NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [Imp.]
अथवा
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?[A.I. CBSE 2008)
उत्तर:
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने, के स्थान पर ‘गरजने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि कवि को बादल क्रांति दूत के रूप में नजर आते हैं। समाज में क्रांति लाने के लिए विनम्रता की नहीं उग्रता की आवश्यकता होती है। बादलों की उग्रता उनके गर्जन में छिपी होती है, जिससे लोग सजग हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि ने उत्साह कविता में बादलों से गरजने की कामना की है और ऐसी गरजना जिससे जन-सामान्य में चेतना का संचार हो जाए। ऐसी गरजना, जिसकी गड़-गड़ाहट को सुन उदासीन लोग भी उत्साहित हो जाएँ। कवि अपेक्षा करता है कि लोग बादल की गरजना से अपनी उदासीनता को छोड़ दें और उत्साहित हो जाएँ। ऐसी अपेक्षा करते हुए कवि ने कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है।

प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कविता में बादल निम्नलिखित तीन अर्थों की ओर संकेत करते हैं

  • क्रांति के दूत और समाज में बदलाव लाने हेतु लोगों में उत्साह भरने वाले के रूप में।
  • लोगों के कष्ट और ताप हरकर शीतलता देने वाले के रूप में।
  • जल बरसाने वाली शक्ति विशेष के रूप में।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिएrञ्च
( क ) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात। [Imp.]
( ख ) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल [Imp.] बाँस था कि बबूल?
उत्तर:
निम्नलिखित पंक्तियों में नाद-सौंदर्य दर्शनीय है-

  1. घेर-घेर घोर गगन।
  2. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।
  3. तप्त धरा, जल से फिर।।
  4. शीतल कर दो-बादल गरजो!

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
मुसकान मन की प्रसन्नता को प्रकट करने वाला भाव है। मुसकान से वातावरण में प्रसन्नता फैल जाती है। मुसकराने वाला तो प्रसन्न होता ही है सामने वाला भी मुसकान देखकर खुश हो जाता है।
क्रोध मन की उग्रता और अप्रसन्नता को प्रकट करने वाला भाव है। क्रोध प्रकट करने से वातावरण में तनाव उत्पन्न हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति की आँखों से तो अंगारे निकलते ही हैं, जो भी इस क्रोध का सामना करता है वह भी अशांत हो जाता है।

प्रश्न 6.
दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
इस कविता से यह अनुमान लगता है कि वह बच्चा 8-9 महीने का रहा होगा। लगभग इसी उम्र में बच्चे के दाँत निकलना शुरू होते हैं।

प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि दाँत निकालते बच्चे से मिला तो प्रसन्न हो उठा। शिशु की भोली मुसकान को देखकर उसके निष्प्राण जीवन में प्राण आ गए। उसे लगा मानो आज कमल के फूल तालाब में न खिलकर उसकी झोंपड़ी में उग आए हैं। उसके बूढे नीरस शरीर में इस तरह मधुरता छा गई मानो बबूल के पेड़ से शेफालिका के कोमल फूल झरने लगे हों। पहले तो शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसे एकटक निहारता रहा। जब उसकी माँ ने उसे कवि से परिचित कराया तो वह शर्माने लगा। वह कवि को तिरछी नजरों से देखकर मुँह फेरने लगा। धीरे-धीरे उनकी नज़रें मिलीं। आपस में स्नेह उमड़ा। तब*बच्चा मुसकरा पड़ा। उसके उगते हुए दाँत दीखने लगे।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न .
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर:
कल मैं पहली बार अपनी बहन की ससुराल में गया। मुझे देखते ही मेरे भानजे ने एक किलकारी मारी और मुझे निहारने लगा। मैं उसकी आँखों में प्रसन्नता देखकर उसकी ओर लपका। जैसे ही मैंने उसे अपनी बहन से लेना चाहा, उसने बड़े नटखट अंदाज़ में मेरी ओर से मुँह फेर लिया। मैं मुड़कर पीछे गया तो उसने फिर-से मुँह फेर लिया। मैंने हाथों के स्पर्श से उसे गोद में लेना चाहा तो वह फिर-से माँ की गोदी में छिपने लगा। अब मैंने उसे छोड़ दिया और दूर जाकर खड़ा हो
गया। अब वह फिर से उचककर मेरी ओर देखने लगा और हँसने लगा। सचमुच मेरा भानजा बहुत नटखट है। न आता है, न दूर जाने देता है। उसे आँखमिचौली खेलने में यों ही आनंद आता है।

प्रश्न .
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फ़िल्म देखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं देखें।

फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि के अनुसार फसलें पानी, मिट्टी, धूप, हवा और मानव-श्रम के मेल से बनी हैं। इनमें सभी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ है। सभी प्रकार की मिट्टियों का गुण-धर्म निहित है। सूरज और हवा का प्रभाव समाया हुआ है। इन सबके साथ किसानों और मजदूरों का श्रम भी सम्मिलित है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं? ।
उत्तर:
फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्व हैं
1. पानी
2. मिट्टी।
3. सूरज की धूप
4. हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है? [CBSE 2008; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; 2009]
उत्तर:
इसमें कवि कहना चाहता है कि किसानों के हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर ही ये फसलें इतनी फलती-फूलती हैं। यह किसानों के श्रम की गरिमा और महिमा ही है जिसके कारण फसलें इतनी अधिक बढ़ती चली जाती हैं।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी भरपूर योगदान है। मानो हवा सिमट-सिकुड़ कर फसलों में समा जाती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर:
(क) मिट्टी के गुण-धर्म का आशय है-मिट्टी में मिले हुए वे प्राकृतिक तत्त्व, खनिज पदार्थ और पोषक तत्त्व, जिनके मेल से किसी मिट्टी का स्वरूप अन्य मिट्टियों से विशेष हो जाता है।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली प्रदूषण उत्पन्न करती है। हम कृत्रिम पदार्थों का उत्पादन करके उसका कचरा मिट्टी में छोड़ देते हैं। प्लास्टिक जैसे कृत्रिम पदार्थ मिट्टी में मिलकर उसके गुण-धर्म को नष्ट करते हैं। फैक्टरियों का कचरा और विषैला रसायन धरती के पानी को प्रदूषित करता है। इस कारण उस मिट्टी का मूल स्वभाव बदलकर विकृत हो जाता है।
(ग) यदि मिट्टी अपना मूल गुण-धर्म और स्वभाव छोड़ देगी तो जीवन का स्वरूप विकृत हो जाएगा। शायद जीवन तो नष्ट न हो किंतु वह अपरूप और विद्रूप जरूर हो जाएगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहली बात हम सचेत हों। हम मिट्टी के गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानें। इससे हम स्वयमेव जागरूक हो जाएँगे। हम स्वयं जागकर अन्य लोगों को जगाने का कार्य भी कर सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न .
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।

उत्तर:

सेवा में
संपादक महोदय
दैनिक भास्कर
नई दिल्ली
15 मार्च, 2015
महोदय
मैं आपके पत्र के माध्यम से अपने विचार पाठकों तक पहुँचाना चाहता हूँ। कृपया इन्हें प्रकाशित कर अनुगृहीत करें।
भारत कृषिप्रधान देश है। किसान ही भारत की अर्थ-व्यवस्था और कृषि-व्यवस्था की रीढ़ हैं। परंतु दुर्भाग्य से किसान ही खुशहाल नहीं हैं। वे देश को खुशहाल बनाते हैं, अपने हाथों के स्पर्श से फसलें उगाते हैं, सब लोगों का पेट भरते हैं, किंतु वे स्वयं भूखे रह जाते हैं। बाज़ार की शक्तियाँ उनका शोषण करती हैं। पिछले दिनों हजारों किसानों ने पैसों की तंगी के कारण आत्महत्या कर ली। यह भारत की कृषि-व्यवस्था पर कलंक है। इसे तुरंत रोको जाना चाहिए। सरकार को किसानों के भले के लिए ऐसी योजनाएँ लागू करनी चाहिए जिससे वे संकट की स्थिति से उबर सकें। उनकी फसलों का बीमा हो सकता है, उन्हें सस्ता ऋण दिया जा सकता है, ऋण पर ब्याज माफ़ किया जा सकता है। ऐसे अनेक उपायों से उनकी दशा को सुधारा जाना चाहिए।
भवदीय
रमेश चौहान
317, वैशाली
नई दिल्ली।

प्रश्न .
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर:

फसलों के उत्पादन में किसानों के महत्त्व को बढ़-चढ़ कर प्रचारित किया जाता है। देश के किसानों की चर्चा की जाती है किंतु किसानिनों की नहीं। भारत की कोई महिला अगर सबसे अधिक श्रम करती है, तो वह किसान-महिला है। किसान परिवारों की महिलाएँ पशुओं के चारे की कटाई, पशुओं के चारे की व्यवस्था, खेतों में रोटी पहुँचाना, फसलों को ढोना
आदि अनेक कार्य रोज-रोज करती हैं। इन कार्यों को किसी खाते में नहीं डाला जाता। उनकी गिनती नहीं की जाती। इस कारण उन्हें महत्त्व भी नहीं दिया जाता। यह किसान-महिलाओं पर अन्याय है। हमें चाहिए कि हमें उनके श्रम की चर्चा करें, उन्हें सम्मानित करें, उनको मूल्य तय करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों? [Imp.] [A.I. CBSE 2008; CBSE]
अथवा
बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए क्यों कहा गया? तर्कसहित उत्तर दीजिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
कवि अपनी आत्मकथा सुनाने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि

