NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? [A.I. CBSE 2008; 2008 C; CBSE 2010; CBSE]
अथवा
‘बालगोबिन भगत सच्चे साधु थे’ के संदर्भ में उनके चरित्र पर प्रकाश डालिए। [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत खेतीबारी करने वाले गृहस्थ थे। फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। सबसे पहली बात यह थी कि वे अपना जीवन ‘साहब’ को समर्पित किए हुए थे। वे स्वयं को भगवान का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर भी पहले भगवान का हक मानते थे। इसलिए फसलों को पहले साहब के दरबार में अर्थात् कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से जो प्रसाद रूप में वापस मिलता था, उसी में अपना गुजारा करते थे। वे अपने जीवन को भी भगवान की देन मानते थे। इसलिए वे मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया।
भगत जी कभी किसी के साथ झूठ नहीं बोलते थे, झगड़ा नहीं करते थे। किसी की कोई चीज नहीं लेते थे। यहाँ तक कि किसी के खेत में शौच तक होने नहीं जाते थे। यह साधु होने के ही लक्षण हैं। वे अपना तन-मन प्रभु-भक्ति और भक्ति-गीत गाने में लगाया करते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? । [CBSE; CBSE 2010]
उत्तर:
भगत की पुत्रवधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं। उनका एकमात्र पुत्र मर चुका है। वे बूढे हैं और भक्त हैं। उन्हें घर-बार और संसार में कोई रुचि नहीं है। अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दे पाएँगे। इसलिए पुत्रवधू सेवा-भाव से उनके चरणों की छाया में अपने दिन बिताना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन और दवा-दारू का प्रबंध करना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं? [CBSE]
उत्तर:
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा कहकर उसका सम्मान किया। उन्होंने उस मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का शुभ मिलन माना। इसलिए उसे उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढंककर उसे फूलों से सजाया। उसके सिरहाने दीपक रखा। फिर वे उसके सामने प्रभु-भक्ति के गीत गाने लगे। वे बँजड़ी की ताल पर तल्लीन होकर गाते चले गए। उन्होंने विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए। [Imp.][केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत की संक्षिप्त पहचान लिखिए। [CBSE]
उत्तर:
भगत जी गृहस्थ होते हुए भी सीधे-सरल भगत साधु थे। उनकी आयु साठ वर्ष से कुछ ऊपर थी। वे मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके बाल सफेद हो गए थे। उनका चेहरा सदा सफेद बालों के कारण जगमगाता रहता था। हाँ, वे लंबी दाढी या जटाएँ नहीं रखते थे। वे कपड़े भी बहुत कम पहनते थे। वे प्रायः कमर में एक लंगोटी-सी पहने रहते थे और सिर पर कबीरपंथियों की भाँति एक कनफटी टोपी पहने रहते थे। सर्दियों में वे काला कंबल ओढ़े रहते थे। उनके माथे पर सदा एक रामानंदी चंदन सुशोभित रहता था जो नाक के एक किनारे से शुरू होता था। उनके गले में तुलसी की माला बँधी रहती थी।
भगत जी का व्यक्तित्व गायक भक्तों जैसा था। वे सदा खैजड़ी की लय पर प्रभु-भक्ति के गाने गाते रहते थे। उनकी तल्लीनता सुनने वालों को बरबस अपनी ओर खींच लेती थी।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी? [Imp.][CBSE]
अथवा
बालगोबिन के किन गुणों के कारण लोगों को कुतूहल होता था? [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों को हैरान कर देती थी। वे भगत जी की सरलता, सादगी और निस्वार्थता पर हैरान होते थे। भगत जी भूलकर भी किसी से कुछ नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी की चीज छूते भी नहीं थे। यहाँ तक कि किसी दूसरे के खेत में शौच भी नहीं करते थे। लोग उनके इस खरे व्यवहार पर मुग्ध थे।
लोग भगत जी पर तब और भी आश्चर्य करते थे जब वे भोरकाल में उठकर दो मील दूर स्थित नदी में स्नान कर आते थे। वापसी पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के किनारे प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनके इन प्रभाती-गानों को सुनकर लोग सचमुच हैरान रह जाते थे।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए। [CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत का संगीत किस प्रकार लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता था?[CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत प्रभु-भक्ति के मस्ती-भरे गीत गाया करते थे। उनके गानों में सच्ची टेर होती थी। उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगती थीं। खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत में जादुई प्रभाव था। वह मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण पर छा जाता था। यहाँ तक कि घनघोर सर्दी और गर्मियों की उमस भी उन्हें डिगा नहीं पाती थी।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि बालगोबिन भगत का अंतर्मन ही उन्हें आदेश देता था। वे समाज की मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते थे। समाज की मान्यता है कि पति की चिता को पत्नी आग नहीं दे सकती। पत्नी को चाहिए कि वह पति की मृत्यु के बाद विधवा बनकर सास-ससुर की सेवा में दिन बिताए। बालगोबिन ने इन दोनों मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता को पतोहू के हाथों से ही आग दिलवाई। उसके बाद उन्होंने पतोहू को दूसरे विवाह के लिए स्वयं उसके भाइयों के साथ वापस भेज दिया।
बालगोबिन भगत ने समाज की देखादेखी पुत्र की मृत्यु पर शोक भी नहीं मनाया। उन्होंने पुत्र की मृत्यु को परमात्मा से मिलन का उत्सव माना। इसलिए वे शोक मनाने की बजाय प्रभु-भक्ति के गीतों में तल्लीन हो गए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक न मनाने की सलाह दी।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बालगोबिन भगत भी एक-एक उँगुली से धान के पौधों को पंक्तिबद्ध करके रोप रहे थे। तभी उन्होंने मस्ती भरी तान छेड़ी। उनके गीत का स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि वह सीधे आकाश में स्थित परमात्मा को टेरता प्रतीत होता था। उसे सुनकर खेतों में उछल-कूद मचाते बच्चों में एक मस्ती आ गई। मेड़ों पर बैठी औरतों के ओंठ गाने के लिए बेचैन हो उठे। किसानों की उँगलियों में भी एक क्रमिक लय आ गई। हल चलाने वाले किसानों के पैर संगीत की थाप पर चलने लगे। इस प्रकार उनके संगीत का जादू सारे वातावरण पर छा गया।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है? [CBSE 2008, 2010]
उत्तर:
बालगोबिन भगत कबीर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी श्रद्धा को निम्न रूपों में व्यक्त किया• उन्होंने स्वयं को कबीर-पंथ के प्रति समर्पित कर दिया। वे अपना जीवन कबीर के आदेशों पर चलाते थे।
कबीर ने गृहस्थी करते हुए संसार के आकर्षणों से दूर रहने की सलाह दी थी। बालगोबिन भगत ने भी यही किया। उन्होंने खेतीबारी करते हुए कभी लोभ-लालच, स्वार्थ या आडंबर-भरा जीवन नहीं जिया। जैसे कबीर अपने व्यवहार में खरे थे, उसी प्रकार बालगोबिन भगत भी व्यवहार में खरे रहे। • भगत जी ने अपनी फसलों को भी ईश्वर की संपत्ति माना। वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद रूप में पाई फसलों का भोग करते थे। कबीर ने नर-नारी की समानता पर बल दिया। बाहरी आडंबरों पर चोट की। बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार अपनी आत्मा की आवाज़ पर व्यवहार किया। उन्होंने वही किया, जो उन्हें उचित और हितकारी लगा। • कबीर मनुष्य-शरीर को नश्वर मानते थे। वे जीवन को प्रभु-भक्ति में लगाने की सीख देते थे। बालगोबिन भगत ने उनके इन आदेशों को पूरी तरह माना। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को भी उत्सव में बदल दिया। वे अंत तक मस्ती-भरे गीत गाते रहे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे? [CBSE]
उत्तर:
मेरी दृष्टि में भगत सच्चे सरल-हृदय किसान थे। वे कबीर की भक्ति से प्रभावित हुए होंगे। उन्हें कबीर की साफ़ आवाज़ में सच्चाई नज़र आई होगी। यह सच्चाई उनके सच्चे हृदय में पैठ गई होगी। उन्होंने तब से अपनी आत्मा को कबीर के चरणों में झुका दिया होगा। उन्होंने कबीर को अपना गुरु मान लिया होगा तथा अपने जीवन को उन्हीं के अनुसार ढाल दिया होगा।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर:
भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। कृषि वर्षा पर आधारित है। वर्षा आषाढ़ मास में शुरू होती है। इसलिए आषाढ़ मास में गाँववासी बहुत प्रसन्न नज़र आते हैं। वे साल-भर आषाढ़ मास की प्रतीक्षा करते हैं ताकि खेतों में धान रोप सकें। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ होकर आनंद-क्रीड़ा करते हैं। औरतें नाश्ता परोसकर किसानों का भरपूर सहयोग करती हैं। किसान हल जोतते हैं तथा दिन-भरं बुवाई करते हैं। वे सभी फसलों की आशा में उल्लास से भरे जाते हैं। इन्हीं दिनों गाँव का सामाजिक वातावरण सांस्कृतिक रंगों से ओतप्रोत हो उठता है।

