NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 15

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया? [CBSE 2012]
उत्तर:
द्विवेदी जी ने निम्नलिखित तर्क देकर पुरातनपंथियों के तर्को को नकारा और स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया

  1. स्त्रियों का नाटकों में प्राकृत बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। उन दिनों कुछ ही लोग संस्कृत बोल पाते थे। शेष शिक्षित और अशिक्षित दोनों प्राकृत बोलते थे। प्राकृत में तो सारा बौद्ध जैन साहित्य लिखा गया है। हमारी आज की हिंदी, गुजराती आदि भाषाएँ भी आज की प्राकृतें हैं। इसलिए प्राकृत भाषा बोलना अनपढ़ होने का प्रमाण बिल्कुल नहीं
  2.  यद्यपि आ स्त्री-शिक्षा होने के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, किंतु वे खो भी सकते हैं। अतः पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि प्राचीन समय में स्त्री-शिक्षा नहीं थी।
  3.  भारत में वेद-मंत्र लिखने से लेकर तर्क, व्याख्यान और शास्त्रार्थ करने वाली सुशिक्षित नारियाँ हुई हैं। अतः प्राचीन नारी को शिक्षा से वंचित नहीं कहा जा सकता।
  4.  शकुंतला का दुष्यंत को कटु वचन कहना उसकी अशिक्षा का परिणाम नहीं था, उसका स्वाभाविक क्रोध था। |

प्रश्न 2.
स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’-कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
द्विवेदी जी ने कुतर्कवादियों की स्त्री-शिक्षा विरोधी दलीलों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने कहा कि यदि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं तो पुरुषों को पढ़ाने से भी अनर्थ होते होंगे। यदि पढ़ाई को अनर्थ का कारण माना जाए। तो सुशिक्षित पुरुषों द्वारा किए जाने वाले सारे अनर्थ भी पढ़ाई के दुष्परिणाम माने जाने चाहिए। अतः उनके भी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए जाने चाहिए।
द्विवेदी जी ने दूसरा तर्क यह दिया कि शकुंतला ने दुष्यंत को कुवचन कहे। ये कुवचन उसकी शिक्षा के परिणाम नहीं थे, बल्कि उसका स्वाभाविक क्रोध था।
तीसरा तर्क व्यंग्यपूर्ण है-‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का बँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारत का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।’

प्रश्न 3.
द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्को का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है- जैसे-‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तों, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर:
इस निबंध में निम्नलिखित अंश व्यंग्यात्मक हैंवाल्मीकि रामायण के तो बंदर तक संस्कृत बोलते हैं। बंदर संस्कृत बोल सकते थे, स्त्रियाँ न बोल सकती थीं।
x x x
जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और आँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से प्रसिद्ध अखबार का संपादक इस जमाने में अपढ़ और गॅवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।
XXX
पुराणादि में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के हवाले देखकर उनको अस्तित्व तो हम बड़े गर्व से स्वीकार करते हैं, परंतु पुराने ग्रंथों में अनेक प्रगल्भ पंडितों के नामोल्लेख देखकर भी कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख अपढ़ और गॅवार बताते हैं। इस तर्कशास्त्रज्ञता और इस न्यायशीलता की बलिहारी! वेदों को प्रायः सभी हिंदू ईश्वर-कृत मानते हैं। सो ईश्वर तो वेद-मंत्रों की रचना अथवा उनका दर्शन विश्ववरा आदि स्त्रियों से करावे और हमें उन्हें ककहरा पढ़ाना भी पाप समझें।
XXX
अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म ……………… भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
X X X
पुराने ढंग के पक्के सनातन-धर्मावलंबियों ::::::::::: गई-बीती समझी जानी चाहिए।
X X X
परंतु विक्षिप्तों, बात व्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करने वाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई? क्या वह यह कहती कि-“आर्यपुत्र; शाबास! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं।”

प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है-पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। [Imp.] [CBSE 2012; CBSE 2008 C]
उत्तर:
पुराने समय में स्त्रियों के प्राकृत भाषा में बोलने के प्रमाण मिलते हैं। परंतु इसका यह तात्पर्य नहीं है कि प्राकृत भाषा अनपढों की भाषा थी। वास्तव में प्राकृत अपने समय की बोलचाल की प्रचलित भाषा थी। जिस प्रकार आज हिंदी, बांग्ला आदि प्राकृत भाषाएँ हैं। अतः प्राकृत भाषा में बोलने के कारण महिलाओं को अनपढ़ कहने की भूल नहीं की जा सकती।

प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तरे दीजिए। [Imp.]
उत्तर:
हमारी परंपरा बहुत लंबी है। उसकी सभी बातें आज अफ्माने-योग्य नहीं हैं। प्राचीन समय में कुछ बातें स्त्री-पुरुष में अंतर करके उनका पुस : युग है। आज लिप-दीकार्य नहीं है। अत: हमें अस्प में उन्हीं बातों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाती हों। तभी हमारा समाज उन्नति कर सकेगा।