  • कवि के जीवन में सुखद यादें कम, दुख और निराशा अधिक है।
  • कवि अपने दुख दूसरों के सामने सुनाकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता है।
  • कवि अपने मित्रों को यह एहसास नहीं दिलाना चाहता है कि उसके दुखों का कारण तुम्हीं लोग हो।
  • कवि के दुख और वेदनाएँ समय के साथ दब गई हैं। वह उन्हें उभारना नहीं चाहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है? [CBSE]
अथवा
‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि आत्मकथा को लिखने का उचित समय नहीं मानता है। क्योकि अभी तक के उसके जीवन में ऐसी कोई महानता नहीं है जिसके उल्लेख से लोगों को प्रेरणा मिले। कवि कहता है कि मेरे हृदय में अनेक व्यथा-कथाएँ सुस्त पड़ी हुई हैं, जिससे मैं शांतचित्त हूँ। उन्हें पुनः स्मरण कर जीवन को व्यथित नहीं करना चाहता हूँ। साथ ही कवि अपनी दुर्बलताओं और प्रेम के क्षणों को सबके सम्मुख प्रकट भी नहीं करना चाहता है। ऐसा करना उसे उचित नहीं लगता है।

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है? [CBSE]
उत्तर:
स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय है-उसके जीवन के उन सुनहरे पलों की सुखद यादें जो उसने पत्नी के साथ सँजोई थी। यही यादें अब उसके जीवन पथ के लिए सहारा बनी हैं। इन्हीं के सहारे वह जीवन जी रहा है।

प्रश्न 4.
शब्दों को ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर:
(क) कवि ने अपने जीवन की अनुभूति को स्पष्ट किया है कि सुख उसके जीवन के लिए प्रवंचना मात्र बनकर रह गया। वह सुख की कल्पना करते ही रह गए और सुख उसके जीवन में केवल झाँकी दिखाकर चला गया। कब आया और कब चला गया, उन्हें पता ही नहीं चला। इस तरह कवि स्वप्न में ही सुख का अनुभव कर रहा था और आँख खुलते ही सुख विलीन हो गया।

(ख) कवि अपनी प्रेयसी की मधुर-स्मृतियों में थोड़ी देर के लिए निमग्न हो जाता है। और अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसके गालों की रक्तिम आभा उषा काल में उदित होते हुए सूर्य की अरुणिमा के समान सुंदर थी। जिसकी छाया में ऊषा भी अनुराग से भर जाती थी।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर
लख ये काले-काले बादल नील सिंधु में खिले कमल दल हरित ज्योति चपला अति चंचल सौरभ के रस के।। छोड़ गए गृह जब से प्रियतम बीते कितने दृश्य मनोरम क्या मैं ऐसी ही हूँ अक्षम
जो न रहे बस के।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर:
सुमित्रानंदन की ‘बादल’ कविता पढ़े तथा उसका संकलन करें।

अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों को बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर:
छायावादी कविता प्रकृति के चित्रण द्वारा मन के भावों को व्यक्त करती है। इसका प्रमाण निम्नलिखित पंक्तियों | में मिलता है
आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।
यहाँ फागुन की शोभा का ही चित्रण नहीं है, अपितु लोगों के मन में उठी उमंग का भी चित्रण है।
कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो। यहाँ साँस लेना, घर-घर भरना, नभ में उड़ने को पर-पर करना–तीनों स्थितियाँ फागुन और मानव-मन दोनों के लिए प्रयुक्त हुई हैं। यहाँ आकर फागुन और मानव-मन मानो एक हो गए हैं। जो फागुन के तन से प्रकट हो रहा है, वही मानव-मन से प्रकट हो रहा है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है? । [Imp.][CBSE] |
उत्तर :
फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। उसका रूप-सौंदर्य रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और हवाओं में प्रकट हो रहा है। फागुन के कारण मौसम इतना सुहाना हो गया है कि उस पर से आँख हटाने का मन नहीं करता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में चित्रित फागुन के सौंदर्य के विभिन्न चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि ने प्रकृति की सुंदरता की व्यापकता को वर्णन अनेक प्रकार से किया है। उसे हर जगह छलकता हुआ दिखाया है। घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। कवि ने जान-बूझकर उसे किसी एक दृश्य में नहीं बाँधा है, बल्कि असीम दिखाया है। कहीं साँस लेते हो’ का आशय है कि कहीं मादक हवाएँ चल रही हैं। घर-घर में भरने के भी अनेक रूप हैं। शोभा का भरना, फूलों का भरना, खुशी और उमंग का भरना। ‘उड़ने को पर-पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है जिसके विस्तृत अर्थ हैं। यह वर्णन पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है? [CBSE]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन के सौंदर्य का चित्रण कीजिए जिसके आधार पर उसे अन्य ऋतुओं से भिन्न समझा जाता है। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
उत्तर:
फागुन में वातावरण बहुत मीठा और सुहावना होता है। धरती पर सबसे अधिक फूल खिलते हैं। आसमान साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। वृक्षों पर नए फूल-पत्ते उगते हैं। ये विशेषताएँ अन्य महीनों में नहीं होतीं।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
छायावादी शिल्प की पहली विशेषता है-प्रकृति-चित्रण द्वारा मन के भावों को प्रकट करना। इस कविता में भी फागुन के द्वारा मन की मस्ती और उमंग का चित्रण किया गया है। ‘घर-घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की ओर भी संकेत है और मन में उठी खुशी की ओर भी।
छायावाद की दूसरी विशेषता है-मानवीकरण। कवि ने फागुन को नायक मानकर उससे वार्ता की है। उसे संबोधित करते हुए कहा है
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो। छायावाद की तीसरी विशेषता है-गीति-शैली। इसमें भी गीत-शैली के सभी गुण हैं-संक्षिप्तता, अनुभूति, गेयता, प्रवाहपूर्ण भाषा।
छायावाद की सबसे बड़ी विशेषता है–सांकेतिकता। छायावादी शब्द में शब्द से परे बहुत कुछ ध्वनित होता है। यह विशेषता इस कविता में भी है।
संस्कृतनिष्ठ लघु-लघु शब्दों का प्रयोग भी छायावादी शिल्प की विशेषता है जो इस कविता में स्पष्ट दिखाई देती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर:
होली के आसपास वसंत ऋतु होती है। सभी पेड़-पौधे पुराने पत्ते गिरा देते हैं तथा नए-नए पत्ते धारण करते हैं। खेतों में सरसों फूल उठती है। हर तरफ पीले फूल दिखाई देते हैं।

