हास्यबालकविसम्मेलनम् Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 4

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Class 7 Sanskrit Chapter 4 हास्यबालकविसम्मेलनम् Summary Notes

हास्यबालकविसम्मेलनम्  पाठ का परिचय

प्रस्तुत पाठ में रोचक हास्य कवि सम्मेलन का वर्णन किया गया है। पाठ में अव्ययों का प्रयोग हुआ है। अव्यय जो तीनों लिंगों, तीनों वचनों और सभी विभक्तियों में सदैव एक ही रूप में होता है, अर्थात् जिसका व्यय अर्थात् परिवर्तन (Change) नहीं होता है, वह ‘अव्यय’ कहलाता है।

हास्यबालकविसम्मेलनम् Summary

प्रस्तुत पाठ में हास्य बालकवियों के सम्मेलन को प्रस्तुत किया गया है। इसमें अनेक हास्य कविताओं को सम्मिलित किया गया है। पाठ में अव्ययों का प्रयोग हुआ है। जो शब्द तीनों लिंगों में, तीनों वचनों में तथा सभी विभक्तियों में सदा एक ही रूप में प्रयोग होते हैं वे ‘अव्यय’ कहलाते हैं।

एक श्लोक में वैद्य को यमराज का सहोदर बताया गया है। यमराज तो केवल प्राणों का ही हरण करता है, परन्तु वैद्य प्राणों के साथ धन का भी हरण करता है।दूसरे श्लोक में भी वैद्य के विषय में व्यंग्य किया गया है कि चिता में जलते हुए शव को देखकर वैद्य को आश्चर्य हुआ। वहं सोचने लगा कि यह किसकी कलाकारी है?
हास्यबालकविसम्मेलनम् Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 4

तीसरे श्लोक में कहा है कि पराए माल पर जहाँ तक सम्भव हो हाथ फेर देना चाहिए। इस संसार में पराया अन्न मुश्किल से प्राप्त होता है। चौथे श्लोक में गजाधर कवि, खाने के लोभी तुन्दिल, यमराज, वैद्य इत्यादि पर व्यंग्य किया गया है।

हास्यबालकविसम्मेलनम् Word Meanings Translation in Hindi

(विविध-वेशभूषाधारिणः चत्वारः बालकवयः मञ्चस्य उपरि उपविष्टाः सन्ति। अधः श्रोतारः हास्यकविताश्रवणाय उत्सुकाः सन्ति कोलाहलं च कुर्वन्ति।)

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
उपरि-ऊपर (on/at), उपविष्टा:-बैठे हुए (are sitting), श्रोतार:-सुननेवाले (audience), कोलाहलम्-शोर (noise), अध:-नीचे (underneath).

सरलार्थ :
(विभिन्न वेशभूषा वाले चार बालकवि मञ्च के ऊपर बैठे हुए हैं। नीचे श्रोता हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर मचा रहे हैं।)

English Translation :
(Four child-poets in different attires (dresses) are sitting on the stage. Below the audience are eager to hear the humorous poetry and is making a noise.)

(क) सञ्चालक:-अलं कोलाहलेन। अद्य परं हर्षस्य अवसरः यत् अस्मिन् कविसम्मेलने काव्यहन्तारः कालयापकाश्च भारतस्य हास्यकविधुरन्धराः समागताः सन्ति। एहि, करतलध्वनिना वयम् एतेषां स्वागतम् कुर्मः।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
काव्यहन्तार:-काव्य को नष्ट करनेवाले (the undoers of poetry), कालयापकाः-समय को नष्ट करनेवाले (those who waste time), धुरन्धरा:-अग्रणी/श्रेष्ठ (prominent), एहि-आइए (please come), करतलध्वनिना-तालियों से (with applause/with clapping sounds), उत्सुका:-जानने के इच्छुक (eager).

सरलार्थ :
सञ्चालक-शोर करने से बस करो (शोर मत करो)। आज बहुत प्रसन्नता का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्यहन्ता (काव्य को नष्ट करनेवाले) और कालयापक (समय बर्बाद करनेवाले) भारत के श्रेष्ठ हास्य कवि आए हुए हैं। आओ! हम सब तालियों से इन सबका स्वागत करें।

English Translation :
Director-Don’t make noise. Today is an occasion of great pleasure that in this conference poets, the eminent humorous poets of India, the Kavyahantara (the undoers of poetry) and the Kalyapakah (those who waste time) are present. Please come! Let us welcome them with applause.

(ख) गजाधरः-सर्वेभ्योऽरसिकेभ्यो नमो नमः। प्रथमं तावद् अहम् आधुनिक वैद्यम् उद्दिश्य स्वकीयं काव्यं श्रावयामि वैद्यराज! नमस्तुभ्यं यमराजसहोदरः। यमस्तु हरति प्राणान् वैद्यः प्राणान् धनानि च॥ (सर्वे उच्चैः हसन्ति)

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अरसिकेभ्यः -नीरस जनों को (to uninteresting persons), आधुनिकम्-आधुनिक (आजकल के) (modern), नमस्तुभ्यम् (नमः + तुभ्यम्)-तुम्हें प्रणाम (Saluta tion to you), सहोदरः -सगा भाई (real brother), हरति-ले जाता है (takes away), यमराज मृत्यु का देवता (god of death), उच्चैः -जोर से (loudly), उद्दिश्य-लक्ष्य करके (aiming).

