Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 12 इंद्रप्रस्थ

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 12 इंद्रप्रस्थ

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 12

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पांडवों के जीवित होने की सूचना मिलने पर विदुर ने धृतराष्ट्र से क्या कहा?
उत्तर:
पांडवों के जीवित होने की सूचना पाकर विदुर दौड़े हुए धृतराष्ट्र के पास गए और बोले, “महाराज! पांडव अभी जीवित हैं। राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी को अर्जुन ने स्वयंवर में प्राप्त किया है। पाँचों भाइयों ने विधिपूर्वक द्रौपदी के साथ ब्याह कर लिया है और कुंती के साथ द्रुपद के यहाँ रह रहे हैं।

प्रश्न 2.
दुर्योधन को क्या डर सताने लगा?
उत्तर:
दुर्योधन को डर सताने लगा कि पांडव अब पहले से भी अधिक शक्तिशाली हो गए हैं। अतः अब वे हम पर आक्रमण कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
कर्ण ने दुर्योधन को क्या सुझाव दिया?
उत्तर:
कर्ण ने दुर्योधन को सुझाव दिया कि- पांडवों की शक्ति बढ़ने से पहले ही उन पर आक्रमण कर दिया जाए।

प्रश्न 4.
भीष्म ने धृतराष्ट्र को क्या सुझाव दिया?
उत्तर:
भीष्म ने धृतराष्ट्र को सुझाव दिया कि पांडवों के साथ संधि करके आधा राज्य उन्हें वापस दे दिया जाए।

प्रश्न 5.
विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र को क्या सलाह दी?
उत्तर:
विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र को सलाह दी कि पितामह भीष्म तथा आचार्य द्रोण ने जो बताया है वही सबसे अच्छा है। पांडवों को आधा हिस्सा राज्य का वापस दे देना चाहिए। कर्ण की सलाह बिलकुल अनुचित है।

प्रश्न 6.
आचार्य द्रोण ने गुस्से से कर्ण के बारे में क्या कहा?
उत्तर:
आचार्य द्रोण क्रोधित होकर बोले “दुष्ट कर्ण! तुम राज्य को गलत रास्ता बता रहे हो। अगर धृतराष्ट्र तुम्हारी सलाह पर चले, तो कौरवों का विनाश निश्चित है।

प्रश्न 7.
महाराज द्रुपद की शर्त किसने पूरी की?
उत्तर:
महाराज द्रुपद की शर्त अर्जुन ने पूरी की।

प्रश्न 8.
विदुर को पांचाल देश क्यों भेजा गया?
उत्तर:
पांडवों को द्रौपदी और कुंती के साथ आदर सहित हस्तिनापुर लाने के लिए विदुर को भेजा गया।

प्रश्न 9.
पांचाल देश में विदुर ने धीरज देते हुए कुंती से क्या कहा?
उत्तर:
राज्याभिषेक के बाद युधिष्ठिर को आशीर्वाद देते हुए धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों की निंदा करते हुए यह सलाह दी कि वह खांडवप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाकर वहीं से राज करे। खांडवप्रस्थ हमारे पूर्वजों की राजधानी रही है। इसे फिर से बसाने का यश तुमको मिलेगा।

प्रश्न 10.
पांडवों की राजधानी का क्या नाम था?
उत्तर:
पांडवों की राजधानी का नाम इंद्रप्रस्थ था।

प्रश्न 11.
धृष्टद्युम्न ने कुम्हार की कुटिया में क्या देखा?
उत्तर:
धृष्टद्युम्न ने कुम्हार की कुटिया में पाँचों पांडवों को तथा अग्निशिखा की भाँति एक तेजस्वी देवी अर्थात् कुंती को देखा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन के मन में ईर्ष्या की आग क्यों प्रबल हो उठी?
उत्तर:
दुर्योधन के मन में ईर्ष्या की भावना इसलिए बढ़ने लगी कि पांडव पांचाल राज की कन्या से ब्याह करके और अधिक शकि तशाली बन गए हैं। अतः उसके मन में पांडवों के प्रति ईर्ष्या की आग प्रबल हो उठी।

प्रश्न 2.
अंत में धृतराष्ट्र ने क्या निश्चय किया?
उत्तर:
अंत में धृतराष्ट्र ने यह निश्चय किया कि पांडु पुत्रों को आधा राज्य देकर संधि कर ली जाए और पांडवों को द्रौपदी तथा कुंती सहित लाने के लिए पांचाल भेजा जाए।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 12

द्रौपदी स्वयंवर की सूचना जब हस्तिनापुर में पहुँची तो वहाँ पर सबसे अधिक विदुर खुश हुए और उन्होंने धृतराष्ट्र के पास जाकर कहा-पांडव अभी जीवित हैं। राजा द्रुपद की कन्या को स्वयंवर में अर्जुन ने प्राप्त किया है। पाँचों भाइयों ने विधिपूर्वक द्रौपदी के साथ विवाह कर लिया है और कुंती के साथ द्रुपद के यहाँ कुशलतापूर्वक हैं।

यह सुनकर धृतराष्ट्र खुश हुए और बोले- “भाई विदुर तुम्हारी बातों से मुझे काफ़ी आनंद हो रहा है लेकिन दुर्योधन को जब पता चला कि पांडव पांचाल राज की कन्या से ब्याहकर और शक्तिशाली बन गए हैं तो उनके प्रति ईर्ष्या की आग और अधिक प्रबल हो उठी। उसने यह दुखड़ा मामा शकुनी को सुनाया।

इसके बाद कर्ण और दुर्योधन धृतराष्ट्र के पास गए और एकांत में उनसे दुर्योधन ने कहा- जल्दी से ही हम ऐसा उपाय करें ताकि उनसे सदा के लिए छुटकारा पा लें। इस बात पर कर्ण को हँसी आ गई उसने कहा- दुर्योधन छल-प्रपंच से अब काम नहीं चलेगा। फूट डालकर उन्हें हराना असंभव है। अब बस एक ही उपाय है कि पांडवों पर हमला कर दिया जाए। राजा धृतराष्ट्र दुर्योधन और कर्ण की बात सुनकर असमंजस्य में पड़ गए। वे कोई सही निर्णय नहीं ले पा रहे थे। वे भीष्म पितामह और द्रोण को बुलाकर परामर्श करने लगे। पितामह पाँडवों के जीवित रहने की खबर सुनकर काफ़ी खुश हुए।

