व्यायामः सर्वदा पथ्यः Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 3

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Class 10 Sanskrit Chapter 3 व्यायामः सर्वदा पथ्यः Summary Notes

व्यायामः सर्वदा पथ्यः पाठपरिचयः
प्रस्तुत पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24वें अध्याय से संकलित है। इसमें आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता, नीरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं।

व्यायामः सर्वदा पथ्यः Summary

पाठसारः
प्रस्तुत पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24वें अध्याय से संकलित है। इसमें आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम का तात्पर्य समझाते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता और आरोग्यता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं।
व्यायामः सर्वदा पथ्यः Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 3
अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर और कोई औषधि नहीं है। व्यायामी से उसके शत्रु भी डरते हैं। व्यायामी मनुष्य से बुढ़ापा भी दूर रहता है। शारीरिक सौष्ठव मनोहर और सुदृढ़ होता है। व्यायामी के पास व्याधियाँ नहीं आतीं। जैसे-गरुड़ के समीप सर्प नहीं आते। आयु रूप और गुणहीन व्यक्ति भी सुदर्शन होता है। व्यायाम से दीघार्यु, आरोग्यता, पाचनशक्ति में वृद्धि प्राप्त होती है। सब ऋतुओं में प्रतिदिन अपना कल्याण चाहने वालों को आधे बल से ही व्यायाम करना चाहिए।

हृदय में स्थित वायु जब मुख में प्रवेश करती है वह ही व्यायाम करते हुए मनुष्य का अर्धबल कहा जाता है। अत: आयु, बल, शरीर, देशकाल और भोजन को देखकर ही व्यायाम करना उचित है। अन्यथा मनुष्य रोगों को। प्राप्त करता है।

व्यायामः सर्वदा पथ्यः Word Meanings Translation in Hindi

1. शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्।
तत्कृत्वा तु सुखं देह विमृद्नीयात् समनततः ॥1॥

शब्दार्थाः
शरीर – शरीर (के)। आयासजननम् – परिश्रम से प्राप्त (उत्पन्न)। व्यायामसंज्ञितम् – व्यायाम नाम वाला। देहम् – देह का। विमृद्नीयात् – मालिश करनी चाहिए। समन्ततः – एक ओर से।

हिंदी अनुवाद
शरीर के परिश्रम का काम व्यायाम नाम वाला होता है। उसे करके देह का सुख प्राप्त होता है। अतः सब तरफ से शरीर की मालिश करनी चाहिए।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धि / सन्धिविच्छेदं
शरीरायासजननं = शरीर + आयासजननं

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
कृत्वा = कृ + क्त्वा
जननम् = जन + ल्युट्
संज्ञितम् = सम् + ज्ञा + क्त

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामनि
शरीरायासजननं = शरीरस्य आयासजननम् – षष्ठी तत्पुरुष।
देहस्य सुखम् = देहसुखं – षष्ठी तत्पुरुष।

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य प्रयोगश्च
अव्ययाः = अर्थाः – वाक्येषु प्रयोगः
तु = तो – अहं तु वनं गच्छामि।
समन्ततः – सब और / पूरी तरह = अधुना वर्षाकाले धरायाम् समन्ततः जलं अस्ति।

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
सुखं = दु:खम्
देहं = अदेहं

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
शरीर = तनु
देह = वपु
आयासः = श्रमः

2. शरीरोपचयः कान्तित्राणां सुविभक्तता।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा ॥2॥

शब्दार्थाः
शरीरोपचयः – शरीर की अभिवृद्धि। कान्ति – सुन्दरता। गात्राणाम् – अंगों की। सुविभक्तता – शरीरिक सौन्दर्य। दीप्ताग्नित्वम् – जठराग्नि का प्रकाशित होना (भूख लगना)। स्थिरत्वम् – स्थिरता (शान्ति)। लाघवम् – हल्कापन। मजा – शरीरिक स्वच्छता।

हिंदी अनुवाद
(व्यायाम करने से) शरीर की वृद्धि, शारीरिक अंगों की सुन्दरता, सम्पूर्ण शरीर का सौन्दर्य है। जठराग्नि में प्रकाश (भूख लगना), आलस्य की समाप्ति, स्थिरता, हल्कापन तथा शरीर की स्वच्छता भी व्यायाम से ही होती है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धि / सन्धिविच्छेद
शरीरोपचयः = शरीर + उपचयः
दीप्तोग्नित्वमनालस्यं = दीप्ते + ग्नित्वम् + अनालस्यम्
कान्ति + गात्राणाम् = कान्तिर्गात्राणां

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
सुविभक्तता – सुविभक्त + तल्
स्थिरत्वम् = स्थिर + त्व
दीप्तोगिनत्वम् = दीप्तोग्नि + त्व
लाघवम् = लघु + व्यञ्
मृजा – मृज् + टाप्
कान्ति – कम् + क्तिन्

समासो-विग्रहो वा
पदानि – समासः / विग्रहः – समासनामानि
शरीरोपचयः = शरीरस्य उपचयः – षष्ठी तत्पुरुष
अनालस्यम् – न आलस्यम् – नञ् तत्पुरुष

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
कान्ति = सौन्दर्यः
मृजा = स्वच्छीकरणम्
लाघवम् = लघुता
स्थिरत्वम् = शान्तिः
उपचयः = अभिवृद्धि

3. श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥

शब्दार्थाः
श्रम – परिश्रम (मेहनत)। क्लम – थकान। पिपासा – प्यास। उष्णशीतादीनाम् – गर्मी तथा ठण्डियों की। सहिष्णुता – सहनशीलता। आरोग्यम् – स्वास्थ्य। परमम् – उत्तम। व्यायामात् – व्यायाम से। उपजायते – उत्पन्न (पैदा) होता है।

हिंदी अनुवाद
शारीरिक परिश्रम, थकान, प्यास, गर्मी और ठण्डियों की सहनशीलता और उत्तम स्वास्थ्य व्यायाम से उत्पन्न (प्राप्त) होते हैं।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि – सन्धिः/सन्धिच्छेद
पिपासोष्ण = पिपासा + उष्ण
शीतादीनां = शीत + आदीनां
च + अपि = चापि
व्यायामादुपजायते = व्यायामात् + उपजायते

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
सहिष्णुता = सहिष्णु + तल्।

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य प्रयोगश्च
अव्ययाः = अर्थाः = वाक्येषु-प्रयोगः
च = और = व्यायाम् पौष्टिकं भोजनम् च शरीराय आवश्यक अस्ति।
अपि = भी = अहम् अपि व्यायाम करोमि।
परमम् = उत्तम् = व्यायामेन परमं सुखं प्राप्नोति।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
आरोग्यं = नीरोग्य
परमम् = श्रेष्ठम्
क्लम् = श्रान्त
स्थिरत्वम् = शान्तिः
सहिष्णुता = सहनशीलताः

4. न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम्।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥

शब्दार्थाः
सदृशम् – समान। तेन – उसके (उससे)। किञ्चित् – कुछ। स्थौल्य – आपर्षणम्- मोटापे को दूर करने वाला। व्यायामिनम् – व्यायाम करने वाले को। मर्त्यम् – व्यक्ति को। अर्दयन्ति – कुचल पाते हैं। अरयः – शत्रु गण। बलात् – बलपूर्वक।

हिंदी अनुवाद
और उसके (व्यायाम के) समान कोई (कुछ) भी मोटापे को दूर (कम) करने वाला नहीं है। और ना ही व्यायाम करने वाले व्यक्ति को बलपूर्वक शत्रु कुचल पाते हैं।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि – सन्धि / सन्धिविच्छेद
च + अस्ति = चास्ति
मर्त्यमर्दयन्त्यरयो = मर्त्यम् + अर्दयन्ति + अरयः
किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम् = किञ्चित् + स्थौल्य + अपकर्षणम्

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
अपकर्षणम् = अप + कृष् + ल्युट्
अर्दन् = अर्ट्स + ल्युट्
व्यायामिनम् = व्यायाम + इव्

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = अर्थः = वाक्येषु प्रयोगः
न = नहीं – लता गीतं न गायति।
च = और = वयम् पठामः क्रीडामः च।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
सदृशम् – अनुरूपम् / समानरूपम्
अरयः = रिपवः
मर्त्यम् = मरणशीलम्
अर्दयन्ति = अर्दनं कुर्वन्ति / पीडायच्छन्ति।

5. न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥

शब्दार्थाः
चैनम् (च एनम्) – और इसको। सहसा – अचानक। आक्रम्य – आक्रमण (हमला) करके। जरा – बुढ़ापा। समधिरोहति – आता (दबाता) है। स्थिरीभवति – परिपक्व हो जाता है। मांसम् – मांस। व्यायाम – व्यायाम (में)। अभिरतस्य – लगे रहने वाले का।

हिंदी अनुवाद
और इस (व्यायामशील) व्यक्ति को अचानक बुढ़ापा नहीं आता (दबाता) है। और व्यायाम में तल्लीन (लोग) रहने वाले मनुष्य का मांस परिपक्व होता जाता है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धि / सन्धिविच्छेद
च + एनम् – चैनं
व्यायामाभिरतस्य = व्यायाम + अभिरतस्य
सहसाक्रम्य = सहसा + आक्रम्य

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
आक्रम्य = आ + क्रम् + ल्युट्
स्थिरी = स्थिर + ङीप
समाधिरोहति = सम् + अधि+ रुह् + धञ्

विपयर्यपदानि
पदानि = विपर्ययाः
जरा = यौवनं
अधिरोहति = अवरोहति
स्थिर = अस्थिर

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
जरा = वार्धक्यम्
आक्रम्य = आक्रमणं कृत्वा।
अभिरतस्य = संलग्नस्य।

6. व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः
वयोरूपगुणीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥

शब्दार्थाः
व्यायाम – व्यायाम के कारण। उरगाः – साँप। स्विन्नगात्रस्य – पसीने से लथपथ शरीर वाले के। वयः – आयु (से)। पद्भ्याम् – दोनो पैरों से। रूप – सुन्दरता (से)। उद्वर्तितस्य – ऊपर उठने वाले के। गुणैः – गुणों से। व्याधयः – बीमारियाँ। हीनम् अपि – हीन को भी। उपसर्पन्ति – पास जाती हैं। सुदर्शनम् – सुन्दर। वैनतेयम् – गरुण के (को)। कुर्यात् – करता है। इव – समान।

हिंदी अनुवाद
व्यायाम के कारण पसीने से लथपथ शरीर वाले के और दोनों पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम करने वाले के पास रोग वैसे ही नहीं आते हैं जैसे गरुड़ के पास साँप। व्यायाम से आयु, रूप तथा गुणों से हीन व्यक्ति भी सुन्दर दिखाई देने लगता है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
नोपसर्पन्ति = न + उपसर्पन्ति
वैनतेयमिवोरगाः = वैनतेयम् + इव + उरगाः
वयः + रूप = वयोरूप
गुणैीनमपि = गुणैः + हीनम् + अपि
कुर्यात्सुदर्शनम् = कुर्यात् + सुदर्शनम्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामनि
वयोरूपगुणैीनम् = वयसा च रूपेण च गुणैः च हीनम् – तत्पुरुषः
सुदर्शनम् = सुष्ठुरूदर्शनम् – कर्मधारय

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
उपसर्पः = उप + सृप् + धञ्
उद्वर्तितस्य = उत् + वृत् + क्त

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
वैनतेयाः = गरुड़ाः
उरगः = सर्पः

7. व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोष परिपच्यते ।।7।।

शब्दार्थाः
व्यायामम् – व्यायाम को। कुर्वतः – करते हुए का। नित्यम् – प्रतिदिन। विरुद्धमपि – अनुपयोगी भी। भोजनम् – भोजन। विदग्धम् – भली प्रकार से पका हुआ। अविदग्धम् – भली प्रकार से न पका हुआ। निर्दोषम् – बिना कष्ट के। परिपच्यते – पच जाता है।

हिंदी अनुवाद
प्रतिदिन व्यायाम करते हुए व्यक्ति का विरुद्ध (अनुपयोगी), भली प्रकार, से पका हुआ अथवा न पका हुआ भोजन भी बिना कष्ट के पच जाता है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं/सन्धिविच्छेद
विदग्धमविदग्धं = विदग्धम् + अविदग्ध
विरुद्धमपि = विरुद्धम् + अपि

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
कुर्वत् = कृ + शतृ
विदग्ध = वि + दह् + क्त
विरुद्ध = वि + रुह् + क्त

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
अविदग्धम् = न विदग्धम् – नञ् तत्पुरुष
निर्दोषं = दोषे न रहितम् – तृतीया तत्पुरुष

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
नित्यम् = प्रतिदिनम्
परिपच्यते – जीर्यते
विरुद्धम् = अनुपयुक्तम्
विदग्धम् – सुपक्वम्

8. व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम्।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥

शब्दार्थाः
हि – निश्चय से। सदा – हमेशा। पथ्यः – लाभदायक है। बलिनाम् – बलवानों का। स्निग्धभोजिनाम् – चिकनाई युक्त भोजन खाने वालों का। शीते – शीतकाल में। वसन्ते – वसन्त ऋतु में। तेषाम् – उनका (उनके लिए)। पथ्यतमः – बहुत ही लाभदायक। स्मृतः – कहा गया है।

हिंदी अनुवाद
निश्चय से व्यायाम सदा ही बलशालियों का और चिकनाई युक्त भोजन रखने वालों की दवा है। और वह शीतकाल में और वसन्त ऋतु में उसके लिए अतीव लाभदायक कहा गया है।

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
स्निग्धभोजिनाम् = स्निधं भुनक्ते यः सः तेषाम् – बहुव्रीहि
शीते वसन्ते च = शीत वसन्तयोः – द्वन्द्व

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि – प्रकृति + प्रत्ययः
पथ्य = पथ् + यत्
बलिनाम् = बल + इन्
पथ्यतमः = पथ्य + तमप्
स्मृतः – स्मृ + क्त

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
पथ्य = लाभदायक:
शीते = शीतले शिशिर ऋतौ

9. सर्वेष्वतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥9॥

शब्दार्थाः
सर्वेषु – सभी। ऋतुषु – ऋतुओं में । अहरहः – प्रतिदिन। पुम्भिः – पुरुषों के द्वारा। आत्महितैषिभि – अपना (आत्मा का) हित चाहने वालों के द्वारा। बलस्य – बल का। अर्धेन – आधे भाग से। कर्तव्यः – करना चाहिए। हन्तयत: – रहित (कम) हो जाता है (हानिकारक)। अन्यथा – नहीं तो।

