NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे? [CBSE 2008 C; CBSE]
उत्तर:
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह तन से बहुत बूढ़ा और मरियल-सा था। परंतु उसके मन में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वह सुभाषचंद्र का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को देखकर आहत था। इसलिए अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था। उसकी इसी भावना को देखकर ही लोगों ने उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी या सेना का कैप्टन कहकर सम्मान दिया। चाहे उसका यह नाम व्यंग्य में रखा गया हो, फिर भी वह ठीक नाम था। वह कस्बे का अगुआ था।

प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है? [CBSE 2012, 2010]
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? [CBSE 2012]
उत्तर:
(क) हालदार साहब यह जानकर मायूस हो गए थे कि कैप्टन की मृत्यु हो चुकी है। अतः अब उस कस्बे में सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को चश्मा पहनाने वाला कोई न रहा होगा। अब मूर्ति बिना चश्मे के ही खड़ी होगी।
(ख) मूर्ति पर लगा सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि यह धरती देशभक्ति से शून्य नहीं हुई है। एक कैप्टन नहीं रहा, तो अन्य लोग उस दायित्व को सँभालने के लिए तैयार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकंडे का चश्मा किसी गरीब बच्चे ने बनाया है। अतः उम्मीद है कि ये बच्चे गरीबी के बावजूद भी देश को ऊपर उठाने का प्रयास करते रहेंगे।
(ग) हालदार साहब के लिए सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाना ‘इतनी-सी बात नहीं थी। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। यह बात उनके मन में आशा जगाती थी कि कस्बे-कस्बे में देशभक्ति जीवित है। देश की नई पीढ़ी में देश-प्रेम जीवित है। इस खुशी और आशा से वे भावुक हो उठे।

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प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे- सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि।
अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर:
सामान्य जीवन में देश-प्रेम प्रकट करने के कई प्रकार हो सकते हैं। जैसे, पानी को व्यर्थ न बहने देना, बिजली की तबाही को रोकना। इधर-उधर गंदगी न फैलने देना। प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना। देशवासियों को देश और समाज का अपमान करने से रोकना। फिल्मवालों और कलाकारों को अपने संतों, ऋषियों और महापुरुषों की मज़ाक करने से रोकना।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर:
मानो कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़ा फ्रेम चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाए? तो उसे मूर्तिवाला फ्रेम दे देता है। मूर्ति पर कोई अन्य फ्रेम लगा देता है।

प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा से कुछ शब्द उधार लेती है। कई बार दूसरी भाषा के शब्द ऐसे अर्थ और प्रभाव वाले होते हैं कि अपनी भाषा में नहीं होते। जैसे उपर्युक्त वाक्य में दो शब्द हैं-‘खूब’ तथा ‘आइडिया’। ‘खूब’ उर्दू शब्द है। ‘आइडिया’ अंग्रेजी शब्द है। ‘खूब’ में गहरी प्रशंसा का भाव है। यह भाव हिंदी के ‘सुंदर’ या ‘अद्भुत’ में नहीं है। इसी प्रकार ‘आइडिया’ में जो भाव है, वह हिंदी के शब्द ‘विचार’, ‘युक्ति’ या ‘सूझ’ में नहीं है। इससे पता चलता है कि अन्य भाषाओं के शब्द हमारी भाषा को समृद्ध करते हैं। परंतु यदि उनका प्रयोग अनावश्यक हो, दिखावे-भर के लिए हो या जानबूझकर हो तो वे शब्द खलल डालते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
( ग ) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
उत्तर:
(क) तो-तुमने मुझे जो काम करने को दिया था, वह कर तो दिया। भी-तुम्हारे साथ यह भी चलेगा।
(ख) ही-हमारे देश की रक्षा नौजवानों ने ही की।
(ग) तो-मेरे पास दस्ताने थे तो सही लेकिन मैंने पहने नहीं।
(घ) भी-उस मूर्ख को तुम भी नहीं समझा पाओगे।
(ङ) तक-उसने मेरे कमरे की ओर झाँका तक नहीं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
( ख ) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ़ बता दिया था।
(घ ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर:
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ़ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए जैसे-अब चलते हैं। -अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर:
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
( ख ) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया नहीं जाता।

पाठेतर सक्रियता

लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर:
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में बहुत उत्साह आया होगा। खुशी के मारे उसके पाँव धरती पर न पड़े होंगे। उसे लगा होगा कि अब पूरे कस्बे के लोग उसकी कला को देखेंगे, सराहेंगे। सबकी जुबान पर उसका ही नाम होगा। उसे खूब सराहना मिलेगी, यश मिलेगा।
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार और अन्य कलाकारों को वाहवाही देकर प्रोत्साहन दे सकते हैं। यदि वह शिल्पकार है तो हम उसी से बनी चीजें खरीद सकते हैं। यदि वह संगीतकार है तो उसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में गाने का अवसर दे सकते हैं। उसका गाना सुनकर खूब तालियाँ बजा सकते हैं। उसे धन-मान देकर सम्मानित कर सकते हैं। उसके लिए पुरस्कार की योजना कर सकते हैं। यदि उसके लिए धन कमाने का कोई अवसर आता है तो वह दिला सकते हैं। इसी भाँति हम समय-समय पर चित्रकारों के चित्रों की प्रदर्शनी लगा सकते हैं। उनसे चित्र खरीद सकते हैं।

प्रश्न
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।

सुरेश शर्मा
परीक्षा भवन
अ.ब.स. विद्यालय
नई दिल्ली।
विषय : चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रबंध।
महोदय
मैं आपका ध्यान हमारे विद्यालय के चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की ओर दिलाना चाहता हूँ। दुर्भाग्य से हमारे कुछ साथी टाँगों से और कुछ आँखों से लाचार हैं। यद्यपि वे छात्र अपनी इच्छाशक्ति के बल पर सारी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं, परंतु विद्यालये का कर्तव्य है कि वह उनके लिए कुछ व्यवस्थाएँ करे। बरामदों पर चढ़ने के लिए जहाँ सीढ़ियाँ हैं, वहाँ बीच में कहीं-कहीं रैंप बनवाया जाए। जो कक्षाएँ ऊपर की मंजिलों पर लगती हैं, उन तक पहुँचने के लिए भी रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए। अंधे छात्रों के लिए पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें मँगवाई जानी चाहिए। आशा है, आप इनकी ओर ध्यान देंगे।
धन्यवाद!
भवदीय
सुरेश शर्मा
कक्षा दशम ‘क’
अनुक्रमांक 157
दिनांक : 13-3-2015

