NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 पद

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है?
उत्तर:
पहले पद से पता चलता है कि कवयित्री मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त हैं। वे अपनी पीड़ा निवारण के लिए श्रीकृष्ण को उनकी क्षमताओं का गुणगान कराते हुए स्मरण कराती हैं। वे श्रीकृष्ण को उसी तरह अपनी मदद करने की विनती करती हैं जैसे श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की चीर बढ़ाकर उनकी मदद की थी; नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मारकर प्रहलाद की मदद की थी और मगरमच्छ को मारकर डूबते गजराज को पीड़ा से मुक्ति दिलाई थी।

प्रश्न 2.
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी अर्थात् नौकरी इसलिए करना चाहती हैं, क्योंकि वे उनकी अनन्य भक्त हैं। तथा उनमें उनका एकनिष्ठ विश्वास है। वे अपनी प्रेम-भक्ति की अभिव्यक्ति करने के लिए उनके लिए बाग लगवाकर प्रतिदिन सवेरे उठकर उनके दर्शन करना चाहती हैं और वृंदावन की कुंज गलियों में घूम-घूमकर उनकी लीलाओं का गान करना चाहती हैं, जिससे उनके तीनों भाव-भक्ति, दर्शन तथा स्मरण की पूर्ति हो सके।

प्रश्न 3.
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर:
कवयित्री मीराबाई को अपने आराध्य श्रीकृष्ण का रूप-सौंदर्य अत्यंत प्रिय लगता है। वे इस रूप-सौंदर्य को निहारते रहना चाहती हैं। उनके आराध्य श्रीकृष्ण के माथे पर मोर के पंखों का मुकुट है। उनके गले में वैजयंती के फूलों की माला सुंदर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र सुशोभित हो रहा है। वे मधुर स्वर में मुरली बजाते हुए वृंदावन में गाएँ चरा रहे हैं।

प्रश्न 4.
मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मीरा बाई की भाषा शैली की विशेषता है कि इसमें राजस्थानी, ब्रज और गुजराती तीनों भाषाओं का मिश्रण पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पंजाबी, खड़ी बोली और पूर्वी हिंदी का प्रयोग भी किया गया है। मीराबाई की भाषा में प्रवाहात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। उनकी भाषा भाव अनुकूल एवं विषय अनुरूप शब्द योजना द्रष्टव्य है। इसके अतिरिक्त उनकी भाषा में अनेक अलंकारों का सफल व स्वभाविक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 5.
वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं?
उत्तर:
कवयित्री मीरा अपने कृष्ण को पाने के लिए-

  • उनकी चाकरी करना चाहती हैं।
  • उनके बार-बार दर्शन करना चाहती हैं। इसके लिए वे विशाल भवन में बाग लगाना चाहती हैं।
  • वे वृंदावन की गलियों में घूम-घूमकर कृष्ण के गुणगान करना चाहती हैं।
  • वे कुसुंबी साड़ी पहनकर अर्धरात्रि में यमुना किनारे श्रीकृष्ण से मिलना चाहती हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
हरि आप हरो जन री भीर। द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धयो आप सरीर ।
उत्तर:
भाव सौंदर्य – इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा दूर करने का अनुरोध किया है। ऐसा करते हुए उनकी परोपकार भावना उभरकर सामने आ जाती है। वे ‘जन की भीर’ हरने की पहले प्रार्थना करती हैं। इसके लिए वे द्रौपदी और भक्त प्रहलाद की उस मदद को दृष्टांत रूप में प्रस्तुत करती हैं ताकि कृष्ण इसे याद कर उनकी प्रार्थना अवश्य सुनें।
शिल्प सौंदर्य –
भाषा – मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग है जिसमें गुजराती और राजस्थानी शब्दों का प्रयोग है।
रस – शांत एवं भक्ति की प्रधानता है।
छंद – पद छंद का प्रयोग।
अलंकार – हरि आप हरो जन री भीर।
अन्य – गेयता एवं लयात्मकता।

प्रश्न 2.
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य – इन काव्य-पंक्तियों में मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी बताकर ऐरावत हाथी के बचाए जाने का दृष्टांत
देकर अपनी पीड़ा को दूर करने की प्रार्थना करती हैं।
शिल्प-सौंदर्य-

  1. राजस्थानी, ब्रज और गुजराती मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ है।
  2. ‘काटी कुण्जर तथा ‘गिरधर हरो म्हारी भीर’ में ‘र’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।
  3. रस – दास्यभक्ति।
  4. सरल, सहज व प्रवाहमयी भाषा है और शैली तुकांत है।