प्रश्न 6.
तब की शिक्षा-प्रणाली और अब की शिक्षा-प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
तब की शिक्षा-प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित किया जाता था। शिक्षा गुरुओं के आश्रमों और मंदिरों में दी जाती थी। कुमारियों को नृत्य, गान, श्रृंगार आदि की विद्या दी जाती थी। आज की शिक्षा प्रणाली में नर-नारी-भेद नहीं किया जाता। लड़कियाँ भी वही विषय पढ़ती हैं, जो कि लड़के पढ़ते हैं। उनकी कक्षाएँ साथ-साथ लगती हैं। पहले सहशिक्षा का प्रचलन नहीं था। आज सहशिक्षा में पढ़ना फैशन बन गया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनको दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे? [Imp.]
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी खुली सोच वाले निबंधकार थे। उनके युग में स्त्रियों की दशा बहुत शोचनीय थी। उन्हें पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था। पुरुष-वर्ग उन पर मनमाने अत्याचार करता था। द्विवेदी जी इस अत्याचार के विरुद्ध थे। वे लिंग-भेद के कारण स्त्रियों को हीन समझने के विरुद्ध थे। इसलिए उन्होंने अपने निबंधों में उनकी स्वतंत्रता की वकालत की। उन्होंने पुरातनपंथियों की एक-एक बात को सशक्त तर्क से काटा। जहाँ व्यंग्य करने की जरूरत पड़ी, उन पर व्यंग्य किया। वे चाहते थे कि भविष्य में नारी-शिक्षा का युग शुरू हो। उनकी यह सोच दूरगामी थी। वे युग को बदलने की क्षमता रखते थे। उनके प्रयास रंग लाए। आज नारियाँ पुरुषों से भी अधिक बढ़-चढ़ गई हैं। वे शिक्षा के हर क्षेत्र में पुरुषों पर हावी हैं।

प्रश्न 8.
द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी जी अपने समय के भाषा-सुधारक थे। उन्होंने अमानक और अशुद्ध हिंदी को शुद्ध करने का प्रयास किया। इस निबंध में तत्कालीन संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के दर्शन होते हैं। द्विवेदी जी ने संस्कृत के साथ-साथ उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया है।

उदाहरणतया

विद्यमान, प्रमाणित, सुशिक्षित (संस्कृत शब्द)
अपढ़, गॅवार, बात, पुराना (तद्भव शब्द)
मुश्किल, बरबाद, दलील, जमाना (उर्दू शब्द)
तिस, जावे, सो, करावे, आवे (पुराने प्रयोग)
कॉलेज, स्कूल, (अंग्रेज़ी शब्द)
द्विवेदी जी का मत था कि हमें जनप्रचलित शब्दों को स्वीकार करना चाहिए। हाँ, वे शब्द व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध होने चाहिए। उनका मनमाना प्रयोग नहीं होना चाहिए। इस निबंध में द्विवेदीकालीन पुराने प्रयोग भी साफ़ दिखाई देते हैं। जैसे-करावे, आवे, सो आदि।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों-चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल।
उत्तर:
चाल-यदि जमाने की चाल बदलना चाहते हो तो चालबाज़ी छोड़ो।
दल-इस चुनाव में जनता के रोष ने सभी राजनीतिक दलों के इरादों को दल कर रख दिया। पत्र-आज के समाचार-पत्र में मेरा पत्र छपा है। हरा-हमारे खिलाड़ियों ने हरे मैदान पर हर टीम को हरा दिया। पर-पक्षी तो पकड़ा गया, पर उसके पर सुरक्षित नहीं रहे। फल-अधिक फल खाने का फल भी अच्छा नहीं होगा। कुल-हमारे कुल में सब लोगों के कुल अंक 70% से अधिक रहे हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
अपनी दादी, नानी और माँ से बातचीत कीजिए और ( स्त्री-शिक्षा संबंधी) उस समय की स्थितियों का पता लगाइए और अपनी स्थितियों से तुलना करते हुए निबंध लिखिए। चाहें तो उसके साथ तसवीरें भी चिपकाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न
लड़कियों की शिक्षा के प्रति परिवार और समाज में जागरूकता आए-इसके लिए आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर:
मैं लड़कियों के साथ बिना भेदभाव बरते उन्हें पढ़ाने की वकालत करूंगा। जो सहायता मुझसे बन पड़ेगी, करूंगा। स्त्री शिक्षा पर एक पोस्टर तैयार कीजिए। उत्तर-छात्र स्वयं करें।

प्रश्न
स्त्री-शिक्षा पर एक नुक्कड़ नाटक तैयार कर उसे प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा? [Imp.][CBSE]
अथवा
‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका के व्यक्तित्व को किन-किन व्यक्तियों ने किस रूप में प्रभावित किया? [CBSE 2012; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा।
पिताजी का प्रभाव-लेखिका के व्यक्तित्व को बनाने-बिगाड़ने में उनके पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने ही लेखिका के मन में हीनता की भावना पैदा की। उन्होंने ही उसे शक्की बनाया, विद्रोही बनाया। उन्हीं ने लेखिका को देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। उसे रसोईघर और सामान्य घर-गृहस्थी से दूर एक प्रबुद्ध व्यक्तित्व दिया। लेखिका को देश के प्रति जागरूक बनाने में उनके पिता का ही योगदान है।
शीला अग्रवाल का प्रभाव-लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी बनाने में उनकी हिंदी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का योगदान है। शीला अग्रवाल ने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य-रूप दे दिया। उन्होंने लेखिका के खून में शोले भड्का दिए। पिता उसे चारदीवारी तक सीमित रखना चाहते थे, परंतु शीला अग्रवाल ने उसे जन-जीवन में खुलकर विद्रोह करना सिखा दिया।

प्रश्न 2.
इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है? [Imp.]
उत्तर:
भटियारखाने के दो अर्थ हैं-

  • जहाँ हमेशा भट्टी जलती रहती है, अर्थात् चूल्हा चढ़ा रहता है।
  • जहाँ बहुत शोर-गुल रहता है। भटियारे का घर। कमीने और असभ्य लोगों का जमघट। पाठ के संदर्भ में यह शब्द पहले अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। रसोईघर में हमेशा खाना-पकाना चलता रहता है। पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उन्हें जागरूक नागरिक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसोईघर की उपेक्षा करते हुए भटियारखाना अर्थात् प्रतिभा को नष्ट करने वाला कह दिया है।