प्रश्न
कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर:
भारत में परंपरागत व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेरीवालों के हाथ में रहा है। ये फेरीवाले व्यापारी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। परंतु इन्हें व्यापार में सबसे नीचा दर्जा प्राप्त है। यह बात सच है कि फेरीवाले गरीब होते हैं। इसी कारण वे एक जगह टिककर माल नहीं बेचते। घूम-घूम कर माल बेचना उनकी मजबूरी होती है, शौक नहीं।
हमारी सरकारें समय-समय पर व्यापारियों के कल्याण के लिए बहुत सुविधाएँ जुटाती हैं। परंतु फेरीवाले उपेक्षित रहते हैं। इनकी गिनती दिहाड़ी मज़दूरों में भी नहीं होती। ये बेचारे रोज-रोज अपना माल गठरियों, रेहड़ियों, साइकिलों या अन्य वाहनों पर लादे-लादे घूमते हैं। सुविधाओं के अभाव में ही इन्हें अपने कंधों पर बोझ ढोना पड़ता है। सरकार चाहे तो फेरीवालों के लिए रियायती दर पर वाहनों की व्यवस्था कर सकती है। इन्हें बैंकों से आसान दर पर पैसा उधार मिल सकता है। इनके लिए सामान रखने के सेंटर खुल सकते हैं।
ये फेरीवाले गाँव-गाँव घूमकर उन बड़े-बूढ़ों और सुदूर रहने वालों को माल पहुँचाते हैं जो बाजार में जा नहीं पाते। ये चलते-फिरते बाज़ार हैं। गाँववासी हों या शहरवासी–इनकी बहुत-सी ज़रूरतें ये फेरीवाले पूरा करते हैं। इसलिए इनकी समस्याओं पर विचार होना चाहिए।

प्रश्न
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं तैयार करें।

प्रश्न
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर:
नगरपालिका ने हमारे लिए जल, सीवर, बिजली, सफाई और पार्को की व्यवस्था की है। हमारी गलियों में सदा ‘स्ट्रीट लाइट’ रहती है। नगरपालिका की जल-आपूर्ति होती है। सीवर की पाइप-लाइन भी नगरपालिका ने डलवाई है। एक जमादार सफाई करने के लिए भी रखा गया है। परंतु वह आता नहीं है। नगरपालिका ने एक पार्क भी बनवा रखा है। जिसे प्रायः हरा-भरा रखा जाता है।
हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इन व्यवस्थाओं को बनाए रखने में नगरपालिका का सहयोग करें। कोई व्यवस्था गड़बड़ा जाए तो इसकी उचित शिकायत उचित कार्यालय में करें। पार्क, गलियाँ साफ-स्वच्छ रखें। गलियों में लगे बल्ब, टूटियाँ सुरक्षित रखें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? [A.I. CBSE 2008; 2008 C; CBSE 2010; CBSE]
अथवा
‘बालगोबिन भगत सच्चे साधु थे’ के संदर्भ में उनके चरित्र पर प्रकाश डालिए। [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत खेतीबारी करने वाले गृहस्थ थे। फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। सबसे पहली बात यह थी कि वे अपना जीवन ‘साहब’ को समर्पित किए हुए थे। वे स्वयं को भगवान का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर भी पहले भगवान का हक मानते थे। इसलिए फसलों को पहले साहब के दरबार में अर्थात् कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से जो प्रसाद रूप में वापस मिलता था, उसी में अपना गुजारा करते थे। वे अपने जीवन को भी भगवान की देन मानते थे। इसलिए वे मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया।
भगत जी कभी किसी के साथ झूठ नहीं बोलते थे, झगड़ा नहीं करते थे। किसी की कोई चीज नहीं लेते थे। यहाँ तक कि किसी के खेत में शौच तक होने नहीं जाते थे। यह साधु होने के ही लक्षण हैं। वे अपना तन-मन प्रभु-भक्ति और भक्ति-गीत गाने में लगाया करते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? । [CBSE; CBSE 2010]
उत्तर:
भगत की पुत्रवधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं। उनका एकमात्र पुत्र मर चुका है। वे बूढे हैं और भक्त हैं। उन्हें घर-बार और संसार में कोई रुचि नहीं है। अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दे पाएँगे। इसलिए पुत्रवधू सेवा-भाव से उनके चरणों की छाया में अपने दिन बिताना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन और दवा-दारू का प्रबंध करना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं? [CBSE]
उत्तर:
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा कहकर उसका सम्मान किया। उन्होंने उस मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का शुभ मिलन माना। इसलिए उसे उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढंककर उसे फूलों से सजाया। उसके सिरहाने दीपक रखा। फिर वे उसके सामने प्रभु-भक्ति के गीत गाने लगे। वे बँजड़ी की ताल पर तल्लीन होकर गाते चले गए। उन्होंने विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए। [Imp.][केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत की संक्षिप्त पहचान लिखिए। [CBSE]
उत्तर:
भगत जी गृहस्थ होते हुए भी सीधे-सरल भगत साधु थे। उनकी आयु साठ वर्ष से कुछ ऊपर थी। वे मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके बाल सफेद हो गए थे। उनका चेहरा सदा सफेद बालों के कारण जगमगाता रहता था। हाँ, वे लंबी दाढी या जटाएँ नहीं रखते थे। वे कपड़े भी बहुत कम पहनते थे। वे प्रायः कमर में एक लंगोटी-सी पहने रहते थे और सिर पर कबीरपंथियों की भाँति एक कनफटी टोपी पहने रहते थे। सर्दियों में वे काला कंबल ओढ़े रहते थे। उनके माथे पर सदा एक रामानंदी चंदन सुशोभित रहता था जो नाक के एक किनारे से शुरू होता था। उनके गले में तुलसी की माला बँधी रहती थी।
भगत जी का व्यक्तित्व गायक भक्तों जैसा था। वे सदा खैजड़ी की लय पर प्रभु-भक्ति के गाने गाते रहते थे। उनकी तल्लीनता सुनने वालों को बरबस अपनी ओर खींच लेती थी।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी? [Imp.][CBSE]
अथवा
बालगोबिन के किन गुणों के कारण लोगों को कुतूहल होता था? [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों को हैरान कर देती थी। वे भगत जी की सरलता, सादगी और निस्वार्थता पर हैरान होते थे। भगत जी भूलकर भी किसी से कुछ नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी की चीज छूते भी नहीं थे। यहाँ तक कि किसी दूसरे के खेत में शौच भी नहीं करते थे। लोग उनके इस खरे व्यवहार पर मुग्ध थे।
लोग भगत जी पर तब और भी आश्चर्य करते थे जब वे भोरकाल में उठकर दो मील दूर स्थित नदी में स्नान कर आते थे। वापसी पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के किनारे प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनके इन प्रभाती-गानों को सुनकर लोग सचमुच हैरान रह जाते थे।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए। [CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत का संगीत किस प्रकार लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता था?[CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत प्रभु-भक्ति के मस्ती-भरे गीत गाया करते थे। उनके गानों में सच्ची टेर होती थी। उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगती थीं। खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत में जादुई प्रभाव था। वह मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण पर छा जाता था। यहाँ तक कि घनघोर सर्दी और गर्मियों की उमस भी उन्हें डिगा नहीं पाती थी।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि बालगोबिन भगत का अंतर्मन ही उन्हें आदेश देता था। वे समाज की मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते थे। समाज की मान्यता है कि पति की चिता को पत्नी आग नहीं दे सकती। पत्नी को चाहिए कि वह पति की मृत्यु के बाद विधवा बनकर सास-ससुर की सेवा में दिन बिताए। बालगोबिन ने इन दोनों मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता को पतोहू के हाथों से ही आग दिलवाई। उसके बाद उन्होंने पतोहू को दूसरे विवाह के लिए स्वयं उसके भाइयों के साथ वापस भेज दिया।
बालगोबिन भगत ने समाज की देखादेखी पुत्र की मृत्यु पर शोक भी नहीं मनाया। उन्होंने पुत्र की मृत्यु को परमात्मा से मिलन का उत्सव माना। इसलिए वे शोक मनाने की बजाय प्रभु-भक्ति के गीतों में तल्लीन हो गए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक न मनाने की सलाह दी।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बालगोबिन भगत भी एक-एक उँगुली से धान के पौधों को पंक्तिबद्ध करके रोप रहे थे। तभी उन्होंने मस्ती भरी तान छेड़ी। उनके गीत का स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि वह सीधे आकाश में स्थित परमात्मा को टेरता प्रतीत होता था। उसे सुनकर खेतों में उछल-कूद मचाते बच्चों में एक मस्ती आ गई। मेड़ों पर बैठी औरतों के ओंठ गाने के लिए बेचैन हो उठे। किसानों की उँगलियों में भी एक क्रमिक लय आ गई। हल चलाने वाले किसानों के पैर संगीत की थाप पर चलने लगे। इस प्रकार उनके संगीत का जादू सारे वातावरण पर छा गया।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है? [CBSE 2008, 2010]
उत्तर:
बालगोबिन भगत कबीर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी श्रद्धा को निम्न रूपों में व्यक्त किया• उन्होंने स्वयं को कबीर-पंथ के प्रति समर्पित कर दिया। वे अपना जीवन कबीर के आदेशों पर चलाते थे।
कबीर ने गृहस्थी करते हुए संसार के आकर्षणों से दूर रहने की सलाह दी थी। बालगोबिन भगत ने भी यही किया। उन्होंने खेतीबारी करते हुए कभी लोभ-लालच, स्वार्थ या आडंबर-भरा जीवन नहीं जिया। जैसे कबीर अपने व्यवहार में खरे थे, उसी प्रकार बालगोबिन भगत भी व्यवहार में खरे रहे। • भगत जी ने अपनी फसलों को भी ईश्वर की संपत्ति माना। वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद रूप में पाई फसलों का भोग करते थे। कबीर ने नर-नारी की समानता पर बल दिया। बाहरी आडंबरों पर चोट की। बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार अपनी आत्मा की आवाज़ पर व्यवहार किया। उन्होंने वही किया, जो उन्हें उचित और हितकारी लगा। • कबीर मनुष्य-शरीर को नश्वर मानते थे। वे जीवन को प्रभु-भक्ति में लगाने की सीख देते थे। बालगोबिन भगत ने उनके इन आदेशों को पूरी तरह माना। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को भी उत्सव में बदल दिया। वे अंत तक मस्ती-भरे गीत गाते रहे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे? [CBSE]
उत्तर:
मेरी दृष्टि में भगत सच्चे सरल-हृदय किसान थे। वे कबीर की भक्ति से प्रभावित हुए होंगे। उन्हें कबीर की साफ़ आवाज़ में सच्चाई नज़र आई होगी। यह सच्चाई उनके सच्चे हृदय में पैठ गई होगी। उन्होंने तब से अपनी आत्मा को कबीर के चरणों में झुका दिया होगा। उन्होंने कबीर को अपना गुरु मान लिया होगा तथा अपने जीवन को उन्हीं के अनुसार ढाल दिया होगा।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर:
भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। कृषि वर्षा पर आधारित है। वर्षा आषाढ़ मास में शुरू होती है। इसलिए आषाढ़ मास में गाँववासी बहुत प्रसन्न नज़र आते हैं। वे साल-भर आषाढ़ मास की प्रतीक्षा करते हैं ताकि खेतों में धान रोप सकें। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ होकर आनंद-क्रीड़ा करते हैं। औरतें नाश्ता परोसकर किसानों का भरपूर सहयोग करती हैं। किसान हल जोतते हैं तथा दिन-भरं बुवाई करते हैं। वे सभी फसलों की आशा में उल्लास से भरे जाते हैं। इन्हीं दिनों गाँव का सामाजिक वातावरण सांस्कृतिक रंगों से ओतप्रोत हो उठता है।

