Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 16 धृतराष्ट्र की चिंता

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 16 धृतराष्ट्र की चिंता

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 16

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जब पांडव वन की ओर जाने लगे तब धृतराष्ट्र ने विदुर को बुलाकर क्या पूछा?
उत्तर:
धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा पांडु के बेटे और द्रौपदी कैसे वन की ओर जा रहे हैं।

प्रश्न 2.
विदुर ने द्रौपदी की दशा के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
विदुर ने बताया कि द्रौपदी ने बालों को बिखेरकर मुँह ढक रखा है और रोती हुई जा रही है।

प्रश्न 3.
वन को जाते हुए पांडवों का वर्णन विदुर ने किस प्रकार किया?
उत्तर:
विदुर ने वन को जाते हुए पांडवों का वर्णन करते हुए कहा कि-“कुंती पुत्र युधिष्ठिर कपड़े से चेहरा ढककर जा रहे हैं। भीम अपनी दोनों भुजाओं को निहारता, अर्जुन हाथ में कुछ बालू लिए उसे बिखेरता, नकुल और सहदेव सारे शरीर पर धूल रमाए हुए क्रमशः युधिष्ठिर के पीछे-पीछे जा रहे हैं। द्रौपदी ने बिखरे हुए केशों में सारा मुँह ढक लिया है और आँसू बहाती हुई युधिष्ठिर का अनुसरण कर रही हैं।

प्रश्न 4.
विदुर के चले जाने पर धृष्टराष्ट्र को कैसा लगा? उन्होंने विदुर को बुलाने के लिए किसे भेजा?
उत्तर:
विदुर के पांडवों के पास चले जाने के बाद धृतराष्ट्र को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्हें लगने लगा कि मैंने विदुर को भगाकर अच्छा नहीं किया। अतः उन्होंने विदुर को बुलाने के लिए संजय को भेजा।

प्रश्न 5.
महर्षि मैत्रेय की युधिष्ठिर से भेंट कहाँ हुई?
उत्तर:
महर्षि मैत्रेय की युधिष्ठिर से भेंट काम्यक वन में हुई।

प्रश्न 6.
धृतराष्ट्र द्वारा पांडवों का कुशल पूछने पर महर्षि मैत्रेय ने क्या बताया?
उत्तर:
धृतराष्ट्र द्वारा पांडवों की कुशलक्षेम पूछने पर मैत्रेय ने बताया- “राजन काम्यक वन में संयोग से युधिष्ठिर से मेरी भेंट हो गई थी। वन के दूसरे ऋषि-मुनि भी मिलने उसके आश्रम में आए थे। हस्तिनापुर में जो कुछ हुआ था, उसका सारा हाल उन्होंने मुझे बताया था। यही कारण है कि मैं आपके यहाँ आया हूँ। आपके और भीष्म के रहते ऐसा नहीं होना चाहिए था।

प्रश्न 7.
पांडवों से मिलने श्रीकृष्ण के साथ वन में कौन-कौन आए थे?
उत्तर:
पांडवों से मिलने श्रीकृष्ण के साथ कैकेय भोज और वृष्टि जाति के लोग, चेदिराज धृष्टकेतु आदि वन गए थे।

प्रश्न 8.
द्रौपदी को सांत्वना देते हुए श्रीकृष्ण ने क्या भरोसा दिलाया?
उत्तर:
द्रौपदी की दुख भरी गाथा सुनकर श्रीकृष्ण बोले-“बहन द्रौपदी! जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया है, उन सबकी लाशें युद्ध के मैदान में खून से लथपथ होकर मिलेंगी। आप शोक न करो! मैं वचन देता हूँ कि पांडवों की हर प्रकार से सहायता करूँगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पांडव द्रौपदी के साथ वन में किस प्रकार जा रहे थे?
उत्तर:
वन जाते समय युधिष्ठिर अपने चेहरे को कपड़े से ढककर जा रहे थे। भीम अपनी दोनों भुजाओं को निहारता, अर्जुन हाथ में कुछ बालू लिए उसे बिखेरता, नकुल और सहदेव सारे शरीर पर धूल रमाए हुए क्रमशः युधिष्ठिर के पीछे-पीछे जा रहे थे। द्रौपदी ने बिखरे हुए केशों से सारा मुँह ढक लिया है और आँसू बहाती हुई युधिष्ठिर का अनुसरण कर रही है।

प्रश्न 2.
महर्षि मैत्रेय ने दुर्योधन को क्या सलाह दी।
उत्तर:
महर्षि मैत्रेय ने दुर्योधन को सलाह देते हुए कहा कि-“दुर्योधन तुम्हारी भलाई के लिए कहता हूँ कि पांडवों को धोखा देने का विचार त्याग दो, उनसे ईर्ष्या न करो। उनके साथ संधि कर लो। इसी में तुम्हारी भलाई है।”