प्रश्न 3.
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनू बाताँ सरसी।
उत्तर:
भाव सौंदर्य- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मीरा की अपने आराध्य के प्रति दास्य भक्ति प्रकट हुई है। वे अपने प्रभु के दर्शन एवं सामीप्य; पाने के साथ ही अपनी इच्छा पूरी करना चाहती हैं। वे अपनी चाकरी के माध्यम से दर्शन पाना चाहती है, सुमिरन के माध्यम से जेब खर्ची और भक्ति भावरूपी जागीर प्राप्त करना चाहती हैं।
शिल्प सौंदर्य –
भाषा – मधुर ब्रजभाषा का प्रयोग है जिसमें राजस्थानी शब्दों की बहुलता है।
अलंकार – भाव भगती’ में अनुप्रास तथा ‘सुमरण पास्यूँ खरची’ और ‘भाव भगती जागीरी’ में रूपक अलंकार है।
रस – भक्ति एवं शांत रस की प्रगाढ़ता।
छंद – पद छंद का प्रयोग।
अन्य – लयात्मकता एवं संगीतात्मकता।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए
उदाहरण : भीर-पीड़ा/कष्ट/दुख; री-की

  1. चीर,
  2. धरयो,
  3. कुण्जर,
  4. बिन्दरावन,
  5. रहस्यूँ,
  6. राखो,
  7. बूढ़ता,
  8. लगास्यूँ,
  9. घणा,
  10. सरसी,
  11. हिवड़ा,
  12. कुसुम्बी।

उत्तर:
प्रचलित रूप –

  1. चीर-वस्त्र,
  2. धरयो-धारण,
  3. कुण्जर-हाथी,
  4. बिन्दरावन-वृंदावन,
  5. रहस्यूँ-रहूँ (रहना),
  6. राखो-रखो,
  7. बूढ़ता-डूबता,
  8. लगास्यूँ-लगाया,
  9. घणा-घना,
  10. सरसी-रसीली, रसयुक्त, (आनंदकारी),
  11. हिवड़ा-हृदय,
  12. कुसुम्बी-केसरिया रंग की।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
मीरा के अन्य पदों को याद करके कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
यदि आपको मीरा के पदों के कैसेट मिल सकें तो अवसर मिलने पर उन्हें सुनिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
मीरा के पदों का संकलन करके उन पदों को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
पहले हमारे यहाँ दस अवतार माने जाते थे। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण प्रमुख हैं। अन्य अवतारों के बारे में जानकारी प्राप्त करके एक चार्ट बनाइए।
उत्तर:
भगवान विष्णु के दस अवतार निम्नलिखित हैं-राम, कृष्ण, बामन, बराह, नरसिंह, परशुराम, मोहनी, मत्स्य, कच्छप, बलराम, कल्कि, बुद्धा।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर:
मीठी वाणी बोलते समय व्यक्ति के मन में अहंकार नहीं होता है। इसमें प्रेम और अपनत्व की भावना का समावेश हो जाता है। इससे बोलने वाले की विनम्रता सहज ही झलकने लगती है। बोलने वाले द्वारा अहंकार का त्याग करने से अपने मन को शीतलता मिलती है। इसी प्रकार अपनत्व और प्रेम भरे वचन सुनने वाले सुख पहुँचाते हैं।

प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने पर अंधकार अपने-आप दूर हो जाता है, उसी प्रकार ज्ञानरूपी दीपक के हृदय में जलने पर अज्ञानरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है। यहाँ दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है और अँधियारा अज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान का प्रकाश होने पर मन में स्थित काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार आदि दुर्गुण समाप्त हो जाते हैं। अज्ञान की अवस्था में मनुष्य अपने ही हृदय में विराजमान ईश्वर को पहचान पाने में असमर्थ होता है। वह अपने-आप में ही डूबा रहता है। ज्ञान का प्रकाश होने पर वह परमात्मा साक्षात्कार में सफल हो जाता है। उसे अपने सब ओर ईश्वरीय सत्ता का आभास होता है। मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है।

प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर:
मनुष्य ने यह धारणा और विश्वास बना लिया है कि प्रभु तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थलों पर ही रहते हैं। इसके अलावा मनुष्य अपने अज्ञान और अहंकार के कारण प्रभु को नहीं देख पाता है। यही कारण है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है पर हम उसे नहीं देख पाते हैं।

