NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 आत्मत्राण

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर:
कवि अपने आराध्य प्रभु से यह प्रार्थना कर रहा है कि हे प्रभु! तुम दुख से मत उबारो, मेरे कष्ट मत दूर करो बल्कि उन दुख और कष्टों को सहने की शक्ति प्रदान कीजिए। कवि अपने प्रभु से शक्ति और साहस चाहता है ताकि जीवन में दुखों और कष्टों से जूझ सके तथा उनसे हारे बिना आगे बढ़ता रहे। उसे दुख हरनेवाला या सहायता करनेवाला नहीं, आत्मबल और पुरुषार्थ माँग रहा है ताकि वह प्रभु पर अटूट विश्वास बनाए रख सके।

प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं- कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि हे प्रभु! चाहे मुझे आप दुखों, मुसीबतों और कठिनाइयों से भले ही न बचाओ। जब मेरा चित्त मुसीबतों तथा दुखों से बेचैन हो जाए, तो भले सांत्वना भी मत दो। पर हे प्रभु! बस आप इतनी कृपा अवश्य करना कि मैं मुसीबत तथा दुखों से घबराऊँ नहीं, बल्कि आत्म-विश्वास के साथ निर्भीक होकर हर परिस्थिति का सामना करने का साहस मुझ में आ जाए।

प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर:
मानव-जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। सुख के पल मनुष्य आसानी से बिता लेता है परंतु दुख में ईश्वर का स्मरण करते हुए सहायता माँगता है। कवि जीवन की दुख रूपी रात्रि में कोई सहायक न मिलने पर भी ईश्वर के प्रति संदेह नहीं करना चाहता है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि दुख की इस घड़ी में उसका बल-पौरुष बना रहे जिससे वह दुख से संघर्ष करते हुए उसे जीत सके।

प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर:
अंत में कवि यह अनुनय करता है कि वह जीवन रूपी अपना भार स्वयं ही वहन कर सके। वह सुख के समय में भी प्रभु को निरंतर याद करना चाहता है। वह ईश्वर की शक्ति, करुणा पर कभी भी संशय नहीं करना चाहता, अपितु वह तो ईश्वर से केवल जीवन में निर्भयता तथा विपत्तियों के बोझ को वहन करने की क्षमता चाहता है।

प्रश्न 5.
‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘आत्मत्राण’ शीर्षक अपने में पूरी तरह सार्थकता समाए हुए है। आत्म-स्वयं या खुद और त्राण-रक्षा करना अर्थात् अपनी रक्षा करना। कविता के कथ्य से ज्ञात होता है कि कवि दुख और मुसीबतों से बचने या उन्हें दूर करने के लिए ईश्वर की मदद नहीं चाहता है न वह इस कार्य के लिए याद करता है। वह प्रभु से आत्मबल, साहस, पौरुष मांगता है जिनकी सहायता से वह स्वयं दुख और मुसीबत का सामना कर सके। अपनी रक्षा खुद करने का भाव समेटे हुए यह शीर्षक पूरी तरह से सार्थक है।

प्रश्न 6.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर:
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम प्रार्थना के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास करते हैं

  1. हम जीवन में सफलता पाने की इच्छा की पूर्ति हेतु कठिन परिश्रम तथा लगन से काम करते हैं।
  2. हम जीवन में आने वाले संघर्षों, रुकावटों का क्षमतानुसार सामना करते हैं।
  3. अपनी आत्मिक और शारीरिक शक्ति के बल पर जीवन को नई दिशा देने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना-गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर:
निस्संदेह कवि की यह प्रार्थना मुझे अन्य प्रार्थनाओं से पूरी तरह अलग लगती है। जन सामान्य अपनी प्रार्थना में जहां अपने संकट, कष्ट, दुख, मुसीबत आदि दूर करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं तथा अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए सुख-सुविधाओं की माँग करते हैं, वहीं कवि ने इनसे अलग प्रार्थना में अपनी इच्छा प्रकट की है। वह अपने प्रभु से साहस, बल और पौरुष माँगता है ताकि दुखों का सामना कर सके और उस पर विजय पा सके। वह सुख में भी प्रभु को न भूलने तथा उन पर सदैव विश्वास बनाए रखने की प्रार्थना करता है। इसके कवि की प्रार्थना में दैन्य भाव न होकर विनय भाव है जिससे यह कविता अन्य कविताओं से अलग लगती है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
नत शिर होकर सुख के दिन में तव मुख पहचानँ छिन-छिन में।
उत्तर:
भाव यह है कि कवि जिस तरह अपने प्रभु को दुख में याद करता है उसी तरह वह सुख के समय भी याद रखना चाहता है। वह प्रार्थना करता है कि प्रभु! सुख के दिनों में भी सिर झुकाकर वह पल-पल अपने प्रभु का चेहरा देखता रहे। अर्थात् दुख-सुख दोनों ही दशाओं में अपने प्रभु को याद रखे।

प्रश्न 2.
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही। तो भी मन में ना मानें क्षय।
उत्तर:
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहा है कि मुझे इस संसार में चाहे कितनी भी हानि उठानी पड़े तथा किसी का साथ प्राप्त होने की जगह बेशक धोखा ही मिले, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी मेरा आत्मबल और आत्मविश्वास डगमगाए नहीं तथा मैं किसी प्रकार का दुख न मानें, किसी भी तरह से घबराऊँ नहीं, बल्कि हर परिस्थिति का सहर्ष सामना करूं। उसका मनोबल उसे सभी परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत दे।