प्रश्न 3.
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर? [Imp.]
उत्तर:
हुआ यूं कि लेखिका के आंदोलनकारी व्यवहार से तंग आकर उनके कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को बुलवाया। पिता पहले से ही लेखिका के विद्रोही रुख से परेशान रहते थे। उन्हें लगा कि जरूर इस लड़की ने कोई अपमानजनक काम किया होगा। इस कारण उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। इसलिए वे बड़बड़ाते हुए कॉलेज गए।
कॉलेज में जाकर उन्हें पता चला कि उनकी लड़की तो सब लड़कियों की चहेती नेत्री है। सारा कॉलेज उसके इशारों पर चलता है। लड़कियाँ प्रिंसिपल की बात भी नहीं मानतीं, केवल उसी के संकेत पर चलती हैं। इसलिए प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो गया है। यह सुनकर पिता का सीना गर्व से फूल उठा। वे गद्गद हो गए। उन्होंने प्राचार्य को उत्तर दिया-‘ये आंदोलन तो वक्त की पुकार हैं : इन्हें कैसे रोका जा सकता है।’ लेखिका पिता के मुख से ऐसी प्रशंसा सुनकर विश्वास न कर पाई। उसे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। उसे तो यही आशा थी कि उसके पिता उसे डाँटेंगे, धमकाएँगे तथा उसका घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे।

प्रश्न 4.
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए [Imp.][CBSE 2012]
अथवा
लेखिका के पिता और लेखिका के बीच मतभेदों के असली कारण क्या थे?- ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लिखिए। [A.I. CBSE 2008]
उत्तर:
लेखिका और उसके पिता के विचार आपस में टकराते थे। पिता लेखिका को देश-समाज के प्रति जागरूक बनाना चाहते थे किंतु उसे घर तक ही सीमित रखना चाहते थे। वे उसके मन में विद्रोह और जागरण के स्वर भरना चाहते थे किंतु उसे सक्रिय नहीं होने देना चाहते थे। लेखिका चाहती थी कि वह अपनी भावनाओं को प्रकट भी करे। वह देश की स्वतंत्रता में सक्रिय होकर भाग ले। यहीं आकर दोनों की टक्कर होती थी। विवाह के मामले में भी दोनों के विचार टकराए। पिता नहीं चाहते थे कि लेखिका अपनी मनमर्जी से राजेंद्र यादव से शादी करे। परंतु लेखिका ने उनकी परवाह नहीं की।

प्रश्न 5.
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए। [Imp.] [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE 2008 C]
उत्तर:
सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतंत्रता-आंदोलन का समय था। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पूरे यौवन पर था। हर नगर में हड़तालें हो रही थीं। प्रभात-फेरियाँ हो रही थीं। जलसे हो रहे थे। जुलूस निकाले जा रहे थे।
युवक-युवतियाँ सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगा रहे थे। सारी मर्यादाएँ टूट रही थीं। घर के बंधन, स्कूल-कॉलेज के नियम-सबकी धज्जियाँ उड़ रही थीं। लड़कियाँ भी लड़कों के बीच खुलकर सामने आ रही थीं।
ऐसे वातावरण में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपूर्व उत्साह दिखाया। उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध सड़कों पर घूम-घूमकर नारेबाजी की, भाषण दिए, हड्तालें कीं, जलसे-जुलूस किए। उसके इशारे पर पूरा कॉलेज कक्षाएँ छोड़कर आंदोलन में साथ हो लेता था। म कह सकते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थीं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं। या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। महानगरों में बच्चे गुल्ली-डंडा, पतंग उड़ाना आदि भूल गए हैं। छोटे नगरों में, जहाँ ये खेल अभी प्रचलित हैं, अब मोहल्लेदारी उतनी नहीं रही। अब लोग अपने-अपने घरों में सिकुड़ने लगे हैं। कोई किसी दूसरे के बच्चे को अपने घर में घुसाकर राजी नहीं है। दिल भी उतने बड़े नहीं हैं। पहले संयुक्त परिवार थे। इसलिए परिवारों को अधिक बच्चों की आदत थी। उसी तरह का रहन-सहन भी था। खुले आँगन या खुली छतें थीं। आस-पड़ोस का भाव जीवित था। अब मोहल्लेदारी नहीं रही। खेलने-कूदने के शौक भी टी.वी. देखने या कंप्यूटर चलाने में बदल गए हैं। परिणामस्वरूप पड़ोस को झेलने का तात्पर्य है अपने ड्राइंगरूम में पड़ोसी बच्चे को झेलना। उसे अपने सोफे पर बैठाना तथा कभी-कभी होने वाली हानि को सहना। यह संभव नहीं रहा है। । दूसरे, अब टी.वी. संस्कृति ने नर-नारी संबंधों को उघाड़ कर इतना भड्का दिया है कि हर माता-पिता अपनी लड़कियों के बारे में सजग है। सब बच्चे अकाल-परिपक्व हो गए हैं। इस कारण माता-पिता लड़की को तो अकेला बिल्कुल नहीं छोड़ते। अतः कुल मिलाकर लड़कियों की स्वतंत्रता कम हुई है।