सरलार्थः
गजाधर-सब नीरस जनों को नमस्कार। तब तक पहले मैं आधुनिक वैद्यों को लक्ष्य करके अपनी कविता सुनाता हूँ हे वैद्यराज! यमराज के भाई, आपको नमस्कार है। यमराज तो प्राणों को ले जाता है, वैद्य प्राणों को और धन को ले जाता है। (सब जोर से हँसते हैं)

English Translation :
Gajadhar—Salutation to all the uninteresting persons. Then first of all I recite my poem aiming at the modern physician. Oh! Physician! brother of the God of death, I bow to you. The God of death takes away only life but the physician takes away both life and money.

(ग) कालान्तकः-अरे! वैद्यास्तु सर्वत्र परन्तु न ते मादृशाः कुशलाः जनसंख्यानिवारणे। ममापि काव्यम् इदं शृण्वन्तु भवन्तः चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा वैद्यो विस्मयमागतः। नाहं गतो न मे भ्राता कस्येदं हस्तलाघवम्॥ (सर्वे पुनः हसन्ति)

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
मादृशाः-मेरे जैसे (like me), चितां-चिता को (to pyre), प्रज्ज्वलितां-जलती हुई (burning), विस्मयमागतः (विस्मयम् + आगतः)-आश्चर्यचकित हो गया (surprised), मे भ्राता-मेरा भाई (यमराज) (my brother) (god of death), कस्येदं (कस्य + इदं) किसकी यह (whose), हस्तलाघवम्-हाथ की सफाई (sleight of hand).

सरलार्थ :
कालान्तक-अरे ! वैद्य तो सब जगह हैं, परन्तु वे जनसंख्या कम करने में मेरे जैसे निपुण नहीं हैं। आप सब मेरे भी इस काव्य को सुनिए। चिता को जलती हुई देखकर वैद्य ने आश्चर्य किया कि न मैं गया, न मेरा भाई, यह किसके हाथ की सफाई है। (सब फिर हँसते हैं)

English Translation :
Kalantak-Oh! the physicians are everywhere but they are not as expert as I am in reducing the population. All of you please listen to this poem of mine also. Looking at the burning pyre, the physician was surprised that neither he nor his brother (the God of death) went (there), then whose sleight of hand it was? (Again all laugh)

(घ) तुन्दिल:-(तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन्) तुन्दिलोऽहं भोः! ममापि इदं काव्यं श्रूयताम्, जीवने धार्यतां च परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा शरीरे दयां कुरु! परान्नं दुर्लभं लोके शरीराणि पुनः पुनः॥ (सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति)

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
तुन्दस्य उपरि-तोंद के ऊपर (on the pot belly), आवर्तयन् फेरता हुआ (stroking), धार्यताम्-धारण करें (adopt), परान्नम्-दूसरे के अन्न को (food grain of others) पर+अन्नम्, दुर्लभं-कठिनाई से प्राप्त करने योग्य (rare), लोके-संसार में (in the world), अट्टहासं-जोर से हँसना (laugh loudly).

सरलार्थ : –
तुन्दिल-(तोंद के ऊपर हाथ फेरते हुए) मैं तुन्दिल हूँ। अरे ! मेरी भी इस कविता को सुनो और जीवन में अपनाओ-दुष्टबुद्धिवाले! दूसरे का अन्न प्राप्त करके शरीर पर दया मत कर। संसार में दूसरे का अन्न दुर्लभ है। शरीर बार-बार मिलता रहता है। (सब फिर जोर से हँसते हैं)

English Translation :
Tundil-(stroking his pot belly) I am Tundil. Listen to this poem of mine and adopt it in your life. Hey! you wicked minded! Do not have mercy on your body (life) while accepting food from somebody else. The other’s food is rare in the world, one gets life again and again. (Again everyone laughs loudly)

(ङ) चार्वाकः- आम्, आम् शरीरस्य पोषणं सर्वथा उचितमेव। यदि धनं नास्ति, तदा ऋणं कृत्वापि पौष्टिकः पदार्थः एव भोक्तव्यः। तथा कथयति चार्वाककविः यावज्जीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। श्रोतार:-तर्हि ऋणस्य प्रत्यर्पणं कथम्? चार्वाकः-श्रूयतां मम अवशिष्टं काव्यम् घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः॥ (काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोऽपि आशुकवितां रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति)

बालकः- श्रूयताम् श्रूयतां भोः! ममापि काव्यम्
गजाधरं कविं चैव तुन्दिलं भोज्यलोलुपम्।
कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमाम्यहम्॥
(काव्यं श्रावयित्वा ‘हा हा हा’ इति कृत्वा हसति। अन्ये चाऽपि हसन्ति सर्वे गृहं गच्छन्ति।)

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
आम्-हाँ (yes), ऋणं-कर्ज (loan), पौष्टिकः-पुष्टि देने वाला (nourishing), भोक्तव्यः-उपभोग करना चाहिए (should consume), यावज्जीवेत् (यावत् + जीवेत् )-जब तक जीवित रहो (as long as you live), घृतं-घी को (ghee, fatty eatables), प्रत्यर्पणम्-लौटाना (return), अवशिष्टम्-बचा हुआ (remaining), श्रम-परिश्रम/मेहनत ( hardwork), उत्प्रेरित:-प्रेरित हुआ (being inspired), हासपूर्वकम्-खुश होकर, हँसते हुए (joyfully), श्रावयति सुनाता है (recites), भोज्यलोलुपम्-खाने का लोभी (greedy of food), प्रत्यर्पणम्-(प्रति+अर्पणम्) MICHI (Repaying).