प्रश्न 3.
तरने की हो शक्ति अनामय मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर:
भाव यह है कि कवि जब दुख के सागर में घिरा हो, परिस्थितियाँ विपरीत हों तब भी उसके प्रभु दुखों को भले ही कम न करें या दुख कम करने की सांत्वना भले ही न दें, पर वहे प्रभु से साहस और शक्ति ज़रूर चाहता है जिसके सहारे वह दुखों से जूझ सके और उन पर विजय पा सके।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत-संग्रह में से दो गीत छाँटिए और कक्षा में कविता-पाठ कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए; जैसे
(क) महादेवी वर्मा-क्या पूजा क्या अर्चन रे!
(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला-दलित जन पर करो करुणा।
(ग) इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो न हम चलें नेक रस्ते पर हम से भूल कर भी कोई भूल हो न इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई अंतर भी प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
रवींद्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र पर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

प्रश्न 3.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गाया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो, तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सी०डी० लेकर सुनिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7  छाया मत छूना

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? [Imp. [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009] |
उत्तर:
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही सत्य है। मनुष्य को आखिरकार अपने वास्तविक सच का सामना करना पड़ता है। उसे अपनी परिस्थितियों में जीना पड़ता है। भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने उसे दुखी ही करते हैं, किसी मंजिल पर नहीं ले जाते।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर:
बड़प्पन का अहसास, महान होने का सुख भी एक छलावा है। मनुष्य बड़ा आदमी होकर भी मन से प्रसन्न हो, यह आवश्यक नहीं। हर सुख के साथ एक दुख भी जुड़ा रहता है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात भी लगी रहती है, पूर्णिमा के बाद अमावस भी आती है, उसी तरह सुख के पीछे दुख भी छिपे रहते हैं।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है? [Imp.] [CBSE 2008 C; A.I. CBSE 2008 C; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
अथवा
‘छाया मत छूना मन’ पंक्ति में ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है? [CBSE]
उत्तर:
यहाँ ‘छाया’ शब्द अवास्तविकताओं के लिए प्रयुक्त हुआ है। ये छायाएँ अतीत की भी हो सकती हैं और भविष्य की भी। ये छायाएँ पुरानी मीठी यादों की भी हो सकती हैं और मीठे सपनों की भी।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर:
इस कविता में प्रयुक्त अन्य विशेषण हैं
सुरंग सुधियाँ सुहावनी–यहाँ ‘सुधियाँ’ विशेष्य के लिए दो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं-‘सुरंग’ और ‘सुहावनी’। इनके प्रयोग से बीती हुई यादों के दृश्य बड़े मीठे, मनमोहक और रंगीन बन पड़े हैं। यह पदबंध शादी या मिलन जैसे अवसर का रंगीन दृश्य प्रस्तुत करता जान पड़ता है।
जीवित क्षण–यहाँ ‘ क्षण’ के लिए ‘जीवित’ विशेषण प्रयुक्त हुआ है। इसके प्रयोग से पिछली यादों का भूला हुआ क्षण सामने इस तरह साकार हो उठा है मानो वह क्षण पुराना न होकर वर्तमान में चल रहा हो।
केवल मृगतृष्णा-‘मृगतृष्णा’ के साथ ‘केवल’ विशेषण लगने से भ्रम और छलावा और अधिक सधन, गहरा और निश्चित हो गया है। इससे यह बोध जाग उठा है कि बड़प्पन का अहसास छलावे के सिवा कुछ है ही नहीं।
दुविधा-हत साहस-‘साहस’ के साथ ‘दुविधा-हत’ विशेषण साहस को स्पष्ट रूप से दबाए हुए प्रतीत होता है। यहाँ ‘मृत साहस’ का भाव मुखर हो उठा है।
शरद-रात–यहाँ ‘रात’ के साथ ‘शरद’ शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है। रस-बसंत-‘बसंत’ के साथ ‘रस’ विशेषण बसंत को और अधिक रसीला, मनमोहक और मधुर बना रहा है।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर सड़क पर पानी की चमक दिखाई देती है। हम वहाँ जाकर देखते हैं तो कुछ नहीं होता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ‘मृगतृष्णा’ कहा जाता है। इस कविता में इसका अर्थ छलावे और भ्रम के लिए किया गया है। कवि कहना चाहता है कि लोग प्रभुता अर्थात् बड़प्पन में सुख मानते हैं। किंतु बड़े होकर भी कोई सुख नहीं मिलता। अतः बड़प्पन का सुख दूर से ही दिखाई देता है। यह वास्तविक सच नहीं है।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर:
निम्न पंक्ति में जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता के कवि ने मानव की किन वृत्तियों को जीवन के लिए दुखदायी माना है? [A.I. CGBSE 2008 C]
उत्तर:
इस कविता में दुख के निम्नलिखित कारण बताए गए हैं

  1. छाया अर्थात् बीती हुई मीठी यादें जिन्हें याद कर-करके हम अपने वर्तमान को और अधिक दुखी कर लेते हैं।
  2. छाया अर्थात् भविष्य के सपने, जिनके पूरा न होने पर हम दुखी रहते हैं।
  3. वर्तमान जीवन में उचित अवसर पर लाभ न मिलना। बसंत के समय फूल का न खिलना या शरद्-रात में चाँद का न खिलना। आशय यह है कि उचित अवसर पर सुख न मिलना।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर:
मेरे जीवन की सबसे मधुर स्मृति: पहली बार एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया प्रथम आया। 26 जनवरी की परेड में सम्मानित।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
यह सच है कि सभी उपलब्धियाँ उचित समय पर ही अच्छी लगती हैं। जैसे-सर्दी बीतने पर रजाई का क्या लाभ? बारिश खत्म होने पर छाता मिला तो क्या लाभ? मनुष्य के मरने के बाद मकान बन सका तो क्या लाभ? फसलें नष्ट होने के बाद सुरक्षा का प्रबंध हुआ तो क्या लाभ? डकैती होने के बाद पुलिस आ पाई तो क्या लाभ? आग बुझने के बाद फायर-ब्रिगेड आ पाया तो क्या लाभ? रोगी मरने के बाद डॉक्टर आ पाया तो क्या लाभ! ये सब उदाहरण बताते हैं कि उचित अवसर और आवश्यकता के समय ही उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने एर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।