भीष्म पितामह ने सलाह दिया कि पांडवों के साथ समझौता करके आधा राज्य उन्हें दे देना चाहिए। उस समय अंग नरेश कर्ण वहीं मौजूद था, यह सलाह उसे अच्छी नहीं लगी। कर्ण के हृदय में दुर्योधन के प्रति अपार स्नेह था। कर्ण द्रोणाचार्य की परामर्श को सुनकर क्रोधित हो उठा और धृतराष्ट्र से बोला- “राजन! शासकों का कर्तव्य है कि मंत्रणा देने वालों की नीयत को पहले जाँच कर लें। कर्ण की इन बातों को सुनकर द्रोणाचार्य क्रोधित हो गए और वे बोले- दुष्ट कर्ण। तुम राजा को गलत सलाह दे रहे हो। अगर धृतराष्ट्र तुम्हारी सलाह पर चले, तो कौरवों का विनाश निश्चित है।

इसके बाद धृतराष्ट्र ने विदुर से राय लिया। विदुर ने कहा कि पितामह भीष्म तथा द्रोणाचार्य ने जो सलाह दी है वही ठीक है और कर्ण की सलाह बिलकुल गलत है। अंत में निष्कर्ष यह हुआ कि विदुर को पांडवों व कुंती को बुलाने पांचाल देश भेजा जाए। विदुर धृतराष्ट्र की ओर से राजा द्रुपद के लिए उपहार लेकर गए और अनुरोध किया कि पांडवों को द्रौपदी सहित हस्तिनापुर जाने की अनुमति दें। राजा द्रुपद कुंती और पांडवों को पुनः छल की आशंका थी। जब विदुर ने समझाते हुए कहा- “देवी आप निश्चित रहें। आपके बेटों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वे संसार में खूब यश कमाएँगे और विशाल साम्राज्य के मालिक बनेंगे। आप सब बिना डर और भय के हस्तिनापुर चलिए।”

अंत में राजा द्रुपद से आज्ञा लेकर कुंती व द्रौपदी सहित पांडव हस्तिनापुर के लिए निकले। इधर हस्तिनापुर में पांडवों के स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं। वहाँ युधिष्ठिर का यथा विधि राज्याभिषेक हुआ और आधा राज्य पांडवों के अधीन किया गया। राज्याभिषेक होने के बाद युधिष्ठिर को आशीर्वाद देते हुए-धृतराष्ट्र ने कहा- “बेटा युधिष्ठिर मेरे पुत्र दुरात्मा हैं। एक साथ रहने से तुम लोगों में आपस में बैर एवं ईर्ष्या भाव बढ़ेगे। अतः मेरी सलाह है कि तुम खांडवप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाओ और वहीं से राज करना। खांडवप्रस्थ नगरी पुरू, नहुष एवं ययाति जैसे प्रतापी पूर्वजों की राजधानी रही है।”

खांडवप्रस्थ उस समय निर्जन हो चुका था लेकिन पांडवों ने खांडवप्रस्थ में निपुण कारीगरों से एक नए नगर का निर्माण करवाया और उस नगर का नाम इंद्रप्रस्थ रखा। धृतराष्ट्र के कहने पर पाँचों पांडवों एवं माता कुंती और द्रौपदी जीवन बिताते हुए न्यायपूर्वक राज्य करते रहे।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-30
जीवित – जिंदा, विधिपूर्वक – नियम के अनुसार,

पृष्ठ संख्या-31
प्रलोभन – लालच, संधि – समझौता, अपार – अत्यधिक, कुमंत्रणा – बुरी सलाह, परखना – जाँचना, श्रेयस्कर – कल्याणकारी, अमूल्य – कीमती, उपहार – भेंट, अनुमति – आज्ञा, छल-प्रपंच – कपट।

पृष्ठ संख्या-32
आफ़त – विपत्ति संकट, दुरात्मा – दुष्ट, भग्नावशेष – खंडहर, निर्जन – एकांत, शिल्पकार – कारीगर।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 11 द्रौपदी – स्वयंवर

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 11 द्रौपदी – स्वयंवर

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 11

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पांडव एकचक्रा नगरी में किस रूप में जीवन व्यतीत कर रहे थे?
उत्तर:
पांडव एकचक्रा नगरी में ब्राह्मणों के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे थे।

प्रश्न 2.
किसके स्वयंवर की तैयारियाँ होने लगी?
उत्तर:
पांचाल नरेश की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर की तैयारियाँ होने लगी।

प्रश्न 3.
द्रौपदी कहाँ की राजकुमारी थी? उनके स्वयंवर के लिए राजा द्रुपद की क्या शर्त थी?
उत्तर:
द्रौपदी पांचाल देश की राजकुमारी थी। उनके स्वयंवर के लिए राजा द्रुपद की यह शर्त थी कि जो राजकुमार पानी में प्रतिबिंब देखकर उस वृहदाकार धनुष से तीर चलाकर ऊपर टंगी हुई मछली को गिरा देगा उसी राजकुमार को द्रौपदी वरमाला पहनाएगी।

प्रश्न 4.
पंचाल देश में पांडव किस तरह रहते थे?
उत्तर:
पंचाल देश में पांडव ब्राह्मणों के वेश में रहते थे।

प्रश्न 5.
पांडव कहाँ रहकर कैसे गुज़र करने लगे?
उत्तर:
पांडव अपनी माता कुंती के साथ एक चक्रानगरी में भिक्षा माँगकर गुज़र करने लगे।

प्रश्न 6.
ब्राह्मण परिवार क्यों दुखी था?
उत्तर:
ब्राह्मण परिवार इसलिए दुखी था क्योंकि बकासुर राक्षस के पास भोजन लेकर जाने की बारी ब्राह्मण परिवार की थी इसलिए ब्राह्मण परिवार दुखी था।

प्रश्न 7.
बकासुर का वध किसने किया?
उत्तर:
बकासुर राक्षस का वध भीम ने किया। उसने बकासुर की पीठ पर घुटने मारकर उसकी रीढ़ को तोड़ डाला। उसके प्राण पखेरू उड़ गए। भीम उसकी लाश को नगर के फाटक तक घसीट लाया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुम्हार के घर से वापस लौटकर धृष्टद्युम्न ने अपने पिता से क्या कहा?
उत्तर:
कुम्हार के घर से वापस लौटकर धृष्टद्युम्न ने अपने पिता से कहा-“पिता जी, मुझे तो ऐसा लगता है कि ये लोग कहीं पांडव न हों। बहन द्रौपदी उस युवक की मृगछाला पकड़े जब जाने लगी, तो मैं भी उनके पीछे चला गया। मुझे ऐसा लगा कि वे लोग कहीं पांडव न हो। वे एक कुम्हार की झोपड़ी में जा पहुँचे। वहाँ अग्नि-शिखा सी एक तेजस्वी देवी बैठी हुई थी, वहाँ जो उनसे बातें हुईं उनसे लगा कि वह देवी कुंती ही होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
भीम अपने भाइयों के साथ घर क्यों नहीं गए?
उत्तर:
भीम और अर्जुन के साथ सभा मंडप में ही ठहरा रहा। उसे डर था कि कहीं निराश राजकुमार कहीं अर्जुन को कुछ कर न बैठें। उसका अनुमान ठीक ही निकला, वहाँ उपस्थित राजकुमारों में हल-चल मच गई थी। ऐसा मालूम हो रहा था कि बड़ा तांडव मच जाएगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 11