प्रश्न 12.
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।”क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर:
साधु की पहचान उसके पहनावे से भी होती है। साधु व्यक्ति अगर संसारी आकर्षणों से बँधा नहीं है तो वह सुंदर पहनावे की ओर ध्यान नहीं देता। वह कम-से-कम कपड़े पहनता है। प्रायः वह धोती, कंबल जैसे बिना सिले कपड़े पहनता है और सादगी से रहता है। परंतु साधु की सच्ची पहचान ये कपड़े नहीं हैं। बहुत से ढोंगी लोग साधुओं का वेश धारण करके संसार के सुखों का भोग करते हैं।
| मेरे विचार से साधु की सच्ची पहचान उसके व्यवहार से होती है। सच्चा साधु अपना ध्यान संसार की ओर नहीं, प्रभु-भक्ति की ओर लगाता है। वह व्यवहार में सच्चा, सादा, आडंबरहीन, खरा और साफ़ रहता है। वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेता। कभी किसी का अधिकार नहीं छीनता। वह अपनी कमाई को भी प्रभु-चरणों में अर्पित कर देता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे? [Imp.] [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE]
उत्तर:
मोह और प्रेम में निश्चित रूप से अंतर होता है। मोह में मनुष्य अपने स्वार्थ की चिंता करता है। प्रेम में वह प्रिय का हित देखता है। बालगोबिन भगत ने अपने व्यवहार से यह अंतर सिद्ध किया। उन्होंने अपनी पतोहू के प्रति मोह प्रकट न करके प्रेम प्रकट किया। यदि वे उसे अपनी सेवा के लिए रख लेते तो यह उनका मोह होता। उन्होंने पतोहू के भविष्य की चिंता की। इसलिए उसका जीवन सुधारने के लिए उसे दूसरा विवाह करने की सलाह दी। इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर:
1. वह जब-जब सामने आता।
जब-जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने-स्थानवाची क्रियाविशेषण
2. तब तक मुझमें वह ज्ञान भी नहीं था।
तब तक-कालवाची क्रियाविशेषण
3. कपड़े बिल्कुल कम पहनते।
बिल्कुल कम-परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
4. भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना।
नहीं-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
5. न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
6. वे दिन-दिन छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण
7. जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा-कालवाची क्रियाविशेषण ।
8. धान के पौधे को पंक्तिबद्ध खेत में बिठा रही है।
पंक्तिबद्ध-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
9. बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है।
डिमक-डिमक-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
10. इन दिनों वे सवेरे ही उठते।
सवेरे ही-कालवाची क्रियाविशेषण।

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फ़ोटो का
संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलेंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
यह कलैंडर चैत्र मास से शुरू होता है। इसके महीनों को क्रम इस प्रकार हैचैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ,
आषाढ, श्रावण,
भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष,
फाल्गुन।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रात:काल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती
गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

 

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?
उत्तर:
कथानायक की रुचि पढ़ाई से अधिक खेलकूद, हरे-भरे मैदान में घूमने, दोस्तों से बातें करने और पतंगें उड़ाने में थीं।