प्रश्न 7.
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए। [V. Imp.] अथवा मन्नू भंडारी ने यह क्यों कहा है कि अपनी जिंदगी खुद जीने के कल्चर ने हमें ‘पड़ोस कल्चर’ से विच्छिन्न कर दिया है। [CBSE 2012
उत्तर:
यह बात बिल्कुल सत्य है। आस-पड़ोस मनुष्य की वास्तविक शक्ति होती है। किसी मुसीबत में पड़ोसी ही काम आते हैं। परंतु दुर्भाग्य से अब पड़ोस में आना-जाना नहीं रहा। नर-नारी दोनों कमाऊ होने लगे हैं। इस कारण उन्हें इतना समय नहीं मिलता कि अपने निजी काम समेट सकें। छुट्टी का दिन भी घर-बार सँभालने में बीत जाता है। इस कारण पड़ोस कल्चर प्रायः समाप्त हो गई है। बड़े तो बड़े, बच्चे भी पैदा होते ही कैरियर की दौड़ में इतने अंधे होने लगे हैं कि उन्हें अपनी छोड़कर अन्य किसी की खबर नहीं है। यह शहरी जीवन का सबसे बड़ा हादसा है। इस कारण मनुष्य हृदय की उदारता, विशालता, हँसी-ठिठौली, ठहाके और उल्लास भूल गया है। वह स्वयं में बिल्कुल अकेला, उदास और बेचारा हो गया है।

प्रश्न 8.
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर:

  1. महाभोज
  2. आपका बंटी छात्र इन्हें अपने पुस्तकालय में खोजें।

प्रश्न 9.
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं लिखें।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 10.
इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।
उत्तर:
(क) उस दिन मुझे मौका मिल गया। मैं उस घमंडी मिटुनलाल के घर पहुँचा और खूब उसकी लू उतारी।
(ख) मेरे पहुँचने से पहले ही मेरे पड़ोसी मेरे विरुद्ध आग लगा चुके थे।
(ग) जब रोशनलाल की लड़की पड़ोस के लड़के के साथ भाग गई तो सब लोग उस पर थू-थू करने लगे।
(घ) लड़कों को कक्षा के बाहर खड़ा देखकर अध्यापक आग-बबूला हो गया। पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है। कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।
उत्तर:
छात्र पुस्तकालय जाकर पुस्तकें पढ़ें।

प्रश्न
लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र तैयार करें।

नमूने के तौर पर यहाँ 9 वर्षीय शिवांक की डायरी का एक पन्ना दिया जा रहा है
30 मार्च, 2001 शुक्रवार आज सुबह पापा ने जल्दी से मुझे उठाया और कहा, “देखो-देखो, बारिश हो रही है, ओले गिर रहे हैं। बहुत ठंड पड़ रही है।” फिर मैं जल्दी से उठा और पापा से कहा, “दीदी को भी उठाओ।” फिर हमने देखा कि हमारे घर के सामने वाले ग्राउंड में हरी-हरी घास पर सफ़ेद-सफ़ेद ओले गिर रहे थे। ऐसा लग रहा था किसी ने चमेली के फूल गिरा रखे हैं। बहुत अच्छा लग रहा था। ओले पड़ रहे थे। बारिश हो रही थी, चिड़िया भाग रही थी, कौए परेशान थे, पेड़ काँप रहे थे, बिजली चमक रही थी, बादल डरा रहे थे। एक चिड़िया हमारी खिड़की पर डरी-डरी बैठी थी। बहुत देर तक बैठी रही। फिर उड़ गई। अभी तक कोई बच्चा खेलने नहीं निकला। इसलिए मैं आज जल्दी डायरी लिख रहा हूँ। सुबह के दस बजे हैं। मैं अपना सीरियल देखने जा रहा हूँ। आज मेरा न्यू इंक पेन और पेंसिल बॉक्स आया। आज दोपहर को धूप निकली, फिर हम खेलने निकले। आजकल हम लोग मिट्टी के गोले बना के सुखा देते हैं फिर हमें उनके ऊपर पेंटिंग करते हैं उसके बाद फिर उनसे खेलते हैं। जानिए लँगड़ी की कुश्ती कैसे खेली जाती हैएक स्थान में बीच की लाइन के बराबर फासले पर दो लाइनें खींची जाती हैं। दो खिलाड़ी बीच की लाइन पर आकर लँगड़ी बाँधकर अपने मुकाबले वाले को अपनी-अपनी लाइन के पार खींच ले जाने की कोशिश करते हैं। जिसकी लँगड़ी टूट जाती है अथवा जो खिंच जाता है उसकी हार होती है। यह खेल टोलियों में भी खेला जाता है। दिए हुए समय के अंदर जिस टोली के अधिक बच्चे लँगड़ी तोड़ देते हैं अथवा खिंच जाते हैं उस टोली की हार होती है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
फ़ादर परिमल की गोष्ठी में सबसे बड़े माने जाते थे। वे सबके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि वे सबके घरों में उत्सवों और संस्कारों पर पुरोहित की भाँति उपस्थित रहते थे। हर व्यक्ति ,उनसे स्नेह और सहारा प्राप्त करता था। वात्सल्य तो उनकी नीली आँखों में तैरता रहता था। इस कारण सबको उनकी उपस्थिति देवदार की छाया के समान प्रतीत होती थी।

प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है? [Imp.]
अथवा
फ़ादर कामिल बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग किस आधार पर कहा गया है? [CBSE]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे। उन्होंने भारत में रहकर स्वयं को पूरी तरह भारतीय बना लिया। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको अपने देश की याद आती है तो उन्होंने छूटते ही उत्तर दिया-मेरा देश तो अब भारत है।
फ़ादर भारतीय मिट्टी में रच-बस गए। उन्होंने यहाँ रहकर राम-कथा के उद्भव और विकास पर शोध-कार्य किया। उन्होंने हिंदी सीखी ही नहीं, बल्कि अंग्रेजी-हिंदी का सबसे अधिक प्रामाणिक कोश तैयार किया। वे यहाँ के लोगों के उत्सवों और संस्कारों पर अभिन्न सदस्य के रूप में उपस्थित रहते थे। वे सचमुच भारतीय संस्कारों में खो चुके थे।