उत्तर:

प्रिय रमेश!
एक अनुभव सुनाने का मन कर रहा है। हमारा नौकर दो दिन पहले अचानक गायब हो गया। पता चला कि पिताजी ने उसे 500 रु. का नोट देकर बाजार से मीठे-मीठे आम लाने को कहा था। जब वह वापस नहीं आया तो सभी सदस्य पिताजी की लापरवाही को कोसने लगे। मैंने भी यही किया। परंतु आज पुलिस थाने से पता चला की वह नौकर एक सड़क दुर्घटना में मारा गया है। उसकी जेब से 300 रु. और थेले में 5 किलो मीठे आम मिले हैं।
भाई रमेश! यह समाचार सुनते ही मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए हैं। पता नहीं, हम भय और द्वेष वश कुछ का कुछ सोच लेते हैं किंतु सत्य कुछ और ही होता है।

प्रश्न
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आज जीत की रात, पहरुए सावधान रहना।
खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना। ऊँची हुई मशाल हमारी आगे कठिन डगर है। शत्रु हट गया लेकिन उसकी छायाओं का डर है। शोषण से मृत है समाज, कमज़ोर हमारा घर है। किंतु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है। जन-गंगा में ज्वार, लहर, तुम प्रवहमान रहना।
पहरुए! सावधान रहना।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 8

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 8 कर चले हम फ़िदा

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?
उत्तर:
हाँ, इस युद्ध की पृष्ठभूमि भारत-चीन युद्ध पर आधारित है। देश को आजादी मिलने के कुछ ही समय बाद भारत को कमज़ोर जानकर 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भारतीय वीरों ने अपना बलिदान देकर देश की रक्षा की। युद्ध की इस पृष्ठभूमि को आधार बनाकर फ़िल्मकार चेतन आनंद ने ‘हकीकत’ नाम से फ़िल्म बनाई जो भारत-चीन के युद्ध को वास्तविक स्थिति को दर्शकों के सामने लाती है। चेतन आनंद ने इस युद्ध को पर्दे पर जीवंत रूप में प्रस्तुत किया था।

प्रश्न 2.
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’-इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है?
उत्तर:
इस पंक्ति में हिमालय भारत के मान-सम्मान एवं अस्मिता का प्रतीक है। भारत-चीन युद्ध हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों पर ही लड़ा गया था। भारतीय सैनिक शीश कटवा देते हैं, हँसते-हँसते अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं, लेकिन हिमालय का सिर झुकने नहीं देते अर्थात् वे भारत-भूमि के मान-सम्मान की रक्षा करते हैं। उनके साहस की अमर गाथा से हिमालय की पहाड़ियाँ आज भी गुंजायमान हैं।

प्रश्न 3.
इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भारत भूमि अत्यंत सुंदर है। पेड़-पौधे, नदी, पहाड़, झरने तथा चहुँ ओर बिखरी हरियाली इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं। अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए भारतीय सैनिकों ने जो रक्त बहाया था वह भारत भूमि रूपी दुलहन के माथे पर लाल टीका जैसा प्रतीत हो रहा था। रक्त-रंजित युद्ध भूमि भारत भूमि रूपी दुलहन के टीके-सी सुशोभित हो रही थी। नवविवाहिता के माथे पर भी लाल रंग का टीका सुशोभित होता है। इसी समानता के कारण भारत माता को दुलहन कहा गया है।

प्रश्न 4.
गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवनभर याद रह जाते हैं?
उत्तर:
गीत अपनी विशेषताओं की पूँजी के कारण जीवनभर याद रह जाते हैं। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. गीत के मार्मिक तथा प्रभावशाली बोल।
  2. सजीव तथा अमिट प्रभाव छोड़ने वाली शैली।
  3. मीठे सुर।
  4. लय-ताल ।
  5. गीत का जीवन के साथ संबंध जोड़ना।

प्रश्न 5.
कवि ने साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर:
कवि ने ‘साथियो’ का संबोधन युद्ध में घायल और मृत्यु की ओर कदम बढ़ा चुके सैनिकों के मुँह से युद्धरत साथी सैनिकों के लिए करवाया है। इसके अलावा इस शब्द का प्रयोग सैनिकों के लिए न होकर प्रत्येक देशवासियों के लिए है। जिस पर उसकी अपनी मातृभूमि को शत्रुओं से बचाने का दायित्व है। ‘साथियो’ का संबोधन देश-प्रेम और देशभक्ति को जगाने के लिए किया गया है ताकि देश को एक बार फिर से गुलाम होने से बचाया जा सके।