हिंदी अनुवाद
आत्मा का (अपना) हित चाहने वाले पुरुषों के द्वारा सभी ऋतुओं में प्रतिदिन आधे बल से व्यायाम करना चाहिए। नहीं तो (अन्यथा) व्यायाम हानिकारक हो जाता है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
सर्वेष्वतुष्वहरहः = सर्वेषु + ऋतुषु + अहरहः
पुम्भिरात्महितैषिभिः = पुम्भिः + आत्महितैषिभिः
बलस्यार्धन = बलस्य + अर्धन
हन्त्यताऽन्यथा = हन्त्यतः + अन्यथा

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः/विग्रहः – समास नामानि
आत्महितैषिभिः = आत्मनः हितैषिभिः – षष्ठी तत्पुरुष
आत्महितैषिभिः = आत्मनः हितं इच्छति यैः तैः – बहुव्रीहि
बलस्यार्धेन = बलार्धन – षष्ठी तत्पुरुष
सर्वेष्वृतुषु = सर्वर्तुषु – षष्ठी तत्पुरुष

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
कर्तव्यो – कृ + तव्यत्।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
पुम्भिः = पुरुषैः
अहरहः = प्रतिदिनम्
अर्धन = अर्धभागेन

10. हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥10॥

शब्दार्थाः
हृदिस्थानस्थितः – हृदय देश (स्थान) में स्थित। वायुः – हवा। वक्त्रम्-मुँह को। प्रपद्यतेः – पहुँचती है। कुर्वतः – करते हुए के। जन्तोः – जीव (व्यक्ति) के। तद् – वह। बलार्धस्य – आधे बल का। लक्षणम् – लक्षण होता है।

हिंदी अनुवाद
जब हृदय स्थान में स्थित वायु (हवा) मुँह तक पहुंचती है। व्यायाम को करते हुए व्यक्ति के वह आधे बल का लक्षण होता है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
वायुर्यदा = वायुः + यदा
जन्तोस्तद् = जन्तोः + तद्
बलार्धस्य = बल + अर्धस्य

समासो-विग्रहो वा
पदानि – समासः / विग्रहः – समासनामानि
हृदिस्थानस्थितः = हृदस्थितः – सप्तमी तत्पुरुष
बलार्धस्य = बलस्य अर्धस्य – षष्ठी तत्पुरुष

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
कुर्वतः = कृ + क्त
स्थितः = स्था + क्त

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
वक्त्रं = मुखम्
जन्तोः = नरस्य
वायु = पवनः

11. वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्यात् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥11॥

शब्दार्थाः
वयः – आयु। बलशरीराणि – बल और शरीरों को। देश – स्थान। काल – समय। अशनानिः – भोजन को। समीक्ष्यदेखभाल करके। कुर्यात् – करना चाहिए। अन्यथा – नहीं तो (अन्यथा)। आप्नुयात् – प्राप्त करे। रोगम् – रोग को (बीमारी को)।

हिंदी अनुवाद
आयु, बल, शरीर, देश (स्थान), समय और भोजन को देखकर ही व्यायाम को करना चाहिए अन्यथा (नहीं तो) रोग प्राप्त करेगा (रोगी हो जाएगा)।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
वयोबलशरीराणि = वयः + बलशरीराणि
देशकालाशनानि = देशकाल + अशनानि
व्यायाममन्यथा = व्यायामम् + अन्यथा
रोगमाप्नुयात् = रोगम् + आप्नुयात्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः/विग्रहः – समासनामानि
वयोबलशरीराणि = वयः च बलं च शरीरं च – द्वन्द्व समास
देशकालाशनानि = देशः च कालः च अश्नम् च – द्वन्द्व समास

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
समीक्ष्यः = सम् + ईक्ष + ल्यप्
रोगः = रुज् + धञ्

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
वयः – आयु
कालः = समय:
समीक्ष्य – सम्यग्दृष्ट्वा
आप्नुयात् = प्राप्नुयात्
अशनानि = आहारा: / भोजनानि

बुद्धिर्बलवती सदा Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 2

By going through these CBSE Class 10 Sanskrit Notes Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 10 Sanskrit Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Summary Notes

बुद्धिर्बलवती सदा पाठपरिचयः
प्रस्तुत पाठ शुकसप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो सामने आए हुए शेर को डरा कर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

बुद्धिर्बलवती सदा Summary

पाठसारः
प्रस्तुत पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित किया गया है। ‘शुकसप्ततिः’ के लेखक और काल के विषय में आज भी भ्रान्ति बनी हुई है। शुकसप्तति अत्यन्त सरल और मनोरंजक कथासंग्रह है। प्रस्तुत कहानी में अपने दो पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो अपनी चातुर्य से सामने आए बाघ को भी डरा कर भगा देती है।
बुद्धिर्बलवती सदा Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 2 Img 1
बुद्धिमती बाघ को समक्ष देख अपने पुत्रों को डाँटने का नाटक करती हुई कहती है कि झगड़ा मत करो। आज एक ही बाघ को बाँटकर खा लो फिर दूसरा देखते हैं। यह सुन ‘यह व्याघ्रमारी है’ ऐसा मानकर बाघ डरकर भांग जाता है। भयभीत बाघ को देखकर शृगाल बाघ का उपहास उड़ाता हुआ कहता है कि मुझे अपने गले में बाँधकर चलो जहाँ वह धूर्ता है। शृगाल के साथ पुनः आते बाघ को देखकर बुद्धिमती अपनी प्रत्युत्पन्नमति से शृगाल को ही आक्षेप लगाती हुई कहती है कि तुमने तीन बाघ देने के लिए कहा था। आज एक ही बाघ क्यों लाए हो?

यह सुनते ही शृगाल सहित बाघ भाग जाता है। इस प्रकार अपने बुद्धिबल से वह अपनी और अपने पुत्रों की प्राणरक्षा करती है।
बुद्धिर्बलवती सदा Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 2 Img 2
बुद्धिर्बलवती सदा Word Meanings Translation in Hindi

1. अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”

शब्दार्थाः
ग्रामः – गाँव। राजपुत्र: – राजा का पुत्र। भार्या – पत्नी। उपेता – साथ (युक्त)। मार्गे – रास्ते में। कानने – जंगल में। ददर्श – देखा। प्रहृत्य – मारकर। लक्ष्यते – ढूँढा जाएगा/देखा जाएगा। धाष्ात् – ढिठाई से। चपेटया – थप्पड़ से। जगाद – कहा। भक्षणाय – खाने के लिए। कलहम् – झगड़ा। कुरुथ: – (तुम दो) कर हरो हो। अयम् – यह। विभज्य – बाँट कर के। भुज्यताम् – खाना चाहिए। पश्चाद् – बाद में। द्वितीय – दूसरा।

हिंदी अनुवाद
देउल नाम का गाँव था। वहाँ राजसिंह नाम का राजपुत्र रहता था। एक बार किसी जरूरी काम से उसकी पत्नी बुद्धिमती दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर की तरफ चली गई। रास्ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। बाघ को आता हुआ देखकर उसने धृष्टता से दोनों पुत्रों को एक-एक थप्पड़ मार कर कहा-“एक ही बाघ को खाने के लिए तुम दोनों क्यों झगड़ा कर रहे हो? इस एक (बाघ) को ही बाँटकर खा लो। बाद में अन्य दूसरा कोई ढूँढा जाएगा।”

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धि / सन्धिविच्छेद
देउलाख्यो – देउल + आख्यः
केनापि – केन + अपि
पुत्रद्वयोपेता = पुत्रद्वय + उपेता
पितुः + गृहम् = पितुर्गृहम्
व्याघ्रम् + आगच्छन्तम् – व्याघ्रमागच्छन्तम्
कथमेकैकशो – कथम् + एक + एकशः
अयमेकस्तावद्विभिज्य = अयम + एक: + तावत् + विभज्य
कश्चिल्लक्ष्यते = कः + चित् + लक्ष्यते / कश्चित् + लक्ष्यते

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः
आवश्यककार्येण = आवश्यकेन कार्येण
गहनकानने = गहने कानने
राज्ञः पुत्रः = राजपुत्रः
पुत्रद्वयोपेता = पुत्रद्वयेन उपेता

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि – प्रकृतिः + प्रत्ययः
चलिता – चल् + क्त
प्रहत्य – प्र + ह् + ल्यप्
आगच्छन्तम् = आ + गम् + शतृ
विभज्य = वि + भज् + ल्यप्
दृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा
बुद्धिमती = बुद्धिमत् + डीप
भार्या = भार्य + टाप्

कारकाः उपपद विभक्तयश्च
बुद्धिमती पितुर्गृहं प्रति चालिता।
अत्र प्रति कारणेन गृहम् शब्दे द्वितीया वि० अस्ति।

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य प्रयोगश्च
अव्ययाः – वाक्येषु प्रयोगः
प्रति – सा भार्या पितर्गहम् प्रति चलिता।
एकदा = एकदा अतीव वर्षा अभवत्।
तावत् + यावत् त्वम् आगमिष्यसि तावत् अहम् गमिष्यामि।
तत्र – तत्र राजसिंह: नाम राजपुत्रः आसीत्।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
भार्या = पत्नी, दारा
भक्षणाय – खादनाय
पुत्रद्वयोपेता = पुत्रद्वयेन सहिता
भुज्यताम् = भक्ष्यताम्
उपेता = युक्ता
पश्चाद् – अनन्तरम्
दृष्ट्वा – अवलोक्य
प्रहृत्य = हत्वा
ददर्श = अपश्यत्/दृष्टवान्
कलहम् = विवादम्
चपेटया = करप्रहारेण
विभज्य = विभक्तं कृत्वा
जगाद – अकथयत्
लक्ष्यते = अन्विष्यते / द्रक्ष्यते
वनम् = काननम्

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
आवश्यकम् = अनावश्यकम्
कलहम् = स्नेहम्
आगच्छन्तम् = गच्छन्तम्
चलिता = स्थिता
धाष्ात् = विनयात्
एकदा = बहुवारम्
भक्षणाय – पानाय
पश्चाद् = पूर्वम्

कर्ता-क्रिया-मेलनम्
कर्ता = क्रिया
राजासिंह = वसति स्म
सा = जगाद (अकथयत्)
बुद्धिमती – चलिता
युवाम् = कुरुथ:
सा = ददर्श

विशेषण-विशेष्य मेलनम्
भार्या = बुद्धिमती
एकं = व्याघ्र
अन्यः = द्वितीयः

2. इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुतः भयात् पलायितः?”
व्याघ्रः- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
शृगालः-व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्रः-प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।

शब्दार्थाः
श्रुत्वा – सुनकर। मत्वा – मानकर, समझकर। नष्ट: – भाग गया। भामिनी – रूपवती स्त्री। विमुक्ता – छोड़ी गई। मुच्यते – छोड़ी जाती है। महतो – बहुत ज्यादा। भयात् – डर से। दृष्ट्वा – देखकर। कश्चित् – कोई। हसन् – हँसते हुए। आह – बोला। कुतः – कहाँ से। पलायित: – भाग रहे हो। श्रूयते – सुना जाता है। हन्तुम् – मारने के लिए। कौतुकम् – आश्चर्य। मानुषाद – मनुष्य से भी। बिभेषि – करते हो। दृष्टा – देखी गई। माम् – मुझे। अतुम् – खाने के लिए। कलहामानौ – झगड़ा करते हुए (दो)। चपेटयाथप्पड़ से। प्रहरन्ती – प्रहार करती हुई।

हिंदी अनुवाद
यह सुनकर यह कोई व्याघ्र (बाघ को) मारने वाली है, ऐसा समझकर वह बाघ डर से व्याकुल होकर वहाँ से भाग गया। वह स्त्री अपनी बुद्धि द्वारा व्याघ्र (बाघ) से छूट (बच) गई। अन्य बुद्धिमान भी (इसी तरह) अपनी बुद्धि के बल से महान भय से छुटकारा पा जाते हैं।

डर से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसते हुए बोला-“आप कहाँ से डरकर भाग रहे हो?”

बाघ– “जाओ. जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में छिप जाओ, क्योंकि हमने जिस व्याघ्रमारी के संबंध में बातें शास्त्रों में सुनी हैं उसी ने मुझे मारने का प्रयास किया, परन्तु अपने प्राण हथेली पर रखकर मैं उसके आगे से भाग गया।”

सियार- “बाघ! तुमने बहुत आश्चर्यजनक बात बताई कि तुम मनुष्यों से भी डरते हो?”