प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ोदर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के के हिंदी प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उन्होंने सबसे अधिक प्रामाणिक अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल और ब्लू बर्ड नामक नाटक का हिंदी में अनुवाद किया। इससे पहले उन्होंने इलाहाबाद से हिंदी में एम.ए. किया। तत्पश्चात् उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ विषय पर शोध-प्रबंध लिखा। उसके बाद वे सेंट जेवियर्स कॉलेज राँची में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। वे ‘परिमल’ नामक संस्था के साथ जुड़े रहे। वे जहाँ-तहाँ हिंदी के प्रति प्रेम प्रकट करते थे। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनवाने के लिए खूब प्रयत्न किया।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के एक आत्मीय संन्यासी थे। वे ईसाई पादरी थे। इसलिए हमेशा एक सफेद चोगा धारण करते थे। उनका रंग गोरा था। चेहरे पर सफेद झलक देती हुई भूरी दाढ़ी थी। आँखें नीली थीं। बाँहें हमेशा गले लगाने को आतुर दीखती थीं। उनके मन में अपने प्रियजनों और परिचितों के प्रति असीम स्नेह था। वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहारा और करुणा देने में समर्थ थे।

प्रश्न 5.
लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है। फ़ादर के मन में सब परिचितों के प्रति सद्भावना और ममता थी। वे सबके प्रति वात्सल्य भाव रखते थे। वे तरल-हृदय थे। वे कभी किसी से कुछ चाहते नहीं थे, बल्कि देते ही देते थे। वे हर दुख में साथी होते थे और सुख में बड़े बुजुर्ग की भाँति वात्सल्य देते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुँह में पहला अन्न भी डाला और उसकी मृत्यु पर सांत्वना भी दी। वास्तव में उनका हृदये सदा दूसरों के स्नेह में पिघला रहता था। उस तरलता की चमक उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती थी।

प्रश्न 6.
फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे? [CBSE 2012; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
परंपरागत रूप से ईसाई पादरी संसार से अलग जीवन जीते हैं। वे सामान्य संसारी लोगों से अलग वैराग्य की नीरस जिंदगी जीते हैं। वे ईसाई धर्माचार में ही अपना समय व्यतीत करते हैं। वे प्रायः अन्य धर्मानुयायियों के साथ मधुर संबंध बनाने में रुचि नहीं लेते।
फ़ादर बुल्के परंपरागत पादरियों से भिन्न थे। वे संन्यासी होते हुए भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे। वे उनसे मिलने के लिए सदा आतुर रहते थे तथा सबको गले लगाकर मिलते थे। वे संसारी लोगों के बीच रहकर उनसे निर्लिप्त रहते थे। वे धर्माचार की परवाह किए बिना अन्य धर्म वालों के उत्सवों-संस्कारों में भी घर के बड़े बुजुर्ग की भाँति शामिल होते थे। वे कभी किसी को अपने से दूर तथा अलग नहीं प्रतीत होने देते थे। लोग उन्हें पादरी नहीं अपितु अपना आत्मीय संरक्षक मानते थे।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। [CBSE]
उत्तर:
(क) फ़ादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर उनके प्रियजन, परिचित और साहित्यिक मित्र इतनी अधिक संख्या में रोए कि उनको गिनना कठिन है। उनके बारे में लिखना व्यर्थ में स्याही खर्च करना है। आशय यह है कि उनके दुख में रोने वालों की संख्या बहुत अधिक थी।
(ख) हम फ़ादर कामिल बुल्के को याद करते हैं तो उनका करुणापूर्ण और शांत व्यक्तित्व सामने आ जाता है। उनके ने रहने से मन में उदासी घिरने लगती है। ऐसा लगता है मानो सामने कोई शांत उदास संगीत बज रहा हो।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर:
फ़ादर के मन में भारत के संतों, ऋषियों और आध्यात्मिक पुरुषों का आकर्षण रहा होगा। हो सकता है, वे स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य धर्माचार्यों से प्रभवित रहे हों। एक वैरागी ने वैराग्य की धरती में ही जीना चाहा हो।

प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्सचैपल।’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
इस पंक्ति में फ़ादर कामिल बुल्के का स्वाभाविक देश-प्रेम व्यक्त हुआ है। जन्मभूमि से गहरा लगाव होने के कारण उन्हें वह बहुत सुंदर प्रतीत होती है।
मैं भी अपनी जन्मभूमि भारत का पुत्र हूँ। यह धरती मेरी माँ के समान है। मुझे इसका सब कुछ प्रिय लगता है। मुझे यहाँ का अन्न-जल, धर्म-संस्कृति-सब प्रिय है। मैं इसके उत्थान में अपना जीवन लगाना चाहता हूँ। मैं संकल्प करता हूँ कि मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे जन्मभूमि का अपमान हो।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 10.
मेरा देश भारत विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर:
मेरा देश भारत मेरा देश भारत है। इसकी संस्कृति बहुत प्राचीन है। यह देश वटवृक्ष के समान है। इस धरती पर अनेक धर्मों, संतों, ऋषियों और महापुरुषों ने जन्म लिया। इसकी संस्कृति बहुत महान है। यहाँ के लोगों ने सदियों से जो कुछ भी सीखा है, उसे अपने व्यवहार में उतार लिया है। इसलिए यहाँ की संस्कृति सनातन हैं। यहाँ कट्टरता का नाम नहीं है। यहाँ के लोग उदार, विनम्र
और सरल हैं। यहाँ की जीवन-शैली सहज है। इस सरलता के कारण भारतवासियों को अनेक कष्ट सहने पड़े। हजारों सालों तक गुलाम भी रहना पड़ा। फिर भी भारतवासियों ने अपना स्वभाव नहीं बदला। वे ज्यों के त्यों रहे। वही सीधी-सरल तनावरहित जीवन-शैली।
भारतीय संस्कृति आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व मानती है। यहाँ के लोग स्वयं को एक ही परमात्मा की संतान मानते हैं। इसलिए वे किसी के साथ भेदभाव नहीं करते। वे किसी भी शरणार्थी को परमात्मा का बंदा मानकर अपना लेते हैं। अहिंसा, प्रेम और करुणा भारतवासियों के खून में है। आज भी हमारे संत बाबा दुनियाभर को यही सीख दे रहे हैं। हम किसी मनुष्य को शत्रु नहीं मानते, केवल पापी को शत्रु मानते हैं; काम-क्रोध-लोभ-मद-मोह को शत्रु मानते हैं।
भारतीय संस्कृति के मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिदें, गिरजाघर देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं। यहाँ रामायण-महाभारत की गाथाएँ पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। यहाँ अभी भी रामराज्य का सपना मौजूद रहता है। आधुनिक युग में भी यहाँ अहिंसा के आधार पर स्वतंत्रता आंदोलन लड़ा गया। गाँधी जी ने अहिंसा के बल पर भारतवर्ष को स्वतंत्र करके दिखा दिया। सचमुच भारत महान है। इसकी परंपराएँ महान हैं।