प्रश्न 12.
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।”क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर:
साधु की पहचान उसके पहनावे से भी होती है। साधु व्यक्ति अगर संसारी आकर्षणों से बँधा नहीं है तो वह सुंदर पहनावे की ओर ध्यान नहीं देता। वह कम-से-कम कपड़े पहनता है। प्रायः वह धोती, कंबल जैसे बिना सिले कपड़े पहनता है और सादगी से रहता है। परंतु साधु की सच्ची पहचान ये कपड़े नहीं हैं। बहुत से ढोंगी लोग साधुओं का वेश धारण करके संसार के सुखों का भोग करते हैं।
| मेरे विचार से साधु की सच्ची पहचान उसके व्यवहार से होती है। सच्चा साधु अपना ध्यान संसार की ओर नहीं, प्रभु-भक्ति की ओर लगाता है। वह व्यवहार में सच्चा, सादा, आडंबरहीन, खरा और साफ़ रहता है। वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेता। कभी किसी का अधिकार नहीं छीनता। वह अपनी कमाई को भी प्रभु-चरणों में अर्पित कर देता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे? [Imp.] [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE]
उत्तर:
मोह और प्रेम में निश्चित रूप से अंतर होता है। मोह में मनुष्य अपने स्वार्थ की चिंता करता है। प्रेम में वह प्रिय का हित देखता है। बालगोबिन भगत ने अपने व्यवहार से यह अंतर सिद्ध किया। उन्होंने अपनी पतोहू के प्रति मोह प्रकट न करके प्रेम प्रकट किया। यदि वे उसे अपनी सेवा के लिए रख लेते तो यह उनका मोह होता। उन्होंने पतोहू के भविष्य की चिंता की। इसलिए उसका जीवन सुधारने के लिए उसे दूसरा विवाह करने की सलाह दी। इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर:
1. वह जब-जब सामने आता।
जब-जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने-स्थानवाची क्रियाविशेषण
2. तब तक मुझमें वह ज्ञान भी नहीं था।
तब तक-कालवाची क्रियाविशेषण
3. कपड़े बिल्कुल कम पहनते।
बिल्कुल कम-परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
4. भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना।
नहीं-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
5. न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
6. वे दिन-दिन छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण
7. जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा-कालवाची क्रियाविशेषण ।
8. धान के पौधे को पंक्तिबद्ध खेत में बिठा रही है।
पंक्तिबद्ध-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
9. बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है।
डिमक-डिमक-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
10. इन दिनों वे सवेरे ही उठते।
सवेरे ही-कालवाची क्रियाविशेषण।

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फ़ोटो का
संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलेंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
यह कलैंडर चैत्र मास से शुरू होता है। इसके महीनों को क्रम इस प्रकार हैचैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ,
आषाढ, श्रावण,
भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष,
फाल्गुन।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रात:काल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती
गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

 