सरलार्थ :
चार्वाक- हाँ, हाँ। शरीर का पोषण हमेशा ही ठीक रहता है। अगर धन नहीं है (व्यक्ति के पास) तब कर्ज लेकर भी पौष्टिक (शरीर को बलवान बनाने वाले) पदार्थों का ही उपभोग करना चाहिए। और चार्वाक कवि कहते हैं जब तक जियो सुख से जियो (जीना चाहिए), कर्ज (उधार) लेकर भी घी पियो (पीना चाहिए)। श्रोतागण- तो कर्ज को कैसे चुकाया जाए? चार्वाक- मेरी बची हुई कविता भी सुनिए घी पीकर, परिश्रम करके लोगों को कर्ज वापस कर देना चाहिए। (काव्य पाठ से प्रेरित होकर एक बालक भी तुरंत कविता की रचना करता है और हँसते हुए सुनाता है-) बालक- अरे सुनिए, सुनिए! मेरी भी

कविता-गजाधर कवि और खाने के लोभी तुन्दिल, (प्राण लेने वाले) कालान्तक को तथा वैद्य चार्वाक को मैं प्रणाम करता हूँ। [कविता सुनाकर (बालक) ‘हा हा हा’ ऐसा करके हँसता है। दूसरे भी हँसते हैं और सभी घर जाते हैं।]

English Translation :
Charvak- Yes, yes. Nourishing the body is always most appropriate. If there is no money then one should even borrow and consume nourish ing food. The poet Charvak says- As long as one lives one should live in comfort. One should consume ghee (good nourishing food) even if one need to borrow.
Audience- Then how should one repay the debt.
Charvak- Please listen to my remaining poem. After drinking ghee (consuming healthy nourishing food) and doing hard work one should repay the debt.
(Inspired by this poetry-recitation, a boy hastily writes a verse and recites it with a laugh)
Boy- Please listen to my poem too.
(Salulte the poet Gajadhar, the glutton (greedy of food) Tundil as also Kalantaka (Destroyer of Time) and the physician Charvak.)
(On reciting the verse the boy laughs. The other laughs too. And everyone goes home.)

स्वावलम्बनम् Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 3

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Class 7 Sanskrit Chapter 3 स्वावलम्बनम् Summary Notes

स्वावलम्बनम् पाठ का परिचय

प्रस्तुत पाठ में दो मित्रों की कथा के द्वारा वर्णन किया गया है कि स्वावलम्बी मनुष्य सदा सुखी रहता है। पराधीन व्यक्ति दुःखी होता है। सबको अपना कार्य स्वयं करना चाहिए। पाठ में संख्यावाची शब्दों से भी अवगत करवाया गया है।

स्वावलम्बनम् Summary

कृष्णमूर्ति तथा श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ का पिता समृद्ध था। उसके घर में सब प्रकार के सुख साधन थे। उसके विशाल भवन में चालीस खम्बे थे। अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ थीं। कृष्णमूर्ति के माता-पिता साधारण कृषक थे। उनका घर आडम्बर शून्य तथा अत्यधिक साधारण था। एक बार श्रीकण्ठ उसके घर आया। उसके घर में नौकर को न देखकर श्रीकण्ठ ने कहा–’तुम्हारे घर में एक भी नौकर नहीं है। मेरे यहाँ तो अनेक नौकर हैं।’
स्वावलम्बनम् Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 3.1

स्वावलम्बी कृष्णमूर्ति कहने लगा-‘मेरे आठ नौकर हैं। यथा-दो पैर, दो हाथ, दो आँख तथा दो कान। ये प्रतिपल मेरे अधीन रहते हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर दिन-रात कार्य नहीं कर सकते।’ अतः तुम नौकरों के अधीन हो। अपना कार्य स्वयं करने से सुख ही प्राप्त होता है। यह सुनकर श्रीकण्ठ अत्यधिक प्रसन्न हुआ और कहने लगा’आज से मैं भी अपना कार्य स्वयं करूँगा।’
स्वावलम्बनम् Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 3.2

स्वावलम्बनम् Word Meanings Translation in Hindi

(क) कृष्णमूर्तिः श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्। श्रीकण्ठस्य पिता समृद्धः आसीत्।अतः तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्। तस्मिन् विशाले भवने चत्वारिंशत् स्तम्भाः आसन्। तस्य अष्टादश-प्रकोष्ठे षु पञ्चाशत् गवाक्षाः, चतुश्चत्वारिंशत् द्वाराणि षट्त्रिंशत् विद्युत्-व्यजनानि च आसन्। तत्र दश सेवकाः निरन्तरं कार्यं कुर्वन्ति स्म। परं कृष्णमूर्तेः माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती। तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
समृद्धः-धनवान् (rich), चत्वारिंशत्-चालीस (forty), स्तम्भाः खम्भे (pillars), अष्टादश-अठारह (eighteen), प्रकोष्ठेषु-कमरों में (in rooms), पञ्चाशत्-पचास (fifty), गवाक्षाः-खिड़कियाँ (windows), चतुश्चत्वारिंशत्-चवालीस (forty four), द्वाराणि-दरवाज़े (doors), षट्त्रिंशत्-छत्तीस (thirty six), गृहम्-घर (home), कृषकदम्पती-किसान पति-पत्नी (peasant couple), आडम्बरविहीनं-दिखावा रहित (without pomp and show.)

सरलार्थ :
कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ के पिता धनवान् थे। इसलिए उसके घर में सब प्रकार के सुख-साधन थे। उस बड़े घर में चालीस खम्भे थे। उसके अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ और चवालीस दरवाज़े और छत्तीस पंखे थे। वहाँ दस नौकर हमेशा (लगातार) काम करते रहते थे परन्तु कृष्णमूर्ति के माता और पिता किसान पति-पत्नी थे। उसका घर आडम्बर (दिखावा) रहित और साधारण था।

English Translation :
Krishnamurthy and Shrikantha were two friends. Shrikantha’s father was rich. Therefore, there were all types of comforts and luxuries in his house. There were forty pillars in that house. There were fifty windows and forty four doors and thirty-six electric fans in eighteen rooms. Ten servants used to work continuously there, but Krishnamurthy’s parents were a peasant couple. His house was without pomp and show and (very) ordinary.