प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति केवल सांसारिक सुखों में डूबा रहता है और जिसके जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है, वही व्यक्ति सुखी है। इसके विपरीत जो व्यक्ति संसार की नश्वरता को देखकर रोता रहता है; वह दुखी है। ऐसे लोगों को संसार में फैली अज्ञानता को देखकर तरस आता है। ईश्वर-भक्ति से विमुख लोगों की दुर्दशा देखकर वे सो नहीं पाते। यहाँ ‘सोना’ शब्द ‘अज्ञान’ का तथा ‘जागना’ शब्द ‘ज्ञान’ का प्रतीक है। जो लोग संसारी सुखों में खोए हैं वे सोए हुए हैं। वे संसार की नश्वरता और क्षणभंगुरता को समझ नहीं पा रहे हैं। वे सांसारिक सुखों को सच्चा सुख मानकर उनके पीछे भाग रहे हैं। अज्ञानता के कारण ही वे अपना हीरे-सा अनमोल जीवन व्यर्थ गवाँ रहे हैं। दूसरी और ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि संसार नश्वर है फिर भी मनुष्य इसमें डूबा हुआ है। यह देखकर वह दुखी हो जाता है। वह चाहता है कि मनुष्य भौतिक सुखों को त्यागकर ईश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।

प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर
अपने स्वभाव को निर्मल बनाने के लिए कवि ने यह उपाय सुझाया है कि निंदक या आलोचक को सदा अपने पास रखना चाहिए। उसकी आलोचनाओं से परेशान होकर व्यक्ति अपना स्वभाव बदल लेता है और दुर्गुण सद्गुण में बदल लेता है। ऐसा करने में व्यक्ति को कुछ खर्च भी नहीं होता है।

प्रश्न 6.
“ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंड़ित होइ’-इस पंक्ति दुवारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि इस पंक्ति के द्वारा शास्त्रीय ज्ञान की अपेक्षा भक्ति व प्रेम की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करना चाहते हैं। उनके अनुसार जो व्यक्ति अपने आराध्य के लिए प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ ले अर्थात् जिसके हृदय में प्रेम तथा भक्ति भाव उत्पन्न हो जाए तो वह अपने आत्मरूप से परिचित हो जाता है। वही व्यक्ति ज्ञानी है जो ईश्वर प्रेम की महिमा को जान लेता है, उसके निर्विकार रूप के रहस्य को समझ जाता है। इस पंक्ति के माध्यम से सचेत करते हुए कवि कहता है कि केवल बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ लेने से ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। इसके लिए मन को सांसारिक मोह-माया से हटाकर ईश्वर भक्ति में लगाना पड़ता है।

प्रश्न 7.
कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर अनपढ़ थे ‘परंतु अनुभवी एवं ज्ञानी बहुत थे। वे भाषा के प्रयोग में नियमों के पालन या अवहेलना करने की परवाह किए बिना’ बिना लाग-लपेट अपनी बात कह जाते हैं। उनकी भाषा में एक ओर अवधी के शब्द मिलते हैं तो दूसरी ओर पहाड़ी और राजस्थानी के शब्द भी भरपूर मात्रा में मिलते हैं। इसके अलावा उनकी भाषा में आम बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
विरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ ।
उत्तर:
‘बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र ने लागै कोइ’ का भाव यह है कि जिस व्यक्ति में राम (प्रभु) से दूर रहने पर उन्हें पाने की तड़प जाग उठती है उस व्यक्ति की दशा विष पीड़ित से भी खराब हो जाती है। इस व्यथा को शब्दों के माध्यम से प्रकट नहीं किया जा सकता है। साँप के विष को तो मंत्र द्वारा भी उतारा जा सकता है, परंतु राम की विरह व्यथा शांत करने का कोई उपाय नहीं है। ऐसी दशा में राम की वियोग व्यथा झेल रहा व्यक्ति के पास मरने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं होता है। यदि वह जीता भी है तो उसकी दशा पागलों जैसी होती है क्योंकि वह न सांसारिक विषयों में मन लगा पाता है और न राम से मिल पाता है।

प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़े बन माँहि ।
उत्तर:
‘कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि’ का भाव यह है कि मनुष्य की स्थिति मृग के समान होती है। जिस प्रकार कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, परंतु उसकी महक के आकर्षण में खोया मृग यह नहीं जान पाता है कि आखिर वह सुगंधित पदार्थ (कस्तूरी) है कहाँ? वह दर-दर, जंगल-जंगल इसे खोजता फिरता है पर निराशा ही उसके हाथ लगती है। वह आजीवन इस कस्तूरी को खोजता-खोजता इस दुनिया से चला जाता है। कुछ ऐसा ही मनुष्य के साथ है जो ईश्वर को अपने भीतर न खोजकर जगह-जगह खोजता फिरता है।

प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर:
‘जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि’ पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर की प्राप्ति और अहंकार दोनों एक साथ उसी तरह नहीं रह सकते हैं जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती हैं। कबीर का कहना है कि जब तक उनके मन में अहंकार अर्थात् मैं का दंभ था, तब तक ईश्वर के न दर्शन हो सके और न प्रभु को मन में बसा सका, परंतु जब से मन में ईश्वर का वास हुआ है तब से अहंकार के लिए कोई जगह ही नहीं बची। प्रभु के मन में वास होने से मन में बसा अंधकार, अज्ञान और भ्रम रूपी अंधकार नष्ट हो गया।