बाघ-“मेरे सामने ही (उसके) दोनों पुत्र मुझे अकेले-अकेले खाने के लिए झगड़ा कर रहे थे और उसने दोनों को एक-एक चाँटा मारती हुई देखी गई।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
भयाकुलचित्तो = भय + आकुल + चित्तः
बुद्धिमॉल्लोके – बुद्धिमान् + लोके
कश्चित् = कः + चित्
त्वमपि = त्वम् + अपि
व्याघ्रमारीति – व्याघ्रमारी + इति
हन्तुम् + आरब्ध = हन्तुमारब्धः
यन्मानुषादपि – यत् + मानुषात् + अपि
सात्मपुत्रावेकैकशो = सा + आत्मपुत्रौ + एक + एकशः
काचिदियमिति = काचित् + इयम् + इति
अन्योऽपि = अन्यः + अपि
भयाकुलम् = भय + आकुलम्
हसन्नाह = हसन् + आह
किच्चिद् = किम् + चित्
तयाहम् = तया + अहम्
तदग्रतः = तत् + अग्रतः
प्रत्यक्षमेव = प्रत्यक्षम् + एव
माम् + अत्तुम् = मामत्तुं

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः/विग्रहः
निजबुद्ध्या = निजया बुद्ध्या
गूढम् प्रदेशम् = गूढप्रदेशम्

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि – प्रकृतिः + प्रत्ययः
श्रुत्वा = श्रु + क्ता
मत्वा – मन् + क्त्वा
नष्ट: – नश् + क्त
विमुक्ता – वि + मुच् + क्त
दृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा
हसन् – हस् + शतृ (पुल्लिंग)
हन्तुम् – हन् + तुमुन्
आरब्धः = आ + रम् + क्त
नष्टः = नश् + क्त
प्रहरन्ती (स्त्रीलिंग) = प्र + ह् + शतृ
दृष्टा = दृश् + क्त (टाप्) (स्त्रीलिंग)
कलहायमानौ = कलह + शानच्
धूर्त = धूर् + क्त

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = वाक्येषु प्रयोगः
इति = इति श्रुत्वा सा अवदत्।
कश्चित् = कश्चित् धूर्तः शृगालः अवदत्।
किञ्चिद् = त्वम् अपि किञ्चित् गूढप्रदेशम् गच्छ।
अपि = व्याघ्रः मानुषादपित विभेति।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
श्रुत्वा = आकर्ण्य
मत्वा – अवगत्य
नष्टः = पलायित:
बुद्ध्या – मतया
भामिनी = रूपवती स्त्री
धूर्त = चालाक
गूढप्रदेशम् = गुप्तप्रदेशम्
अग्रतः = समक्षः
अतुम् = खादितुम, भक्षयितुम्
कलहायमानौ = विवादमानौ
लोके = संसारे
प्रहरन्ती = मारयन्ती
दृष्टवा = अवलोक्य
गच्छ = याहि
शृगालः = जम्बुक:

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
पदानि = विपर्ययाः
श्रुत्वा = उक्त्वा
प्रत्यक्षम् = परोक्षम्
गच्छ = अगच्छ
विमुक्ता = गृहीत्वा
हसन् = रुदम्
धूतः = विनम्रः
माम् = त्वाम्

कर्ता-क्रिया-मेलनम्
कर्ता = क्रिया
व्याघ्र = नष्टः
भवान् = पलायितः
शृगालः = आह (अवदत्)
त्वम् = गच्छ

विशेषण-विशेष्य-मेलनम्
धूर्तः – शृगालः
इयम् = व्याघ्रमारी
व्याघ्रः = व्याघ्रमारी
व्याघ्रः = भयाकुलः

3. जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्य इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि सदा वेलाप्यवेला स्यात्।
जम्बुक:- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं
पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहान् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच-
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।।
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एवं उच्यते-
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।।

शब्दार्थाः
धूर्ता – धूर्त स्त्री। गम्यताम् – जाना चाहिए। आस्ते – है। सम्मुखम् – सामने। ईक्षते – दिखाई देता है। हन्तव्यः – मारना चाहिए। गतस्य – गए हुए के। मुक्त्वा – छोड़कर। यासि – जाते हो। वेला – समय। स्यात् – होनी चाहिए। बद्ध्वा – बाँधकर। सत्वरम्जल्दी। ययौ – दोनो चले गए। आयान्त – आए हुए को। परं – परन्तु। मुच्यताम् – छुड़ाया जाए। आक्षिपन्ती – झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई, आक्षेप करती हुई। तर्जयन्ती – धमकाती हुई, डाँटती हुई। विश्वास्य – विश्वास दिलाकर। अधना – अब। वद – बोलो। भयङ्करा – डराती हुई। सहसा – अचानक। नष्ट: – भाग गया। उच्यते – कहा जाता है। गलबद्ध शृगालकः – गले में बँधे हुए शृगाल वाला। बलवती – बलवान। सर्वकार्येषु – सब कामों में। सर्वदा – हमेशा।

हिंदी अनुवाद
सियार- स्वामी. जहाँ वह धूर्त औरत है वहाँ चलिए। हे बाघ! फिर वहाँ जाने पर वह सामने यदि स्थित रहती है तो तुम्हारे द्वारा मार दिए जाने योग्य हूँ।
बाघ-सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे तो समय कुसमय में बदल जाएगा।
सियार-यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले से बाँधकर जल्दी चलो।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल की तरफ चल दिया। सियार के साथ बाघ को फिर से आते हुए दूर से देखकर बुद्धिमती ने सोचा-‘सियार के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे छूटकारा पाया जाए?’ परन्तु जल्दी से सोचने वाली उस स्त्री ने सियार को धमकाते हुए कहा-
“अरे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए थे, आज विश्वास दिलाकर भी तू एक को ही लेकर क्यों आया, अब बता।” ऐसा कहकर वह भय उत्पन्न करने वाली, व्याघ्र को मारने वाली जल्दी से दौड़ गई, अचानक व्याघ्र भी गले में बँधे हुए शृगाल को लेकर भागने लगा।
इस प्रकार से बुद्धिमती बाघ के भय से फिर से मुक्त हो गई। इसीलिए कहा जाता है-
“हमेशा हर कामों में बुद्धि ही बलवान होती है।”

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धि / सन्धिविच्छेद
यत्रास्ते = यत्र + आस्ते
सम्मुखमपीक्षते = सम्मुखम् + अपि + ईक्षते
वेलाप्यवेला = वेला + अपि + अवेला
पुनरायान्तं = पुनः + आयान्तं
जम्बुककृतोत्साहाद् = जम्बुक + कृतः + उत्साहाद्
प्रत्युत्पन्नमतिः = प्रति + उत्पन्न + मतिः
जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या = जम्बुकम् + आक्षिप्ती + अंगुल्या
तर्जयन्त्युवाच = तर्जयन्ती + उवाच
इत्युक्त्वा = इति + उक्त्वा
विश्वास्याद्यैकमानीय = विश्वास्य + अद्य + एकम् + आनीय
व्याघ्रः + अपि = व्याघ्रोऽपि
पुनः + अपि – पुनरपि
मुक्ताऽभवत् = मुक्ता + अभवत्
बुद्धिर्बलवती = बुद्धिः + बलवती

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः
गलबद्ध शृगालकः = गलबद्ध: शृगालः यस्य सः।
भयाकुलचित्तः = भयेन आकुल: चित्तम् यस्य सः
प्रत्युत्पन्नमतिः = प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
भयङ्करा = भयं करोति इति या सा
जम्बुककृतोत्साहाद् = जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्
व्याघ्रमारयति इति = व्याघ्रमारी
पुत्रद्वयेन उपेता = पुत्रद्वयोपेता
गृहीतकरजीवितः = गृहीतं करे जीवितं येन सः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
हन्तव्यः = हन् + तव्यत्
चिन्तितवती = चिन्त् + क्तवतु
मुक्त्वा = मुच् + क्त्वा
दत्तम् = दा + क्त
बद्ध्वा = बध् + क्त्वा
आनीय = आ + नी + ल्यप्
दृष्ट्वा = दृश् + क्त्वा
युक्त्वा = वच् + क्त्वा
बुद्धिमती = बुद्धिमत् + ङीप्

कारकाः उपपद-विभक्तयश्च
व्याघ्रः शृगालेन सहितं पुनः अगच्छत्।
-‘सह’ कारणेन तृतीया वि० अस्ति।

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = वाक्येषु प्रयोगः
यत्र-तत्र = यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्।
यदि-तर्हि = यदि सा आगमिष्यति तर्हि अहम् गमिष्यामि।
तथा = (वैसा) सः व्याघ्रः तथा कृत्वा वनम् गच्छति।
कथम् = (कैसे) एतत् कथम् भविष्यति?
इति = इत्युक्त्वा सा धाविता।
अपि = व्याघ्रोऽपि सहसा जलायितः।
पुनः = सा बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्।
एव = ईश्वरः सर्वत्र एव अस्ति।
अतः = अत एव उच्यते-बुद्धिर्यस्य बलं तस्य।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
आस्ते = अस्ति
सम्मुखम् = समक्षम्
ईक्षते = दृश्यते
यासि = गच्छसि
सत्वरम् = शीघ्रम्
काननम् = वनम्
ययौ = गतवान्
आयान्तं = आगछन्तम्
दृष्ट्वा = अवलोक्य
उवाच = अकथयत्
दत्तम् – अयच्छत्
अधुना = सम्प्रति, इदानीम्
पुरा = प्राचीनकाले, पूर्वम्
उच्यते = कथ्यते
नष्टः = पलायितः
ईक्षते = पश्यति
वेला = समयः
आक्षिपन्ती = आक्षेपं कुर्वन्ती
जम्बुक = शृगालः
विश्वास्य – समाश्वस्य
भयंकरा = भयोत्पादिका
जगाद = अकथयत्
गले – कण्ठे
तर्जयन्ती = तर्जनं कुर्वन्ती
तूर्णम् = शीघ्रम्
मुच्यते = मुक्तो भवति
ददर्श = दृष्टवान्

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
आस्ति = आसीत्
दत्तम् = अदत्तम्
यासि – आयासि
काननम् = नगरम्
सम्मुखम् = परोक्षम्
पुरा = अधुना
सत्वरम् = विलम्बम्
आयान्तम् = यान्तम्
दृष्ट्वा = अदृष्ट्वा
वेला = अवेला
बद्ध्वा = मुक्त्वा
चल = तिष्ठ

कर्ता-क्रिया-मेलनम्
त्वम् = यासि
सा = उवाच
सः = ययौं
व्याघ्रमारी = धाविता
बुद्धिमती = चिन्तितवती

विशेषण-विशेष्य-मेलनम्
सा = धूर्ता
भयङकरा = धाविता
स: = व्याघ्रः
व्याघ्रमारी = धाविता
प्रत्युत्पन्नमतिः = सा

शुचिपर्यावरणम् Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 1

By going through these CBSE Class 10 Sanskrit Notes Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 10 Sanskrit Chapter 1 शुचिपर्यावरणम् Summary Notes

शुचिपर्यावरणम् पाठपरिचयः
प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना-संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यांत्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तन-मन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं। कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदी-निर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुञ्जित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

शुचिपर्यावरणम् Summary

प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इनमें कवि ने महानगरों में बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए और मानव कल्याण के लिए पर्यावरण शुद्धि व स्वच्छता का संदेश देकर शुद्ध पर्यावरण की ओर जनजागरण करने का प्रयास किया है।

शुचिपर्यावरणम् Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 1 Img1

महानगरों में दिन-रात दौड़ते हुए यातायात साधनों से मनुष्य का शारीरिक व मानसिक ह्रास हो गया है। इस कारण वहाँ रहना मनुष्यों के लिए दुष्कर हो गया है। काले धुएँ को छोड़ती असंख्य गाड़ियों के कोलाहलपूर्ण मार्गों पर चलना भी कठिन है।

प्रदूषित वातावरण के कारण वायुमण्डल, जल, भोज्य पदार्थ और समस्त धरातल सब कुछ अति दूषित हो गया है। अतः प्रदूषण को दूर कर पर्यावरण को शुद्ध करना चाहिए।

प्रदूषित पर्यावरण से दु:खी कवि की इच्छा है कि कुछ समय के लिए महानगर से दूर प्रकृति की गोद में, एकान्त वन में वास करें, जहाँ पवित्र व शुद्ध जलपूर्ण नदियाँ, झरने और जलाशय हैं। जहाँ पक्षियों के मधुर कलरव से वन प्रदेश गुञ्जित हैं। चकाचौंध पूर्ण इस वातावरण से दूर प्राकृतिक दृश्यों को निहारते हुए जीवन को रसमय करना चाहता है।

शुचिपर्यावरणम् Summary Notes Class 10 Sanskrit Chapter 1 Img2

कवि की आशंका है कि इस प्रदूषित पर्यावरण में हमारी संस्कृति, प्राकृतिक छटा, पाषाणी सभ्यता लुप्त न हो जाए। सुखमय मानव जीवन की कामना करता हुआ कवि पर्यावरण को शुद्ध व सुरक्षित करने की प्रार्थना करता है।

शुचिपर्यावरणम् Word Meanings Translation in Hindi

1. दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जननसनम्। शुचि… ॥1॥

शब्दार्थाः:
दुर्वहम् – कठिन। जीवितम् – जीवन। जातम् – हो गया है। शुचिः – पवित्र शुद्ध। महानगरमध्ये – महानगरों के बीच में। चलत् – चलते हुए। कालायसचक्रम् – काला लोहे का पहिया। अनिशम् – रात-दिन। मनः – मन को। शोषयत् – सुखाते हुए। तनुः – शरीर को। प्रेषयद् – पीसते हुए। वक्रम् – टेढ़ा। दुर्दान्तैः – कठोर (भयानक)। दशनैः – दाँतों से। अमुना – इसके द्वारा। स्यात् – होवे। जनग्रसनम् – जनता का नाश।

हिंदी अनुवाद
जीवित रहना (जीवन) कठिन हो गया, अब प्रकृति की ही शरण है, शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है। महानगरों के बीच रात-दिन काले लोहे का पहिया (चक्का) चल रहा है। जो मन को सुखाते हुए और शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा चलता रहता है। इसके द्वारा (इससे) अपने कठोर (भयानक) दाँतों से जनता का नाश न हो, इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है।

सन्धिः- विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
दुर्वहम् = दुः + वहम्
प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव
परि + आवरणम् = पर्यावरणम्
चलदनिशम् = चलत् + अनिशम्
कालायसचक्रम् = काल + आयसचक्रम्
पेषयद् भ्रमति = प्रेषयत् + भ्रमति
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना = दु: + दान्तैः + दशनौः + अमुना
स्यान्नैव = स्यात् + न + एव

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
शुचि-पर्यावरणम् = शुचि च तत् पर्यावरणम् – कर्मधारयः
पर्यावरणम् = परितः आवृणोति इति – उपपद तत्पुरुषः
महानगरमध्ये = महानगराणाम् मध्ये – षष्ठी तत्पुरुषः
अनिशम् = न निशम् – नञ् तत्पुरुषः
कालायसचक्रम् = कालायसस्यचक्रम् – षष्ठी तत्पुरुषः
दुर्दान्तैः दशनैः = दुर्दान्तदशनैः – कर्मधारयः
जनग्रसनम् = जनानाम् ग्रसनम् – षष्ठी तत्पुरुषः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
जीवितम् = जीव् + क्त
जातम् = जन् + क्त
चलत् = चल् + शतृ
शोषयत् = शुष् + शतृ
पेषयद् = पिष् + शतृ

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = वाक्येषु प्रयोगः
अत्र = अत्र भारते शान्तिः भवेत्।
सदा = सदा सत्यमेव वदेत्।
एव = स्वम् एव मम बन्धुः असि।

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
सुवहम् = दुर्वहम्
अजीवितम् (मृतम्) = जीवितम्
अशुद्धम् (अशुचि) = शुचि
अवक्रम् = वक्रम्
कदाचित् = सदा
सरलैः = दुर्दान्तैः

2. कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि …॥2॥

शब्दार्थाः
कज्जलमलिनम् – काजल की तरह काले। धूमम् – धुएँ को। मुञ्चति – छोड़ती है। यातानाम् – गाड़ियों की। शतशकटीयानाम् – सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ। वाष्पयानमाला – रेलगाड़ियों की पंक्तियाँ। संधावति – दौड़ रही है। वितरन्ती – फैलाती हुई। ध्वानम् – शोर को। हि – निषेचय से। पङ्क्तयः – पक्तियाँ। अन्नता: – अनन्त (अनगिनत) है। कठिनम् – कठिन। संसरणम् – चलना।

