सूक्तिस्तबकः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 8

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Class 6 Sanskrit Chapter 8 सूक्तिस्तबकः Summary Notes

सूक्तिस्तबकः पाठ का परिचय

इस पाठ में संस्कृत साहित्य की कुछ सूक्तियों का संकलन है। ‘सूक्ति’ शब्द ‘सु’ उपसर्ग तथा ‘उक्ति’ मूल शब्द से बना है। सु + उक्ति = ‘सूक्ति’ का अर्थ है-अच्छा वचन। अत्यल्प शब्दों में जीवन के बहुमूल्य तथ्यों को सुंदर ढंग से कहने के लिए संस्कृत साहित्य की सूक्तियाँ प्रसिद्ध हैं। यथा परिश्रम से कार्य सिद्ध होते हैं केवल इच्छा करने से नहीं, पुस्तक में पढ़ी बात जीवन में अपनानी चाहिए, मधुर वचन सबको खुश कर देते हैं, इत्यादि अच्छी बातें इन सूक्तियों में निहित हैं।।

सूक्तिस्तबकः Summary

इस पाठ में उत्तम सूक्तियों का संग्रह है। इसका सार यह है कार्य परिश्रम से ही सफल होते हैं सोते हुए शेर के मुँह में हिरन नहीं जाते। क्या सूर्य के न रहने पर दीपक जलाया नहीं जाता है? पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन में साध लेना चाहिए। जो पाठ सार्थक न हो, उस पाठ का क्या लाभ? प्रिय वाक्य को सुनकर सभी मनुष्य प्रसन्न हो जाते हैं। अतः मधुर बोलना चाहिए। चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन पार कर जाती है। एक स्थान पर बैठा हुआ गरुड़ भी एक कदम पार नहीं कर सकता।

सूक्तिस्तबकः Word Meanings Translation in Hindi

(क) उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
उद्यमेन-परिश्रम से (by hard work), हि-निश्चय से (निश्चित ही) (surely), सिध्यन्ति-सफल होते हैं (be successful), कार्याणि-काम (work), मनोरथैः-इच्छाओं से (desire only by desiring), सुप्तस्थ-सोए हुए (के) (Sleeping), सिंहस्थ-शेर के (Lion’s), प्रविशन्ति-प्रवेश करते हैं (to enter), मुखे-मुँह में (in lion’s mouth), मृगाः-हिरण (deer)।

अन्वयः (Prose-order)
कार्याणि उद्यमने हि सिध्यन्ति मनोरथैः न, सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः न हि प्रविशन्ति। सरलार्थः परिश्रम से ही काम सफल होते हैं केवल इच्छाएँ करने से नहीं! (जैसे) सोए हुए शेर के मुँह में हिरण खुद ही नहीं प्रवेश करते (घुसते) हैं। भाव: मनुष्य सहित सभी जीव-जन्तुओं को अपने काम का सफल करने के लिए प्रयत्न करना ही पड़ता है।

English Translation:
Any work gets successful only by hard work not only by desiring just as a deer itself does not enter a lion’s mouth

(ख) पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितः।
किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः॥

शब्दार्थाः (Word Meanings):
पुस्तके-पुस्तक में (in the book), पठितः-पढ़ा गया, (that is read), जीवने-जीवन में (in life), नैव (न+ एव)-नहीं (not), साधितः-अपनाया/ उपयोग किया गया (practised/used), किं भवेत्-क्या लाभ (what is the use), यो न (यः न) – जो नहीं (which is not), सार्थक:-अर्थपूर्ण (meaningful)

अन्वयः (Prose-order) (यदि) पुस्तके पठितः पाठः जीवने न साधितः (तर्हि) यः (पाठः) जीवने सार्थकः न (अस्ति) तेन पाठेन किं भवेत्। सरलार्थ : (यदि) पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन में उपयोग में नहीं लाया गया तो जो (पाठ) जीवन में सार्थक नहीं उस पाठ से क्या लाभ? भाव : पुस्तक में पढ़ी हुई बातों को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए।

English Translation:
If a lesson that is read in a book is not made use of in life, then what is the use of that lesson.

(ग) प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः।
तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
प्रियवाक्यप्रदानेन-प्रिय वचन बोलने से (by speaking pleasant words), तुष्यन्ति-खुश होते हैं (become happy/satisfied), तस्मात्-इस कारण से (hence), वक्तव्यम्-बोलना चाहिए (should speak), वचने-बोलने में in speech, का दरिद्रता-कंजूसी/कृपणता क्यों हो (why be miserly)।

अन्वयः (Prose-order):
सर्वे मानवाः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति; तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यम्; वचने का दरिद्रता (स्यात्)। सरलार्थ : सब मनुष्य प्रिय वचन कहे जाने पर प्रसन्न हो जाते हैं। इस कारण मधुर वचन ही बोलने चाहिए। वाणी के उपयोग में कंजूसी क्यों की जाए। अर्थात् उदार होकर अधिकाधिक मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। भावः मीठे बोल सबको प्रसन्न रखने का एकमात्र सरल साधन है।

English Translation:
All human beings when addressed with pleasant speech become satisfied/happy. Hence one should always use pleasant words. Why be miserly in speech? One should be generous in the use of pleasant words, because it makes everyone happy.