जब पांडव ब्राहमण के वेश में एकचक्रा नगरी में रहते थे उन्हीं दिनों पांचाल के राजा की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर की तैयारी चल रही थी। एकचक्रा नगरी के सभी ब्राह्मण पांचाल देश के लिए आ रहे थे। पांडव भी उन्हीं ब्राह्मणों के साथ आ रहे थे। वे लोग आकर एक कुम्हार के घर रुके। पांडवों को ब्राह्मण वेश में रहने के कारण वहाँ के लोग उन्हें पहचान नहीं सके।

स्वयंवर-मंडप में दूर-दूर से अनेक वीर आए थे। धृतराष्ट्र के सभी पुत्र-कर्ण, श्रीकृष्ण, शिशुपाल, जरासंध, शल्य जैसे प्रमुख वीर उपस्थित थे। पाँचों पांडव भी ब्राह्मणों के बीच जाकर बैठ गए। राजा द्रुपद ने घोषणा की जो लक्ष्य का बेधन करेगा, द्रौपदी उसी के गले में वर माला डालेगी। ज़मीन से काफ़ी ऊँचाई पर सोने की एक मछली टँगी थी। उसके नीचे तेज़ी से एक यंत्र घूम रहा था। जिसे उस पर रखे एक बड़े धनुष से बेधना था। इसके बाद राजकुमार धृष्टद्युम्न घोड़े पर सवार होकर आए। राज्य कन्या द्रौपदी भी फूलों का हार लिए हाथी से उतरी और सभा में बैठ गई।

इसके बाद एक-एक करके राजकुमार उठते और धनुष पर डोरी चढ़ाते और हारते और अपमानित होकर लौट जाते। कितने बड़े-बड़े महारथी को इस तरह मुँह की खानी पड़ी।

शिशुपाल, जरासंध, शल्य व दुर्योधन जैसे पराक्रमी असफल हो गए। जब कर्ण की बारी आई तो सभा में एक लहर-सी दौड़-गई सबने अनुमान लगाया कर्ण ज़रूर सफल होंगे। कर्ण ने धनुष खड़ा कर दिया और तानकर प्रत्यंचा भी चढ़ानी शुरू कर दी। डोरी के चढ़ाने में अभी बालभर की ही कसर रह गई थी कि इतने में धनुष का डंडा उसके हाथ से छूट गया तथा उछलकर उसके मुँह पर लगा। अपनी चोट सहलाता हुआ कर्ण अपनी जगह पर जा बैठा।

इसके बाद ब्राह्मणों में से अर्जुन उठ खड़ा हुआ। उसने लक्ष्य की ओर धनुष पर तीर चढ़ाया और पाँच बाण, उस घूमते हुए चक्र से मारे। लक्ष्य टूटकर नीचे गिर पड़ा। सभा में कोलाहल मच गया। बाजे बज उठे। राजकुमारी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाल दी। युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव समाचार देने माँ के पास चले गए। भीम जान बूझकर रुका रहा। कुछ राजकुमारों ने शोर शराबा किया। कुछ अन्य राजाओं में हलचल मच गई। उन्होंने शोर मचाया। यह देखकर श्रीकृष्ण और बलराम राजकुमारों को समझाने लगे। इस बीच अर्जुन द्रौपदी को साथ लेकर कुम्हार की कुटिया की ओर चल दिए।

द्रुपद-पुत्र-धृष्टद्युम्न भी चुपके से अर्जुन व द्रौपदी के पीछे-पीछे गया। कुम्हार की कुटिया में पाँचों भाइयों एवं कुंती को देखकर उसने लौटकर राजा द्रुपद से कहा- पिता जी मुझे तो ऐसा लगता है कि ये लोग पांडव हैं। बहन द्रौपदी उस युवक की मृग छाला पकड़े जब जाने लगी, तो मैं उनके पीछे हो लिया। वे एक कुम्हार की झोपड़ी में जा पहुँचे। वहाँ उसी कुटिया में एक तेजस्वी देवी बैठी थी। मुझे विश्वास हो गया कि वह माता कुंती ही है।

राजा द्रुपद ने कुंती, द्रौपदी व पाँचों भाइयों को राजभवन में बुलाया। युधिष्ठिर ने राजा को अपना सही परिचय दिया। द्रुपद को अत्यंत प्रसन्नता हुई कि उनको अर्जुन दामाद के रूप में मिला। माँ की आज्ञा और सबकी अनुमति से द्रौपदी के साथ पाँचों पांडवों का विवाह हो गया।

शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-28- झुंड – समूह, वृहदाकार – बहुत बड़ा।
पृष्ठ संख्या-29- जोश – उत्साह, प्रतीत – विदित, मालूम, विप्लव – शोर।
पृष्ठ संख्या-30- मृगछाला – हिरण की खाल, अग्नि शिखा – आग की लपट, शत्रुता – दुश्मनी, सम्मति – सलाह।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 10 पांडवों की रक्षा

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 10 पांडवों की रक्षा

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 10

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुरोचन पांडवों को कहाँ ले गए?
उत्तर:
पुरोचन पांडवों को लाख से बने भवन में ले गए।

प्रश्न 2.
वारणावत को जाते समय विदुर ने युधिष्ठिर को किस प्रकार सावधान किया?
उत्तर:
वारणावत जाते समय विदुर ने युधिष्ठिर को दुर्योधन के षड्यंत्र तथा उससे बचने का उपाय गूढ भाषा में अवगत करवाकर सचेत कर दिया था।

प्रश्न 3.
विदुर द्वारा भेजे गए व्यक्ति ने भवन के अंदर क्या किया?
उत्तर:
विदुर द्वारा भेजे गए व्यक्ति ने भवन के अंदर एक सुरंग बना दी जिससे पांडव बाहर निकल सकें।

प्रश्न 4.
रात्रि को भवन में आग किसने लगाई ?
उत्तर:
रात्रि को लाख भवन में आग भीम ने लगाई।

प्रश्न 5.
माता कुंती ने किस चीज़ का आयोजन किया?
उत्तर:
माता कुंती ने रात्रि में बड़े भोज का आयोजन किया।