(ख) एकदा श्रीकण्ठः तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत्। तत्र कृष्णमूर्तिः तस्य
माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठः

अकथयत्-
“मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्यः नास्ति। मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम्। मम गृहे तु बहवः कर्मकराः सन्ति।”

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
आतिथ्यम्-अतिथि-सत्कार (hospitality), कर्मकरा:-काम करने वाले (workers), सन्तुष्टः-सन्तोष करनेवाला (satisfied), भवताम्-आपके (with you), बहवः-बहुत से (many), भृत्यः-नौकर (servant).

सरलार्थ :
एक बार श्रीकण्ठ उसके साथ सवेरे नौ बजे उसके घर गया। वहीं कृष्णमूर्ति और उसके माता पिता जी ने अपने सामर्थ्य से श्रीकण्ठ का अतिथि-सत्कार किया। यह देखकर श्रीकण्ठ ने कहा- “मित्र ! मैं तुम्हारे सत्कार से सन्तुष्ट हूँ। केवल यह बात मुझे दुःखी कर रही है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। जिससे मेरे सत्कार के लिए आप सबने बहुत कष्ट सहा है। मेरे घर में तो बहुत से सेवक हैं।”

English Translation :
Once Shrikantha went to Krishnamurthy’s home with him at nine in the morning. There Krishnamurthy and his parents provided him hospitality the best of their capability. On seeing this Shrikantha said, “Friend! I am satisfied with your hospitality. The only thing that makes me unhappy is that there is not a single servant in your home because of which you are taking the trouble for my hospitality. There are many servants in my home.”

(ग) तदा कृष्णमूर्तिः अवदत्-“मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकराः सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायकाः। किन्तु तव भृत्याः सदैव सर्वत्र च उपस्थिताः भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीनः। यदा यदा ते अनुपस्थिताः, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।”

शब्दार्थाः ( Word Meanings):
स्वावलम्बने-आत्मनिर्भरता में (in self-reliant), प्रतिक्षणं-हरपल (every moment), अनुपस्थिताः-उपस्थित नहीं हैं (ब०व०) (absent), अधीन:-निर्भर (dependant), स्वकार्याय-अपने काम के लिए (for your work), अनुभवसि-अनुभव करते हो (feel).

सरलार्थ :
तब कृष्णमूर्ति बोला- “मित्र! मेरे भी आठ नौकर हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो आँखें और दो कान हैं। ये हर पल मेरे सहायक हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर सदा सब जगह उपस्थित नहीं हो सकते। तुम तो अपने कार्य के लिए अपने सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित होते हैं, तब-तब तुम कष्ट का अनुभव करते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी कष्ट नहीं होता है।”

English Translation:
Then Krishnamurthy spoke, “Friend! I have eight servants. These are two feet, two hands, two eyes and two ears. Every moment these are my helpers. But your servants are not capable of being present everywhere all the time. You are dependent on you servants for your work. Whenever they are not present you feel distressed. There is always comfort in self-reliance and there is no problem at all.

(घ) श्रीकण्ठः अवदत्-“मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।” भवतु, सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृह चलामि।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अवदत्-कहा, बोला (said)
मनसि-मन (हृदय) में (in heart)
अधुना-अब (Now)
स्वयमेव-अपने आप ही (also myself only)
भवतु-ठीक है (ok)
सार्धद्वादशवादनम्-साढ़े बारह बजे (half past twelve)
साम्प्रतं-अब
इस समय (Now).

सरलार्थ :
श्रीकण्ठ बोला-“मित्र! तुम्हारे वचनों को सुनकर मेरे मन में बहुत प्रसन्नता हुई। अब मैं भी अपना काम स्वयं ही करूँगा।” ठीक है। अब साढ़े बारह बजे हैं। मैं अब घर चलता हूँ।

English Translation : Shrikantha said, “Friend! hearing your words, I am pleased in my heart. Now, I will also do my work myself.” All right. It is half past twelve. I shall now go home.

CBSE Class 7 Sanskrit रचना संवादलेखनम्

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CBSE Class 7 Sanskrit रचना संवादलेखनम्

1. मातृपुत्री-संवादः (माँ और बेटी के बीच संवाद)।

माता – पुत्रि! पश्य, तत्र _____________ कः तिप्रति।
पुत्री – किम् एषः _____________ अस्ति?
माता – आम शक: _____________ भवति। परं शकस्य _____________ रक्ता भवति।
पुत्री – आम् पश्यामि, सः स्व-चञ्च्वा वृक्षस्य _____________ खादति। अम्ब। किम् एषः अपि कूजति?
माता – नहि, शुक: न _____________, सः वदति।
पुत्री – अहम् एकदा एकं _____________ अपश्यम्।
माता – सः किं वदति स्म?
पुत्री – सः _____________ ‘अतिशोभनम्, अतिशोभनम्’ इति।

मञ्जूषा – शुकः, शुकम्, वृक्षे, अवदत्, कूजति, हरितः, रक्ता, फलानि

उत्तरम्-
वृक्षे, शुकः, हरितः, चञ्चुः, फलानि, कूजति, शुकम्, अवदत्

2. सखीद्वयस्य मध्ये संवादः (दो सखियों के बीच संवाद)