प्रश्न 2.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर:
बड़े भाई छोटे भाई से हर समय पहला सवाल यही पूछते थे कि वह अब तक कहाँ था? आशय यही होता कि बाहर क्या कर रहा था, कमरे में बैठकर पढ़ क्यों नहीं रहा था। बड़े भाई को हमेशा यही चिंता लगी रहती थी कि कहीं छोटे भाई का ध्यान पढ़ाई से हट न जाए।

प्रश्न 3.
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर:
दूसरी बार पास होने पर बड़े भाई के व्यवहार में यह परिवर्तन आया कि उसने पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना कम करके पतंगबाज़ी पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर:
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़े थे और वे छोटे भाई से चार दरजे आगे थे। अर्थात् वे नौवीं कक्षा में थे और छोटा भाई पाँचवीं कक्षा में।

प्रश्न 5.
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर:
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कॉपी पर या किताब के हासिये पर निरर्थक शब्द या वाक्य लिखते या कोई चित्र बनाया करते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई की टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर:
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय अनेक बातें सोचा-

  • वह मन लगाकर पढ़ाई करेगा।
  • खेलकूद में समय बिलकुल भी बरबाद नहीं करेगा।

खेलकूद में गहरी रुचि होने के कारण वह टाइम-टेबिल का पालन नहीं कर पाया।

प्रश्न 2.
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
एक दिन गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई जब बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा, तो उन्होंने उसे डाँटना शुरू कर दिया और बोले कि इस साल कक्षा में अव्वल आ गए, तो तुम्हारा दिमाग हो गया है। भाईजान! घमंड तो बड़े-बड़े का नहीं रहा, तुम्हारी क्या हस्ती है? उसे पढ़ाई का भय दिखाया। रावण का उदाहरण देकर कहा कि वह तो चक्रवर्ती राजा था मगर घमंड ने उसका नामोनिशान तक मिटा दिया। इस प्रकार भाई साहब ने सफलता मिल जाने पर सहज बने रहने का उपदेश दिया।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर:
बड़े भाई साहब को अपनी इच्छाएँ इसलिए दबानी पड़ती थीं, क्योंकि बड़े होने के कारण उन पर छोटे ई की देख-रेख का जिम्मा था। यदि वे खुद बेराह चलते तो छोटे भाई को बेराह चलने से कैसे रोकते और उसे पढ़ाई के लिए कैसे प्रेरित करते।

प्रश्न 4.
बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
उत्तर:
बड़े भाई साहब छोटे भाई को यह सलाह देते थे कि पढ़ाई करने के लिए रात-दिन आँखें फोड़नी पड़ती हैं और अपना खून जलाना पड़ता है, मन की इच्छाओं को दबाना पड़ता है तथा कठोर मेहनत करनी पड़ती है, तब कहीं विद्या आती है। अपनी उपलब्धि पर कभी भी घमंड मत करो, क्योंकि घमंड तो प्रकांड पंडित चक्रवर्ती राजा रावण का भी नहीं रहा था। इतिहास पढ़ना, ज्योमेट्री तथा अंग्रेज़ी एड़ना अत्यंत कठिन है आदि बातों की सलाह देकर बड़े भाई अपने छोटे
भाई को नेक इंसान बनाना चाहते थे तथा उसका भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहते थे।

प्रश्न 5.
छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम नवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर:
लेखक ने बड़े भाई के नरम व्यवहार का फ़ायदा उठाते हुए पढ़ाई पर ध्यान देना कम कर दिया। उसने मनमानी शुरू कर दी और उनसे छिपकर पतंगें उड़ाने लगा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
बड़े भाई की डॉट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वले आता? अपने विचार प्रकद कीजिए।
उत्तर:
मेरे विचार से यदि छोटे भाई को बड़े भाई की डाँट-फटकार ने मिलती तो वह पढ़ाई में इतना आगे जाकर कक्षा में अव्वल न आता। कहानी से अनुमान लगता है कि बड़े भाई की उम्र नौ साल रही होगी। यह उम्र अबोध होती है जिसमें बालक स्वविवेक से उचित निर्णय नहीं ले सकता है। उसे उचित दिशा-निर्देशन के साथ स्नेह मिश्रित रोष की भी जरूरत होती है। इनके अभाव में बालक के कदम गलत दिशा में मुड़कर उसे पढ़ाई-लिखाई से दूर ले जाते हैं।

प्रश्न 2.
इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?
उत्तर:
इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के बहुत-से तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है, किंतु मैं इससे पूर्ण रूप से सहमत नहीं हूँ। शिक्षा के जिन तौर-तरीकों के व्यंग्य से मैं सहमत हूँ, वे हैं जैसे विद्यार्थी का अध्ययनशील होना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात है, पर हरदम पुस्तक खोलकर बैठे रहना; अर्थात् किताबी कीड़ा होना और खेल-कूद में रुचि न लेना आदि ठीक नहीं है, किताबी ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है, पर इससे भी अधिक आवश्यक है, व्यावहारिक ज्ञान का होना।

प्रश्न 3.
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर:
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ पुस्तकें रटने या पुस्तकों का ज्ञान परीक्षा में ज्यों का त्यों उतार देने से नहीं आती है। वास्तव में जीवन की समझ व्यावहारिक अनुभव से आती है। जीवन की सुखद या दुखद घटनाओं से व्यक्ति नए-नए अनुभव प्राप्त कर जीवन को निकट से समझता है। ऐसे व्यक्ति ही समझदार होते हैं। वे जीवन-पथ पर आने वाले दुखों और परेशानियों का हल सहजता से खोज लेते हैं। वे दुख देखकर घबराए बिना विवेक से काम लेते हैं। लेखक के कम पढ़े-लिखे माता-पिता को जीवन के अनुभवों से समझ और ज्ञान प्राप्त हो चुका था।

प्रश्न 4.
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर:
बड़े भाई साहब अक्सर अपने छोटे भाई को पढ़ाई में दिलचस्पी लेने के लिए कभी प्यार से समझाकर, तो कभी डाँटकर समझाने का प्रयास करते रहते थे, लेकिन छोटा भाई खेल-कूद कर भी हर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता। इससे उसमें अभिमान-सा आ गया था। इस अभिमान को भाई साहब ने जिस युक्ति से दूर किया, उससे छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई।

प्रश्न 5.
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लेखक के बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. पढ़ाकू- लेखक का बड़ा भाई अत्यंत परिश्रमी और पढ़ाकू था। वह लगभग हर समय पुस्तकें खोले बैठा हुआ उनमें आँखें गड़ाए रहता था।
  2. पढ़ाई के प्रति समर्पित- बड़े भाई साहब पढ़ाई के प्रति इतने समर्पित थे कि वे खेल-तमाशे, मेले तथा खेलकुद से पूरी तरह दूरी बनाकर रहते थे।
  3. कुशल उपदेशक- बड़े भाई साहब कुशल उपदेशक थे। वे उपदेशों के माध्यम से ऐसे सूक्ति बाण चलाते थे कि पढ़ाई से विमुख छोटा भाई पढ़ने के लिए विवश हो जाता था। इसके लिए उन्हें तरह-तरह के उदाहरण भी याद थे।
  4. रट्टू शिक्षा प्रणाली के आलोचक- बड़े भाई साहब रटने को बढ़ावा देने वाली शिक्षा प्रणाली के घोर विरोधी थे। वे चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो जो जीवन के प्रति समझ पैदा करे।
  5. कर्तव्यनिष्ठ- बड़े भाई साहब उम्र में बड़े थे। बड़े होने के कारण उन्हें अपने कर्तव्य का पूरा ज्ञान था। वे इसे पूरा करने के लिए सदा प्रयासरत रहते थे।