प्रश्न 6.
सुरंग बनाने वाले कारीगर ने पांडवों को अपना परिचय कैसे दिया?
उत्तर:
सुरंग बनाने वाले कारीगर ने पांडवों को अपना परिचय देते हुए कहा-“आप लोगों की भलाई के लिए हस्तिनापुर से रवाना होते वक्त विदुर ने सांकेतिक भाषा में जो कुछ कहा था। वह बात मैं जानता हूँ। यही मेरे सच्चे मित्र होने का प्रमाण है। मैं आप लोगों की रक्षा का उपाय करने आया हूँ।

प्रश्न 7.
लाख के भवन से बचकर पांडव कहाँ चले गए? वे लोग कहाँ किस प्रकार अपना गुजारा करते थे?
उत्तर:
लाख के भवन से सुरंग के रास्ते से बच निकलकर पांडव जंगल की ओर निकल गए। वहाँ से गंगा नदी के किनारे एक नाव पर बैठकर एकचक्रा नगर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने एक ब्राह्मण के घर आश्रय बनाया। वहाँ वे भीख माँगकर अपना गुज़ारा करने लगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वारणावत के लाख के घर में पहुँचकर युधिष्ठिर ने भीम से क्या कहा?
उत्तर:
वारणावत के लाख घर में पहुँचकर युधिष्ठिर ने भीम से कहा कि यह स्थान हम लोगों के लिए खतरनाक है। फिर भी हमें ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि पुरोचन के षड्यंत्र का हमें मालूम नहीं है। शत्रु के मन में शक पैदा न हो। मौका मिलते ही हम लोग यहाँ से भाग निकलेंगे।

प्रश्न 2.
लाख घर में सुरंग कैसे बनाई गई ? युधिष्ठिर ने पुरोचन की योजना को किस प्रकार असफल कर दिया?
उत्तर:
कारीगर ने सुरंग इस ढंग से बनाया कि लाख के महल के अंदर से नीचे-नीचे चहारदीवारी और गहरी खाई को लांघकर बाहर निकला जा सकता था। सुरंग बनाने के बाद उत्सव मनाकर सब लोग खा-पीकर सो गए। पुरोचन भी सो गया। भीम ने स्वयं लाख के भवन में जगह-जगह आग लगा दी। पुरोचन का घर भी जलकर भस्म हो गया और जलकर मर गया। पांडव सुरक्षित बचकर निकल गए। पुरोचन उस महल में आगजनी करता उससे पहले पांडवों ने ही आग लगाकर पुरोचन के षड्यंत्र को असफल कर दिया।

प्रश्न 3.
ब्राह्मण परिवार के दुख का कारण क्या था?
उत्तर:
एकचक्रा नगरी के समीप एक गुफा में बकासुर नामक राक्षस रहता था। वह लोगों पर अत्याचार करता था। वहाँ का राजा काफ़ी निकम्मा एवं कमज़ोर था। वह अपनी प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता था। अतः वहाँ की प्रजा ने उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए एक समझौता किया। समझौते के अनुसार लोग बारी-बारी से उसके लिए सामग्री लेकर एक आदमी अपने घरों से जाएँगे। आज उस ब्राह्मण परिवार की बारी थी। अतः वे दुखी थे।

प्रश्न 4.
भीम ने बकासुर का वध कैसे किया?
उत्तर:
भीम और बकासुर में भयानक संघर्ष हुआ। राक्षस ने एक बड़ा पेड़ उखाडकर भीम को दे मारा। किंत भीम ने उसे बाएँ हाथ से रोक लिया। दोनों में खूब मुठभेड़ हुई। भीम ने उसे मुँह के बल गिराकर पीठ पर घुटनों से उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। राक्षस पीड़ा से कराहकर वहीं मर गया। इस तरह से भीम ने बकासुर का वध किया।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 10

पाँचों पांडव कुंती के साथ वारणावत के लिए रवाना हो गए। इधर विदुर को दुर्योधन के षड्यंत्र का पता चल चुका था। अतः उन्होंने यह बातें युधिष्ठिर को चुपचाप बता दिया। लाख-भवन तैयार हो जाने पर पुरोचन पांडवों को उसमें ले गए। युधिष्ठिर को विदुर की बात याद थी। अब युधिष्ठिर को पता चल गया था कि भवन आग पकड़ने वाली वस्तुओं से बना है। उन्होंने साथियों को सावधान कर दिया और पुरोचन को पता न चलने की हिदायत भी दे दी। पांडव उसी लाख भवन में रहने लगे। इतने में विदुर द्वारा भेजा गया सुरंग वाला कारीगर वहाँ पहुँच गया। उसने वहाँ कुछ ही दिनों में महल में ज़मीन के नीचे ही नीचे एक सुरंग बना दी। यह काम अत्यंत गोपनीय था। इस सुरंग से पांडव आग लगने पर बाहर निकल सकते थे।

पुरोचन ने लाक्षागृह के द्वार पर ही अपना आवास बनाया था फिर भी उसे सुरंग के विषय में कुछ भी मालूम न हुआ। पुरोचन अभी योजना बना रहा था कि उसे समझकर माता कुंती ने रात्रि-भोज का आयोजन किया जिसमें नगर के सभी लोगों को भोजन कराया। खूब खा-पीकर पुरोचन सहित सब कर्मचारी गहरी नींद में सो गए। आधी रात पांडव सुरंग मार्ग से बाहर निकल गए। भीम ने जगह-जगह आग लगा दी। महल व पुरोचन के रहने का स्थान आग की लपटों से घिर गया। नगर निवासी पांडवों के जल मरने की आशंका से कौरवों की निंदा करते हुए दुख प्रकट करने लगे। पुरोचन भी इस आग में स्वाहा हो गया।

जब यह सूचना हस्तिनापुर पहुंची तो नगर में हाहाकार मच गया। कौरवों ने भी शोक मनाया और कुंती को श्रद्धांजलि दी। इधर विदुर पूर्णतः आश्वस्त थे कि पांडव लाख के भवन से निकल गए होंगे।

लाख के घर को जलता छोड़ पांडव माता कुंती के साथ एक जंगल में पहुँच गए। माता कुंती रास्ते में काफ़ी थक गई थी तब माता कुंती को भीम ने अपने कंधे पर बैठा लिया तथा नकुल-सहदेव को कमर पर लेकर, चल पड़े। युधिष्ठिर और अर्जुन का हाथ पकड़कर भी जंगली रास्ते में उन्मत हाथी की तरह तेजी से जंगल पार कर गए और वे लोग गंगा नदी के किनारे मिल गए। वहाँ गंगा नदी के किनारे पांडवों को विदुर द्वारा भेजी गई एक नाव मिली। मल्लाह के संकेत पर वे समझ गए कि वे मित्र हैं। अगले दिन शाम तक वे लोग चलते रहे। एक रात व दिन चलने के बाद शाम को कुंती बहुत थक गई थी। पांडव भी बुरी तरह थके हुए थे। कुंती ने कहा- मैं तो पानी के बिना अब नहीं रह सकती हूँ। यह कहकर कुंती वहीं ज़मीन पर गिरकर बेहोश हो गई। अपने भाइयों तथा कुंती का यह हाल देखकर भीम द्रवित हो गया।