(घ) गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि।
अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
गच्छन्-चलता हुआ (roaming, moving), पिपीलकः-चींटी (नर) ant (he), याति-जाता/जाती है (goes), योजनानां- योजनों का (दूरी का एक माप) (of many yojanas’, measure of distance equal to 12 kms), शतानि अपि-कई सौ (hundreds), अगच्छन् (न गच्छन्)-न जाता हुआ (one not on the move),वैनतेयः-गरुड़ पक्षी (Garuda the bird that fies very swiftly), पदमेकम् (पदम् + एकम् )- एक कदम (a single step)।

अन्वयः (Prose-order):
गच्छन् पिपीलकः योजनानां शतानि अपि याति; अगच्छन् वैनतेयः अपि एकं पदं न गच्छति। सरलार्थ : चलती हुई चींटी तो सैकड़ों योजन की दूरी लाँघ जाती है किंतु न चलता हुआ गरुड़ भी एक कदम भी नहीं जाता अर्थात् आगे नहीं बढ़ता। भावः प्रयास करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं अन्यथा नहीं।

English Translation:
Even an ant when on the move manages to cross hundreds of yojanas’. But even Garuda, when not moving, does not proceed even a single step.

(ङ) काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसंतसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ॥

शब्दार्थाः (Word Meanings):
काकः-कौवा (crow), कृष्णः-काला (black), पिकः-कोयल (cuckoo), भेदः-अंतर (difference), पिककाकयो:-कोयल और कौवे के मध्य (between the crow and the cuckoo), वसन्तसमये प्राप्ते-वसन्त काल आने पर (on arrival of spring time)।

अन्वयः (Prose-order) :
काकः, कृष्णः, पिकः (अपि) कृष्णः (अस्ति), पिककाकयोः कः भेदः (अस्ति) वसंतमये प्राप्ते काकः काकः पिक: पिकः (इति भेदः स्पष्टः भवति) सरलार्थः कौआ काला होता है, कोयल भी काली होती है, कौए और कोयल में क्या अंतर है? वसंतकाल आने पर कौवा कौवा है और कोयल कोयल है। (यह बात स्पष्ट हो जाती है।) भावः वाह्य आकार के आधार पर आंतरिक गुणों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता, किंतु समय आने पर आंतरिक गुण भी प्रकट हो जाते हैं।

English Translation:
The crow is black and the cuckoo is also black. What is the difference between the crow and the cuckoo? On arrival of spring time the crow is a crow and the cuckoo is a cuckoo i.e., their difference becomes clear in spring.

बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7

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Class 6 Sanskrit Chapter 7 बकस्य प्रतिकारः Summary Notes

बकस्य प्रतिकारः पाठ का परिचय

इस पाठ में अव्यय पदों का प्रयोग आया है। अव्यय वे होते हैं, जिनमें लिंग, पुरुष, वचन, काल आदि के कारण कोई रूपांतर नहीं आता। वे अपने मूल रूप में प्रयुक्त होते हैं। यथा
(i) सः अपि गच्छति।
(ii) अहम् अपि गमिष्यामि।
(iii) ते अपि गमिष्यन्ति।

इन वाक्यों में ‘अपि’ में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्कृत में ऐसे कई अव्यय हैं। यथा-एव (ही), च (और), तत्र (वहाँ), अत्र (यहाँ), कुत्र (कहाँ) आदि। पाठ में लङ्लकार (भूतकाल) के क्रियापद भी आए हैं। यथा- अवदत् (बोला) अयच्छत् (दिया) आदि।

बकस्य प्रतिकारः Summary

प्रस्तुत पाठ में अव्ययों के प्रयोग को कथा के माध्यम से दिखलाया गया है। गीदड़ और बगुला दो मित्र थे। दोनों मित्र एक वन में रहते थे। एक बार प्रात: गीदड़ ने बगुले से कहा-‘दोस्त, कल तुम मेरे साथ भोजन करो।’ गीदड़ का न्यौता पाकर बगुला प्रसन्न हुआ।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.1

अगले दिन वह बगुला गीदड़ के निवास पर गया। गीदड़ कुटिल स्वभाव का था। उसने बगुले को एक थाली में खीर प्रदान की। गीदड़ बोला-‘दोस्त, इस पात्र में हम दोनों अब एक साथ खाते हैं।’ भोजन करते समय बगुले की चोंच थाली से भोजन लेने में समर्थ नहीं थी। इसलिए बगुला केवल खीर को देखता रहा। किन्तु गीदड़ सारी खीर खा गया। गीदड़ से ठगा गया बगुला सोचने लगा-जैसा व्यवहार इस गीदड़ ने मेरे साथ किया है वैसा मैं भी इसके साथ करूँगा। ऐसा सोचकर उसने गीदड़ से कहा-‘मित्र, तुम भी कल शाम को मेरे साथ भोजन करोगे। बगुले के निमन्त्रण से गीदड़ प्रसन्न हुआ।’
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.2

जब गीदड़ शाम को बगुले के निवास पर भोजन के लिए गया तब बगुले ने एक तंग मुँह के कलश में खीर प्रदान की और गीदड़ से कहने लगा-‘मित्र, हम दोनों साथ ही इस पात्र में भोजन करते हैं।’ बगुला कलश से चोंच के द्वारा खीर खाता है परन्तु गीदड़ का मुख कलश में प्रवेश नहीं करता। इसलिए बगुला सारी खीर खा लेता है और गीदड़ ईर्ष्यापूर्वक उसे देखता रहता है। शिक्षा-दुर्व्यवहार का फल दु:खदायक होता है। अतः सुख चाहने वाले मनुष्य को अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.3

बकस्य प्रतिकारः Word Meanings Translation in Hindi

(क) एकस्मिन् वने शृगालः बकः च निवसतः स्म। तयोः मित्रता आसीत्। एकदा प्रातः शृगालः बकम् अवदत्-“मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।” शृगालस्य निमंत्रणेन बकः प्रसन्नः अभवत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) : एकस्मिन् वने-एक वन में (in a forest), शृगालः-गीदड़ सियार (jackal), बकः च-और बगुला (and a crane), निवसतः स्म-रहते थे lived (dual), तयो:-उन दोनों में (between them), आसीत्-था/थी (was), एकदा-एक बार (once), अवदत्-बोला (spoke/said), श्व:-आने वाला कल (tomorrow), मया सह-मेरे साथ (with me), भोजनं कुरु-भोजन करो (have dinner/meals), निमंत्रणेन-निमंत्रण से with (his) invitation, अभवत्-हुआ (became/was)