प्रश्न 6.
कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तर:
कवि ने इस कविता में देशभक्तों, देशप्रेमियों, सैनिकों, युवाओं अर्थात् देशवासियों रूपी काफ़िले को देश के लिए हर समय अपना सर्वस्व कुर्बान कर देने के लिए तैयार रहने को अर्थात् आगे बढ़ते रहने की बात कही है, क्योंकि कुर्बानियों की राहें सुनसान नहीं रहनी चाहिए। बलिदान का रास्ता तो सदैव प्रगतिशील रहना चाहिए। कुर्बानियों के काफ़िले ही देश को अमरता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 7.
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?
उत्तर:
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ उस कदम की ओर संकेत करता है, जिसे देश की रक्षा करने के लिए अपनी जान की परवाह न करने वाले सैनिक उठाते हैं। ये सैनिक देश के मान-सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का मोह क़िए बिना शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए तैयार रहते हैं। यह सैनिकों द्वारा शत्रुओं से निडरतापूर्वक मुकाबला करने की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 8.
इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता ‘कर चले हम फ़िदा’ उर्दू के प्रगतिशील तथा अति लोकप्रिय कवि कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने उन सैनिकों के हृदय की आवाज़ को व्यक्त किया है, जिन्हें अपने देश के प्रति किए गए हर कार्य, हर कदम, हर बलिदान पर गर्व है इसलिए उन्हें प्रत्येक देशवासी से कुछ आशाएँ हैं, अपेक्षाएँ हैं कि उनके इस संसार से विदा हो जाने के बाद वे देश की आन, मान, शान पर आँच नहीं आने देंगे, बल्कि समय आने पर अपना बलिदान देकर भी देश की रक्षा करेंगे। यही इस कविता का प्रतिपाद्य है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
साँस थमती गई, नज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
उत्तर:
भाव यह है कि युद्ध में सैनिकों का मुकाबला करते हुए सैनिक अपनी अंतिम इच्छा प्रकट करते हुए कह रहे हैं कि सैनिकों एवं देशवासियो! तुम अपने बलिदान से ऐसी लकीर खींच दो जिसे पार करके कोई शत्रु रूपी रावण इस ओर कदम रखने का साहस न कर सके और देश को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े।

प्रश्न 2.
खींच दो अपने खें से ज़मीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई
उत्तर:
कवि सैनिकों से कहता है कि जिस प्रकार वनवास के समय लक्ष्मण ने सीता जी की रक्षा के लिए ज़मीन पर लक्ष्मण रेखा (रक्षा हेतु) खींची थी, उसी प्रकार तुम भी अपने खून से लकीर खींचो ताकि देश के अंदर कोई रावण रूपी दस्यु प्रवेश न कर सके। इस वतन की रक्षा का भार अब तुम्हारे पर है।

प्रश्न 3.
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो।
उत्तर:
इस अंश का भाव है कि वीरों, सैनिकों, देशभक्तों तथा क्रांतिकारियों के होते हुए सीमा पार से कोई रावण या आक्रमणकारी या दस्यु या आतंकवादी देश में प्रवेश करके देश की अस्मिता को नहीं लूट सकती। अर्थात् राम और लक्ष्मण जैसे अलौकिक वीरों की धरती पर आकर कोई भी दुष्ट भारत माता का दामन नहीं छू सकता।”

भाषा अध्ययन

प्रश्न  1.
इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं। गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

  1. कट गए सर,
  2. नब्ज़ जमती गई,
  3. जान देने की रुत,
  4. हाथ उठने लगे।

उत्तर:
       गीत में विशिष्ट प्रयोग                     आशय (अर्थ)                          वाक्य में प्रयोग

  1. कट गए सर।                            जान चली गई।                          भारतीय वीर सैनिकों के देश रक्षा में सर कट गए।
  2. नब्ज़ जमती गई                        मौत के समीप होते जाना।            युद्धभूमि में नब्ज़ जमते जाने पर भी वीरों के कदम आगे
                                                                                                बढ़ते गए।
  3. जान देने की रुत                       बलिदान का अवसर।                  जान देने की रुत हमेशा नहीं आती।
  4. हाथ उठने लगे                         अत्याचार करना।                        जो कोई हमारी मातृभूमि पर हाथ उठाने की कोशिश
                                                                                                करेगा, तो हम उसे धूल में मिला देंगे।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
कैफ़ी आज़मी उर्दू भाषा के एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे। ये पहले गज़ल लिखते थे। बाद में फिल्मों में गीतकार और कहानीकार के रूप में लिखने लगे। निर्माता चेतन आनंद की फिल्म ‘हकीकत’ के लिए इन्होंने यह गीत लिखा था, जिसे बहुत प्रसिधि मिली। यदि संभव हो सके तो यह फिल्म देखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
“फिल्म का समाज पर प्रभाव’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
कैफ़ी आज़मी की अन्य रचनाओं को पुस्तकालय से प्राप्त कर पढ़िए और कक्षा में सुनाइए। इसके साथ ही उर्दू भाषा के अन्य कवियों की रचनाओं को भी पढ़िए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
एन०सी०ई०आर०टी० द्वारा कैफ़ी आज़मी पर बनाई गई फिल्म देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
सैनिक जीवन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक निबंध लिखिए। सैनिक जीवन की चुनौतियाँ ।
उत्तर:
सैनिक अपने अदम्य साहस व शक्ति से देश की रक्षा के लिए प्राकृतिक व मानव-जनित अनेक चुनौतियों (आपत्तियों) का सामना करते हैं। वे भीषण गर्मी, सर्दी, वर्षा अथवा किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा में अपने को अडिग रखकर देश-रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। दुश्मन अपनी विजय के लिए हर संभव तरीके से सैनिकों को परास्त करना चाहता है, लेकिन सैनिक दुश्मन की हर चाल को काटते हैं। दुश्मन-देश अपनी सामरिक क्षमता का उपयोग कर उन्हें हराना चाहता है, लेकिन उसके किसी भी प्रकार के व्यूह को सैनिक अपने जीवन की परवाह किए बिना असफल करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सैनिक अपने प्रशिक्षण काल से लेकर देश सेवा के आखिरी दिन तक चुनौतियों का मुकाबला करते हैं। सच तो यह है कि चुनौतियों का मुकाबला करने का दूसरा नाम सैनिक है। सैनिकों की अनेक चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि वे अपने बच्चों, घर-परिवार, संबंधी आदि सबसे दूर रहकर योगी जैसा जीवन जीते हैं। हम इन सैनिकों को सलाम करते हैं।