तब उसने एक जलाशय से पानी लाकर उन लोगों की प्यास बुझाई। पानी पीकर सब सो गए। केवल भीम जागता रहा। इस तरह कष्ट सहते हए पांडव चलते-चलते अंत में एकचक्रा नगरी में ब्राहमण के वेश में रहने लगे। वे लोग वहीं भिक्षा माँगकर अपना गुजारा करने लगे। भिक्षा में पाँचों जितना भोजन लाते, उसके दो हिस्से करती। एक हिस्सा भीम को दे देती और दूसरे भाग में चारों पुत्रों को और स्वयं खाती। इसके बाद भी भीम की भूख नहीं मिटती थी। भीम ने एक कुम्हार से मित्रता कर ली। कुम्हार ने उसे एक बड़ी भारी हाँडी दे दी। भीम उसी हाँड़ी को लेकर भिक्षा के लिए निकलता। उसके विशाल शरीर और बड़ी हाँड़ी के कारण उसे काफ़ी भिक्षा मिलने लगी।

एक दिन भीम भिक्षा के लिए नहीं गया था। चारों भाई भिक्षा माँगने के लिए गए हुए थे। इतने में ब्राह्मण के घर से रोने की आवाज़ आई। ब्राह्मण बड़े दुखी हृदय से अपनी पत्नी से कह रहा था, अपनी पुत्री की बलि कैसे चढ़ा दूँ, और पुत्र के काल कवलित होने दें। अगर मैं अपनी बलि देता हूँ तो बच्चों का पालन-पोषण कौन करेगा। इससे अच्छा तो हम सभी मौत को गले लगा लें। कहते हुए ब्राह्मण रोने लगा। कभी ब्राह्मण की पत्नी खुद को कहती है- राक्षस का भोजन बनू, कभी ब्राह्मण तो कभी उनके बच्चे। माता कुंती अंदर गई तो ब्राह्मण, उसकी पत्नी, उनकी पुत्री व पुत्र की बात सुनकर वे व्यथित होकर ब्राह्मण से बोली “हे ब्राह्मण क्या आप कृपा करके मुझे बता सकते हैं कि आप लोगों के इस असह्य दुख का कारण क्या है?

तब ब्राह्मण ने बताया कि इस नगरी का राजा काफ़ी शक्तिहीन है। वह प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता। इस नगरी के समीप ही एक गुफा में बकासुर नाम का राक्षस रहता है। वह जनता पर बहुत अत्याचार करता है। अतः राजा से निराश जनता ने बकासुर से समझौता कर लिया है कि नगरवासी बारी-बारी एक आदमी और खाने की चीजें हर सप्ताह भेज दिया करेंगे। राक्षस ने यह बात मान ली। इस सप्ताह उस राक्षस के भोजन व एक आदमी की बारी हमारे परिवार की है। मैंने सोचा कि परिवार सहित ही मैं राक्षस के पास चला जाऊँ। इस समस्या को दूर करने का और कोई उपाय नहीं है।

ब्राह्मण की बातों को सुनकर कुंती ने सबसे पहले भीम से सलाह लेकर वह लौटकर ब्राह्मण से बोली- “विप्रवर, आप इस बात की चिंता छोड़ दीजिए। मेरे पाँच बेटे हैं, उनमें से एक आज राक्षस के पास भोजन लेकर चला जाएगा” ब्राह्मण बोला- “आप हमारी अतिथि हैं। आपके बेटे के मौत का मुंह में भेजना कहाँ का न्याय है। मुझसे यह नहीं हो सकता। कुंती को डर था कि यदि बात फैल गई तो दुर्योधन को पता चल जाएगा कि हम लोग एकचक्रा नगर में छिपे हुए हैं। इसलिए उसने इस बात को गुप्त रखने के लिए ब्राह्मण से कहा जब कुंती ने भीम से भोजन की सामग्री लेकर बकासुर के पास जाने को कहा तो युधिष्ठिर नाराज़ हो गया। यह देखकर कुंती बोली-ब्राह्मण के घर हम आराम से रह रहे हैं। आज जब उन पर विपत्ति पड़ी है तो हमें उसका साथ देना चाहिए। भीम को बकासुर के पास भेजना मेरा कर्तव्य है।

भीम गाड़ी में भोजन लेकर राक्षस की गुफा पर पहुँच गया। वह वहाँ बैठकर भोजन करने लगा। जब राक्षस भूख से तड़पता हुआ निकला तो वह यह देखकर क्रोध से लाल हो गया। इतने में भीम ने उसे पुकारा जिससे राक्षस और क्रोधित हो गया और राक्षस भीम पर झपटा। राक्षस ने पेड़ उखाड़ कर भीम को मारा लेकिन भीम ने उसे बाएँ हाथ से रोक लिया। दोनों में काफ़ी मुठभेड़ हुई। राक्षस बार-बार उठकर भीम से दो-दो हाथ करने तैयार हो जाता। अंत में भीम ने उसे मार डाला। भीम ने लाश को घसीटकर नगर के फाटक पर लाकर पटक दिया। फिर घर माता-कुंती के पास जाकर सारी कहानी सुनाई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-21- आगमन – पधारना, आना, प्रबंध – इंतजाम, व्यवस्था, सबूत – प्रमाण।
पृष्ठ संख्या-23- क्षुब्ध – दुखी, निंदा – शिकायत।
पृष्ठ संख्या-24- क्षोभ – दुख, हाँडी – मिट्टी का छोटा घड़ा, विलक्षण – अद्भुत।
पृष्ठ संख्या-25- हठ – जिद, दुरात्मा – बुरे विचार रखने वाला, जुल्म – अत्याचार।
पृष्ठ संख्या-27- विश्राम – आराम, पीड़ा – कष्ट, लाश – मृत शरीर।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 9 लाख का घर

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 9 लाख का घर

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 9

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुर्योधन की ईर्ष्या क्यों बढ़ती जा रही थी?
उत्तर:
भीम की शारीरिक शक्ति और अर्जुन की युद्धकला को देखकर दुर्योधन की ईर्ष्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।