प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर:
कामेश नाग ,
535, रामनगर
लखनऊ
14-3-2015
प्रिय हडसन एंड्री
सप्रेम नमस्कार!
कैसे हो? आशा है, तुम सानंद होगे। तुम्हारी माताजी तथा पिताजी भी प्रसन्न होंगे। प्रिय एंड्री, इस बार मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ एक मई से आरंभ होंगी। इन दिनों तुम्हारी भी छुट्टियाँ होती हैं। मैं चाहता हूँ कि इस बार तुम भारत आओ। मैं तुम्हें यहाँ के प्रसिद्ध पर्वतीय स्थान दिखाना चाहता हूँ। मैं तुम्हें यहाँ के प्रसिद्ध हिमालय पर्वत की सैर कराकर लाऊँगा। मुझे तुम्हारे साथ ऑस्ट्रेलिया में बिताए हुए दिन अभी तक याद हैं। मैं चाहता हूँ कि इस बार हम भारत-भ्रमण करें। तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में
तुम्हारा
पना कामेश

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोधक छाँटकर अलग लिखिए
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से
जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर:
(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) और, लेकिन।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
फ़ादर बुल्के का अंग्रेजी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्त्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न
फ़ादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुईं हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
भगिनी निवेदिता-वे मूलतः इंग्लैंड की रहने वाली थीं। वे वहाँ एक विद्यालय चलाती थीं। वे स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आईं तो अभिभूत हो उठीं। स्वामी विवेकानंद ने एक दिन समाज कल्याण के लिए नारी शक्ति का आह्वान किया। भगिनी निवेदिता इसके लिए तैयार हो गईं। वे उनके साथ भारत चली आईं। उन्होंने यहाँ नारी विद्यालय खोले।

प्रश्न
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर:
हरगोविंद खुराना भारत में जन्मे किंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि अमरीका को बनाया।

प्रश्न
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं-इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
भारत के अनेक प्रतिभाशाली लोग पश्चिम की चमक-दमक में जीने के लिए अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों में चले जाते हैं। अपनी जन्मभूमि की कीमत पर वहाँ रहना अनुचित है। भारत माँ का अन्न खाना और सेवा परदेश की करना किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है? [A.I. CBSE 2008; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009;CBSE]
उत्तर:
लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब की आँखों में असंतोष छा गया। ऐसे लगा मानो लेखक के आने से उनके एकांत में बाधा पड़ गई हो। उन्होंने लेखक से कोई बातचीत नहीं की। उनकी तरफ़ देखा भी नहीं। वे खिड़की के बाहर देखने का नाटक करने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे। इससे लेखक को पता चल गया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने को उत्सुक नहीं हैं।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है? [Imp.][CBSE 2008, 2008 C; CBSE]
उत्तर:
नवाबों के मन में अपनी नवाबी की धाक जमाने की बात रहती है। इसलिए वे सामान्य समाज के तरीकों को ठुकराते हैं तथा नए-नए सूक्ष्म तरीके खोजते हैं, जिससे उनकी अमीरी प्रकट हो। नवाब साहब अकेले में बैठे-बैठे खीरे खाने की तैयारी कर रहे थे। परंतु लेखक को सामने देखकर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया की रीत से हटकर खीरे सँधे और बाहर फेंक दिए। इस प्रकार उन्होंने लेखक के मन पर अपनी अमीरी की धाक जमा दी।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कह तक सहमत हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE 2010; CBSE]
उत्तर:
हम यशपाल के विचारों से सहमत हैं। बिना घटना, बिना पात्र और बिना विचार के कहानी नहीं लिखी जा सकती। कहानी का अर्थ ही है-‘क्या हुआ’ उसे कहना। अतः जब घटना नहीं होगी तो यह कैसे पता चलेगा कि क्या हुआ? बिना पात्रों के कुछ होगा कैसे, घटेगा कैसे? कहानी में कोई-न-कोई विचार, बात या उद्देश्य भी अवश्य होता है।