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9 संगतकार

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है? [CBSE 2012; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
संगतकार के माध्यम से कवि किसी भी कार्य अथवा कला में लगे सहायक कर्मचारियों और कलाकारों की ओर संकेत कर रहा है। वे सहायक कलाकार स्वयं को महत्त्व न देकर मुख्य कलाकार और मुख्य व्यक्ति के महत्त्व को बढ़ाने में अपनी शक्ति लगा देते हैं।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर:
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा बड़े-बड़े नेताओं, अभिनेताओं, संतों-महात्माओं के साथ भी इसी प्रकार सहयोग करते हैं। नेताओं के इर्द-गिर्द रहने वाले सभी सहायक उपनेता अपने बड़े नेता के महत्त्व को बढ़ाने में लगे रहते हैं। आम कार्यकर्ता, झंडे लगाने वाले, नारे लगाने वाले कार्यकर्ता संगतकार की भूमिका ही निभाते हैं। संतों-महात्माओं के आने से पहले उनकी महिमा का गुणगान करने वाले भक्त और उनके जाने के बाद उनका प्रचार करने वाले भक्त भी संगतकार के समान होते हैं।

प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं? [Imp.][CBSE 2012]
अथवा
संगतकार की भूमिका को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
संगतकार निम्नलिखित रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं

  • वे अपनी आवाज़ और पूँज को मुख्य गायक की आवाज में मिलाकर उनकी आवाज़ का बल बढ़ाते हैं।
  • वे गायक द्वारा और कहीं गहरे चले जाने पर उनकी स्थायी पंक्ति को पकड़े रखते हैं तथा मुख्य गायक को वापस मूल स्वर पर ले आते हैं।
  • वे मुख्य गायक की थकी हुई, टूटती-बिखरती आवाज़ को बल देकर सहयोग देते हैं। उन्हें अकेला नहीं पड़ने देते, बिखरने नहीं देते।

प्रश्न 4
भाव स्पष्ट कीजिए
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है। या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है। उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर:
देखिए अर्थग्रहण संबंधी काव्यांश ‘4’ का ‘भावार्थ’ भाग।

प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
आज कुमार विशु एक सफल गायक है। कभी वह बिल्कुल बच्चा था। तब उसके कितने ही साथियों, मित्रों, अध्यापकों और प्रशंसकों ने उसके बल को बढ़ाया। वे उसकी प्रतिभा पर मुग्ध थे। इसलिए सभी उसे आगे बढ़ाने की कोशिश किया करते थे। उसका एक मित्र उसके लिए अच्छे-अच्छे गीत और गज़लें लिखा करता था। दूसरा उसे बड़े-बड़े कार्यक्रमों में ले जाता था। कोई ऐसा भी था, जो अपना काम छोड़कर उसके साथ कार्यक्रमों में जाता था तथा उसकी हर सुविधा का ध्यान रखता था। उसके चारों ओर प्रशंसा का वातावरण बनाकर रखता था। इन सबसे उसे मानसिक बल मिला। यदि ये सब सहयोगी उसे बल देने की बजाय चुप रह जाते या रोड़े अटकाते तो वह निराश होकर न जाने कहीं भटक या अटक जाता। अतः किसी भी प्रसिद्ध कलाकार के महत्त्व के पंछे उसके सहायकों का भरपूर योगदान होता है।

प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009] |
उत्तर:
जब मुख्य गायक गीत गाते-गाते अपने स्वर को बहुत ऊँचाई पर ले जाता है, तो कभी-कभी उसका स्वर बिखरने लगता है। उत्साह मंद पड़ने लगता है। रुचि और शक्ति समाप्त होने लगती है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है। वह अपनी आवाज़ से उसके बिखराव को सँभाल लेता है। उसके उत्साह को वापस लौटा लाता है। इस प्रकार संगतकार की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह मुख्य गायक का सहायक ही नहीं, संरक्षक, बलवर्द्धक और आनंददायक साथी है।।

प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? [Imp.] [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008] |
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति सफलता के चरम शिखर पर पहुँचकर अचानक लड़खड़ा जाता है तो उसके सहयोगी ही उसे बल, उत्साह, शाबासी और साथ देकर सँभालते हैं। वे अपनी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं। वे उसकी कमी को पूरा करने का भरसक प्रयास करते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुँच पाएँ
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर:
(क) ऐसी स्थिति में मैं घबरा जाता हूँ। प्रायः तनावग्रस्त हो जाता हूँ। मैं उन्हें फोन पर फोन करने लगता हूँ। कभी आयोजकों से प्रार्थना करता हूँ कि वे किसी तरह कार्यक्रम को थोड़ी देर के लिए टालें। कुछ भी हो, मैं अपने सहायकों के बिना मंच पर गाने नहीं जाता। जब मैं गाना गाने जाता हूँ तो गर्दन हिलाकर झूमने वाला एकाध प्रशंसक भी चाहिए। कोई मंच पर बैठे-बैठे वाह-वाह करने वाला भी चाहिए। जब मैं गायकी करने उतरता हूँ तो अपने सहायक गायक के बिना गाना ही नहीं गाता।
(ख) यदि दुर्भाग्यवश कभी मेरे सहयोगी कलाकार नृत्य-समारोह में न पहुँच पाएँ तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता। मैं नर्तक हूँ और गायक कलाकार न आए तो मैं क्या कर लूंगा? हारमोनियम या तबला बजाने वाला न पहुँचे तो मैं क्या कर सकता हैं। ऐसी स्थिति में मैं मंच पर पहुँचूँगा। श्रोताओं से हाथ जोड़कर क्षमा माँगूंगा। साथ ही आयोजकों से निवेदन करूंगा कि वे कोशिश करके किसी सहायक वादक को बुला लाएँ। मैं उसके साथ संगति करने की भरपूर कोशिश करूंगा। उस समय मैं किसी प्रसिद्ध गीत पर नृत्य प्रस्तुत कर दूंगा।