प्रश्न 2.
दुर्योधन को कुमंत्रणा कौन-कौन दे रहे थे?
उत्तर:
पांडवों का विनाश करने के लिए मामा शकुनि तथा कर्ण दुर्योधन को कुमंत्रणा दे रहे थे।

प्रश्न 3.
धृतराष्ट्र का स्वभाव कैसा था?
उत्तर:
यद्यपि धृतराष्ट्र बुद्धिमान थे पर वे दृढ़ निश्चयी नहीं थे।

प्रश्न 4.
दुर्योधन किस बात के लिए चिंतित था?
उत्तर:
दुर्योधन की चिंता यह थी कि बचपन से अंधे होने के कारण उसके पिता को राज्य से वंचित होना पड़ा और उसके छोटे भाई के हाथ में राजसत्ता चली गई। उसके बाद उनके बेटे युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया, तो फिर पीढ़ियों तक हम राज्य की आशा नहीं कर सकते।

प्रश्न 5.
धृतराष्ट्र दुर्योधन का साथ क्यों देते थे?
उत्तर:
धृतराष्ट्र को पुत्र मोह बहुत अधिक था। अपनी इसी कमज़ोरी के कारण दुर्योधन के गलत एवं सही सभी कामों में धृतराष्ट्र दुर्योधन का साथ देता था।

प्रश्न 6.
पुरवासियों के क्या विचार थे?
उत्तर:
पुरवासी प्रजा की राय थी कि गददी के उत्तराधिकारी तो युधिष्ठिर ही होना चाहिए। धृतराष्ट्र तो पांडु के आभाव में राजा बने थे। अब पितामह भीष्म का कर्तव्य है कि राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला दें। युधिष्ठिर से समस्त प्रजा को न्याय की उम्मीद थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुरवासियों की धारणा को जानकर दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से क्या कहा?
उत्तर:
पुरवासियों की धारणा थी कि राज्य गद्दी के उत्तराधिकारी युधिष्ठिर ही हैं। उनकी यह धारणा जानकर दुर्योधन ने अपने पिता से कहा कि- पिता जी पुरवासी तरह-तरह की बातें करते हैं। चौराहे और सभाओं में सभी यही बातें करते हैं कि राजगद्दी पर बैठने योज्य तो युधिष्ठिर ही है। वे कहते हैं कि धृतराष्ट्र तो जन्म से अंधे थे, इस कारण उनके छोटे भाई को राजा बनाया गया था। उसकी अकाल मृत्यु हो जाने के कारण कुछ समय के लिए धृतराष्ट्र ने राजकाज सँभाला था। अब युधिष्ठिर बड़े हो गए हैं। अतः उन्हें राजा बना देना चाहिए। अब यदि युधिष्ठिर राजा बन गए तो हमारी पीढ़ियाँ इस अधिकार को सदा के लिए खो देंगी।

प्रश्न 2.
कर्णिक नाम के ब्राह्मण ने धृतराष्ट्र को क्या सलाह दी?
उत्तर:
कर्णिक नाम के ब्राह्मण ने धृतराष्ट्र को सलाह दी कि हे राजन! जो ऐश्वर्यवान है, वह संसार में श्रेष्ठ माना जाता है। यह सही है कि पांडव आपके भतीजे हैं, लेकिन वे बड़े शक्तिशाली भी हैं। अतः सावधान हो जाइए और पांडवों से अपनी रक्षा कर लीजिए वरना पीछे पछताना पड़ेगा और यदि युधिष्ठिर राजा बन गए तो आपकी पीढ़ियाँ इस अधिकार से वंचित रह जाएँगी।

प्रश्न 3.
वारणावत का महल किन-किन चीज़ों से तैयार किया गया?
उत्तर:
वारणावत में महल पांडवों को रहने के लिए तैयार किया गया था। वह सन, घी, मोम, तेल, लाख तथा चरबी एवं मिट्टी तेल आदि चीजों से मिलाकर तैयार किया गया था। इस षड्यंत्र था कि इस भवन में पांडवों को ठहराया जाएगा और किसी एक दिन रात में आग लगा दी जाएगी जिसमें पांडव समेत सभी लोग जलकर स्वाहा हो जाएंगे और दुर्योधन आसानी से राजगद्दी पर बैठ सकेगा।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 9

भीम का शरीरिक बल और अर्जुन की युद्ध कुशलता को देखकर दुर्योधन की ईर्ष्या दिन ब दिन बढ़ती गई। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए दुर्योधन तरह-तरह का उपाय सोचने लगा। इस षड्यंत्र में उसका मामा शकुनि और कर्ण भी शामिल थे। धृतराष्ट्र को पुत्र मोह बहुत अधिक था। दृढ़ निश्चयी वे नहीं थे। उनमें अंकुश रखने की शक्ति नहीं थी। वे जानते थे कि दुर्योधन गलत रास्ते पर चल रहा है, फिर भी उन्होंने अपने पुत्र का साथ दिया।

राज्य की प्रजा राज्य का उत्तराधिकारी युधिष्ठिर को मानती थी। वे चाहते थे कि पितामह भीष्म को धृतराष्ट्र से राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला देना चाहिए। प्रजा को विश्वास था कि युधिष्ठिर ही सारी प्रजा के साथ न्याय कर सकते हैं। इन सब बातों से दुर्योधन में और ईर्ष्या और जलन की भावना का विकास हुआ।

एक दिन धृतराष्ट को अकेले में पाकर दुर्योधन बोला- पिता जी जन्म से अँधे होने के कारण आप राज्य से वंचित रह गए। आपके छोटे भाई के हाथ साम्राज्य चला गया। अब यदि युधिष्ठिर को राजा बनाया गया तो कई पीढ़ियों तक राज्य की आशा नहीं कर सकेंगे, यह अपमान हमसे सहा नहीं जाएगा। बाद में हमें पछताना पड़ेगा।

कर्णिक की बातों पर धृतराष्ट्र विचार कर ही रहे थे कि इतने में दुर्योधन ने आकर कहा-“पिता जी, आप अगर किसी तरह पांडवों को समझाकर वारणावत भेज दें तो नगर-राज्य का हमारा शासन पक्का हो जाएगा। फिर पांडव वहाँ से खुशी से लौट सकते हैं और उनसे कोई खतरा नहीं रहेगा।