प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
उत्तर:
कबीर ईश्वर प्राप्ति पर बल देते हुए कहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए संसार के लोग पोथियाँ (मोटी-मोटी भारी भरकम धार्मिक ग्रंथ) पढ़ते रहे। आजीवन ऐसा करते रहने पर भी उन्हें वह ज्ञान न मिल सका जिससे वे पंडित या विद्वान बन सकें। पीव अर्थात् निराकार ब्रह्म का एक ही अक्षर जिसने पढ़ लिया वही पंडित बन गया अर्थात् ब्रह्म के बारे में जाने बिना ज्ञानी कहलाने की बात निरर्थक है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए
उदाहरण : जिवै-जीना

  1. औरन,
  2. माँहि,
  3. देख्या,
  4. भुवंगम,
  5. नेड़ा,
  6. आँगणि,
  7. साबण,
  8. मुवा,
  9. पीव,
  10. जालौं,
  11. तास ।

उत्तर:
उपरोक्त शब्दों के प्रचलित रूप –

  1. औरन-औरों को,
  2. माँहि-मध्य (में),
  3. देख्या-देखा,
  4. भुवंगम-भुजंग,
  5. नेड़ा-निकट,
  6. आँगणि-आँगन,
  7. साबण-साबुन,
  8. मुवा-मरा,
  9. पीव-प्रिय,
  10. जालौं–जलाऊँ,
  11. तास-उसका।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती है तथा व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’-इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ होता है। वह हिरन की नाभि में पाया जाता है। अज्ञानता वश हिरन उसे पहचान नहीं पाता।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
मीठी वाणी/बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

प्रश्न 2.
कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों? [Imp.] [A.I. CBSE 2008; CBSE]
अथवा
बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए क्यों कहा गया? तर्कसहित उत्तर दीजिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
कवि अपनी आत्मकथा सुनाने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि

  • कवि के जीवन में सुखद यादें कम, दुख और निराशा अधिक है।
  • कवि अपने दुख दूसरों के सामने सुनाकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता है।
  • कवि अपने मित्रों को यह एहसास नहीं दिलाना चाहता है कि उसके दुखों का कारण तुम्हीं लोग हो।
  • कवि के दुख और वेदनाएँ समय के साथ दब गई हैं। वह उन्हें उभारना नहीं चाहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है? [CBSE]
अथवा
‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि आत्मकथा को लिखने का उचित समय नहीं मानता है। क्योकि अभी तक के उसके जीवन में ऐसी कोई महानता नहीं है जिसके उल्लेख से लोगों को प्रेरणा मिले। कवि कहता है कि मेरे हृदय में अनेक व्यथा-कथाएँ सुस्त पड़ी हुई हैं, जिससे मैं शांतचित्त हूँ। उन्हें पुनः स्मरण कर जीवन को व्यथित नहीं करना चाहता हूँ। साथ ही कवि अपनी दुर्बलताओं और प्रेम के क्षणों को सबके सम्मुख प्रकट भी नहीं करना चाहता है। ऐसा करना उसे उचित नहीं लगता है।

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है? [CBSE]
उत्तर:
स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय है-उसके जीवन के उन सुनहरे पलों की सुखद यादें जो उसने पत्नी के साथ सँजोई थी। यही यादें अब उसके जीवन पथ के लिए सहारा बनी हैं। इन्हीं के सहारे वह जीवन जी रहा है।

प्रश्न 4.
शब्दों को ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर:
(क) कवि ने अपने जीवन की अनुभूति को स्पष्ट किया है कि सुख उसके जीवन के लिए प्रवंचना मात्र बनकर रह गया। वह सुख की कल्पना करते ही रह गए और सुख उसके जीवन में केवल झाँकी दिखाकर चला गया। कब आया और कब चला गया, उन्हें पता ही नहीं चला। इस तरह कवि स्वप्न में ही सुख का अनुभव कर रहा था और आँख खुलते ही सुख विलीन हो गया।

(ख) कवि अपनी प्रेयसी की मधुर-स्मृतियों में थोड़ी देर के लिए निमग्न हो जाता है। और अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसके गालों की रक्तिम आभा उषा काल में उदित होते हुए सूर्य की अरुणिमा के समान सुंदर थी। जिसकी छाया में ऊषा भी अनुराग से भर जाती थी।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर
लख ये काले-काले बादल नील सिंधु में खिले कमल दल हरित ज्योति चपला अति चंचल सौरभ के रस के।। छोड़ गए गृह जब से प्रियतम बीते कितने दृश्य मनोरम क्या मैं ऐसी ही हूँ अक्षम
जो न रहे बस के।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर:
सुमित्रानंदन की ‘बादल’ कविता पढ़े तथा उसका संकलन करें।

अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों को बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर:
छायावादी कविता प्रकृति के चित्रण द्वारा मन के भावों को व्यक्त करती है। इसका प्रमाण निम्नलिखित पंक्तियों | में मिलता है
आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।
यहाँ फागुन की शोभा का ही चित्रण नहीं है, अपितु लोगों के मन में उठी उमंग का भी चित्रण है।
कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो। यहाँ साँस लेना, घर-घर भरना, नभ में उड़ने को पर-पर करना–तीनों स्थितियाँ फागुन और मानव-मन दोनों के लिए प्रयुक्त हुई हैं। यहाँ आकर फागुन और मानव-मन मानो एक हो गए हैं। जो फागुन के तन से प्रकट हो रहा है, वही मानव-मन से प्रकट हो रहा है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है? । [Imp.][CBSE] |
उत्तर :
फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। उसका रूप-सौंदर्य रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और हवाओं में प्रकट हो रहा है। फागुन के कारण मौसम इतना सुहाना हो गया है कि उस पर से आँख हटाने का मन नहीं करता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में चित्रित फागुन के सौंदर्य के विभिन्न चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि ने प्रकृति की सुंदरता की व्यापकता को वर्णन अनेक प्रकार से किया है। उसे हर जगह छलकता हुआ दिखाया है। घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। कवि ने जान-बूझकर उसे किसी एक दृश्य में नहीं बाँधा है, बल्कि असीम दिखाया है। कहीं साँस लेते हो’ का आशय है कि कहीं मादक हवाएँ चल रही हैं। घर-घर में भरने के भी अनेक रूप हैं। शोभा का भरना, फूलों का भरना, खुशी और उमंग का भरना। ‘उड़ने को पर-पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है जिसके विस्तृत अर्थ हैं। यह वर्णन पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है? [CBSE]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन के सौंदर्य का चित्रण कीजिए जिसके आधार पर उसे अन्य ऋतुओं से भिन्न समझा जाता है। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
उत्तर:
फागुन में वातावरण बहुत मीठा और सुहावना होता है। धरती पर सबसे अधिक फूल खिलते हैं। आसमान साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। वृक्षों पर नए फूल-पत्ते उगते हैं। ये विशेषताएँ अन्य महीनों में नहीं होतीं।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
छायावादी शिल्प की पहली विशेषता है-प्रकृति-चित्रण द्वारा मन के भावों को प्रकट करना। इस कविता में भी फागुन के द्वारा मन की मस्ती और उमंग का चित्रण किया गया है। ‘घर-घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की ओर भी संकेत है और मन में उठी खुशी की ओर भी।
छायावाद की दूसरी विशेषता है-मानवीकरण। कवि ने फागुन को नायक मानकर उससे वार्ता की है। उसे संबोधित करते हुए कहा है
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो। छायावाद की तीसरी विशेषता है-गीति-शैली। इसमें भी गीत-शैली के सभी गुण हैं-संक्षिप्तता, अनुभूति, गेयता, प्रवाहपूर्ण भाषा।
छायावाद की सबसे बड़ी विशेषता है–सांकेतिकता। छायावादी शब्द में शब्द से परे बहुत कुछ ध्वनित होता है। यह विशेषता इस कविता में भी है।
संस्कृतनिष्ठ लघु-लघु शब्दों का प्रयोग भी छायावादी शिल्प की विशेषता है जो इस कविता में स्पष्ट दिखाई देती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर:
होली के आसपास वसंत ऋतु होती है। सभी पेड़-पौधे पुराने पत्ते गिरा देते हैं तथा नए-नए पत्ते धारण करते हैं। खेतों में सरसों फूल उठती है। हर तरफ पीले फूल दिखाई देते हैं।

पाठेतर सक्रियता ।

प्रश्न 1
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर:
मिला बन में मुरलिया वाला सखी मिला बन में मुरलिया वाला।
सखी कोई कहे देखो मोहन है आए, कोई कहे नन्दलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी धर पिचकारी खड़े ग्वाल सब कोई धरे हैं गुलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी मोरी साड़ी मेरो तन-मन भिगोए देखो नन्द के लाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C; CBSE]
अथवा
कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथा ने लिखने के कौन-कौन से कारण गिनाए हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग सुंदर साँवले नंद किशोर श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस तरह मंदिर का दीपक सुंदर दिखने के साथ ही अपनी चमक के आलोक से मंदिर को आलोकित करता है उस प्रकार श्रीकृष्ण अपनी सुंदरता एवं उपस्थिति से संपूर्ण ब्रजभूमि में आनंद एवं आलोक बिखेर देते हैं।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है? [CBSE]
उत्तर:
1. अनुप्रास अलंकार-