प्रश्न 2.
आज़ाद होने के बाद सबसे मुश्किल काम है आज़ादी बनाए रखना । इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने स्कूल से किसी समारोह पर यह गीत या अन्य कोई देशभक्तिपूर्ण गीत गाकर सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम जी! हमने बचपन में ऐसे-ऐसे कितने धनुष तोड़ डाले। आपने तब तो क्रोध नहीं किया। फिर इस पर इतनी ममता क्यों?
परशुराम-अरे राजकुमार! लगता है तेरी मौत आई है। तभी तो तू सँभलकर बोल नहीं पा रहा। तू शिव-धनुष को आम धनुष के समान समझ रहा है।
लक्ष्मण-हमने तो यही जाना था कि धनुष-धनुष एक-समान होते हैं। फिर राम ने तो इस पुराने धनुष को छुआ भर था कि यह दो टुकड़े हो गया। इसमें राम का क्या दोष? | परशुराम-अरे मूर्ख बालक! लगता है तू मेरे उग्र स्वभाव को नहीं जानता। मैं तुझे बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ। तू क्या मुझे कोरा मुनि समझता है। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। मैंने कई बार पृथ्वी के सारे राजाओं का संहार किया है। मैंने सहस्रबाहु की भी भुजाएँ काट डाली थीं। मेरा फरसा इतना कठोर है कि इसके डर से गर्भ के बच्चे भी गिर जाते हैं।

लक्ष्मण-वाह मुनि जी! आप तो बहुत बड़े योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे कुठार दिखाकर डराना चाहते हैं। आपका बस चले तो फैंक मारकर पहाड़ को उड़ा दें। मैं भी कोई छुईमुई का फूल नहीं हूँ जो तर्जनी देखने-भर से मर जाऊँ। मैं तो आपको ब्राह्मण समझकर चुप रह गया। हमारे वंश में गाय, ब्राह्मण, देवता और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाई जाती। फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों से अधिक घातक हैं। आपने शस्त्र तो व्यर्थ ही धारण कर रखे हैं।
परशुराम-विश्वामित्र! यह बालक तो बहुत मूर्ख, कुलनाशक, निरंकुश और कुलकलंक है। मैं तुम्हें कह रहा हूँ कि इसे रोक लो। इसे मेरे प्रताप और प्रभाव के बारे में बताओ। वरना यह मारा जाएगा।

लक्ष्मण-मुनि जी! आपके यश को आपके सिवा और कौन कह सकता है। आप पहले भी अपने बारे में बहुत प्रकार से बहुत कुछ कह चुके हैं। कुछ और रह गया हो तो वह भी कह लीजिए। वैसे सच्चे शूरवीर युद्ध भूमि में अपना गुणगान नहीं करते, वीरता दिखाते हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम ने अपने विषय में सभी में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
अथवा
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में परशुराम ने अपने विषय में जो कहा, उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा-“मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। मैंने अनेक बार अपनी भुजाओं के बल पर धरती के सारे राजा मार डाले हैं और यह पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी है। मेरा फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजा को मार डाला था। इसे देखकर गर्भिणी स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं।”

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई? [Imp.] [CBSE; A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद के आधार पर संक्षेप में लिखिए कि परशुराम की क्रोधपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें शूरवीर की क्या पहचान बताई? [CBSE 2008]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा के बारे में बताया कि सच्चा वीर रणभूमि में वीरता दिखलाता है, अपना गुणगान नहीं करता सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।

प्रश्न 4.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर हैं। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि साहस और शक्ति तभी तक अच्छे लगते हैं, जब तक कि साहसी व्यक्ति विनम्र रहे। जैसे ही शक्तिशाली व्यक्ति उदंडता करता है, या घमंड दिखाता है, या बढ़-चढ़कर बोलता है, वह बुरा लगने लगता है। परशुराम और लक्ष्मण दोनों के उदाहरण सामने हैं। परशुराम पराक्रमी हैं, किंतु उसका स्वयं को महापराक्रमी, बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रियकुल घातक कहना बुरा लगता है। जैसे-जैसे वह अपने कुठार को सुधारता है और वचन कड़े करता चला जाता है, वैसे-वैसे वह हँसी का पात्र बनता चला जाता है।

लक्ष्मण का साहस हमें भला लगता है। परंतु वह भी सीमाएँ तोड़ देता है। धीरे-धीरे वह बहुत उग्र, कठोर और उद्देड हो जाता है। इस कारण सभी सभाजन उसके विरुद्ध हो जाते हैं। लक्ष्मण की उदंड शक्ति हमें खटकने लगती है। दूसरी ओर, रामचंद्र साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का भी परिचय देते हैं। इसलिए वे सबका हृदय जीत लेते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।
उत्तर:
लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले-अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम के वीर-वेश का मजाक उड़ाते हुए कहा-मुनि जी! यदि आप भी वीर योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। हम आपसे टक्कर लेंगे; और सच कहूँ! मैंने आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा कि सामने कोई ढंग का योद्धा आया है। उससे दो-दो हाथ करूं। इसीलिए मैंने आपके सामने कुछ अभिमानपूर्वक बातें कही थीं। मुझे पता होता कि आप कोरे मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं भला आपसे क्यों भिड़ता। आशय यह है कि परशुराम मुनि-ज्ञानी हैं। उनका वीर-वेश ढोंग है।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।
उत्तर:
विश्वामित्र ने परशुराम के बड़बोले वचन सुने। परशुराम ने बार-बार कहा कि मैं पल-भर में लक्ष्मण को मार डालूंगा। इन वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन हँसे। सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे। वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँड़ा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। रामचरितमानस में उन्होंने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें चौपाई-दोहा शैली को अपनाया गया है। दोनों छंद गेय हैं। तुलसी की प्रत्येक चौपाई संगीत के सुर में ढली हुई जान पड़ती है। उन्होंने संस्कृत शब्दों को विशेष रूप से कोमल और संगीतमय बनाने का प्रयास किया है। भाषा को कोमल बनाने के लिए उन्होंने कठोर वर्गों की जगह कोमल ध्वनियों का प्रयोग किया है। जैसे–’श’ की जगह ‘स’, ‘ण’ की जगह ‘न’, ‘क्ष’ की जगह ‘छ’, ‘य’ की जगह ‘इ’ आदि। जैसे-• नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे। इस काव्यांश में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास आदि अलंकारों का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है। कुछ उदरण देखिए
उपमा-लखन उतर आहुति सम। उत्प्रेक्षा-तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू।। अनुप्रास-न तो येहि काटि कुठार कठोरे।
इस काव्यांश में वीर तथा हास्य रस की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। मुहावरों और सूक्तियों के साथ-साथ वक्रोक्तियों का प्रयोग भी मनोरम बन पड़ा है। सूक्ति का एक उदाहरण देखिए
सेवकु सो जो करै सेवकाई।। वक्रोक्ति-अहो मुनीसु महाभट मानी।। इस प्रकार यह काव्यांश भाषा की दृष्टि से अत्यंत मनोरम है।