हिंदी अनुवाद
(आज देश में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल की तरह मैले (काले) धुएँ को छोड़ रही हैं। अनेकानेक रेलगाड़ियाँ चारों ओर शोर करती हुईं दौड़ रही हैं। गाड़ियों की पंक्तियाँ अनंत हैं, जिससे चलना कठिन हो गया है। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारी शरण) है।

सन्धिः – विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं/सन्धिविच्छेदं
धूमं मुञ्चति = धूमम् + मुञ्चति
संधावति = सम् + धावति
यानानां पङ्क्तयः = यानानाम् + पञ् + क्तयः
पङ्क्तयो ह्यनन्ताः = पङ्क्तयः + हि + अनन्ताः
हि + अनन्ताः = ह्यनन्ताः
सम् + सरणम् = संसरणम्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
कज्जलमलिनम् = कज्जलम् इव मलिनम् – कर्मधारयः
शतशकटीयानम् = शतस्य / शतानाम् शकटीयानाम् समाहारः – द्विगुः
वाष्पयानमाला = वाष्पयानानाम् माला – षष्ठी तत्पुरुषः
यानानाम् पङ्कतयः = यानापङ्क्तयः – षष्ठी तत्पुरुषः
अनन्ताः = न अन्ताः – नञ् तत्पुरुषः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = उपसर्ग + प्रकृतिः + प्रत्ययः
वितरन्ती = वि + त् + शत् + ङीप्
पङ्क्तयः = पञ् + क्तिम्

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययः – वाक्यषु प्रयोगः
हि (निश्चय से) – नगरेषु हि अनन्तमि वाहनानि भवन्ति।

विपर्ययपदानि
पदानि – विपर्ययाः
मलिनम् = उज्जवलम्
वितरन्ती = ग्रह्णन्ती
मञ्चति = ग्रह्णाति
कठिनम् = सरलम्

3. वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥

शब्दार्थाः
भृशम् – अत्यधिक। दूषितम् – प्रदूषित। जगति – संसार में। कुत्सितम् – गलत। समलम् – मैली। धरातलम् – धरती। बहु – बहुत भक्ष्यम् – खाने योग्य वस्तु। शुद्धीकरणम् – शुद्धता।

हिंदी अनुवाद
आज वायुमण्डल बहुत प्रदूषित हो गया है और जल (पानी) शुद्ध नहीं रहा। खाने योग्य सारी वस्तुएँ आज अशुद्ध (विषैली) वस्तुओं से मिलावटी हो गई हैं तथा सारी धरती मैली (अशुद्ध) हो चुकी है। इन सभी अशुद्धियों (मैल) को दूर बाहर करके अन्तर्जगत् अर्थात् मन व बुद्धि आदि को बहुत अधिक शुद्ध करना चाहिए। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है

पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
भक्ष्यं समलम् = भक्ष्यम् + समलम्
बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति
निर्मलं जलम् = निर्मलम् + जलम्
समलम् + धरातलम् = समलं धरातलम्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
वायुमण्डलम् = वायोः मण्डलम् – षष्ठी तत्पुरुषः
निर्मलं जलम् = निर्मलजलम् – कर्मधारयः
कुत्सितवस्तुमिश्रितम् = कुत्सितेभ्यः वस्तुभ्यः मिश्रितम् – षष्ठी तत्पुरुषः
समलम् = मलेन/मलैः सह – अव्ययीभाव
धरातलम् = धरायाः तलम् – षष्ठी तत्पुरुषः
शुद्धीकरणम् = शुद्धेः (शुद्धयाः) करणाम् – षष्ठी तत्पुरुषः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः + प्रत्ययः
दूषितम् = दूष् + क्त
भक्ष्यम् = भक्ष् + अनीयर्

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = अर्थः – वाक्येषु प्रयोगः
भृषम् = अत्यधिक – अधुना भृशं दूषणम् अस्ति।
हि = निश्चय से – बहवः जनाः दूषणेन हि म्रियन्ते।
बहिः = बाहर – जनाः नगरात् बहिः गच्छन्ति।
अन्तः = अन्दर – सर्वे गृहाणाम् अन्तः वसन्ति।
तु = तो – अधुना तु जनाः स्वच्छतां प्रति जागृताः सन्ति।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
भृषम् = बहु / अत्यधिकम् (अतीव)
निर्मलम् = शुद्धम्
जलम् = आपः
भक्ष्यम् = खाद्यम्
समलम् = अशुद्धम्
जगति = संसारे

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
न्यूतम् = भृषम्
समलम् = निर्मलम्
बहिः = अन्तः
भक्ष्यम् = अभक्ष्यम्

4. कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम् ॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…॥4॥

शब्दार्थाः
कञ्चित् – कुछ। कालं – समय। बहुदूरम् – बहुत दूर। मे – मेरा। प्रपश्यामि – देखू। निर्झर – नदी-झरने-नदी (को)। पयःपुरम् – जल से भरा हुआ तालाब। एकान्ते – एकान्त (निर्जन)। कान्तारे – जंगल में। नय – ले चलो। क्षणमपि – क्षण भर भी। स्यात् – हो। सञ्चरणम् – भ्रमण।

हिंदी अनुवाद
कुछ समय को (के लिए) मुझे इस (प्रदूषित) नगर से बहुत दूर ले चलिए। जहाँ गाँव की सीमा पर जल से भरी हुई नदी और झरने को देखू। निर्जन जंगल में मेरा क्षण भर के लिए भी भ्रमण होवे। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

सन्धिः- विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेदं
कञ्चित् = कम् + चित्
मामस्मान्नगराद् = माम् + अस्मात् + नगरात्
ग्राम + अन्ते = ग्रामान्ते
सम् + चरणम् = सञ्चरणम्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
ग्रामान्ते = ग्रामस्य अन्ते – षष्ठी तत्पुरुषः
पयःपूरम् = पयसा पूरम् – तृतीया तत्पुरुषः
एकान्ते कान्तारे = एकान्त कान्तारे – कर्मधारयः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
सञ्चरणम् = सम् + चर् + ल्युट्

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
विपिने / कानने = कान्तारे
मम = मे
समयम् = कालम्
जलम् = पयः
भ्रमणम् = सञ्चरणम्

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
अधिकम् = किञ्चित्
ग्रामात् = नगरात्
बहुदूरम् = अतिसमीपम्
नगरान्ते = ग्रामान्ते
क्षणम् = दीर्षसमयम्
ग्रामे/नगरे = कान्तारे

5. हरिततरुणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि…॥5॥

शब्दार्थाः
हरिततरुणाम् – हरे भरे वृक्षों की। स्यात् – हो। ललितलतानाम् – सुंदर लताओं की। मे – मेरा (मेरे लिए)। माला – पंक्ति रमणीया – सुन्दर। समीरचलिता – हवा से चलाई हुई। वरणीया – वरण करने योग्य। नवमालिका – नई पंक्ति। रसालम् – आम (की)। मिलिता – प्राप्त हो। रुचिरम् – सुंदर। संगमनम् – मेल।

हिंदी अनुवाद
हरे-भरे वृक्षों की, सुन्दर लताओं की सुन्दर माला, हवा से हिलाई गई फूलों की पंक्ति (गुच्छे) मेरे लिए सुन्दर हो। आम की नई पंक्ति रुचिपूर्वक (मुझे) प्राप्त रहे।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
कुसुमावलिः = कुसुम + आवलिः
स्यान्मे = स्यात् + मे
रसालं मिलिता = रसालम् + मिलिता
सम् + गमनम् = संगमनम्

समासा-विग्रहा वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
हरितरुणाम् = हरितानाम् तरुणाम् – कर्मधारयः
ललितलतानाम् = ललिता लता, तासाम् – कर्मधारयः
कुसुमावलिः – कुसुमानाम् आवलिः – षष्ठी तत्पुरुषः
समीरचालिता = समीरेण चालिता – तृतीया तत्पुरुषः
नवमालिका = नवा मालिका – कर्मधारयः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
रमणीया = रम् + अनीयर् + टाप / रमणीय + टाप्
चालिता = चल् + णिच् + टाप / चालित + टाप्
वरणीया = वृञ् + अनीयर् + टाप / वरणीय + टाप्
मालिका = माला + टाप
मिलिता = मिल् + क्त् + टाप
संगमनम् = सम् + गम् + ल्युट्

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
वृक्षाणाम् = तरुणाम्
वायु = समीर
सुन्दरी = रमणीया
चयनीया = वरणीया
पुष्पपंक्तिः = कुसुमावलिः
आम्रम् = रसालम्
उत्तमम् = रुचिरम्

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
अवरणीया = वरणीया
अरुचिरम् = रुचिरम्
पुरातन = नव
शुष्क = हरित
ते = में

6. अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…॥6॥

शब्दार्थाः
अयि – अरे। नः – हमारे। बन्धो! – मित्र। खगकुलकलरव – पक्षियों के समूह की आवाज़ से। गुञ्जितवनदेशम् – गुंजायमान वन के स्थान को। पुर – कलरव-नगर की कोलाहल से। सम्भ्रमितजनेभ्यः – भ्रमित लोगों के लिए। धृतसुखसन्देशम् – धैर्य के सुख का सन्देश। चाकचिक्यजालम् – चकाचौंध के जाल को। चल – चलो। कुर्यात् – करे। जीवितरसहरणम् – जीवन के स का हरण।

हिंदी अनुवाद
मित्र (बन्धु/भाई)! पक्षियों के समूह की आवाज़ से गुंजायमान वन में चलो। नगर की आवाज़ (कोलाहल) से परेशान लोगों को धैर्य के सुख का सन्देश दो, नगरों की चकाचौंध भरी दुनिया कहीं हमारे जीवन के रस का हरण न कर ले। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
सम्भ्रमितजनेभ्यो = सम् + भ्रमितजनेभ्यः
नो कुर्याज्जीवित = नः + कुर्यात् + जीवित
चाकचिक्यजालम् + नो = चाकचिक्यजालं नो

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
खगकुलकलरव = खगानाम् कुलम् तेषां कलरव – षष्ठी तत्पुरुष
गुञ्जितवनदेशम् = गुञ्जितम् वनदेशम् – कर्मधारयः
वनदेशम् = वनस्य देशम् – षष्ठी तत्पुरुषः
पुर-कलरव = पुराणाम् / पुरस्य कलरव – षष्ठी तत्पुरुषः
सम्भ्रमित जनेभ्यः = सम्भ्रमितेभ्यः – कर्मधारयः
धृतसुखसन्देशम् = धैर्यस्यसुखम् तस्य सन्देशम् – षष्ठी तत्पुरुष
चाकचिक्यजालम् = चाकचिक्यस्य जालम् – षष्ठी तत्पुरुष
जीवितरसहरणम् = जीवितस्य रसम् तस्यहरण – षष्ठी तत्पुरुष

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृति + प्रत्ययः
गुञ्जितम् = गुञ् + क्त
धृत = धृत + क्त
सम्भ्रमित = सम् + भ्रम् + क्त
जीवित = जीव् + क्त

अव्यय-पद-चयनम् वाक्य-प्रयोगश्च
अव्ययाः = अर्थाः – वाक्येषु प्रयोगः
अयि! = अरे! – अयि भो! ग्राम प्रति चल।
नः = हमारे – ईश्वरः एव नः पिता वर्तते।

पर्यायपदानि
पदानि = पर्यायाः
मित्र! = बन्धो!
चाकचिक्यजालम् = जगमगवातावरणम्
पक्षी = खगः
जीवनं = जीवित
नगर-कोलाहल = पुर-कलरव

विपर्ययपदानि
पदानि = विपर्ययाः
तिष्ठ = चल
दुःखसन्देशम् = सुखसन्देशम्
शान्तम् = गुञ्जितम्
मरणरसहरणम् = जीवितरसहरणम्
ग्राम = पुर

7. प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…॥7॥

शब्दार्थाः
प्रस्तरतले – पत्थर के नीचे। लतातरुगुल्मा: – बेले, पेड़ और झाड़ियाँ। नो – नहीं। भवन्तु – हों। पिष्टा: – पिसी हुई। पाषाणीसभ्यता – पत्थरों वाली सभ्यता। निसर्गे – प्रकृति में / संसार में। स्यात् – हों। समाविष्टा – मिली (सम्मिलित)। कामये – कामना करता हूँ। जीवन्मरणम् – जीवन की समाप्ति।

हिंदी अनुवाद
पत्थर के तल (नीचे) पर लताएँ, पेड़ और झाड़ियाँ पिसें नहीं। प्राकृति में पथरीली सभ्यता समाविष्ट (सम्मिलित) न हो। मैं मनुष्य के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवित मृत्यु की नहीं। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

सन्धिः-विच्छेदो वा
पदानि = सन्धिं / सन्धिविच्छेद
लतातरुगुल्मा नो भवन्तु = तलातरुगुल्मा + न + भवन्तु
स्यात् + न = स्यान्न
नो जीवन्मरणम् = नः + जीवत् + मरणम्

समासो-विग्रहो वा
पदानि = समासः / विग्रहः – समासनामानि
प्रस्तरतल = प्रस्तरस्य तले – षष्ठी तत्पुरुषः
लतातरुगुल्माः = लताः च तरवाः च गुल्मा:च – इतरेतर द्वन्द्वः
पाषाणी सभ्यता = पाषाणसभ्यता – कर्मधारयः
मानवाय जीवनम् = मानवजीवनम् – चतुर्थी तत्पुरुषः
जीवन्मरणम् = जीवत:मरणम् – षष्ठी तत्पुरुषः

प्रकृति-प्रत्ययोः विभाजनम्
पदानि = प्रकृतिः (धातु) + प्रत्ययः
पिष्टाः = पिष् + क्त
पाषाणी = पाषाण + ङीप्
सभ्यता = सभ्य + तल्
समाविष्टा = सम् + आ + विश् + क्त + टाप्
मरणम् = मृ + ल्युट्

विपर्यायपदानि
पदानि = विपर्ययाः
असभ्यता = सभ्यता
जीवन् = मरणम्
नवीना (आधुनिकी) = पाषाणी
मरणम् = जीवनम्

पदानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि = अर्थः = वाक्येषु प्रयोगः
भवन्तु = हों = सर्वेजनाः मम मित्राणि भवन्तु।
नो = नहीं = तत्र अशान्तिः नो स्यात्।
निसर्गे = प्रकृति में = निसर्गे कुत्रापि कष्टं न भवेत्।
स्यात् = होवे = ईश्वरः सर्वेषां सहायकः स्यात्।
कामये = कामना करता हूँ = अहं परोपकारम् कामये।

CBSE Class 10 Sanskrit आदर्शप्रश्नपत्रम् Solved

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CBSE Class 10 Sanskrit आदर्शप्रश्नपत्रम् Solved

समयः होरात्रयम्
सम्पूर्णाङ्काः – 80

सामान्यनिर्देशाः

  • अस्मिन् प्रश्नपत्रे चत्वारः खण्डाः सन्ति।
  • प्रत्येकं खण्डम् अधिकृत्य एकस्मिन् स्थाने क्रमेण उत्तराणि लेखनीयानि।
  • सर्वेषां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतेन लेखनीयानि।
  • प्रश्नपत्रानुसारं प्रश्नसंख्या अवश्यमेव लेखनीया।

खण्ड – ‘क’
(अपठितः अनुच्छेदः – 10 अङ्काः)

प्रश्न 1.
अधोलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत्-

बाल्यावस्था जीवनस्य महत्वपूर्णः कालः भवति। अस्मिन् समये यदि वयं परिश्रमं कुर्मः तदा जीवन सुखमयं भवति। विद्यार्थी बाल्यकाले विद्याध्ययने प्रवृत्तः भवति चेत् तस्य परीक्षाफलं शोभनं भवति, विषयस्यापि ज्ञानं सरलतया भवति। सः स्वस्वप्नं पूरयितुं समर्थो भवति। एवमेव चरित्रनिर्माणे चापि बाल्यकालः महत्वपूर्ण स्थानम् आदधाति। बाल्यकाले यादृशाः संस्काराः लभ्यन्ते तादृशः एव आचारः व्यवहारः च आजीवनम् अस्माभिः सह तिष्ठतः। अत एव अस्माभिः बाल्यकाले अवधानपूर्वकं गुणाधानस्य प्रयास: कर्त्तव्यः। अस्मिन् समये अध्ययनप्राप्तये अपि सावधानमनसा प्रयत्नः करणीयः। शरीरस्वास्थ्यरक्षायै चापि बाल्यकालादेव पौष्टिकाहारः ग्रहीतव्यः व्यायामः चापि करणीयः।

(i) एकपदेन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयमेव) (1 × 2 = 2)
(क) बाल्यकाले अवधानपूर्वकं कस्य प्रयासः कर्त्तव्यः?
(ख) किमर्थं पौष्टिकाहारः ग्रहीतव्यः?
(ग) बाल्यकालः कस्मिन् महत्त्वपूर्ण स्थानम् आदधाति?
उत्तरम्:
(क) गुणाधानस्य
(ख) शरीरस्वास्थ्यरक्षायै
(ग) चरित्रनिर्माणे

(ii) पूर्णवाक्येन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयमेव) (2 × 2 = 4)
(क) जीवनं कदा सुखमयं भवति?
(ख) कौ अस्माभिः सह सदैव तिष्ठतः?
(ग) शरीरस्वास्थ्यरक्षायै किं कर्तव्यम्?
उत्तरम्:
(क) यदा बाल्यकाले वयं परिश्रमं कुर्मः तदा जीवनं सुखमयं भवति।
(ख) आचाराः व्यवहारः च अस्माभिः सह सदैव तिष्ठतः।
(ग) शरीरस्वास्थ्यरक्षायै चापि बाल्यकालादेव पौष्टिकाहारः ग्रहीतव्यः व्यायामः चापि करणीयः।

(iii) निर्देशानुसारम् उत्तरत (केवलं प्रश्नत्रयमेव) (1 × 3 = 3)
(क) ‘अनवधानमनसा’ इत्यस्य विलोमपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(i) ध्यानमनसा
(ii) सावधानमनसा
(ii) मनसा
(iv) सावधानेन
उत्तरम्:
(ii) सावधानमनसा

(ख) ‘महत्त्वपूर्णः कालः’ इत्यनयोः किं विशेषणपदम्?
(i) पूर्णः
(ii) महत्त्वम्
(iii) काल:
(iv) महत्त्वपूर्णः
उत्तरम्:
(iv) महत्त्वपूर्णः

(ग) ‘बाल्यावस्था जीवनस्य महत्त्वपूर्णः कालः भवति’ इति वाक्ये किं क्रियापदम्?
(i) कालः
(ii) भवति
(iii) जीवनस्य
(iv) बाल्यावस्था
उत्तरम्:
(ii) भवति

(घ) अनुच्छेदात् ‘समयः’ इति पदस्य पर्यायं चित्वा लिखत।
(i) आचारः
(ii) संस्काराः
(iii) प्रयत्नः
(iv) काल:
उत्तरम्:
(iv) कालः

(iv) प्रदत्तगद्यांशस्य कृते समुचितं शीर्षकं लिखत। (1 × 1 = 1)
उत्तरम्:
बाल्यावस्थायाः महत्त्वम्

खण्ड – ‘ख’
(रचनात्मक कार्यम् – 15 अङ्काः)

प्रश्न 2.
भवान् (अनिमेषः) शैक्षिकयात्रार्थं शिक्षकैः सह अरुणाचलप्रदेशं गन्तुमिच्छति। तदर्थम् अनुमति प्राप्तये यात्राव्ययार्थं च रूप्यकाणि लब्धं पितरं प्रति लिखितं पत्रमिदं मञ्जूषाप्रदत्तपदानां सहायतया पूरयत- (½ × 10 = 5)

मञ्जूषा – अनुमतिः, मातृचरणयोः, रूप्यकाणि, यात्राव्ययार्थम्, व्यस्तः, शैक्षिकयात्रार्थम्, छात्राः, कुशली, यथाशीघ्रम्, भवतः

छात्रावासतः
दिनाङ्कः _______

पूज्य पितृचरणाः
प्रणतयः।
अत्र अहं सकुशलः स्वाध्ययने (i) _______ अस्मि। आशासे भवान् अपि (ii) _______ अस्ति। मम विद्यालयात् दशमकक्षायाः अनेके (iii) _______ शिक्षकै सह (iv) _______ अरुणाचल-प्रदेश गन्तुम् इच्छन्ति। यदि भवतः (v) _______ यात्, अहमपि तैः सह गन्तुकामोऽस्मि। (vi) _______ सहस्ररूप्यकाणि अपि आवश्यकानि। (vii) _______ स्वमन्तव्यं सूचयतु। यदि (viii) _______ सम्मतिः अस्ति (ix) _______ अपि प्रेषयतु। (x) _______ मम प्रणतिः निवेदनीया।

भवतः पुत्रः
अनिमेषः

उत्तरम्:
(i) व्यस्तः
(ii) कुशली
(iii) छात्राः
(iv) शैक्षिकयात्रार्थम्
(v) अनुमतिः
(vi) यात्राव्ययार्थम्
(vii) यथाशीघ्रम्
(viii) भवतः
(ix) रूप्यकाणि
(x) मातृचरणयोः।

प्रश्न 3.
अधः प्रदत्तं चित्रं दृष्ट्वा तदाधारितानि पञ्चवाक्यानि लिखत- (5)
CBSE Class 10 Sanskrit आदर्शप्रश्नपत्रम् Solved Q3
अथवा
‘वर्धमानं प्रदूषणम्’ इति विषयमधिकृत्य मञ्जूषातः पदानि चित्वा पञ्चवाक्यात्मकम् अनुच्छेदं लिखत।

मञ्जूषा – वैश्विक-उष्णता, यानानां व्यवहारः, विषाक्तवायुः, अवकरक्षेपणम्, जलप्रदूषणम्, वायुप्रदूषणम्, ध्वनिप्रदूषणम्, कोलाहलः, शुचिपर्यावरणम्, मलिनम्, यन्त्रागारम्

उत्तरम्:
1. इदं चित्रं विजयदशमी पर्वणः अस्ति।
2. चित्रे श्रीरामः रावणं बाणेन हन्ति)
3. रावणः पापस्य प्रतीकः अस्ति।
4. सः रामस्य भार्या सीताम् अहरत्।
5. श्रीरामः तं हत्वा सीताम् अमोचयत्।
अथवा
1. वर्धमानं प्रदूषणं मानवजीवनस्य नाशकः अस्ति।
2. अनेन वैश्विक उष्णता विषाक्त वायुः प्रदूषणं च वर्धन्ते।
3. प्रदूषणं तु जलप्रदूषणं, वायु प्रदूषणं ध्वनिप्रदूषणं इति त्रिधा भवति।
4. नगराणां कोलाहलः विषाक्त वायुः चापि प्रदूषणं वर्धयतः।
5. अतः प्रदूषणस्य निवारणाय यन्त्रागारं दूरं निर्माय शुचिपर्यावरणं कर्तव्यम्।

प्रश्न 4.
अधोलिखित-वाक्यानां संस्कृतेन अनुवादं कुरुत (केवलं पञ्च एव)
(i) छात्र विद्यालय जाता है। A student goes to school.
(ii) मैं परिश्रम करता हूँ। I work hard.
(iii) तुम क्या करते हो? What do you do?
(iv) पिता के साथ पुत्र घूमता है। Son walk with his father.
(v) शिक्षक पाठ पढ़ाते हैं। Teacher teaches the lesson.
(vi) वे सब पढ़ने में कुशल बनें। They all are become pefect in reading.
उत्तरम्:
(i) छात्रः विद्यालयं गच्छति।
(ii) अहम् परिश्रमं करोमि।
(iii) त्वम् किं करोषि।
(iv) पित्रा सह पुत्रः भ्रमति।
(v) शिक्षकाः पाठं पाठयति।
(vi) ते पठने कुशलाः भवेयुः/भवन्तु।

खण्ड – ‘ग’
(अनुप्रयुक्त-व्याकरणम् – 25 अङ्काः)

प्रश्न 5.
अधोलिखित-वाक्येषु रोखाङ्कितपदानां सन्धि विच्छेदं वा कुरुत (केवलं चत्वारि एव) (1 × 4 = 4)

(i) पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिः तत् कृतज्ञता।
(ii) सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
(iii) विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।
(iv) स एवं वह्निः + दहते शरीरम्।
(v) ओम् जय जगत् + ईश हरे।
उत्तरम्:
(i) तपः + तेपे
(ii) फल + छायासमन्वितः
(iii) किञ्चित् + निरर्थकम्
(iv) वह्निर्दहते
(v) जगदीश

प्रश्न 6.
अधोलिखित-वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां समस्तपदं लिखत (केवलं चत्वारि एव) (1 × 4 = 4)

(i) यदि अहं कृष्णः वर्णः यस्य सः तर्हि श्रीरामस्य वर्णः कीदृशः?
(क) कृष्णवर्णा
(ख) कृष्णवर्णम्
(ग) कृष्णवर्णः
(घ) कृष्णवर्णाः
उत्तरम्:
(ग) कृष्णवर्णः

(ii) सर्वेषां महत्त्वं विद्यते समयम् अनतिक्रम्य।
(क) यथासमयम्
(ख) यथासमयः
(ग) यथासमय
(घ) यथासमयाय
उत्तरम्:
(क) यथासमयम्

(iii) मिलित्वा प्रकृतेः सौन्दर्यम् रक्षणीयम्।
(क) प्रकृति सौन्दर्य
(ख) प्रकृतिसौन्दर्यः
(ग) प्राकृति सौन्दर्यः
(घ) प्रकृतिसौन्दर्यम्
उत्तरम्:
(घ) प्रकृतिसौन्दर्यम्

(iv) माता च पिता च वन्दनीयौ।
(क) मातापितौ
(ख) पितरौ / मातापितरौ
(ग) पितौ
(घ) मातरौ
उत्तरम्:
(ख) पितरौ / मातापितरौ

(v) महात्मा सर्वत्र पूज्यते।
(क) महान् आत्मा यस्य सः
(ख) महान् आत्मा (ग) महान् आत्मा यस्यः सा
(घ) महान्तः आत्मायस्य सः
उत्तरम्:
(क) महान् आत्मा यस्य सः

प्रश्न 7.
अधोलिखित-वाक्येषु रेखाङ्कितपदेषु प्रकृतिप्रत्ययौ संयोज्य विभज्य वा रिक्तस्थानानि पूरयत (केवलं चत्वारि मव) (1 × 4 = 4)

(i) श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णु + तल् _______।
(क) सहिष्णुतल्
(ख) सहिष्णुता
(ग) सहिष्णुताम्
(घ) सहिष्णुतया
उत्तरम्:
(ख) सहिष्णुता

(ii) वैज्ञानिकाः ___________ कथयन्ति यत् पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(क) वैज्ञान + ठक्
(ख) विज्ञान + ठक्
(ग) विज्ञान + इक
(घ) विज्ञानी + अक्
उत्तरम्:
(ख) विज्ञान + ठक्

(iii) बुद्धि + मतुप ___________ सर्वत्र पूज्यते।
(क) बुद्धिमत्
(ख) बुद्धिमन्
(ग) बुद्धिवान्
(घ) बुद्धिमान्
उत्तरम्:
(घ) बुद्धिमान्

(iv) राजसिहंस्य पत्नी बुद्धिमती ___________ आसीत्।
(क) बुद्धिमत् + डीप्
(ख) बुद्धि + मती
(ग) बुद्धि + मतुप्
(घ) बुद्धि + मतु
उत्तरम्:
(क) बुद्धिमत् + ङीप्

(v) मानवत्वम् _____________ एव सर्वत्र पूज्यते।
(क) मानव + तव
(ख) मानव + त्वम्
(ग) मानव + त्व
(घ) मानव + त्वाम्
उत्तरम्:
(ग) मानव + त्व

प्रश्न 8.
प्रदत्तेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितं। विकल्पं चित्वा वाच्यानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत (केवलं त्रीणि एव) (1 × 3 = 3)

(i) _______ सत्यं कथ्यते। (त्वम् / त्वाम् / त्वया)
(ii) काकः पिकस्य _______ पालयति। (सन्तति: / सन्ततिम् / सन्तत्या)
(iii) पित्रा पुत्राय विद्याधनं _______। (ददाति / दीयते / यच्छति)
(iv) पुत्रः अपि तस्मै धन्यवादं _______। (कुर्वन्ति / करोति / करोषि)
उत्तरम्:
(i) त्वया
(ii) सन्ततिम्
(iii) दीयते
(iv) करोति