  1. ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’ (यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
  2. साँवरे अंग लसै पट-पीत (‘प’ की आवृत्ति हुई है।)
  3. ‘हिये हुलसै बनमाल सुहाई’ (यहाँ ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)

2. रूपक अलंकार-

  1. हँसी मुखचंद जुन्हाई (मुख रूपी चंद्र।)
  2. जै जगमंदिर-दीपक सुंदर (जग रूपी मंदिर के दीपक ।)

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है? [Imp.] [CBSE 2008; CBSE]
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का मनोहर चित्रण है। श्रीकृष्ण के पैरों में पड़े नूपुर और कमर की करधनी में लगे हुँघरू मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र और गले में वनफूलों की माला सुंदर लग रही है।

शिल्प सौंदर्य
भाषा – मधुर सरस ब्रजभाषा, जिसमें संगीतमयता का गुण है।
छंद – सवैया छंद है।
गुण – माधुर्य गुण है।
बिंब – दृश्य एवं श्रव्य बिंब साकार हो उठा है।
अलंकार – ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’, ‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै’ में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
( ख ) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:
प्रायः कवि बसंत ऋतु को उद्दीपन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। फूलों का सौंदर्य, नव-प्रस्फुटित कोंपलें, मंद-मंद प्रवाहित समीर जहाँ हृदय में स्पंदन करते हैं उस परंपरा से हटकर कवि देव ने स्नेह के प्रतीक शिशु रूप में बसंत की कल्पना की है जो स्वयं कामदेव का पुत्र है। पुत्र बसंत के लिए डालियों का पालना, नव-पल्लवों का बिछौना, तोते-मोर का शिशु से बातें करना, कोयल के द्वारा शिशु को प्रसन्न करने का प्रयास करना, नायिका द्वारा शिशु की नज़र उतारना, गुलाब के द्वारा प्रातः चुटकी बजाकर जगाना आदि रूप अन्य-कवियों की सोच का परिष्कृत रूप है।

यहाँ नायक-नायिका के हृदय-स्पंदन में उद्दीपन न होकर अपने शिशु के प्रति स्नेह के लिए आतुर दिखाई देता है।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ – पंक्ति का भाव यह है कि प्रात:काल गुलाब की कलियाँ चटकती हैं और खिलकर फूल बन जाती हैं। इन कलियों के चटकने की आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानो बालक वसंत को जगाने के लिए गुलाब चुटकी बजा रहा है।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
अथवा
अथवा ‘आत्मकथ्य’ कविता की भाषा पर प्रकाश डालिए।[CBSE]
उत्तर:
कवि ने चाँदनी-रात की सुंदरता को निम्न रूपों में देखा है-

  1. स्फटिक शिलाओं से निर्मित सुधा-मंदिर रूप में देखा है।
  2. चारों ओर फैलती चाँदनी को दधि रूप-समुद्र की तरह देखा है जो चारों ओर से उमड़ पड़ रही है।
  3. आँगन में उमड़ते हुए दूध के झाग के रूप में देखा है।
  4. चाँदनी को नायिका के रूप में देखा है जो तारों से सुसज्जित है।
    अंबर रूपी-दर्पण के रूप में चाँदनी को देखा है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ का भाव यह है कि चाँदनी रात में आसमान स्वच्छ-साफ़ दर्पण के समान दिखाई दे रहा है। स्वच्छ आसमान रूपी दर्पण में चमकता चंद्रमा धरती पर खड़ी राधा का प्रतिबिंब प्रतीत हो रहा है। यहाँ चंद्रमा की तुलना राधा के प्रतिबिंब से की गई है।

इस पंक्ति में चाँद की तुलना राधा के प्रतिबिंब से करके परंपरागत उपमान को उपमेय से हीन बताया गया है। परंपरा के विपरीत ऐसा करने से यहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ है।

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि देव ने उक्त कवित्त में निम्न उपमानों का प्रयोग किया है

  1. स्फटिक शिला
  2. सुधा-मंदिर
  3. उदधि-दधि
  4. दूध के से फेन
  5. तारों से
  6. आरसी से।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
पठित कविताओं के आधार पर देव की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएँ दिखाई देती हैं
भाव-सौंदर्य-
कवि देव ने अपनी कविताओं में सामंती वैभव-विलास एवं रूप सौंदर्य का चित्र खींचा है। वे श्रीकृष्ण को । संसार रूपी मंदिर का प्रकाशमान दीपक और ब्रज के दूलह के रूप में चित्रित करते हैं। प्रकृति वर्णन में सिद्धहस्त देव ने नवीन कल्पना एवं मौलिकता का समावेश करते हुए प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्र खींचा है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है? [Imp.] [CBSE; CBSE 2008; 08 C]
उत्तर:
सीता स्वयंवर के अवसर पर लक्ष्मण ने क्रोधित परशुराम को धनुष टूट जाने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए-