प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
सांस्कृतिक समारोह में काम करने वाले सहायक लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। उनके सहयोग के बिना मंच पर दृश्य अभिनीत नहीं हो सकते। वे ही मंच-सज्जा करते हैं। एक-एक उपकरण को सही जगह पर सजाते हैं। दो ही मिनट में नाटक खेलने की तैयारी करना कोई हँसी-खेल नहीं है। योग्य और कुशल सहायक ही ऐसा कर सकते हैं। अनाड़ी
और लापरवाह सहायकों के कारण कई बार बड़े-बड़े नाटक असफल हो जाते हैं। यदि मंच के पीछे खड़ा सहायक ठीक समय पर पृष्ठभूमि में बजने वाला टेप-रिकार्डर न चला सका, या आग का गोला न जला सका, या मटका आदि उपलब्ध न करा सका तो नाटक धरा का धरा रह जाएगा। मंच के पीछे खड़े सहायक ही मंच के सारे सामान को सँभालकर कलाकारों को चिंतामुक्त करते हैं। यदि कलाकारों को अपना सामान आदि उठाने की भी फिक्र हो तो उसका तनाव मंच पर भी दिखाई देने लगेगा। इस प्रकार मंच के सहयोगियों की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे?
अथवा
‘संगतकार’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि संगतकार जैसे व्यक्ति सर्वगुण संपन्न होकर भी समाज में अग्रिम पंक्ति में न आकर प्रायः पीछे ही क्यों रहते हैं?
[A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
संगतकार प्रतिभावान होते हुए भी शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे? [CBSE 2012] |
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। कारण स्पष्ट है। वे मुख्य गायक के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे जीवन-भर तबला, हारमोनियम आदि वाद्य-यंत्र बजाते रहे तो मुख्य कलाकार कैसे बन सकते हैं। हाँ, यदि कभी उन्हें स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिले, उनका गायन सुना जाए, उनका तबला या हारमोनियम ही सुना जाए, तभी वे मुख्य स्थान प्राप्त कर सकेंगे। इस बात के अवसर कम होते हैं। ”
प्रायः संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। प्रथम श्रेणी की प्रतिभा वाले कलाकार जल्दी ही संगतकार की भूमिका छोड़कर स्वतंत्र कार्यक्रम करने लगते हैं। यदि नहीं करते, तो इसे उनके प्रयासों की कमी या दुर्भाग्य माना जाना चाहिए।
मुख्य कलाकार बनने में जहाँ प्रतिभा चाहिए, वहाँ लोगों के बीच संबंध भी चाहिए। कुछ लोग उसके प्रशंसक होने चाहिए। उसे ऊपर उठाने वाले होने चाहिए। जो कलाकार गरीब होते हैं, साधनहीन होते हैं, वे प्रायः शीर्ष स्थान से वंचित रह जाते हैं। उन्हें स्वयं को स्थापित करने के अवसर बहुत कम मिलते हैं।

पाठेतर सक्रियता

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है
( क ) इस संबंध पर सूचना पट्ट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
( ख ) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर:
(क) लता का गायन-समारोह बड़े हर्ष के साथ सूचित किया जाता है कि भारत की सुर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर हमारे विद्यालय के मुख्य भवन में अपने स्वरों का जादू बिखेरने आ रही हैं। कार्यक्रम दिनांक 15 मार्च, 2013, सायं 6.00 बजे आरंभ होगा। सभी छात्र-छात्राएँ आमंत्रित हैं। समारोह-भवन में परिचय-पत्र लेकर आएँ। 5-45 के बाद किसी को अंदर आने की अनुमति नहीं होगी।
(ख) आज जिस स्वर-सम्राज्ञी का गायन आप सुनने जा रहे हैं, वे हैं भारत-कोकिला लता मंगेशकर। लता जी के नाम को कौन नहीं जानता? वे पिछले 50 सालों से भारत के संगीत-जगत और फिल्मी जगत में घटा-सी छाई हुई हैं। 50 साल बाद भी उनका स्वर किसी कुँआरी कन्या-सा पवित्र है। उन्होंने हजारों गाने गाए हैं, देश-विदेश में गाया है। आज वे मुख्य रूप से आपको भक्ति-संगीत सुनाएँगी और आपको अध्यात्म के सागर में डुबकी लगवाएँगी।
उनके साथ तबले पर संगति कर रहे हैं-ग्वालियर के संगीत घराने के मशहूर तबलावादक गोपाल महाराज। वे भी पिछले तीस वर्षों से तबले पर संगति कर रहे हैं। जब उनके तबले पर थाप पड़ती है तो बादल गड़गड़ा उठते हैं। कभी बारिश का स्वर भिगोने लगता है तो कभी नदियों में कमल खिल उठते हैं। वे स्वतंत्र रूप से तबलावादन के कई राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। उन्हें इस क्षेत्र में अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। | वीणा पर संगति कर रही हैं-श्रीमती सीमा राजदान। सीमा राजदान वीणा-गायन के क्षेत्र में एक नया नाम है। किंतु काम बिल्कुल वैसा है जैसा कि नया सूरज करता है। उनकी वीणा में नई स्वर-भंगिमा है और बिल्कुल नया अंदाज।

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना? [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
ऋतुराज की ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइए कि आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा-‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।’ [CBSE 2008] |
उत्तर:
माँ चाहती है कि उसकी लडकी स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे। वह दुनियादारों जैसी स्वार्थी, चालाक और झगड़ालू न बने। परंतु साथ ही वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती है। वह चाहती है कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह कहती है कि उसकी लड़की लड़की तो बने किंतु लड़की जैसी दिखाई न दे।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई गई हैं

  1.  वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम सँभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ पकाती है।
  2. काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे जला डाला जाता है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने देखती हैं। परंतु वे सभी सपने झूठे सिद्ध होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पर घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परंतु विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।

प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की ।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जो विवाह के काल्पनिक सुखों में मग्न है। वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल में जाएगी। उसके पति उस पर रीझेंगे, उसे प्यार करेंगे। सास-ससुर और अन्य मित्र-बंधु उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह नाज-नखरों से रहेगी। सब लोग उसकी प्रशंसा करेंगे तो वह कितनी सुखी
होगी। जब वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी तो सबकी आँखों में प्रशंसा का भाव होगा। इस प्रकार ससुराल में उसका जीवन मधुर होगा, संगीतमय होगा। उसे घर-गृहस्थी के सारे काम निपटाने पड़ेंगे, चूल्हा-चौका करना पड़ेगा इसकी तो वह कल्पना भी नहीं करती।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी? [Imp.] [CBSE 2012]
उत्तर:
माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी-जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परंतु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? [Imp.][CBSE2012; A.I. CBSE 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी

  • कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझना।
  • घर-गृहस्थी के सामान्य कार्य तो करना, किंतु अत्याचार न सहना।
  • कपड़ों और गहनों के बदले अपनी आज़ादी न बेचना, अपना व्यक्तित्व न खोना।
  • अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
अथवा
‘कन्यादान’ शब्द द्वारा वर्तमान समय में कन्या के दान की बात करना कहाँ तक उचित है? [CBSE 2012, 2008]
उत्तर:
कन्या के साथ ‘दान करना’ शब्द-प्रयोग सम्मान-बोधक नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि मानो कन्या कोई वस्तु है जिसे दान किया जा सकता है। मानो कन्या बेजान है, व्यक्तित्वहीन है। उसकी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। इस शब्द-प्रयोग। से ऐसा भी लगता है मानो कन्यादान करने के बाद कन्या के माता-पिता के साथ उसका कोई संबंध न रहा हो। वह पराई हो गई हो। इस प्रकार ये रोनों ही अर्थ अनुचित हैं।।
कन्यादान का दूसरा पक्ष भी है। भारत में दान की बड़ी महिमा है। दान वही श्रेष्ठ माना जाता है, जो दिया जाने योग्य हो, जो मूल्यवान और श्रेष्ठ हो। इसके लिए दान का योग्य पात्र भी देखा जाता है। किसी योग्य पात्र को दी जाने वाली वस्तु दान करने से दानदाता स्वयं को धन्य मानता है। इस दृष्टि से कन्यादान मनुष्य द्वारा दिया गया श्रेष्ठतम दान माना जाता है। जब व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से पाली गई अपनी कन्या को उसके ससुराल वालों को सौंपता है तो वह धन्य हो जाता है। वहाँ कन्यादान करना सर्वोत्तम माना जाता है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यह बात सच है कि स्त्री की सुंदरता को महत्त्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को वश में करना है तो उसकी प्रशंसा करो। विशेष रूप से, उसकी सुंदरता की प्रशंसा करो। वह मुग्ध हो जाएगी। वह न चाहते हुए भी मर मिटेगी। इसलिए फिल्मों में सारे नायक नायिकाओं के रूप-सौंदर्य के दीवाने हुए फिरते हैं। हम देखते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर लड़कियाँ दीवानी हो जाती हैं। जब वे सौंदर्य-जाल में फँस जाती हैं तो वही नायक कठोर पति बनकर उनसे हर प्रिय-अप्रिय काम करवाते हैं। तब नायिका को बोध होता है कि उसका सौंदर्य-वर्णन मात्र एक छलावा था। वास्तव में तो वह एक सामान्य नारी है। जो नारी इतना भी नहीं समझ पाती, वह जीवन-भर सजती-सँवरती रहती है और समाज की प्रशंसा पाने के लिए अपने व्यक्तित्व को खो देती है। इसके विपरीत जो नारियाँ अपनी इस कमज़ोरी को समझ लेती हैं, वे पुरुषों के बहकावे में नहीं आतीं। वे शारीरिक सौंदर्य की परिधि को पार करके अपने मन और आत्मा की तृप्ति के लिए जीती हैं। वे शिक्षा, व्यवसाय या अध्यात्म के क्षेत्र में नाम कमा जाती हैं।

प्रश्न
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटॅगी नहीं।
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटुंगी नहीं |
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं।
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ
जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूगी नहीं
उत्तर:
इस कविता का सीधा संबंध कन्यादान नामक कविता से है। कन्यादान की कन्या भोली है। वह सौंदर्य के जाल में बँधी हुई है। वह अपनी गुलामी के कारणों से अनजान है। इसलिए अबोध है। वह नहीं जानती कि सोने के आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बनाते हैं।
‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या जागरूक हो उठी है। उसने जान लिया है कि सोने की जंजीरें उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने सब गहने तोड़ डाले हैं। उसने अपनी कमजोरी को, अपने लक्ष्य को तथा दिशा को समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या कन्यादान’ की कन्या का जाग्रत रूप है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7  छाया मत छूना

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? [Imp. [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009] |
उत्तर:
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही सत्य है। मनुष्य को आखिरकार अपने वास्तविक सच का सामना करना पड़ता है। उसे अपनी परिस्थितियों में जीना पड़ता है। भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने उसे दुखी ही करते हैं, किसी मंजिल पर नहीं ले जाते।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर:
बड़प्पन का अहसास, महान होने का सुख भी एक छलावा है। मनुष्य बड़ा आदमी होकर भी मन से प्रसन्न हो, यह आवश्यक नहीं। हर सुख के साथ एक दुख भी जुड़ा रहता है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात भी लगी रहती है, पूर्णिमा के बाद अमावस भी आती है, उसी तरह सुख के पीछे दुख भी छिपे रहते हैं।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है? [Imp.] [CBSE 2008 C; A.I. CBSE 2008 C; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
अथवा
‘छाया मत छूना मन’ पंक्ति में ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है? [CBSE]
उत्तर:
यहाँ ‘छाया’ शब्द अवास्तविकताओं के लिए प्रयुक्त हुआ है। ये छायाएँ अतीत की भी हो सकती हैं और भविष्य की भी। ये छायाएँ पुरानी मीठी यादों की भी हो सकती हैं और मीठे सपनों की भी।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर:
इस कविता में प्रयुक्त अन्य विशेषण हैं
सुरंग सुधियाँ सुहावनी–यहाँ ‘सुधियाँ’ विशेष्य के लिए दो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं-‘सुरंग’ और ‘सुहावनी’। इनके प्रयोग से बीती हुई यादों के दृश्य बड़े मीठे, मनमोहक और रंगीन बन पड़े हैं। यह पदबंध शादी या मिलन जैसे अवसर का रंगीन दृश्य प्रस्तुत करता जान पड़ता है।
जीवित क्षण–यहाँ ‘ क्षण’ के लिए ‘जीवित’ विशेषण प्रयुक्त हुआ है। इसके प्रयोग से पिछली यादों का भूला हुआ क्षण सामने इस तरह साकार हो उठा है मानो वह क्षण पुराना न होकर वर्तमान में चल रहा हो।
केवल मृगतृष्णा-‘मृगतृष्णा’ के साथ ‘केवल’ विशेषण लगने से भ्रम और छलावा और अधिक सधन, गहरा और निश्चित हो गया है। इससे यह बोध जाग उठा है कि बड़प्पन का अहसास छलावे के सिवा कुछ है ही नहीं।
दुविधा-हत साहस-‘साहस’ के साथ ‘दुविधा-हत’ विशेषण साहस को स्पष्ट रूप से दबाए हुए प्रतीत होता है। यहाँ ‘मृत साहस’ का भाव मुखर हो उठा है।
शरद-रात–यहाँ ‘रात’ के साथ ‘शरद’ शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है। रस-बसंत-‘बसंत’ के साथ ‘रस’ विशेषण बसंत को और अधिक रसीला, मनमोहक और मधुर बना रहा है।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर सड़क पर पानी की चमक दिखाई देती है। हम वहाँ जाकर देखते हैं तो कुछ नहीं होता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ‘मृगतृष्णा’ कहा जाता है। इस कविता में इसका अर्थ छलावे और भ्रम के लिए किया गया है। कवि कहना चाहता है कि लोग प्रभुता अर्थात् बड़प्पन में सुख मानते हैं। किंतु बड़े होकर भी कोई सुख नहीं मिलता। अतः बड़प्पन का सुख दूर से ही दिखाई देता है। यह वास्तविक सच नहीं है।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर:
निम्न पंक्ति में जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता के कवि ने मानव की किन वृत्तियों को जीवन के लिए दुखदायी माना है? [A.I. CGBSE 2008 C]
उत्तर:
इस कविता में दुख के निम्नलिखित कारण बताए गए हैं