पाठेतर सक्रियता ।

प्रश्न 1
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर:
मिला बन में मुरलिया वाला सखी मिला बन में मुरलिया वाला।
सखी कोई कहे देखो मोहन है आए, कोई कहे नन्दलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी धर पिचकारी खड़े ग्वाल सब कोई धरे हैं गुलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी मोरी साड़ी मेरो तन-मन भिगोए देखो नन्द के लाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C; CBSE]
अथवा
कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथा ने लिखने के कौन-कौन से कारण गिनाए हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग सुंदर साँवले नंद किशोर श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस तरह मंदिर का दीपक सुंदर दिखने के साथ ही अपनी चमक के आलोक से मंदिर को आलोकित करता है उस प्रकार श्रीकृष्ण अपनी सुंदरता एवं उपस्थिति से संपूर्ण ब्रजभूमि में आनंद एवं आलोक बिखेर देते हैं।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है? [CBSE]
उत्तर:
1. अनुप्रास अलंकार-

  1. ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’ (यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
  2. साँवरे अंग लसै पट-पीत (‘प’ की आवृत्ति हुई है।)
  3. ‘हिये हुलसै बनमाल सुहाई’ (यहाँ ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)

2. रूपक अलंकार-

  1. हँसी मुखचंद जुन्हाई (मुख रूपी चंद्र।)
  2. जै जगमंदिर-दीपक सुंदर (जग रूपी मंदिर के दीपक ।)

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है? [Imp.] [CBSE 2008; CBSE]
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का मनोहर चित्रण है। श्रीकृष्ण के पैरों में पड़े नूपुर और कमर की करधनी में लगे हुँघरू मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र और गले में वनफूलों की माला सुंदर लग रही है।

शिल्प सौंदर्य
भाषा – मधुर सरस ब्रजभाषा, जिसमें संगीतमयता का गुण है।
छंद – सवैया छंद है।
गुण – माधुर्य गुण है।
बिंब – दृश्य एवं श्रव्य बिंब साकार हो उठा है।
अलंकार – ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’, ‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै’ में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
( ख ) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:
प्रायः कवि बसंत ऋतु को उद्दीपन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। फूलों का सौंदर्य, नव-प्रस्फुटित कोंपलें, मंद-मंद प्रवाहित समीर जहाँ हृदय में स्पंदन करते हैं उस परंपरा से हटकर कवि देव ने स्नेह के प्रतीक शिशु रूप में बसंत की कल्पना की है जो स्वयं कामदेव का पुत्र है। पुत्र बसंत के लिए डालियों का पालना, नव-पल्लवों का बिछौना, तोते-मोर का शिशु से बातें करना, कोयल के द्वारा शिशु को प्रसन्न करने का प्रयास करना, नायिका द्वारा शिशु की नज़र उतारना, गुलाब के द्वारा प्रातः चुटकी बजाकर जगाना आदि रूप अन्य-कवियों की सोच का परिष्कृत रूप है।

यहाँ नायक-नायिका के हृदय-स्पंदन में उद्दीपन न होकर अपने शिशु के प्रति स्नेह के लिए आतुर दिखाई देता है।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ – पंक्ति का भाव यह है कि प्रात:काल गुलाब की कलियाँ चटकती हैं और खिलकर फूल बन जाती हैं। इन कलियों के चटकने की आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानो बालक वसंत को जगाने के लिए गुलाब चुटकी बजा रहा है।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
अथवा
अथवा ‘आत्मकथ्य’ कविता की भाषा पर प्रकाश डालिए।[CBSE]
उत्तर:
कवि ने चाँदनी-रात की सुंदरता को निम्न रूपों में देखा है-