प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? और क्यों? [CBSE]
उत्तर:
हवाई भोज
या
खयाली भोजन
क्यों इस निबंध में मुख्य घटना नवाब साहब की है जो कल्पना से ही खीरे का स्वाद ले रहे हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। [CBSE 2012, 2010]
अथवा
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों के साथ क्या प्रक्रिया की? [CBSE]
उत्तर:
नवाब साहब बड़े आराम के साथ पालथी मारकर बैठे। उनके सामने तौलिए पर कुछ ताजे-कच्चे खीरे रखे हैं। वे ऐसे बैठे हैं मानो दिनभर में उन्हें एक यही महत्त्वपूर्ण काम करना है। धीरे-से उन्होंने तौलिए को उठाया, झाड़ा और बिछाया। अब सीट के नीचे से पानी का लोटा उठाया। उस पानी से खिड़की के बाहर करके खीरे धोए। धोए हुए खीरे तौलिए पर रखे। फिर एक खीरे को उठाया। जेब से चाकू निकाला। चाकू से खीरे का सिर काटा। एक सिरे को चाकू से गोदा। उसकी झाग निकाली। फिर बड़ी कलाकारी और कोमलता से खीरे को छीला। तत्पश्चात् उसे काटकर उसकी फाँकें बनाईं। उन्हें एक-एक करके बड़े क्रम से सजाकर तौलिए पर रखा। अब उस पर जीरा-नमक और लाल मिर्च की सुर्ख बुरकी। अब ये खीरे खाने के लिए तैयार थे।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए। [CBSE]
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
हाँ, सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। प्रायः गाँधी, सुभाष, विवेकानंद, मदन मोहन मालवीय आदि महापुरुष भी सनकी हुए हैं। उन्हें जिस चीज़ की सनक सवार हो जाती है उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। कौन नहीं जानता कि गाँधी जी को अहिंसात्मक आंदोलनों की सनक थी। आंदोलन में जरा-सी भी हिंसा हुई तो वे आंदोलन वापस ले लेते थे। विवेकानंद को ईश्वर को जानने की सनक थी। वे जिस किसी संत-महात्मा से मिलते थे, उनसे पूछते-क्या आपने ईश्वर को देखा है। उनकी इसी सनक ने उन्हें ज्ञानी बना दिया। वे रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ गए। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे? [CBSE 2008 C; CBSE]
उत्तर:
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह तन से बहुत बूढ़ा और मरियल-सा था। परंतु उसके मन में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वह सुभाषचंद्र का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को देखकर आहत था। इसलिए अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था। उसकी इसी भावना को देखकर ही लोगों ने उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी या सेना का कैप्टन कहकर सम्मान दिया। चाहे उसका यह नाम व्यंग्य में रखा गया हो, फिर भी वह ठीक नाम था। वह कस्बे का अगुआ था।

प्रश्न 2.
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है? [CBSE 2012, 2010]
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? [CBSE 2012]
उत्तर:
(क) हालदार साहब यह जानकर मायूस हो गए थे कि कैप्टन की मृत्यु हो चुकी है। अतः अब उस कस्बे में सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को चश्मा पहनाने वाला कोई न रहा होगा। अब मूर्ति बिना चश्मे के ही खड़ी होगी।
(ख) मूर्ति पर लगा सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि यह धरती देशभक्ति से शून्य नहीं हुई है। एक कैप्टन नहीं रहा, तो अन्य लोग उस दायित्व को सँभालने के लिए तैयार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकंडे का चश्मा किसी गरीब बच्चे ने बनाया है। अतः उम्मीद है कि ये बच्चे गरीबी के बावजूद भी देश को ऊपर उठाने का प्रयास करते रहेंगे।
(ग) हालदार साहब के लिए सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाना ‘इतनी-सी बात नहीं थी। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। यह बात उनके मन में आशा जगाती थी कि कस्बे-कस्बे में देशभक्ति जीवित है। देश की नई पीढ़ी में देश-प्रेम जीवित है। इस खुशी और आशा से वे भावुक हो उठे।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 1
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प्रश्न 9.
सीमा पर तैनात फ़ौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे- सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि।
अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर:
सामान्य जीवन में देश-प्रेम प्रकट करने के कई प्रकार हो सकते हैं। जैसे, पानी को व्यर्थ न बहने देना, बिजली की तबाही को रोकना। इधर-उधर गंदगी न फैलने देना। प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना। देशवासियों को देश और समाज का अपमान करने से रोकना। फिल्मवालों और कलाकारों को अपने संतों, ऋषियों और महापुरुषों की मज़ाक करने से रोकना।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर:
मानो कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़ा फ्रेम चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाए? तो उसे मूर्तिवाला फ्रेम दे देता है। मूर्ति पर कोई अन्य फ्रेम लगा देता है।

प्रश्न 11.
‘भई खूब! क्या आइडिया है।’ इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा से कुछ शब्द उधार लेती है। कई बार दूसरी भाषा के शब्द ऐसे अर्थ और प्रभाव वाले होते हैं कि अपनी भाषा में नहीं होते। जैसे उपर्युक्त वाक्य में दो शब्द हैं-‘खूब’ तथा ‘आइडिया’। ‘खूब’ उर्दू शब्द है। ‘आइडिया’ अंग्रेजी शब्द है। ‘खूब’ में गहरी प्रशंसा का भाव है। यह भाव हिंदी के ‘सुंदर’ या ‘अद्भुत’ में नहीं है। इसी प्रकार ‘आइडिया’ में जो भाव है, वह हिंदी के शब्द ‘विचार’, ‘युक्ति’ या ‘सूझ’ में नहीं है। इससे पता चलता है कि अन्य भाषाओं के शब्द हमारी भाषा को समृद्ध करते हैं। परंतु यदि उनका प्रयोग अनावश्यक हो, दिखावे-भर के लिए हो या जानबूझकर हो तो वे शब्द खलल डालते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
( ग ) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
उत्तर:
(क) तो-तुमने मुझे जो काम करने को दिया था, वह कर तो दिया। भी-तुम्हारे साथ यह भी चलेगा।
(ख) ही-हमारे देश की रक्षा नौजवानों ने ही की।
(ग) तो-मेरे पास दस्ताने थे तो सही लेकिन मैंने पहने नहीं।
(घ) भी-उस मूर्ख को तुम भी नहीं समझा पाओगे।
(ङ) तक-उसने मेरे कमरे की ओर झाँका तक नहीं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
( ख ) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ़ बता दिया था।
(घ ) ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर:
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ़ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 14.
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए जैसे-अब चलते हैं। -अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर:
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
( ख ) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया नहीं जाता।

