. हर्ष-विषाद, सुख-दुख, राग-विराग, मिलन-विरह आदि का सामंजस्य ही जीवन है।
3. जीवन में हर्ष-विवाद, सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। यह सब संसार की समस्त सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है।
4. चार्ली चैप्लिन दुनिया के एक महान हास्य कलाकार थे। उनमें अद्भुत कला थी। वे अपनी इसी अद्भुत कला से करुणा को हास्य में बदल देते थे।

5. चार्ली की अधिकांश फ़िल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं इसलिए उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ा। सवाक् चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच पाए इसकी पड़ताल अभी होने को है। चार्ली का चिर-युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सब से बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. चाली को फ़िल्मों में अधिक से अधिक मानवीय क्यों होना पड़ा?
2. चार्ली की सर्वोत्तम विशेषता क्या है?
3. बड़े-बड़े कॉमेडियन चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच पाए होंगे?
4. चार्ली की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं?
उत्तर
1. चार्ली को फ़िल्मों में इसलिए अधिक से अधिक मानवीय होना पड़ा, क्योंकि उनकी अधिकांश फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं नहीं होता था।
2. चार्ली की सर्वोत्तम विशेषता यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।
3. बड़े-बड़े कॉमेडियन चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक इसलिए नहीं पहुँच पाए होंगे, क्योंकि उनमें वे गुण नहीं होंगे जो चैप्लिन में थे। न उनमें चैप्लिन जैसा कलाकार होगा और न ही भावनाओं का आवेग।
4. (i) चार्ली चिर-युवा हैं।
(ii) वे बच्चों जैसे दिखते हैं।
(iii) वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।
(iv) उनमें भावनाओं को हास्य के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।

6. अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चाली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैब्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चाली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमला, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर।

1. अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली कैसे हो जाते हैं?
2. हमारा चेहरा कब चार्ली-चाली हो जाता है?
3. चाली के रोमांस हमारे जीवन में कैसे घटित होते हैं?
उन्ना
1. जीवन हर्ष-विषाद, राग-विराग, सुख-दुख, करुणा-हास्य आदि का सामंजस्य है। चार्ली जिस प्रकार करुणा में हास्य का पुट भर देते हैं, उसी प्रकार हम जीवन के अधिकांश हिस्सों में रोते-रोते हँसने तथा हँसते-हँसते रोने लगते हैं। कई बार सुखी होकर भी हम दुखी दिखाई देते हैं तथा दुखी होकर भी सुखी लगते हैं। इस प्रकार हम जीवन के अधिकांश हिस्सों में चार्ली के टिली हो जाते हैं।
2. जब हम सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में आईना देखते हैं, तब हमारा चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
3. हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। उन शूरवीर क्षणों में हम पलायन के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी जाते हैं। इस प्रकार चार्ली के रोमांस हमारे जीवन में घटित होते रहते हैं।

7. भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों या लोक संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नगर-सभ्यता में तो वह थी ही नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता-संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. अनुच्छेद में किसकी चर्चा है? वह क्यों प्रसिद्ध है?
2. “अपने आप को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है।”- इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
3. “अंग्रेजों जैसे” कहने का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
4. चार्ली अपने पर कब हँसता है? (Delhi C.B.S.E., 2016)
उत्तर
1. अनुच्छेद में चार्ली की चर्चा है। वह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि वह अंग्रेज जैसे व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देता है।
2. इस कथन का आशय है कि भारतीय संस्कृति हमें अपना मजाक उड़ाने तथा दूसरों को हँसाने की शिक्षा नहीं देती। यह हमें स्वाभिमानी बनने की प्रेरणा देती है।
3. इसमें अंग्रेजों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई है। अंग्रेजों पर हँसकर हम प्रसन्न होते हैं।
4. चार्ली अपने पर तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत, आत्मविश्वास से लबरेज, सभ्यता-संस्कृति एवं समृद्धि की प्रतिमूर्ति समझता है। दूसरों से अधिक शक्तिशाली एवं श्रेष्ठ वज्रादायी कठोराणी अथवा मृदूनि कुसुमादायी क्षणों में प्रदर्शित करता है।