  • यह धनुष (शिव-धनुष) बहुत पुराना था।
  • राम ने तो इसे नया समझकर देखा था।
  • पुराना धनुष राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
  • पुराना धनुष टूटने से हमें क्या लाभ-हानि होना था।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है? ।
उत्तर:
परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रिया के आलोक में उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ पता चलती हैं-

राम की विशेषताएँ|

  1. राम का स्वभाव अत्यंत विनम्र था।
  2. राम निडर, साहसी, धैर्यवान तथा मृदुभाषी थे।
  3. वे बड़ों के आज्ञाकारी तथा आज्ञापालक थे।

लक्ष्मण की विशेषताएँ

  1. लक्ष्मण में वाक्पटुता कूट-कूटकर भरी थी।
  2. उनका स्वभाव तर्कशील था।
  3. वे बुद्धिमान तथा व्यंग्य करने में निपुण थे।
  4. वे प्रत्युत्पन्नमति थे।
  5. वे वीर किंतु क्रोधी स्वभाव के थे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए पाँयनि नूपुर मंजु बजें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई। साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई।
उत्तर:
लक्ष्मण और परशुराम के मध्य हुए संवाद का यह भाग सबसे अच्छा लगा
लक्ष्मण – आप तो मेरे लिए काल को ऐसे बुला रहे हैं जैसे वह आपके वश में हो और भागा-भागा चला आएगा। परशुराम – यह कटुवादी बालक निश्चित रूप से मरने के योग्य है। अब तक मैं इसे बालक समझकर बचाता रहा।
परशुराम – मेरा फरसा अत्यंत तेज़ धारवाला है और मैं निर्दयी हूँ। विश्वामित्र जी मैं इसे आपके स्वभाव के कारण छोड़ रहा हूँ अन्यथा इसी फरसे से इसे काटकर गुरुऋण से उरिण हो जाता।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है। [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से बहुत ही क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने वाले के रूप में संसार में प्रसिद्ध हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी के राजाओं को पराजित किया, उनका वध किया और जीती हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। इससे मैंने सहस्त्रबाहु की भुजाएँ काट दीं। यह फरसा इतना कठोर है कि यह गर्भ के बच्चों की भी हत्या कर देता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। [CBSE]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि

  • वीर योद्धा शत्रु से अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं।
  • वीर योद्धा रण क्षेत्र में शत्रु को सम्मुख देखकर युद्ध करते हैं और अपनी वीरता दिखाते हैं।
  • वीर योद्धा शत्रु को देखकर भयभीत नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है? [CBSE]
उत्तर:
यह सत्य है कि साहस और शक्ति हर व्यक्ति के व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाते हैं तथा योद्धाओं के लिए ये गुण अनिवार्य भी हैं, किंतु इनके साथ यदि विनम्रता का मेल हो जाए तो ये और भी उत्तम बन जाते हैं। विनम्रता से अकारण होने वाले वाद-विवाद या अप्रिय घटनाएँ होते-होते रुक जाती हैं। विनम्रता शत्रु के क्रोध पर भी भारी पड़ती है। अपनी विनम्रता के कारण व्यक्ति विपक्षी के लिए भी सम्मान का पात्र बन जाता

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है? [CBSE]
उत्तर:
(क) लक्ष्मण ने हँसते हुए परशुराम से व्यंग्यात्मक भाव से मधुर वचनों के माध्यम से कहा, “अरे! मुनिवर आप तो महायोद्धा निकले। आप बार-बार अपना कुल्हाड़ा मुझे दिखाकर ऐसा करना चाह रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देना चाहते हो।।

(ख) लक्ष्मण व्यंग्य भाव से परशुराम से कहते हैं कि यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (सीताफल का छोटा-सा फल) नहीं है जो आपकी तर्जनी देखकर मर जाएगा अर्थात् हम भी इतने निर्बल नहीं हैं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाएँगे। मैं आपको फरसा, धनुष-बाण देखकर ही जो कुछ कहा था, सब अभिमानपूर्वक कहा था अर्थात् आपके अस्त्र-शस्त्रों से तनिक भी भयभीत नहीं हूँ।