प्रश्न 7.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘परशुराम-लक्ष्मण : संवाद’ मूल रूप से व्यंग्य का काव्य है। व्यंग्य के सूत्रधार हैं-वीर एवं वाक्पटु लक्ष्मण। उनके सामने ऐसा योद्धा है जिस पर धनुष-बाण नहीं चलाया जा सकता। परशुराम बूढे हैं, मुनि हैं, ब्राह्मण हैं; किंतु बहुत डिगियल और बड़बोले हैं। इस कारण लक्ष्मण भी उन पर बातों के तीर चलाते हैं। परशुराम जितनी पोल बनाते हैं, लक्ष्मण वह पोल खोल देते हैं। वे परशुराम की खोखली वीरता की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। | परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले का संहार करने की घोषणा करते हैं। लक्ष्मण कहते हैं-हमने तो बचपन में ऐसे कितने ही धनुष तोड़ रखे हैं। परशुराम कहते हैं-शिव-धनुष कोई ऐसा-वैसा धनुष नहीं था। लक्ष्मण कहते हैं-हमारी नजरों में सब धनुष एक-से होते हैं। परशुराम स्वयं को बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रिय-कुल द्रोही, सहस्रबाहु संहारक कहते हैं। लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-वाह! मुनि जी तो सचमुच महायोद्धा हैं। वे फैंक से ही पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। परंतु यहाँ भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं। परशुराम विश्वामित्र को कहते हैं कि वे लक्ष्मण को उसकी महिमा का वर्णन करें, वरना यह मारा जाएगा। तब लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-मुनि जी! आपसे बढ़कर आपकी महिमा और कौन बता सकता है। अपने गुण बताते-बताते आपका पेट अभी न भरा हो तो और कह लो। फिर सच्चे वीर युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाते हैं, बातें नहीं बताते। परशुराम क्रोध में आकर विश्वामित्र को कहते हैं कि मैं अभी इसे मारकर गुरु-ऋण से उऋण होता हैं। इस पर लक्ष्मण चोट करते हुए कहते हैं-हाँ हाँ, माता-पिता का ऋण तो आप उतार चुके। अब गुरु-ऋण भारी पड़ रहा है। लंबे समय से न चुका पाने के कारण ब्याज भी बढ़ गया होगा। लाओ, कोई हिसाब-किताब करने वाला बुलाओ। मैं अभी अपनी थैली खोलकर ऋण चुकाता हूँ। इस प्रकार यह अंश व्यंग्य से भरपूर है। तुलसी ने सच ही कहा है
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।। परशुराम यदि आग हैं तो लक्ष्मण के वचन घी की तरह काम करते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
उत्तर:
‘ब’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है। ‘ह’ की भी आवृत्ति है।
( ख ) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा-कोटि कुलिश (वज्र) के समान वचन। अनुप्रास-कोटि कुलिस।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा-तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो। पुनरुक्ति प्रकाश-बार-बार।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर:
उपमा-लखन उतर आहुति सरिस (लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान थे)
जल सम बचन (वचन जल के समान थे)
रूपक-भृगुबर कोप कृसानु (क्रोध रूपी आग) रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में विचार-क्रोध केवल नकारात्मक भाव नहीं है। वह भी निर्माण के काम आता है। जैसे हथौड़ा और बुलडोजर केवल भवन तोड़ने का ही काम नहीं करते, बल्कि वे भवन बनाने में सहयोग करते हैं। उसी भाँति क्रोध बुरी बातों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। यदि दुर्योधन द्रौपदी के वस्त्र खींचती रहे और लोग बिना क्रोध किए देखते रहें तो फिर न्याय की रक्षा कैसे होगी? यदि कोई गुंडा आपके घर आकर गालियाँ बकता रहे और आप शांत बने रहें तो गुंडा चुप कैसे होगा? यदि परशुराम बढ़-चढ़कर बकझक करते रहें और लक्ष्मण का सिर उतारने को तैयार हो जाएँ तो फिर उन्हें कौन रोकेगा? इसका एक ही उत्तर है-क्रोध। ऐसे समय में क्रोध रक्षक की भूमिका निभाता है। वह स्वभाव से क्षत्रिय है, सिपाही है।
। विपक्ष में विचार-क्रोध चांडाल है। यदि एक चांडाल के विरुद्ध अपना चांडाल खड़ा कर दिया जाए तो, भी चांडाल रहेगा तो चांडाल ही। क्रोध ध्वंस का काम तो कर सकता है, किंतु निर्माण नहीं कर सकता। इस पाठ को ही देख लें। लक्ष्मण के क्रोध ने परशुराम के बड़बोलेपन की फैंक तो निकाल दी किंतु स्वयं फेंक में आ गया। वह परशुराम को इतना अधिक भड़का गया कि कुछ भी विध्वंस हो सकता था। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 10.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर:
मेरा व्यवहार लक्ष्मण और राम के बीच का होता। मैं लक्ष्मण की भाँति परशुराम के बड़बोलेपन की हवा तो निकालता किंतु बदले में उसका अपमान न करता। मैं उसी की तरह ज़ोर-जोर से बोलकर उसे परिस्थिति समझने के लिए कहता। यदि वे सुनने के लिए तैयार हो जाते तो फिर विनय का प्रदर्शन करता। आखिर वे हैं तो बड़े, बूढ़े, मुनि और सम्माननीय।