प्रश्न 6. 
बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?
उत्तर:
बड़े भाई साहब ने जिदंगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को महत्त्वपूर्ण कहा है, क्योंकि किताबें पढ़कर महज़ इम्तिहान पास कर लेना, डिग्रियाँ प्राप्त कर लेना कोई बड़ी बात नहीं है। असल बात यह है कि बुधि का विकास कितना हुआ तथा जीवन-मूल्यों के प्रति हम कितने जागरूक हुए। जीवन की सार्थकता, जीवन का उद्देश्य क्या है? इन्हें समझना परम आवश्यक है इसलिए हमारी जिंदगी का अनुभव जितना सुंदर, सहज तथा व्यावहारिक होगा उतना ही हमारे लिए महत्वपूर्ण होगा इसलिए बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव को महत्त्वपूर्ण कहा है।

प्रश्न 7.
बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि-

  1. छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
  2. भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।
  3. भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
  4. भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

उत्तर:

  1. फिर भी मैं भाई साहब का अदब करता था और उनकी नजर बचाकर कनकौए उड़ाता था। मांझा देना, कन्ने बाँधना, पतंग टूर्नामेंट की तैयारियाँ आदि समस्याएँ सब गुप्त रूप से हल की जाती थीं। मैं भाई साहब को यह संदेह न। करने देना चाहता था कि उनका सम्मान और लिहाज़ मेरी नज़रों में कम हो गया है।
  2. यह तुम्हारी गलती है। मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और चाहे आज तुम मेरी ही जमात में आ जाओ और परीक्षकों का यही हाल है, तो निस्संदेह अगले साल तुम मेरे समकक्ष हो जाओगे और शायद एक साल बाद मुझसे आगे भी निकल जाओ, लेकिन मुझमें और तुममें जो पाँच साल का अंतर है, उसे तुम क्या, खुदा भी नहीं मिटा सकता। मैं तुमसे पाँच साल बड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा। मुझे दुनिया का और जिंदगी का तो तजुरबा है, तुम उसकी बराबरी नहीं कर सकते, चाहे तुम एम०ए० और डी०फिल और डी०लिट् ही क्यों न हो जाओ।
  3. संयोग से उसी वक्त एक कटा हुआ कनकौआ हमारे ऊपर से गुजरा। उसकी डोर लटक रही थी। लड़कों का एक गोल पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साहब लंबे हैं ही। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा होस्टल की तरफ़ दौड़े।
  4. मैं कनकौए उड़ाने को मना नहीं करता। मेरा भी जी ललचाता है; लेकिन करूं क्या, खुद बेराह चलें, तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ? यह कर्तव्य भी तो मेरे सिर है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़ है, बुद्धि का विकास।
उत्तर:
कक्षा में अव्वल आ जाने पर छोटे भाई के मन अभिमान आ जाता है। वह अपनी स्वच्छंदता का प्रदर्शन अपने आचरण में करने लगता है। यह देख बड़े भाई साहब ने उसके अभिमान का लक्ष्य करके कहा, कक्षा में प्रथम आकर यह न सोचो कि तुमने बहुत बड़ी सफलता पा ली है। इस सफलता से बड़ी चीज है बुद्धि का विकास और समझ तथा अनुभव। इस अनुभव में तुम अभी छोटे हो। इस मामले में मेरी बुद्धि का विकास तुमसे अधिक है।

प्रश्न 2.
फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी भोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
उत्तर:
इन पंक्तियों में लेखक कह रहा है कि जिस प्रकार आदमी मौत जैसे सत्य को सामने देखकर भी संसार के मोह-माया रूपी बंधनों में जकड़ा रहता है, आसक्ति में डूबा रहता है, सांसारिक सुख नश्वर हैं, यह जानते हुए भी आदमी संग्रह तथा भौतिक सुखों को भोगने में लगा रहता है, ठीक इसी प्रकार से लेखक भी भाई साहब की डाँट-फटकार खाकर भी खेलना-कूदना छोड़ नहीं सकता था। खेल-कूद से आसक्ति के कारण वह भाई साहब की तरह-तरह की डाँट-फटकार सह लेता था।

प्रश्न 3.
बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायेदार बने?
उत्तर:
किसी मकान को टिकाऊ और मजबूत बनाने के लिए उसकी नींव मजबूत बनानी पड़ती है। बिना मजबूत नींव के जिस तरह सुंदर मकान की कल्पना व्यर्थ है, उसी प्रकार शायद बड़े भाई साहब भी प्रत्येक कक्षा में दो-तीन साल लगाकर अपनी नींव मजबूत करते थे। वास्तव में यह भाई साहब की पढ़ाई पर व्यंग्य किया गया है।

प्रश्न 4.
आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानों कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।
उत्तर:
इन पंक्तियों में लेखक कह रहा है कि उसकी आँखें आसमान की ओर देख रही थीं तथा मन उस आकाश में उड़ने वाली पतंग में लीन था, जो कटकर धीमी चाल से झूमती हुई पतन की ओर जा रही थी अर्थात् नीचे गिर रही थी। उस समय आकाशगामी पतंग ऐसी प्रतीत हो रही थी, मानों कोई आत्मा स्वर्ग से अलग होकर धरती पर नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो अर्थात् जन्म लेने जा रही हो। ठीक वैसा ही हाल लेखक का था।

भाषा अध्ययन

प्रश्न  1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-

  1. नसीहत,
  2. रोष,
  3. आजादी,
  4. राजा,
  5. ताज्जुब

उत्तर:
पर्यायवाची शब्द:
           शब्द               –   पर्यायवाची

  1. नसीहत             –   सलाह, मशविरा
  2. रोष                  –   क्रोध, गुस्सा
  3. आजादी            –   स्वतंत्रता,स्वाधीनता
  4. राजा                –   नृप,
  5. महीप ताज्जुब    –   आश्चर्य, अचंभा

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की भाषा बहुत पैनी और मुहावरेदार है। इसलिए इनकी कहानियाँ रोचक और भावपूर्ण होती हैं। इस कहानी में आप देखेंगे कि हर अनुच्छेद में दो-तीन मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
उदाहरणतः इन वाक्यों को देखिए और ध्यान से पढ़िए-

  • मेरा जी पढ़ने में बिलकुल न लगता था। एक घंटा भी किताब लेकर बैठना पहाड़ था।
  • भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते, ऐसे-ऐसे सूक्ति बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और हिम्मत टूट जाती।
  • वह जानलेवा टाइम-टेबिल, वह आँखफोड़ पुस्तकें, किसी की याद न रहती और भाई साहब को नसीहत और फ़जीहत का अवसर मिल जाता।

निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

  1. सिर पर नंगी तलवार लटकना,
  2. आड़े हाथों लेना,
  3. अंधे के हाथ बटेर लगना,
  4. लोहे के चने चबाना,
  5. दाँतों पसीना आना,
  6. ऐरा-गैरा नत्थू खैरा।।

उत्तर:
मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग-

  1. बड़े भाई साहब की फटकार की मेरे सिर पर नंगी तलवार लटकी रहती है
  2. मैं जब भी पतंग उड़ाकर आता, भाई साहब मुझे आड़े हाथों लेते
  3. बिना मेहनत के परीक्षा में पास होना तुम्हारे लिए ऐसा ही है जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गई हो।
  4. एवरेस्ट पर चढ़ना लोहे के चने चबाना है।
  5. बड़े भाई साहब ने कहा, मेरी कक्षा में आ जाओगे तो तुम्हें दाँतों पसीना आ जाएगा।
  6. छोटी कक्षा में ऐरे-गैरे नत्थू खैरे भी पास हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तत्सम, तद्भव, देशी, आगत शब्दों को दिए गए उदाहरणों के आधार पर छाँटकर लिखिए।
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 1
तालीम, जल्दबाज़ी, पुख्ता, हाशिया, चेष्टा, जमात, हर्फ, सूक्तिबाण, जानलेवा, आँखफोड़, घुड़कियाँ, आधिपत्य, पन्ना, मेला-तमाशा, मसलन, स्पेशल, स्कीम, फटकार, प्रातःकाल, विद्वान, निपुण, भाई साहब, अवहेलना, टाइम-टेबिल।
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 2

प्रश्न 4.
क्रियाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं-सकर्मक और अकर्मक।
सकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे-
  शीला ने सेब खाया।
         मोहन पानी पी रहा है।
अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं;
जैसे- शीला हँसती है।
        बच्चा रो रहा है।
नीचे दिए वाक्य में कौन-सी क्रिया है-सकर्मक या अकर्मक? लिखिए-

  1. उन्होंने वहीं हाथ पकड़ लिया।                   …………………..
  2. फिर चोरों-सा जीवन कटने लगा।               …………………..
  3. शैतान का हाल भी पढ़ा होगा।                   …………………..
  4. मैं यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता।    …………………..
  5. समय की पाबंदी पर एक निबंध लिखो।       …………………..
  6. मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।                       …………………..

उत्तर:

  1. सकर्मक
  2. अकर्मक
  3. सकर्मक
  4. सकर्मक
  5. सकर्मक
  6. अकर्मक

प्रश्न 5.
“इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए विचार, इतिहास, संसार, दिन, नीति, प्रयोग, अधिकार।
उत्तर:
वैचारिक, ऐतिहासिक, सांसारिक, दैनिक, नैतिक, प्रायोगिक, आधिकारिक।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। इनमें से कहानियाँ पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। कुछ कहानियों का मंचन भी कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

प्रश्न 2.
शिक्षा रटंत विद्या नहीं है-इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
क्या पढ़ाई और खेल-कूद साथ-साथ चल सकते हैं-कक्षा में इस पर वाद-विवाद कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

प्रश्न 4.
क्या परीक्षा पास कर लेना ही योग्यता का आधार है? इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
कहानी में ज़िदगी से प्राप्त अनुभवों को किताबी ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बताया गया है। अपने माता-पिता बड़े भाई-बहनों या अन्य बुजुर्ग/बड़े सदस्यों से उनके जीवन के बारे में बातचीत कीजिए और पता लगाइए कि बेहतर ढंग से जिंदगी जीने के लिए क्या काम आया-समझदारी/पुराने अनुभव या किताबी पढ़ाई?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आपकी छोटी बहिन/छोटा भाई छात्रावास में रहती रहता है। उसकी पढ़ाई-लिखाई के संबंध में उसे एक पत्र लिखिए।
उत्तर:

दिनांक-15/02/2014
बी-3/4, राणाप्रताप बाग,
दिल्ली

प्रिय|
प्रतिभा,
हार्दिक स्नेह,
प्रतिभा! तुम घर से दूर पढ़ने के लिए गई हुई हो! तुम्हारी वार्षिक परीक्षाएँ निकट हैं। आज का युग प्रतियोगिता का युग है, इसमें परीक्षा उत्तीर्ण करना ही पर्याप्त नहीं, अपितु अच्छे अंक लाना अनिवार्य है। कक्षा में अच्छे अंकों के साथ प्रथम आना आसान नहीं, इसके लिए कठोर व नियमित अध्ययन नितांत आवश्यक है। मुझे विश्वास है कि तुम्हारी संगति अच्छे छात्रों से होगी। तुम इधर-उधर की बातों से दूर रहकर अध्ययन को अपना आधार बनाओगे। परिश्रम ही सफलता कुंजी है। मुझे विश्वास है कि तुम समय का सदुपयोग कर मेहनत के बल से अच्छे अंक लेकर दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण होंगी। मुझे विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी।

तुम्हारा
बड़ा भाई
क०ख०ग०

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9 संगतकार

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है? [CBSE 2012; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
संगतकार के माध्यम से कवि किसी भी कार्य अथवा कला में लगे सहायक कर्मचारियों और कलाकारों की ओर संकेत कर रहा है। वे सहायक कलाकार स्वयं को महत्त्व न देकर मुख्य कलाकार और मुख्य व्यक्ति के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी शक्ति लगा देते हैं।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर:
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा बड़े-बड़े नेताओं, अभिनेताओं, संतों-महात्माओं के साथ भी इसी प्रकार सहयोग करते हैं। नेताओं के इर्द-गिर्द रहने वाले सभी सहायक उपनेता अपने बड़े नेता के महत्त्व को बढ़ाने में लगे रहते हैं। आम कार्यकर्ता, झंडे लगाने वाले, नारे लगाने वाले कार्यकर्ता संगतकार की भूमिका ही निभाते हैं। संतों-महात्माओं के आने से पहले उनकी महिमा का गुणगान करने वाले भक्त और उनके जाने के बाद उनका प्रचार करने वाले भक्त भी संगतकार के समान होते हैं।

प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं? [Imp.][CBSE 2012]
अथवा
संगतकार की भूमिका को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
संगतकार निम्नलिखित रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं

  • वे अपनी आवाज़ और पूँज को मुख्य गायक की आवाज में मिलाकर उनकी आवाज़ का बल बढ़ाते हैं।
  • वे गायक द्वारा और कहीं गहरे चले जाने पर उनकी स्थायी पंक्ति को पकड़े रखते हैं तथा मुख्य गायक को वापस मूल स्वर पर ले आते हैं।
  • वे मुख्य गायक की थकी हुई, टूटती-बिखरती आवाज़ को बल देकर सहयोग देते हैं। उन्हें अकेला नहीं पड़ने देते, बिखरने नहीं देते।

प्रश्न 4
भाव स्पष्ट कीजिए
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है। या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है। उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर:
देखिए अर्थग्रहण संबंधी काव्यांश ‘4’ का ‘भावार्थ’ भाग।