प्रीतिः – हलो! _____________! अहं प्रीतिः वदामि।
दीप्तिः – हलो! सर्वं कथं चलति? किं करोषि?
प्रीतिः – साम्प्रतम् _____________ करोमि।
दीप्तिः – काचद् _____________ आगच्छति। किं तत्र तव मित्राणि _____________ कुर्वन्ति?
प्रीतिः – नहि, दूरदर्शने वार्ता प्रसरति। अहं प्रयोजना-कार्येण सह वार्ताम् आकर्णयामि।
दीप्तिः – कः विषयः _____________?
प्रीतिः – वार्तायाः विषयोऽस्ति-‘प्रदूषणम् अस्य निराकरणम् च।’
दीप्तिः – अति रुचिकरः विषयः अयम्। तव _____________ विषयः कः?
प्रीतिः – मम प्रयोजनाकार्यस्य विषयः _____________ इति।

मञ्जूषा – प्रयोजनाकार्यम्, जलप्रदूषणम्, प्रयोजनाकार्यस्य, दीप्ते, ध्वनिः, वार्तायाः, वार्ताम्

उत्तरम्-
दीप्ते, प्रयोजनाकार्यम्, ध्वनिः, वार्ताम्, वार्तायाः, प्रयोजनाकार्यस्य, जलप्रदूषणम्

3. काक-पिकयोः संवादः (कौए और कोयल के बीच संवाद)

काकः – त्वं कः असि?
पिकः – अहं पिक: अस्मि।
काकः – त्वं किं करोषि?
पिकः – अहं _____________।
काकः – त्वं कुत्र कूजसि?
पिकः – अहं _____________ कूजामि।
काकः – त्वम् अपि कृष्णः अहमपि कृष्णः। अत्र कः _____________?
पिकः – भेदः प्रत्यक्षं भविष्यति।
काकः – तत् कथम्?
पिकः – अहं _____________ मधुरं कूजामि। परं त्वं तु सदैव ‘का-का’ एव करोषि। तव ध्वनिः मधुरा नास्ति।
काकः – कथं विस्मरसि? अहं प्रतिदिनं _____________ सुप्तान् जागरयामि।
पिकः – एतत् कार्यं तु _____________ अपि करोति।
काकः – अलं _____________। परस्परं स्नेहः कर्त्तव्यः।
पिकः – भवतु। आवाम् _____________ स्वः।

मञ्जूषा – आम्रवृक्षे, प्रातः, विवादेन, घटिका, मित्रे, भेदः, वसन्तकाले, कूजामि

उत्तरम्-
कूजामि, आम्रवृक्षे, भेदः, वसन्तकाले, प्रातः, घटिका, विवादेन, मित्रे।

4. बालक-आगन्तुकयोः संवादः (बालक तथा आगन्तुक के बीच संवाद)

आगन्तुक: – बालक! किं तव जनक: _____________ अस्ति?
बालकः – मान्य! जनक: औषधाय _____________ गतः।
आगन्तुक:- अहं तव _____________ मित्रं जगदीशचन्द्रः।
बालकः – नमस्ते! उपविशतु भवान्।
आगन्तुक:- तव _____________ किम्?
बालकः – _____________ नाम पीयूषः।
आगन्तुक:- त्वं कस्यां _____________ पठसि?
बालकः – अहं _____________ पठामि।
आगन्तुक:- स्वजनकाय एतत् _____________ यच्छ। अधुना अहं गच्छामि।
बालकः – अहं जनकाय निवेदयिष्यामि।

मञ्जूषा – पुस्तकम्, जनकस्य, नाम, कक्षायाम्, आपणम्, गृहे, सप्तमी-कक्षायाम्, मम

उत्तरम्-
गृहे, आपणम्, जनकस्य, नाम, मम, कक्षायाम्, सप्तमी-कक्षायाम्, पुस्तकम्

5. बालकस्य खगस्य च मध्ये संवादः (बालक और पक्षी के बीच संवाद)

खगः – हे _____________! कुत्र गच्छसि?
बालकः – अहं _____________ गच्छामि। त्वं किं करोषि?
खगः – अहं _____________ विचरामि।
बालकः – अहमपि गगने विचरितम इच्छामि। परं मम _____________ न सन्ति।
खगः – त्वं _____________ कथं न गच्छसि? प्रतिदिनम् आकाशे वायुयानानि गच्छन्ति।
बालकः – चिन्तयामि यदा अहं वयस्क : भविष्यामि तदा _____________ भविष्यामि।
खगः – उत्तमः संकल्पः। _____________ अस्त।
बालकः – _____________।

मञ्जूषा – धन्यवादाः, शुभम्, विद्यालयम्, बालक, पक्षाः, आकाशे, वायुयान-चालक:, वायुयानेन

उत्तरम्-
बालक, विद्यालयम्, आकाशे, पक्षाः, वायुयानेन, वायुयान-चालक:, शुभम्, धन्यवादाः।

CBSE Class 7 Sanskrit रचना अनुच्छेद / निबन्ध-लेखनम्

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CBSE Class 7 Sanskrit रचना अनुच्छेद / निबन्ध-लेखनम्

मञ्जूषायाः सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयित्वा अनुच्छेद / निबन्धपूर्ति कुरुत।

प्रश्न 1.
वृक्षस्य-आत्मकथा
अहं वृक्षः अस्मि। अहं परोपकाराय फलामि। अहं पूर्व ______________ आसम्। अधुना अहं ______________ सघन: वक्षः अस्मि। अहं ______________ शीतला छायां यच्छामि। खगाः आगच्छति। ते मम ______________ उपविशन्ति। ते स्वशावकेभ्यः ______________ रचयन्ति। यदा ते कूजन्ति अहं ______________ भवामि। अहं सर्वेभ्यः शुद्धं ______________ च यच्छामि।