प्रश्न 9.
कोष्ठके प्रदत्त-समयवाचकान् अङ्कान् संस्कृतेन लिखत (केवलं चत्वारि एव) (1 × 4 = 4)

(i) बालकः _______ वादने उत्तिष्ठति। (6:00)
(ii) सः _______ वादने विद्यालयं गच्छति। (7:15)
(iii) _______ वादने विद्यालये अर्धावकाशः भवति। (11:30)
(iv) सः _______ वादने विद्यालयात् गृहम् गच्छति। (1:45)
(v) पुनः बालक: सायं _______ वादने पठनाय उपविशति (5:15)
उत्तरम्:
(i) षड्
(ii) सपादसप्त
(iii) सार्ध-एकादश
(iv) पादोन द्वि
(v) सपादपञ्च

प्रश्न 10.
मञ्जूषाप्रदत्त-अव्ययपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत- (½ × 6 = 3)

मञ्जूषा – यत्र, अद्य, सदा, यदि, तत्र, तर्हि

(i) ___________ परिश्रमं कुर्मः ___________ सफलाः भवामः।
(ii) ___________ समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
(iii) जीवनम् ___________ दुर्वहं जातमस्ति ।
(iv) ___________ हरीतिमा ___________ पर्यावरणं शुद्धम्।
उत्तरम्:
(i) यदि, तर्हि
(ii) सदा
(iii) अद्य
(iv) यत्र, तत्र

प्रश्न 11.
रेखाङ्कितपदं संशोध्य वाक्यानि लिखत (केवलं त्रीणि एव) (1 × 3 = 3)

(i) ते नार्यः गल्पं कुर्वन्ति।
(क) सा
(ख) तौ
(ग) ताः
(घ) सः
उत्तरम्:
ताः नार्यः गल्पं कुर्वन्ति।

(ii) अहं परिश्रमं करोति।
(क) सः
(ख) तौ
(ग) ते
(घ) त्वम्
उत्तरम्:
सः परिश्रमं करोति।

(iii) बालकः कार्यं कुर्वन्ति।
(क) बालकौ
(ख) बालकाः
(ग) बालिके
(घ) बालिका
उत्तरम्:
बालकाः कार्यं कुर्वन्ति।

(iv) त्रयः बालिकाः गीतं गायन्ति।
(क) त्रीणि
(ख) त्रि
(ग) तिस्रः
(घ) चतुरः
उत्तरम्:
तिस्रः बालिकाः गीतं गायन्ति।

खण्ड – ‘घ’
(पठित-अवबोधनम् – 30 अङ्काः)

प्रश्न 12.
अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत-

कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः। तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्। एकदा पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः, पुत्रं च द्रष्टुं प्रस्थितः। परमर्थकार्येन पीडितः सः बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।
(i) एकपदेन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयमेव) (½ × 2 = 2)
(क) निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किम् उपार्जितवान्?
(ख) अर्थकार्येन पीडितः सः केन प्राचलत्?
(ग) जनः कीदृशो आसीत्?
उत्तरम्:
(क) वित्तम्
(ख) पदातिः
(ग) निर्धनः

(ii) पूर्णवाक्येन उत्तरत (केवलं प्रश्नएकमेव) (1 × 1 = 1)
(क) निर्धनः जनः वित्तेन किं कृतवान्?
(ख) तस्य तनयः छात्रावासे कस्मिन् संलग्नः समभूत्?
उत्तरम्:
(क) निर्धनः जनः वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलः भूतवान्।
(ख) तस्य तनयः छात्रावासे अध्ययने संलग्नः समभूत्।

(iii) निर्देशानुसारम् उत्तरत (केवलं प्रश्नत्रयमेव) (1 × 3 = 3)
(क) ‘धनम्’ इत्यस्य समानार्थकपदं गद्यांशात् चित्वा लिखत।
(ख) ‘निर्धनः जनः’ इत्यनयोः किं विशेषणपदम्?
(ग) ‘परमर्थकार्येन पीडितः सः बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्’ इति वाक्ये ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
(घ) अनुच्छेदे ‘गृहीत्वा’ पदस्य कः विपर्ययः आगतः?
उत्तरम्:
(क) वित्तम्
(ख) निर्धनः
(ग) निर्धनजनाय / निर्धनपित्रे
(घ) विहाय

प्रश्न 13.
अधोलिखितं पद्याशं पठित्वा यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत-

उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः।।

(i) एकपदेन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयमेव) (½ × 2 = 1)
(क) केन उदीरितः अर्थः गृह्यते?
(ख) का: परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति?
(ग) अनुक्तम् अपि कीदृशः जनः ऊहति?
उत्तरम्:
(क) पशुना
(ख) बुद्धयः
(ग) पण्डितः

(ii) पूर्णवाक्येन उत्तरत (केवलं प्रश्नएकमेव) (1 × 1 = 1)
(क) पण्डितः जनः किम् ऊहति?
(ख) के बोधिताः बहन्ति?
उत्तरम्:
(क) पडितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति।
(ख) हयाः च नागाः च बोधिता: वहन्ति।

(iii) निर्देशानुसारम् उत्तरत (केवलं प्रश्नत्रयमेव) (1 × 3 = 3)
(क) ‘अश्वाः ‘ इति अर्थे पद्ये किं पदं प्रयुक्तम्?
(ख) ‘मूर्खः’ इत्यस्य विलोमपदं श्लोकात् चित्वा लिखत।
(ग) ‘हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः’ इति वाक्ये किं क्रियापदम्?
(घ) श्लोके ‘गृह्यते’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?
उत्तरम्:
(क) हयाः
(ख) पण्डितः
(ग) वहन्ति
(घ) पशुना

प्रश्न 14.
अधोलिखितं नाट्यांशं पठित्वा यथानिर्देशं प्रश्नान् उत्तरत-

चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः।
चन्दनदासः – आज्ञापयतु आर्यः, किं कियत् च अस्मज्जनादिष्यते इति।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! चन्द्रगुप्तराज्यमिदं न नन्दराज्यम्। नन्दस्यैव अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति। चन्द्रगुप्तस्य तु भवतामपरिक्लेश एव।
चन्दनदासः – (सहर्षम्) आर्य! अनुगृहीतोऽस्मि।
चाणक्यः – भो श्रेष्ठिन्! स चापरिक्लेशः कथमाविर्भवति इति ननु भवता प्रष्टव्याः स्मः।

(i) एकपदेन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयमेव) (½ × 2 = 1)
(क) प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः राजानः किम् इच्छन्ति?
(ख) कस्य अर्थसम्बन्धः प्रीतिमुत्पादयति?
(ग) कस्य इदं राज्यम् अस्ति?
उत्तरम्:
(क) प्रतिप्रियम्
(ख) नन्दस्य
(ग) चन्द्रगुप्तस्य

(ii) पूर्णवाक्येन उत्तरत (केवलं प्रश्नएकमेव) (1 × 1 = 1)
(क) चन्दनदासेन (भवता) किं प्रष्टव्यम्?
(ख) राजानः किम् इच्छन्ति?
उत्तरम्:
(क) चन्दनदासेन चाणक्यस्य आदेशः प्रष्टव्यः।
(ख) प्रीताभ्यः प्रकृतिभ्यः प्रतिप्रियमिच्छन्ति राजानः।

(iii) निर्देशानुसारम् उत्तरत (केवलं प्रश्नत्रयमेव) (1 × 3 = 3)
(क) ‘दुःखाभावः’ इति अर्थे नाट्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
(ख) ‘आर्य अनुगृहीतोऽस्मि’ अत्र ‘अस्मि’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदम् किम्?
(ग) ‘किं कियत् च अस्मज्जनादिष्यते’ इति वाक्ये किं क्रियापदम्?
(घ) नाट्यांशे ‘प्रेम’ इति पदस्य कः पर्यायः अस्ति?
उत्तरम्:
(क) अपरिक्लेशः
(ख) अहम्
(ग) आदिष्यते
(घ) प्रीतिम्

प्रश्न 15.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (केवलं प्रश्नचतुर्णामेव) (1 × 4 = 4)

(i) विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
(क) के
(ख) कः
(ग) कथम्
(घ) काः
उत्तरम्:
(क) के

(ii) समीपे एका नदी प्रवहति।
(क) कीदृशी
(ख) काः
(ग) का
(घ) कुत्र
उत्तरम्:
(ग) का

(iii) अतिदाक्षिण्येन अलम्।
(क) कथम्
(ख) केन
(ग) कः
(घ) कया
उत्तरम्:
(ख) केन

(iv) गहनकानने सा व्याघ्रं ददर्श।
(क) के
(ख) कस्मिन्
(ग) कदा
(घ) कुत्र
उत्तरम्:
(घ) कुत्र

(v) बुद्धिमती व्याघ्रभयात् मुक्ता जाता।
(क) का
(ख) काः
(ग) कीदृशी
(घ) के
उत्तरम्:
(ग) कीदृशी

प्रश्न 16.
अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वये रिक्तस्थानानि पूरयत- (½ × 8 = 4)

(i) त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।।

अन्वयः – यः ___________ वाचं त्यक्त्वा ___________ अभ्युदीरयेत् (स:) ___________ पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं ___________।

(ii) अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।।

अन्वयः – सर्वेषु च ___________ जननी ___________ भवति। परं माता दीने ___________ तु ___________ भवेत्।

अथवा

अधोलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थे रिक्तस्थानपूर्ति मञ्जूषाप्रदत्तपदानां सहायतया कुरुत- (1 × 4 = 4)

यः इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म सः परेभ्यः कदापि च।।

भावार्थ: – य: नरः आत्मनः ___________ इच्छति, तस्य ___________ अपि इच्छा अस्ति, सः ___________ कृते कदापि अकल्याणकर ___________ न कुर्यात् इति अवधातव्यम्।

मञ्जूषा – कार्यम् सुखप्राप्तेः कल्याणम्, अन्येषाम्

उत्तरम्:
(i) धर्मप्रदां, परुषाम्, विमूढधीः, भुङ्क्ते।
(ii) अपत्येषु, तुल्यवत्सला, पुत्रे, कृपार्द्रहृदया
अथवा
कल्याणम्, सुखप्राप्तेः, अन्येषाम्, कार्यम्

प्रश्न 17.
अधोलिखितवाक्यानि घटनाक्रमानुसारं लिखत- (½ × 8 = 4)

(i) बुद्धिमती व्याघ्रभयात् मुक्ता जाता।
(ii) ग्रामे राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(iii) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः सहसा पलायित:।
(iv) व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं गतवान्।
(v) तस्य भार्या पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(vi) जम्बुक: व्याघ्र पुनः तत्र गन्तुं प्रेरितवान्।
(vii) इयं व्याघ्रमारी इति विचिन्त्य भयेन व्याघ्रः पलायितः।
(viii) सा पुत्रौ उक्तवती-एकं व्याघ्रं विभज्य खादतम्।
उत्तरम्:
(i) ग्रामे राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ii) तस्य भार्या पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(iii) सा पुत्रौ उक्तवती-एकं व्याघ्रं विभज्य खादतम्।
(iv) इयं व्याघ्रमारी इति विचिन्त्य भयेन व्याघ्रः पलायितः।
(v) जम्बुक: व्याघ्रं पुनः तत्र गन्तुं प्रेरितवान्।
(vi) व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा काननं गतवान्।
(vii) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः सहसा पलायितः।
(viii) बुद्धिमती व्याघ्रभयात् मुक्ता जाता।

प्रश्न 18.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुसारं शुद्धम् उत्तरं विकल्पेभ्यः चित्वा लिखत (केवलं प्रश्नत्रयमेव) (1 × 3 = 3)

(i) अत्र जीवनं दुर्वहं जातम्।
सरलम् / कठिनम् / जटिलम्

(ii) संव्यवहाराणां वृद्धिलाभाः प्रचीयन्ते।
संस्काराणाम् / संलापानाम् / व्यापाराणाम्

(iii) तौयैः अल्पैः अपि तरोः पुष्टिः भवति।
जलै: / त्वग्भि / दुग्धैः।

(iv) अवक्रता यथा चित्रे भवेत्।
सरलता / कठोरता / मृदुता
उत्तरम्:
(i) कठिनम्
(ii) संस्काराणाम्
(iii) जलै:
(iv) सरलता

Class 10 Sanskrit Grammar Book Solutions अशुद्धि-संशोधनम्

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Sanskrit Vyakaran Class 10 Solutions अशुद्धि-संशोधनम्

अभ्यास:

प्रश्न 1.
एकः छात्रः अधोलिखितम् अनुच्छेद लिखितवान्। तत्र तेन काश्चन अशुद्धयः कृताः। भवान् तेषां संशोधनं कृत्वा तस्य सहायतां करोतु-

(i) एकः पथिकः ह्यः नगरम् गच्छति।
(ii) तत्र स: बहूनि भवनम् दृष्ट्वा चकितः जातः।
(iii) तस्य मित्रः अपि तत्र तेन सह गतवान्।
(iv) सः अवदत्-अहो विडम्बना! नगरेषु एकतः धनप्रदर्शनम् अपरतः नग्नाः दरिद्राः क्षुधया पीडिताः च स्थ।
उत्तराणि:
(i) अगच्छत्
(ii) भवनानि
(iii) मित्रम्
(iv) सन्ति।

प्रश्न 2.
अस्मिन अनुच्छेदे कानिचित् पदानि पुरुष-वचन-लिङ्ग-लकारदृष्ट्या अशुद्धानि सन्ति। शुद्धीकृत्य समक्षं लिखत-

(i) अहम् पत्रवाहकः अस्ति।
(ii) जनेभ्यः प्रतिदिनम् आगताः पत्राणि वितरामि।
(iii) ते पत्राणि प्राप्य न केवलं निजवृत्तानि अवागच्छत् अपितु साक्षात्कारपत्रम्, नियुक्तिपत्रं, परीक्षाफलम् अपि प्राप्नुवन्ति।
(iv) अहम् स्वकर्म सदा निष्ठया अकरोत्।
उत्तराणि:
(i) अस्मि
(ii) आगतानि
(iii) अवगच्छन्ति
(iv) करोमि।

प्रश्न 3.
एकः छात्रः विहारार्थं जन्त्वागारम् अगच्छत्। ततः आगत्य तस्य वर्णनम् अकरोत्। तत्र च तेन काशचन् अशुद्धयः कृताः। कृपया तासां संशोधनं करोतु-