प्रश्न 11.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर:
एक खरगोश खुद को बहुत तेज और कछुए को बहुत धीमा समझता था। इसी घमंड में उसने उसे दौड़ की चुनौती दे दी। कछुआ हँसते-हँसते मान गया और दौड़ में शामिल हो गया। खरगोश ने एक छपाका मारा और आधा रास्ता पार कर लिया। अब शरारतवश सोचने लगा–बाकी रास्ता तो मैं सुस्ता कर भी पार कर लूंगा। यह सोचकर वह सचमुच सुस्ताने लगा। परंतु उसे नींद आ गई। इधर कछुआ धीमे-धीमे चलता रहा और लक्ष्य तक पहुँच गया। खरगोश जागा तो बहुत देर हो चुकी थी। तब उसे अहसास हुआ कि किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिए।

प्रश्न 12.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर:
मुझे याद है। मैं पूरे नगर की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आया। खेल-विभाग के अधिकारी ने मुझे कहा-अगर तुम प्रांतीय प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हो तो मुझे एक हजार रुपये ला देना, वरना दूसरे का नाम आगे भेज दूंगा।
मैंने उस अधिकारी की शिकायत अपने जिलाधीश को कर दी। परिणाम यह हुआ कि मुझे अवसर मिला और मैंने प्रांतीय प्रतियोगिता जीती। उस अधिकारी को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी।

प्रश्न 13.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर:
अवधी भाषा आजकल लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, फतेहपुर और आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
उत्तर:
छात्र पढे–विनय-पत्रिका, कवितावली, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल।

प्रश्न
कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मुझे बचपन में अनेक बार रामलीला देखने का अवसर मिला। मुझे सबसे अधिक मार्मिक प्रसंग लगा-लक्ष्मण-मूछ का। श्री राम जब छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखते हैं तो भावुक हो उठते हैं। उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती हैं। तब हनुमान सुषेण नामक वैद्य को अपने कंधों पर उठा लाते हैं। सुषेण के कहने पर हनुमान हिमालय जाकर संजीवनी बूटी ले आते हैं। इस अवसर पर राम की अधीरता, विलाप और हनुमान के आने पर खुशी देखकर मैं भावमुग्ध हो जाता हूँ। करुणा भरा यह प्रसंग मुझसे आज भी भुलाए नहीं भूलता।।

प्रश्न
कोही, कुलिस, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
कोही-विशेषण, काव्य में प्रयुक्त शब्द, ‘क्रोधी’ का एक बोली-रूप।।
कुलिस-कुलिश का एक रूप, काव्य में प्रयुक्त शब्द, अर्थ-वज्र, पुल्लिग। उरिन-काव्य में प्रयुक्त शब्द, उऋण का बदला हुआ रूप, विशेषण। नेवारे-काव्य में प्रयुक्त शब्द, स. क्रिया, दूर करना।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 7 तोप

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पाठ्य पुस्तक प्रश्न

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
विरासत में मिली चीजों की बड़ी सँभाल क्यों होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विरासत में मिली चीजों की सँभाल इसलिए की जाती है क्योंकि यह हमारे पूर्वजों द्वारा प्रदत्त होती हैं। इनसे हमारे पुरखों की यादें जुड़ी होती हैं। इसके अलावा ये हमारी सभ्यता और संस्कृति का अंग होती हैं जो हमें तरह-तरह की जानकारी देती हैं। इनसे तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों की जानकारी मिलती है। विरासत अगली पीढ़ी के लिए ज्ञान की वाहक होती है। ये नई पीढ़ी के जीवन-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।

प्रश्न 2.
इस कविता से आपको ‘तोप’ के विषय में क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर:
इस कविता से हमें यह जानकारी मिलती है कि सन् 1857 की तोप हमें विरासत में मिली है। यद्यपि इस तोप का निर्माण अंग्रेज़ों ने भारतवासियों के विरुद्ध प्रयोग करने के लिए किया था, किंतु इसी तोप ने अंग्रेज़ों पर आक्रमण करके, उन्हें परास्त करके, उन्हें उनकी बुरी चालों की सज़ा दी थी। अब यह कंपनी बाग के प्रवेश द्वार पर रखी हुई है। साल में दो बार इसे चमकाया जाता है। आज तो यह अवकाश प्राप्त पुरुष की तरह प्रसन्नता का अनुभव करती है, जब वह देखती है कि बच्चे उसपर सवारी करते हैं, चिड़ियाँ उसपर बैठ कर चुहलबाज़ी करती हैं और गौरैयाँ शैतानी से उसके भीतर भी घुस जाती हैं।