मञ्जूषा – फलानि, शाखासु, वायुम्, प्रसन्नः पथिकेभ्यः, विशालः, बीजरूपेण, नीडम्

उत्तरम्-
बीजरूपेण, विशालः, पथिकेभ्यः, शाखासु, नीडम्, प्रसन्नः, फलानि, वायुम्।

प्रश्न 2.
मर्यादापुरुषोत्तमः श्रीरामः
श्रीरामः ______________ आसीत्। ______________ आज्ञा पालयितुम् सः चतुर्दशवर्षाणि यावत् वने ______________ अकरोत्। तेन सह तस्य ______________ सीता भ्राता लक्ष्मणः चापि ______________ अगच्छताम्। वने ______________ सीताम् अपाहरत्। रामः ______________ हत्वा सीताम् आनयत्। सः ______________ विभीषणाय अयच्छत्। रामायणे श्रीरामस्य जीवन-कथा अस्ति।

मञ्जूषा- रावणः, रावणम्, मर्यादापुरुषोत्तमः, पितुः, वनम्, निवासम्, लंका-राज्यम्, पत्नी

उत्तरम्-
मर्यादापुरुषोत्तमः, पितुः, निवासम्, पत्नी, वनम्, रावणः, रावणम्, लंकाराज्यम्।

प्रश्न 3.
प्रातःकालः
प्रात:कालः अति ______________ भवति। वृक्षेषु ______________ मधुरं कूजन्ति। उद्यानेषु ______________ विकसन्ति। ______________ सुगन्धः शुद्धः च अस्ति। जनाः ______________ गच्छन्ति। यदा ______________ पूर्वदिशायाम् उदयं गच्छति, तदा दृश्यम् ______________ भवति। प्रातः जनाः ______________ उल्लासेन कुर्वन्ति। छात्राः प्रसन्नमुखेन ______________ पठनाय गच्छन्ति। सर्वे नवजीवनम् इव ______________।

मञ्जूषा – भ्रमणाय, सूर्यः, स्वस्वकार्यम्, विद्यालयम्, पवनः, सुखकरः, खगाः, अनुभवन्ति, मनोहरम्, पुष्पाणि

उत्तरम्-
सुखकरः, खगाः, पुष्पाणि, पवनः, भ्रमणाय, सूर्यः, मनोहरम्, स्व-स्वकार्यम्, विद्यालयम्, अनुभवन्ति।

प्रश्न 4.
पितामही
पितामही प्रातः ______________ शयनात् उत्तिष्ठति। सा ______________ करोति। स्नानस्य पश्चात् सा देवस्य ______________ करोति। सा भक्तिगीतम् ______________। सा ______________ नमति। सा वदति सर्याय ______________। सा वदति-“सर्यः सकल-संसाराय ______________ यच्छति। एतस्मात कारणात् ______________ पूजनीयः अस्ति। यदा-कदा सा ______________ अपि गच्छति।

मञ्जूषा – सूर्यः, सूर्यम्, नमः, जीवनम्, पञ्चवादने, पूजनम्, गायति, देवालयम्, स्नानम्

उत्तरम्-
पञ्चवादने, स्नानम्, पूजनम्, गायति, सूर्यम्, नमः, जीवनम्, सूर्यः, देवालयम्।

प्रश्न 5.
राष्ट्रपक्षी मयूरः
प्रत्येक-देशस्य कोऽपि ______________ अस्ति। यथा श्येन: अमेरिकादेशस्य, तथा मयूरः ______________ राष्ट्रपक्षी अस्ति। एषः अतीव ______________ पक्षी अस्ति। ______________ यदा एषः मेघान् पश्यति तदा ______________ नृत्यति। तस्मिन् काले एतस्य पक्षाणाम् ______________ अद्भुतम्। मयूरः ______________ खादति। एषः वनेषु ______________ च वसति। मयूरस्य ______________ दर्शनीयम् अस्ति। अस्य मस्तके शिखण्डः मुकुटम् इव शोभते, अतएव अस्य नाम ______________ अपि अस्ति।

मञ्जूषा- भारतदेशस्य, नृत्यम्, आनन्देन, सर्पान्, सौन्दर्यम्, उपवनेषु, शिखण्डी, मनोहरः, राष्ट्रपक्षी, वर्षाकाले।

उत्तरम्-
राष्ट्रपक्षी, भारतदेशस्य, मनोहरः, वर्षाकाले, आनन्देन, सौन्दर्यम्, सर्पान्, उपवनेषु, नृत्यम्, शिखण्डी।

दुर्बुद्धि विनश्यति Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 2

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Class 7 Sanskrit Chapter 2 दुर्बुद्धि विनश्यति Summary Notes

दुर्बुद्धि विनश्यति पाठ का परिचय

प्रस्तुत पाठ की कथा ‘पञ्चतन्त्र’ नामक ग्रंथ से ली गयी है। ‘पञ्चतन्त्र’ के लेखक पं० विष्णुशर्मा हैं । इस कथा के द्वारा बताया गया है कि अनुचित समय पर बोलने से कैसे सब कुछ नष्ट हो जाता है। कभी-कभी मौन रहकर भी कार्य सफल हो सकता है।

