Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 10 Questions and Answers Summary उपसंहार

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 10 Question Answers Summary उपसंहार

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 10 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत ने अपने स्वरूप को किस तरह बचाए रखा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1943 का भीषण अकाल और उससे उत्पन्न महामारी तथा भुखमरी में भारत ने अपना स्वरूप उसी प्रकार बनाए तथा बचाए रखा है जैसे- प्रकृति ने भविष्य के युद्धस्थलों को आज फूलों और हरी घास से ढक लिया है।

प्रश्न 2.
भारत की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारत की विशेषताएँ हैं- विभिन्नता में एकता। बार-बार के आक्रमणों के बावजूद इसकी आत्मा को नहीं जीता जा सका। यह अपराजेय है। बदलते समय के साथ यह ढल जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम कैसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं ?
उत्तर:
हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। जहाँ राष्ट्रीय संस्कृतियाँ मानव जाति की अंतर्राष्ट्रीय संस्कृति घुलमिल जाएगी। हमें समझदारी और सहयोग से काम लेना है। हमें विश्व का नागरिक बनना है।

प्रश्न 2.
हमारी क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
हम भारतवासी किसी साधारण देश के नागरिक नहीं हैं। हमें अपनी, जन्मभूमि, अपने देशवासियों अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं पर गर्व है।

पाठ-विवरण

इस पाठ के माध्यम से लेखक ने भारत की खोज का निष्कर्ष बताया है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 10 Summary

भारत की खोज के बारे में लेखक का कहना है कि- भारत के पर्दे को उठाकर उसने झाँकने का प्रयास किया था। यह कल्पना करना कि भारत वर्तमान रूप में क्या है और उसका इतिहास क्या रहा होगा, यह मेरी अधिकार से बाहर की चेष्टा है। इसकी विभिन्नता में सांस्कृतिक एकता है। यह विरुद्धों का एक ऐसा पुंज है जो मज़बूत और अदृश्य सूत्रों से बँधा है। बार-बार आक्रमणों के बावजूद उसकी आत्मा कभी जीती नहीं जा सकती। यह आज भी अपराजित है।

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत का पुराना जादू अब समाप्त हो रहा है। वह वर्तमान के प्रति जागरूक हो रहा है। समयानुसार यह परिवर्तन ज़रूरी भी था, इसके बाद भी उसमें जनता को वश में करने का तरकीब मालूम रहेगा। हमें अतीत और सुदूर की खोज में देश के बाहर नहीं जाना है। हमारे पास भारत के अतीत बहुतायत हैं। हमें अपने संस्कृति और परंपराओं पर गर्व है। हमें कमजोरियों और असफलताओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमारे पास समय कम है और दुनिया तेज़ गति से बढ़ती जा रही है। अतीत में भारत दूसरी संस्कृतियों का स्वागत कर उन्हें अपने में समा लेता था। आज इस बात की और भी अधिक ज़रूरत है।

हम किसी मामूली देश के नागरिक नहीं हैं। हमें अपने राष्ट्र पर, अपने देशवासियों पर, अपनी संस्कृति और परंपराओं पर गर्व है। यह गर्व ऐसे रोमांचक अतीत के लिए नहीं होना चाहिए। हमें अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। हम आत्मनिर्भर होकर दूसरों का सहयोग करेंगे तभी हम सच्चे भारतीय, अच्छे अंतर्राष्ट्रीयतावादी तथा विश्व नागरिक होंगे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या 121.
कल्पना – सोचना, चेष्टा कोशिश, पुंज – गुच्छा, अदृश्य – जो दिखाई दे, अपराजेय – जिसे जीता न जा सके, अनुरूप – अनुसार, सराबोर – भरा हुआ, जागरूक – सचेत।

पृष्ठ संख्या 122.
सम्मोहन – आकर्षित करना, क्षय – हानि, बुनियाद – नींव, बंदरगाह – जहाँ समुद्री जहाज़ खड़े हों, कुंठित – कम, प्रगति – उन्नति, आत्मसात – अपनाना, सामूहिक – मिलकर।