सरलार्थ :
एक वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। उन दोनों में मित्रता (दोस्ती) थी। एक दिन सवेरे सियार ने बगुले को कहा-“मित्र! कल तुम मेरे साथ खाना खाओ।” सियार के निमंत्रण से बगुला खुश हुआ।

English Translation:
There lived a jackal and a crane in a forest. There was friendship between the two of them. One morning the jackal said to the crane, ‘Friend! tomorrow you have dinner with me. The crane was happy with the jackal’s invitation.

(ख) अग्रिमे दिने सः भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्। कुटिलस्वभावः शृगालः स्थाल्यां काय क्षीरोदनम् अयच्छत्। बकम् अवदत् च-“मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः।” भोजनकाले बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। अतः बकः केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्। शृगालः तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अग्रिम दिवसे-अगले दिन (the next day), भोजनाय-भोजन के लिए (for dinner), निवासम्-निवास स्थान को (his residence), अगच्छत्-गया/गई (went), स्थाल्याम्-थाली में (in a dish), बकाय-बगुले के लिए, (for crane), क्षीरोदनम्-खीर (A sweet dish prepared with milk, rice, sugar etc.), अयच्छत्-दिया (to give), पात्रे-बर्तन में (in the vessel), अधुना-अब (now), सहैव (सह + एव)-साथ ही (together), बकस्य चञ्चुः-बगुले की चोंच (the crane’s beak), स्थालीतः-थाली से (from the dish), भोजनग्रहणे- भोजन ग्रहण करने में (to have dinner), समर्था-समर्थ (capable), अतः-इसलिए (therefore), केवलम्-केवल/सिर्फ़ (only), अपश्यत्-देखा/देखी (saw), अभक्षयत्-खाया। खायी (ate)

सरलार्थ:
अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास स्थान पर गया। कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले को खीर दी और बगुले से कहा-“मित्र, इस बर्तन में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं।” भोजन के समय में बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में समर्थ नहीं थी। अतः बगुला केवल खीर देखता रहा। सियार ने तो सारी खीर खा ली।

English Translation:
The next day he went to jackal’s house for dinner. The crooked jackal served the rice pudding to the crane in a flat dish and said to the crane — “Friend, let us now eat together in this vessel”. At the time of the meal the crane’s beak was unable to reach the food in the flat dish. Therefore the crane just kept looking at the milk pudding. The jackal ate up the entire milk pudding.

(ग) शगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत्-“यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि।” एवं चिंतयित्वा सः शृगालम् अवदत्- “मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि।” बकस्य निमंत्रणेन शृगालः प्रसन्नः अभवत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
शृगालेन-सियार द्वारा (by the jackal), वञ्चितः-ठगा गया . (deceived), अचिंतयंत्-सोचा (thought), यथा-जिस प्रकार (the way/like), अनेन-इसके द्वारा by this (jackal), व्यवहारः-व्यवहार (treatment, behaviour), कृतः-किया गया (has been done), तथा-उसी प्रकार (like that), अपि-भी (also/ too), तेन सह-उसके साथ (with him), व्यवहरिष्यामि-व्यवहार करूँगा (shall behave), एवम्-इस प्रकार (thus), चिंतयित्वा-सोच-समझकर (thinking properly), करिष्यसि-करोगे (will do)। .

सरलार्थ : सियार के द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा, “जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है, उसी प्रकार मैं भी उसके साथ बर्ताव करूँगा।” ऐसा सोचकर उसने सियार से कहा-“दोस्त! तुम भी कल शाम मेरे साथ भोजन करोगे।” बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया।

English Translation: Having been cheated by the jackal the crane thought-“The way he has treated (behaved with) me, I too shall behave with him in the same manner.’ Thinking this he said to the jackal, ‘Friend, you too shall have dinner with me tomorrow evening. The jackal became happy with the crane’s invitation.

(घ) यदा शृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बकः सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत् शृगालं च अवदत्-“मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्वः”। बकः कलशात् चञ्च्या क्षीरोदनम् अखादत्। परंतु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्। अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्। शृगालः च केवलम् ईjया अपश्यत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings): यदा-जब (when), तदा-तब (then), सङ्कीर्णमुखे कलशे-तंग मुख वाले कलश में (in a pot with a narrow mouth), कुर्व:-(हम दोनों) करते हैं (we/both do), कलशात्-कलश से (from the pot), चञ्च्वा -चोंच से (with beak), प्राविशत्-प्रवेश किया (entered), ईर्ष्णया-ईर्ष्या से (jealously), अपश्यत्-देखा (saw)।

सरलार्थ :
जब सियार शाम को बगुले के निवास स्थान पर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने छोटे मुख वाले कलश (सुराही) में खीर डाली (दी) और सियार से कहा-“दोस्त, हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं।” बगुले ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई। परंतु सियार का मुँह कलश में नहीं जा सका। इसलिए बगुला सारी खीर खा गया। सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा।

English Translation: When the jackal went to the crane’s residence for meals in the evening then the crane gave the rice pudding in a pot with a narrow mouth. And said to the jackal, “Friend! we shall eat together in this pot.” The crane ate the rice pudding with its beak. But the jackal’s mouth was unable to reach into the pot. Therefore the crane ate up all the rice pudding. The jackal just looked on jealously.