  1. स्फटिक शिलाओं से निर्मित सुधा-मंदिर रूप में देखा है।
  2. चारों ओर फैलती चाँदनी को दधि रूप-समुद्र की तरह देखा है जो चारों ओर से उमड़ पड़ रही है।
  3. आँगन में उमड़ते हुए दूध के झाग के रूप में देखा है।
  4. चाँदनी को नायिका के रूप में देखा है जो तारों से सुसज्जित है।
    अंबर रूपी-दर्पण के रूप में चाँदनी को देखा है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ का भाव यह है कि चाँदनी रात में आसमान स्वच्छ-साफ़ दर्पण के समान दिखाई दे रहा है। स्वच्छ आसमान रूपी दर्पण में चमकता चंद्रमा धरती पर खड़ी राधा का प्रतिबिंब प्रतीत हो रहा है। यहाँ चंद्रमा की तुलना राधा के प्रतिबिंब से की गई है।

इस पंक्ति में चाँद की तुलना राधा के प्रतिबिंब से करके परंपरागत उपमान को उपमेय से हीन बताया गया है। परंपरा के विपरीत ऐसा करने से यहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ है।

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि देव ने उक्त कवित्त में निम्न उपमानों का प्रयोग किया है

  1. स्फटिक शिला
  2. सुधा-मंदिर
  3. उदधि-दधि
  4. दूध के से फेन
  5. तारों से
  6. आरसी से।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
पठित कविताओं के आधार पर देव की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएँ दिखाई देती हैं
भाव-सौंदर्य-
कवि देव ने अपनी कविताओं में सामंती वैभव-विलास एवं रूप सौंदर्य का चित्र खींचा है। वे श्रीकृष्ण को । संसार रूपी मंदिर का प्रकाशमान दीपक और ब्रज के दूलह के रूप में चित्रित करते हैं। प्रकृति वर्णन में सिद्धहस्त देव ने नवीन कल्पना एवं मौलिकता का समावेश करते हुए प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्र खींचा है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है? [Imp.] [CBSE; CBSE 2008; 08 C]
उत्तर:
सीता स्वयंवर के अवसर पर लक्ष्मण ने क्रोधित परशुराम को धनुष टूट जाने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए-

  • यह धनुष (शिव-धनुष) बहुत पुराना था।
  • राम ने तो इसे नया समझकर देखा था।
  • पुराना धनुष राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
  • पुराना धनुष टूटने से हमें क्या लाभ-हानि होना था।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है? ।
उत्तर:
परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रिया के आलोक में उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ पता चलती हैं-

राम की विशेषताएँ|

  1. राम का स्वभाव अत्यंत विनम्र था।
  2. राम निडर, साहसी, धैर्यवान तथा मृदुभाषी थे।
  3. वे बड़ों के आज्ञाकारी तथा आज्ञापालक थे।

लक्ष्मण की विशेषताएँ

  1. लक्ष्मण में वाक्पटुता कूट-कूटकर भरी थी।
  2. उनका स्वभाव तर्कशील था।
  3. वे बुद्धिमान तथा व्यंग्य करने में निपुण थे।
  4. वे प्रत्युत्पन्नमति थे।
  5. वे वीर किंतु क्रोधी स्वभाव के थे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए पाँयनि नूपुर मंजु बजें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई। साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई।
उत्तर:
लक्ष्मण और परशुराम के मध्य हुए संवाद का यह भाग सबसे अच्छा लगा
लक्ष्मण – आप तो मेरे लिए काल को ऐसे बुला रहे हैं जैसे वह आपके वश में हो और भागा-भागा चला आएगा। परशुराम – यह कटुवादी बालक निश्चित रूप से मरने के योग्य है। अब तक मैं इसे बालक समझकर बचाता रहा।
परशुराम – मेरा फरसा अत्यंत तेज़ धारवाला है और मैं निर्दयी हूँ। विश्वामित्र जी मैं इसे आपके स्वभाव के कारण छोड़ रहा हूँ अन्यथा इसी फरसे से इसे काटकर गुरुऋण से उरिण हो जाता।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है। [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से बहुत ही क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने वाले के रूप में संसार में प्रसिद्ध हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी के राजाओं को पराजित किया, उनका वध किया और जीती हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। इससे मैंने सहस्त्रबाहु की भुजाएँ काट दीं। यह फरसा इतना कठोर है कि यह गर्भ के बच्चों की भी हत्या कर देता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। [CBSE]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि

  • वीर योद्धा शत्रु से अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं।
  • वीर योद्धा रण क्षेत्र में शत्रु को सम्मुख देखकर युद्ध करते हैं और अपनी वीरता दिखाते हैं।
  • वीर योद्धा शत्रु को देखकर भयभीत नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है? [CBSE]
उत्तर:
यह सत्य है कि साहस और शक्ति हर व्यक्ति के व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाते हैं तथा योद्धाओं के लिए ये गुण अनिवार्य भी हैं, किंतु इनके साथ यदि विनम्रता का मेल हो जाए तो ये और भी उत्तम बन जाते हैं। विनम्रता से अकारण होने वाले वाद-विवाद या अप्रिय घटनाएँ होते-होते रुक जाती हैं। विनम्रता शत्रु के क्रोध पर भी भारी पड़ती है। अपनी विनम्रता के कारण व्यक्ति विपक्षी के लिए भी सम्मान का पात्र बन जाता