(i) जन्त्वागारे बहवः सिंहः आसन्।
(ii) तत्र वानराः अपि वृक्षात् वृक्षं कूदते स्म।
(iii) एकः दुष्टः बालकः पाषाण-खण्डान् वानरान् अताडयत्।
(iv) तदैव तत्र रक्षकः आगत्य अवदत्-भौः एतेषु अपि प्राणाः सन्ति अतः एतान् मा ताडयत इति।
उत्तराणि:
(i) सिंहाः
(ii) कूर्दन्ते स्म
(iii) पाषाणखण्डै:
(iv) ताडय।

प्रश्न 4.
अस्मिन् अनुच्छेदे कानिचित् पदानि अशुद्धानि सन्ति तानि शुद्धीकृत्य लिखत-

(i) अहम् एकम् पञ्चाशत् वर्षीया महिला अस्मि।
(ii) अहं किञ्चित् किञ्चित् संस्कृतं अवगच्छति।
(iii) इदानीं यदा बालः अपि-
(iv) संस्कृतभाषा वदन्ति तदा अहम् अति प्रसन्ना भवामि।
उत्तराणि:
(i) एका
(ii) अवगच्छामि
(iii) बालाः
(iv) संस्कृतभाषाम्।

प्रश्न 5.
द्वयोः सख्योः वार्तालापमध्ये काश्चन अशुद्धयः सञ्जाताः। तासां संशोधनं कृत्वा लिखत-

राधिका – अयि लता! अद्य मम विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति।
अहम् स्वपितुः सह विद्यालयं गमिष्यामि।
लता – राधिके! किम् तत्र तव मित्राः अपि भविष्यन्ति।
राधिका – आम्र। तत्र अहं पुरस्कारम् अपि लप्स्यते।
लता – शोभनम्, प्रतीक्षस्व तावत्। सञ्जीभूय अहम् अपि आगच्छामि।
उत्तराणि:
(i) अयि लते!
(ii) स्वपित्रा
(iii) मित्राणि
(iv) लप्स्ये।

प्रश्न 6.
अधोलिखित वाक्येषु काश्चन अशुद्धयः रेखांकित कृत्वा तासां संशोधनं कृत्वा पुनः लिखत-

1. (i) जन्तुशालायाम् अनेकाः पशवः बसन्ति।
(ii) मृगानां सह मृगाः चरन्ति।
(iii) धूर्ताः बालकाः पाषाणखण्डान् वानरान् ताडयन्ति।
(iv) केचन बालकाः खगेभ्यः चणकान् यच्छति।
उत्तराणि:
(i) अनेके
(ii) मृगैः
(iii) पाषाणखण्डैः
(iv) यच्छन्ति।

2. (i) अद्य पर्यावरणदिवसः भविष्यति।
(ii) ‘वृक्षाः न छेत्स्यामः’ इति प्रतिज्ञा सर्वैः छात्रैः कृता।
(iii) प्लास्टिकस्यूतानाम् बहिष्कारार्थम् अपि सङ्कल्पः ते कृतः।
(iv) अवकरः जले न क्षेप्तव्यः इत्यपि घोषणां ते कृतवान।
उत्तराणि:
(i) अस्ति
(ii) वृक्षान्
(iii) तैः
(iv) कृतवन्तः।

3. (i) एषा मम विद्यालयः अस्ति।
(ii) इदम् विद्यालये पञ्चाशत् अध्यापकाः अध्यापिकाः च पाठयन्ति।
(iii) किम् त्वत् पार्वे संगणकयन्त्रम् अस्ति?
(iv) अद्यत्वे वयं सर्वाणि कार्याणि संगणकयन्त्रेण एव क्रियन्ते।
उत्तराणि:
(i) एषः
(ii) अस्मिन्
(ii) तव
(iv) कुर्मः।

4. (i) सा बालकः भोजनं खादति।
(ii) त्वया सह के गच्छति?
(iii) किं सा श्वः आगच्छत?
(iv) किं त्वम् अपि खादिष्यति?
उत्तराणि:
(i) सः बालकः भोजनं खादति।
(ii) त्वया सह के गच्छन्ति?
(iii) किं सा श्वः आगमिष्यति?
(iv) किं त्वम् अपि खादिष्यसि?

5. (i) सः बालिका अस्ति।
(ii) मया सह मम मित्रम् अपि गच्छन्ति।
(iii) किं त्वम् अपि पठिष्यति?
(iv) सः अपि खादिष्यसि।
उत्तराणि:
(i) सा बालिका अस्ति।
(ii) मया सह मम मित्राणि अपि गच्छन्ति।
(iii) किं त्वम् अपि पठिष्यसि?
(iv) सः अपि खादिष्यति।

6. (i) सः बालकः खादसि।
(ii) त्वं कुत्र गच्छामि।
(iii) किं सा ह्यः आगमिष्यति?
(iv) ताः अत्र फलं खादतः।
उत्तराणि:
(i) खादति
(ii) अहम्
(iii) श्वः
(iv) ते।

7. (i) सा बालकः फलं खादति।
(ii) मया सह ते अपि गच्छति।
(iii) किं सा ह्यः आगमिष्यति?
(iv) किम् अहम् अपि चलिष्यति?
उत्तराणि:
(i) सः बालकः फलं खादति।
(ii) मया सह ते अपि गच्छन्ति।
(iii) किं सा ह्यः आगच्छत्?
(iv) किम् अहम् अपि चलिष्यामि?

8. (i) सः रमा अस्ति।
(ii) त्वया सह तव पिता अपि गच्छन्ति।
(iii) किं त्वं तत्र श्वः गच्छति?
(iv) सः अपि जलं पास्यसि।
उत्तराणि:
(i) सा रमा अस्ति।
(ii) त्वया सह तव पिता अपि गच्छति।
(iii) किं त्वं तत्र श्व: गमिष्यसि?
(iv) सः अपि जलं पास्यति।

प्रश्न 7.
छात्राः कुतुबमीनारं द्रष्टुम् अगच्छन्। एकः छात्रः तस्य वर्णनम् अकरोत्। वर्णने तेन अनेकाः अशुद्धयः कृताः याः रेखाङ्किताः तासां संशोधनं कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत-

(i) कुतुबमीनारे वयं बहून् जनाः अपश्याम।
(ii) तेषु अनेकाः उपरि गच्छन्ति स्म।
(iii) वयम् एकस्य छायायुक्त-वृक्षस्य अधः भोजनं अकुर्वन्।
(iv) माम् कुतुबमीनारः अतीव अरोचत।
उत्तराणि:
(i) कुतुबमीनारे वयं बहून् जनान् अपश्याम।
(ii) तेषु अनेके उपरि गच्छन्ति स्म।
(iii) वयम् एकस्य छायायुक्त-वृक्षस्य अधः भोजनं अकरवाम।
(iv) मह्यम् कुतुबमीनारः अतीव अरोचत।

प्रश्न 8.
अधोदत्तेषु वाक्येषु कानिचित् पदानि रेखाङ्कितानि, तानि पुरुष-वचन-लिङ्ग-लकारदृष्ट्या अशुद्धानि सन्ति। तानि शुद्धीकृत्य पूर्णं वाक्यम् उत्तरपुस्तिकायां लिखत-

(i) अहं पत्रवाहकः अस्ति।
(ii) जनेभ्यः प्रतिदिनम् आगताः पत्राणि वितरामि।
(iii) ते पत्रेषु साक्षात्कारपत्रः, परीक्षाफलं, नियुक्तिपत्रम् अपि आप्नुवन्ति।
(iv) अहं स्वकर्म सदा निष्ठया करोमि।
उत्तराणि:
(i) अहं पत्रवाहकः अस्मि।
(ii) जनेभ्यः प्रतिदिनम् आगतानि पत्राणि वितरामि।
(iii) ते पत्रेषु साक्षात्कारपत्रम्, परीक्षाफलं, नियुक्तिपत्रम् अपि आप्नुवन्ति।
(iv) अहं स्वकर्म सदा निष्ठया करोमि।

प्रश्न 9.
रेखाङ्किपदानां संशोधनं कृत्वां वाक्यानि पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत-

(i) ते बालिकाः गृहस्य बहिः क्रीडन्ति।
(ii) माता बालिकेभ्यः क्रुध्यन्ति।
उत्तराणि:
(i) ताः बालिकाः गृहात् बहिः क्रीडन्ति।
(ii) माता बालिकाभ्यः क्रुध्यति।

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

1. प्रदत्तेषु उत्तरेषु यत् उत्तरम् शुद्धम् अस्ति तत् चीयताम्।

(दिए गए उत्तरों में से जो उत्तर शुद्ध है उसे चुनिए। Choose the appropriate answer from the options given below.)

प्रश्न 1.
शुद्धम् पवनः वहति।
(क) शुद्धा
(ख) शुद्धः
(ग) शुद्ध
(घ) शुद्धम्
उत्तराणि:
(ख) शुद्धः

प्रश्न 2.
त्वम् मम मित्रः अस्ति।
(क) मित्रम्
(ख) मित्रे
(ग) मित्राणि
(घ) मित्रेण
उत्तराणि:
(क) मित्रम्

प्रश्न 3.
छात्राः विद्यालयं गच्छति।
(क) गच्छति
(ख) गच्छतः
(ग) गच्छसि
(घ) गच्छन्ति
उत्तराणि:
(घ) गच्छन्ति

प्रश्न 4.
त्वम् पुस्तकं पठामि।
(क) पठति
(ख) पठसि
(ग) पठावः
(घ) पठथः
उत्तराणि:
(ख) पठसि

प्रश्न 5.
गुरवः छात्रेभ्यः विद्यां ददाति।
(क) गुरुः
(ख) गुरुम्
(ग) गुरुणा
(घ) गुरु
उत्तराणि:
(क) गुरुः

प्रश्न 6.
इमे छात्रौ पठतः।
(क) इमाः
(ख) इमानि
(ग) इमौ
(घ) इमम्
उत्तराणि:
(ग) इमौ

प्रश्न 7.
अस्य बालिकायाः गृहं कुत्रास्ति?
(क) अनेन
(ख) अस्याः
(ग) अस्यै
(घ) अस्याम्
उत्तराणि:
(ख) अस्याः

प्रश्न 8.
धर्म: आचरणीयम्।
(क) आचरणीयः
(ख) आचरणीया
(ग) आचरणीयौ
(घ) आचरणीये
उत्तराणि:
(क) आचरणीयः

प्रश्न 9.
वृक्षः परोपकाराय फलन्ति।
(क) वृक्षान्
(ख) वृक्षम्
(ग) वृक्षौ
(घ) वृक्षाः
उत्तराणि:
(घ) वृक्षाः

प्रश्न 10.
अहं पुस्तकं पठति।
(क) पठसि
(ख) पठावः
(ग) पठामि
(घ) पठथः
उत्तराणि:
(ग) पठामि

प्रश्न 11.
ते बालकाः पुस्तकं पठतः।
(क) पठथः
(ख) पठावः
(ग) पठन्ति
(घ) पठामः
उत्तराणि:
(ग) पठन्ति

प्रश्न 12.
यः सत्यं भाषते सः सुखं लभति।
(क) लभसि
(ख) लभते
(ग) लप्स्यते
(घ) लभ्यते
उत्तराणि:
(ख) लभते

प्रश्न 13.
वृक्षे चत्वारि खगाः सन्ति।
(क) चतुरः
(ख) चत्वारि
(ग) चत्वारः
(घ) चतस्रः
उत्तराणि:
(ग) चत्वारः

प्रश्न 14.
रामः विद्यालयं गच्छसि।
(क) गच्छति
(ख) गच्छामि
(ग) गच्छानि
(घ) गच्छथः
उत्तराणि:
(क) गच्छति

प्रश्न 15.
अहम् शास्त्रं पठामः।
(क) पठसि
(ख) पठामि
(ग) पठति
(घ) पठावः
उत्तराणि:
(ख) पठामि

प्रश्न 16.
सत्यः कथयितव्यम्।
(क) सत्येन
(ख) सत्यम्
(ग) सत्यम्
(घ) सत्याय
उत्तराणि:
(ग) सत्यम्

प्रश्न 17.
धर्माचरणेन सुखं लभति।
(क) लभसि
(ख) लभते
(ग) लभ्यते
(घ) लभसे
उत्तराणि:
(ख) लभते

प्रश्न 18.
उद्याने सुन्दराः पुष्पाणि सन्ति।
(क) सुन्दरम्
(ख) सुन्दरः
(ग) सुन्दराणि
(घ) सुन्दरे
उत्तराणि:
(ग) सुन्दराणि

प्रश्न 19.
धनं सुखाय भवथः।
(क) भूयते
(ख) भवति
(ग) भवसि
(घ) भवतः
उत्तराणि:
(ख) भवति

प्रश्न 20.
रामः मम मित्रः अस्ति।
(क) मित्रे
(ख) मित्रा
(ग) मित्रम्
(घ) मित्रौ
उत्तराणि:
(ग) मित्रम्

प्रश्न 21.
क्रोधः न कर्तव्यम्।
(क) कर्तव्यः
(ख) कर्तव्या
(ग) कर्तव्ये
(घ) कर्तव्याः
उत्तराणि:
(क) कर्तव्यः

प्रश्न 22.
इदानीं त्वं किं कुर्वन्ति?
(क) करोमि
(ख) कुर्मः
(ग) करोषि
(घ) कुरुथः
उत्तराणि:
(ग) करोषि

प्रश्न 23.
सः अपि जलं पास्यसि।
(क) पास्यति
(ख) पास्यतः
(ग) पास्यथः
(घ) पास्यन्ति
उत्तराणि:
(क) पास्यति

प्रश्न 24.
कुतुबमीनारे वयं बहून् जनाः अपश्याम।
(क) जनान्
(ख) जनैः
(ग) जनः
(घ) जनम्
उत्तराणि:
(क) जनान्

प्रश्न 25.
तेषु अनेकाः उपरि गच्छन्ति स्म।
(क) अनेकान्
(ख) अनेके
(ग) अनेकः
(घ) अनेकेन
उत्तराणि:
(ख) अनेके

प्रश्न 26.
वयम् एकस्य छायायुक्त-वृक्षस्य अधः भोजनं अकुर्वन्।
(क) अकरवम्
(ख) अकरवाव
(ग) अकरवाम
(घ) अकरोः
उत्तराणि:
(ग) अकरवाम