(ङ) शृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।

उक्तमपि- आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
यादृशम् व्यवहारम्-जैसा व्यवहार (kind of behaviour), तादृशम्-वैसा (the same), कृत्वा-करके (having done), प्रतीकारम्-बदला (revenge), अकरोत्-किया (did), आत्मदुर्वव्यवहारस्य-अपने बुरे व्यवहार का (fall out of bad behaviour), फलम्-फल/परिणाम (result/fall out), दु:खद-दुखद/दुख देने वाला (causing misery), तस्मात्-इसलिए (therefore), सद्व्यवहर्तव्यम्-अच्छा व्यवहार करना चाहिए (should put on (do) good behaviour), मानवेन-मनुष्य द्वारा (by a person), सुखैपिणा-सुख चाहने वाले (wishing for happiness)।

सरलार्थः
सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदला लिया। कहा भी गया है अपने बुरे व्यवहार का परिणाम दुखद ही होता है। इस कारण सुख चाहने वाले मानव को चाहिए कि वह सदा अच्छा व्यवहार करे।

English Translation: The way the jackal behaved with the crane the crane also behaved in the same way and took revenge. It also said, The fall out of one’s bad behaviour is always sorrowful. Therefore a person wishing for happiness should always do good behaviour.

अन्वयः- आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं दु:खदम् भवति; तस्मात् सुखैषिणा मानवेन सद्व्यवहर्तव्यम्।

हमने सीखा
(i) अव्यय पदों का प्रयोग।
यथा-तदा, तथा, यदा, सह, एव, एवम्, प्रति, एकदा, प्रातः. सायं, अधुना, अद्य, श्वः।

(ii) लङ्लकार का प्रयोग भूतकाल की क्रिया दर्शाने के लिए किया जाता है। लङ्लकार में धातुरूप में धातु से पहले ‘अ’ लग जाता है।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7

समुद्रतटः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 6

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Class 6 Sanskrit Chapter 6 समुद्रतटः Summary Notes

समुद्रतटः पाठ का परिचय

इस पाठ में तृतीया तथा चतुर्थी विभक्ति के शब्द-रूप का प्रयोग आया है। सरल शब्दों में ‘के द्वारा’, ‘से’ (with, by) के अर्थ में तृतीया विभक्ति पद तथा ‘के लिए’ (for) के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति पद का प्रयोग किया जाता है। यथा

1. ‘कन्दुकेन’-गेंद से (with a ball), तरङ्गैः-लहरों से (with waves) (तृतीया)
2. ‘पर्यटनाय’–पर्यटन/घूमने के लिए (for excursion), पठनाय-पढ़ने के लिए (for study) (चतुर्थी)

वाक्य-प्रयोग

1. बालकः कन्दुकेन क्रीडति।
1. बच्चा गेंद से खेलता है।

2. सः पठनाय विद्यालयम् गच्छति।
2. वह पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है।

समुद्रतटः Summary

इस पाठ में तृतीया व चतुर्थी विभक्ति के पदों का प्रयोग हुआ है। साथ ही इस पाठ में चित्रों के माध्यम से भारत के प्रसिद्ध समुद्रीय तटों का वर्णन है। चित्र में एक समुद्र तट को चित्रित किया गया है। यहाँ प्रणव नाम का एक बालक दोस्तों के साथ खेलता है। वह बालू (रेत) से घर बनाता है। दूसरे बालक गेंद से खेलते हैं। वे पैर से गेंद फेंकते हैं। कुछ बालक पानी की लहरों से क्रीडा करते हैं। दूसरे बालक लहरों के साथ उछलते हैं।
समुद्रतटः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 6

यहाँ अनेक नौकाएँ भी हैं। मल्लाहों के साथ सैलानी नौकाओं से समुद्र विहार करते हैं। हमारे देश में अनेक समुद्रतट हैं। इनमें बम्बई, गोवा, कन्याकुमारी अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। विदेशी लोगों को गोवा तट अधिक रुचिकर लगता है। कोच्चि तट नारियल के फलों के लिए जाना जाता है। चेन्नई नगर का मेरीना तट देश के सागर तटों में सबसे लम्बा है। इस प्रकार भारत की तीनों दिशाओं में समुद्रतट हैं।

समुद्रतटः Word Meanings Translation in Hindi

(क) एषः समुद्रतटः। अत्र जनाः पर्यटनाय आगच्छन्ति। केचन तरङ्गैः क्रीडन्ति। केचन च नौकाभिः जलविहारं कुर्वन्ति। तेषु केचन कन्दुकेन क्रीडन्ति। बालिकाः बालकाः च बालुकाभिः बालुकागृहं रचयन्ति। मध्ये मध्ये तरङ्गाः बालुकागृह प्रवाहयन्ति। एषा क्रीडा प्रचलति एव। समुद्रतटा: न केवलं पर्यटनस्थानानि। अत्र मत्स्यजीविनः अपि स्वजीविकां चालयन्ति।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
समुद्रतट:-समुद्र का किनारा (shore), पर्यटनाय-घूमने के लिए (for excursion), आगच्छन्ति-आते हैं (come), केचन-कुछ (लोग) some (people), तरङ्गै -लहरों से (with waves), नौकाभिः-नौकाओं/नावों द्वारा (by boats), जलविहारम्-पानी में घूमना/खेल (make fun/roam around in water), तेषु केचन-उनमें से कुछ (some of them), बालुकाभिः -रेत से (with sand), बालुकागृहम्-रेत के घर (sand houselet), मध्ये मध्ये-बीच-बीच में (at some intervals), प्रवाहयन्ति-बहा ले जाती है (wash/carry away), प्रचलति एव-चलता ही रहता है। (keeps on going), मत्स्यजीविनः-मत्स्यजीवी/ मछुआरे (fishermen), स्वजीविकां चालयन्ति-अपनी आजीविका चलाते हैं, (carry on their livelihood)।