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है? [CBSE]
उत्तर:
(क) लक्ष्मण ने हँसते हुए परशुराम से व्यंग्यात्मक भाव से मधुर वचनों के माध्यम से कहा, “अरे! मुनिवर आप तो महायोद्धा निकले। आप बार-बार अपना कुल्हाड़ा मुझे दिखाकर ऐसा करना चाह रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देना चाहते हो।।

(ख) लक्ष्मण व्यंग्य भाव से परशुराम से कहते हैं कि यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (सीताफल का छोटा-सा फल) नहीं है जो आपकी तर्जनी देखकर मर जाएगा अर्थात् हम भी इतने निर्बल नहीं हैं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाएँगे। मैं आपको फरसा, धनुष-बाण देखकर ही जो कुछ कहा था, सब अभिमानपूर्वक कहा था अर्थात् आपके अस्त्र-शस्त्रों से तनिक भी भयभीत नहीं हूँ।

(ग) परशुराम की गर्वोक्तियाँ और लक्ष्मण को बार-बार मृत्यु का भय दिखाने तथा फरसा उठाकर मारने की तत्परता देखकर विश्वामित्र ने अपने मन में हँसकर कहा कि मुनि को सावन के अंधे की भाँति सब हरा-हरा दिख रहा है अर्थात् मुनि को सभी कमजोर दिखाई दे रहे हैं, जिसे वे आसानी से मार देंगे, पर मुनि जिसे मीठी खाँड़ समझकर खा जाना चाहते हैं वह लौह (फौलाद) से बने तीक्ष्ण धारवाले खाँड़े हैं अर्थात् राम-लक्ष्मण फौलाद की भाँति मजबूत हैं।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है? [CBSE 2012]
उत्तर:
श्री तुलसीदास जी हिंदी-साहित्य-आकाश के दीप्तमान नक्षत्रों में सबसे दीप्त नक्षत्र हैं। उनके काव्य से स्पष्ट है कि भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इनका काव्य अवधी भाषा का उत्कृष्ट रूप है। भाषा में कितनी सुकोमलता, सहजता, सरलता है, इसका अनुभव पाठक को स्वयं होने लगता है। अवधी भाषा की पराकाष्ठा तुलसी जी के रामचरित मानस के कारण है-यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

उनके काव्य में बहुत अच्छा नाद-सौंदर्य है, जिसे सामान्य-से-सामान्य जन गाकर भाव-विभोर हो उठता है। काव्य में गेयता है। लोक जीवन से जुड़ी लोकोक्तियों और मुहावरों ने काव्य को सजीव बना दिया है, जिससे काव्य में प्रवाह आ गया है। बिखरा हुआ विविध अलंकारों का सौंदर्य, यत्र-तत्र संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग, अर्थ को गंभीरता प्रदान करता हुआ सूक्ति-प्रयोग आदि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि व्याकरण-साहित्य पर उनका पूरा अधिकार था। काव्य में वीर रस की अभिव्यक्ति सर्वत्र है, जो पाठक को उद्वेलित करती रहती है। चौपाई और दोहा छंद का प्रयोग है जिसे सरलता से लयबद्ध गाया जा सकता है।

यहाँ तुलसी ने नीतिपरक प्रसंगों का खूब चित्रण किया है, जो प्रेरणास्रोत के रूप में मनुष्यों को प्रेरित करते हुए प्रतीत होते हैं। इस तरह भाषा उनकी अनुगामिनी है। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने जिस बात को जिस तरह कहना चाहा है, उसी के अनुकूल शब्द स्वयं चलकर आ गए हैं।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए। [CBSE]
उत्तर:
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में व्यंग्य का अनूठा प्रसंग है। व्यंग्य का यह प्रसंग लक्ष्मण और परशुराम के मध्य देखने को मिलता है। इसकी शुरुआत वीरता एवं वाक्चातुर्य के धनी लक्ष्मण से शुरू होती है। उनकी व्यंग्योक्तियाँ वृद्ध, ब्राह्मण मुनि परशुराम को मर्माहत करती हुई उत्तेजित करती हैं। लक्ष्मण उनसे युद्ध तो नहीं करते हैं, पर व्यंग्यक्तियों के माध्यम से उनका क्रोध इतना बढ़ा देते हैं कि परशुराम उन्हें मारने के लिए अपना फरसा उठा लेते हैं, पर लक्ष्मण अपने व्यंग्य बाणों से उनकी वीरता की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इन व्यंग्योक्तियों के कुछ उदाहरण हैं

  • बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिसि कीन्ह गोसाई ।।
  • का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा रामनयन के भोरें ।।
  • छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिन काज करिअ कत रोसू ।।
  • पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन पूँकि पहारू ।।
  • कोटि कुलिस समवचन तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
  • अपने मुहु तुम आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ब’ वर्ण की आवृत्ति होने पर अनुप्रास । अलंकार है।

(ख) “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा ।” उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।

(ग) “तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा” यहाँ उत्प्रेक्षा वाचक शब्द ‘जनु’ से उप्रेक्षा-अलंकार है। “बार-बार मोहि लागि बोलावा” में बार-बार शब्द की आवृत्ति होने पर पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार है।