  1. छाया अर्थात् बीती हुई मीठी यादें जिन्हें याद कर-करके हम अपने वर्तमान को और अधिक दुखी कर लेते हैं।
  2. छाया अर्थात् भविष्य के सपने, जिनके पूरा न होने पर हम दुखी रहते हैं।
  3. वर्तमान जीवन में उचित अवसर पर लाभ न मिलना। बसंत के समय फूल का न खिलना या शरद्-रात में चाँद का न खिलना। आशय यह है कि उचित अवसर पर सुख न मिलना।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर:
मेरे जीवन की सबसे मधुर स्मृति: पहली बार एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया प्रथम आया। 26 जनवरी की परेड में सम्मानित।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
यह सच है कि सभी उपलब्धियाँ उचित समय पर ही अच्छी लगती हैं। जैसे-सर्दी बीतने पर रजाई का क्या लाभ? बारिश खत्म होने पर छाता मिला तो क्या लाभ? मनुष्य के मरने के बाद मकान बन सका तो क्या लाभ? फसलें नष्ट होने के बाद सुरक्षा का प्रबंध हुआ तो क्या लाभ? डकैती होने के बाद पुलिस आ पाई तो क्या लाभ? आग बुझने के बाद फायर-ब्रिगेड आ पाया तो क्या लाभ? रोगी मरने के बाद डॉक्टर आ पाया तो क्या लाभ! ये सब उदाहरण बताते हैं कि उचित अवसर और आवश्यकता के समय ही उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने एर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।

उत्तर:

प्रिय रमेश!
एक अनुभव सुनाने का मन कर रहा है। हमारा नौकर दो दिन पहले अचानक गायब हो गया। पता चला कि पिताजी ने उसे 500 रु. का नोट देकर बाजार से मीठे-मीठे आम लाने को कहा था। जब वह वापस नहीं आया तो सभी सदस्य पिताजी की लापरवाही को कोसने लगे। मैंने भी यही किया। परंतु आज पुलिस थाने से पता चला की वह नौकर एक सड़क दुर्घटना में मारा गया है। उसकी जेब से 300 रु. और थेले में 5 किलो मीठे आम मिले हैं।
भाई रमेश! यह समाचार सुनते ही मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए हैं। पता नहीं, हम भय और द्वेष वश कुछ का कुछ सोच लेते हैं किंतु सत्य कुछ और ही होता है।

प्रश्न
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आज जीत की रात, पहरुए सावधान रहना।
खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना। ऊँची हुई मशाल हमारी आगे कठिन डगर है। शत्रु हट गया लेकिन उसकी छायाओं का डर है। शोषण से मृत है समाज, कमज़ोर हमारा घर है। किंतु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है। जन-गंगा में ज्वार, लहर, तुम प्रवहमान रहना।
पहरुए! सावधान रहना।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम जी! हमने बचपन में ऐसे-ऐसे कितने धनुष तोड़ डाले। आपने तब तो क्रोध नहीं किया। फिर इस पर इतनी ममता क्यों?
परशुराम-अरे राजकुमार! लगता है तेरी मौत आई है। तभी तो तू सँभलकर बोल नहीं पा रहा। तू शिव-धनुष को आम धनुष के समान समझ रहा है।
लक्ष्मण-हमने तो यही जाना था कि धनुष-धनुष एक-समान होते हैं। फिर राम ने तो इस पुराने धनुष को छुआ भर था कि यह दो टुकड़े हो गया। इसमें राम का क्या दोष? | परशुराम-अरे मूर्ख बालक! लगता है तू मेरे उग्र स्वभाव को नहीं जानता। मैं तुझे बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ। तू क्या मुझे कोरा मुनि समझता है। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। मैंने कई बार पृथ्वी के सारे राजाओं का संहार किया है। मैंने सहस्रबाहु की भी भुजाएँ काट डाली थीं। मेरा फरसा इतना कठोर है कि इसके डर से गर्भ के बच्चे भी गिर जाते हैं।

लक्ष्मण-वाह मुनि जी! आप तो बहुत बड़े योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे कुठार दिखाकर डराना चाहते हैं। आपका बस चले तो फैंक मारकर पहाड़ को उड़ा दें। मैं भी कोई छुईमुई का फूल नहीं हूँ जो तर्जनी देखने-भर से मर जाऊँ। मैं तो आपको ब्राह्मण समझकर चुप रह गया। हमारे वंश में गाय, ब्राह्मण, देवता और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाई जाती। फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों से अधिक घातक हैं। आपने शस्त्र तो व्यर्थ ही धारण कर रखे हैं।
परशुराम-विश्वामित्र! यह बालक तो बहुत मूर्ख, कुलनाशक, निरंकुश और कुलकलंक है। मैं तुम्हें कह रहा हूँ कि इसे रोक लो। इसे मेरे प्रताप और प्रभाव के बारे में बताओ। वरना यह मारा जाएगा।