सरलार्थ :
यह समुद्र तट है। यहाँ लोग पर्यटन के लिए आते हैं। कुछ लहरों से क्रीडा करते हैं। कुछ नौकाओं द्वारा जलविहार करते हैं। उनमें से कुछ गेंद से खेलते हैं। लड़कियाँ और लड़के रेत से रेत के घर बनाते हैं। बीच-बीच में लहरें रेत का घर बहा ले जाती हैं। यह खेल चलता ही रहता है। समुद्र तट केवल पर्यटन-स्थल नहीं। यहाँ मछुआरे भी अपनी आजीविका चलाते हैं।

English Translation:
This is a beach. People come here for excursion. Some play with waves (of the sea). Some indulge in water sports by boats i.e, using boats. Among them some play with a ball. Girls and boys make sand castles (house) with sand. At intervals the waves wash away the sand-castle. This play keeps on going. The beaches are not mere tourist spots. Here the fishermen too earn their livelihood.

(ख) अस्माकं देशे बहवः समुद्रतटाः सन्ति। एतेषु मुम्बई-गोवा-कोच्चि-कन्याकुमारी विशाखापत्तनम्-पुरीतटाः अतीव प्रसिद्धाः सन्ति। गोवातटः विदेशिपर्यटकेभ्यः समधिकं रोचते। विशाखापत्तनम्-तटः वैदेशिकव्यापाराय प्रसिद्धः। कोच्चितटः नारिकेलफलेभ्यः ज्ञायते। मुम्बईनगरस्य जुहूतटे सर्वे जनाः स्वैरं विहरन्ति। चेन्नईनगरस्य मेरीनातटः देशस्य सागरतटेषु दीर्घतमः।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अस्माकं-हमारे (our), देशे-देश में (in country), बहवः-अनेक (many), अतीव (अति + इव)-बहुत ज़्यादा (very much, excessive), प्रसिद्धाः -मशहर (famous), विदेशिपर्यटकेभ्यः -विदेशी सैलानियों के लिए (for foreign tourists), समधिकम्-बहुत ज्यादा (in excess), रोचते-अच्छा लगता है, (is favourite), वैदेशिकव्यापाराय-विदेशी व्यापार के लिए (foreign trade), नारिकेलफलेभ्यः-नारियल के लिए (for coconuts), ज्ञायते-जाना जाता है (is known), स्वैरं-अपनी इच्छानुसार (according to own will), विहरन्ति-घूमते हैं (roam around), देशस्य-देश का/के/की (of country), सागरतटेषु-समुद्री तटों में (among beaches), दीर्घतमः-सबसे बड़ा/लंबा (longest)।

सरलार्थ : हमारे देश में बहुत से समुद्रतट हैं। इनमें मुम्बई, गोवा, कोच्चि, कन्याकुमारी, विशाखापत्तनम् तथा पुरी का तट बहुत प्रसिद्ध है। गोवा का तट विदेशी पर्यटकों को बहुत ज़्यादा पसंद है। विशाखापत्तनम् का तट विदेशी व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। कोच्चि का तट नारियल के लिए जाना जाता है। मुम्बई नगर के जुहू तट पर. सब लोग अपनी इच्छानुसार विहार करते हैं। चेन्नई का मेरीना तट देश के सभी तटों में सबसे लंबा है।

English Translation:
In our country there are many beaches. Among them the beaches at Mumbai, Goa, Kochi, Kanyakumari, Vishakhapattanam and Puri are very famous. The Goa beach is favourite with foreign tourists. The beach at Vishkhapattnam is famous for foreign trade. The Kochi-beach is known for coconuts. Everyone roams around according to one’s will at the Juhu beach of Mumbai city. The Marina beach of Chennai is the largest among all the beaches of the country.

(ग) भारतस्य तिसृषु दिशासु समुद्रतटाः सन्ति। अस्माद् एव कारणात् भारतदेशः प्रायद्वीपः इति कथ्यते। पूर्वदिशायां बगोपसागरः दक्षिणदिशायां हिंदमहासागरः पश्चिमदिशायां च अरबसागरः अस्ति। एतेषां त्रयाणाम् अपि सागराणां सङ्गमः कन्याकुमारीतटे भवति। अत्र पूर्णिमायां चन्द्रोदयः सूर्यास्तं च युगपदेव द्रष्टुं शक्यते।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
भारतस्य-भारत का/के/की (of India), तिसृषु दिशासु-तीनों दिशाओं में (in all three directions), अस्माद् एव कारणात्-इसी कारण से (for this very reason), प्रायद्वीप-प्रायद्वीप (तीन दिशाओं में समुद्र से घिरा) (peninsula), इति-ऐसा (thus/this), कथ्यते-कहा जाता है (is said), पूर्वदिशायाम्-पूर्व दिशा में (in the East), बङ्गोपसागर-बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal), दक्षिण दिशायाम्-दक्षिण दिशा में (in the Southern direction), एतेषां त्रयाणाम्-इन तीनों का (of these three), सङ्गमः-मिलने का स्थान (place, where rivers or oceans meet), पूर्णिमायाम्-पूर्णिमा पर (on Poornima, full moon), चंद्रोदयः-चाँद का उदय होना (Moon-rise), द्रष्टुम् शक्यते-देखा जा सकता है (can be seen), सागराणाम्-सागरों का (of the seas), कन्याकुमारी तटे-कन्याकुमारी के तट पर (on the beach of Kanyakumari), युगपदेव (युगपद् + एव)-एक साथ ही (at the same time, simultaneously)

सरलार्थ :
भारत की तीनों दिशाओं में समुद्रतट हैं। इसी कारण से भारत देश को प्रायद्वीप भी कहा जाता है। पूर्व दिशा में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण दिशा में हिंद महासागर और पश्चिम दिशा में अरब सागर है। इन तीनों सागरों का संगम कन्याकुमारी के तट पर होता है। यहाँ पूर्णिमा के अवसर पर चन्द्रोदय और सूर्यास्त एक साथ ही देखा जा सकता है।

English Translation: There are beaches in all the three directions of India. For this very reason India is called a peninsula. In the east direction there is Bay of Bengal, in the South there is the Indian ocean and in the West there is the Arbian Sea. There is confluence of all these three at the Kanyakumari-beach. On the Full-Moon day it is possible to see both the Moon rise and the Sun-set at the same time.