दुर्योधन के आदमियों ने पांडवों को वारणावत की सुंदरता और खूबियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया। धृतराष्ट्र पहले से ही कमज़ोर पड़ गए थे। स्वयं युधिष्ठिर ने वारणावत जाने की अनुमति माँगी। धृतराष्ट्र की अनुमति लेकर कुंती व पाँचों भाई वारणावत के लिए चल दिए। धृतराष्ट्र की अनुमति पाकर पांडव माता कुंती के साथ वारणावत चले गए। पांडवों के चले जाने पर दुर्योधन तथा उसके मित्रों ने पांडवों तथा कुंती को मारने की योजना बनाने लगे। दुर्योधन ने अपने मंत्री पुरोचन को बुलाकर गुप्त रूप से सलाह दी और एक योजना बनाई। उस योजना के अनुसार, रथ पर बैठकर पुरोचन बहुत पहले शीघ्र ही वारणावत जा पहुँचा। वही जाकर पांडवों को ठहरने के लिए सन, घी, तेल, मोम, लाख, चर्बी आदि चीजों को मिट्टी में मिलाकर सुंदर भवन बनवाया।

दुर्योधन की योजना थी कि कुछ दिनों तक पांडवों के लाख के भवन में रहने के बाद किसी एक रात में उस भवन में आग लगा दी जाएगी जिससे पांडव जलकर राख हो जाएंगे और कौरवों पर कोई आरोप नहीं लगेगा।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-19
कुमंत्रणा – षड्यंत्र, पूरी योजना बनाना, कुराह – गलत रास्तों से चलना, अकाल – असमय, वंचितरहित, स्नेह – प्यार, प्रेम।

पृष्ठ संख्या-20
दलीलों – तर्कों, चौकन्ने – होशियार, पृष्ठ पोषक – पक्षधर, काम तमाम करना – मारना, निश्शंक – शंका रहित, सलाह – राय।

Class 7 Hindi Mahabharat Questions and Answers Summary Chapter 8 द्रोणाचार्य

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 8 द्रोणाचार्य

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 8

पाठाधारित प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आचार्य द्रोण कौन थे?
उत्तर:
आचार्य द्रोण महर्षि भारद्वाज के पुत्र थे।

प्रश्न 2.
उनकी किसके साथ गहरी मित्रता थी?
उत्तर:
द्रुपद और द्रोण में गहरी मित्रता थी।

प्रश्न 3.
द्रोणाचार्य का किसके साथ विवाह हुआ था?
उत्तर:
द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन के साथ हुआ था।

प्रश्न 4.
परशुराम अपनी संपत्ति गरीब ब्राह्मणों को दान में क्यों दे रहे थे?
उत्तर:
वन-गमन के उद्देश्य से परशुराम अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाँट रहे थे।

प्रश्न 5.
शिक्षा पूरी होने पर द्रोण ने अर्जुन से गुरु-दक्षिणा में क्या माँगा?
उत्तर:
शिक्षा पूरी होने पर द्रोण ने अर्जुन से गुरु दक्षिणा के रूप में पांचाल-राज को कैद कर लाने के लिए कहा।

प्रश्न 6.
द्रुपद ने द्रोण के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
द्रुपद ने सत्ता के मद में द्रोण का अपमान किया।

प्रश्न 7.
द्रुपद के पुत्र व पुत्री के नाम बताएँ-
उत्तर:
पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न तथा पुत्री का नाम द्रौपदी था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
द्रोण ने कुएँ से गेंद किस प्रकार निकाली।
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने पास में पड़ी हुई सींक उठा ली और उसे पानी में फेंक दिया। सींक गेंद में ऐसे जाकर लगी जैसे तीर और फिर इस तरह लगातार कई सीकें एक दूसरे में डालते गए। सीकें एक दूसरे से चिपकती गईं। जब आखिरी सींक का सिरा कुएँ के बाहर तक पहुँच गया तो द्रोणाचार्य ने उसे पकड़ कर खींच लिया और गेंद निकल गई।

प्रश्न 2.
द्रोण के व्यवहार से दुखी होकर द्रुपद ने क्या प्रतिज्ञा की?
उत्तर:
द्रोण के व्यवहार से दुखी होकर द्रुपद ने बदले की भावना को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने कई कठोर व्रत और तप इस कामना से किए कि उसे एक ऐसा पुत्र हो जो द्रोण को मार सके और एक ऐसी कन्या हो जो अर्जुन से ब्याही जा सके।

प्रश्न 3.
बंदी बने हुए द्रुपद से द्रोणाचार्य ने क्या कहा?”
उत्तर:
द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा कि आपको किसी डर या विपत्ति की आशंका नहीं करनी चाहिए। तुमने मेरा अपमान करते समय कहा था कि राजा ही राजा के साथ मित्रता कर सकता है। मैं तुम्हारा आधा राज्य तुमको लौटा रहा हूँ। जिससे बराबर राज्य के स्वामी बनकर हम दोनों मित्र बने रहे।

प्रश्न 4.
द्रोण से बदला लेने के लिए द्रुपद ने क्या किया?
उत्तर:
द्रोण से बदला लेने के लिए द्रुपद ने कठिन तप व व्रत के द्वारा एक पुत्र व पुत्री प्राप्त की। द्रुपद की इच्छा थी कि मुझे अर्जुन जामाता रूप में मिले और मेरा पुत्र द्रोण को मार सके। पुत्री द्रौपदी मिली और पुत्र धृष्टद्युम्न मिला। धृष्टद्युम्न के ही हाथों द्रोण मारे गए थे।

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 8

आचार्य द्रोण महर्षि भारद्वाज के पुत्र थे। पांचाल नरेश द्रुपद भारद्वाज के आश्रम में उनके साथी व मित्र थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। उन दोनों में इतनी गहरी मित्रता थी कि एक बार राजकुमार द्रुपद ने हँसी मजाक में कह दिया था कि अगर मैं पंचाल देश का राजा बन जाऊँगा तो आधा राज्य तुम्हें दे दूंगा।

शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हो गया और उनके अश्वस्थामा नाम का पुत्र हुआ। द्रोण अपनी पत्नी और पुत्र से बहुत प्यार करते थे।

द्रोण बड़े गरीब थे। एक बार उन्हें पता चला कि परशुराम अपनी सारी संपत्ति गरीब ब्राहमणों में बाँट रहे हैं। द्रोण भी वहाँ पहँचे किंतु, वहाँ पहुँचने तक परशुराम अपनी सारी संपत्ति बाँटकर वन गमन की तैयारी कर रहे थे।

द्रोण को देखकर परशुराम जी बोले- “ब्राह्मण श्रेष्ठ आपका स्वागत है। पर मेरे पास जो भी कुछ था वह मैं बाँट चुका हूँ। अब मेरे पास शरीर और धनुर्विद्या ही है। बताइए मैं आपके लिए क्या करूँ?” द्रोण ने उनसे समस्त शस्त्रों का प्रयोग तथा रहस्य सिखाने का अनुरोध किया। परशुराम ने द्रोण को धनुर्विद्या की पूरी शिक्षा दे दी।