दुर्बुद्धि विनश्यति Summary

प्रस्तुत पाठ की कथा पं. विष्णुशर्मा जी के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘पंचतंत्र’ में से ली गई है। इस कथा में बताया गया है कि उचित-अनुचित समय देखकर ही बोलना चाहिए तथा मित्रों की बात को मानना चाहिए। मगध देश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। उस तालाब में संकट और विकट नामक दो हंस तथा कम्बुग्रीव नामक उनका मित्र कछुआ रहता था।
दुर्बुद्धि विनश्यति Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 2

एक बार मछुआरे वहाँ आए और कहने लगे-‘कल हम सभी जलचर प्राणियों को मार डालेंगे।’ यह सुन कर भयभीत कछुआ अपने दोनों मित्रों से सहायता के लिए विनती करने लगा।

कछुए के कहने पर उन हंसों ने एक डण्डे को दोनों किनारों से चोंच में पकड़ लिया तथा कछुए को उस डण्डे के मध्य भाग को मुख से पकड़ कर लटकने के लिए कहा। उन्होंने उसे समझाया कि वह मार्ग में बिल्कुल न बोले अन्यथा उसकी मृत्यु हो सकती है। कछुए ने उनकी बात मानी तथा उनके कहे अनुसार किया।

दुर्बुद्धि विनश्यति Summary Notes Class 7 Sanskrit Chapter 2.1

तब वे हंस उस कछुए को लेकर दूसरे तालाब में पहुँचाने के लिए उड़ चले। रास्ते में कुछ ग्वाले उस दृश्य को देख कर आश्चर्य प्रकट करने लगे और कहने लगे-‘देखो, हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।’ उनकी बात सुन कर ज्यों ही कछुए ने कुछ कहने के लिए अपना मुख खोला, त्यों ही वह पृथ्वी पर धड़ाम से गिरा और मर गया। शिक्षा-जो हितैषी व्यक्ति की बात को नहीं मानता है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।

दुर्बुद्धि विनश्यति Word Meanings Translation in Hindi

(क) अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सरः।
तत्र संकटविकट हंसौ निवसतः। कम्बुग्रीवनामकः
तयोः मित्रम् एकः कूर्मः अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म।।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
सरः-तालाब (pond), हंसौ-हंस (द्विव०) (two swans), कूर्मः/कच्छपः-कछुआ (tortoise), तत्रैव (तत्र + एव)-वहाँ ही (there), प्रतिवसति स्म-रहता था (lived).

सरलार्थ :
मगध प्रदेश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। वहाँ संकट और विकट नामक दो हंस रहते थे। कम्बुग्रीव नामक उन दोनों का मित्र एक कछुआ भी वहीं रहता था।

English Translation:
There was a pond named Phullotpal in Magadh a province. Two swans Sankat and Vikat lived there. One tortoise named Kambugreev, a friend of both (swans) also lived there.

(ख) अथ एकदा धीवराः तत्र आगच्छन्। ते अकथयन्- “वयं श्वः मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्यामः।” एतत् श्रुत्वा कूर्मः अवदत्-“मित्रे! किं युवाभ्याम् धीवराणां वार्ता श्रुता? अधुना किम् अहं करोमि?” हंसौ अवदताम्-“प्रातः यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम्।” कूर्मः अवदत्-“मैवम्। तद् यथाऽहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम्।” हंसौ अवदताम् “आवां किं करवाव?” कूर्मः अवदत्-“अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।”

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
धीवरा:-मछुआरे (fishermen), वार्ता-वार्तालाप (conver sation), श्व:-कल (आनेवाला) (tomorrow), मत्स्यकूर्मादीन्-मछली, कछुओं आदि को (to fish, tortoise etc.), मारयिष्यामः-मारेंगे (shall kill), मैवम् (मा + एवम् )-ऐसा नहीं (not like this), हृदम्-तालाब को (to pond), आकाशमार्गेण-आकाश मार्ग से (through the sky).

सरलार्थ :
इसके पश्चात् एक बार मछुआरे वहाँ आये और कहा-“हम सब कल मछली, कछुए आदि को मारेंगे।” यह सुनकर कछुआ बोला-“मित्र! क्या तुमने मछुआरों की बातचीत सुनी। अब मैं क्या करूँ?” दोनों हंस बोले-“सुबह जो उचित है, वह करना चाहिए।” कछुआ बोला-“ऐसा मत करो, जिससे मैं दूसरे तालाब पर जा सकूँ, वैसा करो।” दोनों हंस बोले-“हम दोनों क्या करें।” कछुआ बोला- “मैं तुम दोनों के साथ आकाश-मार्ग से दूसरे स्थान पर जाने की इच्छा करता हूँ।”

English Translation :
Then once fishermen came there and said, “Tomorrow we will catch all the fish and tortoise etc.” On hearing this the tortoise said, “Friends! Did you hear what the fishermen said? What do I do now?” Both the swans said, “In the morning, we should do what is right.” The tortoise said, “Don’t do this. Do that (by which) I can go to the other pond.” Both the swans said, “What do we do?” The tortoise said, “I wish to go to another pond through the sky with both of you.”

(ग) हंसौ अवदताम्-“अत्र कः उपायः?” कच्छपः वदति-“युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम्। अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयोः पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।” हंसौ अकथयताम्-“सम्भवति एषः उपायः। किन्तु अत्र एकः अपायोऽपि वर्तते। आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जनाः किञ्चिद्वदिष्यन्ति एव। यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्। अतः त्वम् अत्रैव वस।” तत् श्रुत्वा क्रुद्धः कूर्मः अवदत्-“किमहं मूर्खः? उत्तरं न दास्यामि।किञ्चिदपि न वदिष्यामि।” अतः अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
चञ्च्वा – चोंच से (with the beak), धारयताम्-धारण करें (द्विव०) (hold), अवलम्ब्य-नीचे लटककर/सहारा लेकर (Hanging with support), पक्षबलेन पंखों के बल से (with the force of wings), अपायः-हानि (harm), नीयमानम्-ले जाए जाते हुए को (being carried away), अवलोक्य-देखकर (on seeing), काष्ठदण्डम्-लकड़ी का डण्डा (wooden stick), श्रुत्वा -सुनकर (on hearing).