हमने सीखा संस्कृत में संज्ञा शब्दों के लिंग पूर्व निर्धारित होते हैं। अकारान्त शब्दों में कुछ पुल्लिग और कुछ नपुंसकलिंग शब्द हैं। आकारान्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। दोनों के रूप भिन्न हैं।

ध्यातव्यम्-तृतीया विभक्ति से अकारांत पुल्लिग तथा नपुंसकलिंग शब्दों के रूप में कोई भेद नहीं होता। यथा मित्र शब्द के रूप भी ‘बालक’ की भाँति होते हैं।
समुद्रतटः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 6.1
समुद्रतटः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 6.2

(घ) सः मित्रेण सह खेलति। (मित्र के साथ)

  • सह (साथ) के योग में तृतीया विभक्ति पद का प्रयोग किया जाता है।
  • ददाति (देना) के योग में चतुर्थी विभक्ति पद का प्रयोग किया जाता है।

 

वृक्षाः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 5

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Class 6 Sanskrit Chapter 5 वृक्षाः Summary Notes

वृक्षाः पाठ का परिचय

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson) इस पाठ में अकारान्त शब्द के प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के रूप का प्रयोग आया है। प्रथमा विभक्ति का शब्द रूप कर्तापद के लिए और द्वितीया विभक्ति का रूप कर्मपद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यथा

वृक्षाः Summary

इस पाठ में कवि ने वृक्षों के महत्त्व का चित्रण किया है। वृक्ष मनुष्य के मित्र हैं। वृक्ष मनुष्य के लिए सर्वथा उपयोगी एवं कल्याणकारी हैं। वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हुए पक्षी कलरव करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो वृक्ष मानव के मनोरंजन के लिए मधुर गीत गा रहे हैं। वृक्ष केवल वायु का भक्षण करते हैं और जल पीते हैं, परंतु वे मनुष्यों को फल, छाया आदि प्रदान करते हैं। वस्तुतः वृक्ष मनुष्य के लिए हितकारी हैं।

वृक्षाः Word Meanings Translation in Hindi

(क) ‘बालकाः खेलन्ति’ वाक्य में ‘बालकाः’ कर्तापद (Subject) होने के कारण प्रथम विभक्ति में है।
(ख) ‘बालकाः पादकंदुकखेलम्-खेल खेलन्ति’ वाक्य में ‘पादकंदुकखेलम्’ कर्मपद (object) होने के कारण द्वितीया विभक्ति में है। हम सीख चुके हैं अकारान्त शब्द दो प्रकार के होते हैं।
(i) पुल्लिंग तथा
(ii) नपुंसकलिंग। दोनों के रूप नीचे दिए गए हैं।
वृक्षाः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 5 .1

ध्यातव्यम्-नपुंसकलिंग शब्दों के रूप प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति में एक समान होते हैं।

पाठ – शब्दार्थ एवं सरलार्थ ।

(क) वने वने निवसन्तो वृक्षाः।
वनं वनं रचयन्ति वृक्षाः।।।
शाखादोलासीना विहगाः।
तैः किमपि कूजन्ति वृक्षाः।2।

शब्दार्थाः (Word Meanings) : वने वने-प्रत्येक जंगल में (in each forest), निवसन्तः (निवसन्तो)-निवास करते रहते हैं (keep living), वनम्-जंगल (forest), रचयन्ति-रचना करते हैं (create), शखादोलासीनाः (शाखादोला + आसीनाः)-शाखा रूपी झूले पर बैठे हुए (sitting on the swing of branches), विहगाः-पक्षी (birds), तैः-उनके द्वारा अर्थात् पक्षियों द्वारा (through them by the birds), किमपि (किम् + अपि)-कुछ-कुछ (some), कूजन्ति-कूकते/कूकती हैं (chirping), वृक्षाः-पेड़ (trees)।

अन्वय : (Prose-order)

1. वृक्षाः वने वने निवसन्तोः, वृक्षाः वनम् वनम् रचयन्ति।
2. विहगाः शाखादोलासीन (सन्ति), वृक्षाः तैः किम् अपि कूजन्ति।

सरलार्थ :
1. वृक्ष प्रत्येक वन में निवास करते/रहते हैं, इस प्रकार वृक्ष कई जंगल बनाते रहते हैं।
2. पक्षी शाखा रूपी झूले पर बैठे हैं मानों वृक्ष उनके माध्यम से कुछ-कुछ कूक रहे हैं अर्थात् कह रहे हैं।

English Translation:
1. Trees dwell in every jungle, thus they form (make) many jungles.
2. The birds are sitting on the branches of trees and chirping.
It seems that trees are saying something through them (birds).