प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
आज कुमार विशु एक सफल गायक है। कभी वह बिल्कुल बच्चा था। तब उसके कितने ही साथियों, मित्रों, अध्यापकों और प्रशंसकों ने उसके बल को बढ़ाया। वे उसकी प्रतिभा पर मुग्ध थे। इसलिए सभी उसे आगे बढ़ाने की कोशिश किया करते थे। उसका एक मित्र उसके लिए अच्छे-अच्छे गीत और गज़लें लिखा करता था। दूसरा उसे बड़े-बड़े कार्यक्रमों में ले जाता था। कोई ऐसा भी था, जो अपना काम छोड़कर उसके साथ कार्यक्रमों में जाता था तथा उसकी हर सुविधा का ध्यान रखता था। उसके चारों ओर प्रशंसा का वातावरण बनाकर रखता था। इन सबसे उसे मानसिक बल मिला। यदि ये सब सहयोगी उसे बल देने की बजाय चुप रह जाते या रोड़े अटकाते तो वह निराश होकर न जाने कहीं भटक या अटक जाता। अतः किसी भी प्रसिद्ध कलाकार के महत्त्व के पंछे उसके सहायकों का भरपूर योगदान होता है।

प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009] |
उत्तर:
जब मुख्य गायक गीत गाते-गाते अपने स्वर को बहुत ऊँचाई पर ले जाता है, तो कभी-कभी उसका स्वर बिखरने लगता है। उत्साह मंद पड़ने लगता है। रुचि और शक्ति समाप्त होने लगती है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है। वह अपनी आवाज़ से उसके बिखराव को सँभाल लेता है। उसके उत्साह को वापस लौटा लाता है। इस प्रकार संगतकार की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह मुख्य गायक का सहायक ही नहीं, संरक्षक, बलवर्द्धक और आनंददायक साथी है।।

प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? [Imp.] [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008] |
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति सफलता के चरम शिखर पर पहुँचकर अचानक लड़खड़ा जाता है तो उसके सहयोगी ही उसे बल, उत्साह, शाबासी और साथ देकर सँभालते हैं। वे अपनी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं। वे उसकी कमी को पूरा करने का भरसक प्रयास करते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाएँ
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर:
(क) ऐसी स्थिति में मैं घबरा जाता हूँ। प्रायः तनावग्रस्त हो जाता हूँ। मैं उन्हें फोन पर फोन करने लगता हूँ। कभी आयोजकों से प्रार्थना करता हूँ कि वे किसी तरह कार्यक्रम को थोड़ी देर के लिए टालें। कुछ भी हो, मैं अपने सहायकों के बिना मंच पर गाने नहीं जाता। जब मैं गाना गाने जाता हूँ तो गर्दन हिलाकर झूमने वाला एकाध प्रशंसक भी चाहिए। कोई मंच पर बैठे-बैठे वाह-वाह करने वाला भी चाहिए। जब मैं गायकी करने उतरता हूँ तो अपने सहायक गायक के बिना गाना ही नहीं गाता।
(ख) यदि दुर्भाग्यवश कभी मेरे सहयोगी कलाकार नृत्य-समारोह में न पहुँच पाएँ तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता। मैं नर्तक हूँ और गायक कलाकार न आए तो मैं क्या कर लूंगा? हारमोनियम या तबला बजाने वाला न पहुँचे तो मैं क्या कर सकता हैं। ऐसी स्थिति में मैं मंच पर पहुँचूँगा। श्रोताओं से हाथ जोड़कर क्षमा माँगूंगा। साथ ही आयोजकों से निवेदन करूंगा कि वे कोशिश करके किसी सहायक वादक को बुला लाएँ। मैं उसके साथ संगति करने की भरपूर कोशिश करूंगा। उस समय मैं किसी प्रसिद्ध गीत पर नृत्य प्रस्तुत कर दूंगा।

प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
सांस्कृतिक समारोह में काम करने वाले सहायक लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। उनके सहयोग के बिना मंच पर दृश्य अभिनीत नहीं हो सकते। वे ही मंच-सज्जा करते हैं। एक-एक उपकरण को सही जगह पर सजाते हैं। दो ही मिनट में नाटक खेलने की तैयारी करना कोई हँसी-खेल नहीं है। योग्य और कुशल सहायक ही ऐसा कर सकते हैं। अनाड़ी
और लापरवाह सहायकों के कारण कई बार बड़े-बड़े नाटक असफल हो जाते हैं। यदि मंच के पीछे खड़ा सहायक ठीक समय पर पृष्ठभूमि में बजने वाला टेप-रिकार्डर न चला सका, या आग का गोला न जला सका, या मटका आदि उपलब्ध न करा सका तो नाटक धरा का धरा रह जाएगा। मंच के पीछे खड़े सहायक ही मंच के सारे सामान को सँभालकर कलाकारों को चिंतामुक्त करते हैं। यदि कलाकारों को अपना सामान आदि उठाने की भी फिक्र हो तो उसका तनाव मंच पर भी दिखाई देने लगेगा। इस प्रकार मंच के सहयोगियों की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे?
अथवा
‘संगतकार’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि संगतकार जैसे व्यक्ति सर्वगुण संपन्न होकर भी समाज में अग्रिम पंक्ति में न आकर प्रायः पीछे ही क्यों रहते हैं?
[A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
संगतकार प्रतिभावान होते हुए भी शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे? [CBSE 2012] |
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। कारण स्पष्ट है। वे मुख्य गायक के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे जीवन-भर तबला, हारमोनियम आदि वाद्य-यंत्र बजाते रहे तो मुख्य कलाकार कैसे बन सकते हैं। हाँ, यदि कभी उन्हें स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिले, उनका गायन सुना जाए, उनका तबला या हारमोनियम ही सुना जाए, तभी वे मुख्य स्थान प्राप्त कर सकेंगे। इस बात के अवसर कम होते हैं। ”
प्रायः संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। प्रथम श्रेणी की प्रतिभा वाले कलाकार जल्दी ही संगतकार की भूमिका छोड़कर स्वतंत्र कार्यक्रम करने लगते हैं। यदि नहीं करते, तो इसे उनके प्रयासों की कमी या दुर्भाग्य माना जाना चाहिए।
मुख्य कलाकार बनने में जहाँ प्रतिभा चाहिए, वहाँ लोगों के बीच संबंध भी चाहिए। कुछ लोग उसके प्रशंसक होने चाहिए। उसे ऊपर उठाने वाले होने चाहिए। जो कलाकार गरीब होते हैं, साधनहीन होते हैं, वे प्रायः शीर्ष स्थान से वंचित रह जाते हैं। उन्हें स्वयं को स्थापित करने के अवसर बहुत कम मिलते हैं।