(घ) “लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु” में उपमावाचक शब्द ‘सरिस’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है। यहाँ ‘लखन-उतर’ उपमेय और ‘आहुति’ उपमान है। ‘भृगुबरकोपु कृसानु” में भृगुबरकोपु और कृसानु में अभेद दिखाया गया है अतः रूपक अलंकार है। बढ़त देखि जल सम बचन’ में उपमा वाचक शब्द ‘सम’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है।

यहाँ उपमेय ‘बचन’ और ‘जल’ उपमान है। ‘बोले रघुकुलभानु’ में ‘रघुकुल और भानु’ में अभेद दिखाया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? [CBSE]
अथवा
गोपियों ने उद्धव को भाग्यशाली क्यों कहा है? क्या वे वास्तव में भाग्यशाली हैं? [CBSE 2012]
उत्तर:
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में निहित व्यंग्य यह है कि वे उद्धव को बड़भागी कहकर उन्हें अभाग्यशाली होने की ओर संकेत करती हैं। वे कहना चाहती हैं कि उद्धव तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम से वंचित हो और इतनी निकटता के बाद भी तुम्हारे मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग नहीं पैदा हो सका। ऐसा तो तुम जैसे भाग्यवान के ही हो सकता है जो इतना निष्ठुर और पाषाण हृदय होगा अर्थात् गोपियाँ कहना चाहती हैं कि उद्धव तुम जैसा अभागा शायद ही दूसरा कोई हो।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है? [CBSE]
उत्तर
उद्धव के व्यवहार की पहली तुलना ऐसे कमल-पत्र से की गई है जो पानी में रहते हुए भी पानी से गीला नहीं होता। उद्धव की दूसरी तुलना तेल से युक्त ऐसे घड़े से की गई है जो जल में डुबोने पर भी पानी से नहीं भीगता।

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए–

  • उद्धव तुमने प्रीति नदी में कभी पैर नहीं डुबोया।
  • तुम कृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रह गए।
  • योग संदेश हम जैसों के लिए कड़वी ककड़ी. के समान है।
  • हम तुम्हारी तरह नहीं हैं जिन पर कृष्ण के प्रेम का असर न हो।
  • उद्धव पहले के लोग ही अच्छे थे जो दूसरों की भलाई के लिए भागते-फिरते थे।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? [CBSE]
उत्तर:
गोपियाँ श्रीकृष्ण के चले जाने पर, उनसे अपने मन की प्रेम भावना को प्रकट न कर पाने के कारण विरहाग्नि में पहले से दग्ध हो रही थीं। उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण लौटकर आएँगे, किंतु वे नहीं आए। जब उनका योग-संदेश उद्धव के द्वारा प्राप्त हुआ, तो उनकी विरहाग्नि और तीव्रतर हो गई। इस तरह योग-संदेश ने विरहाग्नि में घी का काम किया।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? [CBSE 2012] |
उत्तर:
गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे श्रीकृष्ण से भी अपने प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान चाहती थीं। प्रेम के बदले प्रेम का आदान-प्रदान ही मर्यादा है, किंतु श्रीकृष्ण ने प्रेम संदेश के स्थान पर योग संदेश भेजकर मर्यादा का निर्वाह नहीं किया। इसके विपरीत गोपियों ने श्रीकृष्ण का प्रेम पाने के लिए सारी मर्यादाओं को एक किनारे रख दिया था।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है? [Imp.] [CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट करते हुए कहा कि

  1. हमारा श्रीकृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन गुड़ से चिपटी हुई चींटियों के समान है।
  2. श्रीकृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान हैं।
  3. हम गोपियाँ मन-कर्म-वचन सभी प्रकार से कृष्ण के प्रति समर्पित हैं।
  4. हम सोते-जागते, दिन-रात उन्हीं का स्मरण करती हैं।
  5. हमें योग-संदेश तो कड़वी ककड़ी की तरह प्रतीत हो रहा है। हम योग संदेश नहीं बल्कि श्रीकृष्ण का प्रेम चाहती हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है? [CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने के लिए कही है जिनका मन चक्र के समान अस्थिर रहता है तथा एक जगह न टिककर इधर-उधर भटकता रहता है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें। [Imp.][CBSE]
उत्तर:
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि प्रेमासक्त और स्नेह-बंधन में बँधे हृदय पर अन्य किसी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण था कि अपने ही प्रिय श्रीकृष्ण के द्वारा भेजा गया योग-संदेश उनको प्रभावित नहीं कर सका।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए? [CBSE 2012]
उत्तर:
गोपियाँ राजधर्म के बारे में बताती हुई उद्धव से कहती हैं कि राजा का कर्तव्य यही है कि वह अपनी प्रजा की भलाई की बात ही हर समय सोचे। उसे अपनी प्रजा को बिलकुल भी नहीं सताना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं? [CBSE]
उत्तर:
श्रीकृष्ण द्वारा प्रेषित योग-संदेश को उद्धव से सुनकर गोपियाँ अवाक् रह गईं और उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके सोच में परिवर्तन हो गया है। वे प्रेम के प्रतिदान के बदले योग-संदेश देने लगे हैं। श्रीकृष्ण पहले जैसे न रहकर एक कुशल राजनीतिज्ञ हो गए हैं, जो छल-प्रपंच का भी सहारा लेने लगे हैं। राजधर्म की उपेक्षा कर अनीति पर उतर आए हैं। इन परिवर्तनों को देख वे अपना मन वापस पाने की बात कहती हैं।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए? [V. Imp.]
उत्तर:
उद्धव अत्यंत ज्ञानी हैं। उनके ज्ञान-कौशल को देखते हुए श्रीकृष्ण ने उन्हें गोपियों को योग संदेश देने भेजा था पर गोपियों के वाक्चातुर्य से ज्ञानी उद्धव परास्त हो गए। उनके वाक्चातुर्य की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं

  • व्यंग्यात्मकता : गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। वे उद्धव को बड़भागी कहकर उन पर करारा व्यंग्य करती हैं। ऐसा कहकर वे उद्धव को अभागा कहने से नहीं चूकती हैं।
  • स्पष्टता : गोपियाँ उद्धव से अपनी बातें बिना लाग-लपेट कह देती हैं। वे उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल लगी गागर से करती हैं तथा योग को कड़वी ककड़ी जैसा बताती हैं।
  • भावुकता : गोपियाँ अपनी बातें कहते-कहते भावुक भी हो जाती हैं।
  • उपालंभ का आश्रय : गोपियों की बातों में उपालंभ का भाव निहित है। वे कृष्ण को अनीति करने वाले तक कह देती हैं।

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
सूरदास जी का भ्रमरगीत जिन विशेषताओं के आधार पर अप्रतिम बन पड़ा है वे विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. सूरदास जी के भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्म का विरोध और सगुण ब्रह्म की सराहना है।
  2. वियोग शृंगार का मार्मिक चित्रण है।
  3. गोपियों की स्पष्टता, वाक्पटुता, सहृदयता, व्यंग्यात्मकता सर्वथा सराहनीय है।
  4. एकनिष्ठ प्रेम का दर्शन है।
  5. गोपियों का वाक्चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है।
  6. आदर्श प्रेम की पराकाष्ठी और योग का पलायन है।
  7. स्नेहसिक्त उपालंभ अनूठा है।

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर:
गोपियाँ अपने तर्क में कई और भी बातें शामिल कर सकती थीं। वे कह सकती थीं कि यदि योग इतना ही महत्त्वपूर्ण था तो श्रीकृष्ण ने उनसे पहले प्रेम ही क्यों किया था? यदि ऐसा ज्ञात होता कि कृष्ण का प्रेम नाटकीय है तो हम अपना मन समर्पित कर आज इतने व्यथित क्यों होते?

यह भी संभव है कि हे उद्धव! तुम्हारे समीप रहते-रहते ज्ञान की बातें सुनते-सुनते तुम्हारा ही प्रभाव पड़ गया हो और प्रेम की तुलना में अब उन्हें योग ही श्रेष्ठ लगने लगा हो। उद्धव हमारे पास एक ही मन था, जिसे हमने कृष्ण को समर्पित कर दिया है। अब निर्गुण ब्रह्म का ध्यान किस मन से करें। हे उद्धव! हमारे लिए यह संभव नहीं है कि हम प्रेम को छोड़कर योग को अपनाएँ।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर:
उद्धव ज्ञानी थे, किंतु उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव नहीं था। उस पर भी वे प्रेम के क्षेत्र में तो पूर्णतः अनभिज्ञ थे। इसलिए गोपियों ने कहा था ‘प्रीति नदी में पाउँ न बोरयौ’-इस कारण व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में गोपियों की वाक्पटुता के सम्मुख उद्धव को विवश हो चुप रहना पड़ा। इसके अलावा गोपियों के पास श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, असीम लगाव और समर्पण की शक्ति थी। वे अपने प्रेम के प्रति दृढ़ विश्वास रखती थीं। यह सब उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठा।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं।’ गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कृष्ण ने उनके निष्छल प्रेम के बदले योग संदेश भिजवाकर उनके साथ अन्याय किया है और प्रेम की मर्यादा भंग की है।

गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में पूरी तरह से नजर आता है। आज राजनीति को छल-कपट, प्रपंच, झूठ, फरेब, धोखाधड़ी, छीना-झपटी आदि का दूसरा नाम माना जाने लगा है। इन कार्यों में जो जितना निपुण है, वह उतना ही बड़ा नेता कहलाता है। इस तरह की राजनीति में धर्म, कर्तव्य, विश्वास, ईमानदारी, सदाचार जैसे मूल्यों के लिए कोई जगह नहीं है। जिस तरह गोपियों को कृष्ण को राजधर्म की याद दिलानी पड़ी, उसी तरह आज के नेता भी अपना राजधर्म पूर्णतया विस्मृत कर चुके हैं।

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