प्रश्न 27.
माम् कुतुबमीनारः अतीव अरोचत।
(क) मम
(ख) मत्
(ग) मया
(घ) मह्यम्।
उत्तराणि:
(घ) मह्यम्।

प्रश्न 28.
अहं पत्रवाहकः अस्ति।
(क) असि
(ख) अस्मि
(ग) स्थ
(घ) स्तः
उत्तराणि:
(ख) अस्मि

प्रश्न 29.
जनेभ्यः प्रतिदिनम् आगताः पत्राणि वितरामि।
(क) आगतानि
(ख) आगतान्
(ग) आगतेभ्यः
(घ) आगतैः
उत्तराणि:
(क) आगतानि

प्रश्न 30.
ते पत्रेषु साक्षात्कारपत्रः, परीक्षाफलं, नियुक्तिपत्रम् अपि आप्नुवन्ति।
(क) साक्षात्कारपत्रम्
(ख) साक्षात्कारपत्राणि
(ग) साक्षात्कारपत्रैः
(घ) साक्षात्कारपत्रे
उत्तराणि:
(क) साक्षात्कारपत्रम्

प्रश्न 31.
अहं स्वकर्मं सदा निष्ठया करोमि।
(क) स्वकर्मः
(ख) स्वकर्मान्
(ग) स्वकर्मणा
(घ) स्वकर्म
उत्तराणि:
(घ) स्वकर्म

प्रश्न 32.
येन जनाः शिक्षितः भवेयुः।
(क) शिक्षितम्
(ख) शिक्षितान्
(ग) शिक्षिताः
(घ) शिक्षितेन
उत्तराणि:
(ग) शिक्षिताः

प्रश्न 33.
एकस्मिन् ग्रामे द्वे मित्रौ आस्ताम्-रामः च श्यामः च।
(क) मित्रम्
(ख) मित्राणि
(ग) मित्रेण
(घ) मित्रे
उत्तराणि:
(घ) मित्रे

प्रश्न 34.
तयोः रामः बहूनां दीनानां सहायतां कुर्वन्ति स्म।
(क) करोति
(ख) कुरुतः
(ग) करोषि
(घ) करोमि
उत्तराणि:
(क) करोति

प्रश्न 35.
श्यामः च तस्य सह सहयोगं करोति स्म।
(क) तयोः
(ख) तेन
(ग) तस्मै
(घ) तम्
उत्तराणि:
(ख) तेन

प्रश्न 36.
तयोः अपूर्वं मैत्रीं दृष्ट्वा जनाः कथयन्ति स्म-अहो धन्यौ एतौ सुहृदौ।
(क) अपूर्वा
(ख) अपूर्वां
(ग) अपूर्वी
(घ) अपूर्वः
उत्तराणि:
(ख) अपूर्वां

प्रश्न 37.
वयं नित्यम् अग्रजानां चरणौ स्पृशन्ति,
(क) स्पृशति
(ख) स्पृशामि
(ग) स्पृशामः
(घ) स्पृशावः
उत्तराणि:
(ग) स्पृशामः

प्रश्न 38.
तेषाम् आशीर्वादाः अस्मान् रक्षति।
(क) आशीर्वादम्
(ख) आशीर्वादान्
(ग) आशीर्वादौ
(घ) आशीर्वादः
उत्तराणि:
(घ) आशीर्वादः

प्रश्न 39.
ये शिष्यौ गुरुजनानां चरणौ स्पृशन्ति,
(क) शिष्यः
(ख) शिष्याः
(ग) शिष्यान्
(घ) शिष्यौ
उत्तराणि:
(ख) शिष्याः

प्रश्न 40.
तेषाम् आयुः वर्धन्ते।
(क) वर्धते
(ख) वर्धेते
(ग) वर्धे
(घ) वर्धसे
उत्तराणि:
(क) वर्धते

प्रश्न 41.
अहं प्रतिदिनं मातापितरौ प्रणमति।
(क) प्रणमतः
(ख) प्रणमन्ति
(ग) प्रणमामि
(घ) प्रणमामः
उत्तराणि:
(ग) प्रणमामि

प्रश्न 42.
तौ च माम् आशीर्वादं यच्छतः।
(क) मह्यम्
(ख) मत्
(ग) मम
(घ) मयि
उत्तराणि:
(क) मह्यम्

प्रश्न 43.
भवान् सुखी भवन्तु।
(क) भव
(ख) भवत
(ग) भवतु
(घ) भवन्तु
उत्तराणि:
(ग) भवतु

प्रश्न 44.
सर्वेषां दीनजनस्य सेवां करोतु इति।
(क) दीनजनानाम्
(ख) दीनजनान्
(ग) दीनजनयोः
(घ) दीनजनेभ्यः
उत्तराणि:
(क) दीनजनानाम्

प्रश्न 45.
रात्रौ सर्वे निद्रामग्नाः आसीत्।
(क) आस्ताम्
(ख) आस्त
(ग) आसी:
(घ) आसन्
उत्तराणि:
(घ) आसन्

प्रश्न 46.
एकं शब्दः श्रुतः ढमढम् इति। कश्चित् चौरः भवेत् इति।
(क) एकः
(ख) एकाम्
(ग) एका
(घ) एकया
उत्तराणि:
(क) एकः

प्रश्न 47.
वयं भीतः परन्तु वस्तुतः पाकशालायाम्।
(क) भीतम्
(ख) भीताम्
(ग) भीता
(घ) भीताः
उत्तराणि:
(घ) भीताः

प्रश्न 48.
एकः बिडाली पात्रम् अपातयत्।
(क) एका
(ख) एकाम्
(ग) एकम्
(घ) एक
उत्तराणि:
(क) एका

प्रश्न 49.
वयं प्रतिदिनं भ्रमणाय गच्छन्ति।
(क) गच्छावः
(ख) गच्छामः
(ग) गच्छथ
(घ) गच्छथः
उत्तराणि:
(ख) गच्छामः

प्रश्न 50.
उद्याने अनेकाः जनाः व्यायाम कुर्वन्ति।
(क) अनेकं
(ख) अनेकः
(ग) अनेके
(घ) अनेकान्
उत्तराणि:
(ग) अनेके

प्रश्न 51.
वयं च द्रष्टारः भविष्यामि।
(क) भविष्याव:
(ख) भविष्यामः
(ग) भविष्यन्ति
(घ) भविष्यति
उत्तराणि:
(ख) भविष्यामः

प्रश्न 52.
वृक्षे चतस्त्रः फलानि सन्ति।
(क) चत्वारि
(ख) चत्वारः
(ग) चतुरः
(घ) चतुर्णाम्
उत्तराणि:
(क) चत्वारि

प्रश्न 53.
द्वे बालकौ पठतः।
(क) द्वा
(ख) द्वि
(ग) द्वौ
(घ) द्वयोः
उत्तराणि:
(ग) द्वौ

प्रश्न 54.
वयं श्वः प्रदर्शनी गच्छामः।
(क) गमिष्यावः
(ख) गमिष्यथ:
(ग) गमिष्यामः
(घ) गमिष्यन्ति
उत्तराणि:
(ग) गमिष्यामः

प्रश्न 55.
यूयं तस्मै फलानि यच्छिष्यथ।
(क) दास्यथ
(ख) दास्यथः
(ग) दास्यसि
(घ) दास्यन्ति
उत्तराणि:
(क) दास्यथ

प्रश्न 56.
सा कन्या आयुष्मान् भवतु।
(क) आयुष्मत्
(ख) आयुष्मन्
(ग) आयुष्मती
(घ) आयुष्मतः
उत्तराणि:
(ग) आयुष्मती

2. विकल्पेभ्यः शुद्धम् उत्तरं चित्त्वा रिक्तस्थानानि सम्पूरयत।

(विकल्पों से शुद्ध उत्तर चुनकर खाली स्थान भरें। Fill in the blank by correct words who given below.)

प्रश्न 1.
तस्य _____________ अपि तत्र तेन सह गतवान्। सः अवदत्-
(क) मित्राणि
(ख) मित्रम्
(ग) मित्रे
(घ) मित्रेण
उत्तराणि:
(ख) मित्रम्

प्रश्न 2.
अहो विडम्बना! नगरेषु एकतः धनप्रदर्शनम् अपरतः नग्नाः दरिद्राः क्षुधया पीडिताः च _____________।
(क) स्थः
(ख) अस्मि
(ग) सन्ति
(घ) स्मः
उत्तराणि:
(ग) सन्ति

प्रश्न 3.
अहम् एकः पत्रवाहकः _____________।
(क) अस्मि
(ख) असि
(ग) सन्ति
(घ) स्मः
उत्तराणि:
(क) अस्मि

प्रश्न 4.
जनेभ्यः प्रतिदिनम् _____________ पत्राणि वितरामि।
(क) आगतान्
(ख) आगता
(ग) आगतानि
(घ) आगताः
उत्तराणि:
(ग) आगतानि

प्रश्न 5.
जन्त्वागारे बहवः _____________ आसन्।
(क) सिंहः
(ख) सिंहम्
(ग) सिंहाः
(घ) सिंहान्
उत्तराणि:
(ग) सिंहाः

प्रश्न 6.
तत्र _____________ अपि वृक्षात् वृक्षं कूर्दन्ते स्म।
(क) वानरं
(ख) वानरान्
(ग) वानरैः
(घ) वानराः
उत्तराणि:
(घ) वानराः

प्रश्न 7.
एकः दुष्ट: बालकः _____________ वानरान् अताडयत्।
(क) पाषाण-खण्डैः
(ख) पाषाण-खण्डेभ्यः
(ग) पाषाण-खण्डाः
(घ) पाषाण-खण्डः
उत्तराणि:
(क) पाषाण-खण्डैः

प्रश्न 8.
तदैव तत्र रक्षकः आगत्य अवदत्-भोः एतेषु अपि प्राणाः सन्ति अतः त्वम् एतान् मा _____________ इति।
(क) ताडय
(ख) ताडयत
(ग) ताडयतु
(घ) ताडयानि
उत्तराणि:
(क) ताडय

प्रश्न 9.
अहम् _____________ पञ्चाशत् वर्षीया महिला अस्मि।
(क) एकम्
(ख) एकाम्
(ग) एकः
(घ) एका
उत्तराणि:
(घ) एका

प्रश्न 10.
अहं किञ्चित् संस्कृतम् _____________।
(क) अवगच्छामि
(ख) अवगच्छति
(ग) अवगच्छसि
(घ) अवगच्छन्ति
उत्तराणि:
(क) अवगच्छामि

प्रश्न 11.
इदानीं यदा _____________ अपि संस्कृतभाषां वदन्ति।
(क) बालः
(ख) बालम्
(ग) बालाः
(घ) बालैः
उत्तराणि:
(ग) बालाः

प्रश्न 12.
तदा अहम् अति _____________ भवामि।
(क) प्रसन्नः
(ख) प्रसन्ना
(ग) प्रसन्न
(घ) प्रसन्नाः
उत्तराणि:
(क) प्रसन्नः

प्रश्न 13.
राधिका-अयि _____________ ‘अद्य मम विद्यालये वार्षिकोत्सवः अस्ति।
(क) लताः!
(ख) लते!
(ग) लताम्!
(घ) लता!
उत्तराणि:
(ख) लते!

प्रश्न 14.
अतः अहम् _____________ सह विद्यालयं गमिष्यामि।
(क) स्वपितुः
(ख) स्वपित्रा
(ग) स्वपितः
(घ) स्वपिता
उत्तराणि:
(ख) स्वपित्रा

प्रश्न 15.
लता-राधिके! किम् तत्र तव _____________ अपि भविष्यन्ति?
(क) मित्रम्
(ख) मित्राः
(ग) मित्राणि
(घ) मित्रैः
उत्तराणि:
(ग) मित्राणि

प्रश्न 16.
राधिका-आम्। तत्र अहं पुरस्कारम् अपि _____________।
(क) लप्स्य ते
(ख) लप्स्यन्ते
(ग) लप्स्य ते
(घ) लप्स्ये
उत्तराणि:
(घ) लप्स्ये

प्रश्न 17.
‘अवकरः जले न क्षेप्तव्यः’ इत्यादि घोषणां ते _____________।
(क) कृतवान्
(ख) कृतवत्
(ग) कृतवती
(घ) कृतवन्तः
उत्तराणि:
(घ) कृतवन्तः

प्रश्न 18.
_____________ मम विद्यालयः अस्ति।
(क) एषा
(ख) एतत्
(ग) एषः
(घ) एते
उत्तराणि:
(ग) एषः

प्रश्न 19.
_____________ विद्यालये पञ्चाशत् अध्यापका: अध्यापिका: च पाठयन्ति।
(क) अयम्
(ख) अस्मिन्
(ग) अस्य
(घ) अस्मात्
उत्तराणि:
(ख) अस्मिन्

प्रश्न 20.
किम् _____________ पार्श्वे संगणकयन्त्रम् अस्ति?
(क) त्वत्
(ख) त्वम्
(ग) तव
(घ) त्वाम्
उत्तराणि:
(ग) तव

प्रश्न 21.
अद्यत्वे वयं सर्वाणि कार्याणि संगणकयन्त्रेण एव _____________।
(क) क्रियन्ते
(ख) कुर्मः
(ग) कुर्वन्ति
(घ) कुरुथ
उत्तराणि:
(ख) कुर्मः

प्रश्न 22.
_____________ बालक: भोजनं खादति।
(क) तत्
(ख) सः
(ग) सा
(घ) तेन
उत्तराणि:
(ख) सः

प्रश्न 23.
त्वया सह के _____________?
(क) गच्छन्ति
(ख) गच्छामः
(ग) गच्छति
(घ) गच्छतः
उत्तराणि:
(क) गच्छन्ति

प्रश्न 24.
_____________ एका योग्या बालिका अस्ति।
(क) तत्
(ख) तेन
(ग) सः
(घ) सा
उत्तराणि:
(घ) सा

प्रश्न 25.
मया सह मम _____________ अपि गच्छन्ति।
(क) मित्राणि
(ख) मित्रम्
(ग) मित्रेण
(घ) मित्रे
उत्तराणि:
(क) मित्राणि

प्रश्न 26.
किं त्वम् अपि _____________?
(क) पठिष्यसि
(ख) पठिष्यति
(ग) पठिष्यथ
(घ) पठिष्यथः
उत्तराणि:
(क) पठिष्यसि

प्रश्न 27.
सः अपि फलानि _____________।
(क) खादिष्यसि
(ख) खादिष्यति।
(ग) खादिष्यामि
(घ) खादिष्यामः
उत्तराणि:
(ख) खादिष्यति।