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 16

जब द्रौपदी को साथ लेकर पांडव वन को जाने लगे तो चिंतित धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा कि पांडु के बेटे और द्रौपदी कैसे जा रहे हैं, मुझे बताओ। विदुर ने धृतराष्ट्र को बताते हुए कहा कि युधिष्ठिर अपने चेहरे ढककर जा रहे हैं। भीम अपनी दोनों भुजाओं को निहारते हुए जा रहे हैं, जबकि अर्जुन हाथ में बालू लेकर बिखेरते हुए और नकुल और सहदेव सारे शरीर में मिट्टी लगाते हुए युधिष्ठिर के. पीछे-पीछे जा रहे हैं। द्रौपदी के बिखरे हुए बाल से उनका मुँह ढंका हुआ है और आँसू बहाती हुई जा रही हैं।

यह सुनकर धृतराष्ट्र की चिंता काफ़ी बढ़ गई। इधर विदुर बार-बार धृतराष्ट्र को आग्रह कर रहे थे कि आप पांडवों से समझौता कर लें। इनकी बार-बार एक ही बात को सुनकर धृतराष्ट्र झुंझलाकर बोले, मुझे तुम्हारे मशविरा की ज़रूरत नहीं है। अगर तुम चाहो तो पांडवों के साथ जा सकते हो। विदुर भी अपने रथ में बैठकर जंगल में पांडवों के साथ चल पड़े।

अब धृतराष्ट्र को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने संजय को बुलाया और कहा- तुम विदुर को समझा बुझाकर वापिस लाओ। संजय फटाफट पांडवों के पास पहुँचे और विदुर से कहा- धृतराष्ट्र अपनी गलती पर काफ़ी दुखी हैं। आप अगर वापस नहीं लौटेंगे तो वे अपना प्राण त्याग देंगे। कृपया आप अभी लौट चलिए।

यह सुनकर विदुर पांडवों से विदा लेकर हस्तिनापुर लौट आए। जब विदुर लौटकर हस्तिनापुर गए तो धृतराष्ट्र ने उन्हें गले लगा लिया और खुशी से बोले-“निर्दोष विदुर! मैं उतावलापन में जो भला-बुरा कह बैठा, बुरा मत मानना और मुझे क्षमा कर देना।”

एक दिन महर्षि मैत्रेय धृतराष्ट्र के दरबार में आए। धृतराष्ट्र ने उनका समुचित आदर सत्कार किया।

फिर महर्षि से कुरु जंगल में रहने वाले पांडवों की कुशलक्षेम पूछा। महर्षि मैत्रेय ने बताया कि पांडवों से काम्यक वन में भेंट हुई थी। उनसे हस्तिनापुर में घटित चौसर प्रसंग को सुनकर ही मैं आपके पास आया हूँ। आपके और भीष्म के रहते यह अच्छा नहीं हुआ। सभा में उपस्थित दुर्योधन से महर्षि ने कहा-“राजकुमार तुम्हारी भलाई के लिए कहता हूँ सुनो! पांडवों को धोखा देने का विचार छोड़ दो। उनसे वैर मोल मत लो। उनके साथ संधि कर लो! इसी में तुम्हारी भलाई है।”

किंतु दुर्योधन पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। दुर्योधन के व्यवहार में ढिठाई देखकर महर्षि ने क्रोधित होकर कहा दुर्योधन ध्यान रखो अपने घमंड का फल तुम्हें अवश्य मिलेगा।

इस बीच हस्तिनापुर में घटी घटनाओं की खबर मिलते ही श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने वन में ही पहुँचे। उनके साथ कैकेय, राजा भोज, वृष्टि जाति के नेता, चेदिराज धृष्टकेतु भी उनके साथ आए।

सब बड़े प्रेम से आपस में मिले। द्रौपदी जब श्रीकृष्ण से मिली तो उसके आँखों में अविरल अश्रुधारा बह चली। वह बोली, इस तरह अपमानित होने के बाद मेरा जीवन ही बेकार है। अब मेरा कोई नहीं रहा, आप भी मेरे नहीं रहे। करुण स्वर में विलाप करती हुई द्रौपदी को श्रीकृष्ण ने समझाया और बोले बहन द्रौपदी, जिसने आपका अपमान किया है उन सबकी मौत युद्ध के मैदान में निश्चित है। आप शोक मत कीजिए। मैं वचन देता हूँ कि पांडवों की हर प्रकार से सहायता करूँगा। यह भी निश्चय मानो कि तुम साम्राज्ञी के पद को फिर सुशोभित करोगी।

इसके बाद श्रीकृष्ण सुभद्रा और अभिमन्यु को लेकर द्वारका को लौट गए। धृष्टद्युम्न द्रौपदी के पुत्रों को लेकर पांचाल देश लौट गया।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-43- आग्रह – अनुरोध, अकसर – प्रायः, बराबर, व्यतीत – बिताना, उतावली – शीघ्रता के भाव, समुचित – उचित तरीके से, बुद्धिमता – बुद्धिमान।
पृष्ठ संख्या-44- नासमझ – मूर्ख, ढिठाई, धृष्टता, अशिष्टता, समेत – सहित, श्रद्धा – मन से सम्मान देना, अविरल – सतत्, लगातार।