कुछ समय के बाद राजकुमार द्रुपद अपने पिता के पश्चात पांचल देश का राजा बना। इसकी सूचना पाते ही द्रोण को बचपन के मित्र की बातें याद आने लगीं। वे सोचने लगे कि राजा द्रुपद आधा राज्य न भी दें, तो कोई बात नहीं कुछ धन तो देगा। मन में यह आशाएँ लेकर द्रोण द्रुपद के पास पहुँचे और बोले- मैं तुम्हारा बचपन का मित्र द्रोण हूँ।

अहंकार एवं ऐश्वर्य के मद में चूर राजा द्रुपद को द्रोण का आना अच्छा नहीं लगा। वे बोले- “मुझे मित्र कहकर पुकारने का तुम्हें साहस कैसे हुआ। क्या तुम्हें पता है कि सिंहासन पर बैठे हुए एक राजा के साथ दरिद्र प्रजा की मित्रता कैसे हो सकती है। मूर्ख की विद्वान के साथ और कायर की वीर के साथ मित्रता नहीं हो सकती। मित्रता बराबरी वालों से हो सकती है। द्रुपद की कठोर वाणी सुनकर द्रोण काफ़ी लज्जित हुए साथ में उन्हें क्रोध भी बहुत आया। उसी समय उन्होंने प्रण लिया इस अहंकारी राजा को सबक ज़रूर सिखलाऊँगा। बचपन में जो आपस में मित्र के बीच बात हुई थी उसे पूरा करके चैन लूँगा। वे हस्तिनापुर गए और पत्नी के भाई कृपाचार्य के घर गुप्त रूप से रहने लगे।

कुछ समय बाद एक दिन हस्तिनापुर के राजकुमार नगर में बाहर गेंद खेल रहे थे। उनकी गेंद कुएँ में गिर पड़ी। गेंद निकालने की कोशिश में उनकी अंगूठी कुएँ में गिर पड़ी। गेंद और अंगूठी निकालने में राजकुमारों को असफल होते देखकर द्रोण ने राजकुमारों से कहा- राजकुमारों बोलो, मैं गेंद निकाल दूँ, तो तुम मुझे क्या दोगे।” हे ब्राहमणश्रेष्ठ! अगर आप गेंद निकाल देंगे, तो कृपाचार्य के घर आपको बढ़िया भोजन कराएँगे, युधिष्ठिर ने हँसते हुए कहा। द्रोणाचार्य ने सींक कुएँ में डालकर गेंद में गड़ा दी और फिर सींक में सींक डालकर गेंद निकाल दी। उसी प्रकार उन्होंने अँगूठी निकाल दिया। इस चमत्कार से राजकुमार बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने द्रोण के आगे सम्मानपूर्वक शीश झुकाया और हाथ जोड़कर पूछा- “महाराज हमारा प्रणाम स्वीकार कीजिए और हमें आप अपना परिचय दीजिए कि आप कौन हैं ? हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? हमें आज्ञा दीजिए।”

द्रोण ने कहा- “इन सारी घटनाओं को बताकर पितामह भीष्म से मेरा परिचय पूछ लेना। राजकुमारों से घटना की सारी बातें सुनकर पितामह भीष्म समझ गए कि ऐसा काम तो सुप्रसिद्ध आचार्य द्रोण ही कर सकते हैं। भीष्म ने द्रोण को बहुत सम्मान दिया और राजकुमारों को आदेश दिया कि वे गुरु द्रोण से ही अस्त्र विद्या सीखें। कुछ समय बाद राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा पूरी हो गई। इसके बाद आचार्य द्रोण ने गुरु दक्षिणा में अपने शिष्यों से पांचालराज द्रुपद को कैदकर लाने को कहा। उनके कहने पर कर्ण और दुर्योधन द्रुपद के पास गए लेकिन शक्तिशाली द्रुपद के आगे टिक नहीं सके। तब द्रोण ने अर्जुन को भेजा अर्जुन ने पांचाल नरेश की शक्ति को छिन्न भिन्न कर दिया और द्रुपद को बंदी बनाकर आचार्य द्रोण के सामने लाकर खड़ा कर दिया।

द्रोणाचार्य ने मुसकराते हुए द्रुपद से कहा- हे वीर! डरो मत किसी प्रकार की विपत्ति की आशंका न करो। बचपन में हमारी तुम्हारी मित्रता थी। साथ-साथ हम दोनों खेले-कूदे, बड़े हुए। बाद में जब तुम राजा बन गए तो ऐश्वर्य एवं अहंकार के मद में आकर तुम मुझे भूल गए और मेरा अपमान किया। तुमने कहा था कि राजा ही राजा के साथ मित्रता कर सकता है। इसी कारण मुझे युद्ध करके तुम्हारा राज्य छीनना पड़ा परंतु मैं तुम्हारे साथ मित्रता करना चाहता। इसलिए आधा राज्य तुम्हें वापस लौटा देता हूँ, क्योंकि मेरा मित्र बनने के लिए तुम्हें राज्य चाहिए न। मित्रता तो बराबर हैसियत वालों में हो सकती है।

द्रोण ने अपना अपमान का बदला ले लिया। अतः उन्होंने द्रुपद को आधा राज्य वापिस कर दिया। द्रुपद अपने अपमान की ज्वाला में जलने लगा। उन्होंने दो व्रत और तप के द्वारा दो कामनाएँ पूरी की-

एक ऐसा पुत्र हो जो द्रोण को मार सके। एक ऐसी कन्या हो जिसकी अर्जुन के साथ शादी हो सके। कालांतर में उनकी कामनाएँ पूरी हुईं और धृष्टद्युम्न नामक एक पुत्र हुआ जो आगे चलकर कुरुक्षेत्र में युद्ध के मैदान में द्रोण के मौत का कारण बना और द्रौपदी नामक एक पुत्री हुई जो अर्जुन से ब्याही गई।

शब्दार्थ:

पृष्ठ संख्या-16
गहरी – घनिष्ठ, वितरित – बाँटना, वन-गमन – वन की ओर जाना। खबर – सूचना, मद – गर्व, सज्जनोचित – सज्जनों जैसा, देहावसान – देहांत।

पृष्ठ संख्या-17
साहस – हिम्मत, दरिद्र – गरीब, दावा – अधिकार, विनती – प्रार्थना, आज्ञा – आदेश।

पृष्ठ संख्या-18
धावा बोलना – हमला करना, विपत्ति – संकट, घृणा – नफ़रत, ठेस – पीड़ा।

पृष्ठ संख्या-19
लक्ष्य – उद्देश्य, तप – तपस्या, कामना – चाह।