लक्ष्मण-मुनि जी! आपके यश को आपके सिवा और कौन कह सकता है। आप पहले भी अपने बारे में बहुत प्रकार से बहुत कुछ कह चुके हैं। कुछ और रह गया हो तो वह भी कह लीजिए। वैसे सच्चे शूरवीर युद्ध भूमि में अपना गुणगान नहीं करते, वीरता दिखाते हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम ने अपने विषय में सभी में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
अथवा
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में परशुराम ने अपने विषय में जो कहा, उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा-“मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। मैंने अनेक बार अपनी भुजाओं के बल पर धरती के सारे राजा मार डाले हैं और यह पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी है। मेरा फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजा को मार डाला था। इसे देखकर गर्भिणी स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं।”

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई? [Imp.] [CBSE; A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद के आधार पर संक्षेप में लिखिए कि परशुराम की क्रोधपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें शूरवीर की क्या पहचान बताई? [CBSE 2008]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा के बारे में बताया कि सच्चा वीर रणभूमि में वीरता दिखलाता है, अपना गुणगान नहीं करता सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।

प्रश्न 4.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर हैं। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि साहस और शक्ति तभी तक अच्छे लगते हैं, जब तक कि साहसी व्यक्ति विनम्र रहे। जैसे ही शक्तिशाली व्यक्ति उदंडता करता है, या घमंड दिखाता है, या बढ़-चढ़कर बोलता है, वह बुरा लगने लगता है। परशुराम और लक्ष्मण दोनों के उदाहरण सामने हैं। परशुराम पराक्रमी हैं, किंतु उसका स्वयं को महापराक्रमी, बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रियकुल घातक कहना बुरा लगता है। जैसे-जैसे वह अपने कुठार को सुधारता है और वचन कड़े करता चला जाता है, वैसे-वैसे वह हँसी का पात्र बनता चला जाता है।

लक्ष्मण का साहस हमें भला लगता है। परंतु वह भी सीमाएँ तोड़ देता है। धीरे-धीरे वह बहुत उग्र, कठोर और उद्देड हो जाता है। इस कारण सभी सभाजन उसके विरुद्ध हो जाते हैं। लक्ष्मण की उदंड शक्ति हमें खटकने लगती है। दूसरी ओर, रामचंद्र साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का भी परिचय देते हैं। इसलिए वे सबका हृदय जीत लेते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।
उत्तर:
लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले-अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम के वीर-वेश का मजाक उड़ाते हुए कहा-मुनि जी! यदि आप भी वीर योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। हम आपसे टक्कर लेंगे; और सच कहूँ! मैंने आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा कि सामने कोई ढंग का योद्धा आया है। उससे दो-दो हाथ करूं। इसीलिए मैंने आपके सामने कुछ अभिमानपूर्वक बातें कही थीं। मुझे पता होता कि आप कोरे मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं भला आपसे क्यों भिड़ता। आशय यह है कि परशुराम मुनि-ज्ञानी हैं। उनका वीर-वेश ढोंग है।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।
उत्तर:
विश्वामित्र ने परशुराम के बड़बोले वचन सुने। परशुराम ने बार-बार कहा कि मैं पल-भर में लक्ष्मण को मार डालूंगा। इन वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन हँसे। सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे। वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँड़ा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। रामचरितमानस में उन्होंने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें चौपाई-दोहा शैली को अपनाया गया है। दोनों छंद गेय हैं। तुलसी की प्रत्येक चौपाई संगीत के सुर में ढली हुई जान पड़ती है। उन्होंने संस्कृत शब्दों को विशेष रूप से कोमल और संगीतमय बनाने का प्रयास किया है। भाषा को कोमल बनाने के लिए उन्होंने कठोर वर्गों की जगह कोमल ध्वनियों का प्रयोग किया है। जैसे–’श’ की जगह ‘स’, ‘ण’ की जगह ‘न’, ‘क्ष’ की जगह ‘छ’, ‘य’ की जगह ‘इ’ आदि। जैसे-• नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे। इस काव्यांश में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास आदि अलंकारों का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है। कुछ उदरण देखिए
उपमा-लखन उतर आहुति सम। उत्प्रेक्षा-तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू।। अनुप्रास-न तो येहि काटि कुठार कठोरे।
इस काव्यांश में वीर तथा हास्य रस की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। मुहावरों और सूक्तियों के साथ-साथ वक्रोक्तियों का प्रयोग भी मनोरम बन पड़ा है। सूक्ति का एक उदाहरण देखिए
सेवकु सो जो करै सेवकाई।। वक्रोक्ति-अहो मुनीसु महाभट मानी।। इस प्रकार यह काव्यांश भाषा की दृष्टि से अत्यंत मनोरम है।