(ग) परशुराम की गर्वोक्तियाँ और लक्ष्मण को बार-बार मृत्यु का भय दिखाने तथा फरसा उठाकर मारने की तत्परता देखकर विश्वामित्र ने अपने मन में हँसकर कहा कि मुनि को सावन के अंधे की भाँति सब हरा-हरा दिख रहा है अर्थात् मुनि को सभी कमजोर दिखाई दे रहे हैं, जिसे वे आसानी से मार देंगे, पर मुनि जिसे मीठी खाँड़ समझकर खा जाना चाहते हैं वह लौह (फौलाद) से बने तीक्ष्ण धारवाले खाँड़े हैं अर्थात् राम-लक्ष्मण फौलाद की भाँति मजबूत हैं।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है? [CBSE 2012]
उत्तर:
श्री तुलसीदास जी हिंदी-साहित्य-आकाश के दीप्तमान नक्षत्रों में सबसे दीप्त नक्षत्र हैं। उनके काव्य से स्पष्ट है कि भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इनका काव्य अवधी भाषा का उत्कृष्ट रूप है। भाषा में कितनी सुकोमलता, सहजता, सरलता है, इसका अनुभव पाठक को स्वयं होने लगता है। अवधी भाषा की पराकाष्ठा तुलसी जी के रामचरित मानस के कारण है-यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

उनके काव्य में बहुत अच्छा नाद-सौंदर्य है, जिसे सामान्य-से-सामान्य जन गाकर भाव-विभोर हो उठता है। काव्य में गेयता है। लोक जीवन से जुड़ी लोकोक्तियों और मुहावरों ने काव्य को सजीव बना दिया है, जिससे काव्य में प्रवाह आ गया है। बिखरा हुआ विविध अलंकारों का सौंदर्य, यत्र-तत्र संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग, अर्थ को गंभीरता प्रदान करता हुआ सूक्ति-प्रयोग आदि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि व्याकरण-साहित्य पर उनका पूरा अधिकार था। काव्य में वीर रस की अभिव्यक्ति सर्वत्र है, जो पाठक को उद्वेलित करती रहती है। चौपाई और दोहा छंद का प्रयोग है जिसे सरलता से लयबद्ध गाया जा सकता है।

यहाँ तुलसी ने नीतिपरक प्रसंगों का खूब चित्रण किया है, जो प्रेरणास्रोत के रूप में मनुष्यों को प्रेरित करते हुए प्रतीत होते हैं। इस तरह भाषा उनकी अनुगामिनी है। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने जिस बात को जिस तरह कहना चाहा है, उसी के अनुकूल शब्द स्वयं चलकर आ गए हैं।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए। [CBSE]
उत्तर:
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में व्यंग्य का अनूठा प्रसंग है। व्यंग्य का यह प्रसंग लक्ष्मण और परशुराम के मध्य देखने को मिलता है। इसकी शुरुआत वीरता एवं वाक्चातुर्य के धनी लक्ष्मण से शुरू होती है। उनकी व्यंग्योक्तियाँ वृद्ध, ब्राह्मण मुनि परशुराम को मर्माहत करती हुई उत्तेजित करती हैं। लक्ष्मण उनसे युद्ध तो नहीं करते हैं, पर व्यंग्यक्तियों के माध्यम से उनका क्रोध इतना बढ़ा देते हैं कि परशुराम उन्हें मारने के लिए अपना फरसा उठा लेते हैं, पर लक्ष्मण अपने व्यंग्य बाणों से उनकी वीरता की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इन व्यंग्योक्तियों के कुछ उदाहरण हैं

  • बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिसि कीन्ह गोसाई ।।
  • का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा रामनयन के भोरें ।।
  • छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिन काज करिअ कत रोसू ।।
  • पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन पूँकि पहारू ।।
  • कोटि कुलिस समवचन तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
  • अपने मुहु तुम आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ब’ वर्ण की आवृत्ति होने पर अनुप्रास । अलंकार है।

(ख) “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा ।” उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।

(ग) “तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा” यहाँ उत्प्रेक्षा वाचक शब्द ‘जनु’ से उप्रेक्षा-अलंकार है। “बार-बार मोहि लागि बोलावा” में बार-बार शब्द की आवृत्ति होने पर पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार है।

(घ) “लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु” में उपमावाचक शब्द ‘सरिस’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है। यहाँ ‘लखन-उतर’ उपमेय और ‘आहुति’ उपमान है। ‘भृगुबरकोपु कृसानु” में भृगुबरकोपु और कृसानु में अभेद दिखाया गया है अतः रूपक अलंकार है। बढ़त देखि जल सम बचन’ में उपमा वाचक शब्द ‘सम’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है।

यहाँ उपमेय ‘बचन’ और ‘जल’ उपमान है। ‘बोले रघुकुलभानु’ में ‘रघुकुल और भानु’ में अभेद दिखाया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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