प्रश्न 3.
कंपनी बाग में रखी तोप क्या सीख देती है?
उत्तर:
कंपनी बाग में रखी तोप हमें यह सीख देती है कि समय परिवर्तनशील है। वह सदा एक-सा नहीं रहता है। कोई कितना भी ताकतवर क्यों न हो एक न एक दिन उसे झुकना ही पड़ता है। अत्याचार पर सदा ही सदाचार की जीत होती आई है। इसके अलावा यह तोप हमें और भी कई सीख देती है; जैसे-

  1. हमें अतीत से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
  2. हमें अपनी स्वतंत्रता को सदा बचाकर रखना चाहिए। इसके लिए भले ही हमें अपना सब कुछ अर्पित करना पड़े।
  3. हमें अच्छा कार्य करना चाहिए ताकि समय बदलने पर भी लोग अच्छे कामों के लिए हमें याद करें।

प्रश्न 4.
कविता में तोप को दो बार चमकाने की बात की गई है। वे दो अवसर कौन-से होंगे?
उत्तर:
‘तोप कविता में कवि ने तोप को दो बार चमकाने की बात कही है। वे दो अवसर हैं-15 अगस्त और 26 जनवरी ।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप।
उत्तर:
भाव यह है कि सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जिस तोप ने असंख्य स्वतंत्रता प्रेमी वीरों और योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया था, कंपनी बाग के मुहाने पर रखी वही तोप आज विरासत बन गई है। इस तोप की शक्ति अब | वैसी नहीं, जैसी तब थी। आज यह बच्चों की घुड़सवारी का साधन बनी हुई है तो यह चिड़ियों के गपशप करने की प्रिय जगह बन गई है। गौरैयें तो इसके अंदर-बाहर आ-जाकर छिपम-छिपाई-सा खेल खेलती प्रतीत होती हैं।

प्रश्न 2.
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद ।
उत्तर:
इन पंक्तियों का आशय है कि एक दिन जो तोप शक्तिशाली तथा क्रूरता का प्रतीक थी, आज उसका कोई महत्त्व नहीं है अर्थात् तोप महत्त्वहीन होकर कंपनी बाग के मुख्य द्वार पर प्रदर्शन की तथा बच्चों के मनोरंजन की वस्तु बनकर पड़ी है।

प्रश्न 3.
उड़ा दिए थे मैंने,
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।
उत्तर:
भाव यह है कि तोप वर्ष 1857 के आसपास बहुत ही शक्तिशाली थी। तत्कालीन भारत में अंग्रेजों का शासन था। उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से युद्ध करने वालों को तोप से उड़ा दिया था। कंपनी बाग के मुहाने पर रखी इस तोप से असंख्य शूरमाओं को उड़ा दिया था। उस समय यह तोप आतंक की पर्याय थी। इस तोप ने वीरों के अलावा निर्दोषों को भी अपनी शक्ति से मौत की नींद सुला दिया था।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
कवि ने इस कविता में शब्दों का सटीक और बेहतरीन प्रयोग किया है। इसकी एक पंक्ति देखिए ‘धर रखी गई है। यह 1857 की तोप’ ‘घर’ शब्द देशज है और कवि ने इसका कई अर्थों में प्रयोग किया है। ‘रखना’ ‘धरोहर’ और ‘संचय’ के रूप में।
उत्तर:

  1. खरा सोना मजबूत होता है।
  2. वह मेरी कसौटी पर खरा उतरा।

प्रश्न 2.
‘तोप’ शीर्षक कविता का भाव समझते हुए इसका गद्य में रूपातंरण कीजिए।
उत्तर:
कविता का भाव गद्य में रूपातंरण-1857 के स्वतंत्रता सेनानियों को मारने के लिए अंग्रेज़ों ने जिस तोप का इस्तेमाल । किया, अब वह तोप कंपनी बाग के प्रवेश द्वार पर रखी है। विरासत में मिली इस तोप की साल में दो बार स्वतंत्रता । दिवस और गणतंत्र दिवस पर विशेष देख-रेख होती है। यह तोप प्रतीक रूप में यह बताती है कि मैंने अपने समय में भारतीय वीरों को मौत के घाट उतारा था। लेकिन समय के बदलाव के साथ इस तोप पर बैठकर बच्चे सवारी का लुत्फ लेते हैं। इस पर बैठकर चिड़ियाँ बातचीत करती हैं। गौरेया नामक चिड़ियाँ इसमें भीतर बैठकर यह बताती हैं कि एक दिन सबका मुँह बंद हो जाता है। चाहे कोई कितनी ही बड़ी तोप क्यों न हो। भाव यह है कि अत्याचारी का भी एक-न-एक दिन अंत होता है। चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
कविता रचना करते समय उपयुक्त शब्दों का चयन और उनका सही स्थान पर प्रयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। कविता लिखने का प्रयास कीजिए और इसे समझिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और घनी आबादी वाली जगहों के आसपास पार्को का होना क्यों ज़रूरी है? कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर:
परिचर्चा-जहाँ आबादी अधिक होगी, वहाँ प्रदूषण भी उसी अनुपात में मिलेगा। यदि प्रदूषण से बचने का उपाय नहीं किया गया तो वह मानव के अस्तित्व के लिए खतरा बन जाता है, जहाँ घनी आबादी व जनसंख्या अधिक है, ऐसी जगहों पर पार्क इसलिए आवश्यक है ताकि पार्क में लगे पेड़-पौधे ऑक्सीजन देकर वातावरण को शुद्ध कर प्रदूषण को कम कर सकें। कुल मिलाकर कहने का भाव यह है कि वातावरण को प्रदूषण रहित रखने के लिए हर क्षेत्र में पार्क व पेड़ों का होना अनिवार्य है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता सैनानियों की गाथा संबंधी पुस्तक को पुस्तकालय से प्राप्त कीजिए और पढ़कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें ।

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