प्रश्न 7.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘परशुराम-लक्ष्मण : संवाद’ मूल रूप से व्यंग्य का काव्य है। व्यंग्य के सूत्रधार हैं-वीर एवं वाक्पटु लक्ष्मण। उनके सामने ऐसा योद्धा है जिस पर धनुष-बाण नहीं चलाया जा सकता। परशुराम बूढे हैं, मुनि हैं, ब्राह्मण हैं; किंतु बहुत डिगियल और बड़बोले हैं। इस कारण लक्ष्मण भी उन पर बातों के तीर चलाते हैं। परशुराम जितनी पोल बनाते हैं, लक्ष्मण वह पोल खोल देते हैं। वे परशुराम की खोखली वीरता की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। | परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले का संहार करने की घोषणा करते हैं। लक्ष्मण कहते हैं-हमने तो बचपन में ऐसे कितने ही धनुष तोड़ रखे हैं। परशुराम कहते हैं-शिव-धनुष कोई ऐसा-वैसा धनुष नहीं था। लक्ष्मण कहते हैं-हमारी नजरों में सब धनुष एक-से होते हैं। परशुराम स्वयं को बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रिय-कुल द्रोही, सहस्रबाहु संहारक कहते हैं। लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-वाह! मुनि जी तो सचमुच महायोद्धा हैं। वे फैंक से ही पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। परंतु यहाँ भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं। परशुराम विश्वामित्र को कहते हैं कि वे लक्ष्मण को उसकी महिमा का वर्णन करें, वरना यह मारा जाएगा। तब लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-मुनि जी! आपसे बढ़कर आपकी महिमा और कौन बता सकता है। अपने गुण बताते-बताते आपका पेट अभी न भरा हो तो और कह लो। फिर सच्चे वीर युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाते हैं, बातें नहीं बताते। परशुराम क्रोध में आकर विश्वामित्र को कहते हैं कि मैं अभी इसे मारकर गुरु-ऋण से उऋण होता हैं। इस पर लक्ष्मण चोट करते हुए कहते हैं-हाँ हाँ, माता-पिता का ऋण तो आप उतार चुके। अब गुरु-ऋण भारी पड़ रहा है। लंबे समय से न चुका पाने के कारण ब्याज भी बढ़ गया होगा। लाओ, कोई हिसाब-किताब करने वाला बुलाओ। मैं अभी अपनी थैली खोलकर ऋण चुकाता हूँ। इस प्रकार यह अंश व्यंग्य से भरपूर है। तुलसी ने सच ही कहा है
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।। परशुराम यदि आग हैं तो लक्ष्मण के वचन घी की तरह काम करते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
उत्तर:
‘ब’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है। ‘ह’ की भी आवृत्ति है।
( ख ) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा-कोटि कुलिश (वज्र) के समान वचन। अनुप्रास-कोटि कुलिस।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा-तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो। पुनरुक्ति प्रकाश-बार-बार।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर:
उपमा-लखन उतर आहुति सरिस (लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान थे)
जल सम बचन (वचन जल के समान थे)
रूपक-भृगुबर कोप कृसानु (क्रोध रूपी आग) रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में विचार-क्रोध केवल नकारात्मक भाव नहीं है। वह भी निर्माण के काम आता है। जैसे हथौड़ा और बुलडोजर केवल भवन तोड़ने का ही काम नहीं करते, बल्कि वे भवन बनाने में सहयोग करते हैं। उसी भाँति क्रोध बुरी बातों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। यदि दुर्योधन द्रौपदी के वस्त्र खींचती रहे और लोग बिना क्रोध किए देखते रहें तो फिर न्याय की रक्षा कैसे होगी? यदि कोई गुंडा आपके घर आकर गालियाँ बकता रहे और आप शांत बने रहें तो गुंडा चुप कैसे होगा? यदि परशुराम बढ़-चढ़कर बकझक करते रहें और लक्ष्मण का सिर उतारने को तैयार हो जाएँ तो फिर उन्हें कौन रोकेगा? इसका एक ही उत्तर है-क्रोध। ऐसे समय में क्रोध रक्षक की भूमिका निभाता है। वह स्वभाव से क्षत्रिय है, सिपाही है।
। विपक्ष में विचार-क्रोध चांडाल है। यदि एक चांडाल के विरुद्ध अपना चांडाल खड़ा कर दिया जाए तो, भी चांडाल रहेगा तो चांडाल ही। क्रोध ध्वंस का काम तो कर सकता है, किंतु निर्माण नहीं कर सकता। इस पाठ को ही देख लें। लक्ष्मण के क्रोध ने परशुराम के बड़बोलेपन की फैंक तो निकाल दी किंतु स्वयं फेंक में आ गया। वह परशुराम को इतना अधिक भड़का गया कि कुछ भी विध्वंस हो सकता था। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 10.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर:
मेरा व्यवहार लक्ष्मण और राम के बीच का होता। मैं लक्ष्मण की भाँति परशुराम के बड़बोलेपन की हवा तो निकालता किंतु बदले में उसका अपमान न करता। मैं उसी की तरह ज़ोर-जोर से बोलकर उसे परिस्थिति समझने के लिए कहता। यदि वे सुनने के लिए तैयार हो जाते तो फिर विनय का प्रदर्शन करता। आखिर वे हैं तो बड़े, बूढ़े, मुनि और सम्माननीय।

प्रश्न 11.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर:
एक खरगोश खुद को बहुत तेज और कछुए को बहुत धीमा समझता था। इसी घमंड में उसने उसे दौड़ की चुनौती दे दी। कछुआ हँसते-हँसते मान गया और दौड़ में शामिल हो गया। खरगोश ने एक छपाका मारा और आधा रास्ता पार कर लिया। अब शरारतवश सोचने लगा–बाकी रास्ता तो मैं सुस्ता कर भी पार कर लूंगा। यह सोचकर वह सचमुच सुस्ताने लगा। परंतु उसे नींद आ गई। इधर कछुआ धीमे-धीमे चलता रहा और लक्ष्य तक पहुँच गया। खरगोश जागा तो बहुत देर हो चुकी थी। तब उसे अहसास हुआ कि किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिए।

प्रश्न 12.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर:
मुझे याद है। मैं पूरे नगर की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आया। खेल-विभाग के अधिकारी ने मुझे कहा-अगर तुम प्रांतीय प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हो तो मुझे एक हजार रुपये ला देना, वरना दूसरे का नाम आगे भेज दूंगा।
मैंने उस अधिकारी की शिकायत अपने जिलाधीश को कर दी। परिणाम यह हुआ कि मुझे अवसर मिला और मैंने प्रांतीय प्रतियोगिता जीती। उस अधिकारी को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी।

प्रश्न 13.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर:
अवधी भाषा आजकल लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, फतेहपुर और आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
उत्तर:
छात्र पढे–विनय-पत्रिका, कवितावली, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल।

प्रश्न
कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मुझे बचपन में अनेक बार रामलीला देखने का अवसर मिला। मुझे सबसे अधिक मार्मिक प्रसंग लगा-लक्ष्मण-मूछ का। श्री राम जब छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखते हैं तो भावुक हो उठते हैं। उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती हैं। तब हनुमान सुषेण नामक वैद्य को अपने कंधों पर उठा लाते हैं। सुषेण के कहने पर हनुमान हिमालय जाकर संजीवनी बूटी ले आते हैं। इस अवसर पर राम की अधीरता, विलाप और हनुमान के आने पर खुशी देखकर मैं भावमुग्ध हो जाता हूँ। करुणा भरा यह प्रसंग मुझसे आज भी भुलाए नहीं भूलता।।

प्रश्न
कोही, कुलिस, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
कोही-विशेषण, काव्य में प्रयुक्त शब्द, ‘क्रोधी’ का एक बोली-रूप।।
कुलिस-कुलिश का एक रूप, काव्य में प्रयुक्त शब्द, अर्थ-वज्र, पुल्लिग। उरिन-काव्य में प्रयुक्त शब्द, उऋण का बदला हुआ रूप, विशेषण। नेवारे-काव्य में प्रयुक्त शब्द, स. क्रिया, दूर करना।

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