पाठेतर सक्रियता

लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर:
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के मन में बहुत उत्साह आया होगा। खुशी के मारे उसके पाँव धरती पर न पड़े होंगे। उसे लगा होगा कि अब पूरे कस्बे के लोग उसकी कला को देखेंगे, सराहेंगे। सबकी जुबान पर उसका ही नाम होगा। उसे खूब सराहना मिलेगी, यश मिलेगा।
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार और अन्य कलाकारों को वाहवाही देकर प्रोत्साहन दे सकते हैं। यदि वह शिल्पकार है तो हम उसी से बनी चीजें खरीद सकते हैं। यदि वह संगीतकार है तो उसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में गाने का अवसर दे सकते हैं। उसका गाना सुनकर खूब तालियाँ बजा सकते हैं। उसे धन-मान देकर सम्मानित कर सकते हैं। उसके लिए पुरस्कार की योजना कर सकते हैं। यदि उसके लिए धन कमाने का कोई अवसर आता है तो वह दिला सकते हैं। इसी भाँति हम समय-समय पर चित्रकारों के चित्रों की प्रदर्शनी लगा सकते हैं। उनसे चित्र खरीद सकते हैं।

प्रश्न
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा-कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस संदर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए।

सुरेश शर्मा
परीक्षा भवन
अ.ब.स. विद्यालय
नई दिल्ली।
विषय : चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रबंध।
महोदय
मैं आपका ध्यान हमारे विद्यालय के चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की ओर दिलाना चाहता हूँ। दुर्भाग्य से हमारे कुछ साथी टाँगों से और कुछ आँखों से लाचार हैं। यद्यपि वे छात्र अपनी इच्छाशक्ति के बल पर सारी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं, परंतु विद्यालये का कर्तव्य है कि वह उनके लिए कुछ व्यवस्थाएँ करे। बरामदों पर चढ़ने के लिए जहाँ सीढ़ियाँ हैं, वहाँ बीच में कहीं-कहीं रैंप बनवाया जाए। जो कक्षाएँ ऊपर की मंजिलों पर लगती हैं, उन तक पहुँचने के लिए भी रैंप की व्यवस्था होनी चाहिए। अंधे छात्रों के लिए पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए ब्रेल लिपि की पुस्तकें मँगवाई जानी चाहिए। आशा है, आप इनकी ओर ध्यान देंगे।
धन्यवाद!
भवदीय
सुरेश शर्मा
कक्षा दशम ‘क’
अनुक्रमांक 157
दिनांक : 13-3-2015

प्रश्न
कैप्टन फेरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर:
भारत में परंपरागत व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेरीवालों के हाथ में रहा है। ये फेरीवाले व्यापारी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। परंतु इन्हें व्यापार में सबसे नीचा दर्जा प्राप्त है। यह बात सच है कि फेरीवाले गरीब होते हैं। इसी कारण वे एक जगह टिककर माल नहीं बेचते। घूम-घूम कर माल बेचना उनकी मजबूरी होती है, शौक नहीं।
हमारी सरकारें समय-समय पर व्यापारियों के कल्याण के लिए बहुत सुविधाएँ जुटाती हैं। परंतु फेरीवाले उपेक्षित रहते हैं। इनकी गिनती दिहाड़ी मज़दूरों में भी नहीं होती। ये बेचारे रोज-रोज अपना माल गठरियों, रेहड़ियों, साइकिलों या अन्य वाहनों पर लादे-लादे घूमते हैं। सुविधाओं के अभाव में ही इन्हें अपने कंधों पर बोझ ढोना पड़ता है। सरकार चाहे तो फेरीवालों के लिए रियायती दर पर वाहनों की व्यवस्था कर सकती है। इन्हें बैंकों से आसान दर पर पैसा उधार मिल सकता है। इनके लिए सामान रखने के सेंटर खुल सकते हैं।
ये फेरीवाले गाँव-गाँव घूमकर उन बड़े-बूढ़ों और सुदूर रहने वालों को माल पहुँचाते हैं जो बाजार में जा नहीं पाते। ये चलते-फिरते बाज़ार हैं। गाँववासी हों या शहरवासी–इनकी बहुत-सी ज़रूरतें ये फेरीवाले पूरा करते हैं। इसलिए इनकी समस्याओं पर विचार होना चाहिए।

प्रश्न
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं तैयार करें।

प्रश्न
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है?
उत्तर:
नगरपालिका ने हमारे लिए जल, सीवर, बिजली, सफाई और पार्को की व्यवस्था की है। हमारी गलियों में सदा ‘स्ट्रीट लाइट’ रहती है। नगरपालिका की जल-आपूर्ति होती है। सीवर की पाइप-लाइन भी नगरपालिका ने डलवाई है। एक जमादार सफाई करने के लिए भी रखा गया है। परंतु वह आता नहीं है। नगरपालिका ने एक पार्क भी बनवा रखा है। जिसे प्रायः हरा-भरा रखा जाता है।
हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इन व्यवस्थाओं को बनाए रखने में नगरपालिका का सहयोग करें। कोई व्यवस्था गड़बड़ा जाए तो इसकी उचित शिकायत उचित कार्यालय में करें। पार्क, गलियाँ साफ-स्वच्छ रखें। गलियों में लगे बल्ब, टूटियाँ सुरक्षित रखें।

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