(ख) पिबन्ति पवनं जलं सन्ततम्। साधुजना इव सर्वे वृक्षाः।।
स्पृशन्ति पादैः पातालं च। .
नभः शिरस्सु वहन्ति वृक्षाः ।।

शब्दार्थाः (Word Meanings) : पिबन्ति-पीते/पीती हैं (drink), पवनं-वायु (air), सन्ततम्-लगातार (continually), साधुजनाः इव-सज्जनों की भाँति (like good noble people), सर्वे-सब (all), स्पृशन्ति-स्पर्श करते हैं (touch), पादैः-पैरों से (with foot), पातालं-जमीन के नीचे भाग (underground), नभः-आकाश को (the sky), शिरस्सु-सिरों पर (on their head), वहन्ति-ढोते (carry)।

अन्वय : (Prose-order)
3. वृक्षाः सन्ततम् पवनं जलम् च पिबन्ति। सर्वे वृक्षाः साधुजनाः इव (सन्ति)।
4. वृक्षाः पादैः पातालम् स्पृशन्ति शिरस्तु च नभः वहन्ति।

सरलार्थ :
3. वृक्ष हमेशा वायु और जल पीते हैं। सभी वृक्ष सज्जनों की भाँति होते हैं। अर्थात् वे सज्जनों के समान हमारा उपकार करते हैं।
4. वृक्ष पैरों से (जड़ों से) पाताल को छूते हैं और सिरों पर आकाश को ढोते हैं। अर्थात् वे महान हैं और अत्यधिक कार्यभार संभालते हैं।

English Translation:
3. Trees continually take water and air only. All trees are like noble persons. i.e., trees show kindness in many ways like noble persons.
4. Trees touch the underground with their feet in their roots. They carry the sky on their heads.

पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम्।
कौतुकेन पश्यन्ति वृक्षाः।5।

प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम्।
कुर्वन्ति सत्कारं वृक्षाः।6।

शब्दार्थाः (Word Meanings) : पयोदर्पणे-जलरूपी दर्पण/शीशे में (in the mirror-like water), स्वप्रतिबिंबम्-अपनी परछाई को (own reflection), कौतुकेन-आश्चर्य से (with surprise/ wonder), पश्यन्ति-देखते हैं (see), प्रसार्य-फैलाकर (having spread), स्वच्छायासंस्तरण म्-(स्व+छाया+संस्तरणम्) अपने छाया रूपी बिस्तर को (their own shadow which is like a bed), कुर्वन्ति-करते/करती हैं (do), सत्कारम्-आदर-सत्कार (regards)।

अन्वय : (Prose-order)
5. वृक्षाः पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम् कौतुकेन पश्यन्ति।
6. वृक्षाः स्वच्छायासंस्तरणम् प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति।

सरलार्थ :
5. वृक्ष जलरूपी आईने में अपना प्रतिबिम्ब आश्चर्य/कौतूहल से देखते हैं।
6. वृक्ष छाया रूपी अपन बिछौने को फैलाकर अर्थात् बिछाकर (सबका) आदर-सत्कार करते हैं।

English Translation:
5. Trees look at their own reflection in mirror like water.
6. Trees spread out their shadow like a bed and pay respect.
(give regards to those who come there.)

हमने सीखा
संस्कृत में संज्ञा शब्दों के लिंग पूर्व निर्धारित होते हैं। अकारान्त शब्दों में कुछ पुल्लिग और कुछ नपुंसकलिंग शब्द हैं। दोनों के शब्द रूप भिन्न होते हैं। यथा

वृक्षाः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 5 .2

केवल द्वितीया एकवचन में दोनों का रूप समान हैं, यथा- ‘पल्लवम्’ तथा ‘पर्णम्’। अतः शेष ‘रूपों से ही लिंग की पहचान संभव है। यथा ‘पल्लवाः’ पुल्लिग पद है और ‘पर्णानि’ नपुंसकलिंग।

ध्यातव्यम्-शेष विभक्तियों में अकारान्त पुल्लिग तथा नपुंसकलिंग के रूप एक समान होते हैं।
पर्ण

विद्यालयः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 4

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Class 6 Sanskrit Chapter 4 विद्यालयः Summary Notes

विद्यालयः पाठ का परिचय

इस पाठ में तीनों पुरुषों के कर्ता व क्रिया को रुचिकर ढंग से समझाया गया है। बच्चे खेल-खेल में किस प्रकार इनका प्रयोग करें इसका भी निर्देश किया गया है।

विद्यालयः Summary

प्रस्तुत पाठ ‘विद्यालयः’ में सर्वनामों का प्रयोग करना सिखलाया गया है। नाम (संज्ञा) के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। उदाहरण- सः, सा, तत्, तानि, एषः इत्यादि। ‘एषः विद्यालयः’ सबसे पहले इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि जो विभक्ति, वचन तथा लिंग शब्द में होता है वही सर्वनाम में भी रहता है। ‘विद्यालयः’ में प्रथमा विभक्ति, एकवचन तथा पुँल्लिग का प्रयोग है।
विद्यालयः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 4.1

इसका अनुसरण करते हुए सर्वनाम में भी प्रथमा विभक्ति, एक वचन, पुंल्लिग वाले ‘एषः’ पद का प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत पाठ के अंतर्गत पुंल्लिग में एषः (एकवचन) तथा एते (बहुवचन) रूपों के प्रयोग बताए गए हैं। स्त्रीलिंग में एषा (एकवचन) तथा एताः (बहुवचन) पद होते हैं। इसी तरह नपुंसकलिंग में एतत् (एकवचन) व एतानि (बहुवचन) होते हैं। ये सब प्रथम पुरुष के सर्वनाम हैं।
विद्यालयः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 4.2

मध्यम पुरुष में त्वम् (एकवचन), यूयम् (बहुवचन) तथा संबंधवाचक ‘तव’ (एकवचन), युष्माकम् (बहुवचन) का प्रयोग बताया है। उत्तम पुरुष में अहम् (एकवचन), वयम् (बहुवचन) के साथ संबंधवाचक मम (एकवचन) तथा अस्माकम् (बहुवचन) के प्रयोग को दर्शाया गया है।
विद्यालयः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 4.3