पाठेतर सक्रियता

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है
( क ) इस संबंध पर सूचना पट्ट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
( ख ) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर:
(क) लता का गायन-समारोह बड़े हर्ष के साथ सूचित किया जाता है कि भारत की सुर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर हमारे विद्यालय के मुख्य भवन में अपने स्वरों का जादू बिखेरने आ रही हैं। कार्यक्रम दिनांक 15 मार्च, 2013, सायं 6.00 बजे आरंभ होगा। सभी छात्र-छात्राएँ आमंत्रित हैं। समारोह-भवन में परिचय-पत्र लेकर आएँ। 5-45 के बाद किसी को अंदर आने की अनुमति नहीं होगी।
(ख) आज जिस स्वर-सम्राज्ञी का गायन आप सुनने जा रहे हैं, वे हैं भारत-कोकिला लता मंगेशकर। लता जी के नाम को कौन नहीं जानता? वे पिछले 50 सालों से भारत के संगीत-जगत और फिल्मी जगत में घटा-सी छाई हुई हैं। 50 साल बाद भी उनका स्वर किसी कुँआरी कन्या-सा पवित्र है। उन्होंने हजारों गाने गाए हैं, देश-विदेश में गाया है। आज वे मुख्य रूप से आपको भक्ति-संगीत सुनाएँगी और आपको अध्यात्म के सागर में डुबकी लगवाएँगी।
उनके साथ तबले पर संगति कर रहे हैं-ग्वालियर के संगीत घराने के मशहूर तबलावादक गोपाल महाराज। वे भी पिछले तीस वर्षों से तबले पर संगति कर रहे हैं। जब उनके तबले पर थाप पड़ती है तो बादल गड़गड़ा उठते हैं। कभी बारिश का स्वर भिगोने लगता है तो कभी नदियों में कमल खिल उठते हैं। वे स्वतंत्र रूप से तबलावादन के कई राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। उन्हें इस क्षेत्र में अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। | वीणा पर संगति कर रही हैं-श्रीमती सीमा राजदान। सीमा राजदान वीणा-गायन के क्षेत्र में एक नया नाम है। किंतु काम बिल्कुल वैसा है जैसा कि नया सूरज करता है। उनकी वीणा में नई स्वर-भंगिमा है और बिल्कुल नया अंदाज।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 कन्यादान

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 कन्यादान.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना? [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
ऋतुराज की ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइए कि आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा-‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।’ [CBSE 2008] |
उत्तर:
माँ चाहती है कि उसकी लडकी स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे। वह दुनियादारों जैसी स्वार्थी, चालाक और झगड़ालू न बने। परंतु साथ ही वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती है। वह चाहती है कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह कहती है कि उसकी लड़की लड़की तो बने किंतु लड़की जैसी दिखाई न दे।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई गई हैं

  1.  वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम सँभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ पकाती है।
  2. काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे जला डाला जाता है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने देखती हैं। परंतु वे सभी सपने झूठे सिद्ध होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पर घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परंतु विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।

प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की ।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जो विवाह के काल्पनिक सुखों में मग्न है। वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल में जाएगी। उसके पति उस पर रीझेंगे, उसे प्यार करेंगे। सास-ससुर और अन्य मित्र-बंधु उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह नाज-नखरों से रहेगी। सब लोग उसकी प्रशंसा करेंगे तो वह कितनी सुखी
होगी। जब वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी तो सबकी आँखों में प्रशंसा का भाव होगा। इस प्रकार ससुराल में उसका जीवन मधुर होगा, संगीतमय होगा। उसे घर-गृहस्थी के सारे काम निपटाने पड़ेंगे, चूल्हा-चौका करना पड़ेगा इसकी तो वह कल्पना भी नहीं करती।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी? [Imp.] [CBSE 2012]
उत्तर:
माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी-जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परंतु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? [Imp.][CBSE2012; A.I. CBSE 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी

  • कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझना।
  • घर-गृहस्थी के सामान्य कार्य तो करना, किंतु अत्याचार न सहना।
  • कपड़ों और गहनों के बदले अपनी आज़ादी न बेचना, अपना व्यक्तित्व न खोना।
  • अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
अथवा
‘कन्यादान’ शब्द द्वारा वर्तमान समय में कन्या के दान की बात करना कहाँ तक उचित है? [CBSE 2012, 2008]
उत्तर:
कन्या के साथ ‘दान करना’ शब्द-प्रयोग सम्मान-बोधक नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि मानो कन्या कोई वस्तु है जिसे दान किया जा सकता है। मानो कन्या बेजान है, व्यक्तित्वहीन है। उसकी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। इस शब्द-प्रयोग। से ऐसा भी लगता है मानो कन्यादान करने के बाद कन्या के माता-पिता के साथ उसका कोई संबंध न रहा हो। वह पराई हो गई हो। इस प्रकार ये रोनों ही अर्थ अनुचित हैं।।
कन्यादान का दूसरा पक्ष भी है। भारत में दान की बड़ी महिमा है। दान वही श्रेष्ठ माना जाता है, जो दिया जाने योग्य हो, जो मूल्यवान और श्रेष्ठ हो। इसके लिए दान का योग्य पात्र भी देखा जाता है। किसी योग्य पात्र को दी जाने वाली वस्तु दान करने से दानदाता स्वयं को धन्य मानता है। इस दृष्टि से कन्यादान मनुष्य द्वारा दिया गया श्रेष्ठतम दान माना जाता है। जब व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से पाली गई अपनी कन्या को उसके ससुराल वालों को सौंपता है तो वह धन्य हो जाता है। वहाँ कन्यादान करना सर्वोत्तम माना जाता है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यह बात सच है कि स्त्री की सुंदरता को महत्त्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को वश में करना है तो उसकी प्रशंसा करो। विशेष रूप से, उसकी सुंदरता की प्रशंसा करो। वह मुग्ध हो जाएगी। वह न चाहते हुए भी मर मिटेगी। इसलिए फिल्मों में सारे नायक नायिकाओं के रूप-सौंदर्य के दीवाने हुए फिरते हैं। हम देखते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर लड़कियाँ दीवानी हो जाती हैं। जब वे सौंदर्य-जाल में फँस जाती हैं तो वही नायक कठोर पति बनकर उनसे हर प्रिय-अप्रिय काम करवाते हैं। तब नायिका को बोध होता है कि उसका सौंदर्य-वर्णन मात्र एक छलावा था। वास्तव में तो वह एक सामान्य नारी है। जो नारी इतना भी नहीं समझ पाती, वह जीवन-भर सजती-सँवरती रहती है और समाज की प्रशंसा पाने के लिए अपने व्यक्तित्व को खो देती है। इसके विपरीत जो नारियाँ अपनी इस कमज़ोरी को समझ लेती हैं, वे पुरुषों के बहकावे में नहीं आतीं। वे शारीरिक सौंदर्य की परिधि को पार करके अपने मन और आत्मा की तृप्ति के लिए जीती हैं। वे शिक्षा, व्यवसाय या अध्यात्म के क्षेत्र में नाम कमा जाती हैं।

प्रश्न
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटॅगी नहीं।
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटुंगी नहीं |
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं।
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ
जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूगी नहीं
उत्तर:
इस कविता का सीधा संबंध कन्यादान नामक कविता से है। कन्यादान की कन्या भोली है। वह सौंदर्य के जाल में बँधी हुई है। वह अपनी गुलामी के कारणों से अनजान है। इसलिए अबोध है। वह नहीं जानती कि सोने के आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बनाते हैं।
‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या जागरूक हो उठी है। उसने जान लिया है कि सोने की जंजीरें उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने सब गहने तोड़ डाले हैं। उसने अपनी कमजोरी को, अपने लक्ष्य को तथा दिशा को समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या कन्यादान’ की कन्या का जाग्रत रूप है।

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