सरलार्थ :
हंस बोले-“यहाँ क्या उपाय है?” कछुआ बोला-“तुम दोनों एक लकड़ी के डण्डे को चोंच से पकड़ो। मैं लकड़ी के डण्डे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सुखपूर्वक (आराम से) जाऊँगा।” हंस बोले “यह उपाय हो सकता है। परन्तु यहाँ एक हानि भी है। हम दोनों के द्वारा ले जाए जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ बोलेंगे ही। यदि तुम उत्तर दोगे तब तुम्हारा मरना निश्चित ही है। इसलिए तुम यहीं रहो।” उसे सुनकर क्रोधित कछुआ बोला-“क्या मैं मूर्ख हूँ? उत्तर नहीं दूंगा। कुछ भी नहीं बोलूँगा।” इसलिए जैसा कहता हूँ वैसा तुम दोनों करो।

English Translation :
The swans said, “What is the solution here?” The tortoise said, “Both of you hold a wooden stick with your beak. I will hang in the middle of the wooden stick and easily go over with the force of your wings.” The swans said, “This solution is possible. But there is one disadvantage also. On seeing you being carried by us, people will say something. If you reply then your death is sure. Therefore, you stay here only.” On hearing this the angry tortoise said, “Am I a fool? I shall not reply. I shall not say anything.” Therefore, both of you do what I tell you to do.

(घ) एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्म पौराः अपश्यन् पश्चाद् अधावन् अवदन् च-“हंहो! महदाश्चर्यम्।हंसाभ्याम् सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।”कश्चिद्वदति-“यद्ययं कूर्मः कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।” अपरः अवदत्-“सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि।” अन्यः अकथयत्-“गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि” इति।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
लम्बमानम्-लटके हुए (को) (hanging), उड्डीयते-उड़ रहा है (is flying), महदाश्चर्यम्-बहुत अचम्भा (very surprising), कथमपि (कथम् + अपि)-किसी प्रकार (somehow), पक्त्वा -पकाकर (after cooking), सरस्तीरे-तालाब के किनारे (by pond’s side), दग्ध्वा -जलाकर (after cooking), खादिष्यामि-खाऊँगा (will eat), भक्षयिष्यामि-खाऊँगा (will eat), अधावन्-दौड़े (ran), पौरा:-नगरवासियों ने(citizans).

सरलार्थ :
इस प्रकार लकड़ी के डण्डे पर लटके हुए कछुए को नागरकों ने देखा/बाद में पीछे दौड़े और बोले- “अहा! बहुत अचम्भा है । हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।” कोई बोला- “यदि यह कछुआ कैसे भी (किसी तरह) गिरता है, तब यहीं पकाकर खाऊँगा।” दूसरा बोला- “तालाब के किनारे पकाकर खाऊँगा।” अन्य ने कहा- “घर ले जाकर खाऊँगा।”

English Translation :
On doing so (and), seeing the tortoise hanging from the wooden stick, the cowherds ran after them and said, “Oh! very surprising. The tortoise is also flying with the swans.” Someone said, “If this tortoise falls somehow, then I will cook and eat it here only.” The second one said, “I will cook (roast) it by the pond’s side and eat it.” Another one said, “I will take it home to eat it.”

(ङ) तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्मः क्रुद्धः जातः। मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य सः
अवदत्-“यूयं भस्मं खादत।” तत्क्षणमेव कूर्मः दण्डात् भूमौ पतितः। पौरैः सः मारितः। अत एवोक्तम्

सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति।
स कूर्म इव दुर्बुद्धिः काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति॥

शब्दार्थाः (Word Meanings):
श्रुत्वा-सुनकर (on hearing), विस्मृत्य- भूलकर (forgetting), भस्मं-राख (ash), पौरैः-नागरिकों के द्वारा (by citizans), मित्राभ्यां-मित्रों को/के लिए (to/for friends), सुहृदाम्-अच्छे मित्रों के (of friends), हितकामानाम्-कल्याण की इच्छा रखनेवालों के (of well-wishers), अभिनन्दति-प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है/करती है (accepts gladly), दुर्बुद्धिः दुष्ट बुद्धिवाला (wicked minded), काष्ठाद्-लकड़ी से (from wood), भूमौ-जमीन पर (on the ground), भ्रष्टः -गिर गया (fallen).

सरलार्थः –
उनके उस वचन को सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया। मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर, वह बोला- “तुम सब राख खाओ।” उसी क्षण कछुआ डण्डे से भूमि पर गिर गया। नागरिकों के द्वारा वह मार डाला गया। इसलिए कहा गया है कल्याण की इच्छा रखनेवाले मित्रों के वचन को जो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है, वह लकड़ी से गिरे हुए दुष्टबुद्धि कछुए के समान नष्ट होता है।

English Translation:
On hearing these words of those (people) the tortoise became angry. Forgetting his promise given to his friends, he spoke, “You all eat ash.” At the very moment, the tortoise fell from the sky and was killed by the cowherds. Therefore, it has been said. He who does not accept gladly the words of his well-wishing friends is destroyed like the foolish tortoise fallen from the stick.