विद्यालयः Word Meanings Translation in Hindi

(क) एषः विद्यालयः।
अत्र छात्राः शिक्षकाः,
शिक्षिकाः च सन्ति।
एषा सङ्गणकयन्त्र-प्रयोगशाला अस्ति।
एतानि सङ्गणकयन्त्राणि सन्ति।
एतत् अस्माकं विद्यालयस्य
उद्यानम् अस्ति।
उद्याने पुष्पाणि सन्ति।
वयम् अत्र क्रीडामः पठामः च।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
एषः-यह (this), अत्र-यहाँ (here), सन्ति-हैं (are), सङ्गणकयन्त्र प्रयोगशाला-कम्प्यूटर मशीनों की प्रयोगशाला (computer Laboratory), एतानि-ये (these), अस्माकम्-हमारे (our), उद्यानम्-बगीचा (garden), पुष्पाणि-अनेक फूल (many flowers), पठामः-पढ़ते हैं (read/are reading)।

सरलार्थः यह विद्यालय है। यहाँ विद्यार्थी, शिक्षक और शिक्षिकाएँ हैं।
यह कम्प्यूटर की प्रयोगशाला (Laboratory) है।
ये कम्प्यूटर हैं।
यह हमारे विद्यालय का बगीचा है।
बगीचे में फूल हैं।
हम सब यहाँ खेलते हैं और पढ़ते हैं।

ऋचा – तव नाम किम्?
प्रणवः – मम नाम प्रणवः।
तव नाम किम्?
ऋचा – मम नाम ऋचा।
त्वं कुत्र पठसि?
प्रणवः – अहम् अत्र एव पठामि।
ऋचा – अहम् अपि अत्र एव पठामि।
इदानीम् आवां मित्रे स्वः।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
तव-तुम्हारा (your), मम-मेरा (my), कुत्र-कहाँ (where), अत्र एव-यहीं (यहाँ ही) (here), अपि-भी (also), इदानीम्-अब (now), आवाम्-हम दोनों (we two), मित्रे-मित्र (दोस्त) (two friends), स्वः-(हम दोनों) हैं (we two) are।

सरलार्थः
(ख) ऋचा – तुम्हारा क्या नाम है?
प्रणव – मेरा नाम प्रणव है। तुम्हारा क्या नाम है?
ऋचा – मेरा नाम ऋचा है। तुम कहाँ पढ़ते हो?
प्रणव – मैं यहीं पढ़ता हूँ।
ऋचा – मैं भी यहीं पढ़ती हूँ। अब हम दोनों मित्र हैं।

(ग) शिक्षिका – छात्रा:! यूयं किं कुरुथ?
छात्राः – आचार्ये! वयं गच्छामः।
शिक्षिका – यूयं कूत्र गच्छथ?
छात्राः – वयं सभागारं गच्छामः।
शिक्षिकाः – युष्माकं पुस्तकानि कुत्र सन्ति?
छात्राः – अस्माकं पुस्तकानि अत्र सन्ति।

शब्दार्थाः (Word Meanings):
छात्रा:-हे छात्रों (बच्चों)! (oh students), यूयम्-तुम सब [you (all)], कुरुथ-(तुम सब) करते हो [you all (do)], आचार्ये!-हे आचार्या (oh teacher), वयम्-हम सब (we all), कुत्र-कहाँ (where), सभागारम्-सभागार को (Auditorium), युष्माकम्-तुम्हारी [your/of you (all)], अस्माकम्-हमारी (our), सन्तिहैं। arel

सरलार्थः शिक्षिका – हे छात्रों! तुम सब क्या करते हो?
छात्र – हे आचार्या! हम सभी जाते हैं।
शिक्षिका – तुम सब कहाँ जाते हो?
छात्र – हम सब सभागार (Hall) में जाते हैं।
शिक्षिका – तुम्हारी पुस्तकें कहाँ हैं?
छात्र – हमारी पुस्तकें यहाँ हैं।

(घ) शिक्षकः – छात्रौ! युवां किं कुरुथ:?
छात्रौ – आचार्य! आवां श्लोकं गायावः।
शिक्षकः – शोभनम्, किं युवां श्लोकं न लिखथः?
छात्रौ – आवां लिखावः, पठावः, गायावः, चित्राणि अपि रचयावः।
शिक्षकः – बहुशोभनम्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
युवाम्-तुम दोनों (you two), किम्-क्या (what), कुरुथः-(तुम दोनो) करते हो [(you two) do], आवाम्-हम दोनों। (we two), गायावः-(हम दोनों) गाते हैं (we two sing are singing), अपि-भी (also), बहुशोभनम्-बहुत सुन्दर (very nice), शोभनम्-सुन्दर/ अच्छा (good), लिखथः-(तुम दोनों) लिखते हो [(you two write), लिखावः-(हम दोनों) लिखते हैं [(we two) write] , पठावः-(हम दोनों) पढ़ते हैं [(we two) write] , चित्राणि-चित्रों को (pictures), रचयाव:-हम दोनों (बनाते हैं) [(we two) create] या बहुशोभनम्-बहुत सुन्दर (very nice)।

सरलार्थः शिक्षक – हे छात्रों! तुम दोनों क्या करते हो?
दो छात्र – हे आचार्य! हम दोनों श्लोक (को) गाते हैं।
शिक्षक – सुन्दर/उत्तम, क्या तुम दोनों श्लोक (को) नहीं लिखते हो?
दो छात्र – हम दोनों लिखते हैं, पढ़ते हैं, गाते हैं, चित्रों को भी बनाते हैं।
शिक्षक – बहुत सुन्दर।